Monday 27 April 2020

अपने अपने शिखर: भाग 1

पत्थरकोठी में नए साहब आ गए हैं, यह शहर के लिए नई खबर थी. डाक्टर साखी कांत को तो इस खबर का इंतजार था. यह जान कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ था कि प्रशांत कुमार राय, आईएएस इस संभाग के नए कमिश्नर हो कर आ रहे हैं. वह यहां के मिशनरी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञा है. एमडी की डिगरी पाते ही अनुभव प्राप्त करने की इच्छा से उस ने यहां जौइन किया था. उस के पहले और बाद में इस अस्पताल में कई डाक्टर आएगए. कुछ ने सरकारी नौकरी कर ली, तो कुछ ने धनी बनने की लालसा में अपने नर्सिंग होम खोल लिए.

यहां के वातावरण और अस्पताल प्रशासन के सेवा मिशन से उस का निश्छल मन कुछ ऐसे मिला कि वह यहां ठहर गई या कहा जाए कि यहां रम गई. यहां के शांत और नैसर्गिक हरेभरे वातावरण ने उसे बांध लिया. दिन, महीने, साल बीतते चले गए और समयबद्ध व्यस्त दिनचर्या में उस के 15 वर्ष कैसे बीते पता नहीं चला. अब वह यहां की अनुभवी और सम्मानित डाक्टर है.

चौड़ेऊंचे पठार पर बने अस्पताल के बाहर उसे एक सुसज्जित छोटा सा कौटेज मिला है, जिस के 3 तरफ हराभरा बगीचा और आसपास गुलमोहर और अमलतास के वृक्ष हैं. सामने दूसरे पठार पर चर्च की ऊंची इमारत और चर्च से लगी हुई तलहटी में पत्थरों की चारदीवारी से घिरा कब्रिस्तान है. उस के आगे पहाड़ीनुमा सब से ऊंचे पठार पर दूर हट कर पत्थर कोठी है, जिसे सरकारी भाषा में कमिश्नर हाउस कहा जाता है. चर्च के बगल से लगा हुआ कौन्वैंट स्कूल है. इस ऊंचेनीचे बसे शहर की उतारचढ़ाव व कम आवागमन वाली सड़क घुमावदार है, जो एक छोटे से पुल पर से हो कर गहरी पथरीली नदी को पार करती है. उस की कौटेज से यह नयनाभिराम दृश्य एक प्राकृतिक दृश्य सा दिखाई देता है.

पत्थर कोठी, कब्रिस्तान की चारदीवारी, गिरजाघर और अस्पताल की बिल्डिंग स्लेटी रंग के स्थानीय पत्थरों से बनी है. तलहटी में फैले कब्रिस्तान के सन्नाटे में साखी संगमरमरी समाधियों के शिलालेख पढ़तेपढ़ते इतना खो जाती है कि वहां पूरा दिन गुजार सकती है. वहां से वनस्पतियों और मौसमी फूलों से घिरी उस की कौटेज खूबसूरत पेंटिंग सी लगती है.

डिनर के बाद जब वह फूलों की खुशबू से महकते लौन में चहलकदमी कर रही होती है तो मेहंदी की बाड़ के पार कच्ची पगडंडी पर पत्थर कोठी से लौटता हुआ दीना अकसर दिखाई दे जाता है. दीना पत्थर कोठी में कुक है और कौटेज के पीछे बने स्टाफ क्वार्टर्स में रहता है. वह उस के पास आने पर उसे नमस्ते करता है, जिसे वह मौन रहते हुए सिर हिला कर स्वीकार करती है.

आज उसे दीना का बेसब्री से इंतजार था क्योंकि कब अपने जन्मदिन के फंक्शन पर अच्छा खाना बनाने के अनुरोध के बहाने वह उसे रोक कर उस से बात करना चाहती थी, जिस से पत्थर कोठी का हालचाल जान सके. दीना काम से छुट्टी पा कर थकावट भरी चाल में कोई अस्पष्ट सा गीत गुनगुनाते हुए लौट रहा था. उस के पास आने पर वह नमस्ते बोल कर ठिठक गया, जैसे कुछ कहना चाह रहा हो. उस के अकस्मात ठहराव को साखी ने अनदेखा नहीं किया. लैंप पोस्ट की रोशनी में ठहरे दीना से उस ने पूछा, ‘‘रुक क्यों गए? कुछ कहना चाहते हो?’’

