Friday 29 November 2019

दूसरी चोट

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

ये भी पढ़ें- चाहत की शिकार

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

ये भी पढ़ें- हैप्पीनैस हार्मोन

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

घटना अनचाही  शादी या मौत मदन कोथुनियां अजमेर, राजस्थान के किशनगंज इलाके के कलक्टर महेंद्र कुमार से जिस डाक्टर स्निग्धा की शादी होनी थी, वह तो हो न सकी. पर शादी के दिन रविवार, 9 दिसंबर, 2018 को एक अपार्टमैंट्स की छत से कूद कर जान देने वाली स्निग्धा कभी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी और से हो.

रिटायर्ड आईजी उमाशंकर सुधांशु भी नहीं चाहते थे कि उन की बेटी डाक्टर स्निग्धा अपने मनपसंद लड़के से शादी करे, चाहे उस नौजवान में कितनी ही काबिलीयत क्यों न हो.

अगर कोई लड़का बिरादरी से बाहर का हो तो भारत के ज्यादातर मांबाप की तरह उमाशंकर भी कभी नहीं चाहते थे कि उन की लड़की किसी दूसरी जाति के लड़के से शादी करे, चाहे लड़का बड़ा ही अफसर क्यों न हो.

अगर उसी की जाति का कोई साधारण लड़का भी होता तो किसी भी जाति के उमाशंकर जैसे बाप कभी नहीं चाहेंगे कि उन के लैवल के परिवार की लड़की उस लड़के से शादी करे.

डाक्टर स्निग्धा ने अपने पिता उमाशंकर सुधांशु पर किसी भी तरह से कोई जोर नहीं चलते हुए और अपने प्यार को नाकाम होता देख एक बहुमंजिला इमारत से कूद कर खुदकुशी कर ली, जबकि उस के रिटायर्ड आईजी बाप ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि उन की परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी.

मगर हकीकत में यह गम उन्हें जिंदगीभर इस उलझन में डाले रहेगा कि काश, वे अपनी बेटी की बात मान लेते. या फिर ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसी बात को ज्यादा तवज्जुह नहीं देते, क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि लोग तो फिर भी बोल रहे हैं. कोई पक्ष में तो कोई विपक्ष में.

2 प्रेमियों के बीच मांबाप, अड़ोसीपड़ोसी और जाति की मिट्टी से बनी दीवारें आप ने बचपन से ले कर आज तक न जाने कितनी देखी होंगी. किसी प्रेमीप्रेमिका के नाकहोंठ काटे, अनेक नौजवानों की हत्या की गई. अनेक जोड़ों ने खुदकुशी की. कहीं तेजाब फेंका गया, कहीं जलाया गया और अनेक लड़कियों की जबरन कहीं दूसरी जगह शादी कर दी गई. एक ही जाति के प्रेमीप्रेमिकाओं को भी अपने मांबाप की जिद का शिकार होना पड़ा.

लड़के या लड़की के प्यार के बारे में अचानक पिता को जब मालूम होता है तो पिता और बेटी के बीच ममता और प्रेमीप्रेमिका के प्यार के बीच लड़ाई होने लगती है.

पिताबेटी और प्रेमीप्रेमिका दोनों के बीच लगाव होना भी कुदरती स्वभाव के तहत आता है, पर बेटी का एक प्रेमिका रूप में बदलना लगाव व सहवास करने की वह पहली सीढ़ी है जहां दुनिया

की कोई भी मादा अपनी पसंद के नर का चुनाव करती है और उसी से मिलन करते हुए अपने बच्चे पैदा करना चाहती है.

इस दौरान दोनों किसी का विरोध सहन नहीं कर पाते हैं. दोनों के लगाव की यह वह हद है जहां मौत और जिंदगी में कोई फर्क नहीं रह जाता है. किसी एक के बिछुड़ने पर दूसरे के पागल हो जाने का डर भी बढ़ जाता है. डाक्टर स्निग्धा ने तो अपनी जान ही दे दी.

