Sunday 31 October 2021
फर्जी प्रमाण पर नौकरी कर रही शिक्षिका पर केस - Hindustan
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पुपरी प्रखंड अंतर्गत रामनगर बेदौल पंचायत के प्राथमिक विद्यालय हिरौली में फर्जी ...
नौकरी घोटाले में वायुसेना अधिकारी को हाईकोर्ट से राहत - News Aap Tak
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय वायु सेना (IAF) के एक अधिकारी को जमानत दे दी है, ...
टीसीएस भर्ती अभियान: 35000 स्नातकों को मिलेगी नौकरी - INTODAY 24 NEWS
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टीसीएस में 35,000 पदों पर भर्ती; स्नातकों के लिए नौकरी के अवसर; पहली छमाही में 43,000 ...
कोर्ट का आदेश स्पष्ट रूप से न लिखने पे जा सकती है पेशकर की नौकरी, इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश ...
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शुक्रवार को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत के क्लर्कों और पेशकारों को ...
राशिफल (रविवार 31 अक्तूबर), जानिए कैसा रहेगा आपका दिन... - Encounter India
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नौकरी में मातहतों से अनबन हो सकती है, धैर्य रखें। कर्कः नवीन वस्त्राभूषण पर व्यय ...
कृषि ज्ञान - राजस्थान में आई 12वीं पास नौकरी के लिए करें आवेदन! - एग्रोस्टार - Agrostar
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RSMSSB Firemen Recruitment 2021: नौकरी की तलाश करे 12वीं पास अभ्यर्थियों के लिए राजस्थान से ...
बिना पैसों के शुरू करें ये बिजनेस, कमाएं हर महीने मोटा मुनाफा
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अगर आप नौकरी छोड़ खुद का बिजनेस करना चाहते हैं या फिर नौकरी के साथ-साथ एक्स्ट्रा ...
एक करोड़ नौकरी देने के वादा कर रालोद ने जारी किया लोकसंकल्प
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जयन्त सिंह ने कहा की 2017 में शपथ लेने के बाद योगी जी ने 70 लाख नौकरी देने का वादा ...
Damoh News: स्कूल के प्रधानाध्यापक ने छात्राओं को नाचने के लिए किया मजबूर, वीडियो भी बनाया ...
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... भी बनाया, नौकरी से किया निलंबित school-headmaster-forced-girl-students-to-dance-also-made-video-suspended-from-job.
बिजली विभाग में मीटर रीडर पद के फर्जी आईकार्ड और जॉइनिंग लेटर थमाए - Dainik Bhaskar
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गुना में बिजली विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर दो युवकों से जालसाज ने ठगी कर दी।
बिजली कंपनी में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी, फर्जी ज्वाइनिंग लेटर तक दे देते थे आरोपी - Patrika
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धरनावदा पुलिस ने बिजली कंपनी में नौकरी दिलाने का झांसा देकर धोखाधड़ी करने वाले ...
सरकारी नौकरी का झांसा देकर ठगने वाला गिरफ्तार | DEHRADUN | NYOOOZ HINDI
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सरकारी विभागों में नौकरी लगवाने का झांसा देकर 10 युवकों से 62 लाख रुपये की ठगी के ...
250 बेरोजगारों को मिलेगी नौकरी - divya himachal
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फिलिपियन एंबेसी के अंबेसेडर रमन एस भगत सिंह जेआर ने पौधारोपण कर किया उद्योग का ...
बारूदी सुरंग विस्फोट में शहीद हुए सैनिक के परिजन को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि, सरकारी नौकरी
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... को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि और सरकारी नौकरी देने की रविवार को घोषणा की।
दुबई में नौकरी का मौका, छह और सात नवंबर को यहां लगेगा रोजगार मेला - अमर उजाला
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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के आईटीआई दौलतपुर में युवाओं को रोजगार का सुनहरा ...
शिक्षक नौकरी Secondary School Teacher Jobs in Other International at Pleco Migration ... - intaskJOB
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नौकरी से संबंधित सभी जानकारी अब INTASKJOB पर |. JOB DETAILS. Company Name :- Pleco Migration Private Limited.
मालिक ने नौकरी से निकाला तो खफा हुए युवक ने 54 गायों को जहर देकर मार डाला।
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दरअसल, डेयरी के मालिक ने आरोपी को नौकरी से निकाल दिया था, जिसके बाद उसने गाय और ...
CUHP Recruitment 2021: सेंट्रल यूनिवर्सिटी में नौकरी पाने का मौका, मेडिकल ऑफिसर समेत कई ...
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CUHP Recruitment 2021: सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हिमाचल प्रदेश (Central University of Himachal Pradesh) की ओर ...
12th Pass Jobs - Page 28 of 28 - Ask to Apply
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संघ लोक सेवा आयोग 418 पदों की सीधी भर्ती, · Previous 1 … 26 27 28. अपने लिए सरकारी नौकरी यहाँ ...
सचिवालय-विधानसभा में नौकरी दिलाने के नाम पर करोड़ों की ठगी, मास्टरमाइंड गिरफ्तार, ऐसे करते थे ठगी
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सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर करोड़ों की ठगी करने वाले गिरोह के मास्टरमाइंड को ...
Saturday 30 October 2021
Weird Job: अच्छी नींद के बदले मिलेंगे लाखों रुपये, नौकरी में सोने के लिए हो जाएं तैयार - Hindi News18
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Weird Job, Career Tips, Dream Job: दुनिया में अजीबोगरीब नौकरी की कोई कमी नहीं है. आज-कल जरा हटके ...
डिप्रेशन से जूझ रहे कर्मचारी को नौकरी से निकालना पड़ा बॉस को महंगा - MSN
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ब्रिटेन (Britain) में रहने वाले 41 साल के डेन रो (Dane Rowe) डेविड वुड बैंकिंग नाम की कंपनी ...
नौकरी से निकाले जाने पर गायों से बदला! 58 गायों को जहर देकर मारने का आरोप, युवक गिरफ्तार - UPTak
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मिली जानकारी के मुताबिक, आरोपी युवक पीड़ित डेरी मालिक के यहां पहले नौकरी करता था.
फर्जी लूट मामले में कर्मचारी और नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले युवक-युवती गिरफ्तार
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बेगूसराय। पुलिस ने 19 अक्टूबर को वीरपुर थाना में दर्ज कराए गए लूट मामले का ...
69 शिक्षक भर्ती मामले में 20 हजार नौकरी में हुआ भ्रष्टाचार जारी है अब तक धरना – Tarun Mitra | तरुण मित्र
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20 हजार नौकरी में भ्रष्टाचार हुआ है। बता दें कि प्रदर्शनकारी का अरोप है कि 20 हजार पद ...
हमीरपुर - नौकरी के नाम पर लाखों लूटे पूर्व विधायक साहब ने। - Sm News Himachal
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ब्यूरो प्रमुख हमीरपुर (विवेक शर्मा)- नौकरी लेना भी कहाॅ आसान काम है, साहब यहाॅ तो ...
नोएडा: नौकरी से हटाया तो बेजुबानों पर निकाला गुस्सा, 58 गायों को जहर देकर मार दिया, अरेस्ट
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आरोपी पीड़ित के यहां पूर्व में नौकरी करता था। नौकरी से निकाले जाने की वजह से उसने ...
रायपुर: फिर सामने आया बेरोजगारों से ठगी का मामला, मंत्रालय में नौकरी दिलाने के नाम पर की ठगी..
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रायपुर: फिर सामने आया बेरोजगारों से ठगी का मामला, मंत्रालय में नौकरी दिलाने के ...
अफसर बनने के लिए दो दोस्तों ने छोड़ दी लाखों के पैकेज वाली नौकरी, एक साथ - Dainik Bhaskar
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रायपुर के आशुतोष देवांगन और पीयूष तिवारी की जोड़ी ने CGPSC में टॉप किया है।
रविवार, 31 अक्टूबर 2021 का राशिफल: सुख-शांति और प्रसन्नता वाला रहेगा दिन, पढ़ें 12 राशियां - Webdunia
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नौकरी में सुकून रहेगा। निवेश लाभप्रद रहेगा। कार्य बनेंगे। कानूनी अड़चन दूर होकर ...
पॉर्न फिल्मों में काम करने का हवाला देकर महिला को नौकरी से निकाला, महिला ने स्कूल पर किया केस - Loktej
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स्कूल में जुडने के बाद कोई भी अनैतिक काम नहीं किए होने का किया दावा, मांगा सात ...
डेयरी की नौकरी से हटाने पर गुस्साए नौकर ने जहर वाला पानी पिलाकर 58 गायों की ले ली जान news in hindi
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नौकरी से निकाले जाने की वजह से उसने गोवंश को जहर देकर उनकी हत्या कर दी. पुलिस के एक ...
नौकरी से हटाया तो 58 गायों को जहर देकर मारा, पुलिस ने किया गिरफ्तार
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पुलिस को पूछताछ में पता चला कि धर्मेंद्र नशे का आदी है, जिसके कारण उसे नौकरी से ...
नोएडा : 58 गायों का हत्यारा गिरफ्तार, नौकरी से निकाले जाने के कारण बेजुबानों को दिया था जहर - पंजाब केसरी
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नौकरी से निकाले जाने की वजह से उसने गोवंश को जहर देकर उनकी हत्या कर दी। पुलिस ...
IAS Success Story: लाखों की नौकरी छोड़कर Ankita Jain ने की यूपीएससी की तैयारी, 4 साल के संघर्ष ...
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आइए उनके सफर के बारे में जान लेते हैं. इंजीनियरिंग के बाद मिली नौकरी अंकिता मूल रूप ...
गुना : नौकरी दिलाने के नाम पर झटके 17 हजार - Doon Horizon
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गुना, 30 अक्टूबर (हि.स.) । बिजली विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर दो युवकों से 17 हजार ...
नौकरी में प्रमोशन पाने के लिए जरूर दे इन चीजों पर ध्यान - News Track Live, NewsTrack
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अक्टूबर में KRA भरने के साथ ही नौकरी में प्रमोशन एवं इंक्रीमेंट की संभावनाएं ...
Guna News: बिजली कंपनी में नौकरी दिलाने के नाम पर रुपये ऐंठने वाला ठग गिरफ्तार - Naidunia
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बिजली विभाग में मीटर रीडर की नौकरी लगवाने के नाम पर धोखाधड़ी के शिकार हुए देवेंद्र ...
BBC BREAKING : नौकरी लगाने के नाम पर की जा रही ठगी, हो जाइये सतर्क, SP ने आमजन से की अपील ...
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आज एक महिला अभ्यर्थी द्वारा थाना पटना में रिपोर्ट दर्ज कराया जा रहा है कि नौकरी ...
नौकरी से हटाया तो बेजुबानों पर निकाला गुस्सा, 58 गायों को जहर देकर मार दिया, अरेस्ट - BHEL Daily News
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आरोपी पीड़ित के यहां पूर्व में नौकरी करता था। नौकरी से निकाले जाने की वजह से उसने ...
Friday 29 October 2021
रायपुर :l सरकारी नौकरी लगाने के नाम फिर ठगी, पति-पत्नी ने मिलकर लगाया युवक को चूना - Oneindia Hindi
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रायपुर :l सरकारी नौकरी लगाने के नाम फिर ठगी, पति-पत्नी ने मिलकर लगाया युवक को चूना.
सरकारी नौकरी कैसे मिले | Sarkari Job Kaise Dekhen
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इस ब्लॉग में आप पढेगे की सरकारी नौकरी कैसे मिलेगी , सरकारी vacancy कैसे देखे, ,Sarkari me ...
4438 पदों के लिए राजस्थान पुलिस नौकरी अधिसूचना - Top Government Jobs
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राजस्थान पुलिस नौकरियां 2021 अधिसूचना; नौकरी स्थान: राजस्थान, भारत.
Sheopur News: श्योपुरः सरकारी नौकरी में सेवानिवृति होना परंपरा हैः कलेक्टर - Naidunia
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सरकारी नौकरी में सेवानिवृत होना एक परंपरा है शासकीय सेवा में रहते हुए कई स्थानों ...
मैंने सोनिया गांधी से कहा सबको इकट्ठा कीजिए : NDTV से बोले लालू प्रसाद यादव | India News In Hindi
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नीतीश कुमार की रैली में नौकरी को लेकर हुए प्रदर्शन पर उन्होंने कहा कि उनका (नीतीश ...
युवा क्रिकेट खिलाड़ी सुशांत मिश्रा को दक्षिण पूर्व रेलवे ने दी नौकरी – NEWSWING
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Ranchi: आज मंडल रेल प्रबंधक प्रदीप गुप्ता द्वारा देश के प्रतिभाशाली खिलाड़ी में ...
Sarkari Naukri: पुलिस, सीआरपीएफ समेत यहां निकली हैं भर्तियां, सरकारी नौकरी पाने का सुनहरा मौका
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Sarkari Naukri: अगर आपको है सरकारी नौकरी की तलाश तो आज ही नीचे दी जा रही है इन भर्तियों ...
MP High Court Bharti 2021: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में 708 पदों पर भर्ती, 8वीं और 10वीं पास कर ...
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MP High Court Recruitment 2021: सरकारी नौकरी की चाहत रखने वाले युवाओं के लिए खुशखबरी है।
सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मौत पर विवाहिता बेटी को भी अब नौकरी - Impact Voice News
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जयपुर : प्रदेश सरकार ने मृतक आश्रित को नौकरी देने के नियम में बदलाव करते हुए अब ...
Top 5 Sarkari Naukari-29 October 2021: उच्च न्यायालय, NPCIL, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ...
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सरकारी नौकरी की तलाश रहे युवाओं के लिए आज यानी 29 अक्टूबर 2021 के Top 5 Sarkari Naukari में ...
Lucknow Bus Conductor Recruitment: लखनऊ में बस कंडक्टर की निकली नौकरी, जानें कैसे करें आवेदन
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Jobs News in Hindi: लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट संविदा पर बस परिचालकों की भर्ती के लिए ...
Diwali Special:दीवाली से पहले संविदाकर्मियों को योगी सरकार बड़ा तोहफा - News Nation
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अब निगम के तैनात करीब 32 हजार से ज्यादा कर्मचारी अपने गृह जनपद में नौकरी कर सकेंगे.
UPSSSC PET Result 2021: पर्सेंटाइल से कैसे बनेगी मेरिट, कितने स्कोर पर मिलेगी नौकरी? यहां देखें जानकारी
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रिजल्ट 28 अक्टूबर को जारी किए गए हैं; कैंडिडेट्स को मेरिट के आधार पर नौकरी मिलेगी.
मृतक आश्रितों को राहत, दूसरे विभागों में भी मिलेगी नौकरी - होम
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लखनऊ। नौकरी के दौरान जान गंवाने वाले उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारियों के ...
MACDONALD में नौकरी के लिए तुरंत आवेदन करें. - Other Jobs - 1661499192 - OLX
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MACDONALD में नौकरी के लिए तुरंत आवेदन करें. POST - हैल्पर,पैकिंग के लिए, काउंटर सेल अधिक ...
यूपी से भाजपा का सफाया होगा क्योंकि इन लोगों ने आपकी नौकरी का सफाया किया : अखिलेश यादव - Udaipur Kiran
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आजमगढ़ . यूपी में 2022 में विधान सभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी सक्रिय हो गई है.
24 साल की उम्र में ममता यादव बनी IAS अफसर, पिता करते हैं मामूली सी नौकरी जानिए इनकी सक्सेस ...
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... बेहद प्रेरित करने वाली है इनके पिता बेहद मामूली सी प्राइवेट नौकरी करते थे।
UPTET 2021 के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण सूचना - Medhaj News
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मेट्रो में नौकरी पाने का मौका, ऐसे करें ... आईटीआई पास के लिए एनटीपीसी में नौकरी ...
सरकारी नौकरी: न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में 250 पदों पर निकली भर्ती, कैंडिडेट्स के लिए ...
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न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCIL) ने npcilcareers.co.in पर ट्रेड अप्रेंटिस की ...
नौकरी की चिंता छोड़ शुरू करें ये बिजनेस, हर महीने होगी 1 लाख - Samacharnama
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नौकरी की चिंता छोड़ शुरू करें ये बिजनेस, हर महीने होगी 1 लाख रुपये तक की कमाई, ...
Thursday 28 October 2021
LinkedIn लेकर आई नया रिमोट जॉब सर्च फीचर, आसानी से मिलेगी वर्क फ्रॉम होम की नौकरी - Zee Business
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LinkedIn new Filters: लिंक्डइन ने वर्क फ्रॉम से जुड़ी नौकरियों की तलाश में मदद करने के लिए ...
Horoscope October 29, 2021: शुक्रवार को नौकरी-कारोबार में मिल सकती है शुभ सूचना, बन रहे तरक्की के योग
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नौकरी और व्यापार में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होने वाला है. किसी की बात को दिल ...
फर्जी दस्तावेज पर नौकरी कर रहे दरोगा पर रिपोर्ट दर्ज - Hindustan
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अब इस मामले में थाना सिविल लाइन में फर्जी दस्तावेज के आधार पर पुलिस विभाग में नौकरी ...
चुनाव में 'खदेड़ा' तो होगा ही, यूपी से BJP का सफाया भी होगा
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... जनता पार्टी का सफाया होगा क्योंकि इन लोगों ने आपकी नौकरी का सफाया किया है।''.
