Wednesday 29 April 2020

19 दिन 19 कहानियां: स्वीकृति

‘आजकल धरम तो रहा ही नहीं. जातबिरादरी जैसी बातें भी भूल गए. अब क्या बिना नहाएधोए नौकर चौके में घुसेंगे?’

इस पर विभू का स्वर ऊंचा हो गया था, ‘अम्मां, दोनों भाभियां मुझ से उम्र में बड़ी हैं, इसलिए उन के बारे में कुछ नहीं कहता पर मीता तो थोड़ाबहुत घरगृहस्थी के कामों में हाथ बंटा सकती है. कभी आप ने सोचा है, आप के लाड़- प्यार से वह कितनी बिगड़ती जा रही है. इसे भी तो दूसरे घर जाना है. क्या यह ठीक है कि घर की सभी औरतें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और बेचारी नीरा ही घर के कामों में जुटी रहे?’

‘तो किस ने कहा है इसे नौकरी करने के लिए. घर में इतना कुछ है कि आने वाली सात पुश्तें खा सकती हैं?’

‘वैसे मां, है तो यह छोटे मुंह बड़ी बात पर हम भी मीता को इसीलिए पढ़ा रहे हैं न कि वह स्वावलंबी बने. अगर उस की ससुराल के लोग भी उस के साथ  वैसा ही सलूक करें जैसा आप लोग नीरा के साथ करते हैं तो कैसा लगेगा आप को?’

‘मीता की तुलना नीरा से करने का अधिकार किस ने दे दिया तुझे. वह किसी छोटे घर की बेटी नहीं है,’ बेटे के सधे हुए आग्रह के स्वर को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां चीखीं.

विभू उस के बाद एक पल भी नहीं रुके थे. स्तंभित नीरा को लगभग घसीटते हुए घर से चले गए थे.

बैंक से कर्ज ले कर नया घर बनवाया और एक नई गृहस्थी बसा ली दोनों ने. एक मारुति जेन गाड़ी भी किस्तों पर ले ली. लेकिन नीरा खुश नहीं थी. बारबार यही कहती, ‘मेरी वजह से तुम्हारा घर छूटा.’

विभू उसे समझाते, ‘जहां तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं वहां अपनी जगह बनाने के लिए क्यों परेशान होती हो?’

6 महीने बीत गए. प्रसव पीड़ा से छटपटाती नीरा अस्पताल पहुंची. ससुराल से कोई नहीं आया. सहकर्मी डाक्टरों ने देखभाल में कोई कमी नहीं रखी थी. मां, पापा और रोहित एक पल के लिए भी वहां से नहीं हटे थे. फिर भी नीरा के मन में एक कसक सी थी कि कितना अच्छा  होता अगर विभू के घर से भी कोई आता, उस के सिरहाने खड़ा होता.

नामकरण वाले दिन उमा दीदी अपने दोनों बेटों के साथ आई थीं. उम्र में वह विभू से 10 साल बड़ी थीं फिर भी वह नीरा से हमउम्र सहेलियों की तरह ही मिलीं. पर जब अम्मां, भाभीभैया में से कोई नहीं आया तो नीरा की रुलाई का बांध फूट पड़ा. वह उमा दीदी के कंधे पर सिर रख बोली, ‘दीदी? मैं तो सोचती थी बच्चे के आने  के बाद सारी दूरियां अपनेआप मिटती चली जाएंगी पर ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ.’

सवा महीने बाद मुन्ने को ले कर उसी चौखट पर पहुंची नीरा, जहां से कभी अपमानित हो कर वह लौटी थी. विभू ने उसे रोकना चाहा पर वह नहीं मानी, ‘देरसवेर, बेटे के लिए तो मोह जाग सकता है. बहू तो पराए घर की होती है. उसे तो स्वयं ही परिवार में जगह बनानी होती है.’ यही विचार था मन में.

