Monday 27 April 2020

अपने अपने शिखर: भाग 3

जन्मदिन के अवसर पर साखी सीमित  लोगों को आमंत्रित करती थी, जिस में उस के विभाग में काम करने वाले डाक्टर्स व अन्य काम करने वाले लोग होते थे. उस बार उस ने मेट्रेन मारिया को आमंत्रित कर लिया था. मेट्रेन मारिया उम्रदराज और अनुभवी थीं. मिशन के दूसरे अस्पताल से तरक्की पा कर आई थीं. दीना उन का ही इकलौता बेटा था. कोई स्थायी नौकरी न मिलने के कारण दीना अपनी मां के साथ आया था और छोटेमोटे फंक्शन में कुक का काम कर लेता था. अच्छा कुक होने की तारीफ सुन कर खानपान का जिम्मा दीना को दिया गया था.

अतिथियों के जाने के बाद दीना और उस के सहायक बचा हुआ खाना व सामान समेट रहे थे. मेट्रेन मारिया को दीना के साथ वापस जाना था, इसलिए वे रुकी थीं. गार्डन के एक कोने में पड़ी कुरसियों पर मेट्रेन मारिया और साखी बैठी थीं. समय बिताने के लिए औपचारिक बातचीत में साखी ने ऐसे ही पूछ लिया, ‘‘मेट्रेन आप कहांकहां रहीं?’’

मेट्रेन मारिया ने कई जगहों के नाम गिनाए. उन में रावनवाड़ा का नाम भी आया. साखी चौंकना पड़ी. साखी का चौंकना मेट्रेन मारिया नहीं देख पाईं. उन्होंने अपना चश्मा उतार लिया था और उंगलियों से अपनी पलकें बंद कर के सहला रही थीं.

‘‘रावनवाड़ा, कब?’’ साखी के मुंह से निकल गया था.

‘‘आप रावनवाड़ा जानती हैं? वह तो कोई मशहूर जगह नहीं.’’

‘‘हां, नाम सुना है, क्योंकि मेरी एक क्लासमेट वहीं की थी,’’ साखी ने सामान्य होते हुए कहा. मेट्रेन ने जो कालाखंड बताया उस में साखी के जन्म का वर्ष भी था. साखी ने शरीर में सनसनी सी महसूस की और सचेत हो कर पूछा, ‘‘मेट्रेन, आप को तो बहुत तजरबा है. नर्स की नौकरी में आप ने बहुतों के दुखसुख और बहुत से जन्म और मृत्यु देखे होंगे. बहुतों के दुखसुख भी बांटे होंगे. कोई ऐसा वाकेआ जरूर होगा, जो आप के जेहन में बस गया होगा.’’

मेट्रेन मारिया कुछ देर को चुप रहीं, जैसे कुछ सोच रही हों. फिर दोनों हाथ उठा कर धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘डाक्टर, मेरे इन हाथों से ऐसा कुछ हुआ है, जिस से एक ऐसी मां की गोद भरी है, जो हमेशा खाली रहने वाली थी. लेकिन जो कुछ मैं ने किया, वह मेरे पेशे के खिलाफ था और मुझे वह बात किसी से कहनी नहीं चाहिए. कम से कम एक डाक्टर के सामने तो बिलकुल ही नहीं.’’

इतना कह कर वे चुप हो गईं. साखी उन के चेहरे के भाव अंधेरे में पढ़ नहीं पा रही थी.

‘‘डाक्टर, इंसान कर्तव्य के प्रति कितना भी कठोर हो, लेकिन कभीकभी वह अपने मन की करता है, जो उसे नहीं करना चाहिए. कभी दिल के किसी कोमल भाव के कारण और कभी स्वार्थवश. मैं ने वह काम भावुकता में किया था और अपने स्वार्थ के लिए भी. वह राज मैं ने दिल में छिपाए रखा. लेकिन जब तक बहुत मजबूरी न हो तो कोई भी इंसान किसी गहरे राज को ले कर मरना नहीं चाहता. किसी को तो बताने का मन करता ही है. अभी तक मैं ने उस बात का जिक्र किसी से नहीं किया था, लेकिन डाक्टर आप ने बात छेड़ी है तो आज मैं आप को बताना चाहती हूं. आप का नेचर मुझे बहुत अच्छा लगता है इसलिए. हालांकि उस बात से अब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. बहुत साल हो गए, पता नहीं कौन कहां होगा. फिर भी मैं आप से एक वादा चाहूंगी कि उस घटना को आप एक डाक्टर की हैसियत से नहीं, एक खुले दिल के इंसान के रूप में सुनें.’’