आ अब लौट चलें
लेखक-पंकज धवन
गजब का आकर्षण था उस अजनबी महिला के चेहरे पर. उस से हुई छोटी सी मुलाकात के बाद दोबारा मिलने की चाह उसे तड़पाने लगी थी. लेकिन यह एकतरफा चाह क्या मृगमरीचिका जैसी नहीं थी? बसस्टौप तक पहुंचतेपहुंचते मेरा सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. पैंट की जेब से रूमाल निकाल कर गरदन के पीछे आया पसीना पोंछा, फिर अपना ब्रीफकेस बैंच पर रख कर इधरउधर देखने लगा. ऊपर बस नंबर लिखे थे. मुझे किसी भी नंबर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
फिर भी अनमने भाव से कोई जानापहचाना सा नंबर ढूंढ़ने लगा, 26, 212, 50… पता नहीं कौन सी बस मेरे औफिस के आसपास उतार दे. तभी अचानक वहां आई एक महिला से कुछ पूछना चाहा. स्लीवलैस ब्लाउज और पीली प्रिंटेड साड़ी में लिपटी वह महिला बहुत ही तटस्थ भाव से काला चश्मा लगाए एक ओर खड़ी हो गई. महिला के सिवा और कोई था भी नहीं. सकुचाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘सैक्टर 40 के लिए यहां से कोई बस जाएगी क्या?’’ ‘‘827,’’ उस का संक्षिप्त सा उत्तर था. ‘‘क्या आप भी उस तरफ जा रही हैं?’’ मैं ने पूछा.
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हालांकि मुझे उस अनजान महिला से इस तरह कुछ पूछना तो नहीं चाहिए था परंतु देर तक कोई बस न आती दिखाई दी तो चुप्पी तोड़ने के लिए पूछ ही बैठा. ‘‘जी,’’ उस ने फिर संक्षिप्त उत्तर दिया. आधा घंटा और खड़े रहने के बाद भी कोई बस नहीं आई. 10 बजने वाले थे. देर से औफिस पहुंचूंगा तो कैसे चलेगा. एकदम सुनसान था बसस्टौप. ‘‘क्या सचमुच यहां से बसें जाती हैं?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा. हालांकि मैं ने कुछ उत्तर सुनने के लिए नहीं कहा था, मगर फिर भी उस महिला ने कहा, ‘‘आज शायद बस लेट हो गई हो.’’ बस का इंतजार करना मेरी मजबूरी बन चुका था. आसपास कहीं औटो या रिकशा होता तो शायद एक क्षण के लिए भी न सोचता. तभी वही बस पहले आई जिस का इंतजार था. मुझे 3 महीने हो गए थे इस छोटे से शहर में. बसस्टौप से थोड़ी ही दूर मेरा फ्लैट था.
स्कूटर अचानक स्टार्ट न होने के कारण आज पहली बार बस में जाना पड़ा. बसस्टौप पर भी पूछतेपूछते पहुंच पाया था. स्टेट बैंक की नौकरी में मेरा यह पहला अवसर ही था जब इस छोटे से शहर में, जो कसबा ज्यादा था, रहना पड़ा. बच्चों की पढ़ाई की मजबूरी न होती तो शायद उन्हें भी यहीं ले आता और पत्नी का बच्चों के साथ रहना तो तय ही था. बड़ी लड़की को 10वीं की परीक्षा देनी थी और शहरों की अपेक्षा यहां इतनी सुविधा भी नहीं थी. 2 कमरों का छोटा सा फ्लैट बैंक की तरफ से ही मिला हुआ था. पिछले मैनेजर की भी यही मजबूरी थी, उसे भी इस फ्लैट में 3 वर्ष तक इसी तरह रहना पड़ा था.
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चैक पास करतेकरते उस दिन अचानक कैबिन के दरवाजे की चरमराहट और खनखनाती सी आवाज ने सारा ध्यान तोड़ दिया, ‘‘लौकर के लिए मिलना चाहती हूं,’’ उस महिला ने कैबिन में घुसते ही कहा. मैं ने सिर उठा कर देखा तो देखता ही रह गया. बहुत ही शालीनता से बौबकट बालों को पीछे करती हुई, धूप का चश्मा माथे पर अटकाते हुए उस ने पूछा. ‘‘जी,’’ मैं ने कहा. कोई और होता तो ऊंचे स्वर में 1-2 बातें कर के अपने मैनेजर होने का एहसास जरूर कराता कि देखते नहीं, मैं काम कर रहा हूं. परंतु कुछ कहते न बना. मैं ने एक बार फिर भरपूर नजरों से उसे देखा और उसे सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. ‘‘लगता है, हम पहले भी मिल चुके हैं,’’ उस महिला का स्पष्ट सा स्वर था, पर स्वर में न कोई महिलासुलभ झिझक थी न ही घबराहट. ‘‘याद आया,’’ मैं ने नाटक सा करते हुए कहा, ‘‘शायद उस दिन बसस्टौप पर…’’ वह मुसकरा पड़ी. मैं फिर बोला, ‘‘अच्छा बताइए, मैं क्या कर सकता हूं आप के लिए?’’ मैं ने सीधेसीधे बिना समय गंवाए पूछा. ‘‘लौकर लेना चाहती हूं इस बैंक में, कोई उपलब्ध हो तो…?’’ ‘‘आप का खाता है क्या यहां?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी हां. पिछले 5 साल से हर बार लौकर के लिए प्रार्थनापत्र देती हूं, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ. एफडी करने को भी तैयार हूं…’’ ‘‘क्या करती हैं आप?’’ मैं ने पूछा. ‘‘टीचर हूं, यहीं पास के स्कूल में.’’ मुझे लगा, इसे टालना ठीक नहीं. मैं ने उसे एप्लीकेशन फौर्म के साथ कुछ आवश्यक पेपर पूरे कर के कल लाने को कहा. उस असाधारण सी दिखने वाली महिला ने अपने साधारण स्वभाव से ऐसी अमिट छाप छोड़ दी कि मैं प्रभावित हुए बिना न रह सका. इस छोटी सी पहली मुलाकात से हम दोनों चिरपरिचित की तरह विदा हुए. कितने ही लोग आतेजाते मिलते रहते थे, परंतु इस महिला के आगे सब रंग ऐसे फीके पड़ गए कि मानसपटल पर किसी भी काल्पनिक स्वप्नसुंदरी की छवि भी शायद धूमिल पड़ जाए. दूसरे दिन ही मैं ने उसे लौकर उपलब्ध कराने की जैसे ठान ही ली और सारी औपचारिकताएं पूरी कर लीं. 11 बजे के बाद तो लगातार टकटकी बांधे बेसब्री से निगाहें दरवाजे पर अटकी रहीं. पौने 2 बजे उस के बैंक में आने से ही अटकी निगाहों को थोड़ी राहत मिली.
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चेहरे के सभी भावों को छिपा कर दूसरे कामों में अनमने भाव से लगा रहा, परंतु तिरछी निगाहें मेरी अपनी कैबिन की चरमराहट पर ही थीं. ‘‘नमस्ते,’’ हर बार की तरह संक्षिप्त शब्दों में उस ने मुसकरा कर कहा और कागजात देती हुई बोली, ‘‘ये लीजिए सारे पेपर्स, राशनकार्ड, फोटो और जो आप ने मंगवाए थे.’’ ‘‘बैठिए, प्लीज,’’ उस के हाथ से पेपर्स ले कर मैं ने पूछा, ‘‘कुछ लेंगी आप?’’ ‘‘नो, थैंक्यू. बच्चे स्कूल से घर आने वाले हैं, स्कूल में ही थोड़ा लेट हो गई थी. पहले सोचा कि कल आऊंगी. फिर लगा, न जाने आप क्या सोचेंगे.’’ थोड़ीबहुत खानापूर्ति कर उसे लौकर दिलवा दिया और अपना ताला लौकर में लगाने को कहा, जैसा कि नियम था. मुसकरा कर वह आभार प्रकट करती चली गई. एक सवेरे जौगिंग करते हुए मैं पार्क में पहुंचा तो वह लंबे कदमों से चक्कर लगाने में लीन थी.
मुझे देख कर एक क्षण के लिए रुकी भी, शायद पहचानने का प्रयत्न कर रही हो, पर शुरुआत मैं ने ही की, बोला, ‘‘मेरा नाम…’’ ‘‘जानती हूं,’’ मेरी बात काटती हुई हाथ जोड़ कर बहुत ही शिष्ट व्यवहार से वह बोली, ‘‘आप को भला मैं कैसे भूल सकती हूं. 5 साल से जो नहीं हो पाया वह 2 ही दिन में आप ने कर दिया.’’ उस के पहने हुए नीले रंग के ट्रैक सूट और महंगे जूते उस की पसंद और छवि को दोगुना कर रहे थे. इस शहर में तो इन वस्तुओं का उपलब्ध होना संभव नहीं था, परंतु इन सब के बावजूद बिना किसी मेकअप के उस के चेहरे में गजब की कशिश थी. कोई भी साहित्यकार मेरी आंखों से देखता तो शायद तारीफ में इतिहास रच डालता. ‘‘यहां कैसे, आप? कहीं पास ही में रहती हैं क्या?’’ मैं ने पूछा. ‘‘जी, सामने वाली सोसाइटी में. घूमतेघूमते इधर निकल आई. रविवार था. कहीं जाने की जल्दी तो थी नहीं.
एक ही पार्क है यहां.’’ बातोंबातों में ही उस ने बताया कि 2 छोटे बेटे हैं, पति आर्मी में मेजर हैं और दूसरी जगह पोस्टेड हैं. छुट्टियों में आते रहते हैं. समय बिताने के लिए उस ने यह सब शौक रखे हैं, वरना नीरस से जीवन में क्या रखा है. न जाने क्यों, पहले दिन से ही उस के प्रति आकर्षण था और उस का प्रत्येक हावभाव मेरे दिमाग पर अजीब सी मीठी कसक छोड़ता रहा. मुझे उस से मिलने का नशा सा हो गया. रविवार का मैं बहुत ही बेसब्री से इंतजार करता रहता और वह भी पार्क में आती रही. हम दोनों पार्क के 2 चक्कर तेजी से लगाते, फिर तीसरी बार में इधरउधर की बातें करते रहते. मैं बैंक की बताता तो वह अपने स्कूल के शरारती बच्चों के बारे में. उस का इस तरह नियमित समय से आना लगभग तय था. चेहरे की मुसकराहट तथा भाव से उस का भी मेरे प्रति झुकना कोई असामान्य नहीं लगा. एक दिन अपना उम्र प्रमाणपत्र सत्यापित कराने बैंक में आई तो उस में लिखी उम्र देख कर मैं हैरान रह गया.
‘‘1964 का जन्म है आप का, लगता नहीं कि आप 38 की होंगी,’’ मैं ने कहा तो वह मुसकरा कर रह गई. ‘‘क्यों?’’ वह सकुचाती सी बोली, ‘‘क्या लगता था आप को?’’ शायद हर नारी की तरह वह भी 20-22 ही सुनना चाहती हो. मैं बोला, ‘‘कुछ भी लगता हो, परंतु आप 38 की नहीं लगतीं.’’ उस के चेहरे की लालिमा मुझ से छिपी नहीं रही. इस लालिमा को देखने के लिए ही तो मैं लालायित था. ‘‘शायद इसीलिए ही लड़कियां अपनी उम्र बताना पसंद नहीं करतीं,’’ मैं बोला. महिला के स्थान पर लड़की शब्द का प्रयोग पता नहीं मैं किस बहाव में कर गया, परंतु उसे अच्छा ही लगा होगा. मैं ने फिर दोहराया, ‘‘परंतु कुछ भी कहिए, मिसेज शर्मा, आप 38 की लगती नहीं हैं,’’ मेरे द्वारा चुटकी लेते हुए कही गई इस बात से उस के सुर्ख चेहरे पर गहराती लालिमा देखते ही बनती थी. ‘‘आप मर्दों को तो छेड़ने का बहाना चाहिए,’’ उस ने सहज लेते हुए दार्शनिक अंदाज में मुसकराते हुए कहा. मुझे लगा वह बुरा मान गई है,
इसलिए मैं ने कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, यदि अनजाने में कही यह बात आप को अच्छी न लगी हो.’’ ‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. आप को जो ठीक लगा, आप ने कह दिया. मेरे सामने कह कर स्पष्टवादिता का परिचय दिया, पर पीछे से कहते तो मैं क्या कह सकती थी,’’ वह बोली. इतनी गंभीर बात को सहज ढंग से निबटाना सचमुच प्रशंसनीय था. यह सिलसिला जो पार्क से प्रारंभ हुआ था, पार्क में ही समाप्त होता नजर आने लगा, क्योंकि यह क्रम उस दिन के बाद आगे नहीं चल सका. मुझे लगा वह मेरी उस बात का बुरा मान गईर् होगी. अब हर सवेरे मैं उस पार्क में जा कर एक चक्कर लगाता, 1-2 एक्सरसाइज करता और देर तक इधरउधर शरीर हिला कर व्यायाम का नाटक करता. बैंक में कैबिन के बाहर ही गतिविधियों पर पैनी नजरें गड़ाए रहता, परंतु उस से फिर पूरे 2 सप्ताह न बैंक में मुलाकात हो सकी न पार्क में. शाम होती तो सुबह का इंतजार रहता और सैर के बाद तो बैंक में आने का इंतजार.
3 दिन लगातार बसस्टौप पर भी जाता रहा. मेरे मन की स्थिति एकदम पपीहा जैसी हो गई जो सिर्फ बरसात का इंतजार करता रहता है. उस का पता ले कर एक दिन उस के घर जाने का मन भी बनाया पर लगा, यह ठीक नहीं रहेगा. वह स्वयं क्या सोचेगी, उस के बच्चों को क्या कहूंगा. वह क्या कह कर मेरा परिचय कराएगी और कोशिशों के बावजूद नहीं जा पाया. बैंक में उस के पते के साथ फोन नंबर न होने का आज सचमुच मुझे बहुत ही क्षोभ हुआ. कम से कम फोन तो इस मानसिक अंतर्द्वंद्व को कम करता. चपरासी के हाथ अकाउंट स्टेटमैंट के बहाने उस को बैंक में आने का संदेशा भिजवाया. रविवार की इस सुबह ने मुझे बेहद मायूस किया. इस पूरे आवास काल में पहला रविवार था कि घूमने का मन ही नहीं बन सका. दरवाजे पर अचानक बजी घंटी ने दिल के सारे तार झंकृत कर दिए. इतनी सुबह तो कोई नहीं आता. हो न हो मिसेज शर्मा ही होंगी. लगता है कल चपरासी ठीक समय से पहुंच गया होगा,
यही सोचता मैं जल्दी से स्वयं को ठीक कर के जब तक दूसरी बार घंटी बजती, दरवाजे पर पहुंच गया. सामने अपनी पत्नी को पा कर सारा नशा काफूर हो गया. मेरा चेहरा उतर गया. ‘‘क्यों, हैरान हो गए न,’’ वह हांफते हुए बोली, ‘‘बहुत ही मुश्किल से मकान मिला है,’’ वह अपना सूटकेस भीतर रखते हुए बोली. ‘‘अरे, बताया तो होता, कोई फोन, चिट्ठी…’’ मैं ने कहा. ‘‘सोचा, आप को सरप्राइज दूंगी, जनाब क्या करते रहते हैं इस शहर में. अचानक बच्चों की छुट्टियां हुईं तो उन्हें मायके छोड़ सीधी चली आई. बताने का मौका कहां मिला.’’ मेरा मन उस के आने के इस स्वागत के लिए तैयार तो नहीं था परंतु चेहरे के भावों में संयतता बरतते हुए मुझे सामान्य होना ही पड़ा. फिर भी इस स्थिति को पचाते शाम हो ही गई. पत्नी के 3 दिन के इस आवासकाल में मैं ने हरसंभव प्रयास किया कि नपीतुली बातें की जाएं.
जब भी बाहर घूमने के लिए वह कहती तो सिरदर्द का बहाना बना कर टाल जाता. बाहर खाने के नाम पर उस के हाथ का खाना खाने की जिद करता. मुझे भय सा व्याप्त हो चुका था कि कहीं उस के साथ मिसेज शर्मा मिल गईं तो क्या करूंगा. क्या कह कर हमारा परिचय होगा. मेरे मन में अजीब सी शंका ने घर कर रखा था. मेरी पत्नी उस के स्वभाव, रूप को देख कर क्या सोचेगी. इसी भय के कारण मैं ने 3 दिन की छुट्टी ले ली थी. मन का भूत साए की तरह पीछे लगा रहा और यह तब तक सताता रहा जब तक मैं ने अपनी पत्नी को जाते वक्त बस में न बिठा दिया. क्या अच्छा है, क्या बुरा है, यह समझना भी नहीं चाहता था. अगली शाम मन का एकाकीपन दूर करने के लिए मैं टीवी देखता चाय की चुसकियां ले ही रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने मिसेज शर्मा को पाया.
दिल धक से रह गया. इच्छा के अनुकूल चिरपरिचिता को सामने पा कर सभी शब्दों और भावों पर विराम सा लग गया. बहुत ही कठिनाई से पूछा, ‘‘आप…’’ उस के हाथ में रजनीगंधा के फूलों का बना सुंदर सा बुके था. काफी समय बाद उसे देखा था. ‘‘जी,’’ वह भीतर आते हुए बोली, ‘‘कल बैंक गई तो पता चला आप कई दिनों से छुट्टी पर हैं. सोचा, आप से मिलती चलूं,’’ यह कह शालीनता का परिचय देते हुए उस ने मेरे हाथों में बुके पकड़ा दिया. ‘‘वह…क्या है कि…’’ मुझ से कहते न बना, ‘‘आप को मेरा पता कैसे मिला?’’ मैं ने हकलाते हुए बहुत बेहूदा सा प्रश्न पूछा, जिस का उत्तर भी मैं जानता था, ‘‘आइए, मैं ने उस पर भरपूर नजर डालते हुए आगे कहा, ‘‘बैठिए न. कुछ पिएंगी, चाय बनाता हूं. चलिए, थोड़ीथोड़ी पीते हैं.’’ ‘‘नहीं, बस, नीचे मेजर साहब गाड़ी में मेरा इंतजार कर रहे हैं.’’ ‘‘मेजर साहब…’’ मैं ने अचरज से पूछा. ‘‘हां, मेरे पति. उन का तबादला इसी शहर में हो गया है,’’ चेहरे पर बेहद खुशी लाते हुए बोली, ‘‘अब वे यहीं रहेंगे हमारे साथ. पूरा महीना लग गया तबादला कराने में. सुबह से रात तक भागदौड़ में बीत गया,
यहां तक कि सैर, स्कूल सभी को तिलांजलि देनी पड़ी,’’ कह कर वह चली गई. यह देखसुन कर मेरे शरीर का खून निचुड़ गया. स्वयं को संयत करता हुआ सोफे पर जा बैठा. आखिर इतनी तड़प क्यों हो गई थी मन में एक अनजान महिला के प्रति. क्यों इतनी उत्कंठा से टकटकी बांधे इंतजार करता रहा. यह अंतिम आशा भी निर्मूल सिद्ध हुई. क्या है यह सब, मैं पूरी ताकत से लगभग चीखते हुए मन ही मन बुदबुदाया. इतनी मुलाकातें… ढेरों बातें, लगता था वह प्रति पल करीब आती जा रही है. क्यों वह ऐसा करती रही? इतनी शिष्टता और आत्मीयता तो कोई अपने भी नहीं करते.
