Sunday 31 May 2020

तनहाइयां-भाग 2: बस में बैठे लड़के से अंजू का क्या रिश्ता था ?

घर पहुंच कर मेरे रोष का शिकार बनी शकुंतला. उस ने सिर्फ इतना ही कहा था कि सिर में दर्द है क्या? कहो तो एक प्याला चाय बना दूं?

‘‘नहीं, मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे सिर में दर्द भी नहीं है. हां, तुम मेरे सिर पर इसी तरह खड़ी रहोगी तो सिर फट सकता है.’’

शकुंतला कुछ न बोली. वह चुपचाप काम कर के चली गई. खाना खा कर रात को जब बिस्तर पर लेटी तो आंखों में नींद  के स्थान पर वह चेहरा घूम रहा था…

उस चेहरे का नाम था मुकुल. कालेज के दिनों की बात है. मैं बीए अंतिम वर्ष में थी. मुकुल मेरा सहपाठी था. अकसर अंगरेजी के नोट्स लेने वह मेरे घर भी आ जाता था. कालेज की कैंटीन में भी वह मुझे मिल जाता था. कुछ दिनों से मैं उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन देख रही थी. वह अकसर मुझे अजीब निगाहों से देखता था.

एक दिन मैं ने टोका था, ‘मुकुल, यह घूरने की आदत कब से पड़ गई?’

‘नहीं तो, ऐसा कुछ भी नहीं है,’ वह हड़बड़ा कर बोला. ‘है तो. अगर यही हाल रहा तो तुम्हारा नाम घूरेलाल रख दूंगी.’

‘अंजू, अब तुम जो भी नाम रख दो, मुझे मंजूर है.’

‘ए जनाब, हंसबोल लेने का गलत अर्थ मत लगाना. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं,’ मैं कड़क कर बोली थी.

‘अंजू, यकीन करो, मैं भी ऐसावैसा नहीं हूं. पर तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है. जानती हो, हर चीज में मैं तुम्हें ही देखता हूं…किताब में, कौपी में, ब्लैकबोर्ड में, खाने में…’

‘बसबस मजनूजी, मैं किसी चक्कर में नहीं आने वाली,’ कहती हुई मैं तेजी से अपनी सहेलियों की टोली में चली गई थी.

सच बात तो यह थी कि मुकुल के प्रति मेरे हृदय में कोई भावना नहीं थी. उस के प्रति न तो आकर्षित थी और न ही प्रभावित. वह मेरा सहपाठी था. बस, उस से इतना ही नाता था. किंतु उस दिन के बाद मुकुल मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया. एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी अध्ययन कर रही थी कि मुकुल भी एक किताब ले कर वहीं मेरे पास बैठ गया और बोला, ‘अंजू, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. अगर तुम मेरे प्यार को ठुकरा दोगी तो मैं अपना दायां हाथ ब्लेड से काट दूंगा.’

‘मजनूजी, इस नेक काम में देर कैसी. एक से एक अच्छी क्वालिटी के ब्लेड हमारे देश में मिलते हैं. तुम कहो तो एक पैकेट मैं ही ला दूं,’ मैं खीज कर बोली और उसी समय लाइब्रेरी से उठ कर बाहर चली गई.

दूसरे दिन जब मुकुल क्लास में आया तो उस के दाएं हाथ पर पट्टी बंधी थी. इस बात से मैं थोड़ा परेशान हो गई. जब मैं लौन में बैठी थी तब वह मेरी तरफ आया, ‘अंजू, क्या अब भी तुम्हारी तरफ से इनकार है?’

‘हाथ में पट्टी बांध कर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते,’ मेरा इतना कहना था कि मुकुल आवेश में आ गया और बाएं हाथ से झटका दे कर अपनी पट्टी खोल कर दायां हाथ मेरे आगे कर दिया.

उस का खून से लथपथ हाथ देख कर मैं दंग रह गई.

