Tuesday 31 March 2020

एक अदद वीडियो

रात को सोते सोते फ़ोन उठा मलया , ददन में तो काम कहााँ पीछे छोड़ते हैं , कटरीना कै फ का वीडियो ककसी ने भेजा था जजसमे मैिम बततन धो रही हैं , यह एक वीडियो क्या देख मलया , ददन भर की थकान भूल कर मेरे ददमाग मेंयह महान ववचार आ गया कक बतनत तो मैंभी धो रही हूाँ , वीडियो तो मैंबना ही सकती हूाँ , इसकी तरह कुछ औरतो कर नहीीं सकती , एक वीडियो तो बना ही सकती हैं.

अजीब से उत्साह से भर गया मन , पर इसके मलए तो मोहन और बच्चों की हेल्प लेनी पड़ेगी , ओह्ह , आज ही क्यों कम काम करने पर दिया बच्चों को, पता नहीं कल मेरा वीडियो ठीक से बनाएंगे या नहीीं ।ओह्ह , मोहन से भी एक प्यार दिखाना पड़ेगा.  मैंने देखा , मोहन अभी सोये नहीं हैं , स्वर में जजतनी ममठास घोल सकती थी , घोल  , ”मोहन प्यारे ! सो गए क्या ?”

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लॉक डॉउन के बाद मैंने शायद पहली बार उन्हें अपने ख़ास अींदाज में आवाज दी थी ,शायद उन्हें यकीन नहीीं हुआ मुझे ध्यान से देखा , ”राधा रानी ! उन्होंने भी अपने स्पेशल अंदाज में कहा ,”क्या हुआ , तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ?”मैंने अपने सारी आदते दिखाते हुए कहा ,”कल मेरा एक काम कर दोगे ? मोहन प्यारे !””ओह्ह , अब समझा , काम है ! ओह्ह , बोलो , बतनत तो सारे धो आया हूाँ ।

””अरे , तुम तो लॉक उन में एकदम हाउस वाइफ बन गए , प्रिये !”’अब ड्रामा बींद करो , बताओ , क्या करना हैकल मुझे ! ””कल मेरा एक वीडियो बना दोगे ?””अरे , उसमे क्या है , अभी बना दाँू? जबसे लॉक िाउन हुआ है , नाइटी में ही तो रहती हो ”अभी टाइम नहीीं था कक चचढ जाऊीं , नुकसान मेरा होता । कहा ,” नहीीं , अभी नहीीं , कल जब बततन धोऊीं गी, तब बनाना ”

मोहन को जैसे हसी का दौरा पड़ गया , कफर बोले ,” राधा , तुम्हे हुआ क्या ? आज ज्यादा थक गयी क्या ?””नही, थकान छोड़ो । ये देखो ,”कहकर मैंने उन्हें कटरीना का वीडियो ददखाया , उन्होंने देखकर एक ठीक साींस भरी तो मैं जल उठी , कहा ,” आहें भरो , बस , और क्या ! मदत कहीीं के !”
उन्हें बहुत जोर से हसी आ गयी , यह कौनसी गाली हुई ?”” यह मेरे टाइप की गाली है , ऐसा वीडियो बनाना मेरा कल ””ठीक है , राधा रानी , अब सो जाओ ” मोहन तो सो गए , मैं जरा एक्ससाइटेि हो उठी थी , नीींद ही नहीीं आ रही थी ,

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अपने मन को ही समझाया , राधा , सो जाओ , कल कफर गधे जैसे काम करने हैं , बस ये वीडियो बन जाए.सारी फ्रेंड्स को भेजूींगी , या इीं्टाग्राम और फेसबुक पर ही   बतनत मसफत कटरीना थोड़े ही धो रही है , हम भी धो रहे हैं , भाई ”सुबह उठ कर सबसे पहले बच्चों ववनी और आरुल को प्यार ककया , बच्चे कल की िाींट शायद भूल चुके थे , मलपट गए मुझसे ,” बोले ,”मम्मी , आज भी आपके साथ काम करवाने हैं ?”

”हााँ ,बच्चों , जब तक मेड्स नहीीं आती , तब तक तो मम्मी की हेल्प करनी पड़ेगी न , बेटा।” बच्चे मुझे ध्यान से देखने लगे , सुबह सुबह मम्मी इतने प्यार से बोल क्यों रही है ? आरुल ने पूछ ही मलया ,” क्या हुआ , मम्मी ?””कुछ नहीीं ,बेटा , जल्दी से तमु लोग फ्रेश हो जाओ ,”कफर मैंने धीरे से कहा ,”एक काम है , सब इक्कठे हो जाओ ,पापा भी रो हो रहे हैं ।” ”पर क्यों ,मम्मी ?”

” वो मैंबतनत धोने जा रही हूाँ ,तो मुझे अपना वीडियो बनवाना हैबतनत धोते हुए , आजकल देख रहे हो न , सारी सेमलबिटीज घर के काम करते हुए वीडियो बना रही हैं.”बच्चे एक दसू रे को देख कर जैसे मु्कुराये , मन हुआ एक लगा दाँू, पर नहीीं , यह कफर कभी ! बच्चे जब तक फ्रेश होकर आये , मोहन ने कहा , राधा , मेरी एक जरुरी मीदटींग है ,अभी , मुझे जल्दी से नाश्ता दे दो ”

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”पर , मोहन , मेरा वीडियो ?””ववनी बना देगी न ,  वरी” मैंने मोहन को जल्दी से सैंिववच ददए , मोहन ने लैपटॉप खोल ककया ,मैंने कहा , आओ ववनी , अपना फ़ोन ले आओ ””मम्मी , अभी चाजजिंग पर लगाया है , जब तक नाश्ता कर लें ?” मनैं  बुझे मन से नाश्ते का काम ननपटाया , दस बज गए थे , अभी तक मेरे वीडियो का नींबर नहीं आया था , रात को सोचा था , सुबह उठते ही वीडियो शूट होगा । पर अजी कहाीं, यह कटरीना का वीडियो बनाया ककसने था ? लॉक डॉउन में उनकी मेि आ रही थी क्या ? या फुल की होगी ! पर कफर कटरीना बतनत क्यों धोएगी !कौन देगा इसका जवाब , छोड़ो !

मैंने मसैज ठीक पर अपनी पोजीशन बनायीीं , ववनी से कहा , बेटा, जजतनी भी चाजजिंग हो गयी हो , ले आओ अभी ”
वह अपना फ़ोन लेकर आयी , कफर मुझे ऊपर से नीचे देखकर बोली ,”मम्मी , यह टी शटत इस पाजामे पर अच्छीनहीीं लग रही है , चेंज कर लो ”मैं फौरन हाथ धोकर टी शटत चेंज कर आयी , आरुल बोला,” मम्मी , पर मुझे एक चीज समझ नहीीं आ रही , आप अपने वीडियो का क्या करोगी ?”’फ्रेंड्स को भेजूगी ”
”तो उनके मलए कौन सा ये नयी चीज होगी , सब बततन ही तो धो रही हैं ”

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मेरे चेहरे से ववनी को समझ आ गया कक मुझे गु्सा आ रहा है , बोली , आरुल , चुप रहो , वीडियो बनाने दो ,मम्मी उसके बाद वीडियो का कुछ भी करें , तुम्हे क्या ,” कहते कहते ववनी को भी हसी आ गयी तो मैंने चढ़ती ,इससे पहले ही उसने कहा ,” मम्मी , आपका चेहरा बहुत मसपीं ल लग रहा है , थोड़ा बहुत मेक अप कर लो ””सुबह सुबह ? बबना नहाये धोये ?”” तो मम्मी , आप पहले नहा धोकर अच्छी तरह रेिी क्यों नहीीं हो जाती ? जब बनाना ही है तो बदढ़या बनाते हैं.

मैंने मस ींक में पड़े बततन देखे ,” पर ये तो अभी धोने हैं ”तो इन्हे धो लो आप , बततन तो कफर हो जायेंगें ”आज आरुल का टनत पोछा लगाने का था , उसने होमशयारी ददखाई ,” मम्मी , बततन का वीडियो ही जरुरी तो नहीं है आओ , आप पोछा लगा लो , मैंआपका वीडियो बना दींगू ”
मैंने कहा ,”न , बेटा , पोछा तो तुम ही लगाओगे ”

दोनों बच्चे ककचन से ननकल गए , मनैं  टूटे मन से बतनत धो मलए , आज पहली बार सोचा कक कब दोबारा धोऊंगी.बततन , कब वीडियो बनेगा । उसके बाद खाने के काम ननपटाए , दोनों बच्चे सफाई में हेल्प करते रहे , आज मोहन
बच गए थे , ऑकफस के काम ने आज उन्हें बचा मलया था , मैंने मन ही मन दहसाब लगाया कक शाम को उनसेक्या क्या काम करवा सकती हूाँ । नहा धोकर लींच बनाया , दोपहर में सबने साथ ही खाया , मैं अब जल्दी से बततन धोना चाहती थी ,

इतने में मेरी फ्री फ़ोन आ गया , उसे भी बताया कक अभी थोड़ी देर में मेरे इंस्टाग्राम पर मेरा
एक वीडियो जरूर देखना , वो पूछती रही , मैं उसे नचाती, चचढ़ाती रही , आज टाइम नहीीं था , बस आधा घींटा बातकरके फ़ोन रख ददया तो जाकर देखा , तीनो सो रहे थे । मझुे ऐसा झटका लगा कक पूछो मत
गु्से में सारे बतनत खूब आवाज करके धोये पर कोई नहीीं उठा. कुम्भकणत की औलादें ! सब चार बजे सोकर उठे.मैंने ककसी से बात नहीीं की , सबको समझ आ गया. मोहन ने आवाज दी ,” राधा रानी , चाय तो वपला दो , कुछ ्नैक्स भी बना लो , तो बततन कफर हो जायेंगे ,” कहकर जब वे हाँसे तो मुझे आग लग गयी .

चाय का कप उन्हेंदेकर अपनी चाय दसू रे रूम में ले जाकर पीने लगी तो वे वहीं आ गए ,”गु्सा क्यों होती हो ? राधा रानी , ये बततन कहााँ भागे जा रहे हैं ?””इंसान का एक मूि होता हैन कुछ करने का ?”मैं गुरातई
” हााँ ,ये तो है ”मैं कफर सीररयस ही रही , , मोहन बोले , ‘ चलो , तुम ये दो कप धो , मैं बनाता हूं वीडियो ”
”दो कप में मजा नहीीं आएगा , फे क लगेगा ””ठीक है , डिनर के बाद ?””ओके ”

मैं अब ये भी सोच रही थी कक पैपराजी के मारे हैं ये मसतारे , इन्हे आजकल घर में बैठे अटेंशन नहीीं ममल रहा है तो वीडियो ही पो्ट ककये जा रहे हैं , मुझे क्यों शौक चरातया है , शाम होते होते काम के बोझ से मेरा आज वीडियो बनाने का शौक ख़तम होने लगा था , कोई मेि न होने से शाम तक तो हालत खराब हो जाती .डिनर के बाद सब मुझे गींभीर देख वीडियो बनाने की बातें करने लगे ,मोहन ने कहा ,” जाओ , राधा , अच्छी तरह से तैयार हो जाओ ,

सब फ्री हैं , चलो , वीडियो बनाते हैंतुम्हारा ”ववनी ने कहा ,” मम्मी , मैंआपका मेक अप कर दाँगू ी , आप वप ींक टी शटत पहन लो ”मैंने कहा , ” वप ींक टी शटत प्रेस नहीीं है , आरुल , प्रेस कर दो फटाफट ”
‘हााँ , मम्मी , करता हूाँ ”मेरा मन दलु ार से भर उठा , वैसे हैंये प्यारे सब  इतने में अरुल की िरी हुई आवाज आयी , मम्मी , मम्मी , ”सब भागे , देखा , मेरी टी शटत जल चुकी थी , मन हुआ सबको पीट कर रख दाँू सब चुप चाप मेरा मुाँह देख रहे.

थे , मनैं  कुछ नहीीं कहा , मैंथक चुकी थी ,टी शटत  बबन में फें की , नाईट गाउन पहना , कुछ काम ननपटाए ,सोने की तैयारी करने लगी , सन्नाटा सा रहा , मोहन ने ही लेटते हुए दहम्मत की ,” राधा , कल सुबह उठते ही

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रात को सोते सोते फ़ोन उठा मलया , ददन में तो काम कहााँ पीछे छोड़ते हैं , कटरीना कै फ का वीडियो ककसी ने भेजा था जजसमे मैिम बततन धो रही हैं , यह एक वीडियो क्या देख मलया , ददन भर की थकान भूल कर मेरे ददमाग मेंयह महान ववचार आ गया कक बतनत तो मैंभी धो रही हूाँ , वीडियो तो मैंबना ही सकती हूाँ , इसकी तरह कुछ औरतो कर नहीीं सकती , एक वीडियो तो बना ही सकती हैं.

अजीब से उत्साह से भर गया मन , पर इसके मलए तो मोहन और बच्चों की हेल्प लेनी पड़ेगी , ओह्ह , आज ही क्यों कम काम करने पर दिया बच्चों को, पता नहीं कल मेरा वीडियो ठीक से बनाएंगे या नहीीं ।ओह्ह , मोहन से भी एक प्यार दिखाना पड़ेगा.  मैंने देखा , मोहन अभी सोये नहीं हैं , स्वर में जजतनी ममठास घोल सकती थी , घोल  , ”मोहन प्यारे ! सो गए क्या ?”

ये भी पढ़ें-लमहों ने खता की थी: भाग 3

लॉक डॉउन के बाद मैंने शायद पहली बार उन्हें अपने ख़ास अींदाज में आवाज दी थी ,शायद उन्हें यकीन नहीीं हुआ मुझे ध्यान से देखा , ”राधा रानी ! उन्होंने भी अपने स्पेशल अंदाज में कहा ,”क्या हुआ , तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ?”मैंने अपने सारी आदते दिखाते हुए कहा ,”कल मेरा एक काम कर दोगे ? मोहन प्यारे !””ओह्ह , अब समझा , काम है ! ओह्ह , बोलो , बतनत तो सारे धो आया हूाँ ।

””अरे , तुम तो लॉक उन में एकदम हाउस वाइफ बन गए , प्रिये !”’अब ड्रामा बींद करो , बताओ , क्या करना हैकल मुझे ! ””कल मेरा एक वीडियो बना दोगे ?””अरे , उसमे क्या है , अभी बना दाँू? जबसे लॉक िाउन हुआ है , नाइटी में ही तो रहती हो ”अभी टाइम नहीीं था कक चचढ जाऊीं , नुकसान मेरा होता । कहा ,” नहीीं , अभी नहीीं , कल जब बततन धोऊीं गी, तब बनाना ”

मोहन को जैसे हसी का दौरा पड़ गया , कफर बोले ,” राधा , तुम्हे हुआ क्या ? आज ज्यादा थक गयी क्या ?””नही, थकान छोड़ो । ये देखो ,”कहकर मैंने उन्हें कटरीना का वीडियो ददखाया , उन्होंने देखकर एक ठीक साींस भरी तो मैं जल उठी , कहा ,” आहें भरो , बस , और क्या ! मदत कहीीं के !”
उन्हें बहुत जोर से हसी आ गयी , यह कौनसी गाली हुई ?”” यह मेरे टाइप की गाली है , ऐसा वीडियो बनाना मेरा कल ””ठीक है , राधा रानी , अब सो जाओ ” मोहन तो सो गए , मैं जरा एक्ससाइटेि हो उठी थी , नीींद ही नहीीं आ रही थी ,

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अपने मन को ही समझाया , राधा , सो जाओ , कल कफर गधे जैसे काम करने हैं , बस ये वीडियो बन जाए.सारी फ्रेंड्स को भेजूींगी , या इीं्टाग्राम और फेसबुक पर ही   बतनत मसफत कटरीना थोड़े ही धो रही है , हम भी धो रहे हैं , भाई ”सुबह उठ कर सबसे पहले बच्चों ववनी और आरुल को प्यार ककया , बच्चे कल की िाींट शायद भूल चुके थे , मलपट गए मुझसे ,” बोले ,”मम्मी , आज भी आपके साथ काम करवाने हैं ?”

”हााँ ,बच्चों , जब तक मेड्स नहीीं आती , तब तक तो मम्मी की हेल्प करनी पड़ेगी न , बेटा।” बच्चे मुझे ध्यान से देखने लगे , सुबह सुबह मम्मी इतने प्यार से बोल क्यों रही है ? आरुल ने पूछ ही मलया ,” क्या हुआ , मम्मी ?””कुछ नहीीं ,बेटा , जल्दी से तमु लोग फ्रेश हो जाओ ,”कफर मैंने धीरे से कहा ,”एक काम है , सब इक्कठे हो जाओ ,पापा भी रो हो रहे हैं ।” ”पर क्यों ,मम्मी ?”