यदि ऐसे ही छिटक कर दूर होना था तो पास ही क्यों आई? ऐसा संबंध ही क्यों बनाया जिस के लिए मैं अपनी पत्नी से भी ठीक व्यवहार न कर सका तथा जिसे पाने की चाह पत्नी को भेजने की चाह से कहीं अधिक बलवती हो उठी थी? 2-4 बार की चंद मुलाकातों में क्याक्या सपने नहीं बुन डाले. परंतु मुझे लगा यह सब एकतरफा रास्ता था. उस ने कहीं, कुछ ऐसा नहीं किया जो अनैतिक हो, सिर्फ अनैतिकता मेरे विचारों और संवेदनाओं में थी, शायद संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने की. मैं रातभर विरोधाभास के समुद्र में डूबताउतराता रहा और अपने खोए हुए संबंधों को फिर स्थापित करने की दृढ़ इच्छा ने मुझे सवेरे की पहली बस से अपने परिवार के पास भिजवा दिया.
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लेखक-पंकज धवन
गजब का आकर्षण था उस अजनबी महिला के चेहरे पर. उस से हुई छोटी सी मुलाकात के बाद दोबारा मिलने की चाह उसे तड़पाने लगी थी. लेकिन यह एकतरफा चाह क्या मृगमरीचिका जैसी नहीं थी? बसस्टौप तक पहुंचतेपहुंचते मेरा सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. पैंट की जेब से रूमाल निकाल कर गरदन के पीछे आया पसीना पोंछा, फिर अपना ब्रीफकेस बैंच पर रख कर इधरउधर देखने लगा. ऊपर बस नंबर लिखे थे. मुझे किसी भी नंबर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
फिर भी अनमने भाव से कोई जानापहचाना सा नंबर ढूंढ़ने लगा, 26, 212, 50… पता नहीं कौन सी बस मेरे औफिस के आसपास उतार दे. तभी अचानक वहां आई एक महिला से कुछ पूछना चाहा. स्लीवलैस ब्लाउज और पीली प्रिंटेड साड़ी में लिपटी वह महिला बहुत ही तटस्थ भाव से काला चश्मा लगाए एक ओर खड़ी हो गई. महिला के सिवा और कोई था भी नहीं. सकुचाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘सैक्टर 40 के लिए यहां से कोई बस जाएगी क्या?’’ ‘‘827,’’ उस का संक्षिप्त सा उत्तर था. ‘‘क्या आप भी उस तरफ जा रही हैं?’’ मैं ने पूछा.
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हालांकि मुझे उस अनजान महिला से इस तरह कुछ पूछना तो नहीं चाहिए था परंतु देर तक कोई बस न आती दिखाई दी तो चुप्पी तोड़ने के लिए पूछ ही बैठा. ‘‘जी,’’ उस ने फिर संक्षिप्त उत्तर दिया. आधा घंटा और खड़े रहने के बाद भी कोई बस नहीं आई. 10 बजने वाले थे. देर से औफिस पहुंचूंगा तो कैसे चलेगा. एकदम सुनसान था बसस्टौप. ‘‘क्या सचमुच यहां से बसें जाती हैं?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा. हालांकि मैं ने कुछ उत्तर सुनने के लिए नहीं कहा था, मगर फिर भी उस महिला ने कहा, ‘‘आज शायद बस लेट हो गई हो.’’ बस का इंतजार करना मेरी मजबूरी बन चुका था. आसपास कहीं औटो या रिकशा होता तो शायद एक क्षण के लिए भी न सोचता. तभी वही बस पहले आई जिस का इंतजार था. मुझे 3 महीने हो गए थे इस छोटे से शहर में. बसस्टौप से थोड़ी ही दूर मेरा फ्लैट था.
स्कूटर अचानक स्टार्ट न होने के कारण आज पहली बार बस में जाना पड़ा. बसस्टौप पर भी पूछतेपूछते पहुंच पाया था. स्टेट बैंक की नौकरी में मेरा यह पहला अवसर ही था जब इस छोटे से शहर में, जो कसबा ज्यादा था, रहना पड़ा. बच्चों की पढ़ाई की मजबूरी न होती तो शायद उन्हें भी यहीं ले आता और पत्नी का बच्चों के साथ रहना तो तय ही था. बड़ी लड़की को 10वीं की परीक्षा देनी थी और शहरों की अपेक्षा यहां इतनी सुविधा भी नहीं थी. 2 कमरों का छोटा सा फ्लैट बैंक की तरफ से ही मिला हुआ था. पिछले मैनेजर की भी यही मजबूरी थी, उसे भी इस फ्लैट में 3 वर्ष तक इसी तरह रहना पड़ा था.
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चैक पास करतेकरते उस दिन अचानक कैबिन के दरवाजे की चरमराहट और खनखनाती सी आवाज ने सारा ध्यान तोड़ दिया, ‘‘लौकर के लिए मिलना चाहती हूं,’’ उस महिला ने कैबिन में घुसते ही कहा. मैं ने सिर उठा कर देखा तो देखता ही रह गया. बहुत ही शालीनता से बौबकट बालों को पीछे करती हुई, धूप का चश्मा माथे पर अटकाते हुए उस ने पूछा. ‘‘जी,’’ मैं ने कहा. कोई और होता तो ऊंचे स्वर में 1-2 बातें कर के अपने मैनेजर होने का एहसास जरूर कराता कि देखते नहीं, मैं काम कर रहा हूं. परंतु कुछ कहते न बना. मैं ने एक बार फिर भरपूर नजरों से उसे देखा और उसे सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. ‘‘लगता है, हम पहले भी मिल चुके हैं,’’ उस महिला का स्पष्ट सा स्वर था, पर स्वर में न कोई महिलासुलभ झिझक थी न ही घबराहट. ‘‘याद आया,’’ मैं ने नाटक सा करते हुए कहा, ‘‘शायद उस दिन बसस्टौप पर…’’ वह मुसकरा पड़ी. मैं फिर बोला, ‘‘अच्छा बताइए, मैं क्या कर सकता हूं आप के लिए?’’ मैं ने सीधेसीधे बिना समय गंवाए पूछा. ‘‘लौकर लेना चाहती हूं इस बैंक में, कोई उपलब्ध हो तो…?’’ ‘‘आप का खाता है क्या यहां?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी हां. पिछले 5 साल से हर बार लौकर के लिए प्रार्थनापत्र देती हूं, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ. एफडी करने को भी तैयार हूं…’’ ‘‘क्या करती हैं आप?’’ मैं ने पूछा. ‘‘टीचर हूं, यहीं पास के स्कूल में.’’ मुझे लगा, इसे टालना ठीक नहीं. मैं ने उसे एप्लीकेशन फौर्म के साथ कुछ आवश्यक पेपर पूरे कर के कल लाने को कहा. उस असाधारण सी दिखने वाली महिला ने अपने साधारण स्वभाव से ऐसी अमिट छाप छोड़ दी कि मैं प्रभावित हुए बिना न रह सका. इस छोटी सी पहली मुलाकात से हम दोनों चिरपरिचित की तरह विदा हुए. कितने ही लोग आतेजाते मिलते रहते थे, परंतु इस महिला के आगे सब रंग ऐसे फीके पड़ गए कि मानसपटल पर किसी भी काल्पनिक स्वप्नसुंदरी की छवि भी शायद धूमिल पड़ जाए. दूसरे दिन ही मैं ने उसे लौकर उपलब्ध कराने की जैसे ठान ही ली और सारी औपचारिकताएं पूरी कर लीं. 11 बजे के बाद तो लगातार टकटकी बांधे बेसब्री से निगाहें दरवाजे पर अटकी रहीं. पौने 2 बजे उस के बैंक में आने से ही अटकी निगाहों को थोड़ी राहत मिली.
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चेहरे के सभी भावों को छिपा कर दूसरे कामों में अनमने भाव से लगा रहा, परंतु तिरछी निगाहें मेरी अपनी कैबिन की चरमराहट पर ही थीं. ‘‘नमस्ते,’’ हर बार की तरह संक्षिप्त शब्दों में उस ने मुसकरा कर कहा और कागजात देती हुई बोली, ‘‘ये लीजिए सारे पेपर्स, राशनकार्ड, फोटो और जो आप ने मंगवाए थे.’’ ‘‘बैठिए, प्लीज,’’ उस के हाथ से पेपर्स ले कर मैं ने पूछा, ‘‘कुछ लेंगी आप?’’ ‘‘नो, थैंक्यू. बच्चे स्कूल से घर आने वाले हैं, स्कूल में ही थोड़ा लेट हो गई थी. पहले सोचा कि कल आऊंगी. फिर लगा, न जाने आप क्या सोचेंगे.’’ थोड़ीबहुत खानापूर्ति कर उसे लौकर दिलवा दिया और अपना ताला लौकर में लगाने को कहा, जैसा कि नियम था. मुसकरा कर वह आभार प्रकट करती चली गई. एक सवेरे जौगिंग करते हुए मैं पार्क में पहुंचा तो वह लंबे कदमों से चक्कर लगाने में लीन थी.
मुझे देख कर एक क्षण के लिए रुकी भी, शायद पहचानने का प्रयत्न कर रही हो, पर शुरुआत मैं ने ही की, बोला, ‘‘मेरा नाम…’’ ‘‘जानती हूं,’’ मेरी बात काटती हुई हाथ जोड़ कर बहुत ही शिष्ट व्यवहार से वह बोली, ‘‘आप को भला मैं कैसे भूल सकती हूं. 5 साल से जो नहीं हो पाया वह 2 ही दिन में आप ने कर दिया.’’ उस के पहने हुए नीले रंग के ट्रैक सूट और महंगे जूते उस की पसंद और छवि को दोगुना कर रहे थे. इस शहर में तो इन वस्तुओं का उपलब्ध होना संभव नहीं था, परंतु इन सब के बावजूद बिना किसी मेकअप के उस के चेहरे में गजब की कशिश थी. कोई भी साहित्यकार मेरी आंखों से देखता तो शायद तारीफ में इतिहास रच डालता. ‘‘यहां कैसे, आप? कहीं पास ही में रहती हैं क्या?’’ मैं ने पूछा. ‘‘जी, सामने वाली सोसाइटी में. घूमतेघूमते इधर निकल आई. रविवार था. कहीं जाने की जल्दी तो थी नहीं.
एक ही पार्क है यहां.’’ बातोंबातों में ही उस ने बताया कि 2 छोटे बेटे हैं, पति आर्मी में मेजर हैं और दूसरी जगह पोस्टेड हैं. छुट्टियों में आते रहते हैं. समय बिताने के लिए उस ने यह सब शौक रखे हैं, वरना नीरस से जीवन में क्या रखा है. न जाने क्यों, पहले दिन से ही उस के प्रति आकर्षण था और उस का प्रत्येक हावभाव मेरे दिमाग पर अजीब सी मीठी कसक छोड़ता रहा. मुझे उस से मिलने का नशा सा हो गया. रविवार का मैं बहुत ही बेसब्री से इंतजार करता रहता और वह भी पार्क में आती रही. हम दोनों पार्क के 2 चक्कर तेजी से लगाते, फिर तीसरी बार में इधरउधर की बातें करते रहते. मैं बैंक की बताता तो वह अपने स्कूल के शरारती बच्चों के बारे में. उस का इस तरह नियमित समय से आना लगभग तय था. चेहरे की मुसकराहट तथा भाव से उस का भी मेरे प्रति झुकना कोई असामान्य नहीं लगा. एक दिन अपना उम्र प्रमाणपत्र सत्यापित कराने बैंक में आई तो उस में लिखी उम्र देख कर मैं हैरान रह गया.
‘‘1964 का जन्म है आप का, लगता नहीं कि आप 38 की होंगी,’’ मैं ने कहा तो वह मुसकरा कर रह गई. ‘‘क्यों?’’ वह सकुचाती सी बोली, ‘‘क्या लगता था आप को?’’ शायद हर नारी की तरह वह भी 20-22 ही सुनना चाहती हो. मैं बोला, ‘‘कुछ भी लगता हो, परंतु आप 38 की नहीं लगतीं.’’ उस के चेहरे की लालिमा मुझ से छिपी नहीं रही. इस लालिमा को देखने के लिए ही तो मैं लालायित था. ‘‘शायद इसीलिए ही लड़कियां अपनी उम्र बताना पसंद नहीं करतीं,’’ मैं बोला. महिला के स्थान पर लड़की शब्द का प्रयोग पता नहीं मैं किस बहाव में कर गया, परंतु उसे अच्छा ही लगा होगा. मैं ने फिर दोहराया, ‘‘परंतु कुछ भी कहिए, मिसेज शर्मा, आप 38 की लगती नहीं हैं,’’ मेरे द्वारा चुटकी लेते हुए कही गई इस बात से उस के सुर्ख चेहरे पर गहराती लालिमा देखते ही बनती थी. ‘‘आप मर्दों को तो छेड़ने का बहाना चाहिए,’’ उस ने सहज लेते हुए दार्शनिक अंदाज में मुसकराते हुए कहा. मुझे लगा वह बुरा मान गई है,
इसलिए मैं ने कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, यदि अनजाने में कही यह बात आप को अच्छी न लगी हो.’’ ‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. आप को जो ठीक लगा, आप ने कह दिया. मेरे सामने कह कर स्पष्टवादिता का परिचय दिया, पर पीछे से कहते तो मैं क्या कह सकती थी,’’ वह बोली. इतनी गंभीर बात को सहज ढंग से निबटाना सचमुच प्रशंसनीय था. यह सिलसिला जो पार्क से प्रारंभ हुआ था, पार्क में ही समाप्त होता नजर आने लगा, क्योंकि यह क्रम उस दिन के बाद आगे नहीं चल सका. मुझे लगा वह मेरी उस बात का बुरा मान गईर् होगी. अब हर सवेरे मैं उस पार्क में जा कर एक चक्कर लगाता, 1-2 एक्सरसाइज करता और देर तक इधरउधर शरीर हिला कर व्यायाम का नाटक करता. बैंक में कैबिन के बाहर ही गतिविधियों पर पैनी नजरें गड़ाए रहता, परंतु उस से फिर पूरे 2 सप्ताह न बैंक में मुलाकात हो सकी न पार्क में. शाम होती तो सुबह का इंतजार रहता और सैर के बाद तो बैंक में आने का इंतजार.
3 दिन लगातार बसस्टौप पर भी जाता रहा. मेरे मन की स्थिति एकदम पपीहा जैसी हो गई जो सिर्फ बरसात का इंतजार करता रहता है. उस का पता ले कर एक दिन उस के घर जाने का मन भी बनाया पर लगा, यह ठीक नहीं रहेगा. वह स्वयं क्या सोचेगी, उस के बच्चों को क्या कहूंगा. वह क्या कह कर मेरा परिचय कराएगी और कोशिशों के बावजूद नहीं जा पाया. बैंक में उस के पते के साथ फोन नंबर न होने का आज सचमुच मुझे बहुत ही क्षोभ हुआ. कम से कम फोन तो इस मानसिक अंतर्द्वंद्व को कम करता. चपरासी के हाथ अकाउंट स्टेटमैंट के बहाने उस को बैंक में आने का संदेशा भिजवाया. रविवार की इस सुबह ने मुझे बेहद मायूस किया. इस पूरे आवास काल में पहला रविवार था कि घूमने का मन ही नहीं बन सका. दरवाजे पर अचानक बजी घंटी ने दिल के सारे तार झंकृत कर दिए. इतनी सुबह तो कोई नहीं आता. हो न हो मिसेज शर्मा ही होंगी. लगता है कल चपरासी ठीक समय से पहुंच गया होगा,
यही सोचता मैं जल्दी से स्वयं को ठीक कर के जब तक दूसरी बार घंटी बजती, दरवाजे पर पहुंच गया. सामने अपनी पत्नी को पा कर सारा नशा काफूर हो गया. मेरा चेहरा उतर गया. ‘‘क्यों, हैरान हो गए न,’’ वह हांफते हुए बोली, ‘‘बहुत ही मुश्किल से मकान मिला है,’’ वह अपना सूटकेस भीतर रखते हुए बोली. ‘‘अरे, बताया तो होता, कोई फोन, चिट्ठी…’’ मैं ने कहा. ‘‘सोचा, आप को सरप्राइज दूंगी, जनाब क्या करते रहते हैं इस शहर में. अचानक बच्चों की छुट्टियां हुईं तो उन्हें मायके छोड़ सीधी चली आई. बताने का मौका कहां मिला.’’ मेरा मन उस के आने के इस स्वागत के लिए तैयार तो नहीं था परंतु चेहरे के भावों में संयतता बरतते हुए मुझे सामान्य होना ही पड़ा. फिर भी इस स्थिति को पचाते शाम हो ही गई. पत्नी के 3 दिन के इस आवासकाल में मैं ने हरसंभव प्रयास किया कि नपीतुली बातें की जाएं.