‘मुकुल, यह क्या पागलपन है.’

‘कल हाथ की नस काट लूंगा, मर जाऊंगा. मैं जीना नहीं चाहता,’ वह बच्चों की तरह सिसकने लगा.

‘नहीं मुकुल, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे. इधर मेरी तरफ देखो,’ मेरे कहने पर उस ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया. मैं ने उसे अपलक निहारते हुए कहा, ‘मुकुल, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

इस के बाद मेरे दिलोदिमाग पर एक उन्माद, एक पागलपन छाने लगा. मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरी हर सांस केवल मुकुल के लिए है, मेरी हर धड़कन बस मुकुल का नाम लेती है. सुबह की उजली किरणों में मुकुल दिखाई देता और रात को आकाश में चमकते चांदसितारों में भी वही नजर आता. मुकुल मेरी जिंदगी बन चुका था. उस के बिना मैं जी नहीं सकती थी. मेरी हालत मेरी सहेलियों को पता थी और मुकुल की मनोस्थिति उस के मित्र जानते थे. कुछ महीनों के बाद तो जैसे ही मुकुल कालेज के गेट में प्रवेश करता, मेरी सहेलियां मुझे छेड़तीं, ‘देख अंजू, तेरा मजनू आ गया.’

हमारे प्यार के चर्चे खुलेआम होने लगे थे. बीए करने के बाद मैं ने अंगरेजी विषय में एमए में दाखिला ले लिया और मुकुल ने इतिहास में. हम क्लास में नहीं मिल पाते थे लेकिन खाली पीरियड में लौन में, कैंटीन में तथा लाइब्रेरी में रोज मिलते. मुकुल बैंक की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. फिर एक दिन वह सफल भी हो गया. बैंक में अधिकारी पद पर उस का चयन हो गया. मुकुल कानपुर नौकरी पर चला गया और मैं उस की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठी रही. लेकिन मेरी पलकों को मुकुल के स्नेह के फूल न मिल सके.

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घर पहुंच कर मेरे रोष का शिकार बनी शकुंतला. उस ने सिर्फ इतना ही कहा था कि सिर में दर्द है क्या? कहो तो एक प्याला चाय बना दूं?

‘‘नहीं, मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे सिर में दर्द भी नहीं है. हां, तुम मेरे सिर पर इसी तरह खड़ी रहोगी तो सिर फट सकता है.’’

शकुंतला कुछ न बोली. वह चुपचाप काम कर के चली गई. खाना खा कर रात को जब बिस्तर पर लेटी तो आंखों में नींद  के स्थान पर वह चेहरा घूम रहा था…

उस चेहरे का नाम था मुकुल. कालेज के दिनों की बात है. मैं बीए अंतिम वर्ष में थी. मुकुल मेरा सहपाठी था. अकसर अंगरेजी के नोट्स लेने वह मेरे घर भी आ जाता था. कालेज की कैंटीन में भी वह मुझे मिल जाता था. कुछ दिनों से मैं उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन देख रही थी. वह अकसर मुझे अजीब निगाहों से देखता था.

एक दिन मैं ने टोका था, ‘मुकुल, यह घूरने की आदत कब से पड़ गई?’

‘नहीं तो, ऐसा कुछ भी नहीं है,’ वह हड़बड़ा कर बोला. ‘है तो. अगर यही हाल रहा तो तुम्हारा नाम घूरेलाल रख दूंगी.’

‘अंजू, अब तुम जो भी नाम रख दो, मुझे मंजूर है.’

‘ए जनाब, हंसबोल लेने का गलत अर्थ मत लगाना. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं,’ मैं कड़क कर बोली थी.

