Tuesday 14 December 2021

खामोशियां: क्यों पति को इग्नोर कर रही थी रोमा?

देखने में तो घर में सब सामान्य लग रहा था पर ऐसा था नहीं. रोमा के दिल में एक तूफ़ान सा उठा था. वह कैसे बाहर जाए, सारा दिन तो घर में नहीं बैठ सकती थी, वह भी वन बैडरूम के इस फ्लैट में.

सुजय से बात करने के लिए रोमा को कोई कोना नहीं मिल रहा था. पति रवि कोरोना के टाइम में पूरा दिन घर में रहता, सारा दिन वर्क फ्रौम होम करता. 2 साल का बेटा सोनू खूब खुश था कि मम्मीपापा सारा दिन सामने हैं. पर मां के दिल में उठते तूफ़ान को वह 2 साल का बच्चा कैसे जान पाता.

जैसे ही औफिस के काम से कुछ छुट्टी मिलती, रवि घर के कामों में रोमा का खूब हाथ बंटाता. पर फिर भी रोमा के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से के भाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो उस ने कहा, “रोमा, घर के काम जो भी मुश्किल लग रहे हैं, मुझे बता दिया करो, तुम्हारे चेहरे से तो हंसी जैसे गायब हो गई है.”

रोमा फट पड़ी, “नहीं रहा जाता मुझ से पूरा दिन घर में बंद हो कर.”

“पर डिअर, तुम तो पहले भी घर पर ही रहती थीं न, मैं ही तो औफिस जाता था और मैं तो चुपचाप हूं घर पर, कोई शिकायत भी नहीं करता. तुम्हें और सोनू को देख कर ही खुश हो जाता हूं.”

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रोमा मन ही मन फुंफकारती रह गई. कैसे कहे किसी से कि सुजय से प्यार हो गया है उसे और वह रोज उस से मिलती थी. शाम को जब वह सोनू को ले कर पार्क में जाती, तो वह भी वहीं दौड़ रहा होता. आंखों ही आंखों में उस के सुगठित शरीर को देख कर तारीफ़ कर उठती तो सुजय भी समझ जाता और उसे देख एक स्माइल करता पास से निकल जाता. धीरेधीरे हायहैलो से शुरू हुई बातचीत अब एक अच्छाख़ासा अफेयर बन चुकी थी. सुजय अविवाहित था. वह पास की ही एक बिल्डिंग में अपने पेरैंट्स और एक छोटी बहन के साथ रहता था.

रवि की अनुपस्थिति में रोमा ने एकदो बार सुजय को घर भी बुलाया था. ज्यादातर बातें मिलने पर या फोन पर ही होतीं. रोज मिलना एक नियम बन गया था. अच्छी तरह सजसंवर कर रोज सोनू को ले कर पार्क में जाना और सुजय से बातें करना जैसे रोमा को एक नए उत्साह से भर जाता.

अब लौकडाउन में सबकुछ बंद था. पार्क को बंद कर दिया गया था. सामान लेने के बहाने भी वह बाहर नहीं जा सकती थी. शौप्स बंद थीं. सब सामान औनलाइन आ रहा था. सुजय भी बाहर नहीं निकल रहा था.

सुजय के कभीकभी एकदो मैसेज आते जिन्हें रोमा फौरन डिलीट इसलिए करती कि कहीं रवि देख न ले. रवि रोमा को खुश रखने की बहुत कोशिश कर रहा था. पर रोमा की चिड़चिड़ाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. रात के अंतरंग पलों में जब रोमा का मन होता तो

रवि का साथ देती, जब सुजय की तरफ मन खिंच रहा होता तो रवि का हाथ झटक देती.

रोमा जानती थी कि रवि एक सादा इंसान है जिस की ख़ुशी पत्नी और बच्चे को खुश देखने में ही है. न रवि में कोई ऐब था, न कोई और बुराई. कमाल की सादगी थी उस में. पर रोमा अलग स्वभाव की लड़की थी जिस ने पेरैंट्स के दबाव में आ कर रवि से शादी कर तो ली थी पर शादी के बाद सुजय से संबंध रखने में जरा भी नहीं हिचकिचाई थी. वह हमेशा रवि पर हावी

रहने की कोशिश करती.

