Thursday 30 April 2020

19 दिन 19 कहानियां: सूनी आंखें

सुबह के समय अरुण ने पत्नी सीमा से कहा,”आज मुझे दफ्तर जरा जल्दी जाना है. मैं जब तक तैयार होता हूं तुम तब तक लंच बना दो ब्रेकफास्ट भी तैयार कर दो, खा कर जाऊंगा.”

बिस्तर छोड़ते हुए सीमा तुनक कर बोली,”आरर… आज ऐसा कौन सा काम है जो इतनी जल्दी मचा रहे हैं.”अरुण ने कहा,”आज सुबह 11 बजे  जरूरी मीटिंग है. सभी को समय पर बुलाया है.”

“ठीक है जी, तुम तैयार हो जाओ. मैं किचन देखती हूं,” सीमा मुस्कान बिखेरते हुए बोली.अरुण नहाधो कर तैयार हो गया और ब्रेकफास्ट मांगने लगा, क्योंकि उस के दफ्तर जाने का समय हो चुका था, इसलिए वह जल्दबाजी कर रहा था.

ये भी पढ़ें-धारावाहिक कहानी: अजीब दास्तान

गैराज से कार निकाली और सड़क पर फर्राटा भर अरुण  समय पर दफ्तर पहुंच गया. दफ्तर के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से कुरसी पर बैठा था, तभी दफ्तर के दरवाजे पर एक अनजान औरत खड़ी अजीब नजरों से चारों ओर देख रही थी.

चपरासी दीपू के पूछने पर उस औरत ने बताया कि वह अरुण साहब से मिलना चाहती है. उस औरत को वहां रखे सोफे पर बिठा कर चपरासी दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.‘‘मैं नहीं जानता साहब,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.चपरासी दीपू उस औरत को अरुण के केबिन तक ले गया.केबिन खोलने के साथ ही उस अजनबी औरत ने अंदर आने की इजाजत मांगी.

ये भी पढ़ें-अजीब दास्तान: भाग 3

अरुण के हां कहने पर वह औरत अरुण के सामने खड़ी हो गई. अरुण ने उस औरत को बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बताइए, मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?”

“सर, मेरा नाम संगीता है. मेरे पति सुरेश आप के दफ्तर में काम करते हैं.” अरुण बोला,”जी, ऑफिस के बहुत से काम वे देखते हैं. उन के बिना कई काम रुके हुए हैं.”

अरुण ने चपरासी दीपू को बुला कर चाय लाने को कहा.चपरासी दीपू टेबल पर पानी रख गया और चाय लेने चला गया.कुछ देर बाद ही चपरासी दीपू चाय ले आया.

चाय की चुस्की लेते हुए अरुण पूछने लगा, ” कहो, कैसे आना हुआ?’’‘‘मैं बताने आई थी कि मेरे पति सुरेश की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है, इसलिए वे कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ सकेंगे.”

“क्या हुआ सुरेश को,” हैरान होते हुए अरुण बोला”डाक्टर उन्हें अजीब सी बीमारी बता रहे हैं. अस्पताल से उन्हें आने ही नहीं दे रहे,”संगीता रोने वाले अंदाज में बोली.

संगीता को रोता हुआ देख कर अरुण बोला, “रोइए नहीं. पूरी बात बताइए कि उन को यह बीमारी कैसे लगी?””कुछ दिनों से ये लगातार गले में दर्द बता रहे थे, फिर तेज बुखार आया. पहले तो पास के डाक्टर से इलाज कराया, पर जब कोई फायदा न हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए.

“सरकारी अस्पताल में डाक्टर को दिखाया तो देखते ही उन्हें भर्ती कर लिया गया. “ये तो समझ ही नहींपाए कि इन के साथ हो क्या गया है?””जब अस्पताल से इन का फोन आया तो मैं भी सुन कर हैरान रह गई,” संगीता ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

“अभी वे अस्पताल में ही हैं,” संगीता से अरुण ने पूछा.”जी,” संगीता ने जवाब दिया.अरुण यह सुन कर परेशान हो गया. सुरेश का काम किसी और को देने के लिए चपरासी दीपू से कहा.

अरुण ने सुरेश की पत्नी संगीता को समझाते हुए कहा कि तुम अब बिलकुल चिंता न करो. घर जाओ और बेफिक्र रहो, उन्हें कुछ नहीं होगा.संगीता अरुण से आश्वस्त हो कर घर आ गई और उसे भी घर आने के लिए कहा. अरुण ने भी जल्द समय निकाल कर घर आने के लिए कहा.

“सर, कुछ कहना चाहती हूं,” कुर्सी से उठते समय संगीता ने झिझकते हुए पूछा.”हां, हां, कहिए, क्या कहना चाहती हैं आप,” अरुण ने संगीता की ओर देखते हुए कहा.”जी, मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. इन की तनख्वाह मिलने पर काट लेना,” संगीता ने सकुचाते हुए कहा.

“बताइए, कितने पैसे चाहिए?” अरुण ने पूछा.”जी, 20 हजार रुपए चाहिए थे…” संगीता संकोच करते हुए बोली.”अभी तो इतने पैसे नहीं है, आप कलपरसों में आ कर ले जाना,” अरुण ने कहा. “ठीक है,” यह सुन कर संगीता का   उदास चेहरा हो गया.

“आप जरा भी परेशान न होइए. मैं आप को पैसे दे दूंगा,” संगीता के उदास चेहरे को देख कर कहा.अरुण के दफ्तर से निकलने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता भी अपने घर लौट आई.

अगले दिन दफ्तर के काम जल्द निबटा कर अरुण कुछ सोच में डूबा था, तभी उस के मन में अचानक ही सुरेश की पत्नी संगीता की पैसों वाली बात याद आ गई.2 दिन बाद ही संगीता अरुण के दफ्तर पहुंची. चपरासी दीपू ने चायपानी ला कर दी.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: ये चार दीवारें

अरुण ने सुरेश की तबीयत के बारे में जानना चाहा. संगीता आंखों में आंसू लाते हुए बोली,”वहां तो अभी वे ठीक नहीं हैं. मैं अस्पताल गई थी, पर वहां किसी को मिलने नहीं दे रहे.”

“क्या…” अरुण हैरानी से बोला.”अस्पताल वाले कहते हैं, जब वे ठीक हो जाएंगे तो खुद ही घर आ जाएंगे.”यह जान कर अरुण हैरान हो गया कि अस्पताल वाले किसी से मिलने नहीं दे रहे. वह आज शाम को उस से मिलने जाने वाला था.

अरुण ने संगीता को 20 हजार के बजाय 30 हजार रुपए दिए और कहा कि और भी पैसे की जरूरत हो तो बताना.संगीता पैसे ले कर घर लौट आई. 21 मार्च की शाम जब अरुण हाथपैर धो कर बिस्तर पर बैठा, तभी उस की पत्नी सीमा चाय ले आई और बताने लगी कि रात 8 बजे रास्ट्र के नाम संदेश आएगा.

अरुण टीवी खोल कर तय समय पर बैठ गया. मोदी का संदेश सुनने के बाद अरुण ने पत्नी सीमा को अगले दिन रविवार को जनता कर्फ्यू के बारे में बताया कि घर से किसी को बाहर नहीं निकलना है. साथ ही, यह भी बताया कि शाम 5 बजे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर थाली या बरतन, कुछ भी बजाएं.

उस दिन शाम को जब पड़ोसी ने घर से बाहर निकल थाली बजाई तो अरुण भी शोर सुन कर बाहर आया. पत्नी सीमा भी खुश होते हुए थाली हाथ में लिए बाहर जोरजोर से बजाने लगी. उसे देख अरुण भी खुश हुआ.

सोमवार 23 मार्च को अरुण किसी जरूरी काम के निकल आने की वजह से ऑफिस नहीं गया.उसी दिनशाम को फिर से रास्ट्र के नाम संदेश आया. 21 दिनों के लॉक डाउन की खबर से वह भी हैरत में पड़ गया.

अगले दिन किसी तरह अरुण ऑफिस गया और जल्दी से सारे काम निबटा कर घर आ गया.घर पर अरुण ने सीमा को ऑफिस में साथ काम करने वाले सुरेश के बारे में बताया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है.

अगले दिन सड़क पर सख्ती होने से अरुण दफ्तर न जा सका. लॉक डाउन होने की वजह से अरुण घर में रहने को विवश था.इधर जब सुरेश को कोरोना होने की तसदीक हो गई तो संगीता के घर को क्वारन्टीन कर दिया. अब वह घर से जरा भी बाहर नहीं निकल सकती थी.

उधर क्वारन्टीन होने के कुछ दिन बाद ही अस्पताल से सुरेश के मरने की खबर आई तो क्वारन्टीन होने की वजह से वह घर से निकल नहीं सकती थी.

संगीता को अस्पताल वालों ने फोन पर ही सुरेश की लाश न देने की वजह बताई. वजह यह कि ऐसे मरीजों को वही लोग जलाते हैं ताकि किसी और को यह बीमारी न लगे.

यह सुन कर संगीता घर में ही दहाड़े मारते हुए गश खा कर गिर पड़ी. ऑफिस में भी सुरेश के मरने की खबर भिजवाई गई, पर ऑफिस बंद होने से किसी ने फोन नहीं उठाया.जब लॉक डाउन हटा तो अरुण यों ही संगीता के दिए पते पर घर पहुंच गया.

अरुण ने सुरेश के घर का दरवाजा खटखटाया तो संगीता ने ही खोला.संगीता को देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला, “कैसे हैं सुरेश? उस की तबीयत पूछने चला आया.”संगीता ने अंदर आने के लिए कहा, तो वह संगीता के पीछेपीछे चल दिया.

कमरे में अरुण को बिठा कर संगीता चाय बनाने किचन में चली गई. कमरे का नजारा देख अरुण  हैरत में पड़ गया क्योंकि सुरेश की तसवीर पर फूल चढ़े हुए थे, अरुण समझ गया कि सुरेश अब नहीं रहा.

संगीता जब चाय लाई तो अरुण ने हैरानी से संगीता से पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि ये तो 30 मार्च को ही चल बसे थे. अस्पताल से खबर आई थी. मुझे तो क्वारन्टीन कर दिया गया. फोन पर ही अस्पताल वालों ने लाश देने से मना कर दिया.

क्या करती,घर में फूटफूट कर रोने के सिवा.अरुण ने गौर किया कि सुरेश की फोटो के पास ही पैसे रखे थे, जो उस ने संगीता को दिए थे.संगीता ने उन पैसों की ओर देखा और अरुण ने संगीता की इन सूनी आंखों में  देखा. थके कदमों से अरुण वहां से लौट आया.इन सूनी आंखों में अरुण को जाते देख  संगीता की आंखों में आंसू आ गए.

The post 19 दिन 19 कहानियां: सूनी आंखें appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/35prSFg

सुबह के समय अरुण ने पत्नी सीमा से कहा,”आज मुझे दफ्तर जरा जल्दी जाना है. मैं जब तक तैयार होता हूं तुम तब तक लंच बना दो ब्रेकफास्ट भी तैयार कर दो, खा कर जाऊंगा.”

बिस्तर छोड़ते हुए सीमा तुनक कर बोली,”आरर… आज ऐसा कौन सा काम है जो इतनी जल्दी मचा रहे हैं.”अरुण ने कहा,”आज सुबह 11 बजे  जरूरी मीटिंग है. सभी को समय पर बुलाया है.”

“ठीक है जी, तुम तैयार हो जाओ. मैं किचन देखती हूं,” सीमा मुस्कान बिखेरते हुए बोली.अरुण नहाधो कर तैयार हो गया और ब्रेकफास्ट मांगने लगा, क्योंकि उस के दफ्तर जाने का समय हो चुका था, इसलिए वह जल्दबाजी कर रहा था.

ये भी पढ़ें-धारावाहिक कहानी: अजीब दास्तान

गैराज से कार निकाली और सड़क पर फर्राटा भर अरुण  समय पर दफ्तर पहुंच गया. दफ्तर के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से कुरसी पर बैठा था, तभी दफ्तर के दरवाजे पर एक अनजान औरत खड़ी अजीब नजरों से चारों ओर देख रही थी.

चपरासी दीपू के पूछने पर उस औरत ने बताया कि वह अरुण साहब से मिलना चाहती है. उस औरत को वहां रखे सोफे पर बिठा कर चपरासी दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.‘‘मैं नहीं जानता साहब,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.चपरासी दीपू उस औरत को अरुण के केबिन तक ले गया.केबिन खोलने के साथ ही उस अजनबी औरत ने अंदर आने की इजाजत मांगी.

ये भी पढ़ें-अजीब दास्तान: भाग 3

अरुण के हां कहने पर वह औरत अरुण के सामने खड़ी हो गई. अरुण ने उस औरत को बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बताइए, मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?”

“सर, मेरा नाम संगीता है. मेरे पति सुरेश आप के दफ्तर में काम करते हैं.” अरुण बोला,”जी, ऑफिस के बहुत से काम वे देखते हैं. उन के बिना कई काम रुके हुए हैं.”

अरुण ने चपरासी दीपू को बुला कर चाय लाने को कहा.चपरासी दीपू टेबल पर पानी रख गया और चाय लेने चला गया.कुछ देर बाद ही चपरासी दीपू चाय ले आया.

चाय की चुस्की लेते हुए अरुण पूछने लगा, ” कहो, कैसे आना हुआ?’’‘‘मैं बताने आई थी कि मेरे पति सुरेश की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है, इसलिए वे कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ सकेंगे.”

“क्या हुआ सुरेश को,” हैरान होते हुए अरुण बोला”डाक्टर उन्हें अजीब सी बीमारी बता रहे हैं. अस्पताल से उन्हें आने ही नहीं दे रहे,”संगीता रोने वाले अंदाज में बोली.

संगीता को रोता हुआ देख कर अरुण बोला, “रोइए नहीं. पूरी बात बताइए कि उन को यह बीमारी कैसे लगी?””कुछ दिनों से ये लगातार गले में दर्द बता रहे थे, फिर तेज बुखार आया. पहले तो पास के डाक्टर से इलाज कराया, पर जब कोई फायदा न हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए.

“सरकारी अस्पताल में डाक्टर को दिखाया तो देखते ही उन्हें भर्ती कर लिया गया. “ये तो समझ ही नहींपाए कि इन के साथ हो क्या गया है?””जब अस्पताल से इन का फोन आया तो मैं भी सुन कर हैरान रह गई,” संगीता ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

“अभी वे अस्पताल में ही हैं,” संगीता से अरुण ने पूछा.”जी,” संगीता ने जवाब दिया.अरुण यह सुन कर परेशान हो गया. सुरेश का काम किसी और को देने के लिए चपरासी दीपू से कहा.

अरुण ने सुरेश की पत्नी संगीता को समझाते हुए कहा कि तुम अब बिलकुल चिंता न करो. घर जाओ और बेफिक्र रहो, उन्हें कुछ नहीं होगा.संगीता अरुण से आश्वस्त हो कर घर आ गई और उसे भी घर आने के लिए कहा. अरुण ने भी जल्द समय निकाल कर घर आने के लिए कहा.

“सर, कुछ कहना चाहती हूं,” कुर्सी से उठते समय संगीता ने झिझकते हुए पूछा.”हां, हां, कहिए, क्या कहना चाहती हैं आप,” अरुण ने संगीता की ओर देखते हुए कहा.”जी, मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. इन की तनख्वाह मिलने पर काट लेना,” संगीता ने सकुचाते हुए कहा.

“बताइए, कितने पैसे चाहिए?” अरुण ने पूछा.”जी, 20 हजार रुपए चाहिए थे…” संगीता संकोच करते हुए बोली.”अभी तो इतने पैसे नहीं है, आप कलपरसों में आ कर ले जाना,” अरुण ने कहा. “ठीक है,” यह सुन कर संगीता का   उदास चेहरा हो गया.

“आप जरा भी परेशान न होइए. मैं आप को पैसे दे दूंगा,” संगीता के उदास चेहरे को देख कर कहा.अरुण के दफ्तर से निकलने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता भी अपने घर लौट आई.

अगले दिन दफ्तर के काम जल्द निबटा कर अरुण कुछ सोच में डूबा था, तभी उस के मन में अचानक ही सुरेश की पत्नी संगीता की पैसों वाली बात याद आ गई.2 दिन बाद ही संगीता अरुण के दफ्तर पहुंची. चपरासी दीपू ने चायपानी ला कर दी.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: ये चार दीवारें

अरुण ने सुरेश की तबीयत के बारे में जानना चाहा. संगीता आंखों में आंसू लाते हुए बोली,”वहां तो अभी वे ठीक नहीं हैं. मैं अस्पताल गई थी, पर वहां किसी को मिलने नहीं दे रहे.”

“क्या…” अरुण हैरानी से बोला.”अस्पताल वाले कहते हैं, जब वे ठीक हो जाएंगे तो खुद ही घर आ जाएंगे.”यह जान कर अरुण हैरान हो गया कि अस्पताल वाले किसी से मिलने नहीं दे रहे. वह आज शाम को उस से मिलने जाने वाला था.

अरुण ने संगीता को 20 हजार के बजाय 30 हजार रुपए दिए और कहा कि और भी पैसे की जरूरत हो तो बताना.संगीता पैसे ले कर घर लौट आई. 21 मार्च की शाम जब अरुण हाथपैर धो कर बिस्तर पर बैठा, तभी उस की पत्नी सीमा चाय ले आई और बताने लगी कि रात 8 बजे रास्ट्र के नाम संदेश आएगा.

अरुण टीवी खोल कर तय समय पर बैठ गया. मोदी का संदेश सुनने के बाद अरुण ने पत्नी सीमा को अगले दिन रविवार को जनता कर्फ्यू के बारे में बताया कि घर से किसी को बाहर नहीं निकलना है. साथ ही, यह भी बताया कि शाम 5 बजे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर थाली या बरतन, कुछ भी बजाएं.

उस दिन शाम को जब पड़ोसी ने घर से बाहर निकल थाली बजाई तो अरुण भी शोर सुन कर बाहर आया. पत्नी सीमा भी खुश होते हुए थाली हाथ में लिए बाहर जोरजोर से बजाने लगी. उसे देख अरुण भी खुश हुआ.

सोमवार 23 मार्च को अरुण किसी जरूरी काम के निकल आने की वजह से ऑफिस नहीं गया.उसी दिनशाम को फिर से रास्ट्र के नाम संदेश आया. 21 दिनों के लॉक डाउन की खबर से वह भी हैरत में पड़ गया.

अगले दिन किसी तरह अरुण ऑफिस गया और जल्दी से सारे काम निबटा कर घर आ गया.घर पर अरुण ने सीमा को ऑफिस में साथ काम करने वाले सुरेश के बारे में बताया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है.

अगले दिन सड़क पर सख्ती होने से अरुण दफ्तर न जा सका. लॉक डाउन होने की वजह से अरुण घर में रहने को विवश था.इधर जब सुरेश को कोरोना होने की तसदीक हो गई तो संगीता के घर को क्वारन्टीन कर दिया. अब वह घर से जरा भी बाहर नहीं निकल सकती थी.

उधर क्वारन्टीन होने के कुछ दिन बाद ही अस्पताल से सुरेश के मरने की खबर आई तो क्वारन्टीन होने की वजह से वह घर से निकल नहीं सकती थी.

संगीता को अस्पताल वालों ने फोन पर ही सुरेश की लाश न देने की वजह बताई. वजह यह कि ऐसे मरीजों को वही लोग जलाते हैं ताकि किसी और को यह बीमारी न लगे.

यह सुन कर संगीता घर में ही दहाड़े मारते हुए गश खा कर गिर पड़ी. ऑफिस में भी सुरेश के मरने की खबर भिजवाई गई, पर ऑफिस बंद होने से किसी ने फोन नहीं उठाया.जब लॉक डाउन हटा तो अरुण यों ही संगीता के दिए पते पर घर पहुंच गया.

अरुण ने सुरेश के घर का दरवाजा खटखटाया तो संगीता ने ही खोला.संगीता को देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला, “कैसे हैं सुरेश? उस की तबीयत पूछने चला आया.”संगीता ने अंदर आने के लिए कहा, तो वह संगीता के पीछेपीछे चल दिया.

कमरे में अरुण को बिठा कर संगीता चाय बनाने किचन में चली गई. कमरे का नजारा देख अरुण  हैरत में पड़ गया क्योंकि सुरेश की तसवीर पर फूल चढ़े हुए थे, अरुण समझ गया कि सुरेश अब नहीं रहा.

संगीता जब चाय लाई तो अरुण ने हैरानी से संगीता से पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि ये तो 30 मार्च को ही चल बसे थे. अस्पताल से खबर आई थी. मुझे तो क्वारन्टीन कर दिया गया. फोन पर ही अस्पताल वालों ने लाश देने से मना कर दिया.

