Thursday 28 May 2020

इंसाफ-भाग 2: मालती को बार-बार किसकी बात याद आ रही थी?

‘‘साली मांबेटी दोनों ही छंटी हुई हैं,’’ रूपचंद का साथी बोला और कम्मो के बालों को पकड़ कर जोर का धक्का दिया. वह गिर पड़ी. वह उठ कर मां को फिर बचाने के लिए झपटी. तभी उस के गालों पर बदमाश ने ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह मूर्छित सी हो कर गिर गई. बदमाशों ने मालती को दमभर मारापीटा. तभी एक आदमी डब्बे भर कर मैला ले कर आ गया और जबरन मालती के मुंह में डाल दिया. वह उस के बालों को जोरजोर से खींचते हुए बोला, ‘‘साली, मेरे बच्चे को किसी तरह जिंदा करो, नहीं तो मार ही डालूंगा.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, मैं ने कुछ नहीं किया,’’ कहतेकहते मालती बेहोश हो गई. मारपीट कर बदमाश वहां से चले गए. इस दौरान बस्ती का कोई भी उसे बचाने नहीं आया. कुछ ही देर में रूपचंद एक ओझा को ले कर वहां पहुंचा और बोला, ‘‘बाप रे, यह मालती डायन है, मुझे नहीं मालूम था. ओझाजी इस से पूछिए कि रामलाल के बेटे को तो उस ने खा लिया, अब वह किसे खाना चाहती है?’’ ओझा एक छड़ी से बेहोश मालती को खोदते हुए बोला, ‘‘बोल री डायन, यह सब तू ने क्यों किया?’’ मालती नहीं उठी तो उस ने उसे झाड़ू से मारा. वह फिर भी नहीं उठी तो उस ने आग जला कर उस में मिर्चें डाल कर धुआं किया और एक झाड़ू फिर लगाते हुए बोला, ‘‘अरी जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल, उठती है या नहीं?’’ पूरी बस्ती में यह खबर आग की तरह फैल गई थी. कई लोग उस के घर दौड़े आए. ओझा के दोबारा झाड़ू उठे हाथ लोगों को देख कर रुक गए. कई लोग मालती के करीब आ कर उसे देखने लगे. तो ओझा एक झाड़ू उसे और लगाते हुए बोला, ‘‘जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल तू उठती है या नहीं?’’ कुछ लोग मालती के काफी करीब आ गए, उसे देखते हुए बोले, ‘‘यह तो बेहोश है. छोड़ दीजिए ओझाजी,’’ तभी कम्मो को होश आ गया. वह झटपट उठी और मां की ओर दौड़ी. मां की दशा देख कर फूटफूट कर रोने लगी.

मूर्ति बने लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. रूपचंद और उस के ओझा की दबंगता के आगे सभी डरे हुए थे. जब भी किसी को कुछ काम करवाने की जरूरत होती तो वह रूपचंद की ही सहायता लेता था. उस की पार्टी के साथ लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं. समयसमय पर वह लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला भाषण दिया करता था. आखिर वह एक सांप्रदायिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता जो था. उस की पार्टी के लोग धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करते रहते थे. जब देखो इस पार्टी के लोग अपनी नीतियों की प्रशंसा और अन्य पार्टियों का विरोध करते रहते थे. अपनी पार्टी में उस की धाक थी ही, बस्ती के आसपास के लोग भी उस की दबंगता के आगे खौफ खाते थे और उस की हां में हां मिलाते थे. रूपचंद बड़बड़ाते हुए ओझा को ले कर वहां से चला गया. उस के जाते ही सभी जैसे होश में आ गए. रूपचंद ने मालती का ऐसा रूप सब के सामने पेश करवाया था कि जिस के बारे में उस बेचारी को कुछ भी पता नहीं था. लोग आपस में सलाहमशविरा करने लगे. इतने में एक 7-8 साल का लड़का बंशी आ गया. कम्मो उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करती थी. जिन प्रोफैसर दीदी के यहां वह काम करती थी, उन के यहां से उसे मिठाइयां या टौफी वगैरह मिलतीं तो वह थोड़ा बचा कर उस के लिए जरूर लाती थी. वह छोटा बच्चा इसी इंतजार में रोजाना रहता था कि कब दीदी उस के लिए कुछ ले कर आएंगी. वह भी उसे बहुत प्यार करता था. वह उस का कोई भी काम करने के लिए तैयार रहता था.

