Friday 30 November 2018

दिसंबर 2018 में सबसे बड़ा मौका, सरकारी नौकरी के लिए 1.5 लाख वेकेंसी जारी

अब तक 1.5 लाख सरकारी नौकरी की भर्ती शुरू हो चुकी है. सरकारी वेकेंसी का सिलसिला अब बढ़ता ही जा रहा है. सरकार की ...

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अब तक 1.5 लाख सरकारी नौकरी की भर्ती शुरू हो चुकी है. सरकारी वेकेंसी का सिलसिला अब बढ़ता ही जा रहा है. सरकार की ...

वर्धमान विश्वविद्यालय भर्ती - Burdwan University Recruitment

वर्धमान विश्वविद्यालय भर्ती – Burdwan University Recruitment. पद का नाम, अंतिम तिथी, विवरण देखें. पद का नाम: सीनियर ...

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वर्धमान विश्वविद्यालय भर्ती – Burdwan University Recruitment. पद का नाम, अंतिम तिथी, विवरण देखें. पद का नाम: सीनियर ...

नौकरी दिलाने के नाम पर 45 हजार रुपए की ठगी

उन्होंने बताया कि उन्हें जैसे ही इस आयोजन का जानकारी मिली तो वे अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर कुछ समय के लिए ...

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उन्होंने बताया कि उन्हें जैसे ही इस आयोजन का जानकारी मिली तो वे अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर कुछ समय के लिए ...

अगर पास है ये डिग्री तो मिलेगी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में ...

अगर पास है ये डिग्री तो मिलेगी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में नौकरी, बस करना होगा ये काम. सरकारी नौकरी.

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अगर पास है ये डिग्री तो मिलेगी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में नौकरी, बस करना होगा ये काम. सरकारी नौकरी.

जल निगम में नौकरी से निकाले गए सहायक अभियंताओं के जल्द आएंगे अच्छे ...

जल निगम में नौकरी से निकाले गए सहायक अभियंताओं के जल्द आएंगे अच्छे दिन , फिर से मिलेगी नौकरी , क्लिक करे और ...

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नौकरी लगाने के नाम पर बेरोजगार से ठगी

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रमन सिंह की सरकार के 15 सालों के कार्यकाल में बेरोजगारी इस कदर बढ़ी कि नौकरी के ...

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नौकरी लगाने के नाम पर बेरोजगार से ठगी

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Best inspirational quotes in hindi

Best inspirational quotes in hindi

यह पर हम कुछ प्रेरणादायक सुविचार, Best inspirational quotes in hindi, बताने जा रहे है, यह विचार हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है, अगर आप भी यही चाहते है की आप अपने जीवन में कुछ अच्छा कर पाए, आप कुछ बनना चाहते है, तो यह प्रेरणादायक सुविचार आपके बहुत काम आएंगे, असल में हम जानते नहीं है की हमे क्या करना है, जब हम जान जाते है तो हम बहुत अच्छा कर पाते है, इसलिए आपको यह प्रेरणादायक सुविचार अपने जीवन में अपनाने चाहिए, तभी आप जीवन में सफल हो सकते है,

प्रेरणादायक सुविचार : motivational quotes in hindi

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Best inspirational quotes in hindi

  • क्या आपको पता है की जो आप सोचते है वैसा ही बन जाते है, मगर यह बात बहुत कम लोग जानते है, सभी कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है जब तक हम अपनी सोच को अच्छा करते है तभी हम जीवन के सही रस्ते पर चलते है हम जो सोचते है वैसा ही कर पाते है इसलिए जो भी बनना है उसके बारे में सोचना शुरू कर दीजिये, यहां पर ऐसा मतलब नहीं है की सिर्फ आप सोचे बल्कि उसे करे भी, तभी वह काम पूरा हो पायेगा, इसलिए सोच के साथ अपनी मेहनत भी जारी रखनी चाहिए,

 

  • आपने कोई भी लक्ष्य चुना है आप चाहते है की वह लक्ष्य पूरा हो जाए तो आपको उसे पूरा करना होगा, पूरा करने के लिए आपको अपना लक्ष्य ध्यान में रखना होगा, अगर आप अपने लक्ष्य के अलावा कुछ और सोचते है तो आप अपने लक्ष्य से दूर हो सकते है, इसलिए जिस लक्ष्य को पाना है सिर्फ उसी के बारे में सोचना होगा, अन्य बातो को अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए,

 

  • आप कोई भी सफलता पाना चाहते है तो आपको उस बारे में सोचना होगा, जब आप सोच लेते है तो आपको उसमे विश्वास करना होगा जो लोग सफलता में विश्वास करते है जब उन्हें यह विश्वास हो जाता है की वह उस कार्य को कर सकते है तो वह सफलता को पा लेते है, इसलिए विश्वास का होना बहुत जरुरी है,

 

  • आप किसी भी कार्य में असफल हो गए है अब आपको लग रहा है की आप नहीं कर सकते है तो आप उसे कभी भी नहीं कर सकते है क्योकि सफलता एक दिन में नहीं मिलती है उसे पाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है इसलिए कभी भी असफलता से नहीं डरना चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए अपनी सभी कमी को दूर कर देना चाहिए, आप जरूर सफल हो जाएंगे

प्रेरणादायक सुविचार : Best inspirational quotes in hindi

  • बहुत से लोग यही सोचते है की में बहुत धीरे चल रहा हु, अगर में ऐसे ही चलता रहा तो हो सकता है की कामयाब न हो पाउ, मगर क्या आपने कभी यह सोचा की आप रुकते नहीं है लगातार चल रहे है अगर आप ऐसा करते है तो आपको सफलता मिलती है क्योकि यह बात मायने नहीं रखती है की आप धीरे चल रहे है बल्कि यह बात मायने रखती है की आप लगातार चल रहे है आप अपनी मंजिल तक जरूर पहुंच जायँगे क्योकि आप चल रहे है, रुके नहीं है

 

  • ऐसी बातो को अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए की आपके पास साधन नहीं है आप यह नहीं कर सकते है, क्योकि अगर आप ऐसा सोचते है तो यह गलत होगा, क्योकि जब आपके दिमाग में यह बात आती है की में कुछ भी नहीं कर सकता हु तो आपको यह सोचना चाहिए की जितने भी साधन आपके पास है आप उन्हें ही प्रयोग करे और अपने जीवन में आगे बढे आप सफल जरूर हो पाएंगे

 

  • हमे अपनी कमजोरी को दूर करना होगा, क्या आप जानते है की आप जब कमजोर पड़ जाते है तो कुछ भी नहीं होता है, आपको यह सोचना होगा, की आप कमजोर नहीं है, आपने कोई भी काम शरू किया आपने उसे बीच में छोड़ दिया यह अगर आप करते है तो आप जीवन में कैसे सफल हो सकते है आप यह आसानी से सोच सकते है, जीवन में वही सफल होते है जो अपना काम पूरा करते है अपने लक्ष्य तक पहुंचते है वह कैसे पहुंचते है यह बात आपको पता होनी चाहिए, क्योकि जो भी आप करते है उसे तब तक करते रहे जब तक वह पूरा न हो जाए,

 

  • कोई आसान रास्ता नहीं है, अगर आप सोचते है की कोई भी कामयाबी आसानी से मिल सकती है तो ऐसा कुछ भी नहीं है, आपको कुछ भी आसानी से नहीं मिलता है आपको कठिन परिश्रम करना ही होगा, अगर आप ऐसा नहीं करते है और आप आसान रस्ते की खोज में है तो आप कभी भी कामयाब नहीं हो सकते है, कामयाबी के लिए आपको परिश्रम करना ही होगा, तभी आप कामयाब हो सकते है इसलिए परिश्रम करिये कामयाबी जरूर मिल जायेगी,

 

  • आपने कोई काम किया है मगर आप सफल नहीं हो पाए है आपने सोचा की यह तो अच्छा काम नहीं है क्योकि आप उसमे सफल नहीं हो पाए थे इसमें दो तरिके आपने नहीं सोचे होंगे, पहला यह है की आप इसे कर सकते है अगर आप इस काम को कर सकते है तो आप ने यह बीच में क्यों छोड़ दिया है अगर आप कुछ भी अच्छा काम करते है तो आपको वह करते रहना है वह जरूर पूरा होगा, अगर आपने सोचकर निर्णय लिया है तो आपको वह छोड़ना नहीं है अगर आपने इसे बिना सोचे ही शरू किया है तो आपको पहले सोचना चाहिए था तभी आप यह कर सकते है यह सभी गलती कर देते है जिससे आगे चलकर परेशान हो जाते है

 

  •  आप कोई काम करना चाहते है आपको लगता है की वह सही है आप उसे करते है तो जीवन में सफलता मिल सकती है मगर वह आपको कठिन लग रहा है तो आपको यह नहीं सोचना चाहिए जब तक आप नहीं करते है तब तक वह कठिन ही लगता है, इसलिए ऐसा नहीं सोचना चाहिए अपने काम को करते हुए आगे बढ़ना चाहिए, 

प्रेरणादायक सुविचार, Best inspirational quotes in hindi, inspirational quotes in hindi, अगर आपको यह विचार पसंद आये है तो आप इन्हे शेयर भी कर सकते है, और कमेंट करके हमे भी बता सकते है, 

 



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समझदारी की बात हिंदी कहानी, kahaniya

kahaniya

समझदारी की बात हिंदी कहानी, kahaniya, यह कहानी आपको पसंद आएगी, क्योकि जब वह छोटा लड़का ऐसी बात करता है, जिसमे समझदारी झलकती है, तो उसकी बातो को सुनकर सभी सोचने लगते है की हमारा लड़का अब बड़ा हो चुका है. वह सभी फैसले ले सकता है, हमे उसकी बात माननी चाहिए .

समझदारी की बात हिंदी कहानी : kahaniya

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kahaniya

सभी जगह देख लिया था मगर वह कही भी नहीं मिल रहा था, वह किस जगह पर जा सकता था उन्हें इस बात का पता नहीं था, यह कल की बात है, कल सभी लोग यहां पर बैठे हुए बात कर रहे थे, मगर हमे नहीं पता था की ऐसा भी हो सकता है कल उससे हमने ज्यादा कुछ नहीं कहा था मगर वह जल्दी ही बार मान जाएगा, इस बात का पता नहीं था, अब क्या किया जा सकता है उसे चलकर देखना चाहिए की वह कहा पर गया है तभी उसे पता चल पायेगा,

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सभी लोग उसका पता लगाने के लिए चले गए थे, वह कहा गया था इस बात को कोई भी नहीं जानता था, मगर उसे देखना भी जरुरी था, सभी लोग उसे देख रहे थे मगर वह नहीं मिल रहा था, इसमें किसकी गलती थी, यह कुछ पता नहीं था मगर इस बात से यह यकीन हो गया था की उसे वह बात बुरी लग गयी थी, पिछली रात को क्या हुआ था, अब हम अपनी कहानी में यह जानते है, क्योकि उस रात किसी बात पर बहस हो रही थी, उस बहस का नतीजा यह निकला था की वह कही चला गया है  

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इस परिवार में माता -पिता और दो बच्चे रहते है, लड़का छोटा है और उसकी बहन बड़ी है उसकी बहन अभी भी पड़ती है छोटा लड़का भी अभी पढ़ाई कर रहा है, मगर अपनी बहन की पढ़ाई को बीच में रोक देने से लड़का काफी नाराज हो जाता है और वह कही चला जाता है क्योकि उसकी बात को नहीं मान रहा था, पिता का कहना था की हम उसे आगे नहीं पढ़ा सकते है अगर हम ऐसा करते है तो हम अपने लड़को को नहीं पढ़ा पाएंगे, इसलिए उसे बीच में पढ़ाई छोड़नी होगी, अब उसे आगे नहीं पढ़ना है,

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यह बात जब लड़के को पता चलती है तो वह नाराज हो जाता है क्योकि अभी उसकी बहन की पढ़ाई जरुरी है, अगर वह बीच में पढ़ाई छोड़ भी देती है तो उसका भविष्य अच्छा नहीं हो पायेगा, यह बात अपने माता -पिता को कह रहा था मगर कोई भी उसकी बात नहीं मान रहा था बल्कि उसके पिता यही चाहते थे की वह अपनी पढ़ाई को छोड़ दे, जिससे उसके भाई की पढ़ाई को जारी रखा जा सके , यह बात भाई को पसंद नहीं थे, इसलिए वह नाराज हो गया था जिसके कारण वह चला गया था, 

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उसके भाई को ऐसा लग रहा था की उसकी वजह से ऐसा हो रहा है क्योकि अगर उसकी पढ़ाई पूरी होगी तो उसकी बहन की पढ़ाई को छोड़ दिया जाएगा, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए किसी को भी वह नहीं मिल रहा था क्योकि पता नहीं कहा चला गया था सभी लोग परेशान हो गए थे उन्हें कोई भी रास्ता समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करे कुछ पता नहीं चल रहा था, सभी लोग घर वापिस आ गए थे क्योकि वह किसी को नहीं मिला था, जब वह घर आये तो बहन ने पूछा की क्या मेरी वजह से यह सब हो रहा है,

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माँ ने कहा की नहीं, इसमें गलती तुम्हारे भाई की है, जो बिना बताये ही चला गया है जबकि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए ऐसा कोई करता भी है, उसे सोचना चाहिए की हम कुछ भी नहीं कर सकते है तुम यह जानती हो को पिता की कमाई से यह सब चल रहा है आगे तुम्हारी शादी भी करनी है तुम्हे सोचना चाहिए, की अगर हम तुम्हे पढ़ाते है तो इसमें ज्यादा खर्चा भी आएगा हम यह नहीं कर सकते है इसलिए तुम्हारे पिता यही सोच रहे थे की क्या किया जाए में एक का ही खर्चा उठा सकता हु, दोनों का नहीं, 

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शाम हो जाती है सभी परेशान होते है तभी कुछ देर बाद भाई आता है उसे देखकर सभी खुश भी होते है और उस पर नाराज भी होते है जब वह आता है तो सभी पूछते है की कोई ऐसा करता है जबकि तुम्हे सोचना चाहिए की यह अच्छी बात नहीं है अगर तुम कही पर जाते हो तो उससे सभी परेशान हो जाते है तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए, तुम्हे सोचना होगा, लड़के ने कहा की आप यह समझ सकते है, की मेरी वजह से आपको कितनी परेशानी हुई है, जब आप यह परेशानी नहीं देख सकते है तो में भी परेशान हो गया हु, इसलिए यहां से चला गया था,

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अगर आप मेरी वजह से परेशान हो सकते है तो में भी हो सकता हु, आपको यह सोचना चाहिए, की आप यह सही कर रहे है, अगर आप बहन की पढ़ाई को रोक देते है, तो इससे उसे परेशानी होगी, क्योकि वह कुछ भी कर सकती है अगर वह अपनी पढ़ायी पूरी करती है तो वह कोई नौकरी भी कर सकती वह कुछ भी बन सकती है, पहले आपको उसे देखना चाहिए, मगर आप उसकी पढ़ाई को रुकवा रहे हो, जो की यह करना जरुरी नहीं है, मगर आप कर रहे है,

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वह भी मेरी वजह से हो रहा है क्योकि आप एक को ही पढ़ायी करवा सकते है, मुझे यह अच्छा नहीं लगता है, आपको यह भी सोचना चाहिए की मेरी बहन अगर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेती है तो यह हमारे लिए अच्छी बात है, आपको भी यह सोचना चाहिए, अपने बेटे की बात सुनकर पिताजी ने सोचा की लगता है की हमारा बेटा बड़ा हो चुका है, वह अब समझदारी की बात कर रहा है अब मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं होती है तुम जैसा चाहोगे वैसा ही होगा, तुम सही कह रहे हो, उसके बाद पिताजी मान गए थे.

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ठगी के आरोपी को रिमांड पर लेने की तैयारी

स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लगवाने के नाम पर लगभग 13 ... तब हुआ जब पैसे देने के बाद भी लोगों को नौकरी नहीं मिली।

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स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लगवाने के नाम पर लगभग 13 ... तब हुआ जब पैसे देने के बाद भी लोगों को नौकरी नहीं मिली।

58 पुलिसकर्मियों के काम का रिव्यू, सभी फिट : पुलिस

गुरुवार शाम ऐसा क्या हुआ कि नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट में तैनात 58 पुलिसकर्मियों के एकसाथ नौकरी से वीआरएस लेने की ...

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नौकरी का लालच देकर टूरिस्ट वीजा पर भेज दिया मलेशिया

रामपुर : विदेश में नौकरी के लालच में दो और बेरोजगार युवक फंस गए। दोनों युवकों से ढाई लाख रुपये लेकर टूरिस्ट ...

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रामपुर : विदेश में नौकरी के लालच में दो और बेरोजगार युवक फंस गए। दोनों युवकों से ढाई लाख रुपये लेकर टूरिस्ट ...

नौकरी दिलाने के नाम पर 42 हजार की ठगी

रामपुर। नौकरी दिलाने के नाम पर तीन युवतियों से पैसे हड़प लिए। इस मामले में तीनों पीड़ित युवतियों ने सिविल ...

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रामपुर। नौकरी दिलाने के नाम पर तीन युवतियों से पैसे हड़प लिए। इस मामले में तीनों पीड़ित युवतियों ने सिविल ...

सरकारी नौकरी के लिए करें महज थोड़ा इंतजार, यहां इस तरह से करें आवेदन

पात्र और योग्य उम्मीदवार इस नौकरी के लिए 12-12-2018 तक आवेदन कर सकते हैं. बता दें कि यह आवेदन करने की अंतिम तिथि ...

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नौकरी नहीं मिली तो ड्राइवर ने जहरीला पदार्थ निगल कर की खुदकुशी

जालंधर(वरुण): दो साल से नौकरी न मिलने पर निजी स्कूल के पूर्व ड्राइवर जसविंदर सिंह ने जहरीला पदार्थ निगल कर ...

