Thursday 28 May 2020

Short Story: फैन- शीला बुआ के आंखों की तारा मानसी

करीब 8 महीने पहले शीला बूआ का अपने भतीजे राजीव की शादी के अवसर पर सप्ताह भर के लिए कानपुर से दिल्ली आना हुआ था. उस के बाद अब वे 1 महीने के लिए अपने छोटे भाई शंकर के घर रहने आई थीं.

राजीव की बहू मानसी अपने कमरे से निकल कर जब उत्साहित अंदाज में भागती सी उन के पास आई तब उस ने जींस और टौप पहना हुआ था. बूआ के माथे में पड़े बल देख कर शंकर, उन की पत्नी सुमित्रा और राजीव तीनों समझ गए कि नई बहू का पहनावा उन्हें पसंद नहीं आया. बूआजी की नाराजगी से अनजान मानसी ने पहले उन के पैर छुए और फिर बड़े जोश के साथ गले लगते हुए बोली, ‘‘मैं ने मम्मी से आप की पसंद की चाय बनानी सीख ली है. आप के लिए चाय मैं ही बनाया करूंगी, बूआजी.’’

‘‘तुम्हारे शरीर से पसीने की बदबू आ रही है,’’ उस की बात से खुश होने के बजाय बूआ ने नाक सिकोड़ कर उसे परे कर दिया.

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‘‘आप के आने से पहले मैं व्यायाम कर रही थी. जब आप की आवाज सुनी तो मुझ से रुका नहीं गया और भागती हुई मिलने चली आई. मेरे नहाते ही पसीने की बदबू गायब हो जाएगी.’’

‘‘क्या तुम अभी तक नहाई नहीं हो?’’ बूआ ने दीवार पर लगी घड़ी की तरफ देखा, जिस में 11 बज रहे थे.

‘‘आज रविवार है, बूआजी.’’

‘‘उस से क्या हुआ?’’

‘‘रविवार का मतलब है सब कुछ आराम से करने का दिन.’’

‘‘अच्छे घर की बहुओं की तरह तुम्हें रोज सूरज निकलने से पहले नहा लेना चाहिए,’’ बूआ ने तीखे स्वर में उसे डांट दिया.

‘‘आप के हुक्म को मान कर मैं संडे को भी जल्दी नहा लिया करूंगी. अब मैं आप के लिए चाय बना कर लाऊं?’’ बूआ की डांट का बुरा न मान मानसी मुसकराती हुई बोली.

‘‘हां, ले आओ बहू,’’ सुमित्रा ने अपनी बहू को बूआजी के सामने से हटाने की खातिर जवाब दिया, पर उन की यह तरकीब सफल नहीं हुई.

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बूआ ने सुमित्रा से ही नाराजगी से घूरते हुए पूछा, ‘‘कहीं तुम ने भी बिना नहाए रसोई में घुस कर काम करने की आदत अपनी पढ़ीलिखी बहू से तो नहीं सीख ली है?’’

‘‘बिलकुल नहीं, दीदी. चाय मैं ही बना कर लाती हूं,’’ सुमित्रा अपनी जान बचाने को रसोई की तरफ चल पड़ीं.

‘‘और मैं आप से ढेर सारी बातें करने को फटाफट नहा कर आती हूं,’’ मानसी झुक कर बूआजी के गले लगी और फिर तुरंत अपने कमरे की तरफ भाग गई.

‘‘यह तो साफ दिख रहा है कि बहू अपने घर से कोई अदबकायदा सीख कर नहीं आई है, पर तुम तो उसे इज्जतदार घर की बहू की तरह ढंग से रहना सिखाओ… इसे इतना ज्यादा सिर चढ़ा कर सब रिश्तेदारों के बीच में अपना मजाक उड़वाने का इंतजाम न करो,’’ इस तरह की बातें करते हुए बूआ चाय आने तक शंकर और राजीव की क्लास लेती रहीं.

दोनों उन की सारी बातें खामोशी से सुनते रहे. बूआजी के सामने उलटा बोलने या उन के कहे को टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी.

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‘‘दीदी, अब आप ही उसे काबिल और समझदार बना कर जाना. मैं बाजार हो कर आता हूं,’’ चाय का कप बूआ के हाथ में आते ही शंकर अपनी जान बचा कर घर से निकल गए.

