Saturday 30 November 2019

दिल्ली विवि ::: 5000 शिक्षकों की नौकरी खतरे में , कालेजों में तदर्थ ...

दिल्ली विविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में काम कर रहे तदर्थ शिक्षकों पर नौकरी जाने का संकट मंडराना शुरू हो गया ...

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दिल्ली विविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में काम कर रहे तदर्थ शिक्षकों पर नौकरी जाने का संकट मंडराना शुरू हो गया ...

भारत में निजी बैंकों का लगातार विस्तार हो रहा है, साल 2020 में ही करीब ...

हम अब तक ऐसे लोगों को नौकरी में रखने में सफल हुए हैं जो कंपनी के वित्तीय और गैर-वित्तीय लक्ष्यों के लिए काम ...

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हम अब तक ऐसे लोगों को नौकरी में रखने में सफल हुए हैं जो कंपनी के वित्तीय और गैर-वित्तीय लक्ष्यों के लिए काम ...

जिला अस्पताल में 10 संविदा कर्मियों ने छोड़ी नौकरी, असर-लैब में सुबह ...

इसकी वजह जिला अस्पताल की लैब व ब्लड बैंक के 5 संविदा लैब टेक्नीशियनों द्वारा पिछले एक साल में नौकरी छोड़ना ...

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इसकी वजह जिला अस्पताल की लैब व ब्लड बैंक के 5 संविदा लैब टेक्नीशियनों द्वारा पिछले एक साल में नौकरी छोड़ना ...

नौकरी कर रहे हैं तो ये निवेश विकल्प आपके लिए हैं बेहतर, आएगा मोटा पैसा

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। अगर आप नौकरी-पेशा हैं और सारे खर्च के बाद आपकी कमाई का कुछ हिस्सा बच जाता है तो आप ...

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नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। अगर आप नौकरी-पेशा हैं और सारे खर्च के बाद आपकी कमाई का कुछ हिस्सा बच जाता है तो आप ...

डिटेल्स

नाबालिग रहते अपराध हुआ तो भी सरकारी नौकरी में बाधा नहीं. Rajesh.Choudhary@timesgroup.com •नई दिल्ली : नाबालिग ...

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नाबालिग रहते अपराध हुआ तो भी सरकारी नौकरी में बाधा नहीं. Rajesh.Choudhary@timesgroup.com •नई दिल्ली : नाबालिग ...

20 साल की क़ानूनी लड़ाई के बाद 42 शिक्षकों को फिर से मिलेगी नौकरी , हाई ...

जिन चेहरों पर झुर्रियों का असर दिखने लगा था, फिर से नौकरी का आदेश मिलने पर वे खिल उठे हैं। बीएसए मनिराम सिंह ...

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जिन चेहरों पर झुर्रियों का असर दिखने लगा था, फिर से नौकरी का आदेश मिलने पर वे खिल उठे हैं। बीएसए मनिराम सिंह ...

वासना पर नियंत्रण करना ही मानव होने का संकेत है:आचार्य

इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर बने थे संत: आचार्यश्री क्षीरसागर का जन्म विदिशा जिले के गंजबासौदा में हुआ। एमटेक ...

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इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर बने थे संत: आचार्यश्री क्षीरसागर का जन्म विदिशा जिले के गंजबासौदा में हुआ। एमटेक ...

बिहार की बेटी श्रुति के हौंसले को सलाम, नौकरी कर चुकाया कर्ज, परीक्षा ...

एलएलबी के बाद जॉब कर एजुकेशन लोन चुकाया, तब की जज बहाली परीक्षा की तैयारी, बन गईं टॉपर, हौसले से मिली कामयाबी ...

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एलएलबी के बाद जॉब कर एजुकेशन लोन चुकाया, तब की जज बहाली परीक्षा की तैयारी, बन गईं टॉपर, हौसले से मिली कामयाबी ...

बेसिक शिक्षा विभाग :20 साल की कानूनी लड़ाई के बाद 42 शिक्षकों को फिर ...

बेसिक शिक्षा विभाग मऊ में फर्जी डिग्री पर नौकरी कर रहे 15 शिक्षक बर्खास्त, BEO को केस दर्ज कराने के आदेश।

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बेसिक शिक्षा विभाग मऊ में फर्जी डिग्री पर नौकरी कर रहे 15 शिक्षक बर्खास्त, BEO को केस दर्ज कराने के आदेश।

693 पदों पर सीधे इंटरव्यू से नौकरी, 12वीं पास कर...

हिमाचल सड़क परिवहन निगम (HRTC) द्वारा Conductor पदों के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी की गई है।

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हिमाचल सड़क परिवहन निगम (HRTC) द्वारा Conductor पदों के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी की गई है।

पुलिस की नौकरी चाहिए तो आपके लिए है खबर, कांस्‍टेबल के 1772 पदों के 30 तक ...

पटना [जेएनएन]। पुलिस (Police) की नौकरी करनी है तो यह खबर आपके लिए ही है। केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) बिहार ...

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पटना [जेएनएन]। पुलिस (Police) की नौकरी करनी है तो यह खबर आपके लिए ही है। केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) बिहार ...

CISF में 12वीं पास के लिए नौकरी, सैलरी 80 हजार से ज्यादा

उम्मीदवार को विज्ञापन लिंक के साथ-साथ आवेदन लिंक भी आगे मिल जाएगा। नौकरी से संबंधित जानकारी के लिए अगली ...

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World Aids Day 2019: दूसरों का सहारा बनकर मिसाल पेश कर रहे ये एड्स पीड़ित

दक्षिण अफ्रीका में तकनीशियन की नौकरी करने वाले उनके पति की नौकरी छूट गई। आर्थिक तंगी के बीच बेटे के जन्म के ...

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दक्षिण अफ्रीका में तकनीशियन की नौकरी करने वाले उनके पति की नौकरी छूट गई। आर्थिक तंगी के बीच बेटे के जन्म के ...

एसईसीएल ने बसाहट में नहीं बढ़ाईं सुविधाएं, अमगांव के 300 परिवार दूसरी जगह ...

इनको एसईसीएल ने नौकरी का पात्र नहीं माना। हालांकि एसईसीएल ने अमगांव की जमीन को अधिग्रहित करते समय 12 किमी ...

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इनको एसईसीएल ने नौकरी का पात्र नहीं माना। हालांकि एसईसीएल ने अमगांव की जमीन को अधिग्रहित करते समय 12 किमी ...

पृष्ठ - ViewJobDetails - NCS

नौकरी आईडी 14P85-2019391273 | सेलरी: (₹) 9000 - 14000 (Monthly) | रिक्ति पदों की संख्या: 650 | प्रकाशित किया गया: 30-11- ...

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नौकरी आईडी 14P85-2019391273 | सेलरी: (₹) 9000 - 14000 (Monthly) | रिक्ति पदों की संख्या: 650 | प्रकाशित किया गया: 30-11- ...

आर्थिक राशिफल 1 से 7 दिसंबर: नौकरी और निवेश के लिए सप्‍ताह उत्‍तम है ...

मेष (Aries) : नौकरी- यह सप्ताह मध्यम रहेगा। आप नकारात्मक महसूस करेंगे। काम के विषय मे ज्यादा चिन्तित न हों, अपने ...

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मेष (Aries) : नौकरी- यह सप्ताह मध्यम रहेगा। आप नकारात्मक महसूस करेंगे। काम के विषय मे ज्यादा चिन्तित न हों, अपने ...

Sarkari Naukari: इस सरकारी विभाग में है नौकरी का मौका, 1.14 लाख होगी सैलरी

Sarkari Naukari Alert: सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे उम्‍मीदवारों के लिये अच्‍छी खबर. इस सरकारी नौकरी के लिये मिलेगी ...

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साप्ताहिक भविष्यफल: जानें कैसा रहेगा आपके लिए 01 दिसंबर से 07 दिसंबर ...

पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। आय की स्थिति संतोषजनक रहेगी। नौकरी में तरक्की ...

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पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। आय की स्थिति संतोषजनक रहेगी। नौकरी में तरक्की ...

नौकरी नहीं, न्याय चाहिए!

झाँसी : दायित्व निर्वाहन में लापरवाही का आरोप लगाकर नौकरी से हटाए गए सम्विदाकर्मी ने अब साहब के ख़्िाला़फ ...

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Friday 29 November 2019

बैंक में नौकरी का बड़ा मौका, ऐसे होगा सेलेक्शन

अगर आप बैंक में नौकरी करना चाहते हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। दरअसल आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) ने स्पेशलिस्ट ...

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JagBani - अब नौकरी छूटने पर घबराने की जरूरत नहीं, सरकार उठाएगी आपका खर्चा ...

अब नौकरी छूटने पर घबराने की जरूरत नहीं, सरकार उठाएगी आपका खर्चा, खाते में डालेगी पैसा #Job #ESIC.

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नौकरी दिलाने के नाम पर 50 हजार दे थमाया नियुक्ति पत्र

कोरबा। नईदुनिया प्रतिनिधि. आरक्षक पद पर नौकरी दिलाने का झांसा देकर 50 हजार रुपये लेकर नियुक्ति पत्र देने वाले ...

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कोरबा। नईदुनिया प्रतिनिधि. आरक्षक पद पर नौकरी दिलाने का झांसा देकर 50 हजार रुपये लेकर नियुक्ति पत्र देने वाले ...

नौकरी लगाने के नाम पर धोखाधड़ी, महिला को गिरफ्तार कर ले गई पुलिस

बिलासपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि. नौकरी लगाने के नाम पर धोखाधड़ी करने के मामले में फरार आरोपित महिला को दुर्ग ...

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बिलासपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि. नौकरी लगाने के नाम पर धोखाधड़ी करने के मामले में फरार आरोपित महिला को दुर्ग ...

मीन राशि वालों को मिलेगा नौकरी में बढ़िया मौका, जानें अपना भविष्य

मेष- आज सुबह आप बहुत पक्का इरादा करेंगे कि आपको सारा ध्यान अपनी नौकरी धंधे से जुड़े मामलों पर देना है. लेकिन ...

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मेष- आज सुबह आप बहुत पक्का इरादा करेंगे कि आपको सारा ध्यान अपनी नौकरी धंधे से जुड़े मामलों पर देना है. लेकिन ...

स्वास्थ्य विभाग का बड़ा फैसला, इन लैब टेक्नीशियन की जाएगी नौकरी

स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्यों, अधिक्षक, सिविल सर्जन से डिस्टेंस मोड से डिग्री लेने ...

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स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्यों, अधिक्षक, सिविल सर्जन से डिस्टेंस मोड से डिग्री लेने ...

मैनेजर पदों पर नौकरी पाने का बेहतरीन मौका, जल्द करें आवेदन, आज अंतिम दिन

इस सरकारी नौकरी (Government Job) को प्राप्त करने की चाहत रखने वाले इच्छुक उम्मीदवार आधिकारिक वेबसाइट eeslindia.org ...

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इस सरकारी नौकरी (Government Job) को प्राप्त करने की चाहत रखने वाले इच्छुक उम्मीदवार आधिकारिक वेबसाइट eeslindia.org ...

एक इंजीनियर की मौत

महज 70-80 घरों वाले उस छोटे से गांव के छोटे से घर में मातम पसरा हुआ था. गिनती के कुछ लोग मातमपुरसी के लिए आए हुए थे. 28 साल की जवान मौत के लिए दिलासा देने के लिए लोगों के पास शब्द नहीं थे. मां फूटफूट कर रो रही थी. जब वह थक जाती तो यही फूटना सिसकियों में बदल जाता. बाप के आंसू सूख चुके थे और वह आसमान में एकटक देखे जा रहा था. ज्यादा लोग नहीं थे. वैसे भी गरीब के यहां कौन जाता है.

‘‘पर, विजय ने खुदकुशी क्यों की?’’ एक आदमी ने पूछा.

‘‘पता नहीं… उस ने 3 साल पहले इंजीनियरिंग पास की थी. नौकरी नहीं मिली शायद इसीलिए,’’ पिता ने जैसेतैसे जवाब दिया.

‘‘चाचा, इस सिस्टम, इन सरकारों ने जो सपने दिखाने के कारखाने खोले हैं यह मौत उसी का नतीजा है.

‘‘आप को याद होगा कि 10 साल पहले जब विजय ने इंटर पास की थी, तब वह इस गांव का पहला लड़का था जो 70 फीसदी अंक लाया था. सारा गांव कितना खुश था.

‘‘गांव के टीचरों ने भी अपनी मेहनत पर पहली बार फख्र महसूस करते हुए उसे इंजीनियरिंग करने की सलाह दी थी. तब क्या पता था कुकुरमुत्ते की तरह खुले ये कालेज भविष्य नहीं सपने बेच रहे हैं.

‘‘यह तो आप लोग भी जानते हैं कि विजय के परिवार के पास 8 एकड़ जमीन ही थी. दाखिले के समय विजय के पिताजी ने अपनी बरसों की जमापूंजी लगा दी. उस के अगले साल भी जैसेतैसे जुगाड़ हो ही गया. पर आखिरी 2 साल के लिए उन्हें अपनी 2 एकड़ जमीन भी बेचनी पड़ी.

‘‘सभी को यह उम्मीद थी कि इंजीनियरिंग होते ही 4-6 महीने में विजय की नौकरी लग जाएगी. कालेज भी नामीगिरामी है और कैंपस सिलैक्शन के लिए भी कई कंपनियां आती हैं. कहीं न कहीं जुगाड़ हो ही जाएगा.

‘‘यह किसे पता था कि आने वाली सभी कंपनियां प्रायोजित होती हैं और उन्हीं छात्रों को चुनती हैं जिन का नाम कालेज प्रशासन देता है.

‘‘कालेज प्रशासन भी उन्हीं छात्रों के नाम देता है जो उन के टीचरों से कालेज टाइम के बाद कोचिंग लेते हैं.

‘‘विजय अपने घर के हालात को बखूबी जानता था. वह फीस ही मुश्किल से भर पाता था, ऐसे में कोचिंग लेना उस के लिए मुमकिन नहीं था. ऊपर से दिक्कत यह कि उस के पास होने के एक साल पहले से उन प्रायोजित कंपनियों ने भी आना बंद कर दिया था. शायद दूसरे कालेज वालों ने ज्यादा पैसे दे कर उन्हें बुलवा लिया था.

‘‘इतने सारे इंजीनियरों के इम्तिहान पास करने के बाद सरकार के खुद के पास नौकरी के मौके नहीं थे. विजय को अपने लैवल की नौकरी मिलती कैसे?

‘‘पिछले 3 सालों से उस क्षेत्र की कोई कंपनी नहीं बची थी जहां पर विजय ने नौकरी के लिए अर्जी न दी हो. अब तो हालत यह हो गई थी कि उन कंपनियों के सिक्योरिटी गार्ड और चपरासी भी उसे पहचानने लगे थे. दूर से ही उसे देख कर वे हाथ जोड़ कर मना कर दिया करते थे.

‘‘एक दिन एक साधारण सी फैक्टरी का सिक्योरिटी गार्ड गेट पर नहीं था तो विजय मौका देख कर उस के औफिस में घुस गया और वहां बैठे उस के मालिक को अर्जी देते हुए नौकरी की गुजारिश करने लगा.

‘‘तब उस के मालिक ने कहा, ‘मेरी फैक्टरी में इंजीनियर, सुपरवाइजर, मैनेजर सबकुछ वर्कर ही है जो 50 किलो की बोरियां अपने कंधों पर उठता भी है, 200 किलो का बैरल धकाता भी है और प्रोडक्शन के लिए मशीनों को औपरेट भी करता है. शायद तुम अपनी डिगरी के चलते ये सब काम न कर पाओ.

मैं तो सरकार को सलाह दूंगा कि वह इंजीनियर बनाने के बजाय मल्टीपर्पज वर्कर बनाने के लिए इंस्टीट्यूट खोले. यह देश के फायदे में होगा.’

‘‘कारखानों, कंपनियों और सरकारी महकमों में चपरासी तक की नौकरी न मिलते देख विजय ने टीचर बनने की सोची. पर मुसीबतों ने उस का साथ यहां भी नहीं छोड़ा. सरकारी स्कूलों में उसे अर्जी देने की पात्रता नहीं थी. प्राइवेट स्कूलों में जब इंटरव्यू के लिए वह गया तो सभी इस बात से डरे हुए थे कि जब उसे अपनी फील्ड की नौकरी मिलेगी तो वह स्कूल की नौकरी बीच में ही छोड़ देगा और स्कूल के बच्चों का भविष्य अधर में लटक जाएगा.

ये भी पढ़ें- रिश्तों की डोर

‘‘गांव के रीतिरिवाजों के मुताबिक, विजय की शादी भी उस के इंजीनियरिंग में दाखिला लेते ही तय कर दी गई थी. लड़की पास ही के गांव की थी. विजय जब भी गांव आता तो उस से मिलने जरूर जाता था.

‘‘विजय के इंजीनियर बनने के साथ ही उस ने भी अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर ली थी. पर पिछले 3 सालों से विजय का कुछ होता न देख कर लड़की के घर वालों ने कहीं और शादी करने का फैसला ले लिया.

‘‘उस लड़की ने भी विजय को यह कहते हुए छोड़ दिया था कि वह जानबूझ कर जद्दोजेहद की दुनिया में नहीं जा सकती.

‘‘उस लड़की ने कहा था, ‘याद करो विजय, हम ने सुखद भविष्य के जो भी सपने देखे हैं उन में कोई संघर्ष नहीं है तो मैं अब कैसे संघर्षों को चुन सकती हूं? मैं आंखों देखी मक्खी नहीं निगल सकती.’

‘‘विजय गांव वापस आ कर खेती इसलिए भी नहीं कर सकता था, क्योंकि 2 एकड़ खेती बिकने का कुसूरवार वह अपनेआप को मानता था. वैसे भी बची हुई 6 एकड़ खेती से 3 लोगों का खर्चा निकलना मुश्किल ही था. विजय चाहता था अगर वह परिवार की कुछ मदद न कर सके तो कोई बात नहीं, पर कम से कम परिवार के लिए बोझ न बने.

‘‘मैं उसे फोन लगा कर रोज बातें किया करता था ताकि उस की हिम्मत बनी रहे. पर पिछले 15 दिनों से हालात बहुत खराब हो गए थे. जिन लोगों के साथ वह रूम शेयर कर के रहता था उन्होंने 6 महीने से पैसा न दे पाने के चलते रूम से निकाल दिया था. मैं हजार 5 सौ रुपए की मदद जरूर करता था पर वह मदद पूरी नहीं पड़ती थी.

‘‘पेट भरने के लिए वह अकसर रात में सब्जी मंडी बंद होने के बाद चला जाता था और विक्रेताओं द्वारा फेंकी गई सड़ी हुई सब्जियों और फलों के अच्छे हिस्से निकाल कर खा लेता था.

‘‘लेकिन परसों हुई घटना ने न सिर्फ उस की उम्मीदों को तोड़ दिया था, बल्कि तथाकथित इनसानियत पर से भी उस का थोथा विश्वास हमेशा के लिए उठ गया था.

‘‘रूममेट्स द्वारा निकाले जाने के बाद विजय अलगअलग फुटपाथों पर अपनी रातें बिताया करता था. परसों वह ऐसे ही किसी फुटपाथ के किनारे बैठा था. पिछले 2 दिनों से सड़ी हुई सब्जियों के अलावा उस ने कुछ खाया भी नहीं था.

‘‘तभी एक बड़ी सी कार में से एक अमीर औरत उतरी. उस के हाथों में कुछ रोटियां थीं. वह अपनी पैनी निगाहों से कुछ खोज रही थी. उसे सामने कुछ ही दूरी पर एक काला कुत्ता दिखाई पड़ा. शायद वह उसी को खोज रही थी. उस औरत ने उस कुत्ते को अपनी तरफ बुलाने की बहुत कोशिश की. रोटियां शायद वह उस काले कुत्ते को खिलाना चाहती थी.

‘‘कुत्ते ने उस औरत की तरफ देखा जरूर, पर आया नहीं. शायद उस का पेट भरा हुआ था. हार कर वह औरत उन रोटियों को वहीं रख वापस अपनी गाड़ी की तरफ चली गई.

‘‘जब विजय ने देखा कि कुत्ता रोटी नहीं खा रहा?है तो उस ने वह रोटी खुद के खाने के लिए उठा ली. कार में बैठते समय उस औरत ने सारा कारनामा देखा तो वह तुरंत कार में से उतर कर आई और विजय से रोटी छीनते हुए बोली, ‘यह रोटी मैं ने शनि महाराज की पूजा के लिए बनाई है और इसे काले कुत्ते के खाने से ही मेरी शनि बाधा दूर होगी, तुम जैसे आवारा के खाने से नहीं.’

‘‘भूखा विजय कब तक सिस्टम से, समाज से और अपनी भूख से इंजीनियरिंग की डिगरी के दम पर लड़ता? आखिरकार उस ने जिंदगी से हार मान ली और पानी में डूब कर खुदकुशी कर ली.’’

मातमपुरसी के लिए आए सब लोग चुप थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि किसे कुसूरवार समझें. बिना भविष्य की योजनाएं लिए चल रही सरकारों को या पकवानों के साथ पेट भर कर एयरकंडीशंड कमरों में बैठे सपने बेचने वाले अफसरों को या उन भोलेभाले लोगों को जो इन छलावों में आ कर अपना आज तो खराब कर ही रहे हैं, भविष्य के बुरे नतीजों से भी बेखबर हैं.

ये भी पढ़ें- मान मर्दन

The post एक इंजीनियर की मौत appeared first on Sarita Magazine.