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वारिसों वाली अम्मां : पुजारिन अम्मां की मौत से मच गई खलबली

कल रात पुजारिन अम्मां ठंड से मर गईं तो महल्ले में शोक की लहर दौड़ गई. हर एक ने पुजारिन अम्मां के ममत्व और उन की धर्मभावना की जी खोल कर चर्चा की पर दबी जबान से चिंता भी जाहिर की कि पुजारिन का अंतिम संस्कार कैसे होगा? पिछले 20-25 सालों से वह मंदिर में सेवा करती आ रही थीं, जहां तक लोगों को याद है इस दौरान उन का कोई रिश्तेनाते का परिचित नहीं आया. उन की जैसी लंबी आयु का कोई बुजुर्ग अब महल्ले में भी नहीं बचा है जो बता सके कि उन का कोई वारिस है भी या नहीं. महल्ले वालों को यह सोच कर ही कंपकंपी छूट रही है कि केवल दाहसंस्कार कराने से ही तो सबकुछ नहीं हो जाएगा, तमाम तरह के कर्मकांड भी तो करने होंगे. आखिर मंदिर की पवित्रता का सवाल है. बिना कर्मकांड के न तो पत्थर की मूर्तियां शुद्ध होंगी और न ही सूतक से बाहर निकल सकेंगी. पर यह सब करे कौन और कैसे?

मजाकिया स्वभाव के राकेशजी हंस कर अपनी पत्नी से बोले, ‘‘क्यों रमा, यह 4 बजे भोर में पुजारिन अम्मां को लेने यमदूत आए कैसे होंगे? ठंड से तो उन की भी हड्डी कांप रही होगी न?’’

इस समाचार को ले कर आई महरी घर का काम करने के पक्ष में बिलकुल नहीं थी. वह तो बस, मेमसाहब को गरमागरम खबर देने भर आई है. चूंकि वह पूरी आल इंडिया रेडियो है इसलिए रमा ने पति की तरफ चुपके से आंखें तरेरीं कि कहीं उन की मजाक में कही बात मिर्च- मसाले के साथ पूरे महल्ले में न फैल जाए.

घड़ी की सूई जब 12 पर पहुंचने को हुई तब जा कर महल्ले वालों को चिंता हुई कि ज्यादा देर करने से रात में घाट पर जाने में परेशानी होगी. पुजारिन अम्मां की देह यों ही पड़ी है लेकिन कोई उन के आसपास भी नहीं फटक रहा है. वहां जाने से तो अशौच हो जाएगा, फिर नहाना- धोना. जितनी देर टल सकता है टले.

धीरेधीरे पूरे महल्ले के पुरुष चौधरीजी के यहां जमा हो गए. चौधरीजी कालीन के निर्यातक हैं. महल्ले में ही नहीं शहर में भी उन का रुतबा है. चमचों की लंबीचौड़ी फौज है जो हथियारों के साथ उन्हें चारों ओर से घेरे रहती है. शायद यह उन के खौफ का असर है कि अंदर से सब उन से डरते हैं लेकिन ऊपर से आदर का भाव दिखाते हैं और एकदूसरे से चौधरीजी के साथ अपनी निकटता का बखान करते हैं.

हां, तो पूरा महल्ला चौधरीजी के विशाल ड्राइंगरूम में जमा हो गया. सब के चेहरे तो उन के सीने तक ही लटके रहे पर चौधरीजी का तो और भी ज्यादा, शायद उन के पेट तक. फिर वह दुख के भाव के साथ उठे और मुंह लटकाएलटकाए ही बोलना शुरू किया, ‘‘भाइयो, पुजारिन अम्मां अचानक हमें अकेला छोड़ कर इस लोक से चली गईं. उन का हम सब के साथ पुत्रवत स्नेह था.’’

वह कुछ क्षण को मौन हुए. सीने पर बायां हाथ रखा. एक आह सी निकली. फिर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मेरी तो दिली इच्छा थी कि पुजारिन अम्मां के क्रियाकर्म का समस्त कार्य हम खुद करें और पूरी तरह विधिविधान से करें किंतु…’’

चौधरीजी ने फिर अपना सीना दबाया और एक आह मुंह से निकाली. उधर उन के इस ‘किंतु’ ने कितनों के हृदय को वेदना से भर दिया क्योंकि महल्ले के लोगों ने चौधरी के इस अलौकिक अभिनय का दर्शन कितने ही आयोजनों में चंदा लेते समय किया है.

चौधरीजी ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘किंतु मेरा व्यापार इन दिनों मंदा चल रहा है. इधर घर ठीकठाक कराने में हाथ लगा रखा है, उधर एक छोटा सा शौपिंग मौल भी बनवा रहा हूं. इन वजहों से मेरा हाथ बहुत तंग चल रहा है. और फिर पुजारिन अम्मां का अकेले मैं ही तो बेटा नहीं हूं, आप सब भी उन के बेटे हैं. उन की अंतिम सेवा के अवसर को आप भी नहीं छोड़ना चाहेंगे. मेरे विचार से तो हम सब को मिलजुल कर इस कार्य को संपादित करना चाहिए जिस से किसी एक पर बोझ भी न पड़े और समस्त कार्य अनुष्ठानपूर्वक हो जाए. तो आप सब की क्या राय है? वैसे यदि इस में किसी को कोई परेशानी है तो साफ बोल दे. जैसे भी होगा महल्ले की इज्जत रखने के लिए मैं इस कार्य को करूंगा.’’

चौधरी साहब के इस पूरे भाषण में कहां विनीत भाव था, कहां कठोर आदेश था, कहां धमकी थी इस सब का पूरापूरा आभास महल्ले के लोगों को था. इसलिए प्रतिवाद का कोई प्रश्न ही न था.

अपने पुत्रों की इस विशाल फौज से पुजारिन अम्मां जीतेजी तो नहीं ही वाकिफ थीं. कितने समय उन्होंने फाके किए यह तो वही जानती थीं. हां, आधेअधूरे कपड़ों में लिपटी उन की मृत देह एक फटी गुदड़ी पर पड़ी थी. लगभग डेढ़ सौ घरों वाला वह महल्ला न उन के लिए कपड़े जुटा पाया न अन्न. किंतु आज उन के लिए सुंदर महंगे कफन और लकड़ी का प्रबंध तो वह कर ही रहा है.

कभी रेडियो, टीवी का मुंह न देखने वाली पुजारिन अम्मां के अंतिम संस्कार की पूरी वीडियोग्राफी हो रही है. शाम को टीवी प्रसारण में यह सब चौधरीजी की अनुकंपा से प्रसारित भी हो जाएगा.

इस प्रकार पुजारिन अम्मां की देह की राख को गंगा की धारा में प्रवाहित कर गंगाजल से हाथमुंह धो सब ने अपनेअपने घरों को प्रस्थान किया. घर आ कर गीजर के गरमागरम पानी से स्नान कर और चाय पी कर चौधरी के पास हाजिरी लगाने में किसी महल्ले वाले ने देर नहीं की.

चौधरी खुद तो घाट तक जा नहीं सके थे क्योंकि उन का दिल पुजारिन अम्मां के मरने के दुख को सहन नहीं कर पा रहा था किंतु वह सब के लौटने की प्रतीक्षा जरूर कर रहे थे. उन की रसोई में देशी घी में चूड़ा मटर बन रहा था तो गाजर के हलवे में मावे की मात्रा भरपूर थी. आने वाले हर व्यक्ति की वह अगवानी करते, नौकर गुनगुने पानी से उन के चरण धुलवाता और कालीमिर्च चबाने को देता, पांवपोश पर सब अपने पांव पोंछते और अंदर आ कर सोफे पर बैठ शनील की रजाई ओढ़ लेते. नौकर तुरंत ही चूड़ामटर पेश कर देता, फिर हलवा, चाय, पान वगैरह चौधरीजी की इसी आवभगत के तो सब दीवाने हैं. बातों के सिलसिले में रात गहराई तो देसीविदेशी शराब और काजूबादाम के बीच पुजारिन अम्मां कहीं खो सी गईं.

अगली सुबह महल्ले वालों को एक नई चिंता का सामना करना पड़ा. मंदिर और मूर्तियों की साफसफाई का काम कौन करे. महल्ले के पुरुषों को तो फुरसत न थी. महिलाओं के कामों और उन की व्यस्तताओं का भी कोई ओरछोर न था. किसी को स्वेटर बुनना था तो किसी को अचार डालना था. कोई कुम्हरौड़ी बनाने की तैयारी कर रही थी, तो कोई आलू के पापड़ बना रही थी. उस पर भी यह कि सब के घर में ठाकुरजी हैं ही, जिन की वे रोज ही पूजा करती हैं. फिर मंदिर की देखभाल करने का समय किस के पास है?

महल्ले की सभी समस्याओं का समाधान तो चौधरी को ही खोजना था. हर रोज एक परिवार के जिम्मे मंदिर रहेगा. वह उस की देखभाल करेगा और रात में चौधरीजी को दिनभर की रिपोर्ट के साथ उस दिन का चढ़ावा भी सौंपेगा. हर बार की तरह अब भी महल्ले वालों के पास प्रतिवाद के स्वर नहीं थे.

अभी पुजारिन अम्मां को मरे एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन 50, 55 और 60 वर्ष की आयु के 3 लोग रामनामी दुपट्टा ओढ़े मंदिर में सपरिवार विलाप करते महल्ले वालों को दिखाई दिए. ये कौन लोग हैं और कहां से आए हैं यह किसी को पता नहीं था पर उन के फूटफूट कर रोने से सारा महल्ला थर्रा उठा.

महल्ले के लोग अपनेअपने घरों से निकल कर मंदिर में आए और यह जानने की कोशिश की कि वे कौन हैं और क्यों इस तरह धाड़ें मारमार कर रो रहे हैं. ये तीनों परिवार केवल हाहाकार करते जाते पर न तो कुछ बोलते न ही बताते.

हथियारधारी लोगों से घिरे चौधरी को मंदिर में आया देख कर महल्ले वाले उन के साथ हो लिए. तीनों परिवार के लोगों ने चौधरीजी को देखा, उन के साथ आए हथियारबंद लोगों को देखा और समझ गए कि यही वह मुख्य व्यक्ति है जो यहां फैले इस सारे नाटक को दिशानिर्देश दे सकेगा. इस बात को समझ कर उन के विलाप करते मुंह से एक बार ही तो निकला, ‘‘अम्मां’’ और उन के हृदय से सटी अम्मां और उन के परिवार की किसी मेले में खींची हुई फोटो जैसे उन के हाथों से छूट गई.

चौधरीजी के साथ सभी ने अधेड़ अम्मां को अपने तीनों जवान बेटों के साथ खड़े पहचाना जो अब अधेड़ हो चुके हैं. घूंघट की ओट से झांकती ये अधेड़ औरतें जरूर इन की बीवियां होंगी और पोते- पोतियों के रूप में कुछ बच्चे.

चौधरी साहब के साथ महल्ले के लोग अपनेअपने ढंग से इन के बारे में सोच रहे थे कि इतने सालों बाद इन बेटों को अपनी मां की याद आई है, वह भी तब जब वह मर गई. किस आशा, किस आकांक्षा से आए हैं ये यहां? क्या पुजारिन अम्मां के पास कोई जमीनजायदाद थी? 3 बेटों की यह माता इतना भरापूरा परिवार होते हुए भी अकेली दम तोड़ गई, आज उस का परिवार यहां क्यों जमा हुआ है? इतने सालों तक ये लोग कहां थे? किसी को भी तो नहीं याद आता कि ये तीनों कभी यहां आए हों या पुजारिन अम्मां कुछ दिनों के लिए कहीं गई हों?

‘‘ठीक है, ठीक है, हाथमुंह धो लो, आराम कर लो फिर हवेली आ जाना. बताना कि क्या समस्या है?’’ चौधरीजी ने घुड़का तो सारा विलाप बंद हो गया. धीरेधीरे भीड़ अपनेअपने रास्ते खिसक ली.

अगर कोई देखता तो जान पाता कि कैसे वे तीनों परिवार लोगों के जाने के बाद आपस में तूतू-मैंमैं करते हुए लड़ पड़े थे. बड़ा बोला, ‘‘मैं बड़ा हूं. अम्मां की संपत्ति पर मेरा हक है. उस का वारिस तो मैं ही हूं. तुम दोनों क्यों आए यहां? क्या मंदिर बांटोगे? पुजारी तो एक ही होगा मंदिर का?’’

मझले के पास अपने तर्क थे, ‘‘अम्मां मुझे ही अपना वारिस मानती थीं. देखोदेखो, उन्होंने मुझे यह चिट्ठी भेजी थी. लो, देख लो दद्दा. अम्मां ने लिखा है कि तू ही मेरा राजा बेटा है. बड़े ने तो साथ ले जाने से मना कर दिया. तू ही मुझे अपने साथ ले जा. अकेली जान पड़ी रहूंगी. जैसे अपने टामी को दो रोटियां डालना वैसे मुझे भी दे देना.’’

अब की बार छोटा भी मैदान में कूद पड़ा, ‘‘तो कौन सा तुम ले गए मझले दद्दा. अम्मां ने मुझे भी चिट्ठी भेजी थी. लो, देखो. लिखा है, ‘मेरा सोना बेटा, तू तो मेरा पेट पोंछना है. तू ही तो मुझे मरने पर मुखाग्नि देगा. बेटा, अकेली भूत सी डोलती हूं. पोतेपोतियों के बीच रहने को कितना दिल तड़पता है. मंदिर में कोई बच्चा, कोई बहू जब अपनी दादी या सास के साथ आते हैं तो मेरा दिल रो पड़ता है. इतने भरेपूरे परिवार की मां हो कर भी मैं कितनी अकेली हूं. मेरा सोना बेटा, ले जा मुझे अपने साथ.’ ’’

सच है, सब के पास प्रमाण है अपनेअपने बुलावे का किंतु कोई भी सोना या राजा बेटा पुजारिन अम्मां को अपने साथ नहीं ले गया. इस के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं क्योंकि कोई ले कर गया होता तो आज पुजारिन अम्मां यों अकेली पड़ेपड़े न मर गई होतीं और उन का दाहसंस्कार चंदा कर के न किया गया होता.

पुजारिन अम्मां के 3 पुत्र, जिन्होंने एक क्षण भी बेटे के कर्तव्य का पालन नहीं किया, जिन्हें अपनी मां का अकेलापन नहीं खला, वे आज उस के वारिस बने खड़े हैं. क्या उन का मन जरा भी अपनी मां के भेजे पत्र से विचलित नहीं हुआ. क्या कभी उन्हें एहसास हुआ कि जिस मां ने उन्हें 9 माह तक अपनी कोख में रखा, जिस ने उन्हें सीने से लगा कर रातें आंखों में ही काट दीं, उस मां को वे तीनों मिल कर 9 दिन भी अपने साथ नहीं रख सके.

आज भी उन्हें उस के दाहसंस्कार, उस के श्राद्ध आदि की चिंता नहीं, चिंता है तो मात्र मंदिर के वारिसाना हक की. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मंदिर का पुजारी दीनहीन हो तो कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता किंतु पुजारी तनिक भी टीमटाम वाला हो, उस को पूजा करने का दिखावा करना आता हो, भक्तों की जेबों के वजन को टटोलना आता हो तो इस से बढि़या कोई और धंधा हो ही नहीं सकता.

आने वाले समय की कल्पना कर तीनों भाई मन में पूरी योजना बनाए पड़े थे. बस, उन्हें चौधरी का खौफ खाए जा रहा था वरना अब तक तो तीनों भाइयों ने फैसला कर ही लिया होता, चाहे बात से चाहे लात से. 3 अलगअलग ध्रुवों से आए एक ही मां के जने 3 भाइयों को एकदूसरे की ओर दृष्टि फिराना भी गवारा नहीं. एकदूसरे का हालचाल, कुशलक्षेम जानने की तनिक भी जिज्ञासा नहीं, बस, केवल मंदिर पर अधिकार की हवस ही दिल- दिमाग को अभिभूत किए है.

उधर चौधरीजी की चिंता और परेशानी का कोई ओरछोर नहीं है. कितने योजनाबद्ध तरीके से वे मंदिर को अपनी संपत्ति बनाने वाले थे. उन के जैसा विद्वान पुरुष यह अच्छी तरह से जानता है कि मंदिर की सेवाटहल करना महल्ले के लोगों के बस की बात नहीं. उन्हें ही कुछ प्रबंध करना है. प्रबंध भी ऐसा हो जिस से उन का भी कुछ लाभ हो. मंदिर के लिए अभी उन्होंने जो व्यवस्था की है वह तो अस्थायी है.

अभी वह कोई उचित व्यवस्था सोच भी नहीं पाए थे कि ये तीनों जाने कहां से टपक पड़े. पर उन के आने के पीछे छिपी उन की चतुराई को याद कर और उन को देख उन के नाटक में आए बदलाव को याद कर चौधरीजी मुसकरा दिए. तीनों में से किसी एक का चुनाव करना कठिन है. तीनों ही सर्वश्रेष्ठ हैं, तीनों ही योग्य और उपयुक्त हैं. एक निश्चय सा कर चौधरीजी निश्चिन्त हो चले थे.

अगले दिन सुबह ही मंदिर के घंटे की ध्वनि से महल्ले वालों की नींद टूट गई. मंदिर को देखने और पुजारिन अम्मां के वारिसों के बारे में जानने के लिए लोग मंदिर पहुंचे तो देखा तीनों भाई मंदिर के तीनों कमरों में किनारीदार पीली धोती पहने, लंबी चुटिया बांधे और सलीके से चंदन लगाए मूर्तियों के सामने मंत्र बुदबुदा रहे हैं. वे बारीबारी से उठते हैं और वहां खड़े लोगों को तांबे के लोटे में रखे जल का प्रसाद देते हैं. सामने ही तालाजडि़त दानपात्र रखा है जिस पर गुप्तदान, स्वेच्छादान आदि लिखा हुआ है. पुजारी की ओर दक्षिणा बढ़ाने पर वे दानपात्र की ओर इशारा कर देते हैं.

मंदिर के इस बदलाव पर अब महल्ले के लोग भौचक हैं. श्रद्धालुओं की जेबें ढीली हो रही हैं. पुजारीत्रय तथा चौधरीजी के खजाने भर रहे हैं. पुजारिन अम्मां को सब भूल चुके हैं.