‘अंजू, यकीन करो, मैं भी ऐसावैसा नहीं हूं. पर तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है. जानती हो, हर चीज में मैं तुम्हें ही देखता हूं…किताब में, कौपी में, ब्लैकबोर्ड में, खाने में…’

‘बसबस मजनूजी, मैं किसी चक्कर में नहीं आने वाली,’ कहती हुई मैं तेजी से अपनी सहेलियों की टोली में चली गई थी.

सच बात तो यह थी कि मुकुल के प्रति मेरे हृदय में कोई भावना नहीं थी. उस के प्रति न तो आकर्षित थी और न ही प्रभावित. वह मेरा सहपाठी था. बस, उस से इतना ही नाता था. किंतु उस दिन के बाद मुकुल मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया. एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी अध्ययन कर रही थी कि मुकुल भी एक किताब ले कर वहीं मेरे पास बैठ गया और बोला, ‘अंजू, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. अगर तुम मेरे प्यार को ठुकरा दोगी तो मैं अपना दायां हाथ ब्लेड से काट दूंगा.’

‘मजनूजी, इस नेक काम में देर कैसी. एक से एक अच्छी क्वालिटी के ब्लेड हमारे देश में मिलते हैं. तुम कहो तो एक पैकेट मैं ही ला दूं,’ मैं खीज कर बोली और उसी समय लाइब्रेरी से उठ कर बाहर चली गई.

दूसरे दिन जब मुकुल क्लास में आया तो उस के दाएं हाथ पर पट्टी बंधी थी. इस बात से मैं थोड़ा परेशान हो गई. जब मैं लौन में बैठी थी तब वह मेरी तरफ आया, ‘अंजू, क्या अब भी तुम्हारी तरफ से इनकार है?’

‘हाथ में पट्टी बांध कर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते,’ मेरा इतना कहना था कि मुकुल आवेश में आ गया और बाएं हाथ से झटका दे कर अपनी पट्टी खोल कर दायां हाथ मेरे आगे कर दिया.

उस का खून से लथपथ हाथ देख कर मैं दंग रह गई.

‘मुकुल, यह क्या पागलपन है.’

‘कल हाथ की नस काट लूंगा, मर जाऊंगा. मैं जीना नहीं चाहता,’ वह बच्चों की तरह सिसकने लगा.

‘नहीं मुकुल, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे. इधर मेरी तरफ देखो,’ मेरे कहने पर उस ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया. मैं ने उसे अपलक निहारते हुए कहा, ‘मुकुल, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं.’

इस के बाद मेरे दिलोदिमाग पर एक उन्माद, एक पागलपन छाने लगा. मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरी हर सांस केवल मुकुल के लिए है, मेरी हर धड़कन बस मुकुल का नाम लेती है. सुबह की उजली किरणों में मुकुल दिखाई देता और रात को आकाश में चमकते चांदसितारों में भी वही नजर आता. मुकुल मेरी जिंदगी बन चुका था. उस के बिना मैं जी नहीं सकती थी. मेरी हालत मेरी सहेलियों को पता थी और मुकुल की मनोस्थिति उस के मित्र जानते थे. कुछ महीनों के बाद तो जैसे ही मुकुल कालेज के गेट में प्रवेश करता, मेरी सहेलियां मुझे छेड़तीं, ‘देख अंजू, तेरा मजनू आ गया.’

हमारे प्यार के चर्चे खुलेआम होने लगे थे. बीए करने के बाद मैं ने अंगरेजी विषय में एमए में दाखिला ले लिया और मुकुल ने इतिहास में. हम क्लास में नहीं मिल पाते थे लेकिन खाली पीरियड में लौन में, कैंटीन में तथा लाइब्रेरी में रोज मिलते. मुकुल बैंक की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. फिर एक दिन वह सफल भी हो गया. बैंक में अधिकारी पद पर उस का चयन हो गया. मुकुल कानपुर नौकरी पर चला गया और मैं उस की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठी रही. लेकिन मेरी पलकों को मुकुल के स्नेह के फूल न मिल सके.

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June 01, 2020 at 10:00AM

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