Sunday 31 May 2020

Short story: जीत- रमेश अपने मां-बाप के सपने को पूरा करना चाहता था

रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था. 25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं. रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा. रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है. रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

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एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी. रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी. निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा. शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

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तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’ पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए. शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया. शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए. सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था. बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके. थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की. थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

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‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

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‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे. मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा. थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था. अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा. अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी. थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी. अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछवे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’ आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए. इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था.

थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’ करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे. शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी. रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’ यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं. ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे. अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की. रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया. रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’ अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

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रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था. 25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं. रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा. रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है. रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

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एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी. रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी. निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा. शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

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तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’ पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए. शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया. शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए. सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था. बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके. थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की. थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

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‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

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‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे. मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा. थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था. अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा. अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी. थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी. अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछवे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’ आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए. इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था.

थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’ करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे. शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी. रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’ यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं. ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे. अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की. रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया. रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’ अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

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June 01, 2020 at 10:00AM

Short Story:बदलते मापदंड

‘सोनल यूनिवर्सिटी चली गई है. अब चल कर उस का कमरा साफ करूं,’ माधुरी झुंझलाई, ‘कितनी बार कहा लाड़ली से कि या तो काम करने वाली बाई से साफ करवा लिया कर या खुद साफ कर लिया कर. मगर उस पर तो इस का कुछ असर ही नहीं होता. काम करने वाली बाई के समय उसे बाधा होने लगती है और बाद में यूनिवर्सिटी जाने की जल्दी.’

सारे काम करने के बाद माधुरी को सोनल का कमरा साफ करना बहुत अखरता था. वह सोचती कि अब सोनल कोई बच्ची तो नहीं, 20 वर्षीया युवती है, एम.एससी. फाइनल की छात्रा. परसों उस की सगाई भी हो गई है. 2 महीने बाद जब उस की परीक्षा हो जाएगी तब विवाह भी हो जाएगा, पर अब भी हर प्रकार के उत्तरदायित्व से वह कतराती है. यदि माधुरी इस संबंध में उस के पिताजी से बात करती तो वे यही कहते, ‘क्या है जी, फुजूल की बातों में उस का वक्त मत बरबाद किया करो, वह विज्ञान की छात्रा है. घरगृहस्थी का काम तो जीवनभर करना है.’ कभीकभी वह सोचती कि शायद उस के पिताजी ठीक कहते हैं. हमारे समय में क्या होता था कि जहां जरा सी लड़की बड़ी हुई नहीं कि उस को घरगृहस्थी का काम सिखाना शुरू कर दिया जाता था और फिर जीवनपर्यंत वह घरगृहस्थी पीछा नहीं छोड़ती थी.

यही सब सोचते हुए माधुरी सोनल के कमरे में आ गई. चारों तरफ कमरे में अव्यवस्था फैली हुई थी. तकिया पलंग के बीचोबीच पड़ा था और उतारे हुए कपड़े भी पलंग पर बिखरे पड़े थे. पढ़ाई की मेज पर किताबें आड़ीतिरछी पड़ी थीं. माधुरी को फिर झुंझलाहट हुई कि 2 महीने बाद इस लड़की का विवाह हो जाएगा. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि यदि इस लड़की का यही हाल रहा तो यह गृहस्थी कैसे संभालेगी. सारा कमरा व्यवस्थित कर माधुरी पढ़ाई की मेज के पास आ गई, ‘यह किताबों के साथ मेज में बड़े रूमाल में क्या बंधा रखा है? पत्र मालूम पड़ते हैं. इतने पत्र, शायद अपनी सहेलियों के पत्र इकट्ठे कर रखे होंगे,’ माधुरी सोचने लगी. पत्र शायद संख्या में काफी थे. तभी तो रूमाल में बड़ी मुश्किल से बंध पाए थे. वह उन्हें उठा कर किनारे रखने लगी कि तभी कागज का एक टुकड़ा नीचे गिर गया. उस ने उस टुकड़े को उठा लिया. उस में लिखा था,  ‘प्रिय सोनल, तुम्हारे पत्र तुम्हें वापस कर रहा हूं. गिन लेना, पूरे 101 हैं. तुम्हारा सुमित.’

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कागज के उस टुकड़े को पढ़ कर माधुरी को चक्कर सा आने लगा. वह अपनी उत्सुकता को नहीं रोक पाई. उस ने रूमाल खोल दिया. गुलाबी लिफाफों में सारे प्रेमपत्र थे. वह जल्दीजल्दी उन को पढ़ने लगी. फिर सिर पकड़ कर वहीं पलंग पर बैठ गई. उस की आंखों के सामने एकदम अंधेरा सा छा गया. थोड़ी देर बाद वह सामान्य हुई तो सोचने लगी,  ‘यह क्या, यह लड़की इस मार्ग पर इतनी दूर निकल गई और उसे मां हो कर आभास तक नहीं मिला. वह तो सुमित को मात्र सोनल का एक सहपाठी समझती रही. शुरू से ही वह सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी है. लड़कों से उस की मित्रता भी हमेशा रही है. सुमित के साथ  कुछ ज्यादा ही घुलामिला देखा सोनल को, मगर वह इस बारे में तो सोच ही न सकी. अच्छा हुआ, इस समय घर में कोई नहीं है. उस के पास 2-3 घंटे का समय है, पूरी बात सोचसमझ कर कुछ निर्णय लेने का.’

उस ने उठ कर पहले तो पत्रों को यथावत रूमाल में बांधा, फिर कुरसी पर आ कर चुपचाप बैठ गई. और फिर सोचने लगी, ‘यह लड़की इस संबंध में एक बार भी कुछ न बोली. परसों उसे देखने उस के ससुराल के लोग आए थे तो वह एकदम सहज थी. उस से मैं ने और उस के पिताजी ने इस संबंध में उस की राय भी पूछी थी तब भी उस ने शालीनता से अपनी सहमति जताई थी. ‘मगर उस ने भी तो आज से 22 वर्ष पूर्व यही किया था. प्यार किसी और से करने पर भी उस ने सोनल के पिताजी से विवाह के लिए इनकार नहीं किया था. जब वह इंटर में थी तो पड़ोस में एक नए किराएदार आ कर रहने लगे थे. उन का सुदर्शन बेटा, भैया का दोस्त और एमए का छात्र था.

‘जाड़े की कुनकुनी धूप में वह अपनी पुस्तकें ले कर ऊपर छत पर आ जाती पढ़ने को, तभी देखती कि छत की दूसरी ओर वह भी अपनी पुस्तकें ले कर आ गया है. पढ़ते समय बीच में जब भी उस की नजर उस ओर उठती एकटक उस को अपनी ओर ही देखते पाती थी. संदीप नाम था उस का. उस की नजर में जो वह अपने लिए तड़प महसूस करती थी, वह उसे अंदर तक बेचैन कर देती थी. ‘कब वह भी धीरेधीरे उस की ओर आकृष्ट हो गई, वह समझ ही न सकी थी. हालांकि दोनों में से कोई एकदूसरे से एक शब्द भी नहीं बोलता था, पर उसे हर क्षण दोपहर की प्रतीक्षा रहती थी. ‘ऐसे में ही एक दिन उस को पता चला कि उस को देखने लड़के वाले आ रहे हैं. वह जैसे आसमान से नीचे गिरी मगर कुछ कह न सकी थी और वे लोग मंगनी की रस्म पूरी कर के चले गए थे. उस के बाद से वह ऊपर छत पर जाती, पर उसे वहां दूसरी छत पर कोई दिखाई नहीं देता था. बाद में संदीप की मां ने माधुरी की मां को बताया था कि आजकल चौबीसों घंटे संदीप पढ़ाई ही करता रहता है. कहता है कि परीक्षा सिर पर है और उसे  ‘टौप’ करना है. दाढ़ी वगैरह भी नहीं बनाता. सुन कर वह कमरे में जा कर खूब रोई थी.

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‘फिर विवाह के 2-3 दिन पूर्व उस ने उसे अचानक देखा था. भाई ने शायद उस से कोई संदेश कहलवाया था, भीतर मां के पास. देख कर वह तो पहचान ही न पाई थी. आंखें धंसी हुईं, बढ़ी  हुई दाढ़ी और उतरा चेहरा जैसे महीनों से बीमार हो. मां ने तो देखते ही कहा था, ‘अरे संदीप, यह क्या हाल बना रखा है तुम ने? अरे, पढ़ाई के साथसाथ स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया करो.’ ‘सभी बता रहे थे कि उस के विवाह में उस ने दिनरात की परवा किए बिना सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ रखी थी. फिर वह ससुराल चली आई थी. किसी चीज की कमी नहीं थी ससुराल में. पति का प्यार, रुपयापैसा सभीकुछ था मगर फिर भी कभीकभी उसे लगता कि उसे कुछ नहीं मिला. अकेले में वह अकसर रो पड़ती थी. संदीप से उस के बाद जब वह मायके जाती तो भी न मिल पाती थी. उस के पिता का स्थानांतरण हो गया था और वह होस्टल में रह कर पीएच.डी. कर रहा था. ‘बाद में सोनल और अंशुल ने आ कर उन स्मृतियों को थोड़ा धूमिल अवश्य कर दिया था. शादी के 10 वर्षों बाद अचानक, एक दिन ट्रेन में उस की मुलाकात हुई थी संदीप से. वह तो उसे देखते ही पहचान गई थी, पर संदीप को थोड़ा समय लगा था उसे पहचानने में. शायद विवाह और बच्चों ने उस में काफी परिवर्तन ला दिया था और तब पहली बार उन लोगों में बातें हुई थीं. भले ही वे औपचारिक थीं.

‘जब उस ने संदीप से विवाह और बच्चों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था, पति ने चुहल की थी कि कोई पसंद नहीं आई क्या? मगर संदीप ने बड़ी संजीदगी से उत्तर दिया था कि नहीं, एक पसंद तो आई थी मगर मेरे पसंद जाहिर करने से पहले ही उस ने दूसरे के साथ घर बसा लिया था. उस ने चौंक कर संदीप की आंखों में झांका था, जहां उसे अथाह वेदना लहराती नजर आई थी. वह फिर काफी दिनों तक बेचैन रही थी और अपने को अपराधिन अनुभव करती रही थी. ‘मगर उस का समय तो दूसरा था. प्रेम की बात को जबान पर लाने के लिए बड़ा साहस चाहिए था परंतु सोनल तो खुली हुई थी, वह तो उसे बता सकती थी कि हो सकता है उस ने सोचा हो कि हम लोग अंतर्जातीय विवाह नहीं करेंगे क्योंकि सुमित दूसरी जाति का था. मगर एक बार वह कह कर देखती. लगता है उस ने अपने मातापिता का दिल नहीं तोड़ना चाहा होगा.

‘चलो, अच्छा हुआ जो उसे पता चल गया. अब वह किसी तरह सुमित से उस का विवाह करवा ही देगी. अपने जीवन की त्रासदी उस के जीवन में नहीं घटित होने देगी.’ तभी घंटी बजी. लगता है सोनल यूनिवर्सिटी से वापस आ गई है. इसी मानसिक ऊहापोह में माधुरी को समय का पता ही नहीं चला. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सोनल ही खड़ी थी. ‘‘क्या हुआ, मां?’’ मां का उड़ा हुआ चेहरा देख कर सोनल ने पूछा.

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‘‘कुछ नहीं, सिर में दर्द है.’’

सोनल कपड़े बदल कर खाने की मेज पर आ कर बैठ गई. माधुरी उस के लिए खाना निकालने लगी तो सोनल बोली, ‘‘मां, तुम्हारे सिर में दर्द है. तुम आराम करो. मैं खुद निकाल कर खा लूंगी.’’ मगर माधुरी वहीं पास पड़ी दूसरी कुरसी पर बैठ गई. वह सोनल से सुमित के बारे में पूछना चाहती थी मगर समझ नहीं रही थी कि बात कहां से शुरू करे. सोनल न जाने क्याक्या अपनी यूनिवर्सिटी की बातें बता रही थी, लेकिन उस को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. सोनल भांप गई कि मां का ध्यान कहीं और है, बोली,  ‘‘क्या है, मां, क्या सोच रही हो, मेरी बातें नहीं सुन रही हो?’’