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कल रात पुजारिन अम्मां ठंड से मर गईं तो महल्ले में शोक की लहर दौड़ गई. हर एक ने पुजारिन अम्मां के ममत्व और उन की धर्मभावना की जी खोल कर चर्चा की पर दबी जबान से चिंता भी जाहिर की कि पुजारिन का अंतिम संस्कार कैसे होगा? पिछले 20-25 सालों से वह मंदिर में सेवा करती आ रही थीं, जहां तक लोगों को याद है इस दौरान उन का कोई रिश्तेनाते का परिचित नहीं आया. उन की जैसी लंबी आयु का कोई बुजुर्ग अब महल्ले में भी नहीं बचा है जो बता सके कि उन का कोई वारिस है भी या नहीं. महल्ले वालों को यह सोच कर ही कंपकंपी छूट रही है कि केवल दाहसंस्कार कराने से ही तो सबकुछ नहीं हो जाएगा, तमाम तरह के कर्मकांड भी तो करने होंगे. आखिर मंदिर की पवित्रता का सवाल है. बिना कर्मकांड के न तो पत्थर की मूर्तियां शुद्ध होंगी और न ही सूतक से बाहर निकल सकेंगी. पर यह सब करे कौन और कैसे?

मजाकिया स्वभाव के राकेशजी हंस कर अपनी पत्नी से बोले, ‘‘क्यों रमा, यह 4 बजे भोर में पुजारिन अम्मां को लेने यमदूत आए कैसे होंगे? ठंड से तो उन की भी हड्डी कांप रही होगी न?’’

इस समाचार को ले कर आई महरी घर का काम करने के पक्ष में बिलकुल नहीं थी. वह तो बस, मेमसाहब को गरमागरम खबर देने भर आई है. चूंकि वह पूरी आल इंडिया रेडियो है इसलिए रमा ने पति की तरफ चुपके से आंखें तरेरीं कि कहीं उन की मजाक में कही बात मिर्च- मसाले के साथ पूरे महल्ले में न फैल जाए.

घड़ी की सूई जब 12 पर पहुंचने को हुई तब जा कर महल्ले वालों को चिंता हुई कि ज्यादा देर करने से रात में घाट पर जाने में परेशानी होगी. पुजारिन अम्मां की देह यों ही पड़ी है लेकिन कोई उन के आसपास भी नहीं फटक रहा है. वहां जाने से तो अशौच हो जाएगा, फिर नहाना- धोना. जितनी देर टल सकता है टले.

धीरेधीरे पूरे महल्ले के पुरुष चौधरीजी के यहां जमा हो गए. चौधरीजी कालीन के निर्यातक हैं. महल्ले में ही नहीं शहर में भी उन का रुतबा है. चमचों की लंबीचौड़ी फौज है जो हथियारों के साथ उन्हें चारों ओर से घेरे रहती है. शायद यह उन के खौफ का असर है कि अंदर से सब उन से डरते हैं लेकिन ऊपर से आदर का भाव दिखाते हैं और एकदूसरे से चौधरीजी के साथ अपनी निकटता का बखान करते हैं.

हां, तो पूरा महल्ला चौधरीजी के विशाल ड्राइंगरूम में जमा हो गया. सब के चेहरे तो उन के सीने तक ही लटके रहे पर चौधरीजी का तो और भी ज्यादा, शायद उन के पेट तक. फिर वह दुख के भाव के साथ उठे और मुंह लटकाएलटकाए ही बोलना शुरू किया, ‘‘भाइयो, पुजारिन अम्मां अचानक हमें अकेला छोड़ कर इस लोक से चली गईं. उन का हम सब के साथ पुत्रवत स्नेह था.’’

वह कुछ क्षण को मौन हुए. सीने पर बायां हाथ रखा. एक आह सी निकली. फिर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मेरी तो दिली इच्छा थी कि पुजारिन अम्मां के क्रियाकर्म का समस्त कार्य हम खुद करें और पूरी तरह विधिविधान से करें किंतु…’’

चौधरीजी ने फिर अपना सीना दबाया और एक आह मुंह से निकाली. उधर उन के इस ‘किंतु’ ने कितनों के हृदय को वेदना से भर दिया क्योंकि महल्ले के लोगों ने चौधरी के इस अलौकिक अभिनय का दर्शन कितने ही आयोजनों में चंदा लेते समय किया है.

चौधरीजी ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘किंतु मेरा व्यापार इन दिनों मंदा चल रहा है. इधर घर ठीकठाक कराने में हाथ लगा रखा है, उधर एक छोटा सा शौपिंग मौल भी बनवा रहा हूं. इन वजहों से मेरा हाथ बहुत तंग चल रहा है. और फिर पुजारिन अम्मां का अकेले मैं ही तो बेटा नहीं हूं, आप सब भी उन के बेटे हैं. उन की अंतिम सेवा के अवसर को आप भी नहीं छोड़ना चाहेंगे. मेरे विचार से तो हम सब को मिलजुल कर इस कार्य को संपादित करना चाहिए जिस से किसी एक पर बोझ भी न पड़े और समस्त कार्य अनुष्ठानपूर्वक हो जाए. तो आप सब की क्या राय है? वैसे यदि इस में किसी को कोई परेशानी है तो साफ बोल दे. जैसे भी होगा महल्ले की इज्जत रखने के लिए मैं इस कार्य को करूंगा.’’

चौधरी साहब के इस पूरे भाषण में कहां विनीत भाव था, कहां कठोर आदेश था, कहां धमकी थी इस सब का पूरापूरा आभास महल्ले के लोगों को था. इसलिए प्रतिवाद का कोई प्रश्न ही न था.

अपने पुत्रों की इस विशाल फौज से पुजारिन अम्मां जीतेजी तो नहीं ही वाकिफ थीं. कितने समय उन्होंने फाके किए यह तो वही जानती थीं. हां, आधेअधूरे कपड़ों में लिपटी उन की मृत देह एक फटी गुदड़ी पर पड़ी थी. लगभग डेढ़ सौ घरों वाला वह महल्ला न उन के लिए कपड़े जुटा पाया न अन्न. किंतु आज उन के लिए सुंदर महंगे कफन और लकड़ी का प्रबंध तो वह कर ही रहा है.

कभी रेडियो, टीवी का मुंह न देखने वाली पुजारिन अम्मां के अंतिम संस्कार की पूरी वीडियोग्राफी हो रही है. शाम को टीवी प्रसारण में यह सब चौधरीजी की अनुकंपा से प्रसारित भी हो जाएगा.

इस प्रकार पुजारिन अम्मां की देह की राख को गंगा की धारा में प्रवाहित कर गंगाजल से हाथमुंह धो सब ने अपनेअपने घरों को प्रस्थान किया. घर आ कर गीजर के गरमागरम पानी से स्नान कर और चाय पी कर चौधरी के पास हाजिरी लगाने में किसी महल्ले वाले ने देर नहीं की.

चौधरी खुद तो घाट तक जा नहीं सके थे क्योंकि उन का दिल पुजारिन अम्मां के मरने के दुख को सहन नहीं कर पा रहा था किंतु वह सब के लौटने की प्रतीक्षा जरूर कर रहे थे. उन की रसोई में देशी घी में चूड़ा मटर बन रहा था तो गाजर के हलवे में मावे की मात्रा भरपूर थी. आने वाले हर व्यक्ति की वह अगवानी करते, नौकर गुनगुने पानी से उन के चरण धुलवाता और कालीमिर्च चबाने को देता, पांवपोश पर सब अपने पांव पोंछते और अंदर आ कर सोफे पर बैठ शनील की रजाई ओढ़ लेते. नौकर तुरंत ही चूड़ामटर पेश कर देता, फिर हलवा, चाय, पान वगैरह चौधरीजी की इसी आवभगत के तो सब दीवाने हैं. बातों के सिलसिले में रात गहराई तो देसीविदेशी शराब और काजूबादाम के बीच पुजारिन अम्मां कहीं खो सी गईं.

अगली सुबह महल्ले वालों को एक नई चिंता का सामना करना पड़ा. मंदिर और मूर्तियों की साफसफाई का काम कौन करे. महल्ले के पुरुषों को तो फुरसत न थी. महिलाओं के कामों और उन की व्यस्तताओं का भी कोई ओरछोर न था. किसी को स्वेटर बुनना था तो किसी को अचार डालना था. कोई कुम्हरौड़ी बनाने की तैयारी कर रही थी, तो कोई आलू के पापड़ बना रही थी. उस पर भी यह कि सब के घर में ठाकुरजी हैं ही, जिन की वे रोज ही पूजा करती हैं. फिर मंदिर की देखभाल करने का समय किस के पास है?

महल्ले की सभी समस्याओं का समाधान तो चौधरी को ही खोजना था. हर रोज एक परिवार के जिम्मे मंदिर रहेगा. वह उस की देखभाल करेगा और रात में चौधरीजी को दिनभर की रिपोर्ट के साथ उस दिन का चढ़ावा भी सौंपेगा. हर बार की तरह अब भी महल्ले वालों के पास प्रतिवाद के स्वर नहीं थे.

अभी पुजारिन अम्मां को मरे एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन 50, 55 और 60 वर्ष की आयु के 3 लोग रामनामी दुपट्टा ओढ़े मंदिर में सपरिवार विलाप करते महल्ले वालों को दिखाई दिए. ये कौन लोग हैं और कहां से आए हैं यह किसी को पता नहीं था पर उन के फूटफूट कर रोने से सारा महल्ला थर्रा उठा.

महल्ले के लोग अपनेअपने घरों से निकल कर मंदिर में आए और यह जानने की कोशिश की कि वे कौन हैं और क्यों इस तरह धाड़ें मारमार कर रो रहे हैं. ये तीनों परिवार केवल हाहाकार करते जाते पर न तो कुछ बोलते न ही बताते.

हथियारधारी लोगों से घिरे चौधरी को मंदिर में आया देख कर महल्ले वाले उन के साथ हो लिए. तीनों परिवार के लोगों ने चौधरीजी को देखा, उन के साथ आए हथियारबंद लोगों को देखा और समझ गए कि यही वह मुख्य व्यक्ति है जो यहां फैले इस सारे नाटक को दिशानिर्देश दे सकेगा. इस बात को समझ कर उन के विलाप करते मुंह से एक बार ही तो निकला, ‘‘अम्मां’’ और उन के हृदय से सटी अम्मां और उन के परिवार की किसी मेले में खींची हुई फोटो जैसे उन के हाथों से छूट गई.

चौधरीजी के साथ सभी ने अधेड़ अम्मां को अपने तीनों जवान बेटों के साथ खड़े पहचाना जो अब अधेड़ हो चुके हैं. घूंघट की ओट से झांकती ये अधेड़ औरतें जरूर इन की बीवियां होंगी और पोते- पोतियों के रूप में कुछ बच्चे.

चौधरी साहब के साथ महल्ले के लोग अपनेअपने ढंग से इन के बारे में सोच रहे थे कि इतने सालों बाद इन बेटों को अपनी मां की याद आई है, वह भी तब जब वह मर गई. किस आशा, किस आकांक्षा से आए हैं ये यहां? क्या पुजारिन अम्मां के पास कोई जमीनजायदाद थी? 3 बेटों की यह माता इतना भरापूरा परिवार होते हुए भी अकेली दम तोड़ गई, आज उस का परिवार यहां क्यों जमा हुआ है? इतने सालों तक ये लोग कहां थे? किसी को भी तो नहीं याद आता कि ये तीनों कभी यहां आए हों या पुजारिन अम्मां कुछ दिनों के लिए कहीं गई हों?

‘‘ठीक है, ठीक है, हाथमुंह धो लो, आराम कर लो फिर हवेली आ जाना. बताना कि क्या समस्या है?’’ चौधरीजी ने घुड़का तो सारा विलाप बंद हो गया. धीरेधीरे भीड़ अपनेअपने रास्ते खिसक ली.

अगर कोई देखता तो जान पाता कि कैसे वे तीनों परिवार लोगों के जाने के बाद आपस में तूतू-मैंमैं करते हुए लड़ पड़े थे. बड़ा बोला, ‘‘मैं बड़ा हूं. अम्मां की संपत्ति पर मेरा हक है. उस का वारिस तो मैं ही हूं. तुम दोनों क्यों आए यहां? क्या मंदिर बांटोगे? पुजारी तो एक ही होगा मंदिर का?’’

मझले के पास अपने तर्क थे, ‘‘अम्मां मुझे ही अपना वारिस मानती थीं. देखोदेखो, उन्होंने मुझे यह चिट्ठी भेजी थी. लो, देख लो दद्दा. अम्मां ने लिखा है कि तू ही मेरा राजा बेटा है. बड़े ने तो साथ ले जाने से मना कर दिया. तू ही मुझे अपने साथ ले जा. अकेली जान पड़ी रहूंगी. जैसे अपने टामी को दो रोटियां डालना वैसे मुझे भी दे देना.’’

अब की बार छोटा भी मैदान में कूद पड़ा, ‘‘तो कौन सा तुम ले गए मझले दद्दा. अम्मां ने मुझे भी चिट्ठी भेजी थी. लो, देखो. लिखा है, ‘मेरा सोना बेटा, तू तो मेरा पेट पोंछना है. तू ही तो मुझे मरने पर मुखाग्नि देगा. बेटा, अकेली भूत सी डोलती हूं. पोतेपोतियों के बीच रहने को कितना दिल तड़पता है. मंदिर में कोई बच्चा, कोई बहू जब अपनी दादी या सास के साथ आते हैं तो मेरा दिल रो पड़ता है. इतने भरेपूरे परिवार की मां हो कर भी मैं कितनी अकेली हूं. मेरा सोना बेटा, ले जा मुझे अपने साथ.’ ’’

सच है, सब के पास प्रमाण है अपनेअपने बुलावे का किंतु कोई भी सोना या राजा बेटा पुजारिन अम्मां को अपने साथ नहीं ले गया. इस के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं क्योंकि कोई ले कर गया होता तो आज पुजारिन अम्मां यों अकेली पड़ेपड़े न मर गई होतीं और उन का दाहसंस्कार चंदा कर के न किया गया होता.

पुजारिन अम्मां के 3 पुत्र, जिन्होंने एक क्षण भी बेटे के कर्तव्य का पालन नहीं किया, जिन्हें अपनी मां का अकेलापन नहीं खला, वे आज उस के वारिस बने खड़े हैं. क्या उन का मन जरा भी अपनी मां के भेजे पत्र से विचलित नहीं हुआ. क्या कभी उन्हें एहसास हुआ कि जिस मां ने उन्हें 9 माह तक अपनी कोख में रखा, जिस ने उन्हें सीने से लगा कर रातें आंखों में ही काट दीं, उस मां को वे तीनों मिल कर 9 दिन भी अपने साथ नहीं रख सके.

आज भी उन्हें उस के दाहसंस्कार, उस के श्राद्ध आदि की चिंता नहीं, चिंता है तो मात्र मंदिर के वारिसाना हक की. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मंदिर का पुजारी दीनहीन हो तो कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता किंतु पुजारी तनिक भी टीमटाम वाला हो, उस को पूजा करने का दिखावा करना आता हो, भक्तों की जेबों के वजन को टटोलना आता हो तो इस से बढि़या कोई और धंधा हो ही नहीं सकता.

आने वाले समय की कल्पना कर तीनों भाई मन में पूरी योजना बनाए पड़े थे. बस, उन्हें चौधरी का खौफ खाए जा रहा था वरना अब तक तो तीनों भाइयों ने फैसला कर ही लिया होता, चाहे बात से चाहे लात से. 3 अलगअलग ध्रुवों से आए एक ही मां के जने 3 भाइयों को एकदूसरे की ओर दृष्टि फिराना भी गवारा नहीं. एकदूसरे का हालचाल, कुशलक्षेम जानने की तनिक भी जिज्ञासा नहीं, बस, केवल मंदिर पर अधिकार की हवस ही दिल- दिमाग को अभिभूत किए है.

उधर चौधरीजी की चिंता और परेशानी का कोई ओरछोर नहीं है. कितने योजनाबद्ध तरीके से वे मंदिर को अपनी संपत्ति बनाने वाले थे. उन के जैसा विद्वान पुरुष यह अच्छी तरह से जानता है कि मंदिर की सेवाटहल करना महल्ले के लोगों के बस की बात नहीं. उन्हें ही कुछ प्रबंध करना है. प्रबंध भी ऐसा हो जिस से उन का भी कुछ लाभ हो. मंदिर के लिए अभी उन्होंने जो व्यवस्था की है वह तो अस्थायी है.

अभी वह कोई उचित व्यवस्था सोच भी नहीं पाए थे कि ये तीनों जाने कहां से टपक पड़े. पर उन के आने के पीछे छिपी उन की चतुराई को याद कर और उन को देख उन के नाटक में आए बदलाव को याद कर चौधरीजी मुसकरा दिए. तीनों में से किसी एक का चुनाव करना कठिन है. तीनों ही सर्वश्रेष्ठ हैं, तीनों ही योग्य और उपयुक्त हैं. एक निश्चय सा कर चौधरीजी निश्चिन्त हो चले थे.

अगले दिन सुबह ही मंदिर के घंटे की ध्वनि से महल्ले वालों की नींद टूट गई. मंदिर को देखने और पुजारिन अम्मां के वारिसों के बारे में जानने के लिए लोग मंदिर पहुंचे तो देखा तीनों भाई मंदिर के तीनों कमरों में किनारीदार पीली धोती पहने, लंबी चुटिया बांधे और सलीके से चंदन लगाए मूर्तियों के सामने मंत्र बुदबुदा रहे हैं. वे बारीबारी से उठते हैं और वहां खड़े लोगों को तांबे के लोटे में रखे जल का प्रसाद देते हैं. सामने ही तालाजडि़त दानपात्र रखा है जिस पर गुप्तदान, स्वेच्छादान आदि लिखा हुआ है. पुजारी की ओर दक्षिणा बढ़ाने पर वे दानपात्र की ओर इशारा कर देते हैं.

मंदिर के इस बदलाव पर अब महल्ले के लोग भौचक हैं. श्रद्धालुओं की जेबें ढीली हो रही हैं. पुजारीत्रय तथा चौधरीजी के खजाने भर रहे हैं. पुजारिन अम्मां को सब भूल चुके हैं.