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महज 70-80 घरों वाले उस छोटे से गांव के छोटे से घर में मातम पसरा हुआ था. गिनती के कुछ लोग मातमपुरसी के लिए आए हुए थे. 28 साल की जवान मौत के लिए दिलासा देने के लिए लोगों के पास शब्द नहीं थे. मां फूटफूट कर रो रही थी. जब वह थक जाती तो यही फूटना सिसकियों में बदल जाता. बाप के आंसू सूख चुके थे और वह आसमान में एकटक देखे जा रहा था. ज्यादा लोग नहीं थे. वैसे भी गरीब के यहां कौन जाता है.

‘‘पर, विजय ने खुदकुशी क्यों की?’’ एक आदमी ने पूछा.

‘‘पता नहीं… उस ने 3 साल पहले इंजीनियरिंग पास की थी. नौकरी नहीं मिली शायद इसीलिए,’’ पिता ने जैसेतैसे जवाब दिया.

‘‘चाचा, इस सिस्टम, इन सरकारों ने जो सपने दिखाने के कारखाने खोले हैं यह मौत उसी का नतीजा है.

‘‘आप को याद होगा कि 10 साल पहले जब विजय ने इंटर पास की थी, तब वह इस गांव का पहला लड़का था जो 70 फीसदी अंक लाया था. सारा गांव कितना खुश था.

‘‘गांव के टीचरों ने भी अपनी मेहनत पर पहली बार फख्र महसूस करते हुए उसे इंजीनियरिंग करने की सलाह दी थी. तब क्या पता था कुकुरमुत्ते की तरह खुले ये कालेज भविष्य नहीं सपने बेच रहे हैं.

‘‘यह तो आप लोग भी जानते हैं कि विजय के परिवार के पास 8 एकड़ जमीन ही थी. दाखिले के समय विजय के पिताजी ने अपनी बरसों की जमापूंजी लगा दी. उस के अगले साल भी जैसेतैसे जुगाड़ हो ही गया. पर आखिरी 2 साल के लिए उन्हें अपनी 2 एकड़ जमीन भी बेचनी पड़ी.

‘‘सभी को यह उम्मीद थी कि इंजीनियरिंग होते ही 4-6 महीने में विजय की नौकरी लग जाएगी. कालेज भी नामीगिरामी है और कैंपस सिलैक्शन के लिए भी कई कंपनियां आती हैं. कहीं न कहीं जुगाड़ हो ही जाएगा.

‘‘यह किसे पता था कि आने वाली सभी कंपनियां प्रायोजित होती हैं और उन्हीं छात्रों को चुनती हैं जिन का नाम कालेज प्रशासन देता है.

‘‘कालेज प्रशासन भी उन्हीं छात्रों के नाम देता है जो उन के टीचरों से कालेज टाइम के बाद कोचिंग लेते हैं.

‘‘विजय अपने घर के हालात को बखूबी जानता था. वह फीस ही मुश्किल से भर पाता था, ऐसे में कोचिंग लेना उस के लिए मुमकिन नहीं था. ऊपर से दिक्कत यह कि उस के पास होने के एक साल पहले से उन प्रायोजित कंपनियों ने भी आना बंद कर दिया था. शायद दूसरे कालेज वालों ने ज्यादा पैसे दे कर उन्हें बुलवा लिया था.

‘‘इतने सारे इंजीनियरों के इम्तिहान पास करने के बाद सरकार के खुद के पास नौकरी के मौके नहीं थे. विजय को अपने लैवल की नौकरी मिलती कैसे?

‘‘पिछले 3 सालों से उस क्षेत्र की कोई कंपनी नहीं बची थी जहां पर विजय ने नौकरी के लिए अर्जी न दी हो. अब तो हालत यह हो गई थी कि उन कंपनियों के सिक्योरिटी गार्ड और चपरासी भी उसे पहचानने लगे थे. दूर से ही उसे देख कर वे हाथ जोड़ कर मना कर दिया करते थे.

‘‘एक दिन एक साधारण सी फैक्टरी का सिक्योरिटी गार्ड गेट पर नहीं था तो विजय मौका देख कर उस के औफिस में घुस गया और वहां बैठे उस के मालिक को अर्जी देते हुए नौकरी की गुजारिश करने लगा.

‘‘तब उस के मालिक ने कहा, ‘मेरी फैक्टरी में इंजीनियर, सुपरवाइजर, मैनेजर सबकुछ वर्कर ही है जो 50 किलो की बोरियां अपने कंधों पर उठता भी है, 200 किलो का बैरल धकाता भी है और प्रोडक्शन के लिए मशीनों को औपरेट भी करता है. शायद तुम अपनी डिगरी के चलते ये सब काम न कर पाओ.

मैं तो सरकार को सलाह दूंगा कि वह इंजीनियर बनाने के बजाय मल्टीपर्पज वर्कर बनाने के लिए इंस्टीट्यूट खोले. यह देश के फायदे में होगा.’

‘‘कारखानों, कंपनियों और सरकारी महकमों में चपरासी तक की नौकरी न मिलते देख विजय ने टीचर बनने की सोची. पर मुसीबतों ने उस का साथ यहां भी नहीं छोड़ा. सरकारी स्कूलों में उसे अर्जी देने की पात्रता नहीं थी. प्राइवेट स्कूलों में जब इंटरव्यू के लिए वह गया तो सभी इस बात से डरे हुए थे कि जब उसे अपनी फील्ड की नौकरी मिलेगी तो वह स्कूल की नौकरी बीच में ही छोड़ देगा और स्कूल के बच्चों का भविष्य अधर में लटक जाएगा.

ये भी पढ़ें- रिश्तों की डोर

‘‘गांव के रीतिरिवाजों के मुताबिक, विजय की शादी भी उस के इंजीनियरिंग में दाखिला लेते ही तय कर दी गई थी. लड़की पास ही के गांव की थी. विजय जब भी गांव आता तो उस से मिलने जरूर जाता था.

‘‘विजय के इंजीनियर बनने के साथ ही उस ने भी अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर ली थी. पर पिछले 3 सालों से विजय का कुछ होता न देख कर लड़की के घर वालों ने कहीं और शादी करने का फैसला ले लिया.

‘‘उस लड़की ने भी विजय को यह कहते हुए छोड़ दिया था कि वह जानबूझ कर जद्दोजेहद की दुनिया में नहीं जा सकती.

‘‘उस लड़की ने कहा था, ‘याद करो विजय, हम ने सुखद भविष्य के जो भी सपने देखे हैं उन में कोई संघर्ष नहीं है तो मैं अब कैसे संघर्षों को चुन सकती हूं? मैं आंखों देखी मक्खी नहीं निगल सकती.’

‘‘विजय गांव वापस आ कर खेती इसलिए भी नहीं कर सकता था, क्योंकि 2 एकड़ खेती बिकने का कुसूरवार वह अपनेआप को मानता था. वैसे भी बची हुई 6 एकड़ खेती से 3 लोगों का खर्चा निकलना मुश्किल ही था. विजय चाहता था अगर वह परिवार की कुछ मदद न कर सके तो कोई बात नहीं, पर कम से कम परिवार के लिए बोझ न बने.

‘‘मैं उसे फोन लगा कर रोज बातें किया करता था ताकि उस की हिम्मत बनी रहे. पर पिछले 15 दिनों से हालात बहुत खराब हो गए थे. जिन लोगों के साथ वह रूम शेयर कर के रहता था उन्होंने 6 महीने से पैसा न दे पाने के चलते रूम से निकाल दिया था. मैं हजार 5 सौ रुपए की मदद जरूर करता था पर वह मदद पूरी नहीं पड़ती थी.

‘‘पेट भरने के लिए वह अकसर रात में सब्जी मंडी बंद होने के बाद चला जाता था और विक्रेताओं द्वारा फेंकी गई सड़ी हुई सब्जियों और फलों के अच्छे हिस्से निकाल कर खा लेता था.

‘‘लेकिन परसों हुई घटना ने न सिर्फ उस की उम्मीदों को तोड़ दिया था, बल्कि तथाकथित इनसानियत पर से भी उस का थोथा विश्वास हमेशा के लिए उठ गया था.

‘‘रूममेट्स द्वारा निकाले जाने के बाद विजय अलगअलग फुटपाथों पर अपनी रातें बिताया करता था. परसों वह ऐसे ही किसी फुटपाथ के किनारे बैठा था. पिछले 2 दिनों से सड़ी हुई सब्जियों के अलावा उस ने कुछ खाया भी नहीं था.

‘‘तभी एक बड़ी सी कार में से एक अमीर औरत उतरी. उस के हाथों में कुछ रोटियां थीं. वह अपनी पैनी निगाहों से कुछ खोज रही थी. उसे सामने कुछ ही दूरी पर एक काला कुत्ता दिखाई पड़ा. शायद वह उसी को खोज रही थी. उस औरत ने उस कुत्ते को अपनी तरफ बुलाने की बहुत कोशिश की. रोटियां शायद वह उस काले कुत्ते को खिलाना चाहती थी.

‘‘कुत्ते ने उस औरत की तरफ देखा जरूर, पर आया नहीं. शायद उस का पेट भरा हुआ था. हार कर वह औरत उन रोटियों को वहीं रख वापस अपनी गाड़ी की तरफ चली गई.

‘‘जब विजय ने देखा कि कुत्ता रोटी नहीं खा रहा?है तो उस ने वह रोटी खुद के खाने के लिए उठा ली. कार में बैठते समय उस औरत ने सारा कारनामा देखा तो वह तुरंत कार में से उतर कर आई और विजय से रोटी छीनते हुए बोली, ‘यह रोटी मैं ने शनि महाराज की पूजा के लिए बनाई है और इसे काले कुत्ते के खाने से ही मेरी शनि बाधा दूर होगी, तुम जैसे आवारा के खाने से नहीं.’

‘‘भूखा विजय कब तक सिस्टम से, समाज से और अपनी भूख से इंजीनियरिंग की डिगरी के दम पर लड़ता? आखिरकार उस ने जिंदगी से हार मान ली और पानी में डूब कर खुदकुशी कर ली.’’

मातमपुरसी के लिए आए सब लोग चुप थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि किसे कुसूरवार समझें. बिना भविष्य की योजनाएं लिए चल रही सरकारों को या पकवानों के साथ पेट भर कर एयरकंडीशंड कमरों में बैठे सपने बेचने वाले अफसरों को या उन भोलेभाले लोगों को जो इन छलावों में आ कर अपना आज तो खराब कर ही रहे हैं, भविष्य के बुरे नतीजों से भी बेखबर हैं.

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November 30, 2019 at 10:13AM

दूसरी चोट

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

ये भी पढ़ें- चाहत की शिकार

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

ये भी पढ़ें- हैप्पीनैस हार्मोन

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

घटना अनचाही  शादी या मौत मदन कोथुनियां अजमेर, राजस्थान के किशनगंज इलाके के कलक्टर महेंद्र कुमार से जिस डाक्टर स्निग्धा की शादी होनी थी, वह तो हो न सकी. पर शादी के दिन रविवार, 9 दिसंबर, 2018 को एक अपार्टमैंट्स की छत से कूद कर जान देने वाली स्निग्धा कभी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी और से हो.

रिटायर्ड आईजी उमाशंकर सुधांशु भी नहीं चाहते थे कि उन की बेटी डाक्टर स्निग्धा अपने मनपसंद लड़के से शादी करे, चाहे उस नौजवान में कितनी ही काबिलीयत क्यों न हो.

अगर कोई लड़का बिरादरी से बाहर का हो तो भारत के ज्यादातर मांबाप की तरह उमाशंकर भी कभी नहीं चाहते थे कि उन की लड़की किसी दूसरी जाति के लड़के से शादी करे, चाहे लड़का बड़ा ही अफसर क्यों न हो.

अगर उसी की जाति का कोई साधारण लड़का भी होता तो किसी भी जाति के उमाशंकर जैसे बाप कभी नहीं चाहेंगे कि उन के लैवल के परिवार की लड़की उस लड़के से शादी करे.

डाक्टर स्निग्धा ने अपने पिता उमाशंकर सुधांशु पर किसी भी तरह से कोई जोर नहीं चलते हुए और अपने प्यार को नाकाम होता देख एक बहुमंजिला इमारत से कूद कर खुदकुशी कर ली, जबकि उस के रिटायर्ड आईजी बाप ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि उन की परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी.

मगर हकीकत में यह गम उन्हें जिंदगीभर इस उलझन में डाले रहेगा कि काश, वे अपनी बेटी की बात मान लेते. या फिर ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसी बात को ज्यादा तवज्जुह नहीं देते, क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि लोग तो फिर भी बोल रहे हैं. कोई पक्ष में तो कोई विपक्ष में.

2 प्रेमियों के बीच मांबाप, अड़ोसीपड़ोसी और जाति की मिट्टी से बनी दीवारें आप ने बचपन से ले कर आज तक न जाने कितनी देखी होंगी. किसी प्रेमीप्रेमिका के नाकहोंठ काटे, अनेक नौजवानों की हत्या की गई. अनेक जोड़ों ने खुदकुशी की. कहीं तेजाब फेंका गया, कहीं जलाया गया और अनेक लड़कियों की जबरन कहीं दूसरी जगह शादी कर दी गई. एक ही जाति के प्रेमीप्रेमिकाओं को भी अपने मांबाप की जिद का शिकार होना पड़ा.

लड़के या लड़की के प्यार के बारे में अचानक पिता को जब मालूम होता है तो पिता और बेटी के बीच ममता और प्रेमीप्रेमिका के प्यार के बीच लड़ाई होने लगती है.

पिताबेटी और प्रेमीप्रेमिका दोनों के बीच लगाव होना भी कुदरती स्वभाव के तहत आता है, पर बेटी का एक प्रेमिका रूप में बदलना लगाव व सहवास करने की वह पहली सीढ़ी है जहां दुनिया

की कोई भी मादा अपनी पसंद के नर का चुनाव करती है और उसी से मिलन करते हुए अपने बच्चे पैदा करना चाहती है.

इस दौरान दोनों किसी का विरोध सहन नहीं कर पाते हैं. दोनों के लगाव की यह वह हद है जहां मौत और जिंदगी में कोई फर्क नहीं रह जाता है. किसी एक के बिछुड़ने पर दूसरे के पागल हो जाने का डर भी बढ़ जाता है. डाक्टर स्निग्धा ने तो अपनी जान ही दे दी.

ये भी पढ़ें- नासमझी की आंधी

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इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

ये भी पढ़ें- चाहत की शिकार

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

ये भी पढ़ें- हैप्पीनैस हार्मोन

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

घटना अनचाही  शादी या मौत मदन कोथुनियां अजमेर, राजस्थान के किशनगंज इलाके के कलक्टर महेंद्र कुमार से जिस डाक्टर स्निग्धा की शादी होनी थी, वह तो हो न सकी. पर शादी के दिन रविवार, 9 दिसंबर, 2018 को एक अपार्टमैंट्स की छत से कूद कर जान देने वाली स्निग्धा कभी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी और से हो.

रिटायर्ड आईजी उमाशंकर सुधांशु भी नहीं चाहते थे कि उन की बेटी डाक्टर स्निग्धा अपने मनपसंद लड़के से शादी करे, चाहे उस नौजवान में कितनी ही काबिलीयत क्यों न हो.

अगर कोई लड़का बिरादरी से बाहर का हो तो भारत के ज्यादातर मांबाप की तरह उमाशंकर भी कभी नहीं चाहते थे कि उन की लड़की किसी दूसरी जाति के लड़के से शादी करे, चाहे लड़का बड़ा ही अफसर क्यों न हो.

अगर उसी की जाति का कोई साधारण लड़का भी होता तो किसी भी जाति के उमाशंकर जैसे बाप कभी नहीं चाहेंगे कि उन के लैवल के परिवार की लड़की उस लड़के से शादी करे.

डाक्टर स्निग्धा ने अपने पिता उमाशंकर सुधांशु पर किसी भी तरह से कोई जोर नहीं चलते हुए और अपने प्यार को नाकाम होता देख एक बहुमंजिला इमारत से कूद कर खुदकुशी कर ली, जबकि उस के रिटायर्ड आईजी बाप ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि उन की परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी.

मगर हकीकत में यह गम उन्हें जिंदगीभर इस उलझन में डाले रहेगा कि काश, वे अपनी बेटी की बात मान लेते. या फिर ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसी बात को ज्यादा तवज्जुह नहीं देते, क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि लोग तो फिर भी बोल रहे हैं. कोई पक्ष में तो कोई विपक्ष में.

2 प्रेमियों के बीच मांबाप, अड़ोसीपड़ोसी और जाति की मिट्टी से बनी दीवारें आप ने बचपन से ले कर आज तक न जाने कितनी देखी होंगी. किसी प्रेमीप्रेमिका के नाकहोंठ काटे, अनेक नौजवानों की हत्या की गई. अनेक जोड़ों ने खुदकुशी की. कहीं तेजाब फेंका गया, कहीं जलाया गया और अनेक लड़कियों की जबरन कहीं दूसरी जगह शादी कर दी गई. एक ही जाति के प्रेमीप्रेमिकाओं को भी अपने मांबाप की जिद का शिकार होना पड़ा.

लड़के या लड़की के प्यार के बारे में अचानक पिता को जब मालूम होता है तो पिता और बेटी के बीच ममता और प्रेमीप्रेमिका के प्यार के बीच लड़ाई होने लगती है.

पिताबेटी और प्रेमीप्रेमिका दोनों के बीच लगाव होना भी कुदरती स्वभाव के तहत आता है, पर बेटी का एक प्रेमिका रूप में बदलना लगाव व सहवास करने की वह पहली सीढ़ी है जहां दुनिया

की कोई भी मादा अपनी पसंद के नर का चुनाव करती है और उसी से मिलन करते हुए अपने बच्चे पैदा करना चाहती है.

इस दौरान दोनों किसी का विरोध सहन नहीं कर पाते हैं. दोनों के लगाव की यह वह हद है जहां मौत और जिंदगी में कोई फर्क नहीं रह जाता है. किसी एक के बिछुड़ने पर दूसरे के पागल हो जाने का डर भी बढ़ जाता है. डाक्टर स्निग्धा ने तो अपनी जान ही दे दी.

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November 30, 2019 at 10:12AM

भेडि़या और भेड़

‘‘मां, मां…’’ लगभग चीखती हुई रूबी अपना बैग जल्दीजल्दी पैक करने लगी. मिसेज सविता उसे बैग पैक करते देख अचंभित हो बोलीं, ‘‘यह कहां जा रही है तू?’’

‘‘मां, बेंगलुरु में जौब लग गई है, वह भी 4 लाख शुरुआती पैकेज मिल रहा है. कल की फ्लाइट से निकल रही हूं.’’

सविता बोलीं, ‘‘अकेली कैसे रहेगी इतनी दूर? कोईर् और भी जा रहा है क्या?’’

रूबी मुसकराती हुई बोली, ‘‘पता है तुम क्या पूछना चाह रही हो. हां, रविश की जौब भी वहीं है. उस से बहुत सहारा मिलेगा मुझे.’’

इस पर सविता बोलीं, ‘‘तू रहेगी कहां? कोई फ्लैट या किराए का घर देख लिया है या नहीं?’’

अब रूबी की चंचल मुसकान गायब हो गई और मां को पलंग पर बैठाते हुए वह बोली, ‘‘मां, मैं और रविश वहां साथ ही रहेंगे.’’ यह सुन कर तो मां ऐसे उछल पड़ीं जैसे कि पलंग पर स्ंिप्रग रखी हो और उन के मुंह से बस यही निकला, ‘‘क्या? पागल तो नहीं हो गई तू, लोग क्या कहेंगे?’’

रूबी बोली, ‘‘जिन लोगों को तुम जानती हो, उन में से कोई बेंगलुरु में नहीं रहता, टैंशन नौट.’’

सविता ने कहा, ‘‘मति मारी गई है तेरी, भेडि़या और भेड़ कभी एक थाली में नहीं खा सकते. क्योंकि भेड़ के मांस की खुशबू आ रही हो तो भेडि़या घासफूस खाने का दिखावा नहीं करता.’’

इस पर रूबी बोली, ‘‘मां, इस भेड़ को भेडि़यों को काबू में रखना आता है. हम साथ रहेंगे अपनीअपनी शर्तों पर, शादी नहीं कर रहे हैं.’’

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गुस्से में सविता बोलीं, ‘‘अरे नालायक लड़की, छुरी सेब पर गिरे या सेब छुरी पर, नुकसान सेब का ही होता है, जवानी की उमंग में तू यह क्यों नहीं समझ रही है?’’

रूबी बोली, ‘‘मां, मैं तुम से वादा करती हूं, जब तक उसे पूरी तरह समझ नहीं लेती, उस को हाथ भी नहीं लगाने दूंगी.’’

सविता ने कहा, ‘‘भाड़ में जा, ऐसी बातें तेरे मामा से तो कह नहीं सकती. काश, आज तेरे पिता जिंदा होते.’’

रूबी बोल पड़ी, ‘‘जिंदा होते तो गर्व करते कि बेटी ने दहेज की चिंता से मुक्त कर दिया.’’

रूबी बेंगलुरु पहुंची तो रविश ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया. रूबी मां को तो आश्वस्त कर आई मगर वह रविश के आचार, विचार और व्यवहार को बहुत ही बारीकी से तोल रही थी. रविश ने उसे छूने की तो कोशिश नहीं की मगर उस के उभारों पर उस की ललचाई नजर वह भांप सकती थी. उस दिन तो हद हो गई जब रविश अपने स्लो नैटवर्क के कारण टैलीकौम कंपनी की मांबहन भद्दीभद्दी गालियों के साथ एक कर दे रहा था.

चरित्र और आचार की परीक्षा को जब तक रूबी भुला पाती, रविश ने टीवी देखते हुए सनी लिओनी पर अपने विचार भी जाहिर कर दिए. अब तो रूबी के सपनों की दुनिया मानो ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. दूसरे ही दिन रूबी अपना बोरियाबिस्तर बांध अपनी कलीग के घर जाने लगी, तो रविश ने उस का रास्ता रोकते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

रूबी ने उस के आचार, विचार और व्यवहार पर लंबाचौड़ा भाषण दे दिया. रविश ने सबकुछ शांति से सुना और बोला, ‘‘अरे, इतनी सी बात, यह तो मेरे अंदर का पुरुष जब मुझ पर हावी हो जाता है, तब होता है, हमेशा ऐसा नहीं होता.’’