सोनल द्वारा अचानक पूछे गए सवाल पर माधुरी पहले तो हड़बड़ाई, फिर बोली, ‘‘सोनल, तू अपने विवाह से खुश तो है न?’’ सोनल एकदम भावुक हो गई, ‘‘खुश क्यों होऊंगी मां? क्या किसी लड़की को भला अपने मातापिता को छोड़ने की खुशी होती है?’’ कह कर सोनल रोने लगी. माधुरी की आंखों में भी आंसू आ गए. वह मन ही मन सोचने लगी कि कितनी खूबसूरती से यह लड़की अपनी वेदना प्रकट कर गई. वह स्वयं भी बहुत रोया करती थी. लोग सोचते कि उस को परिवार वालों को छोड़ने का दुख है. कोई भी उस के हृदय के हाहाकार को समझ नहीं पाया था. मगर यह बेवकूफ लड़की यह नहीं जानती कि उस की मां उस के रुदन के पीछे छिपे हाहाकार को बड़ी तीव्रता से महसूस कर रही है. थोड़ी देर बाद सोनल को स्टोररूम से कोयले की अंगीठी लाते हुए देख कर उस ने पूछा, ‘‘सोनल, अंगीठी का क्या करेगी?’’

‘‘मां, कुछ रद्दी कागज जलाने हैं,’’  सोनल का संक्षिप्त सा उत्तर आया.

‘फिर झूठ बोली यह लड़की. अपने हृदय के उद्गारों को रद्दी कागज का टुकड़ा बता रही है,’ वह सोचने लगी. लेकिन वह पूछे भी तो कैसे पूछे, कैसे कहे कि उस ने उस के प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं. सोनल पत्रों को जला चुकने के बाद उस के पास वहीं रसोई में आ गई,  ‘‘मां, क्या बनाया है नाश्ते में आज? वाह, मेरी पसंद के ढोकले बनाए हैं.’’ वह नजर उठा कर सोनल के चेहरे की ओर देखने लगी. उस के चेहरे पर कहीं उदासी के चिह्न भी नहीं थे. कितनी आसानी से यह लड़की चेहरे  के भाव बदल लेती है. नाटक करने में तो शुरू से ही निपुण रही है यह. कई इनाम भी जीत चुकी है स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी में अपनी सशक्त अभिनय प्रतिभा से. वह सोनल के चेहरे को और ध्यान से देखने लगी कि शायद कहीं उदासी की लिखावट पोंछ न पाई हो और उसी के सहारे वह उस के मन की भाषा पढ़ सके. माधुरी के इस प्रकार देखने से सोनल कुछ असहज हो गई, ‘‘क्या बात है, मां? मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?’’

‘‘तुझे अपना दूल्हा तो पसंद है न? कहीं कोई और लड़का पसंद हो तो बता दे, अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है. मैं सब संभाल लूंगी,’’ माधुरी उस के प्रश्न के उत्तर में फिर उस से प्रश्न कर बैठी.

‘‘नहीं मां, मुझे और कोई लड़का पसंद नहीं है. और फिर मेरा दूल्हा तो जब आप लोगों को पसंद है तो फिर मुझे पसंद न आने का प्रश्न ही कहां? मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?’’ सोनल ने माधुरी के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान हो कर पूछा.

माधुरी को एकाएक कोई उत्तर नहीं सूझा तो झट से कहा, ‘‘कुछ नहीं बेटी, यों ही पूछ लिया. तुम सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी हो न, इसलिए.’’ यह लड़की ऐसे सचसच नहीं बताएगी. फिर क्या करे वह, माधुरी कुछ समय नहीं पा रही थी. ‘आज रात को मैं इस के पिताजी से बात कर के देखती हूं कि वे क्या कहते हैं,’ माधुरी ने मन में सोचा. रात में सोनल के पिताजी से माधुरी ने कहा, ‘‘सुनो, हम लोगों ने सोनल की शादी तय तो कर दी है, कहीं उसे कोई और लड़का पसंद हुआ तो…हम लोगों ने इस ओर तो ध्यान ही नहीं दिया?’’

‘‘क्यों, कुछ कहा क्या सोनल ने?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘नहीं,’’ माधुरी बोली.

‘‘फिर तुम्हारे दिमाग में यह सब आया कैसे?’’ सोनल के पिताजी ने फिर प्रश्न किया.

माधुरी ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, यों ही दिमाग में आ गया. वह लड़कों से कुछ अधिक खुली हुई है न.’’

‘‘तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि वह किसी से प्रेम करती होगी. फुजूल की बातें सोच कर मेरा और अपना दिमाग खराब कर रही हो,’’ सोनल के पिता ने उसे हलकी सी झिड़की देते हुए कहा.

‘अब वह क्या करे? लगता है सोनल से इस संबंध में घुमाफिरा कर नहीं, साफसाफ बात करनी पड़ेगी. कल शाम को जब वह यूनिवर्सिटी से आएगी, तभी वह खुल कर इस संबंध में उस से बात करेगी,’ माधुरी ने मन ही मन निर्णय किया. फिर सारी रात और शाम तक का समय माधुरी ने इसी ऊहापोह में बिताया कि जब सोनल को यह पता चलेगा कि उस ने उस के सारे प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं तो वह क्या सोचेगी. फिर शाम को माधुरी ने सोनल को खाने की मेज पर घेर लिया और पूछा, ‘‘सोनल, तुम सुमित से प्रेम करती थीं, फिर तुम ने एक बार भी शादी के लिए इनकार क्यों नहीं किया? आज ही मैं तुम्हारे पिताजी से इस संबंध में बात करूंगी. हम लोग उन मातापिताओं में से नहीं हैं जो अपनी इच्छा के आगे बच्चों की खुशियों का गला घोंट देते हैं. मैं तुम्हारी शादी सुमित से करवा कर रहूंगी.’’ सोनल विस्फारित नेत्रों से माधुरी की ओर देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘मां, तुम से किस ने कहां कि मैं सुमित से प्यार करती हूं. वह मेरा अच्छा मित्र अवश्य है, पर क्या मित्रता की परिणति शादी में ही होती है?’’

‘‘तुझे शादी नहीं करनी थी तो प्रेमपत्र क्यों लिखे थे उस को?’’ सोनल के उत्तर से माधुरी झुंझला पड़ी.

‘‘अरे मां, वह तो हम लोगों का एक शगल था. आप के हाथ वह पत्र लग गया क्या? तभी मैं कहूं कि कल से मेरी मां उदास क्यों हैं?’’ फिर वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं, मुझे नहीं करनी है शादी सुमित से. न नौकरी न चाकरी. अब आप निश्ंिचत हो जाइए.’’ माधुरी को उस की हंसी शीशे की तरह चुभी. वह सोचने लगी है कि क्या यह उसी की लड़की है, जिस के लिए भावना का कोई मूल्य नहीं. प्रेम में भी अपनी व्यावहारिक बुद्धि लगाती है. इस बेवकूफ लड़की को यह नहीं मालूम कि प्यार वह चीज है जो दुनिया की हर दौलत से बढ़ कर होती है. मगर वह क्या समझेगी जिस ने प्यार को मनोरंजन समझा हो. बेचारा सुमित कैसे इस लड़की के प्रेमजाल में फंस गया. उस ने इस के साथ न जाने कितने सपने संजोए होंगे. उसे क्या मालूम कि यह उस के प्यार और त्याग की जरा भी कद्र नहीं करती. तभी घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सुमित को खड़ा पाया. कैसा थकाहारा सा लग रहा है. उसे लगा जैसे उस का अंशुल ही प्यार में शिकस्त खा कर खड़ा हो.

‘‘आंटी, सोनल है क्या घर में?’’ सुमित ने पूछा. माधुरी के उत्तर के पहले ही सोनल आ गई, ‘‘अरे, सुमित तुम, आओ बैठो,’’ कहते हुए वह उसे ड्राइंगरूम में ले गई. माधुरी चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. थोड़ी देर बाद वह चाय ले कर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी दरवाजे से आते हुए शब्दों ने उसे वहीं ठिठक कर खड़े रहने को विवश कर दिया. सोनल की आवाज थी, ‘‘सुमित, तुम्हारे लिए एक दुखद समाचार है, जानते हो, मां ने मेरे सभी पत्र पढ़ लिए हैं.’’ सुमित का अचकचाहटभरा स्वर उभरा, ‘‘फिर, आंटी तुम पर खूब नाराज हुई होंगी. बड़ी लापरवाह हो. लापरवाही से पत्र रख दिए होंगे.’’

‘‘नहीं, नाराज होतीं तो तुम्हारे लिए दुखद समाचार क्यों होता. वे आधुनिक मां हैं न, तुम्हारे गले में मुझ से जयमाला डलवा रही थीं. बड़ी मुश्किल से उन को समझा पाई हूं कि हम लोग आपस में शादी नहीं करेंगे,’’ यह सोनल का स्वर था.

‘‘यह तो वास्तव में हमारे लिए दुखद समाचार था. कौन करता तुम जैसी बेवकूफ लड़की से शादी?’’ सुमित का स्वर था.

‘‘अच्छा, तो मैं बेवकूफ हूं,’’ सोनल बोली.

‘‘खैर, छोड़ो, हम लोग इस बंधन में बंधने से बच गए, इसलिए इस खुशी को चल कर किसी कौफी हाउस में मनाते हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आओ,’’ यह सुमित का स्वर था. नई पीढ़ी के प्यार की परिभाषा सुन कर माधुरी को एकदम चक्कर सा आ गया और उस के हाथ से ट्रे छूट कर जमीन पर गिर गई. वह वहीं जमीन पर बैठ गई. उस के चारों तरफ फैली चाय, कप और केतली के टुकड़े उसे उस की मूर्खता का उपहासउड़ाते प्रतीत हो रहे थे.

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‘सोनल यूनिवर्सिटी चली गई है. अब चल कर उस का कमरा साफ करूं,’ माधुरी झुंझलाई, ‘कितनी बार कहा लाड़ली से कि या तो काम करने वाली बाई से साफ करवा लिया कर या खुद साफ कर लिया कर. मगर उस पर तो इस का कुछ असर ही नहीं होता. काम करने वाली बाई के समय उसे बाधा होने लगती है और बाद में यूनिवर्सिटी जाने की जल्दी.’

सारे काम करने के बाद माधुरी को सोनल का कमरा साफ करना बहुत अखरता था. वह सोचती कि अब सोनल कोई बच्ची तो नहीं, 20 वर्षीया युवती है, एम.एससी. फाइनल की छात्रा. परसों उस की सगाई भी हो गई है. 2 महीने बाद जब उस की परीक्षा हो जाएगी तब विवाह भी हो जाएगा, पर अब भी हर प्रकार के उत्तरदायित्व से वह कतराती है. यदि माधुरी इस संबंध में उस के पिताजी से बात करती तो वे यही कहते, ‘क्या है जी, फुजूल की बातों में उस का वक्त मत बरबाद किया करो, वह विज्ञान की छात्रा है. घरगृहस्थी का काम तो जीवनभर करना है.’ कभीकभी वह सोचती कि शायद उस के पिताजी ठीक कहते हैं. हमारे समय में क्या होता था कि जहां जरा सी लड़की बड़ी हुई नहीं कि उस को घरगृहस्थी का काम सिखाना शुरू कर दिया जाता था और फिर जीवनपर्यंत वह घरगृहस्थी पीछा नहीं छोड़ती थी.