जब भी बाहर घूमने के लिए वह कहती तो सिरदर्द का बहाना बना कर टाल जाता. बाहर खाने के नाम पर उस के हाथ का खाना खाने की जिद करता. मुझे भय सा व्याप्त हो चुका था कि कहीं उस के साथ मिसेज शर्मा मिल गईं तो क्या करूंगा. क्या कह कर हमारा परिचय होगा. मेरे मन में अजीब सी शंका ने घर कर रखा था. मेरी पत्नी उस के स्वभाव, रूप को देख कर क्या सोचेगी. इसी भय के कारण मैं ने 3 दिन की छुट्टी ले ली थी. मन का भूत साए की तरह पीछे लगा रहा और यह तब तक सताता रहा जब तक मैं ने अपनी पत्नी को जाते वक्त बस में न बिठा दिया. क्या अच्छा है, क्या बुरा है, यह समझना भी नहीं चाहता था. अगली शाम मन का एकाकीपन दूर करने के लिए मैं टीवी देखता चाय की चुसकियां ले ही रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने मिसेज शर्मा को पाया.
दिल धक से रह गया. इच्छा के अनुकूल चिरपरिचिता को सामने पा कर सभी शब्दों और भावों पर विराम सा लग गया. बहुत ही कठिनाई से पूछा, ‘‘आप…’’ उस के हाथ में रजनीगंधा के फूलों का बना सुंदर सा बुके था. काफी समय बाद उसे देखा था. ‘‘जी,’’ वह भीतर आते हुए बोली, ‘‘कल बैंक गई तो पता चला आप कई दिनों से छुट्टी पर हैं. सोचा, आप से मिलती चलूं,’’ यह कह शालीनता का परिचय देते हुए उस ने मेरे हाथों में बुके पकड़ा दिया. ‘‘वह…क्या है कि…’’ मुझ से कहते न बना, ‘‘आप को मेरा पता कैसे मिला?’’ मैं ने हकलाते हुए बहुत बेहूदा सा प्रश्न पूछा, जिस का उत्तर भी मैं जानता था, ‘‘आइए, मैं ने उस पर भरपूर नजर डालते हुए आगे कहा, ‘‘बैठिए न. कुछ पिएंगी, चाय बनाता हूं. चलिए, थोड़ीथोड़ी पीते हैं.’’ ‘‘नहीं, बस, नीचे मेजर साहब गाड़ी में मेरा इंतजार कर रहे हैं.’’ ‘‘मेजर साहब…’’ मैं ने अचरज से पूछा. ‘‘हां, मेरे पति. उन का तबादला इसी शहर में हो गया है,’’ चेहरे पर बेहद खुशी लाते हुए बोली, ‘‘अब वे यहीं रहेंगे हमारे साथ. पूरा महीना लग गया तबादला कराने में. सुबह से रात तक भागदौड़ में बीत गया,
यहां तक कि सैर, स्कूल सभी को तिलांजलि देनी पड़ी,’’ कह कर वह चली गई. यह देखसुन कर मेरे शरीर का खून निचुड़ गया. स्वयं को संयत करता हुआ सोफे पर जा बैठा. आखिर इतनी तड़प क्यों हो गई थी मन में एक अनजान महिला के प्रति. क्यों इतनी उत्कंठा से टकटकी बांधे इंतजार करता रहा. यह अंतिम आशा भी निर्मूल सिद्ध हुई. क्या है यह सब, मैं पूरी ताकत से लगभग चीखते हुए मन ही मन बुदबुदाया. इतनी मुलाकातें… ढेरों बातें, लगता था वह प्रति पल करीब आती जा रही है. क्यों वह ऐसा करती रही? इतनी शिष्टता और आत्मीयता तो कोई अपने भी नहीं करते.
यदि ऐसे ही छिटक कर दूर होना था तो पास ही क्यों आई? ऐसा संबंध ही क्यों बनाया जिस के लिए मैं अपनी पत्नी से भी ठीक व्यवहार न कर सका तथा जिसे पाने की चाह पत्नी को भेजने की चाह से कहीं अधिक बलवती हो उठी थी? 2-4 बार की चंद मुलाकातों में क्याक्या सपने नहीं बुन डाले. परंतु मुझे लगा यह सब एकतरफा रास्ता था. उस ने कहीं, कुछ ऐसा नहीं किया जो अनैतिक हो, सिर्फ अनैतिकता मेरे विचारों और संवेदनाओं में थी, शायद संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने की. मैं रातभर विरोधाभास के समुद्र में डूबताउतराता रहा और अपने खोए हुए संबंधों को फिर स्थापित करने की दृढ़ इच्छा ने मुझे सवेरे की पहली बस से अपने परिवार के पास भिजवा दिया.
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चंडीगढ़, 28 अक्तूबर (ट्रिन्यू) हरियाणा विधानसभा सचिवालय ने नौकरी दिलाने के नाम पर ...
MPHC Recruitment 2021: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में विभिन्न पदों पर नौकरी का सुनहरा मौका, जानें कब ...
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MPHC Recruitment 2021:मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से ग्रुप डी पदों पर भर्ती के लिए बंपर ...
नौकरी करने वालों को सरकार ने दिया दिवाली गिफ्ट, 6 करोड़ लोगों के पीएफ खाते में सीधे ट्रांसफर होगी ...
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PF Latest News: दिवाली से पहले केंद्र सरकार ने नौकरी करने वालों को दिवाली गिफ्ट दिया है.
Kashmiri महिला सरकारी नौकरी से बर्खास्त, T-20 में PAK की जीत का मनाया था जश्न - AajTak
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वहीं, कश्मीर में एक महिला को भी सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है. देखें.
हुनर : आरती को किसका साथ मिला था
लेखिका-डा. उर्मिला सिन्हा
हाथों में ब्रश पकड़ आरती अपने हुनर को निखारने में लगी थी जबकि उस की बड़ीछोटी बहनें बिगाड़ने में. पर मां ही थीं, जो उसे सम?ातीं तो वह फिर से बनाती. शादी के बाद पति का साथ मिला तो उस को इसी हुनर से नई पहचान मिली. क्या वह बड़ीछोटी बहनों द्वारा की गई शरारतों को भूल पाई… आरती ने पलट कर अपनी बड़ीछोटी बहनों की ओर देखा. किसी बात पर दोनों खिलखिला उठी थीं. बेमौसम बरसात की तरह यों उन का ठहाका लगाना आरती को भीतर तक छेद गया. ‘सोच क्या रही है, तू भी सुन ले हमारी योजना और इस में शामिल हो जा,’ बड़ी फुसफुसाई. ‘कैसी योजना?’
‘है कुछ,’ छोटी फुसफुसाई. आरती की निगाहें बरबस ओसारे पर बिछी तख्त पर जा टिकीं. दुग्धधवल चादर बिछी हुई है. उसे भ्रम हुआ जैसे अम्मा उस पर बैठी उसे बुला रही हैं, ‘आ बिटिया, बैठ मेरे पास.’ ‘क्या है अम्मा?’ ‘तू इतनी गुमसुम क्यों रहती है री, देख तो तेरी बड़ीछोटी बहनें कैसे सारा दिन चहकती रहती हैं.’ आरती हौले से मुसकरा दी. फिर तो अम्मा ऊंचनीच सम?ातीं और वह ‘हां…हूं’ में जवाब देती जाती. बड़ी बहन बाबूजी की लाड़ली थी, तो छोटी अम्मा की. आरती का व्यक्तित्व उन दोनों बहनों की शोखी तले दब सा गया था. वह चाह कर भी बड़ीछोटी की तरह न तो इठला पाती थी, न अपनी उचितअनुचित फरमाइशों से घर वालों को परेशान कर सकती थी. वह अपने मनोभावों को चित्रों द्वारा प्रकट करने लगी. हाथों में तूलिका पकड़ वह अपने चित्रों के संसार में खो जाती जहां न अम्मा का लाड़, न बाबूजी का संरक्षण, न बहनों का बेतुका प्रदर्शन और न ही भाई की जल्दबाजी.
ये भी पढ़ें- तेरी मेरी जिंदगी: क्या था रामस्वरूप और रूपा का संबंध?
रंगोंलकीरों में उस का पूरा संसार सन्निहित था. जो मिल जाता, पहन लेती, चौके में जो पकता, खा लेती. न तो कभी ठेले के पास खड़े हो कर किसी ने उसे चाट खाते देखा और न वह कभी छिपछिप कर सहेलियों के संग सिनेमा देखने गई. बड़ीछोटी बेटियों की ऊंटपटांग हरकतों से अम्मा ?ाल्ला पड़तीं, ‘आखिर आरती भी हमारी ही बेटी है. हमें जरा सा भी परेशान नहीं करती और तुम दोनों जब देखो, कोई न कोई उत्पात मचाती रहती हो.’ ‘भोंदू है आरती, सिर्फ लकीरें खींच कर कोई काबिल नहीं बनता,’ बड़ी अपमान से तिलमिला उठती. ‘अम्मा, तुम भी किस का उदाहरण दे कर हमें छोटा बताती हो, उस घरघुस्सी का,’ छोटी भला कब पीछे रहने वाली थी. ‘वह भोंदू, मूर्ख है और तुम लोग…’ अम्मा देर तक भुनभुनाती रहतीं, जिस का परिणाम आरती को भुगतना पड़ता.
पता नहीं, कब बड़ीछोटी आंखों से इशारा करतीं, एकदूसरे के कानों में कुछ फुसकतीं और दूसरे दिन आरती के चित्रों का सत्यानाश हो गया होता. फटे कागज के बिखरे टुकड़े, लुढ़का रंगों का प्याला… ब्रश की ऐसी हालत कर दी गई होती कि वह दोबारा किसी काम का न रहे. बिलखती आरती अम्मा से फरियाद करती, ‘अम्मा, अम्मा, देखो मेरी पेंटिंग की हालत… मैं ने कितनी मेहनत से बनाई थी.’ ‘फिर से बना लेना. हाथ का हुनर भला कौन छीन सकता है,’ अम्मा आरती को दिलासा दे कर अपनी बड़ीछोटी बेटियों पर बरस पड़तीं, ‘यह कौन सा बहादुरी का काम किया तुम लोगों ने आरती को दुख पहुंचा कर.’ अम्मा देर तक भुनभुनाती रहतीं और बड़ीछोटी बेहयाई से कंधे उचकाती आरती को परेशान करने के लिए नई खोज में डूब जातीं. वहीं, वे दोनों आज आरती को किस योजना में शामिल होने का न्योता दे रही हैं,
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इसे आरती का निश्चल हृदय खूब सम?ाता है. अम्मा की तेरहवीं हुए अभी 2 दिन भी नहीं बीते, नातेरिश्तेदार एकएक कर चले गए. सिर्फ बच गए हैं हम पांचों भाईबहन. ‘‘भाभी, मैं कल जाऊंगी,’’ आरती ने रोटी खाते हुए कहा. ‘‘दोचार दिन और रुक जातीं.’’ ‘‘नहीं भाभी, वहां बच्चे अकेले हैं. आनाजाना लगा ही रहेगा.’’ जिस घर में उस का जन्म हुआ, पलीबढ़ी, जवान हुई, सपनों ने उड़ान भरी, वहां से निकल जाना ही उचित है. पता नहीं, बहनें कौन से कुचक्र में भागीदार बनने पर मजबूर करें. वह थकीहारी अपने आशियाने लौटी, तो पति सुदर्शन और दोनों प्यारे बच्चे उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. ‘‘सब कुशलमंगल तो है न. नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. मैं ने डिनर तैयार कर लिया है.’’ पति का स्नेह, बच्चों का ‘मम्मा, मम्मा’ करते लिपटना…
वह सारी कड़वाहटें भूल गई. ‘‘यह तुम्हारे लिए…’’ ‘‘क्या है लिफाफे में…’’ ‘‘स्वतंत्रता दिवस पर बनाई गई तुम्हारी पेंटिंग, पोस्टर को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है. बुलाहट है दिल्ली के लालकिले पर पुरस्कार के लिए, उसी का निमंत्रणपत्र है.’’ ‘‘मम्मा, हम भी चलेंगे लालकिला देखने,’’ बच्चे मचल उठे. ‘‘अरे, हम सभी चलेंगे. चलने की तैयारी करो,’’ पति के उल्लासमय आह्वान पर आरती का दुखी हृदय खुशियों से भर उठा. जिस हुनर को मायके में हंसी का पात्र बनाया गया, वही पुरुषार्थी पति का सहयोग पा कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान बना रहा है. ‘मां, यह तुम्हारा प्यार है शायद जिस ने मु?ो कभी भी कमजोर पड़ने न दिया, अपने मार्ग से भटका न सका और जिस की वजह से मेरा जनून मेरी ताकत बना…’ मन ही मन सोचती आरती का भावुक होना स्वाभाविक था. आरती का मन पाखी पुरानी यादों में खो गया
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… खामोश, काम से काम रखने वाली आरती को अपने सहकर्मी के विनम्र, सुल?ो हुए साहसी स्वभाव ने आकर्षित कर लिया. अनाथ यश का प्रस्ताव, ‘मु?ा से विवाह करोगी?’ ‘मां से बात करनी पड़ेगी,’ कहती हुई आरती ने नजरें ?ाका लीं. उस ने डरतेडरते मां से बात की, ‘मां, यश आप से मिलना चाहता है. मेरा सहकर्मी है.’ ‘किसलिए,’ अनुभवी मां की आंखें चौड़ी हो गईं. यश की सज्जनता को देख परिवार प्रभावित हुआ, किंतु विजातीय विवाह की अनुमति नहीं, ‘लोग क्या कहेंगे…’ बहनों ने घर सिर पर उठा लिया, ‘विवाह में खर्च कौन करेगा…’ इस बार आरती ने दिल से काम लिया. कोर्ट में विवाह कर दूल्हे के संग मां का आशीर्वाद लेने पहुंची. तब सब ने मुंह मोड़ लिया किंतु मां के मुख से निकला, ‘सदा सुहागन रहो.’ बचपन से ही आरती को पेंटिंग, कढ़ाईसिलाई के अलावा रचनात्मक कार्यों में अभिरुचि थी. पति का साथ पा कर उस ने अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू किया.
उस की खूबसूरत डिजाइन के परिधानों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया. मांग बढ़ने लगी. इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी. ससुराल में कोई था नहीं और मायके से कोई उम्मीद नहीं. इधर, बुटीक का काम चल निकला. नौकरी पहले ही छोड़ चुकी थी वह. अब पति ने भी अपना पूरा समय बुटीक को देना शुरू कर दिया. एक कमरे के व्यवसाय से प्रारंभ बुटीक का कारोबार आज शहर के बीच में है. आज उस की आमदनी हजारों में है. 4 कारीगर रखे हुए हैं. जब भी मां की याद आती, आरती उन से मिल आती, रुपएपैसे से उन की मदद करती. मां को अपने पास ला कर सेवासुश्रुषा करती.
मां के दिल से यही दुआ निकलती, ‘तुम्हें दुनियाजहान की सारी खुशियां मिलें.’ उसे भाईभाभी से कोई शिकायत नहीं थी किंतु बहनों को अपनी कामयाबी की भनक तक नहीं लगने दी. आरती को उन के खुराफाती दिमाग और कुटिल चालों की छाया तक अपने संसार पर गवारा नहीं थी. उसी धैर्य और हुनर का परिणाम है कि आज उसे पुरस्कृत किया जा रहा है… उस ने मन ही मन मृत मां को धन्यवाद दिया. सुखसंतोष से वह पुलकित हो उठी.
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लेखिका-डा. उर्मिला सिन्हा
हाथों में ब्रश पकड़ आरती अपने हुनर को निखारने में लगी थी जबकि उस की बड़ीछोटी बहनें बिगाड़ने में. पर मां ही थीं, जो उसे सम?ातीं तो वह फिर से बनाती. शादी के बाद पति का साथ मिला तो उस को इसी हुनर से नई पहचान मिली. क्या वह बड़ीछोटी बहनों द्वारा की गई शरारतों को भूल पाई… आरती ने पलट कर अपनी बड़ीछोटी बहनों की ओर देखा. किसी बात पर दोनों खिलखिला उठी थीं. बेमौसम बरसात की तरह यों उन का ठहाका लगाना आरती को भीतर तक छेद गया. ‘सोच क्या रही है, तू भी सुन ले हमारी योजना और इस में शामिल हो जा,’ बड़ी फुसफुसाई. ‘कैसी योजना?’
‘है कुछ,’ छोटी फुसफुसाई. आरती की निगाहें बरबस ओसारे पर बिछी तख्त पर जा टिकीं. दुग्धधवल चादर बिछी हुई है. उसे भ्रम हुआ जैसे अम्मा उस पर बैठी उसे बुला रही हैं, ‘आ बिटिया, बैठ मेरे पास.’ ‘क्या है अम्मा?’ ‘तू इतनी गुमसुम क्यों रहती है री, देख तो तेरी बड़ीछोटी बहनें कैसे सारा दिन चहकती रहती हैं.’ आरती हौले से मुसकरा दी. फिर तो अम्मा ऊंचनीच सम?ातीं और वह ‘हां…हूं’ में जवाब देती जाती. बड़ी बहन बाबूजी की लाड़ली थी, तो छोटी अम्मा की. आरती का व्यक्तित्व उन दोनों बहनों की शोखी तले दब सा गया था. वह चाह कर भी बड़ीछोटी की तरह न तो इठला पाती थी, न अपनी उचितअनुचित फरमाइशों से घर वालों को परेशान कर सकती थी. वह अपने मनोभावों को चित्रों द्वारा प्रकट करने लगी. हाथों में तूलिका पकड़ वह अपने चित्रों के संसार में खो जाती जहां न अम्मा का लाड़, न बाबूजी का संरक्षण, न बहनों का बेतुका प्रदर्शन और न ही भाई की जल्दबाजी.
