Sunday 31 May 2020

Short Story:बदलते मापदंड

‘सोनल यूनिवर्सिटी चली गई है. अब चल कर उस का कमरा साफ करूं,’ माधुरी झुंझलाई, ‘कितनी बार कहा लाड़ली से कि या तो काम करने वाली बाई से साफ करवा लिया कर या खुद साफ कर लिया कर. मगर उस पर तो इस का कुछ असर ही नहीं होता. काम करने वाली बाई के समय उसे बाधा होने लगती है और बाद में यूनिवर्सिटी जाने की जल्दी.’

सारे काम करने के बाद माधुरी को सोनल का कमरा साफ करना बहुत अखरता था. वह सोचती कि अब सोनल कोई बच्ची तो नहीं, 20 वर्षीया युवती है, एम.एससी. फाइनल की छात्रा. परसों उस की सगाई भी हो गई है. 2 महीने बाद जब उस की परीक्षा हो जाएगी तब विवाह भी हो जाएगा, पर अब भी हर प्रकार के उत्तरदायित्व से वह कतराती है. यदि माधुरी इस संबंध में उस के पिताजी से बात करती तो वे यही कहते, ‘क्या है जी, फुजूल की बातों में उस का वक्त मत बरबाद किया करो, वह विज्ञान की छात्रा है. घरगृहस्थी का काम तो जीवनभर करना है.’ कभीकभी वह सोचती कि शायद उस के पिताजी ठीक कहते हैं. हमारे समय में क्या होता था कि जहां जरा सी लड़की बड़ी हुई नहीं कि उस को घरगृहस्थी का काम सिखाना शुरू कर दिया जाता था और फिर जीवनपर्यंत वह घरगृहस्थी पीछा नहीं छोड़ती थी.

यही सब सोचते हुए माधुरी सोनल के कमरे में आ गई. चारों तरफ कमरे में अव्यवस्था फैली हुई थी. तकिया पलंग के बीचोबीच पड़ा था और उतारे हुए कपड़े भी पलंग पर बिखरे पड़े थे. पढ़ाई की मेज पर किताबें आड़ीतिरछी पड़ी थीं. माधुरी को फिर झुंझलाहट हुई कि 2 महीने बाद इस लड़की का विवाह हो जाएगा. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि यदि इस लड़की का यही हाल रहा तो यह गृहस्थी कैसे संभालेगी. सारा कमरा व्यवस्थित कर माधुरी पढ़ाई की मेज के पास आ गई, ‘यह किताबों के साथ मेज में बड़े रूमाल में क्या बंधा रखा है? पत्र मालूम पड़ते हैं. इतने पत्र, शायद अपनी सहेलियों के पत्र इकट्ठे कर रखे होंगे,’ माधुरी सोचने लगी. पत्र शायद संख्या में काफी थे. तभी तो रूमाल में बड़ी मुश्किल से बंध पाए थे. वह उन्हें उठा कर किनारे रखने लगी कि तभी कागज का एक टुकड़ा नीचे गिर गया. उस ने उस टुकड़े को उठा लिया. उस में लिखा था,  ‘प्रिय सोनल, तुम्हारे पत्र तुम्हें वापस कर रहा हूं. गिन लेना, पूरे 101 हैं. तुम्हारा सुमित.’

ये भी पढ़ें-Short Story: कागज के चंद टुकड़ों का मोहताज रिश्ता

कागज के उस टुकड़े को पढ़ कर माधुरी को चक्कर सा आने लगा. वह अपनी उत्सुकता को नहीं रोक पाई. उस ने रूमाल खोल दिया. गुलाबी लिफाफों में सारे प्रेमपत्र थे. वह जल्दीजल्दी उन को पढ़ने लगी. फिर सिर पकड़ कर वहीं पलंग पर बैठ गई. उस की आंखों के सामने एकदम अंधेरा सा छा गया. थोड़ी देर बाद वह सामान्य हुई तो सोचने लगी,  ‘यह क्या, यह लड़की इस मार्ग पर इतनी दूर निकल गई और उसे मां हो कर आभास तक नहीं मिला. वह तो सुमित को मात्र सोनल का एक सहपाठी समझती रही. शुरू से ही वह सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी है. लड़कों से उस की मित्रता भी हमेशा रही है. सुमित के साथ  कुछ ज्यादा ही घुलामिला देखा सोनल को, मगर वह इस बारे में तो सोच ही न सकी. अच्छा हुआ, इस समय घर में कोई नहीं है. उस के पास 2-3 घंटे का समय है, पूरी बात सोचसमझ कर कुछ निर्णय लेने का.’

उस ने उठ कर पहले तो पत्रों को यथावत रूमाल में बांधा, फिर कुरसी पर आ कर चुपचाप बैठ गई. और फिर सोचने लगी, ‘यह लड़की इस संबंध में एक बार भी कुछ न बोली. परसों उसे देखने उस के ससुराल के लोग आए थे तो वह एकदम सहज थी. उस से मैं ने और उस के पिताजी ने इस संबंध में उस की राय भी पूछी थी तब भी उस ने शालीनता से अपनी सहमति जताई थी. ‘मगर उस ने भी तो आज से 22 वर्ष पूर्व यही किया था. प्यार किसी और से करने पर भी उस ने सोनल के पिताजी से विवाह के लिए इनकार नहीं किया था. जब वह इंटर में थी तो पड़ोस में एक नए किराएदार आ कर रहने लगे थे. उन का सुदर्शन बेटा, भैया का दोस्त और एमए का छात्र था.

