Tuesday 31 March 2020

आंखों में इंद्रधनुष:भाग3

संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती… उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.

वह एक संपन्न, सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सभ्य परिवार था. उस परिवार के लोग भयभीत थे, इस बात से नहीं कि उस के घर के गुलाबी रंग ने अपने ऊपर बहुत सारा काला रंग डाल लिया था और उस ने इस कदर इस रंग को ओढ़ रखा था कि उस का प्राकृतिक गुलाबी रंग कहीं खो गया था. काले रंग के अलावा कोई और रंग उस में नजर भी नहीं आता था. वे इस बात से डर रहे थे कि अगर यह काला रंग घर के बाहर फैल गया तो समाज में किस प्रकार अपना मुंह दिखाएंगे और किस प्रकार अपने सिर को ऊंचा कर के चल सकेंगे. किसी भी परिवार के लिए ऐसे क्षण आत्मघाती होते हैं.

स्थिति दयनीय ही नहीं, भयावह भी थी. सब को किसी न किसी दिन एक विस्फोट की प्रतीक्षा थी. कब होगा यह विस्फोट, कोई नहीं जानता था. विस्फोट हो जाता तो उस के प्रभाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता था, परंतु यहां तो सभीकुछ अनिश्चित सा था और अनिश्चय की घडि़यां बहुत कष्टदायी होती हैं. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यों डरेसहमे से, आंखों में संदेह के बादलों का गांव बसा कर किस तरह जिया जा सकता था. उस घर के 3 रंगों-लाल, पीले और हरे ने आपस में सलाह की. नीला रंग अभी छोटा था और वह बहुत सारी चिंताओं से मुक्त था, सो उसे चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया. लाल रंग गुस्सैल स्वभाव का था. उस ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं अभी उस की हड्डीपसली तोड़ कर एक कर देता हूं. पूछता हूं कि कौन है वह, जिस के साथ उस ने अपना मुंह काला किया है.’’

‘‘यह कोई समस्या का समाधान नहीं है. इस से बात बिगड़ सकती है और बाहर तक जा सकती है. मैं उस से बात करती हूं,’’ पीले रंग वाली स्त्री ने शांत भाव से कहा. ‘‘मुझे बस एक बार पता चल जाए कि वह कौन कमीना रंग है जिस ने हमारे घर के रंग के साथ काले रंग से होली खेली है, उस को चलनेफिरने लायक नहीं छोड़ूंगा,’’ हरे रंग ने अपनी युवावस्था के जोश में कहा. ‘‘तुम अपने हथियारों को संभाल कर रखो. उन से बाद में काम लेना. अभी तो हमें अहिंसा के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास करना है, जब बात नहीं बनेगी तो आप दोनों को कमान सौंप दूंगी.’’ और अंत में, पीले रंगवाली स्त्री ने कमान अपने हाथ में संभाल ली. वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए कमर कस कर गुलाबी रंग वाली लड़की, जो उस की बेटी थी, के कमरे में जा पहुंची.

गुलाबी रंग वाली लड़की काले रंग के प्रभाव और चिंता में स्वयं बहुत पीली हो गई थी, जैसे पीलिया की रोगी हो. उस की अधिकतर दिनचर्या उस के कमरे और बिस्तर तक ही सीमित हो कर रह गई थी. उस ने पीले रंग को कमरे में आते देखा तो उस का रंग और अधिक पीला हो गया. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अनायास उस के मुख से निकला, ‘‘आप?’’ उस की आंखें हैरत से फट सी गई थीं. ‘‘हां, मैं? क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकती?’’ पीले रंग ने कठोर स्वर में कहा. वह सच का सामना करने आई थी और आज उसे किसी भी तरह गुलाबी रंग से सच उगलवाना था. सच प्रकट नहीं होगा तो अनिश्चय की स्थिति में सभी लोग घुलते हुए भयंकर रोगी बन जाएंगे.

गुलाबी रंग की आंखों में भय की परत और अधिक गहरी हो गई. पीला रंग पलंग पर बैठ गया, ‘‘बैठो न, तुम से कुछ बातें करनी हैं.’’ वह बैठ गई, नीची निगाहें, हृदय में असामान्य धड़कन, शरीर में अजीब सी सनसनी भरा कंपन…पता नहीं आज क्या होने वाला है? उस ने इस दिन की कल्पना कभी नहीं की थी, तब भी नहीं जब उस ने अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरने शुरू किए थे और तब भी नही, जब काला रंग उस के जीवन के रंगों के साथ घुलने लगा था और तब भी नहीं जब काले रंग ने मीठीमीठी बातों के रंग उस के ऊपर बिखरा कर उसे मदहोश कर दिया था और उस के कोमल बदन के सारे फूल चुरा लिए थे. वह एक वीरान बगीचे के समान हो गई थी, जहां से अभीअभी पतझड़ गुजर कर गया था.