रूबी ने कहा, ‘‘मगर रविश, मैं ने सोचा था कि तुम बाकी मर्दों से अलग होगे.’’

रविश ने कहा, ‘‘रूबी, जो पुरुष अपने को ऐसा दिखाते हैं वे झूठे होते हैं. सच तो यह है कि हर पुरुष सुंदर स्त्री को देखते ही लालायित हो उठता है. यह नैसर्गिक आदत है उस की. मैं भी पुरुष हूं, झूठ नहीं बोलूंगा. मगर मैं भी तुम्हें मन ही मन…लेकिन तुम्हारी मरजी के बिना नहीं. अब भी तुम अलग रहना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा.’’

रूबी उस की साफसाफ बोलने की आदत और नियंत्रण देख अपने कपड़े बैग से निकाल वापस अलमारी में रखने लगी. तभी लाइट चली गई और रविश बोल पड़ा, ‘‘इस को भी अभी जाना था.’’ रूबी के घूर कर देखने पर रविश जीभ दांतों में दबा उठकबैठक लगाने लगा. और रूबी ने इस बचकानेपन पर उसे चूम लिया. आज उस ने अपने अंदर की स्त्री के संयम के किनारे को भी तोड़ दिया क्योंकि आज वह भेडि़या और भेड़ की नैसर्गिकता को समझ चुकी थी.

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‘‘मां, मां…’’ लगभग चीखती हुई रूबी अपना बैग जल्दीजल्दी पैक करने लगी. मिसेज सविता उसे बैग पैक करते देख अचंभित हो बोलीं, ‘‘यह कहां जा रही है तू?’’

‘‘मां, बेंगलुरु में जौब लग गई है, वह भी 4 लाख शुरुआती पैकेज मिल रहा है. कल की फ्लाइट से निकल रही हूं.’’

सविता बोलीं, ‘‘अकेली कैसे रहेगी इतनी दूर? कोईर् और भी जा रहा है क्या?’’

रूबी मुसकराती हुई बोली, ‘‘पता है तुम क्या पूछना चाह रही हो. हां, रविश की जौब भी वहीं है. उस से बहुत सहारा मिलेगा मुझे.’’

इस पर सविता बोलीं, ‘‘तू रहेगी कहां? कोई फ्लैट या किराए का घर देख लिया है या नहीं?’’

अब रूबी की चंचल मुसकान गायब हो गई और मां को पलंग पर बैठाते हुए वह बोली, ‘‘मां, मैं और रविश वहां साथ ही रहेंगे.’’ यह सुन कर तो मां ऐसे उछल पड़ीं जैसे कि पलंग पर स्ंिप्रग रखी हो और उन के मुंह से बस यही निकला, ‘‘क्या? पागल तो नहीं हो गई तू, लोग क्या कहेंगे?’’

रूबी बोली, ‘‘जिन लोगों को तुम जानती हो, उन में से कोई बेंगलुरु में नहीं रहता, टैंशन नौट.’’

सविता ने कहा, ‘‘मति मारी गई है तेरी, भेडि़या और भेड़ कभी एक थाली में नहीं खा सकते. क्योंकि भेड़ के मांस की खुशबू आ रही हो तो भेडि़या घासफूस खाने का दिखावा नहीं करता.’’

इस पर रूबी बोली, ‘‘मां, इस भेड़ को भेडि़यों को काबू में रखना आता है. हम साथ रहेंगे अपनीअपनी शर्तों पर, शादी नहीं कर रहे हैं.’’

ये भी पढ़ें- सुधा का सत्य

गुस्से में सविता बोलीं, ‘‘अरे नालायक लड़की, छुरी सेब पर गिरे या सेब छुरी पर, नुकसान सेब का ही होता है, जवानी की उमंग में तू यह क्यों नहीं समझ रही है?’’

रूबी बोली, ‘‘मां, मैं तुम से वादा करती हूं, जब तक उसे पूरी तरह समझ नहीं लेती, उस को हाथ भी नहीं लगाने दूंगी.’’

सविता ने कहा, ‘‘भाड़ में जा, ऐसी बातें तेरे मामा से तो कह नहीं सकती. काश, आज तेरे पिता जिंदा होते.’’

रूबी बोल पड़ी, ‘‘जिंदा होते तो गर्व करते कि बेटी ने दहेज की चिंता से मुक्त कर दिया.’’

रूबी बेंगलुरु पहुंची तो रविश ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया. रूबी मां को तो आश्वस्त कर आई मगर वह रविश के आचार, विचार और व्यवहार को बहुत ही बारीकी से तोल रही थी. रविश ने उसे छूने की तो कोशिश नहीं की मगर उस के उभारों पर उस की ललचाई नजर वह भांप सकती थी. उस दिन तो हद हो गई जब रविश अपने स्लो नैटवर्क के कारण टैलीकौम कंपनी की मांबहन भद्दीभद्दी गालियों के साथ एक कर दे रहा था.

चरित्र और आचार की परीक्षा को जब तक रूबी भुला पाती, रविश ने टीवी देखते हुए सनी लिओनी पर अपने विचार भी जाहिर कर दिए. अब तो रूबी के सपनों की दुनिया मानो ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. दूसरे ही दिन रूबी अपना बोरियाबिस्तर बांध अपनी कलीग के घर जाने लगी, तो रविश ने उस का रास्ता रोकते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

रूबी ने उस के आचार, विचार और व्यवहार पर लंबाचौड़ा भाषण दे दिया. रविश ने सबकुछ शांति से सुना और बोला, ‘‘अरे, इतनी सी बात, यह तो मेरे अंदर का पुरुष जब मुझ पर हावी हो जाता है, तब होता है, हमेशा ऐसा नहीं होता.’’

रूबी ने कहा, ‘‘मगर रविश, मैं ने सोचा था कि तुम बाकी मर्दों से अलग होगे.’’

रविश ने कहा, ‘‘रूबी, जो पुरुष अपने को ऐसा दिखाते हैं वे झूठे होते हैं. सच तो यह है कि हर पुरुष सुंदर स्त्री को देखते ही लालायित हो उठता है. यह नैसर्गिक आदत है उस की. मैं भी पुरुष हूं, झूठ नहीं बोलूंगा. मगर मैं भी तुम्हें मन ही मन…लेकिन तुम्हारी मरजी के बिना नहीं. अब भी तुम अलग रहना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा.’’

रूबी उस की साफसाफ बोलने की आदत और नियंत्रण देख अपने कपड़े बैग से निकाल वापस अलमारी में रखने लगी. तभी लाइट चली गई और रविश बोल पड़ा, ‘‘इस को भी अभी जाना था.’’ रूबी के घूर कर देखने पर रविश जीभ दांतों में दबा उठकबैठक लगाने लगा. और रूबी ने इस बचकानेपन पर उसे चूम लिया. आज उस ने अपने अंदर की स्त्री के संयम के किनारे को भी तोड़ दिया क्योंकि आज वह भेडि़या और भेड़ की नैसर्गिकता को समझ चुकी थी.

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November 30, 2019 at 10:11AM

आखिरकार नर्सिंग की छात्राओं को नौकरी देगा मेडिकल कॉलेज

News - आखिरकार एमजीएम मेडिकल कॉलेज सरकारी नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं को नौकरी पर रखने को राजी हो गया है।

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हमने प्रदेश में एक लाख बेरोजगारों को नौकरी दी है, इतनी ही और देंगे

... दौरान अनुबंध पर काम कर रहे एक व्यक्ति द्वारा शिकायत की गई कि उसे ठेकेदार ने निकाल दिया है, सरकार उसे नौकरी दे।

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... दौरान अनुबंध पर काम कर रहे एक व्यक्ति द्वारा शिकायत की गई कि उसे ठेकेदार ने निकाल दिया है, सरकार उसे नौकरी दे।

सरकारी नौकरी के लिए सीएम निवास के समक्ष भूख हड़ताल पर बैठेगा पैरा ...

प्रवीण कथूरिया, अबोहर : मुख्यमंत्री से आश्वासन मिलने के बावजूद सरकारी नौकरी न मिलने से निराश अबोहर के गांव ...

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प्रवीण कथूरिया, अबोहर : मुख्यमंत्री से आश्वासन मिलने के बावजूद सरकारी नौकरी न मिलने से निराश अबोहर के गांव ...

जिले में 93 हजार से ज्यादा बेरोजगार, सप्ताह में 2 एजेंसियां लगा रहीं ...

जिसमें सिर्फ 15 फीसदी लोगों को ही नौकरी मिल पाई है। वहीं, अन्य लोग अब भी रोजगार कार्यालय में प्लेसमेंट ...

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जिसमें सिर्फ 15 फीसदी लोगों को ही नौकरी मिल पाई है। वहीं, अन्य लोग अब भी रोजगार कार्यालय में प्लेसमेंट ...

नौकरी का झांसा देकर रेप में10 साल कैद मिली सजा

वरिष्ठ संवाददाता, गुड़गांव : नौकरी का झांसा देकर युवती से रेप ... आरोप है कि नई नौकरी दिलाने का झांसा देकर यूपी ...

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Sarkari Naukri 2019: 10वीं पास के लिए सरकारी नौकरी पाने का आज आखिरी मौका ...

Sarkari Naukri 2019: अगर आप सरकारी नौकरी की तलाश में हैं और 10वीं तक पढ़ें हैं तो यहां है आपके लिए शानदार मौका.

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Sarkari Naukri 2019: अगर आप सरकारी नौकरी की तलाश में हैं और 10वीं तक पढ़ें हैं तो यहां है आपके लिए शानदार मौका.

सुप्रीम कोर्ट का आदेशः नाबालिग अवस्था में 'आपराधिक भूल' नौकरी में ...

नाबालिग अवस्था में छेड़छाड़ का आरोप सरकारी नौकरी में बाधा नहीं बन सकता। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह ...

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नाबालिग अवस्था में छेड़छाड़ का आरोप सरकारी नौकरी में बाधा नहीं बन सकता। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह ...

मध्यप्रदेश में एक लाख युवाओं को सरकारी नौकरी मिलेगी

मध्यप्रदेश में एक लाख युवाओं को सरकारी नौकरी मिलेगी ॥ हमारी कमलनाथ जी की सरकार ने ख़ाली पड़े सरकारी पदों ...

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शिक्षाकर्मी को 10 साल की लड़ाई के बाद मिला न्याय, हाईकोर्ट ने नौकरी ...

इसके बाद महेश सहित सभी लोग नौकरी करते रहे। हाईकोर्ट ने 2006 में राज्य शासन के नियुक्ति निरस्त करने के 2002 वाले ...

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इसके बाद महेश सहित सभी लोग नौकरी करते रहे। हाईकोर्ट ने 2006 में राज्य शासन के नियुक्ति निरस्त करने के 2002 वाले ...

नौकरी में बिहारी छात्रों को मिले प्राथमिकता

भागलपुर। बिहार के छात्रों को नियुक्ति में प्राथमिकता देने की मांग को लेकर शुक्रवार को बिहार कृषि ...

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भागलपुर। बिहार के छात्रों को नियुक्ति में प्राथमिकता देने की मांग को लेकर शुक्रवार को बिहार कृषि ...

रुड़की: फर्जी दस्तावेजों से नौकरी कर रहे चार शिक्षकों पर मुकदमा दर्ज ...

उप शिक्षाधिकारी रुड़की की तहरीर पर गंगनहर कोतवाली में दर्ज हुआ मुकदमा; फर्जी दस्तावेज लगा नौकरी कर रहे थे ...

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उप शिक्षाधिकारी रुड़की की तहरीर पर गंगनहर कोतवाली में दर्ज हुआ मुकदमा; फर्जी दस्तावेज लगा नौकरी कर रहे थे ...

Success Story: इंजीनियर की नौकरी छोड़कर बना IAS, ऐसे पाई 13वीं रैंक

इसके बाद एनआईटी से सिविल इंजीनियरिंग कर पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन में इंजीनियर की नौकरी हासिल की. नौकरी भी कर ...

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इसके बाद एनआईटी से सिविल इंजीनियरिंग कर पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन में इंजीनियर की नौकरी हासिल की. नौकरी भी कर ...

सिगापुर में नौकरी के नाम पर ठगी

प्रमोद ने उसे सिगापुर में प्रतिमाह 65 हजार रुपये की नौकरी दिलाने का ख्वाब दिखाया। सिगापुर में नौकरी के लिए ...

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प्रमोद ने उसे सिगापुर में प्रतिमाह 65 हजार रुपये की नौकरी दिलाने का ख्वाब दिखाया। सिगापुर में नौकरी के लिए ...

Thursday 28 November 2019

नौकरी लगवाने के नाम पर 6 लाख की ठगी, आरोपी गिरफ्तार

रायपुर : महिला एवं बाल विकास विभाग में नौकरी लगाने का झांसा देकर ठगी करने वाले आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार ...

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रायपुर : महिला एवं बाल विकास विभाग में नौकरी लगाने का झांसा देकर ठगी करने वाले आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार ...

70 कंपनियां देंगी 32 हजार युवाओं को नौकरी, दिव्यांगों का खास ध्यान ...

लखनऊ, जेएनएन। शहर की बेरोजगारी दर कम करने के लिए सेवायोजन विभाग ने नियोजित कार्य योजना को मूर्तरूप देने का ...

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लखनऊ, जेएनएन। शहर की बेरोजगारी दर कम करने के लिए सेवायोजन विभाग ने नियोजित कार्य योजना को मूर्तरूप देने का ...

न उम्र की सीमा हो : भाग 4 विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

न उम्र की सीमा हो : भाग 1- विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

न उम्र की सीमा हो : भाग 2- विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

न उम्र की सीमा हो : भाग 3 विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

आखिरी भाग

अगले दिन ही विकास फ्लाइट से पहुंच गया. नलिनी औफिस में अपने काम में व्यस्त थी, जब विकास उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, नलिनी वहीं उस के गले लग गई. हमेशा, लोग क्या कहेंगे, इस बात की परवाह करने वाली नलिनी औफिस में उस के गले लग कर खड़ी है, यह देख कर विकास हंस पड़ा. दोनों सीधे नलिनी के फ्लैट पर पहुंचे. कुसुम सपरिवार उपस्थित थी. नलिनी ने विकास का परिचय अपने होने वाले पति के रूप में दिया तो कुसुम और मोहन की नाराजगी उन के चेहरे से ही प्रकट हो गई जिसे दोनों ने नजरअंदाज कर दिया.

अगले दिन कुसुम चली गई. विकास और नलिनी के औफिस के दोस्तों ने जल्दी से जल्दी विवाह का कार्यक्रम तय करवाया, दोनों ने मिल कर खूब शौपिंग की, उन का सादा सा विवाह संपन्न हुआ. कुसुम और मोहन मेहमान की तरह आए और चले गए. नलिनी को अब किसी से कोई शिकायत नहीं थी, वह खुश थी, विकास उस के साथ था.

नलिनी चाहती थी अब वह नौकरी छोड़ कर बस सिर्फ अपनी घरगृहस्थी संभाले. विकास ने भी इस में सहमति दिखाई. नलिनी रिजाइन कर के फ्लैट बंद कर विकास के साथ दिल्ली चली गई.

विकास के मातापिता तो विवाह में नहीं आ पाए थे, लेकिन उन्हें नलिनी को देख कर उस से मिलने के बाद इस में कोई आपत्ति भी नहीं थी. वे कभीकभी दोनों से मिलने मेरठ से दिल्ली आते रहते थे. नलिनी का मधुर व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा लगा था.

नलिनी सुंदर थी, लेकिन अपनी उम्र को ले कर उस के मन में हमेशा एक चुभन सी रहती. वह अपनी मनोदशा किसी से बांट न पाती. यहां तक कि विकास से भी नहीं. विवाह के 6 महीने बीत गए थे. दोनों अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थे.

विकास के कई दोस्त थे, वे अपनीअपनी पत्नी के साथ मिलने आते रहते थे. कभीकभी एकाध बार कोई दोस्त उन की उम्र के फर्क पर हंसता तो नलिनी का दिल बैठ जाता.

विकास के औफिस का गु्रप भी जब इकट्ठा होता, जिन में लड़कियां भी थीं, सब विकास से बहुत खुली हुई थीं, सब एकदूसरे का नाम ले कर बुलाते थे. लेकिन जब वे उसे नलिनीजी कहते तो उसे महसूस होता कि सब उसे बड़ी मान कर एक फासला रखते हैं. वह सब की बहुत आवभगत करती. उन में अपनेआप को मिलाने की बहुत कोशिश करती, लेकिन अपने चारों तरफ वह एक अनावश्यक औपचारिक गंभीर सा दायरा खिंचा महसूस करती जिसे चाह कर भी तोड़ नहीं पाती.

एक दिन विकास के औफिस में गीता सिंह नाम की एक नई

नियुक्ति हुई. उसे ट्रेनिंग देने का काम विकास को ही मिला. बेहद आधुनिक, चंचल गीता को विकास दिनभर

काम सिखाता.

एक बार विकास ने अपने सहकर्मियों को डिनर के लिए घर पर बुलाया तो गीता भी आई. गीता नलिनी से पहली बार मिल रही थी. उस ने जिस तरह नलिनी को देख कर चौंकने का अभिनय किया, नलिनी को अच्छा नहीं लगा. विकास नलिनी को गीता के बारे में बताता रहा. नलिनी सुनती रही. बीच में हांहूं करती रही. नलिनी ने देखा विकास गीता के साथ काफी खुला हुआ है. गीता की बातों पर वह जोर के ठहाके लगाता खूब गप्पें मार रहा था. नलिनी ने खुद को उपेक्षित महसूस किया. उसे लगा वह कहीं मिसफिट हो रही है. हालांकि विकास के व्यवहार में कुछ आपत्तिजनक नहीं था, लेकिन नलिनी को गीता का विकास का हाथ बारबार पकड़ कर बात करना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. वह सोचने लगी विकास उसे इतनी लिफ्ट क्यों दे रहा है. औफिस से और लड़कियां भी आई थीं, लेकिन गीता जैसा उच्शृंखल स्वभाव किसी का नहीं था. वह खुद भी इतने सालों से औफिस में काम करती रही थी, औफिस के माहौल की वह आदी थी, लेकिन गीता का खुलापन असहनीय लग रहा था.

सब के जाने के बाद नलिनी ने नोट किया विकास की बातों में गीता का काफी जिक्र था. गीता अविवाहित थी. मातापिता के साथ रहती थी. अब छुट्टी वाले दिन भी गीता कभी भी आ धमकती. विकास को हंसतेबोलते देख नलिनी सोचने लगती क्या विकास को मेरे से ऊब होने लगी है. गीता की देह दिखाती आधुनिक पोशाकें देख कर नलिनी का दम घुटने लगता. विकास भी गीता से दूर रहने की कोई कोशिश करता नहीं दिखा तो नलिनी धीरेधीरे डिप्रैशन का शिकार होने लगी और इसी डिप्रैशन के चलते बीमार हो गई. रात को नलिनी और विकास सोने लेटे. विकास तो सो गया, लेकिन नलिनी को अचानक लगा जैसे कमरे के अंदर फैले हुए अंधेरे में अलगअलग किस्म की शक्लें उभर कर सामने आ रही हैं, जो उस पर हंस रही हैं और वह उस अंधेरे में डूबती चली गई. वह आंखें बंद किए जोरजोर से चीख रही थी. विकास चौंक कर उठ बैठा. नलिनी बेदम सी हो कर विकास की बांहों में झूल गई.  उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया.

डाक्टर ने चैकअप करने के बाद बताया, ‘‘ये दिमागी तौर पर बहुत तनाव में हैं, दबाव में होने की वजह से ब्लडप्रैशर भी हाई है. और हां, बधाई हो आप पिता बनने वाले हैं.’’

विकास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. डाक्टर दवा दे कर चला गया. विकास नलिनी का हाथ पकड़ कर बैठा था. वह बीते दिनों के घटनाक्रम को ध्यानपूर्वक सोचने लगा…

उसे नलिनी की मनोदशा का अंदाजा हो गया तो उसे अपराधबोध हुआ. उसे गीता से इतना खुला व्यवहार नहीं करना चाहिए. उस के स्वयं के मन में कुछ गलत नहीं था, लेकिन नलिनी के मानसिक संताप को अनुभव कर विकास की पलकों से आंसू नलिनी के हाथ को भिगोते रहे, न जाने यह नाजुक दिलों के तारों का संगम था या कुछ और था. उस के गरमगरम आंसुओं की गरमी जैसे नलिनी के दिल की गहराई तक जा पहुंची और उस की बंद पलकों में हरकत हुई. वह गहरे अंधेरे से धीरेधीरे बाहर आ रही थी. धुंध के गहरे बादल छंटते जा रहे थे.

विकास उस के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहने लगा, ‘‘नलिनी, कैसी हो अब? अगर मेरी किसी भी बात से तुम्हारा दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर दो.’’

नलिनी ने जैसे ही कुछ कहने की कोशिश की, विकास बोल उठा, ‘‘नलिनी, जल्दी से ठीक हो जाओ, तुम्हारे साथ जीवन की सब से बड़ी खुशी बांटनी है और तुम आज के बाद अपने दिमाग से उम्र की बात बिलकुल निकाल दोगी. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. हम सच्चे दिल व पूरी निष्ठा से जीवन को बड़ी खूबसूरती से जीएंगे. अभी तो बहुत रास्ते तय करने हैं, बहुत दूर जाना है, साथसाथ एकदूसरे का हाथ थामे. तुम बस मेरे प्यार पर विश्वास करो.’’