‘जाड़े की कुनकुनी धूप में वह अपनी पुस्तकें ले कर ऊपर छत पर आ जाती पढ़ने को, तभी देखती कि छत की दूसरी ओर वह भी अपनी पुस्तकें ले कर आ गया है. पढ़ते समय बीच में जब भी उस की नजर उस ओर उठती एकटक उस को अपनी ओर ही देखते पाती थी. संदीप नाम था उस का. उस की नजर में जो वह अपने लिए तड़प महसूस करती थी, वह उसे अंदर तक बेचैन कर देती थी. ‘कब वह भी धीरेधीरे उस की ओर आकृष्ट हो गई, वह समझ ही न सकी थी. हालांकि दोनों में से कोई एकदूसरे से एक शब्द भी नहीं बोलता था, पर उसे हर क्षण दोपहर की प्रतीक्षा रहती थी. ‘ऐसे में ही एक दिन उस को पता चला कि उस को देखने लड़के वाले आ रहे हैं. वह जैसे आसमान से नीचे गिरी मगर कुछ कह न सकी थी और वे लोग मंगनी की रस्म पूरी कर के चले गए थे. उस के बाद से वह ऊपर छत पर जाती, पर उसे वहां दूसरी छत पर कोई दिखाई नहीं देता था. बाद में संदीप की मां ने माधुरी की मां को बताया था कि आजकल चौबीसों घंटे संदीप पढ़ाई ही करता रहता है. कहता है कि परीक्षा सिर पर है और उसे  ‘टौप’ करना है. दाढ़ी वगैरह भी नहीं बनाता. सुन कर वह कमरे में जा कर खूब रोई थी.

भी पढ़ें-ये Short story: पड़ोसिन- कलोनी की औरतें सीमा का मजाक उड़ाते हुए क्यों

‘फिर विवाह के 2-3 दिन पूर्व उस ने उसे अचानक देखा था. भाई ने शायद उस से कोई संदेश कहलवाया था, भीतर मां के पास. देख कर वह तो पहचान ही न पाई थी. आंखें धंसी हुईं, बढ़ी  हुई दाढ़ी और उतरा चेहरा जैसे महीनों से बीमार हो. मां ने तो देखते ही कहा था, ‘अरे संदीप, यह क्या हाल बना रखा है तुम ने? अरे, पढ़ाई के साथसाथ स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया करो.’ ‘सभी बता रहे थे कि उस के विवाह में उस ने दिनरात की परवा किए बिना सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ रखी थी. फिर वह ससुराल चली आई थी. किसी चीज की कमी नहीं थी ससुराल में. पति का प्यार, रुपयापैसा सभीकुछ था मगर फिर भी कभीकभी उसे लगता कि उसे कुछ नहीं मिला. अकेले में वह अकसर रो पड़ती थी. संदीप से उस के बाद जब वह मायके जाती तो भी न मिल पाती थी. उस के पिता का स्थानांतरण हो गया था और वह होस्टल में रह कर पीएच.डी. कर रहा था. ‘बाद में सोनल और अंशुल ने आ कर उन स्मृतियों को थोड़ा धूमिल अवश्य कर दिया था. शादी के 10 वर्षों बाद अचानक, एक दिन ट्रेन में उस की मुलाकात हुई थी संदीप से. वह तो उसे देखते ही पहचान गई थी, पर संदीप को थोड़ा समय लगा था उसे पहचानने में. शायद विवाह और बच्चों ने उस में काफी परिवर्तन ला दिया था और तब पहली बार उन लोगों में बातें हुई थीं. भले ही वे औपचारिक थीं.

‘जब उस ने संदीप से विवाह और बच्चों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था, पति ने चुहल की थी कि कोई पसंद नहीं आई क्या? मगर संदीप ने बड़ी संजीदगी से उत्तर दिया था कि नहीं, एक पसंद तो आई थी मगर मेरे पसंद जाहिर करने से पहले ही उस ने दूसरे के साथ घर बसा लिया था. उस ने चौंक कर संदीप की आंखों में झांका था, जहां उसे अथाह वेदना लहराती नजर आई थी. वह फिर काफी दिनों तक बेचैन रही थी और अपने को अपराधिन अनुभव करती रही थी. ‘मगर उस का समय तो दूसरा था. प्रेम की बात को जबान पर लाने के लिए बड़ा साहस चाहिए था परंतु सोनल तो खुली हुई थी, वह तो उसे बता सकती थी कि हो सकता है उस ने सोचा हो कि हम लोग अंतर्जातीय विवाह नहीं करेंगे क्योंकि सुमित दूसरी जाति का था. मगर एक बार वह कह कर देखती. लगता है उस ने अपने मातापिता का दिल नहीं तोड़ना चाहा होगा.

‘चलो, अच्छा हुआ जो उसे पता चल गया. अब वह किसी तरह सुमित से उस का विवाह करवा ही देगी. अपने जीवन की त्रासदी उस के जीवन में नहीं घटित होने देगी.’ तभी घंटी बजी. लगता है सोनल यूनिवर्सिटी से वापस आ गई है. इसी मानसिक ऊहापोह में माधुरी को समय का पता ही नहीं चला. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सोनल ही खड़ी थी. ‘‘क्या हुआ, मां?’’ मां का उड़ा हुआ चेहरा देख कर सोनल ने पूछा.

ये भी पढ़ें-Short Story: खत्म हुआ तूफान

‘‘कुछ नहीं, सिर में दर्द है.’’