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December 01, 2018 at 09:55AM

गली आगे मुड़ती है : क्या विवाह के प्रति उन का नजरिया बदल सका

रिश्ते बिना बंधन के मजबूत नहीं बनते. यह बात रोली, नयना और संजना शायद समझ नहीं पाई थी. शादी को मात्र एक बोझ, एक जिम्मेदारी मान कर तीनों असंतुष्ट थीं. क्या स्थितियों के आगे विवाह के प्रति उन का यह नजरिया बदल सका?

‘‘पि  छले एक हफ्ते से बहुत थक गई हूं,’’ संजना ने कौफी का आर्डर देते हुए रोली से कहा, ‘‘इतना काम…कभीकभी दिल करता है कि नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाऊं.’’

‘‘हां यार, मेरे घर वाले भी शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं,’’ रोली बोली, ‘‘लेकिन नौकरी की व्यस्तता में कुछ सोच नहीं पा रही हूं…नयना का ठीक है. शादी का झंझट ही नहीं पाला, साथ रहो, साथ रहने का मजा लो और शादी के बाद के झंझट से मुक्त रहो.’’

‘‘मुझे तो लिव इन रिलेशन शादी से अधिक भाया है,’’ नयना ने कहा, ‘‘शादी करो, बच्चे पैदा करो, बच्चे पालो और नौकरी को हाशिए पर रख दो. अरे, इतनी मेहनत कर के इंजीनियरिंग की है क्या सिर्फ घर चलाने और बच्चे पालने के लिए?’’

‘‘कैसा चल रहा है तेरा पवन के साथ?’’ रोली ने पूछा.

‘‘बहुत बढि़या, जरूरत पर एक दूसरे का साथ भी है लेकिन बंधन कोई नहीं. मैं तो कहती हूं, तू भी एक अच्छा सा पार्टनर ढूंढ़ ले,’’ नयना बोली.

‘‘कौन कहता है कि शादी बंधन है,’’ संजना कौफी के कप में चम्मच चलाती हुई बोली, ‘‘बस, कामयाब औरत को समय के अनुसार सही साथी तलाश करने की जरूरत है.’’

‘‘हां, जैसे तू ने तलाश किया,’’ नयना खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘आई.आई.टी. इंजीनियर और आई.आई.एम. लखनऊ से एम.बी.ए. हो कर एक लेक्चरर से शादी कर ली, इतनी कामयाब बीवी को वह कितने दिन पचा पाएगा.’’

जवाब में संजना मुसकराने लगी, ‘‘क्यों नहीं पचा पाएगा. जब एक पत्नी अपने से कामयाब पति को पचा सकती है तो एक पति अपने से अधिक कामयाब पत्नी को क्यों नहीं पचा सकता है. आज के समय की यही जरूरत है,’’ कह कर कौफी का प्याला मेज पर रख कर संजना उठ खड़ी हुई. साथ ही रोली और नयना भी खिलखिलाते हुए उठीं और अपनी- अपनी राह चल पड़ीं.

तीनों सहेलियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बड़ेबड़े ओहदों पर थीं. फुरसत के समय तीनों एकदूसरे से मिलती रहती थीं. तीनों सहेलियों की उम्र 32 पार कर चुकी थी. रोली अभी तक अविवाहित थी. नयना एक युवक पवन के साथ लिव इन रिलेशन व्यतीत कर रही थी और संजना ने एक लेक्चरर से 3 साल पहले विवाह किया था. उस का साल भर का एक बेटा भी था. वैसे तो तीनों सहेलियां अपनीअपनी वर्तमान स्थितियों से संतुष्ट थीं लेकिन सबकुछ है पर कुछ कमी सी है की तर्ज पर हर एक को कुछ न कुछ खटकता रहता था.

रोली जब घर पहुंची तो 9 बज रहे थे. मां खाने की मेज पर बैठी उस का इंतजार कर रही थीं. उसे आया देख कर मां बोलीं, ‘‘बेटी, आज बहुत देर कर दी, आ जा, जल्दी से खाना खा ले.’’

9 बजना बड़े शहरों में कोई बहुत अधिक समय नहीं था, पर किसी ने भी उस का खाने के लिए इंतजार करना ठीक नहीं समझा. भाई अगर देर से आएं तो उन के लिए सारा परिवार ठहरता है. आखिर, वह अपनी सारी तनख्वाह इसी घर में तो खर्च करती है.

मां की तरफ बिना देखे रोली अंदर चली गई. बाथरूम से फ्रेश हो कर निकली तो मां प्लेट में खाना डाल रही थीं. उस ने किसी तरह थोड़ा खाना खाया. इस दौरान मां की बातों का वह हां, ना में जवाब देती रही और फिर अपने कमरे में बत्ती बुझा कर लेट गई. दिन भर के काम से शरीर क्लांत था लेकिन हृदय के अंदर समुद्री तूफान था. लंबेचौड़े पलंग ने जैसे उस का अस्तित्व शून्य बना दिया था.

रिश्ते तो कई आते हैं पर तय हो ही नहीं पाते क्योंकि या तो उसे अपनी वर्तमान नौकरी छोड़नी पड़ती या फिर लड़के का रुतबा उस के बराबर का नहीं होता और दोनों ही स्थितियां रोली को स्वीकार नहीं थीं. इसी कारण शादी टलती जा रही थी. वह हमेशा अनिर्णय की स्थिति में रहती थी. उस के संस्कार उसे नयना जैसा जीवन जीने की प्रेरणा नहीं देते थे और उस का रुतबा व स्वाभिमान उसे अपने से कम योग्य लड़के से शादी करने से रोकते थे.

नयना अपने फ्लैट पर पहुंची तो फ्लैट में अंधेरा था. पर्स से चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर आ गई. ‘पवन कहां होगा’ यह सोच कर उस ने पवन के मोबाइल पर फोन लगाया और बोली, ‘‘पवन, कहां हो तुम?’’

‘‘नयना, मैं आज कुछ दोस्तों के साथ एक फार्म हाउस पर हूं. सौरी डार्लिंग, मैं आज रात वापस नहीं आ पाऊंगा. कल रविवार है, कल मिलते हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.

पवन साथ हो या न हो, एक असुरक्षा का भाव जाने क्यों हमेशा उस के जेहन में तैरता रहता है. यों उन का लिव इन रिलेशन अच्छा चल रहा था फिर भी वह अपनेआप को कुछ लुटा हुआ, ठगा हुआ सा महसूस करती थी. विवाह की अहमियत दिल में सिर उठा ही लेती. वैवाहिक संबंधों पर पारिवारिक, सामाजिक व बच्चों का दबाव होता है इसलिए निभाने ही पड़ते हैं लेकिन उन के संबंधों की बुनियाद खोखली है, कभी भी टूट सकते हैं…उस के बाद…यह सोचने से भी नयना घबराती थी.

नयना ने 2 टोस्ट पर मक्खन लगाया, थोड़ा दूध पिया और कपड़े बदल कर बिस्तर पर निढाल सी पड़ गई. पवन लिव इन रिलेशन के लिए तो तैयार है पर विवाह के लिए नहीं. कहता है कि अभी उस ने विवाह के बारे में सोचा नहीं है. सच तो यह है कि पवन यदि विवाह के लिए कहे भी तो शायद वह तैयार न हो पाए. विवाह के बाद की जिम्मेदारियां, बच्चे, घरगृहस्थी, वह कैसे निभा पाएगी. लेकिन जब अपने दिल से पूछती है तो एहसास होता है कि विवाह की अहमियत वह समझती है.

स्थायी संबंध, भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा विवाह से ही मिलती है. लाख उस के पवन के साथ मधुर संबंध हैं लेकिन उसे वह अधिकार तो नहीं जो एक पत्नी का अपने पति पर होता है. यह सबकुछ सोचतेसोचते नयना गुदगुदे तकिए में मुंह गड़ा कर सोने का असफल प्रयास करने लगी.

संजना घर पहुंची तो नितिन बेटे को कंधे से चिपकाए लौन में टहल रहा था. उसे अंदर आते देख कर उस की तरफ चला आया और बोला, ‘‘बहुत देर हो गई.’’

‘‘हां, नयना और रोली के साथ कौफी पीने रुक गई थी.’’

‘‘तो एक फोन तो कर देतीं,’’ नितिन नाराजगी से बोला.

दोनों अंदर आ गए. नितिन बेटे को बिस्तर पर लिटा कर थपकियां देने लगा. वह बाथरूम में चली गई. नहाधो कर निकली तो मेज पर खाना लगा हुआ था.

‘‘चलो, खाना खा लो,’’ संजना बोली तो नितिन मेज पर आ कर बैठ गया.

डोंगे का ढक्कन हटाती हुई संजना बोली, ‘‘कुछ भी कहो, खाना महाराजिन बहुत अच्छा बनाती है.’’

नितिन चुपचाप खाना खाता रहा. संजना उस की नाराजगी समझ रही थी. आज शनिवार की शाम नितिन का आउटिंग का प्रोग्राम रहा होगा, जो उस की वजह से खराब हो गया. एक बार मन किया कि मानमनुहार करे लेकिन वह इतनी थकी हुई थी कि नितिन से उलझने का उस का मन नहीं हुआ.

खाना खत्म कर के उस ने बचा हुआ खाना फ्रिज में रखा और बिस्तर पर आ कर लेट गई. नितिन सो गया था. आंखों को कोहनी से ढके संजना का मन कर रहा था कि वह नितिन को मना ले, लेकिन पता नहीं कौन सी दीवार थी जो उसे उस के साथ सहज होने से रोकती थी.

वैसे नितिन उस का स्वयं का चुनाव था. जब उस के लिए रिश्ते आ रहे थे उस समय उस की बूआ ने अपने रिश्ते के एक लेक्चरर लड़के का रिश्ता उस के लिए सुझाया था. घर में सभी खिलखिला कर हंस पड़े थे. कहां संजना बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्रबंधक और कहां लेक्चरर.

तब उस की छोटी बहन मजाक में बोली थी, ‘वैसे दीदी, एक लेक्चरर से आप का आइडियल मैच रहेगा. आखिर पतिपत्नी में से किसी एक को तो घर संभालने की फुरसत होनी ही चाहिए. वरना घर कैसे चलेगा. आप पति बन कर राज करना वह पत्नी बन कर घर संभालेगा.’ और बहन की मजाक में कही हुई बात संजना के जेहन में आ कर अटक गई थी.

पहले तो उस के जैसी योग्य लड़की के लिए रिश्ते मिलने ही मुश्किल हो रहे थे. एक तो इस लड़के की नौकरी स्थानीय थी और दूसरे, आने वाले समय में बच्चे होंगे तो उन की देखभाल करने का उस के पास पर्याप्त समय होगा तो वह अपनी नौकरी पर पूरा ध्यान दे सकती है. यह सोच कर उस का निर्णय पुख्ता हो गया. उस के इस क्रांतिकारी निर्णय में पिता ने उस का साथ दिया था. उन की नजर में आज के समय में पति या पत्नी में से किसी का भी कम या ज्यादा योग्य होना कोई माने नहीं रखता है. और इस तरह से नितिन से उस का विवाह हो गया था.

शुरुआत में तो सब ठीक चला लेकिन धीरेधीरे उन के रिश्तों में ख्ंिचाव आने लगा. उस की तनखाह, ओहदा, उस का दायरा, उस की व्यस्तताएं सभी कुछ नितिन के मुकाबले ऊंचा व अलग था. और यह बात संजना के हावभाव से जाहिर हो जाती थी. नितिन उस के सामने खुद को बौना महसूस करता था. संजना सोच रही थी कि काश, उस ने विवाह करने में जल्दबाजी न की होती तो आज उस की यह स्थिति नहीं होती. उस से तो अच्छा रोली और नयना का जीवन है जो खुश तो हैं. नितिन उस की परेशानियां समझ ही नहीं पाता. वह चाहता है कि पत्नी की तरह मैं उस के अहं को संतुष्ट करूं. यही सोचतेसोचते संजना सो गई.

दूसरे दिन रविवार था. वह देर से सो कर उठी. जब वह उठी तो महाराजिन, धोबन, महरी सब काम कर के जा चुके थे और आया मोनू की मालिश कर रही थी. वह बाहर निकली, किचन में जा कर चाय बनाई. एक कप नितिन को दी और खुद भी बैठ कर चाय पीते हुए अखबार पढ़ने लगी.

तभी उस का फोन बज उठा. उस ने फोन उठाया, नयना थी, ‘‘हैलो नयना…’’ संजना चाय पीते हुए नयना से बात करने लगी.

‘‘संजना, क्या तुम थोड़ी देर के लिए मेरे घर आ सकती हो?’’ नयना की आवाज उदासी में डूबी हुई थी.

‘‘क्यों, क्या हो गया, नयना?’’ संजना चिंतित स्वर में बोली.

‘‘बस, घर पर अकेली हूं, रात भर नींद नहीं आई, बेचैनी सी हो रही है.’’

‘‘मैं अभी आती हूं,’’ कह कर संजना उठ खड़ी हुई. नितिन सबकुछ सुन रहा था. उस का तना हुआ चेहरा और भी तन गया.

वह तैयार हुई और नितिन से ‘अभी आती हूं’ कह कर बाहर निकल गई. नयना के फ्लैट में संजना पहुंची तो वह उस का ही इंतजार कर रही थी. बाहर से ही अस्तव्यस्त घर के दर्शन हो गए. वह अंदर बेडरूम में गई तो देखा नयना सिर पर कपड़ा बांधे बिस्तर पर लेटी हुई थी. कमरे में कुरसियों पर हफ्ते भर के उतारे हुए मैले कपड़ों का ढेर पड़ा हुआ था. कहने को पवन और नयना दोनों ऊंचे ओहदों पर कार्यरत थे पर उन के घर को देख कर जरा भी नहीं लगता था कि यह 2 समान विचारों वाले इनसानों का घर है.

‘‘क्या हुआ, नयना,’’ संजना उस के सिर पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘पवन कहां है?’’

‘‘वह अपने दोस्तों के साथ शहर से दूर किसी फार्म हाउस पर गया हुआ है और मेरी तबीयत रात से ही खराब है. दिल बारबार बेचैन हो उठता है, सिर में तेज दर्द है,’’ इतना बताते हुए नयना की आवाज भर्रा गई.

संजना के दिल में कुछ कसक सा गया. यहां नयना इसलिए दुखी है कि पवन कल से लौटा नहीं और उस के पास नितिन के लिए समय नहीं है.

‘‘तो इस में घबराने की क्या बात है. रात तक पवन लौट आएगा,’’ संजना बोली, ‘‘चल, तुझे डाक्टर को दिखा लाती हूं. उस के  बाद मेरे घर चलना.’’

‘‘बात रात तक आने की नहीं है, संजना,’’ नयना बोली, ‘‘पवन का व्यवहार कुछ बदल रहा है. वह अकसर ही मुझे बिना बताए अपने दोस्तों के साथ चला जाता है. कौन जाने उन दोस्तों में कोई लड़की हो?’’ बोलते- बोलते नयना की रुलाई फूट पड़ी.

‘‘लेकिन तू ने कभी कहा नहीं…’’

‘‘क्या कहती…’’ नयना थोड़ी देर चुप रही, ‘‘वह मेरा पति तो नहीं है जिस पर कोई दबाव डाला जाए. वह अपने फैसले के लिए आजाद है, संजना,’’ और संजना की बांह पकड़ कर नयना बोली, ‘‘तू ने अपने जीवन में सब से सही निर्णय लिया है. तेरे पास सबकुछ है. सुकून भरा घर, बेटा और तुझे मानसम्मान देने वाला पति पर मेरे और पवन के रिश्तों का क्या है, कौन सा आधार है जो वह मुझ से बंधा रहे? आखिर इन रिश्तों का और इस जीवन का क्या भविष्य है? एक उम्र निकल जाएगी तो मैं किस के सहारे जीऊंगी?

‘‘जीवन सिर्फ जवानी की सीधी सड़क ही नहीं है, संजना. इस सीधी, सपाट सड़क के बाद एक संकरी गली भी आती है…अधेड़ावस्था की…और जब यह गली मुड़ती है न…तो एक भयानक खाई आती है…बुढ़ापे की…और जीवन का वही सब से भयानक मोड़ है, तब मैं क्या करूंगी…’’ कह कर नयना रोने लगी.

‘‘नितिन तुझ से कुछ कम योग्य सही लेकिन तेरे जीवन की निश्ंिचतता उसी की वजह से है. उसे खोने का तुझे डर नहीं, घर की तुझे चिंता नहीं…बेटे के लालनपालन में तुझे कोई परेशानी नहीं…’’ रोतेरोते नयना बोली, ‘‘मेरे पास क्या है? पवन का मन होगा तब तक वह मेरे साथ रहेगा, फिर उस के बाद…’’

संजना हतप्रभ सी नयना को देखती रह गई. उस की आंखों में, उस के चेहरे पर असुरक्षा के भाव थे, भविष्य की चिंता थी. लेकिन क्यों? नयना खुद इतने ऊंचे पद पर कार्यरत थी, इस आजाद खयाल जीवन की हिमायती नयना के मन में भी पवन के खो जाने का डर है, जीवन में अकेले रह जाने का डर है. पवन के बाद दूसरा साथी बनाएगी फिर तीसरा…फिर चौथा…और उस के बाद जैसे एक विराट प्रश्नचिह्न संजना के सामने आ कर टंग गया था. वह तो अपनी नौकरी के अलावा कभी किसी बारे में सोचती ही नहीं. बस, नितिन का अपने से कम योग्य होना ही उसे खलता रहता है और इस बात से वह दुखी होती रहती है.

‘‘पवन कहीं नहीं जाएगा, नयना, आ जाएगा रात तक. तुम्हारा भ्रम है यह…’’ वह नयना को दिलासा देती हुई बोली. और दिन भर के लिए उस के पास रुक गई. शाम को जब वह घर पहुंची तो घर पर रोली को अपना इंतजार करते पाया.

‘‘अरे, रोली इस समय तुम कैसे आ गईं.’’

‘‘तुझ से बात करने का मन हो रहा था. सो, आ गई. नितिनजी ने बताया कि तू नयना के घर गई है, आने वाली होगी. मुझे इंतजार करने को कह कर वह कुछ सामान लेने चले गए.’’

