Thursday 28 May 2020

इंसाफ-भाग1: मालती को बार-बार किसकी बात याद आ रही थी?

मालती रोज की तरह जब काम पर से लौटी तो घर के पास उसे मूंछें ऐंठते हुए रूपचंद मिल गया. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो, मालती?’’

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘कब तक इस तरह हाड़तोड़ मेहनत करती रहोगी? अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गई है, क्यों नहीं अपनी बेटी कम्मो को मेरे साथ मुंबई भेज देती हो? मैं बारगर्ल का काम दिला कर उसे हजारों रुपए कमाने लायक बना दूंगा. तुम बुढ़ापे में सुख और आराम से रहोगी.’’

‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी इतनी दूर जा कर मेरे से अलग रह ही नहीं सकती. वैसे भी वह एक प्रोफैसर दीदी के यहां काम कर रही है और खुश भी है.’’

‘‘ओहो, तुम मेरी बात ही नहीं समझ रहीं. मैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं. वैसे हड़बड़ी नहीं है, सोचसमझ कर अपना विचार मुझे बताना.’’

चिंतित सी मालती धीरे से सिर हिलाते हुए अपने घर में घुस गई. कम्मो यानी कामिनी अभी नहीं लौटी थी. 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि वह आ गई. सुबह के 11 बजने वाले थे. मांबेटी थकी हुई थीं. कम्मो ने पूछा, ‘‘मां, चाय पिओगी?’’ चिंतित मालती ने थकी सी आवाज में कहा, ‘‘हां बेटी, बना न. अगर अदरक हो तो थोड़ी सी डाल देना, बहुत थक गई हूं.’’ थोड़ी देर में कम्मो 2 गिलासों में चाय ले कर आई, ‘‘क्या बात है मां, बहुत थकी और चिंतित लग रही हो?’’

‘‘नहीं बेटी, अब उम्र भी तो बढ़ रही है, थोड़ा ज्यादा काम करती हूं तो कभीकभी थकान लगने लगती है.’’

‘‘तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो मां. अब तो मैं भी काम करने लगी हूं. जितना हम मांबेटी मिल कर कमा लेते हैं, 2 जनों के लिए काफी है.’’

‘‘नहीं बेटी, महंगाई का जमाना है, कुछ दिनों बाद तेरे हाथ भी पीले करने हैं, दो पैसे नहीं जोड़ूंगी तो कैसे काम चलेगा. कहां हाथ फैलाऊंगी, बोल. अब तो तेरे पिताजी भी नहीं रहे. जानती है बेटी, एक मर्द का साया सिर पर रहना बहुत जरूरी होता है.’’ कम्मो आज के जमाने की नए विचारों वाली लड़की थी, बोली, ‘‘ऐसा क्यों सोचती हो मां, आज लड़कियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं. मुझे तो पापा ने 8वीं तक पढ़ा भी दिया है. जिस दीदी के यहां मैं काम कर रही हूं, उन्होंने कहा है कि मुझे वे घर में ही पढ़ा कर 2-3 साल के अंदर मैट्रिक करा देंगी. फिर तो आगे बढ़ने के लिए कई रास्ते मिल जाएंगे.’’ मालती को राहत मिली. लगा प्रोफैसर दीदी उस की बेटी के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेंगी. उस ने झट से आलू काटा. कम्मो ने भात चढ़ा दिया और सब्जी का मसाला पीसने लगी. कुछ देर में भात तैयार हो गया तो उस ने सब्जी छौंक दी. सब्जी तैयार हो जाने पर मांबेटी ने खाना खाया और बरतन आदि धो कर आराम करने लगीं. कम्मो को लेटते ही नींद आ गई पर मालती को रूपचंद की बातें याद आ रही थीं. वह करवटें बदलती रही. बारबार रूपचंद का चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता था. सूनी आंखें लिए वह खिड़की के सामने बैठ कर तरहतरह की बातें सोचने लगी. आज का जमाना तो वैसे भी खराब है. वह जानती है कि लड़कियों के साथ बदमाश लोग कुछ भी गलत करने से नहीं हिचकते. रूपचंद दादा किस्म का दबंग आदमी था. वह अपनी जवान बेटी को कैसे किसी के साथ बाहर भेज दे. वह एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता भी था. उस ने अपना दबदबा इन झोपड़पट्टियों पर इस कदर बना रखा था कि सभी उस से डरते थे. इसीलिए मालती भी उस से भय खाती थी. वह अकसर रोज ही मालती के सामने अपना प्रस्ताव रखने लगा था, इसी से वह चिंतित थी.