एक दिन रवि ने पूछा, “रोमा, तुम मुझ से शादी कर के खुश तो हो न? आजकल जब से मैं घर

पर हूं, तुम बहुत गुस्से में दिखती हो.”

“शादी तो हो ही गई, अब खुश रहूं या दुखी, क्या फर्क पड़ता है, रोमा ने अनमनी हो कर जवाब दिया तो रवि ने उसे बांहों में भर कर कहा, “मुझे बताओ तो, आजकल क्यों इतना मूड खराब रहता है तुम्हारा?”

“मुझे घर में घुटन हो रही है, मुझे बाहर जाना है.”

“अच्छा,बताओ, कहां जाना है, मैं घुमा कर लाता हूं. पर, सब तो बंद है.”

“तुम्हारे साथ नहीं, अकेले जाने का मन है,” रोमा ने सपाट स्वर में कहा तो रवि उस का मुंह देखता रह गया. रोमा ने उस का बढ़ा हुआ हाथ झटका और बेरुखी से वहां से चली गई.

रवि की कुछ जरूरी मीटिंग थी, वह लैपटौप पर बैठ तो गया पर उस का दिल आज बहुत उदास था. वह सोचने लगा, क्या मिल रहा है उसे अपने पेरैंट्स की पसंद से शादी कर के. रोमा उसे पसंद नहीं करती, यह एहसास उसे होने लगा था. उस के पेरैंट्स रोमा से कुंडली मिलने पर बहुत

खुश हुए थे कि खूब अच्छी जोड़ी रहेगी. पर आज वह अपने मन का दुख किसी से भी शेयर नहीं कर सकता था.

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रोमा से रुका नहीं गया तो रवि जब एक दिन नहाने गया, उस ने सुजय को फोन मिला दिया. सुजय मीटिंग में था. वह भी घर से काम कर रहा था. वह फोन नहीं उठा पाया. रोमा का दिल बुझ गया. सुजय ने जब वापस उसे फोन किया तो रवि आसपास था. वह फोन नहीं उठा पाई और उसे रवि पर इतनी जोर से गुस्सा आया कि उस ने रवि को नाश्ते की प्लेट इतनी जोर से पटक कर दी कि रवि को गुस्सा आ गया, बोला, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? यह खाना देने की तमीज है तुम्हारी?”

रोमा पर सुजय का भूत सवार था, आवारागर्दियां याद आ रही थीं, चिल्ला कर बोली, “खाना है, तो खाओ वरना मेरी बला से.”

रोमा के इतनी जोर से चिल्लाने पर सोनू डर कर जोर से रो उठा. रवि ने उसे सीने से लगा लिया और चुप करवाने लगा. अभी जो भी हुआ था, रवि को यकीन ही नहीं आ रहा था कि कभी रोमा ऐसे भी बात कर सकती है. वह हैरान था, खामोश था. यह खामोशी अब उसे अंदरअंदर जलाने लगी थी. क्या हुआ है रोमा को, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रोमा का फोन कभी रवि ने चैक नहीं किया था. उस ने रोमा के पर्सनल स्पेस में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था. उस ने हमेशा उसे पूरी आज़ादी दी थी. गलती कहां हो रही है जो घर का माहौल इतना खराब होता जा रहा था, यह सोचसोच कर रवि का दिमाग परेशान हो चुका था.

एक दिन लंच कर के रोमा सोनू के साथ सोने के लिए लेटी. रवि लिविंगरूम में काम कर रहा था. रोमा ने सुजय को मैसेज किए. उधर से भी फौरन रोमांस शुरू हो गया. सुजय की बेचैनी देख रोमा को अच्छा लगा पर मिलने की मजबूरी ने रोमा का फिर मूड खराब कर दिया और उसे रवि पर फिर गुस्सा आने लगा कि पता नहीं कितने दिनों तक रवि घर में बैठा रहेगा, कब जाएगा औफिस. थोड़ी देर में फोन रख वह बिना बात के किचन में जा कर खटपट करने लगी. रवि ने इशारा किया कि वह जरूरी मीटिंग में है, शोर न हो. पर रोमा जानबूझ कर और शोर करने लगी. यहां तक कि लिविंगरूम में रखा टी वी भी चला कर बैठ गई. मीटिंग से

उठते ही रवि ने रोमा को डांटा, “यह क्या बदतमीजी है, टीवी अभी देखना जरूरी था?”

