Thursday 28 May 2020

Short Story: नई दिशा -आलोक के पत्र में क्या था?

नीता स्कूल से लौट कर आई. उस ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बजने वाले थे. उस ने किताबें टेबल पर रख दीं और थकी सी पलंग पर बैठ गई.

उसे कमरा बेहद सूना लग रहा था. ‘आलोक आज चला जो गया था. अगर वह कुछ दिन और रहता तो कितना अच्छा लगता पर…’ सोचतेसोचते वह पिछले दिनों की यादों में खो गई.

उस दिन ठंड कुछ ज्यादा थी. घर के अंदर भी ठंड का एहसास हो रहा था. मम्मी धूप में बैठी स्वैटर बुन रही थीं. धीरज जोरजोर से बोल कर सबक याद कर रहा था. नीता टिफिन तैयार कर रही थी कि तभी घंटी बजी.

दरवाजा खोलने मम्मी ही गईं. सामने एक अपरिचित युवक खड़ा था.

‘चाचीजी, नमस्ते. आप ने पहचाना मुझे?’ वह हाथ जोड़ कर बोला.

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‘आप…कौन?’ उन्हें चेहरा जानापहचाना लग रहा था.

‘मैं रामसिंहजी का बेटा, आलोक…’ वह बोला.

‘अरे, तुम रामसिंह भैया के बेटे हो. कितने बड़े हो गए हो. तभी तो मुझे लगा मैं ने तुम्हें कहीं देखा है,’  वे हंस कर बोलीं, ‘बेटा, अंदर आओ न.’

वे दरवाजे से एक तरफ हट गईं. आलोक ने बैग कंधे से उतार कर नीचे रख दिया. फिर आराम से सोफे पर बैठ गया. उस ने एक पत्र अपनी जेब से निकाल कर मम्मी को दिया.

‘अच्छा, तो तुम यहां पीएससी की परीक्षा देने आए हो?’ पत्र पढ़ते हुए मम्मी ने पूछा.

‘जी चाचीजी,’ उस ने आदर से कहा.

‘ठीक है. इसे अपना ही घर समझो,’ फिर वे रुक कर बोलीं, ‘अरी, नीता बिटिया, देख कौन आया है और सुन चाय भी बना ला.’

नीता की समझ में कुछ नहीं आया. कौन है, देखने के लिए वह बाहर आ गई.

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‘बेटी, यह आलोक है, तेरे बचपन का दोस्त. जानती है एक बार इस ने तेरी चोटी रस्सी से बांध दी थी. मुश्किल से बाल काट कर खोलनी पड़ी थी,’ मम्मी ने हंस कर बताया.

‘मम्मीजी, मुझे तो कुछ याद नहीं, कब की बात है?’ नीता ने पूछा.

‘उस दिन तेरा जन्मदिन था. बड़ी अच्छी फ्रौक पहन, 2 चोटियां कर के तू आलोक को बताने गई थी. आलोक उस समय तो कुछ नहीं बोला. मैं इस की मां के साथ बातों में लगी थी कि तभी इस ने चुपके से तेरी चोटी बांध दी थी,’ मां ने याद दिलाया.

‘अब मुझे याद आ गया,’ आलोक अचानक बोला, ‘नीता, मुझे माफ करना. अब ऐसी गलती नहीं करूंगा.’

नीता शरमा कर अंदर चाय बनाने चली गई.

आज से करीब 12 साल पहले नीता और आलोक के पापा विजय नगर में आसपास रहते थे. कालोनी में उन की दोस्ती की अकसर चर्चा हुआ करती थी.

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दोनों की जाति अलगअलग थी पर विचार एक से थे. दोनों परिवारों की स्थिति भी एक जैसी थी. पर नीता के पापा अपने काम के सिलसिले में इंदौर आ बसे. इस शहर में उन का धंधा अच्छा चल निकला. इसलिए वे यहीं के हो कर रह गए.