मालती और कम्मो की हालत देखते ही वह सरपट दौड़ पड़ा ‘जागरूक महिला सोसायटी’ की सैक्रेटरी दमयंतीजी के पास. उन से जल्दी साथ चलने का आग्रह करने लगा. वे बगल की आदिवासी कालोनी में सब से पहले घर में रहती थीं. हांफते हुए उस ने वहां का सारा नजारा बताया और बांह पकड़ कर बस्ती में ले आया. दमयंतीजी महिलाओं के किसी भी दमनकारी कृत्य में या उन का हक दिलवाने के मामलों में जीजान से जुट जाती थीं. वे खानापीना भूल कर उन की सहायता किया करती थीं. बंशी की बात सुन कर वे बड़ी तेजी से चल कर वहां पहुंचीं और वहां का दृश्य देख कर अवाक् रह गईं. मांबेटी की हालत देख कर उन्हें बहुत गुस्सा आया. वे समझ गईं कि किसी गुंडे ने इन निर्बलों पर अपना बल आजमाया है. वे बोलीं, ‘‘आप लोग तमाशा मत देखिए, फौरन एक टैंपो ले आइए और मालती को अस्पताल पहुंचाने में मदद कीजिए.’’ अब सभी लोग हरकत में आ गए और दौड़ कर टैंपो ले आए. कुछ लोगों की सहायता से मालती को उस में लिटाया गया. तब तक कम्मो ताला बंद कर के मां का सिर अपनी गोद में रख कर बैठ गई. दमयंतीजी भी अगली सीट पर बैठ गईं और अस्पताल पहुंचीं. वहां जरूरी प्रक्रिया पूरी करा कर उन्होंने मालती का इलाज शुरू कराया. मालती की खराब हालत देख कर डाक्टर ने पुलिस का मामला बताते हुए उस का इलाज करने में अपनी मजबूरी बताई. दमयंतीजी जैसी महिला समाजसेवी के आगे उन्हें झुकना पड़ा. कम्मो अभी भी रहरह कर सिसक रही थी. दमयंतीजी ने उसे समझाया, ‘‘देखो, कामिनी, घबराओ नहीं, हमारी महिला सोसायटी तुम लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटेगी. रुपएपैसे की चिंता मत करो और रोना बंद करो.’’

अब तक मालती की बस्ती के कुछ लोग वहां पहुंच गए. दमयंतीजी ने उन लोगों से कहा, ‘‘देखिए, अभी पुलिस आती ही होगी, आप सभी जोजो बातें जानते हैं और देखा है, उस के बारे में बेहिचक पुलिस को बताइएगा. कामिनी भी रिपोर्ट देगी. इन मांबेटी की सहायता करना हम सभी का फर्ज बनता है.’’ सभी लोगों ने अपनी सहमति में सिर हिलाया. पुलिस ने आते ही सब का बयान ले कर एफआईआर दर्ज कर ली. दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘आप को थाने में बुलाया जा सकता है.’’ ‘हांहां इंस्पैक्टर साहब, आप बेहिचक मुझे बुला सकते हैं. मेरा तो काम ही है महिलाओं के दुखसुख में साथ देना, उन की सेवा करना. यहां तो दुष्टों ने अच्छीभली महिला को डायन बता कर मारापीटा और वहशियाना व्यवहार किया है, यहां तक कि उसे मैला तक पिलाया गया.’’ दमयंतीजी बड़ी भली महिला समाजसेविका थीं. लोग उन का आदर करते थे. उन्होंने कम्मो को जरूरी बातें समझाईं और बोलीं, ‘‘तुम कोई भी बात बेझिझक मुझ से बता सकती हो. देखो, तुम चिंता तो बिलकुल मत करो. हमारी सोसायटी तुम्हारी मां के इलाज का खर्चा उठाएगी. अच्छा, अब मैं जा रही हूं.’’