“तो कब देखूं? सारा दिन तो घर में डटे हो, कहीं जाते भी नहीं जो थोड़ी देर चैन से जी लूं. सारी प्राइवेसी ख़त्म हो गई मेरी. अपनी मरजी से जी भी नहीं सकती,” यह कहतेकहते रोमा ने रिमोट जोर से सोफे पर पटका तो रवि ने यह सोच कर कि सोनू फिर न रोने लगे, अपनी आवाज धीरे की और समझाया, “क्यों इतनी परेशान हो रही हो, अच्छा, तुम देख लो टीवी, मैं अंदर ही बैठ कर काम कर लूंगा.” यह कह कर रवि अपना लैपटौप उठा कर अंदर जाने लगा तो रोमा ने अंदर जाते हुए कहा, “नहीं, अब मैं आराम करने जा रही हूं.”

हैरानपरेशान रवि सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या हो गया है रोमा को, कैसे चलेगा ऐसे. फिर सोचा, शायद घर में रहरह कर सभी को ऐसी ही परेशानी है, वह खुद एडजस्ट कर लेता है हर चीज तो जरूरी तो नहीं कि कोई और परेशान न हो. छोटा बच्चा है, उस के भी काम आदि करने में वह थक जाती होगी. मेड आ नहीं रही है, लखनऊ में केसेस भी काफी हो गए हैं.

कहां इस सोसाइटी में रोमा कितनी ख़ुशी से घूमतीफिरती थी, कहां उस का सबकुछ बंद हो गया. किस पर गुस्सा निकलेगा, मुझ पर ही न, सब रिश्तेदार भी जब फोन पर बातें करते हैं, यही कोरोना की बातें तो रह गई हैं. इंसान खुश भी हो तो किस बात पर. कहीं तो चिढ़ निकलेगी ही न रोमा की. नहीं, ये हालात की ही बात है.

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सबकुछ रोमा के पक्ष में ही सोच कर रवि फिर रोमा के पास जा कर बैठ गया और उस का सिर सहलाने लगा. सोनू सोया हुआ था. सुजय ने अभी चैट शुरू ही की थी कि रवि के आने से उस में विघ्न पड़ गया. रोमा आगबबूला हो गई, गुर्राई, “तुम चैन से मत जीने देना मुझे.”

रवि का चेहरा अपमान से लाल हो गया. क्याक्या सोच कर वह रोमा के पास आया था. चुपचाप उठ कर सोफे पर आ कर लेट गया. आंखों की कोरों से नमी सी बह निकली.

सोसाइटी की हर बिल्डिंग में पार्किंग के एरिया में थोड़ी खुली जगह थी. वहां रात को इक्कादुक्का लोग टहलने के लिए आ जाते. सुजय ने प्रोग्राम बनाया कि रात 9 बजे डिनर के बाद वहां टहलते हुए, दूर से ही सही, एकदूसरे को देखा जा सकता है. और कोई न रहा, तो बातें भी हो सकती हैं. रोमा को यही सब तो चाहिए था. वह चहक उठी. उस दिन रवि से भी कुछ बदतमीजी नहीं की.

रवि ने भी अब खामोशी ओढ़ ली थी. हर समय रोमा का मूड देख कर ही बात करना मुश्किल था. अब वह सिर्फ काम की ही बात करता, सोनू से खेलता और घर के कई काम चुपचाप करता रहता. रोमा डिनर के बाद अकेली टहलने जाने लगी. यह एक नियम सा बन गया. कहां रवि और सोनू को घर से निकलते हुए लंबा टाइम हो जाता, वहां रोमा रोज अब चहकती सी जाने लगी.

रवि ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, इतने से ही रोमा खुश है, तो अच्छा है. इस का मतलब, यह बस घर में ही परेशान हो रही थी. इस का बाहर जाना बंद हो गया था, इसलिए यह गुस्से में रहती थी. ऐसा तो कोरोना के टाइम में बहुत से लोगों के साथ हुआ

है. चलो, कोई बात नहीं.