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रंगोंलकीरों में उस का पूरा संसार सन्निहित था. जो मिल जाता, पहन लेती, चौके में जो पकता, खा लेती. न तो कभी ठेले के पास खड़े हो कर किसी ने उसे चाट खाते देखा और न वह कभी छिपछिप कर सहेलियों के संग सिनेमा देखने गई. बड़ीछोटी बेटियों की ऊंटपटांग हरकतों से अम्मा ?ाल्ला पड़तीं, ‘आखिर आरती भी हमारी ही बेटी है. हमें जरा सा भी परेशान नहीं करती और तुम दोनों जब देखो, कोई न कोई उत्पात मचाती रहती हो.’ ‘भोंदू है आरती, सिर्फ लकीरें खींच कर कोई काबिल नहीं बनता,’ बड़ी अपमान से तिलमिला उठती. ‘अम्मा, तुम भी किस का उदाहरण दे कर हमें छोटा बताती हो, उस घरघुस्सी का,’ छोटी भला कब पीछे रहने वाली थी. ‘वह भोंदू, मूर्ख है और तुम लोग…’ अम्मा देर तक भुनभुनाती रहतीं, जिस का परिणाम आरती को भुगतना पड़ता.
पता नहीं, कब बड़ीछोटी आंखों से इशारा करतीं, एकदूसरे के कानों में कुछ फुसकतीं और दूसरे दिन आरती के चित्रों का सत्यानाश हो गया होता. फटे कागज के बिखरे टुकड़े, लुढ़का रंगों का प्याला… ब्रश की ऐसी हालत कर दी गई होती कि वह दोबारा किसी काम का न रहे. बिलखती आरती अम्मा से फरियाद करती, ‘अम्मा, अम्मा, देखो मेरी पेंटिंग की हालत… मैं ने कितनी मेहनत से बनाई थी.’ ‘फिर से बना लेना. हाथ का हुनर भला कौन छीन सकता है,’ अम्मा आरती को दिलासा दे कर अपनी बड़ीछोटी बेटियों पर बरस पड़तीं, ‘यह कौन सा बहादुरी का काम किया तुम लोगों ने आरती को दुख पहुंचा कर.’ अम्मा देर तक भुनभुनाती रहतीं और बड़ीछोटी बेहयाई से कंधे उचकाती आरती को परेशान करने के लिए नई खोज में डूब जातीं. वहीं, वे दोनों आज आरती को किस योजना में शामिल होने का न्योता दे रही हैं,
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इसे आरती का निश्चल हृदय खूब सम?ाता है. अम्मा की तेरहवीं हुए अभी 2 दिन भी नहीं बीते, नातेरिश्तेदार एकएक कर चले गए. सिर्फ बच गए हैं हम पांचों भाईबहन. ‘‘भाभी, मैं कल जाऊंगी,’’ आरती ने रोटी खाते हुए कहा. ‘‘दोचार दिन और रुक जातीं.’’ ‘‘नहीं भाभी, वहां बच्चे अकेले हैं. आनाजाना लगा ही रहेगा.’’ जिस घर में उस का जन्म हुआ, पलीबढ़ी, जवान हुई, सपनों ने उड़ान भरी, वहां से निकल जाना ही उचित है. पता नहीं, बहनें कौन से कुचक्र में भागीदार बनने पर मजबूर करें. वह थकीहारी अपने आशियाने लौटी, तो पति सुदर्शन और दोनों प्यारे बच्चे उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. ‘‘सब कुशलमंगल तो है न. नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. मैं ने डिनर तैयार कर लिया है.’’ पति का स्नेह, बच्चों का ‘मम्मा, मम्मा’ करते लिपटना…
वह सारी कड़वाहटें भूल गई. ‘‘यह तुम्हारे लिए…’’ ‘‘क्या है लिफाफे में…’’ ‘‘स्वतंत्रता दिवस पर बनाई गई तुम्हारी पेंटिंग, पोस्टर को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है. बुलाहट है दिल्ली के लालकिले पर पुरस्कार के लिए, उसी का निमंत्रणपत्र है.’’ ‘‘मम्मा, हम भी चलेंगे लालकिला देखने,’’ बच्चे मचल उठे. ‘‘अरे, हम सभी चलेंगे. चलने की तैयारी करो,’’ पति के उल्लासमय आह्वान पर आरती का दुखी हृदय खुशियों से भर उठा. जिस हुनर को मायके में हंसी का पात्र बनाया गया, वही पुरुषार्थी पति का सहयोग पा कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान बना रहा है. ‘मां, यह तुम्हारा प्यार है शायद जिस ने मु?ो कभी भी कमजोर पड़ने न दिया, अपने मार्ग से भटका न सका और जिस की वजह से मेरा जनून मेरी ताकत बना…’ मन ही मन सोचती आरती का भावुक होना स्वाभाविक था. आरती का मन पाखी पुरानी यादों में खो गया
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… खामोश, काम से काम रखने वाली आरती को अपने सहकर्मी के विनम्र, सुल?ो हुए साहसी स्वभाव ने आकर्षित कर लिया. अनाथ यश का प्रस्ताव, ‘मु?ा से विवाह करोगी?’ ‘मां से बात करनी पड़ेगी,’ कहती हुई आरती ने नजरें ?ाका लीं. उस ने डरतेडरते मां से बात की, ‘मां, यश आप से मिलना चाहता है. मेरा सहकर्मी है.’ ‘किसलिए,’ अनुभवी मां की आंखें चौड़ी हो गईं. यश की सज्जनता को देख परिवार प्रभावित हुआ, किंतु विजातीय विवाह की अनुमति नहीं, ‘लोग क्या कहेंगे…’ बहनों ने घर सिर पर उठा लिया, ‘विवाह में खर्च कौन करेगा…’ इस बार आरती ने दिल से काम लिया. कोर्ट में विवाह कर दूल्हे के संग मां का आशीर्वाद लेने पहुंची. तब सब ने मुंह मोड़ लिया किंतु मां के मुख से निकला, ‘सदा सुहागन रहो.’ बचपन से ही आरती को पेंटिंग, कढ़ाईसिलाई के अलावा रचनात्मक कार्यों में अभिरुचि थी. पति का साथ पा कर उस ने अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू किया.
उस की खूबसूरत डिजाइन के परिधानों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया. मांग बढ़ने लगी. इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी. ससुराल में कोई था नहीं और मायके से कोई उम्मीद नहीं. इधर, बुटीक का काम चल निकला. नौकरी पहले ही छोड़ चुकी थी वह. अब पति ने भी अपना पूरा समय बुटीक को देना शुरू कर दिया. एक कमरे के व्यवसाय से प्रारंभ बुटीक का कारोबार आज शहर के बीच में है. आज उस की आमदनी हजारों में है. 4 कारीगर रखे हुए हैं. जब भी मां की याद आती, आरती उन से मिल आती, रुपएपैसे से उन की मदद करती. मां को अपने पास ला कर सेवासुश्रुषा करती.
मां के दिल से यही दुआ निकलती, ‘तुम्हें दुनियाजहान की सारी खुशियां मिलें.’ उसे भाईभाभी से कोई शिकायत नहीं थी किंतु बहनों को अपनी कामयाबी की भनक तक नहीं लगने दी. आरती को उन के खुराफाती दिमाग और कुटिल चालों की छाया तक अपने संसार पर गवारा नहीं थी. उसी धैर्य और हुनर का परिणाम है कि आज उसे पुरस्कृत किया जा रहा है… उस ने मन ही मन मृत मां को धन्यवाद दिया. सुखसंतोष से वह पुलकित हो उठी.
The post हुनर : आरती को किसका साथ मिला था appeared first on Sarita Magazine.
October 29, 2021 at 10:00AMहत्या बनाम आत्महत्या
लेखक-डा. आर एस खरे
इंस्पैक्टर का फोन सुनते ही उस के चेहरे की रंगत फीकी पड़ गई. दिल जोरजोर से धड़कने लगा और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. सुबह 11बजे उसे लोकायुक्त में बुलाया गया था. इंस्पैक्टर ने लोकेशन भी समझा दी थी- ‘जिला न्यायालय के ठीक अपोजिट वाली नई बिल्डिंग में लोकायुक्त कार्यालय है.’
वह जिला न्यायालय के सामने से सैकड़ों बार गुजरा था पर उस का ध्यान कभी लोकायुक्त कार्यालय पर नहीं गया था. 11बजने के कुछ मिनट पहले ही वह उस नई बिल्डिंग के सामने खड़ा था. बिल्डिंग के ऊपर एक बोर्ड लगा था- ‘आर्थिक अपराध अनुसंधान कार्यालय‘. उस ने बिल्डिंग से निकल रहे खाकी वरदीधारी से पूछा, “लोकायुक्त का दफ्तर कहां है?”
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सिपाही ने बताया कि वह इसी बिल्डिंग के गेट नंबर 2 पर जाए. पीछे की ओर जाने पर गेट नंबर 2 के ऊपर दूर से ही ‘लोकायुक्त कार्यालय‘ का बोर्ड दिखाई दे गया. लिफ्ट के पास जा कर वह रुका. इंस्पैक्टर ने कहा था कि उसे थर्डफ्लोर पर आना है. जब काफी देर तक लिफ्ट में कोई हलचल न हुई, तो उस का ध्यान लिफ्ट के प्रवेशद्वार के ऊपर चस्पां कागज के टुकड़े पर गया, जिस पर किसी ने पेन से लिख दिया था- ‘लिफ्ट बंद है.’
हाई ब्लडप्रैशर का मरीज होने के कारण सीढ़ियां चढ़ते हुए उस की सांस फूलने लगी. रेलिंग के सहारे चढ़ता हुआ वह तीसरी मंजिल पर पहुंचा. गेट पर खड़े गार्ड ने रजिस्टर में उस से प्रविष्टियां कराईं- नाम, पता, मोबाइल नंबर तथा किस से मिलना है.‘
उस ने गार्ड से पूछा, “इंस्पैक्टर अशोक यादव कहां बैठते हैं?” गार्ड ने उसे हाथ के इशारे से मार्गदर्शन दिया. अब वह इंस्पैक्टर अशोक यादव की टेबल के सामने था. टेबल पर फाइलें बेतरतीब पड़ी थीं. इंस्पैक्टर की कुरसी खाली थी. कुरसी के पीछे दीवाल पर टाइप किया कागज चस्पां था- ‘आप गोपनीय कैमरे की निगरानी में हैं.’
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टेबल की बगल में पड़े स्टूल पर उस ने बैठना चाहा पर उसे स्टूल पर बैठने में अपनी तौहीन लगी. पिछले माह तक वह शासकीय सेवा में राज्य स्तर का वरिष्ठ प्रथम श्रेणी अधिकारी हुआ करता था, जिस के सामने राजपत्रित द्वितीय श्रेणी वर्ग के अधिकारी भी बैठने की जुर्रत न किया करते थे.
वह सोचविचार में मग्न था, तभी एक सिपाही ने आ कर पूछा, “आप आर के जैन हैं?” उस के हां कहते ही सिपाही बोला, “इंस्पैक्टर साहब अभी एसपी साहब के पास हैं, थोड़ी देर में आने वाले हैं.”वह अनुमान लगाने लगा, हो न हो, इंस्पैक्टर उन्हीं के प्रकरण में एसपी से चर्चा करने गया होगा.
उस के अनेक आईपीएस तथा आईएएस अधिकारियों से अच्छे संबंध रहे थे किंतु कभी भी किसी से भी अपने लिए मदद लेने का उसे अवसर नहीं आया था. उस ने पूरी शासकीय सेवा निष्ठा और ईमानदारी से पूरी की थी और स्वयं की प्रतिष्ठा को कभी धूमिल नहीं होने दिया था. सेवानिवृत्ति के समय अब यह केस दर्ज कर उस पर विभिन्न धाराएं अधिरोपित की गई थीं.जाड़े का मौसम होते हुए भी उस का मुंह सूख रहा था. उस ने चारों ओर निगाह दौड़ाई कि कहीं वाटरकूलर लगा हो. जब ऐसा कुछ न दिखा तो मजबूरी में उस ने स्टूल अपनी ओर खींचा और उस पर बैठ गया.
11 की जगह 11:30 हो चुके थे और इंस्पैक्टर अभी भी वापस नहीं आया था. अपने शासकीय सेवाकाल में वह सदैव समय का पाबंद रहा था और समय के संबंध में लापरवाही दिखाने वालों को जम कर लताड़ लगाया करता था. उसे अपने विभाग के प्रमुख सचिव के कहे शब्द याद हो आए- ‘जो समय की परवा नहीं करता, समय उस की परवा नहीं करता.’ उन्होंने उस समय जो दृष्टांत सुनाया था, वह उसे स्मरण हो आया. वह ऐसे ही खयालों में डूबा हुआ था कि तभी उसी सिपाही ने आ कर उसे सूचना दी, “यादव साहब, एसपी साहब के पास से पीपी साहब के पास गए हैं और वहां से सीधे यहीं आएंगे.”
उस ने उस अर्दली सिपाही से विनम्रता से पूछा, “क्या पीने का पानी मिल सकता है?”सिपाही ने इंस्पैक्टर यादव की कुरसी के पीछे जा कर, उस की वाटर बोतल से, कांच के गिलास में पानी निकाला और ला कर उसे दिया. पानी पीते हुए उस ने सूखते होंठों पर अपनी जीभ फिराई और उन्हें गीला किया.
वह सोचने लगा कि जब उस ने कोई अपराध नहीं किया है तो इतना घबराया और डरा हुआ क्यों है. ‘सांच को आंच नहीं’, यह कहावत वह कितनी ही बार सुन चुका था. यदि लोकायुक्त झूठा मुकदमा चलाएगा तो न्यायालय भी तो है, जहां न्याय प्राप्त किया जा सकता है.
पर एसपी साहब के पास से इंस्पैक्टर पीपी साहब के पास क्यों गया, क्या उस के विरुद्ध चार्जशीट न्यायालय में प्रस्तुत करने की तैयारी हो रही है और क्या उसे गिरफ्तार किया जाएगा? अखबारों में जब उस के बारे में खबरें छपेंगी तो वह तो किसी को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगा. वह किसकिस को स्पष्टीकरण देता रहेगा कि उस ने कोई अपराध नहीं किया है. सारे आरोप झूठे हैं. उस के बेटे और बेटी की ससुराल वाले उस के बारे में क्या सोचेंगे? सभी अपनेपराए उस से मुंह मोड़ लेंगे और वह सभी की निगाहों में घृणा का पात्र बन जाएगा. उस की पत्नी का क्या हाल होगा? उस के क्लब की महिलाएं उस का मजाक उड़ाएंगी.
पर ऐसा वह क्यों सोच रहा है? उस ने जानबूझ कर तो कोई अपराध किया नहीं. क्या सत्य इतनी आसानी से पराजित हो जाएगा? उस के बाबा तो कहा करते थे, ‘सत्य का बल सब से बड़ा बल होता है.’उन के आदर्शों पर चल कर और उन के बताए एक ही सिद्धांत- ‘नौकरी मे जानबूझ कर गलत करना नहीं, बेमतलब किसी से डरना नहीं’ को ले कर पूरे 37 वर्ष शासकीय सेवा पूरी कर डाली. पर आज डर तो पीछा ही नहीं छोड़ रहा. उसे सब से अधिक बदनामी से डर लगता रहा है. वह जानता है, उस के विरुद्ध तैयार किया गया झूठा मुकदमा न्यायालय में टिक नहीं पाएगा. पर समाज की निगाहों में उस की अब तक अर्जित की गई प्रतिष्ठा तो तारतार हो जाएगी. भयमिश्रित क्रोध से उस का चेहरा तमतमा उठा और होंठ फिर से सूखने लगे.
तभी इंस्पैक्टर यादव ने आ कर विलंब के लिए खेद व्यक्त किया. वह पसोपेश में था कि खड़े हो कर इंस्पैक्टर को सम्मान दे या बैठेबैठे ही नमस्कार करे. फिर उम्र और पद की तुलना करते हुए उस ने बैठे रहना ही उचित समझा.इंस्पैक्टर ने अलमीरा का ताला खोला और एक मोटी सी फाइल निकाली. 10 वर्ष पूर्व जब वह जिले में विभाग का अधिकारी था, रिक्त पदों पर उस ने कुछ नियुक्तियां की थीं. जैसा कि अधिकांश अधिकारियों के साथ होता है, उस के साथ भी हुआ. नियुक्तियों में भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद के आरोप लगाए गए. विभागीय मंत्री ने विधानसभा में जांच कराने का आश्वासन दिया और विभाग ने प्रकरण लोकायुक्त को सौंप दिया.
इन 10 वर्षों में उस से न तो कभी किसी ने इन आरोपों के बारे में पूछताछ की और न ही किसी तरह की जानकारी मांगी. अब सेवानिवृत्त होते ही उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया है.इंस्पैक्टर यादव ने फाइल हाथ में ली और उस से ‘पूछताछ कक्ष‘ में चलने के लिए पीछेपीछे आने को कहा. वह स्टूल से उठा और इंस्पैक्टर के पीछे चलने लगा.
पूछताछ कक्ष में एक गोल टेबल थी और 3 कुरसियां. इंस्पैक्टर ने बैठने का इशारा किया तो वह एक कुरसी पर बैठ गया. उस ने चारों ओर नजर दौड़ाई कि गोपनीय कैमरा कहां लगा है? पर उसे कुछ स्पष्ट नजर न आया.इंस्पैक्टर ने फाइल के अंदर रखी ‘प्रैसविज्ञप्ति‘ निकाली और उस के सामने रखते हुए बोला, “यह कल के सभी समाचारपत्रों में प्रकाशित होने को भेजी जा रही है.”