तभी छोटा बंशी अपनी मां को ले कर आ पहुंचा. उसे देख कर कामिनी फिर सिसकने लगी, सुबकते हुए बोली, ‘‘देखो मौसी, मां की क्या हालत बना दी है बदमाशों ने.’’ बंशी की मां अवाक् हो कर मालती को देखते हुए बोली, ‘‘घबराओ नहीं, बेटी, जिस ने यह सब किया है उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी.’’ बंशी की मां ने दमयंतीजी को देखते हुए प्रणाम किया तो वे बोलीं, ‘‘देखिए, मालती का ध्यान रखिएगा, और आप आज यहीं रह जाइए न. कामिनी को भी आप के रहने से अच्छा लगेगा और सहारा भी रहेगा. अच्छा, मैं अब चलती हूं. कल आने की कोशिश करूंगी.’’ बंशी की मां सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘हांहां, मैं रह जाऊंगी. आप निश्ंिचत हो कर जाइए.’’ दूसरे दिन अखबार में ‘झारखंड समाचार’ पृष्ठ पर कम्मो थी. प्रोफैसर दीदी ने जब यह समाचार पढ़ा तो उन के रोंगटे खड़े हो गए. वे आज अपनी आंखों से देखना चाहती थीं कि डायन का आरोप लगा कर किस तरह बेसहारा, अनाथ महिलाओं पर अत्याचार किया व उन्हें प्रताड़ना दी जाती है व कई तरह के अमानवीय व्यवहार किए जाते हैं. यहां तक कि नंगा कर के पूरी बस्ती में घुमाया जाता है. वे मालती और कामिनी से मिलने अस्पताल पहुंचीं. मालती को होश आ गया था लेकिन दवा के असर से सो रही थी. अभी वे उन लोगों का हाल पूछ ही रही थीं कि दमयंतीजी भी 2 महिला साथियों को ले कर पहुंच गईं. सभी वार्ड के बाहर के बरामदे में बैंच पर बैठ गईं.

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‘‘साली मांबेटी दोनों ही छंटी हुई हैं,’’ रूपचंद का साथी बोला और कम्मो के बालों को पकड़ कर जोर का धक्का दिया. वह गिर पड़ी. वह उठ कर मां को फिर बचाने के लिए झपटी. तभी उस के गालों पर बदमाश ने ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह मूर्छित सी हो कर गिर गई. बदमाशों ने मालती को दमभर मारापीटा. तभी एक आदमी डब्बे भर कर मैला ले कर आ गया और जबरन मालती के मुंह में डाल दिया. वह उस के बालों को जोरजोर से खींचते हुए बोला, ‘‘साली, मेरे बच्चे को किसी तरह जिंदा करो, नहीं तो मार ही डालूंगा.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, मैं ने कुछ नहीं किया,’’ कहतेकहते मालती बेहोश हो गई. मारपीट कर बदमाश वहां से चले गए. इस दौरान बस्ती का कोई भी उसे बचाने नहीं आया. कुछ ही देर में रूपचंद एक ओझा को ले कर वहां पहुंचा और बोला, ‘‘बाप रे, यह मालती डायन है, मुझे नहीं मालूम था. ओझाजी इस से पूछिए कि रामलाल के बेटे को तो उस ने खा लिया, अब वह किसे खाना चाहती है?’’ ओझा एक छड़ी से बेहोश मालती को खोदते हुए बोला, ‘‘बोल री डायन, यह सब तू ने क्यों किया?’’ मालती नहीं उठी तो उस ने उसे झाड़ू से मारा. वह फिर भी नहीं उठी तो उस ने आग जला कर उस में मिर्चें डाल कर धुआं किया और एक झाड़ू फिर लगाते हुए बोला, ‘‘अरी जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल, उठती है या नहीं?’’ पूरी बस्ती में यह खबर आग की तरह फैल गई थी. कई लोग उस के घर दौड़े आए. ओझा के दोबारा झाड़ू उठे हाथ लोगों को देख कर रुक गए. कई लोग मालती के करीब आ कर उसे देखने लगे. तो ओझा एक झाड़ू उसे और लगाते हुए बोला, ‘‘जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल तू उठती है या नहीं?’’ कुछ लोग मालती के काफी करीब आ गए, उसे देखते हुए बोले, ‘‘यह तो बेहोश है. छोड़ दीजिए ओझाजी,’’ तभी कम्मो को होश आ गया. वह झटपट उठी और मां की ओर दौड़ी. मां की दशा देख कर फूटफूट कर रोने लगी.