‘‘जी डाक्टर साहब. आज हमारे नए साहब आ गए हैं. बीबीजी बहुत अच्छी हैं, आप जैसी. आप की बहन सी लगती हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या नाम है उन का?’’ वह प्रश्न तो कर गई, परंतु मुसकरा उठी कि इस को कमिश्नर की पत्नी के नाम से क्या लेनादेना. इस के लिए तो बीबीजी नाम ही पर्याप्त है. वह चुप रहा. फिर सिर झुकाए थोड़ी देर खड़ा रह कर चल पड़ा. फिर दीना जब तक ओझल नहीं हो गया वह उसे जाते हुए देखते रही. उस के होंठों पर हंसी आई और ठहर गई. दीना की बात सच है. कौन उन्हें बहनें नहीं समझता था.

दोनों ने तीखे नैननक्श पाए थे और कदकाठी और रूपरंग भी एक से. सगी बहनों सा जुड़ाव था दोनों के बीच. बौद्धिक स्तर भी लगभग समान. कोई किसी से उन्नीस नहीं. संयोग ही था कि दोनों ने कालेज में उस वर्ष जीव विज्ञान वर्ग में 11वीं कक्षा में प्रवेश लिया था और पहले दिन दोनों क्लास में साथसाथ बैठी थीं.

टीचर ने हाजिरी लेते समय पुकारा, ‘‘सांची राय.’’

‘‘यस मैडम,’’ उस की साथी सांची ने हाजिरी दी.

‘‘साखी कांत.’’

‘‘यस मैडम.’’

‘‘टीचर ने मौन साधा और चश्मे को नाक पर नीचे खिसका कर उन की तरफ गौर से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम दोनों जुड़वां हो क्या?’’

‘‘नहीं तो मैडम,’’ सांची ने उत्तर दिया.

‘‘तुम दोनों की डेट औफ बर्थ एक है और दोनों बहन लगती भी हो. नाम भी मिलतेजुलते पर सरनेम अलग,’’ टीचर ने बात वहीं खत्म कर हाजिरी लेना जारी रखा.

टीचर की बात पर दोनों एकदूसरे को आश्चर्य से देख गहराई से मुसकराई थीं, जैसे 2 भेदिए एकदूसरे का कोई भेद जान गए हों. पीरियड पूरा होने तक वे जान गईं कि उन का जन्मस्थान भी एक है. लेकिन वे यह नहीं जानती थीं कि उन का जन्म एक ही अस्पताल में हुआ है, लगभग एक ही समय पर.

उन के जन्म पर 2 परिवार खुश थे. बहुत खुश. दोनों के मातापिता का प्रथम परिचय नर्सिंग होम में ही हुआ. उन्होंने एकदूसरे को मिठाइयां खिलाते हुए बताया कि लड़कियां शुभ घड़ी में आई हैं. दोनों के पापा की पदोन्नति की सूचनाएं आज ही मिली हैं और स्थानांतरण के आदेश आते ही होंगे. खुशियों से सराबोर दोनों के द्वारा एकदूसरे को बधाइयां दी गईं और भविष्य में न भूलने का वादा किया गया. तभी दोनों के नामकरण एक ही अक्षर से किए गए सांची और साखी.

सांची राय के परिचय में उस के पिता आनंद भूषण राय के नाम का उल्लेख हो ही जाता. वे महत्त्वपूर्ण सरकारी अधिकारी जो थे. साखी कांत के नाम को पूर्णता उस के पिता के नाम अमर कांत से मिली. उसे अपना नाम अच्छा लगता था और पूर्ण भी, परंतु बहुतों को उस का नाम अधूरा लगता था क्योंकि उस से किसी जाति विशेष का आभास नहीं मिल पाता था. नाम सुन कर लोगों की जिज्ञासा अशांत सी रह जाती. उन का आशय समझ वह बहुत तेज मुसकराती, अपनी बड़ीबड़ी पलकें कई बार झपकाती और हंसी बिखेरते हुए खनकती आवाज में बात को हंसी में उड़ा देती, ‘‘जी, कांत कोई सरनेम नहीं है. मेरे पापा के नाम का हिस्सा है.’’ जिज्ञासु लगभग धराशायी हो जाता.

