Saturday 31 October 2020

न्यूज़ एक क्लिक में जानिए नौकरी से लेकर विवाह तक ...

आइए आपको बताते हैं आपकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कौन सा व्रत बेहतर होगा. नौकरी के ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/34Ipyu5
आइए आपको बताते हैं आपकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कौन सा व्रत बेहतर होगा. नौकरी के ...

आज की सलाह: अगर नौकरी न बदल पा रहे हैं तो करें ये उपाय

... की सलाह में ज्योतिषी शैलेन्द्र पाण्डेय बताते हैं क‍ि अगर आप अपनी नौकरी न बदल पा ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3mGdS11
... की सलाह में ज्योतिषी शैलेन्द्र पाण्डेय बताते हैं क‍ि अगर आप अपनी नौकरी न बदल पा ...

डिग्री लाओ नौकरी पाओ:स्वास्थ्य विभाग में नौकरी पर ...

जदयू से, लोजपा से और ओवैसी की पार्टी से। कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3ej5Zf1
जदयू से, लोजपा से और ओवैसी की पार्टी से। कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ...

Bihar Election : चुनावी जंग में नौकरी और रोजगार बने हथियार ...

एलजेपी के चिराग पासवान ने एक वेब पोर्टल के जरिए लोगों को नौकरी देने का वादा किया ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3oMCuqH
एलजेपी के चिराग पासवान ने एक वेब पोर्टल के जरिए लोगों को नौकरी देने का वादा किया ...

नौकरी की तलाश के लिए LinkedIn ने लॉन्च किया नया करियर ...

अमेरिकी इम्प्लॉयमेंट ओरिएंटेड सर्विस लिंकडिन (LinkedIn) ने नौकरी की तलाश करने ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/320UJip
अमेरिकी इम्प्लॉयमेंट ओरिएंटेड सर्विस लिंकडिन (LinkedIn) ने नौकरी की तलाश करने ...

सेना में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी करने वाले गिरोह ...

रामगढ़ के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने रविवार को बताया कि सेना में नौकरी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/35PitaE
रामगढ़ के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार ने रविवार को बताया कि सेना में नौकरी ...

18 हजार की नौकरी के लिए दक्षिण अमेरिकी देश चले जाते ...

इन नौजवानों में आधे ऐसे हैं जो विदेशों में नौकरी करते थे। कतर से लौटकर आए नौशाद ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/34K3Eqd
इन नौजवानों में आधे ऐसे हैं जो विदेशों में नौकरी करते थे। कतर से लौटकर आए नौशाद ...

'कितने भी नारे लगाओ, हाथ में हुनर नहीं तो किसी में ...

किसी में दम नहीं है कि नौकरी लगवा दे। यह बात शनिवार को 'युवाओं का स्वर्णिम भविष्य' ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2HWz9Ez
किसी में दम नहीं है कि नौकरी लगवा दे। यह बात शनिवार को 'युवाओं का स्वर्णिम भविष्य' ...

10 लाख नौकरी के बाद अब तेजस्वी यादव ने रिटायरमेंट की ...

चुनावी साल में बिहार के 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने की घोषणा करने वाले ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/35Nw2qW
चुनावी साल में बिहार के 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने की घोषणा करने वाले ...

राजस्थान के 11 हजार बेरोजगारों को दस महीने से नौकरी ...

पहले नौकरी का यह मामला कई महीनों तक परीक्षा के फेर में उलझा रहा। फिर परीक्षा हुई ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2HW8E2o
पहले नौकरी का यह मामला कई महीनों तक परीक्षा के फेर में उलझा रहा। फिर परीक्षा हुई ...

सरकारी नौकरी नहीं आई रास, 38 युवाओं ने किया किनारा

सरकारी नौकरी, अच्छा वेतन और अन्य सुविधाएं, आज के दौर में हर युवा की पहली पसंद है।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2HWNv7S
सरकारी नौकरी, अच्छा वेतन और अन्य सुविधाएं, आज के दौर में हर युवा की पहली पसंद है।

कमाई के ये 6 तरीके कराते हैं अतिरिक्त इनकम, जानें ...

नौकरी जाने के बाद लोग निराश होकर घर पर बैठे हैं। महामारी संकट में एक नई नौकरी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/323xRPz
नौकरी जाने के बाद लोग निराश होकर घर पर बैठे हैं। महामारी संकट में एक नई नौकरी ...

सरकारी नौकरी लगने के लिए भगवान से मांगी ऐसी मन्नत ...

तमिलनाडु के कन्याकुमारी में एक अजीब मामले में एक व्यक्ति ने अपनी सरकारी नौकरी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/34LmP31
तमिलनाडु के कन्याकुमारी में एक अजीब मामले में एक व्यक्ति ने अपनी सरकारी नौकरी ...

नौकरी लगाने के नाम पर 20 करोड़ की ठगी:ठगी के शिकार लोग ...

नौकरी लगाने के नाम पर 20 करोड़ की ठगी:ठगी के शिकार लोग अब दूसरे थाने में केस करना ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3eeRN6H
नौकरी लगाने के नाम पर 20 करोड़ की ठगी:ठगी के शिकार लोग अब दूसरे थाने में केस करना ...

तीन हजार पदों पर पुलिस भर्ती:देरी हुई तो तीन साल में ...

... देरी हुई तो कांग्रेस सरकार अपने इस कार्यकाल में युवाओं को नौकरी नहीं दे पाएगी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3kLdcXT
... देरी हुई तो कांग्रेस सरकार अपने इस कार्यकाल में युवाओं को नौकरी नहीं दे पाएगी ...

अंक ज्योतिष (Ank Jyotish) 01 नवम्बर​, 2020: नौकरी के मामले में ...

अंक ज्योतिष (Ank Jyotish) 01 नवम्बर​, 2020: नौकरी के मामले में अच्छा है इन अंक वालों का दिन ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3jHWxTL
अंक ज्योतिष (Ank Jyotish) 01 नवम्बर​, 2020: नौकरी के मामले में अच्छा है इन अंक वालों का दिन ...

रक्षा नौकरी रिक्तियों का मंत्रालय 2020

रक्षा भर्ती 2020 मंत्रालय रक्षा भर्ती 2020 मंत्रालय– रक्षा मंत्रालय, टर्मिनल ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3mzItxg
रक्षा भर्ती 2020 मंत्रालय रक्षा भर्ती 2020 मंत्रालय– रक्षा मंत्रालय, टर्मिनल ...

दिल्लीः 5000 से ज्यादा बदमाशों को पकड़ने वाले ...

बंटी को एक जासूसी कंपनी में नौकरी दिलाने के अलावा उसके रहने के लिए मकान भी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3kYwitm
बंटी को एक जासूसी कंपनी में नौकरी दिलाने के अलावा उसके रहने के लिए मकान भी ...

बाहर से लौटे 12 हजार में सिर्फ 2620 को मिला रोजगार

... प्रवासी गैर प्रांतों और शहरों से नौकरी या रोजगार गंवाकर जिले में लौटे हैं।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2TNVLK5
... प्रवासी गैर प्रांतों और शहरों से नौकरी या रोजगार गंवाकर जिले में लौटे हैं।

खुद्दार कहानी:तीन दोस्तों ने लाखों की नौकरी छोड़ ...

ओशांक, हर्षित और मोहित… आज की कहानी इन तीन दोस्तों की, जो अपनी-अपनी कमाऊ नौकरी से ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2HJp7qY
ओशांक, हर्षित और मोहित… आज की कहानी इन तीन दोस्तों की, जो अपनी-अपनी कमाऊ नौकरी से ...

ईपीएफ पर नौकरी से निकालने की मिलती धमकी

वहीं पालिका अफसर पर गंभीर आरोप लगाए। कहा कि ईपीएफ की मांग करने पर अब नौकरी से ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/35QE3vo
वहीं पालिका अफसर पर गंभीर आरोप लगाए। कहा कि ईपीएफ की मांग करने पर अब नौकरी से ...

माध्यमिक स्कूलों के 600 अतिथि शिक्षकों के सामने ...

नौकरी के दिन गिन रहे अतिथि शिक्षकों के लिए 2017 में तत्कालीन राज्य सरकार ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/37YNvPL
नौकरी के दिन गिन रहे अतिथि शिक्षकों के लिए 2017 में तत्कालीन राज्य सरकार ...

Friday 30 October 2020

नौकरी के नाम पर 80 लाख की ठगी, आरोपित गिरफ्तार

इंस्पेक्टर अंजनी कुमार पाण्डेय ने बताया कि सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2TCzfUH
इंस्पेक्टर अंजनी कुमार पाण्डेय ने बताया कि सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले ...

नौकरी के साथ लग गई लॉटरी

झाँसी : परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में नवनियुक्त सहायक अध्यापक नौकरी की ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3mFcI68
झाँसी : परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में नवनियुक्त सहायक अध्यापक नौकरी की ...

सड़क हादसे में मरे बर्खास्त पीटीआई के परिजनों को ...

वह रणबीर के एक परिजन को सरकारी नौकरी और परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/34He1er
वह रणबीर के एक परिजन को सरकारी नौकरी और परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता ...

सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर ठगे पांच लाख

भोपुरा की डिफेंस कॉलोनी में रहने वाली महिला ने पांच लोगों पर सरकारी नौकरी ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2HOGW7K
भोपुरा की डिफेंस कॉलोनी में रहने वाली महिला ने पांच लोगों पर सरकारी नौकरी ...

कौशल विकास से युवाओं को मिला रोजगार

यदि नौकरी नहीं कर रहे हैं तो अपना रोजगार कर रहे हैं। प्रशिक्षण के बाद मिली स्कूल ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2GdHL9q
यदि नौकरी नहीं कर रहे हैं तो अपना रोजगार कर रहे हैं। प्रशिक्षण के बाद मिली स्कूल ...

एक तरफ विकास व दूसरी तरफ विनाश के बीच लड़ाई : मंगल ...

तेजस्वी के दस लाख नौकरी देने के वायदे पर तंज कसते हुए कहा कि इनका सीधा मकसद ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2TEPMHB
तेजस्वी के दस लाख नौकरी देने के वायदे पर तंज कसते हुए कहा कि इनका सीधा मकसद ...

रेलवे में नौकरी का झांसा देकर ठगे 25 लाख, फर्जी ...

... नियुक्ति पत्र दे दिया। इसे लेकर जब नौकरी करने गए तो फर्जी होने का पता चला।

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/37XgIuH
... नियुक्ति पत्र दे दिया। इसे लेकर जब नौकरी करने गए तो फर्जी होने का पता चला।

ओपनर बैट्समैन की तरह है भाजपा-जदयू की जोड़ी : राजनाथ

नौकरी? देने का प्रलोभन दिया जा रहा है कहां से देंगे नौकरी? कैसे देंगे उनको ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3mEawvD
नौकरी? देने का प्रलोभन दिया जा रहा है कहां से देंगे नौकरी? कैसे देंगे उनको ...

नियोजन शब्द होगा खत्म, दी जाएगी युवाओं को स्थाई ...

इसी आधार पर नौकरी देने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता बचाने के ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3eeyevC
इसी आधार पर नौकरी देने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता बचाने के ...

पुलिस की नौकरी छोड़ शिक्षक बनेंगे 22 पुलिसकर्मी

कांस्टेबल की नौकरी के दौरान शिक्षक बने पुलिसकर्मियों के सामने कई दिनों तक ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2JcZP4D
कांस्टेबल की नौकरी के दौरान शिक्षक बने पुलिसकर्मियों के सामने कई दिनों तक ...

लॉकडाउन में नौकरी चली गई तो बन गया शराब तस्कर

दनकौर। कोतवाली क्षेत्र के चीती गांव निवासी एक युवक की लॉकडाउन में नौकरी चली गई ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3kLqaVg
दनकौर। कोतवाली क्षेत्र के चीती गांव निवासी एक युवक की लॉकडाउन में नौकरी चली गई ...

नौकरी दिलाने का झांसा देकर युवती का सौदा कर बेचने ...

नोएडा। युवती को नौकरी दिलाने के नाम पर नोएडा लाकर उसका सौदा 30 हज़ार में कर ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/2TDzmPA
नोएडा। युवती को नौकरी दिलाने के नाम पर नोएडा लाकर उसका सौदा 30 हज़ार में कर ...

Pappu Yadav Interview: क्‍या पप्पू यादव बनेंगे लालू का विकल्‍प ...

वे जो नौकरी देने का दावा कर रहे हैं झूठ है। वे क्या नौकरी देंगे जिन्होंने इस ...

from Google Alert - नौकरी https://ift.tt/3e9phDG
वे जो नौकरी देने का दावा कर रहे हैं झूठ है। वे क्या नौकरी देंगे जिन्होंने इस ...

जानपहचान : हिमांशु से मिलने को क्यों आतुर थी सीमा

जुलाई की एक शाम थी. कुछ देर पहले ही बरसात हुई थी. मौसम में अभी भी नमी बनी हुई थी. गीली मिट्टी की सौंधी सुगंध चारों ओर फैली हुई थी. सीमा को 2 घंटे हो गए थे. वह अपने कपड़े फाइनल नहीं कर पा रही थी, ‘क्या पहनूं? बरसात भी बंद हो गई है’. समय देखने के लिए उस ने घड़ी पर नजर डाली, ‘साढ़े 5 बज गए. लगता है मुझे देर हो जाएगी.’ उस ने जल्दी से कपड़े चेंज कर मां को आवाज लगाई, ‘‘मां, मैं जा रही हूं, मुझे आने में शायद देर हो जाएगी,’’ सीमा लगभग भागती हुई रैस्टोरैंट पहुंची. लतिका मैम ने उसे देखते ही कहा, ‘‘कम, लतिका.’’

‘‘यस, मैम,’’ यह कहते ही सीमा उस लेडी के पीछे हो ली. लतिका नए हेयरकट में बेहद सुंदर लग रही थी. साथ ही टाइट जींस और टाइट टीशर्ट, गले में बीड्स की माला और पैरों में सफेद रंग की हाई हील. उस के हेयरकट के साथ उस की सुंदरता को और बढ़ा रहे थे. कालेज में हमेशा लतिका मैडम को साड़ी और सूटसलवार में ही देखा था. उसे थोड़ा अटपटा जरूर लगा, लेकिन ठीक है उसे क्या लेनादेना, वह तो सिर्फ अपने काम के लिए आई है. ‘‘रैस्टोरेंट ढूंढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई,’’ लतिका मैडम ने उस के कपड़ों पर नजर डालते हुए पूछा.

ये भी पढ़ें- हो जाने दो -भाग 2 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

सीमा लौंग स्कर्ट और ढीला सा कुरता पहन कर आई थी और बालों की पोनी बना कर उन्हें बांधा था. ‘‘नहीं मैडम, ज्यादा परेशानी नहीं हुई.’’

 

‘‘अच्छा है, अभी हिमांशुजी आ रहे हैं. तुम अपने सारे सर्टिफिकेट तो लाई हो न.’’ ‘‘जी मैडम,’’ उस ने अपने आसपास देखा और बोली, ‘‘वैसे मुझे लगा था कि देर हो गई है.’’

लतिका के साथ बैठा रोनी हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हें अगर देर हो जाती तो यह रोल किसी और को मिल जाता. वैसे भी बड़े लोग जल्दी कहां आते हैं.’’

लतिका मैडम ने उसे घूरा और बोली, ‘‘रोनी, तुम कब सीरियस होगे,’’ फिर सीमा की तरफ देख कर बोली, ‘‘इसे तो तुम जानती हो न, यह रोनी है.’’ ‘‘यस, मैडम.’’

तभी 2 और लड़कों ने रैस्टोरैंट में प्रवेश किया. वे तेजी से चलते हुए लतिका मैडम की तरफ आ रहे थे. ‘‘आज तो गरमी ने हद कर दी है,’’ उस में से एक ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और पसीना पोंछने लगा.

‘‘इतनी देर कहां कर दी, सुमेर.’’ ‘‘मैडम बरसात हो रही थी इसलिए थोड़ी देर हो गई.’’

‘‘यह तो अच्छा है कि अभी तक हिमांशुजी नहीं आए हैं वरना…’’ ‘‘कितनी उमस है आज,’’ फिर लतिका मैडम की तरफ देख कर बोला, ‘‘मैडम, हिमांशुजी आएंगे भी या नहीं या आज फिर खाली हाथ लौटना होगा.’’

ये भी पढ़ें- खानाबदोश : माया और राजेश अपने सपनों के घर से क्यों बेघर हो गए

‘‘मेरी उन से फोन पर बात हुई थी, वे थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले हैं,’’ वेटर को और्डर दे कर वह सीमा का सब से परिचय कराने लगी, ‘‘सीमा, यह सुमेर है और यह अर्जुन.’’ ‘‘मैडम, नम्रता और दीपाली नहीं आईं.’’

‘‘वे आज नहीं आएंगी क्योंकि उन का घर बहुत दूर है. इस बारिश ने सबकुछ गड़बड़ कर दिया.’’ वे सब आपस में बातें करने लगे. सीमा आसपास मौजूद एकएक वस्तु का मुआयना करने लगी. वह सोच रही थी, ‘कैसे होंगे हिमांशुजी जिन का सब इंतजार कर रहे हैं.’

उस ने अपने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, साथ वाली टेबल पर अधेड़ उम्र के 2 आदमी बैठे थे. ‘‘अरे यार, फिर से बीवी का फोन है, जरा सा मजा भी नहीं लेने देती.’’