राजीव बूआजी की अटैची को उठा कर उसे गैस्टरूम में रखने के बहाने से वहां से खिसक लिया. बेचारी सुमित्रा अपनी ननद का लंबा लैक्चर सुनने के लिए तैयार हो उन के सामने सिर झुका कर बैठ गईं. उसी दिन शाम को ड्राइंगरूम में एकसाथ चाय पीते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए घोटालों पर चर्चा हो रही थी.

‘‘जरा धीरे हंसाबोला कर, बहू,’’ मानसी को गुस्से से टोकने के बाद बूआजी ने शंकरजी की तरफ मुड़ कर चुभते लहजे में पूछा, ‘‘तू ससुर है या बहू का देवर? अब जरा गंभीर हो कर घर में रहना सीख.’’

किसी के कुछ कहने से पहले ही मानसी बोल पड़ी, ‘‘ये तो सचमुच मेरे दोस्त ससुरजी हैं, बूआजी. हमारे बीच…’’

मानसी अपनी बात पूरी नहीं कर सकी, क्योंकि उस की बात सुन कर अपनी हंसी रोकने के चक्कर में शंकर का खांसतेखांसते दम फूल गया.

‘‘बड़ों के सामने इतना ज्यादा बोलना तुम्हें शोभा नहीं देता है, बहू. तुम बड़ों का शर्मलिहाज करना सीखो,’’ सब को मुसकराते देख बूआ को तेज गुस्सा आया और उन्होंने मानसी को इतनी जोर से डांटा कि घर के हर सदस्य के चेहरे पर तनाव झलक उठा.

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‘‘जी, बूआजी,’’ मानसी ने पल भर को अपने मुंह पर उंगली रखी और फिर फौरन उसे हटा कर बूआजी को चहकते हुए बताने लगी, ‘‘यह सारा कुसूर मेरे पापा का है. आप जब उन से मिलें, तो उन्हें जरूर डांटना. उन्होंने मुझे बचपन से ही किसी भी विषय पर अपने साथ खुल कर चर्चा करने की छूट दे रखी थी. अब मैं यहां पापा के साथ बातें करतेकरते जोश में भूल जाती हूं कि ये तो मेरे ससुरजी हैं. मुझे इन के सामने खामोश रहना चाहिए.’’

‘‘शंकर, तू इसे गलत व्यवहार करते देख कर डांटताटोकता क्यों नहीं है?’’

‘‘दीदी, मैं अब से टोका करूंगा,’’ शंकरजी के लिए अभी भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा था.

‘‘और मैं अपने को सुधारने का वादा करती हूं, पापा,’’ मानसी ने यों गरदन झुका ली मानों बहुत बड़ा जुर्म करते पकड़ी गई हो. यह देख सब की हंसी छूट गई.

‘‘तुम सब का तो इस जोकर लड़की ने दिमाग खराब कर दिया है,’’ बूआजी को अपनी हंसी रोकना मुश्किल लगा तो वे बड़बड़ाती हुईं अपने कमरे में चली गईं.

बूआजी के आने से घर का माहौल अजीब सा हो गया था. वे मानसी की कमियां गिनाते हुए नहीं थकती थीं. जब और कोई उन की ‘हां’ में ‘हां’ नहीं मिलाता तो वे नाराज सी नजर आतीं घर में घूमतीं.

‘‘तुम लोगों ने इसे जरूरत से ज्यादा सिर चढ़ा रखा है,’’ यह डायलौग वे दिन भर में न जाने कितनी दफा कहती थीं.

बूआ के आने के करीब 10 दिन बाद सुमित्रा के नैनीताल वाले चाचाजी का देहांत हो गया. शंकरजी और सुमित्रा को राजीव कार से नैनीताल ले गया. वे तीनों अगले दिन शाम तक लौटने वाले थे.