नलिनी चुपचाप विकास की तरफ देख रही थी. उस ने विकास का हाथ कस कर पकड़ लिया और सुकून से आंखें बंद कर लीं. फिर उस ने खिड़की की तरफ देखा जहां उस के जीवन की एक नई सुबह का सूर्य निकल रहा था जिस की चमकती किरणों ने उस के दिल के हर कोने को चमका दिया था.

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न उम्र की सीमा हो : भाग 1- विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

न उम्र की सीमा हो : भाग 2- विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

न उम्र की सीमा हो : भाग 3 विकास के आने से क्यों बदल गई नलिनी

आखिरी भाग

अगले दिन ही विकास फ्लाइट से पहुंच गया. नलिनी औफिस में अपने काम में व्यस्त थी, जब विकास उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, नलिनी वहीं उस के गले लग गई. हमेशा, लोग क्या कहेंगे, इस बात की परवाह करने वाली नलिनी औफिस में उस के गले लग कर खड़ी है, यह देख कर विकास हंस पड़ा. दोनों सीधे नलिनी के फ्लैट पर पहुंचे. कुसुम सपरिवार उपस्थित थी. नलिनी ने विकास का परिचय अपने होने वाले पति के रूप में दिया तो कुसुम और मोहन की नाराजगी उन के चेहरे से ही प्रकट हो गई जिसे दोनों ने नजरअंदाज कर दिया.

अगले दिन कुसुम चली गई. विकास और नलिनी के औफिस के दोस्तों ने जल्दी से जल्दी विवाह का कार्यक्रम तय करवाया, दोनों ने मिल कर खूब शौपिंग की, उन का सादा सा विवाह संपन्न हुआ. कुसुम और मोहन मेहमान की तरह आए और चले गए. नलिनी को अब किसी से कोई शिकायत नहीं थी, वह खुश थी, विकास उस के साथ था.

नलिनी चाहती थी अब वह नौकरी छोड़ कर बस सिर्फ अपनी घरगृहस्थी संभाले. विकास ने भी इस में सहमति दिखाई. नलिनी रिजाइन कर के फ्लैट बंद कर विकास के साथ दिल्ली चली गई.

विकास के मातापिता तो विवाह में नहीं आ पाए थे, लेकिन उन्हें नलिनी को देख कर उस से मिलने के बाद इस में कोई आपत्ति भी नहीं थी. वे कभीकभी दोनों से मिलने मेरठ से दिल्ली आते रहते थे. नलिनी का मधुर व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा लगा था.

नलिनी सुंदर थी, लेकिन अपनी उम्र को ले कर उस के मन में हमेशा एक चुभन सी रहती. वह अपनी मनोदशा किसी से बांट न पाती. यहां तक कि विकास से भी नहीं. विवाह के 6 महीने बीत गए थे. दोनों अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थे.

विकास के कई दोस्त थे, वे अपनीअपनी पत्नी के साथ मिलने आते रहते थे. कभीकभी एकाध बार कोई दोस्त उन की उम्र के फर्क पर हंसता तो नलिनी का दिल बैठ जाता.

विकास के औफिस का गु्रप भी जब इकट्ठा होता, जिन में लड़कियां भी थीं, सब विकास से बहुत खुली हुई थीं, सब एकदूसरे का नाम ले कर बुलाते थे. लेकिन जब वे उसे नलिनीजी कहते तो उसे महसूस होता कि सब उसे बड़ी मान कर एक फासला रखते हैं. वह सब की बहुत आवभगत करती. उन में अपनेआप को मिलाने की बहुत कोशिश करती, लेकिन अपने चारों तरफ वह एक अनावश्यक औपचारिक गंभीर सा दायरा खिंचा महसूस करती जिसे चाह कर भी तोड़ नहीं पाती.

एक दिन विकास के औफिस में गीता सिंह नाम की एक नई

नियुक्ति हुई. उसे ट्रेनिंग देने का काम विकास को ही मिला. बेहद आधुनिक, चंचल गीता को विकास दिनभर

काम सिखाता.

एक बार विकास ने अपने सहकर्मियों को डिनर के लिए घर पर बुलाया तो गीता भी आई. गीता नलिनी से पहली बार मिल रही थी. उस ने जिस तरह नलिनी को देख कर चौंकने का अभिनय किया, नलिनी को अच्छा नहीं लगा. विकास नलिनी को गीता के बारे में बताता रहा. नलिनी सुनती रही. बीच में हांहूं करती रही. नलिनी ने देखा विकास गीता के साथ काफी खुला हुआ है. गीता की बातों पर वह जोर के ठहाके लगाता खूब गप्पें मार रहा था. नलिनी ने खुद को उपेक्षित महसूस किया. उसे लगा वह कहीं मिसफिट हो रही है. हालांकि विकास के व्यवहार में कुछ आपत्तिजनक नहीं था, लेकिन नलिनी को गीता का विकास का हाथ बारबार पकड़ कर बात करना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. वह सोचने लगी विकास उसे इतनी लिफ्ट क्यों दे रहा है. औफिस से और लड़कियां भी आई थीं, लेकिन गीता जैसा उच्शृंखल स्वभाव किसी का नहीं था. वह खुद भी इतने सालों से औफिस में काम करती रही थी, औफिस के माहौल की वह आदी थी, लेकिन गीता का खुलापन असहनीय लग रहा था.

सब के जाने के बाद नलिनी ने नोट किया विकास की बातों में गीता का काफी जिक्र था. गीता अविवाहित थी. मातापिता के साथ रहती थी. अब छुट्टी वाले दिन भी गीता कभी भी आ धमकती. विकास को हंसतेबोलते देख नलिनी सोचने लगती क्या विकास को मेरे से ऊब होने लगी है. गीता की देह दिखाती आधुनिक पोशाकें देख कर नलिनी का दम घुटने लगता. विकास भी गीता से दूर रहने की कोई कोशिश करता नहीं दिखा तो नलिनी धीरेधीरे डिप्रैशन का शिकार होने लगी और इसी डिप्रैशन के चलते बीमार हो गई. रात को नलिनी और विकास सोने लेटे. विकास तो सो गया, लेकिन नलिनी को अचानक लगा जैसे कमरे के अंदर फैले हुए अंधेरे में अलगअलग किस्म की शक्लें उभर कर सामने आ रही हैं, जो उस पर हंस रही हैं और वह उस अंधेरे में डूबती चली गई. वह आंखें बंद किए जोरजोर से चीख रही थी. विकास चौंक कर उठ बैठा. नलिनी बेदम सी हो कर विकास की बांहों में झूल गई.  उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया.

डाक्टर ने चैकअप करने के बाद बताया, ‘‘ये दिमागी तौर पर बहुत तनाव में हैं, दबाव में होने की वजह से ब्लडप्रैशर भी हाई है. और हां, बधाई हो आप पिता बनने वाले हैं.’’

विकास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. डाक्टर दवा दे कर चला गया. विकास नलिनी का हाथ पकड़ कर बैठा था. वह बीते दिनों के घटनाक्रम को ध्यानपूर्वक सोचने लगा…

उसे नलिनी की मनोदशा का अंदाजा हो गया तो उसे अपराधबोध हुआ. उसे गीता से इतना खुला व्यवहार नहीं करना चाहिए. उस के स्वयं के मन में कुछ गलत नहीं था, लेकिन नलिनी के मानसिक संताप को अनुभव कर विकास की पलकों से आंसू नलिनी के हाथ को भिगोते रहे, न जाने यह नाजुक दिलों के तारों का संगम था या कुछ और था. उस के गरमगरम आंसुओं की गरमी जैसे नलिनी के दिल की गहराई तक जा पहुंची और उस की बंद पलकों में हरकत हुई. वह गहरे अंधेरे से धीरेधीरे बाहर आ रही थी. धुंध के गहरे बादल छंटते जा रहे थे.

विकास उस के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहने लगा, ‘‘नलिनी, कैसी हो अब? अगर मेरी किसी भी बात से तुम्हारा दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर दो.’’

नलिनी ने जैसे ही कुछ कहने की कोशिश की, विकास बोल उठा, ‘‘नलिनी, जल्दी से ठीक हो जाओ, तुम्हारे साथ जीवन की सब से बड़ी खुशी बांटनी है और तुम आज के बाद अपने दिमाग से उम्र की बात बिलकुल निकाल दोगी. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. हम सच्चे दिल व पूरी निष्ठा से जीवन को बड़ी खूबसूरती से जीएंगे. अभी तो बहुत रास्ते तय करने हैं, बहुत दूर जाना है, साथसाथ एकदूसरे का हाथ थामे. तुम बस मेरे प्यार पर विश्वास करो.’’

नलिनी चुपचाप विकास की तरफ देख रही थी. उस ने विकास का हाथ कस कर पकड़ लिया और सुकून से आंखें बंद कर लीं. फिर उस ने खिड़की की तरफ देखा जहां उस के जीवन की एक नई सुबह का सूर्य निकल रहा था जिस की चमकती किरणों ने उस के दिल के हर कोने को चमका दिया था.

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November 29, 2019 at 10:21AM

हृदय परिवर्तन

वसुंधरा अपार्टमैंट की बात निराली थी. उस में रहने वालों के सांझे के चूल्हे भले ही नहीं थे पर सांझे के दुखसुख अवश्य थे. एकदूसरे की आवश्यकता को पलक झपकते ही बांट लिया करते थे. वहां सभी धर्मों के त्योहार बड़े ही हर्ष से मनाए जाते थे. प्रेमप्यार के सागर के साथ मानमनुहार के कलश भी कहींकहीं छलकते ही रहते थे.

हंसी और खिलखिलाहटों की गूंज पूरे भवन में रहती थी. किसी भी उम्र की दहलीज क्यों न हो, मन की सूनी घाटियों पर अकेलेपन के बादल कभी नहीं मंडराते थे. अतीत के गलियारों से संयुक्त परिवार के परिवर्तित रूप को लाने का प्रयास था, जिस की अनगिनत सहूलियतों से सभी सुखी व सुरक्षित थे.

उसी बिल्ंिडग के एक फ्लैट में नए दंपती सरिता और विनय का आना हुआ. उन का सामान वगैरह कई दिनों से आता रहा. रहने के लिए वे दोनों जिस दिन आए, नियमानुसार बिल्ंिडग की कुछ महिलाएं मदद के लिए गईं.

जब वे वहां पहुंचीं तो किसी बात पर नए दंपती आपस में उलझ रहे थे. फिर भी उन्हीं के फ्लोर पर रहने वाली नीतू ने कहा, ‘‘हैलो, नमस्ते अंकल व आंटी. मैं नीतू, आप के सामने वाले फ्लैट में रहती हूं. आप का घर अभी ठीक नहीं हुआ है. इतनी गरमी में कहां खाने जाइएगा. आज लंच हमारे साथ लें और रात का डिनर इस अंजू के यहां रहा. यह आप के फ्लैट के ठीक ऊपर रहती है,’’ कहते हुए नीतू ने अंजू का परिचय दिया.

अंजू ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आंटी, हम दोनों के यहां एक ही बाई काम करती है, उस से कह दूंगी, लगेहाथ आप के यहां भी काम कर देगी.’’

सरिता की बगल के फ्लैट में रहने वाली रश्मि भी अब कैसे चुप रहती, ‘‘भाभीजी, जब तक गैस आदि की व्यवस्था नहीं हो जाती, आप मेरा सिलैंडर ले सकती हैं. फिर भी शाम की चाय मैं दे जाऊंगी.’’

उषाजी पीछे कैसे रहतीं, ‘‘बहनजी, घर ठीक करने में आप चाहें तो मेरी मदद ले सकती हैं. इन सभी के बच्चे अभी छोटे हैं. काम लगा रहता है. जहां तक हो सकेगा, सामान जमाने में मैं आप की मदद कर सकती हूं. बाहर की जानकारी भाईसाहब मेरे पति से ले सकते हैं. उन्हें अग्रवाल साहब से मिल कर बड़ी खुशी होगी. उन का कोई हमउम्र तो मिला.’’

इतनी देर तक सरिता लालपीली हो कर चुप्पी के खून का घूंट पीती रहीं, पर जब महिलाओं की सहृदयता और दिलदरिया का पानी सिर से ऊपर हो गया तो वे खुद को रोक नहीं सकीं, ‘‘आप सब चुप भी रहिएगा कि यों ही बकरबकर बोलते जाइएगा. यह क्या आंटीअंकल कर के हमें संबोधित कर रही हैं. हम क्या इतने बूढ़े दिखाई दे रहे हैं. आगे से मुझे सरिता कहिएगा. बेकार के रिश्ते मैं नहीं जोड़ती. हम अपना सारा इंतजाम कर के आए हैं. दूसरों की मदद की आवश्यकता नहीं है हमें.

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‘‘अब आप सब मेहरबानी कर के जाएं और मुझे काम करने दें. काम करने वाली बाई खुद ही दौड़ी आएगी. वहां भी कालोनी में सब से ज्यादा तनख्वाह मैं ही देती थी.’’ मिसेज अग्रवाल के ऐसे रूखे बोलव्यवहार से सारी महिलाएं बहुत आहत हुईं और लौट गईं.

सारे फ्लैट्स में सरिता ही चर्चा का विषय बनी रहीं. उन की ओर कोई पलट कर भी नहीं देखेगा, सभी ने ऐसा सोच लिया था. उन के फ्लैट में कुछ दिनों तक सामान रखने के कारण उठापटक होती रही. सबकुछ व्यवस्थित होने के बावजूद सामान फेंकने, पटकने की आवाज के साथ उन के तूतूमैंमैं की आवाज घर की दीवारों से टकराने लगी तो सभी को अपनी शांति भंग होती लगी. पर भिड़ के छत्ते में कौन हाथ डाले, सोच कर सभी ने ठीक होने के लिए समय पर छोड़ दिया.

मजाल है कि कोई भी कामवाली उन के यहां 2 महीने से ज्यादा टिकी हो. उन दोनों की अकड़ और घमंड से सब को शिकायत थी, पर नफरत नहीं. हर तीजत्योहार के मिलन में सब उन्हें आमंत्रित करती रहीं पर वे दूर ही रहे. चौबीसों घंटे लड़नेझगड़ने की आदत से शायद मिलने से झिझकते या कतराते हों, यह समझ कर सभी फ्लैटवासी उन से सहानुभूति ही रखते थे.

ऐसी ही ऊहापोह में दिन गुजर रहे थे. मौसम बदलता रहा, पर सरिता और विनय के स्वभाव में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ. उन के चीखनेचिल्लाने, लड़नेझगड़ने की आवाजों ने फ्लैट्स के लोगों की शांति भंग कर के रख दी थी. सभी के साथ उन्हें इंगित कर के बिल्ंिडग में शांति बनाए रखने की गुजारिश महीने में होने वाली मीटिंग में बारबार की गई. पर

उन दोनों के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया.

‘‘आप दोनों क्यों इतना झगड़ते हैं? प्यार से नहीं रह सकते हैं? सुनने में कितना खराब लगता है. फ्लैट्स की दीवारें जुड़ी हुई हैं. यह बिल्ंिडग हमारा परिवार है, कृपया इस की शांति भंग न करें.’’ ऊषाजी के पति का इतना कहना था कि सरिता चोट खाई किसी शेरनी की तरह दहाड़ उठीं. ‘‘हम अपने घर में लड़ेंझगड़ें या मरें, आप को दखलंदाजी करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

उन के कटु व्यवहार से एक बार फिर सभी आहत हो गए. सभी का कहना था कि ये मानसिक रूप से बीमार हैं, इन का इलाज प्रेमप्यार से ही हो सकता है.

एक हफ्ते बाद होली आने वाली थी.

सभी एकजुट हो कर उत्साह,

उमंग से तैयारियों में लगे हुए थे. सारा माहौल हर्षमय था कि एक रात सरिता के रोने की आवाज से सारी बिल्डिंग कांप उठी. जो जैसा था वैसे ही उठ कर भागा. दरवाजे की घंटी बजाने पर रोतीचिल्लाती सरिताजी ने दरवाजा खोला. उन के कपड़े खून से सने थे. अंदर का नजारा कुछ ऐसा था कि सभी घबरा गए. विनय बाथरूम में गिरे पड़े थे. माथे से खून जारी था.

सभी ने मिल कर उन्हें नर्सिंगहोम पहुंचाया. डाक्टरों ने तत्काल उन्हें आईसीयू में भरती किया. दिल का दौरा पड़ा था. हालत बहुत गंभीर थी. हालत सुधरने तक सभी वहीं बैठे रहे. इधर रोतीबिलखती सरिता को महिलाओं ने गले लगा कर संभाले रखा. इलाज का लंबा खर्च आया था, जिसे बिल्डिंग के सारे लोगों ने सहर्ष वहन किया. बाद में सभी को उन की रकम लौटा दी गई पर निस्वार्थ सेवा को कैसे लौटाया जा सकता था. सब से बड़ी बात यह थी कि बिल्डिंग में होली का त्योहार नहीं मनाया गया. बच्चे निरुत्साहित थे पर कोई शिकायत नहीं थी. समय की नजाकत को सभी समझ रहे थे.

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4 दिनों बाद अमेरिका से उन का बेटा समीर जब तक आया, तब तक विनय खतरे से बाहर थे. समीर ने सारे बिल्डिंग वालों को दिल से धन्यवाद दिया. बेटे के आने के बाद भी बिल्डिंग के पुरुषवर्ग अपनी ड्यूटी निभाते रहे. घर में सरिता को महिलाओं ने संभाले रखा. सरिता में जबरदस्त बदलाव आया था. सारी महिलाओं और बच्चों पर अपना प्यार लुटा रही थीं. इस प्यार के असर और डाक्टरों की कोशिश से 2 हफ्ते बाद ही विनय स्वस्थ हो कर घर आ गए.

होली के दिन बिल्डिंग में भले ही रंग नहीं गिरा हो, पर सब का दिल खुशियों के फुहार में भीग उठा था. सरिता और विनय में आए बदलाव ने पूरी बिल्डिंग में प्यार का छलकता सागर प्रवाहित कर दिया था जिस में सभी बहे जा रहे थे. अमेरिका लौट जाने से पहले समीर की इच्छा थी कि वह पिता का दिल्ली में अच्छी तरह से चैकअप करवा दे. बिल्डिंग के सभी लोगों को समीर का विचार बहुत ही भाया. सभी की राय से विनय और सरिता दिल्ली चले गए.

विनय को हार्ट में ही समस्या थी. ऐसे वे स्वस्थ थे. समीर तो वहीं से अमेरिका लौट गया. विनय और सरिता की बहुत इच्छा थी कि वे मथुरा और वृंदावन घूमते हुए लौटें. दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदारों ने वहां जाने की व्यवस्था कर दी. टैक्सी से वे दोनों मथुरा गए.

एक दिन वे वृंदावन के एक रास्ते से गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक युवती किसी पुरुष का पैर पकड़ कर रोए जा रही थी. वह प्रौढ़ व्यक्ति पैर छुड़ाने की चेष्टा कर रहा था. भीड़ तो इकट्ठी हो गई थी लेकिन किसी ने भी कारण जानने की कोशिश नहीं की. ऐसी घटनाएं वहां के लिए आम बात थीं. सारी दुखियारी औरतों को उन के रिश्तेदार मथुरा की गलियों में भीख मांगने के लिए छोड़ जाते हैं, जो वेश्यावृत्ति में धकेल दी जाती हैं.

सरिता और विनय ने उस प्रौढ़ व्यक्ति से युवती को ऐसे छोड़ने का कारण पूछा तो वह सकपकाया, फिर उन्हें भीड़ से बाहर ले जा कर उन की जिज्ञासा को कुछ इस प्रकार से शांत किया, ‘‘महाशय, यह मिनी है, मेरे छोटे भाई की विधवा. सालभर पहले इस की शादी मेरे छोटे भाई से हुई थी. 2 महीने हुए मेरे भाई को किसी ट्रक वाले ने कुचल कर मार डाला. जब तक मेरी मां जीवित रहीं, सबकुछ ठीक चलता रहा. पर जवान बेटे की मौत वे ज्यादा दिन झेल नही सकीं. एक रात सोईं तो सोईं ही रह गईं. उन की मृत्यु के साथ ही मेरे घर की शांति चली गई.

‘‘मेरी पत्नी मिनी को देख नहीं पाती. मेरे साथ इस निर्दोष का नाम जोड़ कर उस ने पूरे महल्ले में बदनाम कर दिया है. इस का इस दुनिया में कोई नहीं है. मांबाप की मृत्यु बचपन में ही किसी दुर्घटना में हो गई थी. नानी ने इसे पालपोस कर किसी तरह इस की शादी की. अब वे भी नहीं रहीं. मामामामी ने इसे रखने से इनकार कर दिया है.

‘‘अपनी शक्की, जाहिल पत्नी के खिलाफ जा कर इसे घर में रखता हूं तो महाशय, वह न इसे जीने देगी न मुझे. वैसी जिंदगी से अच्छा है मैं जहर खा कर मर जाऊं. मिनी ने ही यहां आने की इच्छा प्रकट की थी. अब मैं इसे छोड़ कर जा रहा हूं, तो यह जाने नहीं दे रही है.’’ इतना कह कर वह व्यक्ति तड़प कर रोने लगा, फिर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि यहां सभी इसे नोच कर खा जाएंगे, पर मैं करूं भी तो क्या करूं. कोई राह भी नहीं दिख रही. अपने घर की इज्जत को सरेआम छोड़े जा रहा हूं.’’

उस की दुखभरी गाथा सुन कर सरिता और विनय की पलकें भीग गईं. बहुत सोच कर सरिता ने पति से कहा, ‘‘क्यों न हम मिनी को अपने साथ ले चलें. हमारा भी तो वहां कोई नहीं है. एक बेटा है जो परिवार सहित दूसरे देश में बस गया है. शायद नियति ने हमें इसी कार्य के लिए यहां भेजा हो.’’ जवाब में विनय कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, ‘‘पूछ लो इस लड़की से हमारे साथ चलती है तो चले. इसे भी आसरा मिल जाएगा और हमें भी इस का सहारा.’’

