Thursday 29 October 2020

हो जाने दो -भाग 2 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

लेखिका- आशा शर्मा 

अब तक बात सब जगह फ़ैल गई थी. जलज के कुछ स्टाफ मैम्बर्स भी हौस्पिटल पहुंच गए और उन की मदद से जलज की बौडी को एम्बुलैंस से घर लाने की कवायद हुई. कुछ महिलाएं कनिका को घर ले आईं और फिर जो कुछ हुआ वह तो अब तक कनिका की आंखों से रिस ही रहा है.

“वो लोग आ गए, चलो. पहले कनिका नहा ले, फिर एकएक कर बाकी तुम लोग भी नहा लो,” माधवी ने राखी को इशारा कर के कनिका को बाथरूम में ले जाने को कहा.

कनिका अपनी अलमारी में से कपड़े निकालने लगी.“पक्के रंग की साड़ी पहनना. कोई लेसवेस या गोटाकिनारी न लगी हो, यह जरूर देख लेना,” माधवी का यह स्वर सुन कर कनिका सोच में डूब गई. कच्चापक्का तो कभी सोचा ही नहीं. जलज तो उसे हर रंग के कपड़े ला कर देता था. काले से ले कर सफ़ेद तक. किसी रंग से उसे कोई परहेज नहीं था. माधवी ने आ कर एक बैगनी रंग की प्लेन साड़ी निकाल कर उस के हाथ में थमा दी. कनिका बाथरूम की तरफ चल दी.

शीशे में अपना चेहरा देख कर कनिका डर गई. सूनी मांग-माथे का चेहरा कितना डरावना लग रहा था. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं और शीशे पर तोलिया डाल कर उसे ढक दिया.

किसी तरह रात हुई. आसपड़ोस के लोग जा चुके थे. माधवी और राखी किसी खास मंत्रणा में मशगूल थीं. कनिका किसी मूर्ति सी लौबी में जड़ हुई बैठी थी. वह रोतेरोते थक चुकी थी. उस का शरीर अब आराम करना चाहता था. लेकिन माधवी ने कहा था- “बिना मुझ से पूछे कोई काम न करना. ऐसा न हो कि किसी की नासमझी के कारण दिवंगत आत्मा को कष्ट हो.” इसलिए कनिका सास की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही थी.

“सो जाओ तुम लोग भी.” माधवी की आवाज सुन कर कनिका अपने कमरे की तरफ चली.“बैड पर नहीं, तुम यहीं लौबी में बिछी दरी पर सोना. यही रिवाज है,” माधवी ने कहा.

कनिका की कुछ भी कहनेसुनने या विरोध करने की शक्ति चुक चुकी थी. उस ने सूनीसूनी आंखों से सास की तरफ देखा और बिना तकिया ही दरी पर लुढ़क गई.

सुबह आंख खुलते ही कनिका का जी मिचलाने लगा. ‘मौर्निंग सिकनैस है. कुछ दिन रहेगी, फिर अपनेआप ठीक हो जाएगी. बस, आप सुबह उठते ही 2 बिस्कुट चाय के साथ खा लेना, इस से आप को बेहतर लगेगा,’ लेडी डाक्टर की कही हिदायत याद आते ही कनिका रसोई की तरफ चली.

“अरे, रुको, हाथ मत लगाना किसी भी चीज को. गऊ ग्रास से पहले कोई कुछ नहीं खाएगा,” सास की कड़कती आवाज सुनते ही बिस्कुट का डब्बा उठाती कनिका के हाथ कांप गए.

“क्या ये वही मां जी हैं जो कल तक खुद अपने हाथ से उसे मनुहार कर के चायबिस्कुट खिलाती थीं.” सास का यह रूप देख कर कनिका विस्मित थी. वह चुपचाप रसोई से बाहर आ गई और लौबी में बिछी दरी पर बैठ गई. रसोई धोई गई. फिर खाना बना. पहले गऊ ग्रास, फिर पिंडदान, फिर पंडित जी को भोजन. ये सब करतेकरते दोपहर हो गई.