सोनल कपड़े बदल कर खाने की मेज पर आ कर बैठ गई. माधुरी उस के लिए खाना निकालने लगी तो सोनल बोली, ‘‘मां, तुम्हारे सिर में दर्द है. तुम आराम करो. मैं खुद निकाल कर खा लूंगी.’’ मगर माधुरी वहीं पास पड़ी दूसरी कुरसी पर बैठ गई. वह सोनल से सुमित के बारे में पूछना चाहती थी मगर समझ नहीं रही थी कि बात कहां से शुरू करे. सोनल न जाने क्याक्या अपनी यूनिवर्सिटी की बातें बता रही थी, लेकिन उस को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. सोनल भांप गई कि मां का ध्यान कहीं और है, बोली,  ‘‘क्या है, मां, क्या सोच रही हो, मेरी बातें नहीं सुन रही हो?’’

सोनल द्वारा अचानक पूछे गए सवाल पर माधुरी पहले तो हड़बड़ाई, फिर बोली, ‘‘सोनल, तू अपने विवाह से खुश तो है न?’’ सोनल एकदम भावुक हो गई, ‘‘खुश क्यों होऊंगी मां? क्या किसी लड़की को भला अपने मातापिता को छोड़ने की खुशी होती है?’’ कह कर सोनल रोने लगी. माधुरी की आंखों में भी आंसू आ गए. वह मन ही मन सोचने लगी कि कितनी खूबसूरती से यह लड़की अपनी वेदना प्रकट कर गई. वह स्वयं भी बहुत रोया करती थी. लोग सोचते कि उस को परिवार वालों को छोड़ने का दुख है. कोई भी उस के हृदय के हाहाकार को समझ नहीं पाया था. मगर यह बेवकूफ लड़की यह नहीं जानती कि उस की मां उस के रुदन के पीछे छिपे हाहाकार को बड़ी तीव्रता से महसूस कर रही है. थोड़ी देर बाद सोनल को स्टोररूम से कोयले की अंगीठी लाते हुए देख कर उस ने पूछा, ‘‘सोनल, अंगीठी का क्या करेगी?’’

‘‘मां, कुछ रद्दी कागज जलाने हैं,’’  सोनल का संक्षिप्त सा उत्तर आया.

‘फिर झूठ बोली यह लड़की. अपने हृदय के उद्गारों को रद्दी कागज का टुकड़ा बता रही है,’ वह सोचने लगी. लेकिन वह पूछे भी तो कैसे पूछे, कैसे कहे कि उस ने उस के प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं. सोनल पत्रों को जला चुकने के बाद उस के पास वहीं रसोई में आ गई,  ‘‘मां, क्या बनाया है नाश्ते में आज? वाह, मेरी पसंद के ढोकले बनाए हैं.’’ वह नजर उठा कर सोनल के चेहरे की ओर देखने लगी. उस के चेहरे पर कहीं उदासी के चिह्न भी नहीं थे. कितनी आसानी से यह लड़की चेहरे  के भाव बदल लेती है. नाटक करने में तो शुरू से ही निपुण रही है यह. कई इनाम भी जीत चुकी है स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी में अपनी सशक्त अभिनय प्रतिभा से. वह सोनल के चेहरे को और ध्यान से देखने लगी कि शायद कहीं उदासी की लिखावट पोंछ न पाई हो और उसी के सहारे वह उस के मन की भाषा पढ़ सके. माधुरी के इस प्रकार देखने से सोनल कुछ असहज हो गई, ‘‘क्या बात है, मां? मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?’’

‘‘तुझे अपना दूल्हा तो पसंद है न? कहीं कोई और लड़का पसंद हो तो बता दे, अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है. मैं सब संभाल लूंगी,’’ माधुरी उस के प्रश्न के उत्तर में फिर उस से प्रश्न कर बैठी.

‘‘नहीं मां, मुझे और कोई लड़का पसंद नहीं है. और फिर मेरा दूल्हा तो जब आप लोगों को पसंद है तो फिर मुझे पसंद न आने का प्रश्न ही कहां? मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?’’ सोनल ने माधुरी के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान हो कर पूछा.

माधुरी को एकाएक कोई उत्तर नहीं सूझा तो झट से कहा, ‘‘कुछ नहीं बेटी, यों ही पूछ लिया. तुम सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी हो न, इसलिए.’’ यह लड़की ऐसे सचसच नहीं बताएगी. फिर क्या करे वह, माधुरी कुछ समय नहीं पा रही थी. ‘आज रात को मैं इस के पिताजी से बात कर के देखती हूं कि वे क्या कहते हैं,’ माधुरी ने मन में सोचा. रात में सोनल के पिताजी से माधुरी ने कहा, ‘‘सुनो, हम लोगों ने सोनल की शादी तय तो कर दी है, कहीं उसे कोई और लड़का पसंद हुआ तो…हम लोगों ने इस ओर तो ध्यान ही नहीं दिया?’’

‘‘क्यों, कुछ कहा क्या सोनल ने?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘नहीं,’’ माधुरी बोली.

‘‘फिर तुम्हारे दिमाग में यह सब आया कैसे?’’ सोनल के पिताजी ने फिर प्रश्न किया.

माधुरी ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, यों ही दिमाग में आ गया. वह लड़कों से कुछ अधिक खुली हुई है न.’’