विनय का इतना कहना था कि वह व्यक्ति उन के पैरों से लिपट गया, ‘‘ले जाइए, बाबूजी, बड़ी अच्छी लड़की है. आप दोनों की बड़ी सेवा करेगी. जायदाद बेच कर इस का हिस्सा मैं आप को भेज दूंगा. कहीं कोई सुपात्र मिले, तो इस का ब्याह कर दीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भेजने की आवश्यकता नहीं है. हमारे पास सभी कुछ है. हम इसे ही ले जा कर खुश हो लेंगे.’’ अपने घर का पता और उस व्यक्ति का पता लेते हुए सरिता और विनय लौट आए.

उन के घर पहुंचते ही वसुंधरा अपार्टमैंट में हलचल सी मच गई.

मिनी के लिए सभी की आंखों में उभर आए प्रश्नों को देख कर सरिता खुद को रोक न सकीं, बोलीं, ‘‘हम मथुरा से मिनी को लाए हैं प्यारी सी बेटी के रूप में.’’

कुछ न कहने पर भी सभी समझ ही गए. सब ने मिनी को प्यार से क्या निहारा, कि उसी पल से वह उन की चहेती बन गई.

अब मिनी को समय कहां था कि अपने गुजरे समय को याद कर के आंसू बहाए. पूरी बिल्डिंग की वह दुलारी बन गई थी. किसी की बेटी, तो किसी की ननद. बड़ों की बहन तो छोटों की दीदी. किसी के घर मिनी पकौड़े बना रही है तो कहीं भाजी. किसी का बटन टांक रही है तो किसी के बच्चे को थामे घूम रही है.

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हर उम्र की दहलीज पर मिनी ने अपने निस्वार्थ प्रेम का मायाजाल फैला रखा था. जिसे देखो वह मिनी को पुकारे जा रहा था. बच्चों की तो जान उस में बसती थी.

शाम होते ही सभी बच्चे उसे छत पर ले जाते. वहां कभी वह बौलिंग कर रही होती तो कभी अपांयर बन कर फैसला दे रही होती. मजाल कि कोई उस की अवमानना कर जाए. नियति की कैसी माया थी कि किसी घर की दुत्कारी, कहीं और की दुलारी बन गई थी. कल तक जिस का कोई नहीं था, आज इतने सारे उस के अपने थे.

उषा ने सरिता की सहमति से सब से प्रसिद्ध ब्यूटीपार्लर काया में मिनी को काम सीखने के लिए भेजा. मात्र 4 महीने में ही वह इतनी काबिल हो गई कि एक जानेमाने ब्यूटीपार्लर वालों ने उसे अपने यहां काम पर रख लेना चाहा. पर सरिता ने मना कर दिया यह कहते हुए कि हुनर सीख लिया, यही बहुत है. कमी क्या है कि मिनी पार्लर में नौकरी करेगी.

उस दिन मिनी सरिता के पैरों पर सिर रख कर बोली, ‘‘अम्मा, अगर उस दिन आप नहीं मिली होतीं तो कह नहीं सकती कि मेरा क्या हाल हुआ होता. या तो मैं मर गई होती या मेरे शरीर को नोच रहे होते लोग,’’ कहते हुए मिनी बहुत दिनों के बाद फूटफूट रो पड़ी.

उस के सिर को सहलाते हुए सरिता ने बड़े लाड़दुलार से कहा, ‘‘अरे, कैसे नहीं मिलती मैं. तुझे लाने के लिए ही तो जैसे मैं वहां गई थी. नहीं जाती तो इतना प्यार करने वाली बेटी कहां से मिलती मुझे. यहां तो तू ही हमारे लिए सबकुछ है.’’

सरिता के हृदय परिवर्तन पर पूरी बिल्ंिडग हैरान थी और खुश थी. प्यार के इस लहराते समंदर को इतने दिनों तक पता नहीं उन्होंने कहां छिपा कर रखा था. इधर मिनी के ब्यूटीपार्लर के अनुभव से बिल्ंिडग की सारी महिलाएं लाभान्वित हो रही थीं. किसी की भौंहें बन रही हैं तो किसी की गरदन की मसाज हो रही है. किसी के बाल स्टैप्स में काटे जा रहे हैं तो कोई फेशियल करवा रहा था, वह भी मुफ्त. किसी ने देने की जबरदस्ती की तो मिनी की आंखें छलक उठीं. अब भला किस की शामत आईर् थी कि मिनी की आंखों में आंसू छलका सके. इस बात से सरिता भी नाराज हो गईं.

प्यार से सने बोल में वे गर्जना कर उठीं, ‘‘मिनी मेरी ही नहीं, आप सभी की बहनबेटी है. क्यों उसे पैसे दे रही हैं. ऐसा कर आप सभी ने उसे अपने से दूर कर दिया है. हुनर सीखा भी इसलिए है कि आप सभी को सजाधजा सके.’’

‘‘नहींनहीं सरिता, इस से मिनी कोई दूसरी थोड़े हो जाएगी. हम सब उसे पुरस्कृत करना चाहते थे. माफ कीजिएगा, अगर बुरा लगा हो तो.’’ उषा की बातों से सरिता के होंठों पर मुसकान छिटक आई. कभीकभी मिनी अपने सारे तजरबे को सरिताजी पर ही आजमा लिया करती थी. वे दिल से तो प्रसन्न होती थीं, पर बाहर से गुस्सा दिखाती थीं.

दिन खुशी से गुजर रहे थे. इतना प्यार और सम्मान पा कर मिनी खिल गई थी. सुंदर तो थी ही. मिनी को आए 2 साल हो चुके थे. सरिता और विनय के साथ पूरी बिल्डिंग की अब यही इच्छा थी कि मिनी का ब्याह किसी सुपात्र से हो जाए.

यह भी संयोग रहा कि नीतू की भाभी की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई. नवजात बच्चे के साथ उस की मां बड़ी परेशान थीं. उस की मां की यही इच्छा थी कि उस के भाई की शादी जल्द से जल्द हो जाए ताकि इस उम्र में बच्चे की देखभाल करने से छुटकारा मिले.

नीतू के जेहन में अचानक मिनी का भोलाभाला रूप नाच उठा. मिनी से बढ़ कर कोई उस के भाई के बच्चे को प्यार नहीं दे सकेगा. तत्काल वह उषा के पास गई और सारी बातें उन्हें बताते हुए राय मांगी. उषा भी सहमत हो गईं. सरिता को मनाने के लिए दोनों उन के पास पहुंचीं.

सारी बातों को सुन कर सरिता ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि पहले की बात और थी. शादी होते ही एक बच्चे की देखभाल करने की जिम्मेदारी मिनी के नाजुक कंधे पर आ जाए, इस में मेरी जरा सी भी रजामंदी नहीं है. जब मैं ही तैयार नहीं, तो उस के बाबूजी और भैया कभी राजी नहीं होंगे. उसी दिन समीर कह रहा था, ‘‘लेनदेन की चिंता मत करना. बस, ऐसा घर ढूंढ़ना जहां मिनी सुखी रहे.’’

उषा ने दुनियादारी की बताते हुए कहा, ‘‘मिनी के प्यार में आप इस सचाई को भूल चुकी हैं कि मिनी अनाथ और विधवा है. उस के लिए नीतू के भाई से अच्छा रिश्ता शायद ही मिले.’’ कहते हुए वे दोनों बुझे मन से लौट गईं.

परंतु दूसरे दिन ही सरिताजी ने इस रिश्ते की स्वीकृति पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दी, क्योंकि उषा की बातों ने उन की आंखें खोल दी थीं. फिर मिनी को भी कोई एतराज नहीं था सिवा इस के कि उस के जाने के बाद उन दोनों की देखभाल उस की तरह कौन करेगा.

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मिनी की शादी की धूम पूरी बिल्डिंग में मची हुईर् थी. तैयारियां जोरों पर थीं. आखिर सब की चहेती मिनी की शादी थी. सरिता ने मिनी की ससुराल में भी शादी का निमंत्रणपत्र भेज दिया था. पर अच्छा ही हुआ कि वहां से कोई नहीं आया. वे नहीं चाहती थीं कि बीते दिनों की दुखद यादों को ले कर मिनी के नए जीवन की शुरुआत हो.

बच्चे, युवा, बूढ़े सभी उत्साहित थे. बरात आई, शहनाइयां बजीं, आंसूभरी आंखों से सरिता और विनय ने सारे रस्मरिवाजों को निभाया. सभी ने जी खोल कर मिनी को उपहार दिए. समीर ने अपने मम्मीपापा के साथ मिनी, उस के होने वाले पति और बच्चे को गरमी में अमेरिका घूमने के लिए बुलाया. बस, पासपोर्ट और वीजा के मिलते ही टिकट भेज देने का आश्वासन दिया था.

जितना मिला, उस के लिए मिनी का आंचल छोटा पड़ गया था. उस की आंखें विदाई तक बरसती ही रहीं. सब के प्यारदुलार को समेट, सब को रुलाते हुए मिनी अपने जीवनसाभी की बांहें थाम नए जीवन की डगर की ओर चल पड़ी. उस की विदाई पर सभी बिलख रहे थे पर खुशी के आंसुओं के साथ. अपने पीछे मिनी पूरी बिल्ंिडग में एक सन्नाटा और उदासी छोड़ गई थी.

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वसुंधरा अपार्टमैंट की बात निराली थी. उस में रहने वालों के सांझे के चूल्हे भले ही नहीं थे पर सांझे के दुखसुख अवश्य थे. एकदूसरे की आवश्यकता को पलक झपकते ही बांट लिया करते थे. वहां सभी धर्मों के त्योहार बड़े ही हर्ष से मनाए जाते थे. प्रेमप्यार के सागर के साथ मानमनुहार के कलश भी कहींकहीं छलकते ही रहते थे.

हंसी और खिलखिलाहटों की गूंज पूरे भवन में रहती थी. किसी भी उम्र की दहलीज क्यों न हो, मन की सूनी घाटियों पर अकेलेपन के बादल कभी नहीं मंडराते थे. अतीत के गलियारों से संयुक्त परिवार के परिवर्तित रूप को लाने का प्रयास था, जिस की अनगिनत सहूलियतों से सभी सुखी व सुरक्षित थे.

उसी बिल्ंिडग के एक फ्लैट में नए दंपती सरिता और विनय का आना हुआ. उन का सामान वगैरह कई दिनों से आता रहा. रहने के लिए वे दोनों जिस दिन आए, नियमानुसार बिल्ंिडग की कुछ महिलाएं मदद के लिए गईं.

जब वे वहां पहुंचीं तो किसी बात पर नए दंपती आपस में उलझ रहे थे. फिर भी उन्हीं के फ्लोर पर रहने वाली नीतू ने कहा, ‘‘हैलो, नमस्ते अंकल व आंटी. मैं नीतू, आप के सामने वाले फ्लैट में रहती हूं. आप का घर अभी ठीक नहीं हुआ है. इतनी गरमी में कहां खाने जाइएगा. आज लंच हमारे साथ लें और रात का डिनर इस अंजू के यहां रहा. यह आप के फ्लैट के ठीक ऊपर रहती है,’’ कहते हुए नीतू ने अंजू का परिचय दिया.

अंजू ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आंटी, हम दोनों के यहां एक ही बाई काम करती है, उस से कह दूंगी, लगेहाथ आप के यहां भी काम कर देगी.’’

सरिता की बगल के फ्लैट में रहने वाली रश्मि भी अब कैसे चुप रहती, ‘‘भाभीजी, जब तक गैस आदि की व्यवस्था नहीं हो जाती, आप मेरा सिलैंडर ले सकती हैं. फिर भी शाम की चाय मैं दे जाऊंगी.’’

उषाजी पीछे कैसे रहतीं, ‘‘बहनजी, घर ठीक करने में आप चाहें तो मेरी मदद ले सकती हैं. इन सभी के बच्चे अभी छोटे हैं. काम लगा रहता है. जहां तक हो सकेगा, सामान जमाने में मैं आप की मदद कर सकती हूं. बाहर की जानकारी भाईसाहब मेरे पति से ले सकते हैं. उन्हें अग्रवाल साहब से मिल कर बड़ी खुशी होगी. उन का कोई हमउम्र तो मिला.’’

इतनी देर तक सरिता लालपीली हो कर चुप्पी के खून का घूंट पीती रहीं, पर जब महिलाओं की सहृदयता और दिलदरिया का पानी सिर से ऊपर हो गया तो वे खुद को रोक नहीं सकीं, ‘‘आप सब चुप भी रहिएगा कि यों ही बकरबकर बोलते जाइएगा. यह क्या आंटीअंकल कर के हमें संबोधित कर रही हैं. हम क्या इतने बूढ़े दिखाई दे रहे हैं. आगे से मुझे सरिता कहिएगा. बेकार के रिश्ते मैं नहीं जोड़ती. हम अपना सारा इंतजाम कर के आए हैं. दूसरों की मदद की आवश्यकता नहीं है हमें.

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‘‘अब आप सब मेहरबानी कर के जाएं और मुझे काम करने दें. काम करने वाली बाई खुद ही दौड़ी आएगी. वहां भी कालोनी में सब से ज्यादा तनख्वाह मैं ही देती थी.’’ मिसेज अग्रवाल के ऐसे रूखे बोलव्यवहार से सारी महिलाएं बहुत आहत हुईं और लौट गईं.

सारे फ्लैट्स में सरिता ही चर्चा का विषय बनी रहीं. उन की ओर कोई पलट कर भी नहीं देखेगा, सभी ने ऐसा सोच लिया था. उन के फ्लैट में कुछ दिनों तक सामान रखने के कारण उठापटक होती रही. सबकुछ व्यवस्थित होने के बावजूद सामान फेंकने, पटकने की आवाज के साथ उन के तूतूमैंमैं की आवाज घर की दीवारों से टकराने लगी तो सभी को अपनी शांति भंग होती लगी. पर भिड़ के छत्ते में कौन हाथ डाले, सोच कर सभी ने ठीक होने के लिए समय पर छोड़ दिया.

मजाल है कि कोई भी कामवाली उन के यहां 2 महीने से ज्यादा टिकी हो. उन दोनों की अकड़ और घमंड से सब को शिकायत थी, पर नफरत नहीं. हर तीजत्योहार के मिलन में सब उन्हें आमंत्रित करती रहीं पर वे दूर ही रहे. चौबीसों घंटे लड़नेझगड़ने की आदत से शायद मिलने से झिझकते या कतराते हों, यह समझ कर सभी फ्लैटवासी उन से सहानुभूति ही रखते थे.

ऐसी ही ऊहापोह में दिन गुजर रहे थे. मौसम बदलता रहा, पर सरिता और विनय के स्वभाव में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ. उन के चीखनेचिल्लाने, लड़नेझगड़ने की आवाजों ने फ्लैट्स के लोगों की शांति भंग कर के रख दी थी. सभी के साथ उन्हें इंगित कर के बिल्ंिडग में शांति बनाए रखने की गुजारिश महीने में होने वाली मीटिंग में बारबार की गई. पर

उन दोनों के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया.

‘‘आप दोनों क्यों इतना झगड़ते हैं? प्यार से नहीं रह सकते हैं? सुनने में कितना खराब लगता है. फ्लैट्स की दीवारें जुड़ी हुई हैं. यह बिल्ंिडग हमारा परिवार है, कृपया इस की शांति भंग न करें.’’ ऊषाजी के पति का इतना कहना था कि सरिता चोट खाई किसी शेरनी की तरह दहाड़ उठीं. ‘‘हम अपने घर में लड़ेंझगड़ें या मरें, आप को दखलंदाजी करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

उन के कटु व्यवहार से एक बार फिर सभी आहत हो गए. सभी का कहना था कि ये मानसिक रूप से बीमार हैं, इन का इलाज प्रेमप्यार से ही हो सकता है.

एक हफ्ते बाद होली आने वाली थी.

सभी एकजुट हो कर उत्साह,

उमंग से तैयारियों में लगे हुए थे. सारा माहौल हर्षमय था कि एक रात सरिता के रोने की आवाज से सारी बिल्डिंग कांप उठी. जो जैसा था वैसे ही उठ कर भागा. दरवाजे की घंटी बजाने पर रोतीचिल्लाती सरिताजी ने दरवाजा खोला. उन के कपड़े खून से सने थे. अंदर का नजारा कुछ ऐसा था कि सभी घबरा गए. विनय बाथरूम में गिरे पड़े थे. माथे से खून जारी था.

सभी ने मिल कर उन्हें नर्सिंगहोम पहुंचाया. डाक्टरों ने तत्काल उन्हें आईसीयू में भरती किया. दिल का दौरा पड़ा था. हालत बहुत गंभीर थी. हालत सुधरने तक सभी वहीं बैठे रहे. इधर रोतीबिलखती सरिता को महिलाओं ने गले लगा कर संभाले रखा. इलाज का लंबा खर्च आया था, जिसे बिल्डिंग के सारे लोगों ने सहर्ष वहन किया. बाद में सभी को उन की रकम लौटा दी गई पर निस्वार्थ सेवा को कैसे लौटाया जा सकता था. सब से बड़ी बात यह थी कि बिल्डिंग में होली का त्योहार नहीं मनाया गया. बच्चे निरुत्साहित थे पर कोई शिकायत नहीं थी. समय की नजाकत को सभी समझ रहे थे.

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4 दिनों बाद अमेरिका से उन का बेटा समीर जब तक आया, तब तक विनय खतरे से बाहर थे. समीर ने सारे बिल्डिंग वालों को दिल से धन्यवाद दिया. बेटे के आने के बाद भी बिल्डिंग के पुरुषवर्ग अपनी ड्यूटी निभाते रहे. घर में सरिता को महिलाओं ने संभाले रखा. सरिता में जबरदस्त बदलाव आया था. सारी महिलाओं और बच्चों पर अपना प्यार लुटा रही थीं. इस प्यार के असर और डाक्टरों की कोशिश से 2 हफ्ते बाद ही विनय स्वस्थ हो कर घर आ गए.

होली के दिन बिल्डिंग में भले ही रंग नहीं गिरा हो, पर सब का दिल खुशियों के फुहार में भीग उठा था. सरिता और विनय में आए बदलाव ने पूरी बिल्डिंग में प्यार का छलकता सागर प्रवाहित कर दिया था जिस में सभी बहे जा रहे थे. अमेरिका लौट जाने से पहले समीर की इच्छा थी कि वह पिता का दिल्ली में अच्छी तरह से चैकअप करवा दे. बिल्डिंग के सभी लोगों को समीर का विचार बहुत ही भाया. सभी की राय से विनय और सरिता दिल्ली चले गए.

विनय को हार्ट में ही समस्या थी. ऐसे वे स्वस्थ थे. समीर तो वहीं से अमेरिका लौट गया. विनय और सरिता की बहुत इच्छा थी कि वे मथुरा और वृंदावन घूमते हुए लौटें. दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदारों ने वहां जाने की व्यवस्था कर दी. टैक्सी से वे दोनों मथुरा गए.

एक दिन वे वृंदावन के एक रास्ते से गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक युवती किसी पुरुष का पैर पकड़ कर रोए जा रही थी. वह प्रौढ़ व्यक्ति पैर छुड़ाने की चेष्टा कर रहा था. भीड़ तो इकट्ठी हो गई थी लेकिन किसी ने भी कारण जानने की कोशिश नहीं की. ऐसी घटनाएं वहां के लिए आम बात थीं. सारी दुखियारी औरतों को उन के रिश्तेदार मथुरा की गलियों में भीख मांगने के लिए छोड़ जाते हैं, जो वेश्यावृत्ति में धकेल दी जाती हैं.

सरिता और विनय ने उस प्रौढ़ व्यक्ति से युवती को ऐसे छोड़ने का कारण पूछा तो वह सकपकाया, फिर उन्हें भीड़ से बाहर ले जा कर उन की जिज्ञासा को कुछ इस प्रकार से शांत किया, ‘‘महाशय, यह मिनी है, मेरे छोटे भाई की विधवा. सालभर पहले इस की शादी मेरे छोटे भाई से हुई थी. 2 महीने हुए मेरे भाई को किसी ट्रक वाले ने कुचल कर मार डाला. जब तक मेरी मां जीवित रहीं, सबकुछ ठीक चलता रहा. पर जवान बेटे की मौत वे ज्यादा दिन झेल नही सकीं. एक रात सोईं तो सोईं ही रह गईं. उन की मृत्यु के साथ ही मेरे घर की शांति चली गई.

‘‘मेरी पत्नी मिनी को देख नहीं पाती. मेरे साथ इस निर्दोष का नाम जोड़ कर उस ने पूरे महल्ले में बदनाम कर दिया है. इस का इस दुनिया में कोई नहीं है. मांबाप की मृत्यु बचपन में ही किसी दुर्घटना में हो गई थी. नानी ने इसे पालपोस कर किसी तरह इस की शादी की. अब वे भी नहीं रहीं. मामामामी ने इसे रखने से इनकार कर दिया है.

‘‘अपनी शक्की, जाहिल पत्नी के खिलाफ जा कर इसे घर में रखता हूं तो महाशय, वह न इसे जीने देगी न मुझे. वैसी जिंदगी से अच्छा है मैं जहर खा कर मर जाऊं. मिनी ने ही यहां आने की इच्छा प्रकट की थी. अब मैं इसे छोड़ कर जा रहा हूं, तो यह जाने नहीं दे रही है.’’ इतना कह कर वह व्यक्ति तड़प कर रोने लगा, फिर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि यहां सभी इसे नोच कर खा जाएंगे, पर मैं करूं भी तो क्या करूं. कोई राह भी नहीं दिख रही. अपने घर की इज्जत को सरेआम छोड़े जा रहा हूं.’’