इतने सालों बाद अब आलोक परीक्षा देने उन के यहां आया था.

सुबह से शाम तक नीता उस का खयाल रखती. इस साल वह भी 12वीं की परीक्षाएं देने वाली थी. आलोक पढ़ाई में तेज था. अपनी पढ़ाई के साथसाथ वह नीता को भी पढ़ाई के गुर सिखलाता. ‘मन लगा कर पढ़ोगी तो जरूर अच्छे नंबर आएंगे,’ वह समझाता. नीता को भी उस की बातें बहुत अच्छी लगतीं.

मम्मी ने आलोक को एक अलग कमरा दे दिया था ताकि वह अपनी तैयारी ठीक से कर सके. वह 2 पेपर दे चुका था. पेपर बहुत अच्छे हुए थे. आलोक का चायनाश्ता, खानापीना, सभी मम्मी ने नीता के हवाले कर दिया था. नीता का जवान दिल जैसे आलोक को पा कर मस्त हो रहा था. रात को घंटों वह आलोक के पास बैठी रहती. मम्मी भी उन की बातों से अनजान रहतीं.

आलोक का आखिरी पेपर 2 दिन बाद था. वह तैयारी करना चाहता था पर नीता ने जिद कर के आलोक और धीरज के साथ पिक्चर जाने का मन बना लिया. फिर दूसरे दिन कमला पार्क में पिकनिक का प्रोग्राम भी बना डाला.

आलोक पिकनिक नहीं जाना चाहता था पर उसे मजबूरन नीता का साथ देना पड़ा. इन 2 दिनों में नीता के मन में आलोक के प्रति एक अजीब आकर्षण पैदा हो गया था. जैसे वह मन ही मन आलोक की तरफ खिंचती चली जा रही थी.

उस दिन आलोक का अंतिम पेपर था. नीता भी उसे खाना दे कर कैमिस्ट्री का कुछ पूछने बैठ गई. रात अधिक हो चुकी थी. उस के मम्मीपापा दूसरे कमरे में बेखबर सो रहे थे. अचानक नीता ने आलोक का हाथ पकड़ लिया और बोली, ‘आलोक, जाने क्यों तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो.’

आलोक भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था. उस का मन हुआ कि वह नीता के बहुत करीब हो जाए. पर तभी वह संभल गया, ‘जिस चाचीजी ने मुझ पर विश्वास किया है, क्या उन्हें समाज के सामने जलील होना पड़ेगा?’ ऐसा सोच कर उस ने धीरे से अपना हाथ छुड़ा लिया.

‘देखो नीता, यह समय हमारे प्यार करने का नहीं है बल्कि अपनाअपना कैरियर बनाने का है. अगर हम ने इस समय ऐसावैसा कुछ किया तो शायद हमें जीवन भर पछताना पड़े. इसलिए मैं तो कहता हूं कि तुम 12वीं में अच्छी डिवीजन लाओ.

ये भी पढ़ें-स्वीकृति के तारे- भाग 3: मां ने उसे परचा थमाते हुए क्या कहा?

‘मैं भी नौकरी की तैयारी करता हूं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि नौकरी लगते ही सब से पहले पिताजी को तुम्हारे घर भेजूंगा, हमारे रिश्ते की बात चलाने के लिए,’ उस ने नीता को समझाया.

‘हां आलोक, मम्मी भी मुझे डाक्टर बनाने का सपना देख रही हैं. अच्छा हुआ जो तुम ने मुझे सोते से जगा दिया,’ वह शरमा कर बोली.

थोड़ी देर चुप्पी रही. ‘मैं कल पेपर दे कर चला जाऊंगा. मुझे एक इंटरव्यू की तैयारी करनी है. अब तुम अपने कमरे में जाओ. रात बहुत हो चुकी है,’ मुसकराते हुए आलोक बोला.