एक पल चुप रहने के बाद रोली बोली, ‘‘नितिन बता रहे थे कि नयना की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, क्या हुआ है उसे?’’

‘‘कुछ नहीं, वह अपने और पवन के रिश्तों को ले कर कुछ अपसेट सी है,’’ संजना सोफे पर बैठती हुई बोली, ‘‘नयना को पवन पर भरोसा नहीं रहा. उसे लग रहा है कि उस की जिंदगी में कोई और है तभी वह उस से दूर जा रहा है.’’

‘‘लेकिन नयना उस से पूछती क्यों नहीं?’’ रोली रोष में आ कर बोली.

‘‘किस बिना पर, रोली. आखिर लिव इन रिलेशन का यही तो मतलब है कि जब तक बनी तब तक साथ रहे वरना अलग होने में वैवाहिक रिश्तों जैसा कोई झंझट नहीं.’’

‘‘और तू सुना, कैसी है,’’ थोड़ी देर बाद संजना बोली.

‘‘बस, ऐसे ही, कल से बहुत परेशान सी थी. घर में रिश्ते की बात चल रही है. एक अच्छा रिश्ता आया है. सब बातें तो ठीक हैं पर लड़का मुंबई में कार्यरत है? मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी. इसी बात पर घर में हंगामा मचा हुआ था. पापा चाहते थे कि मुझे चाहे नौकरी छोड़नी पड़े पर मैं उस रिश्ते के लिए हां कर दूं. इसी विवाद से परेशान हो कर मैं थोड़ी देर के लिए तेरे पास आ गई.’’

‘‘तो क्या सोचा है तू ने?’’ संजना बोली.

‘‘सोचा तो था कि मना कर दूंगी,’’ रोली खिसक कर संजना के पास बैठती हुई बोली, ‘‘लेकिन नयना के बारे में जानने के बाद अब सोचती हूं कि हां कर दूं. आज की पीढ़ी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में उलझी हुई विवाह और विवाह के बाद की जिम्मेदारियों से दूर भाग रही है लेकिन जैसेजैसे उम्र आगे बढ़ती है पीछे मुड़ कर देखने का मन करता है. अगर 10 साल बाद कोई समझौता करना है तो आज क्यों नहीं?’’ पल भर के लिए दोनों सहेलियां चुप हो गईं.

‘‘तू ने सही और समय से निर्णय लिया, संजना. सभी को कुछ न कुछ समझौता तो करना ही पड़ता है. मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ रही है और नयना को भविष्य की सुरक्षा, लेकिन तेरे पास सबकुछ है. नितिन तुझ से कुछ कम योग्य सही लेकिन अयोग्य तो नहीं है. पहले लड़कियां इतनी योग्य भी नहीं होती थीं तो उन्हें अपने से अधिक योग्य लड़के मिल जाते थे लेकिन अब जमाना बदल रहा है. लड़कियां इतनी तरक्की कर रही हैं कि यदि अपने से अधिक योग्य लड़के के इंतजार में बैठी रहेंगी तो या तो नौकरी ही कर पाएंगी या शादी ही.

‘‘ऐसे लड़के का चुनाव करना जिस के साथ घरेलू जीवन चल सके, बच्चों की परवरिश हो सके, बड़ेबुजुर्गों की देखभाल हो सके, अपने से लड़का कुछ कम योग्य भी हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं है. समय के साथ यह बदलाव आना ही चाहिए. आखिर पहले पत्नी घर देखती थी आज ऊंचे ओहदों पर कार्य कर रही है तो पति के पास घर की देखभाल करने का समय हो तो इस में कुछ गलत है क्या?’’ यह कह कर रोली उठ खड़ी हुई.

संजना जब रोली को बाहर तक छोड़ कर अंदर आई तो ध्यान आया कि नितिन को बाजार गए हुए काफी देर हो गई और अभी तक वह आए नहीं. आज नितिन के लिए संजना के मन में अंदर से चिंता हो रही थी. तभी कौलबेल बज उठी, सामान से लदाफदा नितिन दरवाजे पर खड़ा था.

‘‘अरे, आप इतना सारा सामान ले आए,’’ संजना सामान के कुछ पैकेट उस के हाथ से पकड़ते हुए बोली, ‘‘बहुत देर हो गई, मैं इंतजार कर रही थी.’’

संजना के स्वर की कोमलता से नितिन चौंक गया. बिना कुछ बोले वह अपने हाथ का सामान किचन में रख कर बेडरूम में चला गया. संजना भी उस के पीछेपीछे आ गई.

‘‘नितिन,’’ पीछे से उस के गले में बांहें डालती हुई संजना बोली, ‘‘चलो, आज का डिनर बाहर करेंगे, फिर कोई फिल्म देखेंगे. आया को रोक लेते हैं. वह मुन्ने को देख लेगी.’’

उस के इस प्रस्ताव व हरकत से नितिन हैरत से पलट कर उस की ओर देखने लगा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो?’’ संजना इठलाती हुई बोली, ‘‘हर समय गुस्से में रहते हो, यह नहीं की कभी बीवी को कहीं घुमा लाओ, फिल्म दिखा लाओ.’’

आम घरेलू औरतों की तरह संजना बोली तो उस की इस हरकत पर नितिन खिलखिला कर हंस पड़ा.

संजना उस के गले में बांहें डाल कर उस से लिपट गई, ‘‘मुझे माफ कर दो, नितिन.’’

‘‘संजना, इस में माफी की क्या बात है? मेरे लिए तुम, तुम्हारी योग्यता, तुम्हारी काम में व्यस्तता, तुम्हारा रुतबा सभी कुछ गर्व का विषय है लेकिन जब तुम मुझे ही अपनी जिंदगी से दरकिनार कर देती हो तो दुख होता है.’’

‘‘अब ऐसा नहीं होगा. मेरे लिए आप से अधिक महत्त्वपूर्ण जीवन में दूसरा कुछ भी नहीं है. आप में और मुझ में कोई फर्क नहीं, हमारा कुछ भी, चाहे वह नौकरी हो या समाज, जिंदगी भर नहीं रहेगा…लेकिन हम दोनों मरते दम तक साथ रहेंगे.’’

मानअभिमान की सारी दीवारें तोड़ कर संजना नितिन से लिपट गई. नितिन ने भी एक पति के आत्मविश्वास से संजना को अपनी बांहों में समेट लिया.

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रिश्ते बिना बंधन के मजबूत नहीं बनते. यह बात रोली, नयना और संजना शायद समझ नहीं पाई थी. शादी को मात्र एक बोझ, एक जिम्मेदारी मान कर तीनों असंतुष्ट थीं. क्या स्थितियों के आगे विवाह के प्रति उन का यह नजरिया बदल सका?

‘‘पि  छले एक हफ्ते से बहुत थक गई हूं,’’ संजना ने कौफी का आर्डर देते हुए रोली से कहा, ‘‘इतना काम…कभीकभी दिल करता है कि नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाऊं.’’

‘‘हां यार, मेरे घर वाले भी शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं,’’ रोली बोली, ‘‘लेकिन नौकरी की व्यस्तता में कुछ सोच नहीं पा रही हूं…नयना का ठीक है. शादी का झंझट ही नहीं पाला, साथ रहो, साथ रहने का मजा लो और शादी के बाद के झंझट से मुक्त रहो.’’

‘‘मुझे तो लिव इन रिलेशन शादी से अधिक भाया है,’’ नयना ने कहा, ‘‘शादी करो, बच्चे पैदा करो, बच्चे पालो और नौकरी को हाशिए पर रख दो. अरे, इतनी मेहनत कर के इंजीनियरिंग की है क्या सिर्फ घर चलाने और बच्चे पालने के लिए?’’

‘‘कैसा चल रहा है तेरा पवन के साथ?’’ रोली ने पूछा.

‘‘बहुत बढि़या, जरूरत पर एक दूसरे का साथ भी है लेकिन बंधन कोई नहीं. मैं तो कहती हूं, तू भी एक अच्छा सा पार्टनर ढूंढ़ ले,’’ नयना बोली.

‘‘कौन कहता है कि शादी बंधन है,’’ संजना कौफी के कप में चम्मच चलाती हुई बोली, ‘‘बस, कामयाब औरत को समय के अनुसार सही साथी तलाश करने की जरूरत है.’’

‘‘हां, जैसे तू ने तलाश किया,’’ नयना खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘आई.आई.टी. इंजीनियर और आई.आई.एम. लखनऊ से एम.बी.ए. हो कर एक लेक्चरर से शादी कर ली, इतनी कामयाब बीवी को वह कितने दिन पचा पाएगा.’’

जवाब में संजना मुसकराने लगी, ‘‘क्यों नहीं पचा पाएगा. जब एक पत्नी अपने से कामयाब पति को पचा सकती है तो एक पति अपने से अधिक कामयाब पत्नी को क्यों नहीं पचा सकता है. आज के समय की यही जरूरत है,’’ कह कर कौफी का प्याला मेज पर रख कर संजना उठ खड़ी हुई. साथ ही रोली और नयना भी खिलखिलाते हुए उठीं और अपनी- अपनी राह चल पड़ीं.

तीनों सहेलियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बड़ेबड़े ओहदों पर थीं. फुरसत के समय तीनों एकदूसरे से मिलती रहती थीं. तीनों सहेलियों की उम्र 32 पार कर चुकी थी. रोली अभी तक अविवाहित थी. नयना एक युवक पवन के साथ लिव इन रिलेशन व्यतीत कर रही थी और संजना ने एक लेक्चरर से 3 साल पहले विवाह किया था. उस का साल भर का एक बेटा भी था. वैसे तो तीनों सहेलियां अपनीअपनी वर्तमान स्थितियों से संतुष्ट थीं लेकिन सबकुछ है पर कुछ कमी सी है की तर्ज पर हर एक को कुछ न कुछ खटकता रहता था.

रोली जब घर पहुंची तो 9 बज रहे थे. मां खाने की मेज पर बैठी उस का इंतजार कर रही थीं. उसे आया देख कर मां बोलीं, ‘‘बेटी, आज बहुत देर कर दी, आ जा, जल्दी से खाना खा ले.’’

9 बजना बड़े शहरों में कोई बहुत अधिक समय नहीं था, पर किसी ने भी उस का खाने के लिए इंतजार करना ठीक नहीं समझा. भाई अगर देर से आएं तो उन के लिए सारा परिवार ठहरता है. आखिर, वह अपनी सारी तनख्वाह इसी घर में तो खर्च करती है.

मां की तरफ बिना देखे रोली अंदर चली गई. बाथरूम से फ्रेश हो कर निकली तो मां प्लेट में खाना डाल रही थीं. उस ने किसी तरह थोड़ा खाना खाया. इस दौरान मां की बातों का वह हां, ना में जवाब देती रही और फिर अपने कमरे में बत्ती बुझा कर लेट गई. दिन भर के काम से शरीर क्लांत था लेकिन हृदय के अंदर समुद्री तूफान था. लंबेचौड़े पलंग ने जैसे उस का अस्तित्व शून्य बना दिया था.

रिश्ते तो कई आते हैं पर तय हो ही नहीं पाते क्योंकि या तो उसे अपनी वर्तमान नौकरी छोड़नी पड़ती या फिर लड़के का रुतबा उस के बराबर का नहीं होता और दोनों ही स्थितियां रोली को स्वीकार नहीं थीं. इसी कारण शादी टलती जा रही थी. वह हमेशा अनिर्णय की स्थिति में रहती थी. उस के संस्कार उसे नयना जैसा जीवन जीने की प्रेरणा नहीं देते थे और उस का रुतबा व स्वाभिमान उसे अपने से कम योग्य लड़के से शादी करने से रोकते थे.

नयना अपने फ्लैट पर पहुंची तो फ्लैट में अंधेरा था. पर्स से चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर आ गई. ‘पवन कहां होगा’ यह सोच कर उस ने पवन के मोबाइल पर फोन लगाया और बोली, ‘‘पवन, कहां हो तुम?’’

‘‘नयना, मैं आज कुछ दोस्तों के साथ एक फार्म हाउस पर हूं. सौरी डार्लिंग, मैं आज रात वापस नहीं आ पाऊंगा. कल रविवार है, कल मिलते हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.

पवन साथ हो या न हो, एक असुरक्षा का भाव जाने क्यों हमेशा उस के जेहन में तैरता रहता है. यों उन का लिव इन रिलेशन अच्छा चल रहा था फिर भी वह अपनेआप को कुछ लुटा हुआ, ठगा हुआ सा महसूस करती थी. विवाह की अहमियत दिल में सिर उठा ही लेती. वैवाहिक संबंधों पर पारिवारिक, सामाजिक व बच्चों का दबाव होता है इसलिए निभाने ही पड़ते हैं लेकिन उन के संबंधों की बुनियाद खोखली है, कभी भी टूट सकते हैं…उस के बाद…यह सोचने से भी नयना घबराती थी.

नयना ने 2 टोस्ट पर मक्खन लगाया, थोड़ा दूध पिया और कपड़े बदल कर बिस्तर पर निढाल सी पड़ गई. पवन लिव इन रिलेशन के लिए तो तैयार है पर विवाह के लिए नहीं. कहता है कि अभी उस ने विवाह के बारे में सोचा नहीं है. सच तो यह है कि पवन यदि विवाह के लिए कहे भी तो शायद वह तैयार न हो पाए. विवाह के बाद की जिम्मेदारियां, बच्चे, घरगृहस्थी, वह कैसे निभा पाएगी. लेकिन जब अपने दिल से पूछती है तो एहसास होता है कि विवाह की अहमियत वह समझती है.

स्थायी संबंध, भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा विवाह से ही मिलती है. लाख उस के पवन के साथ मधुर संबंध हैं लेकिन उसे वह अधिकार तो नहीं जो एक पत्नी का अपने पति पर होता है. यह सबकुछ सोचतेसोचते नयना गुदगुदे तकिए में मुंह गड़ा कर सोने का असफल प्रयास करने लगी.

संजना घर पहुंची तो नितिन बेटे को कंधे से चिपकाए लौन में टहल रहा था. उसे अंदर आते देख कर उस की तरफ चला आया और बोला, ‘‘बहुत देर हो गई.’’

‘‘हां, नयना और रोली के साथ कौफी पीने रुक गई थी.’’

‘‘तो एक फोन तो कर देतीं,’’ नितिन नाराजगी से बोला.

दोनों अंदर आ गए. नितिन बेटे को बिस्तर पर लिटा कर थपकियां देने लगा. वह बाथरूम में चली गई. नहाधो कर निकली तो मेज पर खाना लगा हुआ था.

‘‘चलो, खाना खा लो,’’ संजना बोली तो नितिन मेज पर आ कर बैठ गया.

डोंगे का ढक्कन हटाती हुई संजना बोली, ‘‘कुछ भी कहो, खाना महाराजिन बहुत अच्छा बनाती है.’’

नितिन चुपचाप खाना खाता रहा. संजना उस की नाराजगी समझ रही थी. आज शनिवार की शाम नितिन का आउटिंग का प्रोग्राम रहा होगा, जो उस की वजह से खराब हो गया. एक बार मन किया कि मानमनुहार करे लेकिन वह इतनी थकी हुई थी कि नितिन से उलझने का उस का मन नहीं हुआ.

खाना खत्म कर के उस ने बचा हुआ खाना फ्रिज में रखा और बिस्तर पर आ कर लेट गई. नितिन सो गया था. आंखों को कोहनी से ढके संजना का मन कर रहा था कि वह नितिन को मना ले, लेकिन पता नहीं कौन सी दीवार थी जो उसे उस के साथ सहज होने से रोकती थी.

वैसे नितिन उस का स्वयं का चुनाव था. जब उस के लिए रिश्ते आ रहे थे उस समय उस की बूआ ने अपने रिश्ते के एक लेक्चरर लड़के का रिश्ता उस के लिए सुझाया था. घर में सभी खिलखिला कर हंस पड़े थे. कहां संजना बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्रबंधक और कहां लेक्चरर.

तब उस की छोटी बहन मजाक में बोली थी, ‘वैसे दीदी, एक लेक्चरर से आप का आइडियल मैच रहेगा. आखिर पतिपत्नी में से किसी एक को तो घर संभालने की फुरसत होनी ही चाहिए. वरना घर कैसे चलेगा. आप पति बन कर राज करना वह पत्नी बन कर घर संभालेगा.’ और बहन की मजाक में कही हुई बात संजना के जेहन में आ कर अटक गई थी.

पहले तो उस के जैसी योग्य लड़की के लिए रिश्ते मिलने ही मुश्किल हो रहे थे. एक तो इस लड़के की नौकरी स्थानीय थी और दूसरे, आने वाले समय में बच्चे होंगे तो उन की देखभाल करने का उस के पास पर्याप्त समय होगा तो वह अपनी नौकरी पर पूरा ध्यान दे सकती है. यह सोच कर उस का निर्णय पुख्ता हो गया. उस के इस क्रांतिकारी निर्णय में पिता ने उस का साथ दिया था. उन की नजर में आज के समय में पति या पत्नी में से किसी का भी कम या ज्यादा योग्य होना कोई माने नहीं रखता है. और इस तरह से नितिन से उस का विवाह हो गया था.

शुरुआत में तो सब ठीक चला लेकिन धीरेधीरे उन के रिश्तों में ख्ंिचाव आने लगा. उस की तनखाह, ओहदा, उस का दायरा, उस की व्यस्तताएं सभी कुछ नितिन के मुकाबले ऊंचा व अलग था. और यह बात संजना के हावभाव से जाहिर हो जाती थी. नितिन उस के सामने खुद को बौना महसूस करता था. संजना सोच रही थी कि काश, उस ने विवाह करने में जल्दबाजी न की होती तो आज उस की यह स्थिति नहीं होती. उस से तो अच्छा रोली और नयना का जीवन है जो खुश तो हैं. नितिन उस की परेशानियां समझ ही नहीं पाता. वह चाहता है कि पत्नी की तरह मैं उस के अहं को संतुष्ट करूं. यही सोचतेसोचते संजना सो गई.

