Wednesday 31 March 2021

Sarkari Naukri, UPPSC Recruitment 2021: UP में RO-ARO के 337 पदों पर ...

UPPSC RO/ARO Recruitment 2021: उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी पाने का सुनहरा अवसर है. उत्तर ...

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UPPSC RO/ARO Recruitment 2021: उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी पाने का सुनहरा अवसर है. उत्तर ...

RANCHI NEWS: सीसीएल में नौकरी दिलाने के नाम पर ठग लिये ...

उसने राजू कुमार को कहा कि वह उसके भाई अमित कुमार की नौकरी सीसीएल में लगवा देगा.

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उसने राजू कुमार को कहा कि वह उसके भाई अमित कुमार की नौकरी सीसीएल में लगवा देगा.

टैरो टिप्स 1 अप्रैल 2021: सिंह-मीन को नौकरी-कारोबार ...

टैरो टिप्स 1 अप्रैल 2021: सिंह-मीन को नौकरी-कारोबार में लाभ, जानें मेष से मीन राशि ...

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टैरो टिप्स 1 अप्रैल 2021: सिंह-मीन को नौकरी-कारोबार में लाभ, जानें मेष से मीन राशि ...

यूपी पुलिस सब-इंस्पेक्टर भर्ती : 9534 पदों के लिए आज से ...

यह नौकरी प्राप्त करने के लिए जरूरत है तो खुद को तैयार करने के दृढ़ निश्चय की।

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यह नौकरी प्राप्त करने के लिए जरूरत है तो खुद को तैयार करने के दृढ़ निश्चय की।

सरकारी नौकरी: BHEL ने सुपरवाइजर ट्रेनी के 40 पदों पर ...

सरकारी नौकरी: BHEL ने सुपरवाइजर ट्रेनी के 40 पदों पर भर्ती के लिए मांगे आवेदन, ...

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सरकारी नौकरी: BHEL ने सुपरवाइजर ट्रेनी के 40 पदों पर भर्ती के लिए मांगे आवेदन, ...

ऑनलाइन नौकरी के बारे में शिकायत करने के बाद अमेरिकी ...

ऑनलाइन नौकरी के बारे में शिकायत करने के बाद अमेरिकी मध्य पूर्व में जेल गया. by.

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ऑनलाइन नौकरी के बारे में शिकायत करने के बाद अमेरिकी मध्य पूर्व में जेल गया. by.

केंद्रीय विद्यालय मे शिक्षिका की नौकरी लगवाने के ...

वह लीनाबेन को वहां नौकरी लगवा देगा।जिसके लिए उसे 15 लाख रुपये देने पड़ेंगे। इस ...

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वह लीनाबेन को वहां नौकरी लगवा देगा।जिसके लिए उसे 15 लाख रुपये देने पड़ेंगे। इस ...

IB कर्मचारी अंकित शर्मा के भाई को नौकरी देने के ...

सीएम अरविंद केजरीवाल ने परिवार से मुलाकात के दौरान एक सदस्य को सरकारी नौकरी का ...

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सीएम अरविंद केजरीवाल ने परिवार से मुलाकात के दौरान एक सदस्य को सरकारी नौकरी का ...

गिग इकोनॉमी से बढ़ेगा रोजगार, 90 मिलियन लोगों को ...

... के जरिए आने वाले 3 से 4 सालों में भारत में 90 मिलियन नौकरी निकल सकेंगी और इसका.

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... के जरिए आने वाले 3 से 4 सालों में भारत में 90 मिलियन नौकरी निकल सकेंगी और इसका.

पिथौरागढ़ के दो शहीद आश्रितों को मिली सरकारी नौकरी ...

सरकार ने पिथौरागढ़ की दो महिलाओं को शहीदों के आश्रितों को सरकारी नौकरी देने की ...

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सरकार ने पिथौरागढ़ की दो महिलाओं को शहीदों के आश्रितों को सरकारी नौकरी देने की ...

नौकरी नहीं देनी थी तो क्यों आयोजित की थी परीक्षा

उन्होंने कहा कि जब इन नौजवानों को नौकरी नहीं देनी थी, तो परीक्षा ही क्यों ...

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उन्होंने कहा कि जब इन नौजवानों को नौकरी नहीं देनी थी, तो परीक्षा ही क्यों ...

आर्थिक राशिफल 01 अप्रैल 2021: मिथुन-तुला के बढ़ेंगे ...

वहीं नौकरी से जुड़ी तमाम समस्याएं आज के दिन आपको घेर सकती हैं. सिंह राशि: इस समय ...

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वहीं नौकरी से जुड़ी तमाम समस्याएं आज के दिन आपको घेर सकती हैं. सिंह राशि: इस समय ...

आज का मकर राशिफल 1 अप्रैल : नौकरी संबंध‍ित द‍िक्‍कतें ...

आज मकर राशि के उपाय : अगर नौकरी म‍िलने में द‍िक्‍कत हो रही हो तो महीने के पहले सोमवार ...

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आज मकर राशि के उपाय : अगर नौकरी म‍िलने में द‍िक्‍कत हो रही हो तो महीने के पहले सोमवार ...

Horoscope 01 April 2021 : गुरुवार के दिन बुध का राशि परिवर्तन ...

नौकरी से जुड़े लोगों की अधिकारियों से अनबन हो सकती है, इसलिए वाणी पर नियंत्रण ...

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नौकरी से जुड़े लोगों की अधिकारियों से अनबन हो सकती है, इसलिए वाणी पर नियंत्रण ...

गैर सरकारी नौकरी

Tag Archives: गैर सरकारी नौकरी. गैर सरकारी नौकरी. Latest ...

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फर्जी अभिलेखों पर नौकरी कर रही शिक्षिका की सेवा ...

वाराणसी। कस्तूरबा विद्यालयों में फर्जी प्रमाण पत्रों पर नौकरी करने वाली ...

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वाराणसी। कस्तूरबा विद्यालयों में फर्जी प्रमाण पत्रों पर नौकरी करने वाली ...

खेत में फंदे से लटका मिला युवक का शव

... गांव निवासी पंकज कुशवाहा (23) पुत्र राममोहन लखनऊ में प्राइवेट नौकरी करता था।

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... गांव निवासी पंकज कुशवाहा (23) पुत्र राममोहन लखनऊ में प्राइवेट नौकरी करता था।

IIT Hyderabad में रिसर्च सहायक के पद पर भर्ती - नौकरी नामा

अनुभवी उम्मीदवारों के पास सरकारी नौकरी पाने का सुनहरा अवसर है। अनुभवी ...

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अनुभवी उम्मीदवारों के पास सरकारी नौकरी पाने का सुनहरा अवसर है। अनुभवी ...

IB कर्मचारी अंकित शर्मा के भाई को नौकरी देने के ...

सीएम अरविंद केजरीवाल ने परिवार से मुलाकात के दौरान एक सदस्य को सरकारी नौकरी का ...

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सीएम अरविंद केजरीवाल ने परिवार से मुलाकात के दौरान एक सदस्य को सरकारी नौकरी का ...

UP पंचायत चुनावः सरकारी नौकरी करने वाले पति-पत्नी ...

सरकारी नौकरी करने वाले पति-पत्नी में दोनों में से किसी एक की ही चुनाव में ...

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गिग इकोनॉमी से बढ़ेगा रोजगार, 90 मिलियन लोगों को ...

गिग अर्थव्यवस्था से भारत में गैर कृषि क्षेत्रों में 90 मिलियन नौकरी मिल सकेंगी.

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गिग अर्थव्यवस्था से भारत में गैर कृषि क्षेत्रों में 90 मिलियन नौकरी मिल सकेंगी.

युवा भारत - भर्तियां क्यों हो रहीं निरस्त, नौकरी के ...

भर्तियां क्यों हो रहीं निरस्त, नौकरी के सवाल पर सरकार और सिस्टम क्यों पस्त ?' |

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भर्तियां क्यों हो रहीं निरस्त, नौकरी के सवाल पर सरकार और सिस्टम क्यों पस्त ?' |

@VIDEO _ @Samar Singh _ जब नौकरी न मिले जवानी में कूद पड़ा ...

Watch @VIDEO _ @Samar Singh _ जब नौकरी न मिले जवानी में कूद पड़ा परधानी में @Kavita Ya_HIGH ...

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Tuesday 30 March 2021

यदि बनाना चाहते है सरकारी नौकरी को अपना भविष्य, तो ...

मगर सरकारी नौकरी के पाने लिए आपको कड़ी महनत और अपनी नींदों का करना पड़ेगा ...

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मगर सरकारी नौकरी के पाने लिए आपको कड़ी महनत और अपनी नींदों का करना पड़ेगा ...

Masik Rashifal: इन 7 राशियों की मुश्किलें बढ़ाने वाला है ...

इससे आपको नौकरी के मामलों में कुछ परेशानी उठानी पड़ सकती है. कार्य क्षेत्र में ...

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इससे आपको नौकरी के मामलों में कुछ परेशानी उठानी पड़ सकती है. कार्य क्षेत्र में ...

पुलिस विभाग में निकली नौकरी, साक्षात्कार के आधार पर ...

पुलिस विभाग में निकली नौकरी, साक्षात्कार के आधार पर होगा चयन, यहां से करें ...

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पुलिस विभाग में निकली नौकरी, साक्षात्कार के आधार पर होगा चयन, यहां से करें ...

Sarkari Naukri LIVE 2021 : एसएससी ने जारी किया सीपीओ सब ...

LIVE Sarkari Naukri 2021: सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे युवा ध्यान दें विभिन्न विभागों के ...

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आर्थिक राशिफल 31 मार्च 2021: मकर वाले आज ना करें धन ...

Arthik Rashifal Today 31 March 2021: मकर राशि में नौकरी और संचार से जुड़े जातकों के लिए समय ...

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Arthik Rashifal Today 31 March 2021: मकर राशि में नौकरी और संचार से जुड़े जातकों के लिए समय ...

मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाने वाले पूर्व डिप्टी SP का ...

... अंसारी पर पोटा लगाने वाले पूर्व डिप्टी SP का छलका दर्द- नौकरी गई, जेल जाना पड़ा.

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... अंसारी पर पोटा लगाने वाले पूर्व डिप्टी SP का छलका दर्द- नौकरी गई, जेल जाना पड़ा.

Bihar Crime: बेगूसराय में रेलकर्मी की हत्‍या का खुला राज ...

इस कांड में उसकी बहु ने ही अपने पति की नौकरी के लिए हत्‍या की साजिश रची थी। पुलिस ने ...

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इस कांड में उसकी बहु ने ही अपने पति की नौकरी के लिए हत्‍या की साजिश रची थी। पुलिस ने ...

सरकारी नौकरी का झांसा देकर कमाए लाखों रूपये, फिर ...

देश-विदेश : नौकरी सबको चाहिए और अगर बात सरकारी नौकरी की हो तो एक पोस्ट से लिए भी ...

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देश-विदेश : नौकरी सबको चाहिए और अगर बात सरकारी नौकरी की हो तो एक पोस्ट से लिए भी ...

सरकारी नौकरी: हिंदुस्तान पेट्रोलियम कोर्प लिमिटेड ...

सरकारी नौकरी: हिंदुस्तान पेट्रोलियम कोर्प लिमिटेड ने रेलवे के 200 पदों पर ...

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सरकारी नौकरी: हिंदुस्तान पेट्रोलियम कोर्प लिमिटेड ने रेलवे के 200 पदों पर ...

राशिफल 31 मार्च 2021 : आज नौकरी और व्यापार में मिलेंगे ...

राशिफल 31 मार्च 2021 : आज नौकरी और व्यापार में मिलेंगे इन राशियों को लाभ के अनेक ...

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राशिफल 31 मार्च 2021 : आज नौकरी और व्यापार में मिलेंगे इन राशियों को लाभ के अनेक ...

Short Story: गेट नंबर चार

लेखक- अनुराग चतुर्वेदी

अशोक सुबह उठ कर व्यायाम कर रहा था. सुबह उठने की उस की बचपन की आदत है. आज भी उसी क्रम मे लगा हुआ था. तब तक रीमा भी उठ कर आ गई और बोली, “चाय का इंतजार तो नहीं कर रहे हो?” “हां, वह तो स्वाभाविक है” अशोक बोल पड़ा.“तो जाओ दूध ले आओ, रात ही बोला था कि दूध खत्म हो गया है.”

“ओह, मैं तो भूल ही गया था. अभी लाया,” कहता हुआ अशोक अपना मास्क लगा कर चल दिया.

 

 

जब से कोरोना की महामारी आई है सोसायटी में बिना मास्क लगाये घूमने और निकलने की इजाजत नहीं है.

जैसे ही अशोक लिफ्ट से बाहर निकल कर सोसायटी में अंदर बने मार्केट की ओर चला तभी गेट नंबर चार के पास बैठे गार्ड के सामने खड़े सोसायटी के पदाधिकारियों को खरीखोटी सुनाते हुए देख अशोक के कदम रुक गए.

ये भी पढ़ें-अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का: भाग 3

किस बात पर वे लोग गार्ड को बातें सुना रहे थे यह जानने की थोड़ी उत्सुकता उसे जरुर हो रही थी, पर दूध लाने की जल्दी में ज्यादा समय न बर्बाद करते हुए अशोक दूध लेने चल दिया. दूध ले कर लौटते समय देखा तो वह गार्ड उस गेट से नदारद था.

अशोक ने चारो तरफ निगाह दौड़ाई तो उसे वह गार्ड जाता हुआ दिखाई दिया. लगभग दौड़ते हुए अशोक उस के पास पहुंच गया और पूछ ही लिया, “क्या कह रहे थे वे लोग आप से? अरे, भई बोलो तो सही …” अशोक ने दो बार कहा तो कुछ अस्फुट से शब्द गार्ड के मुंह से निकले जो अशोक को समझ नहीं आए, तो अशोक ने फिर पूछा, “भाई क्या हुआ?”

गार्ड की आंखों में आंसू थे जो आधी कहानी तो ऐसे ही कह रहे थे. फिर कुछ थोड़ा स्थिर हो कर वह बोला, “साहब ये नौकरी तो नौकर से भी बद्तर है. रात भर जाग कर पहरेदारी करो, फिर इन सब की चार बात सुनो.”

“हुआ क्या यह तो बताओ,” अशोक ने फिर पूछा तो वह कहने लगा, “सर जी, चार नंबर गेट के पास कुछ मजदूर परिवार रहते हैं. रोज उन के बच्चों को दूध के लिए बिलखता हुआ मुझ से  देखा नहीं जाता है तो रोज एक दूध का पैकेट और ब्रैड उन्हें अपने पैसों से खरीद कर देता हूं. शायद सीसीटीवी कैमरा में यही कई दिन से रिकौर्ड हो रहा होगा तो सिक्योरिटी वाले साहब तक बात पहुंच गई कि मैं सुबह इन सब से पैसे ले कर इन सब को दूध और ब्रैड बेच रहा हूं,” कहते कहते वह रोने लगा. “साहब इन गरीबो की कौन सुनेगा जो दिन भर एक ब्रेड के सहारे अपना दिन काटते हैं और बड़ी मुश्किलों से रात काट कर सुबह का इंतजार करते हैं कि मैं कब इन्हें दूध और ब्रैड दे दूं.”

ये भी पढ़ें-अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का: भाग 2

अब तक अशोक की आंखों में भी पानी भर चुका था पर गार्ड की बात अभी खत्म नहीं हुई थी. “साहब, आप ये लो पैसे और उन को दूध और ब्रैड दे आइए, उन के बच्चे इंतजार कर रहे होंगे.”

अशोक ने उस को कहा, “आप बिल्कुल परेशान न हों.  उन बच्चों को दूध और ब्रैड जरुर मिलेगी,” और अशोक घर जाने के बजाय गेट नंबर  चार की ओर चल दिया.

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लेखक- अनुराग चतुर्वेदी

अशोक सुबह उठ कर व्यायाम कर रहा था. सुबह उठने की उस की बचपन की आदत है. आज भी उसी क्रम मे लगा हुआ था. तब तक रीमा भी उठ कर आ गई और बोली, “चाय का इंतजार तो नहीं कर रहे हो?” “हां, वह तो स्वाभाविक है” अशोक बोल पड़ा.“तो जाओ दूध ले आओ, रात ही बोला था कि दूध खत्म हो गया है.”