सुजय के पेरैंट्स कुछ बीमार चल रहे थे, इसलिए उस ने रोमा को मैसेज किया, “रोमा, कुछ दिन अब फिर नहीं मिलेंगे, मम्मीपापा का ध्यान रखना है. नीचे काफी लोग आने लगे हैं. मैं कहीं कोई इंफैक्शन न ले आऊं, मम्मीपापा को कोई प्रौब्लम न हो जाए, इसलिए घर पर ही रहूंगा अभी. फिर कभी मिलेंगे.”

रोमा को फिर एक झटका सा लगा. उस का मूड खराब हो गया. उसे तो यही लगने लगा था कि लाइफ में जो भी उत्साह है, सब सुजय से है. रवि तो घर में रहरह कर उस की प्राइवेसी को ही भंग करता है. रवि के कारण ही वह फोन पर सुजय से बात भी नहीं कर पाती है. रवि पर वह फिर खूब बरसने लगी. रवि परेशान था. वह कितना चुप रहे, क्या करे, लड़नाझगड़ना उस की फितरत ही नहीं थी. बेहद शांत स्वभाव का इंसान ऐसी स्थिति में खामोश रहना ही हल

समझने लगता है. रवि भी वही कर रहा था.

कुछ दिन ऐसे ही खराब, अनमने से बीते. फिर एक दिन सुजय का मैसेज आया, “रोमा, बहुत बढ़िया मौका है. यहां से थोड़ी दूर की सोसाइटी में हमारा जो फ्लैट किराए पर था, वह किराएदार अपने घर चला गया है. अब वह फ्लैट खाली है. फुली फर्निश्ड है. वहां मिल सकते हैं. कितने दिन हो गए, तुम्हें जीभर देखा भी नहीं, आओगी?”

रोमा ने टाइप किया, “आना है तो बहुत मुश्किल, पर कोशिश करूंगी.”

“अरे, यह मौका जाने दोगी?”

“रवि से क्या कहूंगी? वह वर्क फ्रौम होम करता है, सोनू को भी देखना होता है.”

“यार, ये सब अब तुम देखो, आओ किसी तरह.”

रोमा ने सारा दिमाग लगा दिया कि कैसे निकले घर से, कोई बहाना काम करता नहीं दिख रहा था. बात नहीं बनी तो सारे कोप का भाजन रवि ही बनता चला गया. उस दिन रवि लंच लगाने में हैल्प करने उठा तो रोमा ने कहा, “रहने दो, मैं कर लूंगी.”

 

रवि कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्लेट्स रखता रहा. आजकल वह खामोश होता जा रहा था. कुकर गरम था. जैसे ही वह राइस का कुकर उठा कर लाने लगा, रोमा के दिल में सुजय से न मिल पाने की कसक उस पर इतनी हावी थी कि उस ने चिढ़ कर उसे धक्का सा दे दिया. गरम कुकर रवि के हाथ से छूट कर उस के पैर पर गिरा. वह दर्द से तड़प उठा. रोमा ने एक जलती निगाह उस पर डाली, फिर कुकर उठा टेबल पर जा कर रखा और सोनू को पास रखी चेयर पर बिठाया व अपनी प्लेट में खाना निकाल कर खुद भी खाने लगी और उसे भी खिलाने लगी.

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रवि अब तक अपने पैर पर लगाने के लिए फ्रिज से आइस पैक निकाल कर सोफे पर आ कर बैठ गया. रोमा पर नजर डाली, वह आराम से रवि को अनदेखा कर खाना खाने में बिजी थी. जलन से रवि का बुरा हाल था. बहने को तैयार आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था रवि ने. कौन कहता है पुरुष को रोना नहीं आता, आता है जबजब रोमा जैसी पत्नियां इस पर उतर आती हैं कि उन्हें अपनी मौजमस्ती के आगे घर, पति बंधन लगने लगें तब यही होता है. पुरुष के सीने में ऐसी खामोशियों का सागर तूफ़ान मचा रहा होता है जिन की आवाज भी बाहर नहीं आ पाती. इन खामोशियों का शोर बहुत जानलेवा होता है.

बहुत ही बेबस रवि को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह आराम से खाना खाती रोमा को देखता रह गया. उसे किस बात की सजा मिल रही है, यह वह समझ ही नहीं पा रहा था.