‘‘सुन ले न,’’ दूसरा आदमी बोला. ‘‘हां, तू विस्की और्डर कर मैं फोन सुन कर आता हूं.’’

कुछ देर बाद दोनों शराब की चुसकियों के साथ पता नहीं किस के खयालों में खो गए. ‘‘ये आजकल के लड़कों ने अच्छी रीत बना रखी है, डेट पर जाने की.’’

‘‘सीमा, लो न, कहां खो गई हो,’’ उस ने देखा उस के सामने बियर की बोतलें पड़ी हैं.

‘‘नहीं मैडम, मैं नहीं पीती.’’ ‘‘अरे लो न, आज से तुम हमारी मंडली में शामिल हो रही हो तो हम जैसा तो बनना ही पड़ेगा.’’

‘‘नहीं मैडम, प्लीज, आप मेरे लिए कौफी मंगवा दें.’’ ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी. आज पहला दिन है इसलिए आज तुम्हें छोड़ देते हैं, लेकिन आगे से नहीं,’’ लतिका मैडम ने यह कह कर वेटर को आवाज लगाई.

ये भी पढ़ें- जिजीविषा : अनु पर लगे आरोपों से कैसे हिल गई सीमा

2 टेबल छोड़ कर एक नवविवाहित जोड़ा बैठा हुआ था. सीमा ने देखा कि उस नवविवाहिता ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी और बहुत मेकअप किया हुआ था. उस की साड़ी का पल्लू बारबार गिर जाता था. पता नहीं वह अपने पति को आकर्षित कर रही थी या फिर हौल में बैठे लोगों को. पति उस के मुंह में चम्मच से आइसक्रीम डाल रहा था और वह अदाओं से उस की तरफ देख रही थी. बीचबीच में वह अपने आसपास भी देख लेती थी.

‘‘क्या आइटम है,’’ तभी उस के कानों में आवाज आई, सुमेर उस नवविवाहिता के लिए कह रहा था. ‘‘छोड़ो न उसे, तुम इधर ध्यान दो,’’ लतिका मैडम ने उसे डांट लगाते हुए कहा.

‘‘स्क्रिप्ट क्या है मैडम?’’ ‘‘अभी मुझे कुछ नहीं पता, हिमांशुजी के आने पर ही सब फाइनल होगा.’’

‘‘वैसे प्ले का नाम क्या है?’’ ‘‘एक मुट्ठी आसमान.’’

‘‘और हीरोइन कौन है?’’ ‘‘तुम्हारे सामने तो बैठी है.’’

‘‘क्या?’’ सब ने आश्चर्य से सीमा को देखा, जैसे कोई अनोखी लड़की देख ली हो.

‘‘अरे, अभी नाम फाइनल नहीं हुआ है. वैसे मैं ने सीमा को कालेज के प्ले में परफौर्म करते देखा है. क्या कमाल की अदाकारा है.’’ ‘‘लेकिन क्या यह हिमांशुजी को…’’ अर्जुन कहतेकहते रुक गया.

‘‘हां, क्यों नहीं.’’ सीमा अपनेआप में सिकुड़ रही थी. भले ही उस के प्ले ने कालेज में धूम मचाई थी, पर प्रोफैशनली वह पहली बार किसी से मिलने आई थी, ऐसी अजीबोगरीब जगह पर.

‘‘आप कुछ बोलती भी हैं या सिर्फ प्ले में ही अपनी जबान खोलती हैं,’’ रोनी उस का मजाक उड़ाते हुए बोला तो सब

हंस पड़े. ‘‘अभी नई है न, फिर देखना,’’ लतिका मैडम ने उस का बचाव किया.

‘‘अच्छा, कौफी तो लो.’’ ‘‘हां,’’ ऐसा कह कर सीमा ने हलकेहलके सिप लेने शुरू किए और बाकी सब बियर की बोतलें खाली करने लगे.

सीमा को ये सब अजीब लग रहा था. लतिका मैडम की आजादी, उस की तरफ उन का झुकाव, क्यों कर रही हैं वे उस के लिए, क्यों उसे ही मिलने के लिए बुलाया है, इसी उधेड़बुन में डूबी सीमा ने फिर सोचा, ‘बस, एक बार काम मिल जाए तो अपनी प्रतिभा दिखा दूंगी और फिर सब बातों से पीछा छूट जाएगा.’ तभी अर्जुन ने अपनी घड़ी देखी, ‘‘मैडम, लगता है आज भी हिमांशुजी से मुलाकात नहीं होगी. बहुत देर हो गई है मुझे, इसलिए जाना पड़ेगा.’’

‘‘फिर तो मुझे भी तेरे साथ जाना पड़ेगा क्योंकि मैं तेरे साथ बाइक पर आया था. वरना 200 रुपए खर्च कर के वापस जाना पड़ेगा,’’ सुमेर कहते हुए खड़ा हो गया. ‘‘मैडम, मैं भी चलती हूं. बहुत देर हो गई है. इतनी रात तक मैं अकेली कभी

ये भी पढ़ें- मन की थाह : बुढ़ापे में क्यों की उसने शादी

भी घर से बाहर नहीं रही,’’ सीमा भी खड़ी हो गई. ‘‘लेकिन तुम नहीं जा सकती सीमा क्योंकि ये दोनों तो पहले भी हिमांशुजी से मिल चुके हैं और इन के रोल फाइनल हैं, लेकिन यह तुम्हारी पहली मुलाकात है, फिर बड़े आदमी तो हमेशा देर से ही आते हैं. अगर तुम्हारे जाने के बाद हिमांशुजी आए तो तुम्हें न पा कर बुरा मान जाएंगे और यह न तो तुम्हारे लिए सही होगा और न ही मेरे लिए,’’ लतिका मैडम एक सांस में इतना कुछ बोल गई.

कुछ देर बाद रोनी भी बहाना बना कर चलता बना. ‘‘बहुत देर से तलब लग रही थी, अब मौका मिला है,’’ सब के जाने के बाद लतिका ने सिगरेट जला ली. सीमा को उस का धुआं बरदाश्त नहीं हो रहा था. चारों तरफ शराब और सिगरेट की गंध फैली हुई थी. सीमा का मन कर रहा था कि वह वहां से उठ कर भाग जाए पर हिमांशुजी से मिलना भी जरूरी था.

‘‘तुम्हें पता है, इस रोल के लिए कितनी लड़कियां मेरे पास आई थीं, पर मुझे सब से ज्यादा प्रतिभा तुम में दिखाई दी और इसलिए मैं ने तुम्हें हिमांशुजी से मिलवाने का फैसला किया है.’’ तभी लतिका मैडम बोली, ‘‘वह देखो, हिमांशुजी आ गए हैं.’’

सीमा ने देखा, एक अधेड़ उम्र का गंजा आदमी उस की ओर चला आ रहा है. उस ने महंगे कपड़े पहने हुए हैं. उस के साथ 2 और आदमी हैं पर हिमांशुजी ने उन्हें वहीं रुकने का इशारा किया. ‘‘अरे, बैठोबैठो, मुझे बहुत ज्यादा देर तो नहीं हो गई लतिका,’’ कहते हुए वे सीमा के पास वाली कुरसी पर बैठ गए.

‘‘अरे, नहीं सर.’’ सीमा हैरानी से उन्हें देखे जा रही थी.

‘‘सर, यह है सीमा. मैं ने आप से इस के बारे में बात की थी.’’ उस ने सीमा को ऐसे देखा जैसे हलाल करने से पहले कसाई अपने बकरे को देखता है. सीमा ने डर कर अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘ओह, तो आप हैं सीमाजी.’’ ‘‘यह बहुत प्रतिभावान है सर, आप इस के सर्टिफिकेट्स देखिए.’’

‘‘हांहां, जरूर देखेंगे इन के सर्टिफिकेट्स,’’ उन की नजर अभी भी सीमा के चेहरे पर गड़ी हुई थी. ‘‘सीमा दिखाओ, इन्हें अपने सर्टिफिकेट्स.’’

‘‘जी, मैडम.’’ ‘‘बहुत बढि़या,’’ उन्होंने एक उड़ती हुई नजर उन सर्टिफिकेट्स पर डाली, ‘‘वैसे तुम ने इन्हें सब समझा दिया है न,’’ उन्होंने अपना एक हाथ सीमा के कंधे पर रख दिया.

‘‘समझाना क्या है सर, आजकल की लड़कियां तो वैसे भी बहुत समझदार होती हैं,’’ और उस ने अपनी एक आंख झपका कर इशारा किया. ‘‘लगता है आप वैजिटेरियन हैं,’’ हिमांशुजी ने उस के आगे पड़े हुए कौफी के कप को देख कर कहा.

‘‘जी, मैं समझी नहीं.’’ ‘‘आप कौफी पी रही हैं.’’

कौफी और वैजिटेरियन का संबंध सीमा को समझ नहीं आया. ‘‘हां, तो सीमा हमारी शर्तें क्याक्या होंगी, वह तुम्हें लतिका समझा देगी,’’ उन का हाथ धीरेधीरे सीमा की पीठ पर सरकने लगा था.

‘‘जी, सर,’’ सीमा की सोचनेसमझने की शक्ति खत्म होती जा रही थी. ‘‘रिहर्सल कब से शुरू होगी वह भी तुम्हें लतिका ही समझा देगी,’’ कहते हुए इस बार उन का हाथ सीमा की जांघ पर आ गया. सीमा को लगा जैसे हजार चींटियां उस के बदन पर रेंग रही हैं.

सीमा झटके से खड़ी हो गई, ‘’मैडम मुझे अब चलना चाहिए.‘’ ‘’लेकिन अभी तो जानपहचान नहीं हुई है,‘’ लतिका बोली.

सीमा का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था. अपना पर्स उठाते हुए तेजी से उस ने कहा ‘’इतनी जानपहचान मेरे लिए काफी है.‘’ वह भाग कर बाहर आ गई और घर

की ओर बढ़ने लगी. पूरा घटनाक्रम उस के दिमाग में चल रहा था. हिमांशु का उसे देखना, छूना सर्टिफिकेट तो मात्र बहाना था. यह सब लतिका की एक चाल थी. फिल्म दिलवाने के नाम पर वह उसे किसी और ही काम में फंसा रही थी. यह सब सोचते हुए उसे लगा मानो दिमाग की नसें फट जाएगी. वह जोरजोर से सांस लेने लगी. बाहर अभी भी बहुत उमस थी पर उसे वह उमस अंदर की ठंडी हवा से कहीं ज्यादा अच्छी लग रही थी. वह एक मुट्ठी आसमान के लिए अपना सारा जहां कुरबान नहीं कर सकती थी.

The post जानपहचान : हिमांशु से मिलने को क्यों आतुर थी सीमा appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3oHNoOu

जुलाई की एक शाम थी. कुछ देर पहले ही बरसात हुई थी. मौसम में अभी भी नमी बनी हुई थी. गीली मिट्टी की सौंधी सुगंध चारों ओर फैली हुई थी. सीमा को 2 घंटे हो गए थे. वह अपने कपड़े फाइनल नहीं कर पा रही थी, ‘क्या पहनूं? बरसात भी बंद हो गई है’. समय देखने के लिए उस ने घड़ी पर नजर डाली, ‘साढ़े 5 बज गए. लगता है मुझे देर हो जाएगी.’ उस ने जल्दी से कपड़े चेंज कर मां को आवाज लगाई, ‘‘मां, मैं जा रही हूं, मुझे आने में शायद देर हो जाएगी,’’ सीमा लगभग भागती हुई रैस्टोरैंट पहुंची. लतिका मैम ने उसे देखते ही कहा, ‘‘कम, लतिका.’’

‘‘यस, मैम,’’ यह कहते ही सीमा उस लेडी के पीछे हो ली. लतिका नए हेयरकट में बेहद सुंदर लग रही थी. साथ ही टाइट जींस और टाइट टीशर्ट, गले में बीड्स की माला और पैरों में सफेद रंग की हाई हील. उस के हेयरकट के साथ उस की सुंदरता को और बढ़ा रहे थे. कालेज में हमेशा लतिका मैडम को साड़ी और सूटसलवार में ही देखा था. उसे थोड़ा अटपटा जरूर लगा, लेकिन ठीक है उसे क्या लेनादेना, वह तो सिर्फ अपने काम के लिए आई है. ‘‘रैस्टोरेंट ढूंढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई,’’ लतिका मैडम ने उस के कपड़ों पर नजर डालते हुए पूछा.

ये भी पढ़ें- हो जाने दो -भाग 2 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

सीमा लौंग स्कर्ट और ढीला सा कुरता पहन कर आई थी और बालों की पोनी बना कर उन्हें बांधा था. ‘‘नहीं मैडम, ज्यादा परेशानी नहीं हुई.’’

 

‘‘अच्छा है, अभी हिमांशुजी आ रहे हैं. तुम अपने सारे सर्टिफिकेट तो लाई हो न.’’ ‘‘जी मैडम,’’ उस ने अपने आसपास देखा और बोली, ‘‘वैसे मुझे लगा था कि देर हो गई है.’’

लतिका के साथ बैठा रोनी हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हें अगर देर हो जाती तो यह रोल किसी और को मिल जाता. वैसे भी बड़े लोग जल्दी कहां आते हैं.’’

लतिका मैडम ने उसे घूरा और बोली, ‘‘रोनी, तुम कब सीरियस होगे,’’ फिर सीमा की तरफ देख कर बोली, ‘‘इसे तो तुम जानती हो न, यह रोनी है.’’ ‘‘यस, मैडम.’’

तभी 2 और लड़कों ने रैस्टोरैंट में प्रवेश किया. वे तेजी से चलते हुए लतिका मैडम की तरफ आ रहे थे. ‘‘आज तो गरमी ने हद कर दी है,’’ उस में से एक ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और पसीना पोंछने लगा.

‘‘इतनी देर कहां कर दी, सुमेर.’’ ‘‘मैडम बरसात हो रही थी इसलिए थोड़ी देर हो गई.’’

‘‘यह तो अच्छा है कि अभी तक हिमांशुजी नहीं आए हैं वरना…’’ ‘‘कितनी उमस है आज,’’ फिर लतिका मैडम की तरफ देख कर बोला, ‘‘मैडम, हिमांशुजी आएंगे भी या नहीं या आज फिर खाली हाथ लौटना होगा.’’

ये भी पढ़ें- खानाबदोश : माया और राजेश अपने सपनों के घर से क्यों बेघर हो गए

‘‘मेरी उन से फोन पर बात हुई थी, वे थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले हैं,’’ वेटर को और्डर दे कर वह सीमा का सब से परिचय कराने लगी, ‘‘सीमा, यह सुमेर है और यह अर्जुन.’’ ‘‘मैडम, नम्रता और दीपाली नहीं आईं.’’

‘‘वे आज नहीं आएंगी क्योंकि उन का घर बहुत दूर है. इस बारिश ने सबकुछ गड़बड़ कर दिया.’’ वे सब आपस में बातें करने लगे. सीमा आसपास मौजूद एकएक वस्तु का मुआयना करने लगी. वह सोच रही थी, ‘कैसे होंगे हिमांशुजी जिन का सब इंतजार कर रहे हैं.’

उस ने अपने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, साथ वाली टेबल पर अधेड़ उम्र के 2 आदमी बैठे थे. ‘‘अरे यार, फिर से बीवी का फोन है, जरा सा मजा भी नहीं लेने देती.’’

‘‘सुन ले न,’’ दूसरा आदमी बोला. ‘‘हां, तू विस्की और्डर कर मैं फोन सुन कर आता हूं.’’

कुछ देर बाद दोनों शराब की चुसकियों के साथ पता नहीं किस के खयालों में खो गए. ‘‘ये आजकल के लड़कों ने अच्छी रीत बना रखी है, डेट पर जाने की.’’

‘‘सीमा, लो न, कहां खो गई हो,’’ उस ने देखा उस के सामने बियर की बोतलें पड़ी हैं.

‘‘नहीं मैडम, मैं नहीं पीती.’’ ‘‘अरे लो न, आज से तुम हमारी मंडली में शामिल हो रही हो तो हम जैसा तो बनना ही पड़ेगा.’’

‘‘नहीं मैडम, प्लीज, आप मेरे लिए कौफी मंगवा दें.’’ ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी. आज पहला दिन है इसलिए आज तुम्हें छोड़ देते हैं, लेकिन आगे से नहीं,’’ लतिका मैडम ने यह कह कर वेटर को आवाज लगाई.

ये भी पढ़ें- जिजीविषा : अनु पर लगे आरोपों से कैसे हिल गई सीमा

2 टेबल छोड़ कर एक नवविवाहित जोड़ा बैठा हुआ था. सीमा ने देखा कि उस नवविवाहिता ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी और बहुत मेकअप किया हुआ था. उस की साड़ी का पल्लू बारबार गिर जाता था. पता नहीं वह अपने पति को आकर्षित कर रही थी या फिर हौल में बैठे लोगों को. पति उस के मुंह में चम्मच से आइसक्रीम डाल रहा था और वह अदाओं से उस की तरफ देख रही थी. बीचबीच में वह अपने आसपास भी देख लेती थी.

‘‘क्या आइटम है,’’ तभी उस के कानों में आवाज आई, सुमेर उस नवविवाहिता के लिए कह रहा था. ‘‘छोड़ो न उसे, तुम इधर ध्यान दो,’’ लतिका मैडम ने उसे डांट लगाते हुए कहा.

‘‘स्क्रिप्ट क्या है मैडम?’’ ‘‘अभी मुझे कुछ नहीं पता, हिमांशुजी के आने पर ही सब फाइनल होगा.’’