“ओह, मैं तो भूल ही गया था. अभी लाया,” कहता हुआ अशोक अपना मास्क लगा कर चल दिया.

 

 

जब से कोरोना की महामारी आई है सोसायटी में बिना मास्क लगाये घूमने और निकलने की इजाजत नहीं है.

जैसे ही अशोक लिफ्ट से बाहर निकल कर सोसायटी में अंदर बने मार्केट की ओर चला तभी गेट नंबर चार के पास बैठे गार्ड के सामने खड़े सोसायटी के पदाधिकारियों को खरीखोटी सुनाते हुए देख अशोक के कदम रुक गए.

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किस बात पर वे लोग गार्ड को बातें सुना रहे थे यह जानने की थोड़ी उत्सुकता उसे जरुर हो रही थी, पर दूध लाने की जल्दी में ज्यादा समय न बर्बाद करते हुए अशोक दूध लेने चल दिया. दूध ले कर लौटते समय देखा तो वह गार्ड उस गेट से नदारद था.

अशोक ने चारो तरफ निगाह दौड़ाई तो उसे वह गार्ड जाता हुआ दिखाई दिया. लगभग दौड़ते हुए अशोक उस के पास पहुंच गया और पूछ ही लिया, “क्या कह रहे थे वे लोग आप से? अरे, भई बोलो तो सही …” अशोक ने दो बार कहा तो कुछ अस्फुट से शब्द गार्ड के मुंह से निकले जो अशोक को समझ नहीं आए, तो अशोक ने फिर पूछा, “भाई क्या हुआ?”

गार्ड की आंखों में आंसू थे जो आधी कहानी तो ऐसे ही कह रहे थे. फिर कुछ थोड़ा स्थिर हो कर वह बोला, “साहब ये नौकरी तो नौकर से भी बद्तर है. रात भर जाग कर पहरेदारी करो, फिर इन सब की चार बात सुनो.”

“हुआ क्या यह तो बताओ,” अशोक ने फिर पूछा तो वह कहने लगा, “सर जी, चार नंबर गेट के पास कुछ मजदूर परिवार रहते हैं. रोज उन के बच्चों को दूध के लिए बिलखता हुआ मुझ से  देखा नहीं जाता है तो रोज एक दूध का पैकेट और ब्रैड उन्हें अपने पैसों से खरीद कर देता हूं. शायद सीसीटीवी कैमरा में यही कई दिन से रिकौर्ड हो रहा होगा तो सिक्योरिटी वाले साहब तक बात पहुंच गई कि मैं सुबह इन सब से पैसे ले कर इन सब को दूध और ब्रैड बेच रहा हूं,” कहते कहते वह रोने लगा. “साहब इन गरीबो की कौन सुनेगा जो दिन भर एक ब्रेड के सहारे अपना दिन काटते हैं और बड़ी मुश्किलों से रात काट कर सुबह का इंतजार करते हैं कि मैं कब इन्हें दूध और ब्रैड दे दूं.”

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अब तक अशोक की आंखों में भी पानी भर चुका था पर गार्ड की बात अभी खत्म नहीं हुई थी. “साहब, आप ये लो पैसे और उन को दूध और ब्रैड दे आइए, उन के बच्चे इंतजार कर रहे होंगे.”

अशोक ने उस को कहा, “आप बिल्कुल परेशान न हों.  उन बच्चों को दूध और ब्रैड जरुर मिलेगी,” और अशोक घर जाने के बजाय गेट नंबर  चार की ओर चल दिया.

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March 31, 2021 at 10:00AM

लौकडाउन का शिकार: भाग 3

लेखकप्रो अलखदेव प्रसाद अचल

अब कर्मियों के सामने सब से बड़ा संकट खड़ा हो गया, क्योंकि भूखेप्यासे हजारों किलोमीटर की दूरियां पैदल तय करना मौत को आमंत्रण देने से कम नहीं लग रहा था.

सूरज इसी लौकडाउन में बुरी तरह फंस चुका था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं, क्या न करूं. कई वर्षों से सूरज जिस सरकार की भूरिभूरि प्रशंसा करता आ रहा था, अब वही सरकार उसे काफी बुरी लगने लगी थी. वह रहरह कर गालियां भी बकने लगा था. सोच रहा था कि जब खुद की लापरवाही की वजह से इतने दिनों में नहीं बिगड़ा था, तो 3-4 दिनों में क्या बिगड़ जाता? अगर बिगड़ ही जाता तो हम जैसे लोगों पर ध्यान देने की जवाबदेही तो उठानी चाहिए थी.

अब तो मोबाइल से घर पर बातें भी हो रही थीं, पर बातों से खुशियां पूरी तरह गायब थीं. जब सूरज ने देख लिया कि किसी भी सूरत में गुजरात में रह पाना संभव नहीं है, तो एक दिन पैदल ही घर के लिए निकल पड़ा, जबकि ऐसा भी नहीं था कि रास्ते में पैदल चलने वालों में सूरज सिर्फ अकेला था. उस की तरह सैकड़ों, हजारों लोग सड़कों पर उमड़े दिखाई पड़ रहे थे.

रास्ते में कहीं कोई सुविधा नहीं थी. अगर कहीं होता तो पुलिस वालों के डंडे का शिकार होना पड़ता. न रहने का ठिकाना, न खाने का ठिकाना. दिन में तेज धूप का सामना करना पड़ता, तो रात में ठंड का. धीरेधीरे शरीर का अंग जवाब देना शुरू कर दिया. अब तो घर से कभी बातें होतीं, तो कभी मोबाइल डिस्चार्ज होने की वजह से नहीं भी होतीं. फिर भी दम मारता, पैर घसीटता सूरज आगे बढ़ता चला जा रहा था. उसी बीच एक रात वह पूरी थकावट में सोया था कि उस की जेब से मोबाइल, कुछ नकदी और एटीएम कार्ड गायब हो गए.

अब सूरज को सामने मौत के सिवा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. शरीर पूरी तरह से जवाब दे चुका था. वैसे तो उस समय तक वह 3-4 दिनों में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था, पर अभी हजारों किलोमीटर की दूरी तय करना बाकी थी.

चलते चलते सूरज की तबीयत पूरी तरह खराब हो चुकी. सर्दी, खांसी, जुकाम का वह शिकार हो चुका. इसी बीच पुलिस वालों ने उसे गाड़ी में बैठाया और अस्पताल के इंसुलेशन वार्ड में भरती करा दिया.

इधर घर वालों की घबराहट काफी बढ़ती चली जा रही थी. लोगों की नींद हराम हो चुकी थी. इसी बीच 2 दिन के बाद घर पर फोन आया कि कोरोना की चपेट में आने की वजह से सूरज की मौत हो गई.

सुनते ही घर में जोरजोर से छाती पीट कर रोने की चीत्कार सुनाई पड़ने लगी. गांव से ले कर जेवार तक में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि सूरज कोरोना का शिकार हो गया. पर यह किस को पता कि सूरज कोरोना वायरस से नहीं, लौकडाउन का शिकार हो गया था.

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लेखकप्रो अलखदेव प्रसाद अचल

अब कर्मियों के सामने सब से बड़ा संकट खड़ा हो गया, क्योंकि भूखेप्यासे हजारों किलोमीटर की दूरियां पैदल तय करना मौत को आमंत्रण देने से कम नहीं लग रहा था.

सूरज इसी लौकडाउन में बुरी तरह फंस चुका था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं, क्या न करूं. कई वर्षों से सूरज जिस सरकार की भूरिभूरि प्रशंसा करता आ रहा था, अब वही सरकार उसे काफी बुरी लगने लगी थी. वह रहरह कर गालियां भी बकने लगा था. सोच रहा था कि जब खुद की लापरवाही की वजह से इतने दिनों में नहीं बिगड़ा था, तो 3-4 दिनों में क्या बिगड़ जाता? अगर बिगड़ ही जाता तो हम जैसे लोगों पर ध्यान देने की जवाबदेही तो उठानी चाहिए थी.

अब तो मोबाइल से घर पर बातें भी हो रही थीं, पर बातों से खुशियां पूरी तरह गायब थीं. जब सूरज ने देख लिया कि किसी भी सूरत में गुजरात में रह पाना संभव नहीं है, तो एक दिन पैदल ही घर के लिए निकल पड़ा, जबकि ऐसा भी नहीं था कि रास्ते में पैदल चलने वालों में सूरज सिर्फ अकेला था. उस की तरह सैकड़ों, हजारों लोग सड़कों पर उमड़े दिखाई पड़ रहे थे.

रास्ते में कहीं कोई सुविधा नहीं थी. अगर कहीं होता तो पुलिस वालों के डंडे का शिकार होना पड़ता. न रहने का ठिकाना, न खाने का ठिकाना. दिन में तेज धूप का सामना करना पड़ता, तो रात में ठंड का. धीरेधीरे शरीर का अंग जवाब देना शुरू कर दिया. अब तो घर से कभी बातें होतीं, तो कभी मोबाइल डिस्चार्ज होने की वजह से नहीं भी होतीं. फिर भी दम मारता, पैर घसीटता सूरज आगे बढ़ता चला जा रहा था. उसी बीच एक रात वह पूरी थकावट में सोया था कि उस की जेब से मोबाइल, कुछ नकदी और एटीएम कार्ड गायब हो गए.

अब सूरज को सामने मौत के सिवा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. शरीर पूरी तरह से जवाब दे चुका था. वैसे तो उस समय तक वह 3-4 दिनों में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था, पर अभी हजारों किलोमीटर की दूरी तय करना बाकी थी.

चलते चलते सूरज की तबीयत पूरी तरह खराब हो चुकी. सर्दी, खांसी, जुकाम का वह शिकार हो चुका. इसी बीच पुलिस वालों ने उसे गाड़ी में बैठाया और अस्पताल के इंसुलेशन वार्ड में भरती करा दिया.

इधर घर वालों की घबराहट काफी बढ़ती चली जा रही थी. लोगों की नींद हराम हो चुकी थी. इसी बीच 2 दिन के बाद घर पर फोन आया कि कोरोना की चपेट में आने की वजह से सूरज की मौत हो गई.

सुनते ही घर में जोरजोर से छाती पीट कर रोने की चीत्कार सुनाई पड़ने लगी. गांव से ले कर जेवार तक में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि सूरज कोरोना का शिकार हो गया. पर यह किस को पता कि सूरज कोरोना वायरस से नहीं, लौकडाउन का शिकार हो गया था.

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March 31, 2021 at 10:00AM

लौकडाउन का शिकार: भाग 1

लेखकप्रो अलखदेव प्रसाद अचल

सूरज अपने मातापिता का  एकलौता लड़का था. उस के मातापिता थे तो भूमिहीन, पर फिर भी मेहनतमजदूरी कर के सूरज को पढ़ालिखा कर कुछ भिन्न रूप में देखना चाहते थे. इसीलिए पढ़ाई में कोई चीज रुकावट न बने, इस के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते थे.

सूरज बचपन से ही पढ़नेलिखने में काफी मन लगाता था. पर जिस महल्ले में वह रह रहा था, वहां का माहौल काफी  खराब था. अधिकांश बच्चे स्कूल पढ़ने नहीं जाते थे. जो स्कूल जाते भी थे या तो मिड डे मील के चक्कर में या फिर फ्री में मिलने वाली पोशाक के लालच में.

महल्ले के अधिकांश बच्चे बकरी ले कर टांड़ी पर उछलकूद करते रहते या फिर नदी की तरफ चले जाते और बालू पर दौड़ लगाते रहते. पानी में डुबकियां लगाते रहते.

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महल्ले के लोग अपने बच्चे की पढ़ाने पर ध्यान नहीं देते थे. वे लोग बस यही समझते कि पढ़नेलिखने का काम बाबुओं का है. वैसे भी पढ़नेलिखने से कुछ नहीं होता. किस्मत में जो होता है, वही होता है. आदमी बलवान नहीं होता, बलवान होता है समय. हम लाख जतन करते रहें, पर वही होगा जो किस्मत में लिखा होगा.

यही सोच उस तबके के लोगों को विकास के सोपान ऊपर बढ़ने नहीं दे रही थी.

उस बीच सूरज वास्तव में सूरज की भांति दिखाई दे रहा था. सूरज गांव के लड़कों के साथ खेलकूद के बजाय पढ़ाई के बाद जो भी समय बचता, उसे अपने मातापिता के साथ कामों में लगा रहता था. उन के कामों में सहयोग करता. खेत से ले कर खलिहानों तक अपने ही मातापिता के साथ दिखता. जिसे देख कर गांव के बच्चे उस पर तरहतरह की फब्तियां भी कसते रहते, परंतु सूरज इस की परवाह नहीं करता.

जबकि सूरज के पिता रामदहिन जिन मालिकों के घर मजदूरी करता, उसे मालिक यही नसीहत देता — तुम बेकार अपने बेटे पर मेहनत की कमाई बरबाद कर रहे हो. अगर तुम्हारे साथ वह भी कमाता, तो निश्चित रूप से तुम्हारी आय दोगुनी हो जाती और घर में अधिक खुशहाली आ जाती. पर रामदहिन उन बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं देता. उसे लगता कि हम लोग तो जिंदगीभर अंगूठाछाप ही रह गए. चलो जब बेटा होनहार निकला है, तो उसे पेट काट कर भी पढ़ा ही देते हैं.

ये भी पढ़ें- Short Story: हे नारदमुनि विज्ञापन दो न 

पढ़ने के दौरान सूरज के सामने जो भी समस्या आती, उसे झेलते हुए आगे बढ़ते जाता. उस दौरान स्कूलों में कुछ खास तबके के लड़कों द्वारा उसे छुआछूत की भावना का शिकार भी होना पड़ता. जब कभी ऐसा भी होता कि वह जिस बेंच पर बैठता, तो अपनी ही कक्षा के बच्चे जो अपना बस्ता रखे भी रहते, उसे हटा कर दूसरी बेंच पर बैठ जाते या फिर बेंच पर अन्य साथियों के लिए सीट लूट कर रखे रहते. जब सूरज बैठना चाहता, तो वैसे बच्चे साफ कह देते —‘ पीछे चले जाओ इस पर सीट नहीं है’.

सूरज चाह कर भी विरोध नहीं करता कि इन लफंगों से झगड़ा मोल लेना बेकार है. इन्हें तो पढ़ना है नहीं. इन से उलझ कर हम अपना समय क्यों बरबाद करने जाए. कभी सोचता —हमारे लोगों में भी इतनी एकता नहीं कि हम जीत भी जाएंगे. ये लड़के इसी सोच का तो नाजायज फायदा उठाते रहते हैं.

पर हां, गांव में सूरज की पूछ जरूर थी. जब से उस ने हाईस्कूल में प्रवेश किया था, तभी से गांव में ‘कला संगम’ नामक संस्था की स्थापना की गई थी, जिस का वह सचिव था. मालिकाने घराने को छोड़ कर प्रायः सभी तबके के लड़के उस संस्था से जुड़े हुए थे. उसी के माध्यम से कभी नाटक का कार्यक्रम करवाता, तो कभी अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम. समाज के विकास के लिए हमेशा ध्यान रखता.

गांव में चाहे किसी के यहां शादी समारोह हो या फिर श्राद्ध का काम, सूरज अपने साथियों के साथ शुरू से अंत तक मुस्तैद रहा करता था. सारे काम साथियों सहित अपने सिर पर उठाए रहता था. घर का बोझ  बिलकुल हलका किए रहता था. इस की वजह से अकसर लोग उस की सराहना करते. शायद  इसी वजह से अपने समाज में उस की लोकप्रियता काफी बढ़ती चली जा रही थी.

अब तो देखादेखी में और लोग भी अपनेअपने बच्चों को सूरज की तरह पढ़ने और करने की नसीहत देते.

सूरज भी गांव में वैसे लोगों को समझाता, जो अपने बच्चे को स्कूल न भेज कर काम में लगाए रहते या फिर पढ़ाई की अहमियत को न समझते हुए पढ़ाई के प्रति लापरवाह रहते.

परिणाम यह हुआ कि उस के गांव के गरीबगुरबों के लड़के भी अकसर स्कूल जाने लगे.