यही सब सोचते हुए माधुरी सोनल के कमरे में आ गई. चारों तरफ कमरे में अव्यवस्था फैली हुई थी. तकिया पलंग के बीचोबीच पड़ा था और उतारे हुए कपड़े भी पलंग पर बिखरे पड़े थे. पढ़ाई की मेज पर किताबें आड़ीतिरछी पड़ी थीं. माधुरी को फिर झुंझलाहट हुई कि 2 महीने बाद इस लड़की का विवाह हो जाएगा. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि यदि इस लड़की का यही हाल रहा तो यह गृहस्थी कैसे संभालेगी. सारा कमरा व्यवस्थित कर माधुरी पढ़ाई की मेज के पास आ गई, ‘यह किताबों के साथ मेज में बड़े रूमाल में क्या बंधा रखा है? पत्र मालूम पड़ते हैं. इतने पत्र, शायद अपनी सहेलियों के पत्र इकट्ठे कर रखे होंगे,’ माधुरी सोचने लगी. पत्र शायद संख्या में काफी थे. तभी तो रूमाल में बड़ी मुश्किल से बंध पाए थे. वह उन्हें उठा कर किनारे रखने लगी कि तभी कागज का एक टुकड़ा नीचे गिर गया. उस ने उस टुकड़े को उठा लिया. उस में लिखा था,  ‘प्रिय सोनल, तुम्हारे पत्र तुम्हें वापस कर रहा हूं. गिन लेना, पूरे 101 हैं. तुम्हारा सुमित.’

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कागज के उस टुकड़े को पढ़ कर माधुरी को चक्कर सा आने लगा. वह अपनी उत्सुकता को नहीं रोक पाई. उस ने रूमाल खोल दिया. गुलाबी लिफाफों में सारे प्रेमपत्र थे. वह जल्दीजल्दी उन को पढ़ने लगी. फिर सिर पकड़ कर वहीं पलंग पर बैठ गई. उस की आंखों के सामने एकदम अंधेरा सा छा गया. थोड़ी देर बाद वह सामान्य हुई तो सोचने लगी,  ‘यह क्या, यह लड़की इस मार्ग पर इतनी दूर निकल गई और उसे मां हो कर आभास तक नहीं मिला. वह तो सुमित को मात्र सोनल का एक सहपाठी समझती रही. शुरू से ही वह सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी है. लड़कों से उस की मित्रता भी हमेशा रही है. सुमित के साथ  कुछ ज्यादा ही घुलामिला देखा सोनल को, मगर वह इस बारे में तो सोच ही न सकी. अच्छा हुआ, इस समय घर में कोई नहीं है. उस के पास 2-3 घंटे का समय है, पूरी बात सोचसमझ कर कुछ निर्णय लेने का.’

उस ने उठ कर पहले तो पत्रों को यथावत रूमाल में बांधा, फिर कुरसी पर आ कर चुपचाप बैठ गई. और फिर सोचने लगी, ‘यह लड़की इस संबंध में एक बार भी कुछ न बोली. परसों उसे देखने उस के ससुराल के लोग आए थे तो वह एकदम सहज थी. उस से मैं ने और उस के पिताजी ने इस संबंध में उस की राय भी पूछी थी तब भी उस ने शालीनता से अपनी सहमति जताई थी. ‘मगर उस ने भी तो आज से 22 वर्ष पूर्व यही किया था. प्यार किसी और से करने पर भी उस ने सोनल के पिताजी से विवाह के लिए इनकार नहीं किया था. जब वह इंटर में थी तो पड़ोस में एक नए किराएदार आ कर रहने लगे थे. उन का सुदर्शन बेटा, भैया का दोस्त और एमए का छात्र था.

‘जाड़े की कुनकुनी धूप में वह अपनी पुस्तकें ले कर ऊपर छत पर आ जाती पढ़ने को, तभी देखती कि छत की दूसरी ओर वह भी अपनी पुस्तकें ले कर आ गया है. पढ़ते समय बीच में जब भी उस की नजर उस ओर उठती एकटक उस को अपनी ओर ही देखते पाती थी. संदीप नाम था उस का. उस की नजर में जो वह अपने लिए तड़प महसूस करती थी, वह उसे अंदर तक बेचैन कर देती थी. ‘कब वह भी धीरेधीरे उस की ओर आकृष्ट हो गई, वह समझ ही न सकी थी. हालांकि दोनों में से कोई एकदूसरे से एक शब्द भी नहीं बोलता था, पर उसे हर क्षण दोपहर की प्रतीक्षा रहती थी. ‘ऐसे में ही एक दिन उस को पता चला कि उस को देखने लड़के वाले आ रहे हैं. वह जैसे आसमान से नीचे गिरी मगर कुछ कह न सकी थी और वे लोग मंगनी की रस्म पूरी कर के चले गए थे. उस के बाद से वह ऊपर छत पर जाती, पर उसे वहां दूसरी छत पर कोई दिखाई नहीं देता था. बाद में संदीप की मां ने माधुरी की मां को बताया था कि आजकल चौबीसों घंटे संदीप पढ़ाई ही करता रहता है. कहता है कि परीक्षा सिर पर है और उसे  ‘टौप’ करना है. दाढ़ी वगैरह भी नहीं बनाता. सुन कर वह कमरे में जा कर खूब रोई थी.

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‘फिर विवाह के 2-3 दिन पूर्व उस ने उसे अचानक देखा था. भाई ने शायद उस से कोई संदेश कहलवाया था, भीतर मां के पास. देख कर वह तो पहचान ही न पाई थी. आंखें धंसी हुईं, बढ़ी  हुई दाढ़ी और उतरा चेहरा जैसे महीनों से बीमार हो. मां ने तो देखते ही कहा था, ‘अरे संदीप, यह क्या हाल बना रखा है तुम ने? अरे, पढ़ाई के साथसाथ स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया करो.’ ‘सभी बता रहे थे कि उस के विवाह में उस ने दिनरात की परवा किए बिना सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ रखी थी. फिर वह ससुराल चली आई थी. किसी चीज की कमी नहीं थी ससुराल में. पति का प्यार, रुपयापैसा सभीकुछ था मगर फिर भी कभीकभी उसे लगता कि उसे कुछ नहीं मिला. अकेले में वह अकसर रो पड़ती थी. संदीप से उस के बाद जब वह मायके जाती तो भी न मिल पाती थी. उस के पिता का स्थानांतरण हो गया था और वह होस्टल में रह कर पीएच.डी. कर रहा था. ‘बाद में सोनल और अंशुल ने आ कर उन स्मृतियों को थोड़ा धूमिल अवश्य कर दिया था. शादी के 10 वर्षों बाद अचानक, एक दिन ट्रेन में उस की मुलाकात हुई थी संदीप से. वह तो उसे देखते ही पहचान गई थी, पर संदीप को थोड़ा समय लगा था उसे पहचानने में. शायद विवाह और बच्चों ने उस में काफी परिवर्तन ला दिया था और तब पहली बार उन लोगों में बातें हुई थीं. भले ही वे औपचारिक थीं.

‘जब उस ने संदीप से विवाह और बच्चों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था, पति ने चुहल की थी कि कोई पसंद नहीं आई क्या? मगर संदीप ने बड़ी संजीदगी से उत्तर दिया था कि नहीं, एक पसंद तो आई थी मगर मेरे पसंद जाहिर करने से पहले ही उस ने दूसरे के साथ घर बसा लिया था. उस ने चौंक कर संदीप की आंखों में झांका था, जहां उसे अथाह वेदना लहराती नजर आई थी. वह फिर काफी दिनों तक बेचैन रही थी और अपने को अपराधिन अनुभव करती रही थी. ‘मगर उस का समय तो दूसरा था. प्रेम की बात को जबान पर लाने के लिए बड़ा साहस चाहिए था परंतु सोनल तो खुली हुई थी, वह तो उसे बता सकती थी कि हो सकता है उस ने सोचा हो कि हम लोग अंतर्जातीय विवाह नहीं करेंगे क्योंकि सुमित दूसरी जाति का था. मगर एक बार वह कह कर देखती. लगता है उस ने अपने मातापिता का दिल नहीं तोड़ना चाहा होगा.

‘चलो, अच्छा हुआ जो उसे पता चल गया. अब वह किसी तरह सुमित से उस का विवाह करवा ही देगी. अपने जीवन की त्रासदी उस के जीवन में नहीं घटित होने देगी.’ तभी घंटी बजी. लगता है सोनल यूनिवर्सिटी से वापस आ गई है. इसी मानसिक ऊहापोह में माधुरी को समय का पता ही नहीं चला. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सोनल ही खड़ी थी. ‘‘क्या हुआ, मां?’’ मां का उड़ा हुआ चेहरा देख कर सोनल ने पूछा.

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‘‘कुछ नहीं, सिर में दर्द है.’’

सोनल कपड़े बदल कर खाने की मेज पर आ कर बैठ गई. माधुरी उस के लिए खाना निकालने लगी तो सोनल बोली, ‘‘मां, तुम्हारे सिर में दर्द है. तुम आराम करो. मैं खुद निकाल कर खा लूंगी.’’ मगर माधुरी वहीं पास पड़ी दूसरी कुरसी पर बैठ गई. वह सोनल से सुमित के बारे में पूछना चाहती थी मगर समझ नहीं रही थी कि बात कहां से शुरू करे. सोनल न जाने क्याक्या अपनी यूनिवर्सिटी की बातें बता रही थी, लेकिन उस को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. सोनल भांप गई कि मां का ध्यान कहीं और है, बोली,  ‘‘क्या है, मां, क्या सोच रही हो, मेरी बातें नहीं सुन रही हो?’’

सोनल द्वारा अचानक पूछे गए सवाल पर माधुरी पहले तो हड़बड़ाई, फिर बोली, ‘‘सोनल, तू अपने विवाह से खुश तो है न?’’ सोनल एकदम भावुक हो गई, ‘‘खुश क्यों होऊंगी मां? क्या किसी लड़की को भला अपने मातापिता को छोड़ने की खुशी होती है?’’ कह कर सोनल रोने लगी. माधुरी की आंखों में भी आंसू आ गए. वह मन ही मन सोचने लगी कि कितनी खूबसूरती से यह लड़की अपनी वेदना प्रकट कर गई. वह स्वयं भी बहुत रोया करती थी. लोग सोचते कि उस को परिवार वालों को छोड़ने का दुख है. कोई भी उस के हृदय के हाहाकार को समझ नहीं पाया था. मगर यह बेवकूफ लड़की यह नहीं जानती कि उस की मां उस के रुदन के पीछे छिपे हाहाकार को बड़ी तीव्रता से महसूस कर रही है. थोड़ी देर बाद सोनल को स्टोररूम से कोयले की अंगीठी लाते हुए देख कर उस ने पूछा, ‘‘सोनल, अंगीठी का क्या करेगी?’’

‘‘मां, कुछ रद्दी कागज जलाने हैं,’’  सोनल का संक्षिप्त सा उत्तर आया.

‘फिर झूठ बोली यह लड़की. अपने हृदय के उद्गारों को रद्दी कागज का टुकड़ा बता रही है,’ वह सोचने लगी. लेकिन वह पूछे भी तो कैसे पूछे, कैसे कहे कि उस ने उस के प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं. सोनल पत्रों को जला चुकने के बाद उस के पास वहीं रसोई में आ गई,  ‘‘मां, क्या बनाया है नाश्ते में आज? वाह, मेरी पसंद के ढोकले बनाए हैं.’’ वह नजर उठा कर सोनल के चेहरे की ओर देखने लगी. उस के चेहरे पर कहीं उदासी के चिह्न भी नहीं थे. कितनी आसानी से यह लड़की चेहरे  के भाव बदल लेती है. नाटक करने में तो शुरू से ही निपुण रही है यह. कई इनाम भी जीत चुकी है स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी में अपनी सशक्त अभिनय प्रतिभा से. वह सोनल के चेहरे को और ध्यान से देखने लगी कि शायद कहीं उदासी की लिखावट पोंछ न पाई हो और उसी के सहारे वह उस के मन की भाषा पढ़ सके. माधुरी के इस प्रकार देखने से सोनल कुछ असहज हो गई, ‘‘क्या बात है, मां? मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?’’

‘‘तुझे अपना दूल्हा तो पसंद है न? कहीं कोई और लड़का पसंद हो तो बता दे, अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है. मैं सब संभाल लूंगी,’’ माधुरी उस के प्रश्न के उत्तर में फिर उस से प्रश्न कर बैठी.