‘‘वैसे प्ले का नाम क्या है?’’ ‘‘एक मुट्ठी आसमान.’’

‘‘और हीरोइन कौन है?’’ ‘‘तुम्हारे सामने तो बैठी है.’’

‘‘क्या?’’ सब ने आश्चर्य से सीमा को देखा, जैसे कोई अनोखी लड़की देख ली हो.

‘‘अरे, अभी नाम फाइनल नहीं हुआ है. वैसे मैं ने सीमा को कालेज के प्ले में परफौर्म करते देखा है. क्या कमाल की अदाकारा है.’’ ‘‘लेकिन क्या यह हिमांशुजी को…’’ अर्जुन कहतेकहते रुक गया.

‘‘हां, क्यों नहीं.’’ सीमा अपनेआप में सिकुड़ रही थी. भले ही उस के प्ले ने कालेज में धूम मचाई थी, पर प्रोफैशनली वह पहली बार किसी से मिलने आई थी, ऐसी अजीबोगरीब जगह पर.

‘‘आप कुछ बोलती भी हैं या सिर्फ प्ले में ही अपनी जबान खोलती हैं,’’ रोनी उस का मजाक उड़ाते हुए बोला तो सब

हंस पड़े. ‘‘अभी नई है न, फिर देखना,’’ लतिका मैडम ने उस का बचाव किया.

‘‘अच्छा, कौफी तो लो.’’ ‘‘हां,’’ ऐसा कह कर सीमा ने हलकेहलके सिप लेने शुरू किए और बाकी सब बियर की बोतलें खाली करने लगे.

सीमा को ये सब अजीब लग रहा था. लतिका मैडम की आजादी, उस की तरफ उन का झुकाव, क्यों कर रही हैं वे उस के लिए, क्यों उसे ही मिलने के लिए बुलाया है, इसी उधेड़बुन में डूबी सीमा ने फिर सोचा, ‘बस, एक बार काम मिल जाए तो अपनी प्रतिभा दिखा दूंगी और फिर सब बातों से पीछा छूट जाएगा.’ तभी अर्जुन ने अपनी घड़ी देखी, ‘‘मैडम, लगता है आज भी हिमांशुजी से मुलाकात नहीं होगी. बहुत देर हो गई है मुझे, इसलिए जाना पड़ेगा.’’

‘‘फिर तो मुझे भी तेरे साथ जाना पड़ेगा क्योंकि मैं तेरे साथ बाइक पर आया था. वरना 200 रुपए खर्च कर के वापस जाना पड़ेगा,’’ सुमेर कहते हुए खड़ा हो गया. ‘‘मैडम, मैं भी चलती हूं. बहुत देर हो गई है. इतनी रात तक मैं अकेली कभी

ये भी पढ़ें- मन की थाह : बुढ़ापे में क्यों की उसने शादी

भी घर से बाहर नहीं रही,’’ सीमा भी खड़ी हो गई. ‘‘लेकिन तुम नहीं जा सकती सीमा क्योंकि ये दोनों तो पहले भी हिमांशुजी से मिल चुके हैं और इन के रोल फाइनल हैं, लेकिन यह तुम्हारी पहली मुलाकात है, फिर बड़े आदमी तो हमेशा देर से ही आते हैं. अगर तुम्हारे जाने के बाद हिमांशुजी आए तो तुम्हें न पा कर बुरा मान जाएंगे और यह न तो तुम्हारे लिए सही होगा और न ही मेरे लिए,’’ लतिका मैडम एक सांस में इतना कुछ बोल गई.

कुछ देर बाद रोनी भी बहाना बना कर चलता बना. ‘‘बहुत देर से तलब लग रही थी, अब मौका मिला है,’’ सब के जाने के बाद लतिका ने सिगरेट जला ली. सीमा को उस का धुआं बरदाश्त नहीं हो रहा था. चारों तरफ शराब और सिगरेट की गंध फैली हुई थी. सीमा का मन कर रहा था कि वह वहां से उठ कर भाग जाए पर हिमांशुजी से मिलना भी जरूरी था.

‘‘तुम्हें पता है, इस रोल के लिए कितनी लड़कियां मेरे पास आई थीं, पर मुझे सब से ज्यादा प्रतिभा तुम में दिखाई दी और इसलिए मैं ने तुम्हें हिमांशुजी से मिलवाने का फैसला किया है.’’ तभी लतिका मैडम बोली, ‘‘वह देखो, हिमांशुजी आ गए हैं.’’

सीमा ने देखा, एक अधेड़ उम्र का गंजा आदमी उस की ओर चला आ रहा है. उस ने महंगे कपड़े पहने हुए हैं. उस के साथ 2 और आदमी हैं पर हिमांशुजी ने उन्हें वहीं रुकने का इशारा किया. ‘‘अरे, बैठोबैठो, मुझे बहुत ज्यादा देर तो नहीं हो गई लतिका,’’ कहते हुए वे सीमा के पास वाली कुरसी पर बैठ गए.

‘‘अरे, नहीं सर.’’ सीमा हैरानी से उन्हें देखे जा रही थी.

‘‘सर, यह है सीमा. मैं ने आप से इस के बारे में बात की थी.’’ उस ने सीमा को ऐसे देखा जैसे हलाल करने से पहले कसाई अपने बकरे को देखता है. सीमा ने डर कर अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘ओह, तो आप हैं सीमाजी.’’ ‘‘यह बहुत प्रतिभावान है सर, आप इस के सर्टिफिकेट्स देखिए.’’

‘‘हांहां, जरूर देखेंगे इन के सर्टिफिकेट्स,’’ उन की नजर अभी भी सीमा के चेहरे पर गड़ी हुई थी. ‘‘सीमा दिखाओ, इन्हें अपने सर्टिफिकेट्स.’’

‘‘जी, मैडम.’’ ‘‘बहुत बढि़या,’’ उन्होंने एक उड़ती हुई नजर उन सर्टिफिकेट्स पर डाली, ‘‘वैसे तुम ने इन्हें सब समझा दिया है न,’’ उन्होंने अपना एक हाथ सीमा के कंधे पर रख दिया.

‘‘समझाना क्या है सर, आजकल की लड़कियां तो वैसे भी बहुत समझदार होती हैं,’’ और उस ने अपनी एक आंख झपका कर इशारा किया. ‘‘लगता है आप वैजिटेरियन हैं,’’ हिमांशुजी ने उस के आगे पड़े हुए कौफी के कप को देख कर कहा.

‘‘जी, मैं समझी नहीं.’’ ‘‘आप कौफी पी रही हैं.’’

कौफी और वैजिटेरियन का संबंध सीमा को समझ नहीं आया. ‘‘हां, तो सीमा हमारी शर्तें क्याक्या होंगी, वह तुम्हें लतिका समझा देगी,’’ उन का हाथ धीरेधीरे सीमा की पीठ पर सरकने लगा था.

‘‘जी, सर,’’ सीमा की सोचनेसमझने की शक्ति खत्म होती जा रही थी. ‘‘रिहर्सल कब से शुरू होगी वह भी तुम्हें लतिका ही समझा देगी,’’ कहते हुए इस बार उन का हाथ सीमा की जांघ पर आ गया. सीमा को लगा जैसे हजार चींटियां उस के बदन पर रेंग रही हैं.

सीमा झटके से खड़ी हो गई, ‘’मैडम मुझे अब चलना चाहिए.‘’ ‘’लेकिन अभी तो जानपहचान नहीं हुई है,‘’ लतिका बोली.

सीमा का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था. अपना पर्स उठाते हुए तेजी से उस ने कहा ‘’इतनी जानपहचान मेरे लिए काफी है.‘’ वह भाग कर बाहर आ गई और घर

की ओर बढ़ने लगी. पूरा घटनाक्रम उस के दिमाग में चल रहा था. हिमांशु का उसे देखना, छूना सर्टिफिकेट तो मात्र बहाना था. यह सब लतिका की एक चाल थी. फिल्म दिलवाने के नाम पर वह उसे किसी और ही काम में फंसा रही थी. यह सब सोचते हुए उसे लगा मानो दिमाग की नसें फट जाएगी. वह जोरजोर से सांस लेने लगी. बाहर अभी भी बहुत उमस थी पर उसे वह उमस अंदर की ठंडी हवा से कहीं ज्यादा अच्छी लग रही थी. वह एक मुट्ठी आसमान के लिए अपना सारा जहां कुरबान नहीं कर सकती थी.

The post जानपहचान : हिमांशु से मिलने को क्यों आतुर थी सीमा appeared first on Sarita Magazine.

October 31, 2020 at 10:00AM

जहर का पौधा : भाभी का मन क्यों हो गया था इतना कठोर

बहुत ज्यादा थक गया था डाक्टर मनीष. अभी अभी भाभी का औपरेशन कर के वह अपने कमरे में लौटा था. दरवाजे पर भैया खड़े थे. उन की सफेद हुई जा रही आंखों को देख कर भी वह उन्हें ढाढ़स न बंधा सका था. भैया के कंधे पर हाथ रखने का हलका सा प्रयास मात्र कर के रह गया था.

टेबललैंप की रोशनी बुझा कर आरामकुरसी पर बैठना उसे अच्छा लगा था. वह सोच रहा था कि अगर भाभी न बच सकीं तो भैया जरूर उसे हत्यारा कहेंगे. भैया कहेंगे कि मनीष ने बदला निकाला है. भैया ऐसा न सोचें, वह यह मान नहीं सकता. उन्होंने पहले डाक्टर चंद्रकांत को भाभी के औपरेशन के लिए बुलाया था. डाक्टर चंद्रकांत अचानक दिल्ली चले गए थे. इस के बाद भैया ने डाक्टर विमल को बुलाने की कोशिश की थी, पर जब वे भी न मिले तो अंत में मजबूर हो कर उन्होंने डाक्टर मनीष को ही स्वीकार कर लिया था.

औपरेशनटेबल पर लेटने से पहले भाभी आंखों में आंसू लिए भैया से मिल चुकी थीं, मानो यह उन का अंतिम मिलन हो. उस ने भाभी को बारबार ढाढ़स दिलाया था, ‘‘भाभी, आप का औपरेशन जरूर सफल होगा.’’ किंतु भीतर ही भीतर भाभी उस का विश्वास न कर सकी थीं. और भैया कैसे उस पर विश्वास कर लेते? वे तो आजीवन भाभी के पदचिह्नों पर चलते रहे हैं.

ये भी पढ़ें- हो जाने दो -भाग 3 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

डाक्टर मनीष जानता है कि आज से 30 वर्ष पहले जहर का जो पौधा भाभी के मन में उग आया था, उसे वह स्नेह की पैनी से पैनी कुल्हाड़ी से भी नहीं काट सका. वह यह सोच कर संतुष्ट रह गया था कि संसार की कई चीजों को मानव चाह कर भी समाप्त करने में असमर्थ रहता है.

जहर के इस पौधे का बीजारोपण भाभी के मन में उन की शादी के समय हुआ था. तब मनीष 10 वर्ष का रहा होगा. भैया की बरात बड़ी धूमधाम से नरसिंहपुर गई थी. उसे दूल्हा बने भैया के साथ घोड़े पर बैठने में बड़ा आनंद आ रहा था. आने वाली भाभी के प्रति सोचसोच कर उस का बालकमन हवा से बातें कर रहा था. मां कहा करती थीं, ‘मनीष, तेरी भाभी आ जाएगी तो तू गुड्डो का मुकाबला करने के काबिल हो जाएगा. यदि गुड्डो तुझे अंगरेजी में चिढ़ाएगी तो तू भी भाभी से सारे अर्थ समझ कर उसे जवाब दे देना.’ वह सोच रहा था, भाभी यदि उस का पक्ष लेंगी तो बेचारी गुड्डो अकेली पड़ जाएगी. उस के बाद मन को बेचारी गुड्डो पर रहरह कर तरस आ रहा था.

भैया का ब्याह देखने के लिए वह रातभर जागा था और घूंघट ओढ़े भाभी को लगातार देखता रहा था. सुबह बरात के लौटने की तैयारी होने लगी थी. विवाह के अवसर पर नरसिंहपुर के लोगों ने सप्रेम भेंट के नाम पर वरवधू को बरतन, रुपए और अन्य कई किस्मों की भेंटें दी थीं. बरतन और अन्य उपहार तो भाभी के पिताजी ने दे दिए थे किंतु रुपयों के मामले में वे अड़ गए थे. इस बात को मनीष के पिता ने भी तूल दे दिया था.

ये भी पढ़ें- खानाबदोश : माया और राजेश अपने सपनों के घर से क्यों बेघर हो गए

भाभी के पिता का कहना था कि वे रुपए लड़की के पिता के होते हैं, जबकि मनीष के पिता कह रहे थे कि यह भी लोगों द्वारा वरवधू को दिया गया एक उपहार है, सो, लड़की के पिता को इस पर अपनी निगाह नहीं रखनी चाहिए.

बात बढ़ गई थी और मामला सार्वजनिक हो गया था. तुरंत ही पंचायत बैठाई गई. पंचायत में फैसला हुआ कि ये रुपए वरवधू के खाते में ही जाएंगे.

इस फैसले से भाभी के पिता मन ही मन सुलग उठे. उस समय तो वे मौन रह गए, किंतु बाद में इस का बदला निकालने का उन्होंने प्रण कर लिया.

उन की बेटी ससुराल से पहली बार 4 दिनों के लिए मायके आई तो उन्होंने बेटी के सामने रोते हुए कहा था, ‘बेटा, तेरे ससुर ने जिस दिन से मेरा अपमान किया है, मैं मन ही मन राख हुआ जा रहा हूं.’

भाभी ने पिता को सांत्वना देते हुए कहा था, ‘पिताजी, आप रोनाधोना छोडि़ए. मैं प्रण करती हूं कि आप के अपमान का बदला ऐसे लूंगी कि ससुर साहब का घर उजड़ कर धूल में मिल जाएगा. ससुरजी को मैं बड़ी कठोर सजा दूंगी.’

ये भी पढ़ें- जिजीविषा : अनु पर लगे आरोपों से कैसे हिल गई सीमा

इस के पश्चात भाभी ने ससुराल आते ही किसी उपन्यास की खलनायिका की तरह शतरंज की बिसात बिछा दी. चालें चलने वाली वे अकेली थीं. सब से पहले उन्होंने राजा को अपने वश में किया. भैया के प्रति असाधारण प्रेम की जो गंगा उन्होंने बहाई, तो भैया उसी को वैतरणी समझने लगे. भैया ने पारिवारिक कर्तव्यों की उपेक्षा सी कर दी.

मनीष को अच्छी तरह याद है कि एक बार वह महल्ले के बच्चों के साथ गुल्लीडंडा खेल रहा था. गुल्ली अचानक भाभी के कमरे में घुस गई थी. वह गुल्ली उठाने तेजी से लपका. रास्ते में खिड़की थी, उस ने अंदर निगाह डाली. भाभी एक चाबी से माथे पर घाव कर रही थीं.

जब वह दरवाजे से हो कर अंदर गया तो भाभी सिर दबाए बैठी थीं. उस ने बड़ी कोमलता से पूछा, ‘क्या हुआ, भाभी?’ तब वे मुसकरा कर बोली  थीं, ‘कुछ नहीं.’ वह गुल्ली उठा कर वापस चला गया था.

लेकिन शाम को सब के सामने भैया ने मनीष को चांटे लगाते हुए कहा था, ‘बेशर्म, गुल्ली से भाभी के माथे पर घाव कर दिया और पूछा तक नहीं.’ भाभी के इस ड्रामे पर तो मनीष सन्न रह गया था. उस के मुंह से आवाज तक न निकली थी. निकलती भी कैसे? उम्र में बड़ी और आदर करने योग्य भाभी की शिकायत भैया से कर के उसे और ज्यादा थोड़े पिटना था.

ये भी पढ़ें- प्यार है नाम तुम्हारा-भाग 2: स्नेहा कि मां के साथ क्या हुआ था?

भैया घर के सारे लोगों पर नाराज हो रहे थे कि उन की पत्नी से कोई भी सहानुभूति नहीं रखता. सभी चुपचाप थे. किसी ने भी भैया से एक शब्द नहीं कहा था. इस के बाद भैया ने पिताजी, मां और भाईबहनों से बात करना छोड़ दिया था. वे अधिकांश समय भाभी के कमरे में ही गुजारते थे.

इस के बाद एक सुबह की बात है. भैया को सुबह जल्दी जाना था. भाभी भैया के लिए नाश्ता तैयार करने के लिए चौके में आईं. चौके में सभी सदस्य बैठे थे, सभी को चाय का इंतजार था. मनीष रो रहा था कि उसे जल्दी चाय चाहिए. मां उसे समझा रही थीं, ‘बेटा, चाय का पानी चूल्हे पर रखा है, अभी 2 मिनट में उबल जाएगा.’

उसी समय भाभी ने चूल्हे से चाय उतार कर नाश्ते की कड़ाही चढ़ा दी. मां ने मनीष के आंसू देखते हुए कहा, ‘बहू, चाय तो अभी दो मिनट में बन जाएगी, जरा ठहर जाओ न.’

इतनी सी बात पर भाभी ने चूल्हे पर रखी कड़ाही को फेंक दिया. अपना सिर पकड़ कर वे नीचे बैठ गईं और जोर से बोलीं, ‘मैं अभी आत्महत्या कर लेती हूं. तुम सब लोग मुझ से और मेरे पति से जलते हो.’