यह बात अलग थी कि सरकारी स्कूल में शिक्षकों द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चों का जिस रूप में विकास होना चाहिए था, नहीं हो पाता था.

जो बच्चे स्कूल के अलावा अपने घर पर जीतोड़ मेहनत करते, उन का विकास तो दिखता, पर जो सिर्फ स्कूल के ऊपर आश्रित रहते, वे अगली कक्षा में पहुंच तो रहे थे, पर उन का विकास ठीक से हो नहीं पा रहा था, क्योंकि गांव था न, इसलिए वहां अभिभावकों को मेहनतमजदूरी करने से फुरसत कहां थी, जो अपने बच्चों पर ध्यान देते? जो देना भी चाहते थे, वे या तो खुद अशिक्षित थे या फिर इतना कम पढ़ेलिखे थे, जो अपने बच्चों को चाह कर भी दिशानिर्देश नहीं कर सकते थे.

हाईस्कूल से उसे छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हो गई थी, जिस से कुछ राहत भी मिल जाती थी. परंतु 12वीं जमात पास करने के बाद जब कालेज में नामांकन की बारी आई, तो सूरज ने कालेज में नामांकन तो करवा लिया, पर कालेजों में पढ़ाई नहीं होती थी, सिर्फ छात्रछात्राओं का नामांकन होता. समय पर रजिस्ट्रेशन होता. समय पर परीक्षाएं होतीं. इसी तरह परीक्षा परिणाम भी आते रहते. जो पैसे वाले होते, वे आईएससी में नामांकन करवाते. निजी शिक्षण संस्थानों में या तो अलगअलग विषय के ट्यूशन पढ़ते या फिर एकसाथ कोचिंग में पढ़ते. पर जिन की आर्थिक स्थिति बदहाल थी या कोई सुविधा नहीं थी, ,वे आर्ट सब्जेक्ट्स ही रख लेना मुनासिब समझते थे.

सूरज के पास न तो इतने पैसे थे कि वह एक हजार रुपए महीना दे कर कोचिंग में पढ़ सकता था और न ही किसी शहर में रह कर पढ़ सकता था, इसलिए उस ने आर्ट सब्जेक्ट्स ही रखना मुनासिब समझा. वह घर पर ही रहता और स्वाध्याय करता. स्वाध्याय की बदौलत ही इंटर में संतोषजनक परीक्षा परिणाम भी आया था उस का.

जैसे ही सूरज ने अपना नामांकन बीए में करवाया, वैसे ही उस के पिता ने उस की शादी तय कर दी, जबकि सूरज नहीं चाहता था कि अभी उस की शादी हो. इसलिए उस नेे विरोध करते हुए कहा भी, “पिताजी मेरी शादी कर के क्यों मेरा जीवन बरबाद करना चाहते हैं?”

पिताजी ने कहा, “बेटा, हर मांबाप अपनी जिंदगी में सपने बुनते हैं. तुम्हारी शादी हो जाएगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा?”

सूरज ने कहा, “जो भी बिगड़ेगा, उसे भोगना तो मुझे ही पड़ेगा, आप लोगों को नहीं.”

पिता ने कहा, “तो क्या इस बुढ़ापे की अवस्था में भी तुम्हारी बूढ़ी मां ही हाथ जलाती रहे?”

सूरज ने कहा, “मां के तो हाथ ही जल रहे हैं पिताजी, मेरी तो जिंदगी ही जल जाएगी. पर चलिए, आप लोगों को इसी में खुशी है, तो मैं कुछ नहीं कहूंगा.”

शादी के बाद घर के कामों में मातापिता को काफी राहत मिलने लगी, इसीलिए वे दोनों भी काफी खुश रहने लगे. इधर सूरज भी पत्नी के प्रेमपाश में धीरेधीरे जकड़ता चला गया.

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लेखकप्रो अलखदेव प्रसाद अचल

सूरज अपने मातापिता का  एकलौता लड़का था. उस के मातापिता थे तो भूमिहीन, पर फिर भी मेहनतमजदूरी कर के सूरज को पढ़ालिखा कर कुछ भिन्न रूप में देखना चाहते थे. इसीलिए पढ़ाई में कोई चीज रुकावट न बने, इस के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते थे.

सूरज बचपन से ही पढ़नेलिखने में काफी मन लगाता था. पर जिस महल्ले में वह रह रहा था, वहां का माहौल काफी  खराब था. अधिकांश बच्चे स्कूल पढ़ने नहीं जाते थे. जो स्कूल जाते भी थे या तो मिड डे मील के चक्कर में या फिर फ्री में मिलने वाली पोशाक के लालच में.

महल्ले के अधिकांश बच्चे बकरी ले कर टांड़ी पर उछलकूद करते रहते या फिर नदी की तरफ चले जाते और बालू पर दौड़ लगाते रहते. पानी में डुबकियां लगाते रहते.

ये भी पढ़ें-Short Story: मानसिकता का एक दृष्टिकोण

महल्ले के लोग अपने बच्चे की पढ़ाने पर ध्यान नहीं देते थे. वे लोग बस यही समझते कि पढ़नेलिखने का काम बाबुओं का है. वैसे भी पढ़नेलिखने से कुछ नहीं होता. किस्मत में जो होता है, वही होता है. आदमी बलवान नहीं होता, बलवान होता है समय. हम लाख जतन करते रहें, पर वही होगा जो किस्मत में लिखा होगा.

यही सोच उस तबके के लोगों को विकास के सोपान ऊपर बढ़ने नहीं दे रही थी.

उस बीच सूरज वास्तव में सूरज की भांति दिखाई दे रहा था. सूरज गांव के लड़कों के साथ खेलकूद के बजाय पढ़ाई के बाद जो भी समय बचता, उसे अपने मातापिता के साथ कामों में लगा रहता था. उन के कामों में सहयोग करता. खेत से ले कर खलिहानों तक अपने ही मातापिता के साथ दिखता. जिसे देख कर गांव के बच्चे उस पर तरहतरह की फब्तियां भी कसते रहते, परंतु सूरज इस की परवाह नहीं करता.

जबकि सूरज के पिता रामदहिन जिन मालिकों के घर मजदूरी करता, उसे मालिक यही नसीहत देता — तुम बेकार अपने बेटे पर मेहनत की कमाई बरबाद कर रहे हो. अगर तुम्हारे साथ वह भी कमाता, तो निश्चित रूप से तुम्हारी आय दोगुनी हो जाती और घर में अधिक खुशहाली आ जाती. पर रामदहिन उन बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं देता. उसे लगता कि हम लोग तो जिंदगीभर अंगूठाछाप ही रह गए. चलो जब बेटा होनहार निकला है, तो उसे पेट काट कर भी पढ़ा ही देते हैं.

ये भी पढ़ें- Short Story: हे नारदमुनि विज्ञापन दो न 

पढ़ने के दौरान सूरज के सामने जो भी समस्या आती, उसे झेलते हुए आगे बढ़ते जाता. उस दौरान स्कूलों में कुछ खास तबके के लड़कों द्वारा उसे छुआछूत की भावना का शिकार भी होना पड़ता. जब कभी ऐसा भी होता कि वह जिस बेंच पर बैठता, तो अपनी ही कक्षा के बच्चे जो अपना बस्ता रखे भी रहते, उसे हटा कर दूसरी बेंच पर बैठ जाते या फिर बेंच पर अन्य साथियों के लिए सीट लूट कर रखे रहते. जब सूरज बैठना चाहता, तो वैसे बच्चे साफ कह देते —‘ पीछे चले जाओ इस पर सीट नहीं है’.

सूरज चाह कर भी विरोध नहीं करता कि इन लफंगों से झगड़ा मोल लेना बेकार है. इन्हें तो पढ़ना है नहीं. इन से उलझ कर हम अपना समय क्यों बरबाद करने जाए. कभी सोचता —हमारे लोगों में भी इतनी एकता नहीं कि हम जीत भी जाएंगे. ये लड़के इसी सोच का तो नाजायज फायदा उठाते रहते हैं.

पर हां, गांव में सूरज की पूछ जरूर थी. जब से उस ने हाईस्कूल में प्रवेश किया था, तभी से गांव में ‘कला संगम’ नामक संस्था की स्थापना की गई थी, जिस का वह सचिव था. मालिकाने घराने को छोड़ कर प्रायः सभी तबके के लड़के उस संस्था से जुड़े हुए थे. उसी के माध्यम से कभी नाटक का कार्यक्रम करवाता, तो कभी अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम. समाज के विकास के लिए हमेशा ध्यान रखता.

गांव में चाहे किसी के यहां शादी समारोह हो या फिर श्राद्ध का काम, सूरज अपने साथियों के साथ शुरू से अंत तक मुस्तैद रहा करता था. सारे काम साथियों सहित अपने सिर पर उठाए रहता था. घर का बोझ  बिलकुल हलका किए रहता था. इस की वजह से अकसर लोग उस की सराहना करते. शायद  इसी वजह से अपने समाज में उस की लोकप्रियता काफी बढ़ती चली जा रही थी.

अब तो देखादेखी में और लोग भी अपनेअपने बच्चों को सूरज की तरह पढ़ने और करने की नसीहत देते.

सूरज भी गांव में वैसे लोगों को समझाता, जो अपने बच्चे को स्कूल न भेज कर काम में लगाए रहते या फिर पढ़ाई की अहमियत को न समझते हुए पढ़ाई के प्रति लापरवाह रहते.

परिणाम यह हुआ कि उस के गांव के गरीबगुरबों के लड़के भी अकसर स्कूल जाने लगे.

यह बात अलग थी कि सरकारी स्कूल में शिक्षकों द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चों का जिस रूप में विकास होना चाहिए था, नहीं हो पाता था.

जो बच्चे स्कूल के अलावा अपने घर पर जीतोड़ मेहनत करते, उन का विकास तो दिखता, पर जो सिर्फ स्कूल के ऊपर आश्रित रहते, वे अगली कक्षा में पहुंच तो रहे थे, पर उन का विकास ठीक से हो नहीं पा रहा था, क्योंकि गांव था न, इसलिए वहां अभिभावकों को मेहनतमजदूरी करने से फुरसत कहां थी, जो अपने बच्चों पर ध्यान देते? जो देना भी चाहते थे, वे या तो खुद अशिक्षित थे या फिर इतना कम पढ़ेलिखे थे, जो अपने बच्चों को चाह कर भी दिशानिर्देश नहीं कर सकते थे.

हाईस्कूल से उसे छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हो गई थी, जिस से कुछ राहत भी मिल जाती थी. परंतु 12वीं जमात पास करने के बाद जब कालेज में नामांकन की बारी आई, तो सूरज ने कालेज में नामांकन तो करवा लिया, पर कालेजों में पढ़ाई नहीं होती थी, सिर्फ छात्रछात्राओं का नामांकन होता. समय पर रजिस्ट्रेशन होता. समय पर परीक्षाएं होतीं. इसी तरह परीक्षा परिणाम भी आते रहते. जो पैसे वाले होते, वे आईएससी में नामांकन करवाते. निजी शिक्षण संस्थानों में या तो अलगअलग विषय के ट्यूशन पढ़ते या फिर एकसाथ कोचिंग में पढ़ते. पर जिन की आर्थिक स्थिति बदहाल थी या कोई सुविधा नहीं थी, ,वे आर्ट सब्जेक्ट्स ही रख लेना मुनासिब समझते थे.

सूरज के पास न तो इतने पैसे थे कि वह एक हजार रुपए महीना दे कर कोचिंग में पढ़ सकता था और न ही किसी शहर में रह कर पढ़ सकता था, इसलिए उस ने आर्ट सब्जेक्ट्स ही रखना मुनासिब समझा. वह घर पर ही रहता और स्वाध्याय करता. स्वाध्याय की बदौलत ही इंटर में संतोषजनक परीक्षा परिणाम भी आया था उस का.

जैसे ही सूरज ने अपना नामांकन बीए में करवाया, वैसे ही उस के पिता ने उस की शादी तय कर दी, जबकि सूरज नहीं चाहता था कि अभी उस की शादी हो. इसलिए उस नेे विरोध करते हुए कहा भी, “पिताजी मेरी शादी कर के क्यों मेरा जीवन बरबाद करना चाहते हैं?”

पिताजी ने कहा, “बेटा, हर मांबाप अपनी जिंदगी में सपने बुनते हैं. तुम्हारी शादी हो जाएगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा?”

सूरज ने कहा, “जो भी बिगड़ेगा, उसे भोगना तो मुझे ही पड़ेगा, आप लोगों को नहीं.”

पिता ने कहा, “तो क्या इस बुढ़ापे की अवस्था में भी तुम्हारी बूढ़ी मां ही हाथ जलाती रहे?”

सूरज ने कहा, “मां के तो हाथ ही जल रहे हैं पिताजी, मेरी तो जिंदगी ही जल जाएगी. पर चलिए, आप लोगों को इसी में खुशी है, तो मैं कुछ नहीं कहूंगा.”

शादी के बाद घर के कामों में मातापिता को काफी राहत मिलने लगी, इसीलिए वे दोनों भी काफी खुश रहने लगे. इधर सूरज भी पत्नी के प्रेमपाश में धीरेधीरे जकड़ता चला गया.

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March 31, 2021 at 10:00AM

लौकडाउन का शिकार: भाग 2

लेखकप्रो अलखदेव प्रसाद अचल

पत्नी यानी पुष्पा जब भी अपने मायके चली जाती तो महीनेभर के अंदर यह कहते हुए सूरज लेने पहुंच जाता कि मां से काम नहीं होता. मां थक चुकी है. खाना बनाना भी मुश्किल लगता है. हम लोगों को हाथ जलाना पड़ता है. उस में भी जैसेतैसे कर के पेट भरना पड़ता है, इसलिए इसे चलना जरूरी है.

सूरज हर तरह से प्रगतिशील सोच रखता था. परंतु वर्तमान सरकार की नाकामियों के खिलाफ कोई बोल देता तो उसे वह बरदाश्त नहीं करता था. जब भी लोकसभा या विधानसभा का चुनाव आता, तो सूरज दिनभर चुनाव पार्टी का झंडा उठाए रहता. जब कभी राजनीतिक बात निकलती, तो अतार्किक रूप से ही सही, पर सरकार की प्रशंसा खूब करता.

इसी तरह दिन गुजरते चले गए, सूरज  बीए पार्ट वन से पार्ट टू में और पार्ट टू से पार्ट थ्री में चला गया और  परीक्षा में पास भी हो गया.

अब सूरज घर पर ही रह कर किसी कंपटीशन की तैयारी के लिए सोचता, पर संभव होता दिखाई नहीं देता, जबकि उसी दौरान उस ने कंपटीशन की तैयारी के लिए कई प्रतियोगी पत्रिकाएं भी खरीदी थीं. कई प्रतियोगिताओं में वह सम्मिलित भी हुआ था, पर सफलता नहीं मिल सकी थी. वह जानता था कि परिवार के बीच रह कर प्रतियोगिता निकालना टेढ़ी खीर है और शहर में रह कर तैयारी करने के लिए पास में पैसे नहीं हैं.

इधर सूरज के घर की स्थिति ऐसी थी कि बुढ़ापे की अवस्था आ जाने की वजह से मातापिता भी मेहनतमजदूरी करने से लाचार होते जा रहे थे. उसी दौरान सूरज दोदो बच्चियों का बाप बन चुका था. इस में एक ढाई साल की बेटी थी तो दूसरी 6 महीने की.

न चाहते हुए भी दोदो बच्चियों के पिता बनने पर सूरज इस हकीकत को अच्छी तरह समझता था कि बिलकुल ही छोटे से घर में पत्नी से दूरियां बना कर रहना संभव नहीं था, जबकि उन दोनों बच्चियों के जन्म पर मातापिता की सोच थी कि भगवान देता है, तो भगवान पार भी लगाता है.

जबकि सूरज की सोच मातापिता की सोच से बिलकुल अलग थी. वह जानता था कि मातापिता काम करने से लाचार होते जा रहे हैं तो बगैर कुछ किए अब संभव नहीं है. अब निश्चित रूप से कुछ करना होगा, अन्यथा या तो हम लोग फटेहाली के कगार पर पहुंच जाएंगे या फिर मुझे भी पढ़लिख कर बंधुआ मजदूर बनने के लिए विवश हो जाना पड़ेगा.