‘‘वादा,’’ साखी ने अपना दाहिना हाथ मेट्रेन मारिया की ओर बढ़ाया.

c उस की सरकारी ड्राइवर की पक्की नौकरी का चक्कर चल रहा था. उन्हीं दिनों एक सरकारी औफिसर की वाइफ डिलिवरी के लिए हमारे हौस्पिटल में भरती हुई थीं. अल्बर्ट ने बताया था कि नौकरी देना इन्हीं साहब के हाथ में है. मुझे भरोसा था कि अपनी सेवा से अगर मैं मैडम का दिल जीत सकूं तो अल्बर्ट को नौकरी दिलवा सकती हूं.’’

मेट्रेन मारिया ने गहरी सांस ली. फिर बोलीं, ‘‘उन मैडम का केस कौंप्लिकेटेड था. उन्होंने काफी कोशिशों के बाद एक फीमेल बेबी को जन्म दिया. उस समय एक और प्रैगनैंट लेडी भी डिलिवरी के लिए हौस्पिटल में भरती थीं. उन को जुड़वां लड़कियां पैदा हुईं. एनआईसीयू में तीनों बच्चियां मेरी निगरानी में थीं. मेरे देखते ही देखते सरकारी औफिसर की वाइफ की बेबी नहीं रही. मुझे उस समय पता नहीं क्या सूझा, मैं ने एक जुड़वां बेबी से उसे बदल दिया. शायद मेरे मन में कोई ऐसी भावना रही होगी कि आगे और कोई संतान को जन्म देना उन के लिए बहुत रिस्की है. मैं उन्हें दुखी नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि तब मैं उन से अल्बर्ट की नौकरी की सिफारिश न कर पाती. मेरी उस हरकत से उन की गोद सूनी नहीं रही और अल्बर्ट को सरकारी नौकरी मिल गई. बाद में अल्बर्ट ने मुझे धोखा दिया और शादी अपनी एक रिश्तेदार से कर ली. वह दिन मुझे अच्छी तरह याद है. वह भूलने वाला दिन नहीं है.’’

आगे मेट्रेन मारिया ने क्याक्या कहा, साखी ध्यान से नहीं सुन सकी. वह अपनेआप में खो चुकी थी.

बीते दिनों को याद कर साखी देर तक सो न सकी. रात के सन्नाटे में तेज रोशनी से नहाई पत्थर कोठी को उस ने कई बार देखा. पत्थर कोठी के पास या उस के अंदर जाने का उसे कभी अवसर नहीं मिला था. सोचती रही कि सांची का सच से सामना कैसे करा पाऊंगी? सोचतेसोचते उसे कब झपकी लगी, पता नहीं चला.

सुबह तैयार हो कर चर्च जाने के लिए निकलने ही वाली थी कि डोरबैल बजी. देखा तो दीना था. विनम्रता से बोला, ‘‘पत्थर कोठी वाली बीबीजी ने गाड़ी भेजी है. आप को बुलाने के लिए. प्लीज आप चलिए.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘साहब के बेटे की तबीयत खराब है.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘बुखार है.’’

‘‘तबीयत ज्यादा खराब तो नहीं?’’

‘‘नहीं, ज्यादा तो नहीं लगती. बीबीजी डाक्टर को बुलाने को कह रही थीं तो मैं आप को बुलाने चला आया.’’

यह सुन कर उसे अच्छा लगा. दीना से फोन मिला कर बात कराने को कहा.

साखी फोन पर बोली, ‘‘हैलो मैडम, बच्चे का बुखार कैसा है?’’

‘‘अब शायद नौर्मल है. सो रहा है.’’

‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं आ रही हूं… और मैडम, क्या मैं आप को हैप्पी बर्थडे बोल सकती हूं?’’