इतना सुन कर भैया दौड़ेदौड़े आए और भाभी का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गए. वे भी चीखने लगे, ‘मीरा, तुम इन जंगलियों के बीच में न बैठा करो. खाना अपने कमरे में ही बनेगा. ये अनपढ़ लोग तुम्हारी कद्र करना क्या जानें.’

भैया के आग्रह पर 4-5 दिनों बाद ही घर के बीच में दीवार उठा दी गई. सारा सामान आधाआधा बांट लिया गया. इस बंटवारे से पिताजी को बहुत बड़ा धक्का लगा था. वे बीमार रहने लगे थे. उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र लिख दिया था.

ये भी पढ़ें- नई सुबह : शराबी पति से परेशान नीता की जिंदगी कैसे बदल गई

भैया केंद्र सरकार की ऊंची नौकरी में थे. अच्छाखासा वेतन उन्हें मिलता था. मनीष को याद नहीं है कि विवाह के बाद भैया ने एक रुपया भी पिताजी की हथेली पर धरा हो. पिताजी को इस बात की चिंता भी न थी. पुरानी संपत्ति काफी थी, घर चल जाता था.

एक दिन भाभी के गांव से कुछ लोग आए. गरमी के दिन थे. मनीष और घर के सभी लोग बाहर आंगन में सो रहे थे. अचानक मां आगआग चिल्लाईं. सभी लोग शोर से जाग गए. देखा तो घर जल रहा था. पड़ोसियों ने पानी डाला, दमकल विभाग की गाडि़यां आईं. किसी तरह आग पर काबू पाया गया. घर का सारा कीमती सामान जल कर राख हो गया था. घर के नाम पर अब खंडहर बचा था. भैया के हिस्से वाले घर को अधिक क्षति नहीं पहुंची थी. पिताजी ने कमचियों की दीवार लगा कर किसी तरह घर को ठीक किया था. मां रोती रहीं. मां का विश्वास था कि यह करतूत भाभी के गांव से आए लोगों की थी. पिताजी ने मां को उस वक्त खामोश कर दिया था, ‘बिना प्रमाण के इस तरह की बातें करना अच्छा नहीं होता.’

साहूकारी में लगा रुपया किसी तरह एकत्र कर के पिताजी ने मनीष की दोनों बहनों का विवाह निबटाया था.

उस समय मनीष 10वीं कक्षा का विद्यार्थी था. मां को गठियावात हो गया था. वे बिस्तर से चिपक गई थीं. पिताजी मां की सेवा करते रहे. मगर सेवा कहां तक करते? दवा के लिए तो पैसे थे ही नहीं. मनीष को स्कूल की फीस तक जुटाना बड़ा दुरूह कार्य था, सो, पिताजी ने, जो अब अशक्त और बूढ़े हो गए थे, एक जगह चौकीदारी की नौकरी कर ली.

भाभी को उन लोगों पर बड़ा तरस आया था. वे कहने लगीं, ‘मनीष, हमारे यहां खाना खा लिया करेगा.’ मां के बहुत कहने पर मनीष तैयार हो गया था. वह पहले दिन भाभी के घर खाने को गया तो भाभी ने उस की थाली में जरा सी खिचड़ी डाली और स्वयं पड़ोसी के यहां गपें लड़ाने चली गईं. उस दिन वह बेचारा भूखा ही रह गया था.

मनीष ने निश्चय कर लिया था कि अब वह भाभी के घर खाना खाने नहीं जाएगा. इस का परिणाम यह निकला कि भाभी ने सारे महल्ले में मनीष को अकड़बाज की उपाधि दिलाने का प्रयास किया.

मां कई दिनों तक बीमार पड़ी रहीं और एक दिन चल बसीं. मनीष रोता रह गया. उस के आंसू पोंछने वाला कोई भी न था.

पिताजी का अशक्त शरीर इस सदमे को बरदाश्त न कर सका. वे भी बीमार रहने लगे. अचानक एक दिन उन्हें लकवा मार गया. मनीष की पढ़ाई छूट गई. वह पिताजी की दिनरात सेवा करने में जुट गया. पिताजी कुछ ठीक हुए तो मनीष ने पास की एक फैक्टरी में मजदूरी करनी शुरू कर दी.

लकवे के एक वर्ष पश्चात पिताजी को हिस्टीरिया हो गया. उसी बीमारी के दौरान वे चल बसे. मनीष के चारों ओर विपत्तियां ही विपत्तियां थीं और विपत्तियों में भैयाभाभी का भयानक चेहरा उस के कोमल हृदय पर पीड़ाओं का अंबार लगा देता. उस ने शहर छोड़ देना ही उचित समझा.

एक दिन चुपके से वह मुंबई की ओर प्रस्थान कर गया. वहां कुछ हमदर्द लोगों ने उसे ट्यूशन पढ़ाने के लिए कई बच्चे दिला दिए. मनीष ने ट्यूशन करते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. प्रथम श्रेणी में पास होने से उसे मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया. उसे स्कौलरशिप भी मिलती थी.

फिर एक दिन मनीष डाक्टर बन गया. दिन गुजरते रहे. मनीष ने विवाह नहीं किया. वह डाक्टर से सर्जन बन गया. फिर उस का तबादला नागपुर हो गया यानी वह फिर से अपने शहर में आ गया.

मनीष ने भैया व भाभी से फिर से संबंध जोड़ने के प्रयास किए थे किंतु वह असफल रहा था. भाभी घायल नागिन की तरह उस से अभी भी चिढ़ी हुई थीं. उन्हें दुख था तो यह कि उन्होंने जिस परिवार को उजाड़ने का प्रण लिया था, उसी परिवार का एक सदस्य पनपने लगा था.

मनीष को भाभी के इस प्रण की भनक लग गई थी किंतु इस से उसे कोई दुख नहीं हुआ. उस के चेहरे पर हमेशा चेरी के फूल की हंसी थिरकती रहती थी. उस ने सोच रखा था कि भाभी के मन में उगे जहर के पौधे को वह एक दिन जरूर धराशायी कर देगा.

मनीष को संयोग से मौका मिल भी गया था. भाभी के पेट में एक बड़ा फोड़ा हो गया था. उस फोड़े को समाप्त करने के लिए औपरेशन जरूरी था. यह संयोग की ही बात थी कि वह औपरेशन मनीष को ही करना पड़ा.

वह जानता था कि यदि औपरेशन असफल रहा तो भैया जरूर उस पर हत्या का आरोप लगा देंगे. वह अपने कमरे में बैठा इसी बात को बारबार सोच रहा था.

उसी वक्त मनीष के सहायक डाक्टर रामन ने कमरे में प्रवेश किया. ‘‘हैलो, सर, मीराजी अब खतरे से बाहर हैं,’’ रामन ने टेबललैंप की रोशनी करते हुए कहा.

‘‘थैंक्यू डाक्टर, आप ने बहुत अच्छी खबर सुनाई,’’ मनीष ने कहा, ‘‘लेकिन आगे भी मरीज की देखभाल बहुत सावधानी से होनी चाहिए.’’

‘‘ऐसा ही होगा, सर,’’ डाक्टर रामन ने कहा.

‘‘मीराजी के पास एक और नर्स की ड्यूटी लगा दी जाए,’’ मनीष ने आदेश दिया.

‘‘अच्छा, सर,’’  डाक्टर रामन बोला. एक सप्ताह में मनीष की भाभी का स्वास्थ्य ठीक हो गया. हालांकि अभी औपरेशन के टांके कच्चे थे लेकिन उन के शरीर में कुछ शक्ति आ गई थी. मनीष भाभी से मिलने के लिए रोज जाता था. वह उन्हें गुलाब का एक फूल रोज भेंट करता था.

एक महीने बाद भाभी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. मनीष भैया भाभी को टैक्सी तक छोड़ने गया. सारी राह भैया अस्पताल की चर्चा करते रहे. भाभी कुछ शर्माई सी चुपचुप रहीं.

मनीष ने कहा, ‘‘भाभीजी, मेरी फीस नहीं दोगी.’’

‘‘क्या दूं तुम्हें?’’ भाभी के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘सिर्फ गुलाब का एक फूल,’’ मनीष ने मुसकराते हुए कहा.

घर पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही भाभी के स्वस्थ हो जाने की खुशी में महल्लेभर के लोगों को भोज दिया गया. भाभी सब से कह रही थीं, ‘‘मैं बच ही गई वरना इस खतरनाक रोग से बचने की उम्मीद कम ही होती है.’’

लेकिन भाभी का मन लगातार कह रहा था, ‘मनीष ने अस्पताल में मेरे लिए कितना बढि़या इंतजाम कराया. मैं ने उसे बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किंतु उस ने मेरा औपरेशन कितने अच्छे ढंग से किया.’

भाभी बारबार मनीष को भुलाने का प्रयास करतीं किंतु उस की भोली सूरत और मुसकराता चेहरा सामने आ जाता. वे सोचतीं, ‘आखिर बेचारे ने मांगा भी क्या, सिर्फ एक गुलाब का फूल.’

आखिर भाभी से रहा नहीं गया. उन्होंने अपने बाग में से ढेर सारे गुलाब के फूल तोड़े और अपने पति के पास गईं.

‘‘जरा सुनिए, आज के भोज में सारे महल्ले के लोग शामिल हैं, यदि मनीष को भी अस्पताल से बुला लें तो कैसा रहेगा वरना लोग बाद में क्या कहेंगे?’’

‘‘हां, कहती तो सही हो,’’ भैया बोले, ‘‘अभी बुलवा लेता हूं उसे.’’

एक आदमी दौड़ादौड़ा अस्पताल गया मनीष को बुलाने, लेकिन मनीष नहीं आ सका. वह किसी दूसरे मरीज का जीवन बचाने में पिछली रात से ही उलझा हुआ था. मनीष ने संदेश भेज दिया कि वह एक घंटे बाद आ जाएगा.

किंतु मरीज की दशा में सुधार न हो पाने के कारण मनीष अपने वादे के मुताबिक भोज में नहीं पहुंच सका. भाभी द्वारा तोड़े गए गुलाब जब मुरझाने लगे तो भाभी ने खुद अस्पताल जाने का निश्चय कर लिया.

भोज में पधारे सारे मेहमान रवाना हो गए, तब भाभी ने मनीष के लिए टिफिन तैयार किया और गुलाब का फूल ले कर भैया के साथ अस्पताल की ओर रवाना हो गईं.

अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि मनीष एक वार्ड में पलंग पर आराम कर रहा है. उस ने मरीज को अपना स्वयं का खून दिया था, क्योंकि तुरंत कोई व्यवस्था नहीं हो पाई थी और मरीज की जान बचाना अति आवश्यक था.

भाभी को जब यह जानकारी मिली कि मनीष ने एक गरीब रोगी को अपना खून दिया है तो उन के मन में अचानक ही मनीष के लिए बहुत प्यार उमड़ आया. भाभी के मन में वर्षों से नफरत की जो ऊंची दीवार अपना सिर उठाए खड़ी थी, एक झटके में ही भरभरा कर गिर पड़ी. उन के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘मनीष वास्तव में एक सच्चा इंसान है.’’

भाभी के मुंह से निकली इस हलकी सी प्रेमवाणी को मनीष सुन नहीं सका. मनीष ने तो यही सुना, भाभी कह रही थीं, ‘‘मनीष, तुम्हारी भाभी ने तुम्हारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया. लेकिन आश्चर्य है, तुम इस के बाद भी भाभी की इज्जत करते हो.’’

‘‘हां, भाभी, परिवाररूपी मकान का निर्माण करने के लिए प्यार की एकएक ईंट को बड़ी मजबूती से जोड़ना पड़ता है. डाक्टर होने के कारण मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी भाभी के मन में कहीं न कहीं स्नेह का स्रोत छिपा है.’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष,’’ कहते हुए भावावेश में भाभी ने मनीष का हाथ पकड़ लिया. उन की आंखों में आंसू छलक आए. वे बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हारा बहुत बुरा किया है, मनीष. मेरे कारण ही तुम्हें घर छोड़ना पड़ा.’’

‘‘अगर घर न छोड़ता तो कुछ करगुजरने की लगन भी न होती. मैं यहां का प्रसिद्ध डाक्टर आप के कारण ही तो बना हूं,’’ कहते हुए मनीष ने अपने रूमाल से भाभी के आंसू पोंछ दिए.

देवरभाभी का यह अपनापन देख कर भैया की आंखें भी खुशी से गीली हो उठीं.

The post जहर का पौधा : भाभी का मन क्यों हो गया था इतना कठोर appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3eaqjzn

बहुत ज्यादा थक गया था डाक्टर मनीष. अभी अभी भाभी का औपरेशन कर के वह अपने कमरे में लौटा था. दरवाजे पर भैया खड़े थे. उन की सफेद हुई जा रही आंखों को देख कर भी वह उन्हें ढाढ़स न बंधा सका था. भैया के कंधे पर हाथ रखने का हलका सा प्रयास मात्र कर के रह गया था.

टेबललैंप की रोशनी बुझा कर आरामकुरसी पर बैठना उसे अच्छा लगा था. वह सोच रहा था कि अगर भाभी न बच सकीं तो भैया जरूर उसे हत्यारा कहेंगे. भैया कहेंगे कि मनीष ने बदला निकाला है. भैया ऐसा न सोचें, वह यह मान नहीं सकता. उन्होंने पहले डाक्टर चंद्रकांत को भाभी के औपरेशन के लिए बुलाया था. डाक्टर चंद्रकांत अचानक दिल्ली चले गए थे. इस के बाद भैया ने डाक्टर विमल को बुलाने की कोशिश की थी, पर जब वे भी न मिले तो अंत में मजबूर हो कर उन्होंने डाक्टर मनीष को ही स्वीकार कर लिया था.

औपरेशनटेबल पर लेटने से पहले भाभी आंखों में आंसू लिए भैया से मिल चुकी थीं, मानो यह उन का अंतिम मिलन हो. उस ने भाभी को बारबार ढाढ़स दिलाया था, ‘‘भाभी, आप का औपरेशन जरूर सफल होगा.’’ किंतु भीतर ही भीतर भाभी उस का विश्वास न कर सकी थीं. और भैया कैसे उस पर विश्वास कर लेते? वे तो आजीवन भाभी के पदचिह्नों पर चलते रहे हैं.

ये भी पढ़ें- हो जाने दो -भाग 3 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

डाक्टर मनीष जानता है कि आज से 30 वर्ष पहले जहर का जो पौधा भाभी के मन में उग आया था, उसे वह स्नेह की पैनी से पैनी कुल्हाड़ी से भी नहीं काट सका. वह यह सोच कर संतुष्ट रह गया था कि संसार की कई चीजों को मानव चाह कर भी समाप्त करने में असमर्थ रहता है.

जहर के इस पौधे का बीजारोपण भाभी के मन में उन की शादी के समय हुआ था. तब मनीष 10 वर्ष का रहा होगा. भैया की बरात बड़ी धूमधाम से नरसिंहपुर गई थी. उसे दूल्हा बने भैया के साथ घोड़े पर बैठने में बड़ा आनंद आ रहा था. आने वाली भाभी के प्रति सोचसोच कर उस का बालकमन हवा से बातें कर रहा था. मां कहा करती थीं, ‘मनीष, तेरी भाभी आ जाएगी तो तू गुड्डो का मुकाबला करने के काबिल हो जाएगा. यदि गुड्डो तुझे अंगरेजी में चिढ़ाएगी तो तू भी भाभी से सारे अर्थ समझ कर उसे जवाब दे देना.’ वह सोच रहा था, भाभी यदि उस का पक्ष लेंगी तो बेचारी गुड्डो अकेली पड़ जाएगी. उस के बाद मन को बेचारी गुड्डो पर रहरह कर तरस आ रहा था.

भैया का ब्याह देखने के लिए वह रातभर जागा था और घूंघट ओढ़े भाभी को लगातार देखता रहा था. सुबह बरात के लौटने की तैयारी होने लगी थी. विवाह के अवसर पर नरसिंहपुर के लोगों ने सप्रेम भेंट के नाम पर वरवधू को बरतन, रुपए और अन्य कई किस्मों की भेंटें दी थीं. बरतन और अन्य उपहार तो भाभी के पिताजी ने दे दिए थे किंतु रुपयों के मामले में वे अड़ गए थे. इस बात को मनीष के पिता ने भी तूल दे दिया था.

ये भी पढ़ें- खानाबदोश : माया और राजेश अपने सपनों के घर से क्यों बेघर हो गए

भाभी के पिता का कहना था कि वे रुपए लड़की के पिता के होते हैं, जबकि मनीष के पिता कह रहे थे कि यह भी लोगों द्वारा वरवधू को दिया गया एक उपहार है, सो, लड़की के पिता को इस पर अपनी निगाह नहीं रखनी चाहिए.

बात बढ़ गई थी और मामला सार्वजनिक हो गया था. तुरंत ही पंचायत बैठाई गई. पंचायत में फैसला हुआ कि ये रुपए वरवधू के खाते में ही जाएंगे.

इस फैसले से भाभी के पिता मन ही मन सुलग उठे. उस समय तो वे मौन रह गए, किंतु बाद में इस का बदला निकालने का उन्होंने प्रण कर लिया.

उन की बेटी ससुराल से पहली बार 4 दिनों के लिए मायके आई तो उन्होंने बेटी के सामने रोते हुए कहा था, ‘बेटा, तेरे ससुर ने जिस दिन से मेरा अपमान किया है, मैं मन ही मन राख हुआ जा रहा हूं.’