‘‘नहीं मां, मुझे और कोई लड़का पसंद नहीं है. और फिर मेरा दूल्हा तो जब आप लोगों को पसंद है तो फिर मुझे पसंद न आने का प्रश्न ही कहां? मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?’’ सोनल ने माधुरी के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान हो कर पूछा.

माधुरी को एकाएक कोई उत्तर नहीं सूझा तो झट से कहा, ‘‘कुछ नहीं बेटी, यों ही पूछ लिया. तुम सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी हो न, इसलिए.’’ यह लड़की ऐसे सचसच नहीं बताएगी. फिर क्या करे वह, माधुरी कुछ समय नहीं पा रही थी. ‘आज रात को मैं इस के पिताजी से बात कर के देखती हूं कि वे क्या कहते हैं,’ माधुरी ने मन में सोचा. रात में सोनल के पिताजी से माधुरी ने कहा, ‘‘सुनो, हम लोगों ने सोनल की शादी तय तो कर दी है, कहीं उसे कोई और लड़का पसंद हुआ तो…हम लोगों ने इस ओर तो ध्यान ही नहीं दिया?’’

‘‘क्यों, कुछ कहा क्या सोनल ने?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘नहीं,’’ माधुरी बोली.

‘‘फिर तुम्हारे दिमाग में यह सब आया कैसे?’’ सोनल के पिताजी ने फिर प्रश्न किया.

माधुरी ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, यों ही दिमाग में आ गया. वह लड़कों से कुछ अधिक खुली हुई है न.’’

‘‘तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि वह किसी से प्रेम करती होगी. फुजूल की बातें सोच कर मेरा और अपना दिमाग खराब कर रही हो,’’ सोनल के पिता ने उसे हलकी सी झिड़की देते हुए कहा.

‘अब वह क्या करे? लगता है सोनल से इस संबंध में घुमाफिरा कर नहीं, साफसाफ बात करनी पड़ेगी. कल शाम को जब वह यूनिवर्सिटी से आएगी, तभी वह खुल कर इस संबंध में उस से बात करेगी,’ माधुरी ने मन ही मन निर्णय किया. फिर सारी रात और शाम तक का समय माधुरी ने इसी ऊहापोह में बिताया कि जब सोनल को यह पता चलेगा कि उस ने उस के सारे प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं तो वह क्या सोचेगी. फिर शाम को माधुरी ने सोनल को खाने की मेज पर घेर लिया और पूछा, ‘‘सोनल, तुम सुमित से प्रेम करती थीं, फिर तुम ने एक बार भी शादी के लिए इनकार क्यों नहीं किया? आज ही मैं तुम्हारे पिताजी से इस संबंध में बात करूंगी. हम लोग उन मातापिताओं में से नहीं हैं जो अपनी इच्छा के आगे बच्चों की खुशियों का गला घोंट देते हैं. मैं तुम्हारी शादी सुमित से करवा कर रहूंगी.’’ सोनल विस्फारित नेत्रों से माधुरी की ओर देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘मां, तुम से किस ने कहां कि मैं सुमित से प्यार करती हूं. वह मेरा अच्छा मित्र अवश्य है, पर क्या मित्रता की परिणति शादी में ही होती है?’’

‘‘तुझे शादी नहीं करनी थी तो प्रेमपत्र क्यों लिखे थे उस को?’’ सोनल के उत्तर से माधुरी झुंझला पड़ी.

‘‘अरे मां, वह तो हम लोगों का एक शगल था. आप के हाथ वह पत्र लग गया क्या? तभी मैं कहूं कि कल से मेरी मां उदास क्यों हैं?’’ फिर वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं, मुझे नहीं करनी है शादी सुमित से. न नौकरी न चाकरी. अब आप निश्ंिचत हो जाइए.’’ माधुरी को उस की हंसी शीशे की तरह चुभी. वह सोचने लगी है कि क्या यह उसी की लड़की है, जिस के लिए भावना का कोई मूल्य नहीं. प्रेम में भी अपनी व्यावहारिक बुद्धि लगाती है. इस बेवकूफ लड़की को यह नहीं मालूम कि प्यार वह चीज है जो दुनिया की हर दौलत से बढ़ कर होती है. मगर वह क्या समझेगी जिस ने प्यार को मनोरंजन समझा हो. बेचारा सुमित कैसे इस लड़की के प्रेमजाल में फंस गया. उस ने इस के साथ न जाने कितने सपने संजोए होंगे. उसे क्या मालूम कि यह उस के प्यार और त्याग की जरा भी कद्र नहीं करती. तभी घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सुमित को खड़ा पाया. कैसा थकाहारा सा लग रहा है. उसे लगा जैसे उस का अंशुल ही प्यार में शिकस्त खा कर खड़ा हो.

‘‘आंटी, सोनल है क्या घर में?’’ सुमित ने पूछा. माधुरी के उत्तर के पहले ही सोनल आ गई, ‘‘अरे, सुमित तुम, आओ बैठो,’’ कहते हुए वह उसे ड्राइंगरूम में ले गई. माधुरी चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. थोड़ी देर बाद वह चाय ले कर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी दरवाजे से आते हुए शब्दों ने उसे वहीं ठिठक कर खड़े रहने को विवश कर दिया. सोनल की आवाज थी, ‘‘सुमित, तुम्हारे लिए एक दुखद समाचार है, जानते हो, मां ने मेरे सभी पत्र पढ़ लिए हैं.’’ सुमित का अचकचाहटभरा स्वर उभरा, ‘‘फिर, आंटी तुम पर खूब नाराज हुई होंगी. बड़ी लापरवाह हो. लापरवाही से पत्र रख दिए होंगे.’’

‘‘नहीं, नाराज होतीं तो तुम्हारे लिए दुखद समाचार क्यों होता. वे आधुनिक मां हैं न, तुम्हारे गले में मुझ से जयमाला डलवा रही थीं. बड़ी मुश्किल से उन को समझा पाई हूं कि हम लोग आपस में शादी नहीं करेंगे,’’ यह सोनल का स्वर था.

‘‘यह तो वास्तव में हमारे लिए दुखद समाचार था. कौन करता तुम जैसी बेवकूफ लड़की से शादी?’’ सुमित का स्वर था.

‘‘अच्छा, तो मैं बेवकूफ हूं,’’ सोनल बोली.

‘‘खैर, छोड़ो, हम लोग इस बंधन में बंधने से बच गए, इसलिए इस खुशी को चल कर किसी कौफी हाउस में मनाते हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आओ,’’ यह सुमित का स्वर था. नई पीढ़ी के प्यार की परिभाषा सुन कर माधुरी को एकदम चक्कर सा आ गया और उस के हाथ से ट्रे छूट कर जमीन पर गिर गई. वह वहीं जमीन पर बैठ गई. उस के चारों तरफ फैली चाय, कप और केतली के टुकड़े उसे उस की मूर्खता का उपहासउड़ाते प्रतीत हो रहे थे.

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June 01, 2020 at 10:00AM

तनहाइयां-भाग 3: बस में बैठे लड़के से अंजू का क्या रिश्ता था ?

एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी पढ़ रही थी कि अचानक सीमा मेरे पास आई, ‘अंजू, तुझे पता है कि मजनू की शादी हो गई?’

‘क्या?’ मैं चौंक गई. थोड़ी देर बाद खुद को संयत कर के बोली थी, ‘क्या कोई और मजाक नहीं कर सकती थी?’

‘अंजू, यह मजाक नहीं है. मुकुल अपने दोस्त की शादी में गया था. मेरा भाई भी उस शादी में गया हुआ था. वहां फेरों के पहले लड़के ने लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि लड़की बेहद कुरूप थी.

‘मजनू ने दोनों में समझौता कराना चाहा तो लड़के ने क्रोध में कहा, मुझे जो लड़की दिखाई गई थी, वह यह नहीं है. इस कुरूप से कौन करेगा शादी. तू बहुत समझा रहा है तो तू ही इस से शादी कर ले.

‘दरअसल, कुछ दिन पहले लड़की का चेहरा खाना बनाते समय थोड़ा जल गया था,’ इतना कह कर वह थोड़ा रुकी.

इधर मेरी सांस रुकी जा रही थी. मैं सब कुछ जल्दी ही सुन लेना चाहती थी, ‘आगे बोल, क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं अंजू, फिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था. वहां पूरे पंडाल में उस लड़की से शादी करने के लिए कोई राजी न हुआ. मुकुल उस लड़के को समझा कर हार गया तो अंत में उस ने यह निर्णय ले लिया कि वह उस लड़की से शादी करेगा. पता नहीं क्यों, उसे ऐसा निर्णय लेते समय तेरा खयाल क्यों नहीं आया?’

इतना सुनना था कि मैं सीमा के कंधे पर सिर रख कर फफकफफक कर रोने लगी. मेरी सहेलियां और मुकुल के कुछ मित्र भी वहां आ पहुंचे थे. सब ने मुझे घेर लिया था. हमारे प्यार की दास्तान सब को पता थी, इसलिए सभी इस घटना से दुखी थे.

‘मजनू ने क्या उस कुरूप लड़की का उद्धार करने का ठेका ले रखा था,’ यह उत्तेजित स्वर अरुण का था.

‘अब जो हो गया सो हो गया. मजनू को कोसने से क्या होगा. अंजू को संभालो,’ सीमा बोली.

‘नहीं, मुझे तुम सब अकेला छोड़ दो,’ मैं ने रुंधे कंठ से कहा था. थोड़ी देर बाद ही मैं घर आ गई थी.

मैं बारबार यही सोच रही थी कि जो मुकुल मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता था वही अब हमेशा के लिए मुझ से जुदा हो गया है. आखिर उस ने यह क्यों नहीं सोचा कि उस के बिना मेरा क्या होगा. मैं मुकुल के अतिरिक्त किसी और व्यक्ति का खयाल भी अपने मन में नहीं ला सकती. अब तो मुझे अपने जीवन की तनहाइयों को ही स्वीकार कर के चलना होगा. मुकुल की बेवफाई से मुझे बहुत सदमा पहुंचा और मैं ने अकेले ही अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया. धोखे से भरी इस दुनिया में किसे अपना अवलंबन मानती, पता नहीं कौन किस मोड़ पर अपनी मंजिल बदल दे. इस घटना को लगभग 17-18 साल बीत गए थे. घाव भर चुका था पर निशान बाकी था और अब वह घाव फिर से ताजा हो गया था.

‘अच्छा हुआ, उस की पत्नी मर गई. अपने जुर्म का फल तो भुगतेगा,’ मैं बड़बड़ाई थी.

रात देर तक जागने के कारण सुबह सिर भारी था. सोचा कि कालेज से छुट्टी ले लूं, फिर नहीं ली. घर बैठ कर तो मानसिक सुकून और भी छिन जाता. कालेज में कम से कम व्यस्त तो रहूंगी. मेरे कल के व्यवहार से छात्राएं आज भी सहमी थीं मगर मैं शांत थी. तूफान आने के बाद की शांति छाई हुई थी, हालांकि मन का तूफान थमा नहीं था. शाम को किसी ने दरवाजा खटखटाया. मैं अनमने भाव से उठी और दरवाजा खोल दिया. सामने मुकुल को देख कर आश्चर्यचकित रह गई, ‘‘तुम…’’

‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगी?’’ उस ने बाहर खड़ेखड़े पूछा.

‘‘मेरे घर आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘सच, हिम्मत तो बहुत जुटाई है मैं ने, तभी आ पाया हूं,’’ यह कहते हुए वह स्वत: अंदर चला आया और सोफे पर साधिकार बैठ गया.

‘‘अंजू, कई वर्षों से मैं बहुत परेशान था. अपराधबोध से ग्रस्त था. तुम्हारे साथ मैं न्याय नहीं कर पाया था. इसीलिए वक्त ने मेरे साथ भी न्याय नहीं किया. परिस्थितिवश अचानक मेरी शादी कहीं और हो गई और…’’ वह चुप हो गया.