उस की दुखभरी गाथा सुन कर सरिता और विनय की पलकें भीग गईं. बहुत सोच कर सरिता ने पति से कहा, ‘‘क्यों न हम मिनी को अपने साथ ले चलें. हमारा भी तो वहां कोई नहीं है. एक बेटा है जो परिवार सहित दूसरे देश में बस गया है. शायद नियति ने हमें इसी कार्य के लिए यहां भेजा हो.’’ जवाब में विनय कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, ‘‘पूछ लो इस लड़की से हमारे साथ चलती है तो चले. इसे भी आसरा मिल जाएगा और हमें भी इस का सहारा.’’

विनय का इतना कहना था कि वह व्यक्ति उन के पैरों से लिपट गया, ‘‘ले जाइए, बाबूजी, बड़ी अच्छी लड़की है. आप दोनों की बड़ी सेवा करेगी. जायदाद बेच कर इस का हिस्सा मैं आप को भेज दूंगा. कहीं कोई सुपात्र मिले, तो इस का ब्याह कर दीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भेजने की आवश्यकता नहीं है. हमारे पास सभी कुछ है. हम इसे ही ले जा कर खुश हो लेंगे.’’ अपने घर का पता और उस व्यक्ति का पता लेते हुए सरिता और विनय लौट आए.

उन के घर पहुंचते ही वसुंधरा अपार्टमैंट में हलचल सी मच गई.

मिनी के लिए सभी की आंखों में उभर आए प्रश्नों को देख कर सरिता खुद को रोक न सकीं, बोलीं, ‘‘हम मथुरा से मिनी को लाए हैं प्यारी सी बेटी के रूप में.’’

कुछ न कहने पर भी सभी समझ ही गए. सब ने मिनी को प्यार से क्या निहारा, कि उसी पल से वह उन की चहेती बन गई.

अब मिनी को समय कहां था कि अपने गुजरे समय को याद कर के आंसू बहाए. पूरी बिल्डिंग की वह दुलारी बन गई थी. किसी की बेटी, तो किसी की ननद. बड़ों की बहन तो छोटों की दीदी. किसी के घर मिनी पकौड़े बना रही है तो कहीं भाजी. किसी का बटन टांक रही है तो किसी के बच्चे को थामे घूम रही है.

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हर उम्र की दहलीज पर मिनी ने अपने निस्वार्थ प्रेम का मायाजाल फैला रखा था. जिसे देखो वह मिनी को पुकारे जा रहा था. बच्चों की तो जान उस में बसती थी.

शाम होते ही सभी बच्चे उसे छत पर ले जाते. वहां कभी वह बौलिंग कर रही होती तो कभी अपांयर बन कर फैसला दे रही होती. मजाल कि कोई उस की अवमानना कर जाए. नियति की कैसी माया थी कि किसी घर की दुत्कारी, कहीं और की दुलारी बन गई थी. कल तक जिस का कोई नहीं था, आज इतने सारे उस के अपने थे.

उषा ने सरिता की सहमति से सब से प्रसिद्ध ब्यूटीपार्लर काया में मिनी को काम सीखने के लिए भेजा. मात्र 4 महीने में ही वह इतनी काबिल हो गई कि एक जानेमाने ब्यूटीपार्लर वालों ने उसे अपने यहां काम पर रख लेना चाहा. पर सरिता ने मना कर दिया यह कहते हुए कि हुनर सीख लिया, यही बहुत है. कमी क्या है कि मिनी पार्लर में नौकरी करेगी.

उस दिन मिनी सरिता के पैरों पर सिर रख कर बोली, ‘‘अम्मा, अगर उस दिन आप नहीं मिली होतीं तो कह नहीं सकती कि मेरा क्या हाल हुआ होता. या तो मैं मर गई होती या मेरे शरीर को नोच रहे होते लोग,’’ कहते हुए मिनी बहुत दिनों के बाद फूटफूट रो पड़ी.

उस के सिर को सहलाते हुए सरिता ने बड़े लाड़दुलार से कहा, ‘‘अरे, कैसे नहीं मिलती मैं. तुझे लाने के लिए ही तो जैसे मैं वहां गई थी. नहीं जाती तो इतना प्यार करने वाली बेटी कहां से मिलती मुझे. यहां तो तू ही हमारे लिए सबकुछ है.’’

सरिता के हृदय परिवर्तन पर पूरी बिल्ंिडग हैरान थी और खुश थी. प्यार के इस लहराते समंदर को इतने दिनों तक पता नहीं उन्होंने कहां छिपा कर रखा था. इधर मिनी के ब्यूटीपार्लर के अनुभव से बिल्ंिडग की सारी महिलाएं लाभान्वित हो रही थीं. किसी की भौंहें बन रही हैं तो किसी की गरदन की मसाज हो रही है. किसी के बाल स्टैप्स में काटे जा रहे हैं तो कोई फेशियल करवा रहा था, वह भी मुफ्त. किसी ने देने की जबरदस्ती की तो मिनी की आंखें छलक उठीं. अब भला किस की शामत आईर् थी कि मिनी की आंखों में आंसू छलका सके. इस बात से सरिता भी नाराज हो गईं.

प्यार से सने बोल में वे गर्जना कर उठीं, ‘‘मिनी मेरी ही नहीं, आप सभी की बहनबेटी है. क्यों उसे पैसे दे रही हैं. ऐसा कर आप सभी ने उसे अपने से दूर कर दिया है. हुनर सीखा भी इसलिए है कि आप सभी को सजाधजा सके.’’

‘‘नहींनहीं सरिता, इस से मिनी कोई दूसरी थोड़े हो जाएगी. हम सब उसे पुरस्कृत करना चाहते थे. माफ कीजिएगा, अगर बुरा लगा हो तो.’’ उषा की बातों से सरिता के होंठों पर मुसकान छिटक आई. कभीकभी मिनी अपने सारे तजरबे को सरिताजी पर ही आजमा लिया करती थी. वे दिल से तो प्रसन्न होती थीं, पर बाहर से गुस्सा दिखाती थीं.

दिन खुशी से गुजर रहे थे. इतना प्यार और सम्मान पा कर मिनी खिल गई थी. सुंदर तो थी ही. मिनी को आए 2 साल हो चुके थे. सरिता और विनय के साथ पूरी बिल्डिंग की अब यही इच्छा थी कि मिनी का ब्याह किसी सुपात्र से हो जाए.

यह भी संयोग रहा कि नीतू की भाभी की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई. नवजात बच्चे के साथ उस की मां बड़ी परेशान थीं. उस की मां की यही इच्छा थी कि उस के भाई की शादी जल्द से जल्द हो जाए ताकि इस उम्र में बच्चे की देखभाल करने से छुटकारा मिले.

नीतू के जेहन में अचानक मिनी का भोलाभाला रूप नाच उठा. मिनी से बढ़ कर कोई उस के भाई के बच्चे को प्यार नहीं दे सकेगा. तत्काल वह उषा के पास गई और सारी बातें उन्हें बताते हुए राय मांगी. उषा भी सहमत हो गईं. सरिता को मनाने के लिए दोनों उन के पास पहुंचीं.

सारी बातों को सुन कर सरिता ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि पहले की बात और थी. शादी होते ही एक बच्चे की देखभाल करने की जिम्मेदारी मिनी के नाजुक कंधे पर आ जाए, इस में मेरी जरा सी भी रजामंदी नहीं है. जब मैं ही तैयार नहीं, तो उस के बाबूजी और भैया कभी राजी नहीं होंगे. उसी दिन समीर कह रहा था, ‘‘लेनदेन की चिंता मत करना. बस, ऐसा घर ढूंढ़ना जहां मिनी सुखी रहे.’’

उषा ने दुनियादारी की बताते हुए कहा, ‘‘मिनी के प्यार में आप इस सचाई को भूल चुकी हैं कि मिनी अनाथ और विधवा है. उस के लिए नीतू के भाई से अच्छा रिश्ता शायद ही मिले.’’ कहते हुए वे दोनों बुझे मन से लौट गईं.

परंतु दूसरे दिन ही सरिताजी ने इस रिश्ते की स्वीकृति पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दी, क्योंकि उषा की बातों ने उन की आंखें खोल दी थीं. फिर मिनी को भी कोई एतराज नहीं था सिवा इस के कि उस के जाने के बाद उन दोनों की देखभाल उस की तरह कौन करेगा.

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मिनी की शादी की धूम पूरी बिल्डिंग में मची हुईर् थी. तैयारियां जोरों पर थीं. आखिर सब की चहेती मिनी की शादी थी. सरिता ने मिनी की ससुराल में भी शादी का निमंत्रणपत्र भेज दिया था. पर अच्छा ही हुआ कि वहां से कोई नहीं आया. वे नहीं चाहती थीं कि बीते दिनों की दुखद यादों को ले कर मिनी के नए जीवन की शुरुआत हो.

बच्चे, युवा, बूढ़े सभी उत्साहित थे. बरात आई, शहनाइयां बजीं, आंसूभरी आंखों से सरिता और विनय ने सारे रस्मरिवाजों को निभाया. सभी ने जी खोल कर मिनी को उपहार दिए. समीर ने अपने मम्मीपापा के साथ मिनी, उस के होने वाले पति और बच्चे को गरमी में अमेरिका घूमने के लिए बुलाया. बस, पासपोर्ट और वीजा के मिलते ही टिकट भेज देने का आश्वासन दिया था.

जितना मिला, उस के लिए मिनी का आंचल छोटा पड़ गया था. उस की आंखें विदाई तक बरसती ही रहीं. सब के प्यारदुलार को समेट, सब को रुलाते हुए मिनी अपने जीवनसाभी की बांहें थाम नए जीवन की डगर की ओर चल पड़ी. उस की विदाई पर सभी बिलख रहे थे पर खुशी के आंसुओं के साथ. अपने पीछे मिनी पूरी बिल्ंिडग में एक सन्नाटा और उदासी छोड़ गई थी.

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November 29, 2019 at 10:11AM

 कांटे गुलाब के

राम महेंद्र राय

सुबह के 8 बज रहे थे. किचन में व्यस्त थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. मन में यह सोच कर खुशी की लहर दौड़ गई कि अमरेश का फोन होगा. फिर अचानक मन ने प्रतिवाद किया. वह अभी फोन क्यों करेगा? वह तो प्रतिदिन रात के 8 बजे के बाद फोन करता है.

अमरेश मेरा पति था. दुबई में नौकरी करता था. मोबाइल पर नंबर देखा, तो झट से उठा लिया. फोन मेरी प्रिय सहेली स्वाति ने किया था. बात करने पर पता चला कि कल उस की शादी होने वाली है. शादी में उस ने हर हाल में आने के लिए कहा. शादी अचानक क्यों हो रही है, यह बात उस ने नहीं बताई. दरअसल, उस की शादी 2 महीने बाद होने वाली थी. जिस लड़के से शादी होने वाली थी, उस की दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गईर् थी. डाक्टर ने उसे 2-3 दिनों की मेहमान बताया था. इसीलिए घर वाले दादी की मौजूदगी में ही उस की शादी कर देना चाहते थे.

स्वाति मेरी बचपन की सहेली थी. ग्रेजुएशन तक हम दोनों ने एकसाथ पढ़ाई की थी. उस के बाद मुंबई में उसे जौब मिल गई. वह मातापिता के साथ वहीं बस गई. अब वहीं के लड़के से शादी कर रही थी. अमरेश को बताना जरूरी था कि मुंबई जा रही हूं. उसे फोन किया, नंबर नहीं लगा. रौंग नंबर बताया गया. वह आश्चर्यचकित थी. रौंग नंबर क्यों?

अमरेश ने दुबई का जो नंबर दिया था, उस पर कभी फोन नहीं किया था. फोन करती भी तो कैसे करती? उस ने फोन करने से मना जो कर रखा था.

उस ने कहा था, ‘औफिस के काम से हर समय व्यस्त रहता हूं. सो, फोन मत करना. मैं खुद तुम्हें रोज फोन करूंगा.’ वह रोज फोन करता भी था.

फोन ट्राई करतेकरते अचानक मोबाइल हाथ से छूट गया और फर्श पर गिर कर बंद हो गया. उस ने बहुत कोशिश की ठीक करने की, मगर ठीक नहीं हुआ. हर हाल में मुंबई आज ही जाना था. सो, एजेंट से टिकट की व्यवस्था कर प्लेन से बेटे सुमित के साथ चली गई.

मुंबई एयरपोर्ट से बाहर आईर् तो शाम के 6 बज गए थे. टैक्सी से सहेली के घर जा रही थी कि एक मोड़ पर लालबत्ती देख कर ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी. उसी समय एक गाड़ी बगल में आ कर खड़ी हो गई. अचानक गाड़ी के अंदर नजर पड़ी तो चौंक गई. बगल वाली गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर अमरेश था. उस की बगल में एक युवती बैठी थी. अमरेश को आवाज देने न देने की उधेड़बुन में थी कि हरी बत्ती हो गई और वाहन गंतव्य की ओर दौड़ने लगे.

टैक्सी वाले को उक्त गाड़ी का पीछा करने के लिए कहा तो वह तैयार हो गया. लगभग 20 मिनट बाद सफेद गाड़ी एक शानदार बिल्डिंग के अहाते में दाखिल हो गई. बिल्डिंग किस की थी? अमरेश का युवती से कैसा नाता था? मुझे दुबई बता कर मुंबई में क्या कर रहा था? यह सब जानना जरूरी था.

गेट पर गार्ड था. ड्राइवर को समझाबुझा कर गार्ड से पूछताछ करने के लिए भेज दिया. गार्ड से बात कर के 10 मिनट बाद ड्राइवर आया तो बताया कि बिल्ंिडग यहां के मशहूर बिल्डर रत्नेश्वर चौधरी की है. गाड़ी से उतर कर जो युवक व युवती मकान के अंदर गए हैं, वे चौधरी साहब की बेटी सारिका और दामाद अमरेश हैं. मुझे लगा, भूचाल आ गया है. अंदर तक हिल गई. जी चाहा कि फफकफफक कर रो पड़ूं. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और सहेली के घर गई.

वह अमरेश को विवाह से पहले से जानती थी. जिस कालेज में पढ़ती थी, वह भी उसी में पढ़ता था. बहुत स्मार्ट और हैंडसम था. लड़कियां उस की दीवानी थीं. मगर वह उस का दीवाना था. उस की खूबसूरती पर आहें भरता था और उस के आगेपीछे घूमता रहता था.

वह उसे चांस नहीं देती थी. दरअसल, प्रेममोहब्बत के चक्कर में पड़ कर वह पढ़ाई में पीछे नहीं होना चाहती थी. उस का इरादा ग्रेजुएशन के बाद पहले अपने पैरों पर खड़ा होना था, फिर विवाह करना था. उस के मातापिता भी यही चाहते थे.

इस तरह 2 वर्ष बीत गए. उस के बाद वह महसूस करने लगी कि वह अमरेश के इश्क में गिरफ्त हो चुकी है, क्योंकि सोतेजागते वही नजर आने लगा था. 2 साल तक जिस जज्बात को इनकार करती रही थी, वह संपूर्ण चरमोत्कर्ष के साथ उस पर छा चुका था. शायद अमरेश की लगातार कोशिश और उस के अच्छे व्यवहार ने उस की जिद के पांव उखाड़ दिए थे. 2 साल में अमरेश ने उस के साथ कभी कोई आपत्तिजनक हरकत नहीं की थी.

हमेशा उस से दोस्ताना तरीके से मिलता था. अपने जज्बात का इजहार करता था. लेकिन कभी भी जवाब के लिए तकाजा नहीं करता था. कभी कालेज से दूर तनहाई में मिलने के लिए मजबूर भी नहीं किया था.

एग्जाम के बाद रिजल्ट आया तो उस के साथसाथ वह भी प्रथम आया था. मौका मिला तो उस ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो. किसी कारण अब तक मुंह से कुछ नहीं कह पाई हो. मगर अब तो स्वीकार कर लो.’ अब वह अपने दिल की बात उस से छिपा न सकी. मोहब्बत का इजहार कर दिया. साथ में यह भी कह दिया, ‘जब तुम्हें नौकरी मिल जाए तो शादी का रिश्ता ले कर मेरे घर आ जाना. तब तक मैं भी कोई न कोई जौब ढूंढ़ लूंगी.’’

अमरेश उस की बात से सहमत हो गया. एक वर्ष तक उन की मुलाकात न हो सकी. कई बार फोन पर बात हुई. हर बार उस ने यही कहा, ‘मिताली, अभी नौकरी नहीं मिली है. जल्दी मिल जाएगी. तब तक तुम्हें मेरा इंतजार करना ही होगा.’

एक दिन अचानक फोन पर उस ने बताया कि उसे कोलकाता में बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. उसे जौब मिल गई थी. मिताली को नहीं मिली थी. उस ने कहा, ‘जब तक मुझे जौब नहीं मिलेगी, शादी नहीं करूंगी.’ अमरेश ने उस की एक नहीं सुनी, कहा, ‘तुम्हें नौकरी की जरूरत क्या है? मुझ पर भरोसा रखो. तुम मेरे घर और दिल में रानी की तरह राज करोगी.’

वह अमरेश को अथाह प्यार करती थी. उस पर भरोसा करना ही पड़ा. जौब करने का इरादा छोड़ कर उस से शादी कर ली. अमरेश के परिवार में मातापिता के अलावा एक बहन और 2 भाई थे. विवाह के बाद अमरेश उसे कोलकाता ले आया. पार्कस्ट्रीट में उस ने किराए पर छोटा सा फ्लैट ले रखा था.

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अमरेश उसे बहुत प्यार करता था. उस की छोटीछोटी जरूरत पर भी ध्यान देता था. छुट्टियों में किचन में उस का सहयोग भी करता था. प्यार करने वाला पति पा कर मिताली जिंदगी से नाज कर उठी थी. 3 वर्ष कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. दोनों ने उस का नाम सुमित रखा था.

मिताली एक बच्चे की मां थी. बावजूद इस के उस का प्यार पहले जैसा अटल और गहरा था. अमरेश उसे टूट कर चाहता था, ठीक उसी तरह जिस तरह वह उसे बेहिसाब प्यार करती थी. सपने में भी उस से अलग होने की कल्पना नहीं करती थी. वह सोया हो या जाग रहा हो, हमेशा उस के चेहरे को देखा करती थी. मोहब्बत से भरपूर एक सुंदर चेहरा. उसी चेहरे में उसे अपना भविष्य नजर आता था. यह दुनिया नजर आती थी. बच्चे नजर आते थे. हर तरफ खुशी नजर आती थी.

3 वर्षों बाद अमरेश से कुछ दिनों के लिए अलग होने की बात हुई तो उस का दिल बैठ सा गया. यह सोच कर वह चिंता में पड़ गई कि उस के बिना कैसे रहेगी? हुआ यों कि एक दिन अमरेश ने औफिस से आते ही कहा, ‘आज मेरा सपना पूरा हो गया.’

‘कौन सा सपना?’

‘दुबई जा कर ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. इस के लिए 2 साल से प्रयास कर रहा था. आज सफल हो गया. वहां एक बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. 10 दिनों बाद चला जाऊंगा. कुछ महीने के बाद तुम्हें तथा सुमित को भी वहां बुला लूंगा.’

जहां इस बात की खुशी हुई कि अमरेश का सपना पूरा होने जा रहा था, वहीं उस से अलग रहने की कल्पना से दुखी हो गई थी मिताली. शादी के बाद कभी भी वह उस से अलग नहीं हुई थी. दुबई जाने से रोक नहीं सकती थी, क्योंकि वहां जा कर ढेर सारा रुपया कमाना उस का सपना था. सो, उस ने अपने दिल को समझा लिया.

दुबई से अमरेश रोज फोन करता था. कहता था कि उस के और सुमित के बिना उस का मन नहीं लग रहा है. जल्दी ही उन दोनों को बुला लेगा. कोलकाता में उसे 20 हजार रुपए मिलते थे, दुबई से वह 50 हजार रुपए भेजने लगा.

अपने समय पर मिताली पहले से अधिक इतराने लगी थी. उसे अमरेश के हाथों में अपना और सुमित का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था. एक वर्ष बीत गया. इस बीच अमरेश ने उन्हें दुबई नहीं बुलाया. बराबर कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया करता था.

एक दिन अचानक कोलकाता आ कर सरप्राइज दिया. बताया कि 15 दिन की छुट्टी पर वह इंडिया आया है.

उस ने कहा, ‘अब तक दुबई इसलिए नहीं बुलाया कि वहां अकेले रहना पड़ता. बात यह है कि कंपनी के काम से मुझे बराबर एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता है. कभीकभी तो घर पर 2 महीने बाद लौटता हूं.

‘ऐसे में अकेली औरत देख कर मनचले तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते थे. मैं चाहता हूं कि सुमित के साथ तुम कोलकाता में ही रहो और अच्छी तरह उस की परवरिश करो.’ वह चुप रही. कुछ भी कहते नहीं बना.

15 दिनों बाद अमरेश दुबई लौट गया. इतने दिनों में ही उस ने पूरे सालभर का प्यार दे दिया था. मिताली उस का अथाह प्यार पा कर गदगद हो गई थी. पार्कस्ट्रीट में ही अमरेश ने उस के नाम फ्लैट खरीद दिया था. अगले 3 वर्षों तक सबकुछ आराम से चला. अमरेश वर्ष में एक बार 10 या 15 दिनों के लिए आता था. उसे अपने प्यार से नहला कर दुबई लौट जाता था.

कालांतर में वह यह चाहने लगी थी कि दुबई की नौकरी छोड़ कर अमरेश कोलकाता में उन के साथ रहे और बिजनैस करे. तीसरे वर्ष अमरेश दुबई से आया तो उस ने उस से अपने दिल की बात कह दी. वह नहीं माना. वह कम से कम 10-15 वर्षों तक वहीं रहना चाहता था.