सूरज, बस इसी चिंतन में रहने लगा और संपर्क वाले साथियों  से इस की चर्चा भी करने लगा.

आश्विन का महीना था. चारों तरफ दुर्गा पूजा की तैयारी चल रही थी. जगहजगह रंगारंग कार्यक्रम होने वाले थे. दीपावली भी सिर पर थी. इसी अवसर पर बगल के गांव का साथी रोहित छुट्टी पर घर आया था, जो कभी सूरज के साथ ही पढ़ता था. पर घर की आर्थिक तंगी की वजह से इंटर पास करने के बाद ही वह गुजरात चला गया था और प्राइवेट कंपनी में काम करने लगा था.

सूरज ने इस बार साथ चलने का आग्रह किया, तो रोहित ने सिर्फ आश्वासन ही नहीं दिया, अपितु जब वह जाने लगा तो सूरज को भी साथ लेता गया और प्राइवेट कंपनी में काम लगवा दिया.

सूरज जिस कंपनी में काम करता था, उस में 8 घंटे के बजाय काम तो 12 घंटे करना पड़ता था, परंतु वेतन 10 हजार रुपए के अलावा कंपनी की तरफ से ही खानेपीने और रहने की व्यवस्था थी. हर माह की 10 तारीख के अंदर वेतन मिल जाता था.

अब सूरज हर माह सिर्फ घर पर पैसे ही नहीं भेजता, अपितु दोनों बच्चियों के नाम से बीमा भी करवा लिया था. फोन पर उस ने मातापिता को कह दिया था कि आप लोगों को इस अवस्था में मेहनतमजदूरी करने की कोई जरूरत नहीं है. अब आप लोग आराम से खाइए, पीजिए और रहिए.

यह सुन कर मातापिता की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े.

इस के साथ ही सूरज अपने मन में तरहतरह के सपने भी बुनने लगा था. उन सपनों में छोटा ही सही, पर अच्छा मकान बनाने, बच्चियों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने और घर में तरहतरह की सुविधाएं शामिल थीं. इन्हीं सपनों के साथ समय अपनी गति से आगे बढ़ता चला जा रहा था.

फाल्गुन का महीना आया. वसंत ऋतु अपने मौसम के साथ लोगों के मन को गुदगुदाने लगी तो पुष्पा को अपने पति का अभाव खलने लगा.

इस दौरान जब पुष्पा की अपने पति सूरज से बातें हुईं, “क्या होली में अकेले ही रहना पड़ेगा?”

सूरज ने कहा, “इच्छा तो मेरी भी थी कि घर आऊं, पर लग नहीं रहा है कि आ पाऊंगा. क्योंकि कंपनी के बहुत सारे  वैसे लोग होली की छुट्टी में घर जा रहे हैं ,जो सालभर से घर नहीं गए थे. होली में रहने वाले को कंपनी की ओर से अलग से बोनस  मिलेगा.

“पुष्पा, तुम अन्यथा नहीं समझना. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. अगर होली में न आ पाऊंगा तो शायद छठ के अवसर पर एक सप्ताह के लिए ही सही, पर जरूर आऊंगा.”

होली के बाद कोरोना महामारी की सुगबुगाहट शुरू हो गई. देखते ही देखते सरकार ने स्कूलों ,कालेजों, मौलों, सिनेमाघरों आदि को बंद करने की घोषणा कर दी.

लोगों में भय का माहौल काले बादलों की भांति छाने लगा. बस, एकाएक सरकार ने एक दिन के लिए लौकडाउन की घोषणा कर दी. तब लगा, शायद इस महामारी से नजात मिल जाएगी. वहीं दूसरी तरफ अखबारों और टीवी चैनलों में देश के कोनेकोने में कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों की सूचना आने लगी.

बस फिर क्या था, सरकार ने आमजन की बगैर सुविधाओं का खयाल रखे 21 दिनों के लिए लौकडाउन का ऐलान कर दिया गया. हवा में खबर भी तैरने लगी कि लौकडाउन का समय और भी बढ़ सकता है.

यह देख कर पूरे देश में अफरातफरी मच गई. देश के कोनेकोने में सरकारी, गैरसरकारी कंपनियों को बंद करा दिया गया. पर उस में काम करने वाले कर्मी कहां रहेंगे? कैसे रहेंगे? इस बारे में तनिक भी सरकार सोच नहीं सकी.

सरकारी व गैरसरकारी कंपनियों के मालिकों ने अपने कर्मियों की सुविधाएं मुहैया करने के मामले में अपने हाथ खड़े कर दिए. शहर में खानेपीने जैसी सारी दुकानें बंद करा दी गईं. यातायात की सुविधाएं एकाएक ठप हो गईं.

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लेखकप्रो अलखदेव प्रसाद अचल

पत्नी यानी पुष्पा जब भी अपने मायके चली जाती तो महीनेभर के अंदर यह कहते हुए सूरज लेने पहुंच जाता कि मां से काम नहीं होता. मां थक चुकी है. खाना बनाना भी मुश्किल लगता है. हम लोगों को हाथ जलाना पड़ता है. उस में भी जैसेतैसे कर के पेट भरना पड़ता है, इसलिए इसे चलना जरूरी है.

सूरज हर तरह से प्रगतिशील सोच रखता था. परंतु वर्तमान सरकार की नाकामियों के खिलाफ कोई बोल देता तो उसे वह बरदाश्त नहीं करता था. जब भी लोकसभा या विधानसभा का चुनाव आता, तो सूरज दिनभर चुनाव पार्टी का झंडा उठाए रहता. जब कभी राजनीतिक बात निकलती, तो अतार्किक रूप से ही सही, पर सरकार की प्रशंसा खूब करता.

इसी तरह दिन गुजरते चले गए, सूरज  बीए पार्ट वन से पार्ट टू में और पार्ट टू से पार्ट थ्री में चला गया और  परीक्षा में पास भी हो गया.

अब सूरज घर पर ही रह कर किसी कंपटीशन की तैयारी के लिए सोचता, पर संभव होता दिखाई नहीं देता, जबकि उसी दौरान उस ने कंपटीशन की तैयारी के लिए कई प्रतियोगी पत्रिकाएं भी खरीदी थीं. कई प्रतियोगिताओं में वह सम्मिलित भी हुआ था, पर सफलता नहीं मिल सकी थी. वह जानता था कि परिवार के बीच रह कर प्रतियोगिता निकालना टेढ़ी खीर है और शहर में रह कर तैयारी करने के लिए पास में पैसे नहीं हैं.

इधर सूरज के घर की स्थिति ऐसी थी कि बुढ़ापे की अवस्था आ जाने की वजह से मातापिता भी मेहनतमजदूरी करने से लाचार होते जा रहे थे. उसी दौरान सूरज दोदो बच्चियों का बाप बन चुका था. इस में एक ढाई साल की बेटी थी तो दूसरी 6 महीने की.

न चाहते हुए भी दोदो बच्चियों के पिता बनने पर सूरज इस हकीकत को अच्छी तरह समझता था कि बिलकुल ही छोटे से घर में पत्नी से दूरियां बना कर रहना संभव नहीं था, जबकि उन दोनों बच्चियों के जन्म पर मातापिता की सोच थी कि भगवान देता है, तो भगवान पार भी लगाता है.

जबकि सूरज की सोच मातापिता की सोच से बिलकुल अलग थी. वह जानता था कि मातापिता काम करने से लाचार होते जा रहे हैं तो बगैर कुछ किए अब संभव नहीं है. अब निश्चित रूप से कुछ करना होगा, अन्यथा या तो हम लोग फटेहाली के कगार पर पहुंच जाएंगे या फिर मुझे भी पढ़लिख कर बंधुआ मजदूर बनने के लिए विवश हो जाना पड़ेगा.

सूरज, बस इसी चिंतन में रहने लगा और संपर्क वाले साथियों  से इस की चर्चा भी करने लगा.

आश्विन का महीना था. चारों तरफ दुर्गा पूजा की तैयारी चल रही थी. जगहजगह रंगारंग कार्यक्रम होने वाले थे. दीपावली भी सिर पर थी. इसी अवसर पर बगल के गांव का साथी रोहित छुट्टी पर घर आया था, जो कभी सूरज के साथ ही पढ़ता था. पर घर की आर्थिक तंगी की वजह से इंटर पास करने के बाद ही वह गुजरात चला गया था और प्राइवेट कंपनी में काम करने लगा था.

सूरज ने इस बार साथ चलने का आग्रह किया, तो रोहित ने सिर्फ आश्वासन ही नहीं दिया, अपितु जब वह जाने लगा तो सूरज को भी साथ लेता गया और प्राइवेट कंपनी में काम लगवा दिया.

सूरज जिस कंपनी में काम करता था, उस में 8 घंटे के बजाय काम तो 12 घंटे करना पड़ता था, परंतु वेतन 10 हजार रुपए के अलावा कंपनी की तरफ से ही खानेपीने और रहने की व्यवस्था थी. हर माह की 10 तारीख के अंदर वेतन मिल जाता था.

अब सूरज हर माह सिर्फ घर पर पैसे ही नहीं भेजता, अपितु दोनों बच्चियों के नाम से बीमा भी करवा लिया था. फोन पर उस ने मातापिता को कह दिया था कि आप लोगों को इस अवस्था में मेहनतमजदूरी करने की कोई जरूरत नहीं है. अब आप लोग आराम से खाइए, पीजिए और रहिए.

यह सुन कर मातापिता की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े.

इस के साथ ही सूरज अपने मन में तरहतरह के सपने भी बुनने लगा था. उन सपनों में छोटा ही सही, पर अच्छा मकान बनाने, बच्चियों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने और घर में तरहतरह की सुविधाएं शामिल थीं. इन्हीं सपनों के साथ समय अपनी गति से आगे बढ़ता चला जा रहा था.

फाल्गुन का महीना आया. वसंत ऋतु अपने मौसम के साथ लोगों के मन को गुदगुदाने लगी तो पुष्पा को अपने पति का अभाव खलने लगा.

इस दौरान जब पुष्पा की अपने पति सूरज से बातें हुईं, “क्या होली में अकेले ही रहना पड़ेगा?”

सूरज ने कहा, “इच्छा तो मेरी भी थी कि घर आऊं, पर लग नहीं रहा है कि आ पाऊंगा. क्योंकि कंपनी के बहुत सारे  वैसे लोग होली की छुट्टी में घर जा रहे हैं ,जो सालभर से घर नहीं गए थे. होली में रहने वाले को कंपनी की ओर से अलग से बोनस  मिलेगा.

“पुष्पा, तुम अन्यथा नहीं समझना. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. अगर होली में न आ पाऊंगा तो शायद छठ के अवसर पर एक सप्ताह के लिए ही सही, पर जरूर आऊंगा.”

होली के बाद कोरोना महामारी की सुगबुगाहट शुरू हो गई. देखते ही देखते सरकार ने स्कूलों ,कालेजों, मौलों, सिनेमाघरों आदि को बंद करने की घोषणा कर दी.

लोगों में भय का माहौल काले बादलों की भांति छाने लगा. बस, एकाएक सरकार ने एक दिन के लिए लौकडाउन की घोषणा कर दी. तब लगा, शायद इस महामारी से नजात मिल जाएगी. वहीं दूसरी तरफ अखबारों और टीवी चैनलों में देश के कोनेकोने में कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों की सूचना आने लगी.

बस फिर क्या था, सरकार ने आमजन की बगैर सुविधाओं का खयाल रखे 21 दिनों के लिए लौकडाउन का ऐलान कर दिया गया. हवा में खबर भी तैरने लगी कि लौकडाउन का समय और भी बढ़ सकता है.

यह देख कर पूरे देश में अफरातफरी मच गई. देश के कोनेकोने में सरकारी, गैरसरकारी कंपनियों को बंद करा दिया गया. पर उस में काम करने वाले कर्मी कहां रहेंगे? कैसे रहेंगे? इस बारे में तनिक भी सरकार सोच नहीं सकी.

सरकारी व गैरसरकारी कंपनियों के मालिकों ने अपने कर्मियों की सुविधाएं मुहैया करने के मामले में अपने हाथ खड़े कर दिए. शहर में खानेपीने जैसी सारी दुकानें बंद करा दी गईं. यातायात की सुविधाएं एकाएक ठप हो गईं.

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March 31, 2021 at 10:00AM

Short Story: मन बहुत प्यासा है

शाम बहुत उदास थी. सूरज पहाडि़यों के पीछे छिप गया था और सुरमई अंधेरा अपनी चादर फैला रहा था. घर में सभी लोग टीवी के सामने बैठे समाचार सुन रहे थे. तभी न्यूज ऐंकर ने बताया कि सुबह दिल्ली से चली एक डीलक्स बस अलकनंदा में जा गिरी है. यह खबर सुनते ही सब के चेहरे का रंग उड़ गया और टीवी का स्विच औफ कर दिया गया. मैं नवीन की कमीज थामे सन्न सी खड़ी रह गई. ढेर सारे खयाल दिलोदिमाग में हलचल मचाते रहे. क्या सचमुच नवीन इज नो मोर? मां का विलाप सुन कर आंगन में आसपास की औरतें जुड़ने लगीं. उन में से कुछ रो रही थीं तो कुछ उन्हें सही सूचना आने तक तसल्ली रखने की सलाह दे रही थीं. बाबूजी ने मेरे डैडी को फोन किया और तुरंत घटनास्थल पर चलने को कहा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? क्या मैं सचमुच… इस के आगे सोचने से दिल घबराने लगा.

3 दिन तक जीनेमरने जैसी स्थिति रही. चौथे दिन हारे हुए जुआरी की तरह बाबूजी और डैडी वापस लौट आए. अलकनंदा में उफान के कारण लाशें तक निकाली नहीं जा सकी थीं. पता कर के आए मर्दों के चेहरों पर हताशा को पढ़ कर औरतें चीखचीख कर रोने लगीं. कुछ उस घड़ी को कोस रही थीं, जिस घड़ी नवीन ने घर से बाहर कदम निकाला था. एक बूढ़ी औरत मेरे कमरे में आई और मुझे घसीटती हुई बाहर ले आई. कुछ औरतों ने आंखों ही आंखों में सरगोशियां कीं और मेरा चूडि़यों से भरा हाथ फर्श पर दे मारा. चूडि़यां टूटने के साथ खून की कुछ बूंदें मेरी कलाई पर छलक आईं पर इस की परवाह किस को थी. भरी जवानी में मेरे विधवा हो जाने से जैसे सब दुखी थीं और मुझे गले लगा कर रोना चाहती थीं. मैं पत्थर की शिला सी हो गई थी. मेरी आंखों में बूंद भर पानी भी नहीं था.

ये भी पढ़ें-Short story: बदला वेश बदला मन

अपने विफल हो रहे प्रयासों से औरतों में खीज सी पैदा हो गई. कुछ मुझे घूरते हुए एकदूसरे से कुछ कह रही थीं, तो महल्ले की थुलथुली बहुएं, जो मेरी स्मार्टनैस से कुंठित थीं अपनी भड़ास निकालने की कोशिश कर रही थीं. मेरा लंबा कद, स्याह घने बाल, हिरनी जैसी आंखें और शादी में लाया गया ढेर सारा दहेज, जिस के कारण महल्ले की सासें अपनी बहुओं को ताने दिया करती थीं, आज बेमानी बन कर रह गया, तो मेरी सुंदर काया का मूल्य पल भर में कौडि़यों का हो गया. मेरी उड़ती नजर आंगन के कोने में खड़ी मोटरसाइकिल पर गई.इसी मोटरसाइकिल के लिए मझे 4 दिन तक भूखा रखा गया था और 6 महीने तक मैं मायके में पड़ी रही थी. आखिर पापा ने अपने फंड में से पैसा निकाल कर नवीन को मोटरसाइकिल ले दी थी. अब कौन चलाएगा इसे? नवीन की मौत से हट कर मेरा मन हर राउंड में लाई गई चीजों की फेहरिस्त बना रहा था.