‘‘मुकुल, इतने अंतराल के बाद आज सफाई देने क्यों आए हो? मैं जानना चाहती हूं कि किस अधिकार से तुम मेरे घर चले आए?’’ मेरा स्वर तीखा था.

‘‘मैं तुम्हारी कड़वाहट की वजह जानता हूं इसलिए मैं बुरा नहीं मानूंगा,’’ मुकुल ने सोफे पर बैठेबैठे ही सिगरेट सुलगा ली थी. थोड़ी देर तक वातावरण में चुप्पी छाई रही. फिर वह बोला, ‘‘अंजू, बीती बातें भूल जाओ. संयोग से हम दोबारा मिले हैं. क्या हम अच्छे पड़ोसी बन कर नहीं रह सकते?’’ वह एकटक मुझे देख रहा था.

‘‘मेहरबानी कर के यहां से चले जाओ,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.

‘‘अच्छा, मैं फिर कभी आऊंगा. परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ यह कह कर उस ने मेरे कंधे थपथपाए और चला गया.

कंधों पर उस का स्पर्श किसी जलती हुई सलाखों के सदृश लगा था. आखिर किस अधिकार से वह सोफे पर पसर गया था? कैसे बेशर्म होते हैं लोग, जो बड़ी सहजता से विश्वासघात कर लेते हैं, और अपने किए को सहजता से स्वीकार भी करते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो. शायद उस के लिए कुछ नहीं हुआ था. बेसहारा, जीवन से संघर्ष करती हुई दर्द के मोड़ पर तो मैं खड़ी थी. वह तो आराम से अपना गृहस्थ जीवन जी रहा था. उसे तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ होगा कि अंजू नाम की कोई लड़की उस के कारण पूरे संसार में एकदम अकेली रह गई. मैं सोचने लगी कि अच्छा ही हुआ जो उस की पत्नी उसे छोड़ कर चल बसी. जीवन की कुछ कड़वाहटें उस के हिस्से में भी तो आई हैं. मेरा मन बहुत खिन्न हो उठा था. मैं ने 4 दिन की छुट्टियां ले ली थीं और इस बीच अपनेआप को संयत करने की असफल चेष्टा में लगी रही थी. लगभग 5-6 दिन बाद शाम को फिर मुकुल आ धमका. इस बार उस के साथ मोनू भी था.

‘‘मोनू, इन्हें नमस्ते करो,’’ मुकुल बोला था और साधिकार भीतर चला आया था.

‘‘कैसे आना हुआ?’’ मैं ने बेरुखी से पूछा.

‘‘आज तो साहबजादे के कारण आया हूं. तुम हो अंगरेजी की व्याख्याता और हमारा बेटा अंगरेजी में बहुत कमजोर है. तुम से अच्छा ट्यूटर मोनू को कोई दूसरा नहीं मिल सकता,’’ मुकुल अधिकार पर अधिकार जता रहा था और मुझे उस के इस व्यवहार से चिढ़ हो रही थी.

‘‘देखिए, मैं ट्यूशन नहीं करती,’’ मैं ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘लेकिन मोनू को तो पढ़ाना ही होगा. इस का भविष्य तुम्हारे हाथ में है.’’

‘मेरा भविष्य उजाड़ने वाले, आज अपने बेटे का भविष्य संवारने के लिए मेरे पास आए हो,’ मैं ने मन ही मन सोचा परंतु प्रत्यक्ष में कुछ न कहा.

‘‘बेटे मोनू, यह हमारी सहपाठी रह चुकी हैं. अब तुम रोज शाम को इन से पढ़ने आया करोगे.’’

‘‘लेकिन मैं…’’ मैं ने कुछ कहना चाहा.

‘‘इनकार मत करना,’’ मुकुल बीच में ही बोला. उस की आंखों में विनती थी और पता नहीं क्यों, फिर मैं एकदम शांत हो गई.

मोनू रोज पढ़ने के लिए आने लगा. कभी मैं उस को मुग्ध हो कर निहारती तो कभी उस पर अपनी खीज और झल्लाहट भी उतारती. जब मेरी डांट से उस की आंखें भर आतीं तो मुझे अजीब सा सुकून मिलता. कभीकभी मुझे लगता कि मैं मानसिक विकृति का शिकार हो रही हूं. सोचती, कालेज में छात्रों पर बरस पड़ना, घर में मोनू को डांटना, जबतब खीज से भर उठना, आखिर क्यों मैं अपना मानसिक संतुलन खोती जा रही हूं? मुकुल ने दोबारा मेरे जीवन में प्रवेश कर के मुझे बुरी तरह विचलित कर दिया था. लगभग 3-4 महीने यों ही बीत गए. एक दिन मुकुल ने फिर दरवाजा खटखटाया. जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, वह अंदर आते हुए बोला, ‘‘अंजू, आज तो चाय पी कर जाऊंगा.’’उस ने इस तरह अपनेपन से यह बात कही कि मैं पिघल गई. मैं चाय बना कर ले आई. उसे प्याला पकड़ाते समय मेरा ध्यान उस के हाथ की तरफ गया. उस का हाथ ब्लेड से कटा हुआ था, ऊपर खून की तह जमी थी.

‘ओह, तो जनाब फिर प्यार का इजहार करने आए हैं. फिर मजनू का भेष बना कर बैठे हैं,’ मैं ने मन ही मन सोचा और मुसकरा दी. मैं ने सोच लिया था कि मुकुल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा औरहाथ की नस भी काट लेगा तो भी मैं ‘हां’ नहीं करूंगी. उस की यही सजा है.

‘‘अंजू, तुम ने शादी के बारे में क्या सोचा?’’ अचानक उस ने पूछा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘क्या अपनी जिंदगी यों ही तनहा गुजार दोगी?’’

‘‘तुम्हें इस से क्या, मेरी जिंदगी है, मैं कैसे भी गुजारूं,’’ मैं चीख कर बोली थी.

‘‘यह हर बार तुम उत्तेजित क्यों हो जाती हो? तुम्हारे सामने अभी उम्र का लंबा सफर पड़ा है. आखिर कब तक अकेले ही अपने सुखदुख ढोती रहोगी?’’ वह चिंतित हो उठा.

‘‘मुकुल, मेरी चिंता तुम न करो. मुझे मेरे ही हाल पर छोड़ दो. मैं बहुत अच्छी तरह जी रही हूं.’’

‘‘अंजू, क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए पूछा.

उस की आंखों के भावों को देख कर एक बार मेरा मन डगमगा उठा था लेकिन मैं ने स्वयं को मजबूत बनाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

‘‘अंजू, मैं जानता हूं कि तुम ने मेरी खातिर तनहाइयां भोगी हैं. मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे लिए तड़प रही हो, उसी तरह जिस तरह मैं आज तुम्हारी तनहाइयां समेटने के लिए तड़प रहा हूं… उसी तरह, जैसे मोनू तुम्हें मां के रूप में पाने के लिए तड़प रहा है…’’

‘‘मोनू,’’ मैं ने मुकुल की तरफ अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि स्थिर कर दी.

‘‘हां अंजू, उस की डायरी से चिट्ठी मिली है,’’ मुकुल ने जेब से एक मुड़ातुड़ा कागज निकाल कर मेरी तरफ बढ़ा दिया. उस में लिखा था :

‘मौसी, मैं आप को बहुत चाहता हूं. क्या मैं आप को मां बोल सकता हूं?’

इस पंक्ति के बाद पूरे पृष्ठ पर ‘मां… मां…मां…’ लिखा हुआ था.

मैं ने मुकुल की तरफ देखा, उस की आंखें गीली थीं. वह भर्राए स्वर में बोला, ‘‘इस समय सिर्फ तुम ही नहीं, मैं और मोनू भी तनहाइयां झेल रहे हैं. लेकिन हम सब की तनहाइयां दूर हो सकती हैं… यदि तुम चाहो तो?’’

मुकुल का इतना कहना था कि मैं रोने लगी. अब मुझ में हिम्मत नहीं थी कि मैं अपनी तनहाइयों में और अधिक जी सकूं.

‘‘तो क्या सोचा है, अंजू?’’ वह बोला.

मैं ने आंसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठाया. मुकुल को एकटक देखा और कहा, ‘‘मैं तुम से नहीं बोलना चाहती क्योंकि तुम ने मेरे बेटे को मुझ से दूर रखा…’’

‘‘अच्छा बाबा, मुझ से मत बोलना, पर अपने बेटे से तो बोलना. चलो, मेरे घर चलो. मोनू तुम्हें देख कर बहुत खुश होगा.’’

मैं मुकुल के पीछेपीछे चल दी. एक सिहरन मेरे मन में समाती जा रही थी और मोनू को सीने से लगाने के लिए मैं बुरी तरह छटपटा रही थी.

 

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एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी पढ़ रही थी कि अचानक सीमा मेरे पास आई, ‘अंजू, तुझे पता है कि मजनू की शादी हो गई?’

‘क्या?’ मैं चौंक गई. थोड़ी देर बाद खुद को संयत कर के बोली थी, ‘क्या कोई और मजाक नहीं कर सकती थी?’

‘अंजू, यह मजाक नहीं है. मुकुल अपने दोस्त की शादी में गया था. मेरा भाई भी उस शादी में गया हुआ था. वहां फेरों के पहले लड़के ने लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि लड़की बेहद कुरूप थी.

‘मजनू ने दोनों में समझौता कराना चाहा तो लड़के ने क्रोध में कहा, मुझे जो लड़की दिखाई गई थी, वह यह नहीं है. इस कुरूप से कौन करेगा शादी. तू बहुत समझा रहा है तो तू ही इस से शादी कर ले.

‘दरअसल, कुछ दिन पहले लड़की का चेहरा खाना बनाते समय थोड़ा जल गया था,’ इतना कह कर वह थोड़ा रुकी.

इधर मेरी सांस रुकी जा रही थी. मैं सब कुछ जल्दी ही सुन लेना चाहती थी, ‘आगे बोल, क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं अंजू, फिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था. वहां पूरे पंडाल में उस लड़की से शादी करने के लिए कोई राजी न हुआ. मुकुल उस लड़के को समझा कर हार गया तो अंत में उस ने यह निर्णय ले लिया कि वह उस लड़की से शादी करेगा. पता नहीं क्यों, उसे ऐसा निर्णय लेते समय तेरा खयाल क्यों नहीं आया?’

इतना सुनना था कि मैं सीमा के कंधे पर सिर रख कर फफकफफक कर रोने लगी. मेरी सहेलियां और मुकुल के कुछ मित्र भी वहां आ पहुंचे थे. सब ने मुझे घेर लिया था. हमारे प्यार की दास्तान सब को पता थी, इसलिए सभी इस घटना से दुखी थे.

‘मजनू ने क्या उस कुरूप लड़की का उद्धार करने का ठेका ले रखा था,’ यह उत्तेजित स्वर अरुण का था.

‘अब जो हो गया सो हो गया. मजनू को कोसने से क्या होगा. अंजू को संभालो,’ सीमा बोली.

‘नहीं, मुझे तुम सब अकेला छोड़ दो,’ मैं ने रुंधे कंठ से कहा था. थोड़ी देर बाद ही मैं घर आ गई थी.

मैं बारबार यही सोच रही थी कि जो मुकुल मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता था वही अब हमेशा के लिए मुझ से जुदा हो गया है. आखिर उस ने यह क्यों नहीं सोचा कि उस के बिना मेरा क्या होगा. मैं मुकुल के अतिरिक्त किसी और व्यक्ति का खयाल भी अपने मन में नहीं ला सकती. अब तो मुझे अपने जीवन की तनहाइयों को ही स्वीकार कर के चलना होगा. मुकुल की बेवफाई से मुझे बहुत सदमा पहुंचा और मैं ने अकेले ही अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया. धोखे से भरी इस दुनिया में किसे अपना अवलंबन मानती, पता नहीं कौन किस मोड़ पर अपनी मंजिल बदल दे. इस घटना को लगभग 17-18 साल बीत गए थे. घाव भर चुका था पर निशान बाकी था और अब वह घाव फिर से ताजा हो गया था.