क्या करती,घर में फूटफूट कर रोने के सिवा.अरुण ने गौर किया कि सुरेश की फोटो के पास ही पैसे रखे थे, जो उस ने संगीता को दिए थे.संगीता ने उन पैसों की ओर देखा और अरुण ने संगीता की इन सूनी आंखों में  देखा. थके कदमों से अरुण वहां से लौट आया.इन सूनी आंखों में अरुण को जाते देख  संगीता की आंखों में आंसू आ गए.

The post 19 दिन 19 कहानियां: सूनी आंखें appeared first on Sarita Magazine.

May 01, 2020 at 10:00AM

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 2

लेखक- डा. भारत खुशालानी

वान के नाक का निचला हिस्सा लाल हो चुका था. उस ने अपनी आंखें जमीन पर गड़ा दीं, बोली, ‘‘दस्तखत करते वक्त उस को छींक आई थी. उस छींक के कण कौपी पर और पैन पर आ गए थे.’’मू को मसला समझ में आ गया. उस ने वान को सांत्वना दी और तुरंत उस ओर चल दिया जहां सिक्योरिटी कैमरा से रिकौर्डिंग रखी जाती थी. रिकौर्डिंग कमरे में पहुंच कर उस ने वहां टैक्नीशियन से 4 दिन पहले की सुबह की रिकौर्डिंग मांगी. रिकौर्डिंग पर उसे डा. वान लीजुंग के कक्ष में घटित होने वाली वही घटना दिखी जिस में बीमार से दिखने वाले, समुद्री खाद्य को ले कर जाने वाले व्यक्ति ने पैन से कौपी पर हस्ताक्षर करते हुए छींका था. रिकौर्डिंग कमरे से ही मू ने रजिस्ट्रेशन कक्ष को फोन लगाया और बाद में डाक्टरपेशेंट रिपोर्ट रूम से डा. वान लीजुंग की कौपी मंगाई. वुहान, हूबे प्रांत के अंतर्गत आने वाला शहर है.

वुहान में ही, हूबे के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में उस रोज जब पुलिसकर्मी भी थोड़ी तादाद में नजर आने लगे, तो स्वास्थ्य विभाग के बाकी कर्मचारी उन को देखने लगे. एक बड़े सम्मलेन कक्ष में स्वास्थ्य विभाग के बड़े ओहदे वाले 15-20 कर्मचारी बैठे थे और उन के पीछे पुलिसवाले खड़े हो कर आने वाले समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे.  सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष ने तेजी से प्रवेश किया और मुख्य कुरसी पर बैठते ही पौलीकौम का बटन दबाया और पौलीकौम में बात करना शुरू किया. पौलीकौम के दूसरे छोर पर डा. चाओ मू मौजूद थे. पौलीकौम से डा. मू की आवाज पूरे कमरे में गूंजी, ‘‘हुआनान समुद्री खाद्य मार्केट से आमतौर पर सी फूड खरीदने वाले व्यक्ति का नाम, पता और मोबाइल नंबर शेयर कर रहा हूं. तुरंत इस का पता लगा कर इस को अस्पताल ले कर आना है पूरे निरीक्षण के लिए. साथ ही, सिक्योरिटी फुटेज भी शेयर कर रहा हूं कि वह कैसा दिखता है.’’अध्यक्ष ने कहा, ‘‘डा. मू, यहां बैठे सब अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि क्या चल रहा है? उन के हिसाब से यह संभावित फ्लू के प्रकोप का मामला है. यहां पूरे प्रांत के और शहर के अधिकारी मौजूद हैं. केंद्रीय शासन वाले अभी पहुंचे नहीं हैं.’’

डा. मू ने दूसरी ओर से चिंतापूर्ण लहजे में कहा, ‘‘इतने सारे महत्त्वपूर्ण लोगों को सिर्फ फ्लू का इंजैक्शन दिलाने के लिए नहीं बुलाया गया है. जिस व्यक्ति का फुटेज मैं भेज रहा हूं, वह व्यक्ति संक्रामक है. उस के छूने से ही रोग लगने के बेहद आसार हैं.’’अध्यक्ष ने मुख्य पुलिस अधिकारी को संबोधित किया, ‘‘चीफ, स्थानीय पुलिस की मदद ले कर इस आदमी का पता लगाओ और इस से पहले कि वह शहर में प्लेग फैला दे, इसे वुहान शहरी अस्पताल में डा. मू के पास ले कर जाओ.’’चीफ ने हामी भरी.डा. मू ने चीफ और अध्यक्ष को अधिक जानकारी देना उचित समझा, ‘‘पेशेंट उत्तेजित था, आप सिक्योरिटी फुटेज में भी देख सकते हैं. वह ग्रसनी शोथ से पीडि़त है और खांस रहा है. उस को सांस की तकलीफ हो रही है. कौपी में लिखा है कि उस ने सिरदर्द की भी शिकायत की है. ‘‘डा. वान की जांच कौपी में यह भी लिखा हुआ है कि उस के लसिका गांठ सूजे हुए हैं. उस समय राउंड पर डा. वान लीजुंग थी और वह ही पेशेंट देख रही थी. उस व्यक्ति का निरीक्षण करने के 4 दिनों के अंदर डा. लीजुंग रोगसूचक हो गई है और उस में उसी रोग के लक्षण नजर आ रहे हैं. इस से पता चलता है कि जो वायरस सी फूड वाला व्यक्ति ले कर घूम रहा है, वह वायरस चंद दिनों के भीतर ही अपनेआप को दोहरा सकता है.’’अध्यक्ष ने पूछा, ‘‘डा. मू, आप को लगता है कि सी फूड वाला यह व्यक्ति इस वायरस का पहला शिकार है? या आप की नजर में इस से पहले भी ऐसे लक्षणों वाला इस या दूसरे अस्पताल में आया था?’’चीफ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘फ्लू जैसी आम बीमारी के लिए तो कोई भी पहले पेशेंट को ढूंढ़ने की इतनी तकलीफ नहीं करता है.’’डा. मू ने दुख से कहा,

‘‘इस के बाद अस्पताल की 2 और नर्सें, और डा. लीजुंग के पति भी इस वायरस का शिकार हो गए हैं. दोनों नर्सों और उन के पतियों को यह वायरस डा. लीजुंग के संपर्क में आने की वजह से हुआ है.’’चीफ ने कहा, ‘‘इस घटना को 4 दिन हो गए, और आप हमें आज बता रहे हैं?’’ अध्यक्ष ने चीफ से कहा, ‘‘स्थानीय पुलिस को प्रोटोकौल के अनुसार तब ही शामिल किया जा सकता है जब उस की जरूरत महसूस हो,’’ फिर डा. मू से कहा, ‘‘डा. मू, आप क्या सुझाव देंगे?’’बहुत ही गंभीरता से डा. मू ने कहा, ‘‘जब तक हम इस सी फूड वाले व्यक्ति का निरीक्षण कर के यह नहीं पता लगा लेते कि उस से पहले कोई और इस वायरस से संक्रमित नहीं था, तब तक वुहान शहरी अस्पताल की तालाबंदी कर देनी चाहिए.’’यह सुनते ही वहां बैठे सब अधिकारी आपस में फुसफुसाने लगे. डा. मू ने उन की फुसफुसाहट को नजरअंदाज करते हुए अपना सुझाव जारी रखा, ‘‘इस प्रकोप को नियंत्रण में लाने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वह किसकिस के संपर्क में आया है और वे लोग कहां हैं जिन के संपर्क में वह आया है. ऐसे लोगों को भी अस्पताल में जल्दी से जल्दी ले कर आना है. अस्पताल में डा. लीजुंग के संपर्क में और कौनकौन आया है, इस की पूरी तहकीकात की जरूरत है, इसीलिए अस्पताल की तुरंत तालाबंदी की इजाजत चाहिए.’’अध्यक्ष बोले, ‘‘डा. मू, मैं तुम्हारी राय से सहमत हूं.’’चीफ बोले, ‘‘हम लोग किस वायरस के बारे में बात कर रहे हैं?

’’डा. मू ने बताया, ‘‘अभी तक तो यह वायरस सिर्फ श्वसन प्रणाली पर हमला करते हुए दिख रहा है. वर्तमान में यह ऐसे कुछ खास लक्षण नहीं प्रस्तुत कर रहा है जिस से हम इस की पहचान कर सकें.’’थोड़ी ही देर में गरिमा के साथ चल रहे युवक मिन झोउ का मोबाइल फोन बजा. उस ने फोन पर बात की जिस के बाद उस के हावभाव पूरी तरह बदल गए. पिछले 2 घंटों में मिन ने गरिमा को अस्पताल का निरीक्षण करवाया था और दोचार चुनिंदा प्रयोगशालाएं दिखाई थीं. आने वाले कुछ वर्षों के दौरान गरिमा इन्हीं प्रयोगशालाओं में कुछ शोधकार्य करने की सोच रही थी. इस के लिए आज उस की मुलाकात डा. वान लीजुंग से थी, लेकिन शायद वह व्यस्त थी, इसीलिए उस की जगह मिन झोउ ने ले ली थी.फोन जेब में रख कर मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘थोड़ी सी समस्या है.’’गरिमा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या?’’ अब उस के वापस अपने विश्वविद्यालय लौटने का समय आ गया था, जहां होस्टल में एक कमरे में वह रहती थी. वुहान वाएरोलौजी विश्वविद्यालय, चीन का सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय है जहां उच्चकोटि की पढ़ाई तथा शोधकार्य होता है. वुहान शहरी अस्पताल की प्रयोगशालाओं का शोधकार्य, गरिमा को अपनी डाक्टरेट डिग्री के लिए जरूरी था. किसी अनुमानित परिप्रश्न के बदले वह एक व्यावहारिक और प्रयोगात्मक प्रश्न का हल अपने शोधकार्य में निकालना चाहती थी, इसीलिए उस ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की मदद से वुहान शहरी अस्पताल में संपर्क किया था. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, अकसर अस्पताल के डाक्टरों के साथ मिल कर शोधकार्य करते थे. अपने ज्यादातर डेटा के लिए प्राध्यापक अस्पताल के मरीजों के डेटा पर निर्भर रहते थे. मिन ने गरिमा को अपने फोनकौल के बारे में बताया, ‘‘ऐसा लगता है कि अभी हम लोग इस अस्पताल से नहीं जा सकते.’’गरिमा ने कहा, ‘‘क्या मतलब?’’दोनों वापस जाने के लिए तकरीबन मुख्यद्वार तक पहुंच ही गए थे कि एक अधिकारी सा दिखने वाला व्यक्ति उन के पीछे दौड़ता हुआ आया. दोनों ने पलट कर उस को देखा. अधिकारी ने रुक कर शिष्टाचारपूर्वक कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, लेकिन आप दोनों को वापस अंदर आना पड़ेगा.’’मिन ने एक कोशिश की, ‘‘मुझे पहले ही देरी हो रही है.’’लेकिन उस अधिकारी ने फिर शिष्टाचार लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘मुझे मालूम है, लेकिन मैं अभी आप लोगों को यहां से नहीं जाने दे सकता हूं. आप कृपया अंदर आ जाएं, फिर मैं सब समझा दूंगा.’’

मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘डाक्टरों से ज्यादा अस्पताल प्रशासन की चलती है. इसलिए इन की बात हमें माननी ही पड़ेगी.’’गरिमा बोली, ‘‘ऐसा लगता है मेरा आज का दौरा पूरा नहीं हुआ है. अब तो यह और बढ़ गया है. आज शायद पूरा अस्पताल ही देखने को मिलेगा मुझे.’’अधिकारी ने एक और बात कही, जिस से दोनों चौंक गए, ‘‘तुम दोनों को कम से कम एक पूरे हाथ की दूरी पर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर दोनों ने अपने बीच थोड़ी दूरी बना ली. अधिकारी ने मुख्यद्वार पर मौजूद 2 रिसैप्शनिस्ट्स को थोड़ी हिदायतें दीं. दोनों रिसैप्शनिस्ट्स ने बहुत ही गंभीरताभरी निगाहों से अधिकारी की बात सुनी और माना.

The post कोरोना वायरस के जाल में: भाग 2 appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3f2mqwp

लेखक- डा. भारत खुशालानी

वान के नाक का निचला हिस्सा लाल हो चुका था. उस ने अपनी आंखें जमीन पर गड़ा दीं, बोली, ‘‘दस्तखत करते वक्त उस को छींक आई थी. उस छींक के कण कौपी पर और पैन पर आ गए थे.’’मू को मसला समझ में आ गया. उस ने वान को सांत्वना दी और तुरंत उस ओर चल दिया जहां सिक्योरिटी कैमरा से रिकौर्डिंग रखी जाती थी. रिकौर्डिंग कमरे में पहुंच कर उस ने वहां टैक्नीशियन से 4 दिन पहले की सुबह की रिकौर्डिंग मांगी. रिकौर्डिंग पर उसे डा. वान लीजुंग के कक्ष में घटित होने वाली वही घटना दिखी जिस में बीमार से दिखने वाले, समुद्री खाद्य को ले कर जाने वाले व्यक्ति ने पैन से कौपी पर हस्ताक्षर करते हुए छींका था. रिकौर्डिंग कमरे से ही मू ने रजिस्ट्रेशन कक्ष को फोन लगाया और बाद में डाक्टरपेशेंट रिपोर्ट रूम से डा. वान लीजुंग की कौपी मंगाई. वुहान, हूबे प्रांत के अंतर्गत आने वाला शहर है.

वुहान में ही, हूबे के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में उस रोज जब पुलिसकर्मी भी थोड़ी तादाद में नजर आने लगे, तो स्वास्थ्य विभाग के बाकी कर्मचारी उन को देखने लगे. एक बड़े सम्मलेन कक्ष में स्वास्थ्य विभाग के बड़े ओहदे वाले 15-20 कर्मचारी बैठे थे और उन के पीछे पुलिसवाले खड़े हो कर आने वाले समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे.  सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष ने तेजी से प्रवेश किया और मुख्य कुरसी पर बैठते ही पौलीकौम का बटन दबाया और पौलीकौम में बात करना शुरू किया. पौलीकौम के दूसरे छोर पर डा. चाओ मू मौजूद थे. पौलीकौम से डा. मू की आवाज पूरे कमरे में गूंजी, ‘‘हुआनान समुद्री खाद्य मार्केट से आमतौर पर सी फूड खरीदने वाले व्यक्ति का नाम, पता और मोबाइल नंबर शेयर कर रहा हूं. तुरंत इस का पता लगा कर इस को अस्पताल ले कर आना है पूरे निरीक्षण के लिए. साथ ही, सिक्योरिटी फुटेज भी शेयर कर रहा हूं कि वह कैसा दिखता है.’’अध्यक्ष ने कहा, ‘‘डा. मू, यहां बैठे सब अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि क्या चल रहा है? उन के हिसाब से यह संभावित फ्लू के प्रकोप का मामला है. यहां पूरे प्रांत के और शहर के अधिकारी मौजूद हैं. केंद्रीय शासन वाले अभी पहुंचे नहीं हैं.’’

डा. मू ने दूसरी ओर से चिंतापूर्ण लहजे में कहा, ‘‘इतने सारे महत्त्वपूर्ण लोगों को सिर्फ फ्लू का इंजैक्शन दिलाने के लिए नहीं बुलाया गया है. जिस व्यक्ति का फुटेज मैं भेज रहा हूं, वह व्यक्ति संक्रामक है. उस के छूने से ही रोग लगने के बेहद आसार हैं.’’अध्यक्ष ने मुख्य पुलिस अधिकारी को संबोधित किया, ‘‘चीफ, स्थानीय पुलिस की मदद ले कर इस आदमी का पता लगाओ और इस से पहले कि वह शहर में प्लेग फैला दे, इसे वुहान शहरी अस्पताल में डा. मू के पास ले कर जाओ.’’चीफ ने हामी भरी.डा. मू ने चीफ और अध्यक्ष को अधिक जानकारी देना उचित समझा, ‘‘पेशेंट उत्तेजित था, आप सिक्योरिटी फुटेज में भी देख सकते हैं. वह ग्रसनी शोथ से पीडि़त है और खांस रहा है. उस को सांस की तकलीफ हो रही है. कौपी में लिखा है कि उस ने सिरदर्द की भी शिकायत की है. ‘‘डा. वान की जांच कौपी में यह भी लिखा हुआ है कि उस के लसिका गांठ सूजे हुए हैं. उस समय राउंड पर डा. वान लीजुंग थी और वह ही पेशेंट देख रही थी. उस व्यक्ति का निरीक्षण करने के 4 दिनों के अंदर डा. लीजुंग रोगसूचक हो गई है और उस में उसी रोग के लक्षण नजर आ रहे हैं. इस से पता चलता है कि जो वायरस सी फूड वाला व्यक्ति ले कर घूम रहा है, वह वायरस चंद दिनों के भीतर ही अपनेआप को दोहरा सकता है.’’अध्यक्ष ने पूछा, ‘‘डा. मू, आप को लगता है कि सी फूड वाला यह व्यक्ति इस वायरस का पहला शिकार है? या आप की नजर में इस से पहले भी ऐसे लक्षणों वाला इस या दूसरे अस्पताल में आया था?’’चीफ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘फ्लू जैसी आम बीमारी के लिए तो कोई भी पहले पेशेंट को ढूंढ़ने की इतनी तकलीफ नहीं करता है.’’डा. मू ने दुख से कहा,

‘‘इस के बाद अस्पताल की 2 और नर्सें, और डा. लीजुंग के पति भी इस वायरस का शिकार हो गए हैं. दोनों नर्सों और उन के पतियों को यह वायरस डा. लीजुंग के संपर्क में आने की वजह से हुआ है.’’चीफ ने कहा, ‘‘इस घटना को 4 दिन हो गए, और आप हमें आज बता रहे हैं?’’ अध्यक्ष ने चीफ से कहा, ‘‘स्थानीय पुलिस को प्रोटोकौल के अनुसार तब ही शामिल किया जा सकता है जब उस की जरूरत महसूस हो,’’ फिर डा. मू से कहा, ‘‘डा. मू, आप क्या सुझाव देंगे?’’बहुत ही गंभीरता से डा. मू ने कहा, ‘‘जब तक हम इस सी फूड वाले व्यक्ति का निरीक्षण कर के यह नहीं पता लगा लेते कि उस से पहले कोई और इस वायरस से संक्रमित नहीं था, तब तक वुहान शहरी अस्पताल की तालाबंदी कर देनी चाहिए.’’यह सुनते ही वहां बैठे सब अधिकारी आपस में फुसफुसाने लगे. डा. मू ने उन की फुसफुसाहट को नजरअंदाज करते हुए अपना सुझाव जारी रखा, ‘‘इस प्रकोप को नियंत्रण में लाने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वह किसकिस के संपर्क में आया है और वे लोग कहां हैं जिन के संपर्क में वह आया है. ऐसे लोगों को भी अस्पताल में जल्दी से जल्दी ले कर आना है. अस्पताल में डा. लीजुंग के संपर्क में और कौनकौन आया है, इस की पूरी तहकीकात की जरूरत है, इसीलिए अस्पताल की तुरंत तालाबंदी की इजाजत चाहिए.’’अध्यक्ष बोले, ‘‘डा. मू, मैं तुम्हारी राय से सहमत हूं.’’चीफ बोले, ‘‘हम लोग किस वायरस के बारे में बात कर रहे हैं?

’’डा. मू ने बताया, ‘‘अभी तक तो यह वायरस सिर्फ श्वसन प्रणाली पर हमला करते हुए दिख रहा है. वर्तमान में यह ऐसे कुछ खास लक्षण नहीं प्रस्तुत कर रहा है जिस से हम इस की पहचान कर सकें.’’थोड़ी ही देर में गरिमा के साथ चल रहे युवक मिन झोउ का मोबाइल फोन बजा. उस ने फोन पर बात की जिस के बाद उस के हावभाव पूरी तरह बदल गए. पिछले 2 घंटों में मिन ने गरिमा को अस्पताल का निरीक्षण करवाया था और दोचार चुनिंदा प्रयोगशालाएं दिखाई थीं. आने वाले कुछ वर्षों के दौरान गरिमा इन्हीं प्रयोगशालाओं में कुछ शोधकार्य करने की सोच रही थी. इस के लिए आज उस की मुलाकात डा. वान लीजुंग से थी, लेकिन शायद वह व्यस्त थी, इसीलिए उस की जगह मिन झोउ ने ले ली थी.फोन जेब में रख कर मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘थोड़ी सी समस्या है.’’गरिमा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या?’’ अब उस के वापस अपने विश्वविद्यालय लौटने का समय आ गया था, जहां होस्टल में एक कमरे में वह रहती थी. वुहान वाएरोलौजी विश्वविद्यालय, चीन का सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय है जहां उच्चकोटि की पढ़ाई तथा शोधकार्य होता है. वुहान शहरी अस्पताल की प्रयोगशालाओं का शोधकार्य, गरिमा को अपनी डाक्टरेट डिग्री के लिए जरूरी था. किसी अनुमानित परिप्रश्न के बदले वह एक व्यावहारिक और प्रयोगात्मक प्रश्न का हल अपने शोधकार्य में निकालना चाहती थी, इसीलिए उस ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की मदद से वुहान शहरी अस्पताल में संपर्क किया था. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, अकसर अस्पताल के डाक्टरों के साथ मिल कर शोधकार्य करते थे. अपने ज्यादातर डेटा के लिए प्राध्यापक अस्पताल के मरीजों के डेटा पर निर्भर रहते थे. मिन ने गरिमा को अपने फोनकौल के बारे में बताया, ‘‘ऐसा लगता है कि अभी हम लोग इस अस्पताल से नहीं जा सकते.’’गरिमा ने कहा, ‘‘क्या मतलब?’’दोनों वापस जाने के लिए तकरीबन मुख्यद्वार तक पहुंच ही गए थे कि एक अधिकारी सा दिखने वाला व्यक्ति उन के पीछे दौड़ता हुआ आया. दोनों ने पलट कर उस को देखा. अधिकारी ने रुक कर शिष्टाचारपूर्वक कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, लेकिन आप दोनों को वापस अंदर आना पड़ेगा.’’मिन ने एक कोशिश की, ‘‘मुझे पहले ही देरी हो रही है.’’लेकिन उस अधिकारी ने फिर शिष्टाचार लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘मुझे मालूम है, लेकिन मैं अभी आप लोगों को यहां से नहीं जाने दे सकता हूं. आप कृपया अंदर आ जाएं, फिर मैं सब समझा दूंगा.’’

मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘डाक्टरों से ज्यादा अस्पताल प्रशासन की चलती है. इसलिए इन की बात हमें माननी ही पड़ेगी.’’गरिमा बोली, ‘‘ऐसा लगता है मेरा आज का दौरा पूरा नहीं हुआ है. अब तो यह और बढ़ गया है. आज शायद पूरा अस्पताल ही देखने को मिलेगा मुझे.’’अधिकारी ने एक और बात कही, जिस से दोनों चौंक गए, ‘‘तुम दोनों को कम से कम एक पूरे हाथ की दूरी पर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर दोनों ने अपने बीच थोड़ी दूरी बना ली. अधिकारी ने मुख्यद्वार पर मौजूद 2 रिसैप्शनिस्ट्स को थोड़ी हिदायतें दीं. दोनों रिसैप्शनिस्ट्स ने बहुत ही गंभीरताभरी निगाहों से अधिकारी की बात सुनी और माना.

The post कोरोना वायरस के जाल में: भाग 2 appeared first on Sarita Magazine.

May 01, 2020 at 10:00AM

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 1

लेखक- डा. भारत खुशालानी

सुबह का चमकता हुआ लाल सूरज जब चीन के वुहान शहर पर पड़ा, तो उस की बड़ीबड़ी कांच से बनी हुई इमारतें सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई नींद से जागने लगीं.

मुंबई जितना बड़ा, एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर अंगड़ाई ले कर उठने लगा, हालांकि मछली, सब्जी, फल, समुद्री खाद्य बेचने वालों की सुबह 2 घंटे पहले ही हो चुकी थी. आसमान साफ था, लेकिन दिसंबर की ठंड चरम पर थी. आज फिर पारा 5 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाने की संभावना थी, इसीलिए लोगों ने अपने ऊनी कपडे़ और गरम जैकेट बाहर निकाल कर रखे थे. वैसे भी वहां रहने वालों को यह ठंड ज्यादा महसूस नहीं होती थी. इस ठंड के वे आदी थे. और ऐसी ठंड में सुहानी धूप सेंकने के लिए अपने जैकेट उतार कर बाहर की सैर करते और सुबह की दौड़ लगाते अकसर पाए जाते थे. दूर से, गगनचुंबी इमारतों के इस बड़े महानगर के भीतर प्रवेश करने वाला सड़कमार्ग पहले से ही गाडि़यों से सज्जित हो चुका था. सुबह के सूरज से हुआ सुनहरा पानी ले कर यांग्त्जी नदी, और इस की सब से बड़ी सहायक नदी, हान नदी, शहरी क्षेत्र को पार करती हुई शान से वुहान को उस के 3 बड़े जिलों वुचांग, हानकोउ और हान्यांग में विभाजित करते हुए उसी प्रकार बह रही थी जैसे कल बह रही थी.कुछ घंटों के बाद जब शहर पूरी तरह से जाग कर हरकत में आ गया, तो वुहान शहरी अस्पताल के बाहर रोड पर जो निर्माणकार्य चल रहा था,

उस पर दोनों तरफ ‘रास्ता बंद’ का चिह्न लगा कर कामगार मुस्तैदी से अपने काम में जुट गए थे. पीली टोपी और नारंगी रंग के बिना आस्तीन वाले पतले जैकेट पहने कामगार फुरती से आनेजाने वाले ट्रैफिक को हाथों से इशारा कर दिशा दे रहे थे. हालांकि, अस्पताल के अंदर आनेजाने वाले रास्ते पर कोई पाबंदी नहीं थी.  गरिमा जब अस्पताल के पास के बसस्टौप पर बस से उतरी, तो काफी उत्साहित थी. उस का काम अस्पताल के बीमार मरीजों को अच्छा करना नहीं था, यह काम वहां के डाक्टरों और उन की नर्सों का था. गरिमा ने अस्पताल की लौबी में जाने वाले चबूतरे में प्रवेश किया तो तकरीबन 60 बरस के एक बूढ़े चीनी व्यक्ति को अपने सामने से गुजरते हुए पाया. बूढ़े के हाथ में कांच का एक थोड़ा सा बड़ा डब्बा था, जिस में करीब 10-12 सफेद चूहे तेजी से यहांवहां घूम रहे थे. उन चूहों की बेचैनी शायद इस बात का हश्र थी कि उन को अंदेशा था कि उन के साथ क्या होने वाला है.अस्पताल की प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो कर, अपनी कुर्बानी दे कर, मानव के स्वास्थ्य को और उस की गुणवत्ता को बढ़ाने का जिम्मा, जैसे प्रयोगकर्ताओं ने सिर्फ उन की ही प्रजाति पर डाल दिया हो. चबूतरे से निकल कर, एक ढलान, लौबी के अंदर न जाती हुई, उस ओर जा रही थी जहां बाहर से आने वाला सामान अस्पताल के अंदर जाता था. ढलान की शुरुआत पर लिखा हुआ था.

‘यहां सिर्फ सामान पहुंचाने वाली गाडि़यां और ट्रक’ और इस के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर अस्पताल के ‘प्लस’ चिह्न के साथ बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘संक्रामक रोग विभाग’ और उस के नीचे छोटे अक्षरों में ‘वुहान शहरी अस्पताल.’ बूढ़ा आदमी चूहों का डब्बा ले कर उस ढलान से विभाग के अंदर प्रवेश कर गया. गरिमा ने लौबी में प्रवेश किया. लौबी में सामने ही एक 28-30 बरस का चीनी युवक खड़ा था, जिस ने शायद गरिमा को देखते ही पहचान लिया और गरिमा से पूछा, ‘‘गरिमा?’’गरिमा ने चौंक कर उसे देखा, फिर इंग्लिश में कहा, ‘‘हां.’’चीनी युवक ने कहा, ‘‘मेरा नाम मिन झोउ है.’’गरिमा ने पूछा, ‘‘डाक्टर वान लीजुंग से मुझे मुलाकात करनी थी. वे नहीं आईं?’’मिन ने सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं वे कहां हैं. खैर, मुझे मालूम है आज क्या करना है.’’ मिन ने सफेद कोट पहन रखा था, जो दर्शाता था कि वह भी डाक्टर है. गरिमा ने सोचा शायद मिन भी डा. वान लीजुंग के साथ काम करता हो. डा. लीजुंग खुद भी कम उम्र की थीं. उन की भी उम्र 32-35 से ऊपर की नहीं होगी. मिन ने कहा, ‘‘इस अस्पताल के अंदर कहीं हैं वे.’’गरिमा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘एक डाक्टर तो अस्पताल में गायब नहीं हो सकता.’’मिन भी मुसकरा दिया. दोनों लौबी की ओर बढ़ चले. डा. लीजुंग ने अभी भी सफेद कोट पहना हुआ था. उस का चेहरा गंभीर था. माथा तना हुआ था. चेहरे पर पसीने की बूंदें थीं. वह एक ऐसे कमरे में थी जो छोटा और तंग तो था लेकिन जिस में एक बिस्तर डला हुआ था. कोने में लोहे की टेबल थी जिस पर पानी का जार रखा हुआ था.

ऊपर सफेद ट्यूबलाइट जल रही थी. कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद था, लेकिन दरवाजे पर छोटी खिड़की जितना कांच लगा होने से बाहर दिखता था और बाहर से अंदर दिखता था. बाकी दरवाजा मजबूत प्लाईवुड का बना था. वान की आंखें लाल होती जा रही थीं. बाहर से एक तकरीबन 40 वर्ष के डाक्टर ने दरवाजे के कांच तक आ कर वान को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तुम को मालूम है कि ये सब एहतियात बरतना क्यों जरूरी है?’’वान ने बिना उस की तरफ देखे धीरे से हामी भरी.दरवाजे के बाहर खड़े डा. के सफेद कोट पर बाईं ओर छाती के ऊपर एक आयाताकार बिल्ला लगा था जिस पर लिखा था ‘डा. चाओ मू.’डा. मू ने गंभीरता से वान से प्रश्न किया, ‘‘मुझे थोड़ा समझाओ कि क्या कारण हो सकता है?’’वान ने आंखें मीचीं. जिस कुरसी पर वह बैठी थी, उस पर थोड़ा घूम कर कहा, ‘‘मैं ने जितने भी राउंड लगाए हैं अस्पताल के पिछले कई दिनों में, उन में 4 दिन पहले का सुबह वाला राउंड मुझे सब से ज्यादा संदिग्ध लगता है. उस दिन के मेरे सब से पहले वाले पेशेंट को एक्सरेरूम ले जाया गया था, इसलिए उस से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी उस सुबह. दूसरा पेशेंट सोया पड़ा था, उस से भी मेरा कोई संपर्क नहीं बना. तीसरा पेशेंट …,’’ वान ने रुक कर गहरी आंखों से डा. मू को देखा, ‘‘तीसरा पेशेंट थोड़ा मोटा सा था. उस के हाथ में सामान का एक थैला था. उस को बुखार लग रहा था और सर्दीजुकाम था. मैं ने बात करने के लिए उस से पूछा था कि थैले में क्या ले जा रहा है. उस ने बताया था कि हमेशा की तरह हुआनान यानी सीफूड (समुद्री खाद्य) मार्केट से खरीदारी कर के अपने घर जा रहा था.’’ वान ने याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस के बाएं कंधे को अपने दाएं हाथ से पकड़ कर स्टेथोस्कोप को पहले उस के दाईं ओर रखा, उस ने गहरी सांस खींची. फिर मैं ने स्टेथोस्कोप बाईं ओर रखा. मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है जो ज्यादा जोखिम वाला संपर्क हो.

किसी भी द्रव्य पदार्थ से संपर्क नहीं बना.’’मू बोला, ‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है?’’वान ने कहा, ‘‘ऐसा लगता तो है.’’ वान का इतना कहना ही था कि उसे जोरों की छींक आ गई. उस ने तुरंत अपनी कुहनी से नाक और मुंह ढकने की कोशिश की तो उसे 3-4 बार जोर से खांसी आ गई. हड़बड़ाहट में वह कुरसी से उठ कर दरवाजे के कांच तक आ पहुंची. उस ने एक हाथ से दरवाजे को थाम कर खांसी रोकने का प्रयास किया. उस ने कांच के दूसरी ओर डा. मू की तरफ पहले तो दयनीय दृष्टि से देखा, फिर अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘उस से कहा था कि थोड़ी देर और रुक जाए वह, ताकि मैं उस का और परीक्षण कर सकूं. लेकिन वह बोला कि उस को जल्दी घर जाना है.‘‘रजिस्ट्रेशन करते समय उस ने अपना नामपता लिखा होगा. मेरी कौपी में उस के परीक्षण का ब्योरा लिखा है. मेरी कौपी…’’ वान ने थोड़ा जोर दे कर फिर सोचा और कहा, ‘‘मैं ने अपनी कौपी पर उस को अस्पताल से बरखास्त किए जाने के लिए दस्तखत करने के लिए अपना पैन दिया. उस ने अपना समुद्री खाद्य वाला थैला नीचे रखा, पैन ले कर कौपी पर दस्तखत किए. मैं ने कौपी और पैन दोनों वापस ले लिए.’’

The post कोरोना वायरस के जाल में: भाग 1 appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3aZhQfe

लेखक- डा. भारत खुशालानी

सुबह का चमकता हुआ लाल सूरज जब चीन के वुहान शहर पर पड़ा, तो उस की बड़ीबड़ी कांच से बनी हुई इमारतें सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई नींद से जागने लगीं.

मुंबई जितना बड़ा, एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर अंगड़ाई ले कर उठने लगा, हालांकि मछली, सब्जी, फल, समुद्री खाद्य बेचने वालों की सुबह 2 घंटे पहले ही हो चुकी थी. आसमान साफ था, लेकिन दिसंबर की ठंड चरम पर थी. आज फिर पारा 5 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाने की संभावना थी, इसीलिए लोगों ने अपने ऊनी कपडे़ और गरम जैकेट बाहर निकाल कर रखे थे. वैसे भी वहां रहने वालों को यह ठंड ज्यादा महसूस नहीं होती थी. इस ठंड के वे आदी थे. और ऐसी ठंड में सुहानी धूप सेंकने के लिए अपने जैकेट उतार कर बाहर की सैर करते और सुबह की दौड़ लगाते अकसर पाए जाते थे. दूर से, गगनचुंबी इमारतों के इस बड़े महानगर के भीतर प्रवेश करने वाला सड़कमार्ग पहले से ही गाडि़यों से सज्जित हो चुका था. सुबह के सूरज से हुआ सुनहरा पानी ले कर यांग्त्जी नदी, और इस की सब से बड़ी सहायक नदी, हान नदी, शहरी क्षेत्र को पार करती हुई शान से वुहान को उस के 3 बड़े जिलों वुचांग, हानकोउ और हान्यांग में विभाजित करते हुए उसी प्रकार बह रही थी जैसे कल बह रही थी.कुछ घंटों के बाद जब शहर पूरी तरह से जाग कर हरकत में आ गया, तो वुहान शहरी अस्पताल के बाहर रोड पर जो निर्माणकार्य चल रहा था,

उस पर दोनों तरफ ‘रास्ता बंद’ का चिह्न लगा कर कामगार मुस्तैदी से अपने काम में जुट गए थे. पीली टोपी और नारंगी रंग के बिना आस्तीन वाले पतले जैकेट पहने कामगार फुरती से आनेजाने वाले ट्रैफिक को हाथों से इशारा कर दिशा दे रहे थे. हालांकि, अस्पताल के अंदर आनेजाने वाले रास्ते पर कोई पाबंदी नहीं थी.  गरिमा जब अस्पताल के पास के बसस्टौप पर बस से उतरी, तो काफी उत्साहित थी. उस का काम अस्पताल के बीमार मरीजों को अच्छा करना नहीं था, यह काम वहां के डाक्टरों और उन की नर्सों का था. गरिमा ने अस्पताल की लौबी में जाने वाले चबूतरे में प्रवेश किया तो तकरीबन 60 बरस के एक बूढ़े चीनी व्यक्ति को अपने सामने से गुजरते हुए पाया. बूढ़े के हाथ में कांच का एक थोड़ा सा बड़ा डब्बा था, जिस में करीब 10-12 सफेद चूहे तेजी से यहांवहां घूम रहे थे. उन चूहों की बेचैनी शायद इस बात का हश्र थी कि उन को अंदेशा था कि उन के साथ क्या होने वाला है.अस्पताल की प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो कर, अपनी कुर्बानी दे कर, मानव के स्वास्थ्य को और उस की गुणवत्ता को बढ़ाने का जिम्मा, जैसे प्रयोगकर्ताओं ने सिर्फ उन की ही प्रजाति पर डाल दिया हो. चबूतरे से निकल कर, एक ढलान, लौबी के अंदर न जाती हुई, उस ओर जा रही थी जहां बाहर से आने वाला सामान अस्पताल के अंदर जाता था. ढलान की शुरुआत पर लिखा हुआ था.

‘यहां सिर्फ सामान पहुंचाने वाली गाडि़यां और ट्रक’ और इस के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर अस्पताल के ‘प्लस’ चिह्न के साथ बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘संक्रामक रोग विभाग’ और उस के नीचे छोटे अक्षरों में ‘वुहान शहरी अस्पताल.’ बूढ़ा आदमी चूहों का डब्बा ले कर उस ढलान से विभाग के अंदर प्रवेश कर गया. गरिमा ने लौबी में प्रवेश किया. लौबी में सामने ही एक 28-30 बरस का चीनी युवक खड़ा था, जिस ने शायद गरिमा को देखते ही पहचान लिया और गरिमा से पूछा, ‘‘गरिमा?’’गरिमा ने चौंक कर उसे देखा, फिर इंग्लिश में कहा, ‘‘हां.’’चीनी युवक ने कहा, ‘‘मेरा नाम मिन झोउ है.’’गरिमा ने पूछा, ‘‘डाक्टर वान लीजुंग से मुझे मुलाकात करनी थी. वे नहीं आईं?’’मिन ने सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं वे कहां हैं. खैर, मुझे मालूम है आज क्या करना है.’’ मिन ने सफेद कोट पहन रखा था, जो दर्शाता था कि वह भी डाक्टर है. गरिमा ने सोचा शायद मिन भी डा. वान लीजुंग के साथ काम करता हो. डा. लीजुंग खुद भी कम उम्र की थीं. उन की भी उम्र 32-35 से ऊपर की नहीं होगी. मिन ने कहा, ‘‘इस अस्पताल के अंदर कहीं हैं वे.’’गरिमा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘एक डाक्टर तो अस्पताल में गायब नहीं हो सकता.’’मिन भी मुसकरा दिया. दोनों लौबी की ओर बढ़ चले. डा. लीजुंग ने अभी भी सफेद कोट पहना हुआ था. उस का चेहरा गंभीर था. माथा तना हुआ था. चेहरे पर पसीने की बूंदें थीं. वह एक ऐसे कमरे में थी जो छोटा और तंग तो था लेकिन जिस में एक बिस्तर डला हुआ था. कोने में लोहे की टेबल थी जिस पर पानी का जार रखा हुआ था.

ऊपर सफेद ट्यूबलाइट जल रही थी. कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद था, लेकिन दरवाजे पर छोटी खिड़की जितना कांच लगा होने से बाहर दिखता था और बाहर से अंदर दिखता था. बाकी दरवाजा मजबूत प्लाईवुड का बना था. वान की आंखें लाल होती जा रही थीं. बाहर से एक तकरीबन 40 वर्ष के डाक्टर ने दरवाजे के कांच तक आ कर वान को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तुम को मालूम है कि ये सब एहतियात बरतना क्यों जरूरी है?’’वान ने बिना उस की तरफ देखे धीरे से हामी भरी.दरवाजे के बाहर खड़े डा. के सफेद कोट पर बाईं ओर छाती के ऊपर एक आयाताकार बिल्ला लगा था जिस पर लिखा था ‘डा. चाओ मू.’डा. मू ने गंभीरता से वान से प्रश्न किया, ‘‘मुझे थोड़ा समझाओ कि क्या कारण हो सकता है?’’वान ने आंखें मीचीं. जिस कुरसी पर वह बैठी थी, उस पर थोड़ा घूम कर कहा, ‘‘मैं ने जितने भी राउंड लगाए हैं अस्पताल के पिछले कई दिनों में, उन में 4 दिन पहले का सुबह वाला राउंड मुझे सब से ज्यादा संदिग्ध लगता है. उस दिन के मेरे सब से पहले वाले पेशेंट को एक्सरेरूम ले जाया गया था, इसलिए उस से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी उस सुबह. दूसरा पेशेंट सोया पड़ा था, उस से भी मेरा कोई संपर्क नहीं बना. तीसरा पेशेंट …,’’ वान ने रुक कर गहरी आंखों से डा. मू को देखा, ‘‘तीसरा पेशेंट थोड़ा मोटा सा था. उस के हाथ में सामान का एक थैला था. उस को बुखार लग रहा था और सर्दीजुकाम था. मैं ने बात करने के लिए उस से पूछा था कि थैले में क्या ले जा रहा है. उस ने बताया था कि हमेशा की तरह हुआनान यानी सीफूड (समुद्री खाद्य) मार्केट से खरीदारी कर के अपने घर जा रहा था.’’ वान ने याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस के बाएं कंधे को अपने दाएं हाथ से पकड़ कर स्टेथोस्कोप को पहले उस के दाईं ओर रखा, उस ने गहरी सांस खींची. फिर मैं ने स्टेथोस्कोप बाईं ओर रखा. मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है जो ज्यादा जोखिम वाला संपर्क हो.