भाभी ने पिता को सांत्वना देते हुए कहा था, ‘पिताजी, आप रोनाधोना छोडि़ए. मैं प्रण करती हूं कि आप के अपमान का बदला ऐसे लूंगी कि ससुर साहब का घर उजड़ कर धूल में मिल जाएगा. ससुरजी को मैं बड़ी कठोर सजा दूंगी.’

ये भी पढ़ें- जिजीविषा : अनु पर लगे आरोपों से कैसे हिल गई सीमा

इस के पश्चात भाभी ने ससुराल आते ही किसी उपन्यास की खलनायिका की तरह शतरंज की बिसात बिछा दी. चालें चलने वाली वे अकेली थीं. सब से पहले उन्होंने राजा को अपने वश में किया. भैया के प्रति असाधारण प्रेम की जो गंगा उन्होंने बहाई, तो भैया उसी को वैतरणी समझने लगे. भैया ने पारिवारिक कर्तव्यों की उपेक्षा सी कर दी.

मनीष को अच्छी तरह याद है कि एक बार वह महल्ले के बच्चों के साथ गुल्लीडंडा खेल रहा था. गुल्ली अचानक भाभी के कमरे में घुस गई थी. वह गुल्ली उठाने तेजी से लपका. रास्ते में खिड़की थी, उस ने अंदर निगाह डाली. भाभी एक चाबी से माथे पर घाव कर रही थीं.

जब वह दरवाजे से हो कर अंदर गया तो भाभी सिर दबाए बैठी थीं. उस ने बड़ी कोमलता से पूछा, ‘क्या हुआ, भाभी?’ तब वे मुसकरा कर बोली  थीं, ‘कुछ नहीं.’ वह गुल्ली उठा कर वापस चला गया था.

लेकिन शाम को सब के सामने भैया ने मनीष को चांटे लगाते हुए कहा था, ‘बेशर्म, गुल्ली से भाभी के माथे पर घाव कर दिया और पूछा तक नहीं.’ भाभी के इस ड्रामे पर तो मनीष सन्न रह गया था. उस के मुंह से आवाज तक न निकली थी. निकलती भी कैसे? उम्र में बड़ी और आदर करने योग्य भाभी की शिकायत भैया से कर के उसे और ज्यादा थोड़े पिटना था.

ये भी पढ़ें- प्यार है नाम तुम्हारा-भाग 2: स्नेहा कि मां के साथ क्या हुआ था?

भैया घर के सारे लोगों पर नाराज हो रहे थे कि उन की पत्नी से कोई भी सहानुभूति नहीं रखता. सभी चुपचाप थे. किसी ने भी भैया से एक शब्द नहीं कहा था. इस के बाद भैया ने पिताजी, मां और भाईबहनों से बात करना छोड़ दिया था. वे अधिकांश समय भाभी के कमरे में ही गुजारते थे.

इस के बाद एक सुबह की बात है. भैया को सुबह जल्दी जाना था. भाभी भैया के लिए नाश्ता तैयार करने के लिए चौके में आईं. चौके में सभी सदस्य बैठे थे, सभी को चाय का इंतजार था. मनीष रो रहा था कि उसे जल्दी चाय चाहिए. मां उसे समझा रही थीं, ‘बेटा, चाय का पानी चूल्हे पर रखा है, अभी 2 मिनट में उबल जाएगा.’

उसी समय भाभी ने चूल्हे से चाय उतार कर नाश्ते की कड़ाही चढ़ा दी. मां ने मनीष के आंसू देखते हुए कहा, ‘बहू, चाय तो अभी दो मिनट में बन जाएगी, जरा ठहर जाओ न.’

इतनी सी बात पर भाभी ने चूल्हे पर रखी कड़ाही को फेंक दिया. अपना सिर पकड़ कर वे नीचे बैठ गईं और जोर से बोलीं, ‘मैं अभी आत्महत्या कर लेती हूं. तुम सब लोग मुझ से और मेरे पति से जलते हो.’

इतना सुन कर भैया दौड़ेदौड़े आए और भाभी का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गए. वे भी चीखने लगे, ‘मीरा, तुम इन जंगलियों के बीच में न बैठा करो. खाना अपने कमरे में ही बनेगा. ये अनपढ़ लोग तुम्हारी कद्र करना क्या जानें.’

भैया के आग्रह पर 4-5 दिनों बाद ही घर के बीच में दीवार उठा दी गई. सारा सामान आधाआधा बांट लिया गया. इस बंटवारे से पिताजी को बहुत बड़ा धक्का लगा था. वे बीमार रहने लगे थे. उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र लिख दिया था.

ये भी पढ़ें- नई सुबह : शराबी पति से परेशान नीता की जिंदगी कैसे बदल गई

भैया केंद्र सरकार की ऊंची नौकरी में थे. अच्छाखासा वेतन उन्हें मिलता था. मनीष को याद नहीं है कि विवाह के बाद भैया ने एक रुपया भी पिताजी की हथेली पर धरा हो. पिताजी को इस बात की चिंता भी न थी. पुरानी संपत्ति काफी थी, घर चल जाता था.

एक दिन भाभी के गांव से कुछ लोग आए. गरमी के दिन थे. मनीष और घर के सभी लोग बाहर आंगन में सो रहे थे. अचानक मां आगआग चिल्लाईं. सभी लोग शोर से जाग गए. देखा तो घर जल रहा था. पड़ोसियों ने पानी डाला, दमकल विभाग की गाडि़यां आईं. किसी तरह आग पर काबू पाया गया. घर का सारा कीमती सामान जल कर राख हो गया था. घर के नाम पर अब खंडहर बचा था. भैया के हिस्से वाले घर को अधिक क्षति नहीं पहुंची थी. पिताजी ने कमचियों की दीवार लगा कर किसी तरह घर को ठीक किया था. मां रोती रहीं. मां का विश्वास था कि यह करतूत भाभी के गांव से आए लोगों की थी. पिताजी ने मां को उस वक्त खामोश कर दिया था, ‘बिना प्रमाण के इस तरह की बातें करना अच्छा नहीं होता.’

साहूकारी में लगा रुपया किसी तरह एकत्र कर के पिताजी ने मनीष की दोनों बहनों का विवाह निबटाया था.

उस समय मनीष 10वीं कक्षा का विद्यार्थी था. मां को गठियावात हो गया था. वे बिस्तर से चिपक गई थीं. पिताजी मां की सेवा करते रहे. मगर सेवा कहां तक करते? दवा के लिए तो पैसे थे ही नहीं. मनीष को स्कूल की फीस तक जुटाना बड़ा दुरूह कार्य था, सो, पिताजी ने, जो अब अशक्त और बूढ़े हो गए थे, एक जगह चौकीदारी की नौकरी कर ली.

भाभी को उन लोगों पर बड़ा तरस आया था. वे कहने लगीं, ‘मनीष, हमारे यहां खाना खा लिया करेगा.’ मां के बहुत कहने पर मनीष तैयार हो गया था. वह पहले दिन भाभी के घर खाने को गया तो भाभी ने उस की थाली में जरा सी खिचड़ी डाली और स्वयं पड़ोसी के यहां गपें लड़ाने चली गईं. उस दिन वह बेचारा भूखा ही रह गया था.

मनीष ने निश्चय कर लिया था कि अब वह भाभी के घर खाना खाने नहीं जाएगा. इस का परिणाम यह निकला कि भाभी ने सारे महल्ले में मनीष को अकड़बाज की उपाधि दिलाने का प्रयास किया.

मां कई दिनों तक बीमार पड़ी रहीं और एक दिन चल बसीं. मनीष रोता रह गया. उस के आंसू पोंछने वाला कोई भी न था.

पिताजी का अशक्त शरीर इस सदमे को बरदाश्त न कर सका. वे भी बीमार रहने लगे. अचानक एक दिन उन्हें लकवा मार गया. मनीष की पढ़ाई छूट गई. वह पिताजी की दिनरात सेवा करने में जुट गया. पिताजी कुछ ठीक हुए तो मनीष ने पास की एक फैक्टरी में मजदूरी करनी शुरू कर दी.

लकवे के एक वर्ष पश्चात पिताजी को हिस्टीरिया हो गया. उसी बीमारी के दौरान वे चल बसे. मनीष के चारों ओर विपत्तियां ही विपत्तियां थीं और विपत्तियों में भैयाभाभी का भयानक चेहरा उस के कोमल हृदय पर पीड़ाओं का अंबार लगा देता. उस ने शहर छोड़ देना ही उचित समझा.

एक दिन चुपके से वह मुंबई की ओर प्रस्थान कर गया. वहां कुछ हमदर्द लोगों ने उसे ट्यूशन पढ़ाने के लिए कई बच्चे दिला दिए. मनीष ने ट्यूशन करते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. प्रथम श्रेणी में पास होने से उसे मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया. उसे स्कौलरशिप भी मिलती थी.

फिर एक दिन मनीष डाक्टर बन गया. दिन गुजरते रहे. मनीष ने विवाह नहीं किया. वह डाक्टर से सर्जन बन गया. फिर उस का तबादला नागपुर हो गया यानी वह फिर से अपने शहर में आ गया.

मनीष ने भैया व भाभी से फिर से संबंध जोड़ने के प्रयास किए थे किंतु वह असफल रहा था. भाभी घायल नागिन की तरह उस से अभी भी चिढ़ी हुई थीं. उन्हें दुख था तो यह कि उन्होंने जिस परिवार को उजाड़ने का प्रण लिया था, उसी परिवार का एक सदस्य पनपने लगा था.

मनीष को भाभी के इस प्रण की भनक लग गई थी किंतु इस से उसे कोई दुख नहीं हुआ. उस के चेहरे पर हमेशा चेरी के फूल की हंसी थिरकती रहती थी. उस ने सोच रखा था कि भाभी के मन में उगे जहर के पौधे को वह एक दिन जरूर धराशायी कर देगा.

मनीष को संयोग से मौका मिल भी गया था. भाभी के पेट में एक बड़ा फोड़ा हो गया था. उस फोड़े को समाप्त करने के लिए औपरेशन जरूरी था. यह संयोग की ही बात थी कि वह औपरेशन मनीष को ही करना पड़ा.

वह जानता था कि यदि औपरेशन असफल रहा तो भैया जरूर उस पर हत्या का आरोप लगा देंगे. वह अपने कमरे में बैठा इसी बात को बारबार सोच रहा था.

उसी वक्त मनीष के सहायक डाक्टर रामन ने कमरे में प्रवेश किया. ‘‘हैलो, सर, मीराजी अब खतरे से बाहर हैं,’’ रामन ने टेबललैंप की रोशनी करते हुए कहा.

‘‘थैंक्यू डाक्टर, आप ने बहुत अच्छी खबर सुनाई,’’ मनीष ने कहा, ‘‘लेकिन आगे भी मरीज की देखभाल बहुत सावधानी से होनी चाहिए.’’

‘‘ऐसा ही होगा, सर,’’ डाक्टर रामन ने कहा.

‘‘मीराजी के पास एक और नर्स की ड्यूटी लगा दी जाए,’’ मनीष ने आदेश दिया.

‘‘अच्छा, सर,’’  डाक्टर रामन बोला. एक सप्ताह में मनीष की भाभी का स्वास्थ्य ठीक हो गया. हालांकि अभी औपरेशन के टांके कच्चे थे लेकिन उन के शरीर में कुछ शक्ति आ गई थी. मनीष भाभी से मिलने के लिए रोज जाता था. वह उन्हें गुलाब का एक फूल रोज भेंट करता था.

एक महीने बाद भाभी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. मनीष भैया भाभी को टैक्सी तक छोड़ने गया. सारी राह भैया अस्पताल की चर्चा करते रहे. भाभी कुछ शर्माई सी चुपचुप रहीं.

मनीष ने कहा, ‘‘भाभीजी, मेरी फीस नहीं दोगी.’’

‘‘क्या दूं तुम्हें?’’ भाभी के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘सिर्फ गुलाब का एक फूल,’’ मनीष ने मुसकराते हुए कहा.

घर पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही भाभी के स्वस्थ हो जाने की खुशी में महल्लेभर के लोगों को भोज दिया गया. भाभी सब से कह रही थीं, ‘‘मैं बच ही गई वरना इस खतरनाक रोग से बचने की उम्मीद कम ही होती है.’’

लेकिन भाभी का मन लगातार कह रहा था, ‘मनीष ने अस्पताल में मेरे लिए कितना बढि़या इंतजाम कराया. मैं ने उसे बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किंतु उस ने मेरा औपरेशन कितने अच्छे ढंग से किया.’

भाभी बारबार मनीष को भुलाने का प्रयास करतीं किंतु उस की भोली सूरत और मुसकराता चेहरा सामने आ जाता. वे सोचतीं, ‘आखिर बेचारे ने मांगा भी क्या, सिर्फ एक गुलाब का फूल.’

आखिर भाभी से रहा नहीं गया. उन्होंने अपने बाग में से ढेर सारे गुलाब के फूल तोड़े और अपने पति के पास गईं.

‘‘जरा सुनिए, आज के भोज में सारे महल्ले के लोग शामिल हैं, यदि मनीष को भी अस्पताल से बुला लें तो कैसा रहेगा वरना लोग बाद में क्या कहेंगे?’’

‘‘हां, कहती तो सही हो,’’ भैया बोले, ‘‘अभी बुलवा लेता हूं उसे.’’

एक आदमी दौड़ादौड़ा अस्पताल गया मनीष को बुलाने, लेकिन मनीष नहीं आ सका. वह किसी दूसरे मरीज का जीवन बचाने में पिछली रात से ही उलझा हुआ था. मनीष ने संदेश भेज दिया कि वह एक घंटे बाद आ जाएगा.

किंतु मरीज की दशा में सुधार न हो पाने के कारण मनीष अपने वादे के मुताबिक भोज में नहीं पहुंच सका. भाभी द्वारा तोड़े गए गुलाब जब मुरझाने लगे तो भाभी ने खुद अस्पताल जाने का निश्चय कर लिया.

भोज में पधारे सारे मेहमान रवाना हो गए, तब भाभी ने मनीष के लिए टिफिन तैयार किया और गुलाब का फूल ले कर भैया के साथ अस्पताल की ओर रवाना हो गईं.

अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि मनीष एक वार्ड में पलंग पर आराम कर रहा है. उस ने मरीज को अपना स्वयं का खून दिया था, क्योंकि तुरंत कोई व्यवस्था नहीं हो पाई थी और मरीज की जान बचाना अति आवश्यक था.

भाभी को जब यह जानकारी मिली कि मनीष ने एक गरीब रोगी को अपना खून दिया है तो उन के मन में अचानक ही मनीष के लिए बहुत प्यार उमड़ आया. भाभी के मन में वर्षों से नफरत की जो ऊंची दीवार अपना सिर उठाए खड़ी थी, एक झटके में ही भरभरा कर गिर पड़ी. उन के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘मनीष वास्तव में एक सच्चा इंसान है.’’

भाभी के मुंह से निकली इस हलकी सी प्रेमवाणी को मनीष सुन नहीं सका. मनीष ने तो यही सुना, भाभी कह रही थीं, ‘‘मनीष, तुम्हारी भाभी ने तुम्हारे लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया. लेकिन आश्चर्य है, तुम इस के बाद भी भाभी की इज्जत करते हो.’’

‘‘हां, भाभी, परिवाररूपी मकान का निर्माण करने के लिए प्यार की एकएक ईंट को बड़ी मजबूती से जोड़ना पड़ता है. डाक्टर होने के कारण मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी भाभी के मन में कहीं न कहीं स्नेह का स्रोत छिपा है.’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष,’’ कहते हुए भावावेश में भाभी ने मनीष का हाथ पकड़ लिया. उन की आंखों में आंसू छलक आए. वे बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हारा बहुत बुरा किया है, मनीष. मेरे कारण ही तुम्हें घर छोड़ना पड़ा.’’

‘‘अगर घर न छोड़ता तो कुछ करगुजरने की लगन भी न होती. मैं यहां का प्रसिद्ध डाक्टर आप के कारण ही तो बना हूं,’’ कहते हुए मनीष ने अपने रूमाल से भाभी के आंसू पोंछ दिए.

देवरभाभी का यह अपनापन देख कर भैया की आंखें भी खुशी से गीली हो उठीं.

The post जहर का पौधा : भाभी का मन क्यों हो गया था इतना कठोर appeared first on Sarita Magazine.

October 31, 2020 at 10:00AM

रहनुमा – भाग 3 : शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया

उस के पूरे शरीर में दर्द था और चलनेफिरने में भी दिक्कत थी. जैसेतैसे दूध गरम कर ब्रैड के 2 पीस खा कर उस ने दवा ले ली थी. फिर जल्दी ही उसे नींद आ गई थी. सुबह आंख खुली तो समूचा जिस्म अकड़ा हुआ था. अपनी सहकर्मी मित्र को फोन कर उस ने हादसे की सूचना दी थी और अवकाश के लिए कह दिया था. सांझ होते ही उस की कुलीग्स उस का हालचाल जानने के लिए घर आ गई थीं और उस के खानेपीने का प्रबंध कर गई थीं.

अगले दिन जब नींद से जागी तो सिर दर्द से फटा जा रहा था और सारा शरीर ताप से जल रहा था. वह बिस्तर से उठने के प्रयास में लड़खड़ा गई थी, लेकिन फोन बज रहा था इसलिए जैसेतैसे उस के पास जा कर रिसीवर कान से सटाया था.

‘‘हैलो संध्याजी, आप कैसी हैं?’’ उधर से शेखर की आवाज थी.

‘‘बस तबीयत ठीक नहीं है, बुखार है शायद. ऐक्सीडैंट…,’’ संध्या का कंठ भर्रा गया था, रिसीवर हाथ से छूट गया था.