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देखने में तो घर में सब सामान्य लग रहा था पर ऐसा था नहीं. रोमा के दिल में एक तूफ़ान सा उठा था. वह कैसे बाहर जाए, सारा दिन तो घर में नहीं बैठ सकती थी, वह भी वन बैडरूम के इस फ्लैट में.

सुजय से बात करने के लिए रोमा को कोई कोना नहीं मिल रहा था. पति रवि कोरोना के टाइम में पूरा दिन घर में रहता, सारा दिन वर्क फ्रौम होम करता. 2 साल का बेटा सोनू खूब खुश था कि मम्मीपापा सारा दिन सामने हैं. पर मां के दिल में उठते तूफ़ान को वह 2 साल का बच्चा कैसे जान पाता.

जैसे ही औफिस के काम से कुछ छुट्टी मिलती, रवि घर के कामों में रोमा का खूब हाथ बंटाता. पर फिर भी रोमा के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से के भाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो उस ने कहा, “रोमा, घर के काम जो भी मुश्किल लग रहे हैं, मुझे बता दिया करो, तुम्हारे चेहरे से तो हंसी जैसे गायब हो गई है.”

रोमा फट पड़ी, “नहीं रहा जाता मुझ से पूरा दिन घर में बंद हो कर.”

“पर डिअर, तुम तो पहले भी घर पर ही रहती थीं न, मैं ही तो औफिस जाता था और मैं तो चुपचाप हूं घर पर, कोई शिकायत भी नहीं करता. तुम्हें और सोनू को देख कर ही खुश हो जाता हूं.”

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रोमा मन ही मन फुंफकारती रह गई. कैसे कहे किसी से कि सुजय से प्यार हो गया है उसे और वह रोज उस से मिलती थी. शाम को जब वह सोनू को ले कर पार्क में जाती, तो वह भी वहीं दौड़ रहा होता. आंखों ही आंखों में उस के सुगठित शरीर को देख कर तारीफ़ कर उठती तो सुजय भी समझ जाता और उसे देख एक स्माइल करता पास से निकल जाता. धीरेधीरे हायहैलो से शुरू हुई बातचीत अब एक अच्छाख़ासा अफेयर बन चुकी थी. सुजय अविवाहित था. वह पास की ही एक बिल्डिंग में अपने पेरैंट्स और एक छोटी बहन के साथ रहता था.

रवि की अनुपस्थिति में रोमा ने एकदो बार सुजय को घर भी बुलाया था. ज्यादातर बातें मिलने पर या फोन पर ही होतीं. रोज मिलना एक नियम बन गया था. अच्छी तरह सजसंवर कर रोज सोनू को ले कर पार्क में जाना और सुजय से बातें करना जैसे रोमा को एक नए उत्साह से भर जाता.

अब लौकडाउन में सबकुछ बंद था. पार्क को बंद कर दिया गया था. सामान लेने के बहाने भी वह बाहर नहीं जा सकती थी. शौप्स बंद थीं. सब सामान औनलाइन आ रहा था. सुजय भी बाहर नहीं निकल रहा था.

सुजय के कभीकभी एकदो मैसेज आते जिन्हें रोमा फौरन डिलीट इसलिए करती कि कहीं रवि देख न ले. रवि रोमा को खुश रखने की बहुत कोशिश कर रहा था. पर रोमा की चिड़चिड़ाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. रात के अंतरंग पलों में जब रोमा का मन होता तो

रवि का साथ देती, जब सुजय की तरफ मन खिंच रहा होता तो रवि का हाथ झटक देती.

रोमा जानती थी कि रवि एक सादा इंसान है जिस की ख़ुशी पत्नी और बच्चे को खुश देखने में ही है. न रवि में कोई ऐब था, न कोई और बुराई. कमाल की सादगी थी उस में. पर रोमा अलग स्वभाव की लड़की थी जिस ने पेरैंट्स के दबाव में आ कर रवि से शादी कर तो ली थी पर शादी के बाद सुजय से संबंध रखने में जरा भी नहीं हिचकिचाई थी. वह हमेशा रवि पर हावी

रहने की कोशिश करती.