किसी भी द्रव्य पदार्थ से संपर्क नहीं बना.’’मू बोला, ‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है?’’वान ने कहा, ‘‘ऐसा लगता तो है.’’ वान का इतना कहना ही था कि उसे जोरों की छींक आ गई. उस ने तुरंत अपनी कुहनी से नाक और मुंह ढकने की कोशिश की तो उसे 3-4 बार जोर से खांसी आ गई. हड़बड़ाहट में वह कुरसी से उठ कर दरवाजे के कांच तक आ पहुंची. उस ने एक हाथ से दरवाजे को थाम कर खांसी रोकने का प्रयास किया. उस ने कांच के दूसरी ओर डा. मू की तरफ पहले तो दयनीय दृष्टि से देखा, फिर अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘उस से कहा था कि थोड़ी देर और रुक जाए वह, ताकि मैं उस का और परीक्षण कर सकूं. लेकिन वह बोला कि उस को जल्दी घर जाना है.‘‘रजिस्ट्रेशन करते समय उस ने अपना नामपता लिखा होगा. मेरी कौपी में उस के परीक्षण का ब्योरा लिखा है. मेरी कौपी…’’ वान ने थोड़ा जोर दे कर फिर सोचा और कहा, ‘‘मैं ने अपनी कौपी पर उस को अस्पताल से बरखास्त किए जाने के लिए दस्तखत करने के लिए अपना पैन दिया. उस ने अपना समुद्री खाद्य वाला थैला नीचे रखा, पैन ले कर कौपी पर दस्तखत किए. मैं ने कौपी और पैन दोनों वापस ले लिए.’’

The post कोरोना वायरस के जाल में: भाग 1 appeared first on Sarita Magazine.

May 01, 2020 at 10:00AM

Short story: धर्म का कांटा

रात को साढ़े 10 बजे जब आलोक का मोबाइल बजा, सुरभि चौंकी, बोली, ‘‘इस समय कौन है?’’ तब तक ‘हैलो’ कहते हुए आलोक बात करना शुरू कर चुका था. आलोक की एकतरफा बात ही सुरभि के कानों में पड़ रही थी, ‘हां, हां, एकदम बढि़या, ठीक रहेगा, आ जाओ सब, बोल दो सबको, ठीक है, मिलते हैं, ओके.’ फिर आलोक उत्साहित हो कर सुरभि से बोला, ‘‘परसों संडे को अपनी मंडली यहीं घर में लंच करेगी. पूरा महीना हो गया सब से मिले हुए. चलो, कल भी छुट्टी है, कल ही डिस्कस करेंगे कि क्याक्या बनाना है.’’ आलोक स्वभाव से शांत और मृदुभाषी था. वह सुरभि का भी खयाल रखता था. पर उस की एक कमजोरी यह भी थी कि वह अपने दोस्तों के बिना नहीं रह सकता था. पर सुरभि उन के दोस्तों से घुलमिल नहीं पा रही थी.सुरभि का मन बुझ गया, पर फिर भी ‘‘हां, ठीक है, कल डिस्कस करेंगे,’’ कह कर वह सोने के लिए लेट गई. पर हमेशा की तरह आलोक की बात से उस की नींद उड़ गई थी.

क्या करे वह, क्यों वह आलोक के बचपन के ग्रु्रप में सहज नहीं रह पाती. पर किस से कहे और क्या कहे.आलोक से विवाह हुए एक साल ही तो हुआ था. आलोक और सुरभि मुंबई के गौरीपड़ा इलाके में शादी के बाद एक अपार्टमैंट में रहने आ गए थे. मेरठ से मुंबई आने पर आलोक के दोस्तों के इस गु्रप ने ही तो उस की गृहस्थी जमाने में मदद की थी. विवाह के एक महीने बाद ही तो आलोक का मुंबई ट्रांसफर हो गया था. सुरभि के मातापिता ने ही आलोक को पसंद किया था. आलोक के स्वभाव, व्यवहार पर सुरभि को अपनी पसंद पर गर्व ही हुआ था. सुरभि ने अच्छीखासी शिक्षा ले रखी थी. वह समय के साथ आधुनिक तो दिखती थी लेकिन धर्म के  मामले में असहज हो जाया करती थी. जिस कारण वह दूसरों से ज्यादा घुलनामिलना पसंद नहीं करती थी.सुरभि अपने वैवाहिक जीवन से पूरी तरह खुश थी, पर आलोक की इन दोस्तों ने उस का चैन लूट रखा था. बचपन से ले कर आज तक आलोक के ये तीनों दोस्त एक परिवार की तरह ही रहते आए थे. सब एकएक कर के मुंबई आ गए थे. चारों एक ही सोसायटी में अलगअलग बिल्डिंग में रहते थे. सुयश और मेघा, विपिन और रिया, टोनी और जेनिस, सब जब उस के विवाह में आए थे.

ये भी पढ़ें-19 दिन 19 कहानियां: स्वीकृति

, सब की मस्ती देखते ही बनती थी. इन की मस्ती, शरारतों से दोनों के घर वाले आनंद उठाते रह गए थे. उस समय तो सुरभि ने ध्यान नहीं दिया था, पर यहां आने के कुछ दिनों बाद ही उसे सब की दोस्ती बोझ लगने लगी थी.सब से बड़ी बात जो थी वह यह कि सुरभि के कट्टरपंथी मातापिता ने उस के दिल में धर्मांधता कूटकूट कर भरी थी. उसे टोनी और जेनिस के घर जा कर खानापीना या उन का अपने घर खानापीना बिलकुल नहीं सुहाता था. पर मजबूर थी. इस चौकड़ी को तो धर्मजाति से बिलकुल मतलब ही नहीं था.मेघा और रिया कामकाजी थीं. दोनों सुरभि की उम्र की ही थीं. दोनों बड़ी खुशमिजाज थीं. आज में जीती थीं.  घर और बाहर के काम में निपुण थीं. जेनिस सुरभि की तरह हाउसवाइफ थी. लेकिन उस की स्मार्टनैस भी मेघा और रिया से कम नहीं थी. अकसर लौंग स्कर्ट पहनती थी जो उस पर बहुत फबती थी. हर 15 दिनों में सब किसी एक के घर लंच या डिनर जरूर करते थे. अभी सिर्फ मेघा की ही 4 साल की बेटी चारू थी. मेघा टीचर थी. उस ने चारू का ऐडमिशन अपने स्कूल में ही करवा दिया था. सुरभि स्वभाव से अंतर्मुखी थी ही, टोनी और जेनिस के कारण इस गु्रप में अपनेआप को बिलकुल अनफिट पाती थी. अब तो उसे इस मंडली से छुटकारा दूरदूर तक मिलता नहीं दिख रहा था.वह शुरूशुरू में काफी चुप रही तो सुयश ने पूछ भी लिया था, ‘सुरभि, यह चौकड़ी पसंद नहीं आई क्या?’ सुरभि झेंप गई थी, ‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है. आप सब तो बहुत अच्छे हैं.’ आलोक ने भी कई बार उस का उखड़ापन नोट किया था, पूछा भी था,

‘सुरभि, तुम इन लोगों के आने पर इतना सीरियस क्यों हो जाती हो?’‘नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है.’‘कुछ तो है, बताओ.’‘शायद मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है,’ सुरभि ने कह तो दिया था पर आलोक के चेहरे पर तनाव छा गया था. वह वहां से उठ कर चला गया था.दोस्तों के लिए उस के मन में एक अलग ही जगह थी. सुरभि का उन को ले कर रूखापन उसे कुछ अच्छा न लगा.उस के बाद जब भी सब के इकट्ठे होने की बात हुई, आलोक ने बहाना कर दिया कि वह बहुत व्यस्त है. सुरभि को आत्मग्लानि तो हुई, फिर उस ने स्वयं को समझा लिया कि ठीक है, सब को थोड़े दिनों में आदत हो जाएगी. उसे इतनी भीड़ के साथ नहीं रहना है. इस के बाद आलोक उसे कई बार उदास और गंभीर लगा तो सुरभि को दुख तो हुआ पर बोली कुछ नहीं. उस ने सोचा, एकदम से यह सब बंद नहीं होगा, टाइम लगेगा.वह आलोक के सामने टोनी और जेनिस के प्रति अपनी भावनाएं भी स्पष्ट नहीं करना चाह रही थी, इसलिए उस ने बहुत सोचसमझ कर आलोक से सब को बुलाने के लिए हां कह दी थी. आलोक ने सब को मिलने के लिए फोन कर दिया था. अब चौकड़ी उस के घर जमने वाली थी. फिर टोनी और जेनिस के बारे में खयाल आया. सुरभि की तो नींद ही उड़ गई थी. टोनी और जेनिस ईसाई दंपती थे और आलोक के सब से खास मित्रों में से एक. उन के लिए धर्म महज सांस्कृतिक चोगा था जिसे बस पहना ही जा सकता है. उसे आत्मसात कर लीन होने की जरूरत उन्हें कभी महसूस नहीं हुई.अगले दिन सवेरे ही आलोक नाश्ते के बाद उत्साह से सुरभि के साथ बैठ कर संडे का मैन्यू बनाने लगा. सुरभि भी झूठा उत्साह दिखाती रही. वह नहीं चाहती थी कि आलोक का मूड खराब हो.संडे को सब 12 बजे आ गए, चारू तो अपने खिलौने ही उठा लाई थी. जिस का जहां मन किया, बैठ गया. किसी को कोई फौर्मेलिटी आती ही नहीं थी. सब मस्त और खुशमिजाज थे. मेघा और रिया किचन में सुरभि के साथ व्यस्त हो गईं. टोनी और जेनिस चर्च गए हुए थे. वे थोड़ी देर बाद आने वाले थे. सुरभि उन्हें अनुपस्थित देख कर मन ही मन खुश हुई थी. पर जब उसे पता चला कि वे थोड़ी देर बाद आएंगे, उस का मूड खराब हो गया. उस के संस्कार, उस की परवरिश, आलोक के क्रिश्चियन दोस्तों से घुलनेमिलने में दीवार बन कर खड़े थे. वह उन्हें देख कर कुढ़ती ही रहती थी.

ये भी पढ़ें-भोर- राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास?

वे दोनों जब आए, तब सब ने खाना खाया. दोनों सुरभि की आंखों में खटकते रहे, पर वह आलोक की खुशी के आगे मजबूर थी. दीवाली की छुट्टियों में सुयश और मेघा, विपिन और रिया दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे. आलोक को औफिस का जरूरी काम था. सो, वे दोनों दीवाली पर मुंबई में ही थे. दीवाली की शाम सब लोग मिल कर नीचे पटाखे छोड़ते थे. दीवाली की शाम बच्चों का हर तरफ शोर था. शाम को ही टोनी और जेनिस भी उन के घर आ गए थे. सुरभि का फ्लैट तीसरी फ्लोर पर था. बच्चे खूब धमाचौकड़ी कर रहे थे. जैसे ही आलोक सीढि़यों से नीचे उतर रहा था, ऊपर से बच्चे भागते हुए उतरे. उन में से ही किसी का भागते हुए आलोक को तेज धक्का लगा. जब तक वह खुद को संभालता तब तक उस का संतुलन बिगड़ गया. कई सीढि़यों से लुढ़कता हुआ वह काफी नीचे तक गिर गया. सिर फट गया, खून की धारा बह चली और पैर के तेज दर्द से वह कराह उठा. उस के पीछे ही टोनी, जेनिस और सुरभि उतर रहे थे.सुरभि की चीख निकल गई. आलोक खून से लथपथ हो गया. सुरभि घबरा गई. पलभर की देर किए बिना टोनी ने आलोक को बांहों में उठाया और तेज आवाज में बोला, ‘‘जेनिस, जल्दी से कार निकालो, भागो.’’जेनिस 2-2 सीढि़यां एकसाथ कूदती हुई भागी. आलोक का दर्द से बुरा हाल था. बांहों में आलोक को उठाए हुए टोनी ने सुरभि से कहा, ‘‘सुरभि, जल्दी गाड़ी में बैठो, हौस्पिटल चल रहे हैं.’’ पीछे की सीट पर आलोक को लिटा कर टोनी ने ड्राइविंग सीट संभाली और गाड़ी दौड़ा दी. सुरभि के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

यह क्या हो गया, वह तो यहां किसी को जानती भी नहीं. क्या करेगी अकेली. आलोक के सिर पर चोट गहरी थी. 8 टांके लगे थे. पैर में भी फ्रैक्चर था, यह जान कर सुरभि का तो सिर ही चकरा गया. अब आलोक क्या करेगा.पैर पर प्लास्टर चढ़ गया था. डाक्टर ने 2 दिनों बाद डै्रसिंग के लिए बुलाया था.सुरभि तो खाली हाथ ही हौस्पिटल भाग आई थी. पेमैंट के समय उस ने खुद को बहुत असहज महसूस किया. टोनी ही सब कर रहा था. टोनी ने ही सहारा दे कर आलोक को गाड़ी में बिठाया और सब घर आ गए.जेनिस ने बहुत ही स्नेहपूर्वक सुरभि का कंधा थपथपाया, ‘‘चिंता मत करो, सुरभि, सब ठीक है.’’ रात काफी हो गई थी, हर तरफ दीवाली की धूमधाम थी. जो डिनर सुरभि ने बनाया था, सब रखा था. टोनी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘बहुत तेज भूख लगी है, सुरभि, कुछ खाने को मिलेगा?’’सुरभि झट से सब के लिए खाना लगाने लगी. टोनी ने फिर आलोक को छेड़ा, ‘‘बड़े भारी हो गए हो यार, तुम्हें उठा कर लानेलेजाने में हालत खराब हो गई.’’ आलोक को हंसतेबोलते देख सुरभि की जान में जान आई. आलोक को अपने हाथ से खिला कर सुरभि ने टोनी और जेनिस के साथ ही थोड़ाबहुत खाया. रात एक बजे के करीब आलोक के सोने के बाद ही टोनी और जेनिस घर गए. सुरभि पूरी घटना को सोचते हुए रातभर सोतीजागती रही. अगले दिन सुबह 7 बजे ही टोनी आ गया. आलोक को सहारा दे कर बाथरूम तक ले गया. आलोक से कुछ नंबर ले कर आलोक के औफिस में कुछ लोगों को इस दुर्घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में जेनिस सब के लिए सैंडविच बना कर ले आई, बोली, ‘‘लो सुरभि, तुम रातभर ठीक से सो नहीं पाई होगी. सब यहीं साथ खा लेंगे.’’नाश्ता करते हुए टोनी ने कहा, ‘‘मैं ने आज की छुट्टी ले ली है आलोक. सेवा करवा लो बच्चू. सब को बताऊंगा कैसे तुम ने हमारी दीवाली की शाम खराब की है, उन लोगों को भी आने दो लौट कर.’’ आलोक जोर से हंस पड़ा, सुरभि को अच्छा लगा.सुयश और विपिन को भी टोनी ने फोन पर बता दिया था. उन लोगों के फोन आते रहे. आलोक ने अपने घर बताने के लिए मना कर दिया था क्योंकि उस की मम्मी की तबीयत कुछ खराब चल रही थी, वे परेशान ही होतीं. आलोक के कपड़े बदलने में टोनी ने ही उस की मदद की. लंच जेनिस ने सुरभि के साथ मिल कर ही बना लिया. फिर आलोक ने ही जबरदस्ती दोनों को आराम करने के लिए भेज दिया. दवाइयों के असर से आलोक की आंख लग गई थी.6 बजे टोनी फिर आ गया, ‘‘सुरभि, शाम को आलोक के कलीग्स उसे देखने जरूर आएंगे. तुम व्यस्त रहोगी. इसलिए जेनिस ही डिनर बना कर लाएगी.’’सुरभि सोचती रह गई कि इन दोनों को बिना कुछ कहेसुने एकदूसरे के सुखदुख का एहसास कैसे हो जाता है. शाम को यही तो हुआ. आलोक के कलीग्स और कुछ पड़ोसी आतेजाते रहे. सुरभि पूरी शाम सब के चायनाश्ते में ही व्यस्त रही. उसे बहुत थकान भी हो गई थी. 9 बजे सब के जाने के बाद चारों ने जेनिस का लाया हुआ शानदार डिनर किया. पूरा खाना आलोक की पसंद का था.

सुरभि यह देख कर मुसकरा दी.रात को आलोक के सोने के बाद उस के बराबर में लेटी सुरभि के मन में तो नए विचारों ने हलचल मचा रखी थी. कल से अब तक एक बार भी सुरभि के दिल में टोनी और जेनिस का दूसरे धर्म का होने का विचार भी नहीं आया था. वह तो पूरी तरह से दोनों के स्नेह में आकंठ डूबी हुई थी. यह क्या किया उस के मातापिता ने, क्यों उस की इतनी कट्टरपंथी सोच के साथ परवरिश की कि धर्म का कांटा उस के दिल में ऐसे चुभता रहा और वह इतने प्यारे दोस्तों से कभी खुल कर मिल नहीं पाई. कितने दिन उस ने इस सोच पर खराब कर दिए. आलोक का भी दिल दुखाया. वह स्वयं सुशिक्षित थी, उस ने क्यों आंखें बंद कर अपने मातापिता की पुरातनपंथी सोच का अनुसरण किया. उसे अपनी सोच पर आत्मग्लानि होती रही. सुबह का उजाला सुरभि के मन में बहुत सा स्नेह, सम्मान, अपनापन ले कर आया. वह फ्रैश हो कर बैठी ही थी कि आलोक भी उठ गया. आलोक उस के कंधे का सहारा ले कर बाथरूम तक गया. 8 बजे के आसपास टोनी और जेनिस भी आ गए. जेनिस ने एक टिफिन सुरभि को देते हुए कहा, ‘‘तुम बस चाय बना लो, पोहा बना कर ले आई हूं.’’आलोक को पोहा इतना पसंद था कि वह इसे रोज खा सकता था. सब एकदूसरे की पसंद कितनी अच्छी तरह जानते हैं, यह देख कर सुरभि को मन ही मन हंसी आ गई.नाश्ता करते हुए टोनी ने कहा, ‘‘जेनिस, यह गलत बात है, इस के ठीक होने तक क्या इसी की पसंद की चीजें खानी पड़ेंगी?’’ जेनिस ने भी शरारत से जवाब दिया, ‘‘हां, सही समझे.’’ टोनी ने फिर पूछा, ‘‘आलोक, छुट्टी ले लूं या औफिस चला जाऊं?’’ जवाब सुरभि ने दिया, ‘‘छुट्टी ही ले लो आप, दिन में साथ बैठेंगे, खाएंगेपीएंगे, ताश खेलेंगे, क्यों जेनिस?’’ जेनिस मुसकरा दी. सुरभि का यह अपनापन शायद जेनिस के दिल को छू गया था.आलोक ने हैरानी से सुरभि को देखा, सुरभि मुसकरा दी तो आलोक के चेहरे पर एक अलग ही चमक आई जिसे सिर्फ सुरभि ने महसूस किया था.

The post Short story: धर्म का कांटा appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3bV35v9

रात को साढ़े 10 बजे जब आलोक का मोबाइल बजा, सुरभि चौंकी, बोली, ‘‘इस समय कौन है?’’ तब तक ‘हैलो’ कहते हुए आलोक बात करना शुरू कर चुका था. आलोक की एकतरफा बात ही सुरभि के कानों में पड़ रही थी, ‘हां, हां, एकदम बढि़या, ठीक रहेगा, आ जाओ सब, बोल दो सबको, ठीक है, मिलते हैं, ओके.’ फिर आलोक उत्साहित हो कर सुरभि से बोला, ‘‘परसों संडे को अपनी मंडली यहीं घर में लंच करेगी. पूरा महीना हो गया सब से मिले हुए. चलो, कल भी छुट्टी है, कल ही डिस्कस करेंगे कि क्याक्या बनाना है.’’ आलोक स्वभाव से शांत और मृदुभाषी था. वह सुरभि का भी खयाल रखता था. पर उस की एक कमजोरी यह भी थी कि वह अपने दोस्तों के बिना नहीं रह सकता था. पर सुरभि उन के दोस्तों से घुलमिल नहीं पा रही थी.सुरभि का मन बुझ गया, पर फिर भी ‘‘हां, ठीक है, कल डिस्कस करेंगे,’’ कह कर वह सोने के लिए लेट गई. पर हमेशा की तरह आलोक की बात से उस की नींद उड़ गई थी.