” वो मैंबतनत धोने जा रही हूाँ ,तो मुझे अपना वीडियो बनवाना हैबतनत धोते हुए , आजकल देख रहे हो न , सारी सेमलबिटीज घर के काम करते हुए वीडियो बना रही हैं.”बच्चे एक दसू रे को देख कर जैसे मु्कुराये , मन हुआ एक लगा दाँू, पर नहीीं , यह कफर कभी ! बच्चे जब तक फ्रेश होकर आये , मोहन ने कहा , राधा , मेरी एक जरुरी मीदटींग है ,अभी , मुझे जल्दी से नाश्ता दे दो ”

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”पर , मोहन , मेरा वीडियो ?””ववनी बना देगी न ,  वरी” मैंने मोहन को जल्दी से सैंिववच ददए , मोहन ने लैपटॉप खोल ककया ,मैंने कहा , आओ ववनी , अपना फ़ोन ले आओ ””मम्मी , अभी चाजजिंग पर लगाया है , जब तक नाश्ता कर लें ?” मनैं  बुझे मन से नाश्ते का काम ननपटाया , दस बज गए थे , अभी तक मेरे वीडियो का नींबर नहीं आया था , रात को सोचा था , सुबह उठते ही वीडियो शूट होगा । पर अजी कहाीं, यह कटरीना का वीडियो बनाया ककसने था ? लॉक डॉउन में उनकी मेि आ रही थी क्या ? या फुल की होगी ! पर कफर कटरीना बतनत क्यों धोएगी !कौन देगा इसका जवाब , छोड़ो !

मैंने मसैज ठीक पर अपनी पोजीशन बनायीीं , ववनी से कहा , बेटा, जजतनी भी चाजजिंग हो गयी हो , ले आओ अभी ”
वह अपना फ़ोन लेकर आयी , कफर मुझे ऊपर से नीचे देखकर बोली ,”मम्मी , यह टी शटत इस पाजामे पर अच्छीनहीीं लग रही है , चेंज कर लो ”मैं फौरन हाथ धोकर टी शटत चेंज कर आयी , आरुल बोला,” मम्मी , पर मुझे एक चीज समझ नहीीं आ रही , आप अपने वीडियो का क्या करोगी ?”’फ्रेंड्स को भेजूगी ”
”तो उनके मलए कौन सा ये नयी चीज होगी , सब बततन ही तो धो रही हैं ”

ये भी पढ़ें-लमहों ने खता की थी: भाग 1

मेरे चेहरे से ववनी को समझ आ गया कक मुझे गु्सा आ रहा है , बोली , आरुल , चुप रहो , वीडियो बनाने दो ,मम्मी उसके बाद वीडियो का कुछ भी करें , तुम्हे क्या ,” कहते कहते ववनी को भी हसी आ गयी तो मैंने चढ़ती ,इससे पहले ही उसने कहा ,” मम्मी , आपका चेहरा बहुत मसपीं ल लग रहा है , थोड़ा बहुत मेक अप कर लो ””सुबह सुबह ? बबना नहाये धोये ?”” तो मम्मी , आप पहले नहा धोकर अच्छी तरह रेिी क्यों नहीीं हो जाती ? जब बनाना ही है तो बदढ़या बनाते हैं.

मैंने मस ींक में पड़े बततन देखे ,” पर ये तो अभी धोने हैं ”तो इन्हे धो लो आप , बततन तो कफर हो जायेंगें ”आज आरुल का टनत पोछा लगाने का था , उसने होमशयारी ददखाई ,” मम्मी , बततन का वीडियो ही जरुरी तो नहीं है आओ , आप पोछा लगा लो , मैंआपका वीडियो बना दींगू ”
मैंने कहा ,”न , बेटा , पोछा तो तुम ही लगाओगे ”

दोनों बच्चे ककचन से ननकल गए , मनैं  टूटे मन से बतनत धो मलए , आज पहली बार सोचा कक कब दोबारा धोऊंगी.बततन , कब वीडियो बनेगा । उसके बाद खाने के काम ननपटाए , दोनों बच्चे सफाई में हेल्प करते रहे , आज मोहन
बच गए थे , ऑकफस के काम ने आज उन्हें बचा मलया था , मैंने मन ही मन दहसाब लगाया कक शाम को उनसेक्या क्या काम करवा सकती हूाँ । नहा धोकर लींच बनाया , दोपहर में सबने साथ ही खाया , मैं अब जल्दी से बततन धोना चाहती थी ,

इतने में मेरी फ्री फ़ोन आ गया , उसे भी बताया कक अभी थोड़ी देर में मेरे इंस्टाग्राम पर मेरा
एक वीडियो जरूर देखना , वो पूछती रही , मैं उसे नचाती, चचढ़ाती रही , आज टाइम नहीीं था , बस आधा घींटा बातकरके फ़ोन रख ददया तो जाकर देखा , तीनो सो रहे थे । मझुे ऐसा झटका लगा कक पूछो मत
गु्से में सारे बतनत खूब आवाज करके धोये पर कोई नहीीं उठा. कुम्भकणत की औलादें ! सब चार बजे सोकर उठे.मैंने ककसी से बात नहीीं की , सबको समझ आ गया. मोहन ने आवाज दी ,” राधा रानी , चाय तो वपला दो , कुछ ्नैक्स भी बना लो , तो बततन कफर हो जायेंगे ,” कहकर जब वे हाँसे तो मुझे आग लग गयी .

चाय का कप उन्हेंदेकर अपनी चाय दसू रे रूम में ले जाकर पीने लगी तो वे वहीं आ गए ,”गु्सा क्यों होती हो ? राधा रानी , ये बततन कहााँ भागे जा रहे हैं ?””इंसान का एक मूि होता हैन कुछ करने का ?”मैं गुरातई
” हााँ ,ये तो है ”मैं कफर सीररयस ही रही , , मोहन बोले , ‘ चलो , तुम ये दो कप धो , मैं बनाता हूं वीडियो ”
”दो कप में मजा नहीीं आएगा , फे क लगेगा ””ठीक है , डिनर के बाद ?””ओके ”

मैं अब ये भी सोच रही थी कक पैपराजी के मारे हैं ये मसतारे , इन्हे आजकल घर में बैठे अटेंशन नहीीं ममल रहा है तो वीडियो ही पो्ट ककये जा रहे हैं , मुझे क्यों शौक चरातया है , शाम होते होते काम के बोझ से मेरा आज वीडियो बनाने का शौक ख़तम होने लगा था , कोई मेि न होने से शाम तक तो हालत खराब हो जाती .डिनर के बाद सब मुझे गींभीर देख वीडियो बनाने की बातें करने लगे ,मोहन ने कहा ,” जाओ , राधा , अच्छी तरह से तैयार हो जाओ ,

सब फ्री हैं , चलो , वीडियो बनाते हैंतुम्हारा ”ववनी ने कहा ,” मम्मी , मैंआपका मेक अप कर दाँगू ी , आप वप ींक टी शटत पहन लो ”मैंने कहा , ” वप ींक टी शटत प्रेस नहीीं है , आरुल , प्रेस कर दो फटाफट ”
‘हााँ , मम्मी , करता हूाँ ”मेरा मन दलु ार से भर उठा , वैसे हैंये प्यारे सब  इतने में अरुल की िरी हुई आवाज आयी , मम्मी , मम्मी , ”सब भागे , देखा , मेरी टी शटत जल चुकी थी , मन हुआ सबको पीट कर रख दाँू सब चुप चाप मेरा मुाँह देख रहे.

थे , मनैं  कुछ नहीीं कहा , मैंथक चुकी थी ,टी शटत  बबन में फें की , नाईट गाउन पहना , कुछ काम ननपटाए ,सोने की तैयारी करने लगी , सन्नाटा सा रहा , मोहन ने ही लेटते हुए दहम्मत की ,” राधा , कल सुबह उठते ही

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April 01, 2020 at 10:00AM

आंखों में इंद्रधनुष:भाग3

संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती… उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.

वह एक संपन्न, सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सभ्य परिवार था. उस परिवार के लोग भयभीत थे, इस बात से नहीं कि उस के घर के गुलाबी रंग ने अपने ऊपर बहुत सारा काला रंग डाल लिया था और उस ने इस कदर इस रंग को ओढ़ रखा था कि उस का प्राकृतिक गुलाबी रंग कहीं खो गया था. काले रंग के अलावा कोई और रंग उस में नजर भी नहीं आता था. वे इस बात से डर रहे थे कि अगर यह काला रंग घर के बाहर फैल गया तो समाज में किस प्रकार अपना मुंह दिखाएंगे और किस प्रकार अपने सिर को ऊंचा कर के चल सकेंगे. किसी भी परिवार के लिए ऐसे क्षण आत्मघाती होते हैं.

स्थिति दयनीय ही नहीं, भयावह भी थी. सब को किसी न किसी दिन एक विस्फोट की प्रतीक्षा थी. कब होगा यह विस्फोट, कोई नहीं जानता था. विस्फोट हो जाता तो उस के प्रभाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता था, परंतु यहां तो सभीकुछ अनिश्चित सा था और अनिश्चय की घडि़यां बहुत कष्टदायी होती हैं. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यों डरेसहमे से, आंखों में संदेह के बादलों का गांव बसा कर किस तरह जिया जा सकता था. उस घर के 3 रंगों-लाल, पीले और हरे ने आपस में सलाह की. नीला रंग अभी छोटा था और वह बहुत सारी चिंताओं से मुक्त था, सो उसे चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया. लाल रंग गुस्सैल स्वभाव का था. उस ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं अभी उस की हड्डीपसली तोड़ कर एक कर देता हूं. पूछता हूं कि कौन है वह, जिस के साथ उस ने अपना मुंह काला किया है.’’

‘‘यह कोई समस्या का समाधान नहीं है. इस से बात बिगड़ सकती है और बाहर तक जा सकती है. मैं उस से बात करती हूं,’’ पीले रंग वाली स्त्री ने शांत भाव से कहा. ‘‘मुझे बस एक बार पता चल जाए कि वह कौन कमीना रंग है जिस ने हमारे घर के रंग के साथ काले रंग से होली खेली है, उस को चलनेफिरने लायक नहीं छोड़ूंगा,’’ हरे रंग ने अपनी युवावस्था के जोश में कहा. ‘‘तुम अपने हथियारों को संभाल कर रखो. उन से बाद में काम लेना. अभी तो हमें अहिंसा के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास करना है, जब बात नहीं बनेगी तो आप दोनों को कमान सौंप दूंगी.’’ और अंत में, पीले रंगवाली स्त्री ने कमान अपने हाथ में संभाल ली. वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए कमर कस कर गुलाबी रंग वाली लड़की, जो उस की बेटी थी, के कमरे में जा पहुंची.

गुलाबी रंग वाली लड़की काले रंग के प्रभाव और चिंता में स्वयं बहुत पीली हो गई थी, जैसे पीलिया की रोगी हो. उस की अधिकतर दिनचर्या उस के कमरे और बिस्तर तक ही सीमित हो कर रह गई थी. उस ने पीले रंग को कमरे में आते देखा तो उस का रंग और अधिक पीला हो गया. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अनायास उस के मुख से निकला, ‘‘आप?’’ उस की आंखें हैरत से फट सी गई थीं. ‘‘हां, मैं? क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकती?’’ पीले रंग ने कठोर स्वर में कहा. वह सच का सामना करने आई थी और आज उसे किसी भी तरह गुलाबी रंग से सच उगलवाना था. सच प्रकट नहीं होगा तो अनिश्चय की स्थिति में सभी लोग घुलते हुए भयंकर रोगी बन जाएंगे.

गुलाबी रंग की आंखों में भय की परत और अधिक गहरी हो गई. पीला रंग पलंग पर बैठ गया, ‘‘बैठो न, तुम से कुछ बातें करनी हैं.’’ वह बैठ गई, नीची निगाहें, हृदय में असामान्य धड़कन, शरीर में अजीब सी सनसनी भरा कंपन…पता नहीं आज क्या होने वाला है? उस ने इस दिन की कल्पना कभी नहीं की थी, तब भी नहीं जब उस ने अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरने शुरू किए थे और तब भी नही, जब काला रंग उस के जीवन के रंगों के साथ घुलने लगा था और तब भी नहीं जब काले रंग ने मीठीमीठी बातों के रंग उस के ऊपर बिखरा कर उसे मदहोश कर दिया था और उस के कोमल बदन के सारे फूल चुरा लिए थे. वह एक वीरान बगीचे के समान हो गई थी, जहां से अभीअभी पतझड़ गुजर कर गया था.

पीले रंग के चेहरे के भाव और उस के स्वर की कठोरता ने गुलाबी रंग पर यह स्पष्ट कर दिया था कि आज हर प्रकार की ऊहापोह और अविश्वास की डोर कटने वाली थी, अनिश्चय का अंत होने वाला था. आज हर वह बात खुल जाएगी, जिसे उस ने अभी तक अपने हृदय की तमाम परतों के भीतर छिपा रखा था. उस ने भले ही बहुत सारे रहस्य अपने बदन की परतों के अंदर छिपा रखे हों, परंतु उस के बदन में होने वाले बाहरी परिवर्तनों ने बहुत सारे रहस्यों को सुबह की रोशनी की तरह स्पष्ट कर दिया था. सब की धुंधलाई आंखों में चमक आ गई थी. वह डरतेसहमते पीले रंग के पास बैठ गई. आज उसे उस के पास बैठते हुए डर लग रहा था. वह इसी रंग की कोख से पैदा हुई थी, उस के आंचल का दूध पिया था और उस की बांहों में झूलते हुए लोरियों को सुना था. बचपन से ले कर जवान होने तक बहुत सारी बातों को दोनों ने साथ जिया था, परंतु आज इस अनहोनी बात से मांबेटी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं. वे एकदूसरे से अपरिचित हो गई थीं.

मां फिर भी मां होती है. पीले रंग ने उस का सिर सांत्वना देने वाले भाव से सहलाया. गुलाबी रंग कांप गया. पीले रंग का स्थिर स्वर उभरा, ‘‘घबराओ मत, सबकुछ साफसाफ बता दो. अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है. घर के सभी लोगों को तुम्हारी स्थिति का आभास है, परंतु हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं कि यह सब कैसे हुआ? क्या किसी ने जोरजबरदस्ती की है तुम्हारे साथ या तुम ने पूरी समझदारी को ताक पर रख कर यह कालिख अपने मुंह पर पोत ली है और अब यह कालिख तुम्हारे पेट में फैल कर बड़ी हो रही है.’’

गुलाबी रंग का बदन कांपने लगा. उस के मन में बहुत सारे चित्र उभरने लगे, जैसे मन के परदे पर बाइस्कोप चल रहा हो. इन विभिन्न चित्रों के रंग उसे और ज्यादा डराने लगे और उस ने एक निरीह चिडि़या, जो बाज के पंजों में फंसी हो, की तरह पीले रंग की आंखों में देखा. पीले रंग वाली स्त्री उस की भयभीत आंखों की बेबसी और लाचारी देख कर पिघल गई और उस ने सिसकते हुए गुलाबी रंग को अपने अंक में समेट लिया. इस के बाद कमरे में केवल करुण कं्रदन का दिल दहला देने वाला स्वर भर गया और पता नहीं चल रहा था कि दोनों महिलाएं एकसाथ इतने सुर, लय और ताल में किस प्रकार रो सकती थीं कि दोनों का स्वर एकजैसा लगे. यह संभव भी था क्येंकि वे दोनों नारियां थीं और सब से बड़ी बात यह थी कि वे दोनों आपस में मांबेटी थीं. वे एकदूसरे के दर्द को बिना किसी शब्द और स्वर के भी तीव्रता के साथ महसूस कर सकती थीं.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो. रंगों की चकाचौंध में मैं भटक गई थी. मुझे पता नहीं था कि जीवन के कुछ रंग चमकीले और लुभावने होने के साथसाथ जहरीले भी होते हैं. यौवन के उसी एक रंग ने मुझ में जहर घोल दिया और मैं उसे जीवन का अद्भुत सुख समझ कर जीती रही. जीवन में ऐसी खुशियां भरती रही, जो बाद में मुझे दुख देने वाली थीं.’’ ‘‘जवानी के रंगों के बीच भटक कर लड़कियां जो जहर पीती हैं, वह उन के मुंह पर ही कालिख नहीं पोतता, बल्कि उस के घरपरिवार के ऊपर भी एक बदनुमा दाग छोड़ जाता है. खैर, इन सब बातों पर चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है. यह बताओ, वह कौन है, कहां रहता है और क्या करता है?’’ ‘‘पहले मैं ने उस के बारे में अधिक कुछ जानने का प्रयास नहीं किया था. मेरी आंखों में इतने सारे रंग भरे हुए थे कि वह मुझे हर कोण से सुंदर, शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत लगा, परंतु जब रंग फीके पड़ने लगे और मेरी आंखों के ऊपर से परदे उठे तो पता चला कि वह एक ऐसा युवक था, जिस का कोई सामाजिक या आर्थिक आधार नहीं था. वह एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन है और शहर की एक गंदी बस्ती के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता है.’’

