Monday 27 April 2020

अपने अपने शिखर: भाग 2

‘‘जी आंटी.’’

‘‘अरे, तब तो तुम सच में जुड़वां की तरह ही हो. कैसा संयोग है. इतने सालों बाद तुम दोनों एकसाथ खड़ी हो.’’

साखी और सांची के चेहरों पर प्रसन्नता के भाव आ गए थे.

‘‘तब तो तुम ने अपने पापा की गाड़ी से कालेज आयाजाया करोगी?’’

‘‘नहीं आंटी, शायद बस से… लेकिन बस में तो बहुत समय बरबाद होता है. बहुत घूमघूम कर आती है.’’

‘‘तो औटो से आओजाओ न और लड़कियों के साथ. साखी के लिए तो मैं ने एक औटो वाले से बात कर ली है. कहो तो तुम्हारे लिए भी कर लूं, सिविल लाइंस तो रास्ते में ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है आंटी, लेकिन पापा से पूछना पड़ेगा. अच्छा नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, अपनी मम्मी से मेरा नमस्ते बोलना. मैं उन से मिलने आऊंगी. मेरी उन से बहुत पुरानी पहचान है, उतनी पुरानी जितनी तुम्हारी उम्र है,’’ उन के स्वर में उत्साह आ गया था.

फिर दोनों ने साथ आना, साथ जाना शुरू कर दिया और एक ही कोचिंग में पढ़ते हुए 11वीं, फिर 12वीं की परीक्षाएं लगभग बराबर अंक पा कर पास कीं. दोनों का लक्ष्य था, प्री मैडिकल टैस्ट पास कर के एमबीबीएस करना. दोनों ने गंभीरता से पढ़ाई शुरू कर दी.

परीक्षाएं पूरी होने पर दोनों संतुष्ट थीं, परिणाम के प्रति आशान्वित भी. परिणाम घोषित हुआ तो वे अलगअलग शहरों में थीं क्योंकि अपनेअपने पिता के स्थानांतरण के कारण उन के शहर बदल गए थे. लेकिन समाचारपत्र में छपा अपना अनुक्रमांक व उच्च वरीयता क्रम देख कर साखी की आंखों से खुशियां नहीं आंसू छलके. कारण, सांची के अनुक्रमांक का कहीं अतापता नहीं था. उसे यह बहुत अविश्वसनीय सा लगा. साखी अपने वर्ग की मैरिट लिस्ट में बहुत ऊपर थी. उसे प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मैडिकल कालेज में प्रवेश मिला.

एक दिन उस का सांची से सामना हो गया. वह अपने परिजनों के साथ किसी रिश्तेदार मरीज को देखने आई थी. उस से मिल कर साखी को अच्छा लगा. वह इतना हताशनिराश नहीं थी, जितना साखी ने सोच रखा था. उस ने बताया कि बी.एससी. के साथसाथ सीपीएमटी की तैयारी कर रही है. बड़ी आशा के साथ उस ने बताया कि वह इसी कालेज में आएगी, उस की जूनियर बन कर.

उस के बाद 2 वर्षों तक साखी को सीपीएमटी के परिणाम के समय इंतजार रहा कि शायद सांची के बारे में कोई अच्छी खबर मिले. लेकिन ऐसी कोई खबर न मिलने पर अपनी ओर से सीधे फोन कर के उस की असफलता का पता लगाना, उसे व्यावहारिक नहीं लगा. कुछ वर्ष बीतने के बाद उसे यहांवहां से पता चला था कि सांची एम.एससी. करने के बाद सिविल सर्विसेज के लिए कोशिश कर रही है. साखी फाइनल की लिखित परीक्षा से मुक्त हो कर वाइवा के तनावों से घिरी थी. पढ़ने का मन बना रही थी कि होस्टल के चौकीदार ने उस के नाम की पुकार दी. नीचे उतरी तो देखा कि सांची थी. उन्मुक्त भाव से दोनों एकदूसरे से लिपट गईं. उस का बैग लेते हुए साखी ने शिकायत की, ‘‘कोई खबर तो दी होती, इस तरह अचानक?’’