क्या करे वह, क्यों वह आलोक के बचपन के ग्रु्रप में सहज नहीं रह पाती. पर किस से कहे और क्या कहे.आलोक से विवाह हुए एक साल ही तो हुआ था. आलोक और सुरभि मुंबई के गौरीपड़ा इलाके में शादी के बाद एक अपार्टमैंट में रहने आ गए थे. मेरठ से मुंबई आने पर आलोक के दोस्तों के इस गु्रप ने ही तो उस की गृहस्थी जमाने में मदद की थी. विवाह के एक महीने बाद ही तो आलोक का मुंबई ट्रांसफर हो गया था. सुरभि के मातापिता ने ही आलोक को पसंद किया था. आलोक के स्वभाव, व्यवहार पर सुरभि को अपनी पसंद पर गर्व ही हुआ था. सुरभि ने अच्छीखासी शिक्षा ले रखी थी. वह समय के साथ आधुनिक तो दिखती थी लेकिन धर्म के  मामले में असहज हो जाया करती थी. जिस कारण वह दूसरों से ज्यादा घुलनामिलना पसंद नहीं करती थी.सुरभि अपने वैवाहिक जीवन से पूरी तरह खुश थी, पर आलोक की इन दोस्तों ने उस का चैन लूट रखा था. बचपन से ले कर आज तक आलोक के ये तीनों दोस्त एक परिवार की तरह ही रहते आए थे. सब एकएक कर के मुंबई आ गए थे. चारों एक ही सोसायटी में अलगअलग बिल्डिंग में रहते थे. सुयश और मेघा, विपिन और रिया, टोनी और जेनिस, सब जब उस के विवाह में आए थे.

ये भी पढ़ें-19 दिन 19 कहानियां: स्वीकृति

, सब की मस्ती देखते ही बनती थी. इन की मस्ती, शरारतों से दोनों के घर वाले आनंद उठाते रह गए थे. उस समय तो सुरभि ने ध्यान नहीं दिया था, पर यहां आने के कुछ दिनों बाद ही उसे सब की दोस्ती बोझ लगने लगी थी.सब से बड़ी बात जो थी वह यह कि सुरभि के कट्टरपंथी मातापिता ने उस के दिल में धर्मांधता कूटकूट कर भरी थी. उसे टोनी और जेनिस के घर जा कर खानापीना या उन का अपने घर खानापीना बिलकुल नहीं सुहाता था. पर मजबूर थी. इस चौकड़ी को तो धर्मजाति से बिलकुल मतलब ही नहीं था.मेघा और रिया कामकाजी थीं. दोनों सुरभि की उम्र की ही थीं. दोनों बड़ी खुशमिजाज थीं. आज में जीती थीं.  घर और बाहर के काम में निपुण थीं. जेनिस सुरभि की तरह हाउसवाइफ थी. लेकिन उस की स्मार्टनैस भी मेघा और रिया से कम नहीं थी. अकसर लौंग स्कर्ट पहनती थी जो उस पर बहुत फबती थी. हर 15 दिनों में सब किसी एक के घर लंच या डिनर जरूर करते थे. अभी सिर्फ मेघा की ही 4 साल की बेटी चारू थी. मेघा टीचर थी. उस ने चारू का ऐडमिशन अपने स्कूल में ही करवा दिया था. सुरभि स्वभाव से अंतर्मुखी थी ही, टोनी और जेनिस के कारण इस गु्रप में अपनेआप को बिलकुल अनफिट पाती थी. अब तो उसे इस मंडली से छुटकारा दूरदूर तक मिलता नहीं दिख रहा था.वह शुरूशुरू में काफी चुप रही तो सुयश ने पूछ भी लिया था, ‘सुरभि, यह चौकड़ी पसंद नहीं आई क्या?’ सुरभि झेंप गई थी, ‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है. आप सब तो बहुत अच्छे हैं.’ आलोक ने भी कई बार उस का उखड़ापन नोट किया था, पूछा भी था,

‘सुरभि, तुम इन लोगों के आने पर इतना सीरियस क्यों हो जाती हो?’‘नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है.’‘कुछ तो है, बताओ.’‘शायद मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है,’ सुरभि ने कह तो दिया था पर आलोक के चेहरे पर तनाव छा गया था. वह वहां से उठ कर चला गया था.दोस्तों के लिए उस के मन में एक अलग ही जगह थी. सुरभि का उन को ले कर रूखापन उसे कुछ अच्छा न लगा.उस के बाद जब भी सब के इकट्ठे होने की बात हुई, आलोक ने बहाना कर दिया कि वह बहुत व्यस्त है. सुरभि को आत्मग्लानि तो हुई, फिर उस ने स्वयं को समझा लिया कि ठीक है, सब को थोड़े दिनों में आदत हो जाएगी. उसे इतनी भीड़ के साथ नहीं रहना है. इस के बाद आलोक उसे कई बार उदास और गंभीर लगा तो सुरभि को दुख तो हुआ पर बोली कुछ नहीं. उस ने सोचा, एकदम से यह सब बंद नहीं होगा, टाइम लगेगा.वह आलोक के सामने टोनी और जेनिस के प्रति अपनी भावनाएं भी स्पष्ट नहीं करना चाह रही थी, इसलिए उस ने बहुत सोचसमझ कर आलोक से सब को बुलाने के लिए हां कह दी थी. आलोक ने सब को मिलने के लिए फोन कर दिया था. अब चौकड़ी उस के घर जमने वाली थी. फिर टोनी और जेनिस के बारे में खयाल आया. सुरभि की तो नींद ही उड़ गई थी. टोनी और जेनिस ईसाई दंपती थे और आलोक के सब से खास मित्रों में से एक. उन के लिए धर्म महज सांस्कृतिक चोगा था जिसे बस पहना ही जा सकता है. उसे आत्मसात कर लीन होने की जरूरत उन्हें कभी महसूस नहीं हुई.अगले दिन सवेरे ही आलोक नाश्ते के बाद उत्साह से सुरभि के साथ बैठ कर संडे का मैन्यू बनाने लगा. सुरभि भी झूठा उत्साह दिखाती रही. वह नहीं चाहती थी कि आलोक का मूड खराब हो.संडे को सब 12 बजे आ गए, चारू तो अपने खिलौने ही उठा लाई थी. जिस का जहां मन किया, बैठ गया. किसी को कोई फौर्मेलिटी आती ही नहीं थी. सब मस्त और खुशमिजाज थे. मेघा और रिया किचन में सुरभि के साथ व्यस्त हो गईं. टोनी और जेनिस चर्च गए हुए थे. वे थोड़ी देर बाद आने वाले थे. सुरभि उन्हें अनुपस्थित देख कर मन ही मन खुश हुई थी. पर जब उसे पता चला कि वे थोड़ी देर बाद आएंगे, उस का मूड खराब हो गया. उस के संस्कार, उस की परवरिश, आलोक के क्रिश्चियन दोस्तों से घुलनेमिलने में दीवार बन कर खड़े थे. वह उन्हें देख कर कुढ़ती ही रहती थी.

ये भी पढ़ें-भोर- राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास?

वे दोनों जब आए, तब सब ने खाना खाया. दोनों सुरभि की आंखों में खटकते रहे, पर वह आलोक की खुशी के आगे मजबूर थी. दीवाली की छुट्टियों में सुयश और मेघा, विपिन और रिया दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे. आलोक को औफिस का जरूरी काम था. सो, वे दोनों दीवाली पर मुंबई में ही थे. दीवाली की शाम सब लोग मिल कर नीचे पटाखे छोड़ते थे. दीवाली की शाम बच्चों का हर तरफ शोर था. शाम को ही टोनी और जेनिस भी उन के घर आ गए थे. सुरभि का फ्लैट तीसरी फ्लोर पर था. बच्चे खूब धमाचौकड़ी कर रहे थे. जैसे ही आलोक सीढि़यों से नीचे उतर रहा था, ऊपर से बच्चे भागते हुए उतरे. उन में से ही किसी का भागते हुए आलोक को तेज धक्का लगा. जब तक वह खुद को संभालता तब तक उस का संतुलन बिगड़ गया. कई सीढि़यों से लुढ़कता हुआ वह काफी नीचे तक गिर गया. सिर फट गया, खून की धारा बह चली और पैर के तेज दर्द से वह कराह उठा. उस के पीछे ही टोनी, जेनिस और सुरभि उतर रहे थे.सुरभि की चीख निकल गई. आलोक खून से लथपथ हो गया. सुरभि घबरा गई. पलभर की देर किए बिना टोनी ने आलोक को बांहों में उठाया और तेज आवाज में बोला, ‘‘जेनिस, जल्दी से कार निकालो, भागो.’’जेनिस 2-2 सीढि़यां एकसाथ कूदती हुई भागी. आलोक का दर्द से बुरा हाल था. बांहों में आलोक को उठाए हुए टोनी ने सुरभि से कहा, ‘‘सुरभि, जल्दी गाड़ी में बैठो, हौस्पिटल चल रहे हैं.’’ पीछे की सीट पर आलोक को लिटा कर टोनी ने ड्राइविंग सीट संभाली और गाड़ी दौड़ा दी. सुरभि के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

यह क्या हो गया, वह तो यहां किसी को जानती भी नहीं. क्या करेगी अकेली. आलोक के सिर पर चोट गहरी थी. 8 टांके लगे थे. पैर में भी फ्रैक्चर था, यह जान कर सुरभि का तो सिर ही चकरा गया. अब आलोक क्या करेगा.पैर पर प्लास्टर चढ़ गया था. डाक्टर ने 2 दिनों बाद डै्रसिंग के लिए बुलाया था.सुरभि तो खाली हाथ ही हौस्पिटल भाग आई थी. पेमैंट के समय उस ने खुद को बहुत असहज महसूस किया. टोनी ही सब कर रहा था. टोनी ने ही सहारा दे कर आलोक को गाड़ी में बिठाया और सब घर आ गए.जेनिस ने बहुत ही स्नेहपूर्वक सुरभि का कंधा थपथपाया, ‘‘चिंता मत करो, सुरभि, सब ठीक है.’’ रात काफी हो गई थी, हर तरफ दीवाली की धूमधाम थी. जो डिनर सुरभि ने बनाया था, सब रखा था. टोनी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘बहुत तेज भूख लगी है, सुरभि, कुछ खाने को मिलेगा?’’सुरभि झट से सब के लिए खाना लगाने लगी. टोनी ने फिर आलोक को छेड़ा, ‘‘बड़े भारी हो गए हो यार, तुम्हें उठा कर लानेलेजाने में हालत खराब हो गई.’’ आलोक को हंसतेबोलते देख सुरभि की जान में जान आई. आलोक को अपने हाथ से खिला कर सुरभि ने टोनी और जेनिस के साथ ही थोड़ाबहुत खाया. रात एक बजे के करीब आलोक के सोने के बाद ही टोनी और जेनिस घर गए. सुरभि पूरी घटना को सोचते हुए रातभर सोतीजागती रही. अगले दिन सुबह 7 बजे ही टोनी आ गया. आलोक को सहारा दे कर बाथरूम तक ले गया. आलोक से कुछ नंबर ले कर आलोक के औफिस में कुछ लोगों को इस दुर्घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में जेनिस सब के लिए सैंडविच बना कर ले आई, बोली, ‘‘लो सुरभि, तुम रातभर ठीक से सो नहीं पाई होगी. सब यहीं साथ खा लेंगे.’’नाश्ता करते हुए टोनी ने कहा, ‘‘मैं ने आज की छुट्टी ले ली है आलोक. सेवा करवा लो बच्चू. सब को बताऊंगा कैसे तुम ने हमारी दीवाली की शाम खराब की है, उन लोगों को भी आने दो लौट कर.’’ आलोक जोर से हंस पड़ा, सुरभि को अच्छा लगा.सुयश और विपिन को भी टोनी ने फोन पर बता दिया था. उन लोगों के फोन आते रहे. आलोक ने अपने घर बताने के लिए मना कर दिया था क्योंकि उस की मम्मी की तबीयत कुछ खराब चल रही थी, वे परेशान ही होतीं. आलोक के कपड़े बदलने में टोनी ने ही उस की मदद की. लंच जेनिस ने सुरभि के साथ मिल कर ही बना लिया. फिर आलोक ने ही जबरदस्ती दोनों को आराम करने के लिए भेज दिया. दवाइयों के असर से आलोक की आंख लग गई थी.6 बजे टोनी फिर आ गया, ‘‘सुरभि, शाम को आलोक के कलीग्स उसे देखने जरूर आएंगे. तुम व्यस्त रहोगी. इसलिए जेनिस ही डिनर बना कर लाएगी.’’सुरभि सोचती रह गई कि इन दोनों को बिना कुछ कहेसुने एकदूसरे के सुखदुख का एहसास कैसे हो जाता है. शाम को यही तो हुआ. आलोक के कलीग्स और कुछ पड़ोसी आतेजाते रहे. सुरभि पूरी शाम सब के चायनाश्ते में ही व्यस्त रही. उसे बहुत थकान भी हो गई थी. 9 बजे सब के जाने के बाद चारों ने जेनिस का लाया हुआ शानदार डिनर किया. पूरा खाना आलोक की पसंद का था.

सुरभि यह देख कर मुसकरा दी.रात को आलोक के सोने के बाद उस के बराबर में लेटी सुरभि के मन में तो नए विचारों ने हलचल मचा रखी थी. कल से अब तक एक बार भी सुरभि के दिल में टोनी और जेनिस का दूसरे धर्म का होने का विचार भी नहीं आया था. वह तो पूरी तरह से दोनों के स्नेह में आकंठ डूबी हुई थी. यह क्या किया उस के मातापिता ने, क्यों उस की इतनी कट्टरपंथी सोच के साथ परवरिश की कि धर्म का कांटा उस के दिल में ऐसे चुभता रहा और वह इतने प्यारे दोस्तों से कभी खुल कर मिल नहीं पाई. कितने दिन उस ने इस सोच पर खराब कर दिए. आलोक का भी दिल दुखाया. वह स्वयं सुशिक्षित थी, उस ने क्यों आंखें बंद कर अपने मातापिता की पुरातनपंथी सोच का अनुसरण किया. उसे अपनी सोच पर आत्मग्लानि होती रही. सुबह का उजाला सुरभि के मन में बहुत सा स्नेह, सम्मान, अपनापन ले कर आया. वह फ्रैश हो कर बैठी ही थी कि आलोक भी उठ गया. आलोक उस के कंधे का सहारा ले कर बाथरूम तक गया. 8 बजे के आसपास टोनी और जेनिस भी आ गए. जेनिस ने एक टिफिन सुरभि को देते हुए कहा, ‘‘तुम बस चाय बना लो, पोहा बना कर ले आई हूं.’’आलोक को पोहा इतना पसंद था कि वह इसे रोज खा सकता था. सब एकदूसरे की पसंद कितनी अच्छी तरह जानते हैं, यह देख कर सुरभि को मन ही मन हंसी आ गई.नाश्ता करते हुए टोनी ने कहा, ‘‘जेनिस, यह गलत बात है, इस के ठीक होने तक क्या इसी की पसंद की चीजें खानी पड़ेंगी?’’ जेनिस ने भी शरारत से जवाब दिया, ‘‘हां, सही समझे.’’ टोनी ने फिर पूछा, ‘‘आलोक, छुट्टी ले लूं या औफिस चला जाऊं?’’ जवाब सुरभि ने दिया, ‘‘छुट्टी ही ले लो आप, दिन में साथ बैठेंगे, खाएंगेपीएंगे, ताश खेलेंगे, क्यों जेनिस?’’ जेनिस मुसकरा दी. सुरभि का यह अपनापन शायद जेनिस के दिल को छू गया था.आलोक ने हैरानी से सुरभि को देखा, सुरभि मुसकरा दी तो आलोक के चेहरे पर एक अलग ही चमक आई जिसे सिर्फ सुरभि ने महसूस किया था.

The post Short story: धर्म का कांटा appeared first on Sarita Magazine.

May 01, 2020 at 10:00AM

कोरोना से मरे BMC कर्मचारी तो एक आश्रित को नौकरी देगी बीएमसी

मुंबई के महापौर ने बताया कि न सिर्फ परिवार के आश्रित को नौकरी दी जाएगी बल्कि सरकार द्वारा घोषित किया हुआ 50 ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3aPU5WF
मुंबई के महापौर ने बताया कि न सिर्फ परिवार के आश्रित को नौकरी दी जाएगी बल्कि सरकार द्वारा घोषित किया हुआ 50 ...

आज का राशिफल

नौकरी में कार्यभार रहेगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय में वृद्धि हो सकती है, प्रयास करते रहें। कारोबार में ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3aNM70g
नौकरी में कार्यभार रहेगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय में वृद्धि हो सकती है, प्रयास करते रहें। कारोबार में ...

चार माह से नहीं मिला पहला वेतन, अब नौकरी संकट में

हाईकोर्ट से चयन सूची निरस्त होने के बाद प्रदेश के ढाई हजार असिस्टेंट प्रोफेसरों की नौकरी पर संकट आ गया है।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/35ms2gD
हाईकोर्ट से चयन सूची निरस्त होने के बाद प्रदेश के ढाई हजार असिस्टेंट प्रोफेसरों की नौकरी पर संकट आ गया है।

नौकरी गई तो चालक बन गए सब्जी विक्रेता, फर्नीचर बनाने वाले कर रहें हैं होम ...

नौकरी गई तो चालक बन गए सब्जी विक्रेता, फर्नीचर बनाने वाले कर रहें हैं होम डिलेवरी. - जिला श्रम विभाग में भवन सह ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2Smf6C8
नौकरी गई तो चालक बन गए सब्जी विक्रेता, फर्नीचर बनाने वाले कर रहें हैं होम डिलेवरी. - जिला श्रम विभाग में भवन सह ...

नौकरी से सेवानिवृत्त हुए मन से नहीं: एसपी

सागर(नवदुनिया प्रतिनिधि)। 30 अप्रैल को जिला पुलिस बल के 6 कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। पुलिस कंट्रोल रूम में ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/35jFTEp
सागर(नवदुनिया प्रतिनिधि)। 30 अप्रैल को जिला पुलिस बल के 6 कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। पुलिस कंट्रोल रूम में ...

हिमाचल से लौटने के इच्छुक साढ़े तीन लाख कामगार, प्रदेश में आने के लिए ...

इनमें विद्यार्थियों समेत विभिन्न प्रदेशों में नौकरी करने वाले शामिल हैं। -संजय कुंडू, मुख्यमंत्री के प्रधान ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3d7VF83
इनमें विद्यार्थियों समेत विभिन्न प्रदेशों में नौकरी करने वाले शामिल हैं। -संजय कुंडू, मुख्यमंत्री के प्रधान ...

इसरो की इस नौकरी में घर बैठे ऑनलाइन करें आवेदन, आज आखिरी मौका

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विभिन्न पदों के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी की गई है।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3d1QNBa
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विभिन्न पदों के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी की गई है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में नौकरी पाने का शानदार मौका, 08 मई तक ...

... हैं, वे 08 मई, 2020 तक आवेदन प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं। नौकरी से संबंधित जानकारी के लिए अगली स्लाइड देखें।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3f95i8c
... हैं, वे 08 मई, 2020 तक आवेदन प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं। नौकरी से संबंधित जानकारी के लिए अगली स्लाइड देखें।

हेलमेट मुहिम को लेकर घर से निकलने अंश पूरे भारत का चक्कर लगाकर बैतूल में ...

फायनेंस कंपनी की नौकरी छोड़ लोगों को बचाने निकले अंश दिल्ली में फायनेंस कंपनी में नौकरी करते थे। वर्ष २०१४ ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2SlCC1N
फायनेंस कंपनी की नौकरी छोड़ लोगों को बचाने निकले अंश दिल्ली में फायनेंस कंपनी में नौकरी करते थे। वर्ष २०१४ ...

लॉकडाउन में 18 कर्मियों को काम से निकालना गलत : बंसल

विजय बंसल ने निकाले गए 18 कर्मचारियों को पुन: नौकरी पर रखने की मांग एचएमटी कर्मचारी कंज्यूमर कोऑपरेटिव ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2xnzATA
विजय बंसल ने निकाले गए 18 कर्मचारियों को पुन: नौकरी पर रखने की मांग एचएमटी कर्मचारी कंज्यूमर कोऑपरेटिव ...

लॉकडाउन में रेलकर्मचारियों की भी हो रही सेवा समाप्त

जिनकी सेवा समाप्त की गई है, वे सभी सेवानिवृत्त कर्मी हैं और उन्हें कोर ने दोबारा नौकरी पर रखा था। उधर, उत्तर मध्य ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2YkVDoX
जिनकी सेवा समाप्त की गई है, वे सभी सेवानिवृत्त कर्मी हैं और उन्हें कोर ने दोबारा नौकरी पर रखा था। उधर, उत्तर मध्य ...

असिस्टेंट प्रोफेसरों को चार माह से नहीं मिला पहला वेतन, अब नौकरी संकट में

हाई कोर्ट से चयन सूची निरस्त होने के बाद प्रदेश के ढाई हजार असिस्टेंट प्रोफेसरों की नौकरी पर संकट आ गया है।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3aZ66cE
हाई कोर्ट से चयन सूची निरस्त होने के बाद प्रदेश के ढाई हजार असिस्टेंट प्रोफेसरों की नौकरी पर संकट आ गया है।

प्रेमिका ने प्रेमी की पत्नी को पति देने के लिए पूरी प्राॅपर्टी देने का ...

एक साथ नौकरी करने वाले सहकर्मी में कब मुलाकात प्यार में बदल गई पता नहीं चला। जब लॉकडाउन हुआ तो दोनों का ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2zNvG7p
एक साथ नौकरी करने वाले सहकर्मी में कब मुलाकात प्यार में बदल गई पता नहीं चला। जब लॉकडाउन हुआ तो दोनों का ...