मूर्ति बने लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. रूपचंद और उस के ओझा की दबंगता के आगे सभी डरे हुए थे. जब भी किसी को कुछ काम करवाने की जरूरत होती तो वह रूपचंद की ही सहायता लेता था. उस की पार्टी के साथ लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं. समयसमय पर वह लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला भाषण दिया करता था. आखिर वह एक सांप्रदायिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता जो था. उस की पार्टी के लोग धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करते रहते थे. जब देखो इस पार्टी के लोग अपनी नीतियों की प्रशंसा और अन्य पार्टियों का विरोध करते रहते थे. अपनी पार्टी में उस की धाक थी ही, बस्ती के आसपास के लोग भी उस की दबंगता के आगे खौफ खाते थे और उस की हां में हां मिलाते थे. रूपचंद बड़बड़ाते हुए ओझा को ले कर वहां से चला गया. उस के जाते ही सभी जैसे होश में आ गए. रूपचंद ने मालती का ऐसा रूप सब के सामने पेश करवाया था कि जिस के बारे में उस बेचारी को कुछ भी पता नहीं था. लोग आपस में सलाहमशविरा करने लगे. इतने में एक 7-8 साल का लड़का बंशी आ गया. कम्मो उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करती थी. जिन प्रोफैसर दीदी के यहां वह काम करती थी, उन के यहां से उसे मिठाइयां या टौफी वगैरह मिलतीं तो वह थोड़ा बचा कर उस के लिए जरूर लाती थी. वह छोटा बच्चा इसी इंतजार में रोजाना रहता था कि कब दीदी उस के लिए कुछ ले कर आएंगी. वह भी उसे बहुत प्यार करता था. वह उस का कोई भी काम करने के लिए तैयार रहता था.

मालती और कम्मो की हालत देखते ही वह सरपट दौड़ पड़ा ‘जागरूक महिला सोसायटी’ की सैक्रेटरी दमयंतीजी के पास. उन से जल्दी साथ चलने का आग्रह करने लगा. वे बगल की आदिवासी कालोनी में सब से पहले घर में रहती थीं. हांफते हुए उस ने वहां का सारा नजारा बताया और बांह पकड़ कर बस्ती में ले आया. दमयंतीजी महिलाओं के किसी भी दमनकारी कृत्य में या उन का हक दिलवाने के मामलों में जीजान से जुट जाती थीं. वे खानापीना भूल कर उन की सहायता किया करती थीं. बंशी की बात सुन कर वे बड़ी तेजी से चल कर वहां पहुंचीं और वहां का दृश्य देख कर अवाक् रह गईं. मांबेटी की हालत देख कर उन्हें बहुत गुस्सा आया. वे समझ गईं कि किसी गुंडे ने इन निर्बलों पर अपना बल आजमाया है. वे बोलीं, ‘‘आप लोग तमाशा मत देखिए, फौरन एक टैंपो ले आइए और मालती को अस्पताल पहुंचाने में मदद कीजिए.’’ अब सभी लोग हरकत में आ गए और दौड़ कर टैंपो ले आए. कुछ लोगों की सहायता से मालती को उस में लिटाया गया. तब तक कम्मो ताला बंद कर के मां का सिर अपनी गोद में रख कर बैठ गई. दमयंतीजी भी अगली सीट पर बैठ गईं और अस्पताल पहुंचीं. वहां जरूरी प्रक्रिया पूरी करा कर उन्होंने मालती का इलाज शुरू कराया. मालती की खराब हालत देख कर डाक्टर ने पुलिस का मामला बताते हुए उस का इलाज करने में अपनी मजबूरी बताई. दमयंतीजी जैसी महिला समाजसेवी के आगे उन्हें झुकना पड़ा. कम्मो अभी भी रहरह कर सिसक रही थी. दमयंतीजी ने उसे समझाया, ‘‘देखो, कामिनी, घबराओ नहीं, हमारी महिला सोसायटी तुम लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटेगी. रुपएपैसे की चिंता मत करो और रोना बंद करो.’’