पीले रंग के चेहरे के भाव और उस के स्वर की कठोरता ने गुलाबी रंग पर यह स्पष्ट कर दिया था कि आज हर प्रकार की ऊहापोह और अविश्वास की डोर कटने वाली थी, अनिश्चय का अंत होने वाला था. आज हर वह बात खुल जाएगी, जिसे उस ने अभी तक अपने हृदय की तमाम परतों के भीतर छिपा रखा था. उस ने भले ही बहुत सारे रहस्य अपने बदन की परतों के अंदर छिपा रखे हों, परंतु उस के बदन में होने वाले बाहरी परिवर्तनों ने बहुत सारे रहस्यों को सुबह की रोशनी की तरह स्पष्ट कर दिया था. सब की धुंधलाई आंखों में चमक आ गई थी. वह डरतेसहमते पीले रंग के पास बैठ गई. आज उसे उस के पास बैठते हुए डर लग रहा था. वह इसी रंग की कोख से पैदा हुई थी, उस के आंचल का दूध पिया था और उस की बांहों में झूलते हुए लोरियों को सुना था. बचपन से ले कर जवान होने तक बहुत सारी बातों को दोनों ने साथ जिया था, परंतु आज इस अनहोनी बात से मांबेटी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं. वे एकदूसरे से अपरिचित हो गई थीं.

मां फिर भी मां होती है. पीले रंग ने उस का सिर सांत्वना देने वाले भाव से सहलाया. गुलाबी रंग कांप गया. पीले रंग का स्थिर स्वर उभरा, ‘‘घबराओ मत, सबकुछ साफसाफ बता दो. अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है. घर के सभी लोगों को तुम्हारी स्थिति का आभास है, परंतु हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं कि यह सब कैसे हुआ? क्या किसी ने जोरजबरदस्ती की है तुम्हारे साथ या तुम ने पूरी समझदारी को ताक पर रख कर यह कालिख अपने मुंह पर पोत ली है और अब यह कालिख तुम्हारे पेट में फैल कर बड़ी हो रही है.’’

गुलाबी रंग का बदन कांपने लगा. उस के मन में बहुत सारे चित्र उभरने लगे, जैसे मन के परदे पर बाइस्कोप चल रहा हो. इन विभिन्न चित्रों के रंग उसे और ज्यादा डराने लगे और उस ने एक निरीह चिडि़या, जो बाज के पंजों में फंसी हो, की तरह पीले रंग की आंखों में देखा. पीले रंग वाली स्त्री उस की भयभीत आंखों की बेबसी और लाचारी देख कर पिघल गई और उस ने सिसकते हुए गुलाबी रंग को अपने अंक में समेट लिया. इस के बाद कमरे में केवल करुण कं्रदन का दिल दहला देने वाला स्वर भर गया और पता नहीं चल रहा था कि दोनों महिलाएं एकसाथ इतने सुर, लय और ताल में किस प्रकार रो सकती थीं कि दोनों का स्वर एकजैसा लगे. यह संभव भी था क्येंकि वे दोनों नारियां थीं और सब से बड़ी बात यह थी कि वे दोनों आपस में मांबेटी थीं. वे एकदूसरे के दर्द को बिना किसी शब्द और स्वर के भी तीव्रता के साथ महसूस कर सकती थीं.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो. रंगों की चकाचौंध में मैं भटक गई थी. मुझे पता नहीं था कि जीवन के कुछ रंग चमकीले और लुभावने होने के साथसाथ जहरीले भी होते हैं. यौवन के उसी एक रंग ने मुझ में जहर घोल दिया और मैं उसे जीवन का अद्भुत सुख समझ कर जीती रही. जीवन में ऐसी खुशियां भरती रही, जो बाद में मुझे दुख देने वाली थीं.’’ ‘‘जवानी के रंगों के बीच भटक कर लड़कियां जो जहर पीती हैं, वह उन के मुंह पर ही कालिख नहीं पोतता, बल्कि उस के घरपरिवार के ऊपर भी एक बदनुमा दाग छोड़ जाता है. खैर, इन सब बातों पर चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है. यह बताओ, वह कौन है, कहां रहता है और क्या करता है?’’ ‘‘पहले मैं ने उस के बारे में अधिक कुछ जानने का प्रयास नहीं किया था. मेरी आंखों में इतने सारे रंग भरे हुए थे कि वह मुझे हर कोण से सुंदर, शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत लगा, परंतु जब रंग फीके पड़ने लगे और मेरी आंखों के ऊपर से परदे उठे तो पता चला कि वह एक ऐसा युवक था, जिस का कोई सामाजिक या आर्थिक आधार नहीं था. वह एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन है और शहर की एक गंदी बस्ती के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता है.’’