आखिर उसे नौकरी मिल गई

घर पहुंचकर झूठ बोलकर उसने जब मां-बाप को नौकरी लगने की बात कही तो उन्हें लगा अब उनके अच्छे आ गए हैं। अब वह हर दिन ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2Spzu57
घर पहुंचकर झूठ बोलकर उसने जब मां-बाप को नौकरी लगने की बात कही तो उन्हें लगा अब उनके अच्छे आ गए हैं। अब वह हर दिन ...

उत्तर रेलवे ने पुनर्नियुक्ति पर तैनात 129 रेलकर्मियों को हटाया

देशभर में हजारों रेलकर्मी नौकरी पूरी करके रिटायर होने के बाद जुगाड़ लगाकर पुनर्नियुक्ति कराकर नौकरी कर रहे हैं।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/35w8d6F
देशभर में हजारों रेलकर्मी नौकरी पूरी करके रिटायर होने के बाद जुगाड़ लगाकर पुनर्नियुक्ति कराकर नौकरी कर रहे हैं।

Coal India : इस साल कोल इंडिया में 6600 नौकरी मिलेंगी

Coal India : इस साल कोल इंडिया में 6600 नौकरी मिलेंगी. Posted on April 30, 2020 Author admin Comment(0). via Live Hindustan Rss ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2WtcDaj
Coal India : इस साल कोल इंडिया में 6600 नौकरी मिलेंगी. Posted on April 30, 2020 Author admin Comment(0). via Live Hindustan Rss ...

रसूखदार सिराजुल खान व हमीद अंसारी नौकरी लगाने के नाम पर लिए थे रुपए ...

सूरजपुर नगर के मानपुर निवासी सिराजुल खान व हामिद अंसारी नौकरी लगाने के नाम पर रुपए लिए थे नहीं आज तक न नौकरी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2z0Bj1u
सूरजपुर नगर के मानपुर निवासी सिराजुल खान व हामिद अंसारी नौकरी लगाने के नाम पर रुपए लिए थे नहीं आज तक न नौकरी ...

लॉकडाउन में नौकरी गई तो दवा कारोबारी से मांगी 20 लाख की रंगदारी

धनबाद लॉकडाउन में नौकरी गई तो लोकबाद तोपचांची के दो युवक जुर्म की राह पर बढ़ गए।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2YtbIZI
धनबाद लॉकडाउन में नौकरी गई तो लोकबाद तोपचांची के दो युवक जुर्म की राह पर बढ़ गए।

QA Auditor Jobs in Bangalore , बैंगलोर , क्यूए लेखा परीक्षक नौकरियां 169106429

(कंपनी प्रोफाइल). Job Summary (नौकरी का सारांश). KYC Quality Assurance Officer by Freshersworld. Job Type (नौकरी का प्रकार) ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2KPKR24
(कंपनी प्रोफाइल). Job Summary (नौकरी का सारांश). KYC Quality Assurance Officer by Freshersworld. Job Type (नौकरी का प्रकार) ...

विवाद / चाचा ने भतीजे व बड़े भाई पर किया हमला, चार घायल

उल्लेखनीय है कि बजरंग तोमर सूरत स्थित हीरा फैक्टरी में सुरक्षा गार्ड के रूप में नौकरी करता है। वह लॉकडाउन में ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2Wg6VIq
उल्लेखनीय है कि बजरंग तोमर सूरत स्थित हीरा फैक्टरी में सुरक्षा गार्ड के रूप में नौकरी करता है। वह लॉकडाउन में ...

कोरोना का कहर! दुनिया भर में जून तक 30 करोड़ लोगों की जा सकती है नौकरी

कोरोना का कहर! दुनिया भर में जून तक 30 करोड़ लोगों की जा सकती है नौकरी. भाषा. Updated: April 30, 2020, 7:56 AM IST.

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2Slc1lQ
कोरोना का कहर! दुनिया भर में जून तक 30 करोड़ लोगों की जा सकती है नौकरी. भाषा. Updated: April 30, 2020, 7:56 AM IST.

Sarkari Naukari: लोक सेवा आयोग में मिल रही सरकारी नौकरी, जानें योग्यता

तो अगर आप भी आयोग में सरकारी नौकरी करना चाहते हैं तो अप्लाई कर सकते हैं. आवेदन करने की अंतिम तारीख ऑनलाइन ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2KM7lkx
तो अगर आप भी आयोग में सरकारी नौकरी करना चाहते हैं तो अप्लाई कर सकते हैं. आवेदन करने की अंतिम तारीख ऑनलाइन ...

मामला दर्ज / कमांडो के भाई ने बोरुंदा एसआई के खिलाफ दर्ज कराया हत्या ...

... 304 में मामला दर्ज करने व सरकारी नौकरी सहित अन्य मांगों को लेकर परिवारजनों ने शव लेने से इनकार कर दिया था।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2yQUOcV
... 304 में मामला दर्ज करने व सरकारी नौकरी सहित अन्य मांगों को लेकर परिवारजनों ने शव लेने से इनकार कर दिया था।

होमगार्ड की

Pradum Singh. कंपनी में नौकरी करते हैं at होमगार्ड की. होमगार्ड की. India0 connections. Join to Connect · Report this profile ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2WhGTVw
Pradum Singh. कंपनी में नौकरी करते हैं at होमगार्ड की. होमगार्ड की. India0 connections. Join to Connect · Report this profile ...

Wednesday 29 April 2020

19 दिन 19 कहानियां: स्वीकृति

‘आजकल धरम तो रहा ही नहीं. जातबिरादरी जैसी बातें भी भूल गए. अब क्या बिना नहाएधोए नौकर चौके में घुसेंगे?’

इस पर विभू का स्वर ऊंचा हो गया था, ‘अम्मां, दोनों भाभियां मुझ से उम्र में बड़ी हैं, इसलिए उन के बारे में कुछ नहीं कहता पर मीता तो थोड़ाबहुत घरगृहस्थी के कामों में हाथ बंटा सकती है. कभी आप ने सोचा है, आप के लाड़- प्यार से वह कितनी बिगड़ती जा रही है. इसे भी तो दूसरे घर जाना है. क्या यह ठीक है कि घर की सभी औरतें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और बेचारी नीरा ही घर के कामों में जुटी रहे?’

‘तो किस ने कहा है इसे नौकरी करने के लिए. घर में इतना कुछ है कि आने वाली सात पुश्तें खा सकती हैं?’

‘वैसे मां, है तो यह छोटे मुंह बड़ी बात पर हम भी मीता को इसीलिए पढ़ा रहे हैं न कि वह स्वावलंबी बने. अगर उस की ससुराल के लोग भी उस के साथ  वैसा ही सलूक करें जैसा आप लोग नीरा के साथ करते हैं तो कैसा लगेगा आप को?’

‘मीता की तुलना नीरा से करने का अधिकार किस ने दे दिया तुझे. वह किसी छोटे घर की बेटी नहीं है,’ बेटे के सधे हुए आग्रह के स्वर को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां चीखीं.

विभू उस के बाद एक पल भी नहीं रुके थे. स्तंभित नीरा को लगभग घसीटते हुए घर से चले गए थे.

बैंक से कर्ज ले कर नया घर बनवाया और एक नई गृहस्थी बसा ली दोनों ने. एक मारुति जेन गाड़ी भी किस्तों पर ले ली. लेकिन नीरा खुश नहीं थी. बारबार यही कहती, ‘मेरी वजह से तुम्हारा घर छूटा.’

विभू उसे समझाते, ‘जहां तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं वहां अपनी जगह बनाने के लिए क्यों परेशान होती हो?’

6 महीने बीत गए. प्रसव पीड़ा से छटपटाती नीरा अस्पताल पहुंची. ससुराल से कोई नहीं आया. सहकर्मी डाक्टरों ने देखभाल में कोई कमी नहीं रखी थी. मां, पापा और रोहित एक पल के लिए भी वहां से नहीं हटे थे. फिर भी नीरा के मन में एक कसक सी थी कि कितना अच्छा  होता अगर विभू के घर से भी कोई आता, उस के सिरहाने खड़ा होता.

नामकरण वाले दिन उमा दीदी अपने दोनों बेटों के साथ आई थीं. उम्र में वह विभू से 10 साल बड़ी थीं फिर भी वह नीरा से हमउम्र सहेलियों की तरह ही मिलीं. पर जब अम्मां, भाभीभैया में से कोई नहीं आया तो नीरा की रुलाई का बांध फूट पड़ा. वह उमा दीदी के कंधे पर सिर रख बोली, ‘दीदी? मैं तो सोचती थी बच्चे के आने  के बाद सारी दूरियां अपनेआप मिटती चली जाएंगी पर ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ.’

सवा महीने बाद मुन्ने को ले कर उसी चौखट पर पहुंची नीरा, जहां से कभी अपमानित हो कर वह लौटी थी. विभू ने उसे रोकना चाहा पर वह नहीं मानी, ‘देरसवेर, बेटे के लिए तो मोह जाग सकता है. बहू तो पराए घर की होती है. उसे तो स्वयं ही परिवार में जगह बनानी होती है.’ यही विचार था मन में.

वह ससुराल पहुंची तो अम्मां घर  पर नहीं थीं. दरवाजे पर ही बड़ी भाभी की 6 साल की बिटिया सोनाली और  ननद मीता मिल गईं. देखते ही अपरिचय के भाव तिर आए थे. मीता तो अंदर चली गई, सोनाली वहीं खड़ी नीरा का चेहरा ताकने लगी.

‘पहचाना नहीं क्या, सोनू. मैं तुम्हारी चाची… नीरा.’

नाम सुनते ही वह डर कर और पीछे हट गई तो उस ने स्वयं मुन्ने को पलंग पर लिटा दिया और सोनाली को पुकारा, ‘नन्हे मुन्ने से नहीं खेलोगी?’

सोनाली अब सहज हो कर मुसकराने लगी थी. मुन्ने को सोनाली के पास लिटा कर नीरा पूरे घर का चक्कर लगा आई. पूरा घर बेतरतीब पड़ा था. भाभी पलंग पर लेटी कराह रही थीं. उन्हें तेज बुखार था. नीरा ने केमिस्ट को फोन कर दवाइयां मंगवाईं. फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर भाभी के माथे पर ठंडी पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद भाभी का बुखार उतरने लगा. नीरा इस बीच चौके में जा कर दलिया बना लाई. घर के अन्य सदस्यों के लिए भी दालसब्जी छौंक दी. अब भी उसे याद था, महाराजिन के हाथ का पका खाना अम्मां नहीं खाती हैं.

ये भी पढ़ें- चिंता की कोई बात नहीं

12 बज चुके थे. भाभी की तबीयत थोड़ी सुधरने लगी थी. अम्मां अभी तक लौटी नहीं थीं. नीरा ने डोंगे में दलिया पलट कर उस में दूध डाला और भाभी के पास जा बैठी. भाभी की आंखों में स्नेह छलक आया था. मीता अब भी तुनकी हुई थी. नीरा ने कुरेदकुरेद कर उस की परीक्षा की तैयारी के बारे में पूछा तो वह सहज हो उठी  थी. सोनाली, मुन्ने के  साथ खेल रही थी. तनाव के बादल छंटते जा रहे थे. इतने में अम्मां आती दिखाई दीं.

अम्मां की बेरुखी अब भी पहले की तरह कायम थी. उन्होंने एक उड़ती सी नजर मुन्ने और नीरा पर डाली. नीरा ने खुद उन की गोद में मुन्ने को डाल दिया था. उसे अब भी विश्वास था कि स्नेह  की आंच से, मन  में  ठोस  हुई  भावनाओं को पिघलाया जा सकता है.

‘पोते को आशीर्वाद नहीं देंगी?’ उस ने अम्मां की आंखों में झांका.

उन्होंने सोने का सिक्का पोते की हथेली पर रख तो दिया पर वैसा अपनापन अम्मां ने नहीं दिखाया जैसा नीरा चाहती थी. घर लौटने के बाद भी नीरा बराबर बड़ी भाभी का हाल पूछती रही. परहेज और दवा के बारे में भी बताती रही. उस की सद्भावना के आगे बड़ी भाभी नतमस्तक हो उठी थीं. फोन पर ही सिसक उठीं और बोलीं, ‘नीरा हमें माफ कर दो. बड़ी ही बदसलूकी की मैं ने तुम से.’

भाभी बात कर ही रही थीं कि तभी मीता ने फोन छीन लिया था.

‘भाभी, मुन्ना कैसा है? भैया कैसे हैं?’

‘वहीं बैठीबैठी, सब के बारे में पूछती रहोगी या घर आ कर मिलोगी भी?’

उस दिन के बाद से मीता और सोनाली जब भी समय मिलता, मुन्ने से खेलने पहुंच जातीं. भाभी फोन पर ही मुन्ने की परवरिश की हिदायतें देती रहतीं. कभीकभी अम्मां से छिप कर, मुन्ने के लिए सौंफमिश्री की भुगनी और नीरा के लिए पिस्तेबादाम की कतली भी बच्चों के हाथ भिजवा देतीं.

धीरेधीरे विभू के परिजनों से नीरा की दूरियां सिमटने लगी थीं, पर उसे तो अम्मां के पास पहुंचना था. परिवार की धुरी तो वही थीं.

सचानक अम्मां की कराहट ने नीरा को अतीत के झरोखे से खींच कर वर्तमान में ला पटका. सामने ई.सी.जी. मशीन का मानिटर उन के हृदय की धड़कनों का संकेत दे रहा था. एकाएक अम्मां की सांस फूलने लगी. शरीर पसीनेपसीने हो गया. घर के सभी सदस्य घबरा गए थे. मीता जोरजोर से रोने लगी. तीनों भाई उसे सहारा दे रहे थे. मझली भाभी भी 2 दिन पहले ही पहुंची थीं.

डाक्टर ने नीरा को कमरे में बुला कर बताया, ‘‘स्थिति नाजुक है. फौरन आपरेशन करना पड़ेगा. पैसे जमा करवा दीजिए.’’

अगले कुछ पलों में नीरा डाक्टर शेरावत के साथ आपरेशन थिएटर में थी. विभू दोनों भाइयों के साथ बाहर चहलकदमी कर रहे थे. बड़ी भाभी मुन्ने को गोद में लिए हैरानपरेशान सी इधरउधर डोल रही थीं. मां के दूध पर पलने वाला बच्चा तीन घंटे से सिसक रहा था.

कुछ ही देर में तीनों भाई, दोनों भाभियां, उमा दीदी, मीता बाहर लगे पेड़ की छाया में बैठ गईं. भाभी गहरे मौन सागर में डूब सी गईं. मीता उन्हें सचेत करती हुई बोली, ‘‘क्या सोच रही हो, भाभी?’’

लंबी सांस ले कर भाभी बोलीं, ‘‘कहने को तो अम्मां की 3 बहुएं हैं, पर हर जगह, हर समय नीरा अपनी जगह खुद बना लेती है. बेचारी, बिना रुके, हर वक्त दौड़भाग करती रहती है. फिर भी उठतेबैठते अम्मां उसे कोसती रहती हैं. सच, हम सब ने उस के बारे में कितनी गलत धारणा बनाई हुई थी.’

आपरेशन थिएटर से जब अम्मां को स्पेशल वार्ड में लाया गया तब तक सांझ घिर आई थी. नीरा मुन्ने को ले कर घर चली गई थी. भूख से बिलबिलाता बच्चा रोरो कर हलकान हो उठा था.

संक्रमण की वजह से किसी को भी अम्मां से मिलने की अनुमति नहीं थी. गहरी नींद के नशे में भी, उन के जागते दिमाग में विचारों के बादल उमड़घुमड़ रहे थे. अम्मां ने लड़खड़ाती आवाज में नीरा का नाम लिया तो सभी उन के इर्दगिर्द सिमट आए थे.

टूटते स्वर में वह बोलीं, ‘‘नीरा कहां है?’’ कमजोरी से फिर आंखें मुंदने लगी थीं.

अगले दिन थोड़ी हालत सुधरी तो उन्होंने विभू से कहा, ‘‘मैं नीरा से मिलना चाहती हूं. मैं ने उस का बड़ा ही अनादर किया,’’ और उन की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे, ‘‘द्वार पर आई सुहागिन का निरादर किया,’’ अम्मां दुखी मन से कहने लगीं, ‘‘मैं ने तो उसे आशीर्वाद तक नहीं दिया और उस ने मुझे जीवनदान दे दिया.’’

‘‘मां की बातों का उस की संतान कभी बुरा नहीं मानती,’’ विभू बोला, ‘‘इन 3 सालों में मुझ से ज्यादा तो वह तुम्हारे लिए छटपटाती रही है, अम्मां.’’

उस रात अम्मां को बहुत अच्छी नींद आई. सुबह की किरण के साथ जब कमरे का परदा सरका तो पूरा कमरा, गुलाब की सुगंध से महक उठा. खिड़की के परदे सरका कर नीरा ने पूछा, ‘‘अम्मां, अब कैसी हैं?’’

आंखें मूंद कर उन्होंने गरदन को थोड़ा हिलाया. फिर इशारे से उसे अपने पास आ कर बैठने को कहा. दिन के उजाले में नीरा के ताजगी भरे चेहरे को अम्मां अपलक निहारती रह गईं, ‘सुंदर तो तू पहले से ही थी. मां बन कर और भी निखर गई.’

तभी मझली भाभी मुन्ने को ले कर कमरे में आईं और बोलीं, ‘‘दादी को प्रणाम करो.’’

अम्मां उसे आशीर्वाद देती रहीं, सहलाती रहीं, पुचकारती रहीं.

‘‘क्या नाम रखा है?’’

‘‘ऐसे कैसे नाम रखते, अम्मां. वह तो आप को ही रखना है,’’ नीरा ने आदर भरे भाव से कहा तो अम्मां खुद को अपराधिन समझने लगीं. हृदय की पीड़ा के तिनकों को आंसुओं से बुहारते हुए वह दृढ़ स्वर में बोलीं.

‘‘इस रविवार को मुन्ने का नामकरण समारोह हम सब मिल कर अपने घर पर मनाएंगे. जिस चौखट से तुम अपमानित हो कर निकली थीं वहीं पर आशीष पाने के लिए लौटोगी.’’

अम्मां की आंखें नम हो उठीं. न जाने कब आंसू के दो कतरे टपक कर नीरा की हथेली पर टपके आंसुओं से मिल गए. नीरा को महसूस हुआ कि ससुराल की देहरी पर उस ने आज पहला कदम रखा है.

ये भी पढ़ें- कौन जाने

The post 19 दिन 19 कहानियां: स्वीकृति appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/35ggMlT

‘आजकल धरम तो रहा ही नहीं. जातबिरादरी जैसी बातें भी भूल गए. अब क्या बिना नहाएधोए नौकर चौके में घुसेंगे?’

इस पर विभू का स्वर ऊंचा हो गया था, ‘अम्मां, दोनों भाभियां मुझ से उम्र में बड़ी हैं, इसलिए उन के बारे में कुछ नहीं कहता पर मीता तो थोड़ाबहुत घरगृहस्थी के कामों में हाथ बंटा सकती है. कभी आप ने सोचा है, आप के लाड़- प्यार से वह कितनी बिगड़ती जा रही है. इसे भी तो दूसरे घर जाना है. क्या यह ठीक है कि घर की सभी औरतें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और बेचारी नीरा ही घर के कामों में जुटी रहे?’

‘तो किस ने कहा है इसे नौकरी करने के लिए. घर में इतना कुछ है कि आने वाली सात पुश्तें खा सकती हैं?’

‘वैसे मां, है तो यह छोटे मुंह बड़ी बात पर हम भी मीता को इसीलिए पढ़ा रहे हैं न कि वह स्वावलंबी बने. अगर उस की ससुराल के लोग भी उस के साथ  वैसा ही सलूक करें जैसा आप लोग नीरा के साथ करते हैं तो कैसा लगेगा आप को?’

‘मीता की तुलना नीरा से करने का अधिकार किस ने दे दिया तुझे. वह किसी छोटे घर की बेटी नहीं है,’ बेटे के सधे हुए आग्रह के स्वर को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां चीखीं.

विभू उस के बाद एक पल भी नहीं रुके थे. स्तंभित नीरा को लगभग घसीटते हुए घर से चले गए थे.

बैंक से कर्ज ले कर नया घर बनवाया और एक नई गृहस्थी बसा ली दोनों ने. एक मारुति जेन गाड़ी भी किस्तों पर ले ली. लेकिन नीरा खुश नहीं थी. बारबार यही कहती, ‘मेरी वजह से तुम्हारा घर छूटा.’

विभू उसे समझाते, ‘जहां तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं वहां अपनी जगह बनाने के लिए क्यों परेशान होती हो?’

6 महीने बीत गए. प्रसव पीड़ा से छटपटाती नीरा अस्पताल पहुंची. ससुराल से कोई नहीं आया. सहकर्मी डाक्टरों ने देखभाल में कोई कमी नहीं रखी थी. मां, पापा और रोहित एक पल के लिए भी वहां से नहीं हटे थे. फिर भी नीरा के मन में एक कसक सी थी कि कितना अच्छा  होता अगर विभू के घर से भी कोई आता, उस के सिरहाने खड़ा होता.