उन के जाने के बाद बूआजी पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली आरती के साथ शाम को बाजार घूमने निकल गईं वहां दोनों ने जम कर चाट खाई. बदपरहेजी का नतीजा यह हुआ कि रात के 9 बजतेबजते बूआजी की तबीयत खराब होनी शुरू हो गई. उन्हें उलटियां शुरू हो गईं. बाद में जब दस्त भी शुरू हो गए तो उन्हें बहुत कमजोरी महसूस होने लगी. मानसी कालोनी के बाहर से तिपहिया स्कूटर ले कर आई और उन्हें डाक्टर को दिखाने चल दी.डाक्टर के वेटिंगरूम में इंतजार कर रहे मरीजों की काफी भीड़ थी पर वह बूआजी को ले कर सीध डाक्टर साहब के कक्ष में घुस गई. कंपाउंडर ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो मानसी ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘जो उलटीदस्त कर कर के मरा जा  रहा है, उस मरीज को इंतजार करने को कहना गलत है. डाक्टर साहब पहले इस सीरियस मरीज को ही देखेंगे.’’

डाक्टर भी बूआजी को लाइन के बिना पहले देखने की उस की प्रार्थना को टाल नहीं सके. उन्होंने बूआजी की जांच करने के बाद दवा लिख दी. घर आ कर बूआजी को पहली खुराक लेने के कुछ देर बाद से आराम मिलना शुरू हो गया. मानसी पूरे जोश के साथ उन की तीमारदारी में जुट गई. उस ने बूआ से पूछ कर मूंग की दाल की खिचड़ी बनाई. बूआजी का कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था पर मानसी ने सामने बैठ कर उन्हें प्यार से कुछ चम्मच खिचड़ी खिला ही दी. बूआजी को 2 घंटे बाद दर्द बढ़ने लगा तो उन्होंने घबरा कर मानसी से पूछा, ‘‘अगर रात को मुझे ले कर डाक्टर के यहां जाना पड़ा तो किसे बुलाएगी?’’

‘‘मैं हूं न, बूआजी. आप किसी बात की फिक्र न करो,’’ मानसी ने बूआजी के माथे का चुंबन ले कर इतने आत्मविश्वास से कहा कि बूआजी की सारी टैंशन दूर हो गई.

रात को नैनीताल से फोन आया तो मानसी ने अपने ससुरजी को भी आश्वस्त कर दिया, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं सब संभाल लूंगी.’’ रात में जब भी बूआजी की आंख खुली उन्होंने मानसी को जागता पाया. वह हर बार उन्हें नमकचीनी के घोल के कुछ घूंट पिला कर ही मानती. करीब 12 बजे जब उन का बुखार बढ़ने लगा तो मानसी ने काफी देर तक उन के माथे पर गीली पट्टियां रखीं. बुखार कम हुआ तो बूआजी की कुछ देर को आंख लग गई. फिर अचानक रात में उन्हें इतनी जोर से उलटी हुई कि वे अपने कपड़े व पलंग की चादर को खराब होने से नहीं बचा पाईं.

‘‘अब चिंता की कोई बात नहीं. इस बार पेट में बची बाकी चाट भी बाहर आ गई है. देखना, अब आप की तबीयत सुधरती चली जाएगी, बूआजी.’’

मानसी की बात सुन कर कष्ट भुगत रहीं बूआजी मुसकराने से खुद को रोक नहीं पाईं. मानसी ने उन के कपड़े उतरवाए. तौलिया गीला कर के पूरा बदन साफ किया. बाद में पलंग की चादर बदली. फिर उन्हें नए कपड़े पहनाने के बाद उन का सिर इतने अच्छे तरीके से दबाया कि बूआजी को 15 मिनट में गहरी नींद आ गई. सुबह 7 बजे के करीब बूआजी की नींद खुली तो उन्होंने मानसी को पलंग के पास कुरसी पर बेसुध सा सोते पाया. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो उस ने फौरन चौंक कर आंखें खोल दीं. बूआजी ने कोमल स्वर में मानसी से कहा, ‘‘बहू, अब तू अपने कमरे में जा कर आराम से सो जा.’’

‘‘अब आप की तबीयत कैसी है?’’ मानसी की आंखों में चिंता के भाव झलक उठे.

‘‘बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं. आखिरी उलटी करने के बाद बहुत चैन मिला था.’’

‘‘मैं नहा कर आप के लिए चाय बनाती हूं.’’

‘‘अरे, नहीं. तुम आराम करो. मैं खुद बना लूंगी.’’

‘‘तब तो आप के हाथ की बनी चाय मैं भी पीऊंगी,’’ मानसी छोटी बच्ची की तरह तालियां बजा कर खुश हुई तो बूआजी भी खुल कर मुसकरा उठीं.