‘‘तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि वह किसी से प्रेम करती होगी. फुजूल की बातें सोच कर मेरा और अपना दिमाग खराब कर रही हो,’’ सोनल के पिता ने उसे हलकी सी झिड़की देते हुए कहा.

‘अब वह क्या करे? लगता है सोनल से इस संबंध में घुमाफिरा कर नहीं, साफसाफ बात करनी पड़ेगी. कल शाम को जब वह यूनिवर्सिटी से आएगी, तभी वह खुल कर इस संबंध में उस से बात करेगी,’ माधुरी ने मन ही मन निर्णय किया. फिर सारी रात और शाम तक का समय माधुरी ने इसी ऊहापोह में बिताया कि जब सोनल को यह पता चलेगा कि उस ने उस के सारे प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं तो वह क्या सोचेगी. फिर शाम को माधुरी ने सोनल को खाने की मेज पर घेर लिया और पूछा, ‘‘सोनल, तुम सुमित से प्रेम करती थीं, फिर तुम ने एक बार भी शादी के लिए इनकार क्यों नहीं किया? आज ही मैं तुम्हारे पिताजी से इस संबंध में बात करूंगी. हम लोग उन मातापिताओं में से नहीं हैं जो अपनी इच्छा के आगे बच्चों की खुशियों का गला घोंट देते हैं. मैं तुम्हारी शादी सुमित से करवा कर रहूंगी.’’ सोनल विस्फारित नेत्रों से माधुरी की ओर देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘मां, तुम से किस ने कहां कि मैं सुमित से प्यार करती हूं. वह मेरा अच्छा मित्र अवश्य है, पर क्या मित्रता की परिणति शादी में ही होती है?’’

‘‘तुझे शादी नहीं करनी थी तो प्रेमपत्र क्यों लिखे थे उस को?’’ सोनल के उत्तर से माधुरी झुंझला पड़ी.

‘‘अरे मां, वह तो हम लोगों का एक शगल था. आप के हाथ वह पत्र लग गया क्या? तभी मैं कहूं कि कल से मेरी मां उदास क्यों हैं?’’ फिर वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं, मुझे नहीं करनी है शादी सुमित से. न नौकरी न चाकरी. अब आप निश्ंिचत हो जाइए.’’ माधुरी को उस की हंसी शीशे की तरह चुभी. वह सोचने लगी है कि क्या यह उसी की लड़की है, जिस के लिए भावना का कोई मूल्य नहीं. प्रेम में भी अपनी व्यावहारिक बुद्धि लगाती है. इस बेवकूफ लड़की को यह नहीं मालूम कि प्यार वह चीज है जो दुनिया की हर दौलत से बढ़ कर होती है. मगर वह क्या समझेगी जिस ने प्यार को मनोरंजन समझा हो. बेचारा सुमित कैसे इस लड़की के प्रेमजाल में फंस गया. उस ने इस के साथ न जाने कितने सपने संजोए होंगे. उसे क्या मालूम कि यह उस के प्यार और त्याग की जरा भी कद्र नहीं करती. तभी घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सुमित को खड़ा पाया. कैसा थकाहारा सा लग रहा है. उसे लगा जैसे उस का अंशुल ही प्यार में शिकस्त खा कर खड़ा हो.

‘‘आंटी, सोनल है क्या घर में?’’ सुमित ने पूछा. माधुरी के उत्तर के पहले ही सोनल आ गई, ‘‘अरे, सुमित तुम, आओ बैठो,’’ कहते हुए वह उसे ड्राइंगरूम में ले गई. माधुरी चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. थोड़ी देर बाद वह चाय ले कर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी दरवाजे से आते हुए शब्दों ने उसे वहीं ठिठक कर खड़े रहने को विवश कर दिया. सोनल की आवाज थी, ‘‘सुमित, तुम्हारे लिए एक दुखद समाचार है, जानते हो, मां ने मेरे सभी पत्र पढ़ लिए हैं.’’ सुमित का अचकचाहटभरा स्वर उभरा, ‘‘फिर, आंटी तुम पर खूब नाराज हुई होंगी. बड़ी लापरवाह हो. लापरवाही से पत्र रख दिए होंगे.’’

‘‘नहीं, नाराज होतीं तो तुम्हारे लिए दुखद समाचार क्यों होता. वे आधुनिक मां हैं न, तुम्हारे गले में मुझ से जयमाला डलवा रही थीं. बड़ी मुश्किल से उन को समझा पाई हूं कि हम लोग आपस में शादी नहीं करेंगे,’’ यह सोनल का स्वर था.

‘‘यह तो वास्तव में हमारे लिए दुखद समाचार था. कौन करता तुम जैसी बेवकूफ लड़की से शादी?’’ सुमित का स्वर था.

‘‘अच्छा, तो मैं बेवकूफ हूं,’’ सोनल बोली.

‘‘खैर, छोड़ो, हम लोग इस बंधन में बंधने से बच गए, इसलिए इस खुशी को चल कर किसी कौफी हाउस में मनाते हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आओ,’’ यह सुमित का स्वर था. नई पीढ़ी के प्यार की परिभाषा सुन कर माधुरी को एकदम चक्कर सा आ गया और उस के हाथ से ट्रे छूट कर जमीन पर गिर गई. वह वहीं जमीन पर बैठ गई. उस के चारों तरफ फैली चाय, कप और केतली के टुकड़े उसे उस की मूर्खता का उपहासउड़ाते प्रतीत हो रहे थे.