पास ही आधा किलोमीटर की दूरी पर ढेरों प्राइवेट घर थे. उस पौश कालोनी को आदर्श नगर के नाम से जाना जाता था. मालती की बस्ती रामूडीह गरीबों का झोपड़पट्टी वाला इलाका था. दूसरे दिन मालती काम कर के लौटी तो फिर रूपचंद उस के घर के पास ही मूंछें ऐंठते हुए मुसकरा रहा था. उस ने भावपूर्ण नजरों से मालती को देखा पर बोला कुछ नहीं. मालती राहत की सांस लेते हुए नजरें झुकाए घर में घुस गई. वह विधवा औरत किशोर बेटी के साथ शांति से चौकाबरतन कर के अपना घर चला रही थी. एक साल पहले उस का पति एक दुर्घटना में चल बसा था. उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. लेकिन जब से रूपचंद ने अपना विचार उस से कहा और उस के अजीब तरह के देखने के ढंग से वह अंदर से सिहर उठती थी. 3-4 दिन के बाद वह 2-3 लंपट किस्म के लड़कों के साथ खड़ा मिला और मालती को देखते ही पूछा, ‘‘क्या मालती, कुछ सोचा या नहीं?’’

वह अनजान बनते हुए बोली, ‘‘किस बारे में, भैया?’’

‘‘अरे, इतनी जल्दी भूल जाती हो, इतनी कमजोर है तुम्हारी याददाश्त. वही मुंबई बारगर्ल वाली बात के संबंध में. भेजोगी अपनी बेटी को तो रानी बन कर रहोगी, रानी. घरघर जा कर काम करने से छुटकारा मिल जाएगा तुम्हें और इतना कुछ होगा तुम्हारे पास कि दूसरे लोगों को देने लायक हो जाओगी.’’ मालती ने बात टालने की सोच कर कहा, ‘‘हां भैया, जल्दी ही बताऊंगी. मैं ने अपनी बेटी को इस संबंध में कुछ बताया नहीं है. दूर भेजने की बात है न.’’ कामिनी से उस ने अभी तक कुछ बताया नहीं था. जब रूपचंद ने उस पर जल्दी बताने के लिए रोज जोर देना शुरू किया तो एक दिन उस ने डरतेडरते उस से पूछा, ‘‘बेटी, तू मुंबई जाएगी काम करने? बारगर्ल बन कर काम करने पर तुझे हजारों रुपए मिलने लगेंगे.’’ कम्मो सुनते ही रोने लगी, ‘‘मां, तुम ने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें छोड़ कर बाहर कमाने जाऊंगी. यदि मुझे लाखों रुपए भी मिलने लगेंगे तो भी मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी, समझीं. सुन लो, हां.’’ मालती उस की बात सुन कर आश्वस्त सी हो गई. मन ही मन सोचा कि मेरी बेटी ने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी. उस का दिल भी उसे अपनी आंखों से ओझल होने देने का नहीं कर रहा था. अब वह रूपचंद को टका सा जवाब दे सकती है.

दूसरे दिन रूपचंद फिर कुछ लोगों के साथ खड़ा था. उस ने अपनी बात फिर दोहराई. मालती ने आज उस से साफसाफ कह दिया, ‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी बाहर कहीं नहीं जाना चाहती. वह मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती है. सच में भैया, लड़की का मामला है, सबकुछ सोचना पड़ता है न.’’ रूपचंद ने पूछा, ‘‘अच्छी तरह सोचसमझ लिया है न?’’

‘‘हांहां भैया, अच्छी तरह सोच कर ही जवाब दे रही हूं.’’ उस ने हुंकार भरते हुए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है.’’ जिस ढंग से उस ने हुंकार भरी थी, वह थोड़ा सहम गई. अब मालती और कामिनी काम पर से लौटतीं तो रूपचंद नजर नहीं आता था. सबकुछ सामान्य था. एक दिन मालती काम से लौट कर बैठी ही थी कि अचानक कुछ लोग उस के घर में घुस आए और चिल्लाते हुए बोले, ‘‘मारो साली को, डायन है यह डायन. इसी ने रामलाल के बेटे को खाया है, बिलकुल छंटी हुई डायन है यह.’’ मालती किसी को पहचानती नहीं थी. हां, उन में से एक रूपचंद के साथ अकसर नजर आया करता था. वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘आप लोग कौन हैं? कौन रामलाल का बेटा? आप लोग क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है.’’ लेकिन उस की बात कोई नहीं सुन रहा था. वे दनादन उस पर डंडे, जूताचप्पल बरसाने लगे. इतने में कामिनी भी काम पर से वापस आ गई. वह रोनेचिल्लाने लगी, ‘‘आप लोग मेरी मां को क्यों मार रहे हैं? कौन हैं आप लोग?’’