पीले रंग वाली स्त्री यह सुन कर और ज्यादा पीली पड़ गई, परंतु मुसीबत की इस घड़ी में उसे अपने धैर्य को बचाए रखना था. वह मां थी और बेटी के जीवन की सुरक्षा के लिए उसे हर संभव उपाय करने थे, वरना कलंक का अमिट धब्बा उस की बेटी के माथे पर सदा के लिए चिपक कर रह जाता. तब उसे धोना असंभव हो जाता. उस ने पूछा, ‘‘क्या वह तुम से ब्याह करने के लिए राजी है?’’ गुलाबी रंग की आंखों में अविश्वास के रंग तैर गए, ‘‘पता नहीं, कई दिनों से वह मुझ से कतराने लगा है. फोन पर बात नहीं करता. कभी बात हो भी जाए तो मिलने नहीं आता. काम का बहाना बना देता है.’’

‘‘तब तो मुश्किल है,’’ वह चिंतित हो उठी.

‘‘क्या मुश्किल है?’’ बेटी का शरीर फिर कांपने लगा.

‘‘तुम दोनों का मिलन…तुम्हारा कलंक मिटाने के लिए मैं उस साधारण युवक से भी तुम्हारी शादी कर देती, परंतु लगता है कि उस के मन में पहले से ही छल था. वह तुम्हारे यौवन और सौंदर्य का रसपान करना चाहता था. वह उसे प्राप्त हो गया, तो अब तुम से दूर हो गया. जो लड़कियां जवानी में अपनी आंखों में प्रेम का इंद्रधनुष बसा लेती हैं उन की आंखों और बदन के रंगों को चुराने के लिए मानवरूपी दैत्य राजकुमार का भेष बना कर यौवन से भरपूर राजकुमारियों को प्रेम के जादू से अपने वश में कर के उन के सतीत्व का धन छीन कर उन के दीप्त यौवन का रसपान करते हैं. तुम जानेअनजाने, एक दैत्य की कुटिल चालों के जाल में फंस गईं और अपना सबकुछ लुटा बैठीं. इस गलती की सजा केवल तुम्हें ही नहीं, हमें भी जीवनभर भुगतनी पड़ेगी.’’ ‘‘काश, मैं उसे पहचान पाती,’’ गुलाबी रंग ने अफसोस जताते हुए कहा. परंतु अब अफसोस करने से भी क्या फायदा था? जवानी में कोई भी विवेक से काम नहीं लेता.

‘‘गलती हमारी भी है. हर जवान हो रही बेटी की मां को इतना ध्यान रखना ही चाहिए कि जवानी में उस की बेटी के कदम बहक सकते हैं. सचेत रह कर मुझे तुम्हारी हर गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए था. तुम्हारी आंखों में गलत रंग भरते, इस के पहले ही अगर हमें पता चल जाता…’’ मां भी अफसोस करने लगीं.

गुलाबी रंग चुप.

‘‘तुम ने उस का कमरा देखा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो चलो.’’

उन्हें विश्वास नहीं था, फिर भी अविश्वास की घड़ी में मनुष्य विश्वास का दामन नहीं छोड़ता. वे उस काले रंग के कमरे पर गईं. वहां जा कर पता चला कि वह उस कमरे में अकेला रहता था. कहीं बाहर का रहने वाला था और अब उसे छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था. किसी को भी उस के गांव का पता नहीं मालूम था और न यही मालूम था कि वह कहां गया था. मकानमालिक को भी उस ने कुछ नहीं बताया था. अब तो उस का फोन नियमित रूप से बंद था. काले रंग की मंशा का पता चल गया था. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरती हैं तो रंगों की चकाचौंध में वे उन के पीछे छिपे काले रंग को नहीं देख पाती हैं. काश, वह देख पाती तो उस की आंखों में इंद्रधनुष के रंगों की जगह केवल आंसू न होते.

 

 

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संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती… उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.

वह एक संपन्न, सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सभ्य परिवार था. उस परिवार के लोग भयभीत थे, इस बात से नहीं कि उस के घर के गुलाबी रंग ने अपने ऊपर बहुत सारा काला रंग डाल लिया था और उस ने इस कदर इस रंग को ओढ़ रखा था कि उस का प्राकृतिक गुलाबी रंग कहीं खो गया था. काले रंग के अलावा कोई और रंग उस में नजर भी नहीं आता था. वे इस बात से डर रहे थे कि अगर यह काला रंग घर के बाहर फैल गया तो समाज में किस प्रकार अपना मुंह दिखाएंगे और किस प्रकार अपने सिर को ऊंचा कर के चल सकेंगे. किसी भी परिवार के लिए ऐसे क्षण आत्मघाती होते हैं.

स्थिति दयनीय ही नहीं, भयावह भी थी. सब को किसी न किसी दिन एक विस्फोट की प्रतीक्षा थी. कब होगा यह विस्फोट, कोई नहीं जानता था. विस्फोट हो जाता तो उस के प्रभाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता था, परंतु यहां तो सभीकुछ अनिश्चित सा था और अनिश्चय की घडि़यां बहुत कष्टदायी होती हैं. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यों डरेसहमे से, आंखों में संदेह के बादलों का गांव बसा कर किस तरह जिया जा सकता था. उस घर के 3 रंगों-लाल, पीले और हरे ने आपस में सलाह की. नीला रंग अभी छोटा था और वह बहुत सारी चिंताओं से मुक्त था, सो उसे चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया. लाल रंग गुस्सैल स्वभाव का था. उस ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं अभी उस की हड्डीपसली तोड़ कर एक कर देता हूं. पूछता हूं कि कौन है वह, जिस के साथ उस ने अपना मुंह काला किया है.’’

‘‘यह कोई समस्या का समाधान नहीं है. इस से बात बिगड़ सकती है और बाहर तक जा सकती है. मैं उस से बात करती हूं,’’ पीले रंग वाली स्त्री ने शांत भाव से कहा. ‘‘मुझे बस एक बार पता चल जाए कि वह कौन कमीना रंग है जिस ने हमारे घर के रंग के साथ काले रंग से होली खेली है, उस को चलनेफिरने लायक नहीं छोड़ूंगा,’’ हरे रंग ने अपनी युवावस्था के जोश में कहा. ‘‘तुम अपने हथियारों को संभाल कर रखो. उन से बाद में काम लेना. अभी तो हमें अहिंसा के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास करना है, जब बात नहीं बनेगी तो आप दोनों को कमान सौंप दूंगी.’’ और अंत में, पीले रंगवाली स्त्री ने कमान अपने हाथ में संभाल ली. वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए कमर कस कर गुलाबी रंग वाली लड़की, जो उस की बेटी थी, के कमरे में जा पहुंची.

गुलाबी रंग वाली लड़की काले रंग के प्रभाव और चिंता में स्वयं बहुत पीली हो गई थी, जैसे पीलिया की रोगी हो. उस की अधिकतर दिनचर्या उस के कमरे और बिस्तर तक ही सीमित हो कर रह गई थी. उस ने पीले रंग को कमरे में आते देखा तो उस का रंग और अधिक पीला हो गया. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अनायास उस के मुख से निकला, ‘‘आप?’’ उस की आंखें हैरत से फट सी गई थीं. ‘‘हां, मैं? क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकती?’’ पीले रंग ने कठोर स्वर में कहा. वह सच का सामना करने आई थी और आज उसे किसी भी तरह गुलाबी रंग से सच उगलवाना था. सच प्रकट नहीं होगा तो अनिश्चय की स्थिति में सभी लोग घुलते हुए भयंकर रोगी बन जाएंगे.

गुलाबी रंग की आंखों में भय की परत और अधिक गहरी हो गई. पीला रंग पलंग पर बैठ गया, ‘‘बैठो न, तुम से कुछ बातें करनी हैं.’’ वह बैठ गई, नीची निगाहें, हृदय में असामान्य धड़कन, शरीर में अजीब सी सनसनी भरा कंपन…पता नहीं आज क्या होने वाला है? उस ने इस दिन की कल्पना कभी नहीं की थी, तब भी नहीं जब उस ने अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरने शुरू किए थे और तब भी नही, जब काला रंग उस के जीवन के रंगों के साथ घुलने लगा था और तब भी नहीं जब काले रंग ने मीठीमीठी बातों के रंग उस के ऊपर बिखरा कर उसे मदहोश कर दिया था और उस के कोमल बदन के सारे फूल चुरा लिए थे. वह एक वीरान बगीचे के समान हो गई थी, जहां से अभीअभी पतझड़ गुजर कर गया था.

पीले रंग के चेहरे के भाव और उस के स्वर की कठोरता ने गुलाबी रंग पर यह स्पष्ट कर दिया था कि आज हर प्रकार की ऊहापोह और अविश्वास की डोर कटने वाली थी, अनिश्चय का अंत होने वाला था. आज हर वह बात खुल जाएगी, जिसे उस ने अभी तक अपने हृदय की तमाम परतों के भीतर छिपा रखा था. उस ने भले ही बहुत सारे रहस्य अपने बदन की परतों के अंदर छिपा रखे हों, परंतु उस के बदन में होने वाले बाहरी परिवर्तनों ने बहुत सारे रहस्यों को सुबह की रोशनी की तरह स्पष्ट कर दिया था. सब की धुंधलाई आंखों में चमक आ गई थी. वह डरतेसहमते पीले रंग के पास बैठ गई. आज उसे उस के पास बैठते हुए डर लग रहा था. वह इसी रंग की कोख से पैदा हुई थी, उस के आंचल का दूध पिया था और उस की बांहों में झूलते हुए लोरियों को सुना था. बचपन से ले कर जवान होने तक बहुत सारी बातों को दोनों ने साथ जिया था, परंतु आज इस अनहोनी बात से मांबेटी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं. वे एकदूसरे से अपरिचित हो गई थीं.

मां फिर भी मां होती है. पीले रंग ने उस का सिर सांत्वना देने वाले भाव से सहलाया. गुलाबी रंग कांप गया. पीले रंग का स्थिर स्वर उभरा, ‘‘घबराओ मत, सबकुछ साफसाफ बता दो. अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है. घर के सभी लोगों को तुम्हारी स्थिति का आभास है, परंतु हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं कि यह सब कैसे हुआ? क्या किसी ने जोरजबरदस्ती की है तुम्हारे साथ या तुम ने पूरी समझदारी को ताक पर रख कर यह कालिख अपने मुंह पर पोत ली है और अब यह कालिख तुम्हारे पेट में फैल कर बड़ी हो रही है.’’

गुलाबी रंग का बदन कांपने लगा. उस के मन में बहुत सारे चित्र उभरने लगे, जैसे मन के परदे पर बाइस्कोप चल रहा हो. इन विभिन्न चित्रों के रंग उसे और ज्यादा डराने लगे और उस ने एक निरीह चिडि़या, जो बाज के पंजों में फंसी हो, की तरह पीले रंग की आंखों में देखा. पीले रंग वाली स्त्री उस की भयभीत आंखों की बेबसी और लाचारी देख कर पिघल गई और उस ने सिसकते हुए गुलाबी रंग को अपने अंक में समेट लिया. इस के बाद कमरे में केवल करुण कं्रदन का दिल दहला देने वाला स्वर भर गया और पता नहीं चल रहा था कि दोनों महिलाएं एकसाथ इतने सुर, लय और ताल में किस प्रकार रो सकती थीं कि दोनों का स्वर एकजैसा लगे. यह संभव भी था क्येंकि वे दोनों नारियां थीं और सब से बड़ी बात यह थी कि वे दोनों आपस में मांबेटी थीं. वे एकदूसरे के दर्द को बिना किसी शब्द और स्वर के भी तीव्रता के साथ महसूस कर सकती थीं.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो. रंगों की चकाचौंध में मैं भटक गई थी. मुझे पता नहीं था कि जीवन के कुछ रंग चमकीले और लुभावने होने के साथसाथ जहरीले भी होते हैं. यौवन के उसी एक रंग ने मुझ में जहर घोल दिया और मैं उसे जीवन का अद्भुत सुख समझ कर जीती रही. जीवन में ऐसी खुशियां भरती रही, जो बाद में मुझे दुख देने वाली थीं.’’ ‘‘जवानी के रंगों के बीच भटक कर लड़कियां जो जहर पीती हैं, वह उन के मुंह पर ही कालिख नहीं पोतता, बल्कि उस के घरपरिवार के ऊपर भी एक बदनुमा दाग छोड़ जाता है. खैर, इन सब बातों पर चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है. यह बताओ, वह कौन है, कहां रहता है और क्या करता है?’’ ‘‘पहले मैं ने उस के बारे में अधिक कुछ जानने का प्रयास नहीं किया था. मेरी आंखों में इतने सारे रंग भरे हुए थे कि वह मुझे हर कोण से सुंदर, शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत लगा, परंतु जब रंग फीके पड़ने लगे और मेरी आंखों के ऊपर से परदे उठे तो पता चला कि वह एक ऐसा युवक था, जिस का कोई सामाजिक या आर्थिक आधार नहीं था. वह एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन है और शहर की एक गंदी बस्ती के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता है.’’

पीले रंग वाली स्त्री यह सुन कर और ज्यादा पीली पड़ गई, परंतु मुसीबत की इस घड़ी में उसे अपने धैर्य को बचाए रखना था. वह मां थी और बेटी के जीवन की सुरक्षा के लिए उसे हर संभव उपाय करने थे, वरना कलंक का अमिट धब्बा उस की बेटी के माथे पर सदा के लिए चिपक कर रह जाता. तब उसे धोना असंभव हो जाता. उस ने पूछा, ‘‘क्या वह तुम से ब्याह करने के लिए राजी है?’’ गुलाबी रंग की आंखों में अविश्वास के रंग तैर गए, ‘‘पता नहीं, कई दिनों से वह मुझ से कतराने लगा है. फोन पर बात नहीं करता. कभी बात हो भी जाए तो मिलने नहीं आता. काम का बहाना बना देता है.’’

‘‘तब तो मुश्किल है,’’ वह चिंतित हो उठी.

‘‘क्या मुश्किल है?’’ बेटी का शरीर फिर कांपने लगा.

‘‘तुम दोनों का मिलन…तुम्हारा कलंक मिटाने के लिए मैं उस साधारण युवक से भी तुम्हारी शादी कर देती, परंतु लगता है कि उस के मन में पहले से ही छल था. वह तुम्हारे यौवन और सौंदर्य का रसपान करना चाहता था. वह उसे प्राप्त हो गया, तो अब तुम से दूर हो गया. जो लड़कियां जवानी में अपनी आंखों में प्रेम का इंद्रधनुष बसा लेती हैं उन की आंखों और बदन के रंगों को चुराने के लिए मानवरूपी दैत्य राजकुमार का भेष बना कर यौवन से भरपूर राजकुमारियों को प्रेम के जादू से अपने वश में कर के उन के सतीत्व का धन छीन कर उन के दीप्त यौवन का रसपान करते हैं. तुम जानेअनजाने, एक दैत्य की कुटिल चालों के जाल में फंस गईं और अपना सबकुछ लुटा बैठीं. इस गलती की सजा केवल तुम्हें ही नहीं, हमें भी जीवनभर भुगतनी पड़ेगी.’’ ‘‘काश, मैं उसे पहचान पाती,’’ गुलाबी रंग ने अफसोस जताते हुए कहा. परंतु अब अफसोस करने से भी क्या फायदा था? जवानी में कोई भी विवेक से काम नहीं लेता.

‘‘गलती हमारी भी है. हर जवान हो रही बेटी की मां को इतना ध्यान रखना ही चाहिए कि जवानी में उस की बेटी के कदम बहक सकते हैं. सचेत रह कर मुझे तुम्हारी हर गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए था. तुम्हारी आंखों में गलत रंग भरते, इस के पहले ही अगर हमें पता चल जाता…’’ मां भी अफसोस करने लगीं.

गुलाबी रंग चुप.

‘‘तुम ने उस का कमरा देखा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो चलो.’’

उन्हें विश्वास नहीं था, फिर भी अविश्वास की घड़ी में मनुष्य विश्वास का दामन नहीं छोड़ता. वे उस काले रंग के कमरे पर गईं. वहां जा कर पता चला कि वह उस कमरे में अकेला रहता था. कहीं बाहर का रहने वाला था और अब उसे छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था. किसी को भी उस के गांव का पता नहीं मालूम था और न यही मालूम था कि वह कहां गया था. मकानमालिक को भी उस ने कुछ नहीं बताया था. अब तो उस का फोन नियमित रूप से बंद था. काले रंग की मंशा का पता चल गया था. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरती हैं तो रंगों की चकाचौंध में वे उन के पीछे छिपे काले रंग को नहीं देख पाती हैं. काश, वह देख पाती तो उस की आंखों में इंद्रधनुष के रंगों की जगह केवल आंसू न होते.