कुल 2 साल ही तो हुए थे हमारी शादी को और हमारी बेटी मिनी साल भर की है. खुद को कर्ज में डुबो कर बेटी का घर भर दिया था पापा ने. क्या मैं उस आदमी के लिए रोऊं जो हर वक्त कुछ न कुछ मांगता ही रहता था और हर चौथे दिन रुई की तरह धुन देता था. तभी औरतों की खींचातानी से मिनी रोई तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं उसे औरतों की भीड़ से निकाल कर कमरे में ले आई. औरतों का आनाजाना कई दिनों तक लगा रहा. कुछ मुझ कुलच्छनी बहू को घूरघूर कर एकदूसरे से बतियाती हुई आंसू बहातीं तो कुछ मेरे न रोनेधोने के कारण किसी रहस्य को सूंघने की कोशिश करतीं. पर मुझे उन की परवाह नहीं थी.

मां जो शेरनी की तरह दहाड़ती रहती थीं अब भीगी बिल्ली सी आंसू बहाती रहतीं. मेरी ननद गीता और उस के पति रजनीश भी आगए थे. गीता मेरे कमरे के फेरे मारती रहती और एकएक कीमती चीज के दाम पूछती रहती. रजनीश की नजर मोटरसाइकिल पर थी. गीता को वापस जाना था. रजनीश ने खिसियानी सी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘भाभी, अब इस मोटरसाइकिल का यहां क्या होगा? कहो तो मैं ले जाऊं. डीटीसी बसों में आतेजाते मैं तो तंग आ गया हूं. रोज देर हो जाती है तो बौस की डांट खानी पड़ती है.’’ फिर मोटरसाइकिल पर बैठ कर ट्रायल लेने लगा.

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गीता भी पीछे नहीं रही, ‘‘भाभी, इस कौस्मैटिक बौक्स का अब आप क्या करेंगी? आप के लिए तो बेकार है. मैं ले जाती हूं इसे. कितने सारे तो परफ्यूम्स हैं. इतनी अच्छी चीजें इंडिया में कहां बनती हैं. आप के पापा का भी जवाब नहीं. हर चीज कीमती दी है आप को.’’

क्या संबंध स्वार्थ की कागजी नींव पर टिके होते हैं? यह सोचते हुए संबंधों पर से मेरी आस्था हटने लगी. यह वही गीता है, जो बारबार गश खा कर गिर रही थी और भाई की मौत को अभी 4 दिन भी नहीं गुजरे इस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. गीता और रजनीश की नजर तो मेरे लैपटौप और महंगे मोबाइलों पर भी थी, क्योंकि बाबूजी ने कह दिया था कि मोटरसाइकिल वगैरह अभी यहीं रहने दो. बाद में देखेंगे. गीता ने एक बार झिझकते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप के पास तो 2 मोबाइल हैं. वाऊ, कितने खूबसूरत हैं.’’

मैं ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘मैं तो ऐसे ही कह रही थी.’’

गीता और रजनीश के जाने के बाद घर में गहरा सन्नाटा छा गया. मां और बाबूजी दोनों ही शंकित थे कि कहीं मैं भी उन्हें छोड़ कर न चली जाऊं. पर अब कहां जाना था मुझे. हालांकि पापा ने मुझे साथ चलने को कहा था पर मैं ने मना कर दिया. बाबूजी का दुलार तो मुझे हमेशा ही मिलता रहा था पर मां और नवीन के सामने उन की चलती ही नहीं थी. पर अब कितना कुछ बदल गया था. थोड़ी भागदौड़ के बाद मुझे नवीन की जगह नौकरी भी मिल गई. रसोईघर जहां मैं दिन भर खटती रहती थी, को मां ने संभाल लिया था. नौकरी पर आतेजाते मुझे लगता था कि कई आंखें मुझे घूर रही हैं. दरअसल, वे औरतें, जिन्हें मुझे ले कर निंदासुख मिलता था अब अजीब नजरों से मुझे देखती थीं. एक अभी हुई विधवा रोज नईनई पोशाकें पहन कर दफ्तर जाए यह बात उन के गले से नहीं उतरती थी. मां का भी अब महल्ले की चौपाल पर बैठना लगभग बंद हो गया था, तो पड़ोसिनों का आनाजाना भी कम हो गया था.

मेरी नौकरी ने जैसे मुझे नया जीवन दे दिया था. ऐसा लगता था जैसे मरुस्थल में बरसाती बादल उमड़नेघुमड़ने लगे हों. इस से बेचैनी और भी बढ़ जाती, तो मैं सोचती कि मैं विधवा हो गई तो इस में मेरा क्या कुसूर? दहेज में मिली कई कीमती साडि़यों की तह अभी तक नहीं खुली थीं. मैं जब उन में से कोई साड़ी निकाल कर पहनती तो मां प्रश्नवाचक नजरों से चुपचाप देखती रहतीं और मैं जानबूझ कर अनजान बनी रहती. कालोनी की जवान लड़कियों को मेरा कलर कौंबिनेशन बहुत पसंद आता. वे प्रशंसनीय नजरों से मुझे देखतीं पर मैं इस सब से तटस्थ रहती.

दफ्तर में मुझे सब से ज्यादा आकर्षित करता था शेखर. वह मेरे काम में मेरी मदद करता. फिर कभीकभी बाहर किसी रेस्तरां में कौफी पीने भी हम चले जाते. गपशप के दौरान कब वह मेरे करीब आता चला गया मुझे पता ही नहीं चला. धीरेधीरे हम दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. एक दिन इतवार को दोपहर के समय जब मैं मिनी को गोद में लिए बाहर निकली तो मां ने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा. मुझे लगा जैसे मैं कोई अपराध करने जा रही हूं. पर अब मैं ने नजरों की भाषा को पढ़ना छोड़ दिया था. मन में एक अजीब सी प्यास थी और मैं मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रही थी.

देर शाम को जब घर लौटी तो मां की नजर में कई सवाल थे. वे मिनी को उठा कर बाहर ले गईं और लौटीं तो पूछा, ‘‘यह शेखर अंकल कौन है?’’ मैं सन्न रह गई. मां मुझ से ऐसा सीधा सवाल करेंगी यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मगर जल्दी ही मैं ने खुद को संभाला ओर बोली, ‘‘शेखर मेरे दफ्तर में काम करता है. मौल में मिल गया था.’’ मां ने हुंकार भरा और अपने कमरे में चली गईं. देर रात तक मां और बाबूजी की आवाजें कटकट कर मेरे कानों में आती रहीं और मैं दमसाधे सुनती रही. साथ में यह भी सोचती रही कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग? क्या मैं सारी उम्र यों ही गुजार दूं?

मुझे अकसर औफिस से आतेआते देर हो जाती. तब बाबूजी मुझे बस स्टौप पर खड़े मिलते. मुझे देखते ही कहते, ‘‘मैं यों ही टहलता हुआ इधर निकल आया था. सोचा, तुम आ रही होगी.’’ फिर सिर झुकाए साथसाथ चलने लगते. मुझे ऐसा लगता जैसे मैं कांच के मकान में रह रही हूं, जरा सी ठोकर लगते ही टूट जाएगा. मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती थी पर बाबूजी और मां का बुढ़ापा कैसे कटेगा यह सवाल मुझे सालता था. मैं शेयर के साथ अपनी तनहाई शेखर करना चाहती पर मां और बाबूजी का बुढ़ापा बीच में आ जाता था उन की आंखों का डर मुझे खुल कर जीने नहीं दे रहा था. शेखर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर गया था. मैं सोच रही थी कि जब वह वापस आएगा तो उस से खुल कर बात करूंगी. उस ने वादा किया था कि वह अपने मांबाप को मना लेगा इसलिए मैं आश्वस्त थी.

लेकिन एक दिन औफिस में मैं ने अपनी मेज पर एक लंबा लिफाफा रखा देखा. लिफाफा खुला ही था. अंदर से कागज निकाला तो देखा तो लगा छनाक से कुछ टूट गया हो. एक वैडिंग कार्ड था- शेखर विद सरोज. साथ में एक चिट्ठी भी थी जिस में लिखा था- मीरा, एक विधवा के साथ विवाह करने की बात मेरे मम्मीडैडी के गले नहीं उतरी. विधवा, उस पर एक बच्ची की मां. सच मानो मीरा मैं ने मम्मीडैडी को समझाने की बहुत कोशिश की पर अपने अविवाहित बेटे के लिए उन के दिल में बड़ेबड़े अरमान हैं. कैसे तोड़ दूं उन्हें… मुझे क्षमा कर देना, मीरा. अगले दिन मैं ने निगाह घुमा कर देखा, शेखर मोटीमोटी फाइलों में गुम होने का असफल प्रयास कर रहा था. मैं ने खत सहित वैडिंग कार्ड को टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाला तो उस ने घूर कर मुझे देखा. मैं रोई नहीं. रोना मेरी आदत नहीं है. मैं तेजी से टाइप करती रही और मैं ने चपरासी को पंखा तेज करने को कहा, क्योंकि मन की तपिश और बढ़ गई थी.

शाम को जब औफिस से निकली तो खुली हवा के झोंके मन को सहलाने लगे मेरे कदम अपनेआप ही न्यू औप्टिकल स्टोर की ओर बढ़ गए. बाबूजी के लिए नया चश्मा बनवा कर जब निकली तो याद आया कि मां कई दिन से एक साड़ी लाने को कह रही थीं. एक ही क्षण में दुनिया कितनी बदल गई थी. बाबूजी डेढ़ महीने से नया चश्मा बनवाने को कह रहे थे पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था. उन्हें पढ़नेलिखने में कितनी परेशानी हो रही थी, आज याद आया तो मन में अपराधबोध सा जागने लगा था. लगता है बाबूजी को शेखर के विवाह की बात पता चल गई थी. वे बस स्टौप पर भी नहीं आए. अगली सुबह देखा तो वे मोटरसाइकिल साफ कर रहे थे. मुझे लगा इसे बेचने की तैयारी है. मन में कसैलापन भर गया. पर तभी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें तो मोटरसाइकिल चलानी आती है न. चलो जरा डाक्टर की दुकान तक ले चलो. बसों में जाने में दिक्कत होती है.’’ मैं मुंह खोले उन्हें देखती रह गई और फिर उन के सीने से जा लगी, ‘‘बाबूजी…’’ मुझ से बोला नहीं जा रहा था.

तभी मां की आवाज आई, ‘‘और हां, लौटते हुए बेकरी से एक केक लेती आना. आज तेरा जन्मदिन है न…’’

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शाम बहुत उदास थी. सूरज पहाडि़यों के पीछे छिप गया था और सुरमई अंधेरा अपनी चादर फैला रहा था. घर में सभी लोग टीवी के सामने बैठे समाचार सुन रहे थे. तभी न्यूज ऐंकर ने बताया कि सुबह दिल्ली से चली एक डीलक्स बस अलकनंदा में जा गिरी है. यह खबर सुनते ही सब के चेहरे का रंग उड़ गया और टीवी का स्विच औफ कर दिया गया. मैं नवीन की कमीज थामे सन्न सी खड़ी रह गई. ढेर सारे खयाल दिलोदिमाग में हलचल मचाते रहे. क्या सचमुच नवीन इज नो मोर? मां का विलाप सुन कर आंगन में आसपास की औरतें जुड़ने लगीं. उन में से कुछ रो रही थीं तो कुछ उन्हें सही सूचना आने तक तसल्ली रखने की सलाह दे रही थीं. बाबूजी ने मेरे डैडी को फोन किया और तुरंत घटनास्थल पर चलने को कहा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? क्या मैं सचमुच… इस के आगे सोचने से दिल घबराने लगा.

3 दिन तक जीनेमरने जैसी स्थिति रही. चौथे दिन हारे हुए जुआरी की तरह बाबूजी और डैडी वापस लौट आए. अलकनंदा में उफान के कारण लाशें तक निकाली नहीं जा सकी थीं. पता कर के आए मर्दों के चेहरों पर हताशा को पढ़ कर औरतें चीखचीख कर रोने लगीं. कुछ उस घड़ी को कोस रही थीं, जिस घड़ी नवीन ने घर से बाहर कदम निकाला था. एक बूढ़ी औरत मेरे कमरे में आई और मुझे घसीटती हुई बाहर ले आई. कुछ औरतों ने आंखों ही आंखों में सरगोशियां कीं और मेरा चूडि़यों से भरा हाथ फर्श पर दे मारा. चूडि़यां टूटने के साथ खून की कुछ बूंदें मेरी कलाई पर छलक आईं पर इस की परवाह किस को थी. भरी जवानी में मेरे विधवा हो जाने से जैसे सब दुखी थीं और मुझे गले लगा कर रोना चाहती थीं. मैं पत्थर की शिला सी हो गई थी. मेरी आंखों में बूंद भर पानी भी नहीं था.

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अपने विफल हो रहे प्रयासों से औरतों में खीज सी पैदा हो गई. कुछ मुझे घूरते हुए एकदूसरे से कुछ कह रही थीं, तो महल्ले की थुलथुली बहुएं, जो मेरी स्मार्टनैस से कुंठित थीं अपनी भड़ास निकालने की कोशिश कर रही थीं. मेरा लंबा कद, स्याह घने बाल, हिरनी जैसी आंखें और शादी में लाया गया ढेर सारा दहेज, जिस के कारण महल्ले की सासें अपनी बहुओं को ताने दिया करती थीं, आज बेमानी बन कर रह गया, तो मेरी सुंदर काया का मूल्य पल भर में कौडि़यों का हो गया. मेरी उड़ती नजर आंगन के कोने में खड़ी मोटरसाइकिल पर गई.इसी मोटरसाइकिल के लिए मझे 4 दिन तक भूखा रखा गया था और 6 महीने तक मैं मायके में पड़ी रही थी. आखिर पापा ने अपने फंड में से पैसा निकाल कर नवीन को मोटरसाइकिल ले दी थी. अब कौन चलाएगा इसे? नवीन की मौत से हट कर मेरा मन हर राउंड में लाई गई चीजों की फेहरिस्त बना रहा था.

कुल 2 साल ही तो हुए थे हमारी शादी को और हमारी बेटी मिनी साल भर की है. खुद को कर्ज में डुबो कर बेटी का घर भर दिया था पापा ने. क्या मैं उस आदमी के लिए रोऊं जो हर वक्त कुछ न कुछ मांगता ही रहता था और हर चौथे दिन रुई की तरह धुन देता था. तभी औरतों की खींचातानी से मिनी रोई तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं उसे औरतों की भीड़ से निकाल कर कमरे में ले आई. औरतों का आनाजाना कई दिनों तक लगा रहा. कुछ मुझ कुलच्छनी बहू को घूरघूर कर एकदूसरे से बतियाती हुई आंसू बहातीं तो कुछ मेरे न रोनेधोने के कारण किसी रहस्य को सूंघने की कोशिश करतीं. पर मुझे उन की परवाह नहीं थी.

मां जो शेरनी की तरह दहाड़ती रहती थीं अब भीगी बिल्ली सी आंसू बहाती रहतीं. मेरी ननद गीता और उस के पति रजनीश भी आगए थे. गीता मेरे कमरे के फेरे मारती रहती और एकएक कीमती चीज के दाम पूछती रहती. रजनीश की नजर मोटरसाइकिल पर थी. गीता को वापस जाना था. रजनीश ने खिसियानी सी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘भाभी, अब इस मोटरसाइकिल का यहां क्या होगा? कहो तो मैं ले जाऊं. डीटीसी बसों में आतेजाते मैं तो तंग आ गया हूं. रोज देर हो जाती है तो बौस की डांट खानी पड़ती है.’’ फिर मोटरसाइकिल पर बैठ कर ट्रायल लेने लगा.

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गीता भी पीछे नहीं रही, ‘‘भाभी, इस कौस्मैटिक बौक्स का अब आप क्या करेंगी? आप के लिए तो बेकार है. मैं ले जाती हूं इसे. कितने सारे तो परफ्यूम्स हैं. इतनी अच्छी चीजें इंडिया में कहां बनती हैं. आप के पापा का भी जवाब नहीं. हर चीज कीमती दी है आप को.’’