नीता भी मन में नई दिशा में बढ़ने का संकल्प ले कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी

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नीता स्कूल से लौट कर आई. उस ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बजने वाले थे. उस ने किताबें टेबल पर रख दीं और थकी सी पलंग पर बैठ गई.

उसे कमरा बेहद सूना लग रहा था. ‘आलोक आज चला जो गया था. अगर वह कुछ दिन और रहता तो कितना अच्छा लगता पर…’ सोचतेसोचते वह पिछले दिनों की यादों में खो गई.

उस दिन ठंड कुछ ज्यादा थी. घर के अंदर भी ठंड का एहसास हो रहा था. मम्मी धूप में बैठी स्वैटर बुन रही थीं. धीरज जोरजोर से बोल कर सबक याद कर रहा था. नीता टिफिन तैयार कर रही थी कि तभी घंटी बजी.

दरवाजा खोलने मम्मी ही गईं. सामने एक अपरिचित युवक खड़ा था.

‘चाचीजी, नमस्ते. आप ने पहचाना मुझे?’ वह हाथ जोड़ कर बोला.

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‘आप…कौन?’ उन्हें चेहरा जानापहचाना लग रहा था.

‘मैं रामसिंहजी का बेटा, आलोक…’ वह बोला.

‘अरे, तुम रामसिंह भैया के बेटे हो. कितने बड़े हो गए हो. तभी तो मुझे लगा मैं ने तुम्हें कहीं देखा है,’  वे हंस कर बोलीं, ‘बेटा, अंदर आओ न.’

वे दरवाजे से एक तरफ हट गईं. आलोक ने बैग कंधे से उतार कर नीचे रख दिया. फिर आराम से सोफे पर बैठ गया. उस ने एक पत्र अपनी जेब से निकाल कर मम्मी को दिया.

‘अच्छा, तो तुम यहां पीएससी की परीक्षा देने आए हो?’ पत्र पढ़ते हुए मम्मी ने पूछा.

‘जी चाचीजी,’ उस ने आदर से कहा.

‘ठीक है. इसे अपना ही घर समझो,’ फिर वे रुक कर बोलीं, ‘अरी, नीता बिटिया, देख कौन आया है और सुन चाय भी बना ला.’

नीता की समझ में कुछ नहीं आया. कौन है, देखने के लिए वह बाहर आ गई.

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‘बेटी, यह आलोक है, तेरे बचपन का दोस्त. जानती है एक बार इस ने तेरी चोटी रस्सी से बांध दी थी. मुश्किल से बाल काट कर खोलनी पड़ी थी,’ मम्मी ने हंस कर बताया.

‘मम्मीजी, मुझे तो कुछ याद नहीं, कब की बात है?’ नीता ने पूछा.

‘उस दिन तेरा जन्मदिन था. बड़ी अच्छी फ्रौक पहन, 2 चोटियां कर के तू आलोक को बताने गई थी. आलोक उस समय तो कुछ नहीं बोला. मैं इस की मां के साथ बातों में लगी थी कि तभी इस ने चुपके से तेरी चोटी बांध दी थी,’ मां ने याद दिलाया.

‘अब मुझे याद आ गया,’ आलोक अचानक बोला, ‘नीता, मुझे माफ करना. अब ऐसी गलती नहीं करूंगा.’

नीता शरमा कर अंदर चाय बनाने चली गई.

आज से करीब 12 साल पहले नीता और आलोक के पापा विजय नगर में आसपास रहते थे. कालोनी में उन की दोस्ती की अकसर चर्चा हुआ करती थी.

ये भी पढ़ें-Short Story: खजाने की खोज में

दोनों की जाति अलगअलग थी पर विचार एक से थे. दोनों परिवारों की स्थिति भी एक जैसी थी. पर नीता के पापा अपने काम के सिलसिले में इंदौर आ बसे. इस शहर में उन का धंधा अच्छा चल निकला. इसलिए वे यहीं के हो कर रह गए.