उलटियां करती कनिका बेहाल हो रही थी. लेकिन अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था. दोपहर बाद राखी उस के लिए एक प्लेट उबली हुई बेस्वाद सी सब्जी और बिना घी लगी 2 रोटी ले कर आई. मन हो न हो, लेकिन शरीर को तो भूख लगती ही है. तब और भी ज्यादा जब शरीर में एक और शरीर पल रहा हो. कनिका ने लपक कर एक निवाला मुंह की तरफ किया. खाते ही उसे उबकाई सी आ गई.

जलज कितना खयाल रखता था उस के खानेपीने का. उस के आंखें फेरते ही सब का नजरिया एक ही दिन में कितना बदल गया. जो मां जी उसे ‘खा ले, खा ले’ कहती नहीं अघाती थीं, वे आज देख भी नहीं रहीं कि वह खा भी रही है या नहीं. दो बूंद आंसुओं और दो घूंट पानी के साथ कनिका ने 2 कौर किसी तरह निगल कर प्लेट एक तरफ सरका दी.

“कनिका, 12 दिन घर में सूतक रहेगा. इसी तरह का खाना बनेगा. वैसे भी, अब सादगी की आदत डाल लो. हमारे यहां पति की चिता के साथ ही सब रागरंग भस्म हो जाता है, समझी?” माधवी ने उस की जूठी प्लेट की तरफ नजर डाली और राखी को प्लेट उठाने का इशारा किया.

‘फिर पंडित जी को क्यों छप्पन भोग खिलाए जा रहे हैं?’ कनिका ने अपने मन में उठे सवाल को वहीं का वहीं दफन कर दिया. सोच में सिर्फ एक ही बात थी, ‘कहीं जलज की आत्मा को कोई तकलीफ न हो.’

पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे. कनिका को हिदायत थी कि सुबह सब से पहले उठ कर नहानाधोना कर ले और पक्के रंग के कपड़े पहन कर बैठक के लिए बैठ जाए. उसे ध्यान रखना होता था कि उस के चेहरे को कोई सुहागन स्त्री न देख ले या कोई पुरुष उसे छू न जाए. उस के इस्तेमाल किए गए कंघेतोलिए तक को सब से अलग रखा जाता था.

दिनभर शोक जताने वालों का आनाजाना लगा रहता था. कनिका को हरेक के सामने अपना कलेजा चीर कर दिखाना होता था कि उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है. आनेजाने वालों की संख्या से कनिका को अंदाजा हो गया था कि समाज में जलज का कद कितना बड़ा था. दूरदूर से उस के फेसबुक फ्रैंड्स भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आ रहे थे. कुछ कनिका तक पहुंच पाते थे, तो कुछ बाहर पुरुषों की बैठक से ही लौट जाते थे.

“भाभी, ये जलज भैया के फेसबुक फ्रैंड हैं महेश. हरिद्वार से आए हैं,” राखी के यह कहने पर घुटनों में सिर दिए बैठी कनिका ने मुंह उठा कर देखा. जलज के ही हमउम्र 2 युवक नम आंखें लिए हाथ जोड़े खड़े थे. एक युवक विदेशी लग रहा था. कनिका ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर फिर से नीचे कर लिया.

“भाभी जी, जो कुछ हुआ, उस के लिए तो कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जो बचा है उसे सहेजने की जिम्मेदारी अब आप की है. जलज मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बेशक हमारी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी लेकिन हम एकदूसरे के बहुत करीब थे,” महेश कनिका के पास बैठ गया.

“ये मेरा दोस्त सैम है, यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कौलर है. भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा है. असल भारत की परम्पराएं और रीतिरिवाज जानने की जिज्ञासा लिए गांवगांव, शहरशहर भटकता रहता है. इसे भी मैं अपने साथ ले आया,” महेश ने आगे कहा तो कनिका ने सैम की तरफ हाथ जोड़ कर उस का अभिवादन किया.