नामकरण वाले दिन उमा दीदी अपने दोनों बेटों के साथ आई थीं. उम्र में वह विभू से 10 साल बड़ी थीं फिर भी वह नीरा से हमउम्र सहेलियों की तरह ही मिलीं. पर जब अम्मां, भाभीभैया में से कोई नहीं आया तो नीरा की रुलाई का बांध फूट पड़ा. वह उमा दीदी के कंधे पर सिर रख बोली, ‘दीदी? मैं तो सोचती थी बच्चे के आने  के बाद सारी दूरियां अपनेआप मिटती चली जाएंगी पर ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ.’

सवा महीने बाद मुन्ने को ले कर उसी चौखट पर पहुंची नीरा, जहां से कभी अपमानित हो कर वह लौटी थी. विभू ने उसे रोकना चाहा पर वह नहीं मानी, ‘देरसवेर, बेटे के लिए तो मोह जाग सकता है. बहू तो पराए घर की होती है. उसे तो स्वयं ही परिवार में जगह बनानी होती है.’ यही विचार था मन में.

वह ससुराल पहुंची तो अम्मां घर  पर नहीं थीं. दरवाजे पर ही बड़ी भाभी की 6 साल की बिटिया सोनाली और  ननद मीता मिल गईं. देखते ही अपरिचय के भाव तिर आए थे. मीता तो अंदर चली गई, सोनाली वहीं खड़ी नीरा का चेहरा ताकने लगी.

‘पहचाना नहीं क्या, सोनू. मैं तुम्हारी चाची… नीरा.’

नाम सुनते ही वह डर कर और पीछे हट गई तो उस ने स्वयं मुन्ने को पलंग पर लिटा दिया और सोनाली को पुकारा, ‘नन्हे मुन्ने से नहीं खेलोगी?’

सोनाली अब सहज हो कर मुसकराने लगी थी. मुन्ने को सोनाली के पास लिटा कर नीरा पूरे घर का चक्कर लगा आई. पूरा घर बेतरतीब पड़ा था. भाभी पलंग पर लेटी कराह रही थीं. उन्हें तेज बुखार था. नीरा ने केमिस्ट को फोन कर दवाइयां मंगवाईं. फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर भाभी के माथे पर ठंडी पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद भाभी का बुखार उतरने लगा. नीरा इस बीच चौके में जा कर दलिया बना लाई. घर के अन्य सदस्यों के लिए भी दालसब्जी छौंक दी. अब भी उसे याद था, महाराजिन के हाथ का पका खाना अम्मां नहीं खाती हैं.

ये भी पढ़ें- चिंता की कोई बात नहीं

12 बज चुके थे. भाभी की तबीयत थोड़ी सुधरने लगी थी. अम्मां अभी तक लौटी नहीं थीं. नीरा ने डोंगे में दलिया पलट कर उस में दूध डाला और भाभी के पास जा बैठी. भाभी की आंखों में स्नेह छलक आया था. मीता अब भी तुनकी हुई थी. नीरा ने कुरेदकुरेद कर उस की परीक्षा की तैयारी के बारे में पूछा तो वह सहज हो उठी  थी. सोनाली, मुन्ने के  साथ खेल रही थी. तनाव के बादल छंटते जा रहे थे. इतने में अम्मां आती दिखाई दीं.

अम्मां की बेरुखी अब भी पहले की तरह कायम थी. उन्होंने एक उड़ती सी नजर मुन्ने और नीरा पर डाली. नीरा ने खुद उन की गोद में मुन्ने को डाल दिया था. उसे अब भी विश्वास था कि स्नेह  की आंच से, मन  में  ठोस  हुई  भावनाओं को पिघलाया जा सकता है.

‘पोते को आशीर्वाद नहीं देंगी?’ उस ने अम्मां की आंखों में झांका.

उन्होंने सोने का सिक्का पोते की हथेली पर रख तो दिया पर वैसा अपनापन अम्मां ने नहीं दिखाया जैसा नीरा चाहती थी. घर लौटने के बाद भी नीरा बराबर बड़ी भाभी का हाल पूछती रही. परहेज और दवा के बारे में भी बताती रही. उस की सद्भावना के आगे बड़ी भाभी नतमस्तक हो उठी थीं. फोन पर ही सिसक उठीं और बोलीं, ‘नीरा हमें माफ कर दो. बड़ी ही बदसलूकी की मैं ने तुम से.’

भाभी बात कर ही रही थीं कि तभी मीता ने फोन छीन लिया था.

‘भाभी, मुन्ना कैसा है? भैया कैसे हैं?’

‘वहीं बैठीबैठी, सब के बारे में पूछती रहोगी या घर आ कर मिलोगी भी?’

उस दिन के बाद से मीता और सोनाली जब भी समय मिलता, मुन्ने से खेलने पहुंच जातीं. भाभी फोन पर ही मुन्ने की परवरिश की हिदायतें देती रहतीं. कभीकभी अम्मां से छिप कर, मुन्ने के लिए सौंफमिश्री की भुगनी और नीरा के लिए पिस्तेबादाम की कतली भी बच्चों के हाथ भिजवा देतीं.

धीरेधीरे विभू के परिजनों से नीरा की दूरियां सिमटने लगी थीं, पर उसे तो अम्मां के पास पहुंचना था. परिवार की धुरी तो वही थीं.

सचानक अम्मां की कराहट ने नीरा को अतीत के झरोखे से खींच कर वर्तमान में ला पटका. सामने ई.सी.जी. मशीन का मानिटर उन के हृदय की धड़कनों का संकेत दे रहा था. एकाएक अम्मां की सांस फूलने लगी. शरीर पसीनेपसीने हो गया. घर के सभी सदस्य घबरा गए थे. मीता जोरजोर से रोने लगी. तीनों भाई उसे सहारा दे रहे थे. मझली भाभी भी 2 दिन पहले ही पहुंची थीं.

डाक्टर ने नीरा को कमरे में बुला कर बताया, ‘‘स्थिति नाजुक है. फौरन आपरेशन करना पड़ेगा. पैसे जमा करवा दीजिए.’’

अगले कुछ पलों में नीरा डाक्टर शेरावत के साथ आपरेशन थिएटर में थी. विभू दोनों भाइयों के साथ बाहर चहलकदमी कर रहे थे. बड़ी भाभी मुन्ने को गोद में लिए हैरानपरेशान सी इधरउधर डोल रही थीं. मां के दूध पर पलने वाला बच्चा तीन घंटे से सिसक रहा था.

कुछ ही देर में तीनों भाई, दोनों भाभियां, उमा दीदी, मीता बाहर लगे पेड़ की छाया में बैठ गईं. भाभी गहरे मौन सागर में डूब सी गईं. मीता उन्हें सचेत करती हुई बोली, ‘‘क्या सोच रही हो, भाभी?’’

लंबी सांस ले कर भाभी बोलीं, ‘‘कहने को तो अम्मां की 3 बहुएं हैं, पर हर जगह, हर समय नीरा अपनी जगह खुद बना लेती है. बेचारी, बिना रुके, हर वक्त दौड़भाग करती रहती है. फिर भी उठतेबैठते अम्मां उसे कोसती रहती हैं. सच, हम सब ने उस के बारे में कितनी गलत धारणा बनाई हुई थी.’

आपरेशन थिएटर से जब अम्मां को स्पेशल वार्ड में लाया गया तब तक सांझ घिर आई थी. नीरा मुन्ने को ले कर घर चली गई थी. भूख से बिलबिलाता बच्चा रोरो कर हलकान हो उठा था.

संक्रमण की वजह से किसी को भी अम्मां से मिलने की अनुमति नहीं थी. गहरी नींद के नशे में भी, उन के जागते दिमाग में विचारों के बादल उमड़घुमड़ रहे थे. अम्मां ने लड़खड़ाती आवाज में नीरा का नाम लिया तो सभी उन के इर्दगिर्द सिमट आए थे.

टूटते स्वर में वह बोलीं, ‘‘नीरा कहां है?’’ कमजोरी से फिर आंखें मुंदने लगी थीं.

अगले दिन थोड़ी हालत सुधरी तो उन्होंने विभू से कहा, ‘‘मैं नीरा से मिलना चाहती हूं. मैं ने उस का बड़ा ही अनादर किया,’’ और उन की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे, ‘‘द्वार पर आई सुहागिन का निरादर किया,’’ अम्मां दुखी मन से कहने लगीं, ‘‘मैं ने तो उसे आशीर्वाद तक नहीं दिया और उस ने मुझे जीवनदान दे दिया.’’

‘‘मां की बातों का उस की संतान कभी बुरा नहीं मानती,’’ विभू बोला, ‘‘इन 3 सालों में मुझ से ज्यादा तो वह तुम्हारे लिए छटपटाती रही है, अम्मां.’’

उस रात अम्मां को बहुत अच्छी नींद आई. सुबह की किरण के साथ जब कमरे का परदा सरका तो पूरा कमरा, गुलाब की सुगंध से महक उठा. खिड़की के परदे सरका कर नीरा ने पूछा, ‘‘अम्मां, अब कैसी हैं?’’

आंखें मूंद कर उन्होंने गरदन को थोड़ा हिलाया. फिर इशारे से उसे अपने पास आ कर बैठने को कहा. दिन के उजाले में नीरा के ताजगी भरे चेहरे को अम्मां अपलक निहारती रह गईं, ‘सुंदर तो तू पहले से ही थी. मां बन कर और भी निखर गई.’

तभी मझली भाभी मुन्ने को ले कर कमरे में आईं और बोलीं, ‘‘दादी को प्रणाम करो.’’

अम्मां उसे आशीर्वाद देती रहीं, सहलाती रहीं, पुचकारती रहीं.

‘‘क्या नाम रखा है?’’

‘‘ऐसे कैसे नाम रखते, अम्मां. वह तो आप को ही रखना है,’’ नीरा ने आदर भरे भाव से कहा तो अम्मां खुद को अपराधिन समझने लगीं. हृदय की पीड़ा के तिनकों को आंसुओं से बुहारते हुए वह दृढ़ स्वर में बोलीं.

‘‘इस रविवार को मुन्ने का नामकरण समारोह हम सब मिल कर अपने घर पर मनाएंगे. जिस चौखट से तुम अपमानित हो कर निकली थीं वहीं पर आशीष पाने के लिए लौटोगी.’’

अम्मां की आंखें नम हो उठीं. न जाने कब आंसू के दो कतरे टपक कर नीरा की हथेली पर टपके आंसुओं से मिल गए. नीरा को महसूस हुआ कि ससुराल की देहरी पर उस ने आज पहला कदम रखा है.

ये भी पढ़ें- कौन जाने

The post 19 दिन 19 कहानियां: स्वीकृति appeared first on Sarita Magazine.

April 30, 2020 at 10:00AM

सच्ची परख

बिस्तर पर लेटी वह खिड़की से बाहर निहार रही थी. शांत, स्वच्छ, निर्मल आकाश देखना भी कितना सुखद लगता है. घर के बगीचे के विस्तार में फैली हरियाली और हवा के झोंकों से मचलते फूल वगैरा तो पहले भी यहां थे लेकिन तब उस की नजरों को ये नजारे चुभते थे. परंतु आज…?

शेफाली ने एक ठंडी सांस ली, परिस्थितियां इंसान में किस हद तक बदलाव ला देती हैं. अगर ऐसा न होता तो आज तक वह यों घुटती न रहती. बेकार ही उस ने अपने जीवन के 2 वर्ष मृगमरीचिका में भटकते हुए गंवा दिए, निरर्थक बातों के पीछे अपने को छलती रही. काश, उसे पहले एहसास हो जाता तो…

‘‘लीजिए मैडम, आप का जूस,’’ सुदेश की आवाज ने उसे सोच के दायरे से बाहर ला पटका.

‘‘क्यों बेकार आप इतनी मेहनत करते हैं, जूस की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने संकोच से कहा.

‘‘देखिए जनाब, आप की सेहत के लिए यह बहुत जरूरी है. आप तो बस आराम से आदेश देती रहिए, यह बंदा आप को तरहतरह के पकवान बना कर खिलाता रहेगा. फिर कौन सी बहुत मेहनत करनी पड़ती है, यहां तो सबकुछ डब्बाबंद तैयार मिलता है, विदेश का कम से कम यह लाभ तो है ही,’’ सुदेश ने गिलास थमाते हुए कहा.

ये भी पढ़ें-19 दिन 19 कहानियां : खुली छत

‘‘लेकिन आप काम करें, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘शेफाली, थोड़े दिनों की बात है. जहां पेट के टांके कटे, वहीं तुम थोड़ाबहुत चलने लगोगी. अभी तो डाक्टर ने तुम्हें पूरी तरह आराम करने को कहा है. अच्छा, देखो, मैं बाजार से सामान ले कर आता हूं, तब तक तुम थोड़ा सो लो. फिर सोचने मत लग जाना. मैं देख रहा हूं, जब से तुम्हारा औपरेशन हुआ है, तुम हमेशा सोच में डूबी रहने लगी हो. सब ठीक से तो हो गया है, फिर काहे की चिंता. खैर, अब आराम करो.’’

सुदेश ने ठीक ही कहा था. जब से उस के पेट के ट्यूमर का औपरेशन हुआ था तब से वह सोचने लगी थी. असल में तो वह इन 2 वर्षों में सुदेश के प्रति किए गए व्यवहार की ग्लानि थी जो उसे निरंतर मथती रहती थी.

सुदेश के साधारण रूपरंग और प्रभावहीन व्यक्तित्व के कारण शेफाली हमेशा उसे अपमानित करने की कोशिश करती. अपने अथाह रूप और आकर्षण के सामने वह सुदेश को हीन समझती. अपने मातापिता को भी माफ नहीं कर पाई थी. अकसर वह मां को चिट्ठी में लिखती कि उस ने उन्हें वर चुनने का अधिकार दे कर बहुत भारी भूल की थी. ऐसे कुरूप पति को पाने से तो अच्छा था वह स्वयं किसी को ढूंढ़ कर विवाह कर लेती. ऐसा लिखते वक्त उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि भारत में बैठे उस के मातापिता पर क्या बीत रही होगी.

शेफाली अपनी मां से तब कितना लड़ी थी, जब उसे पता चला था कि सुदेश ने कनाडा में ही बसने का निश्चय कर लिया है. सुदेश ने वहीं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और अच्छी नौकरी मिलने के कारण वह अब भारत नहीं आना चाहता था. शेफाली ने स्वयं एमबीबीएस पास कर लिया था और ‘इंटर्नशिप’ कर रही थी. वह चाहती थी कि भारत में ही रह कर अपना क्लीनिक खोले. नए देश में, नए परिवेश में जाने के नाम से ही वह परेशान हो गई थी. बेटी को नाखुश देख मातापिता को लगा कि इस से तो अच्छा है कि सगाई को तोड़ दिया जाए, पर उस ने उन्हें यह कह कर रोक दिया था कि इस से सामाजिक मानमर्यादा का हनन होगा और उस के भाईबहनों के विवाह में अड़चन आ सकती है. सुदेश से पत्रव्यवहार व फोन द्वारा उस की बातचीत होती रहती थी, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि ऐसी हालत में रिश्ता तोड़ कर उस का दिल दुखाया जाए. इसी कशमकश में वह विवाह कर के कनाडा आ गई थी.

ये भी पढ़ें-दो राहें 

अचानक टिं्रन…ट्रिंन…की आवाज से शेफाली का ध्यान भंग हुआ, फोन भारत से आया था. मां की आवाज सुन कर वह पुलकित हो उठी

‘‘कैसी हो बेटी, आराम कर रही हो न? देखो, ज्यादा चलनाफिरना नहीं.’’

उन की हिदायतें सुन वह मुसकरा उठी, ‘‘मैं ठीक हूं मां, सारा दिन आराम करती हूं. घर का सारा काम सुदेश ने संभाला हुआ है.’’

‘‘सुदेश ठीक है न बेटी, उस की इज्जत करना, वह अच्छा लड़का है, बूढ़ी आंखें धोखा नहीं खातीं, रूपरंग से क्या होता है,’’ मां ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.

‘‘मां, तुम फिक्र मत करो. देर से ही सही, लेकिन मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है,’’ तभी फोन कट गया.

दूर बैठी मां भी शायद जान गई थीं कि वह सुदेश को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती. फिर से एक बार शेफाली के मानसपटल पर बीते दिन घूमने लगे.

मौंट्रीयल के इस खूबसूरत फ्लैट में जब उस ने कदम रखा था तो ढेर सारे फूलों और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उस का स्वागत किया गया था. उन के आने की खुशी में सुदेश के मित्रों ने पूरे फ्लैट को सजा रखा था. ऐसी आवभगत की उसे आशा नहीं थी, इसलिए खुशी हुई थी, लेकिन वह उसे दबा गई थी. आखिर किस काम की थी वह खुशी.

सुदेश एकएक कर अपने साथियों से उसे मिलवाता रहा. उस की खूबसूरती की प्रशंसा में लोगों ने पुल बांध दिए.

‘यार, तुम तो इतनी सुंदर परी को भारत से उड़ा लाए,’ सुदेश के मित्र की बात सुन उसे वह मुहावरा याद आ गया था, ‘हूर के साथ लंगूर’. सुदेश जब भी उस का हाथ पकड़ता, वह झटके से उसे खींच लेती. ऐसा नहीं था कि सुदेश उस के व्यवहार से अनभिज्ञ था, लेकिन उस ने सोचा था कि अपने प्यार से वह शेफाली का मन जीत लेगा.

विवाह के कुछ दिन बाद उस ने कहा था, ‘अभी छुट्टियां बाकी हैं. चलो, तुम्हें पूरे कनाडा की सैर करा दें.’

तब शेफाली ने यह कह कर इनकार कर दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. उस की हरसंभव यही कोशिश रहती कि वह सुदेश से दूरदूर रहे. अपने सौंदर्य के अभिमान में वह यह भूल गई थी कि वह उस का पति है. उस का प्यार, उस का अपनापन और छोटीछोटी बातों का खयाल रखना शेफाली को तब दिखता ही कहां था.

सुदेश के सहयोगियों ने क्लब में पार्टी रखी थी, पर उस ने साथ जाने से इनकार कर दिया था.

‘देखो शेफाली, यह पार्टी उन्होंने हमारे लिए रखी है.’

पति की इस बात पर वह आगबबूला हो उठी थी, ‘मुझ से पूछ कर रखी है क्या? मैं पूछती हूं, तुम्हें मेरे साथ चलते झिझक नहीं होती. कहां तुम कहां मैं?’

तब सुदेश अवाक् रह गया था.

दरवाजा खुलने से एक बार फिर उस की तंद्रा भंग हो गई, ‘‘अरे, इतना सामान लाने की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने सुदेश को पैकटों से लदे देख पूछा.

‘‘अरे जनाब, ज्यादा कहां है, बस, कुछ फल हैं और डब्बाबंद खाना. जब तक तुम ठीक नहीं हो जातीं, इन्हीं से काम चलाना है,’’ सुदेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, खाना यहीं लगाऊं या बालकनी में बैठना चाहोगी?’’

‘‘नहींनहीं, यहीं ठीक है और देखो, ज्यादा पचड़े में मत पड़ना, वैसे भी ज्यादा भूख नहीं है.’’

‘‘क्यों, भूख क्यों नहीं है? तुम्हें ताकत  चाहिए और इस के लिए खाना बहुत जरूरी है,’’ सुदेश ने अपने हाथों से उसे खाना खिलाते हुए कहा.

शेफाली की आंखें नम हो आईं. ऐसे व्यक्ति से, जिस के अंदर प्यार का सागर लबालब भरा हुआ है, वह आज तक घृणा करती आई, सिर्फ इसलिए कि वह कुरूप है. लेकिन बाहरी सौंदर्य के झूठे सच में वह उस के गुणों को नजरअंदाज करती रही. अंदर से उस का मन कितना निर्मल, कितना स्वच्छ है. वह कितनी मूर्ख थी, तभी तो वैवाहिक जीवन के 2 सुनहरे वर्ष यों ही गंवा दिए. उस का हर पल यही प्रयत्न रहता कि किसी तरह सुदेश को अपमानित करे इसलिए उस की हर बात काटती.

लेकिन अपनी बीमारी के बाद उस ने जाना कि सच्चा प्रेम क्या होता है. शेफाली की इतनी बेरुखी के बाद भी सुदेश कितनी लगन से उस की सेवा कर रहा था.

‘‘अरे भई, खाना ठंडा हो जाएगा. जब देखो तब सोचती ही रहती हो. आखिर बात क्या है, मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ शेफाली ने सफाई से आंखें पोंछते हुए कहा, ‘‘मुझे शर्मिंदा मत करो. अरे हां, मां का फोन आया था,’’ उस ने बात पलटते हुए कहा.