‘‘एक सैमिनार में आई थी. वहां इतना व्यस्त हो गई कि सूचना नहीं दे पाई. फिर सोचा कि चलो आज अपनी पुरानी सखी को सरप्राइज देते हैं. आज रात रुकूंगी तुम्हारे साथ अगर तुम्हें कोई असुविधा न हो तो.’’

‘‘अरे, बिलकुल नहीं,’’ कहते हुए साखी सांची का हाथ पकड़ सीढि़यों की ओर बढ़ने लगी. कमरे में पहुंच कर एक गिलास पानी देते हुए वह सांची से बोली, ‘‘तुम फ्रैश हो लो, मैं मैस से टिफिन मंगवाने का प्रबंध करती हूं. आज यहीं रूम में खाएंगे और खूब बातें करेंगे. मेरा तो पढ़ाई से जी ऊब गया है.’’

खाना खा कर वे खुली हवा में होस्टल की छत पर आ गईं. चांदनी रात थी. मुंडेर पर कोने में टिकते हुए सांची ने छेड़ा, ‘‘ऐ, शादी के बारे में क्या विचार है?’’

‘‘शादी? किस की?’’

‘‘तुम्हारी और किस की?’’

‘‘अरे मम्मीपापा तो पूरी कोशिश में लगे हैं 2-3 साल से. न्यूजपेपर में उन्होंने एड भी दिया, लेकिन अभी तक मेरे योग्य मिला ही नहीं,’’ हंसते हुए साखी ने कहा.

‘‘ये तो कोई नई बात नहीं. मांबाप तो भरपूर कोशिश करते ही हैं इस के लिए. मेरा मतलब है कि तुम ने क्या किया? कोई भाया यहां कालेज में या बाहर?’’

‘‘अरे, यहां कोई कमी है क्या? कितने पीछे लगे रहते हैं. कुछ बैच मेट्स हैं तो कुछ सीनियर्स. कुछ मरीज हैं तो कुछ मरीजों के तीमारदार. एकाध सर भी हैं. बहुत लोग हैं यहां मुहब्बत लुटाने वाले. कितने गिनाऊं तुझे कोई लिस्ट बनानी है क्या?’’

‘‘देख साखी, मैं सीरियसली बात कर रही हूं और तू बात को हवा में उड़ा रही है. सचसच बोल, कोई है?’’

‘‘है तो पर बताऊंगी नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि तुम अपने बारे में तो कुछ बताओगी नहीं.’’

‘‘कोई हो तो बताऊं.’’

‘‘तो समझ मेरा भी कोई नहीं.’’ फिर थोड़ी सी चुप्पी के बाद बोली, ‘‘अच्छा बताती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां सच. आनन वर्मा को जानती है?’’ साखी ने पूछा.

‘‘वही आनन, जो अपने साथ बायो की कोचिंग में था, जो तुम्हें चाहता था.’’

‘‘चाहता तो वह दोनों को था, लेकिन तुम से डरता था तुम्हारे पापा के पद के कारण. आजकल यहीं है. मैडिकल में हो नहीं पाया तो बी फार्मा कर रहा है. कभीकभी मिलने आता है. मैं भी एकाध बार गई हूं उस के घर. उस के मांबाप मुझे बहुत चाहते हैं. उस के लिए मेरे दिल में भी सौफ्ट कौर्नर है.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘फिर क्या? मेरी लव स्टोरी यहीं खत्म. यहां पढ़ाई से फुरसत नहीं. तुम क्या समझती हो, यहां बौलीवुड की तर्ज पर मैं प्रेम कहानी तैयार कर रही हूं?’’