प्रैसविज्ञप्ति का शीर्षक था- ‘भ्रष्ट अधिकारी आर के जैन लोकायुक्त के शिकंजे में’. उस ने एकदो पैरा ही पढ़े थे कि उस का उच्च रक्तचाप अचानक बढ़ गया और वह वहीं लुढ़क गया. इंस्पैक्टर घबरा गया. उस ने कागज समेट कर फाइल में रखे और अर्दली को पानी लाने के लिए आवाज लगाई. पानी के छींटे चेहरे पर पड़ते ही उसे थोड़ा होश आया तो उस ने जेब से एस्प्रिन की टेबलेट निकाली और जीभ के नीचे रखी. दोतीन मिनट में ही वह सामान्य हो गया.
इंस्पैक्टर ने विनम्रता से उस से कहा कि, “अब वह जा सकता है और आवश्यकता हुई तो किसी अन्य दिन उसे वह बुलवा लेगा.” उस ने इंस्पैक्टर से कुछ नहीं कहा और धीमेधीमे चलते हुए सीढ़ियां उतरने लगा. कार में बैठते ही उस के सामने वही प्रैसविज्ञप्ति फिर से उभर आई- ‘आर के जैन पर लोकायुक्त का शिकंजा’. उस का खून फिर से खौलने लगा और रक्तचाप फिर से बढ़ गया. उस ने कार को अब बड़े तालाब की दिशा में मोड़ दिया. कार से उतर कर वह तालाब की मेड़ पर जा कर बैठ गया. उस के मस्तिष्क में विचार तालाब की लहरों की तरह उठ-गिर रहे थे. वह तालाब की लहरों को एकटक देखते हुए अपनी बदनामी को ले कर चिंतित था. हर लहर पर वही प्रैसविज्ञप्ति उस की आंखों के सामने आ जाती. उसे भ्रष्ट अधिकारी घोषित किया जा रहा था. उस पर मनगढ़ंत, झूठे आरोप लगाए गए थे. उस का रक्तचाप एक बार फिर से उबलने लगा और मस्तिष्क विवेकशून्य हो गया.
फिर अचानक उस के सीने में तेज दर्द उठा. उस ने अपनी सभी जेबों में दवा की गोली की तलाश की, जो अब थी ही नहीं. अचानक उस की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा और पसीने से सारा बदन भीग गया.फिर उसे होश नहीं रहा. गोताखोरों ने उस की बौडी को खोज कर बाहर निकाला. पर तब तक काफी देर हो चुकी थी.अगली सुबह सभी अखबारों में उस के फोटो के साथ आत्महत्या की खबरें प्रकाशित हुई थीं. कितनी आसानी से एक हत्या को आत्महत्या में तबदील किया जा चुका था…
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लेखक-डा. आर एस खरे
इंस्पैक्टर का फोन सुनते ही उस के चेहरे की रंगत फीकी पड़ गई. दिल जोरजोर से धड़कने लगा और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. सुबह 11बजे उसे लोकायुक्त में बुलाया गया था. इंस्पैक्टर ने लोकेशन भी समझा दी थी- ‘जिला न्यायालय के ठीक अपोजिट वाली नई बिल्डिंग में लोकायुक्त कार्यालय है.’
वह जिला न्यायालय के सामने से सैकड़ों बार गुजरा था पर उस का ध्यान कभी लोकायुक्त कार्यालय पर नहीं गया था. 11बजने के कुछ मिनट पहले ही वह उस नई बिल्डिंग के सामने खड़ा था. बिल्डिंग के ऊपर एक बोर्ड लगा था- ‘आर्थिक अपराध अनुसंधान कार्यालय‘. उस ने बिल्डिंग से निकल रहे खाकी वरदीधारी से पूछा, “लोकायुक्त का दफ्तर कहां है?”
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सिपाही ने बताया कि वह इसी बिल्डिंग के गेट नंबर 2 पर जाए. पीछे की ओर जाने पर गेट नंबर 2 के ऊपर दूर से ही ‘लोकायुक्त कार्यालय‘ का बोर्ड दिखाई दे गया. लिफ्ट के पास जा कर वह रुका. इंस्पैक्टर ने कहा था कि उसे थर्डफ्लोर पर आना है. जब काफी देर तक लिफ्ट में कोई हलचल न हुई, तो उस का ध्यान लिफ्ट के प्रवेशद्वार के ऊपर चस्पां कागज के टुकड़े पर गया, जिस पर किसी ने पेन से लिख दिया था- ‘लिफ्ट बंद है.’
हाई ब्लडप्रैशर का मरीज होने के कारण सीढ़ियां चढ़ते हुए उस की सांस फूलने लगी. रेलिंग के सहारे चढ़ता हुआ वह तीसरी मंजिल पर पहुंचा. गेट पर खड़े गार्ड ने रजिस्टर में उस से प्रविष्टियां कराईं- नाम, पता, मोबाइल नंबर तथा किस से मिलना है.‘
उस ने गार्ड से पूछा, “इंस्पैक्टर अशोक यादव कहां बैठते हैं?” गार्ड ने उसे हाथ के इशारे से मार्गदर्शन दिया. अब वह इंस्पैक्टर अशोक यादव की टेबल के सामने था. टेबल पर फाइलें बेतरतीब पड़ी थीं. इंस्पैक्टर की कुरसी खाली थी. कुरसी के पीछे दीवाल पर टाइप किया कागज चस्पां था- ‘आप गोपनीय कैमरे की निगरानी में हैं.’
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टेबल की बगल में पड़े स्टूल पर उस ने बैठना चाहा पर उसे स्टूल पर बैठने में अपनी तौहीन लगी. पिछले माह तक वह शासकीय सेवा में राज्य स्तर का वरिष्ठ प्रथम श्रेणी अधिकारी हुआ करता था, जिस के सामने राजपत्रित द्वितीय श्रेणी वर्ग के अधिकारी भी बैठने की जुर्रत न किया करते थे.
वह सोचविचार में मग्न था, तभी एक सिपाही ने आ कर पूछा, “आप आर के जैन हैं?” उस के हां कहते ही सिपाही बोला, “इंस्पैक्टर साहब अभी एसपी साहब के पास हैं, थोड़ी देर में आने वाले हैं.”वह अनुमान लगाने लगा, हो न हो, इंस्पैक्टर उन्हीं के प्रकरण में एसपी से चर्चा करने गया होगा.
उस के अनेक आईपीएस तथा आईएएस अधिकारियों से अच्छे संबंध रहे थे किंतु कभी भी किसी से भी अपने लिए मदद लेने का उसे अवसर नहीं आया था. उस ने पूरी शासकीय सेवा निष्ठा और ईमानदारी से पूरी की थी और स्वयं की प्रतिष्ठा को कभी धूमिल नहीं होने दिया था. सेवानिवृत्ति के समय अब यह केस दर्ज कर उस पर विभिन्न धाराएं अधिरोपित की गई थीं.जाड़े का मौसम होते हुए भी उस का मुंह सूख रहा था. उस ने चारों ओर निगाह दौड़ाई कि कहीं वाटरकूलर लगा हो. जब ऐसा कुछ न दिखा तो मजबूरी में उस ने स्टूल अपनी ओर खींचा और उस पर बैठ गया.
11 की जगह 11:30 हो चुके थे और इंस्पैक्टर अभी भी वापस नहीं आया था. अपने शासकीय सेवाकाल में वह सदैव समय का पाबंद रहा था और समय के संबंध में लापरवाही दिखाने वालों को जम कर लताड़ लगाया करता था. उसे अपने विभाग के प्रमुख सचिव के कहे शब्द याद हो आए- ‘जो समय की परवा नहीं करता, समय उस की परवा नहीं करता.’ उन्होंने उस समय जो दृष्टांत सुनाया था, वह उसे स्मरण हो आया. वह ऐसे ही खयालों में डूबा हुआ था कि तभी उसी सिपाही ने आ कर उसे सूचना दी, “यादव साहब, एसपी साहब के पास से पीपी साहब के पास गए हैं और वहां से सीधे यहीं आएंगे.”
उस ने उस अर्दली सिपाही से विनम्रता से पूछा, “क्या पीने का पानी मिल सकता है?”सिपाही ने इंस्पैक्टर यादव की कुरसी के पीछे जा कर, उस की वाटर बोतल से, कांच के गिलास में पानी निकाला और ला कर उसे दिया. पानी पीते हुए उस ने सूखते होंठों पर अपनी जीभ फिराई और उन्हें गीला किया.
वह सोचने लगा कि जब उस ने कोई अपराध नहीं किया है तो इतना घबराया और डरा हुआ क्यों है. ‘सांच को आंच नहीं’, यह कहावत वह कितनी ही बार सुन चुका था. यदि लोकायुक्त झूठा मुकदमा चलाएगा तो न्यायालय भी तो है, जहां न्याय प्राप्त किया जा सकता है.
पर एसपी साहब के पास से इंस्पैक्टर पीपी साहब के पास क्यों गया, क्या उस के विरुद्ध चार्जशीट न्यायालय में प्रस्तुत करने की तैयारी हो रही है और क्या उसे गिरफ्तार किया जाएगा? अखबारों में जब उस के बारे में खबरें छपेंगी तो वह तो किसी को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगा. वह किसकिस को स्पष्टीकरण देता रहेगा कि उस ने कोई अपराध नहीं किया है. सारे आरोप झूठे हैं. उस के बेटे और बेटी की ससुराल वाले उस के बारे में क्या सोचेंगे? सभी अपनेपराए उस से मुंह मोड़ लेंगे और वह सभी की निगाहों में घृणा का पात्र बन जाएगा. उस की पत्नी का क्या हाल होगा? उस के क्लब की महिलाएं उस का मजाक उड़ाएंगी.
पर ऐसा वह क्यों सोच रहा है? उस ने जानबूझ कर तो कोई अपराध किया नहीं. क्या सत्य इतनी आसानी से पराजित हो जाएगा? उस के बाबा तो कहा करते थे, ‘सत्य का बल सब से बड़ा बल होता है.’उन के आदर्शों पर चल कर और उन के बताए एक ही सिद्धांत- ‘नौकरी मे जानबूझ कर गलत करना नहीं, बेमतलब किसी से डरना नहीं’ को ले कर पूरे 37 वर्ष शासकीय सेवा पूरी कर डाली. पर आज डर तो पीछा ही नहीं छोड़ रहा. उसे सब से अधिक बदनामी से डर लगता रहा है. वह जानता है, उस के विरुद्ध तैयार किया गया झूठा मुकदमा न्यायालय में टिक नहीं पाएगा. पर समाज की निगाहों में उस की अब तक अर्जित की गई प्रतिष्ठा तो तारतार हो जाएगी. भयमिश्रित क्रोध से उस का चेहरा तमतमा उठा और होंठ फिर से सूखने लगे.
तभी इंस्पैक्टर यादव ने आ कर विलंब के लिए खेद व्यक्त किया. वह पसोपेश में था कि खड़े हो कर इंस्पैक्टर को सम्मान दे या बैठेबैठे ही नमस्कार करे. फिर उम्र और पद की तुलना करते हुए उस ने बैठे रहना ही उचित समझा.इंस्पैक्टर ने अलमीरा का ताला खोला और एक मोटी सी फाइल निकाली. 10 वर्ष पूर्व जब वह जिले में विभाग का अधिकारी था, रिक्त पदों पर उस ने कुछ नियुक्तियां की थीं. जैसा कि अधिकांश अधिकारियों के साथ होता है, उस के साथ भी हुआ. नियुक्तियों में भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद के आरोप लगाए गए. विभागीय मंत्री ने विधानसभा में जांच कराने का आश्वासन दिया और विभाग ने प्रकरण लोकायुक्त को सौंप दिया.
इन 10 वर्षों में उस से न तो कभी किसी ने इन आरोपों के बारे में पूछताछ की और न ही किसी तरह की जानकारी मांगी. अब सेवानिवृत्त होते ही उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया है.इंस्पैक्टर यादव ने फाइल हाथ में ली और उस से ‘पूछताछ कक्ष‘ में चलने के लिए पीछेपीछे आने को कहा. वह स्टूल से उठा और इंस्पैक्टर के पीछे चलने लगा.
पूछताछ कक्ष में एक गोल टेबल थी और 3 कुरसियां. इंस्पैक्टर ने बैठने का इशारा किया तो वह एक कुरसी पर बैठ गया. उस ने चारों ओर नजर दौड़ाई कि गोपनीय कैमरा कहां लगा है? पर उसे कुछ स्पष्ट नजर न आया.इंस्पैक्टर ने फाइल के अंदर रखी ‘प्रैसविज्ञप्ति‘ निकाली और उस के सामने रखते हुए बोला, “यह कल के सभी समाचारपत्रों में प्रकाशित होने को भेजी जा रही है.”
प्रैसविज्ञप्ति का शीर्षक था- ‘भ्रष्ट अधिकारी आर के जैन लोकायुक्त के शिकंजे में’. उस ने एकदो पैरा ही पढ़े थे कि उस का उच्च रक्तचाप अचानक बढ़ गया और वह वहीं लुढ़क गया. इंस्पैक्टर घबरा गया. उस ने कागज समेट कर फाइल में रखे और अर्दली को पानी लाने के लिए आवाज लगाई. पानी के छींटे चेहरे पर पड़ते ही उसे थोड़ा होश आया तो उस ने जेब से एस्प्रिन की टेबलेट निकाली और जीभ के नीचे रखी. दोतीन मिनट में ही वह सामान्य हो गया.
इंस्पैक्टर ने विनम्रता से उस से कहा कि, “अब वह जा सकता है और आवश्यकता हुई तो किसी अन्य दिन उसे वह बुलवा लेगा.” उस ने इंस्पैक्टर से कुछ नहीं कहा और धीमेधीमे चलते हुए सीढ़ियां उतरने लगा. कार में बैठते ही उस के सामने वही प्रैसविज्ञप्ति फिर से उभर आई- ‘आर के जैन पर लोकायुक्त का शिकंजा’. उस का खून फिर से खौलने लगा और रक्तचाप फिर से बढ़ गया. उस ने कार को अब बड़े तालाब की दिशा में मोड़ दिया. कार से उतर कर वह तालाब की मेड़ पर जा कर बैठ गया. उस के मस्तिष्क में विचार तालाब की लहरों की तरह उठ-गिर रहे थे. वह तालाब की लहरों को एकटक देखते हुए अपनी बदनामी को ले कर चिंतित था. हर लहर पर वही प्रैसविज्ञप्ति उस की आंखों के सामने आ जाती. उसे भ्रष्ट अधिकारी घोषित किया जा रहा था. उस पर मनगढ़ंत, झूठे आरोप लगाए गए थे. उस का रक्तचाप एक बार फिर से उबलने लगा और मस्तिष्क विवेकशून्य हो गया.
फिर अचानक उस के सीने में तेज दर्द उठा. उस ने अपनी सभी जेबों में दवा की गोली की तलाश की, जो अब थी ही नहीं. अचानक उस की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा और पसीने से सारा बदन भीग गया.फिर उसे होश नहीं रहा. गोताखोरों ने उस की बौडी को खोज कर बाहर निकाला. पर तब तक काफी देर हो चुकी थी.अगली सुबह सभी अखबारों में उस के फोटो के साथ आत्महत्या की खबरें प्रकाशित हुई थीं. कितनी आसानी से एक हत्या को आत्महत्या में तबदील किया जा चुका था…
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October 29, 2021 at 10:00AMखौफ- भाग 3 : हिना की मां के मन में किस बात का डर था
लेखिका- डा. के रानी
‘‘तु?ो क्या हो गया है हिना? कैसी बातें कर रही है. शेखर सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’‘‘सोचता है तो सोचने दो. मु?ो किसी की परवा नहीं है,’’ इतना कह कर उस ने बीच के दरवाजे पर कुंडी चढ़ा दी. हिना को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ कहने पर भी मम्मी आंखें मूंदें थीं और उस के इशारे नहीं सम?ा रही थीं. हिना सबकुछ जानते हुए भी चुप थी, इसीलिए उस की हिम्मत ज्यादा बढ़ गई.
बीच का दरवाजा बंद हो जाने से शेखर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. एक बच्चे का पिता होने के बावजूद उस की गंदी नजर अपनी बूआ की बेटी हिना पर पता नहीं कब से लगी थी. अकसर वह उस के लिए गिफ्ट ले आता और उस के साथ खुल कर बातें करता. उसे याद आ रहा था कि वे उसे अजीब तरीके से छूते.
‘‘अगर वह उन के बहकावे में आ जाती तो…’’ यह सोच कर वह सिहर गई. लोकलाज के कारण उसे पता नहीं क्या कुछ ?ोलना पड़ता. मम्मी अपने भतीजे पर कभी शक तक नहीं कर सकीं. अब शेखर को खुद वहां रहना अखरने लगा था. हिना की निगाहों में उठने वाली नफरत को ?ोलने में वह समर्थ नहीं था. उस ने इस बीच कई बार उस से बात करने की कोशिश की. उस के पास आते ही वह चुपचाप वहां से उठ कर चली जाती.
हफ्तेभर बाद शेखर अपने पापा के घर चला गया था. इस घटना से हिना ने महसूस किया कि बाहर वालों से ज्यादा अपने लोग खतरनाक होते हैं. रिश्तों की आड़ में क्या कुछ कर गुजरते हैं, इस का किसी को एहसास तक नहीं होता. वे जानते हैं कि अपनों को बदनामी से बचाने व ?ाठी शान के लिए इस समाज में औरत की आवाज हर हाल में दबा दी जाएगी.
हिना की शादी के 2 साल बाद अनन्या पैदा हुई. उस ने सोच लिया था कि वह अपनी बेटी को दुश्मनों से बचा कर रखेगी. वह बचपन से उसे एक रात के लिए भी किसी रिश्तेदार के घर अकेला न छोड़ती. कई बार बड़े भैया ने कहा भी, लेकिन हिना कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती. अनन्या को यह बात सम?ा आने लगी थी. वह कई मौकों पर मम्मी का विरोध भी करती. घर पर अकसर मेहमान आते. हिना उन का पूरा खयाल रखती, लेकिन बेटी की सुरक्षा के लिए कोई रिस्क न उठाती.