दोनों ने साथ चाय पी. फिर रात भर की थकी मानसी बूआ की बगल में सो गई. मानसी 12 बजे के करीब उठी तब तक बूआजी ने रोटीसब्जी बना दी थी. साथसाथ लंच करते हुए दोनों के बीच खूब गपशप चलती रही. शाम को शंकर, सुमित्रा और राजीव लौट आए. बूआजी को स्वस्थ देख कर उन सब की आंखों में राहत के भाव उभरे. बूआजी ने मानसी को अपनी छाती से लगा कर उस की खुले दिल से तारीफ की, ‘‘अब मेरी समझ में आ गया है कि क्यों तुम सब इस बातूनी लड़की के फैन हो. यह सचमुच हीरा है हीरा. कल रात क्या डांटा था इस ने कंपाउंडर को… इस ने ऐसी फर्राटेदार अंगरेजी बोली कि डाक्टर साहब की भी मुझे लाइन के बगैर देखने से इनकार करने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘सारी रात जाग कर इस ने मेरी देखभाल की है. तुम सब कल्पना भी नहीं कर सकते कि नमकचीनी का घोल पीने से इनकार करने पर कितनी जोर से यह मुझे डांट देती थी. इस हिम्मती लड़की ने कल रात न खुद का हौसला खोया और न मुझे खोने दिया.

‘‘घर के काम करना तो यह बातूनी लड़की देरसवेर सीख ही जाएगी पर इस के जैसी चुलबुली, हंसमुख और करुणा से भरा दिल रखने वाली बहू बहुत मुश्किल से मिलती है. राजीव, तू ने अपने लिए बहुत अच्छी लड़की चुनी है.’’

भावुकता का शिकार बनी बूआजी ने जब प्यार से राजीव और मानसी का माथा चूमा तो उन की आंखों में आंसू छलक उठे. अब बूआ के सामने मानसी को कोई कुछ नहीं कह सकता था, क्योंकि घर के बाकी लोगों की तरह अब वे भी सोने का दिल रखने वाली मानसी की जबरदस्त प्रशंसक बन गई थीं.

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करीब 8 महीने पहले शीला बूआ का अपने भतीजे राजीव की शादी के अवसर पर सप्ताह भर के लिए कानपुर से दिल्ली आना हुआ था. उस के बाद अब वे 1 महीने के लिए अपने छोटे भाई शंकर के घर रहने आई थीं.

राजीव की बहू मानसी अपने कमरे से निकल कर जब उत्साहित अंदाज में भागती सी उन के पास आई तब उस ने जींस और टौप पहना हुआ था. बूआ के माथे में पड़े बल देख कर शंकर, उन की पत्नी सुमित्रा और राजीव तीनों समझ गए कि नई बहू का पहनावा उन्हें पसंद नहीं आया. बूआजी की नाराजगी से अनजान मानसी ने पहले उन के पैर छुए और फिर बड़े जोश के साथ गले लगते हुए बोली, ‘‘मैं ने मम्मी से आप की पसंद की चाय बनानी सीख ली है. आप के लिए चाय मैं ही बनाया करूंगी, बूआजी.’’

‘‘तुम्हारे शरीर से पसीने की बदबू आ रही है,’’ उस की बात से खुश होने के बजाय बूआ ने नाक सिकोड़ कर उसे परे कर दिया.

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‘‘आप के आने से पहले मैं व्यायाम कर रही थी. जब आप की आवाज सुनी तो मुझ से रुका नहीं गया और भागती हुई मिलने चली आई. मेरे नहाते ही पसीने की बदबू गायब हो जाएगी.’’

‘‘क्या तुम अभी तक नहाई नहीं हो?’’ बूआ ने दीवार पर लगी घड़ी की तरफ देखा, जिस में 11 बज रहे थे.

‘‘आज रविवार है, बूआजी.’’

‘‘उस से क्या हुआ?’’

‘‘रविवार का मतलब है सब कुछ आराम से करने का दिन.’’

‘‘अच्छे घर की बहुओं की तरह तुम्हें रोज सूरज निकलने से पहले नहा लेना चाहिए,’’ बूआ ने तीखे स्वर में उसे डांट दिया.