‘‘देखो साखी, तुम मेरी बात को हमेशा हवा में उड़ा देती हो.’’

‘‘देखो भई, मैं ने अपनी शादी का काम अपने मम्मीपापा पर छोड़ दिया है. जिस दिन वे मुझ से सुपर लड़का ढूंढ़ कर मुझे बता देंगे, मैं जा कर चुपचाप मंडप में बैठ जाऊंगी. लेकिन मैं जानती हूं कि वे अपनी बिरादरी में सुपर लड़का नहीं ढूंढ़ पाएंगे और इंटरकास्ट मैरिज तो मेरे परिवार में किसी के गले ही नहीं उतर सकती. वैसे एक बात बताऊं सांची, अब मेरी विवाह में कोई खास रुचि बची नहीं है. क्या मिलता है विवाह से? थोड़ी सी खुशी और बदले में झंझटों का झमेला. अगर सब ठीक हुआ तो जिंदगी ठीकठाक कट जाती है वरना पूरी जिंदगी ऐडजस्टमैंट करतेकरते गुजार दो, घुटते हुए. नहीं करो तो बस एक ही गम रहता है कि शादी नहीं हुई. अब तुम बताओ अपनी प्रेम कहानी, लेकिन कमरे में चल कर. यहां खड़ेखड़े थकान होने लगी है.’’

वे कमरे में आ गईं और अधलेटी हो कर बतियाने लगीं.

‘‘साखी, तुम तो जानती हो कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता है. जिस चीज की जरूरत हो, हाजिर. अगर कभी बाजार से पेनपैंसिल, किताबकौपी खरीदने का मौका भी मिला तो एक चपरासी अंगरक्षक की तरह साथ में रहता है. अभी तक ऐसा कोई टकराया ही नहीं, जो मुझ से खुल कर कुछ कहे और मुझे भी अभी तक कुछकुछ हुआ नहीं.’’

‘‘तो फिर आज शादी की परिचर्चा क्यों की जा रही है?’’

‘‘इसलिए कि आजकल मेरी शादी के प्रस्ताव बहुत आ रहे हैं. एक से बढ़ कर एक. मेरी बिरादरी में अच्छे रिश्तों की कोई कमी नहीं. कोई बड़ा व्यवसायी है, तो कोई प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार का होनहार. कोई छोटा अधिकारी है, तो कोई बड़ा अधिकारी. मेरे पापा जब से दिल्ली ट्रांसफर हुए हैं, तब से चर्चे कुछ ज्यादा ही हैं. पापा प्रिफर करते हैं कि आईएएस मिले और शायद यह उन के लिए मुश्किल नहीं,’’ सांची ने बिना झिझक के बताया.

साखी चुपचाप उस का मुंह देखती रही.

कुछ महीने बाद साखी को एक भारीभरकम निमंत्रण पत्र मिला, जो सांची के पिता द्वारा भेजा गया था. उस की शादी प्रशांत राय, आईएएस से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में होने जा रही थी. लेकिन शादी की तारीख वाले दिन साखी का पोस्ट ग्रैजुएशन मैडिकल ऐंट्रैंस ऐग्जामिनेशन था, इसलिए चाह कर भी वह शादी में न जा सकी.

जन्मदिन जीवन का खास दिन लगता है. हर साल आता है और चला जाता है. उस के बाद जीवन फिर उसी ढर्रे पर चलने लगता है. लेकिन साखी का पिछला जन्मदिन ऐसा नहीं था. उस दिन वर्षों से पड़ी उस के मन की एक गांठ खुल गई थी. डाक्टर होने के नाते वह अकसर जिस बात को ले कर शंकित रहती थी, परेशान हो उठती थी, उस का समाधान हो गया था. उस के बाद वह सामान्य नहीं रह पाई. बहुत से विचार उस के मस्तिष्क में घुमड़ते रहते थे. पूरा साल ऐसे ही व्यतीत हुआ.