क्या संबंध स्वार्थ की कागजी नींव पर टिके होते हैं? यह सोचते हुए संबंधों पर से मेरी आस्था हटने लगी. यह वही गीता है, जो बारबार गश खा कर गिर रही थी और भाई की मौत को अभी 4 दिन भी नहीं गुजरे इस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. गीता और रजनीश की नजर तो मेरे लैपटौप और महंगे मोबाइलों पर भी थी, क्योंकि बाबूजी ने कह दिया था कि मोटरसाइकिल वगैरह अभी यहीं रहने दो. बाद में देखेंगे. गीता ने एक बार झिझकते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप के पास तो 2 मोबाइल हैं. वाऊ, कितने खूबसूरत हैं.’’

मैं ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘मैं तो ऐसे ही कह रही थी.’’

गीता और रजनीश के जाने के बाद घर में गहरा सन्नाटा छा गया. मां और बाबूजी दोनों ही शंकित थे कि कहीं मैं भी उन्हें छोड़ कर न चली जाऊं. पर अब कहां जाना था मुझे. हालांकि पापा ने मुझे साथ चलने को कहा था पर मैं ने मना कर दिया. बाबूजी का दुलार तो मुझे हमेशा ही मिलता रहा था पर मां और नवीन के सामने उन की चलती ही नहीं थी. पर अब कितना कुछ बदल गया था. थोड़ी भागदौड़ के बाद मुझे नवीन की जगह नौकरी भी मिल गई. रसोईघर जहां मैं दिन भर खटती रहती थी, को मां ने संभाल लिया था. नौकरी पर आतेजाते मुझे लगता था कि कई आंखें मुझे घूर रही हैं. दरअसल, वे औरतें, जिन्हें मुझे ले कर निंदासुख मिलता था अब अजीब नजरों से मुझे देखती थीं. एक अभी हुई विधवा रोज नईनई पोशाकें पहन कर दफ्तर जाए यह बात उन के गले से नहीं उतरती थी. मां का भी अब महल्ले की चौपाल पर बैठना लगभग बंद हो गया था, तो पड़ोसिनों का आनाजाना भी कम हो गया था.

मेरी नौकरी ने जैसे मुझे नया जीवन दे दिया था. ऐसा लगता था जैसे मरुस्थल में बरसाती बादल उमड़नेघुमड़ने लगे हों. इस से बेचैनी और भी बढ़ जाती, तो मैं सोचती कि मैं विधवा हो गई तो इस में मेरा क्या कुसूर? दहेज में मिली कई कीमती साडि़यों की तह अभी तक नहीं खुली थीं. मैं जब उन में से कोई साड़ी निकाल कर पहनती तो मां प्रश्नवाचक नजरों से चुपचाप देखती रहतीं और मैं जानबूझ कर अनजान बनी रहती. कालोनी की जवान लड़कियों को मेरा कलर कौंबिनेशन बहुत पसंद आता. वे प्रशंसनीय नजरों से मुझे देखतीं पर मैं इस सब से तटस्थ रहती.

दफ्तर में मुझे सब से ज्यादा आकर्षित करता था शेखर. वह मेरे काम में मेरी मदद करता. फिर कभीकभी बाहर किसी रेस्तरां में कौफी पीने भी हम चले जाते. गपशप के दौरान कब वह मेरे करीब आता चला गया मुझे पता ही नहीं चला. धीरेधीरे हम दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. एक दिन इतवार को दोपहर के समय जब मैं मिनी को गोद में लिए बाहर निकली तो मां ने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा. मुझे लगा जैसे मैं कोई अपराध करने जा रही हूं. पर अब मैं ने नजरों की भाषा को पढ़ना छोड़ दिया था. मन में एक अजीब सी प्यास थी और मैं मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रही थी.

देर शाम को जब घर लौटी तो मां की नजर में कई सवाल थे. वे मिनी को उठा कर बाहर ले गईं और लौटीं तो पूछा, ‘‘यह शेखर अंकल कौन है?’’ मैं सन्न रह गई. मां मुझ से ऐसा सीधा सवाल करेंगी यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मगर जल्दी ही मैं ने खुद को संभाला ओर बोली, ‘‘शेखर मेरे दफ्तर में काम करता है. मौल में मिल गया था.’’ मां ने हुंकार भरा और अपने कमरे में चली गईं. देर रात तक मां और बाबूजी की आवाजें कटकट कर मेरे कानों में आती रहीं और मैं दमसाधे सुनती रही. साथ में यह भी सोचती रही कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग? क्या मैं सारी उम्र यों ही गुजार दूं?

मुझे अकसर औफिस से आतेआते देर हो जाती. तब बाबूजी मुझे बस स्टौप पर खड़े मिलते. मुझे देखते ही कहते, ‘‘मैं यों ही टहलता हुआ इधर निकल आया था. सोचा, तुम आ रही होगी.’’ फिर सिर झुकाए साथसाथ चलने लगते. मुझे ऐसा लगता जैसे मैं कांच के मकान में रह रही हूं, जरा सी ठोकर लगते ही टूट जाएगा. मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती थी पर बाबूजी और मां का बुढ़ापा कैसे कटेगा यह सवाल मुझे सालता था. मैं शेयर के साथ अपनी तनहाई शेखर करना चाहती पर मां और बाबूजी का बुढ़ापा बीच में आ जाता था उन की आंखों का डर मुझे खुल कर जीने नहीं दे रहा था. शेखर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर गया था. मैं सोच रही थी कि जब वह वापस आएगा तो उस से खुल कर बात करूंगी. उस ने वादा किया था कि वह अपने मांबाप को मना लेगा इसलिए मैं आश्वस्त थी.

लेकिन एक दिन औफिस में मैं ने अपनी मेज पर एक लंबा लिफाफा रखा देखा. लिफाफा खुला ही था. अंदर से कागज निकाला तो देखा तो लगा छनाक से कुछ टूट गया हो. एक वैडिंग कार्ड था- शेखर विद सरोज. साथ में एक चिट्ठी भी थी जिस में लिखा था- मीरा, एक विधवा के साथ विवाह करने की बात मेरे मम्मीडैडी के गले नहीं उतरी. विधवा, उस पर एक बच्ची की मां. सच मानो मीरा मैं ने मम्मीडैडी को समझाने की बहुत कोशिश की पर अपने अविवाहित बेटे के लिए उन के दिल में बड़ेबड़े अरमान हैं. कैसे तोड़ दूं उन्हें… मुझे क्षमा कर देना, मीरा. अगले दिन मैं ने निगाह घुमा कर देखा, शेखर मोटीमोटी फाइलों में गुम होने का असफल प्रयास कर रहा था. मैं ने खत सहित वैडिंग कार्ड को टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाला तो उस ने घूर कर मुझे देखा. मैं रोई नहीं. रोना मेरी आदत नहीं है. मैं तेजी से टाइप करती रही और मैं ने चपरासी को पंखा तेज करने को कहा, क्योंकि मन की तपिश और बढ़ गई थी.

शाम को जब औफिस से निकली तो खुली हवा के झोंके मन को सहलाने लगे मेरे कदम अपनेआप ही न्यू औप्टिकल स्टोर की ओर बढ़ गए. बाबूजी के लिए नया चश्मा बनवा कर जब निकली तो याद आया कि मां कई दिन से एक साड़ी लाने को कह रही थीं. एक ही क्षण में दुनिया कितनी बदल गई थी. बाबूजी डेढ़ महीने से नया चश्मा बनवाने को कह रहे थे पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था. उन्हें पढ़नेलिखने में कितनी परेशानी हो रही थी, आज याद आया तो मन में अपराधबोध सा जागने लगा था. लगता है बाबूजी को शेखर के विवाह की बात पता चल गई थी. वे बस स्टौप पर भी नहीं आए. अगली सुबह देखा तो वे मोटरसाइकिल साफ कर रहे थे. मुझे लगा इसे बेचने की तैयारी है. मन में कसैलापन भर गया. पर तभी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें तो मोटरसाइकिल चलानी आती है न. चलो जरा डाक्टर की दुकान तक ले चलो. बसों में जाने में दिक्कत होती है.’’ मैं मुंह खोले उन्हें देखती रह गई और फिर उन के सीने से जा लगी, ‘‘बाबूजी…’’ मुझ से बोला नहीं जा रहा था.

तभी मां की आवाज आई, ‘‘और हां, लौटते हुए बेकरी से एक केक लेती आना. आज तेरा जन्मदिन है न…’’

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March 31, 2021 at 10:00AM

Short Story : गलतियां सभी से होती हैं

लेखक-प्रेमलता यदु
दुलहन के जोड़े में सजी रोली बेहद ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी. वैसे तो रोली प्राकृतिक रूप से खूबसूरत थी, परंतु आज ब्यूटीपार्लर के ब्राइडल मेकअप ने उस के चेहरे पर चार चांद लगा दिया था, किंतु उस के कमनीय चेहरे पर आकुलता थी. उस की नजरें रिसेप्शन में आ रहे मेहमानों पर ही टिकी हुई थीं. उस की निगाहें बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रही थीं.
रोली को इस प्रकार परेशान देख वीर उस के हाथों को थामते हुए बोला, “क्या बात है? आर यू ओके?”
रोली होंठों पर फीकी सी मुसकान लिए बोली, “यस… आई एम ओके,  परंतु थोड़ी सी थकान लग रही है.”
ऐसा सुनते ही वीर ने कहा,  “पार्टी तो काफी देर तक चलेगी. तुम चाहो तो कुछ देर रूम में रिलैक्स हो कर आ जाओ.”
वीर के ऐसा कहने पर रोली रूम में चली आई और फौरन मोबाइल फोन निकाल नंबर डायल करने लगी. फोन बजता रहा, लेकिन किसी ने नहीं उठाया.रोली दुखी हो कर वहीं सोफे पर पसर गई.
उसे डौली आंटी याद आने लगी. आज वह जो भी है, उन्हीं की वजह से है वरना  वह तो इस महानगरी में गुमनामी की जिंदगी जीने की ओर अग्रसर थी. वो डौली आंटी ही थीं, जिन्होंने वक्त पर उस का हाथ थाम लिया और वह उस गर्त में जाने से बच ग‌ई.
आज उस का प्यार वीर उस के साथ है. यह भी डौली आंटी की ही देने है. पर, अब तक वे आई क्यों नहीं? उन्होंने तो वादा किया था कि वे अंकल के साथ उस की शादी में जरूर आएंगी.
यही सब सोचती हुई रोली वहां पहुंच गई. अपने परिवार वालों से जिद कर वह एक सफल इंटीरियर डिजाइनर बनने का इरादा मन में ठाने जब अपने छोटे से शहर जौनपुर से दिल्ली आई थी.
यहां दिल्ली यूनिवर्सिटी में आ कर उस ने जो देखा, उसे देख वह भौंचक्की सी रह गई. यहां सभी लड़केलड़कियां बिना किसी पाबंदी के उन्मुक्त बिंदास अंदाज में खुल कर जीता देख रोली खुशी से उछल पड़ी. ऐसा उस ने पहले कभी नहीं देखा था.यहां ना तो कोई किसी को रोकने वाला था और ना ही कोई टोकने वाला, जैसा चाहो वैसा जियो.
रोली भी अब आजाद पंछी की भांति आकाश में उड़ने को तैयार थी.
वहां जौनपुर में दादी, मम्मीपापा, चाचाचाची, ताऊ यहां तक कि उस का छोटा भाई भी उस पर बंदिशें लगाता. हर छोटीबड़ी बातों के लिए उसे अनुमति लेनी पड़ती, परंतु यहां ऐसा कुछ नहीं था.
यहां रोली स्वयं अपनी मरजी की मालकिन थी. वह वो सब कर सकती थी, जो उस का दिल चाहता.
दिल्ली में आने के पश्चात रोली अपना लक्ष्य भूल यहां के चकाचौंध में खो गई. वह तो अपनी रूम पार्टनर रागिनी के संग जिंदगी के मजे लूटने लगी.
रागिनी उस से एक साल ‌सीनियर थी और हर मामले में स्मार्ट, र‌ईस लड़कों को अपनी अदाओं से रिझाना, उन्हें फांसना और उन से पैसे खर्च कराना, ये सारे हुनर उसे बखूबी आते थे, लेकिन रोली इन सब बातों से बेखबर बस रागिनी के बोल्डनेस और उस के बिंदास जीने के अंदाज की कायल थी.
रोली बिना सोचेसमझे कालेज में दिखावा और खुद को मौडल बताने के चक्कर में पैसे खर्च करने लगी. उसे इस बात का भी खयाल ना रहा कि वह एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती है, जहां पैसे हिसाब से खर्च किए जाते हैं.
अपने घर की सारी परिस्थितियों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद रोली रागिनी के रंग में रंगने लगी. केवल अब तक वह सिगरेट और शराब से बची हुई थी, लेकिन रागिनी को बिंदास धुआं उड़ाते, कश लगाते और पी कर लहराते देख कभीकभी उस का भी मन करता, लेकिन ना जाने कौन सी बात उसे रोक लेती. इस बार पैसे खत्म होने पर जब उस ने घर पर मां को फोन किया, तो मां भरे कंठ से बोली, “रोली, देखो बेटा हम हर महीने तुम्हें जितने पैसे भेजते हैं, तुम उसी से खर्च चलाने की कोशिश करो अन्यथा तुम्हें यहां वापस आना पड़ेगा.”
मां और भी कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उन के कहने से पहले ही रोली ने फोन काट दिया. होस्टल के कमरे में आई, तो उस ने देखा कि रागिनी अपना सारा सामान समेट कर कहीं जाने की तैयारी में है. यह देख रोली बोली, “कहां जा रही हो?”
रागिनी हंसते हुए अपने दोनों हाथ रोली के कंधे पर टिकाती हुई बोली, “ऐश करने, मेरी जान.”
रोली आश्चर्य से रागिनी को देखने लगी, तभीरागनी धुआं उड़ाती हुई बोली, “नहीं समझी मेरी मोम की भोली गुड़िया, मैं सौरभ के पास जा रही हूं. अब हम दोनों साथ ही रहेंगे. उस के बाप के पास बहुत माल है. उसे उड़ाने के लिए कोई तो चाहिए ना, सो मैं जा रही हूं. वैसे भी सौरभ मुझ पर लट्टू है.”
यह सुनते ही रोली बोली, “लेकिन…”
रागिनी उसे बीच में ही टोकती हुई बोली, “लेकिन क्या…? माई स्विट हार्ट मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूं. मेरी मान तो तू भी होस्टल छोड़ करबकिसी पीजी में रहने चली जा, फिर बिंदास रहना अपने वीर के साथ, समय पर होस्टल लौटने का कोई लफड़ा  नहीं, अच्छा चलती हूं… फिर मिलते हैं,” कहती हुई रागिनी झूमते हुए चली गई.
रागिनी के होस्टल से चले जाने के पश्चात रोली भी कुछ दिनों में होस्टल छोड़ पीजी में डौली आंटी के यहां आ गई.
यहां आने के बाद उसे पता चला कि यहां रहना इतना आसान नहीं है. लोग डौली आंटी के बारे में तरहतरह की बातें किया करते थे. कोई उन्हें खड़ूस, कोई पागल, तो कोई उन्हें सीसीटीवी कहता, क्योंकि उन की नजरों से कुछ भी छुपना नामुमकिन था. आसपड़ोस की महिलाएं तो उन से बात करने से भी कतरातीं, सब कहतीं कि न जाने कब ये सनबकी बुढ़िया किस बात पर सनक जाए.
डौली आंटी की टोकाटाकी की वजह से कोई ज्यादा दिनों तक यहां टिकता भी नहीं था, लेकिन रोली का अब यहां रहना मजबूरी था, क्योंकि वह होस्टल छोड़ चुकी थी और सब से बड़ी बात डौली आंटी पैसे भी कम ले रही थी, यहां से कालेज की दूरी भी ज्यादा नहीं थी, जिस की वजह से बस और रिकशा के पैसे भी बच रहे थे और साथ ही साथ डौली आंटी के हाथों  में वो जादू था कि वह जो भी खाना बनाती स्वादिष्ठ और लजीज होता, उस में बिलकुल मां के हाथों का स्वाद होता.
सब ठीक था, लेकिन डौली आंटी की टोकाटाकी और जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप रोली को नागवार गुजरने लगा. वह वीर के साथ भी वैसे समय नहीं बिता पा रही थी, जैसा उस ने सोचा था.
जब उस ने वीर से इस बारे में बात की, तो वह कहने लगा, “आंटी स्ट्रिक्ट है तो क्या हुआ… वह तुम्हारा भला ही चाहती है. 1-2 साल में मेरा  प्रमोशन हो जाएगा. कंपनी की ओर से मुझे फ्लेट भी मिल जाएगा और तुम्हारा ग्रेजुएशन भी पूरा हो जाएगा, फिर हम शादी कर साथ रहेंगे.”
वीर से यह सब सुन रोली स्तब्ध रह ग‌ई. वह तो उस से शादी करना ही नहीं चाहती. वह तो बस वीर को अपनी खूबसूरती और मोहपाश के झूठे जाल में केवल पैसों के लिए बांध रखी थी और वह भी रागिनी के कहने पर, लेकिन अब वीर उस से शादी की सोच रहा है. यह जान कर रोली विचलित हो ग‌ई.
अपसेट रोली घर पहुंची, तो उस ने देखा कि डौली आंटी और अंकल कहीं जाने की तैयारी में हैं. उसे देखते ही आंटी बोली, “रोली बेटा मैं और अंकल एक शादी में  जा रहे हैं. कल रात तक लौटेंगे. तुम अपना और घर का खयाल रखना, रात को दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना,” इतना कह कर वे दोनों चले गए.
परेशान रोली को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. तभी रागिनी का फोन आया.
रोली उसे फोन पर सारी बातें बता कर इस समस्या से बाहर निकलने का हल पूछने लगी, तो रागनी ने कहा, “डोंट वरी डियर, आज रात मैं तेरे रूम पर आती हूं. दोनों पार्टी करते हैं और सोचते हैं कि क्या करना है.”
रोली नहीं चाहती थी कि रागिनी आए, लेकिन वह उसे मना ना कर सकी. रागिनी शराब, सिगरेट और दो चीज पिज्जा ले कर पहुंची.
ये सब देख कर रोली चिढ़ती हुई बोली, “तू ये सब क्या ले कर आई है? आंटी को पता चल गया, तो वह मुझे निकाल देगी.”
“चिल यार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. वैसे भी आंटी तो कल रात तक लौटेंगी?” कहती हुई रागिनी एक गिलास में शराब डालती हुई धुआं उड़ाने लगी.
रोली भी वीर की बातों से परेशान तो थी ही, वह भी सिगरेट सुलगा कर पीने लगी. तभी रागिनी अपने बैग से एक छोटी सी पुड़िया निकाल कर रोली को देती हुई बोली, “इसे ट्राई कर… ये जादू की पुड़िया है. इसे लेते ही तेरी सारी परेशानी उड़नछू हो जाएगी.”
यह सुन कर रोली पुड़िया खोल कर एक ही बार में ले ली. पुड़िया लेने के कुछ समय पश्चात वह बेहोश होने लगी. यह देख कर रागिनी उसे उसी हालत में छोड़ भाग गई.
जब रोली को होश आया, तो उस ने स्वयं को अस्पताल के बेड पर लेटा पाया, जहां एक ओर डौली आंटी डबडबाई आंखों से स्टूल पर बैठी थी और अंकल डाक्टर से कुछ बातें कर रहे थे.
रोली को होश में आया देख आंटी ने रोली का माथा चूम लिया. रोली घबराई हुई डौली आंटी की ओर देखने लगी, तभी आंटी रोली का हाथ अपने हाथों में लेती हुई बोली, “शादी में पहुंचने के बाद मैं ने रात को क‌ई दफे तुम्हें फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, किसी अनहोनी के भय से हम उसी वक्त घर लौट आए. यहां आ कर देखा, तो बाहर का दरवाजा खुला था और तुम बेहोश पड़ी थी. पूरे कमरे में शराब की बोतल, सिगरेट और ड्रग्स के पैकेट पड़े थे. हम समझ गए कि आखिर माजरा क्या है.”
फिर आंटी लंबी सांस लेते हुए बोली, “तुम सब यह सोचते हो ना कि मैं इतनी खड़ूस, इतनी स्ट्रिक्ट क्यों हूं. मैं ऐसी इसलिए हूं, क्योंकि इसी ड्रग्स की वजह से मैं ने अपने एकलौते बेटे को खोया है…
“और मैं यह नहीं चाहती कि कोई भी मांबाप अपने बच्चे को इस वजह से खोए. मेरा बेटा भी तुम्हारी तरह आंखों में क‌ई सुनहरे सपने लिए बीई की पढ़ाई करने जालंधर गया था, लेकिन वहां जा कर वह बुरी संगत में पड़ ड्रग्स लेने लगा, क्योंकि वहां कोई रोकटोक करने वाला नहीं था और हर कोई बस यही सोचता था कि हमें क्या करना…?
“एक बार सप्ताहभर उस ने कोई फोन नहीं किया, हमारे फोन लगाने पर वह फोन भी नहीं उठा रहा था, तब हम परेशान हो कर उस के पास पहुंचे, तो पता चला कि वह ड्रग्स की ओवरडोज के कारण हफ्तेभर से अपने कमरे में बेहोश पड़ा है. उसे देखने वाला कोई नहीं था. हम उसे उसी हालत में यहां ले आए, लेकिन बचा ना सके.”
यह सब कहती हुई डौली आंटी फूटफूट कर रो पड़ी. रोली की आंखों के कोर में भी पानी आ गया.
आंटी ने आगे बताया कि तुम भी ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से बेहोश पड़ी थी. आज पूरे 2 दिन बाद तुम्हें होश आया है.
यह सुन कर रोली की आंखें शर्म से झुक गईं. तभी आंटी बोली, “बेटी, गलतियां तो सभी से होती हैं, लेकिन उन गलतियों से सबक ले कर आगे बढ़ना ही जीवन है. अक्लमंदी और समझदारी इसी में है कि वक्त रहते उन्हें सुधार लिया जाए .”
फिर आंटी मुसकराती हुई बोली, “वीर एक अच्छा लड़का है. तुम्हें बहुत प्यार भी करता है और शायद तुम भी, वरना पिछले डेढ़ साल में रागिनी की तरह तुम भी क‌ई बौयफ्रेंड बदल चुकी होती.
“वीर तुम्हें क‌ई बार फोन कर चुका है, मैं ने उस से कहा है कि तुम हमारे साथ शादी में आई हो और अभी काम में व्यस्त हो.”
खटखट की आवाज से रोली वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही डौली आंटी और अंकल सामने खड़े थे. उन्हें देखते ही रोली आंटी से लिपट रो पड़ी, उसे शांत कराती हुई आंटी बोली, “रोते नहीं बेटा, अब तुम एक सफल इंटीरियर डिजाइनर हो. तुम सफलता के उस शिखर पर हो, जहां पहुंचने का सपना लिए तुम इस महानगरी में आई थीं. आज खुशी का दिन है,अब आंसू पोंछो और चलो वीर तुम्हारा पार्टी में इंतजार कर रहा है.”