पीले रंग वाली स्त्री यह सुन कर और ज्यादा पीली पड़ गई, परंतु मुसीबत की इस घड़ी में उसे अपने धैर्य को बचाए रखना था. वह मां थी और बेटी के जीवन की सुरक्षा के लिए उसे हर संभव उपाय करने थे, वरना कलंक का अमिट धब्बा उस की बेटी के माथे पर सदा के लिए चिपक कर रह जाता. तब उसे धोना असंभव हो जाता. उस ने पूछा, ‘‘क्या वह तुम से ब्याह करने के लिए राजी है?’’ गुलाबी रंग की आंखों में अविश्वास के रंग तैर गए, ‘‘पता नहीं, कई दिनों से वह मुझ से कतराने लगा है. फोन पर बात नहीं करता. कभी बात हो भी जाए तो मिलने नहीं आता. काम का बहाना बना देता है.’’

‘‘तब तो मुश्किल है,’’ वह चिंतित हो उठी.

‘‘क्या मुश्किल है?’’ बेटी का शरीर फिर कांपने लगा.

‘‘तुम दोनों का मिलन…तुम्हारा कलंक मिटाने के लिए मैं उस साधारण युवक से भी तुम्हारी शादी कर देती, परंतु लगता है कि उस के मन में पहले से ही छल था. वह तुम्हारे यौवन और सौंदर्य का रसपान करना चाहता था. वह उसे प्राप्त हो गया, तो अब तुम से दूर हो गया. जो लड़कियां जवानी में अपनी आंखों में प्रेम का इंद्रधनुष बसा लेती हैं उन की आंखों और बदन के रंगों को चुराने के लिए मानवरूपी दैत्य राजकुमार का भेष बना कर यौवन से भरपूर राजकुमारियों को प्रेम के जादू से अपने वश में कर के उन के सतीत्व का धन छीन कर उन के दीप्त यौवन का रसपान करते हैं. तुम जानेअनजाने, एक दैत्य की कुटिल चालों के जाल में फंस गईं और अपना सबकुछ लुटा बैठीं. इस गलती की सजा केवल तुम्हें ही नहीं, हमें भी जीवनभर भुगतनी पड़ेगी.’’ ‘‘काश, मैं उसे पहचान पाती,’’ गुलाबी रंग ने अफसोस जताते हुए कहा. परंतु अब अफसोस करने से भी क्या फायदा था? जवानी में कोई भी विवेक से काम नहीं लेता.

‘‘गलती हमारी भी है. हर जवान हो रही बेटी की मां को इतना ध्यान रखना ही चाहिए कि जवानी में उस की बेटी के कदम बहक सकते हैं. सचेत रह कर मुझे तुम्हारी हर गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए था. तुम्हारी आंखों में गलत रंग भरते, इस के पहले ही अगर हमें पता चल जाता…’’ मां भी अफसोस करने लगीं.

गुलाबी रंग चुप.

‘‘तुम ने उस का कमरा देखा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो चलो.’’

उन्हें विश्वास नहीं था, फिर भी अविश्वास की घड़ी में मनुष्य विश्वास का दामन नहीं छोड़ता. वे उस काले रंग के कमरे पर गईं. वहां जा कर पता चला कि वह उस कमरे में अकेला रहता था. कहीं बाहर का रहने वाला था और अब उसे छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था. किसी को भी उस के गांव का पता नहीं मालूम था और न यही मालूम था कि वह कहां गया था. मकानमालिक को भी उस ने कुछ नहीं बताया था. अब तो उस का फोन नियमित रूप से बंद था. काले रंग की मंशा का पता चल गया था. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरती हैं तो रंगों की चकाचौंध में वे उन के पीछे छिपे काले रंग को नहीं देख पाती हैं. काश, वह देख पाती तो उस की आंखों में इंद्रधनुष के रंगों की जगह केवल आंसू न होते.