फिर तो चाह कर भी वह अमरेश को कुछ समझाबुझा नहीं सकी. फायदा कुछ होने वाला नहीं था. उस पर दुबई में अकेले ही रहने का जनून सवार था. उस के दुबई लौट जाने के 2 महीने बाद ही स्वाति का फोन आया था और अब वह मुंबई में थी.

स्वाति की शादी के बाद मोबाइल ठीक करा लिया तो अमरेश का फोन आ गया, ‘‘2 दिनों से परेशान हूं. तुम्हारा मोबाइल स्विचऔफ बता रहा था. बात क्या है?’’

उस ने मुंबई आने की बात अमरेश से छिपा ली. उस से कहा कि एक सहेली की शादी में दिल्ली आई हूं.

2 दिनों बाद लौट जाऊंगी.

अमरेश से हमेशा जिस तरह बात करती थी, उसी तरह से बात की. उसे यह संदेह नहीं होने दिया कि उसे उस की बेवफाई का पता चल गया है. अमरेश ने उस के साथ बेवफाई क्यों की? दुबई में नौकरी करने को बता कर दूसरी शादी कर मुंबई में क्यों रह रहा था? आखिर उस की क्या गलती थी? ये सारी बातें जानने के लिए उसे सारिका से मिलना जरूरी था.

स्वाति ससुराल चली गई थी. उस की मां से बहाना बना कर और सुमित को उन के हवाले कर चौधरी साहब की बिल्डिंग पर दोपहर में गई. उसे अनुमान था कि उस समय अमरेश घर पर नहीं रहता होगा. गार्ड से बात करने पर इस बात की पुष्टि भी हो गई. अमरेश उस समय औफिस में रहता था. गार्ड को उस ने अपना परिचय जर्नलिस्ट के रूप में दिया. कहा, ‘‘अमरेश सर ने सारिका का इंटरव्यू लेने के लिए बुलाया था.’’

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गार्ड ने इंटरकौम द्वारा सारिका से बात की. उस की भी बात करवाई. उस के बाद उसे अंदर जाने की इजाजत मिल गई. अंदर गई तो सारिका ने उस का स्वागत किया. अपना परिचय देते हुए उसे सोफे पर बैठाया. बगैर समय गंवाए उस ने कहा, ‘‘अमरेश सर का कहना है कि उन की जिंदगी में यदि आप नहीं आतीं तो वे ऊंचाई के मुकाम पर नहीं पहुंच पाते. बताइए कि अमरेश सर से आप की शादी कब और कैसे हुई?’’

नौकर कोल्डड्रिंक ले आया. कोल्डड्रिंक पीते हुए जैसेजैसे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे अमरेश से शादी करने की जानकारी सारिका देती गई. सारिका अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. मुंबई में ही उस ने ग्रेजुएशन की थी. पिता उस की शादी ऐसे लड़के से करना चाहते थे जो अमीर खानदान से हो और घरजमाई बन कर उन का बिजनैस संभाल सके.

सारिका सांवली थी. नाकनक्श भी अच्छे नहीं थे. कद भी छोटा था. शायद इसीलिए अमीर खानदान का कोई युवक चौधरी साहब का घरजमाई बनने के लिए तैयार नहीं था. गरीब युवकों में से कई सारिका से शादी करना चाहते थे, मगर चौधरी गरीब को पसंद नहीं करते थे. सारिका के ग्रेजुएशन करने के बाद चौधरी साहब ने उस की पढ़ाई छुड़वा दी थी और उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी थी. 3 साल बीत जाने के बाद भी मनपसंद वर नहीं मिला. उस के बाद सारिका की जिंदगी में अचानक अमरेश आ गया. हुआ यों कि सारिका मातापिता के साथ एक रिश्तेदार की शादी में 3 साल पहले कोलकाता गईर् थी. समारोह में अमरेश से उस की मुलाकात हुई थी.

अमरेश जिस कंपनी में काम करता था, उस के मैनेजिंग डायरैक्टर की बेटी की शादी थी. सारे स्टाफ को बुलाया गया था. पार्टी में अमरेश सारिका के आगेपीछे घूमने लगा तो मौका देख कर सारिका ने उस से पूछा, ‘आप मेरे आगेपीछे क्यों घूम रहे हैं, मुझ से चाहते क्या हैं?’

अमरेश ने बगैर किसी संकोच के कह दिया, ‘पहली नजर में ही मुझे आप से प्यार हो गया है. आप से शादी करना चाहता हूं.’

सारिका को अमरेश बड़ा दिलचस्प लगा. उस का व्यक्तित्व उस के दिल को छू गया. मुसकरा कर बोली, ‘आप ने मुझ में ऐसा क्या देखा कि मेरे दीवाने हो गए?’

‘आप बहुत सुंदर हैं. आप की सुंदरता मेरे दिल में उतर गई है. जब तक आप से शादी नहीं होगी, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’

‘मैं गोरी नहीं, सांवली हूं, फिर सुंदर कैसे हो सकती हूं. आप झूठ बोल रहे हैं?’

‘मैं सच कह रहा हूं. सांवली होते हुए भी आप इतनी सुंदर हैं कि गोरी से गोरी लड़की भी सुंदरता में आप के सामने घुटने टेक देगी.’

अमरेश से सारिका प्रभावित हो गई. उस से उस की सारी जानकारी लेने के बाद उसे अपना परिचय दिया. फिर कहा, ‘घर जा कर मम्मीपापा से बात करूंगी. पापा तो नहीं चाहेंगे कि किसी गरीब लड़के से मेरी शादी हो. मैं आप से शादी करने की पूरी कोशिश करूंगी. दरअसल, मुझे भी आप से पहली नजर में ही प्यार हो गया है.’

अमरेश ने सारिका को बताया था कि वह कुंआरा है. दुनिया में उस का कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के मातापिता का देहांत हो गया था. मामा ने परवरिश की, उन्होंने ही पढ़ायालिखाया. मामा का अचानक देहांत हो गया तो उन के बेटों ने उसे घर से निकाल दिया. ऐसे में उस के एक दोस्त प्रभात ने उसे सहारा दिया. उस की बदौलत ही उसे नौकरी मिली. वह उस के साथ गोल पार्क में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है.

घर जा कर सारिका ने मम्मीपापा को अमरेश के बारे में बताया तो दोनों ने शादी से साफ मना कर दिया. सारिका अमरेश से हर हाल में विवाह करना चाहती थी. इसलिए उस ने घर में बवाल कर दिया. आत्महत्या करने की धमकी दी तो चौधरी साहब को उस की बात मान लेनी पड़ी. कोलकाता जा कर अमरेश से मिलने के 10 दिनों बाद चौधरी साहब ने सारिका की शादी अमरेश से कर दी. अमरेश अच्छा पति साबित हुआ. सारिका को कभी किसी तरह का कष्ट नहीं दिया. चौधरी साहब का बिजनैस भी संभाल लिया. वर्तमान में सारिका

2 महीने से प्रेग्नैंट थी. अमरेश की सचाई जान कर मिताली के दिमाग में जैसे हथौड़े चलने लगे थे. मन में आया कि इसी पल सबकुछ सारिका को बता दे. धोखेबाज अमरेश की कलई खोल कर रख दे. पर ऐसा न कर सकी. जबान तालू से चिपक गई थी. लगा, जैसे ही सारिका को अमरेश की सचाई बताऊंगी उस की जिंदगी में बहार के बाद पतझड़ वाली स्थिति आ जाएगी. न जाने क्यों वह उसे दुख नहीं देना चाहती थी.

वहां रुकना उस के लिए ठीक नहीं था. ‘‘जल्दी ही इंटरव्यू प्रकाशित होगा,’’ कह कर चली आई. तत्काल कोई फैसला लेना आसान नहीं था. अपने साथसाथ सुमित की जिंदगी का भी सवाल था. इसलिए चुपचाप कोलकाता लौट आई. वह प्रभात को जानती थी. वह अमरेश का दोस्त था. अमरेश के साथ उस के घर 3-4 बार जा चुकी थी. अमरेश की उपस्थिति में वह भी कई एक बार घर आ चुका था. कोलकाता में जिस कंपनी में अमरेश जौब करता था, प्रभात भी उसी कंपनी में था.

अमरेश से शादी किए हुए एक वर्ष हुआ था तब की बात है, एक दिन बातोंबातों में प्रभात ने बताया था, ‘अमरेश आप को बहुत प्यार करता है. इसीलिए उस ने आप से शादी की, नहीं तो वह अपनी ख्वाहिश पूरी करता.’

‘कैसी ख्वाहिश?’ उत्सुकतावश पूछ लिया था मैं ने.

‘वह ऐशोआराम की जिंदगी चाहता था. बेहिसाब धनदौलत का मालिक बनना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. मौका नहीं मिला तो 20 हजार रुपए महीने की नौकरी कर आप से शादी कर ली.

‘आप से शादी करने के बाद भी उस ने हिम्मत नहीं हारी है. वह हर हाल में अथाह दौलत का मालिक बनना चाहता है. इसलिए अब भी मौके की तलाश कर रहा है. जिस दिन मौका उस के हाथ आएगा, अंजाम की परवा किए बिना अवसर को हथिया लेगा.’

प्रभात ने जिस अवसर की बात की थी, उस समय समझ नहीं पाई थी. अब सबकुछ समझ गई थी. वह किसी अमीर लड़की से शादी कर अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता था. मामला शायद ऐसा था, कोलकाता की पार्टी में अमरेश को किसी सोर्स से सारिका की जानकारी मिली होगी. उस के बाद अपनी मंजिल पाने के लिए चिकनीचुपड़ी बातों से सारिका का दिल जीत कर उस से शादी की और मिताली से दुबई जाने की बात कह कर वह सारिका के साथ रहने लगा था.

इस में कोई शक नहीं था कि उस के प्रति अमरेश का प्यार मात्र छलावा था. मिताली दोराहे पर थी. फैसला लेना आसान नहीं था. तलाक लेने की स्थिति में उस की जिंदगी में तो बदलाव आता ही, सुमित की जिंदगी भी एकदम से बदल जाती. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, क्या न करे. इसी उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए. इस बीच फोन पर अमरेश से बिलकुल सामान्य तरीके से बात की. उसे किसी तरह का संदेह नहीं होने दिया. 10 दिनों बाद की बात है. एक दिन शाम के 6 बजे सुमित को पढ़ा रही थी कि डोरबैल बज उठी. जा कर दरवाजा खोला, तो अमरेश था. वह जब भी आता था बगैर सूचना दिए ही आता था. 10-15 दिनों के लिए मुंबई से बाहर जाने के लिए उसे सारिका से कुछ अच्छा बहाना भी तो बनाना पड़ता होगा. सटीक बहाने के लिए उसे समय की प्रतीक्षा करनी होती होगी. इसीलिए आने की पूर्व सूचना नहीं दे पाता होगा.

अमरेश को किसी तरह का शक न हो, इसलिए सदैव की तरह वह उस से लिपट गई और उस का स्वागत किया. फिर उसे अंदर ले गई. आवाज सुन कर सुमित भी दौड़ कर आ गया. अमरेश के चेहरे पर सदैव की तरह खुशनुमा भाव था. जरा भी नहीं लगा कि वह दोहरी जिंदगी जी रहा है. हर बार की तरह इस बार भी उस ने मिताली पर अपना प्यार बरसाने में कोई कमी नहीं की. उस के मन में कई बार आया कि उस की बेवफाई का राज खोल दे. कह दे कि प्यार का नाटक बंद कर दो. पर कह नहीं  सकी. 10 दिनों बाद वह चला गया. प्रति महीना 50 हजार रुपए तो भेजता ही था. इस बार जाते समय उस ने 5 लाख रुपए यह कह कर दिए कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और सुमित की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देना.

सदा अन्याय का मुकाबला करो, अपने हक के लिए सदा लड़ो, समाज में पनपती बुराइयों पर अंकुश लगाओ. यह सब स्कूल और कालेज में पढ़ाया गया था. मिताली ने सीखा भी था. पर जिंदगी की पाठशाला में तो कुछ और ही देखने को मिल रहा था. अमरेश के प्रति जबान खोलती तो कई जिंदगियां बरबाद हो जातीं.  मातापिता का कोई सहारा न था क्योंकि उन्होंने एक तरह से साफ कह दिया, अपनी जिंदगी खुद भुगतो.

इसलिए अमरेश के जाने के बाद उस ने फैसला किया कि जब तक उस का अभिनय सफलतापूर्वक चलता रहेगा, तब तक चुपचाप सहती रहेगी, ठीक उसी तरह जिस तरह उस की जैसी हजारों महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं. क्या उस का फैसला सही था? अगर वह हल्ला मचाती तो सारिका भी टूटती, सुमित भी टूटता, अमरेश भी बेकार होता और वह खुद अदालतों के चक्करों में पिस जाती. सारिका या वह कौन असली पत्नी है, कानूनी है, यह तो अभी नहीं पता, पर इस बोझ को ले कर चलना ही ठीक है.

ऐसा भी होता है दिसंबर की छुट्टियों में हम ने घूमने का प्रोग्राम बनाया. बच्चों की भी छुट्टियां थीं सो, दार्जिलिंग जाने का प्रोग्राम बन गया. दिल्ली से सिलीगुड़ी की सीधी ट्रेन थी. हमारी आरक्षित सीट थी एसी कोच में. यह आराम था क्योंकि लंबी दूरी का सफर था. दूसरे दिन रास्ते में पटना स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो कुछ ठेलेवाले दहीबड़े की दोना प्लेट ले कर आए और ‘10 के 2, 10 के 2,’ चिल्लाते हुए बेचने लगे. एक दोना प्लेट में 2 बड़े व उस में दहीचटनी आदि मसाला डाल रखा था, देखने में अच्छे भी लग रहे थे और हम लोगों का भी मन हुआ कि खा कर देखा जाए. दहीबड़े स्वाद में भी ठीक थे.

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हम लोग 5 थे. सो उस को हिसाब कर 25 रुपए दिए तो बोला, ‘‘50 रुपए दीजिए. हम ने उस से कहा, ‘‘अभी तो तुम चिल्ला कर बोल रहे थे 10 के 2 बड़े.’’ तो वह बोला, ‘‘ठीक ही बोला, देखिए प्लेट में 2 बड़े ही हैं.’’ दरअसल एक पलेट में 2 बड़ों का बोल रहा था. हम ने सोचा कि 2 प्लेट का बोल रहा है. इस से मुझे और मेरी बेटी को तो खासी परेशानी नहीं हुई लेकिन मेरे दामाद थोड़े चिढ़ गए. फिर भी हम ने उसे 50 रुपए दिए. मैं और मेरी बेटी हंसी नहीं रोक पाए, तो दामाद बोले, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है?’’ हम ने हंसते हुए कहा, ‘‘ऐसा ही होता है.’’  काशी चौहान

मेरे पति गोंडा से मनकापुर आने के लिए पैसेंजर ट्रेन पर चढ़े. आगे की सीट पर कुछ महिलाएं लेटी हुई थीं. उन्होंने एक महिला से कहा, ‘‘मैडमजी, उठ कर बैठ जाइए तो मैं भी बैठ लूं.’’ वह महिला उठ कर बैठ गई.

उस महिला के साथ एक बुजुर्ग महिला भी थीं. वे जोरजोर से बोलने लगीं, ‘‘ये देखो, ये मेरी बहू को मैडमजी बोल रहे हैं, बहनजी कह सकते थे, माताजी कह सकते थे.’’

मेरे पति दुविधा में थे कि मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि ये चिल्ला रही हैं. पास बैठे लोग यह सब देख रहे थे. उन में से एक व्यक्ति आया और उस बुजुर्ग महिला से बोला, ‘‘माताजी, मैडम का अर्थ क्या होता है?’’ इस पर वे महिला बोलीं, ‘‘मैडम माने, मेहरारू होत है.’’ तब, उन्हें मैडम का अर्थ बताया गया, तो वे शांत हुईं.

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राम महेंद्र राय

सुबह के 8 बज रहे थे. किचन में व्यस्त थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. मन में यह सोच कर खुशी की लहर दौड़ गई कि अमरेश का फोन होगा. फिर अचानक मन ने प्रतिवाद किया. वह अभी फोन क्यों करेगा? वह तो प्रतिदिन रात के 8 बजे के बाद फोन करता है.

अमरेश मेरा पति था. दुबई में नौकरी करता था. मोबाइल पर नंबर देखा, तो झट से उठा लिया. फोन मेरी प्रिय सहेली स्वाति ने किया था. बात करने पर पता चला कि कल उस की शादी होने वाली है. शादी में उस ने हर हाल में आने के लिए कहा. शादी अचानक क्यों हो रही है, यह बात उस ने नहीं बताई. दरअसल, उस की शादी 2 महीने बाद होने वाली थी. जिस लड़के से शादी होने वाली थी, उस की दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गईर् थी. डाक्टर ने उसे 2-3 दिनों की मेहमान बताया था. इसीलिए घर वाले दादी की मौजूदगी में ही उस की शादी कर देना चाहते थे.

स्वाति मेरी बचपन की सहेली थी. ग्रेजुएशन तक हम दोनों ने एकसाथ पढ़ाई की थी. उस के बाद मुंबई में उसे जौब मिल गई. वह मातापिता के साथ वहीं बस गई. अब वहीं के लड़के से शादी कर रही थी. अमरेश को बताना जरूरी था कि मुंबई जा रही हूं. उसे फोन किया, नंबर नहीं लगा. रौंग नंबर बताया गया. वह आश्चर्यचकित थी. रौंग नंबर क्यों?

अमरेश ने दुबई का जो नंबर दिया था, उस पर कभी फोन नहीं किया था. फोन करती भी तो कैसे करती? उस ने फोन करने से मना जो कर रखा था.

उस ने कहा था, ‘औफिस के काम से हर समय व्यस्त रहता हूं. सो, फोन मत करना. मैं खुद तुम्हें रोज फोन करूंगा.’ वह रोज फोन करता भी था.

फोन ट्राई करतेकरते अचानक मोबाइल हाथ से छूट गया और फर्श पर गिर कर बंद हो गया. उस ने बहुत कोशिश की ठीक करने की, मगर ठीक नहीं हुआ. हर हाल में मुंबई आज ही जाना था. सो, एजेंट से टिकट की व्यवस्था कर प्लेन से बेटे सुमित के साथ चली गई.

मुंबई एयरपोर्ट से बाहर आईर् तो शाम के 6 बज गए थे. टैक्सी से सहेली के घर जा रही थी कि एक मोड़ पर लालबत्ती देख कर ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी. उसी समय एक गाड़ी बगल में आ कर खड़ी हो गई. अचानक गाड़ी के अंदर नजर पड़ी तो चौंक गई. बगल वाली गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर अमरेश था. उस की बगल में एक युवती बैठी थी. अमरेश को आवाज देने न देने की उधेड़बुन में थी कि हरी बत्ती हो गई और वाहन गंतव्य की ओर दौड़ने लगे.

टैक्सी वाले को उक्त गाड़ी का पीछा करने के लिए कहा तो वह तैयार हो गया. लगभग 20 मिनट बाद सफेद गाड़ी एक शानदार बिल्डिंग के अहाते में दाखिल हो गई. बिल्डिंग किस की थी? अमरेश का युवती से कैसा नाता था? मुझे दुबई बता कर मुंबई में क्या कर रहा था? यह सब जानना जरूरी था.

गेट पर गार्ड था. ड्राइवर को समझाबुझा कर गार्ड से पूछताछ करने के लिए भेज दिया. गार्ड से बात कर के 10 मिनट बाद ड्राइवर आया तो बताया कि बिल्ंिडग यहां के मशहूर बिल्डर रत्नेश्वर चौधरी की है. गाड़ी से उतर कर जो युवक व युवती मकान के अंदर गए हैं, वे चौधरी साहब की बेटी सारिका और दामाद अमरेश हैं. मुझे लगा, भूचाल आ गया है. अंदर तक हिल गई. जी चाहा कि फफकफफक कर रो पड़ूं. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और सहेली के घर गई.

वह अमरेश को विवाह से पहले से जानती थी. जिस कालेज में पढ़ती थी, वह भी उसी में पढ़ता था. बहुत स्मार्ट और हैंडसम था. लड़कियां उस की दीवानी थीं. मगर वह उस का दीवाना था. उस की खूबसूरती पर आहें भरता था और उस के आगेपीछे घूमता रहता था.

वह उसे चांस नहीं देती थी. दरअसल, प्रेममोहब्बत के चक्कर में पड़ कर वह पढ़ाई में पीछे नहीं होना चाहती थी. उस का इरादा ग्रेजुएशन के बाद पहले अपने पैरों पर खड़ा होना था, फिर विवाह करना था. उस के मातापिता भी यही चाहते थे.

इस तरह 2 वर्ष बीत गए. उस के बाद वह महसूस करने लगी कि वह अमरेश के इश्क में गिरफ्त हो चुकी है, क्योंकि सोतेजागते वही नजर आने लगा था. 2 साल तक जिस जज्बात को इनकार करती रही थी, वह संपूर्ण चरमोत्कर्ष के साथ उस पर छा चुका था. शायद अमरेश की लगातार कोशिश और उस के अच्छे व्यवहार ने उस की जिद के पांव उखाड़ दिए थे. 2 साल में अमरेश ने उस के साथ कभी कोई आपत्तिजनक हरकत नहीं की थी.

हमेशा उस से दोस्ताना तरीके से मिलता था. अपने जज्बात का इजहार करता था. लेकिन कभी भी जवाब के लिए तकाजा नहीं करता था. कभी कालेज से दूर तनहाई में मिलने के लिए मजबूर भी नहीं किया था.