फिर कांपते हाथों से चाय बना, 2 बिस्कुट के साथ चाय गटकने के बाद संध्या ने बुखार, बदनदर्द की टैबलेट खा ली थी और बुखार की खुमारी में पता नहीं कितनी देर यों ही पड़ी थी कि अचानक दरवाजे की घंटी की आवाज से तंद्रा टूटी थी.

दरवाजा खोला तो आगंतुक को देख बुखार की खुमारी में बंद आंखें चौंक कर फैल गईं थीं और उसे तुरंत नारीसुलभ लज्जा ने घेर लिया था. वह अपने अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल समेटने लगी थी.

‘‘आप…?’’ वह बोली थी.

‘‘भीतर नहीं आने देंगी क्या?’’ शेखर बोला था.

वह सकपका कर दरवाजे के बीच से हट गई थी.

‘‘ऐक्सीडैंट जबरदस्त हुआ है. अरे आप को तो बुखार भी है,’’ कहते हुए शेखर ने पहले संध्या की कलाई थामी, फिर ललाट का स्पर्श किया. संध्या पत्ते की तरह थरथरा उठी थी. छुअन का रोमांच विचित्र था.

‘‘चलिए, डाक्टर से दवा ले आते हैं.’’

संध्या विरोध न कर सकी थी.

वापस घर आ कर शेखर ने किचन में जा कर संध्या के लिए दलिया बनाया था और अपने सामने उसे खिलाया था.

‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं. दवा आप ने ले ली है, आराम आ जाएगा. फिर मदद की जरूरत हो तो याद कर लीजिएगा,’’ कह कर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना शेखर जा चुका था.

शेखर का घर आना, क्षणिक मधुर स्पर्श, उस का केअरिंग ऐटिट्यूट संध्या के नीरस जीवन में मधुर स्मितियां सजा गया.

इस उम्र में भी निगोड़ा मन अशांत होने लगा है. आईने पर बरबस नजर चली जाती है और अधरों पर लजीली मुसकान थिरकने लगती है, संध्या सोचती फिर सिर को झटक कर वर्तमान में लौट आती. फिर सोचने लगती कि इस निगोड़े मन में यही खराबी है कि जरा सी ढील दे दो तो कहांकहां डोलने लगता है. क्या सचमुच उम्र बुढ़ा जाती है, मन नहीं?

संध्या स्वस्थ हो गई थी धीरेधीरे. एक दिन सपना के फोन ने उस के मन में उत्साह भर दिया था. वह भारत आ रही थी अपने बेटे के साथ. वह अपने 5 वर्ष के नाती बौबी के साथ खूब मस्ती करेगी, यह सोच कर वह बहुत उत्साहित थी. उस ने तुरतफुरत घर में सभी जरूरत का सामान जुटाना शुरू कर दिया था.

सपना के आने से घर का कोनाकोना जीवंत हो उठा था.

‘‘ममा, ये शेखर कौन है?’’ एक रोज सपना के अप्रत्याशित प्रश्न ने संध्या को झकझोर दिया था.

‘‘कुलीग है…’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे उस ने बात खत्म करनी चाही थी.

‘‘आप के मोबाइल पर इन की कौल्स देखीं इसलिए…’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया किंतु मां के चेहरे के हावभाव सपना देखनेसमझने का प्रयास कर रही थी.

एक दिन रात के सन्नाटे को तोड़ता अचानक संध्या का मोबाइल घनघना उठा, तो उस ने तुरंत मोबाइल उठाया और बोली, ‘‘आजकल बच्चे आए हुए हैं…’’

उस ने फोन काटना चाहा पर शेखर उधर से बोला, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा है. आप बिटिया से हमारे संबंध के विषय में बात कर लीजिए. अगर आप कहें तो मैं स्वयं आ कर उस से मिल लेता हूं.’’

‘‘नहींनहीं,’’ कह कर संध्या ने घबरा कर फोन काट दिया था.

मां के कांपते हाथ और चेहरे के थरथराते भाव देख सपना ने तुरंत पूछा था, ‘‘कौन था ममा, रात के 11 बजे हैं?’’

स्थिर खड़ी संध्या चुपचाप बिस्तर की ओर बढ़ गई थी.

‘‘क्या हुआ ममा, कुछ परेशान हैं आप. कोई टैंशन है क्या…?’’

संध्या ने अचकचा कर इनकार कर दिया था.

संध्या के मन में उधेड़बुन चल रही थी. सपना की प्रतिक्रिया क्या होगी? सब

कुछ जान लेने के बाद क्या मांबेटी एकदूसरे के प्रति सहज रह पाएंगी? मां के जीवन में किसी दूसरे पुरुष की उपस्थिति बच्चों को स्वीकार्य नहीं होगी शायद. किंतु अपने मन की बात बच्चों से न शेयर कर पाने के एहसास से स्वयं उस का हृदय घुटन महसूस करता. अपने नए एहसास, नई मैत्री को वह किसी अपने से बांटना भी चाहती थी किंतु परिवार व समाज की बंदिशों का डर, अपनी स्वयं की सीमाओं के टूट जाने का भय उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था.

सपना के बारबार कुरेदने पर संध्या ने उसे शेखर के बारे में सब कुछ बता दिया था. लेकिन सपना के चेहरे पर कठोरता और नागवारी के भाव देख वह सकपका गई थी.

‘‘मम्मी, आप को कोई ‘इमोशनल फूल’ बना रहा है. आप बहुत सीधी हैं, आप की नौकरी, पैसे के लालच में आ कर कोई भी आप को बेवकूफ बना रहा है. अब उस का फोन आए तो मुझे बताना, मैं उस का दिमाग ठिकाने लगाऊंगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, आर्थिक रूप से वह भी संपन्न है. मेरे पैसे, मेरी प्रौपर्टी से उसे कुछ लेनादेना नहीं है.’’

‘‘लेकिन मम्मी, इस उम्र में आप को ऐसा बेतुका खयाल आया कैसे? बहुत सी औरतें हैं, जो आप ही की तरह अकेली रहती हैं, लेकिन बुढ़ापे में शादी नहीं करतीं. यह बात मेरी ससुराल में और रिश्तेदारों को पता चलेगी तो उन का क्या रिऐक्शन होगा? सब मजाक उड़ाएंगे और हम हैं तो सही आप के अपने बच्चे. कोई दुख, तकलीफ अगर हो तो आप हम से कहो. बाहर वाले लोगों के सामने अपनी परेशानी बता कर क्यों हमदर्दी लेना चाहती हो?’’ सपना की आवाज के तार कुछ और कस गए थे, ‘‘राहुल को जब पता चलेगा कि उस की सास ऐसा कुछ करना चाहती हैं, तो कितना बुरा लगेगा उसे…’’

संध्या अपराधबोध से कसमसा उठी थी. स्वयं पर ग्लानि अनुभव हुई थी उसे.

सपना की वापसी का दिन आ गया तो वह बोली, ‘‘ममा, मैं जल्दी ही अपना दूसरा ट्रिप बना लूंगी आप के पास आने के लिए. रिटायरमैंट के बाद आप मेरे साथ रहेंगी बस…’’

एक फीकी मुसकान संध्या के बुझे चेहरे पर फैल गई थी.

‘‘मैं ने कोमल से भी कह दिया है. वह भी यहां आने का प्रोग्राम बना रही है.’’

‘‘हां बेटा ठीक है.’’

सपना चली गई तो घर में सन्नाटा पसर गया. संध्या स्वयं को संयत कर अपने रोजमर्रा के कार्यों में लीन हो गई. शेखर का फोन आता तो वह रिसीव न करती. जब उस की बेटी कोमल आई, तो एक बार फिर घर का कोनाकोना महक उठा. छुट्टी के दिन सुबह से शाम तक घूमना, खरीदारी. औफिस जाती तो घर जल्दी लौटने का मन होता.

‘‘ममा, ये शेखर कौन हैं?’’ कोमल के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी. संध्या का चेहरा उतर गया था.

‘‘सपना दीदी ने मुझे बताया था.’’

संध्या के हाथ रुक गए थे. कदम ठिठक गए थे… अब कोमल अपना रोष व्यक्त करेगी.

‘‘ममा, यह तो बहुत अच्छी बात है. हम दोनों बहनें तो बहुत दूर रहती हैं आप से. फिर गृहस्थी की तो बीसियों उलझनें हैं. ऐसे में

जरूरत पड़ने पर हम आप की कब और कितनी मदद कर सकती हैं. मुझे तो खुशी होगी अगर आप… हां, सपना दीदी को समझाना होगा. उन्हें मनाना मेरा काम होगा. आप शेखर अंकल और उन के बेटे को घर पर बुलाइए. हम सभी एकदूसरे से मिलना चाहेंगे.’’

संध्या टकटकी लगाए बेटी का मुंह देखती रह गई थी.

शेखर अपने बेटे के साथ संध्या के घर आ गया था. वहां सहज भाव से सब ने एकदूसरे से बातचीत की थी और कोमल व उस का पति नीरज शेखर के बेटे से बहुत प्रभावित हुआ था. शेखर का डाक्टर पुत्र वास्तव में एक समझदार लड़का था. डाक्टरी पेशे में अत्यधिक व्यस्त रहने की वजह से वह अपने पिता को समय नहीं दे पाता था, इसलिए उन के जीवन में एक संगिनी की आवश्यकता को बेहद जरूरी समझता था. उस के प्रगतिशील विचार जान कर और पिता के प्रति उस का प्रेम और आदर का भाव देख संध्या हैरान थी. संध्या के मन में चल रही कशमकश को उस ने यह कह कर एकदम दूर कर दिया था, ‘‘आंटी, आप अपने मन में चल रही कशमकश और शंका को दूर कर लें और हम पर विश्वास कर जीवन के इस मोड़ पर नई राह का खुले दिल से स्वागत करें. मैं और मेरी 2 बहनें कोमल और सपना आप के साथ हैं.’’

‘‘मम्मी, आप इतनी टैंशन में न आएं. अब तो मुसकरा दें प्लीज. आप की खुशी में ही हम बच्चों की खुशी है,’’ दामाद के मुंह से यह सुन कर संध्या के मन में चल रही कशमकश समाप्त हो गई थी. दुविधा के बादल छंट चुके थे.

The post रहनुमा – भाग 3 : शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/35PoAeP

उस के पूरे शरीर में दर्द था और चलनेफिरने में भी दिक्कत थी. जैसेतैसे दूध गरम कर ब्रैड के 2 पीस खा कर उस ने दवा ले ली थी. फिर जल्दी ही उसे नींद आ गई थी. सुबह आंख खुली तो समूचा जिस्म अकड़ा हुआ था. अपनी सहकर्मी मित्र को फोन कर उस ने हादसे की सूचना दी थी और अवकाश के लिए कह दिया था. सांझ होते ही उस की कुलीग्स उस का हालचाल जानने के लिए घर आ गई थीं और उस के खानेपीने का प्रबंध कर गई थीं.

अगले दिन जब नींद से जागी तो सिर दर्द से फटा जा रहा था और सारा शरीर ताप से जल रहा था. वह बिस्तर से उठने के प्रयास में लड़खड़ा गई थी, लेकिन फोन बज रहा था इसलिए जैसेतैसे उस के पास जा कर रिसीवर कान से सटाया था.

‘‘हैलो संध्याजी, आप कैसी हैं?’’ उधर से शेखर की आवाज थी.

‘‘बस तबीयत ठीक नहीं है, बुखार है शायद. ऐक्सीडैंट…,’’ संध्या का कंठ भर्रा गया था, रिसीवर हाथ से छूट गया था.

फिर कांपते हाथों से चाय बना, 2 बिस्कुट के साथ चाय गटकने के बाद संध्या ने बुखार, बदनदर्द की टैबलेट खा ली थी और बुखार की खुमारी में पता नहीं कितनी देर यों ही पड़ी थी कि अचानक दरवाजे की घंटी की आवाज से तंद्रा टूटी थी.

दरवाजा खोला तो आगंतुक को देख बुखार की खुमारी में बंद आंखें चौंक कर फैल गईं थीं और उसे तुरंत नारीसुलभ लज्जा ने घेर लिया था. वह अपने अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल समेटने लगी थी.

‘‘आप…?’’ वह बोली थी.

‘‘भीतर नहीं आने देंगी क्या?’’ शेखर बोला था.

वह सकपका कर दरवाजे के बीच से हट गई थी.

‘‘ऐक्सीडैंट जबरदस्त हुआ है. अरे आप को तो बुखार भी है,’’ कहते हुए शेखर ने पहले संध्या की कलाई थामी, फिर ललाट का स्पर्श किया. संध्या पत्ते की तरह थरथरा उठी थी. छुअन का रोमांच विचित्र था.

‘‘चलिए, डाक्टर से दवा ले आते हैं.’’

संध्या विरोध न कर सकी थी.

वापस घर आ कर शेखर ने किचन में जा कर संध्या के लिए दलिया बनाया था और अपने सामने उसे खिलाया था.

‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं. दवा आप ने ले ली है, आराम आ जाएगा. फिर मदद की जरूरत हो तो याद कर लीजिएगा,’’ कह कर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना शेखर जा चुका था.

शेखर का घर आना, क्षणिक मधुर स्पर्श, उस का केअरिंग ऐटिट्यूट संध्या के नीरस जीवन में मधुर स्मितियां सजा गया.

इस उम्र में भी निगोड़ा मन अशांत होने लगा है. आईने पर बरबस नजर चली जाती है और अधरों पर लजीली मुसकान थिरकने लगती है, संध्या सोचती फिर सिर को झटक कर वर्तमान में लौट आती. फिर सोचने लगती कि इस निगोड़े मन में यही खराबी है कि जरा सी ढील दे दो तो कहांकहां डोलने लगता है. क्या सचमुच उम्र बुढ़ा जाती है, मन नहीं?

संध्या स्वस्थ हो गई थी धीरेधीरे. एक दिन सपना के फोन ने उस के मन में उत्साह भर दिया था. वह भारत आ रही थी अपने बेटे के साथ. वह अपने 5 वर्ष के नाती बौबी के साथ खूब मस्ती करेगी, यह सोच कर वह बहुत उत्साहित थी. उस ने तुरतफुरत घर में सभी जरूरत का सामान जुटाना शुरू कर दिया था.

सपना के आने से घर का कोनाकोना जीवंत हो उठा था.

‘‘ममा, ये शेखर कौन है?’’ एक रोज सपना के अप्रत्याशित प्रश्न ने संध्या को झकझोर दिया था.

‘‘कुलीग है…’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे उस ने बात खत्म करनी चाही थी.

‘‘आप के मोबाइल पर इन की कौल्स देखीं इसलिए…’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया किंतु मां के चेहरे के हावभाव सपना देखनेसमझने का प्रयास कर रही थी.

एक दिन रात के सन्नाटे को तोड़ता अचानक संध्या का मोबाइल घनघना उठा, तो उस ने तुरंत मोबाइल उठाया और बोली, ‘‘आजकल बच्चे आए हुए हैं…’’

उस ने फोन काटना चाहा पर शेखर उधर से बोला, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा है. आप बिटिया से हमारे संबंध के विषय में बात कर लीजिए. अगर आप कहें तो मैं स्वयं आ कर उस से मिल लेता हूं.’’

‘‘नहींनहीं,’’ कह कर संध्या ने घबरा कर फोन काट दिया था.

मां के कांपते हाथ और चेहरे के थरथराते भाव देख सपना ने तुरंत पूछा था, ‘‘कौन था ममा, रात के 11 बजे हैं?’’

स्थिर खड़ी संध्या चुपचाप बिस्तर की ओर बढ़ गई थी.

‘‘क्या हुआ ममा, कुछ परेशान हैं आप. कोई टैंशन है क्या…?’’

संध्या ने अचकचा कर इनकार कर दिया था.

संध्या के मन में उधेड़बुन चल रही थी. सपना की प्रतिक्रिया क्या होगी? सब

कुछ जान लेने के बाद क्या मांबेटी एकदूसरे के प्रति सहज रह पाएंगी? मां के जीवन में किसी दूसरे पुरुष की उपस्थिति बच्चों को स्वीकार्य नहीं होगी शायद. किंतु अपने मन की बात बच्चों से न शेयर कर पाने के एहसास से स्वयं उस का हृदय घुटन महसूस करता. अपने नए एहसास, नई मैत्री को वह किसी अपने से बांटना भी चाहती थी किंतु परिवार व समाज की बंदिशों का डर, अपनी स्वयं की सीमाओं के टूट जाने का भय उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था.

सपना के बारबार कुरेदने पर संध्या ने उसे शेखर के बारे में सब कुछ बता दिया था. लेकिन सपना के चेहरे पर कठोरता और नागवारी के भाव देख वह सकपका गई थी.

‘‘मम्मी, आप को कोई ‘इमोशनल फूल’ बना रहा है. आप बहुत सीधी हैं, आप की नौकरी, पैसे के लालच में आ कर कोई भी आप को बेवकूफ बना रहा है. अब उस का फोन आए तो मुझे बताना, मैं उस का दिमाग ठिकाने लगाऊंगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, आर्थिक रूप से वह भी संपन्न है. मेरे पैसे, मेरी प्रौपर्टी से उसे कुछ लेनादेना नहीं है.’’