‘‘थैंकयू, आप कौन?’’

‘‘गेस कीजिए.’’ फिर कुछ देर चुप रह कर बोली, ‘‘नहीं पहचाना न? अरे, मैं तुम्हारे बेटे की मौसी बोल रही हूं… साखी… डाक्टर साखी कांत. कोई अपना बर्थडे भूल सकता है क्या?’’

साखी फोन रख कर दीना को डाक्टरी बैग उठाने का इशारा करते हुए तेजी से बाहर निकली. कौटेज के बाहर बत्ती वाली चमचमाती सफेद कार खड़ी थी. ड्राइवर ने आदर में झुक कर कार का दरवाजा खोल दिया. वह अभिवादन स्वीकार करते हुए कार में जा बैठी.

दोनों एकदूसरे को देख लिपट गईं. एक पुरानी सखी को पा कर अति उत्साहित थी तो दूसरी की भावुकता को मापा नहीं जा सकता था. वह अपनी बहन को पा कर आंसू नहीं रोक पा रही थी. ड्राइवर, दीना व अन्य नौकर उन का आगाध प्रेम देखते हुए चुपचाप खड़े खुश हो रहे थे.

साखी के अंदर की हलचल शांत नहीं हो पा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने सामान्य दिखने की कोशिश में सोते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया और कहा, ‘‘क्या नाम रखा है बच्चे का?’’

‘‘अशेष.’’

‘‘बहुत प्यार नाम है. जीजाजी कहां हैं?’’

‘‘आज सुबह ही अचानक उन्हें बाहर जाना पड़ा, कल वापस आएंगे.’’

‘‘ठीक है, आज तुम्हारी और मेरी जौइंट बर्थडे पार्टी है, मेरे कौटेज पर. तुम्हें रात वहीं रुकना होगा, मेरे साथ. बहुत सी बातें करनी हैं. माना अब तुम बड़े औफिसर की बीवी हो, लेकिन उस से पहले मेरी भी कुछ खास हो. फिर आज तो जीजाजी बाहर हैं. आओगी न? हां बोलो हां.’’

‘‘हां.’’

‘‘अशेष जाग गया था. साखी ने चूमचूम कर उसे बहुत लाड़प्यार किया. फिर बिस्तर पर लेटा कर चैकअप किया और बोली, ‘‘एकदम फर्स्ट क्लास है. एक दवा मैं अपने हाथ से पिलाए देती हूं, दूसरी दोपहर में पिला देना. चिंता की कोई बात नहीं. एकदम फिट रहेगा. शाम को अपनी मौसी और मदर की बर्थडे पार्टी ऐंजौय करेगा. शाम को जल्दी आ जाना और रात मेरे साथ ही रहने का मन बना कर आना. ओ.के.?’’

‘‘ओ.के.’’

साखी ने स्पैशल जौइंट केक बनवा कर केक पर डबल ‘एस’ लिखवाया और दीवार पर भी चमकीले कागज से डबल ‘एस’ चिपकाया. पार्टी में सौम्यता तो थी ही, सांची के आ जाने से भव्यता का भी समावेश हो गया. परिस्थिति ऐसी बनी कि मेट्रेन मारिया इस पार्टी में नहीं थीं. वे कहीं बाहर गई थीं. अगर होतीं तो जौइंट बर्थडे सैलिब्रेशन का कुछ न कुछ अनुमान जरूरी लेतीं.

मेहमानों के जाने के बाद वे दोनों बैड पर लेटी थीं. अशेष गहरी नींद में सो रहा था. सांची की बातें खत्म नहीं हो रही थीं, लेकिन साखी के मन में पिछले बर्थडे पर उजागर हुआ राज घुमड़ रहा था, जिसे वह आज सांची को बताना चाहती थी. वह राज हजम कर पाना उस के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था. वह इस के परिणाम की आशंका से दुविधाओं में घिरी थी. लेकिन इस से अच्छा अवसर और कब मिल सकता था. बैडरूम के एकांत और धीमी रोशनी में उसे अपनी बात कहने का संबल मिल रहा था. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सांची, क्या तुम्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि हम जुड़वां बहनें हैं.’’