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मालती रोज की तरह जब काम पर से लौटी तो घर के पास उसे मूंछें ऐंठते हुए रूपचंद मिल गया. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो, मालती?’’

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘कब तक इस तरह हाड़तोड़ मेहनत करती रहोगी? अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गई है, क्यों नहीं अपनी बेटी कम्मो को मेरे साथ मुंबई भेज देती हो? मैं बारगर्ल का काम दिला कर उसे हजारों रुपए कमाने लायक बना दूंगा. तुम बुढ़ापे में सुख और आराम से रहोगी.’’

‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी इतनी दूर जा कर मेरे से अलग रह ही नहीं सकती. वैसे भी वह एक प्रोफैसर दीदी के यहां काम कर रही है और खुश भी है.’’

‘‘ओहो, तुम मेरी बात ही नहीं समझ रहीं. मैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं. वैसे हड़बड़ी नहीं है, सोचसमझ कर अपना विचार मुझे बताना.’’

चिंतित सी मालती धीरे से सिर हिलाते हुए अपने घर में घुस गई. कम्मो यानी कामिनी अभी नहीं लौटी थी. 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि वह आ गई. सुबह के 11 बजने वाले थे. मांबेटी थकी हुई थीं. कम्मो ने पूछा, ‘‘मां, चाय पिओगी?’’ चिंतित मालती ने थकी सी आवाज में कहा, ‘‘हां बेटी, बना न. अगर अदरक हो तो थोड़ी सी डाल देना, बहुत थक गई हूं.’’ थोड़ी देर में कम्मो 2 गिलासों में चाय ले कर आई, ‘‘क्या बात है मां, बहुत थकी और चिंतित लग रही हो?’’

‘‘नहीं बेटी, अब उम्र भी तो बढ़ रही है, थोड़ा ज्यादा काम करती हूं तो कभीकभी थकान लगने लगती है.’’

‘‘तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो मां. अब तो मैं भी काम करने लगी हूं. जितना हम मांबेटी मिल कर कमा लेते हैं, 2 जनों के लिए काफी है.’’

‘‘नहीं बेटी, महंगाई का जमाना है, कुछ दिनों बाद तेरे हाथ भी पीले करने हैं, दो पैसे नहीं जोड़ूंगी तो कैसे काम चलेगा. कहां हाथ फैलाऊंगी, बोल. अब तो तेरे पिताजी भी नहीं रहे. जानती है बेटी, एक मर्द का साया सिर पर रहना बहुत जरूरी होता है.’’ कम्मो आज के जमाने की नए विचारों वाली लड़की थी, बोली, ‘‘ऐसा क्यों सोचती हो मां, आज लड़कियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं. मुझे तो पापा ने 8वीं तक पढ़ा भी दिया है. जिस दीदी के यहां मैं काम कर रही हूं, उन्होंने कहा है कि मुझे वे घर में ही पढ़ा कर 2-3 साल के अंदर मैट्रिक करा देंगी. फिर तो आगे बढ़ने के लिए कई रास्ते मिल जाएंगे.’’ मालती को राहत मिली. लगा प्रोफैसर दीदी उस की बेटी के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेंगी. उस ने झट से आलू काटा. कम्मो ने भात चढ़ा दिया और सब्जी का मसाला पीसने लगी. कुछ देर में भात तैयार हो गया तो उस ने सब्जी छौंक दी. सब्जी तैयार हो जाने पर मांबेटी ने खाना खाया और बरतन आदि धो कर आराम करने लगीं. कम्मो को लेटते ही नींद आ गई पर मालती को रूपचंद की बातें याद आ रही थीं. वह करवटें बदलती रही. बारबार रूपचंद का चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता था. सूनी आंखें लिए वह खिड़की के सामने बैठ कर तरहतरह की बातें सोचने लगी. आज का जमाना तो वैसे भी खराब है. वह जानती है कि लड़कियों के साथ बदमाश लोग कुछ भी गलत करने से नहीं हिचकते. रूपचंद दादा किस्म का दबंग आदमी था. वह अपनी जवान बेटी को कैसे किसी के साथ बाहर भेज दे. वह एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता भी था. उस ने अपना दबदबा इन झोपड़पट्टियों पर इस कदर बना रखा था कि सभी उस से डरते थे. इसीलिए मालती भी उस से भय खाती थी. वह अकसर रोज ही मालती के सामने अपना प्रस्ताव रखने लगा था, इसी से वह चिंतित थी.