 

 

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April 01, 2020 at 10:00AM

करो ना क्रांति 

आज़ादी का दिन जब पहली बार आयोजित किया गया होगा, कितना उल्लास रहा होगा हर भारतीय के मन में. परन्तु आज आज़ादी के ७० वर्ष बाद यह कोरोना का लौकडाउन महज़ छुट्टी का एक दिन भर रह गया हैं. पुरुष पूरा दिन आदेश देने में व्यतीत करते हैं और स्त्रियाँ उसे पूरा करने में. प्रकृति ने भी स्त्री और पुरुष की रचना करते समय अंतर किया था. सारी पीड़ा तो स्त्री के हिस्सें मे डाल दी और पुरुष को दे दिया कठोर संवेदनहीन दिल. स्त्रियाँ तो १५ अगस्त १९४७ के पूर्व भी पराधीन थीं, और आज भी हैं. स्त्रियाँ भी अपनी इस दशा के लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं क्योंकि पराधीनता को अपनी नियति मान स्वीकार भी तो उन्होंने ही किया है, शायद धर्म के धुरंधर प्रचार के कारण.

“भाभी हल्वे में चीनी कितनी डालूँ ?” विराज के तेज़ी से दोड़ते सोच के घोड़ों को अदिति की आवाज़ के चाबुक ने लगाम लगा कर रोक दिया था.जमीनी हकीकत जानते हुए भी, पता नहीं क्यों उसके मन के भीतर सोयी हुई एक्टिविस्ट गाहे-बगाहे जाग उठती थी.अमर की आदेशों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी. घर के काम में उसकी सहायता के लिये आने वाली बाई विमला को भी संक्रमण के खतरे की वजह से उसने छुट्टी दे दी थी. पता नहीं वह कैसे गुजारा कर रही होगी. कहा भी था कि उसे घर पर ही रहने दें, कुछ आराम हो जाएगा और उसको वेतन भी दिया जा सकेगा.
इन्हें ही लगा थाकि न जाने कहां से कोरोना लें आई हो. मेरी एक नहीं चली. सब ने कहा कि वे खुद काम कर लेंगे. पर अब घर के सभी कामों की जिम्मेदारी विराज और उसकी ननद अदिति के ऊपर आ गयी थी. अदिति दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुवेशन कर रही थी. विराज का प्रयास था कि अदिति पर भी कम से कम काम का दबाव पड़े. इसलिये वो अधिकतर काम स्वयं ही निबटा ले रही थी. उसके दोनों बच्चें १० साल की आन्या और १२ साल का मानव अपने कमरे में वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे. पति अमर अपने कमरे में अधलेटे हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थें.
अचानक वहीं से चीख कर बोलें,“सुनो आज नेटफलिक्स पर एक नयी फिल्म आयी है. सब साथ ही देखेंगे.” फिर थोड़ा रुककर बोलें, “ये तुम्हारे बच्चें इतना शोर क्यों कर रहे हैं? देखो जरा !”अन्य दिन तो वर्क फ्रौम होम होता था तो फिर भी अमर समय पर नहा लिया करते थें. लेकिन शनिवार होने के कारण महाशय छुट्टी मोड में चले गये थें. बच्चों की तो खैर, छुट्टियाँ ही थी. “बाबू साहेब सुबह से लेटे-लेटे हुक्म दे रहे हैं. मैं घर के रोजमर्या के कार्यों के साथ बढ़े हुये कामों को भी निबटाने में लगी हूँ, यह नहीं दिख रहा हैं जनाब को. जब कुछ गलत करे तो बच्चें मेरे, परन्तु जब यही बच्चें कुछ अच्छा करते हैं, तो इनके हो जाते हैं.”
सोच तो इतना कुछ लिया विराज ने परन्तु प्रत्यक्ष में इतना भर कह पाई, “जी, बस अभी देखती हूँ.”
सभी काम निबटाने में बारह बज गये थें. पूरा परिवार फिल्म देखने बैठ गया. विराज ने सोचा थोड़ा सुस्ता ले, तभी अमर की आवाज कानों में पड़ी. “अरे विराज कहाँ हो भई?”“थोड़ा थक गयी थी. सोचा लेट लेती हूँ !” विराज अनमनी सी हो गयी थी. “अरे इतनी मुश्किल से तो फैमिली टाइम मिला है. उसमें भी इन्हें सोना है !”
अमर की बात सुनकर विराज को ऐसा मालूम हुआ जैसे गुस्से की एक लहर तनबदन में रेंग गयी हो. मन में आया कि कह दे, “फॅमिली टाइम या पैर फैलाकर ऑर्डर देने का टाइम.” वैसे आम दिनों में भी अमर घर का कोई काम नहीं करते थें. लेकिन विमला और अदिति की सहायता से काम हो जाता था. फिर विराज को थोड़ा मी टाइम भी तो मिल जाया करता था. लेकिन अब तो विराज के पास दो घड़ी बैठकर चाय पीने का भी समय नहीं था.
“अरे कहाँ रह गयी !?” अमर ने जब दुबारा बुलाया विराज को मन मारकर जाना ही पड़ा. फिल्म वाकई में अच्छी थी. विराज को भी अच्छा लग रहा था कि पूरा परिवार एक साथ बैठा था. तभी अचानक अमर ने फरमान सुनाया, “विराज पकोड़े बना लो. फिल्म के साथ सभी को मजा आ जायेगा.”“सभी को या तुम्हें !” विराज के इस अचानक पूछे गये प्रश्न पर अमर चौंक गया था. फिर थोड़ा गुस्से में बोला, “मैं तो सभी के लिये कह रहा था. तुम्हारा मन नहीं तो मत बनाओ.”
“मम्मी प्लीज” अब तो बच्चें भी चिल्लाने लगे थें. विराज उठ कर रसोई में चली गयी थी.
थोड़ी देर बाद अदिति को वहाँ बैठी देखकर, अमर बोल पड़े थे,” अरे तुम कहाँ  बैठ रही हो, अंदर रसोई में जाओ भाभी के साथ.”अदिति के चेहरे पर एक पल की झेंप को पहचान लिया था विराज ने. दोनों की नज़रें मिली और हालें दिल बयां हो गया था. विराज ने इशारे से अदिति को अंदर बुला लिया था.
अंदर रसोई में भी कुर्सियां लगी हुई थी, उनमें से एक पर अदिति को बैठने का इशारा करके विराज ने अपना सारा ध्यान गैस पर रखी हुई कढ़ाई पर लगा दिया था.
“कितनी गर्मी हैं आज!” अदिति ने बात शुरू करने के लिए यह जुमला कहा था शायद.
“हमम! चाहो तो वापस कमरे में जाकर बैठ जाओ, वहां तो ए सी लगा है.”
“नही-नहीं, मैं ठीक हूँ.”“भाभी आपको क्या लगता है, यह लॉकडाउन कब तक रहेगा?” अदिति फिर बोली थी.“देखो कब तक चलता है ! बस देश में सब ठीक रहें !” विराज ने दार्शनिक के अंदाज़ में कहा.
“भाभी मुझे आपके साथ बातें करना बहुत पसंद है.” अदिति ने बात बदल दी थी.
“आजकल हमें समय भी बहुत मिल रहा है. तुम्हारे साथ कितनी विषयों पर बातें हो जाती हैं” विराज ने उसकी बात का अनुमोदन किया था.“आप तो मेरी प्यारी भाभी है !” अदिति ने पीछे से विराज को अपने अंक में भर कर कहा था. “इसी बात पर मेरी तरफ से तुम्हें ट्रीट.” विराज ने मुस्कुराते हुए कहा.
“क्या मिलेगा ट्रीट में ?” अदिति ने पूछा था.“तुम पहले ये पकौड़े दे आओ. खाना तो तैयार ही है. तुम्हें अच्छी सी चाय पिलाती हूँ?”“भाभी आप चाय लेकर बालकोनी में चलो, मैं पकोड़े देकर आती हूँ.” अदिति ने बड़े प्यार से विराज को कहा था.
“लॉकडाउन में भी इन्हें पाँच दिन का काम और दो दिन की छुट्टी मिल रही है, परन्तु हमें कब मिलती हैं छुट्टी? यदि कुछ कहूँगी तो एक ही उत्तर मिलेगा, तुम तो सारा दिन घर में आराम ही करती हो. हमें तो बड़ी मुश्किल से छुट्टियाँ मिलती हैं. उस समय दिल करता हैं की कह दूँ, यह आराम एक दिन के लिए तुम भी लेकर देखो .” “तो कहती क्यों नहीं ?” विराज को पता ही नहीं चला था कि कब उसके मन की आवाज जबान से निकलने लगी थी. अदिति ने सब सुन लिया था. उसके प्रश्न का उत्तर सोचने में विराज को समय लगा. अदिति भी पास आकर बैठ गयी और अपना प्रश्न दोहरा दिया था. इस बार विराज बोली थी.
“अब बात तो उनकी भी पूरी तरह से गलत नहीं हैं. ऑफिस में परेशानी तो कई तरह की होती ही हैं.” अब विराज का स्वर बदल गया था.
“पुरुषों से अपने कार्य के लिए सम्मान की अपेक्षा हम तभी कर सकते हैं जब स्वयं हम अपने कार्य को सम्मानित महसूस करे.” अदिति की आँखों में चमक थी. “हमारे कार्य का कोई आर्थिक महत्व नहीं हैं, सम्मान इस दुनिया में द्रव्य सम्बन्धी हैं.” विराज ने एक आह भरकर अपनी बात रखी थी.
“मैं ऐसा नहीं मानती. कामकाजी स्त्रियों को कौन सा सम्मान ज्यादा मिल जाता हैं? घर आकर उन्हें भी चूल्हा-चौकी की इस आग में जलना ही पड़ता हैं. बाहर से थक कर दोनों ही आते हैं, परन्तु पुरुष के हिस्से आती हैं टीवी का रिमोट और सोफे का आराम. स्त्री के हिस्से आती हैं रसोई और बच्चों की पढाई.” अदिति ने उसकी इस बात का खंडन किया था.
विराज उनकी बातों को अनमने भाव से सुन रही थी कि अनायास ही नीचे की फ्लैट से आ रही एक स्त्री की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था. विराज उसे नहीं जानती थी. कभी मिलने का समय ही नहीं मिल पाया था. वो और उसके पति दोनों ही इंजीनियर थें. कभी-कभी बालकोनी से उनके मध्य एक मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाया करता था.
वो किसी से फोन पर बात कर रही थी-“मेरी राय में इसमें मर्दों से ज्यादा औरतों की गलती हैं. दोष पुरुष पर डाल कर औरत अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती. बचपन से मर्द को यह बताया जाता हैं की तेरे सारे काम करने के लिए घर में एक स्त्री हैं. उसकी परवरिश ही ऐसी होती हैं की वो स्वभाववश ही आराम पसंद हो जाता हैं. कभी माँ, कभी बहन, कभी बीवी बन कर हम औरतें ही उन्हें आलसी बना देती हैं. अब जब मर्द को यह पता हो की, घर में औरत हैं उसका काम करने को तो फिर वो क्यों अपने शरीर को कष्ट देगा. आराम किसे बुरा लगता हैं? इसलिए वो तो काम नहीं करेगा, तुझे काम करवाना पड़ेगा. उसे समझाने से पहले तुझे खुद समझना होगा की तू भी इन्सान हैं और तुझे भी आराम की उतनी ही जरुरत हैं. तुझे क्या लगता हैं रवि  हमेशा से घर के काम में मेरी मदद करता था ! नहीं, उसे खाना बनाना मैंने सिखाया हैं. अब देख मुझे से भी अच्छी खीर बनाता है. चल अब फ़ोन रखती हूँ, रवि बुला रहा है.”
फ़ोन रख कर न मालूम किस भावना के वशीभूत होकर उसने ऊपर देखा. वहाँ दो जोड़ी आँखों को अपनी ओर घूरता पाया. उन आँखों में इर्ष्या और सम्मान का भाव एक साथ मौजूद था. इर्ष्या इसलिए कि जो बात वे अभी तक सोच भी नहीं पाई थी, उसे वो इतने अच्छे से समझ गयी थी. सम्मान इसलिए कि न केवल समझी थी अपितु अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी ले आई थी.उन दोनो की खामोशी ने एक दूसरे से संवाद कर लिया, और एक छोटी सी चिंगारी उसकी आँखों से विराज की आँखों में प्रवेश कर गयी थी. बिना किसी शोर के एक मूक क्रांति का जन्म हुआ था.वो अंदर चली गयी थी. अदिति और विराज दोनों चुप थें.
“मध्यम वर्ग की सोच में बदलाव एक क्रांति ही ला सकती हैं.” अदिति ने चुप्पी तोड़ी थी.“तब तक …” विराज ने प्रश्न ऐसे पूछा था जैसे उत्तर उसे पहले से पता हो.“जो जैसे चल रहा है, वैसे ही चलता रहेगा.” अदिति जैसे स्वयं को समझा रही थी.उसकी बात सुनकर विराज एक मुस्कान के साथ बोली, “ बात किसी वर्ग की नहीं हैं. बात सिर्फ इतनी है कि, जो तू कहता है, बात सही लगती हैं; पर वो मेरे नहीं तेरे होठों पर सजती है.”“आप कहना क्या चाहती हैं !?” अदिति के स्वर में उत्सुकता थी.
“समाज में सकारात्मक परिवर्तन के हम सभी पक्षधर हैं. परन्तु पहला कदम उठाने से डरते हैं.  बदलाव केवल क्रांति ही ला सकती हैं, यह एक भ्रान्ति हैं. आत्मविश्वास के साथ बढे हुए छोटे-छोटे कदम भी परिवर्तन ला सकते हैं.” “जैसे की …” अदिति को विराज की बातों ने जैसे सम्मोहित कर लिया था.
“बच्चों को खाने के लिए बुला लेते हैं.” विराज ने अनायास ही बातों का रुख बदल दिया.
दोनों ही वर्तमान में लौट आये थें.“हाँ, मैं आन्या को बुला लाती हूँ. खाना लगाने में मदद कर देगी.”
“क्यों?” विराज ने अदिति की तरफ बिना देखे पूछ लिया था.??? अदिति के चेहरे पर प्रश्न था.
“मानव क्या करेगा ? पुरुष होने की उत्कृष्टता का लाभ लेगा ! बदलाव अपनी परवरिश में लाना होगा. अपने बेटों को हुक्म देने वाला नहीं, साथ देने वाला पुरुष बनाना होगा, और अपनी बेटियों को गलत का विरोध करना सिखाना होगा. तुम समझ रही हो ना !?”
विराज के इन शब्दों ने जैसे अदिति पर जादू कर दिया था. पहला कदम लेना उतना मुश्किल भी नहीं था.
“भाभी, मैं अभी मानव और आन्या को बुला कर लाती हूँ. आज उन्हें मेज़ पर खाना लगाना सिखाते हैं” लगभग उछलती हुई अदिति अंदर की तरफ चली गयी थी. कुछ सोचकर विराज भी उस तरफ चल दी थी, आखिर बड़े बच्चे को भी तो उसका नया पाठ समझाना था.
जब विराज बैठक में पहुंची तो अमर किसी से फोन पर बात कर रहे थें. टी वी बंद था. बच्चें भी अपने कमरे में जा चुके थें. अमर की स्त्री स्वतंत्रता और सशक्तिकरण पर चर्चा अभी-अभी समाप्त हुई थी. पुरुष बॉस और स्त्री बॉस में कौन ज्यादा प्रभावी होता हैं; इस प्रिय विषय पर वाद-विवाद कई घंटों तक चला था. स्त्रियों की मानसिक क्षमता का भी आंकलन हो चुका था. अभी शेरों-शायरी का दौर जारी था और श्रीमान अमर जी एक शेर सुना रहे थें.
“एक उम्र गुजार दी तेरे शहर में, अजनबी हम आज भी हैं.तेरी ख्वाहिशों के नीचे, मेरे दम तोड़तें ख्वाब आज भी हैं….”अमर ने अपनी पंक्तियाँ अभी समाप्त ही की थी की विराज ने उन्ही पंक्तियों के साथ अपने शब्द जोड़ दिए थें …. “तेरे दर्वाज़ाऐ क़ल्ब पर दस्तक देते मेरे हाँथों को देखा हैं कभी
तेरी गर्म रोटी की चाह में झुलसे मेरे हाथ तब भी थे और आज भी हैं …”
अमर चौंक कर पलट गये थें. अपने स्वप्न में भी विराज से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद उन्होंने नहीं की थी. उन्होंने कंधे उचका कर विराज से कारण पूछा. बेपरवाह विराज ने उनके कान पर से फोन हटाया और कॉल काट दी. कमरे में तूफान के बाद वाली शांति पसर गयी थी.अपनी दम्भी आवाज़ में अमर ने पूछा था, “यह क्या हो रहा है विराज !?
 “कुछ नहीं! इस कोरोना फीवर ने मुझे दो बातें समझा दी हैं.”“अच्छा ! जरा मैं भी तो सुनूँ कौन-कौन सी !” अमर के स्वर में तल्खी थी. विराज सामने पड़े सोफ़े पर आराम से बैठकर बोली, “पहली तो ये कि सही शिक्षा किसी भी उम्र में दी जा सकती है; मात्र एक मंत्र पढ़ना है, तुम भी करो ना. दूसरी, फॅमिली टाइम घर की स्त्रियों के लिये भी होता है. घर सभी का तो घर के काम मात्र स्त्री के क्यों ! मुसीबत तो सब पर आयी है, तो उसका सामना भी तो सबको मिलकर ही करना होगा.”
इतना कहकर विराज ने पलट कर पीछे देखा. आन्या और अदिति मेज पर खाना लगा रहे थें और मानव ग्लासों में पानी भर रहा था. अमर की नजर भी विराज की नजर का पीछा करते हुये उधर ही चली गयी थी.
“सुनो !” विराज की आवाज पर अमर ने उसकी तरफ देखा.“खाना तैयार हैं, मेज़ पर लगा दिया हैं. अदिति अपना और मेरा खाना यहीं ले आयेगी.”
अमर चुपचाप अंदर की तरफ जाने लगा था कि विराज ने फिर पुकारा-“सुनो ! बड़े बर्तन तो मैंने धो दिये थें. अपने और बच्चों के बर्तन धोकर अलमारी में रख देना.” इतना कहकर बिना अमर की तरफ देखे, विराज टी वी खोलकर अपना धारावाहिक देखने में तल्लीन हो गयी थी. घर में करो ना क्रांति का बिगुल बज चुका था. टीवी से आवाज़ आ रही थी.
 राजकुमार कुछ देर तक राजकुमारी के विचार परिवर्तन की राह देखता रहा. वह उनके कोमल ह्रदय को लेकर विश्वस्त था. परन्तु राजकुमारी की अनभिज्ञता उसे व्यग्र कर रही थी. उसकी निर्निमेष दृष्टि से अविचलित राजकुमारी अपनी सखियों के साथ आखेट में व्यस्त थी. राजकुमारी की ना को हाँ में बदलने का दम्भ जो उसने अपने मित्रों के सामने भरा था, वह दम तोड़ रहा था. थके क़दमों से वह आगे बढ़ गया था. इस परिवर्तन को उसने अनमने भाव से स्वीकार कर लिया था. अपनी गले में लटकती माला से खेलती हुयी राजकुमारी भी जानती थी कि यह पहला सबक था, पूरी शिक्षा अभी शेष थी.