‘‘लगता तो है. मैं इस के बारे में अपनी मम्मी से भी पूछ चुकी हूं.’’

‘‘मैं ने जब मैडिकल लाइन का वातावरण देखा तो मुझे भी लगने लगा है कि ऐसी संभावना है.’’

‘‘सचाई कैसे पता चल सकती है साखी?’’

‘‘सचाई पता चल चुकी है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘तुम यकीन करो, हम जुड़वां बहनें ही हैं. चाहो तो डीएनए टैस्ट करवा लो,’’ कहते हुए साखी ने बगल में लेटी सांची को पूरी तरह अपने से लिपटा लिया.

सांची ने आश्चर्य से कहा, ‘‘सच?’’

‘‘हां सच. एकदम सच. मेरी मां की जुड़वां लड़कियां हुई थीं और उसी समय तुम्हारी मम्मी को एक कमजोर लड़की पैदा हुई थी. नवजात शिशु केयर रूम में उस की डैथ हो गई. वहां ड्यूटी पर जो नर्स थी, उस ने स्वार्थवश भावुकता में मृत लड़की को एक जुड़वां लड़की से बदल दिया. वह तुम हो और एक मैं हूं.’’

‘‘कैसे पता चला?’’

‘‘उसी नर्स ने बताया जो उस समय रावनवाड़ा के अस्पताल में थी और अब रिटायर होने वाली है. तुम चाहो तो कभी उस से मिलवा सकती हूं, अगर फिर भी डाउट रहता है तो डीएनए टैस्ट से प्रूव हो जाएगा.’’

सांची असमंजस में पड़ गई.

साखी ने कहा, ‘‘लेकिन अब यह राज अगर हम दोनों के बीच ही रहे तो अच्छा है. नहीं तो हमारे परिवारों में बहुत उथलपुथल होगी जिस का प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ेगा. इस के दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे, सारे समीकरण बदल जाएंगे. तब पता नहीं क्या हो. इसलिए उलझनों से दूर रहना है तो फिलहाल यही उचित होगा कि सिर्फ हमतुम ही जानें कि हम जुड़वां बहनें हैं. सिर्फ हमतुम.’’

 

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जन्मदिन के अवसर पर साखी सीमित  लोगों को आमंत्रित करती थी, जिस में उस के विभाग में काम करने वाले डाक्टर्स व अन्य काम करने वाले लोग होते थे. उस बार उस ने मेट्रेन मारिया को आमंत्रित कर लिया था. मेट्रेन मारिया उम्रदराज और अनुभवी थीं. मिशन के दूसरे अस्पताल से तरक्की पा कर आई थीं. दीना उन का ही इकलौता बेटा था. कोई स्थायी नौकरी न मिलने के कारण दीना अपनी मां के साथ आया था और छोटेमोटे फंक्शन में कुक का काम कर लेता था. अच्छा कुक होने की तारीफ सुन कर खानपान का जिम्मा दीना को दिया गया था.

अतिथियों के जाने के बाद दीना और उस के सहायक बचा हुआ खाना व सामान समेट रहे थे. मेट्रेन मारिया को दीना के साथ वापस जाना था, इसलिए वे रुकी थीं. गार्डन के एक कोने में पड़ी कुरसियों पर मेट्रेन मारिया और साखी बैठी थीं. समय बिताने के लिए औपचारिक बातचीत में साखी ने ऐसे ही पूछ लिया, ‘‘मेट्रेन आप कहांकहां रहीं?’’

मेट्रेन मारिया ने कई जगहों के नाम गिनाए. उन में रावनवाड़ा का नाम भी आया. साखी चौंकना पड़ी. साखी का चौंकना मेट्रेन मारिया नहीं देख पाईं. उन्होंने अपना चश्मा उतार लिया था और उंगलियों से अपनी पलकें बंद कर के सहला रही थीं.

‘‘रावनवाड़ा, कब?’’ साखी के मुंह से निकल गया था.

‘‘आप रावनवाड़ा जानती हैं? वह तो कोई मशहूर जगह नहीं.’’