 

 

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संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती… उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.

वह एक संपन्न, सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सभ्य परिवार था. उस परिवार के लोग भयभीत थे, इस बात से नहीं कि उस के घर के गुलाबी रंग ने अपने ऊपर बहुत सारा काला रंग डाल लिया था और उस ने इस कदर इस रंग को ओढ़ रखा था कि उस का प्राकृतिक गुलाबी रंग कहीं खो गया था. काले रंग के अलावा कोई और रंग उस में नजर भी नहीं आता था. वे इस बात से डर रहे थे कि अगर यह काला रंग घर के बाहर फैल गया तो समाज में किस प्रकार अपना मुंह दिखाएंगे और किस प्रकार अपने सिर को ऊंचा कर के चल सकेंगे. किसी भी परिवार के लिए ऐसे क्षण आत्मघाती होते हैं.

स्थिति दयनीय ही नहीं, भयावह भी थी. सब को किसी न किसी दिन एक विस्फोट की प्रतीक्षा थी. कब होगा यह विस्फोट, कोई नहीं जानता था. विस्फोट हो जाता तो उस के प्रभाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता था, परंतु यहां तो सभीकुछ अनिश्चित सा था और अनिश्चय की घडि़यां बहुत कष्टदायी होती हैं. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यों डरेसहमे से, आंखों में संदेह के बादलों का गांव बसा कर किस तरह जिया जा सकता था. उस घर के 3 रंगों-लाल, पीले और हरे ने आपस में सलाह की. नीला रंग अभी छोटा था और वह बहुत सारी चिंताओं से मुक्त था, सो उसे चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया. लाल रंग गुस्सैल स्वभाव का था. उस ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं अभी उस की हड्डीपसली तोड़ कर एक कर देता हूं. पूछता हूं कि कौन है वह, जिस के साथ उस ने अपना मुंह काला किया है.’’

‘‘यह कोई समस्या का समाधान नहीं है. इस से बात बिगड़ सकती है और बाहर तक जा सकती है. मैं उस से बात करती हूं,’’ पीले रंग वाली स्त्री ने शांत भाव से कहा. ‘‘मुझे बस एक बार पता चल जाए कि वह कौन कमीना रंग है जिस ने हमारे घर के रंग के साथ काले रंग से होली खेली है, उस को चलनेफिरने लायक नहीं छोड़ूंगा,’’ हरे रंग ने अपनी युवावस्था के जोश में कहा. ‘‘तुम अपने हथियारों को संभाल कर रखो. उन से बाद में काम लेना. अभी तो हमें अहिंसा के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास करना है, जब बात नहीं बनेगी तो आप दोनों को कमान सौंप दूंगी.’’ और अंत में, पीले रंगवाली स्त्री ने कमान अपने हाथ में संभाल ली. वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए कमर कस कर गुलाबी रंग वाली लड़की, जो उस की बेटी थी, के कमरे में जा पहुंची.

गुलाबी रंग वाली लड़की काले रंग के प्रभाव और चिंता में स्वयं बहुत पीली हो गई थी, जैसे पीलिया की रोगी हो. उस की अधिकतर दिनचर्या उस के कमरे और बिस्तर तक ही सीमित हो कर रह गई थी. उस ने पीले रंग को कमरे में आते देखा तो उस का रंग और अधिक पीला हो गया. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अनायास उस के मुख से निकला, ‘‘आप?’’ उस की आंखें हैरत से फट सी गई थीं. ‘‘हां, मैं? क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकती?’’ पीले रंग ने कठोर स्वर में कहा. वह सच का सामना करने आई थी और आज उसे किसी भी तरह गुलाबी रंग से सच उगलवाना था. सच प्रकट नहीं होगा तो अनिश्चय की स्थिति में सभी लोग घुलते हुए भयंकर रोगी बन जाएंगे.

गुलाबी रंग की आंखों में भय की परत और अधिक गहरी हो गई. पीला रंग पलंग पर बैठ गया, ‘‘बैठो न, तुम से कुछ बातें करनी हैं.’’ वह बैठ गई, नीची निगाहें, हृदय में असामान्य धड़कन, शरीर में अजीब सी सनसनी भरा कंपन…पता नहीं आज क्या होने वाला है? उस ने इस दिन की कल्पना कभी नहीं की थी, तब भी नहीं जब उस ने अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरने शुरू किए थे और तब भी नही, जब काला रंग उस के जीवन के रंगों के साथ घुलने लगा था और तब भी नहीं जब काले रंग ने मीठीमीठी बातों के रंग उस के ऊपर बिखरा कर उसे मदहोश कर दिया था और उस के कोमल बदन के सारे फूल चुरा लिए थे. वह एक वीरान बगीचे के समान हो गई थी, जहां से अभीअभी पतझड़ गुजर कर गया था.