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आज़ादी का दिन जब पहली बार आयोजित किया गया होगा, कितना उल्लास रहा होगा हर भारतीय के मन में. परन्तु आज आज़ादी के ७० वर्ष बाद यह कोरोना का लौकडाउन महज़ छुट्टी का एक दिन भर रह गया हैं. पुरुष पूरा दिन आदेश देने में व्यतीत करते हैं और स्त्रियाँ उसे पूरा करने में. प्रकृति ने भी स्त्री और पुरुष की रचना करते समय अंतर किया था. सारी पीड़ा तो स्त्री के हिस्सें मे डाल दी और पुरुष को दे दिया कठोर संवेदनहीन दिल. स्त्रियाँ तो १५ अगस्त १९४७ के पूर्व भी पराधीन थीं, और आज भी हैं. स्त्रियाँ भी अपनी इस दशा के लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं क्योंकि पराधीनता को अपनी नियति मान स्वीकार भी तो उन्होंने ही किया है, शायद धर्म के धुरंधर प्रचार के कारण.

“भाभी हल्वे में चीनी कितनी डालूँ ?” विराज के तेज़ी से दोड़ते सोच के घोड़ों को अदिति की आवाज़ के चाबुक ने लगाम लगा कर रोक दिया था.जमीनी हकीकत जानते हुए भी, पता नहीं क्यों उसके मन के भीतर सोयी हुई एक्टिविस्ट गाहे-बगाहे जाग उठती थी.अमर की आदेशों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी. घर के काम में उसकी सहायता के लिये आने वाली बाई विमला को भी संक्रमण के खतरे की वजह से उसने छुट्टी दे दी थी. पता नहीं वह कैसे गुजारा कर रही होगी. कहा भी था कि उसे घर पर ही रहने दें, कुछ आराम हो जाएगा और उसको वेतन भी दिया जा सकेगा.
इन्हें ही लगा थाकि न जाने कहां से कोरोना लें आई हो. मेरी एक नहीं चली. सब ने कहा कि वे खुद काम कर लेंगे. पर अब घर के सभी कामों की जिम्मेदारी विराज और उसकी ननद अदिति के ऊपर आ गयी थी. अदिति दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुवेशन कर रही थी. विराज का प्रयास था कि अदिति पर भी कम से कम काम का दबाव पड़े. इसलिये वो अधिकतर काम स्वयं ही निबटा ले रही थी. उसके दोनों बच्चें १० साल की आन्या और १२ साल का मानव अपने कमरे में वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे. पति अमर अपने कमरे में अधलेटे हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थें.
अचानक वहीं से चीख कर बोलें,“सुनो आज नेटफलिक्स पर एक नयी फिल्म आयी है. सब साथ ही देखेंगे.” फिर थोड़ा रुककर बोलें, “ये तुम्हारे बच्चें इतना शोर क्यों कर रहे हैं? देखो जरा !”अन्य दिन तो वर्क फ्रौम होम होता था तो फिर भी अमर समय पर नहा लिया करते थें. लेकिन शनिवार होने के कारण महाशय छुट्टी मोड में चले गये थें. बच्चों की तो खैर, छुट्टियाँ ही थी. “बाबू साहेब सुबह से लेटे-लेटे हुक्म दे रहे हैं. मैं घर के रोजमर्या के कार्यों के साथ बढ़े हुये कामों को भी निबटाने में लगी हूँ, यह नहीं दिख रहा हैं जनाब को. जब कुछ गलत करे तो बच्चें मेरे, परन्तु जब यही बच्चें कुछ अच्छा करते हैं, तो इनके हो जाते हैं.”
सोच तो इतना कुछ लिया विराज ने परन्तु प्रत्यक्ष में इतना भर कह पाई, “जी, बस अभी देखती हूँ.”
सभी काम निबटाने में बारह बज गये थें. पूरा परिवार फिल्म देखने बैठ गया. विराज ने सोचा थोड़ा सुस्ता ले, तभी अमर की आवाज कानों में पड़ी. “अरे विराज कहाँ हो भई?”“थोड़ा थक गयी थी. सोचा लेट लेती हूँ !” विराज अनमनी सी हो गयी थी. “अरे इतनी मुश्किल से तो फैमिली टाइम मिला है. उसमें भी इन्हें सोना है !”
अमर की बात सुनकर विराज को ऐसा मालूम हुआ जैसे गुस्से की एक लहर तनबदन में रेंग गयी हो. मन में आया कि कह दे, “फॅमिली टाइम या पैर फैलाकर ऑर्डर देने का टाइम.” वैसे आम दिनों में भी अमर घर का कोई काम नहीं करते थें. लेकिन विमला और अदिति की सहायता से काम हो जाता था. फिर विराज को थोड़ा मी टाइम भी तो मिल जाया करता था. लेकिन अब तो विराज के पास दो घड़ी बैठकर चाय पीने का भी समय नहीं था.
“अरे कहाँ रह गयी !?” अमर ने जब दुबारा बुलाया विराज को मन मारकर जाना ही पड़ा. फिल्म वाकई में अच्छी थी. विराज को भी अच्छा लग रहा था कि पूरा परिवार एक साथ बैठा था. तभी अचानक अमर ने फरमान सुनाया, “विराज पकोड़े बना लो. फिल्म के साथ सभी को मजा आ जायेगा.”“सभी को या तुम्हें !” विराज के इस अचानक पूछे गये प्रश्न पर अमर चौंक गया था. फिर थोड़ा गुस्से में बोला, “मैं तो सभी के लिये कह रहा था. तुम्हारा मन नहीं तो मत बनाओ.”
“मम्मी प्लीज” अब तो बच्चें भी चिल्लाने लगे थें. विराज उठ कर रसोई में चली गयी थी.
थोड़ी देर बाद अदिति को वहाँ बैठी देखकर, अमर बोल पड़े थे,” अरे तुम कहाँ  बैठ रही हो, अंदर रसोई में जाओ भाभी के साथ.”अदिति के चेहरे पर एक पल की झेंप को पहचान लिया था विराज ने. दोनों की नज़रें मिली और हालें दिल बयां हो गया था. विराज ने इशारे से अदिति को अंदर बुला लिया था.
अंदर रसोई में भी कुर्सियां लगी हुई थी, उनमें से एक पर अदिति को बैठने का इशारा करके विराज ने अपना सारा ध्यान गैस पर रखी हुई कढ़ाई पर लगा दिया था.
“कितनी गर्मी हैं आज!” अदिति ने बात शुरू करने के लिए यह जुमला कहा था शायद.
“हमम! चाहो तो वापस कमरे में जाकर बैठ जाओ, वहां तो ए सी लगा है.”
“नही-नहीं, मैं ठीक हूँ.”“भाभी आपको क्या लगता है, यह लॉकडाउन कब तक रहेगा?” अदिति फिर बोली थी.“देखो कब तक चलता है ! बस देश में सब ठीक रहें !” विराज ने दार्शनिक के अंदाज़ में कहा.
“भाभी मुझे आपके साथ बातें करना बहुत पसंद है.” अदिति ने बात बदल दी थी.
“आजकल हमें समय भी बहुत मिल रहा है. तुम्हारे साथ कितनी विषयों पर बातें हो जाती हैं” विराज ने उसकी बात का अनुमोदन किया था.“आप तो मेरी प्यारी भाभी है !” अदिति ने पीछे से विराज को अपने अंक में भर कर कहा था. “इसी बात पर मेरी तरफ से तुम्हें ट्रीट.” विराज ने मुस्कुराते हुए कहा.
“क्या मिलेगा ट्रीट में ?” अदिति ने पूछा था.“तुम पहले ये पकौड़े दे आओ. खाना तो तैयार ही है. तुम्हें अच्छी सी चाय पिलाती हूँ?”“भाभी आप चाय लेकर बालकोनी में चलो, मैं पकोड़े देकर आती हूँ.” अदिति ने बड़े प्यार से विराज को कहा था.
“लॉकडाउन में भी इन्हें पाँच दिन का काम और दो दिन की छुट्टी मिल रही है, परन्तु हमें कब मिलती हैं छुट्टी? यदि कुछ कहूँगी तो एक ही उत्तर मिलेगा, तुम तो सारा दिन घर में आराम ही करती हो. हमें तो बड़ी मुश्किल से छुट्टियाँ मिलती हैं. उस समय दिल करता हैं की कह दूँ, यह आराम एक दिन के लिए तुम भी लेकर देखो .” “तो कहती क्यों नहीं ?” विराज को पता ही नहीं चला था कि कब उसके मन की आवाज जबान से निकलने लगी थी. अदिति ने सब सुन लिया था. उसके प्रश्न का उत्तर सोचने में विराज को समय लगा. अदिति भी पास आकर बैठ गयी और अपना प्रश्न दोहरा दिया था. इस बार विराज बोली थी.
“अब बात तो उनकी भी पूरी तरह से गलत नहीं हैं. ऑफिस में परेशानी तो कई तरह की होती ही हैं.” अब विराज का स्वर बदल गया था.
“पुरुषों से अपने कार्य के लिए सम्मान की अपेक्षा हम तभी कर सकते हैं जब स्वयं हम अपने कार्य को सम्मानित महसूस करे.” अदिति की आँखों में चमक थी. “हमारे कार्य का कोई आर्थिक महत्व नहीं हैं, सम्मान इस दुनिया में द्रव्य सम्बन्धी हैं.” विराज ने एक आह भरकर अपनी बात रखी थी.
“मैं ऐसा नहीं मानती. कामकाजी स्त्रियों को कौन सा सम्मान ज्यादा मिल जाता हैं? घर आकर उन्हें भी चूल्हा-चौकी की इस आग में जलना ही पड़ता हैं. बाहर से थक कर दोनों ही आते हैं, परन्तु पुरुष के हिस्से आती हैं टीवी का रिमोट और सोफे का आराम. स्त्री के हिस्से आती हैं रसोई और बच्चों की पढाई.” अदिति ने उसकी इस बात का खंडन किया था.
विराज उनकी बातों को अनमने भाव से सुन रही थी कि अनायास ही नीचे की फ्लैट से आ रही एक स्त्री की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था. विराज उसे नहीं जानती थी. कभी मिलने का समय ही नहीं मिल पाया था. वो और उसके पति दोनों ही इंजीनियर थें. कभी-कभी बालकोनी से उनके मध्य एक मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाया करता था.
वो किसी से फोन पर बात कर रही थी-“मेरी राय में इसमें मर्दों से ज्यादा औरतों की गलती हैं. दोष पुरुष पर डाल कर औरत अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती. बचपन से मर्द को यह बताया जाता हैं की तेरे सारे काम करने के लिए घर में एक स्त्री हैं. उसकी परवरिश ही ऐसी होती हैं की वो स्वभाववश ही आराम पसंद हो जाता हैं. कभी माँ, कभी बहन, कभी बीवी बन कर हम औरतें ही उन्हें आलसी बना देती हैं. अब जब मर्द को यह पता हो की, घर में औरत हैं उसका काम करने को तो फिर वो क्यों अपने शरीर को कष्ट देगा. आराम किसे बुरा लगता हैं? इसलिए वो तो काम नहीं करेगा, तुझे काम करवाना पड़ेगा. उसे समझाने से पहले तुझे खुद समझना होगा की तू भी इन्सान हैं और तुझे भी आराम की उतनी ही जरुरत हैं. तुझे क्या लगता हैं रवि  हमेशा से घर के काम में मेरी मदद करता था ! नहीं, उसे खाना बनाना मैंने सिखाया हैं. अब देख मुझे से भी अच्छी खीर बनाता है. चल अब फ़ोन रखती हूँ, रवि बुला रहा है.”
फ़ोन रख कर न मालूम किस भावना के वशीभूत होकर उसने ऊपर देखा. वहाँ दो जोड़ी आँखों को अपनी ओर घूरता पाया. उन आँखों में इर्ष्या और सम्मान का भाव एक साथ मौजूद था. इर्ष्या इसलिए कि जो बात वे अभी तक सोच भी नहीं पाई थी, उसे वो इतने अच्छे से समझ गयी थी. सम्मान इसलिए कि न केवल समझी थी अपितु अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी ले आई थी.उन दोनो की खामोशी ने एक दूसरे से संवाद कर लिया, और एक छोटी सी चिंगारी उसकी आँखों से विराज की आँखों में प्रवेश कर गयी थी. बिना किसी शोर के एक मूक क्रांति का जन्म हुआ था.वो अंदर चली गयी थी. अदिति और विराज दोनों चुप थें.
“मध्यम वर्ग की सोच में बदलाव एक क्रांति ही ला सकती हैं.” अदिति ने चुप्पी तोड़ी थी.“तब तक …” विराज ने प्रश्न ऐसे पूछा था जैसे उत्तर उसे पहले से पता हो.“जो जैसे चल रहा है, वैसे ही चलता रहेगा.” अदिति जैसे स्वयं को समझा रही थी.उसकी बात सुनकर विराज एक मुस्कान के साथ बोली, “ बात किसी वर्ग की नहीं हैं. बात सिर्फ इतनी है कि, जो तू कहता है, बात सही लगती हैं; पर वो मेरे नहीं तेरे होठों पर सजती है.”“आप कहना क्या चाहती हैं !?” अदिति के स्वर में उत्सुकता थी.
“समाज में सकारात्मक परिवर्तन के हम सभी पक्षधर हैं. परन्तु पहला कदम उठाने से डरते हैं.  बदलाव केवल क्रांति ही ला सकती हैं, यह एक भ्रान्ति हैं. आत्मविश्वास के साथ बढे हुए छोटे-छोटे कदम भी परिवर्तन ला सकते हैं.” “जैसे की …” अदिति को विराज की बातों ने जैसे सम्मोहित कर लिया था.
“बच्चों को खाने के लिए बुला लेते हैं.” विराज ने अनायास ही बातों का रुख बदल दिया.
दोनों ही वर्तमान में लौट आये थें.“हाँ, मैं आन्या को बुला लाती हूँ. खाना लगाने में मदद कर देगी.”
“क्यों?” विराज ने अदिति की तरफ बिना देखे पूछ लिया था.??? अदिति के चेहरे पर प्रश्न था.
“मानव क्या करेगा ? पुरुष होने की उत्कृष्टता का लाभ लेगा ! बदलाव अपनी परवरिश में लाना होगा. अपने बेटों को हुक्म देने वाला नहीं, साथ देने वाला पुरुष बनाना होगा, और अपनी बेटियों को गलत का विरोध करना सिखाना होगा. तुम समझ रही हो ना !?”
विराज के इन शब्दों ने जैसे अदिति पर जादू कर दिया था. पहला कदम लेना उतना मुश्किल भी नहीं था.
“भाभी, मैं अभी मानव और आन्या को बुला कर लाती हूँ. आज उन्हें मेज़ पर खाना लगाना सिखाते हैं” लगभग उछलती हुई अदिति अंदर की तरफ चली गयी थी. कुछ सोचकर विराज भी उस तरफ चल दी थी, आखिर बड़े बच्चे को भी तो उसका नया पाठ समझाना था.
जब विराज बैठक में पहुंची तो अमर किसी से फोन पर बात कर रहे थें. टी वी बंद था. बच्चें भी अपने कमरे में जा चुके थें. अमर की स्त्री स्वतंत्रता और सशक्तिकरण पर चर्चा अभी-अभी समाप्त हुई थी. पुरुष बॉस और स्त्री बॉस में कौन ज्यादा प्रभावी होता हैं; इस प्रिय विषय पर वाद-विवाद कई घंटों तक चला था. स्त्रियों की मानसिक क्षमता का भी आंकलन हो चुका था. अभी शेरों-शायरी का दौर जारी था और श्रीमान अमर जी एक शेर सुना रहे थें.
“एक उम्र गुजार दी तेरे शहर में, अजनबी हम आज भी हैं.तेरी ख्वाहिशों के नीचे, मेरे दम तोड़तें ख्वाब आज भी हैं….”अमर ने अपनी पंक्तियाँ अभी समाप्त ही की थी की विराज ने उन्ही पंक्तियों के साथ अपने शब्द जोड़ दिए थें …. “तेरे दर्वाज़ाऐ क़ल्ब पर दस्तक देते मेरे हाँथों को देखा हैं कभी
तेरी गर्म रोटी की चाह में झुलसे मेरे हाथ तब भी थे और आज भी हैं …”
अमर चौंक कर पलट गये थें. अपने स्वप्न में भी विराज से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद उन्होंने नहीं की थी. उन्होंने कंधे उचका कर विराज से कारण पूछा. बेपरवाह विराज ने उनके कान पर से फोन हटाया और कॉल काट दी. कमरे में तूफान के बाद वाली शांति पसर गयी थी.अपनी दम्भी आवाज़ में अमर ने पूछा था, “यह क्या हो रहा है विराज !?
 “कुछ नहीं! इस कोरोना फीवर ने मुझे दो बातें समझा दी हैं.”“अच्छा ! जरा मैं भी तो सुनूँ कौन-कौन सी !” अमर के स्वर में तल्खी थी. विराज सामने पड़े सोफ़े पर आराम से बैठकर बोली, “पहली तो ये कि सही शिक्षा किसी भी उम्र में दी जा सकती है; मात्र एक मंत्र पढ़ना है, तुम भी करो ना. दूसरी, फॅमिली टाइम घर की स्त्रियों के लिये भी होता है. घर सभी का तो घर के काम मात्र स्त्री के क्यों ! मुसीबत तो सब पर आयी है, तो उसका सामना भी तो सबको मिलकर ही करना होगा.”
इतना कहकर विराज ने पलट कर पीछे देखा. आन्या और अदिति मेज पर खाना लगा रहे थें और मानव ग्लासों में पानी भर रहा था. अमर की नजर भी विराज की नजर का पीछा करते हुये उधर ही चली गयी थी.
“सुनो !” विराज की आवाज पर अमर ने उसकी तरफ देखा.“खाना तैयार हैं, मेज़ पर लगा दिया हैं. अदिति अपना और मेरा खाना यहीं ले आयेगी.”
अमर चुपचाप अंदर की तरफ जाने लगा था कि विराज ने फिर पुकारा-“सुनो ! बड़े बर्तन तो मैंने धो दिये थें. अपने और बच्चों के बर्तन धोकर अलमारी में रख देना.” इतना कहकर बिना अमर की तरफ देखे, विराज टी वी खोलकर अपना धारावाहिक देखने में तल्लीन हो गयी थी. घर में करो ना क्रांति का बिगुल बज चुका था. टीवी से आवाज़ आ रही थी.
 राजकुमार कुछ देर तक राजकुमारी के विचार परिवर्तन की राह देखता रहा. वह उनके कोमल ह्रदय को लेकर विश्वस्त था. परन्तु राजकुमारी की अनभिज्ञता उसे व्यग्र कर रही थी. उसकी निर्निमेष दृष्टि से अविचलित राजकुमारी अपनी सखियों के साथ आखेट में व्यस्त थी. राजकुमारी की ना को हाँ में बदलने का दम्भ जो उसने अपने मित्रों के सामने भरा था, वह दम तोड़ रहा था. थके क़दमों से वह आगे बढ़ गया था. इस परिवर्तन को उसने अनमने भाव से स्वीकार कर लिया था. अपनी गले में लटकती माला से खेलती हुयी राजकुमारी भी जानती थी कि यह पहला सबक था, पूरी शिक्षा अभी शेष थी.