‘‘हां, नाम सुना है, क्योंकि मेरी एक क्लासमेट वहीं की थी,’’ साखी ने सामान्य होते हुए कहा. मेट्रेन ने जो कालाखंड बताया उस में साखी के जन्म का वर्ष भी था. साखी ने शरीर में सनसनी सी महसूस की और सचेत हो कर पूछा, ‘‘मेट्रेन, आप को तो बहुत तजरबा है. नर्स की नौकरी में आप ने बहुतों के दुखसुख और बहुत से जन्म और मृत्यु देखे होंगे. बहुतों के दुखसुख भी बांटे होंगे. कोई ऐसा वाकेआ जरूर होगा, जो आप के जेहन में बस गया होगा.’’

मेट्रेन मारिया कुछ देर को चुप रहीं, जैसे कुछ सोच रही हों. फिर दोनों हाथ उठा कर धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘डाक्टर, मेरे इन हाथों से ऐसा कुछ हुआ है, जिस से एक ऐसी मां की गोद भरी है, जो हमेशा खाली रहने वाली थी. लेकिन जो कुछ मैं ने किया, वह मेरे पेशे के खिलाफ था और मुझे वह बात किसी से कहनी नहीं चाहिए. कम से कम एक डाक्टर के सामने तो बिलकुल ही नहीं.’’

इतना कह कर वे चुप हो गईं. साखी उन के चेहरे के भाव अंधेरे में पढ़ नहीं पा रही थी.

‘‘डाक्टर, इंसान कर्तव्य के प्रति कितना भी कठोर हो, लेकिन कभीकभी वह अपने मन की करता है, जो उसे नहीं करना चाहिए. कभी दिल के किसी कोमल भाव के कारण और कभी स्वार्थवश. मैं ने वह काम भावुकता में किया था और अपने स्वार्थ के लिए भी. वह राज मैं ने दिल में छिपाए रखा. लेकिन जब तक बहुत मजबूरी न हो तो कोई भी इंसान किसी गहरे राज को ले कर मरना नहीं चाहता. किसी को तो बताने का मन करता ही है. अभी तक मैं ने उस बात का जिक्र किसी से नहीं किया था, लेकिन डाक्टर आप ने बात छेड़ी है तो आज मैं आप को बताना चाहती हूं. आप का नेचर मुझे बहुत अच्छा लगता है इसलिए. हालांकि उस बात से अब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. बहुत साल हो गए, पता नहीं कौन कहां होगा. फिर भी मैं आप से एक वादा चाहूंगी कि उस घटना को आप एक डाक्टर की हैसियत से नहीं, एक खुले दिल के इंसान के रूप में सुनें.’’

‘‘वादा,’’ साखी ने अपना दाहिना हाथ मेट्रेन मारिया की ओर बढ़ाया.

c उस की सरकारी ड्राइवर की पक्की नौकरी का चक्कर चल रहा था. उन्हीं दिनों एक सरकारी औफिसर की वाइफ डिलिवरी के लिए हमारे हौस्पिटल में भरती हुई थीं. अल्बर्ट ने बताया था कि नौकरी देना इन्हीं साहब के हाथ में है. मुझे भरोसा था कि अपनी सेवा से अगर मैं मैडम का दिल जीत सकूं तो अल्बर्ट को नौकरी दिलवा सकती हूं.’’

मेट्रेन मारिया ने गहरी सांस ली. फिर बोलीं, ‘‘उन मैडम का केस कौंप्लिकेटेड था. उन्होंने काफी कोशिशों के बाद एक फीमेल बेबी को जन्म दिया. उस समय एक और प्रैगनैंट लेडी भी डिलिवरी के लिए हौस्पिटल में भरती थीं. उन को जुड़वां लड़कियां पैदा हुईं. एनआईसीयू में तीनों बच्चियां मेरी निगरानी में थीं. मेरे देखते ही देखते सरकारी औफिसर की वाइफ की बेबी नहीं रही. मुझे उस समय पता नहीं क्या सूझा, मैं ने एक जुड़वां बेबी से उसे बदल दिया. शायद मेरे मन में कोई ऐसी भावना रही होगी कि आगे और कोई संतान को जन्म देना उन के लिए बहुत रिस्की है. मैं उन्हें दुखी नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि तब मैं उन से अल्बर्ट की नौकरी की सिफारिश न कर पाती. मेरी उस हरकत से उन की गोद सूनी नहीं रही और अल्बर्ट को सरकारी नौकरी मिल गई. बाद में अल्बर्ट ने मुझे धोखा दिया और शादी अपनी एक रिश्तेदार से कर ली. वह दिन मुझे अच्छी तरह याद है. वह भूलने वाला दिन नहीं है.’’