दूसरे दिन रविवार था. वह देर से सो कर उठी. जब वह उठी तो महाराजिन, धोबन, महरी सब काम कर के जा चुके थे और आया मोनू की मालिश कर रही थी. वह बाहर निकली, किचन में जा कर चाय बनाई. एक कप नितिन को दी और खुद भी बैठ कर चाय पीते हुए अखबार पढ़ने लगी.

तभी उस का फोन बज उठा. उस ने फोन उठाया, नयना थी, ‘‘हैलो नयना…’’ संजना चाय पीते हुए नयना से बात करने लगी.

‘‘संजना, क्या तुम थोड़ी देर के लिए मेरे घर आ सकती हो?’’ नयना की आवाज उदासी में डूबी हुई थी.

‘‘क्यों, क्या हो गया, नयना?’’ संजना चिंतित स्वर में बोली.

‘‘बस, घर पर अकेली हूं, रात भर नींद नहीं आई, बेचैनी सी हो रही है.’’

‘‘मैं अभी आती हूं,’’ कह कर संजना उठ खड़ी हुई. नितिन सबकुछ सुन रहा था. उस का तना हुआ चेहरा और भी तन गया.

वह तैयार हुई और नितिन से ‘अभी आती हूं’ कह कर बाहर निकल गई. नयना के फ्लैट में संजना पहुंची तो वह उस का ही इंतजार कर रही थी. बाहर से ही अस्तव्यस्त घर के दर्शन हो गए. वह अंदर बेडरूम में गई तो देखा नयना सिर पर कपड़ा बांधे बिस्तर पर लेटी हुई थी. कमरे में कुरसियों पर हफ्ते भर के उतारे हुए मैले कपड़ों का ढेर पड़ा हुआ था. कहने को पवन और नयना दोनों ऊंचे ओहदों पर कार्यरत थे पर उन के घर को देख कर जरा भी नहीं लगता था कि यह 2 समान विचारों वाले इनसानों का घर है.

‘‘क्या हुआ, नयना,’’ संजना उस के सिर पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘पवन कहां है?’’

‘‘वह अपने दोस्तों के साथ शहर से दूर किसी फार्म हाउस पर गया हुआ है और मेरी तबीयत रात से ही खराब है. दिल बारबार बेचैन हो उठता है, सिर में तेज दर्द है,’’ इतना बताते हुए नयना की आवाज भर्रा गई.

संजना के दिल में कुछ कसक सा गया. यहां नयना इसलिए दुखी है कि पवन कल से लौटा नहीं और उस के पास नितिन के लिए समय नहीं है.

‘‘तो इस में घबराने की क्या बात है. रात तक पवन लौट आएगा,’’ संजना बोली, ‘‘चल, तुझे डाक्टर को दिखा लाती हूं. उस के  बाद मेरे घर चलना.’’

‘‘बात रात तक आने की नहीं है, संजना,’’ नयना बोली, ‘‘पवन का व्यवहार कुछ बदल रहा है. वह अकसर ही मुझे बिना बताए अपने दोस्तों के साथ चला जाता है. कौन जाने उन दोस्तों में कोई लड़की हो?’’ बोलते- बोलते नयना की रुलाई फूट पड़ी.

‘‘लेकिन तू ने कभी कहा नहीं…’’

‘‘क्या कहती…’’ नयना थोड़ी देर चुप रही, ‘‘वह मेरा पति तो नहीं है जिस पर कोई दबाव डाला जाए. वह अपने फैसले के लिए आजाद है, संजना,’’ और संजना की बांह पकड़ कर नयना बोली, ‘‘तू ने अपने जीवन में सब से सही निर्णय लिया है. तेरे पास सबकुछ है. सुकून भरा घर, बेटा और तुझे मानसम्मान देने वाला पति पर मेरे और पवन के रिश्तों का क्या है, कौन सा आधार है जो वह मुझ से बंधा रहे? आखिर इन रिश्तों का और इस जीवन का क्या भविष्य है? एक उम्र निकल जाएगी तो मैं किस के सहारे जीऊंगी?

‘‘जीवन सिर्फ जवानी की सीधी सड़क ही नहीं है, संजना. इस सीधी, सपाट सड़क के बाद एक संकरी गली भी आती है…अधेड़ावस्था की…और जब यह गली मुड़ती है न…तो एक भयानक खाई आती है…बुढ़ापे की…और जीवन का वही सब से भयानक मोड़ है, तब मैं क्या करूंगी…’’ कह कर नयना रोने लगी.

‘‘नितिन तुझ से कुछ कम योग्य सही लेकिन तेरे जीवन की निश्ंिचतता उसी की वजह से है. उसे खोने का तुझे डर नहीं, घर की तुझे चिंता नहीं…बेटे के लालनपालन में तुझे कोई परेशानी नहीं…’’ रोतेरोते नयना बोली, ‘‘मेरे पास क्या है? पवन का मन होगा तब तक वह मेरे साथ रहेगा, फिर उस के बाद…’’

संजना हतप्रभ सी नयना को देखती रह गई. उस की आंखों में, उस के चेहरे पर असुरक्षा के भाव थे, भविष्य की चिंता थी. लेकिन क्यों? नयना खुद इतने ऊंचे पद पर कार्यरत थी, इस आजाद खयाल जीवन की हिमायती नयना के मन में भी पवन के खो जाने का डर है, जीवन में अकेले रह जाने का डर है. पवन के बाद दूसरा साथी बनाएगी फिर तीसरा…फिर चौथा…और उस के बाद जैसे एक विराट प्रश्नचिह्न संजना के सामने आ कर टंग गया था. वह तो अपनी नौकरी के अलावा कभी किसी बारे में सोचती ही नहीं. बस, नितिन का अपने से कम योग्य होना ही उसे खलता रहता है और इस बात से वह दुखी होती रहती है.

‘‘पवन कहीं नहीं जाएगा, नयना, आ जाएगा रात तक. तुम्हारा भ्रम है यह…’’ वह नयना को दिलासा देती हुई बोली. और दिन भर के लिए उस के पास रुक गई. शाम को जब वह घर पहुंची तो घर पर रोली को अपना इंतजार करते पाया.

‘‘अरे, रोली इस समय तुम कैसे आ गईं.’’

‘‘तुझ से बात करने का मन हो रहा था. सो, आ गई. नितिनजी ने बताया कि तू नयना के घर गई है, आने वाली होगी. मुझे इंतजार करने को कह कर वह कुछ सामान लेने चले गए.’’

एक पल चुप रहने के बाद रोली बोली, ‘‘नितिन बता रहे थे कि नयना की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, क्या हुआ है उसे?’’

‘‘कुछ नहीं, वह अपने और पवन के रिश्तों को ले कर कुछ अपसेट सी है,’’ संजना सोफे पर बैठती हुई बोली, ‘‘नयना को पवन पर भरोसा नहीं रहा. उसे लग रहा है कि उस की जिंदगी में कोई और है तभी वह उस से दूर जा रहा है.’’

‘‘लेकिन नयना उस से पूछती क्यों नहीं?’’ रोली रोष में आ कर बोली.

‘‘किस बिना पर, रोली. आखिर लिव इन रिलेशन का यही तो मतलब है कि जब तक बनी तब तक साथ रहे वरना अलग होने में वैवाहिक रिश्तों जैसा कोई झंझट नहीं.’’

‘‘और तू सुना, कैसी है,’’ थोड़ी देर बाद संजना बोली.

‘‘बस, ऐसे ही, कल से बहुत परेशान सी थी. घर में रिश्ते की बात चल रही है. एक अच्छा रिश्ता आया है. सब बातें तो ठीक हैं पर लड़का मुंबई में कार्यरत है? मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी. इसी बात पर घर में हंगामा मचा हुआ था. पापा चाहते थे कि मुझे चाहे नौकरी छोड़नी पड़े पर मैं उस रिश्ते के लिए हां कर दूं. इसी विवाद से परेशान हो कर मैं थोड़ी देर के लिए तेरे पास आ गई.’’

‘‘तो क्या सोचा है तू ने?’’ संजना बोली.

‘‘सोचा तो था कि मना कर दूंगी,’’ रोली खिसक कर संजना के पास बैठती हुई बोली, ‘‘लेकिन नयना के बारे में जानने के बाद अब सोचती हूं कि हां कर दूं. आज की पीढ़ी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में उलझी हुई विवाह और विवाह के बाद की जिम्मेदारियों से दूर भाग रही है लेकिन जैसेजैसे उम्र आगे बढ़ती है पीछे मुड़ कर देखने का मन करता है. अगर 10 साल बाद कोई समझौता करना है तो आज क्यों नहीं?’’ पल भर के लिए दोनों सहेलियां चुप हो गईं.

‘‘तू ने सही और समय से निर्णय लिया, संजना. सभी को कुछ न कुछ समझौता तो करना ही पड़ता है. मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ रही है और नयना को भविष्य की सुरक्षा, लेकिन तेरे पास सबकुछ है. नितिन तुझ से कुछ कम योग्य सही लेकिन अयोग्य तो नहीं है. पहले लड़कियां इतनी योग्य भी नहीं होती थीं तो उन्हें अपने से अधिक योग्य लड़के मिल जाते थे लेकिन अब जमाना बदल रहा है. लड़कियां इतनी तरक्की कर रही हैं कि यदि अपने से अधिक योग्य लड़के के इंतजार में बैठी रहेंगी तो या तो नौकरी ही कर पाएंगी या शादी ही.

‘‘ऐसे लड़के का चुनाव करना जिस के साथ घरेलू जीवन चल सके, बच्चों की परवरिश हो सके, बड़ेबुजुर्गों की देखभाल हो सके, अपने से लड़का कुछ कम योग्य भी हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं है. समय के साथ यह बदलाव आना ही चाहिए. आखिर पहले पत्नी घर देखती थी आज ऊंचे ओहदों पर कार्य कर रही है तो पति के पास घर की देखभाल करने का समय हो तो इस में कुछ गलत है क्या?’’ यह कह कर रोली उठ खड़ी हुई.

संजना जब रोली को बाहर तक छोड़ कर अंदर आई तो ध्यान आया कि नितिन को बाजार गए हुए काफी देर हो गई और अभी तक वह आए नहीं. आज नितिन के लिए संजना के मन में अंदर से चिंता हो रही थी. तभी कौलबेल बज उठी, सामान से लदाफदा नितिन दरवाजे पर खड़ा था.

‘‘अरे, आप इतना सारा सामान ले आए,’’ संजना सामान के कुछ पैकेट उस के हाथ से पकड़ते हुए बोली, ‘‘बहुत देर हो गई, मैं इंतजार कर रही थी.’’

संजना के स्वर की कोमलता से नितिन चौंक गया. बिना कुछ बोले वह अपने हाथ का सामान किचन में रख कर बेडरूम में चला गया. संजना भी उस के पीछेपीछे आ गई.

‘‘नितिन,’’ पीछे से उस के गले में बांहें डालती हुई संजना बोली, ‘‘चलो, आज का डिनर बाहर करेंगे, फिर कोई फिल्म देखेंगे. आया को रोक लेते हैं. वह मुन्ने को देख लेगी.’’

उस के इस प्रस्ताव व हरकत से नितिन हैरत से पलट कर उस की ओर देखने लगा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो?’’ संजना इठलाती हुई बोली, ‘‘हर समय गुस्से में रहते हो, यह नहीं की कभी बीवी को कहीं घुमा लाओ, फिल्म दिखा लाओ.’’

आम घरेलू औरतों की तरह संजना बोली तो उस की इस हरकत पर नितिन खिलखिला कर हंस पड़ा.

संजना उस के गले में बांहें डाल कर उस से लिपट गई, ‘‘मुझे माफ कर दो, नितिन.’’

‘‘संजना, इस में माफी की क्या बात है? मेरे लिए तुम, तुम्हारी योग्यता, तुम्हारी काम में व्यस्तता, तुम्हारा रुतबा सभी कुछ गर्व का विषय है लेकिन जब तुम मुझे ही अपनी जिंदगी से दरकिनार कर देती हो तो दुख होता है.’’

‘‘अब ऐसा नहीं होगा. मेरे लिए आप से अधिक महत्त्वपूर्ण जीवन में दूसरा कुछ भी नहीं है. आप में और मुझ में कोई फर्क नहीं, हमारा कुछ भी, चाहे वह नौकरी हो या समाज, जिंदगी भर नहीं रहेगा…लेकिन हम दोनों मरते दम तक साथ रहेंगे.’’

मानअभिमान की सारी दीवारें तोड़ कर संजना नितिन से लिपट गई. नितिन ने भी एक पति के आत्मविश्वास से संजना को अपनी बांहों में समेट लिया.

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December 01, 2018 at 09:54AM

तपस्या : क्या मंजरी समीर के हृदय में स्थान पा सकी

सागर विश्वविद्यालय का एम.ए. फाइनल का आखिरी परचा दे कर मंजरी हाल से बाहर आई. वह यह परीक्षा प्राइवेट छात्रा के रूप में दे रही थी. 6 महीने पहले एक दुर्घटना में उस के मातापिता का देहांत हो गया था और उस के बाद वह अपने चाचा के यहां रहने लगी थी. हाल से बाहर आते ही उसे अपनी पुरानी सहेली सीमा दिखाई दी. दोनों बड़े प्यार से मिलीं.

‘‘मंजरी, आज कितना हलका लग रहा है. है न? तेरे परचे कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, तेरे कैसे हुए?’’

‘‘पास तो खैर हो जाऊंगी. तेरे जैसी होशियार तो हूं नहीं कि प्रथम श्रेणी की उम्मीद करूं. चल, मंजरी, छात्रावास में चल कर जी भर कर बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं, सीमा, मुझे जल्दी जाना है. यहीं पेड़ की छांव में बैठ कर बातें करते हैं.’’

दोनों छांव में बैठ गईं.

‘‘मंजरी, तुम्हारे मातापिता की मृत्यु इतनी अकस्मात हो गई कि आज भी सच नहीं लगता. चाचाजी के यहां तू खुश तो है न?’’

मंजरी की आंखों में आंसू छलक आए. वह आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘चाचाजी के यहां सब लोग बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. वहां पैसे की कोई कमी नहीं है. सब ठाटबाट से आधुनिक ढंग से रहते हैं. लेकिन सीमा, मुझे वहां रहना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘देखो, सीमा, मेरे पिताजी साधारण लिपिक थे और चाचाजी प्रखर बुद्धि के होने के कारण आई.ए.एस. हो गए. दोनों भाइयों की स्थिति में इतना अंतर था कि मेरे पिताजी हमेशा हीनभावना से पीडि़त रहते थे. फिर भी वह स्वाभिमानी थे. इसीलिए उन्होंने हमें चाचाजी के घर से यथासंभव दूर रखा था.

‘‘उन्हें बहुत दुख था कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया. अपनी यह कमी वह मेरे द्वारा पूरी करना चाहते थे. आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी उन्होंने शुरू से ही मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. हर साल मुझे प्रथम श्रेणी में पास होते देख वह फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘जाने दे ये दुखद बातें. चाचाजी के घर के बारे में बता.’’

‘‘चाचाजी के 2 बच्चे हैं. बड़ी लड़की रश्मि मेरी उम्र की है और वह भी एम.ए. फाइनल की परीक्षा दे रही है. छोटा कपिल कालिज में पढ़ता है. सीमा, तुझे यह सुन कर आश्चर्य होगा कि रश्मि और मैं चचेरी बहनें हैं, फिर भी हमारी शक्लसूरत एकदम मिलतीजुलती है.’’

‘‘तो इस का मतलब यह कि रश्मि बहन भी तुझ जैसी सुंदर है. है न?’’

‘‘रंग तो उस का इतना साफ नहीं, पर अच्छे कपड़ेलत्तों और आधुनिक साजशृंगार से वह काफी आकर्षक लगती है. तभी तो उस की शादी समीर जैसे लड़के से तय हुई है. आज 5 तारीख है न, 20 तारीख को दिल्ली में उन की शादी है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह समीर है कौन और करता क्या है?’’

‘‘समीर चाचाजी के पुराने मित्र रामसिंहजी का बेटा है. रामसिंहजी मथुरा में ऊंचे पद पर हैं. उन की 2 लड़कियां हैं और एक बेटा. लड़कियों की शादी हो चुकी है. समीर भी आई.ए.एस. है और आजकल सरगुजा में अतिरिक्त कलक्टर के पद पर कार्य कर रहा है. देखने में सुंदर, हंसमुख और स्वस्थ है.’’

‘‘तो क्या यह प्रेम विवाह है?’’

‘‘प्रेम विवाह तो नहीं कह सकते, लेकिन दोनों एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘मंजरी, अपने चाचाजी से कहना कि तेरे लिए भी ऐसा ही लड़का ढूंढ़ दें.’’

‘‘हट, कैसी बातें करती है? कहां रश्मि और कहां मैं. पगली, समीर सरीखा पति पाने के लिए मांबाप का रईस होना आवश्यक है और मेरे तो मांबाप ही नहीं हैं. मैं तो शादी की बात सोच भी नहीं सकती. पास होते ही मैं नौकरी तलाश करूंगी. चाचाजी पर मैं और ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहती.’’

रहस्यमय ढंग से हंसते हुए सीमा बोली, ‘‘अरे, तू शादी नहीं करना चाहती, तो अपने चाचाजी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए कह दे.’’

दोनों हंसने लगीं.

‘‘अरे सीमा, एक बात तो तुझे बताना भूल ही गई. रसोई में चाचीजी की मदद करतेकरते मैं भी रईसी खाना, नएनए व्यंजन बनाना सीख गई हूं. अगर किसी आई.ए.एस. अधिकारी से ब्याह करने की तेरी इच्छा पूरी हो जाए तो अपने पति के साथ मेरे घर अवश्य आना, खूब बढि़या खाना खिलाऊंगी.’’

एकदूसरे से हंसीमजाक करते उन्हें आधा घंटा बीत गया. जब वे तपती धूप से परेशान होने लगीं तो जाने के लिए उठ खड़ी हुईं. मंजरी ने एक कागज पर चाचाजी का पता और अपना रोल नंबर लिख कर सीमा को दे दिया.

‘‘सीमा, परिणाम निकलते ही मुझे खबर करना.’’