रसोई व्यवस्थित कर सुदेश बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर दफ्तर हो कर आता हूं, तब तक तुम सो भी लेना. चाय के समय तक आ जाऊंगा. अरे हां, दफ्तर के साथी तुम्हारा हालचाल पूछने आना चाहते हैं, अगर तुम कहो तो?’’ सुदेश ने झिझकते हुए पूछा तो शेफाली ने मुसकरा कर हामी भर दी.

शेफाली जानती थी सुदेश ने क्यों पूछा था. वह उस के साथ न तो कहीं जाती थी, न ही उस के मित्रों का आना उसे पसंद था, क्योंकि तब उसे सुदेश के साथ बैठना पड़ता था, हंसना पड़ता था और वह यह चाहती नहीं थी. कितनी बार वह सुदेश को जता चुकी थी कि उस की पसंदनापसंद की उसे परवा नहीं है, खासकर उन दोस्तों की, जो हमेशा उस के सामने सुदेश की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं, ‘भाभीजी, यह तो बहुत ही हंसमुख और जिंदादिल इंसान है. अपने काम और व्यवहार के कारण सब काप्यारा है, अपना यार.’

शेफाली उस की बदसूरती के सामने जब इन बातों को तोलती तो हमेशा उसे सुदेश का पलड़ा हलका लगता. सुदेश जब भी उसे छूता, उसे लगता, कोई कीड़ा उस के शरीर पर रेंग रहा है और वह दूसरे कमरे में जा कर सो जाती.दरवाजे की घंटी बजी तो वह चौंक उठी. सच ही था, वह ज्यादा ही सोचने लगी थी. सोचा, शायद पोस्टमैन होगा. वह आहिस्ता से उठी और पत्र निकाल लाई. मां ने खत में वही सब बातें लिखी थीं और सुदेश का सम्मान करने की हिदायत दी थी. उस का मन हुआ कि वह अभी मां को जवाब दे दे, पर पेन और कागज दूसरे कमरे में रखे थे और वह थोड़ा चल कर थक गई थी. लेटने ही लगी थी कि सुदेश आ गया.

‘‘सुनो, जरा पेन और पैड दोगे, मां को चिट्ठी लिखनी है,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘बाद में, अभी लेटो, तुम्हें उठने की जरूरत ही क्या थी,’’ सुदेश ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘दवा भी नहीं ली. ठहरो, मैं पानी ले कर आता हूं.’’

‘‘सुनो,’’ शेफाली ने उस की बांह पकड़ ली. सुदेश ने कुछ हैरानी से देखा. शेफाली को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपने किए की माफी मांगे.

व्यक्ति की पहचान उस के गुणों से होती है, उस के व्यवहार से होती है, वही उस के व्यक्तित्व की छाप बनती है. सुदेश की सच्ची परख तो उसे अब हुई थी. आज तक तो वह अपनी खूबसूरती के दंभ में एक ऐसे राजकुमार की तलाश में कल्पनालोक में विचर रही थी जो किस्सेकहानियों में ही होते हैं, पर यथार्थ तो इस से बहुत परे होता है. जहां मनुष्य के गुणों को समाज की नजरें आंकती हैं, उस की आंतरिक सुंदरता ज्यादा माने रखती है. अगर खूबसूरती ही मापदंड होता तो समाज के मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लग जाता.

‘‘शेफाली, तुम कुछ कहना चाहती थीं?’’ सुदेश ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘हां…बस, कुछ खास नहीं,’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘मैं जानता हूं, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं. अगर तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर जा सकती हो,’’ सुदेश के स्वर में दर्द था.

‘‘बसबस, और कुछ न कहो, मैं पहले ही बहुत शर्मिंदा हूं. हो सके तो मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारा बहुत अपमान किया है. फिर भी तुम ने कभी मुझ से कटुता से बात नहीं की. मेरी हर कड़वाहट को सहते रहे और अब भी मेरी इतनी सेवा कर रहे हो, शर्म आती है मुझे अपनेआप पर,’’ शेफाली उस से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो, कौन नहीं जानता कि तुम्हारी खूबसूरती के सामने मैं कितना कुरूप लगता हूं.’’

‘‘खबरदार, जो तुम ने अपनेआप को कुरूप कहा. तुम्हारे जैसा सुंदर मैं ने जिंदगी में नहीं देखा. मेरी आंखों को तुम्हारी सच्ची परख हो गई है.’’

दोनों अपनी दुनिया में खोए थे कि तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई और घंटी भी बजी.

‘‘सुदेश, दरवाजा खोलो,’’ बाहर से शोर सुनाई दिया.

‘‘लगता है, मित्रमंडली आ गई है,’’ सुदेश बोला.

दरवाजा खुलते ही फूलों की महक से सारा कमरा भर गया. सुदेश के मित्र शेफाली को फूलों का एकएक गुच्छा थमाने लगे.

‘‘भाभीजी, आप के ठीक होने के बाद हम एक शानदार पार्टी लेंगे. क्यों, देंगी न?’’ एक मित्र ने पूछा.

‘‘जरूर,’’ शेफाली ने हंसते हुए कहा. उसे लग रहा था कि इन फूलों की तरह उस का जीवन भी महक से भर गया है. हर तरफ खुशबू बिखर गई है. गुच्छों के बीच से उस ने देखा, सुदेश के चेहरे पर एक अनोखी मुसकराहट छाई हुई है. शेफाली ने जब सारी शर्महया छोड़ आगे बढ़ कर उस का चेहरा चूमा तो ‘हे…हे’ का शोर मच गया और सुदेश ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया.

The post सच्ची परख appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/35fW59s

बिस्तर पर लेटी वह खिड़की से बाहर निहार रही थी. शांत, स्वच्छ, निर्मल आकाश देखना भी कितना सुखद लगता है. घर के बगीचे के विस्तार में फैली हरियाली और हवा के झोंकों से मचलते फूल वगैरा तो पहले भी यहां थे लेकिन तब उस की नजरों को ये नजारे चुभते थे. परंतु आज…?

शेफाली ने एक ठंडी सांस ली, परिस्थितियां इंसान में किस हद तक बदलाव ला देती हैं. अगर ऐसा न होता तो आज तक वह यों घुटती न रहती. बेकार ही उस ने अपने जीवन के 2 वर्ष मृगमरीचिका में भटकते हुए गंवा दिए, निरर्थक बातों के पीछे अपने को छलती रही. काश, उसे पहले एहसास हो जाता तो…

‘‘लीजिए मैडम, आप का जूस,’’ सुदेश की आवाज ने उसे सोच के दायरे से बाहर ला पटका.

‘‘क्यों बेकार आप इतनी मेहनत करते हैं, जूस की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने संकोच से कहा.

‘‘देखिए जनाब, आप की सेहत के लिए यह बहुत जरूरी है. आप तो बस आराम से आदेश देती रहिए, यह बंदा आप को तरहतरह के पकवान बना कर खिलाता रहेगा. फिर कौन सी बहुत मेहनत करनी पड़ती है, यहां तो सबकुछ डब्बाबंद तैयार मिलता है, विदेश का कम से कम यह लाभ तो है ही,’’ सुदेश ने गिलास थमाते हुए कहा.

ये भी पढ़ें-19 दिन 19 कहानियां : खुली छत

‘‘लेकिन आप काम करें, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘शेफाली, थोड़े दिनों की बात है. जहां पेट के टांके कटे, वहीं तुम थोड़ाबहुत चलने लगोगी. अभी तो डाक्टर ने तुम्हें पूरी तरह आराम करने को कहा है. अच्छा, देखो, मैं बाजार से सामान ले कर आता हूं, तब तक तुम थोड़ा सो लो. फिर सोचने मत लग जाना. मैं देख रहा हूं, जब से तुम्हारा औपरेशन हुआ है, तुम हमेशा सोच में डूबी रहने लगी हो. सब ठीक से तो हो गया है, फिर काहे की चिंता. खैर, अब आराम करो.’’

सुदेश ने ठीक ही कहा था. जब से उस के पेट के ट्यूमर का औपरेशन हुआ था तब से वह सोचने लगी थी. असल में तो वह इन 2 वर्षों में सुदेश के प्रति किए गए व्यवहार की ग्लानि थी जो उसे निरंतर मथती रहती थी.

सुदेश के साधारण रूपरंग और प्रभावहीन व्यक्तित्व के कारण शेफाली हमेशा उसे अपमानित करने की कोशिश करती. अपने अथाह रूप और आकर्षण के सामने वह सुदेश को हीन समझती. अपने मातापिता को भी माफ नहीं कर पाई थी. अकसर वह मां को चिट्ठी में लिखती कि उस ने उन्हें वर चुनने का अधिकार दे कर बहुत भारी भूल की थी. ऐसे कुरूप पति को पाने से तो अच्छा था वह स्वयं किसी को ढूंढ़ कर विवाह कर लेती. ऐसा लिखते वक्त उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि भारत में बैठे उस के मातापिता पर क्या बीत रही होगी.

शेफाली अपनी मां से तब कितना लड़ी थी, जब उसे पता चला था कि सुदेश ने कनाडा में ही बसने का निश्चय कर लिया है. सुदेश ने वहीं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और अच्छी नौकरी मिलने के कारण वह अब भारत नहीं आना चाहता था. शेफाली ने स्वयं एमबीबीएस पास कर लिया था और ‘इंटर्नशिप’ कर रही थी. वह चाहती थी कि भारत में ही रह कर अपना क्लीनिक खोले. नए देश में, नए परिवेश में जाने के नाम से ही वह परेशान हो गई थी. बेटी को नाखुश देख मातापिता को लगा कि इस से तो अच्छा है कि सगाई को तोड़ दिया जाए, पर उस ने उन्हें यह कह कर रोक दिया था कि इस से सामाजिक मानमर्यादा का हनन होगा और उस के भाईबहनों के विवाह में अड़चन आ सकती है. सुदेश से पत्रव्यवहार व फोन द्वारा उस की बातचीत होती रहती थी, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि ऐसी हालत में रिश्ता तोड़ कर उस का दिल दुखाया जाए. इसी कशमकश में वह विवाह कर के कनाडा आ गई थी.

ये भी पढ़ें-दो राहें 

अचानक टिं्रन…ट्रिंन…की आवाज से शेफाली का ध्यान भंग हुआ, फोन भारत से आया था. मां की आवाज सुन कर वह पुलकित हो उठी

‘‘कैसी हो बेटी, आराम कर रही हो न? देखो, ज्यादा चलनाफिरना नहीं.’’

उन की हिदायतें सुन वह मुसकरा उठी, ‘‘मैं ठीक हूं मां, सारा दिन आराम करती हूं. घर का सारा काम सुदेश ने संभाला हुआ है.’’

‘‘सुदेश ठीक है न बेटी, उस की इज्जत करना, वह अच्छा लड़का है, बूढ़ी आंखें धोखा नहीं खातीं, रूपरंग से क्या होता है,’’ मां ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.

‘‘मां, तुम फिक्र मत करो. देर से ही सही, लेकिन मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है,’’ तभी फोन कट गया.

दूर बैठी मां भी शायद जान गई थीं कि वह सुदेश को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती. फिर से एक बार शेफाली के मानसपटल पर बीते दिन घूमने लगे.

मौंट्रीयल के इस खूबसूरत फ्लैट में जब उस ने कदम रखा था तो ढेर सारे फूलों और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उस का स्वागत किया गया था. उन के आने की खुशी में सुदेश के मित्रों ने पूरे फ्लैट को सजा रखा था. ऐसी आवभगत की उसे आशा नहीं थी, इसलिए खुशी हुई थी, लेकिन वह उसे दबा गई थी. आखिर किस काम की थी वह खुशी.

सुदेश एकएक कर अपने साथियों से उसे मिलवाता रहा. उस की खूबसूरती की प्रशंसा में लोगों ने पुल बांध दिए.

‘यार, तुम तो इतनी सुंदर परी को भारत से उड़ा लाए,’ सुदेश के मित्र की बात सुन उसे वह मुहावरा याद आ गया था, ‘हूर के साथ लंगूर’. सुदेश जब भी उस का हाथ पकड़ता, वह झटके से उसे खींच लेती. ऐसा नहीं था कि सुदेश उस के व्यवहार से अनभिज्ञ था, लेकिन उस ने सोचा था कि अपने प्यार से वह शेफाली का मन जीत लेगा.

विवाह के कुछ दिन बाद उस ने कहा था, ‘अभी छुट्टियां बाकी हैं. चलो, तुम्हें पूरे कनाडा की सैर करा दें.’

तब शेफाली ने यह कह कर इनकार कर दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. उस की हरसंभव यही कोशिश रहती कि वह सुदेश से दूरदूर रहे. अपने सौंदर्य के अभिमान में वह यह भूल गई थी कि वह उस का पति है. उस का प्यार, उस का अपनापन और छोटीछोटी बातों का खयाल रखना शेफाली को तब दिखता ही कहां था.

सुदेश के सहयोगियों ने क्लब में पार्टी रखी थी, पर उस ने साथ जाने से इनकार कर दिया था.

‘देखो शेफाली, यह पार्टी उन्होंने हमारे लिए रखी है.’

पति की इस बात पर वह आगबबूला हो उठी थी, ‘मुझ से पूछ कर रखी है क्या? मैं पूछती हूं, तुम्हें मेरे साथ चलते झिझक नहीं होती. कहां तुम कहां मैं?’

तब सुदेश अवाक् रह गया था.

दरवाजा खुलने से एक बार फिर उस की तंद्रा भंग हो गई, ‘‘अरे, इतना सामान लाने की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने सुदेश को पैकटों से लदे देख पूछा.

‘‘अरे जनाब, ज्यादा कहां है, बस, कुछ फल हैं और डब्बाबंद खाना. जब तक तुम ठीक नहीं हो जातीं, इन्हीं से काम चलाना है,’’ सुदेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, खाना यहीं लगाऊं या बालकनी में बैठना चाहोगी?’’

‘‘नहींनहीं, यहीं ठीक है और देखो, ज्यादा पचड़े में मत पड़ना, वैसे भी ज्यादा भूख नहीं है.’’

‘‘क्यों, भूख क्यों नहीं है? तुम्हें ताकत  चाहिए और इस के लिए खाना बहुत जरूरी है,’’ सुदेश ने अपने हाथों से उसे खाना खिलाते हुए कहा.

शेफाली की आंखें नम हो आईं. ऐसे व्यक्ति से, जिस के अंदर प्यार का सागर लबालब भरा हुआ है, वह आज तक घृणा करती आई, सिर्फ इसलिए कि वह कुरूप है. लेकिन बाहरी सौंदर्य के झूठे सच में वह उस के गुणों को नजरअंदाज करती रही. अंदर से उस का मन कितना निर्मल, कितना स्वच्छ है. वह कितनी मूर्ख थी, तभी तो वैवाहिक जीवन के 2 सुनहरे वर्ष यों ही गंवा दिए. उस का हर पल यही प्रयत्न रहता कि किसी तरह सुदेश को अपमानित करे इसलिए उस की हर बात काटती.

लेकिन अपनी बीमारी के बाद उस ने जाना कि सच्चा प्रेम क्या होता है. शेफाली की इतनी बेरुखी के बाद भी सुदेश कितनी लगन से उस की सेवा कर रहा था.

‘‘अरे भई, खाना ठंडा हो जाएगा. जब देखो तब सोचती ही रहती हो. आखिर बात क्या है, मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ शेफाली ने सफाई से आंखें पोंछते हुए कहा, ‘‘मुझे शर्मिंदा मत करो. अरे हां, मां का फोन आया था,’’ उस ने बात पलटते हुए कहा.

रसोई व्यवस्थित कर सुदेश बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर दफ्तर हो कर आता हूं, तब तक तुम सो भी लेना. चाय के समय तक आ जाऊंगा. अरे हां, दफ्तर के साथी तुम्हारा हालचाल पूछने आना चाहते हैं, अगर तुम कहो तो?’’ सुदेश ने झिझकते हुए पूछा तो शेफाली ने मुसकरा कर हामी भर दी.

शेफाली जानती थी सुदेश ने क्यों पूछा था. वह उस के साथ न तो कहीं जाती थी, न ही उस के मित्रों का आना उसे पसंद था, क्योंकि तब उसे सुदेश के साथ बैठना पड़ता था, हंसना पड़ता था और वह यह चाहती नहीं थी. कितनी बार वह सुदेश को जता चुकी थी कि उस की पसंदनापसंद की उसे परवा नहीं है, खासकर उन दोस्तों की, जो हमेशा उस के सामने सुदेश की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं, ‘भाभीजी, यह तो बहुत ही हंसमुख और जिंदादिल इंसान है. अपने काम और व्यवहार के कारण सब काप्यारा है, अपना यार.’

शेफाली उस की बदसूरती के सामने जब इन बातों को तोलती तो हमेशा उसे सुदेश का पलड़ा हलका लगता. सुदेश जब भी उसे छूता, उसे लगता, कोई कीड़ा उस के शरीर पर रेंग रहा है और वह दूसरे कमरे में जा कर सो जाती.दरवाजे की घंटी बजी तो वह चौंक उठी. सच ही था, वह ज्यादा ही सोचने लगी थी. सोचा, शायद पोस्टमैन होगा. वह आहिस्ता से उठी और पत्र निकाल लाई. मां ने खत में वही सब बातें लिखी थीं और सुदेश का सम्मान करने की हिदायत दी थी. उस का मन हुआ कि वह अभी मां को जवाब दे दे, पर पेन और कागज दूसरे कमरे में रखे थे और वह थोड़ा चल कर थक गई थी. लेटने ही लगी थी कि सुदेश आ गया.

‘‘सुनो, जरा पेन और पैड दोगे, मां को चिट्ठी लिखनी है,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘बाद में, अभी लेटो, तुम्हें उठने की जरूरत ही क्या थी,’’ सुदेश ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘दवा भी नहीं ली. ठहरो, मैं पानी ले कर आता हूं.’’

‘‘सुनो,’’ शेफाली ने उस की बांह पकड़ ली. सुदेश ने कुछ हैरानी से देखा. शेफाली को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपने किए की माफी मांगे.

व्यक्ति की पहचान उस के गुणों से होती है, उस के व्यवहार से होती है, वही उस के व्यक्तित्व की छाप बनती है. सुदेश की सच्ची परख तो उसे अब हुई थी. आज तक तो वह अपनी खूबसूरती के दंभ में एक ऐसे राजकुमार की तलाश में कल्पनालोक में विचर रही थी जो किस्सेकहानियों में ही होते हैं, पर यथार्थ तो इस से बहुत परे होता है. जहां मनुष्य के गुणों को समाज की नजरें आंकती हैं, उस की आंतरिक सुंदरता ज्यादा माने रखती है. अगर खूबसूरती ही मापदंड होता तो समाज के मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लग जाता.

‘‘शेफाली, तुम कुछ कहना चाहती थीं?’’ सुदेश ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘हां…बस, कुछ खास नहीं,’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘मैं जानता हूं, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं. अगर तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर जा सकती हो,’’ सुदेश के स्वर में दर्द था.

‘‘बसबस, और कुछ न कहो, मैं पहले ही बहुत शर्मिंदा हूं. हो सके तो मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारा बहुत अपमान किया है. फिर भी तुम ने कभी मुझ से कटुता से बात नहीं की. मेरी हर कड़वाहट को सहते रहे और अब भी मेरी इतनी सेवा कर रहे हो, शर्म आती है मुझे अपनेआप पर,’’ शेफाली उस से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो, कौन नहीं जानता कि तुम्हारी खूबसूरती के सामने मैं कितना कुरूप लगता हूं.’’

‘‘खबरदार, जो तुम ने अपनेआप को कुरूप कहा. तुम्हारे जैसा सुंदर मैं ने जिंदगी में नहीं देखा. मेरी आंखों को तुम्हारी सच्ची परख हो गई है.’’

दोनों अपनी दुनिया में खोए थे कि तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई और घंटी भी बजी.

‘‘सुदेश, दरवाजा खोलो,’’ बाहर से शोर सुनाई दिया.

‘‘लगता है, मित्रमंडली आ गई है,’’ सुदेश बोला.

दरवाजा खुलते ही फूलों की महक से सारा कमरा भर गया. सुदेश के मित्र शेफाली को फूलों का एकएक गुच्छा थमाने लगे.

‘‘भाभीजी, आप के ठीक होने के बाद हम एक शानदार पार्टी लेंगे. क्यों, देंगी न?’’ एक मित्र ने पूछा.

‘‘जरूर,’’ शेफाली ने हंसते हुए कहा. उसे लग रहा था कि इन फूलों की तरह उस का जीवन भी महक से भर गया है. हर तरफ खुशबू बिखर गई है. गुच्छों के बीच से उस ने देखा, सुदेश के चेहरे पर एक अनोखी मुसकराहट छाई हुई है. शेफाली ने जब सारी शर्महया छोड़ आगे बढ़ कर उस का चेहरा चूमा तो ‘हे…हे’ का शोर मच गया और सुदेश ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया.

The post सच्ची परख appeared first on Sarita Magazine.

April 30, 2020 at 10:00AM