‘‘लेकिन मम्मी, इस उम्र में आप को ऐसा बेतुका खयाल आया कैसे? बहुत सी औरतें हैं, जो आप ही की तरह अकेली रहती हैं, लेकिन बुढ़ापे में शादी नहीं करतीं. यह बात मेरी ससुराल में और रिश्तेदारों को पता चलेगी तो उन का क्या रिऐक्शन होगा? सब मजाक उड़ाएंगे और हम हैं तो सही आप के अपने बच्चे. कोई दुख, तकलीफ अगर हो तो आप हम से कहो. बाहर वाले लोगों के सामने अपनी परेशानी बता कर क्यों हमदर्दी लेना चाहती हो?’’ सपना की आवाज के तार कुछ और कस गए थे, ‘‘राहुल को जब पता चलेगा कि उस की सास ऐसा कुछ करना चाहती हैं, तो कितना बुरा लगेगा उसे…’’

संध्या अपराधबोध से कसमसा उठी थी. स्वयं पर ग्लानि अनुभव हुई थी उसे.

सपना की वापसी का दिन आ गया तो वह बोली, ‘‘ममा, मैं जल्दी ही अपना दूसरा ट्रिप बना लूंगी आप के पास आने के लिए. रिटायरमैंट के बाद आप मेरे साथ रहेंगी बस…’’

एक फीकी मुसकान संध्या के बुझे चेहरे पर फैल गई थी.

‘‘मैं ने कोमल से भी कह दिया है. वह भी यहां आने का प्रोग्राम बना रही है.’’

‘‘हां बेटा ठीक है.’’

सपना चली गई तो घर में सन्नाटा पसर गया. संध्या स्वयं को संयत कर अपने रोजमर्रा के कार्यों में लीन हो गई. शेखर का फोन आता तो वह रिसीव न करती. जब उस की बेटी कोमल आई, तो एक बार फिर घर का कोनाकोना महक उठा. छुट्टी के दिन सुबह से शाम तक घूमना, खरीदारी. औफिस जाती तो घर जल्दी लौटने का मन होता.

‘‘ममा, ये शेखर कौन हैं?’’ कोमल के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी. संध्या का चेहरा उतर गया था.

‘‘सपना दीदी ने मुझे बताया था.’’

संध्या के हाथ रुक गए थे. कदम ठिठक गए थे… अब कोमल अपना रोष व्यक्त करेगी.

‘‘ममा, यह तो बहुत अच्छी बात है. हम दोनों बहनें तो बहुत दूर रहती हैं आप से. फिर गृहस्थी की तो बीसियों उलझनें हैं. ऐसे में

जरूरत पड़ने पर हम आप की कब और कितनी मदद कर सकती हैं. मुझे तो खुशी होगी अगर आप… हां, सपना दीदी को समझाना होगा. उन्हें मनाना मेरा काम होगा. आप शेखर अंकल और उन के बेटे को घर पर बुलाइए. हम सभी एकदूसरे से मिलना चाहेंगे.’’

संध्या टकटकी लगाए बेटी का मुंह देखती रह गई थी.

शेखर अपने बेटे के साथ संध्या के घर आ गया था. वहां सहज भाव से सब ने एकदूसरे से बातचीत की थी और कोमल व उस का पति नीरज शेखर के बेटे से बहुत प्रभावित हुआ था. शेखर का डाक्टर पुत्र वास्तव में एक समझदार लड़का था. डाक्टरी पेशे में अत्यधिक व्यस्त रहने की वजह से वह अपने पिता को समय नहीं दे पाता था, इसलिए उन के जीवन में एक संगिनी की आवश्यकता को बेहद जरूरी समझता था. उस के प्रगतिशील विचार जान कर और पिता के प्रति उस का प्रेम और आदर का भाव देख संध्या हैरान थी. संध्या के मन में चल रही कशमकश को उस ने यह कह कर एकदम दूर कर दिया था, ‘‘आंटी, आप अपने मन में चल रही कशमकश और शंका को दूर कर लें और हम पर विश्वास कर जीवन के इस मोड़ पर नई राह का खुले दिल से स्वागत करें. मैं और मेरी 2 बहनें कोमल और सपना आप के साथ हैं.’’

‘‘मम्मी, आप इतनी टैंशन में न आएं. अब तो मुसकरा दें प्लीज. आप की खुशी में ही हम बच्चों की खुशी है,’’ दामाद के मुंह से यह सुन कर संध्या के मन में चल रही कशमकश समाप्त हो गई थी. दुविधा के बादल छंट चुके थे.

The post रहनुमा – भाग 3 : शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया appeared first on Sarita Magazine.

October 31, 2020 at 10:00AM

रहनुमा – भाग 1: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया

मोबाइल की सुरीली सी खनक सुन संध्या ने स्क्रीन पर उभरे नंबर और नाम को देखा, तो उस का हृदय तेजी से धड़क उठा. लेकिन मोबाइल बजता रहा और वह खामोश बैठी रही. 10 मिनट बाद लैंडलाइन की घंटी बजी तो उस ने कौलर आईडी पर नंबर चैक किया. पल भर को उस का जी चाहा कि रिसीवर उठा कर बात कर ले, किंतु अपने मनोभाव को संयत कर उस ने फोन काल को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा. फिर संध्या अपने दैनिक क्रियाकलाप निबटाने लगी. सुबह घर की साफसफाई करना, चायनाश्ता बना कर खाना फिर औफिस चले जाना और सांझ ढले थकेमांदे घर लौटना यही उस की दिनचर्या रहती. लेकिन घर लौटने पर खालीखाली सूना घर देख उस का मन उदास हो जाता. देह को ठेलती वह किचन में जा कर चाय बनाती और टीवी औन कर देती. देर रात तक टीवी चलता रहता तो टीवी के शोर से घर का सन्नाटा जैसे समाप्त हो जाता.

रात के सन्नाटे में जरा सी आहट होते ही वह कांप जाती. एक रात जब वह सो रही थी तब मुख्यद्वार के बाहर लगी घंटी बज उठी थी. उस की नींद टूटी तो इतनी रात गए कौन होगा, सोच कर वह सिहर उठी थी. फिर घबरा कर वह चीख उठी थी कि कौन है? लेकिन कोई उत्तर न पाने पर कांपते हाथों से खिड़की का पल्ला खोला था. लेकिन बाहर कोई नजर नहीं आया था.

जब गेट के बाहर की घंटी लगातार बजती रही तो वह कांपते हाथों से दरवाजा खोल लौन में आ गई. गेट की घंटी पूर्वत बज ही रही थी. शायद राह चलते किसी मनचले ने मसखरी करने के लिए घंटी बजा दी थी, जो घंटी का स्विच दबा रह जाने की वजह से लगातार बजती चली जा रही थी. उस ने घंटी का स्विच औफ किया था और तुरंत भीतर जा कर दरवाजेखिड़कियां बंद कर दी थीं. किंतु उस के बाद सारी रात वह सो नहीं सकी थी.

संध्या के पति की मृत्यु हुए बरसों बीत गए हैं. 2 बेटियां हैं जिन का विवाह उस ने स्वयं ही किया है. एक बेटी विदेश में है और दूसरी भारत में ही है. लेकिन कोसों दूर. वैसे संध्या की बढि़या नौकरी है, इसलिए अच्छाखासा वेतन और घर में सभी सुविधाएं हैं. सुबह से शाम कैसे हो जाती है संध्या को पता नहीं चलता, लेकिन सांझ ढले एकांत घर में आना उसे तनमन से थका देता है. बेटियों से रोज बातचीत होती है किंतु वे दोनों अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं, इसलिए ज्यादा समय नहीं दे पातीं. जब कभी वह बीमार हो जाती है तो अपना अकेलापन उसे और भी भयावह लगता है.

उस दिन जब वह सांझ ढले घर लौटी तो देखा कि लैटर बौक्स में एक पत्र पड़ा था. उसे निकाल वह ताला खोल सोफे पर पसर गई थी और उसे पढ़ते ही उस का दिल तेजी से धड़कने लगा था. उस में लिखा था:

संध्याजी,

फोन पर आप से बात न हो सकी, इसलिए मैं पत्र लिखने को विवश हो गया. फिर मेरे हृदय में भावनाओं का जो ज्वार उमड़ रहा है उस की सच्ची अभिव्यक्ति पत्र द्वारा ही संभव है.

मात्र 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद मेरी पत्नी का देहांत हो गया था. तब से अपनी एकमात्र संतान अपने बेटे की परवरिश अकेले ही करी. मन में कभी ब्याह का खयाल नहीं आया. लेकिन जीवन के इस मोड़ पर आप से मिला, तो इच्छा जाग उठी कि अपने जीवन में आप को शामिल कर सकूं. मैं ने अपने बेटे के बारबार आग्रह करने पर ही इस जीवनसंध्या में किसी साथी के विषय में सोचना शुरू किया है. अगले वर्ष नौकरी से रिटायर हो जाऊंगा तो अच्छीखासी पैंशन मिलेगी. इस के अलावा काफी चलअचल संपत्ति का भी मालिक हूं और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी पूर्णतया स्वस्थ और फिट हूं.

आजकल आप के विषय में ही सोचता रहता हूं. मैं जानता हूं कि दुनिया क्या कहेगी, परिवार क्या सोचेगा. मात्र इस सोच के चलते चुप्पी साधे हुए हूं, जबकि प्रसन्न रहना, हंसना और नीरस जिंदगी में बहार लाना कोई पाप नहीं है.

शेखर

संध्या ने पत्र बंद कर एक ओर सरका दिया था, लेकिन लिखने वाले ने अपनी भावनाओं को खुलेपन से व्यक्त किया था, इसलिए उस में संवेदना के तार झनझना उठे थे. रात में भोजन के बाद वह टीवी देखने में मगन थी कि मोबाइल बज उठा था. वह बोल उठी थी, ‘‘क्षमा कीजिएगा. आप जैसा सोचते हैं वैसा होना बिलकुल भी संभव नहीं है. मैं अपने जीवन में खुश और संतुष्ट हूं. मैं अकेली नहीं हूं, मेरा भरापूरा परिवार है,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था और टीवी बंद कर बिस्तर पर लेट गई थी. काफी देर तक वह जागती रही फिर न जाने कब उस की छटपटाहट को निद्रा ने दबोच लिया था.

अगले दिन रोज की तरह औफिस के काम को तत्परता से निबटा वह सांझ ढले घर के लिए निकलने को ही थी कि अपने सामने एकाएक उपस्थित हो गए शख्स को देख चौंक गई थी.

‘‘आप?’’

‘‘हां मैं, मुझे आना ही पड़ा. आप को अचानक क्या हो गया? पहले ‘हां’ और फिर एकदम चुप्पी साध लेना. आप ने स्वयं ही तो पहले मौन स्वीकृति दी थी.’’

संध्या नजरें नहीं मिला पा रही थी. फिर भी बोली थी, ‘‘मुझ से भूल हो गई थी. यह सब इस उम्र में अच्छा नहीं. मुझे घर जल्दी पहुंचना है.’’ उस के शब्द इस के बाद गले में अटक कर रह गए थे.

‘‘आप क्यों संदेहों, आशंकाओं से घिर कर अपनेआप को आहत कर रही हैं?’’

‘‘प्लीज मुझे किसी रिश्ते, संबंध के दलदल में नहीं फंसना है,’’ संध्या झुंझला उठी थी.

घर वापस आ कर वह निढाल सी सोफे पर बैठ गई थी. चाय पीने की इच्छा तो थी, किंतु बनाने का मन नहीं कर रहा था. वह सोच रही थी कि जीवन के शून्याकाश में एकाकी तारे जैसी स्थिति है उस की. वैसे जीवन में आए एकाकीपन के कष्टों की धूप उस के लावण्य को झुलसा नहीं सकी थी. एक दिन औफिस की एक पार्टी के दौरान संध्या ने अपने लंबे बाल खुले रख छोड़े थे, जिन्हें देख उस की सहकर्मी सखियां हैरान हो गई थीं. उस के नित्यप्रति बंधे जूड़े से उन्मुक्त लंबे बाल जो कंधों पर बिखरे थे. उन्हें देख कर एक बोली थी, ‘‘ये आप के बाल हैं या लहराताबलखाता झरना. संध्याजी, आप अपनी उम्र से छोटी और स्मार्ट दिखती हैं. शारीरिक रूप से भी आप बिलकुल फिट हैं.’’

The post रहनुमा – भाग 1: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3kLmJ0O

मोबाइल की सुरीली सी खनक सुन संध्या ने स्क्रीन पर उभरे नंबर और नाम को देखा, तो उस का हृदय तेजी से धड़क उठा. लेकिन मोबाइल बजता रहा और वह खामोश बैठी रही. 10 मिनट बाद लैंडलाइन की घंटी बजी तो उस ने कौलर आईडी पर नंबर चैक किया. पल भर को उस का जी चाहा कि रिसीवर उठा कर बात कर ले, किंतु अपने मनोभाव को संयत कर उस ने फोन काल को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा. फिर संध्या अपने दैनिक क्रियाकलाप निबटाने लगी. सुबह घर की साफसफाई करना, चायनाश्ता बना कर खाना फिर औफिस चले जाना और सांझ ढले थकेमांदे घर लौटना यही उस की दिनचर्या रहती. लेकिन घर लौटने पर खालीखाली सूना घर देख उस का मन उदास हो जाता. देह को ठेलती वह किचन में जा कर चाय बनाती और टीवी औन कर देती. देर रात तक टीवी चलता रहता तो टीवी के शोर से घर का सन्नाटा जैसे समाप्त हो जाता.

रात के सन्नाटे में जरा सी आहट होते ही वह कांप जाती. एक रात जब वह सो रही थी तब मुख्यद्वार के बाहर लगी घंटी बज उठी थी. उस की नींद टूटी तो इतनी रात गए कौन होगा, सोच कर वह सिहर उठी थी. फिर घबरा कर वह चीख उठी थी कि कौन है? लेकिन कोई उत्तर न पाने पर कांपते हाथों से खिड़की का पल्ला खोला था. लेकिन बाहर कोई नजर नहीं आया था.

जब गेट के बाहर की घंटी लगातार बजती रही तो वह कांपते हाथों से दरवाजा खोल लौन में आ गई. गेट की घंटी पूर्वत बज ही रही थी. शायद राह चलते किसी मनचले ने मसखरी करने के लिए घंटी बजा दी थी, जो घंटी का स्विच दबा रह जाने की वजह से लगातार बजती चली जा रही थी. उस ने घंटी का स्विच औफ किया था और तुरंत भीतर जा कर दरवाजेखिड़कियां बंद कर दी थीं. किंतु उस के बाद सारी रात वह सो नहीं सकी थी.

संध्या के पति की मृत्यु हुए बरसों बीत गए हैं. 2 बेटियां हैं जिन का विवाह उस ने स्वयं ही किया है. एक बेटी विदेश में है और दूसरी भारत में ही है. लेकिन कोसों दूर. वैसे संध्या की बढि़या नौकरी है, इसलिए अच्छाखासा वेतन और घर में सभी सुविधाएं हैं. सुबह से शाम कैसे हो जाती है संध्या को पता नहीं चलता, लेकिन सांझ ढले एकांत घर में आना उसे तनमन से थका देता है. बेटियों से रोज बातचीत होती है किंतु वे दोनों अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं, इसलिए ज्यादा समय नहीं दे पातीं. जब कभी वह बीमार हो जाती है तो अपना अकेलापन उसे और भी भयावह लगता है.

उस दिन जब वह सांझ ढले घर लौटी तो देखा कि लैटर बौक्स में एक पत्र पड़ा था. उसे निकाल वह ताला खोल सोफे पर पसर गई थी और उसे पढ़ते ही उस का दिल तेजी से धड़कने लगा था. उस में लिखा था:

संध्याजी,

फोन पर आप से बात न हो सकी, इसलिए मैं पत्र लिखने को विवश हो गया. फिर मेरे हृदय में भावनाओं का जो ज्वार उमड़ रहा है उस की सच्ची अभिव्यक्ति पत्र द्वारा ही संभव है.

मात्र 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद मेरी पत्नी का देहांत हो गया था. तब से अपनी एकमात्र संतान अपने बेटे की परवरिश अकेले ही करी. मन में कभी ब्याह का खयाल नहीं आया. लेकिन जीवन के इस मोड़ पर आप से मिला, तो इच्छा जाग उठी कि अपने जीवन में आप को शामिल कर सकूं. मैं ने अपने बेटे के बारबार आग्रह करने पर ही इस जीवनसंध्या में किसी साथी के विषय में सोचना शुरू किया है. अगले वर्ष नौकरी से रिटायर हो जाऊंगा तो अच्छीखासी पैंशन मिलेगी. इस के अलावा काफी चलअचल संपत्ति का भी मालिक हूं और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी पूर्णतया स्वस्थ और फिट हूं.

आजकल आप के विषय में ही सोचता रहता हूं. मैं जानता हूं कि दुनिया क्या कहेगी, परिवार क्या सोचेगा. मात्र इस सोच के चलते चुप्पी साधे हुए हूं, जबकि प्रसन्न रहना, हंसना और नीरस जिंदगी में बहार लाना कोई पाप नहीं है.

शेखर

संध्या ने पत्र बंद कर एक ओर सरका दिया था, लेकिन लिखने वाले ने अपनी भावनाओं को खुलेपन से व्यक्त किया था, इसलिए उस में संवेदना के तार झनझना उठे थे. रात में भोजन के बाद वह टीवी देखने में मगन थी कि मोबाइल बज उठा था. वह बोल उठी थी, ‘‘क्षमा कीजिएगा. आप जैसा सोचते हैं वैसा होना बिलकुल भी संभव नहीं है. मैं अपने जीवन में खुश और संतुष्ट हूं. मैं अकेली नहीं हूं, मेरा भरापूरा परिवार है,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था और टीवी बंद कर बिस्तर पर लेट गई थी. काफी देर तक वह जागती रही फिर न जाने कब उस की छटपटाहट को निद्रा ने दबोच लिया था.