एक दिन रवि ने पूछा, “रोमा, तुम मुझ से शादी कर के खुश तो हो न? आजकल जब से मैं घर

पर हूं, तुम बहुत गुस्से में दिखती हो.”

“शादी तो हो ही गई, अब खुश रहूं या दुखी, क्या फर्क पड़ता है, रोमा ने अनमनी हो कर जवाब दिया तो रवि ने उसे बांहों में भर कर कहा, “मुझे बताओ तो, आजकल क्यों इतना मूड खराब रहता है तुम्हारा?”

“मुझे घर में घुटन हो रही है, मुझे बाहर जाना है.”

“अच्छा,बताओ, कहां जाना है, मैं घुमा कर लाता हूं. पर, सब तो बंद है.”

“तुम्हारे साथ नहीं, अकेले जाने का मन है,” रोमा ने सपाट स्वर में कहा तो रवि उस का मुंह देखता रह गया. रोमा ने उस का बढ़ा हुआ हाथ झटका और बेरुखी से वहां से चली गई.

रवि की कुछ जरूरी मीटिंग थी, वह लैपटौप पर बैठ तो गया पर उस का दिल आज बहुत उदास था. वह सोचने लगा, क्या मिल रहा है उसे अपने पेरैंट्स की पसंद से शादी कर के. रोमा उसे पसंद नहीं करती, यह एहसास उसे होने लगा था. उस के पेरैंट्स रोमा से कुंडली मिलने पर बहुत

खुश हुए थे कि खूब अच्छी जोड़ी रहेगी. पर आज वह अपने मन का दुख किसी से भी शेयर नहीं कर सकता था.

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रोमा से रुका नहीं गया तो रवि जब एक दिन नहाने गया, उस ने सुजय को फोन मिला दिया. सुजय मीटिंग में था. वह भी घर से काम कर रहा था. वह फोन नहीं उठा पाया. रोमा का दिल बुझ गया. सुजय ने जब वापस उसे फोन किया तो रवि आसपास था. वह फोन नहीं उठा पाई और उसे रवि पर इतनी जोर से गुस्सा आया कि उस ने रवि को नाश्ते की प्लेट इतनी जोर से पटक कर दी कि रवि को गुस्सा आ गया, बोला, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? यह खाना देने की तमीज है तुम्हारी?”

रोमा पर सुजय का भूत सवार था, आवारागर्दियां याद आ रही थीं, चिल्ला कर बोली, “खाना है, तो खाओ वरना मेरी बला से.”

रोमा के इतनी जोर से चिल्लाने पर सोनू डर कर जोर से रो उठा. रवि ने उसे सीने से लगा लिया और चुप करवाने लगा. अभी जो भी हुआ था, रवि को यकीन ही नहीं आ रहा था कि कभी रोमा ऐसे भी बात कर सकती है. वह हैरान था, खामोश था. यह खामोशी अब उसे अंदरअंदर जलाने लगी थी. क्या हुआ है रोमा को, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रोमा का फोन कभी रवि ने चैक नहीं किया था. उस ने रोमा के पर्सनल स्पेस में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था. उस ने हमेशा उसे पूरी आज़ादी दी थी. गलती कहां हो रही है जो घर का माहौल इतना खराब होता जा रहा था, यह सोचसोच कर रवि का दिमाग परेशान हो चुका था.

एक दिन लंच कर के रोमा सोनू के साथ सोने के लिए लेटी. रवि लिविंगरूम में काम कर रहा था. रोमा ने सुजय को मैसेज किए. उधर से भी फौरन रोमांस शुरू हो गया. सुजय की बेचैनी देख रोमा को अच्छा लगा पर मिलने की मजबूरी ने रोमा का फिर मूड खराब कर दिया और उसे रवि पर फिर गुस्सा आने लगा कि पता नहीं कितने दिनों तक रवि घर में बैठा रहेगा, कब जाएगा औफिस. थोड़ी देर में फोन रख वह बिना बात के किचन में जा कर खटपट करने लगी. रवि ने इशारा किया कि वह जरूरी मीटिंग में है, शोर न हो. पर रोमा जानबूझ कर और शोर करने लगी. यहां तक कि लिविंगरूम में रखा टी वी भी चला कर बैठ गई. मीटिंग से

उठते ही रवि ने रोमा को डांटा, “यह क्या बदतमीजी है, टीवी अभी देखना जरूरी था?”