उस ने गैस्टरूम घर की छत पर अलग से बना रखा था, जिस से उन का वक्तबेवक्त उस के परिवार से कोई संपर्क न रहे. खानापीना खिला कर वह मेहमानों को गैस्टरूम में टिका देती. पता नहीं, उस की अंदर की दहशत ने उसे कितना हिला कर रख दिया था. नजदीकी रिश्तों के प्रति उस की आस्था ही खत्म हो गई थी. उसे लगता, रिश्ते की आड़ में छिपे हुए भेडि़ए कभी भी अपने ऊपर की रिश्ते की चादर सरका कर अपने असल रूप में आ उस की बेटी पर हमला कर सकते हैं.
बहुत देर तक उसे अतीत में तैरते हुए नींद नहीं आ रही थी. अगली सुबह वह समय से उठ गई, लेकिन अनन्या देर तक सोती रही. उस ने उसे उठाना उचित न सम?ा. शादी की रात भी हिना की नजरें शादी की रस्मों के बीच उस पर ही लगी रहीं. रात के 3 बजे फेरे खत्म हो गए और उस के बाद वह अनन्या के साथ कमरे में आ गई.
विदाई के समय सभी भावुक हो गए थे. 8 बजे ईशा की विदाई हो गई. घर सूना हो गया था. दोपहर तक अधिकांश मेहमान जाने लगे थे. सिद्धार्थ उस से और दी से मिलने आया, ‘‘अच्छा बूआ, चलता हूं.’’ ‘‘इतनी जल्दी क्या है? 1-2 दिन और रुक जाते,’’ राशि बोली. ‘‘जिस काम के लिए आए थे, वह पूरा हो गया. घर जा कर पढ़ाई भी करनी है.’’
अनन्या अभी 1-2 दिन और मौसी के पास रुकना चाहती थी, लेकिन मम्मी की वजह से कहने में हिचक रही थी. राशि दी खुद ही बोली, ‘‘ईशा के जाने के बाद घर खाली हो गया है. हिना, अनन्या को कुछ दिन यहां छोड़ दे.’’ ‘‘नहीं दी, इस के पापा नाराज होंगे. हम फिर आ जाएंगे. यहां से अलीगढ़ है ही कितना दूर. जब तुम कहोगी तभी ईशा और दामादजी से मिलने चले आएंगे.’’अगले दिन वह बेटी के साथ घर वापस जा रही थी. अनन्या के मन में कई सवाल थे, लेकिन वह मम्मी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.
हिना जानती थी कि अनन्या मम्मी के व्यवहार से नाखुश है, लेकिन वह मजबूर थी. वह अपनी मम्मी की तरह रिश्तों की छांव में आंख मूंद कर निश्ंिचत हो कर नहीं रह सकती थी. शुक्र था, जवानी में खुद सचेत रहने के कारण वह अपने को बचा पाई थी, नहीं तो उस के साथ कुछ भी बुरा घट सकता था. वह अपनी बेटी को ऐसी परिस्थितियों से दूर रखना चाहती थी.
बाहर वाला कुछ गलत कर बैठे तो उस के विरुद्ध शोर मचाना आसान होता है, लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कितना हौसला चाहिए, इस की अनन्या कल्पना भी नहीं कर सकती. बेटी चाहे लाख नाराज होती रहे, उसे इस की परवा नहीं. उसे तो केवल भेडि़ए को रोकने की परवा है. अपनेपन की आड़ में वे सबकुछ लूट कर ले जाते हैं और लुटने वाला उन के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता. खुद घर वाले उस की आवाज को दबा देते हैं.
‘‘अभी उसे कुछ सम?ाना बेकार है. धीरेधीरे अपने अनुभव से उसे बहुतकुछ पता चल जाएगा. तब उसे अपनी मम्मी की यह बात अच्छे से सम?ा आ जाएगी,’’ यह सोच कर वह थोड़ी आश्वस्त हो गई और अनन्या की नाराजगी को नजरअंदाज कर उस से सहज हो कर बातें करने लगी.
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लेखिका- डा. के रानी
‘‘तु?ो क्या हो गया है हिना? कैसी बातें कर रही है. शेखर सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’‘‘सोचता है तो सोचने दो. मु?ो किसी की परवा नहीं है,’’ इतना कह कर उस ने बीच के दरवाजे पर कुंडी चढ़ा दी. हिना को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ कहने पर भी मम्मी आंखें मूंदें थीं और उस के इशारे नहीं सम?ा रही थीं. हिना सबकुछ जानते हुए भी चुप थी, इसीलिए उस की हिम्मत ज्यादा बढ़ गई.
बीच का दरवाजा बंद हो जाने से शेखर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. एक बच्चे का पिता होने के बावजूद उस की गंदी नजर अपनी बूआ की बेटी हिना पर पता नहीं कब से लगी थी. अकसर वह उस के लिए गिफ्ट ले आता और उस के साथ खुल कर बातें करता. उसे याद आ रहा था कि वे उसे अजीब तरीके से छूते.
‘‘अगर वह उन के बहकावे में आ जाती तो…’’ यह सोच कर वह सिहर गई. लोकलाज के कारण उसे पता नहीं क्या कुछ ?ोलना पड़ता. मम्मी अपने भतीजे पर कभी शक तक नहीं कर सकीं. अब शेखर को खुद वहां रहना अखरने लगा था. हिना की निगाहों में उठने वाली नफरत को ?ोलने में वह समर्थ नहीं था. उस ने इस बीच कई बार उस से बात करने की कोशिश की. उस के पास आते ही वह चुपचाप वहां से उठ कर चली जाती.
हफ्तेभर बाद शेखर अपने पापा के घर चला गया था. इस घटना से हिना ने महसूस किया कि बाहर वालों से ज्यादा अपने लोग खतरनाक होते हैं. रिश्तों की आड़ में क्या कुछ कर गुजरते हैं, इस का किसी को एहसास तक नहीं होता. वे जानते हैं कि अपनों को बदनामी से बचाने व ?ाठी शान के लिए इस समाज में औरत की आवाज हर हाल में दबा दी जाएगी.
हिना की शादी के 2 साल बाद अनन्या पैदा हुई. उस ने सोच लिया था कि वह अपनी बेटी को दुश्मनों से बचा कर रखेगी. वह बचपन से उसे एक रात के लिए भी किसी रिश्तेदार के घर अकेला न छोड़ती. कई बार बड़े भैया ने कहा भी, लेकिन हिना कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती. अनन्या को यह बात सम?ा आने लगी थी. वह कई मौकों पर मम्मी का विरोध भी करती. घर पर अकसर मेहमान आते. हिना उन का पूरा खयाल रखती, लेकिन बेटी की सुरक्षा के लिए कोई रिस्क न उठाती.
उस ने गैस्टरूम घर की छत पर अलग से बना रखा था, जिस से उन का वक्तबेवक्त उस के परिवार से कोई संपर्क न रहे. खानापीना खिला कर वह मेहमानों को गैस्टरूम में टिका देती. पता नहीं, उस की अंदर की दहशत ने उसे कितना हिला कर रख दिया था. नजदीकी रिश्तों के प्रति उस की आस्था ही खत्म हो गई थी. उसे लगता, रिश्ते की आड़ में छिपे हुए भेडि़ए कभी भी अपने ऊपर की रिश्ते की चादर सरका कर अपने असल रूप में आ उस की बेटी पर हमला कर सकते हैं.
बहुत देर तक उसे अतीत में तैरते हुए नींद नहीं आ रही थी. अगली सुबह वह समय से उठ गई, लेकिन अनन्या देर तक सोती रही. उस ने उसे उठाना उचित न सम?ा. शादी की रात भी हिना की नजरें शादी की रस्मों के बीच उस पर ही लगी रहीं. रात के 3 बजे फेरे खत्म हो गए और उस के बाद वह अनन्या के साथ कमरे में आ गई.
विदाई के समय सभी भावुक हो गए थे. 8 बजे ईशा की विदाई हो गई. घर सूना हो गया था. दोपहर तक अधिकांश मेहमान जाने लगे थे. सिद्धार्थ उस से और दी से मिलने आया, ‘‘अच्छा बूआ, चलता हूं.’’ ‘‘इतनी जल्दी क्या है? 1-2 दिन और रुक जाते,’’ राशि बोली. ‘‘जिस काम के लिए आए थे, वह पूरा हो गया. घर जा कर पढ़ाई भी करनी है.’’
अनन्या अभी 1-2 दिन और मौसी के पास रुकना चाहती थी, लेकिन मम्मी की वजह से कहने में हिचक रही थी. राशि दी खुद ही बोली, ‘‘ईशा के जाने के बाद घर खाली हो गया है. हिना, अनन्या को कुछ दिन यहां छोड़ दे.’’ ‘‘नहीं दी, इस के पापा नाराज होंगे. हम फिर आ जाएंगे. यहां से अलीगढ़ है ही कितना दूर. जब तुम कहोगी तभी ईशा और दामादजी से मिलने चले आएंगे.’’अगले दिन वह बेटी के साथ घर वापस जा रही थी. अनन्या के मन में कई सवाल थे, लेकिन वह मम्मी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.
हिना जानती थी कि अनन्या मम्मी के व्यवहार से नाखुश है, लेकिन वह मजबूर थी. वह अपनी मम्मी की तरह रिश्तों की छांव में आंख मूंद कर निश्ंिचत हो कर नहीं रह सकती थी. शुक्र था, जवानी में खुद सचेत रहने के कारण वह अपने को बचा पाई थी, नहीं तो उस के साथ कुछ भी बुरा घट सकता था. वह अपनी बेटी को ऐसी परिस्थितियों से दूर रखना चाहती थी.
बाहर वाला कुछ गलत कर बैठे तो उस के विरुद्ध शोर मचाना आसान होता है, लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कितना हौसला चाहिए, इस की अनन्या कल्पना भी नहीं कर सकती. बेटी चाहे लाख नाराज होती रहे, उसे इस की परवा नहीं. उसे तो केवल भेडि़ए को रोकने की परवा है. अपनेपन की आड़ में वे सबकुछ लूट कर ले जाते हैं और लुटने वाला उन के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता. खुद घर वाले उस की आवाज को दबा देते हैं.
‘‘अभी उसे कुछ सम?ाना बेकार है. धीरेधीरे अपने अनुभव से उसे बहुतकुछ पता चल जाएगा. तब उसे अपनी मम्मी की यह बात अच्छे से सम?ा आ जाएगी,’’ यह सोच कर वह थोड़ी आश्वस्त हो गई और अनन्या की नाराजगी को नजरअंदाज कर उस से सहज हो कर बातें करने लगी.
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October 29, 2021 at 10:00AMखौफ- भाग 2 : हिना की मां के मन में किस बात का डर था
लेखिका- डा. के रानी
‘‘मम्मी प्लीज, मैं कोई बच्ची नहीं हूं. 16 साल की हो गई हूं. मु?ो भी अपने भलेबुरे की पहचान है.’’ ‘‘जानती हूं, फिर भी मैं कुछ मामलों में बिलकुल रिस्क नहीं उठा सकती.’ ‘‘इस में रिस्क की क्या बात है? हम सब आपस में रिश्तेदार हैं.’’
‘‘तुम नहीं सम?ाती अनन्या. बस, मेरी बात मान लो. मैं जानती हूं कि तुम्हें यह सब देखसुन कर बुरा लगता है, फिर भी इस से आगे कुछ मत कहो और इस टौपिक को यहीं खत्म कर दो.’’
अपना सामान व्यवस्थित कर के वह राशि दी के पास चली गई. राशि दी एकएक कर के उसे शादी का सामान दिखा रही थीं और अनन्या उस पर अपनी टिप्पणियां दे रही थी. उस के बाद वह ईशा के साथ आ गई.
खाना खाने के बहुत देर बाद अनन्या मम्मी के पास आई. हिना उस समय राशि के साथ बातें कर रही थी. बातें तो एक बहाना था. दरअसल, वह उसी के आने का इंतजार कर रही थी. दोनों कमरे में आ कर कुछ देर बातें करती रहीं और फिर आराम से सो गईं.
अगले दिन सुबह से ही मेहमानों का आनाजाना शुरू हो गया था. राशि दी के परिवार में यह पहली शादी थी. सारे रिश्तेदार शादी में शामिल होने सपरिवार आए थे. बूआ, मौसी, चाचा, ताऊ और छोटे दादाजी सब अपने परिवार के साथ पहुंच गए थे. घर पर रिश्तेदारों का मेला लग गया था. सभी के बच्चे जवान थे. कुछ की शादी हो चुकी थी और उन के साथ छोटे बच्चे भी आए हुए थे. यह सब देख कर राशि दी बहुत खुश थीं. वे खुद भी बहुत व्यवहारकुशल थीं. हरेक के सुखदुख में शामिल होने वे सब से पहले पहुंच जातीं. इसी वजह से सभी लोग ईशा की शादी में एक दिन पहले ही पहुंच गए थे.
सुबह से ही घर में शादी की रस्में चल रही थीं. हिना राशि दी के साथ हर काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अनन्या कजिन के साथ बातों में व्यस्त थी. सब अपने कामों में लगे थे. जवान लड़कियों को सजनेसंवरने और शाम को होने वाले महिला संगीत में विशेष रुचि थी. उन्होंने पहले से ही प्रोग्राम बना लिया था कि सब मिल कर खूब धमाल मचाएंगे. इस के लिए वे दिनभर तैयारी करते रहे थे.
शाम हुई. अच्छेखासे जलपान के बाद अधिकांश अपने घर चले गए. अब युवाओं की महफिल सजने लगी थी. डैक पर नए गाने बज रहे थे और उस की धुन पर सभी युवा थिरक रहे थे. उस में पासपड़ोस के युवा भी शामिल थे. आए हुए युवा मेहमानों के कुछ दोस्त भी शादी में शिरकत कर रहे थे. अनन्या गुलाबी लहंगे में बहुत खूबसूरत लग रही थी. उस की दीपक मामा के बेटे सिद्धार्थ से बहुत अच्छी पटती थी. वे दोनों साथ मिल कर दिनभर से प्रैक्टिस कर रहे थे. शाम को उन का प्रदर्शन सब से अच्छा था. सब उन्हें बधाई दे रहे थे.
हिना को यह कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा. रात को खाना खाने के बाद उन्होंने और भी प्रोग्राम बना लिए थे.रात के 12 बज चुके थे. सब लोग सोने की तैयारी करने लगे. कल के जश्न के लिए सभी को रात देर तक उठे रहना था. हिना अभी तक युवाओं के साथ बैठी हुई थी. सिद्धार्थ बोला, ‘‘बूआ, तुम भी सो जाओ. थोड़ी देर और मस्ती कर के हम सब भी सोने चले जाएंगे.’’‘‘मु?ो नींद नहीं आ रही है. तुम लोगों के कार्यक्रम बहुत अच्छे लग रहे हैं. ऐसा मौका बारबार कहां मिलता है?’’
‘‘जैसी आप की इच्छा. मु?ो लगा, शायद आप जबरदस्ती यहां बैठी हैं.’’उस की बात सुन कर अनन्या ने एक नजर मम्मी पर डाली, लेकिन बोली कुछ नहीं. वह अच्छे से जानती थी कि मम्मी उसी की वजह से इतनी रात तक जागी हुई हैं, अन्यथा वे रोज 10 बजे ही सोने चली जाती हैं. हिना के साथ के सभी लोग सोने जा चुके थे. एकमात्र वही थीं जो उन युवाओं के बीच बैठ कर उन के कार्यक्रमों का मजा ले रही थीं.
रात के एक बजे कार्यक्रम खत्म हुए और सब अपनेअपने कमरों में सोने चले गए. अनन्या भी मम्मी के साथ कमरे में आ गई. हिना को लग रहा था, आज उस के कारण शायद वह आहत हुई है. हिना बोली, ‘‘सो जा बेटा. कल भी तुम्हें सारी रात जागना है.’’‘‘नींद की जरूरत मु?ा से ज्यादा आप को है मम्मी. आप की नींद पूरी न हो तो आप सुबह बड़ी चिड़चिड़ी सी हो जाती हैं. क्या जरूरत थी इतनी देर तक वहां बैठे रहने की?’’
‘‘मु?ो तुम्हारा डांस बहुत अच्छा लग रहा था.’’‘‘ज्यादा बहाने बनाने की जरूरत नहीं है मम्मी. मु?ो सब पता है कि आप मेरी चौकीदारी के लिए वहां बैठी थीं.’’‘‘ऐसा क्यों सोचती है तू? मु?ो तेरी चिंता रहती है, बस.’’‘‘ऐसी चिंता किस काम की, जिस पर मम्मीपापा चौकीदार नजर आने लगें.’’
अनन्या की बात पर हिना कुछ नहीं बोली और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वे अनन्या को किस तरह सम?ाएं. आज के जमाने में युवा लड़कियों को जितना खतरा बाहर से है, उस से अधिक खतरा अपने लोगों से है. बाहर वालों के खिलाफ तो खुल कर आवाज उठाई जा सकती है, लेकिन घर वालों के खिलाफ मुंह खोलने के लिए बहुत अधिक साहस चाहिए.
यह सोच कर वे अतीत में गोते लगाने लगीं. वह बचपन से मम्मीपापा के साथ कानपुर में रहती थी. शहर के नजदीक होने की वजह से उन के घर मेहमानों का आनाजाना लगा रहता. ताऊजी, चाचाजी, बूआजी, मामाजी व अन्य दूर के सभी रिश्तेदार अकसर मम्मीपापा से मिलने आ जाते. कभी कोई बीमार पड़ता तो वह उन्हीं के घर पर महीनों तक डेरा डाल लेता.
मम्मी के बड़े भाई गणेश मामा के 2 जवान बेटे थे. उन में से बड़े बेटे शेखर की कम उम्र में ही शादी हो गई थी और वे एक कंपनी में नौकरी करते थे. जबकि छोटा बेटा अभी पढ़ाई कर रहा था. वह हिना के बड़े भाई रमेश का हमउम्र था. बचपन से हिना उन के साथ घुलीमिली थी. अकसर वे उन के घर आतेजाते रहते. गणेश मामा कानपुर में ही रहते थे. मम्मी अपने भतीजों का बहुत ध्यान रखती.