आगे मेट्रेन मारिया ने क्याक्या कहा, साखी ध्यान से नहीं सुन सकी. वह अपनेआप में खो चुकी थी.

बीते दिनों को याद कर साखी देर तक सो न सकी. रात के सन्नाटे में तेज रोशनी से नहाई पत्थर कोठी को उस ने कई बार देखा. पत्थर कोठी के पास या उस के अंदर जाने का उसे कभी अवसर नहीं मिला था. सोचती रही कि सांची का सच से सामना कैसे करा पाऊंगी? सोचतेसोचते उसे कब झपकी लगी, पता नहीं चला.

सुबह तैयार हो कर चर्च जाने के लिए निकलने ही वाली थी कि डोरबैल बजी. देखा तो दीना था. विनम्रता से बोला, ‘‘पत्थर कोठी वाली बीबीजी ने गाड़ी भेजी है. आप को बुलाने के लिए. प्लीज आप चलिए.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘साहब के बेटे की तबीयत खराब है.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘बुखार है.’’

‘‘तबीयत ज्यादा खराब तो नहीं?’’

‘‘नहीं, ज्यादा तो नहीं लगती. बीबीजी डाक्टर को बुलाने को कह रही थीं तो मैं आप को बुलाने चला आया.’’

यह सुन कर उसे अच्छा लगा. दीना से फोन मिला कर बात कराने को कहा.

साखी फोन पर बोली, ‘‘हैलो मैडम, बच्चे का बुखार कैसा है?’’

‘‘अब शायद नौर्मल है. सो रहा है.’’

‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं आ रही हूं… और मैडम, क्या मैं आप को हैप्पी बर्थडे बोल सकती हूं?’’

‘‘थैंकयू, आप कौन?’’

‘‘गेस कीजिए.’’ फिर कुछ देर चुप रह कर बोली, ‘‘नहीं पहचाना न? अरे, मैं तुम्हारे बेटे की मौसी बोल रही हूं… साखी… डाक्टर साखी कांत. कोई अपना बर्थडे भूल सकता है क्या?’’

साखी फोन रख कर दीना को डाक्टरी बैग उठाने का इशारा करते हुए तेजी से बाहर निकली. कौटेज के बाहर बत्ती वाली चमचमाती सफेद कार खड़ी थी. ड्राइवर ने आदर में झुक कर कार का दरवाजा खोल दिया. वह अभिवादन स्वीकार करते हुए कार में जा बैठी.

दोनों एकदूसरे को देख लिपट गईं. एक पुरानी सखी को पा कर अति उत्साहित थी तो दूसरी की भावुकता को मापा नहीं जा सकता था. वह अपनी बहन को पा कर आंसू नहीं रोक पा रही थी. ड्राइवर, दीना व अन्य नौकर उन का आगाध प्रेम देखते हुए चुपचाप खड़े खुश हो रहे थे.

साखी के अंदर की हलचल शांत नहीं हो पा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने सामान्य दिखने की कोशिश में सोते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया और कहा, ‘‘क्या नाम रखा है बच्चे का?’’

‘‘अशेष.’’

‘‘बहुत प्यार नाम है. जीजाजी कहां हैं?’’

‘‘आज सुबह ही अचानक उन्हें बाहर जाना पड़ा, कल वापस आएंगे.’’

‘‘ठीक है, आज तुम्हारी और मेरी जौइंट बर्थडे पार्टी है, मेरे कौटेज पर. तुम्हें रात वहीं रुकना होगा, मेरे साथ. बहुत सी बातें करनी हैं. माना अब तुम बड़े औफिसर की बीवी हो, लेकिन उस से पहले मेरी भी कुछ खास हो. फिर आज तो जीजाजी बाहर हैं. आओगी न? हां बोलो हां.’’

‘‘हां.’’