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April 01, 2020 at 10:00AM

आंखों में इंद्रधनुष:भाग2

‘‘वे रंग कहां मिलेंगे?’’ गुलाबी रंग वाली लड़की ने उत्साह से उस के हाथ को दोनों हाथों से पकड़ कर जोर से दबा दिया, ‘‘चलो, मुझे वहां ले चलो. मैं उन रंगों को भी अपने तनमन में बसा लेना चाहती हूं.’’ लड़की सचमुच बहुत भोली थी और काले रंग की चाल को नहीं समझ पा रही थी. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष बसा लेती हैं तो उन की आंखों में जीवन के वास्तविक रंग खो जाते हैं और वे ऐसे काल्पनिक रंगों की विविधता में खो जाती हैं कि उन को पाने के चक्कर में अपना बहुतकुछ गंवा देती हैं.

काले रंग ने उसे अपने रंग में रंगते हुए कहा, ‘‘इन रंगों को पाने के लिए हमें एकांत की अंधेरी गलियों में जाना होगा. वहां हमें कुछ दिखाई नहीं देगा, परंतु हम अपने हाथों से उन रंगों को प्राप्त कर सकते हैं. अगर तुम सहमत हो तो हम चलें और उन रंगों को खोज कर अपने हाथों से अपने तनबदन में भर लें. देखना, बहुत अच्छे लगेंगे तुम को वे रंग, जब वे तुम्हारी पकड़ में आ जाएंगे.’’ गुलाबी रंग वाली लड़की को काले रंग की मंशा का अंदाजा नहीं था. वह बस जीवन को सुख प्रदान करने वाले कुछ और रंगों को अपने तनबदन में समेट लेना चाहती थी. इंद्रधनुष के रंग उस की आंखों में कम पड़ने लगे थे. अब उसे उन रंगों की तलाश थी जो उस के तनबदन से लिपट कर उसे जीवन के अभी तक अपरिचित सुख से सराबोर कर दें. वह भोली थी, परंतु उत्सुक थी. और जहां ये दोनों चीजें हों वहां बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती, सतर्कता नाम की किसी चीज से इन का कोई वास्ता नहीं होता.

और फिर अपनी आंखों में इंद्रधनुष लिए वह यहांवहां भटकती रही. जंगल के वीरान सन्नाटे में, होटल के बदबूदार नीमअंधेरे कमरे में, बगीचों के पौधों के पीछे की नरम मिट्टी पर उगी गुदगुदी घास पर और न जाने कहांकहां. उसे जीवन के सुखद रंगों की तलाश थी और इस तलाश में वह बहुतकुछ भूल गई थी, अपने घरपरिवार को, नातेरिश्तेदारों को, सगेसंबंधियों को और कालेज के दोस्तों को… उसे कुछ रंग पाने थे. वे रंग जिन को उस ने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था. वह उस काले रंग के माध्यम से उन रंगों को खोजने निकली थी, परंतु वह स्वयं भटक गई थी, ऐसी अंधेरी गलियों में जहां काले रंग ने अपने खुरदरे हाथों से उस के बदन में कुछ ऐसे बीज बो दिए थे, जो धीरेधीरे उग रहे थे और उस के बदन में कुछ ऐसी मिठास भर रहे थे कि वह दिनोदिन मदहोश होती जा रही थी.

उस के होशहवास गुम थे और उसे पता नहीं था कि वह किस दुनिया में विचरण कर रही थी. परंतु जो भी हो रहा था, उसे अच्छा लग रहा था. फिर एक दिन काले रंग ने उस के बदन के सारे रंग चुरा लिए और उस के अंदर एक काला रंग भर दिया. गुलाबी रंग को पता नहीं चला कि उसे सुख प्रदान करने वाले कौन से रंग प्राप्त हुए थे, परंतु ये जो भी रंग थे, उसे सुखद ही लग रहे थे. उन रंगों को वह पहचान नहीं पा रही थी और शायद जीवन के अंत तक न पहचान पाए, परंतु इन बदरंग रंगों में खोने का उसे कोई अफसोस नहीं था. उस की आंखों के इंद्रधनुष में काला रंग पूरी तरह से घटाओं की तरह छा गया और वह भी उन घटाओं की फुहारों में भीग कर प्रफुल्लित अनुभव कर रही थी.

एक दिन गुलाबी रंग के अंदर एक दूसरा काला रंग उभरने लगा. वह चिंतित हुई और उस ने काले रंग को इस संबंध में बताया कि वह अपने अंदर कुछ परिवर्तन अनुभव कर रही थी और उसे लग रहा था कि उस के अंदर एक काला रंग धीरेधीरे कागज पर फैली स्याही की तरह फैलने लगा था. काला रंग थोड़ी देर के लिए सन्न सा रह गया. उस ने अविश्वसनीय भाव से गुलाबी रंग को देखा, उस की आंखों में इंद्रधनुष ढूंढ़ने का प्रयास किया, परंतु उस की आंखों का इंद्रधनुष फीका सा लगा. वह भयभीत हो गया, परंतु चतुराई से उस ने अपने चेहरे के भावों को गुलाबी रंग वाली लड़की से छिपा लिया. फिर धीरे से जमीन की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ. तुम ठीक हो.’’

‘‘नहीं, कुछ तो हुआ है. मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी घर कर गई है. मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता. मेरे शरीर में कुछ परिवर्तन हो रहा है, जिसे मैं ठीक से समझ नहीं पा रही हूं.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है. तुम ने ढेर सारे रंग एकसाथ अपने हाथों से समेट कर अपने बदन में भर लिए हैं, इसीलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘काश, सबकुछ ठीक हो जाए, परंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं? मेरे घर वाले भी अब तो और ज्यादा सतर्क व चौकन्ने हो कर मेरी हरकतों पर नजर रख रहे हैं. उन की आंखों में ऐसे रंग उभर आते हैं कि कभीकभी मैं डर जाती हूं,’’ उस ने काले रंग को जोर से पकड़ते हुए कहा. काला रंग यह बात सुन कर और अधिक भयभीत हो गया. अगर गुलाबी रंग के घर वालों को सबकुछ पता चल गया तो उस का क्या होगा? वह तो बेमौत मारा जाएगा. वे लोग पता नहीं क्या करेंगे उस के साथ? कहीं यह मासूम लड़की घर वालों के दबाव में आ कर सबकुछ बता न दे. उस ने लड़की की पकड़ से धीरे से अपने को छुड़ाया और चौकन्नी निगाहों से चारों तरफ इस तरह देखने लगा जैसे उसी वक्त वहां से भाग जाना चाहता हो.

उस दिन लड़की को ढेर सारी सांत्वना और झूठे आश्वासन दे कर उस ने अपने को उस के चंगुल से छुड़ाया और फिर वह काला रंग पता नहीं कहां गुम हो गया. प्रत्यक्ष रूप से तो वह अवश्य लुप्त हो गया था परंतु पूरी तरह से कैसे गुम हो सकता था? उस का प्रतिरूप लड़की के अंदर धीमी गति से अपने पैर पसारने लगा था और गुलाबी रंग वाली लड़की यह बात अच्छी तरह समझ गई थी कि उस के जीवन में अब कुछ ठीक नहीं होने वाला था. अपनी निगाहों और हाथों से सुख प्रदान करने वाले जितने रंग उस ने पकड़ कर अपने बदन में भरे थे, वे सारे पिघल कर बह गए थे और अब केवल एक ही रंग बचा था, जो उस के अंदर धीरेधीरे गाढ़ा होता जा रहा था, वह था काला रंग.

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‘‘वे रंग कहां मिलेंगे?’’ गुलाबी रंग वाली लड़की ने उत्साह से उस के हाथ को दोनों हाथों से पकड़ कर जोर से दबा दिया, ‘‘चलो, मुझे वहां ले चलो. मैं उन रंगों को भी अपने तनमन में बसा लेना चाहती हूं.’’ लड़की सचमुच बहुत भोली थी और काले रंग की चाल को नहीं समझ पा रही थी. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष बसा लेती हैं तो उन की आंखों में जीवन के वास्तविक रंग खो जाते हैं और वे ऐसे काल्पनिक रंगों की विविधता में खो जाती हैं कि उन को पाने के चक्कर में अपना बहुतकुछ गंवा देती हैं.

काले रंग ने उसे अपने रंग में रंगते हुए कहा, ‘‘इन रंगों को पाने के लिए हमें एकांत की अंधेरी गलियों में जाना होगा. वहां हमें कुछ दिखाई नहीं देगा, परंतु हम अपने हाथों से उन रंगों को प्राप्त कर सकते हैं. अगर तुम सहमत हो तो हम चलें और उन रंगों को खोज कर अपने हाथों से अपने तनबदन में भर लें. देखना, बहुत अच्छे लगेंगे तुम को वे रंग, जब वे तुम्हारी पकड़ में आ जाएंगे.’’ गुलाबी रंग वाली लड़की को काले रंग की मंशा का अंदाजा नहीं था. वह बस जीवन को सुख प्रदान करने वाले कुछ और रंगों को अपने तनबदन में समेट लेना चाहती थी. इंद्रधनुष के रंग उस की आंखों में कम पड़ने लगे थे. अब उसे उन रंगों की तलाश थी जो उस के तनबदन से लिपट कर उसे जीवन के अभी तक अपरिचित सुख से सराबोर कर दें. वह भोली थी, परंतु उत्सुक थी. और जहां ये दोनों चीजें हों वहां बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती, सतर्कता नाम की किसी चीज से इन का कोई वास्ता नहीं होता.

और फिर अपनी आंखों में इंद्रधनुष लिए वह यहांवहां भटकती रही. जंगल के वीरान सन्नाटे में, होटल के बदबूदार नीमअंधेरे कमरे में, बगीचों के पौधों के पीछे की नरम मिट्टी पर उगी गुदगुदी घास पर और न जाने कहांकहां. उसे जीवन के सुखद रंगों की तलाश थी और इस तलाश में वह बहुतकुछ भूल गई थी, अपने घरपरिवार को, नातेरिश्तेदारों को, सगेसंबंधियों को और कालेज के दोस्तों को… उसे कुछ रंग पाने थे. वे रंग जिन को उस ने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था. वह उस काले रंग के माध्यम से उन रंगों को खोजने निकली थी, परंतु वह स्वयं भटक गई थी, ऐसी अंधेरी गलियों में जहां काले रंग ने अपने खुरदरे हाथों से उस के बदन में कुछ ऐसे बीज बो दिए थे, जो धीरेधीरे उग रहे थे और उस के बदन में कुछ ऐसी मिठास भर रहे थे कि वह दिनोदिन मदहोश होती जा रही थी.

उस के होशहवास गुम थे और उसे पता नहीं था कि वह किस दुनिया में विचरण कर रही थी. परंतु जो भी हो रहा था, उसे अच्छा लग रहा था. फिर एक दिन काले रंग ने उस के बदन के सारे रंग चुरा लिए और उस के अंदर एक काला रंग भर दिया. गुलाबी रंग को पता नहीं चला कि उसे सुख प्रदान करने वाले कौन से रंग प्राप्त हुए थे, परंतु ये जो भी रंग थे, उसे सुखद ही लग रहे थे. उन रंगों को वह पहचान नहीं पा रही थी और शायद जीवन के अंत तक न पहचान पाए, परंतु इन बदरंग रंगों में खोने का उसे कोई अफसोस नहीं था. उस की आंखों के इंद्रधनुष में काला रंग पूरी तरह से घटाओं की तरह छा गया और वह भी उन घटाओं की फुहारों में भीग कर प्रफुल्लित अनुभव कर रही थी.

एक दिन गुलाबी रंग के अंदर एक दूसरा काला रंग उभरने लगा. वह चिंतित हुई और उस ने काले रंग को इस संबंध में बताया कि वह अपने अंदर कुछ परिवर्तन अनुभव कर रही थी और उसे लग रहा था कि उस के अंदर एक काला रंग धीरेधीरे कागज पर फैली स्याही की तरह फैलने लगा था. काला रंग थोड़ी देर के लिए सन्न सा रह गया. उस ने अविश्वसनीय भाव से गुलाबी रंग को देखा, उस की आंखों में इंद्रधनुष ढूंढ़ने का प्रयास किया, परंतु उस की आंखों का इंद्रधनुष फीका सा लगा. वह भयभीत हो गया, परंतु चतुराई से उस ने अपने चेहरे के भावों को गुलाबी रंग वाली लड़की से छिपा लिया. फिर धीरे से जमीन की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ. तुम ठीक हो.’’