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‘‘जी आंटी.’’

‘‘अरे, तब तो तुम सच में जुड़वां की तरह ही हो. कैसा संयोग है. इतने सालों बाद तुम दोनों एकसाथ खड़ी हो.’’

साखी और सांची के चेहरों पर प्रसन्नता के भाव आ गए थे.

‘‘तब तो तुम ने अपने पापा की गाड़ी से कालेज आयाजाया करोगी?’’

‘‘नहीं आंटी, शायद बस से… लेकिन बस में तो बहुत समय बरबाद होता है. बहुत घूमघूम कर आती है.’’

‘‘तो औटो से आओजाओ न और लड़कियों के साथ. साखी के लिए तो मैं ने एक औटो वाले से बात कर ली है. कहो तो तुम्हारे लिए भी कर लूं, सिविल लाइंस तो रास्ते में ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है आंटी, लेकिन पापा से पूछना पड़ेगा. अच्छा नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, अपनी मम्मी से मेरा नमस्ते बोलना. मैं उन से मिलने आऊंगी. मेरी उन से बहुत पुरानी पहचान है, उतनी पुरानी जितनी तुम्हारी उम्र है,’’ उन के स्वर में उत्साह आ गया था.

फिर दोनों ने साथ आना, साथ जाना शुरू कर दिया और एक ही कोचिंग में पढ़ते हुए 11वीं, फिर 12वीं की परीक्षाएं लगभग बराबर अंक पा कर पास कीं. दोनों का लक्ष्य था, प्री मैडिकल टैस्ट पास कर के एमबीबीएस करना. दोनों ने गंभीरता से पढ़ाई शुरू कर दी.

परीक्षाएं पूरी होने पर दोनों संतुष्ट थीं, परिणाम के प्रति आशान्वित भी. परिणाम घोषित हुआ तो वे अलगअलग शहरों में थीं क्योंकि अपनेअपने पिता के स्थानांतरण के कारण उन के शहर बदल गए थे. लेकिन समाचारपत्र में छपा अपना अनुक्रमांक व उच्च वरीयता क्रम देख कर साखी की आंखों से खुशियां नहीं आंसू छलके. कारण, सांची के अनुक्रमांक का कहीं अतापता नहीं था. उसे यह बहुत अविश्वसनीय सा लगा. साखी अपने वर्ग की मैरिट लिस्ट में बहुत ऊपर थी. उसे प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मैडिकल कालेज में प्रवेश मिला.

एक दिन उस का सांची से सामना हो गया. वह अपने परिजनों के साथ किसी रिश्तेदार मरीज को देखने आई थी. उस से मिल कर साखी को अच्छा लगा. वह इतना हताशनिराश नहीं थी, जितना साखी ने सोच रखा था. उस ने बताया कि बी.एससी. के साथसाथ सीपीएमटी की तैयारी कर रही है. बड़ी आशा के साथ उस ने बताया कि वह इसी कालेज में आएगी, उस की जूनियर बन कर.

उस के बाद 2 वर्षों तक साखी को सीपीएमटी के परिणाम के समय इंतजार रहा कि शायद सांची के बारे में कोई अच्छी खबर मिले. लेकिन ऐसी कोई खबर न मिलने पर अपनी ओर से सीधे फोन कर के उस की असफलता का पता लगाना, उसे व्यावहारिक नहीं लगा. कुछ वर्ष बीतने के बाद उसे यहांवहां से पता चला था कि सांची एम.एससी. करने के बाद सिविल सर्विसेज के लिए कोशिश कर रही है. साखी फाइनल की लिखित परीक्षा से मुक्त हो कर वाइवा के तनावों से घिरी थी. पढ़ने का मन बना रही थी कि होस्टल के चौकीदार ने उस के नाम की पुकार दी. नीचे उतरी तो देखा कि सांची थी. उन्मुक्त भाव से दोनों एकदूसरे से लिपट गईं. उस का बैग लेते हुए साखी ने शिकायत की, ‘‘कोई खबर तो दी होती, इस तरह अचानक?’’