‘अच्छा हुआ, उस की पत्नी मर गई. अपने जुर्म का फल तो भुगतेगा,’ मैं बड़बड़ाई थी.

रात देर तक जागने के कारण सुबह सिर भारी था. सोचा कि कालेज से छुट्टी ले लूं, फिर नहीं ली. घर बैठ कर तो मानसिक सुकून और भी छिन जाता. कालेज में कम से कम व्यस्त तो रहूंगी. मेरे कल के व्यवहार से छात्राएं आज भी सहमी थीं मगर मैं शांत थी. तूफान आने के बाद की शांति छाई हुई थी, हालांकि मन का तूफान थमा नहीं था. शाम को किसी ने दरवाजा खटखटाया. मैं अनमने भाव से उठी और दरवाजा खोल दिया. सामने मुकुल को देख कर आश्चर्यचकित रह गई, ‘‘तुम…’’

‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगी?’’ उस ने बाहर खड़ेखड़े पूछा.

‘‘मेरे घर आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘सच, हिम्मत तो बहुत जुटाई है मैं ने, तभी आ पाया हूं,’’ यह कहते हुए वह स्वत: अंदर चला आया और सोफे पर साधिकार बैठ गया.

‘‘अंजू, कई वर्षों से मैं बहुत परेशान था. अपराधबोध से ग्रस्त था. तुम्हारे साथ मैं न्याय नहीं कर पाया था. इसीलिए वक्त ने मेरे साथ भी न्याय नहीं किया. परिस्थितिवश अचानक मेरी शादी कहीं और हो गई और…’’ वह चुप हो गया.

‘‘मुकुल, इतने अंतराल के बाद आज सफाई देने क्यों आए हो? मैं जानना चाहती हूं कि किस अधिकार से तुम मेरे घर चले आए?’’ मेरा स्वर तीखा था.

‘‘मैं तुम्हारी कड़वाहट की वजह जानता हूं इसलिए मैं बुरा नहीं मानूंगा,’’ मुकुल ने सोफे पर बैठेबैठे ही सिगरेट सुलगा ली थी. थोड़ी देर तक वातावरण में चुप्पी छाई रही. फिर वह बोला, ‘‘अंजू, बीती बातें भूल जाओ. संयोग से हम दोबारा मिले हैं. क्या हम अच्छे पड़ोसी बन कर नहीं रह सकते?’’ वह एकटक मुझे देख रहा था.

‘‘मेहरबानी कर के यहां से चले जाओ,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.

‘‘अच्छा, मैं फिर कभी आऊंगा. परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ यह कह कर उस ने मेरे कंधे थपथपाए और चला गया.

कंधों पर उस का स्पर्श किसी जलती हुई सलाखों के सदृश लगा था. आखिर किस अधिकार से वह सोफे पर पसर गया था? कैसे बेशर्म होते हैं लोग, जो बड़ी सहजता से विश्वासघात कर लेते हैं, और अपने किए को सहजता से स्वीकार भी करते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो. शायद उस के लिए कुछ नहीं हुआ था. बेसहारा, जीवन से संघर्ष करती हुई दर्द के मोड़ पर तो मैं खड़ी थी. वह तो आराम से अपना गृहस्थ जीवन जी रहा था. उसे तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ होगा कि अंजू नाम की कोई लड़की उस के कारण पूरे संसार में एकदम अकेली रह गई. मैं सोचने लगी कि अच्छा ही हुआ जो उस की पत्नी उसे छोड़ कर चल बसी. जीवन की कुछ कड़वाहटें उस के हिस्से में भी तो आई हैं. मेरा मन बहुत खिन्न हो उठा था. मैं ने 4 दिन की छुट्टियां ले ली थीं और इस बीच अपनेआप को संयत करने की असफल चेष्टा में लगी रही थी. लगभग 5-6 दिन बाद शाम को फिर मुकुल आ धमका. इस बार उस के साथ मोनू भी था.

‘‘मोनू, इन्हें नमस्ते करो,’’ मुकुल बोला था और साधिकार भीतर चला आया था.

‘‘कैसे आना हुआ?’’ मैं ने बेरुखी से पूछा.

‘‘आज तो साहबजादे के कारण आया हूं. तुम हो अंगरेजी की व्याख्याता और हमारा बेटा अंगरेजी में बहुत कमजोर है. तुम से अच्छा ट्यूटर मोनू को कोई दूसरा नहीं मिल सकता,’’ मुकुल अधिकार पर अधिकार जता रहा था और मुझे उस के इस व्यवहार से चिढ़ हो रही थी.

‘‘देखिए, मैं ट्यूशन नहीं करती,’’ मैं ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘लेकिन मोनू को तो पढ़ाना ही होगा. इस का भविष्य तुम्हारे हाथ में है.’’

‘मेरा भविष्य उजाड़ने वाले, आज अपने बेटे का भविष्य संवारने के लिए मेरे पास आए हो,’ मैं ने मन ही मन सोचा परंतु प्रत्यक्ष में कुछ न कहा.

‘‘बेटे मोनू, यह हमारी सहपाठी रह चुकी हैं. अब तुम रोज शाम को इन से पढ़ने आया करोगे.’’

‘‘लेकिन मैं…’’ मैं ने कुछ कहना चाहा.

‘‘इनकार मत करना,’’ मुकुल बीच में ही बोला. उस की आंखों में विनती थी और पता नहीं क्यों, फिर मैं एकदम शांत हो गई.

मोनू रोज पढ़ने के लिए आने लगा. कभी मैं उस को मुग्ध हो कर निहारती तो कभी उस पर अपनी खीज और झल्लाहट भी उतारती. जब मेरी डांट से उस की आंखें भर आतीं तो मुझे अजीब सा सुकून मिलता. कभीकभी मुझे लगता कि मैं मानसिक विकृति का शिकार हो रही हूं. सोचती, कालेज में छात्रों पर बरस पड़ना, घर में मोनू को डांटना, जबतब खीज से भर उठना, आखिर क्यों मैं अपना मानसिक संतुलन खोती जा रही हूं? मुकुल ने दोबारा मेरे जीवन में प्रवेश कर के मुझे बुरी तरह विचलित कर दिया था. लगभग 3-4 महीने यों ही बीत गए. एक दिन मुकुल ने फिर दरवाजा खटखटाया. जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, वह अंदर आते हुए बोला, ‘‘अंजू, आज तो चाय पी कर जाऊंगा.’’उस ने इस तरह अपनेपन से यह बात कही कि मैं पिघल गई. मैं चाय बना कर ले आई. उसे प्याला पकड़ाते समय मेरा ध्यान उस के हाथ की तरफ गया. उस का हाथ ब्लेड से कटा हुआ था, ऊपर खून की तह जमी थी.

‘ओह, तो जनाब फिर प्यार का इजहार करने आए हैं. फिर मजनू का भेष बना कर बैठे हैं,’ मैं ने मन ही मन सोचा और मुसकरा दी. मैं ने सोच लिया था कि मुकुल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा औरहाथ की नस भी काट लेगा तो भी मैं ‘हां’ नहीं करूंगी. उस की यही सजा है.

‘‘अंजू, तुम ने शादी के बारे में क्या सोचा?’’ अचानक उस ने पूछा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘क्या अपनी जिंदगी यों ही तनहा गुजार दोगी?’’

‘‘तुम्हें इस से क्या, मेरी जिंदगी है, मैं कैसे भी गुजारूं,’’ मैं चीख कर बोली थी.

‘‘यह हर बार तुम उत्तेजित क्यों हो जाती हो? तुम्हारे सामने अभी उम्र का लंबा सफर पड़ा है. आखिर कब तक अकेले ही अपने सुखदुख ढोती रहोगी?’’ वह चिंतित हो उठा.

‘‘मुकुल, मेरी चिंता तुम न करो. मुझे मेरे ही हाल पर छोड़ दो. मैं बहुत अच्छी तरह जी रही हूं.’’

‘‘अंजू, क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए पूछा.

उस की आंखों के भावों को देख कर एक बार मेरा मन डगमगा उठा था लेकिन मैं ने स्वयं को मजबूत बनाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

‘‘अंजू, मैं जानता हूं कि तुम ने मेरी खातिर तनहाइयां भोगी हैं. मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे लिए तड़प रही हो, उसी तरह जिस तरह मैं आज तुम्हारी तनहाइयां समेटने के लिए तड़प रहा हूं… उसी तरह, जैसे मोनू तुम्हें मां के रूप में पाने के लिए तड़प रहा है…’’

‘‘मोनू,’’ मैं ने मुकुल की तरफ अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि स्थिर कर दी.

‘‘हां अंजू, उस की डायरी से चिट्ठी मिली है,’’ मुकुल ने जेब से एक मुड़ातुड़ा कागज निकाल कर मेरी तरफ बढ़ा दिया. उस में लिखा था :

‘मौसी, मैं आप को बहुत चाहता हूं. क्या मैं आप को मां बोल सकता हूं?’

इस पंक्ति के बाद पूरे पृष्ठ पर ‘मां… मां…मां…’ लिखा हुआ था.

मैं ने मुकुल की तरफ देखा, उस की आंखें गीली थीं. वह भर्राए स्वर में बोला, ‘‘इस समय सिर्फ तुम ही नहीं, मैं और मोनू भी तनहाइयां झेल रहे हैं. लेकिन हम सब की तनहाइयां दूर हो सकती हैं… यदि तुम चाहो तो?’’

मुकुल का इतना कहना था कि मैं रोने लगी. अब मुझ में हिम्मत नहीं थी कि मैं अपनी तनहाइयों में और अधिक जी सकूं.

‘‘तो क्या सोचा है, अंजू?’’ वह बोला.

मैं ने आंसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठाया. मुकुल को एकटक देखा और कहा, ‘‘मैं तुम से नहीं बोलना चाहती क्योंकि तुम ने मेरे बेटे को मुझ से दूर रखा…’’

‘‘अच्छा बाबा, मुझ से मत बोलना, पर अपने बेटे से तो बोलना. चलो, मेरे घर चलो. मोनू तुम्हें देख कर बहुत खुश होगा.’’

मैं मुकुल के पीछेपीछे चल दी. एक सिहरन मेरे मन में समाती जा रही थी और मोनू को सीने से लगाने के लिए मैं बुरी तरह छटपटा रही थी.

 

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June 01, 2020 at 10:00AM

तनहाइयां-भाग 2: बस में बैठे लड़के से अंजू का क्या रिश्ता था ?

घर पहुंच कर मेरे रोष का शिकार बनी शकुंतला. उस ने सिर्फ इतना ही कहा था कि सिर में दर्द है क्या? कहो तो एक प्याला चाय बना दूं?

‘‘नहीं, मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे सिर में दर्द भी नहीं है. हां, तुम मेरे सिर पर इसी तरह खड़ी रहोगी तो सिर फट सकता है.’’

शकुंतला कुछ न बोली. वह चुपचाप काम कर के चली गई. खाना खा कर रात को जब बिस्तर पर लेटी तो आंखों में नींद  के स्थान पर वह चेहरा घूम रहा था…

उस चेहरे का नाम था मुकुल. कालेज के दिनों की बात है. मैं बीए अंतिम वर्ष में थी. मुकुल मेरा सहपाठी था. अकसर अंगरेजी के नोट्स लेने वह मेरे घर भी आ जाता था. कालेज की कैंटीन में भी वह मुझे मिल जाता था. कुछ दिनों से मैं उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन देख रही थी. वह अकसर मुझे अजीब निगाहों से देखता था.

एक दिन मैं ने टोका था, ‘मुकुल, यह घूरने की आदत कब से पड़ गई?’

‘नहीं तो, ऐसा कुछ भी नहीं है,’ वह हड़बड़ा कर बोला. ‘है तो. अगर यही हाल रहा तो तुम्हारा नाम घूरेलाल रख दूंगी.’

‘अंजू, अब तुम जो भी नाम रख दो, मुझे मंजूर है.’

‘ए जनाब, हंसबोल लेने का गलत अर्थ मत लगाना. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं,’ मैं कड़क कर बोली थी.