‘‘नहीं, कुछ तो हुआ है. मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी घर कर गई है. मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता. मेरे शरीर में कुछ परिवर्तन हो रहा है, जिसे मैं ठीक से समझ नहीं पा रही हूं.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है. तुम ने ढेर सारे रंग एकसाथ अपने हाथों से समेट कर अपने बदन में भर लिए हैं, इसीलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘काश, सबकुछ ठीक हो जाए, परंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं? मेरे घर वाले भी अब तो और ज्यादा सतर्क व चौकन्ने हो कर मेरी हरकतों पर नजर रख रहे हैं. उन की आंखों में ऐसे रंग उभर आते हैं कि कभीकभी मैं डर जाती हूं,’’ उस ने काले रंग को जोर से पकड़ते हुए कहा. काला रंग यह बात सुन कर और अधिक भयभीत हो गया. अगर गुलाबी रंग के घर वालों को सबकुछ पता चल गया तो उस का क्या होगा? वह तो बेमौत मारा जाएगा. वे लोग पता नहीं क्या करेंगे उस के साथ? कहीं यह मासूम लड़की घर वालों के दबाव में आ कर सबकुछ बता न दे. उस ने लड़की की पकड़ से धीरे से अपने को छुड़ाया और चौकन्नी निगाहों से चारों तरफ इस तरह देखने लगा जैसे उसी वक्त वहां से भाग जाना चाहता हो.

उस दिन लड़की को ढेर सारी सांत्वना और झूठे आश्वासन दे कर उस ने अपने को उस के चंगुल से छुड़ाया और फिर वह काला रंग पता नहीं कहां गुम हो गया. प्रत्यक्ष रूप से तो वह अवश्य लुप्त हो गया था परंतु पूरी तरह से कैसे गुम हो सकता था? उस का प्रतिरूप लड़की के अंदर धीमी गति से अपने पैर पसारने लगा था और गुलाबी रंग वाली लड़की यह बात अच्छी तरह समझ गई थी कि उस के जीवन में अब कुछ ठीक नहीं होने वाला था. अपनी निगाहों और हाथों से सुख प्रदान करने वाले जितने रंग उस ने पकड़ कर अपने बदन में भरे थे, वे सारे पिघल कर बह गए थे और अब केवल एक ही रंग बचा था, जो उस के अंदर धीरेधीरे गाढ़ा होता जा रहा था, वह था काला रंग.

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April 01, 2020 at 10:00AM

लॉकडाउन तोड़ने वाले कोरोना को समझ रहे टेपा... असल में वे खुद हैं आज के टेपा

अखबार में नौकरी कर ली, जिसके आप पीर-बावर्ची हैं। लेकिन जहां संपादक का नाम छपता है, वहां से आपका नाम गायब है।

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ग्रेजुएट के लिए नौकरी पाने का शानदार मौका, यहां करें अप्लाई

नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के लिए नौकरी का शानदार मौका सामने आया है दरअसल हैवी इंजीनियरिंग निगम लिमिटेड ...

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Horoscope Today, 1 april: जानें कैसा रहेगा आज आपका दिन?

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नीरज की आई निगेटिव रिपोर्ट, गुरुग्राम में नौकरी करने वाले युवक को किया ...

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कोरोना के बाद आर्थिक बदहाली, ख़तरे में पड़ेगा 13 करोड़ लोगों का रोज़गार

ये असंगठित क्षेत्र के मज़दूर हैं जो अस्थायी तौर पर, ठेके पर छोटी-मोटी नौकरी करते हैं या दिहाड़ी मज़दूरी करते ...

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BSEB 10th Result

राज्य / कैटेगरी अनुसार नौकरी ...

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दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी में नौकरी का मौका, 10वीं और 12वीं पास करें ...

सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे 10वीं और 12वीं पास युवाओं के लिए दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी ने भर्तियां निकाली हैं.

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राशिफल 1 अप्रैल: किन राशि वालों के लिए शुभ है महाष्टमी का दिन

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बिना परीक्षा के सरकारी नौकरी पाने का सुनहरा मौका, सैलरी होगी 40 हजार ...

इस नौकरी के लिए उम्मीदवारों का चयन मेरिट लिस्ट के हिसाब से होगा। आप इन पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

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कोरोनाः तेलंगाना से अलीगढ़ लौटे युवक समेत चार संक्रमण के शक में भर्ती ...

जवां क्षेत्र का 22 वर्षीय युवक तेलंगाना में नौकरी करता है। पिछले दिनों वापस लौटा। पड़ोसियों ने उसके बीमार ...

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शादी से एक महीने पहले ठेकेदार के इंजीनियर बेटे ने लगाई फांसी

विक्की नौकरी ज्वाइन करने के बाद शादी करना चाहता था, लेकिन उसके पिता ने तिलक और बारात की तीथि तय कर दी थी।

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ग्रेजुएट्स के लिए नौकरी का मौका, नेशनल बुक ट्रस्ट में करें आवेदन

नेशनल बुक ट्रस्ट ने कई पदों पर नौकरी के लिए आवेदन मांगा है. इन पदों में पीआर असिस्टेंट, कंसल्टेंट, प्रोडक्शन ...

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लॉ स्टूडेंट्स के लिए नौकरी का मौका, बिहार लोक सेवा आयोग ने मांगे हैं ...

अगर आपने कानून की पढ़ाई की है और सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे हैं तो ये खबर आपके काम की है. पटना: बिहार लोकसेवा ...

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डीआरडीओ नौकरी

DRDO CVRDE vacancy 2020: कॉम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट में अप्रेंटिस के 116 पदों के लिए ...

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दुबई में भारतीय डिलीवरी मैन मुरली शांबंथम कोविद

दुनिया भर में छाए कोरोनासिस के दौरान अपने देश भारत से दूर दुबई में प्रवासी मजदूर मुरली शबनम और हुर की तरह काम ...

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पुलिस की नौकरी + 17 साल कोचिंग= 280 नेशनल प्लेयर

23 साल से पुलिस की नौकरी कर... Apr 01, 2020, 06:37 AM IST. Bhilai News - chhattisgarh news police job 17 years coaching 280 national player.

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रत्‍नागिरी गैस एवं पॉवर लिमिटेड विभिन्‍न पदों की भर्ती

अपने लिए सरकारी नौकरी यहाँ से खोजें. 5वीं पास के लिए सरकारी नौकरी · 8वीं पास के लिए सरकारी नौकरी · 10वीं पास ...

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पंजाब सरकार नौकरी भर्ती आवेदन की तिथि बढ़ा दी गई

CHANDIGARH: पंजाब सरकार ने राज्य सरकार के अधीन सभी विभागों, पीएसयू, स्वायत्त निकायों, विश्वविद्यालयों, ...

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लॉकडाउन का दूध कारोबार पर सीधा असर, यहां जानिए किस तरह खपत कर रहे हैं दूध ...

... आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का है, जो नौकरी, कारोबार या फिर बच्चों की शिक्षा के लिए रह रहे हैं।

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NIEIT Recruitment: वैज्ञानिक के पदों पर नौकरी

NIEIT Recruitment 2020: कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है, लेकिन इस दौरान आप नौकरी की तलाश कर रहे हैं तो ...

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कोरोना और कर्फ्यू: पंजाब में कंपनियां करने लगी हैं छंटनी, आईटी कंपनी ने ...

वहीं, अब उनकी नौकरी से छुट्टी कर दी है। पीड़ितों इस संबंधी जिला प्रशासन से गुहार लगाई है। विज्ञापन. मुलाजिमों ...

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uttarakhand lockdown update : अब कभी अपना पहाड़ छोड़कर नहीं जाऊंगा, कोई भी काम ...

और जिस नौकरी को सहारा समझते थे वो लॉकडाउन होते ही छूट गई। ऐसे में खाने और रहने का संकट खड़ा हुआ तो सोचा कि अब ...

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सरकार नौकरी

सरकार नौकरी. एजुकेशन. March 30, 2020 ...

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स्नातकों के लिए सुनहरा मौका, नेशनल बुक ट्रस्ट में नौकरी के लिए आज ही ...

उम्मीदवारों को विज्ञापन लिंक के साथ-साथ आवेदन लिंक भी आगे की स्लाइड में मिल जाएगा। नौकरी से संबंधित ...

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‍✈️सरकारी नौकरी की तैयारी Images ​TUDY ​ORLD

सरकारी नौकरी की तैयारी - विज्ञान जीव विज्ञान तथा जंतु विज्ञान का जनक - अरस्तु जीव विज्ञान शब्द का सर्वप्रथम ...

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Police Recruitment 2020: यहां निकली पुलिस विभाग में भर्ती, जानें कितनी ...

Police Recruitment 2020: पुलिस विभाग में नौकरी के लिए भर्ती का इंतजार कर रहे युवाओं के लिए सुनहरा मौका आया है.

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एच -1 बी कार्यकर्ता 60 से 180 दिनों तक नौकरी के बाद की सीमा के विस्तार की ...

वर्तमान संघीय नियमों को नौकरी छोड़ने के 60 दिनों के भीतर अपने परिवार के सदस्यों के साथ अमेरिका छोड़ने के ...

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Corona Changed job to save life in lockdown effect - कोरोना

कोरोना : लॉकडाउन में जिन्दगी बचाने को बदल रहे नौकरी, जानें अब क्या करने लगे लोग. job. अनीस,जमशेदपुर। Updated: Tue ...

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लमहों ने खता की थी: भाग 3

‘‘मैं सन्न रह गई थी संजय की बातें सुन कर. क्या यही सब सुनने के लिए मैं मौडर्न, फौरवर्ड और बोल्ड बनी थी? आज कई साल पहले कालेज में एक विदुषी लेखिका का भाषण का एक वाक्य याद आने लगा, ‘हमें नारी मुक्ति चाहिए, मुक्त नारी नहीं,’ और इन दोनों की स्थितियों में अंतर भी समझ में आ गया.

‘‘मैं ने इस स्थिति में एक प्रख्यात नारी सामाजिक कार्यकर्ता से बात की तो वह बड़ी जोश में बोली कि परिवार के लोगों और युगयुगों से चली आ रही सामाजिक संस्था विवाह की अवहेलना कर के और वयस्क होने तथा विरोध नहीं करने पर भी शारीरिक संबंध बनाना स्वार्थी पुरुष का नारी के साथ भोग करना बलात्कार ही है. इस के लिए वह अपने दल को साथ ले कर संजय के विरुद्ध जुलूस निकालेगी, उस का घेराव करेगी, उस के कालेज पर प्रदर्शन करेगी. इस में मुझे हर जगह संजय द्वारा किए गए इस बलात्कार की स्वीकृति देनी होगी. इस तरह वह संजय को विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने को बलात्कार सिद्ध कर के उसे मुझ से कानूनन और सामाजिक स्वीकृति सम्मत विवाह करने के लिए विवश कर देगी अथवा एक बड़ी रकम हरजाने के रूप में दिलवा देगी, मगर इस के लिए मुझे कुछ पैसा लगभग 20 हजार रुपए खर्च करने होंगे. सामाजिक कार्यकर्ता की बात सुन कर मुझे लगा कि मुझे अपनी मूर्खता और निर्लज्जता का ढिंढोरा खुद ही पीटना है और उस के कार्यक्रम के लिए मुझे ही एक जीवित मौडल या वस्तु के रूप में इस्तेमाल होने के लिए कहा जा रहा है.

‘‘इस के बाद मैं ने एक प्रौढ़ महिला वकील से संपर्क किया जो वकील से अधिक सलाहकार के रूप में मशहूर थीं. उन्होंने साफ कह दिया, ‘अगर संजय को कानूनी प्रक्रिया में घसीट कर उस का नाम ही उछलवाना है तो वक्त और पैसा बरबाद करो. अदालत में संजय का वकील तुम से संजय के संपर्क से पूर्व योनि शुचिता के नाम पर किसी अन्य युवक के साथ शारीरिक संबंध नहीं होने के बारे में जो सवाल करेगा, उस से तुम अपनेआप को सब के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र खड़ा हुआ महसूस करोगी. मैं यह राय तुम्हें सिर्फ तुम से उम्र में बड़ी होने के नाते एक अभिभावक की तरह दे रही हूं.

‘अगर तुम किसी तरह अदालत में यह साबित करने में सफल भी हो गईं कि यह बच्चा संजय का ही है और संजय ने उसे सामाजिक रूप से अपना नाम दे भी दिया तो जीवन में हरदम, हरकदम पर कानून से ही जूझती रहोगी क्या. देखो, जिन संबंधों की नींव ही रेत में रखी गई हो उन की रक्षा कानून के सहारे से नहीं हो पाएगी. यह मेरा अनुभव है. तुम्हारा एमबीए पूरा हो रहा है. तुम्हारा एकेडैमिक रिकौर्ड काफी अच्छा है. मेरी सलाह है कि तुम अपने को मजबूत बनाओ और बच्चे को जन्म दो. एकाध साल तुम्हें काफी संघर्ष करना पड़ेगा. 3 साल के बाद बच्चा तुम्हारी प्रौब्लम नहीं रहेगा. फिर अपना कैरियर और बच्चे का भविष्य बनाने के लिए तुम्हारे सामने जीवन का विस्तृत क्षेत्र और पूरा समय होगा.’

‘‘‘मगर जब कभी बच्चा उस के पापा के बारे में पूछेगा तो…’ मैं ने थोड़ा कमजोर पड़ते हुए कहा था तो महिला वकील ने कहा था, ‘मैं तुम से कोई कड़वी बात नहीं कहना चाहती मगर यह प्रश्न उस समय भी अपनी जगह था जब तुम ने युगयुगों से स्थापित सामाजिक, पारिवारिक, संस्था के विरुद्ध एक अपरिपक्व भावुकता में मौडर्न तथा बोल्ड बन कर निर्णय लिया था. मगर अब तुम्हारे सामने दूसरे विकल्प कई तरह के जोखिमों से भरे हुए होंगे. क्योंकि प्रैग्नैंसी को समय हो गया है. वैसे अब बच्चे के अभिभावक के रूप में मां के नाम को प्राथमिकता और कानूनी मान्यता मिल गई है. बाकी कुछ प्रश्नों का जवाब वक्त के साथ ही मिलेगा. वक्त के साथ समस्याएं स्वयं सुलझती जाती हैं.’’’

इतना सब कह कर रिया शायद थकान के कारण चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर वह फिर बोली, ‘‘मुझे लगता है आज समय वह विराट प्रश्न ले कर खड़ा हो गया है, मगर उस का समाधान नहीं दे रहा है. शायद ऐसी ही स्थिति के लिए किसी ने कहा होगा, ‘लमहों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई,’’’ यह कह कर उस ने बड़ी बेबस निगाहों से मिसेज पाटनकर को देखा. मिसेज पाटनकर किसी गहरी सोच में थीं. अचानक उन्होंने रिया से पूछा, ‘‘संजय का कोई पताठिकाना…’’ रिया उन की बात पूरी होने के पहले ही एकदम उद्विग्न हो कर बोली, ‘‘मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं मिसेज पाटनकर, मगर मुझे संजय से कोई मदद या समझौता नहीं चाहिए, प्लीज.’’

‘‘मैं तुम से संजय से मदद या समझौते के लिए नहीं कह रही, पर पिऊ के प्रश्न के उत्तर के लिए उस के बारे में कुछ जानना तो होगा. जो जानती हो वह बताओ.’’

‘‘उस का सिलेक्शन कैंपस इंटरव्यू में हो गया था. पिछले 4-5 साल से वह न्यूयार्क के एक बैंक में मैनेजर एचआरडी का काम कर रहा था. बस, इतना ही मालूम है मुझे उस के बारे में किसी कौमन फ्रैंड के जरिए से,’’ रिया ने मानो पीछा छुड़ाने के लिए कहा. रिया की बात सुन कर मिसेज पाटनकर कुछ देर तक कुछ सोचती रहीं, फिर बोलीं, ‘‘हां, अब मुझे लगता है कि समस्या का हल मिल गया है. तुम्हें और संजय को अलग हुए 6-7 साल हो गए हैं. इस बीच में तुम्हारा उस से कोई संबंध तो क्या संवाद तक नहीं हुआ है.

‘‘उस के बारे में बताया जा सकता है कि वह न्यूयार्क में रहता था. वहीं काम करता था. वहां किसी विध्वंसकारी आतंकवादी घटना के बाद उस का कोई पता नहीं चल सका कि वह गंभीर रूप से घायल हो कर पहचान नहीं होने से किसी अस्पताल में अनाम रोगी की तरह भरती है या मारा गया. अस्पताल के मनोचिकित्सक को यही बात पिऊ के पापा के बारे में बता देते हैं. वे अपनेआप जिस तरह और जितना चाहेंगे पिऊ को होश आने पर उस के पापा के बारे में अपनी तरह से बता देंगे और आज से यही औफिशियल जानकारी होगी पिऊ के पापा के बारे में.’’