पीले रंग के चेहरे के भाव और उस के स्वर की कठोरता ने गुलाबी रंग पर यह स्पष्ट कर दिया था कि आज हर प्रकार की ऊहापोह और अविश्वास की डोर कटने वाली थी, अनिश्चय का अंत होने वाला था. आज हर वह बात खुल जाएगी, जिसे उस ने अभी तक अपने हृदय की तमाम परतों के भीतर छिपा रखा था. उस ने भले ही बहुत सारे रहस्य अपने बदन की परतों के अंदर छिपा रखे हों, परंतु उस के बदन में होने वाले बाहरी परिवर्तनों ने बहुत सारे रहस्यों को सुबह की रोशनी की तरह स्पष्ट कर दिया था. सब की धुंधलाई आंखों में चमक आ गई थी. वह डरतेसहमते पीले रंग के पास बैठ गई. आज उसे उस के पास बैठते हुए डर लग रहा था. वह इसी रंग की कोख से पैदा हुई थी, उस के आंचल का दूध पिया था और उस की बांहों में झूलते हुए लोरियों को सुना था. बचपन से ले कर जवान होने तक बहुत सारी बातों को दोनों ने साथ जिया था, परंतु आज इस अनहोनी बात से मांबेटी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं. वे एकदूसरे से अपरिचित हो गई थीं.

मां फिर भी मां होती है. पीले रंग ने उस का सिर सांत्वना देने वाले भाव से सहलाया. गुलाबी रंग कांप गया. पीले रंग का स्थिर स्वर उभरा, ‘‘घबराओ मत, सबकुछ साफसाफ बता दो. अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है. घर के सभी लोगों को तुम्हारी स्थिति का आभास है, परंतु हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं कि यह सब कैसे हुआ? क्या किसी ने जोरजबरदस्ती की है तुम्हारे साथ या तुम ने पूरी समझदारी को ताक पर रख कर यह कालिख अपने मुंह पर पोत ली है और अब यह कालिख तुम्हारे पेट में फैल कर बड़ी हो रही है.’’

गुलाबी रंग का बदन कांपने लगा. उस के मन में बहुत सारे चित्र उभरने लगे, जैसे मन के परदे पर बाइस्कोप चल रहा हो. इन विभिन्न चित्रों के रंग उसे और ज्यादा डराने लगे और उस ने एक निरीह चिडि़या, जो बाज के पंजों में फंसी हो, की तरह पीले रंग की आंखों में देखा. पीले रंग वाली स्त्री उस की भयभीत आंखों की बेबसी और लाचारी देख कर पिघल गई और उस ने सिसकते हुए गुलाबी रंग को अपने अंक में समेट लिया. इस के बाद कमरे में केवल करुण कं्रदन का दिल दहला देने वाला स्वर भर गया और पता नहीं चल रहा था कि दोनों महिलाएं एकसाथ इतने सुर, लय और ताल में किस प्रकार रो सकती थीं कि दोनों का स्वर एकजैसा लगे. यह संभव भी था क्येंकि वे दोनों नारियां थीं और सब से बड़ी बात यह थी कि वे दोनों आपस में मांबेटी थीं. वे एकदूसरे के दर्द को बिना किसी शब्द और स्वर के भी तीव्रता के साथ महसूस कर सकती थीं.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो. रंगों की चकाचौंध में मैं भटक गई थी. मुझे पता नहीं था कि जीवन के कुछ रंग चमकीले और लुभावने होने के साथसाथ जहरीले भी होते हैं. यौवन के उसी एक रंग ने मुझ में जहर घोल दिया और मैं उसे जीवन का अद्भुत सुख समझ कर जीती रही. जीवन में ऐसी खुशियां भरती रही, जो बाद में मुझे दुख देने वाली थीं.’’ ‘‘जवानी के रंगों के बीच भटक कर लड़कियां जो जहर पीती हैं, वह उन के मुंह पर ही कालिख नहीं पोतता, बल्कि उस के घरपरिवार के ऊपर भी एक बदनुमा दाग छोड़ जाता है. खैर, इन सब बातों पर चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है. यह बताओ, वह कौन है, कहां रहता है और क्या करता है?’’ ‘‘पहले मैं ने उस के बारे में अधिक कुछ जानने का प्रयास नहीं किया था. मेरी आंखों में इतने सारे रंग भरे हुए थे कि वह मुझे हर कोण से सुंदर, शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत लगा, परंतु जब रंग फीके पड़ने लगे और मेरी आंखों के ऊपर से परदे उठे तो पता चला कि वह एक ऐसा युवक था, जिस का कोई सामाजिक या आर्थिक आधार नहीं था. वह एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन है और शहर की एक गंदी बस्ती के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता है.’’

