Friday 30 November 2018

कहर

डोल गया शहर

बोल गया कहर,

कल एक शहर था जहां

आज खंडहर है वहां.

कल थी ऊंची मंजिलें जहां

आज है तबाही की दास्तां वहां,

डोलती थी जिंदगियां जहां

अब खामोश हैं लाशें वहां.

दर्द है, कराह है

खौफ है, डर है,

बिलखता हर इनसान.

जो जिंदा है

वो भी खौफ का मारा है,

अब वो न जीता है न मरता है

बस दिन गिनते रहता है.

बसा था बरसों में

उजड़ गया पलों में,

हार गया शहर

जीत गया कहर.

-शोभा ज. चुलेट

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डोल गया शहर

बोल गया कहर,

कल एक शहर था जहां

आज खंडहर है वहां.

कल थी ऊंची मंजिलें जहां

आज है तबाही की दास्तां वहां,

डोलती थी जिंदगियां जहां

अब खामोश हैं लाशें वहां.

दर्द है, कराह है

खौफ है, डर है,

बिलखता हर इनसान.

जो जिंदा है

वो भी खौफ का मारा है,

अब वो न जीता है न मरता है

बस दिन गिनते रहता है.

बसा था बरसों में

उजड़ गया पलों में,

हार गया शहर

जीत गया कहर.

-शोभा ज. चुलेट

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November 30, 2018 at 10:36AM

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