अगले दिन रोज की तरह औफिस के काम को तत्परता से निबटा वह सांझ ढले घर के लिए निकलने को ही थी कि अपने सामने एकाएक उपस्थित हो गए शख्स को देख चौंक गई थी.

‘‘आप?’’

‘‘हां मैं, मुझे आना ही पड़ा. आप को अचानक क्या हो गया? पहले ‘हां’ और फिर एकदम चुप्पी साध लेना. आप ने स्वयं ही तो पहले मौन स्वीकृति दी थी.’’

संध्या नजरें नहीं मिला पा रही थी. फिर भी बोली थी, ‘‘मुझ से भूल हो गई थी. यह सब इस उम्र में अच्छा नहीं. मुझे घर जल्दी पहुंचना है.’’ उस के शब्द इस के बाद गले में अटक कर रह गए थे.

‘‘आप क्यों संदेहों, आशंकाओं से घिर कर अपनेआप को आहत कर रही हैं?’’

‘‘प्लीज मुझे किसी रिश्ते, संबंध के दलदल में नहीं फंसना है,’’ संध्या झुंझला उठी थी.

घर वापस आ कर वह निढाल सी सोफे पर बैठ गई थी. चाय पीने की इच्छा तो थी, किंतु बनाने का मन नहीं कर रहा था. वह सोच रही थी कि जीवन के शून्याकाश में एकाकी तारे जैसी स्थिति है उस की. वैसे जीवन में आए एकाकीपन के कष्टों की धूप उस के लावण्य को झुलसा नहीं सकी थी. एक दिन औफिस की एक पार्टी के दौरान संध्या ने अपने लंबे बाल खुले रख छोड़े थे, जिन्हें देख उस की सहकर्मी सखियां हैरान हो गई थीं. उस के नित्यप्रति बंधे जूड़े से उन्मुक्त लंबे बाल जो कंधों पर बिखरे थे. उन्हें देख कर एक बोली थी, ‘‘ये आप के बाल हैं या लहराताबलखाता झरना. संध्याजी, आप अपनी उम्र से छोटी और स्मार्ट दिखती हैं. शारीरिक रूप से भी आप बिलकुल फिट हैं.’’

The post रहनुमा – भाग 1: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया appeared first on Sarita Magazine.

October 31, 2020 at 10:00AM

रहनुमा – भाग 2: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया

फिर बातों ही बातों में संध्या को पुनर्विवाह की सलाह सभी ने दे डाली थी. संध्या को बहुत अटपटा लगा था यह हासपरिहास, लेकिन 2-4 दिन बाद उसे फिर ऐसे ही वाक्य सुनने को मिले थे. एक रोज तो अचानक ही संध्या के औफिस का सहकर्मी उस के समक्ष अपने एक मित्र शेखर को ले कर उपस्थित हो गया था और बिना किसी भूमिका के उस ने विवाह प्रस्ताव उस के सम्मुख रख दिया था. शेखर ने उस के सामने बैठ कर स्वयं ही अपना परिचय दिया था कि वह प्रतिष्ठित और उच्च पद पर है और पत्नी की मृत्यु हुए कई वर्ष बीत चुके हैं. एक डाक्टर पुत्र है, जो विवाहित है और 2 छोटे बच्चों का पिता है. पिता के अकेलेपन की त्रासदी पुत्र को भीतर ही भीतर बेचैन किए हुए है. इसलिए उस का आग्रह है कि वे अपनी जीवनसंध्या में अपने लिए उपयुक्त साथी खोज लें.

शेखर का यह आकस्मिक प्रस्ताव संध्या को असंतुलित कर गया था, लेकिन उस के बाद से शेखर के फोन संध्या के पास बराबर आने लगे थे. संध्या कभी तो संक्षिप्त वार्तालाप कर फोन बंद कर दिया करती थी, तो कभी रिसीव ही नहीं करती थी. कभी फोन उठाती लेकिन मुंह से बोल न निकलते. खामोशी की भी अपनी ही जबान होती है, जिसे फोन करने वाला तुरंत समझ जाता है. लेकिन जिस ‘हां’ को शेखर सुनना चाहता था वह सहमति नदारद रहती.

संध्या की ससुराल की तरफ से तो कोई रिश्तेदारी थी नहीं, मायके में पिताजी थे और 2 भाई थे. उस ने अपनी भाभी से शेखर के प्रस्ताव के विषय में बात की थी, तो बात पूरे घर में फैल गई थी. किसी की तरफ से अच्छा रेस्पौंस नहीं मिला था. संध्या के पिताजी तो इस बात को जान कर क्रोध में फोन पर बरस पड़े थे, ‘‘अब तुम्हारी उम्र मोहमाया के बंधनों से नजात पाने की है या बेसिरपैर के संबंध से बंधने की है? कुछ अध्यात्म की ओर मन लगाओ और अच्छा साहित्य पढ़ो. समय फालतू है तो समाजसेवा की सोचो. रिटायरमैंट के बाद खाली समय बिताने की समस्या अभी से क्यों है तुम्हारे दिमाग में? इस उम्र में स्वयं को बंधन में बांधना एकदम वाहियात बात है.’’

घर वालों का नकारात्मक रवैया शेखर को संध्या ने बता दिया था और फिर बोली थी कि आप अपने लिए किसी अन्य साथी की खोज करिए, मैं ऐसे ही ठीक हूं. संध्या की बेरुखी के बाद भी शेखर ने उसे समझाने का असफल प्रयास किया था. फिर स्वयं भी मौन साध लिया था. उस के फोन आने बंद हो गए थे और दिन गुजरते जा रहे थे. शुरू में तो संध्या ने राहत की सांस ली थी, किंतु 1 हफ्ता बीत गया तो उस की फोन की प्रतीक्षा में बेचैनी बढ़ने लगी थी. मन एक नई उलझन में उलझता जा रहा था कि क्या हो गया? मेरी बेरुखी से ही फोन आने बंद हो गए शायद? या शायद शेखर ने भी अपना बचकाना विचार छोड़ दिया होगा और यही उचित भी है. इस उम्र में किसी के साथ जुड़ने, संग रहने का क्या मतलब?

लेकिन उस का अधीर मन यह भी कहता कि वह स्वयं ही फोन कर ले. किंतु संस्कारी चित्त राजी न होता. एक दिन मन के हाथों हार कर संध्या ने मोबाइल पर शेखर का नंबर पंच कर हलकी सी मिस्ड कौल दे दी थी. ऐसा करने से उस का हृदय जोरों से धड़क उठा था.

उस के मोबाइल पर तुरंत यह संदेश आ गया था, ‘मैं बहुत परेशान हूं, अभी बात नहीं कर पाऊंगा.’

‘क्या हुआ? कैसी परेशानी?’ उस ने सवाल भेजा था पर उस का कोई जवाब नहीं आया था. अगले दिन संध्या यह सोच कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई थी कि व्यर्थ ही उस ने अपने मन को बेकार के झंझट में फंसाया. किंतु भावनाओं के ठहरे हुए दरिया में अचानक एक पत्थर आ गिरा था. एक दिन मोबाइल की घंटी बजी, तो संध्या ने स्क्रीन पर नजर डाली. उस पर शेखर का नाम था. उस ने कांपते हाथों से मोबाइल हाथों में थामा तो शेखर का अक्स उभर आया था. शेखर ने बताया था कि उन का इकलौता बेटा डाक्टरों और सहायकों की टीम के साथ किसी गांव में फैली महामारी का इलाज करने और बीमारों की तीमारदारी के लिए गया था. लेकिन मरीजों को भलाचंगा करतेकरते वह स्वयं भी रोग की चपेट में आ गया था. इसलिए वह उस के बेहतर इलाज के लिए उसे तुरंत दिल्ली ले कर गया था. वहां बढि़या मैडिकल सेवा की बदौलत उस की सेहत में सुधार होने लगा और अब वह धीरेधीरे पूर्ण स्वस्थ हो रहा है. मैं बहुत परेशान और व्यस्त रहा, क्योंकि बहुत भागदौड़ रही. और कैसी हैं आप? अच्छा फोन बंद करता हूं. डाक्टर के पास जा रहा हूं.

संध्या ने फिर कभी कोशिश नहीं की फोन करने की, न ही दूसरी तरफ से कोई समाचार आया.

एक दिन संध्या औफिस से निकल अपने दुपहिया वाहन पर सवार विचारों में खोई चली जा रही थी कि उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उस की एक चीख निकली और वह वाहन समेत सड़क पर जा गिरी. उस के बाद उसे नहीं मालूम कि क्या हुआ. आंखें खुलीं तो उस ने स्वयं को अस्पताल में पाया. कोई भलामानुस उसे अस्पताल ले आया था और फिर घर भी छोड़ गया था.

The post रहनुमा – भाग 2: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3kNwRX1

फिर बातों ही बातों में संध्या को पुनर्विवाह की सलाह सभी ने दे डाली थी. संध्या को बहुत अटपटा लगा था यह हासपरिहास, लेकिन 2-4 दिन बाद उसे फिर ऐसे ही वाक्य सुनने को मिले थे. एक रोज तो अचानक ही संध्या के औफिस का सहकर्मी उस के समक्ष अपने एक मित्र शेखर को ले कर उपस्थित हो गया था और बिना किसी भूमिका के उस ने विवाह प्रस्ताव उस के सम्मुख रख दिया था. शेखर ने उस के सामने बैठ कर स्वयं ही अपना परिचय दिया था कि वह प्रतिष्ठित और उच्च पद पर है और पत्नी की मृत्यु हुए कई वर्ष बीत चुके हैं. एक डाक्टर पुत्र है, जो विवाहित है और 2 छोटे बच्चों का पिता है. पिता के अकेलेपन की त्रासदी पुत्र को भीतर ही भीतर बेचैन किए हुए है. इसलिए उस का आग्रह है कि वे अपनी जीवनसंध्या में अपने लिए उपयुक्त साथी खोज लें.

शेखर का यह आकस्मिक प्रस्ताव संध्या को असंतुलित कर गया था, लेकिन उस के बाद से शेखर के फोन संध्या के पास बराबर आने लगे थे. संध्या कभी तो संक्षिप्त वार्तालाप कर फोन बंद कर दिया करती थी, तो कभी रिसीव ही नहीं करती थी. कभी फोन उठाती लेकिन मुंह से बोल न निकलते. खामोशी की भी अपनी ही जबान होती है, जिसे फोन करने वाला तुरंत समझ जाता है. लेकिन जिस ‘हां’ को शेखर सुनना चाहता था वह सहमति नदारद रहती.

संध्या की ससुराल की तरफ से तो कोई रिश्तेदारी थी नहीं, मायके में पिताजी थे और 2 भाई थे. उस ने अपनी भाभी से शेखर के प्रस्ताव के विषय में बात की थी, तो बात पूरे घर में फैल गई थी. किसी की तरफ से अच्छा रेस्पौंस नहीं मिला था. संध्या के पिताजी तो इस बात को जान कर क्रोध में फोन पर बरस पड़े थे, ‘‘अब तुम्हारी उम्र मोहमाया के बंधनों से नजात पाने की है या बेसिरपैर के संबंध से बंधने की है? कुछ अध्यात्म की ओर मन लगाओ और अच्छा साहित्य पढ़ो. समय फालतू है तो समाजसेवा की सोचो. रिटायरमैंट के बाद खाली समय बिताने की समस्या अभी से क्यों है तुम्हारे दिमाग में? इस उम्र में स्वयं को बंधन में बांधना एकदम वाहियात बात है.’’

घर वालों का नकारात्मक रवैया शेखर को संध्या ने बता दिया था और फिर बोली थी कि आप अपने लिए किसी अन्य साथी की खोज करिए, मैं ऐसे ही ठीक हूं. संध्या की बेरुखी के बाद भी शेखर ने उसे समझाने का असफल प्रयास किया था. फिर स्वयं भी मौन साध लिया था. उस के फोन आने बंद हो गए थे और दिन गुजरते जा रहे थे. शुरू में तो संध्या ने राहत की सांस ली थी, किंतु 1 हफ्ता बीत गया तो उस की फोन की प्रतीक्षा में बेचैनी बढ़ने लगी थी. मन एक नई उलझन में उलझता जा रहा था कि क्या हो गया? मेरी बेरुखी से ही फोन आने बंद हो गए शायद? या शायद शेखर ने भी अपना बचकाना विचार छोड़ दिया होगा और यही उचित भी है. इस उम्र में किसी के साथ जुड़ने, संग रहने का क्या मतलब?

लेकिन उस का अधीर मन यह भी कहता कि वह स्वयं ही फोन कर ले. किंतु संस्कारी चित्त राजी न होता. एक दिन मन के हाथों हार कर संध्या ने मोबाइल पर शेखर का नंबर पंच कर हलकी सी मिस्ड कौल दे दी थी. ऐसा करने से उस का हृदय जोरों से धड़क उठा था.

उस के मोबाइल पर तुरंत यह संदेश आ गया था, ‘मैं बहुत परेशान हूं, अभी बात नहीं कर पाऊंगा.’

‘क्या हुआ? कैसी परेशानी?’ उस ने सवाल भेजा था पर उस का कोई जवाब नहीं आया था. अगले दिन संध्या यह सोच कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई थी कि व्यर्थ ही उस ने अपने मन को बेकार के झंझट में फंसाया. किंतु भावनाओं के ठहरे हुए दरिया में अचानक एक पत्थर आ गिरा था. एक दिन मोबाइल की घंटी बजी, तो संध्या ने स्क्रीन पर नजर डाली. उस पर शेखर का नाम था. उस ने कांपते हाथों से मोबाइल हाथों में थामा तो शेखर का अक्स उभर आया था. शेखर ने बताया था कि उन का इकलौता बेटा डाक्टरों और सहायकों की टीम के साथ किसी गांव में फैली महामारी का इलाज करने और बीमारों की तीमारदारी के लिए गया था. लेकिन मरीजों को भलाचंगा करतेकरते वह स्वयं भी रोग की चपेट में आ गया था. इसलिए वह उस के बेहतर इलाज के लिए उसे तुरंत दिल्ली ले कर गया था. वहां बढि़या मैडिकल सेवा की बदौलत उस की सेहत में सुधार होने लगा और अब वह धीरेधीरे पूर्ण स्वस्थ हो रहा है. मैं बहुत परेशान और व्यस्त रहा, क्योंकि बहुत भागदौड़ रही. और कैसी हैं आप? अच्छा फोन बंद करता हूं. डाक्टर के पास जा रहा हूं.

संध्या ने फिर कभी कोशिश नहीं की फोन करने की, न ही दूसरी तरफ से कोई समाचार आया.

एक दिन संध्या औफिस से निकल अपने दुपहिया वाहन पर सवार विचारों में खोई चली जा रही थी कि उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उस की एक चीख निकली और वह वाहन समेत सड़क पर जा गिरी. उस के बाद उसे नहीं मालूम कि क्या हुआ. आंखें खुलीं तो उस ने स्वयं को अस्पताल में पाया. कोई भलामानुस उसे अस्पताल ले आया था और फिर घर भी छोड़ गया था.

The post रहनुमा – भाग 2: शर्म और मर्यादा के बंधन ने जब संध्या को रोक लिया appeared first on Sarita Magazine.

October 31, 2020 at 10:00AM

सजा : क्या सुमित के साथ अंकिता ने खत्म किया अपना रिश्ता

वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’ ‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’ ‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’ ‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’ उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’ ‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

ये भी पढ़ें- हो जाने दो -भाग 3 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’ अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’ ‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’ ‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई.

आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’ ‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- खानाबदोश : माया और राजेश अपने सपनों के घर से क्यों बेघर हो गए

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’ ‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’ ‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’ ‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’ ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- जिजीविषा : अनु पर लगे आरोपों से कैसे हिल गई सीमा

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’ ‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’ अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’ अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

ये भी पढ़ें- मन की थाह : बुढ़ापे में क्यों की उसने शादी

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’ ‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’ ‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमाग होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’ ‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’ ‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’ ‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’ ‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’ उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया. ‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’ ‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’ ‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’ ‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी?’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’ उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’ ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से. ‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए? ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’ अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी. आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां

पहुंचा था. ‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’ उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’ ‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’ ‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं. ‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई.

The post सजा : क्या सुमित के साथ अंकिता ने खत्म किया अपना रिश्ता appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/35KuYUM

वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’ ‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’ ‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’ ‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’ उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’ ‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

ये भी पढ़ें- हो जाने दो -भाग 3 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’ अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’ ‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’ ‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई.

आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’ ‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- खानाबदोश : माया और राजेश अपने सपनों के घर से क्यों बेघर हो गए

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’ ‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’ ‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’ ‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’ ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- जिजीविषा : अनु पर लगे आरोपों से कैसे हिल गई सीमा

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’ ‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’ अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’ अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

ये भी पढ़ें- मन की थाह : बुढ़ापे में क्यों की उसने शादी

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’ ‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’ ‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमाग होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’ ‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’ ‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’ ‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’ ‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’ उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया. ‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’ ‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’ ‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’ ‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी?’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’ उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’ ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से. ‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए? ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’ अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी. आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां

पहुंचा था. ‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’ उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’ ‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’ ‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं. ‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई.

The post सजा : क्या सुमित के साथ अंकिता ने खत्म किया अपना रिश्ता appeared first on Sarita Magazine.

October 31, 2020 at 10:00AM