पीले रंग वाली स्त्री यह सुन कर और ज्यादा पीली पड़ गई, परंतु मुसीबत की इस घड़ी में उसे अपने धैर्य को बचाए रखना था. वह मां थी और बेटी के जीवन की सुरक्षा के लिए उसे हर संभव उपाय करने थे, वरना कलंक का अमिट धब्बा उस की बेटी के माथे पर सदा के लिए चिपक कर रह जाता. तब उसे धोना असंभव हो जाता. उस ने पूछा, ‘‘क्या वह तुम से ब्याह करने के लिए राजी है?’’ गुलाबी रंग की आंखों में अविश्वास के रंग तैर गए, ‘‘पता नहीं, कई दिनों से वह मुझ से कतराने लगा है. फोन पर बात नहीं करता. कभी बात हो भी जाए तो मिलने नहीं आता. काम का बहाना बना देता है.’’

‘‘तब तो मुश्किल है,’’ वह चिंतित हो उठी.

‘‘क्या मुश्किल है?’’ बेटी का शरीर फिर कांपने लगा.

‘‘तुम दोनों का मिलन…तुम्हारा कलंक मिटाने के लिए मैं उस साधारण युवक से भी तुम्हारी शादी कर देती, परंतु लगता है कि उस के मन में पहले से ही छल था. वह तुम्हारे यौवन और सौंदर्य का रसपान करना चाहता था. वह उसे प्राप्त हो गया, तो अब तुम से दूर हो गया. जो लड़कियां जवानी में अपनी आंखों में प्रेम का इंद्रधनुष बसा लेती हैं उन की आंखों और बदन के रंगों को चुराने के लिए मानवरूपी दैत्य राजकुमार का भेष बना कर यौवन से भरपूर राजकुमारियों को प्रेम के जादू से अपने वश में कर के उन के सतीत्व का धन छीन कर उन के दीप्त यौवन का रसपान करते हैं. तुम जानेअनजाने, एक दैत्य की कुटिल चालों के जाल में फंस गईं और अपना सबकुछ लुटा बैठीं. इस गलती की सजा केवल तुम्हें ही नहीं, हमें भी जीवनभर भुगतनी पड़ेगी.’’ ‘‘काश, मैं उसे पहचान पाती,’’ गुलाबी रंग ने अफसोस जताते हुए कहा. परंतु अब अफसोस करने से भी क्या फायदा था? जवानी में कोई भी विवेक से काम नहीं लेता.

‘‘गलती हमारी भी है. हर जवान हो रही बेटी की मां को इतना ध्यान रखना ही चाहिए कि जवानी में उस की बेटी के कदम बहक सकते हैं. सचेत रह कर मुझे तुम्हारी हर गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए था. तुम्हारी आंखों में गलत रंग भरते, इस के पहले ही अगर हमें पता चल जाता…’’ मां भी अफसोस करने लगीं.

गुलाबी रंग चुप.

‘‘तुम ने उस का कमरा देखा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो चलो.’’

उन्हें विश्वास नहीं था, फिर भी अविश्वास की घड़ी में मनुष्य विश्वास का दामन नहीं छोड़ता. वे उस काले रंग के कमरे पर गईं. वहां जा कर पता चला कि वह उस कमरे में अकेला रहता था. कहीं बाहर का रहने वाला था और अब उसे छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था. किसी को भी उस के गांव का पता नहीं मालूम था और न यही मालूम था कि वह कहां गया था. मकानमालिक को भी उस ने कुछ नहीं बताया था. अब तो उस का फोन नियमित रूप से बंद था. काले रंग की मंशा का पता चल गया था. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरती हैं तो रंगों की चकाचौंध में वे उन के पीछे छिपे काले रंग को नहीं देख पाती हैं. काश, वह देख पाती तो उस की आंखों में इंद्रधनुष के रंगों की जगह केवल आंसू न होते.

 

 

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April 01, 2020 at 10:00AM

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