‘‘आप के हुक्म को मान कर मैं संडे को भी जल्दी नहा लिया करूंगी. अब मैं आप के लिए चाय बना कर लाऊं?’’ बूआ की डांट का बुरा न मान मानसी मुसकराती हुई बोली.

‘‘हां, ले आओ बहू,’’ सुमित्रा ने अपनी बहू को बूआजी के सामने से हटाने की खातिर जवाब दिया, पर उन की यह तरकीब सफल नहीं हुई.

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बूआ ने सुमित्रा से ही नाराजगी से घूरते हुए पूछा, ‘‘कहीं तुम ने भी बिना नहाए रसोई में घुस कर काम करने की आदत अपनी पढ़ीलिखी बहू से तो नहीं सीख ली है?’’

‘‘बिलकुल नहीं, दीदी. चाय मैं ही बना कर लाती हूं,’’ सुमित्रा अपनी जान बचाने को रसोई की तरफ चल पड़ीं.

‘‘और मैं आप से ढेर सारी बातें करने को फटाफट नहा कर आती हूं,’’ मानसी झुक कर बूआजी के गले लगी और फिर तुरंत अपने कमरे की तरफ भाग गई.

‘‘यह तो साफ दिख रहा है कि बहू अपने घर से कोई अदबकायदा सीख कर नहीं आई है, पर तुम तो उसे इज्जतदार घर की बहू की तरह ढंग से रहना सिखाओ… इसे इतना ज्यादा सिर चढ़ा कर सब रिश्तेदारों के बीच में अपना मजाक उड़वाने का इंतजाम न करो,’’ इस तरह की बातें करते हुए बूआ चाय आने तक शंकर और राजीव की क्लास लेती रहीं.

दोनों उन की सारी बातें खामोशी से सुनते रहे. बूआजी के सामने उलटा बोलने या उन के कहे को टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी.

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‘‘दीदी, अब आप ही उसे काबिल और समझदार बना कर जाना. मैं बाजार हो कर आता हूं,’’ चाय का कप बूआ के हाथ में आते ही शंकर अपनी जान बचा कर घर से निकल गए.

राजीव बूआजी की अटैची को उठा कर उसे गैस्टरूम में रखने के बहाने से वहां से खिसक लिया. बेचारी सुमित्रा अपनी ननद का लंबा लैक्चर सुनने के लिए तैयार हो उन के सामने सिर झुका कर बैठ गईं. उसी दिन शाम को ड्राइंगरूम में एकसाथ चाय पीते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए घोटालों पर चर्चा हो रही थी.

‘‘जरा धीरे हंसाबोला कर, बहू,’’ मानसी को गुस्से से टोकने के बाद बूआजी ने शंकरजी की तरफ मुड़ कर चुभते लहजे में पूछा, ‘‘तू ससुर है या बहू का देवर? अब जरा गंभीर हो कर घर में रहना सीख.’’

किसी के कुछ कहने से पहले ही मानसी बोल पड़ी, ‘‘ये तो सचमुच मेरे दोस्त ससुरजी हैं, बूआजी. हमारे बीच…’’

मानसी अपनी बात पूरी नहीं कर सकी, क्योंकि उस की बात सुन कर अपनी हंसी रोकने के चक्कर में शंकर का खांसतेखांसते दम फूल गया.

‘‘बड़ों के सामने इतना ज्यादा बोलना तुम्हें शोभा नहीं देता है, बहू. तुम बड़ों का शर्मलिहाज करना सीखो,’’ सब को मुसकराते देख बूआ को तेज गुस्सा आया और उन्होंने मानसी को इतनी जोर से डांटा कि घर के हर सदस्य के चेहरे पर तनाव झलक उठा.

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‘‘जी, बूआजी,’’ मानसी ने पल भर को अपने मुंह पर उंगली रखी और फिर फौरन उसे हटा कर बूआजी को चहकते हुए बताने लगी, ‘‘यह सारा कुसूर मेरे पापा का है. आप जब उन से मिलें, तो उन्हें जरूर डांटना. उन्होंने मुझे बचपन से ही किसी भी विषय पर अपने साथ खुल कर चर्चा करने की छूट दे रखी थी. अब मैं यहां पापा के साथ बातें करतेकरते जोश में भूल जाती हूं कि ये तो मेरे ससुरजी हैं. मुझे इन के सामने खामोश रहना चाहिए.’’