The post Short Story:बदलते मापदंड appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/2TRJy7R

‘सोनल यूनिवर्सिटी चली गई है. अब चल कर उस का कमरा साफ करूं,’ माधुरी झुंझलाई, ‘कितनी बार कहा लाड़ली से कि या तो काम करने वाली बाई से साफ करवा लिया कर या खुद साफ कर लिया कर. मगर उस पर तो इस का कुछ असर ही नहीं होता. काम करने वाली बाई के समय उसे बाधा होने लगती है और बाद में यूनिवर्सिटी जाने की जल्दी.’

सारे काम करने के बाद माधुरी को सोनल का कमरा साफ करना बहुत अखरता था. वह सोचती कि अब सोनल कोई बच्ची तो नहीं, 20 वर्षीया युवती है, एम.एससी. फाइनल की छात्रा. परसों उस की सगाई भी हो गई है. 2 महीने बाद जब उस की परीक्षा हो जाएगी तब विवाह भी हो जाएगा, पर अब भी हर प्रकार के उत्तरदायित्व से वह कतराती है. यदि माधुरी इस संबंध में उस के पिताजी से बात करती तो वे यही कहते, ‘क्या है जी, फुजूल की बातों में उस का वक्त मत बरबाद किया करो, वह विज्ञान की छात्रा है. घरगृहस्थी का काम तो जीवनभर करना है.’ कभीकभी वह सोचती कि शायद उस के पिताजी ठीक कहते हैं. हमारे समय में क्या होता था कि जहां जरा सी लड़की बड़ी हुई नहीं कि उस को घरगृहस्थी का काम सिखाना शुरू कर दिया जाता था और फिर जीवनपर्यंत वह घरगृहस्थी पीछा नहीं छोड़ती थी.

यही सब सोचते हुए माधुरी सोनल के कमरे में आ गई. चारों तरफ कमरे में अव्यवस्था फैली हुई थी. तकिया पलंग के बीचोबीच पड़ा था और उतारे हुए कपड़े भी पलंग पर बिखरे पड़े थे. पढ़ाई की मेज पर किताबें आड़ीतिरछी पड़ी थीं. माधुरी को फिर झुंझलाहट हुई कि 2 महीने बाद इस लड़की का विवाह हो जाएगा. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि यदि इस लड़की का यही हाल रहा तो यह गृहस्थी कैसे संभालेगी. सारा कमरा व्यवस्थित कर माधुरी पढ़ाई की मेज के पास आ गई, ‘यह किताबों के साथ मेज में बड़े रूमाल में क्या बंधा रखा है? पत्र मालूम पड़ते हैं. इतने पत्र, शायद अपनी सहेलियों के पत्र इकट्ठे कर रखे होंगे,’ माधुरी सोचने लगी. पत्र शायद संख्या में काफी थे. तभी तो रूमाल में बड़ी मुश्किल से बंध पाए थे. वह उन्हें उठा कर किनारे रखने लगी कि तभी कागज का एक टुकड़ा नीचे गिर गया. उस ने उस टुकड़े को उठा लिया. उस में लिखा था,  ‘प्रिय सोनल, तुम्हारे पत्र तुम्हें वापस कर रहा हूं. गिन लेना, पूरे 101 हैं. तुम्हारा सुमित.’

ये भी पढ़ें-Short Story: कागज के चंद टुकड़ों का मोहताज रिश्ता

कागज के उस टुकड़े को पढ़ कर माधुरी को चक्कर सा आने लगा. वह अपनी उत्सुकता को नहीं रोक पाई. उस ने रूमाल खोल दिया. गुलाबी लिफाफों में सारे प्रेमपत्र थे. वह जल्दीजल्दी उन को पढ़ने लगी. फिर सिर पकड़ कर वहीं पलंग पर बैठ गई. उस की आंखों के सामने एकदम अंधेरा सा छा गया. थोड़ी देर बाद वह सामान्य हुई तो सोचने लगी,  ‘यह क्या, यह लड़की इस मार्ग पर इतनी दूर निकल गई और उसे मां हो कर आभास तक नहीं मिला. वह तो सुमित को मात्र सोनल का एक सहपाठी समझती रही. शुरू से ही वह सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी है. लड़कों से उस की मित्रता भी हमेशा रही है. सुमित के साथ  कुछ ज्यादा ही घुलामिला देखा सोनल को, मगर वह इस बारे में तो सोच ही न सकी. अच्छा हुआ, इस समय घर में कोई नहीं है. उस के पास 2-3 घंटे का समय है, पूरी बात सोचसमझ कर कुछ निर्णय लेने का.’

उस ने उठ कर पहले तो पत्रों को यथावत रूमाल में बांधा, फिर कुरसी पर आ कर चुपचाप बैठ गई. और फिर सोचने लगी, ‘यह लड़की इस संबंध में एक बार भी कुछ न बोली. परसों उसे देखने उस के ससुराल के लोग आए थे तो वह एकदम सहज थी. उस से मैं ने और उस के पिताजी ने इस संबंध में उस की राय भी पूछी थी तब भी उस ने शालीनता से अपनी सहमति जताई थी. ‘मगर उस ने भी तो आज से 22 वर्ष पूर्व यही किया था. प्यार किसी और से करने पर भी उस ने सोनल के पिताजी से विवाह के लिए इनकार नहीं किया था. जब वह इंटर में थी तो पड़ोस में एक नए किराएदार आ कर रहने लगे थे. उन का सुदर्शन बेटा, भैया का दोस्त और एमए का छात्र था.