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लेखक-प्रेमलता यदु
दुलहन के जोड़े में सजी रोली बेहद ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी. वैसे तो रोली प्राकृतिक रूप से खूबसूरत थी, परंतु आज ब्यूटीपार्लर के ब्राइडल मेकअप ने उस के चेहरे पर चार चांद लगा दिया था, किंतु उस के कमनीय चेहरे पर आकुलता थी. उस की नजरें रिसेप्शन में आ रहे मेहमानों पर ही टिकी हुई थीं. उस की निगाहें बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रही थीं.
रोली को इस प्रकार परेशान देख वीर उस के हाथों को थामते हुए बोला, “क्या बात है? आर यू ओके?”
रोली होंठों पर फीकी सी मुसकान लिए बोली, “यस… आई एम ओके,  परंतु थोड़ी सी थकान लग रही है.”
ऐसा सुनते ही वीर ने कहा,  “पार्टी तो काफी देर तक चलेगी. तुम चाहो तो कुछ देर रूम में रिलैक्स हो कर आ जाओ.”
वीर के ऐसा कहने पर रोली रूम में चली आई और फौरन मोबाइल फोन निकाल नंबर डायल करने लगी. फोन बजता रहा, लेकिन किसी ने नहीं उठाया.रोली दुखी हो कर वहीं सोफे पर पसर गई.
उसे डौली आंटी याद आने लगी. आज वह जो भी है, उन्हीं की वजह से है वरना  वह तो इस महानगरी में गुमनामी की जिंदगी जीने की ओर अग्रसर थी. वो डौली आंटी ही थीं, जिन्होंने वक्त पर उस का हाथ थाम लिया और वह उस गर्त में जाने से बच ग‌ई.
आज उस का प्यार वीर उस के साथ है. यह भी डौली आंटी की ही देने है. पर, अब तक वे आई क्यों नहीं? उन्होंने तो वादा किया था कि वे अंकल के साथ उस की शादी में जरूर आएंगी.
यही सब सोचती हुई रोली वहां पहुंच गई. अपने परिवार वालों से जिद कर वह एक सफल इंटीरियर डिजाइनर बनने का इरादा मन में ठाने जब अपने छोटे से शहर जौनपुर से दिल्ली आई थी.
यहां दिल्ली यूनिवर्सिटी में आ कर उस ने जो देखा, उसे देख वह भौंचक्की सी रह गई. यहां सभी लड़केलड़कियां बिना किसी पाबंदी के उन्मुक्त बिंदास अंदाज में खुल कर जीता देख रोली खुशी से उछल पड़ी. ऐसा उस ने पहले कभी नहीं देखा था.यहां ना तो कोई किसी को रोकने वाला था और ना ही कोई टोकने वाला, जैसा चाहो वैसा जियो.
रोली भी अब आजाद पंछी की भांति आकाश में उड़ने को तैयार थी.
वहां जौनपुर में दादी, मम्मीपापा, चाचाचाची, ताऊ यहां तक कि उस का छोटा भाई भी उस पर बंदिशें लगाता. हर छोटीबड़ी बातों के लिए उसे अनुमति लेनी पड़ती, परंतु यहां ऐसा कुछ नहीं था.
यहां रोली स्वयं अपनी मरजी की मालकिन थी. वह वो सब कर सकती थी, जो उस का दिल चाहता.
दिल्ली में आने के पश्चात रोली अपना लक्ष्य भूल यहां के चकाचौंध में खो गई. वह तो अपनी रूम पार्टनर रागिनी के संग जिंदगी के मजे लूटने लगी.
रागिनी उस से एक साल ‌सीनियर थी और हर मामले में स्मार्ट, र‌ईस लड़कों को अपनी अदाओं से रिझाना, उन्हें फांसना और उन से पैसे खर्च कराना, ये सारे हुनर उसे बखूबी आते थे, लेकिन रोली इन सब बातों से बेखबर बस रागिनी के बोल्डनेस और उस के बिंदास जीने के अंदाज की कायल थी.
रोली बिना सोचेसमझे कालेज में दिखावा और खुद को मौडल बताने के चक्कर में पैसे खर्च करने लगी. उसे इस बात का भी खयाल ना रहा कि वह एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती है, जहां पैसे हिसाब से खर्च किए जाते हैं.
अपने घर की सारी परिस्थितियों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद रोली रागिनी के रंग में रंगने लगी. केवल अब तक वह सिगरेट और शराब से बची हुई थी, लेकिन रागिनी को बिंदास धुआं उड़ाते, कश लगाते और पी कर लहराते देख कभीकभी उस का भी मन करता, लेकिन ना जाने कौन सी बात उसे रोक लेती. इस बार पैसे खत्म होने पर जब उस ने घर पर मां को फोन किया, तो मां भरे कंठ से बोली, “रोली, देखो बेटा हम हर महीने तुम्हें जितने पैसे भेजते हैं, तुम उसी से खर्च चलाने की कोशिश करो अन्यथा तुम्हें यहां वापस आना पड़ेगा.”
मां और भी कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उन के कहने से पहले ही रोली ने फोन काट दिया. होस्टल के कमरे में आई, तो उस ने देखा कि रागिनी अपना सारा सामान समेट कर कहीं जाने की तैयारी में है. यह देख रोली बोली, “कहां जा रही हो?”
रागिनी हंसते हुए अपने दोनों हाथ रोली के कंधे पर टिकाती हुई बोली, “ऐश करने, मेरी जान.”
रोली आश्चर्य से रागिनी को देखने लगी, तभीरागनी धुआं उड़ाती हुई बोली, “नहीं समझी मेरी मोम की भोली गुड़िया, मैं सौरभ के पास जा रही हूं. अब हम दोनों साथ ही रहेंगे. उस के बाप के पास बहुत माल है. उसे उड़ाने के लिए कोई तो चाहिए ना, सो मैं जा रही हूं. वैसे भी सौरभ मुझ पर लट्टू है.”
यह सुनते ही रोली बोली, “लेकिन…”
रागिनी उसे बीच में ही टोकती हुई बोली, “लेकिन क्या…? माई स्विट हार्ट मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूं. मेरी मान तो तू भी होस्टल छोड़ करबकिसी पीजी में रहने चली जा, फिर बिंदास रहना अपने वीर के साथ, समय पर होस्टल लौटने का कोई लफड़ा  नहीं, अच्छा चलती हूं… फिर मिलते हैं,” कहती हुई रागिनी झूमते हुए चली गई.
रागिनी के होस्टल से चले जाने के पश्चात रोली भी कुछ दिनों में होस्टल छोड़ पीजी में डौली आंटी के यहां आ गई.
यहां आने के बाद उसे पता चला कि यहां रहना इतना आसान नहीं है. लोग डौली आंटी के बारे में तरहतरह की बातें किया करते थे. कोई उन्हें खड़ूस, कोई पागल, तो कोई उन्हें सीसीटीवी कहता, क्योंकि उन की नजरों से कुछ भी छुपना नामुमकिन था. आसपड़ोस की महिलाएं तो उन से बात करने से भी कतरातीं, सब कहतीं कि न जाने कब ये सनबकी बुढ़िया किस बात पर सनक जाए.
डौली आंटी की टोकाटाकी की वजह से कोई ज्यादा दिनों तक यहां टिकता भी नहीं था, लेकिन रोली का अब यहां रहना मजबूरी था, क्योंकि वह होस्टल छोड़ चुकी थी और सब से बड़ी बात डौली आंटी पैसे भी कम ले रही थी, यहां से कालेज की दूरी भी ज्यादा नहीं थी, जिस की वजह से बस और रिकशा के पैसे भी बच रहे थे और साथ ही साथ डौली आंटी के हाथों  में वो जादू था कि वह जो भी खाना बनाती स्वादिष्ठ और लजीज होता, उस में बिलकुल मां के हाथों का स्वाद होता.
सब ठीक था, लेकिन डौली आंटी की टोकाटाकी और जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप रोली को नागवार गुजरने लगा. वह वीर के साथ भी वैसे समय नहीं बिता पा रही थी, जैसा उस ने सोचा था.
जब उस ने वीर से इस बारे में बात की, तो वह कहने लगा, “आंटी स्ट्रिक्ट है तो क्या हुआ… वह तुम्हारा भला ही चाहती है. 1-2 साल में मेरा  प्रमोशन हो जाएगा. कंपनी की ओर से मुझे फ्लेट भी मिल जाएगा और तुम्हारा ग्रेजुएशन भी पूरा हो जाएगा, फिर हम शादी कर साथ रहेंगे.”
वीर से यह सब सुन रोली स्तब्ध रह ग‌ई. वह तो उस से शादी करना ही नहीं चाहती. वह तो बस वीर को अपनी खूबसूरती और मोहपाश के झूठे जाल में केवल पैसों के लिए बांध रखी थी और वह भी रागिनी के कहने पर, लेकिन अब वीर उस से शादी की सोच रहा है. यह जान कर रोली विचलित हो ग‌ई.
अपसेट रोली घर पहुंची, तो उस ने देखा कि डौली आंटी और अंकल कहीं जाने की तैयारी में हैं. उसे देखते ही आंटी बोली, “रोली बेटा मैं और अंकल एक शादी में  जा रहे हैं. कल रात तक लौटेंगे. तुम अपना और घर का खयाल रखना, रात को दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना,” इतना कह कर वे दोनों चले गए.
परेशान रोली को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. तभी रागिनी का फोन आया.
रोली उसे फोन पर सारी बातें बता कर इस समस्या से बाहर निकलने का हल पूछने लगी, तो रागनी ने कहा, “डोंट वरी डियर, आज रात मैं तेरे रूम पर आती हूं. दोनों पार्टी करते हैं और सोचते हैं कि क्या करना है.”
रोली नहीं चाहती थी कि रागिनी आए, लेकिन वह उसे मना ना कर सकी. रागिनी शराब, सिगरेट और दो चीज पिज्जा ले कर पहुंची.
ये सब देख कर रोली चिढ़ती हुई बोली, “तू ये सब क्या ले कर आई है? आंटी को पता चल गया, तो वह मुझे निकाल देगी.”
“चिल यार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. वैसे भी आंटी तो कल रात तक लौटेंगी?” कहती हुई रागिनी एक गिलास में शराब डालती हुई धुआं उड़ाने लगी.
रोली भी वीर की बातों से परेशान तो थी ही, वह भी सिगरेट सुलगा कर पीने लगी. तभी रागिनी अपने बैग से एक छोटी सी पुड़िया निकाल कर रोली को देती हुई बोली, “इसे ट्राई कर… ये जादू की पुड़िया है. इसे लेते ही तेरी सारी परेशानी उड़नछू हो जाएगी.”
यह सुन कर रोली पुड़िया खोल कर एक ही बार में ले ली. पुड़िया लेने के कुछ समय पश्चात वह बेहोश होने लगी. यह देख कर रागिनी उसे उसी हालत में छोड़ भाग गई.
जब रोली को होश आया, तो उस ने स्वयं को अस्पताल के बेड पर लेटा पाया, जहां एक ओर डौली आंटी डबडबाई आंखों से स्टूल पर बैठी थी और अंकल डाक्टर से कुछ बातें कर रहे थे.
रोली को होश में आया देख आंटी ने रोली का माथा चूम लिया. रोली घबराई हुई डौली आंटी की ओर देखने लगी, तभी आंटी रोली का हाथ अपने हाथों में लेती हुई बोली, “शादी में पहुंचने के बाद मैं ने रात को क‌ई दफे तुम्हें फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, किसी अनहोनी के भय से हम उसी वक्त घर लौट आए. यहां आ कर देखा, तो बाहर का दरवाजा खुला था और तुम बेहोश पड़ी थी. पूरे कमरे में शराब की बोतल, सिगरेट और ड्रग्स के पैकेट पड़े थे. हम समझ गए कि आखिर माजरा क्या है.”
फिर आंटी लंबी सांस लेते हुए बोली, “तुम सब यह सोचते हो ना कि मैं इतनी खड़ूस, इतनी स्ट्रिक्ट क्यों हूं. मैं ऐसी इसलिए हूं, क्योंकि इसी ड्रग्स की वजह से मैं ने अपने एकलौते बेटे को खोया है…
“और मैं यह नहीं चाहती कि कोई भी मांबाप अपने बच्चे को इस वजह से खोए. मेरा बेटा भी तुम्हारी तरह आंखों में क‌ई सुनहरे सपने लिए बीई की पढ़ाई करने जालंधर गया था, लेकिन वहां जा कर वह बुरी संगत में पड़ ड्रग्स लेने लगा, क्योंकि वहां कोई रोकटोक करने वाला नहीं था और हर कोई बस यही सोचता था कि हमें क्या करना…?
“एक बार सप्ताहभर उस ने कोई फोन नहीं किया, हमारे फोन लगाने पर वह फोन भी नहीं उठा रहा था, तब हम परेशान हो कर उस के पास पहुंचे, तो पता चला कि वह ड्रग्स की ओवरडोज के कारण हफ्तेभर से अपने कमरे में बेहोश पड़ा है. उसे देखने वाला कोई नहीं था. हम उसे उसी हालत में यहां ले आए, लेकिन बचा ना सके.”
यह सब कहती हुई डौली आंटी फूटफूट कर रो पड़ी. रोली की आंखों के कोर में भी पानी आ गया.
आंटी ने आगे बताया कि तुम भी ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से बेहोश पड़ी थी. आज पूरे 2 दिन बाद तुम्हें होश आया है.
यह सुन कर रोली की आंखें शर्म से झुक गईं. तभी आंटी बोली, “बेटी, गलतियां तो सभी से होती हैं, लेकिन उन गलतियों से सबक ले कर आगे बढ़ना ही जीवन है. अक्लमंदी और समझदारी इसी में है कि वक्त रहते उन्हें सुधार लिया जाए .”
फिर आंटी मुसकराती हुई बोली, “वीर एक अच्छा लड़का है. तुम्हें बहुत प्यार भी करता है और शायद तुम भी, वरना पिछले डेढ़ साल में रागिनी की तरह तुम भी क‌ई बौयफ्रेंड बदल चुकी होती.
“वीर तुम्हें क‌ई बार फोन कर चुका है, मैं ने उस से कहा है कि तुम हमारे साथ शादी में आई हो और अभी काम में व्यस्त हो.”
खटखट की आवाज से रोली वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही डौली आंटी और अंकल सामने खड़े थे. उन्हें देखते ही रोली आंटी से लिपट रो पड़ी, उसे शांत कराती हुई आंटी बोली, “रोते नहीं बेटा, अब तुम एक सफल इंटीरियर डिजाइनर हो. तुम सफलता के उस शिखर पर हो, जहां पहुंचने का सपना लिए तुम इस महानगरी में आई थीं. आज खुशी का दिन है,अब आंसू पोंछो और चलो वीर तुम्हारा पार्टी में इंतजार कर रहा है.”