वह ससुराल पहुंची तो अम्मां घर  पर नहीं थीं. दरवाजे पर ही बड़ी भाभी की 6 साल की बिटिया सोनाली और  ननद मीता मिल गईं. देखते ही अपरिचय के भाव तिर आए थे. मीता तो अंदर चली गई, सोनाली वहीं खड़ी नीरा का चेहरा ताकने लगी.

‘पहचाना नहीं क्या, सोनू. मैं तुम्हारी चाची… नीरा.’

नाम सुनते ही वह डर कर और पीछे हट गई तो उस ने स्वयं मुन्ने को पलंग पर लिटा दिया और सोनाली को पुकारा, ‘नन्हे मुन्ने से नहीं खेलोगी?’

सोनाली अब सहज हो कर मुसकराने लगी थी. मुन्ने को सोनाली के पास लिटा कर नीरा पूरे घर का चक्कर लगा आई. पूरा घर बेतरतीब पड़ा था. भाभी पलंग पर लेटी कराह रही थीं. उन्हें तेज बुखार था. नीरा ने केमिस्ट को फोन कर दवाइयां मंगवाईं. फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर भाभी के माथे पर ठंडी पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद भाभी का बुखार उतरने लगा. नीरा इस बीच चौके में जा कर दलिया बना लाई. घर के अन्य सदस्यों के लिए भी दालसब्जी छौंक दी. अब भी उसे याद था, महाराजिन के हाथ का पका खाना अम्मां नहीं खाती हैं.

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12 बज चुके थे. भाभी की तबीयत थोड़ी सुधरने लगी थी. अम्मां अभी तक लौटी नहीं थीं. नीरा ने डोंगे में दलिया पलट कर उस में दूध डाला और भाभी के पास जा बैठी. भाभी की आंखों में स्नेह छलक आया था. मीता अब भी तुनकी हुई थी. नीरा ने कुरेदकुरेद कर उस की परीक्षा की तैयारी के बारे में पूछा तो वह सहज हो उठी  थी. सोनाली, मुन्ने के  साथ खेल रही थी. तनाव के बादल छंटते जा रहे थे. इतने में अम्मां आती दिखाई दीं.

अम्मां की बेरुखी अब भी पहले की तरह कायम थी. उन्होंने एक उड़ती सी नजर मुन्ने और नीरा पर डाली. नीरा ने खुद उन की गोद में मुन्ने को डाल दिया था. उसे अब भी विश्वास था कि स्नेह  की आंच से, मन  में  ठोस  हुई  भावनाओं को पिघलाया जा सकता है.

‘पोते को आशीर्वाद नहीं देंगी?’ उस ने अम्मां की आंखों में झांका.

उन्होंने सोने का सिक्का पोते की हथेली पर रख तो दिया पर वैसा अपनापन अम्मां ने नहीं दिखाया जैसा नीरा चाहती थी. घर लौटने के बाद भी नीरा बराबर बड़ी भाभी का हाल पूछती रही. परहेज और दवा के बारे में भी बताती रही. उस की सद्भावना के आगे बड़ी भाभी नतमस्तक हो उठी थीं. फोन पर ही सिसक उठीं और बोलीं, ‘नीरा हमें माफ कर दो. बड़ी ही बदसलूकी की मैं ने तुम से.’

भाभी बात कर ही रही थीं कि तभी मीता ने फोन छीन लिया था.

‘भाभी, मुन्ना कैसा है? भैया कैसे हैं?’

‘वहीं बैठीबैठी, सब के बारे में पूछती रहोगी या घर आ कर मिलोगी भी?’

उस दिन के बाद से मीता और सोनाली जब भी समय मिलता, मुन्ने से खेलने पहुंच जातीं. भाभी फोन पर ही मुन्ने की परवरिश की हिदायतें देती रहतीं. कभीकभी अम्मां से छिप कर, मुन्ने के लिए सौंफमिश्री की भुगनी और नीरा के लिए पिस्तेबादाम की कतली भी बच्चों के हाथ भिजवा देतीं.

धीरेधीरे विभू के परिजनों से नीरा की दूरियां सिमटने लगी थीं, पर उसे तो अम्मां के पास पहुंचना था. परिवार की धुरी तो वही थीं.

सचानक अम्मां की कराहट ने नीरा को अतीत के झरोखे से खींच कर वर्तमान में ला पटका. सामने ई.सी.जी. मशीन का मानिटर उन के हृदय की धड़कनों का संकेत दे रहा था. एकाएक अम्मां की सांस फूलने लगी. शरीर पसीनेपसीने हो गया. घर के सभी सदस्य घबरा गए थे. मीता जोरजोर से रोने लगी. तीनों भाई उसे सहारा दे रहे थे. मझली भाभी भी 2 दिन पहले ही पहुंची थीं.

डाक्टर ने नीरा को कमरे में बुला कर बताया, ‘‘स्थिति नाजुक है. फौरन आपरेशन करना पड़ेगा. पैसे जमा करवा दीजिए.’’

अगले कुछ पलों में नीरा डाक्टर शेरावत के साथ आपरेशन थिएटर में थी. विभू दोनों भाइयों के साथ बाहर चहलकदमी कर रहे थे. बड़ी भाभी मुन्ने को गोद में लिए हैरानपरेशान सी इधरउधर डोल रही थीं. मां के दूध पर पलने वाला बच्चा तीन घंटे से सिसक रहा था.

कुछ ही देर में तीनों भाई, दोनों भाभियां, उमा दीदी, मीता बाहर लगे पेड़ की छाया में बैठ गईं. भाभी गहरे मौन सागर में डूब सी गईं. मीता उन्हें सचेत करती हुई बोली, ‘‘क्या सोच रही हो, भाभी?’’

लंबी सांस ले कर भाभी बोलीं, ‘‘कहने को तो अम्मां की 3 बहुएं हैं, पर हर जगह, हर समय नीरा अपनी जगह खुद बना लेती है. बेचारी, बिना रुके, हर वक्त दौड़भाग करती रहती है. फिर भी उठतेबैठते अम्मां उसे कोसती रहती हैं. सच, हम सब ने उस के बारे में कितनी गलत धारणा बनाई हुई थी.’

आपरेशन थिएटर से जब अम्मां को स्पेशल वार्ड में लाया गया तब तक सांझ घिर आई थी. नीरा मुन्ने को ले कर घर चली गई थी. भूख से बिलबिलाता बच्चा रोरो कर हलकान हो उठा था.

संक्रमण की वजह से किसी को भी अम्मां से मिलने की अनुमति नहीं थी. गहरी नींद के नशे में भी, उन के जागते दिमाग में विचारों के बादल उमड़घुमड़ रहे थे. अम्मां ने लड़खड़ाती आवाज में नीरा का नाम लिया तो सभी उन के इर्दगिर्द सिमट आए थे.

टूटते स्वर में वह बोलीं, ‘‘नीरा कहां है?’’ कमजोरी से फिर आंखें मुंदने लगी थीं.

अगले दिन थोड़ी हालत सुधरी तो उन्होंने विभू से कहा, ‘‘मैं नीरा से मिलना चाहती हूं. मैं ने उस का बड़ा ही अनादर किया,’’ और उन की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे, ‘‘द्वार पर आई सुहागिन का निरादर किया,’’ अम्मां दुखी मन से कहने लगीं, ‘‘मैं ने तो उसे आशीर्वाद तक नहीं दिया और उस ने मुझे जीवनदान दे दिया.’’

‘‘मां की बातों का उस की संतान कभी बुरा नहीं मानती,’’ विभू बोला, ‘‘इन 3 सालों में मुझ से ज्यादा तो वह तुम्हारे लिए छटपटाती रही है, अम्मां.’’

उस रात अम्मां को बहुत अच्छी नींद आई. सुबह की किरण के साथ जब कमरे का परदा सरका तो पूरा कमरा, गुलाब की सुगंध से महक उठा. खिड़की के परदे सरका कर नीरा ने पूछा, ‘‘अम्मां, अब कैसी हैं?’’

आंखें मूंद कर उन्होंने गरदन को थोड़ा हिलाया. फिर इशारे से उसे अपने पास आ कर बैठने को कहा. दिन के उजाले में नीरा के ताजगी भरे चेहरे को अम्मां अपलक निहारती रह गईं, ‘सुंदर तो तू पहले से ही थी. मां बन कर और भी निखर गई.’

तभी मझली भाभी मुन्ने को ले कर कमरे में आईं और बोलीं, ‘‘दादी को प्रणाम करो.’’

अम्मां उसे आशीर्वाद देती रहीं, सहलाती रहीं, पुचकारती रहीं.

‘‘क्या नाम रखा है?’’

‘‘ऐसे कैसे नाम रखते, अम्मां. वह तो आप को ही रखना है,’’ नीरा ने आदर भरे भाव से कहा तो अम्मां खुद को अपराधिन समझने लगीं. हृदय की पीड़ा के तिनकों को आंसुओं से बुहारते हुए वह दृढ़ स्वर में बोलीं.

‘‘इस रविवार को मुन्ने का नामकरण समारोह हम सब मिल कर अपने घर पर मनाएंगे. जिस चौखट से तुम अपमानित हो कर निकली थीं वहीं पर आशीष पाने के लिए लौटोगी.’’

अम्मां की आंखें नम हो उठीं. न जाने कब आंसू के दो कतरे टपक कर नीरा की हथेली पर टपके आंसुओं से मिल गए. नीरा को महसूस हुआ कि ससुराल की देहरी पर उस ने आज पहला कदम रखा है.

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‘आजकल धरम तो रहा ही नहीं. जातबिरादरी जैसी बातें भी भूल गए. अब क्या बिना नहाएधोए नौकर चौके में घुसेंगे?’

इस पर विभू का स्वर ऊंचा हो गया था, ‘अम्मां, दोनों भाभियां मुझ से उम्र में बड़ी हैं, इसलिए उन के बारे में कुछ नहीं कहता पर मीता तो थोड़ाबहुत घरगृहस्थी के कामों में हाथ बंटा सकती है. कभी आप ने सोचा है, आप के लाड़- प्यार से वह कितनी बिगड़ती जा रही है. इसे भी तो दूसरे घर जाना है. क्या यह ठीक है कि घर की सभी औरतें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और बेचारी नीरा ही घर के कामों में जुटी रहे?’

‘तो किस ने कहा है इसे नौकरी करने के लिए. घर में इतना कुछ है कि आने वाली सात पुश्तें खा सकती हैं?’

‘वैसे मां, है तो यह छोटे मुंह बड़ी बात पर हम भी मीता को इसीलिए पढ़ा रहे हैं न कि वह स्वावलंबी बने. अगर उस की ससुराल के लोग भी उस के साथ  वैसा ही सलूक करें जैसा आप लोग नीरा के साथ करते हैं तो कैसा लगेगा आप को?’

‘मीता की तुलना नीरा से करने का अधिकार किस ने दे दिया तुझे. वह किसी छोटे घर की बेटी नहीं है,’ बेटे के सधे हुए आग्रह के स्वर को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां चीखीं.

विभू उस के बाद एक पल भी नहीं रुके थे. स्तंभित नीरा को लगभग घसीटते हुए घर से चले गए थे.

बैंक से कर्ज ले कर नया घर बनवाया और एक नई गृहस्थी बसा ली दोनों ने. एक मारुति जेन गाड़ी भी किस्तों पर ले ली. लेकिन नीरा खुश नहीं थी. बारबार यही कहती, ‘मेरी वजह से तुम्हारा घर छूटा.’

विभू उसे समझाते, ‘जहां तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं वहां अपनी जगह बनाने के लिए क्यों परेशान होती हो?’

6 महीने बीत गए. प्रसव पीड़ा से छटपटाती नीरा अस्पताल पहुंची. ससुराल से कोई नहीं आया. सहकर्मी डाक्टरों ने देखभाल में कोई कमी नहीं रखी थी. मां, पापा और रोहित एक पल के लिए भी वहां से नहीं हटे थे. फिर भी नीरा के मन में एक कसक सी थी कि कितना अच्छा  होता अगर विभू के घर से भी कोई आता, उस के सिरहाने खड़ा होता.

नामकरण वाले दिन उमा दीदी अपने दोनों बेटों के साथ आई थीं. उम्र में वह विभू से 10 साल बड़ी थीं फिर भी वह नीरा से हमउम्र सहेलियों की तरह ही मिलीं. पर जब अम्मां, भाभीभैया में से कोई नहीं आया तो नीरा की रुलाई का बांध फूट पड़ा. वह उमा दीदी के कंधे पर सिर रख बोली, ‘दीदी? मैं तो सोचती थी बच्चे के आने  के बाद सारी दूरियां अपनेआप मिटती चली जाएंगी पर ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ.’

सवा महीने बाद मुन्ने को ले कर उसी चौखट पर पहुंची नीरा, जहां से कभी अपमानित हो कर वह लौटी थी. विभू ने उसे रोकना चाहा पर वह नहीं मानी, ‘देरसवेर, बेटे के लिए तो मोह जाग सकता है. बहू तो पराए घर की होती है. उसे तो स्वयं ही परिवार में जगह बनानी होती है.’ यही विचार था मन में.

वह ससुराल पहुंची तो अम्मां घर  पर नहीं थीं. दरवाजे पर ही बड़ी भाभी की 6 साल की बिटिया सोनाली और  ननद मीता मिल गईं. देखते ही अपरिचय के भाव तिर आए थे. मीता तो अंदर चली गई, सोनाली वहीं खड़ी नीरा का चेहरा ताकने लगी.

‘पहचाना नहीं क्या, सोनू. मैं तुम्हारी चाची… नीरा.’

नाम सुनते ही वह डर कर और पीछे हट गई तो उस ने स्वयं मुन्ने को पलंग पर लिटा दिया और सोनाली को पुकारा, ‘नन्हे मुन्ने से नहीं खेलोगी?’

सोनाली अब सहज हो कर मुसकराने लगी थी. मुन्ने को सोनाली के पास लिटा कर नीरा पूरे घर का चक्कर लगा आई. पूरा घर बेतरतीब पड़ा था. भाभी पलंग पर लेटी कराह रही थीं. उन्हें तेज बुखार था. नीरा ने केमिस्ट को फोन कर दवाइयां मंगवाईं. फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर भाभी के माथे पर ठंडी पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद भाभी का बुखार उतरने लगा. नीरा इस बीच चौके में जा कर दलिया बना लाई. घर के अन्य सदस्यों के लिए भी दालसब्जी छौंक दी. अब भी उसे याद था, महाराजिन के हाथ का पका खाना अम्मां नहीं खाती हैं.

ये भी पढ़ें- चिंता की कोई बात नहीं

12 बज चुके थे. भाभी की तबीयत थोड़ी सुधरने लगी थी. अम्मां अभी तक लौटी नहीं थीं. नीरा ने डोंगे में दलिया पलट कर उस में दूध डाला और भाभी के पास जा बैठी. भाभी की आंखों में स्नेह छलक आया था. मीता अब भी तुनकी हुई थी. नीरा ने कुरेदकुरेद कर उस की परीक्षा की तैयारी के बारे में पूछा तो वह सहज हो उठी  थी. सोनाली, मुन्ने के  साथ खेल रही थी. तनाव के बादल छंटते जा रहे थे. इतने में अम्मां आती दिखाई दीं.

अम्मां की बेरुखी अब भी पहले की तरह कायम थी. उन्होंने एक उड़ती सी नजर मुन्ने और नीरा पर डाली. नीरा ने खुद उन की गोद में मुन्ने को डाल दिया था. उसे अब भी विश्वास था कि स्नेह  की आंच से, मन  में  ठोस  हुई  भावनाओं को पिघलाया जा सकता है.

‘पोते को आशीर्वाद नहीं देंगी?’ उस ने अम्मां की आंखों में झांका.

उन्होंने सोने का सिक्का पोते की हथेली पर रख तो दिया पर वैसा अपनापन अम्मां ने नहीं दिखाया जैसा नीरा चाहती थी. घर लौटने के बाद भी नीरा बराबर बड़ी भाभी का हाल पूछती रही. परहेज और दवा के बारे में भी बताती रही. उस की सद्भावना के आगे बड़ी भाभी नतमस्तक हो उठी थीं. फोन पर ही सिसक उठीं और बोलीं, ‘नीरा हमें माफ कर दो. बड़ी ही बदसलूकी की मैं ने तुम से.’

भाभी बात कर ही रही थीं कि तभी मीता ने फोन छीन लिया था.

‘भाभी, मुन्ना कैसा है? भैया कैसे हैं?’

‘वहीं बैठीबैठी, सब के बारे में पूछती रहोगी या घर आ कर मिलोगी भी?’

उस दिन के बाद से मीता और सोनाली जब भी समय मिलता, मुन्ने से खेलने पहुंच जातीं. भाभी फोन पर ही मुन्ने की परवरिश की हिदायतें देती रहतीं. कभीकभी अम्मां से छिप कर, मुन्ने के लिए सौंफमिश्री की भुगनी और नीरा के लिए पिस्तेबादाम की कतली भी बच्चों के हाथ भिजवा देतीं.

धीरेधीरे विभू के परिजनों से नीरा की दूरियां सिमटने लगी थीं, पर उसे तो अम्मां के पास पहुंचना था. परिवार की धुरी तो वही थीं.

सचानक अम्मां की कराहट ने नीरा को अतीत के झरोखे से खींच कर वर्तमान में ला पटका. सामने ई.सी.जी. मशीन का मानिटर उन के हृदय की धड़कनों का संकेत दे रहा था. एकाएक अम्मां की सांस फूलने लगी. शरीर पसीनेपसीने हो गया. घर के सभी सदस्य घबरा गए थे. मीता जोरजोर से रोने लगी. तीनों भाई उसे सहारा दे रहे थे. मझली भाभी भी 2 दिन पहले ही पहुंची थीं.

डाक्टर ने नीरा को कमरे में बुला कर बताया, ‘‘स्थिति नाजुक है. फौरन आपरेशन करना पड़ेगा. पैसे जमा करवा दीजिए.’’

अगले कुछ पलों में नीरा डाक्टर शेरावत के साथ आपरेशन थिएटर में थी. विभू दोनों भाइयों के साथ बाहर चहलकदमी कर रहे थे. बड़ी भाभी मुन्ने को गोद में लिए हैरानपरेशान सी इधरउधर डोल रही थीं. मां के दूध पर पलने वाला बच्चा तीन घंटे से सिसक रहा था.

कुछ ही देर में तीनों भाई, दोनों भाभियां, उमा दीदी, मीता बाहर लगे पेड़ की छाया में बैठ गईं. भाभी गहरे मौन सागर में डूब सी गईं. मीता उन्हें सचेत करती हुई बोली, ‘‘क्या सोच रही हो, भाभी?’’

लंबी सांस ले कर भाभी बोलीं, ‘‘कहने को तो अम्मां की 3 बहुएं हैं, पर हर जगह, हर समय नीरा अपनी जगह खुद बना लेती है. बेचारी, बिना रुके, हर वक्त दौड़भाग करती रहती है. फिर भी उठतेबैठते अम्मां उसे कोसती रहती हैं. सच, हम सब ने उस के बारे में कितनी गलत धारणा बनाई हुई थी.’

आपरेशन थिएटर से जब अम्मां को स्पेशल वार्ड में लाया गया तब तक सांझ घिर आई थी. नीरा मुन्ने को ले कर घर चली गई थी. भूख से बिलबिलाता बच्चा रोरो कर हलकान हो उठा था.

संक्रमण की वजह से किसी को भी अम्मां से मिलने की अनुमति नहीं थी. गहरी नींद के नशे में भी, उन के जागते दिमाग में विचारों के बादल उमड़घुमड़ रहे थे. अम्मां ने लड़खड़ाती आवाज में नीरा का नाम लिया तो सभी उन के इर्दगिर्द सिमट आए थे.

टूटते स्वर में वह बोलीं, ‘‘नीरा कहां है?’’ कमजोरी से फिर आंखें मुंदने लगी थीं.

अगले दिन थोड़ी हालत सुधरी तो उन्होंने विभू से कहा, ‘‘मैं नीरा से मिलना चाहती हूं. मैं ने उस का बड़ा ही अनादर किया,’’ और उन की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे, ‘‘द्वार पर आई सुहागिन का निरादर किया,’’ अम्मां दुखी मन से कहने लगीं, ‘‘मैं ने तो उसे आशीर्वाद तक नहीं दिया और उस ने मुझे जीवनदान दे दिया.’’

‘‘मां की बातों का उस की संतान कभी बुरा नहीं मानती,’’ विभू बोला, ‘‘इन 3 सालों में मुझ से ज्यादा तो वह तुम्हारे लिए छटपटाती रही है, अम्मां.’’

उस रात अम्मां को बहुत अच्छी नींद आई. सुबह की किरण के साथ जब कमरे का परदा सरका तो पूरा कमरा, गुलाब की सुगंध से महक उठा. खिड़की के परदे सरका कर नीरा ने पूछा, ‘‘अम्मां, अब कैसी हैं?’’

आंखें मूंद कर उन्होंने गरदन को थोड़ा हिलाया. फिर इशारे से उसे अपने पास आ कर बैठने को कहा. दिन के उजाले में नीरा के ताजगी भरे चेहरे को अम्मां अपलक निहारती रह गईं, ‘सुंदर तो तू पहले से ही थी. मां बन कर और भी निखर गई.’

तभी मझली भाभी मुन्ने को ले कर कमरे में आईं और बोलीं, ‘‘दादी को प्रणाम करो.’’

अम्मां उसे आशीर्वाद देती रहीं, सहलाती रहीं, पुचकारती रहीं.

‘‘क्या नाम रखा है?’’

‘‘ऐसे कैसे नाम रखते, अम्मां. वह तो आप को ही रखना है,’’ नीरा ने आदर भरे भाव से कहा तो अम्मां खुद को अपराधिन समझने लगीं. हृदय की पीड़ा के तिनकों को आंसुओं से बुहारते हुए वह दृढ़ स्वर में बोलीं.

‘‘इस रविवार को मुन्ने का नामकरण समारोह हम सब मिल कर अपने घर पर मनाएंगे. जिस चौखट से तुम अपमानित हो कर निकली थीं वहीं पर आशीष पाने के लिए लौटोगी.’’

अम्मां की आंखें नम हो उठीं. न जाने कब आंसू के दो कतरे टपक कर नीरा की हथेली पर टपके आंसुओं से मिल गए. नीरा को महसूस हुआ कि ससुराल की देहरी पर उस ने आज पहला कदम रखा है.

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April 30, 2020 at 10:00AM

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