कनिका ने देखा भूरे बालों वाले सैम ने अपने कान पर पीर्सिंग करवा कर सोने की बाली सी पहन रखी है. दाहिने हाथ की कलाई और बाएं हाथ की भुजा पर विदेशी भाषा में लिखे कुछ शब्दों के टैटू बनवा रखे थे जिन के अर्थ कनिका की समझ से परे थे. होजरी की पतली सी सफ़ेद टीशर्ट और फुल्ली रुग्गड जींस में वह सचमुच सब से अलग दिख रहा था. माधवी की चुभती दृष्टि महसूस कर कनिका ने सैम पर से अपनी निगाहें हटा लीं और फिर से अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया.

तभी कनिका को उबकाई सी आई और वह भाग कर वाशबेसिन की तरफ गई. उलटी कर के पलटी, तो देखा कि सैम पानी का गिलास लिए खड़ा था. कनिका को सैम की ये

ह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसे सैम के कोमल हृदयी होने का आभास अवश्य हो गया था. उस ने चुपचाप पानी के 2 घूंट लिए और अपनी जगह आ कर बैठ गई.

“महेश जी, आप लोग खाना खा लीजिए,” राखी महेश और सैम को खाने के लिए ले गई. सैम ने कनिका की तरफ देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न था- “आप ने खाया?” कनिका से उसे कोई प्रत्युतर का भाव नहीं मिला.

महेश की ट्रेन दूसरे दिन सुबह की थी. पूरे 20 घंटे सैम को कनिका के घर ही रहना था. उस की आंखें हर गतिविधि का भरपूर अवलोकन कर रही थीं, लेकिन भाषाई समस्या के कारण वह अधिक कहसुन नहीं पा रहा था. बारबार कनिका की तरफ उठती उस की आंखों में कनिका के प्रति सहज संवेदना झलक रही थी. एहसासों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता भी कहां होती है.

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लेखिका- आशा शर्मा 

अब तक बात सब जगह फ़ैल गई थी. जलज के कुछ स्टाफ मैम्बर्स भी हौस्पिटल पहुंच गए और उन की मदद से जलज की बौडी को एम्बुलैंस से घर लाने की कवायद हुई. कुछ महिलाएं कनिका को घर ले आईं और फिर जो कुछ हुआ वह तो अब तक कनिका की आंखों से रिस ही रहा है.

“वो लोग आ गए, चलो. पहले कनिका नहा ले, फिर एकएक कर बाकी तुम लोग भी नहा लो,” माधवी ने राखी को इशारा कर के कनिका को बाथरूम में ले जाने को कहा.

कनिका अपनी अलमारी में से कपड़े निकालने लगी.“पक्के रंग की साड़ी पहनना. कोई लेसवेस या गोटाकिनारी न लगी हो, यह जरूर देख लेना,” माधवी का यह स्वर सुन कर कनिका सोच में डूब गई. कच्चापक्का तो कभी सोचा ही नहीं. जलज तो उसे हर रंग के कपड़े ला कर देता था. काले से ले कर सफ़ेद तक. किसी रंग से उसे कोई परहेज नहीं था. माधवी ने आ कर एक बैगनी रंग की प्लेन साड़ी निकाल कर उस के हाथ में थमा दी. कनिका बाथरूम की तरफ चल दी.

शीशे में अपना चेहरा देख कर कनिका डर गई. सूनी मांग-माथे का चेहरा कितना डरावना लग रहा था. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं और शीशे पर तोलिया डाल कर उसे ढक दिया.

किसी तरह रात हुई. आसपड़ोस के लोग जा चुके थे. माधवी और राखी किसी खास मंत्रणा में मशगूल थीं. कनिका किसी मूर्ति सी लौबी में जड़ हुई बैठी थी. वह रोतेरोते थक चुकी थी. उस का शरीर अब आराम करना चाहता था. लेकिन माधवी ने कहा था- “बिना मुझ से पूछे कोई काम न करना. ऐसा न हो कि किसी की नासमझी के कारण दिवंगत आत्मा को कष्ट हो.” इसलिए कनिका सास की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही थी.