‘‘शंकर, तू इसे गलत व्यवहार करते देख कर डांटताटोकता क्यों नहीं है?’’

‘‘दीदी, मैं अब से टोका करूंगा,’’ शंकरजी के लिए अभी भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा था.

‘‘और मैं अपने को सुधारने का वादा करती हूं, पापा,’’ मानसी ने यों गरदन झुका ली मानों बहुत बड़ा जुर्म करते पकड़ी गई हो. यह देख सब की हंसी छूट गई.

‘‘तुम सब का तो इस जोकर लड़की ने दिमाग खराब कर दिया है,’’ बूआजी को अपनी हंसी रोकना मुश्किल लगा तो वे बड़बड़ाती हुईं अपने कमरे में चली गईं.

बूआजी के आने से घर का माहौल अजीब सा हो गया था. वे मानसी की कमियां गिनाते हुए नहीं थकती थीं. जब और कोई उन की ‘हां’ में ‘हां’ नहीं मिलाता तो वे नाराज सी नजर आतीं घर में घूमतीं.

‘‘तुम लोगों ने इसे जरूरत से ज्यादा सिर चढ़ा रखा है,’’ यह डायलौग वे दिन भर में न जाने कितनी दफा कहती थीं.

बूआ के आने के करीब 10 दिन बाद सुमित्रा के नैनीताल वाले चाचाजी का देहांत हो गया. शंकरजी और सुमित्रा को राजीव कार से नैनीताल ले गया. वे तीनों अगले दिन शाम तक लौटने वाले थे.

उन के जाने के बाद बूआजी पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली आरती के साथ शाम को बाजार घूमने निकल गईं वहां दोनों ने जम कर चाट खाई. बदपरहेजी का नतीजा यह हुआ कि रात के 9 बजतेबजते बूआजी की तबीयत खराब होनी शुरू हो गई. उन्हें उलटियां शुरू हो गईं. बाद में जब दस्त भी शुरू हो गए तो उन्हें बहुत कमजोरी महसूस होने लगी. मानसी कालोनी के बाहर से तिपहिया स्कूटर ले कर आई और उन्हें डाक्टर को दिखाने चल दी.डाक्टर के वेटिंगरूम में इंतजार कर रहे मरीजों की काफी भीड़ थी पर वह बूआजी को ले कर सीध डाक्टर साहब के कक्ष में घुस गई. कंपाउंडर ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो मानसी ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘जो उलटीदस्त कर कर के मरा जा  रहा है, उस मरीज को इंतजार करने को कहना गलत है. डाक्टर साहब पहले इस सीरियस मरीज को ही देखेंगे.’’

डाक्टर भी बूआजी को लाइन के बिना पहले देखने की उस की प्रार्थना को टाल नहीं सके. उन्होंने बूआजी की जांच करने के बाद दवा लिख दी. घर आ कर बूआजी को पहली खुराक लेने के कुछ देर बाद से आराम मिलना शुरू हो गया. मानसी पूरे जोश के साथ उन की तीमारदारी में जुट गई. उस ने बूआ से पूछ कर मूंग की दाल की खिचड़ी बनाई. बूआजी का कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था पर मानसी ने सामने बैठ कर उन्हें प्यार से कुछ चम्मच खिचड़ी खिला ही दी. बूआजी को 2 घंटे बाद दर्द बढ़ने लगा तो उन्होंने घबरा कर मानसी से पूछा, ‘‘अगर रात को मुझे ले कर डाक्टर के यहां जाना पड़ा तो किसे बुलाएगी?’’

‘‘मैं हूं न, बूआजी. आप किसी बात की फिक्र न करो,’’ मानसी ने बूआजी के माथे का चुंबन ले कर इतने आत्मविश्वास से कहा कि बूआजी की सारी टैंशन दूर हो गई.