अब तक मालती की बस्ती के कुछ लोग वहां पहुंच गए. दमयंतीजी ने उन लोगों से कहा, ‘‘देखिए, अभी पुलिस आती ही होगी, आप सभी जोजो बातें जानते हैं और देखा है, उस के बारे में बेहिचक पुलिस को बताइएगा. कामिनी भी रिपोर्ट देगी. इन मांबेटी की सहायता करना हम सभी का फर्ज बनता है.’’ सभी लोगों ने अपनी सहमति में सिर हिलाया. पुलिस ने आते ही सब का बयान ले कर एफआईआर दर्ज कर ली. दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘आप को थाने में बुलाया जा सकता है.’’ ‘हांहां इंस्पैक्टर साहब, आप बेहिचक मुझे बुला सकते हैं. मेरा तो काम ही है महिलाओं के दुखसुख में साथ देना, उन की सेवा करना. यहां तो दुष्टों ने अच्छीभली महिला को डायन बता कर मारापीटा और वहशियाना व्यवहार किया है, यहां तक कि उसे मैला तक पिलाया गया.’’ दमयंतीजी बड़ी भली महिला समाजसेविका थीं. लोग उन का आदर करते थे. उन्होंने कम्मो को जरूरी बातें समझाईं और बोलीं, ‘‘तुम कोई भी बात बेझिझक मुझ से बता सकती हो. देखो, तुम चिंता तो बिलकुल मत करो. हमारी सोसायटी तुम्हारी मां के इलाज का खर्चा उठाएगी. अच्छा, अब मैं जा रही हूं.’’

तभी छोटा बंशी अपनी मां को ले कर आ पहुंचा. उसे देख कर कामिनी फिर सिसकने लगी, सुबकते हुए बोली, ‘‘देखो मौसी, मां की क्या हालत बना दी है बदमाशों ने.’’ बंशी की मां अवाक् हो कर मालती को देखते हुए बोली, ‘‘घबराओ नहीं, बेटी, जिस ने यह सब किया है उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी.’’ बंशी की मां ने दमयंतीजी को देखते हुए प्रणाम किया तो वे बोलीं, ‘‘देखिए, मालती का ध्यान रखिएगा, और आप आज यहीं रह जाइए न. कामिनी को भी आप के रहने से अच्छा लगेगा और सहारा भी रहेगा. अच्छा, मैं अब चलती हूं. कल आने की कोशिश करूंगी.’’ बंशी की मां सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘हांहां, मैं रह जाऊंगी. आप निश्ंिचत हो कर जाइए.’’ दूसरे दिन अखबार में ‘झारखंड समाचार’ पृष्ठ पर कम्मो थी. प्रोफैसर दीदी ने जब यह समाचार पढ़ा तो उन के रोंगटे खड़े हो गए. वे आज अपनी आंखों से देखना चाहती थीं कि डायन का आरोप लगा कर किस तरह बेसहारा, अनाथ महिलाओं पर अत्याचार किया व उन्हें प्रताड़ना दी जाती है व कई तरह के अमानवीय व्यवहार किए जाते हैं. यहां तक कि नंगा कर के पूरी बस्ती में घुमाया जाता है. वे मालती और कामिनी से मिलने अस्पताल पहुंचीं. मालती को होश आ गया था लेकिन दवा के असर से सो रही थी. अभी वे उन लोगों का हाल पूछ ही रही थीं कि दमयंतीजी भी 2 महिला साथियों को ले कर पहुंच गईं. सभी वार्ड के बाहर के बरामदे में बैंच पर बैठ गईं.

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May 29, 2020 at 10:00AM

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