“तो कब देखूं? सारा दिन तो घर में डटे हो, कहीं जाते भी नहीं जो थोड़ी देर चैन से जी लूं. सारी प्राइवेसी ख़त्म हो गई मेरी. अपनी मरजी से जी भी नहीं सकती,” यह कहतेकहते रोमा ने रिमोट जोर से सोफे पर पटका तो रवि ने यह सोच कर कि सोनू फिर न रोने लगे, अपनी आवाज धीरे की और समझाया, “क्यों इतनी परेशान हो रही हो, अच्छा, तुम देख लो टीवी, मैं अंदर ही बैठ कर काम कर लूंगा.” यह कह कर रवि अपना लैपटौप उठा कर अंदर जाने लगा तो रोमा ने अंदर जाते हुए कहा, “नहीं, अब मैं आराम करने जा रही हूं.”

हैरानपरेशान रवि सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या हो गया है रोमा को, कैसे चलेगा ऐसे. फिर सोचा, शायद घर में रहरह कर सभी को ऐसी ही परेशानी है, वह खुद एडजस्ट कर लेता है हर चीज तो जरूरी तो नहीं कि कोई और परेशान न हो. छोटा बच्चा है, उस के भी काम आदि करने में वह थक जाती होगी. मेड आ नहीं रही है, लखनऊ में केसेस भी काफी हो गए हैं.

कहां इस सोसाइटी में रोमा कितनी ख़ुशी से घूमतीफिरती थी, कहां उस का सबकुछ बंद हो गया. किस पर गुस्सा निकलेगा, मुझ पर ही न, सब रिश्तेदार भी जब फोन पर बातें करते हैं, यही कोरोना की बातें तो रह गई हैं. इंसान खुश भी हो तो किस बात पर. कहीं तो चिढ़ निकलेगी ही न रोमा की. नहीं, ये हालात की ही बात है.

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सबकुछ रोमा के पक्ष में ही सोच कर रवि फिर रोमा के पास जा कर बैठ गया और उस का सिर सहलाने लगा. सोनू सोया हुआ था. सुजय ने अभी चैट शुरू ही की थी कि रवि के आने से उस में विघ्न पड़ गया. रोमा आगबबूला हो गई, गुर्राई, “तुम चैन से मत जीने देना मुझे.”

रवि का चेहरा अपमान से लाल हो गया. क्याक्या सोच कर वह रोमा के पास आया था. चुपचाप उठ कर सोफे पर आ कर लेट गया. आंखों की कोरों से नमी सी बह निकली.

सोसाइटी की हर बिल्डिंग में पार्किंग के एरिया में थोड़ी खुली जगह थी. वहां रात को इक्कादुक्का लोग टहलने के लिए आ जाते. सुजय ने प्रोग्राम बनाया कि रात 9 बजे डिनर के बाद वहां टहलते हुए, दूर से ही सही, एकदूसरे को देखा जा सकता है. और कोई न रहा, तो बातें भी हो सकती हैं. रोमा को यही सब तो चाहिए था. वह चहक उठी. उस दिन रवि से भी कुछ बदतमीजी नहीं की.

रवि ने भी अब खामोशी ओढ़ ली थी. हर समय रोमा का मूड देख कर ही बात करना मुश्किल था. अब वह सिर्फ काम की ही बात करता, सोनू से खेलता और घर के कई काम चुपचाप करता रहता. रोमा डिनर के बाद अकेली टहलने जाने लगी. यह एक नियम सा बन गया. कहां रवि और सोनू को घर से निकलते हुए लंबा टाइम हो जाता, वहां रोमा रोज अब चहकती सी जाने लगी.

रवि ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, इतने से ही रोमा खुश है, तो अच्छा है. इस का मतलब, यह बस घर में ही परेशान हो रही थी. इस का बाहर जाना बंद हो गया था, इसलिए यह गुस्से में रहती थी. ऐसा तो कोरोना के टाइम में बहुत से लोगों के साथ हुआ

है. चलो, कोई बात नहीं.