“सो जाओ तुम लोग भी.” माधवी की आवाज सुन कर कनिका अपने कमरे की तरफ चली.“बैड पर नहीं, तुम यहीं लौबी में बिछी दरी पर सोना. यही रिवाज है,” माधवी ने कहा.

कनिका की कुछ भी कहनेसुनने या विरोध करने की शक्ति चुक चुकी थी. उस ने सूनीसूनी आंखों से सास की तरफ देखा और बिना तकिया ही दरी पर लुढ़क गई.

सुबह आंख खुलते ही कनिका का जी मिचलाने लगा. ‘मौर्निंग सिकनैस है. कुछ दिन रहेगी, फिर अपनेआप ठीक हो जाएगी. बस, आप सुबह उठते ही 2 बिस्कुट चाय के साथ खा लेना, इस से आप को बेहतर लगेगा,’ लेडी डाक्टर की कही हिदायत याद आते ही कनिका रसोई की तरफ चली.

“अरे, रुको, हाथ मत लगाना किसी भी चीज को. गऊ ग्रास से पहले कोई कुछ नहीं खाएगा,” सास की कड़कती आवाज सुनते ही बिस्कुट का डब्बा उठाती कनिका के हाथ कांप गए.

“क्या ये वही मां जी हैं जो कल तक खुद अपने हाथ से उसे मनुहार कर के चायबिस्कुट खिलाती थीं.” सास का यह रूप देख कर कनिका विस्मित थी. वह चुपचाप रसोई से बाहर आ गई और लौबी में बिछी दरी पर बैठ गई. रसोई धोई गई. फिर खाना बना. पहले गऊ ग्रास, फिर पिंडदान, फिर पंडित जी को भोजन. ये सब करतेकरते दोपहर हो गई.

उलटियां करती कनिका बेहाल हो रही थी. लेकिन अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था. दोपहर बाद राखी उस के लिए एक प्लेट उबली हुई बेस्वाद सी सब्जी और बिना घी लगी 2 रोटी ले कर आई. मन हो न हो, लेकिन शरीर को तो भूख लगती ही है. तब और भी ज्यादा जब शरीर में एक और शरीर पल रहा हो. कनिका ने लपक कर एक निवाला मुंह की तरफ किया. खाते ही उसे उबकाई सी आ गई.

जलज कितना खयाल रखता था उस के खानेपीने का. उस के आंखें फेरते ही सब का नजरिया एक ही दिन में कितना बदल गया. जो मां जी उसे ‘खा ले, खा ले’ कहती नहीं अघाती थीं, वे आज देख भी नहीं रहीं कि वह खा भी रही है या नहीं. दो बूंद आंसुओं और दो घूंट पानी के साथ कनिका ने 2 कौर किसी तरह निगल कर प्लेट एक तरफ सरका दी.

“कनिका, 12 दिन घर में सूतक रहेगा. इसी तरह का खाना बनेगा. वैसे भी, अब सादगी की आदत डाल लो. हमारे यहां पति की चिता के साथ ही सब रागरंग भस्म हो जाता है, समझी?” माधवी ने उस की जूठी प्लेट की तरफ नजर डाली और राखी को प्लेट उठाने का इशारा किया.

‘फिर पंडित जी को क्यों छप्पन भोग खिलाए जा रहे हैं?’ कनिका ने अपने मन में उठे सवाल को वहीं का वहीं दफन कर दिया. सोच में सिर्फ एक ही बात थी, ‘कहीं जलज की आत्मा को कोई तकलीफ न हो.’

पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे. कनिका को हिदायत थी कि सुबह सब से पहले उठ कर नहानाधोना कर ले और पक्के रंग के कपड़े पहन कर बैठक के लिए बैठ जाए. उसे ध्यान रखना होता था कि उस के चेहरे को कोई सुहागन स्त्री न देख ले या कोई पुरुष उसे छू न जाए. उस के इस्तेमाल किए गए कंघेतोलिए तक को सब से अलग रखा जाता था.

दिनभर शोक जताने वालों का आनाजाना लगा रहता था. कनिका को हरेक के सामने अपना कलेजा चीर कर दिखाना होता था कि उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है. आनेजाने वालों की संख्या से कनिका को अंदाजा हो गया था कि समाज में जलज का कद कितना बड़ा था. दूरदूर से उस के फेसबुक फ्रैंड्स भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आ रहे थे. कुछ कनिका तक पहुंच पाते थे, तो कुछ बाहर पुरुषों की बैठक से ही लौट जाते थे.

“भाभी, ये जलज भैया के फेसबुक फ्रैंड हैं महेश. हरिद्वार से आए हैं,” राखी के यह कहने पर घुटनों में सिर दिए बैठी कनिका ने मुंह उठा कर देखा. जलज के ही हमउम्र 2 युवक नम आंखें लिए हाथ जोड़े खड़े थे. एक युवक विदेशी लग रहा था. कनिका ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर फिर से नीचे कर लिया.

“भाभी जी, जो कुछ हुआ, उस के लिए तो कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जो बचा है उसे सहेजने की जिम्मेदारी अब आप की है. जलज मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बेशक हमारी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी लेकिन हम एकदूसरे के बहुत करीब थे,” महेश कनिका के पास बैठ गया.

“ये मेरा दोस्त सैम है, यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कौलर है. भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा है. असल भारत की परम्पराएं और रीतिरिवाज जानने की जिज्ञासा लिए गांवगांव, शहरशहर भटकता रहता है. इसे भी मैं अपने साथ ले आया,” महेश ने आगे कहा तो कनिका ने सैम की तरफ हाथ जोड़ कर उस का अभिवादन किया.

कनिका ने देखा भूरे बालों वाले सैम ने अपने कान पर पीर्सिंग करवा कर सोने की बाली सी पहन रखी है. दाहिने हाथ की कलाई और बाएं हाथ की भुजा पर विदेशी भाषा में लिखे कुछ शब्दों के टैटू बनवा रखे थे जिन के अर्थ कनिका की समझ से परे थे. होजरी की पतली सी सफ़ेद टीशर्ट और फुल्ली रुग्गड जींस में वह सचमुच सब से अलग दिख रहा था. माधवी की चुभती दृष्टि महसूस कर कनिका ने सैम पर से अपनी निगाहें हटा लीं और फिर से अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया.

तभी कनिका को उबकाई सी आई और वह भाग कर वाशबेसिन की तरफ गई. उलटी कर के पलटी, तो देखा कि सैम पानी का गिलास लिए खड़ा था. कनिका को सैम की ये

ह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसे सैम के कोमल हृदयी होने का आभास अवश्य हो गया था. उस ने चुपचाप पानी के 2 घूंट लिए और अपनी जगह आ कर बैठ गई.

“महेश जी, आप लोग खाना खा लीजिए,” राखी महेश और सैम को खाने के लिए ले गई. सैम ने कनिका की तरफ देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न था- “आप ने खाया?” कनिका से उसे कोई प्रत्युतर का भाव नहीं मिला.

महेश की ट्रेन दूसरे दिन सुबह की थी. पूरे 20 घंटे सैम को कनिका के घर ही रहना था. उस की आंखें हर गतिविधि का भरपूर अवलोकन कर रही थीं, लेकिन भाषाई समस्या के कारण वह अधिक कहसुन नहीं पा रहा था. बारबार कनिका की तरफ उठती उस की आंखों में कनिका के प्रति सहज संवेदना झलक रही थी. एहसासों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता भी कहां होती है.

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October 30, 2020 at 10:00AM

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