‘अंजू, यकीन करो, मैं भी ऐसावैसा नहीं हूं. पर तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है. जानती हो, हर चीज में मैं तुम्हें ही देखता हूं…किताब में, कौपी में, ब्लैकबोर्ड में, खाने में…’

‘बसबस मजनूजी, मैं किसी चक्कर में नहीं आने वाली,’ कहती हुई मैं तेजी से अपनी सहेलियों की टोली में चली गई थी.

सच बात तो यह थी कि मुकुल के प्रति मेरे हृदय में कोई भावना नहीं थी. उस के प्रति न तो आकर्षित थी और न ही प्रभावित. वह मेरा सहपाठी था. बस, उस से इतना ही नाता था. किंतु उस दिन के बाद मुकुल मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया. एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी अध्ययन कर रही थी कि मुकुल भी एक किताब ले कर वहीं मेरे पास बैठ गया और बोला, ‘अंजू, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. अगर तुम मेरे प्यार को ठुकरा दोगी तो मैं अपना दायां हाथ ब्लेड से काट दूंगा.’

‘मजनूजी, इस नेक काम में देर कैसी. एक से एक अच्छी क्वालिटी के ब्लेड हमारे देश में मिलते हैं. तुम कहो तो एक पैकेट मैं ही ला दूं,’ मैं खीज कर बोली और उसी समय लाइब्रेरी से उठ कर बाहर चली गई.

दूसरे दिन जब मुकुल क्लास में आया तो उस के दाएं हाथ पर पट्टी बंधी थी. इस बात से मैं थोड़ा परेशान हो गई. जब मैं लौन में बैठी थी तब वह मेरी तरफ आया, ‘अंजू, क्या अब भी तुम्हारी तरफ से इनकार है?’

‘हाथ में पट्टी बांध कर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते,’ मेरा इतना कहना था कि मुकुल आवेश में आ गया और बाएं हाथ से झटका दे कर अपनी पट्टी खोल कर दायां हाथ मेरे आगे कर दिया.

उस का खून से लथपथ हाथ देख कर मैं दंग रह गई.

‘मुकुल, यह क्या पागलपन है.’

‘कल हाथ की नस काट लूंगा, मर जाऊंगा. मैं जीना नहीं चाहता,’ वह बच्चों की तरह सिसकने लगा.

‘नहीं मुकुल, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे. इधर मेरी तरफ देखो,’ मेरे कहने पर उस ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया. मैं ने उसे अपलक निहारते हुए कहा, ‘मुकुल, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

इस के बाद मेरे दिलोदिमाग पर एक उन्माद, एक पागलपन छाने लगा. मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरी हर सांस केवल मुकुल के लिए है, मेरी हर धड़कन बस मुकुल का नाम लेती है. सुबह की उजली किरणों में मुकुल दिखाई देता और रात को आकाश में चमकते चांदसितारों में भी वही नजर आता. मुकुल मेरी जिंदगी बन चुका था. उस के बिना मैं जी नहीं सकती थी. मेरी हालत मेरी सहेलियों को पता थी और मुकुल की मनोस्थिति उस के मित्र जानते थे. कुछ महीनों के बाद तो जैसे ही मुकुल कालेज के गेट में प्रवेश करता, मेरी सहेलियां मुझे छेड़तीं, ‘देख अंजू, तेरा मजनू आ गया.’

हमारे प्यार के चर्चे खुलेआम होने लगे थे. बीए करने के बाद मैं ने अंगरेजी विषय में एमए में दाखिला ले लिया और मुकुल ने इतिहास में. हम क्लास में नहीं मिल पाते थे लेकिन खाली पीरियड में लौन में, कैंटीन में तथा लाइब्रेरी में रोज मिलते. मुकुल बैंक की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. फिर एक दिन वह सफल भी हो गया. बैंक में अधिकारी पद पर उस का चयन हो गया. मुकुल कानपुर नौकरी पर चला गया और मैं उस की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठी रही. लेकिन मेरी पलकों को मुकुल के स्नेह के फूल न मिल सके.

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घर पहुंच कर मेरे रोष का शिकार बनी शकुंतला. उस ने सिर्फ इतना ही कहा था कि सिर में दर्द है क्या? कहो तो एक प्याला चाय बना दूं?

‘‘नहीं, मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे सिर में दर्द भी नहीं है. हां, तुम मेरे सिर पर इसी तरह खड़ी रहोगी तो सिर फट सकता है.’’

शकुंतला कुछ न बोली. वह चुपचाप काम कर के चली गई. खाना खा कर रात को जब बिस्तर पर लेटी तो आंखों में नींद  के स्थान पर वह चेहरा घूम रहा था…

उस चेहरे का नाम था मुकुल. कालेज के दिनों की बात है. मैं बीए अंतिम वर्ष में थी. मुकुल मेरा सहपाठी था. अकसर अंगरेजी के नोट्स लेने वह मेरे घर भी आ जाता था. कालेज की कैंटीन में भी वह मुझे मिल जाता था. कुछ दिनों से मैं उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन देख रही थी. वह अकसर मुझे अजीब निगाहों से देखता था.

एक दिन मैं ने टोका था, ‘मुकुल, यह घूरने की आदत कब से पड़ गई?’

‘नहीं तो, ऐसा कुछ भी नहीं है,’ वह हड़बड़ा कर बोला. ‘है तो. अगर यही हाल रहा तो तुम्हारा नाम घूरेलाल रख दूंगी.’

‘अंजू, अब तुम जो भी नाम रख दो, मुझे मंजूर है.’

‘ए जनाब, हंसबोल लेने का गलत अर्थ मत लगाना. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं,’ मैं कड़क कर बोली थी.

‘अंजू, यकीन करो, मैं भी ऐसावैसा नहीं हूं. पर तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है. जानती हो, हर चीज में मैं तुम्हें ही देखता हूं…किताब में, कौपी में, ब्लैकबोर्ड में, खाने में…’

‘बसबस मजनूजी, मैं किसी चक्कर में नहीं आने वाली,’ कहती हुई मैं तेजी से अपनी सहेलियों की टोली में चली गई थी.

सच बात तो यह थी कि मुकुल के प्रति मेरे हृदय में कोई भावना नहीं थी. उस के प्रति न तो आकर्षित थी और न ही प्रभावित. वह मेरा सहपाठी था. बस, उस से इतना ही नाता था. किंतु उस दिन के बाद मुकुल मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया. एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी अध्ययन कर रही थी कि मुकुल भी एक किताब ले कर वहीं मेरे पास बैठ गया और बोला, ‘अंजू, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. अगर तुम मेरे प्यार को ठुकरा दोगी तो मैं अपना दायां हाथ ब्लेड से काट दूंगा.’

‘मजनूजी, इस नेक काम में देर कैसी. एक से एक अच्छी क्वालिटी के ब्लेड हमारे देश में मिलते हैं. तुम कहो तो एक पैकेट मैं ही ला दूं,’ मैं खीज कर बोली और उसी समय लाइब्रेरी से उठ कर बाहर चली गई.

दूसरे दिन जब मुकुल क्लास में आया तो उस के दाएं हाथ पर पट्टी बंधी थी. इस बात से मैं थोड़ा परेशान हो गई. जब मैं लौन में बैठी थी तब वह मेरी तरफ आया, ‘अंजू, क्या अब भी तुम्हारी तरफ से इनकार है?’

‘हाथ में पट्टी बांध कर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते,’ मेरा इतना कहना था कि मुकुल आवेश में आ गया और बाएं हाथ से झटका दे कर अपनी पट्टी खोल कर दायां हाथ मेरे आगे कर दिया.

उस का खून से लथपथ हाथ देख कर मैं दंग रह गई.

‘मुकुल, यह क्या पागलपन है.’

‘कल हाथ की नस काट लूंगा, मर जाऊंगा. मैं जीना नहीं चाहता,’ वह बच्चों की तरह सिसकने लगा.

‘नहीं मुकुल, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे. इधर मेरी तरफ देखो,’ मेरे कहने पर उस ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया. मैं ने उसे अपलक निहारते हुए कहा, ‘मुकुल, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

इस के बाद मेरे दिलोदिमाग पर एक उन्माद, एक पागलपन छाने लगा. मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरी हर सांस केवल मुकुल के लिए है, मेरी हर धड़कन बस मुकुल का नाम लेती है. सुबह की उजली किरणों में मुकुल दिखाई देता और रात को आकाश में चमकते चांदसितारों में भी वही नजर आता. मुकुल मेरी जिंदगी बन चुका था. उस के बिना मैं जी नहीं सकती थी. मेरी हालत मेरी सहेलियों को पता थी और मुकुल की मनोस्थिति उस के मित्र जानते थे. कुछ महीनों के बाद तो जैसे ही मुकुल कालेज के गेट में प्रवेश करता, मेरी सहेलियां मुझे छेड़तीं, ‘देख अंजू, तेरा मजनू आ गया.’

हमारे प्यार के चर्चे खुलेआम होने लगे थे. बीए करने के बाद मैं ने अंगरेजी विषय में एमए में दाखिला ले लिया और मुकुल ने इतिहास में. हम क्लास में नहीं मिल पाते थे लेकिन खाली पीरियड में लौन में, कैंटीन में तथा लाइब्रेरी में रोज मिलते. मुकुल बैंक की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. फिर एक दिन वह सफल भी हो गया. बैंक में अधिकारी पद पर उस का चयन हो गया. मुकुल कानपुर नौकरी पर चला गया और मैं उस की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठी रही. लेकिन मेरी पलकों को मुकुल के स्नेह के फूल न मिल सके.

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June 01, 2020 at 10:00AM

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... होने वाली कई यूके कंपनियों में से एक है ऋषि सनककी कोरोनावायरस नौकरी प्रतिधारण योजना, यह रविवार को उभरा।

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... मोटी आमदनी के चक्कर में वतन से सैकड़ों किलोमीटर दूर पसीना बहाते लोगों की महामारी ने नौकरी छीन लिया है।

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... मोटी आमदनी के चक्कर में वतन से सैकड़ों किलोमीटर दूर पसीना बहाते लोगों की महामारी ने नौकरी छीन लिया है।

पायलट ट्रेनिंग के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो कानपुर की सौम्या ने उधार ...

में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी की थी. रितेश शुक्ला. Jun 01, 2020, 06:09 AM IST. नई दिल्ली. 2007 की आर्थिक मंदी में कानपुर ...

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में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी की थी. रितेश शुक्ला. Jun 01, 2020, 06:09 AM IST. नई दिल्ली. 2007 की आर्थिक मंदी में कानपुर ...

मांग / स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों का प्रदर्शन कच्चे कर्मियाें काे ...

राजवीर बेरवाल कहा कि राज्य सरकार कच्चे कर्मचारी को नौकरी से बाहर करने का काम कर रही है। सकसं के ब्लाॅक प्रधान ...

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राजवीर बेरवाल कहा कि राज्य सरकार कच्चे कर्मचारी को नौकरी से बाहर करने का काम कर रही है। सकसं के ब्लाॅक प्रधान ...

परिवार से दूर रहकर मरीजों का जीवन बचाने को इबादत मान निभाया फर्ज

आशा रानी ने बताया कि नौकरी तो हम हमेशा करते हैं, लेकिन महामारी में नौकरी करना अलग बात है। मुझे गर्व है कि देश ...

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आशा रानी ने बताया कि नौकरी तो हम हमेशा करते हैं, लेकिन महामारी में नौकरी करना अलग बात है। मुझे गर्व है कि देश ...

लॉकडाउन में सहमे विद्यालयों के बहादुर

अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं, कोई दूसरी नौकरी मिलने की उम्मीद भी नहीं है। स्कूल खुलेगा तो भी इस दो महीने की खाई ...

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शून्य से शिखर तक / पायलट ट्रेनिंग के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो कानपुर की ...

में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी की थी. रितेश शुक्ला. Jun 01, 2020, 06:09 AM IST. नई दिल्ली. 2007 की आर्थिक मंदी में कानपुर ...