‘जाड़े की कुनकुनी धूप में वह अपनी पुस्तकें ले कर ऊपर छत पर आ जाती पढ़ने को, तभी देखती कि छत की दूसरी ओर वह भी अपनी पुस्तकें ले कर आ गया है. पढ़ते समय बीच में जब भी उस की नजर उस ओर उठती एकटक उस को अपनी ओर ही देखते पाती थी. संदीप नाम था उस का. उस की नजर में जो वह अपने लिए तड़प महसूस करती थी, वह उसे अंदर तक बेचैन कर देती थी. ‘कब वह भी धीरेधीरे उस की ओर आकृष्ट हो गई, वह समझ ही न सकी थी. हालांकि दोनों में से कोई एकदूसरे से एक शब्द भी नहीं बोलता था, पर उसे हर क्षण दोपहर की प्रतीक्षा रहती थी. ‘ऐसे में ही एक दिन उस को पता चला कि उस को देखने लड़के वाले आ रहे हैं. वह जैसे आसमान से नीचे गिरी मगर कुछ कह न सकी थी और वे लोग मंगनी की रस्म पूरी कर के चले गए थे. उस के बाद से वह ऊपर छत पर जाती, पर उसे वहां दूसरी छत पर कोई दिखाई नहीं देता था. बाद में संदीप की मां ने माधुरी की मां को बताया था कि आजकल चौबीसों घंटे संदीप पढ़ाई ही करता रहता है. कहता है कि परीक्षा सिर पर है और उसे  ‘टौप’ करना है. दाढ़ी वगैरह भी नहीं बनाता. सुन कर वह कमरे में जा कर खूब रोई थी.

भी पढ़ें-ये Short story: पड़ोसिन- कलोनी की औरतें सीमा का मजाक उड़ाते हुए क्यों

‘फिर विवाह के 2-3 दिन पूर्व उस ने उसे अचानक देखा था. भाई ने शायद उस से कोई संदेश कहलवाया था, भीतर मां के पास. देख कर वह तो पहचान ही न पाई थी. आंखें धंसी हुईं, बढ़ी  हुई दाढ़ी और उतरा चेहरा जैसे महीनों से बीमार हो. मां ने तो देखते ही कहा था, ‘अरे संदीप, यह क्या हाल बना रखा है तुम ने? अरे, पढ़ाई के साथसाथ स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया करो.’ ‘सभी बता रहे थे कि उस के विवाह में उस ने दिनरात की परवा किए बिना सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ रखी थी. फिर वह ससुराल चली आई थी. किसी चीज की कमी नहीं थी ससुराल में. पति का प्यार, रुपयापैसा सभीकुछ था मगर फिर भी कभीकभी उसे लगता कि उसे कुछ नहीं मिला. अकेले में वह अकसर रो पड़ती थी. संदीप से उस के बाद जब वह मायके जाती तो भी न मिल पाती थी. उस के पिता का स्थानांतरण हो गया था और वह होस्टल में रह कर पीएच.डी. कर रहा था. ‘बाद में सोनल और अंशुल ने आ कर उन स्मृतियों को थोड़ा धूमिल अवश्य कर दिया था. शादी के 10 वर्षों बाद अचानक, एक दिन ट्रेन में उस की मुलाकात हुई थी संदीप से. वह तो उसे देखते ही पहचान गई थी, पर संदीप को थोड़ा समय लगा था उसे पहचानने में. शायद विवाह और बच्चों ने उस में काफी परिवर्तन ला दिया था और तब पहली बार उन लोगों में बातें हुई थीं. भले ही वे औपचारिक थीं.

‘जब उस ने संदीप से विवाह और बच्चों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था, पति ने चुहल की थी कि कोई पसंद नहीं आई क्या? मगर संदीप ने बड़ी संजीदगी से उत्तर दिया था कि नहीं, एक पसंद तो आई थी मगर मेरे पसंद जाहिर करने से पहले ही उस ने दूसरे के साथ घर बसा लिया था. उस ने चौंक कर संदीप की आंखों में झांका था, जहां उसे अथाह वेदना लहराती नजर आई थी. वह फिर काफी दिनों तक बेचैन रही थी और अपने को अपराधिन अनुभव करती रही थी. ‘मगर उस का समय तो दूसरा था. प्रेम की बात को जबान पर लाने के लिए बड़ा साहस चाहिए था परंतु सोनल तो खुली हुई थी, वह तो उसे बता सकती थी कि हो सकता है उस ने सोचा हो कि हम लोग अंतर्जातीय विवाह नहीं करेंगे क्योंकि सुमित दूसरी जाति का था. मगर एक बार वह कह कर देखती. लगता है उस ने अपने मातापिता का दिल नहीं तोड़ना चाहा होगा.

‘चलो, अच्छा हुआ जो उसे पता चल गया. अब वह किसी तरह सुमित से उस का विवाह करवा ही देगी. अपने जीवन की त्रासदी उस के जीवन में नहीं घटित होने देगी.’ तभी घंटी बजी. लगता है सोनल यूनिवर्सिटी से वापस आ गई है. इसी मानसिक ऊहापोह में माधुरी को समय का पता ही नहीं चला. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सोनल ही खड़ी थी. ‘‘क्या हुआ, मां?’’ मां का उड़ा हुआ चेहरा देख कर सोनल ने पूछा.

ये भी पढ़ें-Short Story: खत्म हुआ तूफान

‘‘कुछ नहीं, सिर में दर्द है.’’