रात को नैनीताल से फोन आया तो मानसी ने अपने ससुरजी को भी आश्वस्त कर दिया, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं सब संभाल लूंगी.’’ रात में जब भी बूआजी की आंख खुली उन्होंने मानसी को जागता पाया. वह हर बार उन्हें नमकचीनी के घोल के कुछ घूंट पिला कर ही मानती. करीब 12 बजे जब उन का बुखार बढ़ने लगा तो मानसी ने काफी देर तक उन के माथे पर गीली पट्टियां रखीं. बुखार कम हुआ तो बूआजी की कुछ देर को आंख लग गई. फिर अचानक रात में उन्हें इतनी जोर से उलटी हुई कि वे अपने कपड़े व पलंग की चादर को खराब होने से नहीं बचा पाईं.

‘‘अब चिंता की कोई बात नहीं. इस बार पेट में बची बाकी चाट भी बाहर आ गई है. देखना, अब आप की तबीयत सुधरती चली जाएगी, बूआजी.’’

मानसी की बात सुन कर कष्ट भुगत रहीं बूआजी मुसकराने से खुद को रोक नहीं पाईं. मानसी ने उन के कपड़े उतरवाए. तौलिया गीला कर के पूरा बदन साफ किया. बाद में पलंग की चादर बदली. फिर उन्हें नए कपड़े पहनाने के बाद उन का सिर इतने अच्छे तरीके से दबाया कि बूआजी को 15 मिनट में गहरी नींद आ गई. सुबह 7 बजे के करीब बूआजी की नींद खुली तो उन्होंने मानसी को पलंग के पास कुरसी पर बेसुध सा सोते पाया. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो उस ने फौरन चौंक कर आंखें खोल दीं. बूआजी ने कोमल स्वर में मानसी से कहा, ‘‘बहू, अब तू अपने कमरे में जा कर आराम से सो जा.’’

‘‘अब आप की तबीयत कैसी है?’’ मानसी की आंखों में चिंता के भाव झलक उठे.

‘‘बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं. आखिरी उलटी करने के बाद बहुत चैन मिला था.’’

‘‘मैं नहा कर आप के लिए चाय बनाती हूं.’’

‘‘अरे, नहीं. तुम आराम करो. मैं खुद बना लूंगी.’’

‘‘तब तो आप के हाथ की बनी चाय मैं भी पीऊंगी,’’ मानसी छोटी बच्ची की तरह तालियां बजा कर खुश हुई तो बूआजी भी खुल कर मुसकरा उठीं.

दोनों ने साथ चाय पी. फिर रात भर की थकी मानसी बूआ की बगल में सो गई. मानसी 12 बजे के करीब उठी तब तक बूआजी ने रोटीसब्जी बना दी थी. साथसाथ लंच करते हुए दोनों के बीच खूब गपशप चलती रही. शाम को शंकर, सुमित्रा और राजीव लौट आए. बूआजी को स्वस्थ देख कर उन सब की आंखों में राहत के भाव उभरे. बूआजी ने मानसी को अपनी छाती से लगा कर उस की खुले दिल से तारीफ की, ‘‘अब मेरी समझ में आ गया है कि क्यों तुम सब इस बातूनी लड़की के फैन हो. यह सचमुच हीरा है हीरा. कल रात क्या डांटा था इस ने कंपाउंडर को… इस ने ऐसी फर्राटेदार अंगरेजी बोली कि डाक्टर साहब की भी मुझे लाइन के बगैर देखने से इनकार करने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘सारी रात जाग कर इस ने मेरी देखभाल की है. तुम सब कल्पना भी नहीं कर सकते कि नमकचीनी का घोल पीने से इनकार करने पर कितनी जोर से यह मुझे डांट देती थी. इस हिम्मती लड़की ने कल रात न खुद का हौसला खोया और न मुझे खोने दिया.

‘‘घर के काम करना तो यह बातूनी लड़की देरसवेर सीख ही जाएगी पर इस के जैसी चुलबुली, हंसमुख और करुणा से भरा दिल रखने वाली बहू बहुत मुश्किल से मिलती है. राजीव, तू ने अपने लिए बहुत अच्छी लड़की चुनी है.’’

भावुकता का शिकार बनी बूआजी ने जब प्यार से राजीव और मानसी का माथा चूमा तो उन की आंखों में आंसू छलक उठे. अब बूआ के सामने मानसी को कोई कुछ नहीं कह सकता था, क्योंकि घर के बाकी लोगों की तरह अब वे भी सोने का दिल रखने वाली मानसी की जबरदस्त प्रशंसक बन गई थीं.

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May 29, 2020 at 10:00AM

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