‘‘जरूर…जरूर. अब कब मुलाकात होगी?’’ कह कर सीमा मंजरी के गले लगी. फिर दोनों भारी मन से एकदूसरे से विदा हुईं.

रश्मि और मंजरी के परचे अच्छे होने पर चाचाचाची खूब खुश थे.

‘‘चाचीजी, अब मैं घर का काम संभालूंगी, आप निश्चिंत हो कर बाहर का काम करिए,’’ मंजरी ने कहा.

शादी का दिन आया, लेकिन घर में कोई होहल्ला नहीं था. दोनों तरफ के मेहमानों के लिए एक अच्छे होटल में कमरे ले लिए गए थे. शादी और खानेपीने का प्रबंध भी होटल में ही था. मेहमान भी सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे.

रश्मि के मातापिता मेहमानों की अगवानी के लिए सवेरे से ही होटल में थे. बराती सुबह 10 बजे पहुंच गए थे. सब का उचित स्वागतसम्मान किया गया. दोपहर 1 बजे खाना हुआ. खाने के बाद रश्मि के मातापिता थोड़ी देर के लिए आराम करने अपने कमरे में आ गए. 4 बजे फिर तैयार हो कर रिश्तेदारों और बरातियों के पास चले गए. जातेजाते रश्मि से बोल गए कि वह जल्दी मेकअप कर के वक्त पर तैयार हो जाए.

मांबाप के जाते ही रश्मि ने मंजरी को अपने पास बुलाया और बोली, ‘‘मंजरी, मैं मेकअप के लिए जा रही हूं. लेकिन यदि मुझे देर हो गई तो पिताजी को अलग से बुला कर ठीक 6 बजे यह लिफाफा दे देना, भूलना नहीं.’’

‘‘नहीं भूलूंगी. लेकिन तुम 6 बजे तक आने की कोशिश करना.’’

रश्मि हाथ में छोटा सा सूटकेस ले कर चली गई, होटल के ग्राउंड फ्लोर पर ब्यूटी पार्लर में जाने की बात कह कर.

जब शाम को 6 बज गए और रश्मि नहीं आई तो मंजरी ने चाचाजी को कमरे में बुला कर वह लिफाफा उन के हाथ में दे दिया.

‘‘चाचाजी, यह रश्मि ने दिया है.’’

‘‘अब बिटिया की कौन सी मांग है?’’ कहतेकहते उन्होंने लिफाफा खोला और अंदर का कागज निकाल कर जैसेजैसे पढ़ने लगे, उन का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

‘‘मूर्ख, नादान लड़की,’’ कहतकहते वह दोनों हाथों में सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘चाचाजी, क्या हुआ?’’

‘‘अब मैं क्या करूं, मंजरी?’’ कह कर उन्होंने वह कागज मंजरी को दे दिया और आंखों में आए आंसू पोंछ कर उन्होंने मंजरी से कहा, ‘‘जा बेटी, अपनी चाची को जल्दी से बुला ला. मैं रामसिंहजी को फोन कर के बुलाता हूं.’’

चिट्ठी पढ़ कर मंजरी सकपका गई और झट से चाची को बुला लाई. रश्मि के पिता ने वह चिट्ठी अपनी पत्नी के हाथ में पकड़ा दी. पढ़ते ही रश्मि की मां रो पड़ीं. चिट्ठी में लिखा था :

‘‘पिताजी, मैं जानती हूं, मेरी यह चिट्ठी पढ़ कर आप और मां बहुत दुखी होंगे. लेकिन मैं माफी चाहती हूं.

‘‘मैं मानती हूं कि समीर लाखों में एक है. मुझे भी वह अच्छा लगता है, लेकिन मैं रोहित से प्यार करती हूं और जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक आर्यसमाज मंदिर में मेरी उस से शादी हो चुकी होगी. आप को पहले बताती तो आप राजी न होते.

‘‘मैं यह भी जानती हूं कि शादी के दिन मेरे इस तरह एकाएक गायब हो जाने से आप की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाएगी. लेकिन मैं दिल से मजबूर हूं. हां, मेरा एक सुझाव है, मंजरी का कद मेरे जैसा ही है और रंगरूप में तो वह मुझ से भी बेहतर है. आप समीर से उस की शादी कर दीजिए. किसी को पता तक नहीं लगेगा. मैं फिर आप से क्षमा चाहती हूं. रश्मि.’’

इतने में रामसिंहजी भी अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए. उन्हें देख कर रश्मि के पिता ने बड़े दुखी स्वर में कहा, ‘‘मेरे दोस्त, क्या बताऊं, इस रश्मि ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा,’’ और यह कह कर उन्होंने वह चिट्ठी उन्हें पकड़ा दी.

पत्र पढ़ कर समीर के माता और पिता दोनों ही हतप्रभ रह गए. फिर समीर के पिता ने मंजरी की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, तुम जरा बाहर जा कर देखो, कोई अंदर न आने पाए.’’

मंजरी बाहर चली गई. फिर कुछ देर उन लोगों में बातचीत हुई. इस के बाद रश्मि के पिता ने मंजरी को अंदर बुला कर कहा, ‘‘बेटी, हम सब की इज्जत अब तेरे हाथ में है. तू इस शादी के लिए हां कर दे तो हम लोग अभी भी बात संभाल लेंगे.’’

‘‘आप जो भी आज्ञा देंगे मैं करने को तैयार हूं,’’ मंजरी ने धीरे से कहा.

‘‘शाबाश, बेटी, तुझ से यही उम्मीद थी.’’

मंजरी ने सब के पैर छुए. सब ने राहत की सांस ले कर उसे आशीर्वाद दिया और आगे की तैयारी में लग गए.

शादी धूमधाम से हुई. किसी को कुछ पता नहीं चला. खुद समीर को भी इस हेरफेर का आभास न हुआ.

मथुरा में शानदार स्वागत आयोजन हुआ. जब सब रिश्तेदार वापस चले गए तो रामसिंहजी ने अपने पुत्र को बुला कर सब बात बता दी. सुन कर समीर ने अपने को बेहद अपमानित महसूस किया. उस के मन को गहरी ठेस लगी थी और उसे सब से अधिक अफसोस इस बात का था कि उस से संबंधित इतनी बड़ी बात हो गई और मांबाप ने कोई कदम उठाने से पहले उस से सलाह तक नहीं ली. मांबाप पर जैसे दुख का पहाड़ गिर पड़ा.

बेचारी मंजरी कमरे में ही दुबकी रहती. उसे समझ में नहीं आता था कि अब वह क्या करे. रश्मि की नादानी ने सब का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया था. वह सोचती, रश्मि को समीर सरीखे भले लड़के के जीवन में इस तरह कड़वाहट भरने का क्या अधिकार था. मंजरी का मन सब के लिए करुणा से भर गया.

एक दिन मंजरी के सासससुर ने उसे बुला कर कहा, ‘‘मंजरी, हमारे इकलौते बेटे का जीवन सुखी करना अब तुम्हारे हाथ में है. समीर बहुत अच्छा लड़का है लेकिन उस के मन पर जो गहरा घाव हुआ है उसे भरने में समय लगेगा. तुम उस के मन का दुख समझने का प्रयास करो. हमें विश्वास है कि तुम्हारी सूझबूझ से उस का घाव जल्दी ही भर जाएगा. लेकिन तब तक तुम्हें सब्र से काम लेना होगा. किसी प्रकार की जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए. मुझे उम्मीद है कि आप के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैं सब ठीक कर लूंगी,’’ मंजरी बोली.

समीर को फिर से ड्यूटी पर जाना था. समीर के मातापिता ने सोचा, कहीं समीर सरगुजा जाते समय मंजरी को साथ ले जाने से मना न कर दे. इसलिए समीर के पिता ने लंबी छुट्टी ले ली और वह भी सरगुजा जाने के लिए सपत्नीक नवदंपती के साथ हो लिए.

जिन दिनों समीर के मातापिता सरगुजा में थे, उन दिनों मंजरी सब से पहले उठ कर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करती. खाना समीर की मां बनाती थीं. वह इस काम में भी अपनी सास का हाथ बंटाती. सासससुर के आग्रह से उसे सब के साथ ही नाश्ता और भोजन करना पड़ता.

एक दिन उस की सास अपने पति से बोलीं, ‘‘कुछ भी हो, लड़की सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी है. मेरी तो यही प्रार्थना है कि जल्दी ही उसे पत्नी के योग्य सम्मान मिलने लगे.’’

‘‘मुझे तो लगता है, तुम्हारी इच्छा जल्दी ही पूरी होगी. बदलती हवा का रुख मैं महसूस कर रहा हूं,’’ मंजरी के ससुर बोले. और यही आशा ले कर उस के सासससुर वापस मथुरा चले गए.

एक रात खाने पर समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘मैं जानता हूं, तुम्हें अकारण ही इस झंझट में फंसाया गया. मुझे इस बात का बहुत अफसोस है.’’

‘‘मैं जानती हूं, आप कैसी कठिन मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं. आप मेरी चिंता न करें. लेकिन कृपया मुझे अपना हितैषी समझें.’’

शादी के बाद दोनों में यह पहली बातचीत थी. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

दूसरे दिन नाश्ते के समय मंजरी को लगा कि समीर उस से नजर चुरा कर उस की तरफ देख रहा है. वह मन ही मन खुश हुई. उसी शाम को कमलनाथ और आनंद सपत्नीक मिलने आए.

‘‘मंजरीजी, दिन में आप अकेली रहती हैं, कभीकभी हमारे यहां आ जाया कीजिए न,’’ कमलनाथजी की पत्नी निशाजी बोलीं.

‘‘जरूर आऊंगी, लेकिन कुछ दिन बाद. अभी तो मैं दिन भर उलझी रहती हूं.’’

‘‘किस में?’’ निशाजी ने पूछा. समीर ने भी आश्चर्य से उस की तरफ देखा.

‘‘यों ही, यह नमक, तेल, मिर्च का मामला अभी जम नहीं पाया. कभी तेल ज्यादा, कभी नमक ज्यादा तो कभी मिर्च ज्यादा,’’ मंजरी ने कहा.

सब लोग सुन कर हंस पड़े.

‘‘शुरूशुरू में खाना बनाते समय ऐसा ही होता है,’’ फिर आनंदजी की पत्नी रामेश्वरी ने आपबीती सुनाई.

मंजरी ने मेज पर नमकीन, मिठाई और चाय रखी. कमलनाथ कह रहे थे, ‘‘तो  समीर कल का पक्का है न? भाभीजी, कल सवेरे 7 बजे पिकनिक पर चलना है आप दोनों को. 30-40 मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर जगह है. वहां रेस्ट हाउस भी है. सब इंतजाम हो गया है. मैं आप दोनों को लेने 7 बजे आऊंगा.’’

समीर और मंजरी ने एकदूसरे की तरफ देखा. फिर उसी क्षण समीर बोला, ‘‘ठीक है, हम लोग चलेंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब सब चले गए तो समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो, फिर भी सब  के सामने झूठ क्यों बोलीं?’’

‘‘आप को मेरा बनाया खाना अच्छा लगता है?’’

‘‘बहुत,’’ समीर ने कहा.

दोनों की नजरें एक क्षण के लिए एक हो गईं. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजली चली गई. समीर को खयाल आया कि मंजरी अकेली है, कहीं डर न जाए.

वह टार्च ले कर मंजरी के कमरे के सामने गया और उसे पुकारने लगा. मंजरी ने दरवाजा खोला और समीर को देख राहत की सांस ले बोली, ‘‘देखिए न, ये खिड़कियां बंद नहीं हो रही हैं. बरसात का पानी अंदर आ रहा है.’’

समीर ने टार्च उस के हाथ में दे दी और खिड़कियां बंद करने लगा. खिड़कियों के दरवाजे बाहर खुलते थे. तेज हवा के कारण वह बड़ी कठिनाई से उन्हें बंद कर सका.

‘‘तुम्हारा बिस्तर तो गीला है. सोओगी कैसे?’’

‘‘मैं गद्दा उलटा कर के सो जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?’’

मंजरी कुछ नहीं बोली. समीर ने अत्यंत मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मंजरी.’’ और उस ने उस की तरफ बढ़ने को कदम उठाए. फिर अचानक वह मुड़ा और अपने कमरे में चला गया.

दूसरे दिन सवेरे 7 बजे दोनों नहाधो कर पिकनिक के लिए तैयार थे. इतने में कमलनाथ भी जीप ले कर आ पहुंचे. समीर उन के पास बैठा और मंजरी किनारे पर. मौसम बड़ा सुहावना था. समीर और कमलनाथ में बातें चल रही थीं. मंजरी प्रकृति का सौंदर्य देखने में मगन थी.

अब रास्ता खराब आ गया था और जीप में बैठेबैठे धक्के लगने लगे थे.

‘‘तुम इतने किनारे पर क्यों बैठी हो? इधर सरक जाओ,’’ समीर ने कहा.

लज्जा से मंजरी का चेहरा आरक्त हो उठा. उसे सरकने में संकोच करते देख समीर ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से उसे अपने पास खींच लिया. मंजरी ने भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

शाम 7 बजे घर लौटे तो दोनों खुश थे. पिकनिक में खूब मजा आया था. दोनों ने आ कर स्नान किया और गरमगरम चाय पीने हाल में बैठ गए. समीर बातचीत करने के लिए उत्सुक लग रहा था. ‘‘रात के खाने के लिए क्या बनाऊं?’’ मंजरी ने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘बैठो भी, जल्दी क्या है? आमलेटब्रेड खा लेंगे.’’ फिर उस ने अचानक गंभीर हो कर कहा, ‘‘मंजरी, मुझे तुम से कुछ पूछना है.’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘मंजरी, इस शादी से तुम सचमुच खुश हो न?’’

‘‘मैं तो बहुत खुश हूं. खुश क्यों न होऊं, जब मेरे हाथ आप जैसा रत्न लगा है.’’

खुशी से समीर का चेहरा खिल उठा, ‘‘और मेरे हाथ भी तो तुम जैसी लक्ष्मी लगी है.’’

दोनों ही आनंदविभोर हो कर एकदूसरे को देखने लगे. शंका के

सब बादल छंट चुके थे. तनाव खत्म हो गया था.

इतने में कालबेल बजी. समीर उठ कर बाहर गया.

मंजरी सोच रही थी कि अगले दिन सवेरे वह सासससुर को फोन कर के यह खुशखबरी देगी.

‘‘मंजरी…मंजरी,’’ कहते हुए खुशी से उछलता समीर अंदर आया.

‘‘इधर आओ, मंजरी, देखो, तुम्हारा एम.ए. का नतीजा आया है.’’

दौड़ कर मंजरी उस के पास गई. लेकिन समीर ने आसानी से उसे तार नहीं दिया. मंजरी को छीनाझपटी करनी पड़ी. तार खोल कर पढ़ा :

‘‘हार्दिक बधाई. योग्यता सूची में द्वितीय. चाचा.’’

खुशी से मंजरी का चेहरा चमक उठा. तिरछी नजर से उस ने पास खड़े समीर की तरफ देखा.

समीर ने आवेश में उसे अपनी ओर खींच लिया और मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई. तुम जैसी होशियार, गुणी और सुंदर पत्नी पा कर मैं भी आज योग्यता सूची में आ गया हूं, मंजरी.’’

इस सुखद वाक्य को सुनते ही मंजरी ने अपना माथा समर्पित भाव से समीर के कंधे पर रख दिया. उस की तपस्या पूरी हो गई थी.

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सागर विश्वविद्यालय का एम.ए. फाइनल का आखिरी परचा दे कर मंजरी हाल से बाहर आई. वह यह परीक्षा प्राइवेट छात्रा के रूप में दे रही थी. 6 महीने पहले एक दुर्घटना में उस के मातापिता का देहांत हो गया था और उस के बाद वह अपने चाचा के यहां रहने लगी थी. हाल से बाहर आते ही उसे अपनी पुरानी सहेली सीमा दिखाई दी. दोनों बड़े प्यार से मिलीं.

‘‘मंजरी, आज कितना हलका लग रहा है. है न? तेरे परचे कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, तेरे कैसे हुए?’’

‘‘पास तो खैर हो जाऊंगी. तेरे जैसी होशियार तो हूं नहीं कि प्रथम श्रेणी की उम्मीद करूं. चल, मंजरी, छात्रावास में चल कर जी भर कर बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं, सीमा, मुझे जल्दी जाना है. यहीं पेड़ की छांव में बैठ कर बातें करते हैं.’’

दोनों छांव में बैठ गईं.

‘‘मंजरी, तुम्हारे मातापिता की मृत्यु इतनी अकस्मात हो गई कि आज भी सच नहीं लगता. चाचाजी के यहां तू खुश तो है न?’’

मंजरी की आंखों में आंसू छलक आए. वह आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘चाचाजी के यहां सब लोग बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. वहां पैसे की कोई कमी नहीं है. सब ठाटबाट से आधुनिक ढंग से रहते हैं. लेकिन सीमा, मुझे वहां रहना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘देखो, सीमा, मेरे पिताजी साधारण लिपिक थे और चाचाजी प्रखर बुद्धि के होने के कारण आई.ए.एस. हो गए. दोनों भाइयों की स्थिति में इतना अंतर था कि मेरे पिताजी हमेशा हीनभावना से पीडि़त रहते थे. फिर भी वह स्वाभिमानी थे. इसीलिए उन्होंने हमें चाचाजी के घर से यथासंभव दूर रखा था.

‘‘उन्हें बहुत दुख था कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया. अपनी यह कमी वह मेरे द्वारा पूरी करना चाहते थे. आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी उन्होंने शुरू से ही मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. हर साल मुझे प्रथम श्रेणी में पास होते देख वह फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘जाने दे ये दुखद बातें. चाचाजी के घर के बारे में बता.’’

‘‘चाचाजी के 2 बच्चे हैं. बड़ी लड़की रश्मि मेरी उम्र की है और वह भी एम.ए. फाइनल की परीक्षा दे रही है. छोटा कपिल कालिज में पढ़ता है. सीमा, तुझे यह सुन कर आश्चर्य होगा कि रश्मि और मैं चचेरी बहनें हैं, फिर भी हमारी शक्लसूरत एकदम मिलतीजुलती है.’’