‘‘एक सैमिनार में आई थी. वहां इतना व्यस्त हो गई कि सूचना नहीं दे पाई. फिर सोचा कि चलो आज अपनी पुरानी सखी को सरप्राइज देते हैं. आज रात रुकूंगी तुम्हारे साथ अगर तुम्हें कोई असुविधा न हो तो.’’

‘‘अरे, बिलकुल नहीं,’’ कहते हुए साखी सांची का हाथ पकड़ सीढि़यों की ओर बढ़ने लगी. कमरे में पहुंच कर एक गिलास पानी देते हुए वह सांची से बोली, ‘‘तुम फ्रैश हो लो, मैं मैस से टिफिन मंगवाने का प्रबंध करती हूं. आज यहीं रूम में खाएंगे और खूब बातें करेंगे. मेरा तो पढ़ाई से जी ऊब गया है.’’

खाना खा कर वे खुली हवा में होस्टल की छत पर आ गईं. चांदनी रात थी. मुंडेर पर कोने में टिकते हुए सांची ने छेड़ा, ‘‘ऐ, शादी के बारे में क्या विचार है?’’

‘‘शादी? किस की?’’

‘‘तुम्हारी और किस की?’’

‘‘अरे मम्मीपापा तो पूरी कोशिश में लगे हैं 2-3 साल से. न्यूजपेपर में उन्होंने एड भी दिया, लेकिन अभी तक मेरे योग्य मिला ही नहीं,’’ हंसते हुए साखी ने कहा.

‘‘ये तो कोई नई बात नहीं. मांबाप तो भरपूर कोशिश करते ही हैं इस के लिए. मेरा मतलब है कि तुम ने क्या किया? कोई भाया यहां कालेज में या बाहर?’’

‘‘अरे, यहां कोई कमी है क्या? कितने पीछे लगे रहते हैं. कुछ बैच मेट्स हैं तो कुछ सीनियर्स. कुछ मरीज हैं तो कुछ मरीजों के तीमारदार. एकाध सर भी हैं. बहुत लोग हैं यहां मुहब्बत लुटाने वाले. कितने गिनाऊं तुझे कोई लिस्ट बनानी है क्या?’’

‘‘देख साखी, मैं सीरियसली बात कर रही हूं और तू बात को हवा में उड़ा रही है. सचसच बोल, कोई है?’’

‘‘है तो पर बताऊंगी नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि तुम अपने बारे में तो कुछ बताओगी नहीं.’’

‘‘कोई हो तो बताऊं.’’

‘‘तो समझ मेरा भी कोई नहीं.’’ फिर थोड़ी सी चुप्पी के बाद बोली, ‘‘अच्छा बताती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां सच. आनन वर्मा को जानती है?’’ साखी ने पूछा.

‘‘वही आनन, जो अपने साथ बायो की कोचिंग में था, जो तुम्हें चाहता था.’’

‘‘चाहता तो वह दोनों को था, लेकिन तुम से डरता था तुम्हारे पापा के पद के कारण. आजकल यहीं है. मैडिकल में हो नहीं पाया तो बी फार्मा कर रहा है. कभीकभी मिलने आता है. मैं भी एकाध बार गई हूं उस के घर. उस के मांबाप मुझे बहुत चाहते हैं. उस के लिए मेरे दिल में भी सौफ्ट कौर्नर है.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘फिर क्या? मेरी लव स्टोरी यहीं खत्म. यहां पढ़ाई से फुरसत नहीं. तुम क्या समझती हो, यहां बौलीवुड की तर्ज पर मैं प्रेम कहानी तैयार कर रही हूं?’’

‘‘देखो साखी, तुम मेरी बात को हमेशा हवा में उड़ा देती हो.’’