एक बार शेखर की तबीयत खराब हो गई. उन के फेफड़ों में पानी भर गया था.मामा को शेखर की देखभाल करने में परेशानी हो रही थी. यह देख कर मम्मी ने उन्हें अपने घर पर बुला लिया, जिस से उन की ठीक से देखभाल हो सके.
शेखर की उम्र तकरीबन 26 साल की थी और वे एक बच्चे के पिता भी बन चुके थे. उन की पत्नी रूपा मामी गांव में थी. मम्मी ने बड़े भैया का कमरा उन्हें दे दिया. वह दिनरात उन की खिदमत में लगी रहती ताकि वे जल्दी ठीक हो कर नौकरी पर चले जाएं.
हिना और उस का छोटा भाई अरुण एक ही कमरे में अलग बिस्तर पर सोते. मम्मीपापा का अलग कमरा था. हिना के कमरे से लगा हुआ बड़े भैया का कमरा था. गरमी में मच्छरों के आतंक से बचने के लिए सभी के बिस्तर पर मच्छरदानी लगी रहती.
एक दिन उस ने महसूस किया कि रात में कोई उस की मच्छरदानी खींच रहा है. कुछ देर बाद एक हाथ मच्छरदानी के अंदर उस के पैरों तक पहुंच गया. हिना ने पूरा जोर लगा कर उसे ?ाटक दिया. कुछ देर बाद उसे वही हाथ अपने शरीर पर रेंगता हुआ महसूस हुआ. उस ने उस पर दांत गड़ा दिए तो हाथ तेजी से मच्छरदानी से बाहर निकल गया.
इस घटना के बाद वह सुकून से सो न सकी. उसे महसूस हो गया कि यह किस का हाथ था, लेकिन वह कुछ कह न पाई.सुबह उठ कर उस ने मम्मी से इस का जिक्र नहीं किया. छोटा भाई निश्ंिचत हो कर बगल की चारपाई पर सोया था. उसे इस का इल्म तक न था. दूसरे दिन उस ने मम्मी से पूछा, ‘‘शेखर भैया कब तक यहां रहेंगे?’’‘‘अभी उन की तबीयत ठीक नहीं है. हो सकता है कि कुछ हफ्ते और लग जाएं.’’
‘‘मम्मी, आप उन्हें उन के घर भेज दो.’’‘‘तु?ो क्या परेशानी है उन से? बेचारा एक कमरे में पड़ा रहता है. उस की तबीयत सुधर जाएगी, तो मैं खुद ही उसे जाने के लिए कह दूंगी. तू जानती है कि तेरी मामी यहां नहीं रहती. घर में उस की देखभाल करने वाला कोई नहीं है,’’ मम्मी बोली.
‘‘अब उन की तबीयत काफी सुधर गई है. वे चाहें तो मामी को गांव से बुला सकते हैं.’’ ‘‘बहकीबहकी बातें कर रही है तू? वह मेरा भतीजा और तेरा भाई है. रमेश और उस में क्या फर्क है? तु?ो भी उस का खयाल रखना चाहिए.’’ उन का तर्क सुन कर वह चुप हो गई.
अगले दिन रात को फिर वही घटना घटी. इस बार सुरक्षा के तौर पर हिना ने मच्छरदानी बहुत अच्छी तरह से गद्दे के नीचे दबा दी और अपने साथ बिस्तर पर टौर्च रख ली. मच्छरदानी खिंचने के साथ हाथ महसूस करते ही वह ?ाट से उठ कर बैठ गई और जोर से बोली, ‘‘कौन है?’’उस की आवाज और टौर्च की रोशनी से मम्मी उठ गईं. वे तुरंत उस के पास पहुंच कर बोलीं, ‘‘क्या हुआ हिना?’’
‘‘मम्मी, मु?ो लगा जैसे कोई मेरी मच्छरदानी खींच रहा है. खतरा महसूस होते ही मैं ने टौर्च जला दी. सामने शेखर भैया खड़े थे.’’उसे देख कर मम्मी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ शेखर? तुम यहां कैसे चले आए?’’ ‘‘बूआजी, बहुत जोर की प्यास लगी थी. पानी खत्म हो गया. वही लेने जा रहा था. शायद दरवाजा खुलने की आवाज से हिना डर कर उठ गई.’’
‘‘कोई बात नहीं बेटा. तू आराम कर. मैं पानी ला कर रख देती हूं,’’ कह कर उस ने जग भर पानी उन के कमरे में रख दिया.आज रात इतना कुछ अपनी आंखों से देख कर भी मम्मी को कुछ सम?ा नहीं आया था. हिना परेशान थी कि यह बात उन्हें कैसे सम?ाए? सीधे इलजाम लगाने पर बात बहुत बढ़ सकती थी और अंत में उसे ही चुप करा दिया जाता. लिहाजा, वह चुप ही रही.
अगली रात सोने से पहले उस ने मम्मी को हिदायत दे दी, ‘‘मम्मी, शेखर भैया के कमरे में हर चीज पहले से ही रख दिया करो. जरा सी खटपट होने पर मेरी नींद खुल जाती है. मु?ो रात में किसी का कमरे में आना अच्छा नहीं लगता.’’
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लेखिका- डा. के रानी
‘‘मम्मी प्लीज, मैं कोई बच्ची नहीं हूं. 16 साल की हो गई हूं. मु?ो भी अपने भलेबुरे की पहचान है.’’ ‘‘जानती हूं, फिर भी मैं कुछ मामलों में बिलकुल रिस्क नहीं उठा सकती.’ ‘‘इस में रिस्क की क्या बात है? हम सब आपस में रिश्तेदार हैं.’’
‘‘तुम नहीं सम?ाती अनन्या. बस, मेरी बात मान लो. मैं जानती हूं कि तुम्हें यह सब देखसुन कर बुरा लगता है, फिर भी इस से आगे कुछ मत कहो और इस टौपिक को यहीं खत्म कर दो.’’
अपना सामान व्यवस्थित कर के वह राशि दी के पास चली गई. राशि दी एकएक कर के उसे शादी का सामान दिखा रही थीं और अनन्या उस पर अपनी टिप्पणियां दे रही थी. उस के बाद वह ईशा के साथ आ गई.
खाना खाने के बहुत देर बाद अनन्या मम्मी के पास आई. हिना उस समय राशि के साथ बातें कर रही थी. बातें तो एक बहाना था. दरअसल, वह उसी के आने का इंतजार कर रही थी. दोनों कमरे में आ कर कुछ देर बातें करती रहीं और फिर आराम से सो गईं.
अगले दिन सुबह से ही मेहमानों का आनाजाना शुरू हो गया था. राशि दी के परिवार में यह पहली शादी थी. सारे रिश्तेदार शादी में शामिल होने सपरिवार आए थे. बूआ, मौसी, चाचा, ताऊ और छोटे दादाजी सब अपने परिवार के साथ पहुंच गए थे. घर पर रिश्तेदारों का मेला लग गया था. सभी के बच्चे जवान थे. कुछ की शादी हो चुकी थी और उन के साथ छोटे बच्चे भी आए हुए थे. यह सब देख कर राशि दी बहुत खुश थीं. वे खुद भी बहुत व्यवहारकुशल थीं. हरेक के सुखदुख में शामिल होने वे सब से पहले पहुंच जातीं. इसी वजह से सभी लोग ईशा की शादी में एक दिन पहले ही पहुंच गए थे.
सुबह से ही घर में शादी की रस्में चल रही थीं. हिना राशि दी के साथ हर काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अनन्या कजिन के साथ बातों में व्यस्त थी. सब अपने कामों में लगे थे. जवान लड़कियों को सजनेसंवरने और शाम को होने वाले महिला संगीत में विशेष रुचि थी. उन्होंने पहले से ही प्रोग्राम बना लिया था कि सब मिल कर खूब धमाल मचाएंगे. इस के लिए वे दिनभर तैयारी करते रहे थे.
शाम हुई. अच्छेखासे जलपान के बाद अधिकांश अपने घर चले गए. अब युवाओं की महफिल सजने लगी थी. डैक पर नए गाने बज रहे थे और उस की धुन पर सभी युवा थिरक रहे थे. उस में पासपड़ोस के युवा भी शामिल थे. आए हुए युवा मेहमानों के कुछ दोस्त भी शादी में शिरकत कर रहे थे. अनन्या गुलाबी लहंगे में बहुत खूबसूरत लग रही थी. उस की दीपक मामा के बेटे सिद्धार्थ से बहुत अच्छी पटती थी. वे दोनों साथ मिल कर दिनभर से प्रैक्टिस कर रहे थे. शाम को उन का प्रदर्शन सब से अच्छा था. सब उन्हें बधाई दे रहे थे.
हिना को यह कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा. रात को खाना खाने के बाद उन्होंने और भी प्रोग्राम बना लिए थे.रात के 12 बज चुके थे. सब लोग सोने की तैयारी करने लगे. कल के जश्न के लिए सभी को रात देर तक उठे रहना था. हिना अभी तक युवाओं के साथ बैठी हुई थी. सिद्धार्थ बोला, ‘‘बूआ, तुम भी सो जाओ. थोड़ी देर और मस्ती कर के हम सब भी सोने चले जाएंगे.’’‘‘मु?ो नींद नहीं आ रही है. तुम लोगों के कार्यक्रम बहुत अच्छे लग रहे हैं. ऐसा मौका बारबार कहां मिलता है?’’
‘‘जैसी आप की इच्छा. मु?ो लगा, शायद आप जबरदस्ती यहां बैठी हैं.’’उस की बात सुन कर अनन्या ने एक नजर मम्मी पर डाली, लेकिन बोली कुछ नहीं. वह अच्छे से जानती थी कि मम्मी उसी की वजह से इतनी रात तक जागी हुई हैं, अन्यथा वे रोज 10 बजे ही सोने चली जाती हैं. हिना के साथ के सभी लोग सोने जा चुके थे. एकमात्र वही थीं जो उन युवाओं के बीच बैठ कर उन के कार्यक्रमों का मजा ले रही थीं.
रात के एक बजे कार्यक्रम खत्म हुए और सब अपनेअपने कमरों में सोने चले गए. अनन्या भी मम्मी के साथ कमरे में आ गई. हिना को लग रहा था, आज उस के कारण शायद वह आहत हुई है. हिना बोली, ‘‘सो जा बेटा. कल भी तुम्हें सारी रात जागना है.’’‘‘नींद की जरूरत मु?ा से ज्यादा आप को है मम्मी. आप की नींद पूरी न हो तो आप सुबह बड़ी चिड़चिड़ी सी हो जाती हैं. क्या जरूरत थी इतनी देर तक वहां बैठे रहने की?’’
‘‘मु?ो तुम्हारा डांस बहुत अच्छा लग रहा था.’’‘‘ज्यादा बहाने बनाने की जरूरत नहीं है मम्मी. मु?ो सब पता है कि आप मेरी चौकीदारी के लिए वहां बैठी थीं.’’‘‘ऐसा क्यों सोचती है तू? मु?ो तेरी चिंता रहती है, बस.’’‘‘ऐसी चिंता किस काम की, जिस पर मम्मीपापा चौकीदार नजर आने लगें.’’
अनन्या की बात पर हिना कुछ नहीं बोली और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वे अनन्या को किस तरह सम?ाएं. आज के जमाने में युवा लड़कियों को जितना खतरा बाहर से है, उस से अधिक खतरा अपने लोगों से है. बाहर वालों के खिलाफ तो खुल कर आवाज उठाई जा सकती है, लेकिन घर वालों के खिलाफ मुंह खोलने के लिए बहुत अधिक साहस चाहिए.
यह सोच कर वे अतीत में गोते लगाने लगीं. वह बचपन से मम्मीपापा के साथ कानपुर में रहती थी. शहर के नजदीक होने की वजह से उन के घर मेहमानों का आनाजाना लगा रहता. ताऊजी, चाचाजी, बूआजी, मामाजी व अन्य दूर के सभी रिश्तेदार अकसर मम्मीपापा से मिलने आ जाते. कभी कोई बीमार पड़ता तो वह उन्हीं के घर पर महीनों तक डेरा डाल लेता.
मम्मी के बड़े भाई गणेश मामा के 2 जवान बेटे थे. उन में से बड़े बेटे शेखर की कम उम्र में ही शादी हो गई थी और वे एक कंपनी में नौकरी करते थे. जबकि छोटा बेटा अभी पढ़ाई कर रहा था. वह हिना के बड़े भाई रमेश का हमउम्र था. बचपन से हिना उन के साथ घुलीमिली थी. अकसर वे उन के घर आतेजाते रहते. गणेश मामा कानपुर में ही रहते थे. मम्मी अपने भतीजों का बहुत ध्यान रखती.
एक बार शेखर की तबीयत खराब हो गई. उन के फेफड़ों में पानी भर गया था.मामा को शेखर की देखभाल करने में परेशानी हो रही थी. यह देख कर मम्मी ने उन्हें अपने घर पर बुला लिया, जिस से उन की ठीक से देखभाल हो सके.
शेखर की उम्र तकरीबन 26 साल की थी और वे एक बच्चे के पिता भी बन चुके थे. उन की पत्नी रूपा मामी गांव में थी. मम्मी ने बड़े भैया का कमरा उन्हें दे दिया. वह दिनरात उन की खिदमत में लगी रहती ताकि वे जल्दी ठीक हो कर नौकरी पर चले जाएं.
हिना और उस का छोटा भाई अरुण एक ही कमरे में अलग बिस्तर पर सोते. मम्मीपापा का अलग कमरा था. हिना के कमरे से लगा हुआ बड़े भैया का कमरा था. गरमी में मच्छरों के आतंक से बचने के लिए सभी के बिस्तर पर मच्छरदानी लगी रहती.
एक दिन उस ने महसूस किया कि रात में कोई उस की मच्छरदानी खींच रहा है. कुछ देर बाद एक हाथ मच्छरदानी के अंदर उस के पैरों तक पहुंच गया. हिना ने पूरा जोर लगा कर उसे ?ाटक दिया. कुछ देर बाद उसे वही हाथ अपने शरीर पर रेंगता हुआ महसूस हुआ. उस ने उस पर दांत गड़ा दिए तो हाथ तेजी से मच्छरदानी से बाहर निकल गया.
इस घटना के बाद वह सुकून से सो न सकी. उसे महसूस हो गया कि यह किस का हाथ था, लेकिन वह कुछ कह न पाई.सुबह उठ कर उस ने मम्मी से इस का जिक्र नहीं किया. छोटा भाई निश्ंिचत हो कर बगल की चारपाई पर सोया था. उसे इस का इल्म तक न था. दूसरे दिन उस ने मम्मी से पूछा, ‘‘शेखर भैया कब तक यहां रहेंगे?’’‘‘अभी उन की तबीयत ठीक नहीं है. हो सकता है कि कुछ हफ्ते और लग जाएं.’’
‘‘मम्मी, आप उन्हें उन के घर भेज दो.’’‘‘तु?ो क्या परेशानी है उन से? बेचारा एक कमरे में पड़ा रहता है. उस की तबीयत सुधर जाएगी, तो मैं खुद ही उसे जाने के लिए कह दूंगी. तू जानती है कि तेरी मामी यहां नहीं रहती. घर में उस की देखभाल करने वाला कोई नहीं है,’’ मम्मी बोली.
‘‘अब उन की तबीयत काफी सुधर गई है. वे चाहें तो मामी को गांव से बुला सकते हैं.’’ ‘‘बहकीबहकी बातें कर रही है तू? वह मेरा भतीजा और तेरा भाई है. रमेश और उस में क्या फर्क है? तु?ो भी उस का खयाल रखना चाहिए.’’ उन का तर्क सुन कर वह चुप हो गई.
अगले दिन रात को फिर वही घटना घटी. इस बार सुरक्षा के तौर पर हिना ने मच्छरदानी बहुत अच्छी तरह से गद्दे के नीचे दबा दी और अपने साथ बिस्तर पर टौर्च रख ली. मच्छरदानी खिंचने के साथ हाथ महसूस करते ही वह ?ाट से उठ कर बैठ गई और जोर से बोली, ‘‘कौन है?’’उस की आवाज और टौर्च की रोशनी से मम्मी उठ गईं. वे तुरंत उस के पास पहुंच कर बोलीं, ‘‘क्या हुआ हिना?’’
‘‘मम्मी, मु?ो लगा जैसे कोई मेरी मच्छरदानी खींच रहा है. खतरा महसूस होते ही मैं ने टौर्च जला दी. सामने शेखर भैया खड़े थे.’’उसे देख कर मम्मी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ शेखर? तुम यहां कैसे चले आए?’’ ‘‘बूआजी, बहुत जोर की प्यास लगी थी. पानी खत्म हो गया. वही लेने जा रहा था. शायद दरवाजा खुलने की आवाज से हिना डर कर उठ गई.’’
‘‘कोई बात नहीं बेटा. तू आराम कर. मैं पानी ला कर रख देती हूं,’’ कह कर उस ने जग भर पानी उन के कमरे में रख दिया.आज रात इतना कुछ अपनी आंखों से देख कर भी मम्मी को कुछ सम?ा नहीं आया था. हिना परेशान थी कि यह बात उन्हें कैसे सम?ाए? सीधे इलजाम लगाने पर बात बहुत बढ़ सकती थी और अंत में उसे ही चुप करा दिया जाता. लिहाजा, वह चुप ही रही.
अगली रात सोने से पहले उस ने मम्मी को हिदायत दे दी, ‘‘मम्मी, शेखर भैया के कमरे में हर चीज पहले से ही रख दिया करो. जरा सी खटपट होने पर मेरी नींद खुल जाती है. मु?ो रात में किसी का कमरे में आना अच्छा नहीं लगता.’’
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October 29, 2021 at 10:00AM