‘‘लेकिन जब कभी पिऊ को यह पता चलेगा कि यह झूठ है तो?’’ कह कर रिया ने बिलकुल एक सहमी हुई बच्ची की तरह मिसेज पाटनकर की ओर देखा तो वे बोलीं, ‘‘रिया, वक्त अपनेआप सवालों के जवाब खोजता है. अभी पिऊ को नर्वस ब्रैकडाउन से बचाना सब से बड़ी जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप ठीक समझें. पिऊ ठीक हो जाएगी न, मिसेज पाटनकर?’’ रिया ने डूबती हुई आवाज में कहा.

‘‘पिऊ बिलकुल ठीक हो जाएगी, मगर एक शर्त रहेगी.’’

‘‘क्या, मुझे आप की हर शर्त मंजूर है. बस, पिऊ…’’

‘‘सुन तो ले,’’ मिसेज पाटनकर बोलीं, ‘‘अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पिऊ स्वस्थ होने तक मेरे पास रहेगी और बाद में भी तुम्हारी अनुपस्थिति में वह हमेशा अपनी दादी के पास रहेगी. बोलो, मंजूर है?’’ उन्होंने ममतापूर्ण दृष्टि से रिया को देखा तो रिया डूबती सी आवाज में ही बोली, ‘‘आप पिऊ की दादी हैं या नानी, मैं कह नहीं सकती. मगर अब मुझे लग रहा है कि मेरे कुछ मूर्खतापूर्ण भावुक लमहों की जो लंबी सजा मुझे भोगनी है उस के लिए मुझे आप जैसी ममतामयी और दृढ़ महिला के सहारे की हर समय और हर कदम पर जरूरत होगी. आप मुझे सहारा देंगी न? मुझे अकेला तो नहीं छोड़ेंगी, बोलिए?’’ कह कर उस ने मिसेज पाटनकर का हाथ अपने कांपते हाथों में कस कर पकड़ लिया.

‘‘रिया, मुझे तो पिऊ से इतना लगाव हो गया है कि मैं तो खुद उस के बिना रहने की कल्पना कर के भी दुखी हो जाती हूं. मैं हमेशा तेरे साथ हूं. पर अभी इस वक्त तू अपने को संभाल जिस से हम दोनों मिल कर पिऊ को संभाल सकें. अभी मेरा हाथ छोड़ तो मैं यहां से जा कर मनोचिकित्सक को सारी बात बता सकूं,’’ कह कर उन्होंने रिया के माथे को चूम कर उसे आश्वस्त किया, बड़ी नरमी से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया और डाक्टर के कमरे की ओर चल पड़ीं.

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‘‘मैं सन्न रह गई थी संजय की बातें सुन कर. क्या यही सब सुनने के लिए मैं मौडर्न, फौरवर्ड और बोल्ड बनी थी? आज कई साल पहले कालेज में एक विदुषी लेखिका का भाषण का एक वाक्य याद आने लगा, ‘हमें नारी मुक्ति चाहिए, मुक्त नारी नहीं,’ और इन दोनों की स्थितियों में अंतर भी समझ में आ गया.

‘‘मैं ने इस स्थिति में एक प्रख्यात नारी सामाजिक कार्यकर्ता से बात की तो वह बड़ी जोश में बोली कि परिवार के लोगों और युगयुगों से चली आ रही सामाजिक संस्था विवाह की अवहेलना कर के और वयस्क होने तथा विरोध नहीं करने पर भी शारीरिक संबंध बनाना स्वार्थी पुरुष का नारी के साथ भोग करना बलात्कार ही है. इस के लिए वह अपने दल को साथ ले कर संजय के विरुद्ध जुलूस निकालेगी, उस का घेराव करेगी, उस के कालेज पर प्रदर्शन करेगी. इस में मुझे हर जगह संजय द्वारा किए गए इस बलात्कार की स्वीकृति देनी होगी. इस तरह वह संजय को विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने को बलात्कार सिद्ध कर के उसे मुझ से कानूनन और सामाजिक स्वीकृति सम्मत विवाह करने के लिए विवश कर देगी अथवा एक बड़ी रकम हरजाने के रूप में दिलवा देगी, मगर इस के लिए मुझे कुछ पैसा लगभग 20 हजार रुपए खर्च करने होंगे. सामाजिक कार्यकर्ता की बात सुन कर मुझे लगा कि मुझे अपनी मूर्खता और निर्लज्जता का ढिंढोरा खुद ही पीटना है और उस के कार्यक्रम के लिए मुझे ही एक जीवित मौडल या वस्तु के रूप में इस्तेमाल होने के लिए कहा जा रहा है.

‘‘इस के बाद मैं ने एक प्रौढ़ महिला वकील से संपर्क किया जो वकील से अधिक सलाहकार के रूप में मशहूर थीं. उन्होंने साफ कह दिया, ‘अगर संजय को कानूनी प्रक्रिया में घसीट कर उस का नाम ही उछलवाना है तो वक्त और पैसा बरबाद करो. अदालत में संजय का वकील तुम से संजय के संपर्क से पूर्व योनि शुचिता के नाम पर किसी अन्य युवक के साथ शारीरिक संबंध नहीं होने के बारे में जो सवाल करेगा, उस से तुम अपनेआप को सब के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र खड़ा हुआ महसूस करोगी. मैं यह राय तुम्हें सिर्फ तुम से उम्र में बड़ी होने के नाते एक अभिभावक की तरह दे रही हूं.

‘अगर तुम किसी तरह अदालत में यह साबित करने में सफल भी हो गईं कि यह बच्चा संजय का ही है और संजय ने उसे सामाजिक रूप से अपना नाम दे भी दिया तो जीवन में हरदम, हरकदम पर कानून से ही जूझती रहोगी क्या. देखो, जिन संबंधों की नींव ही रेत में रखी गई हो उन की रक्षा कानून के सहारे से नहीं हो पाएगी. यह मेरा अनुभव है. तुम्हारा एमबीए पूरा हो रहा है. तुम्हारा एकेडैमिक रिकौर्ड काफी अच्छा है. मेरी सलाह है कि तुम अपने को मजबूत बनाओ और बच्चे को जन्म दो. एकाध साल तुम्हें काफी संघर्ष करना पड़ेगा. 3 साल के बाद बच्चा तुम्हारी प्रौब्लम नहीं रहेगा. फिर अपना कैरियर और बच्चे का भविष्य बनाने के लिए तुम्हारे सामने जीवन का विस्तृत क्षेत्र और पूरा समय होगा.’

‘‘‘मगर जब कभी बच्चा उस के पापा के बारे में पूछेगा तो…’ मैं ने थोड़ा कमजोर पड़ते हुए कहा था तो महिला वकील ने कहा था, ‘मैं तुम से कोई कड़वी बात नहीं कहना चाहती मगर यह प्रश्न उस समय भी अपनी जगह था जब तुम ने युगयुगों से स्थापित सामाजिक, पारिवारिक, संस्था के विरुद्ध एक अपरिपक्व भावुकता में मौडर्न तथा बोल्ड बन कर निर्णय लिया था. मगर अब तुम्हारे सामने दूसरे विकल्प कई तरह के जोखिमों से भरे हुए होंगे. क्योंकि प्रैग्नैंसी को समय हो गया है. वैसे अब बच्चे के अभिभावक के रूप में मां के नाम को प्राथमिकता और कानूनी मान्यता मिल गई है. बाकी कुछ प्रश्नों का जवाब वक्त के साथ ही मिलेगा. वक्त के साथ समस्याएं स्वयं सुलझती जाती हैं.’’’

इतना सब कह कर रिया शायद थकान के कारण चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर वह फिर बोली, ‘‘मुझे लगता है आज समय वह विराट प्रश्न ले कर खड़ा हो गया है, मगर उस का समाधान नहीं दे रहा है. शायद ऐसी ही स्थिति के लिए किसी ने कहा होगा, ‘लमहों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई,’’’ यह कह कर उस ने बड़ी बेबस निगाहों से मिसेज पाटनकर को देखा. मिसेज पाटनकर किसी गहरी सोच में थीं. अचानक उन्होंने रिया से पूछा, ‘‘संजय का कोई पताठिकाना…’’ रिया उन की बात पूरी होने के पहले ही एकदम उद्विग्न हो कर बोली, ‘‘मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं मिसेज पाटनकर, मगर मुझे संजय से कोई मदद या समझौता नहीं चाहिए, प्लीज.’’

‘‘मैं तुम से संजय से मदद या समझौते के लिए नहीं कह रही, पर पिऊ के प्रश्न के उत्तर के लिए उस के बारे में कुछ जानना तो होगा. जो जानती हो वह बताओ.’’

‘‘उस का सिलेक्शन कैंपस इंटरव्यू में हो गया था. पिछले 4-5 साल से वह न्यूयार्क के एक बैंक में मैनेजर एचआरडी का काम कर रहा था. बस, इतना ही मालूम है मुझे उस के बारे में किसी कौमन फ्रैंड के जरिए से,’’ रिया ने मानो पीछा छुड़ाने के लिए कहा. रिया की बात सुन कर मिसेज पाटनकर कुछ देर तक कुछ सोचती रहीं, फिर बोलीं, ‘‘हां, अब मुझे लगता है कि समस्या का हल मिल गया है. तुम्हें और संजय को अलग हुए 6-7 साल हो गए हैं. इस बीच में तुम्हारा उस से कोई संबंध तो क्या संवाद तक नहीं हुआ है.

‘‘उस के बारे में बताया जा सकता है कि वह न्यूयार्क में रहता था. वहीं काम करता था. वहां किसी विध्वंसकारी आतंकवादी घटना के बाद उस का कोई पता नहीं चल सका कि वह गंभीर रूप से घायल हो कर पहचान नहीं होने से किसी अस्पताल में अनाम रोगी की तरह भरती है या मारा गया. अस्पताल के मनोचिकित्सक को यही बात पिऊ के पापा के बारे में बता देते हैं. वे अपनेआप जिस तरह और जितना चाहेंगे पिऊ को होश आने पर उस के पापा के बारे में अपनी तरह से बता देंगे और आज से यही औफिशियल जानकारी होगी पिऊ के पापा के बारे में.’’

‘‘लेकिन जब कभी पिऊ को यह पता चलेगा कि यह झूठ है तो?’’ कह कर रिया ने बिलकुल एक सहमी हुई बच्ची की तरह मिसेज पाटनकर की ओर देखा तो वे बोलीं, ‘‘रिया, वक्त अपनेआप सवालों के जवाब खोजता है. अभी पिऊ को नर्वस ब्रैकडाउन से बचाना सब से बड़ी जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप ठीक समझें. पिऊ ठीक हो जाएगी न, मिसेज पाटनकर?’’ रिया ने डूबती हुई आवाज में कहा.

‘‘पिऊ बिलकुल ठीक हो जाएगी, मगर एक शर्त रहेगी.’’

‘‘क्या, मुझे आप की हर शर्त मंजूर है. बस, पिऊ…’’

‘‘सुन तो ले,’’ मिसेज पाटनकर बोलीं, ‘‘अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पिऊ स्वस्थ होने तक मेरे पास रहेगी और बाद में भी तुम्हारी अनुपस्थिति में वह हमेशा अपनी दादी के पास रहेगी. बोलो, मंजूर है?’’ उन्होंने ममतापूर्ण दृष्टि से रिया को देखा तो रिया डूबती सी आवाज में ही बोली, ‘‘आप पिऊ की दादी हैं या नानी, मैं कह नहीं सकती. मगर अब मुझे लग रहा है कि मेरे कुछ मूर्खतापूर्ण भावुक लमहों की जो लंबी सजा मुझे भोगनी है उस के लिए मुझे आप जैसी ममतामयी और दृढ़ महिला के सहारे की हर समय और हर कदम पर जरूरत होगी. आप मुझे सहारा देंगी न? मुझे अकेला तो नहीं छोड़ेंगी, बोलिए?’’ कह कर उस ने मिसेज पाटनकर का हाथ अपने कांपते हाथों में कस कर पकड़ लिया.

‘‘रिया, मुझे तो पिऊ से इतना लगाव हो गया है कि मैं तो खुद उस के बिना रहने की कल्पना कर के भी दुखी हो जाती हूं. मैं हमेशा तेरे साथ हूं. पर अभी इस वक्त तू अपने को संभाल जिस से हम दोनों मिल कर पिऊ को संभाल सकें. अभी मेरा हाथ छोड़ तो मैं यहां से जा कर मनोचिकित्सक को सारी बात बता सकूं,’’ कह कर उन्होंने रिया के माथे को चूम कर उसे आश्वस्त किया, बड़ी नरमी से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया और डाक्टर के कमरे की ओर चल पड़ीं.

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March 31, 2020 at 01:42PM

लमहों ने खता की थी

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March 31, 2020 at 01:10PM

Monday 30 March 2020

इस का इलाज कराओ भाइयो

रामजस एक बार संगीत सुनने गए थे. असल में जाने का उन का जरा भी मन नहीं था, लेकिन पड़ोसियों ने ऐसा दबाव डाला कि वे टाल नहीं सके. पड़ोसियों ने कहा, टिकट भी हम ले लेंगे मगर चलो. जिंदगी में एक बार तो संगीत सुन लो. कितना बड़ा कलाकार आया है अपने गांव में. बारबार नहीं मिलते ऐसे मौके.रामजस ने बहुत कहा कि मुझे कुछ लेनादेना नहीं है शास्त्रीय संगीत से. क्या शास्त्रीय और क्या संगीत. मैं मजे में हूं. घर और खेत में ही मेरा सारा दिन गुजर जाता है. शाम को ताश की एकाध बाजी हो जाती है. आज भी तुम लोगों के इंतजार में बैठा था और पता नहीं तुम लोग कहां से ये शास्त्रीय संगीत उठा लाए. लेकिन उन की एक न चली. जाना ही पड़ा. घसीटते हुए वे गए पड़ोसियों के साथ.

लेकिन उन के पड़ोसी तब हैरान हुए जब उन्होंने देखा कि संगीतज्ञ अलाप भरने लगा तो रामजस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. पड़ोसियों ने कहा, अरे, रामजस, हम ने तो सोचा ही नहीं था कि तुम्हें शास्त्रीय संगीत से इतना प्रेम है. हमारी आंखें गीली नहीं हुईं और तुम्हारी आंखों से टपटप आंसू गिर रहे हैं. रामजस ने कहा, शास्त्रीय संगीत का तो पता नहीं, लेकिन यह आदमी मरेगा, ऐसे ही आऽ आऽ करता हुआ मेरा बैल मर गया था. रातभर शास्त्रीय संगीत करता रहा, सुबह मर गया बेचारा. इस गायक का इलाज कराओ भाइयो, क्या बैठेबैठे आऽ आऽ सुन रहे हो. मेरे आंसू गिर रहे हैं क्योंकि मुझे खयाल आ रहा है इस बेचारे की पत्नी और बालबच्चों का.                                        

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रामजस एक बार संगीत सुनने गए थे. असल में जाने का उन का जरा भी मन नहीं था, लेकिन पड़ोसियों ने ऐसा दबाव डाला कि वे टाल नहीं सके. पड़ोसियों ने कहा, टिकट भी हम ले लेंगे मगर चलो. जिंदगी में एक बार तो संगीत सुन लो. कितना बड़ा कलाकार आया है अपने गांव में. बारबार नहीं मिलते ऐसे मौके.रामजस ने बहुत कहा कि मुझे कुछ लेनादेना नहीं है शास्त्रीय संगीत से. क्या शास्त्रीय और क्या संगीत. मैं मजे में हूं. घर और खेत में ही मेरा सारा दिन गुजर जाता है. शाम को ताश की एकाध बाजी हो जाती है. आज भी तुम लोगों के इंतजार में बैठा था और पता नहीं तुम लोग कहां से ये शास्त्रीय संगीत उठा लाए. लेकिन उन की एक न चली. जाना ही पड़ा. घसीटते हुए वे गए पड़ोसियों के साथ.

लेकिन उन के पड़ोसी तब हैरान हुए जब उन्होंने देखा कि संगीतज्ञ अलाप भरने लगा तो रामजस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. पड़ोसियों ने कहा, अरे, रामजस, हम ने तो सोचा ही नहीं था कि तुम्हें शास्त्रीय संगीत से इतना प्रेम है. हमारी आंखें गीली नहीं हुईं और तुम्हारी आंखों से टपटप आंसू गिर रहे हैं. रामजस ने कहा, शास्त्रीय संगीत का तो पता नहीं, लेकिन यह आदमी मरेगा, ऐसे ही आऽ आऽ करता हुआ मेरा बैल मर गया था. रातभर शास्त्रीय संगीत करता रहा, सुबह मर गया बेचारा. इस गायक का इलाज कराओ भाइयो, क्या बैठेबैठे आऽ आऽ सुन रहे हो. मेरे आंसू गिर रहे हैं क्योंकि मुझे खयाल आ रहा है इस बेचारे की पत्नी और बालबच्चों का.                                        

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March 31, 2020 at 12:15PM