सुजय के पेरैंट्स कुछ बीमार चल रहे थे, इसलिए उस ने रोमा को मैसेज किया, “रोमा, कुछ दिन अब फिर नहीं मिलेंगे, मम्मीपापा का ध्यान रखना है. नीचे काफी लोग आने लगे हैं. मैं कहीं कोई इंफैक्शन न ले आऊं, मम्मीपापा को कोई प्रौब्लम न हो जाए, इसलिए घर पर ही रहूंगा अभी. फिर कभी मिलेंगे.”

रोमा को फिर एक झटका सा लगा. उस का मूड खराब हो गया. उसे तो यही लगने लगा था कि लाइफ में जो भी उत्साह है, सब सुजय से है. रवि तो घर में रहरह कर उस की प्राइवेसी को ही भंग करता है. रवि के कारण ही वह फोन पर सुजय से बात भी नहीं कर पाती है. रवि पर वह फिर खूब बरसने लगी. रवि परेशान था. वह कितना चुप रहे, क्या करे, लड़नाझगड़ना उस की फितरत ही नहीं थी. बेहद शांत स्वभाव का इंसान ऐसी स्थिति में खामोश रहना ही हल

समझने लगता है. रवि भी वही कर रहा था.

कुछ दिन ऐसे ही खराब, अनमने से बीते. फिर एक दिन सुजय का मैसेज आया, “रोमा, बहुत बढ़िया मौका है. यहां से थोड़ी दूर की सोसाइटी में हमारा जो फ्लैट किराए पर था, वह किराएदार अपने घर चला गया है. अब वह फ्लैट खाली है. फुली फर्निश्ड है. वहां मिल सकते हैं. कितने दिन हो गए, तुम्हें जीभर देखा भी नहीं, आओगी?”

रोमा ने टाइप किया, “आना है तो बहुत मुश्किल, पर कोशिश करूंगी.”

“अरे, यह मौका जाने दोगी?”

“रवि से क्या कहूंगी? वह वर्क फ्रौम होम करता है, सोनू को भी देखना होता है.”

“यार, ये सब अब तुम देखो, आओ किसी तरह.”

रोमा ने सारा दिमाग लगा दिया कि कैसे निकले घर से, कोई बहाना काम करता नहीं दिख रहा था. बात नहीं बनी तो सारे कोप का भाजन रवि ही बनता चला गया. उस दिन रवि लंच लगाने में हैल्प करने उठा तो रोमा ने कहा, “रहने दो, मैं कर लूंगी.”

 

रवि कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्लेट्स रखता रहा. आजकल वह खामोश होता जा रहा था. कुकर गरम था. जैसे ही वह राइस का कुकर उठा कर लाने लगा, रोमा के दिल में सुजय से न मिल पाने की कसक उस पर इतनी हावी थी कि उस ने चिढ़ कर उसे धक्का सा दे दिया. गरम कुकर रवि के हाथ से छूट कर उस के पैर पर गिरा. वह दर्द से तड़प उठा. रोमा ने एक जलती निगाह उस पर डाली, फिर कुकर उठा टेबल पर जा कर रखा और सोनू को पास रखी चेयर पर बिठाया व अपनी प्लेट में खाना निकाल कर खुद भी खाने लगी और उसे भी खिलाने लगी.

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रवि अब तक अपने पैर पर लगाने के लिए फ्रिज से आइस पैक निकाल कर सोफे पर आ कर बैठ गया. रोमा पर नजर डाली, वह आराम से रवि को अनदेखा कर खाना खाने में बिजी थी. जलन से रवि का बुरा हाल था. बहने को तैयार आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था रवि ने. कौन कहता है पुरुष को रोना नहीं आता, आता है जबजब रोमा जैसी पत्नियां इस पर उतर आती हैं कि उन्हें अपनी मौजमस्ती के आगे घर, पति बंधन लगने लगें तब यही होता है. पुरुष के सीने में ऐसी खामोशियों का सागर तूफ़ान मचा रहा होता है जिन की आवाज भी बाहर नहीं आ पाती. इन खामोशियों का शोर बहुत जानलेवा होता है.

बहुत ही बेबस रवि को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह आराम से खाना खाती रोमा को देखता रह गया. उसे किस बात की सजा मिल रही है, यह वह समझ ही नहीं पा रहा था.

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December 15, 2021 at 10:00AM

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