‘‘देखो भई, मैं ने अपनी शादी का काम अपने मम्मीपापा पर छोड़ दिया है. जिस दिन वे मुझ से सुपर लड़का ढूंढ़ कर मुझे बता देंगे, मैं जा कर चुपचाप मंडप में बैठ जाऊंगी. लेकिन मैं जानती हूं कि वे अपनी बिरादरी में सुपर लड़का नहीं ढूंढ़ पाएंगे और इंटरकास्ट मैरिज तो मेरे परिवार में किसी के गले ही नहीं उतर सकती. वैसे एक बात बताऊं सांची, अब मेरी विवाह में कोई खास रुचि बची नहीं है. क्या मिलता है विवाह से? थोड़ी सी खुशी और बदले में झंझटों का झमेला. अगर सब ठीक हुआ तो जिंदगी ठीकठाक कट जाती है वरना पूरी जिंदगी ऐडजस्टमैंट करतेकरते गुजार दो, घुटते हुए. नहीं करो तो बस एक ही गम रहता है कि शादी नहीं हुई. अब तुम बताओ अपनी प्रेम कहानी, लेकिन कमरे में चल कर. यहां खड़ेखड़े थकान होने लगी है.’’

वे कमरे में आ गईं और अधलेटी हो कर बतियाने लगीं.

‘‘साखी, तुम तो जानती हो कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता है. जिस चीज की जरूरत हो, हाजिर. अगर कभी बाजार से पेनपैंसिल, किताबकौपी खरीदने का मौका भी मिला तो एक चपरासी अंगरक्षक की तरह साथ में रहता है. अभी तक ऐसा कोई टकराया ही नहीं, जो मुझ से खुल कर कुछ कहे और मुझे भी अभी तक कुछकुछ हुआ नहीं.’’

‘‘तो फिर आज शादी की परिचर्चा क्यों की जा रही है?’’

‘‘इसलिए कि आजकल मेरी शादी के प्रस्ताव बहुत आ रहे हैं. एक से बढ़ कर एक. मेरी बिरादरी में अच्छे रिश्तों की कोई कमी नहीं. कोई बड़ा व्यवसायी है, तो कोई प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार का होनहार. कोई छोटा अधिकारी है, तो कोई बड़ा अधिकारी. मेरे पापा जब से दिल्ली ट्रांसफर हुए हैं, तब से चर्चे कुछ ज्यादा ही हैं. पापा प्रिफर करते हैं कि आईएएस मिले और शायद यह उन के लिए मुश्किल नहीं,’’ सांची ने बिना झिझक के बताया.

साखी चुपचाप उस का मुंह देखती रही.

कुछ महीने बाद साखी को एक भारीभरकम निमंत्रण पत्र मिला, जो सांची के पिता द्वारा भेजा गया था. उस की शादी प्रशांत राय, आईएएस से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में होने जा रही थी. लेकिन शादी की तारीख वाले दिन साखी का पोस्ट ग्रैजुएशन मैडिकल ऐंट्रैंस ऐग्जामिनेशन था, इसलिए चाह कर भी वह शादी में न जा सकी.

जन्मदिन जीवन का खास दिन लगता है. हर साल आता है और चला जाता है. उस के बाद जीवन फिर उसी ढर्रे पर चलने लगता है. लेकिन साखी का पिछला जन्मदिन ऐसा नहीं था. उस दिन वर्षों से पड़ी उस के मन की एक गांठ खुल गई थी. डाक्टर होने के नाते वह अकसर जिस बात को ले कर शंकित रहती थी, परेशान हो उठती थी, उस का समाधान हो गया था. उस के बाद वह सामान्य नहीं रह पाई. बहुत से विचार उस के मस्तिष्क में घुमड़ते रहते थे. पूरा साल ऐसे ही व्यतीत हुआ.

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April 28, 2020 at 10:00AM

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