सोनल कपड़े बदल कर खाने की मेज पर आ कर बैठ गई. माधुरी उस के लिए खाना निकालने लगी तो सोनल बोली, ‘‘मां, तुम्हारे सिर में दर्द है. तुम आराम करो. मैं खुद निकाल कर खा लूंगी.’’ मगर माधुरी वहीं पास पड़ी दूसरी कुरसी पर बैठ गई. वह सोनल से सुमित के बारे में पूछना चाहती थी मगर समझ नहीं रही थी कि बात कहां से शुरू करे. सोनल न जाने क्याक्या अपनी यूनिवर्सिटी की बातें बता रही थी, लेकिन उस को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. सोनल भांप गई कि मां का ध्यान कहीं और है, बोली,  ‘‘क्या है, मां, क्या सोच रही हो, मेरी बातें नहीं सुन रही हो?’’

सोनल द्वारा अचानक पूछे गए सवाल पर माधुरी पहले तो हड़बड़ाई, फिर बोली, ‘‘सोनल, तू अपने विवाह से खुश तो है न?’’ सोनल एकदम भावुक हो गई, ‘‘खुश क्यों होऊंगी मां? क्या किसी लड़की को भला अपने मातापिता को छोड़ने की खुशी होती है?’’ कह कर सोनल रोने लगी. माधुरी की आंखों में भी आंसू आ गए. वह मन ही मन सोचने लगी कि कितनी खूबसूरती से यह लड़की अपनी वेदना प्रकट कर गई. वह स्वयं भी बहुत रोया करती थी. लोग सोचते कि उस को परिवार वालों को छोड़ने का दुख है. कोई भी उस के हृदय के हाहाकार को समझ नहीं पाया था. मगर यह बेवकूफ लड़की यह नहीं जानती कि उस की मां उस के रुदन के पीछे छिपे हाहाकार को बड़ी तीव्रता से महसूस कर रही है. थोड़ी देर बाद सोनल को स्टोररूम से कोयले की अंगीठी लाते हुए देख कर उस ने पूछा, ‘‘सोनल, अंगीठी का क्या करेगी?’’

‘‘मां, कुछ रद्दी कागज जलाने हैं,’’  सोनल का संक्षिप्त सा उत्तर आया.

‘फिर झूठ बोली यह लड़की. अपने हृदय के उद्गारों को रद्दी कागज का टुकड़ा बता रही है,’ वह सोचने लगी. लेकिन वह पूछे भी तो कैसे पूछे, कैसे कहे कि उस ने उस के प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं. सोनल पत्रों को जला चुकने के बाद उस के पास वहीं रसोई में आ गई,  ‘‘मां, क्या बनाया है नाश्ते में आज? वाह, मेरी पसंद के ढोकले बनाए हैं.’’ वह नजर उठा कर सोनल के चेहरे की ओर देखने लगी. उस के चेहरे पर कहीं उदासी के चिह्न भी नहीं थे. कितनी आसानी से यह लड़की चेहरे  के भाव बदल लेती है. नाटक करने में तो शुरू से ही निपुण रही है यह. कई इनाम भी जीत चुकी है स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी में अपनी सशक्त अभिनय प्रतिभा से. वह सोनल के चेहरे को और ध्यान से देखने लगी कि शायद कहीं उदासी की लिखावट पोंछ न पाई हो और उसी के सहारे वह उस के मन की भाषा पढ़ सके. माधुरी के इस प्रकार देखने से सोनल कुछ असहज हो गई, ‘‘क्या बात है, मां? मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?’’

‘‘तुझे अपना दूल्हा तो पसंद है न? कहीं कोई और लड़का पसंद हो तो बता दे, अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है. मैं सब संभाल लूंगी,’’ माधुरी उस के प्रश्न के उत्तर में फिर उस से प्रश्न कर बैठी.

‘‘नहीं मां, मुझे और कोई लड़का पसंद नहीं है. और फिर मेरा दूल्हा तो जब आप लोगों को पसंद है तो फिर मुझे पसंद न आने का प्रश्न ही कहां? मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?’’ सोनल ने माधुरी के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान हो कर पूछा.

माधुरी को एकाएक कोई उत्तर नहीं सूझा तो झट से कहा, ‘‘कुछ नहीं बेटी, यों ही पूछ लिया. तुम सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ी हो न, इसलिए.’’ यह लड़की ऐसे सचसच नहीं बताएगी. फिर क्या करे वह, माधुरी कुछ समय नहीं पा रही थी. ‘आज रात को मैं इस के पिताजी से बात कर के देखती हूं कि वे क्या कहते हैं,’ माधुरी ने मन में सोचा. रात में सोनल के पिताजी से माधुरी ने कहा, ‘‘सुनो, हम लोगों ने सोनल की शादी तय तो कर दी है, कहीं उसे कोई और लड़का पसंद हुआ तो…हम लोगों ने इस ओर तो ध्यान ही नहीं दिया?’’

‘‘क्यों, कुछ कहा क्या सोनल ने?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘नहीं,’’ माधुरी बोली.

‘‘फिर तुम्हारे दिमाग में यह सब आया कैसे?’’ सोनल के पिताजी ने फिर प्रश्न किया.

माधुरी ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, यों ही दिमाग में आ गया. वह लड़कों से कुछ अधिक खुली हुई है न.’’

‘‘तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि वह किसी से प्रेम करती होगी. फुजूल की बातें सोच कर मेरा और अपना दिमाग खराब कर रही हो,’’ सोनल के पिता ने उसे हलकी सी झिड़की देते हुए कहा.