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नौकरी की चाह छोड़ शुरु की आधुनिक खेती, मुनाफा देख ...

आधुनिक तरीके से खेती को बताया नौकरी से बेहतर - पहली बार बोया काला गेहूं, खेत में ...

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आधुनिक तरीके से खेती को बताया नौकरी से बेहतर - पहली बार बोया काला गेहूं, खेत में ...

अमेरिका से नौकरी छोड़ लौटे इंजीनियर ने पत्थर पर उगा ...

अमेरिका से नौकरी छोड़ लौटे इंजीनियर ने पत्थर पर उगा दिए पेड़, बांस की खेती से ...

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अमेरिका से नौकरी छोड़ लौटे इंजीनियर ने पत्थर पर उगा दिए पेड़, बांस की खेती से ...

News24 - भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी पाने का सुनहरा ...

भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी पाने का ... SBI Recruitment 2021: अगर आप भी बैंक में नौकरी करना ...

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भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी पाने का ... SBI Recruitment 2021: अगर आप भी बैंक में नौकरी करना ...

30 March Horoscope : ये जातक रहें सावधान

नौकरी आदि से समस्या आ सकती है। आज के दिन आपको श्रम अधिक करना पड़ेगा। कर्क राशि — ...

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नौकरी आदि से समस्या आ सकती है। आज के दिन आपको श्रम अधिक करना पड़ेगा। कर्क राशि — ...

जानिए कैसा रहेगा आपका आज का दिन, पढ़िए 30 मार्च 2021 का ...

नौकरी एवम रोजगार मिलने का योग हैं. देश विदेश की यात्रा का योग बन रहा है.समय अनुकूल ...

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नौकरी एवम रोजगार मिलने का योग हैं. देश विदेश की यात्रा का योग बन रहा है.समय अनुकूल ...

FCI Recruitment 2021: FCI में इन विभिन्न पदों पर आवेदन करने की ...

FCI Recruitment 2021: भारतीय खाद्य निगम (FCI) में नौकरी करने की सोच रहे युवाओं के लिए अच्छा ...

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FCI Recruitment 2021: भारतीय खाद्य निगम (FCI) में नौकरी करने की सोच रहे युवाओं के लिए अच्छा ...

क्या वर्चुअल स्कूल बच्चों की दिमागी सेहत को नुकसान ...

... वाले बच्चों के अभिभावकों में नौकरी की असुरक्षा, नौकरी का जाना, बच्चे के देखभाल ...

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... वाले बच्चों के अभिभावकों में नौकरी की असुरक्षा, नौकरी का जाना, बच्चे के देखभाल ...

Horoscope Today 30 March 2021 Aaj Ka Rashifal: कन्या और तुला राशि वाले ...

नौकरी पेशा की बात करें तो लंबे समय से किसी चीज की खोज में हैं तो वह मिल सकती है.

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नौकरी पेशा की बात करें तो लंबे समय से किसी चीज की खोज में हैं तो वह मिल सकती है.

अप्रेंटिस की नौकरी – भारतीयदूत

अप्रेंटिस की नौकरी. Uttar Pradesh · उत्तर प्रदेश · Sarkari Naukri 2021: 10वीं पास के लिए रेलवे में ...

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अप्रेंटिस की नौकरी. Uttar Pradesh · उत्तर प्रदेश · Sarkari Naukri 2021: 10वीं पास के लिए रेलवे में ...

DRDO DMRL नौकरी रिक्ति 2021 ITI उम्मीदवारों के लिए » Rojgar ...

DRDO DMRL नौकरी रिक्ति 2021 ITI उम्मीदवारों के लिए | आवेदन करने की अंतिम तिथि डिफेंस ...

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DRDO DMRL नौकरी रिक्ति 2021 ITI उम्मीदवारों के लिए | आवेदन करने की अंतिम तिथि डिफेंस ...

आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए सैनिक का ...

... की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है।

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... की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है।

कोरोना संकट में नौकरी की टेंशन जाए भूल! 50 हजार रुपये ...

देश में फैले कोरोना संक्रमण (Coronavirus) ने उद्योग जगत के साथ ही लोगों की नौकरी को भी ...

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देश में फैले कोरोना संक्रमण (Coronavirus) ने उद्योग जगत के साथ ही लोगों की नौकरी को भी ...

Horoscope Today 30 March 2021 वृश्चिक—धनु के लिए बेहद शुभ दिन ...

प्राइवेट नौकरी में तरक्की के योग बन रहे हैं। दांपत्य व प्रेम— प्रेम संबंधों में ...

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प्राइवेट नौकरी में तरक्की के योग बन रहे हैं। दांपत्य व प्रेम— प्रेम संबंधों में ...

वीएलआर स्किल फाउंडेशन में फ्रेशर्स की नौकरी – Solution of ...

मेडिकल ट्रांसक्रिप्ट योग्यता: B.Pharma 2020 स्नातक 60% शिक्षाविदों के साथ और कोई ...

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मेडिकल ट्रांसक्रिप्ट योग्यता: B.Pharma 2020 स्नातक 60% शिक्षाविदों के साथ और कोई ...

जीआईसी नौकरी Archives - Indianewsonly

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Aaj Tak - 10वीं पास के लिए रेलवे में नौकरी, जल्द करें ...

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आजमगढ़ में भैंस के दूध ने चलवाई गोलियां, भैंस के ...

वही फहीम सऊदी में रहकर नौकरी करता है घर पर उसकी पत्नी सोहरैया बानो व उसके दो ...

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वही फहीम सऊदी में रहकर नौकरी करता है घर पर उसकी पत्नी सोहरैया बानो व उसके दो ...

Parexel में फ्रेशर्स की नौकरी

Parexel में फ्रेशर्स की नौकरी. Byadmin. Mar 29, 2021. नौकरियां छवियाँ. Parexel निम्नलिखित पदों ...

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'मैं आगे नहीं बढ़ सकता': कोविद की नौकरी छूटने के बीच ...

'मैं आगे नहीं बढ़ सकता': कोविद की नौकरी छूटने के बीच जापान में महिलाओं को अलगाव और ...

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'मैं आगे नहीं बढ़ सकता': कोविद की नौकरी छूटने के बीच जापान में महिलाओं को अलगाव और ...

latest Job Vacancies In India 2021 | भारत में नवीनतम नौकरी रिक्तियों ...

जिसमें उम्मीदवार जाकर हमारे वेबसाइट में क्लिक करके सरकारी नौकरी कैटेगरी में ...

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जिसमें उम्मीदवार जाकर हमारे वेबसाइट में क्लिक करके सरकारी नौकरी कैटेगरी में ...

Indore Crime News: नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी करने वाले दो ...

यहां से दोनों को जेल भेज दिया गया है। इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। नौकरी दिलाने के ...

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यहां से दोनों को जेल भेज दिया गया है। इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। नौकरी दिलाने के ...

आइए जानते हैं क्या होते हैं रिटायरमेंट प्लान, क्या ...

डेफर्ड या इमीडिएट एन्युटी। डेफर्ड एन्युटी प्लान में आप जब नौकरी कर रहे होते हैं ...

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डेफर्ड या इमीडिएट एन्युटी। डेफर्ड एन्युटी प्लान में आप जब नौकरी कर रहे होते हैं ...

Gwalior Board Exam 2021: विद्यार्थियाें का तनाव दूर करने ...

प्रश्न-अगर लॉकडाउन की वजह से जनरल प्रमोशन मिला तो भविष्य में नौकरी के दौरान ...

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Farmer Protest: क्या किसान संगठनों को लगने वाला है तगड़ा ...

ऐसे में उनको रोज 5- 10 किलोमीटर दूर तक पैदल चलकर नौकरी पर पहुंचना पड़ रहा है।

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ऐसे में उनको रोज 5- 10 किलोमीटर दूर तक पैदल चलकर नौकरी पर पहुंचना पड़ रहा है।

Ahmadabad News : रेलवे में नौकरी के नाम पर झांसा

नौकरी के नाम पर ठगी करनेवाले आरोपियों के नेटवर्क गुजरात के अलावा राजस्थान, ...

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नौकरी के नाम पर ठगी करनेवाले आरोपियों के नेटवर्क गुजरात के अलावा राजस्थान, ...

सरकारी नौकरी लाइव 2021 : इन राज्यों के सहकारिता और ...

Sarkari Naukri Live 2021 Latest Govt Jobs News Update : सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं तो तैयार हो जाइए, ...

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Sarkari Naukri Live 2021 Latest Govt Jobs News Update : सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं तो तैयार हो जाइए, ...

सड़क हादसे में बाइक सवार की मौत

... खेड़ा जींद निवासी कर्णबीर ने बताया कि वह सीद्धपुर में शराब ठेके पर नौकरी करता ...

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... खेड़ा जींद निवासी कर्णबीर ने बताया कि वह सीद्धपुर में शराब ठेके पर नौकरी करता ...

Sunday 28 March 2021

Delhi: सरकारी संस्थान में नौकरी दिलाने के नाम पर ...

लिस उपायुक्त अतुल कुमार ठाकुर ने बताया कि 24 मार्च को फतेहपुर बेरी थाना पुलिस को ...

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लिस उपायुक्त अतुल कुमार ठाकुर ने बताया कि 24 मार्च को फतेहपुर बेरी थाना पुलिस को ...

अगली होली तक किन राशियों की पलटेगी किस्मत? 6 राशि ...

धन, नौकरी और कारोबार के मामले में मेष, वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक और मीन राशि के ...

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धन, नौकरी और कारोबार के मामले में मेष, वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक और मीन राशि के ...

पटियाला में बेरोजगारों का अनूठा प्रदर्शन, BSNL टावर ...

बेरोजगारों ने कहा कि नौकरी ना मिलने के कारण उनकी जिंदगी बेरंग हो गई है, घर का ...

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बेरोजगारों ने कहा कि नौकरी ना मिलने के कारण उनकी जिंदगी बेरंग हो गई है, घर का ...

29 मार्च की टॉप 05 सरकारी नौकरी Exams: अभी आवेदन करे

Details. Post Name, Anganwadi Worker, Mini Anganwadi Worker, Angawandi Helper. Total Vacancy, 50,000. Age Limit, 21 to 45 Years. Salary, As per ...

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Details. Post Name, Anganwadi Worker, Mini Anganwadi Worker, Angawandi Helper. Total Vacancy, 50,000. Age Limit, 21 to 45 Years. Salary, As per ...

Ahmadabad News : रेलवे में नौकरी के नाम पर झांसा, 6 गिरफ्तार

रेलवे में 15 लाख रुपए में नौकरी दिलाने का झांसा देकर लोगों से लाखों रुपए की ठगी ...

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रेलवे में 15 लाख रुपए में नौकरी दिलाने का झांसा देकर लोगों से लाखों रुपए की ठगी ...