पास ही आधा किलोमीटर की दूरी पर ढेरों प्राइवेट घर थे. उस पौश कालोनी को आदर्श नगर के नाम से जाना जाता था. मालती की बस्ती रामूडीह गरीबों का झोपड़पट्टी वाला इलाका था. दूसरे दिन मालती काम कर के लौटी तो फिर रूपचंद उस के घर के पास ही मूंछें ऐंठते हुए मुसकरा रहा था. उस ने भावपूर्ण नजरों से मालती को देखा पर बोला कुछ नहीं. मालती राहत की सांस लेते हुए नजरें झुकाए घर में घुस गई. वह विधवा औरत किशोर बेटी के साथ शांति से चौकाबरतन कर के अपना घर चला रही थी. एक साल पहले उस का पति एक दुर्घटना में चल बसा था. उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. लेकिन जब से रूपचंद ने अपना विचार उस से कहा और उस के अजीब तरह के देखने के ढंग से वह अंदर से सिहर उठती थी. 3-4 दिन के बाद वह 2-3 लंपट किस्म के लड़कों के साथ खड़ा मिला और मालती को देखते ही पूछा, ‘‘क्या मालती, कुछ सोचा या नहीं?’’

वह अनजान बनते हुए बोली, ‘‘किस बारे में, भैया?’’

‘‘अरे, इतनी जल्दी भूल जाती हो, इतनी कमजोर है तुम्हारी याददाश्त. वही मुंबई बारगर्ल वाली बात के संबंध में. भेजोगी अपनी बेटी को तो रानी बन कर रहोगी, रानी. घरघर जा कर काम करने से छुटकारा मिल जाएगा तुम्हें और इतना कुछ होगा तुम्हारे पास कि दूसरे लोगों को देने लायक हो जाओगी.’’ मालती ने बात टालने की सोच कर कहा, ‘‘हां भैया, जल्दी ही बताऊंगी. मैं ने अपनी बेटी को इस संबंध में कुछ बताया नहीं है. दूर भेजने की बात है न.’’ कामिनी से उस ने अभी तक कुछ बताया नहीं था. जब रूपचंद ने उस पर जल्दी बताने के लिए रोज जोर देना शुरू किया तो एक दिन उस ने डरतेडरते उस से पूछा, ‘‘बेटी, तू मुंबई जाएगी काम करने? बारगर्ल बन कर काम करने पर तुझे हजारों रुपए मिलने लगेंगे.’’ कम्मो सुनते ही रोने लगी, ‘‘मां, तुम ने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें छोड़ कर बाहर कमाने जाऊंगी. यदि मुझे लाखों रुपए भी मिलने लगेंगे तो भी मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी, समझीं. सुन लो, हां.’’ मालती उस की बात सुन कर आश्वस्त सी हो गई. मन ही मन सोचा कि मेरी बेटी ने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी. उस का दिल भी उसे अपनी आंखों से ओझल होने देने का नहीं कर रहा था. अब वह रूपचंद को टका सा जवाब दे सकती है.

दूसरे दिन रूपचंद फिर कुछ लोगों के साथ खड़ा था. उस ने अपनी बात फिर दोहराई. मालती ने आज उस से साफसाफ कह दिया, ‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी बाहर कहीं नहीं जाना चाहती. वह मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती है. सच में भैया, लड़की का मामला है, सबकुछ सोचना पड़ता है न.’’ रूपचंद ने पूछा, ‘‘अच्छी तरह सोचसमझ लिया है न?’’

‘‘हांहां भैया, अच्छी तरह सोच कर ही जवाब दे रही हूं.’’ उस ने हुंकार भरते हुए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है.’’ जिस ढंग से उस ने हुंकार भरी थी, वह थोड़ा सहम गई. अब मालती और कामिनी काम पर से लौटतीं तो रूपचंद नजर नहीं आता था. सबकुछ सामान्य था. एक दिन मालती काम से लौट कर बैठी ही थी कि अचानक कुछ लोग उस के घर में घुस आए और चिल्लाते हुए बोले, ‘‘मारो साली को, डायन है यह डायन. इसी ने रामलाल के बेटे को खाया है, बिलकुल छंटी हुई डायन है यह.’’ मालती किसी को पहचानती नहीं थी. हां, उन में से एक रूपचंद के साथ अकसर नजर आया करता था. वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘आप लोग कौन हैं? कौन रामलाल का बेटा? आप लोग क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है.’’ लेकिन उस की बात कोई नहीं सुन रहा था. वे दनादन उस पर डंडे, जूताचप्पल बरसाने लगे. इतने में कामिनी भी काम पर से वापस आ गई. वह रोनेचिल्लाने लगी, ‘‘आप लोग मेरी मां को क्यों मार रहे हैं? कौन हैं आप लोग?’’

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May 29, 2020 at 10:00AM

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