ये भी पढ़ें- नासमझी की आंधी

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इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

ये भी पढ़ें- चाहत की शिकार

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

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पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

घटना अनचाही  शादी या मौत मदन कोथुनियां अजमेर, राजस्थान के किशनगंज इलाके के कलक्टर महेंद्र कुमार से जिस डाक्टर स्निग्धा की शादी होनी थी, वह तो हो न सकी. पर शादी के दिन रविवार, 9 दिसंबर, 2018 को एक अपार्टमैंट्स की छत से कूद कर जान देने वाली स्निग्धा कभी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी और से हो.

रिटायर्ड आईजी उमाशंकर सुधांशु भी नहीं चाहते थे कि उन की बेटी डाक्टर स्निग्धा अपने मनपसंद लड़के से शादी करे, चाहे उस नौजवान में कितनी ही काबिलीयत क्यों न हो.

अगर कोई लड़का बिरादरी से बाहर का हो तो भारत के ज्यादातर मांबाप की तरह उमाशंकर भी कभी नहीं चाहते थे कि उन की लड़की किसी दूसरी जाति के लड़के से शादी करे, चाहे लड़का बड़ा ही अफसर क्यों न हो.

अगर उसी की जाति का कोई साधारण लड़का भी होता तो किसी भी जाति के उमाशंकर जैसे बाप कभी नहीं चाहेंगे कि उन के लैवल के परिवार की लड़की उस लड़के से शादी करे.

डाक्टर स्निग्धा ने अपने पिता उमाशंकर सुधांशु पर किसी भी तरह से कोई जोर नहीं चलते हुए और अपने प्यार को नाकाम होता देख एक बहुमंजिला इमारत से कूद कर खुदकुशी कर ली, जबकि उस के रिटायर्ड आईजी बाप ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि उन की परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी.

मगर हकीकत में यह गम उन्हें जिंदगीभर इस उलझन में डाले रहेगा कि काश, वे अपनी बेटी की बात मान लेते. या फिर ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसी बात को ज्यादा तवज्जुह नहीं देते, क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि लोग तो फिर भी बोल रहे हैं. कोई पक्ष में तो कोई विपक्ष में.

2 प्रेमियों के बीच मांबाप, अड़ोसीपड़ोसी और जाति की मिट्टी से बनी दीवारें आप ने बचपन से ले कर आज तक न जाने कितनी देखी होंगी. किसी प्रेमीप्रेमिका के नाकहोंठ काटे, अनेक नौजवानों की हत्या की गई. अनेक जोड़ों ने खुदकुशी की. कहीं तेजाब फेंका गया, कहीं जलाया गया और अनेक लड़कियों की जबरन कहीं दूसरी जगह शादी कर दी गई. एक ही जाति के प्रेमीप्रेमिकाओं को भी अपने मांबाप की जिद का शिकार होना पड़ा.

लड़के या लड़की के प्यार के बारे में अचानक पिता को जब मालूम होता है तो पिता और बेटी के बीच ममता और प्रेमीप्रेमिका के प्यार के बीच लड़ाई होने लगती है.

पिताबेटी और प्रेमीप्रेमिका दोनों के बीच लगाव होना भी कुदरती स्वभाव के तहत आता है, पर बेटी का एक प्रेमिका रूप में बदलना लगाव व सहवास करने की वह पहली सीढ़ी है जहां दुनिया

की कोई भी मादा अपनी पसंद के नर का चुनाव करती है और उसी से मिलन करते हुए अपने बच्चे पैदा करना चाहती है.

इस दौरान दोनों किसी का विरोध सहन नहीं कर पाते हैं. दोनों के लगाव की यह वह हद है जहां मौत और जिंदगी में कोई फर्क नहीं रह जाता है. किसी एक के बिछुड़ने पर दूसरे के पागल हो जाने का डर भी बढ़ जाता है. डाक्टर स्निग्धा ने तो अपनी जान ही दे दी.

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November 30, 2019 at 10:12AM

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