‘‘तो इस का मतलब यह कि रश्मि बहन भी तुझ जैसी सुंदर है. है न?’’

‘‘रंग तो उस का इतना साफ नहीं, पर अच्छे कपड़ेलत्तों और आधुनिक साजशृंगार से वह काफी आकर्षक लगती है. तभी तो उस की शादी समीर जैसे लड़के से तय हुई है. आज 5 तारीख है न, 20 तारीख को दिल्ली में उन की शादी है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह समीर है कौन और करता क्या है?’’

‘‘समीर चाचाजी के पुराने मित्र रामसिंहजी का बेटा है. रामसिंहजी मथुरा में ऊंचे पद पर हैं. उन की 2 लड़कियां हैं और एक बेटा. लड़कियों की शादी हो चुकी है. समीर भी आई.ए.एस. है और आजकल सरगुजा में अतिरिक्त कलक्टर के पद पर कार्य कर रहा है. देखने में सुंदर, हंसमुख और स्वस्थ है.’’

‘‘तो क्या यह प्रेम विवाह है?’’

‘‘प्रेम विवाह तो नहीं कह सकते, लेकिन दोनों एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘मंजरी, अपने चाचाजी से कहना कि तेरे लिए भी ऐसा ही लड़का ढूंढ़ दें.’’

‘‘हट, कैसी बातें करती है? कहां रश्मि और कहां मैं. पगली, समीर सरीखा पति पाने के लिए मांबाप का रईस होना आवश्यक है और मेरे तो मांबाप ही नहीं हैं. मैं तो शादी की बात सोच भी नहीं सकती. पास होते ही मैं नौकरी तलाश करूंगी. चाचाजी पर मैं और ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहती.’’

रहस्यमय ढंग से हंसते हुए सीमा बोली, ‘‘अरे, तू शादी नहीं करना चाहती, तो अपने चाचाजी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए कह दे.’’

दोनों हंसने लगीं.

‘‘अरे सीमा, एक बात तो तुझे बताना भूल ही गई. रसोई में चाचीजी की मदद करतेकरते मैं भी रईसी खाना, नएनए व्यंजन बनाना सीख गई हूं. अगर किसी आई.ए.एस. अधिकारी से ब्याह करने की तेरी इच्छा पूरी हो जाए तो अपने पति के साथ मेरे घर अवश्य आना, खूब बढि़या खाना खिलाऊंगी.’’

एकदूसरे से हंसीमजाक करते उन्हें आधा घंटा बीत गया. जब वे तपती धूप से परेशान होने लगीं तो जाने के लिए उठ खड़ी हुईं. मंजरी ने एक कागज पर चाचाजी का पता और अपना रोल नंबर लिख कर सीमा को दे दिया.

‘‘सीमा, परिणाम निकलते ही मुझे खबर करना.’’

‘‘जरूर…जरूर. अब कब मुलाकात होगी?’’ कह कर सीमा मंजरी के गले लगी. फिर दोनों भारी मन से एकदूसरे से विदा हुईं.

रश्मि और मंजरी के परचे अच्छे होने पर चाचाचाची खूब खुश थे.

‘‘चाचीजी, अब मैं घर का काम संभालूंगी, आप निश्चिंत हो कर बाहर का काम करिए,’’ मंजरी ने कहा.

शादी का दिन आया, लेकिन घर में कोई होहल्ला नहीं था. दोनों तरफ के मेहमानों के लिए एक अच्छे होटल में कमरे ले लिए गए थे. शादी और खानेपीने का प्रबंध भी होटल में ही था. मेहमान भी सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे.

रश्मि के मातापिता मेहमानों की अगवानी के लिए सवेरे से ही होटल में थे. बराती सुबह 10 बजे पहुंच गए थे. सब का उचित स्वागतसम्मान किया गया. दोपहर 1 बजे खाना हुआ. खाने के बाद रश्मि के मातापिता थोड़ी देर के लिए आराम करने अपने कमरे में आ गए. 4 बजे फिर तैयार हो कर रिश्तेदारों और बरातियों के पास चले गए. जातेजाते रश्मि से बोल गए कि वह जल्दी मेकअप कर के वक्त पर तैयार हो जाए.

मांबाप के जाते ही रश्मि ने मंजरी को अपने पास बुलाया और बोली, ‘‘मंजरी, मैं मेकअप के लिए जा रही हूं. लेकिन यदि मुझे देर हो गई तो पिताजी को अलग से बुला कर ठीक 6 बजे यह लिफाफा दे देना, भूलना नहीं.’’

‘‘नहीं भूलूंगी. लेकिन तुम 6 बजे तक आने की कोशिश करना.’’

रश्मि हाथ में छोटा सा सूटकेस ले कर चली गई, होटल के ग्राउंड फ्लोर पर ब्यूटी पार्लर में जाने की बात कह कर.

जब शाम को 6 बज गए और रश्मि नहीं आई तो मंजरी ने चाचाजी को कमरे में बुला कर वह लिफाफा उन के हाथ में दे दिया.

‘‘चाचाजी, यह रश्मि ने दिया है.’’

‘‘अब बिटिया की कौन सी मांग है?’’ कहतेकहते उन्होंने लिफाफा खोला और अंदर का कागज निकाल कर जैसेजैसे पढ़ने लगे, उन का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

‘‘मूर्ख, नादान लड़की,’’ कहतकहते वह दोनों हाथों में सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘चाचाजी, क्या हुआ?’’

‘‘अब मैं क्या करूं, मंजरी?’’ कह कर उन्होंने वह कागज मंजरी को दे दिया और आंखों में आए आंसू पोंछ कर उन्होंने मंजरी से कहा, ‘‘जा बेटी, अपनी चाची को जल्दी से बुला ला. मैं रामसिंहजी को फोन कर के बुलाता हूं.’’

चिट्ठी पढ़ कर मंजरी सकपका गई और झट से चाची को बुला लाई. रश्मि के पिता ने वह चिट्ठी अपनी पत्नी के हाथ में पकड़ा दी. पढ़ते ही रश्मि की मां रो पड़ीं. चिट्ठी में लिखा था :

‘‘पिताजी, मैं जानती हूं, मेरी यह चिट्ठी पढ़ कर आप और मां बहुत दुखी होंगे. लेकिन मैं माफी चाहती हूं.

‘‘मैं मानती हूं कि समीर लाखों में एक है. मुझे भी वह अच्छा लगता है, लेकिन मैं रोहित से प्यार करती हूं और जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक आर्यसमाज मंदिर में मेरी उस से शादी हो चुकी होगी. आप को पहले बताती तो आप राजी न होते.

‘‘मैं यह भी जानती हूं कि शादी के दिन मेरे इस तरह एकाएक गायब हो जाने से आप की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाएगी. लेकिन मैं दिल से मजबूर हूं. हां, मेरा एक सुझाव है, मंजरी का कद मेरे जैसा ही है और रंगरूप में तो वह मुझ से भी बेहतर है. आप समीर से उस की शादी कर दीजिए. किसी को पता तक नहीं लगेगा. मैं फिर आप से क्षमा चाहती हूं. रश्मि.’’

इतने में रामसिंहजी भी अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए. उन्हें देख कर रश्मि के पिता ने बड़े दुखी स्वर में कहा, ‘‘मेरे दोस्त, क्या बताऊं, इस रश्मि ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा,’’ और यह कह कर उन्होंने वह चिट्ठी उन्हें पकड़ा दी.

पत्र पढ़ कर समीर के माता और पिता दोनों ही हतप्रभ रह गए. फिर समीर के पिता ने मंजरी की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, तुम जरा बाहर जा कर देखो, कोई अंदर न आने पाए.’’

मंजरी बाहर चली गई. फिर कुछ देर उन लोगों में बातचीत हुई. इस के बाद रश्मि के पिता ने मंजरी को अंदर बुला कर कहा, ‘‘बेटी, हम सब की इज्जत अब तेरे हाथ में है. तू इस शादी के लिए हां कर दे तो हम लोग अभी भी बात संभाल लेंगे.’’

‘‘आप जो भी आज्ञा देंगे मैं करने को तैयार हूं,’’ मंजरी ने धीरे से कहा.

‘‘शाबाश, बेटी, तुझ से यही उम्मीद थी.’’

मंजरी ने सब के पैर छुए. सब ने राहत की सांस ले कर उसे आशीर्वाद दिया और आगे की तैयारी में लग गए.

शादी धूमधाम से हुई. किसी को कुछ पता नहीं चला. खुद समीर को भी इस हेरफेर का आभास न हुआ.

मथुरा में शानदार स्वागत आयोजन हुआ. जब सब रिश्तेदार वापस चले गए तो रामसिंहजी ने अपने पुत्र को बुला कर सब बात बता दी. सुन कर समीर ने अपने को बेहद अपमानित महसूस किया. उस के मन को गहरी ठेस लगी थी और उसे सब से अधिक अफसोस इस बात का था कि उस से संबंधित इतनी बड़ी बात हो गई और मांबाप ने कोई कदम उठाने से पहले उस से सलाह तक नहीं ली. मांबाप पर जैसे दुख का पहाड़ गिर पड़ा.

बेचारी मंजरी कमरे में ही दुबकी रहती. उसे समझ में नहीं आता था कि अब वह क्या करे. रश्मि की नादानी ने सब का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया था. वह सोचती, रश्मि को समीर सरीखे भले लड़के के जीवन में इस तरह कड़वाहट भरने का क्या अधिकार था. मंजरी का मन सब के लिए करुणा से भर गया.

एक दिन मंजरी के सासससुर ने उसे बुला कर कहा, ‘‘मंजरी, हमारे इकलौते बेटे का जीवन सुखी करना अब तुम्हारे हाथ में है. समीर बहुत अच्छा लड़का है लेकिन उस के मन पर जो गहरा घाव हुआ है उसे भरने में समय लगेगा. तुम उस के मन का दुख समझने का प्रयास करो. हमें विश्वास है कि तुम्हारी सूझबूझ से उस का घाव जल्दी ही भर जाएगा. लेकिन तब तक तुम्हें सब्र से काम लेना होगा. किसी प्रकार की जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए. मुझे उम्मीद है कि आप के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैं सब ठीक कर लूंगी,’’ मंजरी बोली.

समीर को फिर से ड्यूटी पर जाना था. समीर के मातापिता ने सोचा, कहीं समीर सरगुजा जाते समय मंजरी को साथ ले जाने से मना न कर दे. इसलिए समीर के पिता ने लंबी छुट्टी ले ली और वह भी सरगुजा जाने के लिए सपत्नीक नवदंपती के साथ हो लिए.

जिन दिनों समीर के मातापिता सरगुजा में थे, उन दिनों मंजरी सब से पहले उठ कर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करती. खाना समीर की मां बनाती थीं. वह इस काम में भी अपनी सास का हाथ बंटाती. सासससुर के आग्रह से उसे सब के साथ ही नाश्ता और भोजन करना पड़ता.

एक दिन उस की सास अपने पति से बोलीं, ‘‘कुछ भी हो, लड़की सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी है. मेरी तो यही प्रार्थना है कि जल्दी ही उसे पत्नी के योग्य सम्मान मिलने लगे.’’

‘‘मुझे तो लगता है, तुम्हारी इच्छा जल्दी ही पूरी होगी. बदलती हवा का रुख मैं महसूस कर रहा हूं,’’ मंजरी के ससुर बोले. और यही आशा ले कर उस के सासससुर वापस मथुरा चले गए.

एक रात खाने पर समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘मैं जानता हूं, तुम्हें अकारण ही इस झंझट में फंसाया गया. मुझे इस बात का बहुत अफसोस है.’’

‘‘मैं जानती हूं, आप कैसी कठिन मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं. आप मेरी चिंता न करें. लेकिन कृपया मुझे अपना हितैषी समझें.’’

शादी के बाद दोनों में यह पहली बातचीत थी. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

दूसरे दिन नाश्ते के समय मंजरी को लगा कि समीर उस से नजर चुरा कर उस की तरफ देख रहा है. वह मन ही मन खुश हुई. उसी शाम को कमलनाथ और आनंद सपत्नीक मिलने आए.

‘‘मंजरीजी, दिन में आप अकेली रहती हैं, कभीकभी हमारे यहां आ जाया कीजिए न,’’ कमलनाथजी की पत्नी निशाजी बोलीं.

‘‘जरूर आऊंगी, लेकिन कुछ दिन बाद. अभी तो मैं दिन भर उलझी रहती हूं.’’

‘‘किस में?’’ निशाजी ने पूछा. समीर ने भी आश्चर्य से उस की तरफ देखा.

‘‘यों ही, यह नमक, तेल, मिर्च का मामला अभी जम नहीं पाया. कभी तेल ज्यादा, कभी नमक ज्यादा तो कभी मिर्च ज्यादा,’’ मंजरी ने कहा.

सब लोग सुन कर हंस पड़े.

‘‘शुरूशुरू में खाना बनाते समय ऐसा ही होता है,’’ फिर आनंदजी की पत्नी रामेश्वरी ने आपबीती सुनाई.

मंजरी ने मेज पर नमकीन, मिठाई और चाय रखी. कमलनाथ कह रहे थे, ‘‘तो  समीर कल का पक्का है न? भाभीजी, कल सवेरे 7 बजे पिकनिक पर चलना है आप दोनों को. 30-40 मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर जगह है. वहां रेस्ट हाउस भी है. सब इंतजाम हो गया है. मैं आप दोनों को लेने 7 बजे आऊंगा.’’

समीर और मंजरी ने एकदूसरे की तरफ देखा. फिर उसी क्षण समीर बोला, ‘‘ठीक है, हम लोग चलेंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब सब चले गए तो समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो, फिर भी सब  के सामने झूठ क्यों बोलीं?’’

‘‘आप को मेरा बनाया खाना अच्छा लगता है?’’

‘‘बहुत,’’ समीर ने कहा.

दोनों की नजरें एक क्षण के लिए एक हो गईं. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजली चली गई. समीर को खयाल आया कि मंजरी अकेली है, कहीं डर न जाए.

वह टार्च ले कर मंजरी के कमरे के सामने गया और उसे पुकारने लगा. मंजरी ने दरवाजा खोला और समीर को देख राहत की सांस ले बोली, ‘‘देखिए न, ये खिड़कियां बंद नहीं हो रही हैं. बरसात का पानी अंदर आ रहा है.’’

समीर ने टार्च उस के हाथ में दे दी और खिड़कियां बंद करने लगा. खिड़कियों के दरवाजे बाहर खुलते थे. तेज हवा के कारण वह बड़ी कठिनाई से उन्हें बंद कर सका.

‘‘तुम्हारा बिस्तर तो गीला है. सोओगी कैसे?’’

‘‘मैं गद्दा उलटा कर के सो जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?’’

मंजरी कुछ नहीं बोली. समीर ने अत्यंत मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मंजरी.’’ और उस ने उस की तरफ बढ़ने को कदम उठाए. फिर अचानक वह मुड़ा और अपने कमरे में चला गया.

दूसरे दिन सवेरे 7 बजे दोनों नहाधो कर पिकनिक के लिए तैयार थे. इतने में कमलनाथ भी जीप ले कर आ पहुंचे. समीर उन के पास बैठा और मंजरी किनारे पर. मौसम बड़ा सुहावना था. समीर और कमलनाथ में बातें चल रही थीं. मंजरी प्रकृति का सौंदर्य देखने में मगन थी.

अब रास्ता खराब आ गया था और जीप में बैठेबैठे धक्के लगने लगे थे.

‘‘तुम इतने किनारे पर क्यों बैठी हो? इधर सरक जाओ,’’ समीर ने कहा.

लज्जा से मंजरी का चेहरा आरक्त हो उठा. उसे सरकने में संकोच करते देख समीर ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से उसे अपने पास खींच लिया. मंजरी ने भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

शाम 7 बजे घर लौटे तो दोनों खुश थे. पिकनिक में खूब मजा आया था. दोनों ने आ कर स्नान किया और गरमगरम चाय पीने हाल में बैठ गए. समीर बातचीत करने के लिए उत्सुक लग रहा था. ‘‘रात के खाने के लिए क्या बनाऊं?’’ मंजरी ने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘बैठो भी, जल्दी क्या है? आमलेटब्रेड खा लेंगे.’’ फिर उस ने अचानक गंभीर हो कर कहा, ‘‘मंजरी, मुझे तुम से कुछ पूछना है.’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘मंजरी, इस शादी से तुम सचमुच खुश हो न?’’

‘‘मैं तो बहुत खुश हूं. खुश क्यों न होऊं, जब मेरे हाथ आप जैसा रत्न लगा है.’’

खुशी से समीर का चेहरा खिल उठा, ‘‘और मेरे हाथ भी तो तुम जैसी लक्ष्मी लगी है.’’

दोनों ही आनंदविभोर हो कर एकदूसरे को देखने लगे. शंका के

सब बादल छंट चुके थे. तनाव खत्म हो गया था.

इतने में कालबेल बजी. समीर उठ कर बाहर गया.

मंजरी सोच रही थी कि अगले दिन सवेरे वह सासससुर को फोन कर के यह खुशखबरी देगी.

‘‘मंजरी…मंजरी,’’ कहते हुए खुशी से उछलता समीर अंदर आया.

‘‘इधर आओ, मंजरी, देखो, तुम्हारा एम.ए. का नतीजा आया है.’’

दौड़ कर मंजरी उस के पास गई. लेकिन समीर ने आसानी से उसे तार नहीं दिया. मंजरी को छीनाझपटी करनी पड़ी. तार खोल कर पढ़ा :

‘‘हार्दिक बधाई. योग्यता सूची में द्वितीय. चाचा.’’

खुशी से मंजरी का चेहरा चमक उठा. तिरछी नजर से उस ने पास खड़े समीर की तरफ देखा.

समीर ने आवेश में उसे अपनी ओर खींच लिया और मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई. तुम जैसी होशियार, गुणी और सुंदर पत्नी पा कर मैं भी आज योग्यता सूची में आ गया हूं, मंजरी.’’

इस सुखद वाक्य को सुनते ही मंजरी ने अपना माथा समर्पित भाव से समीर के कंधे पर रख दिया. उस की तपस्या पूरी हो गई थी.

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December 01, 2018 at 09:53AM