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शून्य से शिखर / मंदी में नौकरी गई, पत्नी के जेवर बेच फैक्ट्री लगाई, अब ...

शून्य से शिखर / मंदी में नौकरी गई, पत्नी के जेवर बेच फैक्ट्री लगाई, अब टर्नओवर 100 करोड़ रुपए हुआ. आज हर्षपाल सिंह ...

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शून्य से शिखर / मंदी में नौकरी गई, पत्नी के जेवर बेच फैक्ट्री लगाई, अब टर्नओवर 100 करोड़ रुपए हुआ. आज हर्षपाल सिंह ...

नौकरी योग / पिता के रिटायरमेंट के दिन आई गुड न्यूज, बेटे की भी नौकरी लगी

नौकरी योग / पिता के रिटायरमेंट के दिन आई गुड न्यूज, बेटे की भी नौकरी लगी. Good news came on father's retirement, son also got ...

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बिना किसी डिग्री के इस नौकरी में मिलता है 1 करोड़ का पैकेज, फिर भी नहीं ...

ऐसी भी एक नौकरी है जिस में बिना किसी डिग्री के मिलता है 1 करोड़ का पैकेज, फिर भी यह नैकरी कोई नहीं करना चाहता ...

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ऐसी भी एक नौकरी है जिस में बिना किसी डिग्री के मिलता है 1 करोड़ का पैकेज, फिर भी यह नैकरी कोई नहीं करना चाहता ...

लॉकडाउन में गई नौकरी, मां की दवाई के पैसे नहीं थे

भानु ने लिखा कि लॉकडाउन की वजह से उनकी नौकरी चली गई थी। लखीमपुर-खीरी के थाना मैगलगंज इलाके के बस्ती खखरा ...

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भानु ने लिखा कि लॉकडाउन की वजह से उनकी नौकरी चली गई थी। लखीमपुर-खीरी के थाना मैगलगंज इलाके के बस्ती खखरा ...

अब कंप्यूटर या मोबाइल पर क्लिक से मिलेंगे नौकरी के अवसर

मोहाली। जिले के युवाओं को नौकरी तलाशने में अब दिक्कत नहीं आएगी। वहीं, कंपनियों को भी अच्छे मुलाजिम आसानी ...

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मोहाली। जिले के युवाओं को नौकरी तलाशने में अब दिक्कत नहीं आएगी। वहीं, कंपनियों को भी अच्छे मुलाजिम आसानी ...

BPNL: 10वीं, 12वीं पास के लिए नौकरी पाने का बेहतरीन मौका, आज ही करें आवेदन

उम्मीदवार BPNL की आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं। नौकरी से संबंधित अधिक जानकारी के लिए ...

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उम्मीदवार BPNL की आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं। नौकरी से संबंधित अधिक जानकारी के लिए ...

कोरोना संकट में नौकरी छोड़कर आएं हैं, तो यहां कराएं ऑनलाइन पंजीकरण

ऊना। कोरोना संकट के बीच देश के विभिन्न हिस्सों से अपनी नौकरी छोड़कर वापस हिमाचल प्रदेश लौटे कुशल व अकुशल ...

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ऊना। कोरोना संकट के बीच देश के विभिन्न हिस्सों से अपनी नौकरी छोड़कर वापस हिमाचल प्रदेश लौटे कुशल व अकुशल ...

Indian Oil Recruitment 2020: 12वीं पास के लिए नौकरी का शानदार मौका, ऐसे करें ...

अब इच्छुक और योग्य उम्मीदवार इन पदों पर भर्ती के लिए 21 जून 2020 तक आवेदन कर सकते हैं. IOCL Recruitment 2020: नौकरी का ...

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अब इच्छुक और योग्य उम्मीदवार इन पदों पर भर्ती के लिए 21 जून 2020 तक आवेदन कर सकते हैं. IOCL Recruitment 2020: नौकरी का ...

'क्या करें भूख से मर जाते': घर लौटे प्रवासियों के लिए नौकरी और पैसे का संकट

कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से लागू लॉकडाउन (Lockdown In India) के चलते बड़े शहरों में काम करने वालों पर कहर टूट ...

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NHAI में डिग्री वाले उम्मीदवारों के लिए नौकरी का मौका: Nhai government jobs

Nhai government jobs, अगर आपके पास भी डिग्री है, और सरकारी नौकरी का सपना देख रहे हैं, तो एनएचएआई आपके लिए सुनहरा ...

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Nhai government jobs, अगर आपके पास भी डिग्री है, और सरकारी नौकरी का सपना देख रहे हैं, तो एनएचएआई आपके लिए सुनहरा ...

स्नातकों के लिए सरकरी नौकरी पाने का शानदार मौका, जल्द करें आवेदन

... तिथि को 31 मई, 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया था। इस नौकरी से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आगे की स्लाइड देखें।

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... तिथि को 31 मई, 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया था। इस नौकरी से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आगे की स्लाइड देखें।

मंदी के दौरान नौकरी में उछाल के लिए गंगा दशहरा पर करें यह उपाय

मंदी के दौरान नौकरी में उछाल के लिए गंगा दशहरा पर करें यह उपाय. By. Navbharat Times. |. Published: May 31, 2020 10:14 am IST.

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मंदी के दौरान नौकरी में उछाल के लिए गंगा दशहरा पर करें यह उपाय. By. Navbharat Times. |. Published: May 31, 2020 10:14 am IST.

नौकरी तलाश करने वालों के लिए सरकार कर रही है मदद, आप भी जानें कैसे.

सॉफ्ट स्किल्स का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम उन युवाओं के व्यक्तित्व के विकास में मदद करने के लिए है जो नौकरी की ...

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सॉफ्ट स्किल्स का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम उन युवाओं के व्यक्तित्व के विकास में मदद करने के लिए है जो नौकरी की ...

दिल्ली सरकार: महिला एवं बाल विकास विभाग में चल रही हैं भर्तियां, आज है ...

जो उम्मीदवार इस नौकरी को पाना चाहते हैं, वे आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से 31 मई तक आवेदन कर सकते हैं। इस नौकरी ...

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जो उम्मीदवार इस नौकरी को पाना चाहते हैं, वे आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से 31 मई तक आवेदन कर सकते हैं। इस नौकरी ...

लॉकडाउन में जूनियर रेजीडेंट पदों पर निकली भर्तियां, आज नौकरी पाने का ...

लॉकडाउन में जूनियर रेजीडेंट पदों पर निकली भर्तियां, आज नौकरी पाने का है अंतिम मौका. Edited By Riya bawa,; Updated: 31 ...

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ग्रेजुएट हैं तो करें आवेदन, बिहार सरकार दे रही नौकरी, सैलरी होगी 66000

न्यूज डेस्क: बिहार में नौकरी की तलाश कर रहे लोगों के लिए अच्छी खबर हैं। क्यों की बिहार सरकार के आदेश अनुसार ...

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न्यूज डेस्क: बिहार में नौकरी की तलाश कर रहे लोगों के लिए अच्छी खबर हैं। क्यों की बिहार सरकार के आदेश अनुसार ...

Saturday 30 May 2020

नौकरी लगने के उपाय

लगेगी सरकारी नौकरी Sarkari naukri lagne ke aasan upay janane ke liye please see the video. युवाओं ने खूब पढ़ाई की मेहनत की फिर ...

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लगेगी सरकारी नौकरी Sarkari naukri lagne ke aasan upay janane ke liye please see the video. युवाओं ने खूब पढ़ाई की मेहनत की फिर ...

गांव में भी नाउम्मीदी, दोराहे पर जिदगी

वापस जाने पर दोबारा नौकरी मिलेगी या नहीं यह तय नहीं। जो हालात हैं उनमें गांव में गुजर मुमकिन नहीं। ऐसे ही ...

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वापस जाने पर दोबारा नौकरी मिलेगी या नहीं यह तय नहीं। जो हालात हैं उनमें गांव में गुजर मुमकिन नहीं। ऐसे ही ...

Electrician's के बेटे को अमेरिका में 5 करोड़ रुपये की नौकरी मिली, जानें पूरी ...

और उनकी मेहनत का फल तब मिला जब अमेरिका की कई कंपनियां अपने कॉलेज के छात्रों को नौकरी देने आईं। अमर को इस बात ...

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और उनकी मेहनत का फल तब मिला जब अमेरिका की कई कंपनियां अपने कॉलेज के छात्रों को नौकरी देने आईं। अमर को इस बात ...

कोरोना संकट में नौकरी छोड़कर आएं हैं, तो कराएं ऑनलाइन पंजीकरण

कोरोना संकट के बीच देश के विभिन्न हिस्सों से अपनी नौकरी छोड़कर वापस हिमाचल प्रदेश लौटे कुशल व अकुशल ...

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लॉक डाउन के कारण CPCT स्कोरकार्ड की वैधता बढ़ाई जाए / KHULA KHAT

वर्ष 2018 के बाद से वर्तमान तक सहायक ग्रेड 3 अथवा अन्य नौकरी जिसमें सीपीसीटी अनिवार्य है ऐसी नौकरी नहीं ...

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वर्ष 2018 के बाद से वर्तमान तक सहायक ग्रेड 3 अथवा अन्य नौकरी जिसमें सीपीसीटी अनिवार्य है ऐसी नौकरी नहीं ...

बीमार कोयला कर्मचारियों के आश्रितों को नहीं मिल रही नौकरी

उनके स्थान पर उनके आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है। प्रावधान के अनुसार ऐसे लंबित मामलों में बीमार कोयला ...

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उनके स्थान पर उनके आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है। प्रावधान के अनुसार ऐसे लंबित मामलों में बीमार कोयला ...

कोरोना महामारी के कारण दुनियाभर में लगभग 2 अरब लोग गंवा सकते हैं नौकरी ...

... यानी तकरीबन 2 अरब लोगों की नौकरी पर कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई वैश्विक मंदी के कारण खतरा मंडरा रहा है।

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... यानी तकरीबन 2 अरब लोगों की नौकरी पर कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई वैश्विक मंदी के कारण खतरा मंडरा रहा है।

सुबह नौ बजे प्रमोशन, दोपहर में एक बजे रिटायरमेंट की विदाई

उनकी नौकरी की शुरूआत रामनगर अस्पताल से हुई। इसके बाद काशीपुर, बागेश्वर, बाजपुर आदि अस्पतालों में भी उनकी ...

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उनकी नौकरी की शुरूआत रामनगर अस्पताल से हुई। इसके बाद काशीपुर, बागेश्वर, बाजपुर आदि अस्पतालों में भी उनकी ...

Most viewed Java Developer Jobs in Pune (पुणे में सबसे ज्यादा देखी गयी जावा ...

Job Summary (नौकरी का सारांश). Java Oracle- Corporate Bank Technology-Associate by Deutsche Bank. Job Type (नौकरी का प्रकार) ...

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Job Summary (नौकरी का सारांश). Java Oracle- Corporate Bank Technology-Associate by Deutsche Bank. Job Type (नौकरी का प्रकार) ...

आत्महत्या / नौकरी जाने के डर से युवक ने नहर में कूदकर दी जान

दैनिक भास्कर. May 31, 2020, 05:49 AM IST. नई दिल्ली. केएन काटजू मार्ग इलाके में नौकरी जाने के डर से एक युवक ने जान ...

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दैनिक भास्कर. May 31, 2020, 05:49 AM IST. नई दिल्ली. केएन काटजू मार्ग इलाके में नौकरी जाने के डर से एक युवक ने जान ...

राहत / नौकरी की तलाश कर रहे नौजवानों के लिए ऑनलाइन सेवाएं शुरू

... सरपंचों, पंचायत सचिवों द्वारा घोषणाओं के साथ शिक्षा, तकनीकी संस्था, सीएससी, वीएलईएस के जरिये नौकरी तलाश ...

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... सरपंचों, पंचायत सचिवों द्वारा घोषणाओं के साथ शिक्षा, तकनीकी संस्था, सीएससी, वीएलईएस के जरिये नौकरी तलाश ...

नौकरी कैसे मिलेगी? » MCom Kiya Hua Hain Naukri Kaise Milegi

Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App ...

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