इतने सालों बाद अब आलोक परीक्षा देने उन के यहां आया था.

सुबह से शाम तक नीता उस का खयाल रखती. इस साल वह भी 12वीं की परीक्षाएं देने वाली थी. आलोक पढ़ाई में तेज था. अपनी पढ़ाई के साथसाथ वह नीता को भी पढ़ाई के गुर सिखलाता. ‘मन लगा कर पढ़ोगी तो जरूर अच्छे नंबर आएंगे,’ वह समझाता. नीता को भी उस की बातें बहुत अच्छी लगतीं.

मम्मी ने आलोक को एक अलग कमरा दे दिया था ताकि वह अपनी तैयारी ठीक से कर सके. वह 2 पेपर दे चुका था. पेपर बहुत अच्छे हुए थे. आलोक का चायनाश्ता, खानापीना, सभी मम्मी ने नीता के हवाले कर दिया था. नीता का जवान दिल जैसे आलोक को पा कर मस्त हो रहा था. रात को घंटों वह आलोक के पास बैठी रहती. मम्मी भी उन की बातों से अनजान रहतीं.

आलोक का आखिरी पेपर 2 दिन बाद था. वह तैयारी करना चाहता था पर नीता ने जिद कर के आलोक और धीरज के साथ पिक्चर जाने का मन बना लिया. फिर दूसरे दिन कमला पार्क में पिकनिक का प्रोग्राम भी बना डाला.

आलोक पिकनिक नहीं जाना चाहता था पर उसे मजबूरन नीता का साथ देना पड़ा. इन 2 दिनों में नीता के मन में आलोक के प्रति एक अजीब आकर्षण पैदा हो गया था. जैसे वह मन ही मन आलोक की तरफ खिंचती चली जा रही थी.

उस दिन आलोक का अंतिम पेपर था. नीता भी उसे खाना दे कर कैमिस्ट्री का कुछ पूछने बैठ गई. रात अधिक हो चुकी थी. उस के मम्मीपापा दूसरे कमरे में बेखबर सो रहे थे. अचानक नीता ने आलोक का हाथ पकड़ लिया और बोली, ‘आलोक, जाने क्यों तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो.’

आलोक भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था. उस का मन हुआ कि वह नीता के बहुत करीब हो जाए. पर तभी वह संभल गया, ‘जिस चाचीजी ने मुझ पर विश्वास किया है, क्या उन्हें समाज के सामने जलील होना पड़ेगा?’ ऐसा सोच कर उस ने धीरे से अपना हाथ छुड़ा लिया.

‘देखो नीता, यह समय हमारे प्यार करने का नहीं है बल्कि अपनाअपना कैरियर बनाने का है. अगर हम ने इस समय ऐसावैसा कुछ किया तो शायद हमें जीवन भर पछताना पड़े. इसलिए मैं तो कहता हूं कि तुम 12वीं में अच्छी डिवीजन लाओ.

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‘मैं भी नौकरी की तैयारी करता हूं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि नौकरी लगते ही सब से पहले पिताजी को तुम्हारे घर भेजूंगा, हमारे रिश्ते की बात चलाने के लिए,’ उस ने नीता को समझाया.

‘हां आलोक, मम्मी भी मुझे डाक्टर बनाने का सपना देख रही हैं. अच्छा हुआ जो तुम ने मुझे सोते से जगा दिया,’ वह शरमा कर बोली.

थोड़ी देर चुप्पी रही. ‘मैं कल पेपर दे कर चला जाऊंगा. मुझे एक इंटरव्यू की तैयारी करनी है. अब तुम अपने कमरे में जाओ. रात बहुत हो चुकी है,’ मुसकराते हुए आलोक बोला.

नीता भी मन में नई दिशा में बढ़ने का संकल्प ले कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी

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May 29, 2020 at 10:00AM

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