‘‘अशेष जाग गया था. साखी ने चूमचूम कर उसे बहुत लाड़प्यार किया. फिर बिस्तर पर लेटा कर चैकअप किया और बोली, ‘‘एकदम फर्स्ट क्लास है. एक दवा मैं अपने हाथ से पिलाए देती हूं, दूसरी दोपहर में पिला देना. चिंता की कोई बात नहीं. एकदम फिट रहेगा. शाम को अपनी मौसी और मदर की बर्थडे पार्टी ऐंजौय करेगा. शाम को जल्दी आ जाना और रात मेरे साथ ही रहने का मन बना कर आना. ओ.के.?’’

‘‘ओ.के.’’

साखी ने स्पैशल जौइंट केक बनवा कर केक पर डबल ‘एस’ लिखवाया और दीवार पर भी चमकीले कागज से डबल ‘एस’ चिपकाया. पार्टी में सौम्यता तो थी ही, सांची के आ जाने से भव्यता का भी समावेश हो गया. परिस्थिति ऐसी बनी कि मेट्रेन मारिया इस पार्टी में नहीं थीं. वे कहीं बाहर गई थीं. अगर होतीं तो जौइंट बर्थडे सैलिब्रेशन का कुछ न कुछ अनुमान जरूरी लेतीं.

मेहमानों के जाने के बाद वे दोनों बैड पर लेटी थीं. अशेष गहरी नींद में सो रहा था. सांची की बातें खत्म नहीं हो रही थीं, लेकिन साखी के मन में पिछले बर्थडे पर उजागर हुआ राज घुमड़ रहा था, जिसे वह आज सांची को बताना चाहती थी. वह राज हजम कर पाना उस के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था. वह इस के परिणाम की आशंका से दुविधाओं में घिरी थी. लेकिन इस से अच्छा अवसर और कब मिल सकता था. बैडरूम के एकांत और धीमी रोशनी में उसे अपनी बात कहने का संबल मिल रहा था. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सांची, क्या तुम्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि हम जुड़वां बहनें हैं.’’

‘‘लगता तो है. मैं इस के बारे में अपनी मम्मी से भी पूछ चुकी हूं.’’

‘‘मैं ने जब मैडिकल लाइन का वातावरण देखा तो मुझे भी लगने लगा है कि ऐसी संभावना है.’’

‘‘सचाई कैसे पता चल सकती है साखी?’’

‘‘सचाई पता चल चुकी है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘तुम यकीन करो, हम जुड़वां बहनें ही हैं. चाहो तो डीएनए टैस्ट करवा लो,’’ कहते हुए साखी ने बगल में लेटी सांची को पूरी तरह अपने से लिपटा लिया.

सांची ने आश्चर्य से कहा, ‘‘सच?’’

‘‘हां सच. एकदम सच. मेरी मां की जुड़वां लड़कियां हुई थीं और उसी समय तुम्हारी मम्मी को एक कमजोर लड़की पैदा हुई थी. नवजात शिशु केयर रूम में उस की डैथ हो गई. वहां ड्यूटी पर जो नर्स थी, उस ने स्वार्थवश भावुकता में मृत लड़की को एक जुड़वां लड़की से बदल दिया. वह तुम हो और एक मैं हूं.’’

‘‘कैसे पता चला?’’

‘‘उसी नर्स ने बताया जो उस समय रावनवाड़ा के अस्पताल में थी और अब रिटायर होने वाली है. तुम चाहो तो कभी उस से मिलवा सकती हूं, अगर फिर भी डाउट रहता है तो डीएनए टैस्ट से प्रूव हो जाएगा.’’

सांची असमंजस में पड़ गई.

साखी ने कहा, ‘‘लेकिन अब यह राज अगर हम दोनों के बीच ही रहे तो अच्छा है. नहीं तो हमारे परिवारों में बहुत उथलपुथल होगी जिस का प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ेगा. इस के दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे, सारे समीकरण बदल जाएंगे. तब पता नहीं क्या हो. इसलिए उलझनों से दूर रहना है तो फिलहाल यही उचित होगा कि सिर्फ हमतुम ही जानें कि हम जुड़वां बहनें हैं. सिर्फ हमतुम.’’

 

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April 28, 2020 at 10:00AM

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