एग्जाम के बाद रिजल्ट आया तो उस के साथसाथ वह भी प्रथम आया था. मौका मिला तो उस ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो. किसी कारण अब तक मुंह से कुछ नहीं कह पाई हो. मगर अब तो स्वीकार कर लो.’ अब वह अपने दिल की बात उस से छिपा न सकी. मोहब्बत का इजहार कर दिया. साथ में यह भी कह दिया, ‘जब तुम्हें नौकरी मिल जाए तो शादी का रिश्ता ले कर मेरे घर आ जाना. तब तक मैं भी कोई न कोई जौब ढूंढ़ लूंगी.’’

अमरेश उस की बात से सहमत हो गया. एक वर्ष तक उन की मुलाकात न हो सकी. कई बार फोन पर बात हुई. हर बार उस ने यही कहा, ‘मिताली, अभी नौकरी नहीं मिली है. जल्दी मिल जाएगी. तब तक तुम्हें मेरा इंतजार करना ही होगा.’

एक दिन अचानक फोन पर उस ने बताया कि उसे कोलकाता में बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. उसे जौब मिल गई थी. मिताली को नहीं मिली थी. उस ने कहा, ‘जब तक मुझे जौब नहीं मिलेगी, शादी नहीं करूंगी.’ अमरेश ने उस की एक नहीं सुनी, कहा, ‘तुम्हें नौकरी की जरूरत क्या है? मुझ पर भरोसा रखो. तुम मेरे घर और दिल में रानी की तरह राज करोगी.’

वह अमरेश को अथाह प्यार करती थी. उस पर भरोसा करना ही पड़ा. जौब करने का इरादा छोड़ कर उस से शादी कर ली. अमरेश के परिवार में मातापिता के अलावा एक बहन और 2 भाई थे. विवाह के बाद अमरेश उसे कोलकाता ले आया. पार्कस्ट्रीट में उस ने किराए पर छोटा सा फ्लैट ले रखा था.

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अमरेश उसे बहुत प्यार करता था. उस की छोटीछोटी जरूरत पर भी ध्यान देता था. छुट्टियों में किचन में उस का सहयोग भी करता था. प्यार करने वाला पति पा कर मिताली जिंदगी से नाज कर उठी थी. 3 वर्ष कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. दोनों ने उस का नाम सुमित रखा था.

मिताली एक बच्चे की मां थी. बावजूद इस के उस का प्यार पहले जैसा अटल और गहरा था. अमरेश उसे टूट कर चाहता था, ठीक उसी तरह जिस तरह वह उसे बेहिसाब प्यार करती थी. सपने में भी उस से अलग होने की कल्पना नहीं करती थी. वह सोया हो या जाग रहा हो, हमेशा उस के चेहरे को देखा करती थी. मोहब्बत से भरपूर एक सुंदर चेहरा. उसी चेहरे में उसे अपना भविष्य नजर आता था. यह दुनिया नजर आती थी. बच्चे नजर आते थे. हर तरफ खुशी नजर आती थी.

3 वर्षों बाद अमरेश से कुछ दिनों के लिए अलग होने की बात हुई तो उस का दिल बैठ सा गया. यह सोच कर वह चिंता में पड़ गई कि उस के बिना कैसे रहेगी? हुआ यों कि एक दिन अमरेश ने औफिस से आते ही कहा, ‘आज मेरा सपना पूरा हो गया.’

‘कौन सा सपना?’

‘दुबई जा कर ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. इस के लिए 2 साल से प्रयास कर रहा था. आज सफल हो गया. वहां एक बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. 10 दिनों बाद चला जाऊंगा. कुछ महीने के बाद तुम्हें तथा सुमित को भी वहां बुला लूंगा.’

जहां इस बात की खुशी हुई कि अमरेश का सपना पूरा होने जा रहा था, वहीं उस से अलग रहने की कल्पना से दुखी हो गई थी मिताली. शादी के बाद कभी भी वह उस से अलग नहीं हुई थी. दुबई जाने से रोक नहीं सकती थी, क्योंकि वहां जा कर ढेर सारा रुपया कमाना उस का सपना था. सो, उस ने अपने दिल को समझा लिया.

दुबई से अमरेश रोज फोन करता था. कहता था कि उस के और सुमित के बिना उस का मन नहीं लग रहा है. जल्दी ही उन दोनों को बुला लेगा. कोलकाता में उसे 20 हजार रुपए मिलते थे, दुबई से वह 50 हजार रुपए भेजने लगा.

अपने समय पर मिताली पहले से अधिक इतराने लगी थी. उसे अमरेश के हाथों में अपना और सुमित का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था. एक वर्ष बीत गया. इस बीच अमरेश ने उन्हें दुबई नहीं बुलाया. बराबर कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया करता था.

एक दिन अचानक कोलकाता आ कर सरप्राइज दिया. बताया कि 15 दिन की छुट्टी पर वह इंडिया आया है.

उस ने कहा, ‘अब तक दुबई इसलिए नहीं बुलाया कि वहां अकेले रहना पड़ता. बात यह है कि कंपनी के काम से मुझे बराबर एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता है. कभीकभी तो घर पर 2 महीने बाद लौटता हूं.

‘ऐसे में अकेली औरत देख कर मनचले तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते थे. मैं चाहता हूं कि सुमित के साथ तुम कोलकाता में ही रहो और अच्छी तरह उस की परवरिश करो.’ वह चुप रही. कुछ भी कहते नहीं बना.

15 दिनों बाद अमरेश दुबई लौट गया. इतने दिनों में ही उस ने पूरे सालभर का प्यार दे दिया था. मिताली उस का अथाह प्यार पा कर गदगद हो गई थी. पार्कस्ट्रीट में ही अमरेश ने उस के नाम फ्लैट खरीद दिया था. अगले 3 वर्षों तक सबकुछ आराम से चला. अमरेश वर्ष में एक बार 10 या 15 दिनों के लिए आता था. उसे अपने प्यार से नहला कर दुबई लौट जाता था.

कालांतर में वह यह चाहने लगी थी कि दुबई की नौकरी छोड़ कर अमरेश कोलकाता में उन के साथ रहे और बिजनैस करे. तीसरे वर्ष अमरेश दुबई से आया तो उस ने उस से अपने दिल की बात कह दी. वह नहीं माना. वह कम से कम 10-15 वर्षों तक वहीं रहना चाहता था.

फिर तो चाह कर भी वह अमरेश को कुछ समझाबुझा नहीं सकी. फायदा कुछ होने वाला नहीं था. उस पर दुबई में अकेले ही रहने का जनून सवार था. उस के दुबई लौट जाने के 2 महीने बाद ही स्वाति का फोन आया था और अब वह मुंबई में थी.

स्वाति की शादी के बाद मोबाइल ठीक करा लिया तो अमरेश का फोन आ गया, ‘‘2 दिनों से परेशान हूं. तुम्हारा मोबाइल स्विचऔफ बता रहा था. बात क्या है?’’

उस ने मुंबई आने की बात अमरेश से छिपा ली. उस से कहा कि एक सहेली की शादी में दिल्ली आई हूं.

2 दिनों बाद लौट जाऊंगी.

अमरेश से हमेशा जिस तरह बात करती थी, उसी तरह से बात की. उसे यह संदेह नहीं होने दिया कि उसे उस की बेवफाई का पता चल गया है. अमरेश ने उस के साथ बेवफाई क्यों की? दुबई में नौकरी करने को बता कर दूसरी शादी कर मुंबई में क्यों रह रहा था? आखिर उस की क्या गलती थी? ये सारी बातें जानने के लिए उसे सारिका से मिलना जरूरी था.

स्वाति ससुराल चली गई थी. उस की मां से बहाना बना कर और सुमित को उन के हवाले कर चौधरी साहब की बिल्डिंग पर दोपहर में गई. उसे अनुमान था कि उस समय अमरेश घर पर नहीं रहता होगा. गार्ड से बात करने पर इस बात की पुष्टि भी हो गई. अमरेश उस समय औफिस में रहता था. गार्ड को उस ने अपना परिचय जर्नलिस्ट के रूप में दिया. कहा, ‘‘अमरेश सर ने सारिका का इंटरव्यू लेने के लिए बुलाया था.’’

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गार्ड ने इंटरकौम द्वारा सारिका से बात की. उस की भी बात करवाई. उस के बाद उसे अंदर जाने की इजाजत मिल गई. अंदर गई तो सारिका ने उस का स्वागत किया. अपना परिचय देते हुए उसे सोफे पर बैठाया. बगैर समय गंवाए उस ने कहा, ‘‘अमरेश सर का कहना है कि उन की जिंदगी में यदि आप नहीं आतीं तो वे ऊंचाई के मुकाम पर नहीं पहुंच पाते. बताइए कि अमरेश सर से आप की शादी कब और कैसे हुई?’’

नौकर कोल्डड्रिंक ले आया. कोल्डड्रिंक पीते हुए जैसेजैसे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे अमरेश से शादी करने की जानकारी सारिका देती गई. सारिका अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. मुंबई में ही उस ने ग्रेजुएशन की थी. पिता उस की शादी ऐसे लड़के से करना चाहते थे जो अमीर खानदान से हो और घरजमाई बन कर उन का बिजनैस संभाल सके.

सारिका सांवली थी. नाकनक्श भी अच्छे नहीं थे. कद भी छोटा था. शायद इसीलिए अमीर खानदान का कोई युवक चौधरी साहब का घरजमाई बनने के लिए तैयार नहीं था. गरीब युवकों में से कई सारिका से शादी करना चाहते थे, मगर चौधरी गरीब को पसंद नहीं करते थे. सारिका के ग्रेजुएशन करने के बाद चौधरी साहब ने उस की पढ़ाई छुड़वा दी थी और उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी थी. 3 साल बीत जाने के बाद भी मनपसंद वर नहीं मिला. उस के बाद सारिका की जिंदगी में अचानक अमरेश आ गया. हुआ यों कि सारिका मातापिता के साथ एक रिश्तेदार की शादी में 3 साल पहले कोलकाता गईर् थी. समारोह में अमरेश से उस की मुलाकात हुई थी.

अमरेश जिस कंपनी में काम करता था, उस के मैनेजिंग डायरैक्टर की बेटी की शादी थी. सारे स्टाफ को बुलाया गया था. पार्टी में अमरेश सारिका के आगेपीछे घूमने लगा तो मौका देख कर सारिका ने उस से पूछा, ‘आप मेरे आगेपीछे क्यों घूम रहे हैं, मुझ से चाहते क्या हैं?’

अमरेश ने बगैर किसी संकोच के कह दिया, ‘पहली नजर में ही मुझे आप से प्यार हो गया है. आप से शादी करना चाहता हूं.’

सारिका को अमरेश बड़ा दिलचस्प लगा. उस का व्यक्तित्व उस के दिल को छू गया. मुसकरा कर बोली, ‘आप ने मुझ में ऐसा क्या देखा कि मेरे दीवाने हो गए?’

‘आप बहुत सुंदर हैं. आप की सुंदरता मेरे दिल में उतर गई है. जब तक आप से शादी नहीं होगी, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’

‘मैं गोरी नहीं, सांवली हूं, फिर सुंदर कैसे हो सकती हूं. आप झूठ बोल रहे हैं?’

‘मैं सच कह रहा हूं. सांवली होते हुए भी आप इतनी सुंदर हैं कि गोरी से गोरी लड़की भी सुंदरता में आप के सामने घुटने टेक देगी.’

अमरेश से सारिका प्रभावित हो गई. उस से उस की सारी जानकारी लेने के बाद उसे अपना परिचय दिया. फिर कहा, ‘घर जा कर मम्मीपापा से बात करूंगी. पापा तो नहीं चाहेंगे कि किसी गरीब लड़के से मेरी शादी हो. मैं आप से शादी करने की पूरी कोशिश करूंगी. दरअसल, मुझे भी आप से पहली नजर में ही प्यार हो गया है.’

अमरेश ने सारिका को बताया था कि वह कुंआरा है. दुनिया में उस का कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के मातापिता का देहांत हो गया था. मामा ने परवरिश की, उन्होंने ही पढ़ायालिखाया. मामा का अचानक देहांत हो गया तो उन के बेटों ने उसे घर से निकाल दिया. ऐसे में उस के एक दोस्त प्रभात ने उसे सहारा दिया. उस की बदौलत ही उसे नौकरी मिली. वह उस के साथ गोल पार्क में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है.

घर जा कर सारिका ने मम्मीपापा को अमरेश के बारे में बताया तो दोनों ने शादी से साफ मना कर दिया. सारिका अमरेश से हर हाल में विवाह करना चाहती थी. इसलिए उस ने घर में बवाल कर दिया. आत्महत्या करने की धमकी दी तो चौधरी साहब को उस की बात मान लेनी पड़ी. कोलकाता जा कर अमरेश से मिलने के 10 दिनों बाद चौधरी साहब ने सारिका की शादी अमरेश से कर दी. अमरेश अच्छा पति साबित हुआ. सारिका को कभी किसी तरह का कष्ट नहीं दिया. चौधरी साहब का बिजनैस भी संभाल लिया. वर्तमान में सारिका

2 महीने से प्रेग्नैंट थी. अमरेश की सचाई जान कर मिताली के दिमाग में जैसे हथौड़े चलने लगे थे. मन में आया कि इसी पल सबकुछ सारिका को बता दे. धोखेबाज अमरेश की कलई खोल कर रख दे. पर ऐसा न कर सकी. जबान तालू से चिपक गई थी. लगा, जैसे ही सारिका को अमरेश की सचाई बताऊंगी उस की जिंदगी में बहार के बाद पतझड़ वाली स्थिति आ जाएगी. न जाने क्यों वह उसे दुख नहीं देना चाहती थी.

वहां रुकना उस के लिए ठीक नहीं था. ‘‘जल्दी ही इंटरव्यू प्रकाशित होगा,’’ कह कर चली आई. तत्काल कोई फैसला लेना आसान नहीं था. अपने साथसाथ सुमित की जिंदगी का भी सवाल था. इसलिए चुपचाप कोलकाता लौट आई. वह प्रभात को जानती थी. वह अमरेश का दोस्त था. अमरेश के साथ उस के घर 3-4 बार जा चुकी थी. अमरेश की उपस्थिति में वह भी कई एक बार घर आ चुका था. कोलकाता में जिस कंपनी में अमरेश जौब करता था, प्रभात भी उसी कंपनी में था.

अमरेश से शादी किए हुए एक वर्ष हुआ था तब की बात है, एक दिन बातोंबातों में प्रभात ने बताया था, ‘अमरेश आप को बहुत प्यार करता है. इसीलिए उस ने आप से शादी की, नहीं तो वह अपनी ख्वाहिश पूरी करता.’

‘कैसी ख्वाहिश?’ उत्सुकतावश पूछ लिया था मैं ने.

‘वह ऐशोआराम की जिंदगी चाहता था. बेहिसाब धनदौलत का मालिक बनना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. मौका नहीं मिला तो 20 हजार रुपए महीने की नौकरी कर आप से शादी कर ली.

‘आप से शादी करने के बाद भी उस ने हिम्मत नहीं हारी है. वह हर हाल में अथाह दौलत का मालिक बनना चाहता है. इसलिए अब भी मौके की तलाश कर रहा है. जिस दिन मौका उस के हाथ आएगा, अंजाम की परवा किए बिना अवसर को हथिया लेगा.’

प्रभात ने जिस अवसर की बात की थी, उस समय समझ नहीं पाई थी. अब सबकुछ समझ गई थी. वह किसी अमीर लड़की से शादी कर अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता था. मामला शायद ऐसा था, कोलकाता की पार्टी में अमरेश को किसी सोर्स से सारिका की जानकारी मिली होगी. उस के बाद अपनी मंजिल पाने के लिए चिकनीचुपड़ी बातों से सारिका का दिल जीत कर उस से शादी की और मिताली से दुबई जाने की बात कह कर वह सारिका के साथ रहने लगा था.

इस में कोई शक नहीं था कि उस के प्रति अमरेश का प्यार मात्र छलावा था. मिताली दोराहे पर थी. फैसला लेना आसान नहीं था. तलाक लेने की स्थिति में उस की जिंदगी में तो बदलाव आता ही, सुमित की जिंदगी भी एकदम से बदल जाती. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, क्या न करे. इसी उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए. इस बीच फोन पर अमरेश से बिलकुल सामान्य तरीके से बात की. उसे किसी तरह का संदेह नहीं होने दिया. 10 दिनों बाद की बात है. एक दिन शाम के 6 बजे सुमित को पढ़ा रही थी कि डोरबैल बज उठी. जा कर दरवाजा खोला, तो अमरेश था. वह जब भी आता था बगैर सूचना दिए ही आता था. 10-15 दिनों के लिए मुंबई से बाहर जाने के लिए उसे सारिका से कुछ अच्छा बहाना भी तो बनाना पड़ता होगा. सटीक बहाने के लिए उसे समय की प्रतीक्षा करनी होती होगी. इसीलिए आने की पूर्व सूचना नहीं दे पाता होगा.

अमरेश को किसी तरह का शक न हो, इसलिए सदैव की तरह वह उस से लिपट गई और उस का स्वागत किया. फिर उसे अंदर ले गई. आवाज सुन कर सुमित भी दौड़ कर आ गया. अमरेश के चेहरे पर सदैव की तरह खुशनुमा भाव था. जरा भी नहीं लगा कि वह दोहरी जिंदगी जी रहा है. हर बार की तरह इस बार भी उस ने मिताली पर अपना प्यार बरसाने में कोई कमी नहीं की. उस के मन में कई बार आया कि उस की बेवफाई का राज खोल दे. कह दे कि प्यार का नाटक बंद कर दो. पर कह नहीं  सकी. 10 दिनों बाद वह चला गया. प्रति महीना 50 हजार रुपए तो भेजता ही था. इस बार जाते समय उस ने 5 लाख रुपए यह कह कर दिए कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और सुमित की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देना.

सदा अन्याय का मुकाबला करो, अपने हक के लिए सदा लड़ो, समाज में पनपती बुराइयों पर अंकुश लगाओ. यह सब स्कूल और कालेज में पढ़ाया गया था. मिताली ने सीखा भी था. पर जिंदगी की पाठशाला में तो कुछ और ही देखने को मिल रहा था. अमरेश के प्रति जबान खोलती तो कई जिंदगियां बरबाद हो जातीं.  मातापिता का कोई सहारा न था क्योंकि उन्होंने एक तरह से साफ कह दिया, अपनी जिंदगी खुद भुगतो.

इसलिए अमरेश के जाने के बाद उस ने फैसला किया कि जब तक उस का अभिनय सफलतापूर्वक चलता रहेगा, तब तक चुपचाप सहती रहेगी, ठीक उसी तरह जिस तरह उस की जैसी हजारों महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं. क्या उस का फैसला सही था? अगर वह हल्ला मचाती तो सारिका भी टूटती, सुमित भी टूटता, अमरेश भी बेकार होता और वह खुद अदालतों के चक्करों में पिस जाती. सारिका या वह कौन असली पत्नी है, कानूनी है, यह तो अभी नहीं पता, पर इस बोझ को ले कर चलना ही ठीक है.

ऐसा भी होता है दिसंबर की छुट्टियों में हम ने घूमने का प्रोग्राम बनाया. बच्चों की भी छुट्टियां थीं सो, दार्जिलिंग जाने का प्रोग्राम बन गया. दिल्ली से सिलीगुड़ी की सीधी ट्रेन थी. हमारी आरक्षित सीट थी एसी कोच में. यह आराम था क्योंकि लंबी दूरी का सफर था. दूसरे दिन रास्ते में पटना स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो कुछ ठेलेवाले दहीबड़े की दोना प्लेट ले कर आए और ‘10 के 2, 10 के 2,’ चिल्लाते हुए बेचने लगे. एक दोना प्लेट में 2 बड़े व उस में दहीचटनी आदि मसाला डाल रखा था, देखने में अच्छे भी लग रहे थे और हम लोगों का भी मन हुआ कि खा कर देखा जाए. दहीबड़े स्वाद में भी ठीक थे.

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हम लोग 5 थे. सो उस को हिसाब कर 25 रुपए दिए तो बोला, ‘‘50 रुपए दीजिए. हम ने उस से कहा, ‘‘अभी तो तुम चिल्ला कर बोल रहे थे 10 के 2 बड़े.’’ तो वह बोला, ‘‘ठीक ही बोला, देखिए प्लेट में 2 बड़े ही हैं.’’ दरअसल एक पलेट में 2 बड़ों का बोल रहा था. हम ने सोचा कि 2 प्लेट का बोल रहा है. इस से मुझे और मेरी बेटी को तो खासी परेशानी नहीं हुई लेकिन मेरे दामाद थोड़े चिढ़ गए. फिर भी हम ने उसे 50 रुपए दिए. मैं और मेरी बेटी हंसी नहीं रोक पाए, तो दामाद बोले, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है?’’ हम ने हंसते हुए कहा, ‘‘ऐसा ही होता है.’’  काशी चौहान

मेरे पति गोंडा से मनकापुर आने के लिए पैसेंजर ट्रेन पर चढ़े. आगे की सीट पर कुछ महिलाएं लेटी हुई थीं. उन्होंने एक महिला से कहा, ‘‘मैडमजी, उठ कर बैठ जाइए तो मैं भी बैठ लूं.’’ वह महिला उठ कर बैठ गई.

उस महिला के साथ एक बुजुर्ग महिला भी थीं. वे जोरजोर से बोलने लगीं, ‘‘ये देखो, ये मेरी बहू को मैडमजी बोल रहे हैं, बहनजी कह सकते थे, माताजी कह सकते थे.’’

मेरे पति दुविधा में थे कि मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि ये चिल्ला रही हैं. पास बैठे लोग यह सब देख रहे थे. उन में से एक व्यक्ति आया और उस बुजुर्ग महिला से बोला, ‘‘माताजी, मैडम का अर्थ क्या होता है?’’ इस पर वे महिला बोलीं, ‘‘मैडम माने, मेहरारू होत है.’’ तब, उन्हें मैडम का अर्थ बताया गया, तो वे शांत हुईं.

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November 29, 2019 at 10:11AM