‘अब वह क्या करे? लगता है सोनल से इस संबंध में घुमाफिरा कर नहीं, साफसाफ बात करनी पड़ेगी. कल शाम को जब वह यूनिवर्सिटी से आएगी, तभी वह खुल कर इस संबंध में उस से बात करेगी,’ माधुरी ने मन ही मन निर्णय किया. फिर सारी रात और शाम तक का समय माधुरी ने इसी ऊहापोह में बिताया कि जब सोनल को यह पता चलेगा कि उस ने उस के सारे प्रेमपत्र पढ़ लिए हैं तो वह क्या सोचेगी. फिर शाम को माधुरी ने सोनल को खाने की मेज पर घेर लिया और पूछा, ‘‘सोनल, तुम सुमित से प्रेम करती थीं, फिर तुम ने एक बार भी शादी के लिए इनकार क्यों नहीं किया? आज ही मैं तुम्हारे पिताजी से इस संबंध में बात करूंगी. हम लोग उन मातापिताओं में से नहीं हैं जो अपनी इच्छा के आगे बच्चों की खुशियों का गला घोंट देते हैं. मैं तुम्हारी शादी सुमित से करवा कर रहूंगी.’’ सोनल विस्फारित नेत्रों से माधुरी की ओर देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘मां, तुम से किस ने कहां कि मैं सुमित से प्यार करती हूं. वह मेरा अच्छा मित्र अवश्य है, पर क्या मित्रता की परिणति शादी में ही होती है?’’

‘‘तुझे शादी नहीं करनी थी तो प्रेमपत्र क्यों लिखे थे उस को?’’ सोनल के उत्तर से माधुरी झुंझला पड़ी.

‘‘अरे मां, वह तो हम लोगों का एक शगल था. आप के हाथ वह पत्र लग गया क्या? तभी मैं कहूं कि कल से मेरी मां उदास क्यों हैं?’’ फिर वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं, मुझे नहीं करनी है शादी सुमित से. न नौकरी न चाकरी. अब आप निश्ंिचत हो जाइए.’’ माधुरी को उस की हंसी शीशे की तरह चुभी. वह सोचने लगी है कि क्या यह उसी की लड़की है, जिस के लिए भावना का कोई मूल्य नहीं. प्रेम में भी अपनी व्यावहारिक बुद्धि लगाती है. इस बेवकूफ लड़की को यह नहीं मालूम कि प्यार वह चीज है जो दुनिया की हर दौलत से बढ़ कर होती है. मगर वह क्या समझेगी जिस ने प्यार को मनोरंजन समझा हो. बेचारा सुमित कैसे इस लड़की के प्रेमजाल में फंस गया. उस ने इस के साथ न जाने कितने सपने संजोए होंगे. उसे क्या मालूम कि यह उस के प्यार और त्याग की जरा भी कद्र नहीं करती. तभी घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सुमित को खड़ा पाया. कैसा थकाहारा सा लग रहा है. उसे लगा जैसे उस का अंशुल ही प्यार में शिकस्त खा कर खड़ा हो.

‘‘आंटी, सोनल है क्या घर में?’’ सुमित ने पूछा. माधुरी के उत्तर के पहले ही सोनल आ गई, ‘‘अरे, सुमित तुम, आओ बैठो,’’ कहते हुए वह उसे ड्राइंगरूम में ले गई. माधुरी चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. थोड़ी देर बाद वह चाय ले कर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी दरवाजे से आते हुए शब्दों ने उसे वहीं ठिठक कर खड़े रहने को विवश कर दिया. सोनल की आवाज थी, ‘‘सुमित, तुम्हारे लिए एक दुखद समाचार है, जानते हो, मां ने मेरे सभी पत्र पढ़ लिए हैं.’’ सुमित का अचकचाहटभरा स्वर उभरा, ‘‘फिर, आंटी तुम पर खूब नाराज हुई होंगी. बड़ी लापरवाह हो. लापरवाही से पत्र रख दिए होंगे.’’

‘‘नहीं, नाराज होतीं तो तुम्हारे लिए दुखद समाचार क्यों होता. वे आधुनिक मां हैं न, तुम्हारे गले में मुझ से जयमाला डलवा रही थीं. बड़ी मुश्किल से उन को समझा पाई हूं कि हम लोग आपस में शादी नहीं करेंगे,’’ यह सोनल का स्वर था.

‘‘यह तो वास्तव में हमारे लिए दुखद समाचार था. कौन करता तुम जैसी बेवकूफ लड़की से शादी?’’ सुमित का स्वर था.

‘‘अच्छा, तो मैं बेवकूफ हूं,’’ सोनल बोली.

‘‘खैर, छोड़ो, हम लोग इस बंधन में बंधने से बच गए, इसलिए इस खुशी को चल कर किसी कौफी हाउस में मनाते हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आओ,’’ यह सुमित का स्वर था. नई पीढ़ी के प्यार की परिभाषा सुन कर माधुरी को एकदम चक्कर सा आ गया और उस के हाथ से ट्रे छूट कर जमीन पर गिर गई. वह वहीं जमीन पर बैठ गई. उस के चारों तरफ फैली चाय, कप और केतली के टुकड़े उसे उस की मूर्खता का उपहासउड़ाते प्रतीत हो रहे थे.

The post Short Story:बदलते मापदंड appeared first on Sarita Magazine.

June 01, 2020 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment