Monday 27 April 2020

तीन सखियां

अपनी नईनई गृहस्थी सजासंवार कर गंगा, दामिनी और कृष्णा सोफे पर ही पसर गईं. गंगा ने कहा, ‘‘चलो, भई, अब शुरू करते हैं नया जीवन, बैस्ट औफ लक.’’

‘‘हां, सेम टू यू,’’ दामिनी ने कहा तो कृष्णा कहने लगी, ‘‘शुरुआत कुछ शानदार होनी चाहिए, डिनर करने बाहर चलें? 2 दिन से अब फुरसत मिली है.’’

गंगा ने कहा, ‘‘हां, ठीक है, 7 बज रहे हैं. दामिनी, कल तुम्हें औफिस भी जाना है. चलो फिर, जल्दी डिनर कर के आते हैं. टाइम से आ कर आराम कर लेना. श्यामा भी कल से ही काम पर आएगी. बोलो, कहां चलना है?’’

ये भी पढ़ें-क्या खोया क्या पाया

दामिनी ने कहा, ‘‘शिवसागर चलते हैं.’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘नहीं, फ्यूजन ढाबा चलते हैं.’’

गंगा ने कहा, ‘‘नजदीक ही बार्बेक्यू नेशन चलते हैं.’’

दामिनी ने फटकारा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है, गंगा? रात में इतना हैवी डिनर करोगी वहां?’’

गंगा ने भी तेज आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारा दिमाग होगा खराब, एक रात हैवी खाने से क्या हो जाएगा? अरे, नए जीवन की पार्टी तो बनती है न.’’

कृष्णा ने टोका, ‘‘बस, फ्यूजन ढाबा चलेंगे, तुम दोनों तो किसी भी बात पर शुरू हो जाती हो.’’

तीनों की आवाजें धीरेधीरे तेज होने लगीं, अभी 2 दिन पहले ही इस ‘तुलसीधाम सोसायटी’ में तीनों ने फोर बैडरूम का फ्लैट किराए पर लिया था और अभी घर का सामान संभाल कर फ्री हुई थीं.

ये भी पढ़ें-एक घर उदास सा

तीनों की आवाजें तेज होते ही फ्लैट की डोरबैल बजी. तीनों चुप हो गईं. एकदूसरे को देखा. कृष्णा ने कहा, ‘‘यह कोई सीरियल नहीं है, डोरबैल बजते ही एकदूसरे की तरफ देखने के बजाय दरवाजा खोलो. अच्छा, मैं ही देखती हूं.’’

कृष्णा ने दरवाजा खोला. एक महिला खड़ी थी. गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं आप के बराबर वाले फ्लैट में रहती हूं. कुछ शोर सा हो रहा था. आप लोग नई आई हैं, कुछ प्रौब्लम है क्या? मैं कुछ हैल्प करूं?’’

इतने में दामिनी और गंगा भी दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गईं. गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. हमारे यहां तो अकसर यह शोर होता रहेगा. आप चिंता न करें. हम लोग मजे में हैं.’’

महिला चुपचाप चली गई. दरवाजा बंद कर तीनों खिलखिला कर हंस पड़ीं, दामिनी ने कहा, ‘‘यह बेचारी पड़ोसिन तो हमारे चक्कर में पड़ कर पागल हो जाएगी.’’ इस बात पर तीनों खूब हंसीं.

ये भी पढ़ें-प्रमाण दो : भाग 2

दामिनी ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट तैयार हो जाओ. अब निकलना चाहिए.’’ तीनों अपनेअपने बैडरूम में तैयार होने लगीं. दामिनी ने तैयार हो कर फिर पूछा, ‘‘कहां कर रहे हैं डिनर?’’

कृष्णा ने अपनी शरारती मुसकराहट बिखेरते हुए कहा, ‘‘किसी नई जगह.’’

तीनों तैयार हो कर बाहर निकलीं तो पड़ोसिन महिला से फिर सामना हो गया. वह तीनों को स्टाइलिश कपड़ों में, बढि़या परफ्यूम की खुशबू बिखेरते, हंसीमजाक करते हुए जाते देख हैरान होती रही. क्या औरतें हैं, अभी तो लड़ रही थीं. तीनों ने एक शानदार होटल में डिनर किया. हमेशा की तरह आइसक्रीम खाई और कुछ जरूरी सामान खरीद कर अपने नए संसार में लौट आईं. घर आ कर कपड़े बदले, अपनेअपने बैडरूम में लगा टीवी औन किया. थोड़ी देर अपनी पसंद के प्रोग्राम देखते हुए सुस्ताईं, फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर घरगृहस्थी के कामों व सामान पर चर्चा कर के सोने चली गईं. तीनों बहुत थकी हुई थीं. नए घर में आज तीनों की पहली रात थी. कल तक तो दिनभर सामान लगा कर सोने के लिए रात को अपनेअपने पुराने घर में चली जाती थीं, अब तो यही घर उन का सबकुछ था.

पिछले हफ्ते ही तीनों ने इस मिडिलक्लास सोसायटी में तीसरे फ्लोर पर यह 4 बैडरूम  फ्लैट किराए पर लिया था. उन का हर परिचित, रिश्तेदार उन के इस फैसले पर हैरान रह गया था. तीनों अपनेअपने बैड पर सोने लगीं तो तीनों की आंखों के आगे अपना पिछला समय चलचित्र की भांति चलने लगा.

ये भी पढ़ें-प्रमाण दो : भाग 3

पिछले हफ्ते तक जीवन एक पौश सोसायटी में बिताया था, पर बिल्डिंग अलगअलग थीं. तीनों सोसायटी की ही एक किटी पार्टी की सदस्य भी थीं जिस में 25 साल से ले कर उन की उम्र तक की 15 सदस्य थीं. किटी में ही तीनों का ध्यान एकदूसरे की तरफ गया था. तीनों के विचार, तौरतरीके, स्वभाव, व्यवहार एकदूसरे से खूब मेल खाते थे. तीनों हाउजी खूब उत्साह से खेलती थीं. हर गेम जीतने की कोशिश करती थीं. तीनों बहुत हंसमुख थीं. किटी की अन्य सदस्य जीवन के प्रति उन के सकारात्मक दृष्टिकोण की खुले दिल से तारीफ करती थीं. सब के दिल में उन के लिए प्यार और सम्मान था.

तीनों ही जीवन के 5वें दशक में थीं. फिर भी तीनों सैर पर भी एकसाथ जाने लगी थीं. तीनों का आपसी संबंध दिनपरदिन मजबूत होता गया था. अब तीनों अपनी व्यक्तिगत बातें, अपने सुखदुख एकदूसरे के साथ बांटना चाहती थीं. एक रविवार कृष्णा ने दोनों को फोन कर अपने घर लंच पर बुलाया था. गंगा और दामिनी 12 बजे कृष्णा के घर पहुंच गई थीं. कृष्णा ने बहुत दिल से दोनों की आवभगत की. गंगा और दामिनी ने कृष्णा के बनाए खाने की भरपूर प्रशंसा की. तीनों ने भरपेट खाया. उस के बाद कृष्णा कौफी बना कर ले आई. तीनों आराम से सोफे पर ही पसर गई थीं. कृष्णा ने कहना शुरू किया, ‘जब से हम तीनों मिले हैं, जी उठी हूं मैं, वरना यही सूना घर, वही बोरिंग रुटीन था. पर बाहर तुम लोगों से मिल कर जब घर वापस आती हूं तो घर काटने को दौड़ता है. अकेलापन सहा नहीं जाता.  घर में घड़ी की सूइयां भी ठहरी हुई सी लगती हैं.’

दामिनी ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘कितने साल हो गए आप के पति का स्वर्गवास हुए?’ 15 साल हो गए, 1 ही बेटी है जो आस्ट्रेलिया में पति और बच्चों के साथ रहती है. साल दो साल में कभी वह आ जाती है. कभी मैं चक्कर लगा आती हूं, बस.’

गंगा ने भी अपने बारे में बताया, ‘मेरा भी जीवन ऐसा ही है. आलोक से तलाक के बाद अकेली ही हूं.’

दामिनी ने पूछा, ‘तलाक क्यों हो गया था? कितने साल हो गए?’

‘आलोक से विवाह के 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. उस का अपनी किसी सहकर्मी से अफेयर था. मैं ने आपत्ति की तो वह मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो गया जिस के बदले में उस ने मुझे इतनी भारी रकम दी कि आज तक मुझे किसी चीज की कमी नहीं है. वह बड़ा बिजनैसमैन था. मेरे नाम मोटा बैंकबैलेंस, गहने, यह फ्लैट, सबकुछ है. एक बेवफा पति से चिपके रहने के बजाय मुझे यह जीवन ही ठीक लगा. मैं भी अब पूरी आजादी से जी रही हूं पर मेरा धीरेधीरे सभी रिश्तेदारों से भी मन खराब होता गया. न मैं उन के ताने सुनना चाहती थी न हमदर्दीभरी बातें इसलिए मैं ने सब को अपने से दूर कर दिया. अकेलापन अब बहुत खलता है पर क्या कर सकते हैं. तुम बताओ दामिनी, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’

ये भी पढ़ें-जिस की लाठी उस की भैंस

दामिनी ने एक ठंडी सांस ले कर बताना शुरू किया, ‘पिता नहीं रहे तो चाहेअनचाहे घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आती गई. मैं बड़ी थी. मैं ने खुद पढ़नेलिखने में बहुत मेहनत की, दोनों छोटे भाइयों को पढ़ायालिखाया, मां की देखभाल की. मां और भाइयों को संभालने में काफी उम्र निकल गई. वे भी मेरे विवाह के टौपिक से बचते रहे. एक बार उम्र निकल गई तो विवाह का खयाल मैं ने भी छोड़ दिया. अब मां तो रहीं नहीं, दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ विदेश में बस गए हैं. मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे पद पर हूं. रुपएपैसे की कमी तो नहीं है पर अकेलापन खलने लगा है. इसी साल मैं 50 की हो रही हूं पर जीवन को मैं रोतेरोते नहीं जीना चाहती. जीवनभर मेहनत की है. जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहती हूं.’

कृष्णा ने कहा, ‘और क्या, हम तीनों ही खुशमिजाज, आर्थिक रूप से मजबूत और नए विचारों वाली महिलाएं हैं. हम क्यों अपना जीवन रोपीट कर बिताएं. जो मिलना था, मिल गया, जो नहीं मिला, बस नहीं मिला. पढ़ा है या सुना है तुम लोगों ने, एक लेखक ने भी कहा है, ‘मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा’.’

दामिनी ने खुश हो कर पूछा, ‘अरे, तुम भी यह सब पढ़ती हो क्या?’

‘और क्या, किताबें तो मेरी अब तक सब से अच्छी साथी रही हैं. आओ, तुम्हें अपनी छोटी सी लाइब्रेरी दिखाऊं,’ कह कर कृष्णा उन्हें अपने बैडरूम में ले गई थी.

गंगा भी चहक उठी, ‘अरे वाह, मुझे भी शौक है. मैं भी पढ़ूंगी ये सब.’

उस के बाद तीनों थोड़ी देर बातें करती रही थीं, फिर अपनेअपने घर लौट आईं. तीनों का मन साथ समय बिता कर काफी हलका था. दामिनी की शनिवार, रविवार छुट्टी होती थी. वह अब ये तीनों दिन कृष्णा और गंगा के साथ ही बिताती थी. तीनों के घर काम करने वाली मेड भी एक ही थी अब, श्यामा. कालेज जाने वाली छात्राओं की तरह तीनों सखियां अब किसी एक के घर इकट्ठी होतीं, हंसीमजाक करतीं, कभी मूवी देखने जातीं, कभी शौपिंग जातीं. तीनों को अब किसी अन्य की जरूरत महसूस नहीं होती. ऐसे ही एकदूसरे के सुखदुख को बांटते तीनों की दोस्ती को 2 साल बीत रहे थे.

एक दिन दामिनी ने कृष्णा और गंगा को अपने घर बुलाया हुआ था. तीनों खापी कर उस के बैडरूम में ही लेट गईं. दामिनी को कुछ सोचते हुए देख कर कृष्णा ने पूछा, ‘क्या सोच रही हो, दामिनी?’

‘बहुत कुछ, कुछ नई सी बात.’

‘क्या, बताओ?’

‘समझ नहीं पा रही हूं कि क्या ठीक सोच रही हूं मैं.’

गंगा ने कहा, ‘जल्दी बताओ अब.’

‘अभी दिमाग में आया, हम तीनों ही अकेली हैं, तीनों एकदूसरे के साथ खुश हैं, हम तीनों हमेशा भी तो साथ रह सकती हैं और वैसे भी हमें अपना जीवन जीने के लिए किसी पुरुष के साथ की जरूरत तो है नहीं. हम चाहें तो हमेशा साथ रह कर जीवन की सांध्यवेला में एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं. हम तीनों का वन बैडरूम फ्लैट है. ऐसा कर सकते हैं कि आसपास किसी सोसायटी में बड़ा फ्लैट किराए पर ले कर साथ रह कर भी अपनी मरजी से जिएं. सब की प्राइवेसी भी रहे और साथ भी मिलता रहे. अपने फ्लैट किराए पर दे देंगे. सब खर्चे शेयर कर लेंगे. कम से कम घर लौटने पर किसी अपने का चेहरा तो दिखेगा. घर की खाली दीवारें अकेले होने का एहसास तो नहीं कराएंगी.’

गंगा और कृष्णा के मुंह से उत्साहपूर्वक निकला, ‘वाह, दामिनी, क्या बढि़या बात सोची है. यह बहुत अच्छा रहेगा.’

ये भी पढ़ें-प्रमाण दो

गंगा ने कहा, ‘बहुत मजा आएगा. भविष्य की बेतुकी चिंता में वर्तमान की कुछ बेहतरीन चीजें, कुछ बेहतरीन पल तो हमें इस जीवन में दोबारा नहीं मिलेंगे. फिर इन को खो कर क्यों जिएं. जीवन की राह में बस यों चलते जाना कि सांस जब तक चले, जीना ही पड़ेगा, यह सोच कर क्यों जिएं.’

दामिनी ने कहा, ‘और आजकल तो मैं कई बार सोचती हूं कि मेरे लिए अंदर से दरवाजा खोलने वाला कोई है ही नहीं. हो सकता है कभी मेरे फ्लैट का ताला तोड़ मेरा गला हुआ शव बाहर निकाला जाए. और तब मेरे परिचित मेरी संपत्ति पर हक जताने चले आएंगे.’

कृष्णा कहने लगी, ‘तुम लोग सीरियस मत हो. हमारा अब दोस्ती का सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, द्वेष और ईर्ष्या से रहित है, स्वार्थ से परे है.’

तीनों की आंखें भर आई थीं. तीनों एकदूसरे के गले लग गई थीं. तीनों का दिल फूल सा हलका हो गया तो तीनों फिर मस्ती के मूड में आ गईं. अपने अंदर एक नया उत्साह, नई ऊर्जा महसूस की उस दिन तीनों ने. उस के बाद तो भविष्य की योजनाएं बनने लगी थीं. और फिर कई दिन कई घरों को देखने के बाद यह घर फाइनल किया था तीनों ने.  जिस ने भी सुना, हैरान रह गया था. मुंबई की इस सोसायटी में रहने वालों के लिए यह एकदम नया, अद्भुत विचार था. प्रबुद्धजन कह रहे थे, ‘किसी वृद्धाश्रम में जा कर रहने से अच्छा ही है यह आइडिया. समाज के लिए नया उदाहरण पेश कर रही हैं तीनों सखियां.’ उन की किटी पार्टी की सदस्याएं इस नए, उत्साहपूर्ण कदम में उन के साथ थीं. सब ने उन की पूरी सहायता की थी. समाज के लिए एक नई मिसाल कायम कर के तीनों ही अतीतवर्तमान में गोते लगाती हुई बेफिक्री की नींद में डूब चुकी थीं.

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अपनी नईनई गृहस्थी सजासंवार कर गंगा, दामिनी और कृष्णा सोफे पर ही पसर गईं. गंगा ने कहा, ‘‘चलो, भई, अब शुरू करते हैं नया जीवन, बैस्ट औफ लक.’’

‘‘हां, सेम टू यू,’’ दामिनी ने कहा तो कृष्णा कहने लगी, ‘‘शुरुआत कुछ शानदार होनी चाहिए, डिनर करने बाहर चलें? 2 दिन से अब फुरसत मिली है.’’

गंगा ने कहा, ‘‘हां, ठीक है, 7 बज रहे हैं. दामिनी, कल तुम्हें औफिस भी जाना है. चलो फिर, जल्दी डिनर कर के आते हैं. टाइम से आ कर आराम कर लेना. श्यामा भी कल से ही काम पर आएगी. बोलो, कहां चलना है?’’

ये भी पढ़ें-क्या खोया क्या पाया

दामिनी ने कहा, ‘‘शिवसागर चलते हैं.’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘नहीं, फ्यूजन ढाबा चलते हैं.’’

गंगा ने कहा, ‘‘नजदीक ही बार्बेक्यू नेशन चलते हैं.’’

दामिनी ने फटकारा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है, गंगा? रात में इतना हैवी डिनर करोगी वहां?’’

गंगा ने भी तेज आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारा दिमाग होगा खराब, एक रात हैवी खाने से क्या हो जाएगा? अरे, नए जीवन की पार्टी तो बनती है न.’’

कृष्णा ने टोका, ‘‘बस, फ्यूजन ढाबा चलेंगे, तुम दोनों तो किसी भी बात पर शुरू हो जाती हो.’’

तीनों की आवाजें धीरेधीरे तेज होने लगीं, अभी 2 दिन पहले ही इस ‘तुलसीधाम सोसायटी’ में तीनों ने फोर बैडरूम का फ्लैट किराए पर लिया था और अभी घर का सामान संभाल कर फ्री हुई थीं.

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तीनों की आवाजें तेज होते ही फ्लैट की डोरबैल बजी. तीनों चुप हो गईं. एकदूसरे को देखा. कृष्णा ने कहा, ‘‘यह कोई सीरियल नहीं है, डोरबैल बजते ही एकदूसरे की तरफ देखने के बजाय दरवाजा खोलो. अच्छा, मैं ही देखती हूं.’’

कृष्णा ने दरवाजा खोला. एक महिला खड़ी थी. गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं आप के बराबर वाले फ्लैट में रहती हूं. कुछ शोर सा हो रहा था. आप लोग नई आई हैं, कुछ प्रौब्लम है क्या? मैं कुछ हैल्प करूं?’’

इतने में दामिनी और गंगा भी दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गईं. गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. हमारे यहां तो अकसर यह शोर होता रहेगा. आप चिंता न करें. हम लोग मजे में हैं.’’

महिला चुपचाप चली गई. दरवाजा बंद कर तीनों खिलखिला कर हंस पड़ीं, दामिनी ने कहा, ‘‘यह बेचारी पड़ोसिन तो हमारे चक्कर में पड़ कर पागल हो जाएगी.’’ इस बात पर तीनों खूब हंसीं.

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दामिनी ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट तैयार हो जाओ. अब निकलना चाहिए.’’ तीनों अपनेअपने बैडरूम में तैयार होने लगीं. दामिनी ने तैयार हो कर फिर पूछा, ‘‘कहां कर रहे हैं डिनर?’’

कृष्णा ने अपनी शरारती मुसकराहट बिखेरते हुए कहा, ‘‘किसी नई जगह.’’

तीनों तैयार हो कर बाहर निकलीं तो पड़ोसिन महिला से फिर सामना हो गया. वह तीनों को स्टाइलिश कपड़ों में, बढि़या परफ्यूम की खुशबू बिखेरते, हंसीमजाक करते हुए जाते देख हैरान होती रही. क्या औरतें हैं, अभी तो लड़ रही थीं. तीनों ने एक शानदार होटल में डिनर किया. हमेशा की तरह आइसक्रीम खाई और कुछ जरूरी सामान खरीद कर अपने नए संसार में लौट आईं. घर आ कर कपड़े बदले, अपनेअपने बैडरूम में लगा टीवी औन किया. थोड़ी देर अपनी पसंद के प्रोग्राम देखते हुए सुस्ताईं, फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर घरगृहस्थी के कामों व सामान पर चर्चा कर के सोने चली गईं. तीनों बहुत थकी हुई थीं. नए घर में आज तीनों की पहली रात थी. कल तक तो दिनभर सामान लगा कर सोने के लिए रात को अपनेअपने पुराने घर में चली जाती थीं, अब तो यही घर उन का सबकुछ था.

पिछले हफ्ते ही तीनों ने इस मिडिलक्लास सोसायटी में तीसरे फ्लोर पर यह 4 बैडरूम  फ्लैट किराए पर लिया था. उन का हर परिचित, रिश्तेदार उन के इस फैसले पर हैरान रह गया था. तीनों अपनेअपने बैड पर सोने लगीं तो तीनों की आंखों के आगे अपना पिछला समय चलचित्र की भांति चलने लगा.

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पिछले हफ्ते तक जीवन एक पौश सोसायटी में बिताया था, पर बिल्डिंग अलगअलग थीं. तीनों सोसायटी की ही एक किटी पार्टी की सदस्य भी थीं जिस में 25 साल से ले कर उन की उम्र तक की 15 सदस्य थीं. किटी में ही तीनों का ध्यान एकदूसरे की तरफ गया था. तीनों के विचार, तौरतरीके, स्वभाव, व्यवहार एकदूसरे से खूब मेल खाते थे. तीनों हाउजी खूब उत्साह से खेलती थीं. हर गेम जीतने की कोशिश करती थीं. तीनों बहुत हंसमुख थीं. किटी की अन्य सदस्य जीवन के प्रति उन के सकारात्मक दृष्टिकोण की खुले दिल से तारीफ करती थीं. सब के दिल में उन के लिए प्यार और सम्मान था.

तीनों ही जीवन के 5वें दशक में थीं. फिर भी तीनों सैर पर भी एकसाथ जाने लगी थीं. तीनों का आपसी संबंध दिनपरदिन मजबूत होता गया था. अब तीनों अपनी व्यक्तिगत बातें, अपने सुखदुख एकदूसरे के साथ बांटना चाहती थीं. एक रविवार कृष्णा ने दोनों को फोन कर अपने घर लंच पर बुलाया था. गंगा और दामिनी 12 बजे कृष्णा के घर पहुंच गई थीं. कृष्णा ने बहुत दिल से दोनों की आवभगत की. गंगा और दामिनी ने कृष्णा के बनाए खाने की भरपूर प्रशंसा की. तीनों ने भरपेट खाया. उस के बाद कृष्णा कौफी बना कर ले आई. तीनों आराम से सोफे पर ही पसर गई थीं. कृष्णा ने कहना शुरू किया, ‘जब से हम तीनों मिले हैं, जी उठी हूं मैं, वरना यही सूना घर, वही बोरिंग रुटीन था. पर बाहर तुम लोगों से मिल कर जब घर वापस आती हूं तो घर काटने को दौड़ता है. अकेलापन सहा नहीं जाता.  घर में घड़ी की सूइयां भी ठहरी हुई सी लगती हैं.’

दामिनी ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘कितने साल हो गए आप के पति का स्वर्गवास हुए?’ 15 साल हो गए, 1 ही बेटी है जो आस्ट्रेलिया में पति और बच्चों के साथ रहती है. साल दो साल में कभी वह आ जाती है. कभी मैं चक्कर लगा आती हूं, बस.’

गंगा ने भी अपने बारे में बताया, ‘मेरा भी जीवन ऐसा ही है. आलोक से तलाक के बाद अकेली ही हूं.’

दामिनी ने पूछा, ‘तलाक क्यों हो गया था? कितने साल हो गए?’

‘आलोक से विवाह के 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. उस का अपनी किसी सहकर्मी से अफेयर था. मैं ने आपत्ति की तो वह मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो गया जिस के बदले में उस ने मुझे इतनी भारी रकम दी कि आज तक मुझे किसी चीज की कमी नहीं है. वह बड़ा बिजनैसमैन था. मेरे नाम मोटा बैंकबैलेंस, गहने, यह फ्लैट, सबकुछ है. एक बेवफा पति से चिपके रहने के बजाय मुझे यह जीवन ही ठीक लगा. मैं भी अब पूरी आजादी से जी रही हूं पर मेरा धीरेधीरे सभी रिश्तेदारों से भी मन खराब होता गया. न मैं उन के ताने सुनना चाहती थी न हमदर्दीभरी बातें इसलिए मैं ने सब को अपने से दूर कर दिया. अकेलापन अब बहुत खलता है पर क्या कर सकते हैं. तुम बताओ दामिनी, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’

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दामिनी ने एक ठंडी सांस ले कर बताना शुरू किया, ‘पिता नहीं रहे तो चाहेअनचाहे घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आती गई. मैं बड़ी थी. मैं ने खुद पढ़नेलिखने में बहुत मेहनत की, दोनों छोटे भाइयों को पढ़ायालिखाया, मां की देखभाल की. मां और भाइयों को संभालने में काफी उम्र निकल गई. वे भी मेरे विवाह के टौपिक से बचते रहे. एक बार उम्र निकल गई तो विवाह का खयाल मैं ने भी छोड़ दिया. अब मां तो रहीं नहीं, दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ विदेश में बस गए हैं. मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे पद पर हूं. रुपएपैसे की कमी तो नहीं है पर अकेलापन खलने लगा है. इसी साल मैं 50 की हो रही हूं पर जीवन को मैं रोतेरोते नहीं जीना चाहती. जीवनभर मेहनत की है. जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहती हूं.’

कृष्णा ने कहा, ‘और क्या, हम तीनों ही खुशमिजाज, आर्थिक रूप से मजबूत और नए विचारों वाली महिलाएं हैं. हम क्यों अपना जीवन रोपीट कर बिताएं. जो मिलना था, मिल गया, जो नहीं मिला, बस नहीं मिला. पढ़ा है या सुना है तुम लोगों ने, एक लेखक ने भी कहा है, ‘मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा’.’

दामिनी ने खुश हो कर पूछा, ‘अरे, तुम भी यह सब पढ़ती हो क्या?’

‘और क्या, किताबें तो मेरी अब तक सब से अच्छी साथी रही हैं. आओ, तुम्हें अपनी छोटी सी लाइब्रेरी दिखाऊं,’ कह कर कृष्णा उन्हें अपने बैडरूम में ले गई थी.

गंगा भी चहक उठी, ‘अरे वाह, मुझे भी शौक है. मैं भी पढ़ूंगी ये सब.’

उस के बाद तीनों थोड़ी देर बातें करती रही थीं, फिर अपनेअपने घर लौट आईं. तीनों का मन साथ समय बिता कर काफी हलका था. दामिनी की शनिवार, रविवार छुट्टी होती थी. वह अब ये तीनों दिन कृष्णा और गंगा के साथ ही बिताती थी. तीनों के घर काम करने वाली मेड भी एक ही थी अब, श्यामा. कालेज जाने वाली छात्राओं की तरह तीनों सखियां अब किसी एक के घर इकट्ठी होतीं, हंसीमजाक करतीं, कभी मूवी देखने जातीं, कभी शौपिंग जातीं. तीनों को अब किसी अन्य की जरूरत महसूस नहीं होती. ऐसे ही एकदूसरे के सुखदुख को बांटते तीनों की दोस्ती को 2 साल बीत रहे थे.

एक दिन दामिनी ने कृष्णा और गंगा को अपने घर बुलाया हुआ था. तीनों खापी कर उस के बैडरूम में ही लेट गईं. दामिनी को कुछ सोचते हुए देख कर कृष्णा ने पूछा, ‘क्या सोच रही हो, दामिनी?’

‘बहुत कुछ, कुछ नई सी बात.’

‘क्या, बताओ?’

‘समझ नहीं पा रही हूं कि क्या ठीक सोच रही हूं मैं.’

गंगा ने कहा, ‘जल्दी बताओ अब.’

‘अभी दिमाग में आया, हम तीनों ही अकेली हैं, तीनों एकदूसरे के साथ खुश हैं, हम तीनों हमेशा भी तो साथ रह सकती हैं और वैसे भी हमें अपना जीवन जीने के लिए किसी पुरुष के साथ की जरूरत तो है नहीं. हम चाहें तो हमेशा साथ रह कर जीवन की सांध्यवेला में एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं. हम तीनों का वन बैडरूम फ्लैट है. ऐसा कर सकते हैं कि आसपास किसी सोसायटी में बड़ा फ्लैट किराए पर ले कर साथ रह कर भी अपनी मरजी से जिएं. सब की प्राइवेसी भी रहे और साथ भी मिलता रहे. अपने फ्लैट किराए पर दे देंगे. सब खर्चे शेयर कर लेंगे. कम से कम घर लौटने पर किसी अपने का चेहरा तो दिखेगा. घर की खाली दीवारें अकेले होने का एहसास तो नहीं कराएंगी.’

गंगा और कृष्णा के मुंह से उत्साहपूर्वक निकला, ‘वाह, दामिनी, क्या बढि़या बात सोची है. यह बहुत अच्छा रहेगा.’

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गंगा ने कहा, ‘बहुत मजा आएगा. भविष्य की बेतुकी चिंता में वर्तमान की कुछ बेहतरीन चीजें, कुछ बेहतरीन पल तो हमें इस जीवन में दोबारा नहीं मिलेंगे. फिर इन को खो कर क्यों जिएं. जीवन की राह में बस यों चलते जाना कि सांस जब तक चले, जीना ही पड़ेगा, यह सोच कर क्यों जिएं.’

दामिनी ने कहा, ‘और आजकल तो मैं कई बार सोचती हूं कि मेरे लिए अंदर से दरवाजा खोलने वाला कोई है ही नहीं. हो सकता है कभी मेरे फ्लैट का ताला तोड़ मेरा गला हुआ शव बाहर निकाला जाए. और तब मेरे परिचित मेरी संपत्ति पर हक जताने चले आएंगे.’

कृष्णा कहने लगी, ‘तुम लोग सीरियस मत हो. हमारा अब दोस्ती का सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, द्वेष और ईर्ष्या से रहित है, स्वार्थ से परे है.’

तीनों की आंखें भर आई थीं. तीनों एकदूसरे के गले लग गई थीं. तीनों का दिल फूल सा हलका हो गया तो तीनों फिर मस्ती के मूड में आ गईं. अपने अंदर एक नया उत्साह, नई ऊर्जा महसूस की उस दिन तीनों ने. उस के बाद तो भविष्य की योजनाएं बनने लगी थीं. और फिर कई दिन कई घरों को देखने के बाद यह घर फाइनल किया था तीनों ने.  जिस ने भी सुना, हैरान रह गया था. मुंबई की इस सोसायटी में रहने वालों के लिए यह एकदम नया, अद्भुत विचार था. प्रबुद्धजन कह रहे थे, ‘किसी वृद्धाश्रम में जा कर रहने से अच्छा ही है यह आइडिया. समाज के लिए नया उदाहरण पेश कर रही हैं तीनों सखियां.’ उन की किटी पार्टी की सदस्याएं इस नए, उत्साहपूर्ण कदम में उन के साथ थीं. सब ने उन की पूरी सहायता की थी. समाज के लिए एक नई मिसाल कायम कर के तीनों ही अतीतवर्तमान में गोते लगाती हुई बेफिक्री की नींद में डूब चुकी थीं.

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April 28, 2020 at 10:00AM

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