छुट्टी होने पर छात्राओं की भीड़ में वे साथसाथ कालेज के गेट से बाहर आईं. गेट के बाहर चौड़ी सड़क पर नेवीब्लू रंग की यूनीफौर्म में छात्राओं के झुंड थे और उन के स्वरों का कलरव. सड़क के उस पार अपनी कार के पास खड़ी साखी की मम्मी अपनी बेटी को भीड़ में पहचानने की कोशिश कर रही थीं. उन के आने का उद्देश्य अपनी बेटी को घर वापस ले जाने का तो था ही, उस से भी जरूरी था बेटी के रोज आनेजाने की व्यवस्था करना. इस के लिए वे एक औटो वाले से बात भी कर चुकी थीं. बड़े शहर की भीड़भाड़ को ले कर वे चिंतित थीं. जहां उन का निवास था, वहां से कालेज की दूरी काफी थी और उस रूट पर कालेज की बस सेवा नहीं थी.

छात्राओं की भीड़ में उन का ध्यान साखी ने भंग किया, ‘‘मम्मी, मैं इधर. इस से मिलिए, यह है मेरी नई फ्रैंड, सांची…सांची राय.’’

सांची ने प्रणाम के लिए हाथ जोडे़ ही थे कि साखी ने परिचय की दूसरी कड़ी पूर्ण कर दी, ‘‘सांची, ये हैं मेरी मम्मी.. बहुत प्यारी मम्मी.’’

मम्मी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कहां रहती हो बेटी?’’

‘‘जी, सिविल लाइंस में.’’

‘‘अरे मम्मी छोडि़ए,’’ साखी ने बात काटते और रहस्योद्घाटन सा करते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये मेरी जुड़वां है. इस की और मेरी डेट औफ बर्थ एक ही है और यह भी रावनवाड़ा में पैदा हुई. है न को इंसीडैंट?’’

‘‘अच्छा, वहीं की रहने वाली हो?’’

‘‘नहीं आंटी, उस समय मेरे पापा की पोस्टिंग वहां थी.’’

पास में खड़ी सरकारी गाड़ी का ड्राइवर उन के करीब आ खड़ा हुआ. सांची ने अपना बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटी, ये मेरे पापा के ड्राइवर हैं, मुझे लेने आए हैं.’’

मम्मी ने घूम कर ड्राइवर की ओर देखा और पास खड़ी सरकारी गाड़ी को देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम ए.बी. राय साहब की बेटी तो नहीं?’’

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पत्थरकोठी में नए साहब आ गए हैं, यह शहर के लिए नई खबर थी. डाक्टर साखी कांत को तो इस खबर का इंतजार था. यह जान कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ था कि प्रशांत कुमार राय, आईएएस इस संभाग के नए कमिश्नर हो कर आ रहे हैं. वह यहां के मिशनरी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञा है. एमडी की डिगरी पाते ही अनुभव प्राप्त करने की इच्छा से उस ने यहां जौइन किया था. उस के पहले और बाद में इस अस्पताल में कई डाक्टर आएगए. कुछ ने सरकारी नौकरी कर ली, तो कुछ ने धनी बनने की लालसा में अपने नर्सिंग होम खोल लिए.

यहां के वातावरण और अस्पताल प्रशासन के सेवा मिशन से उस का निश्छल मन कुछ ऐसे मिला कि वह यहां ठहर गई या कहा जाए कि यहां रम गई. यहां के शांत और नैसर्गिक हरेभरे वातावरण ने उसे बांध लिया. दिन, महीने, साल बीतते चले गए और समयबद्ध व्यस्त दिनचर्या में उस के 15 वर्ष कैसे बीते पता नहीं चला. अब वह यहां की अनुभवी और सम्मानित डाक्टर है.

चौड़ेऊंचे पठार पर बने अस्पताल के बाहर उसे एक सुसज्जित छोटा सा कौटेज मिला है, जिस के 3 तरफ हराभरा बगीचा और आसपास गुलमोहर और अमलतास के वृक्ष हैं. सामने दूसरे पठार पर चर्च की ऊंची इमारत और चर्च से लगी हुई तलहटी में पत्थरों की चारदीवारी से घिरा कब्रिस्तान है. उस के आगे पहाड़ीनुमा सब से ऊंचे पठार पर दूर हट कर पत्थर कोठी है, जिसे सरकारी भाषा में कमिश्नर हाउस कहा जाता है. चर्च के बगल से लगा हुआ कौन्वैंट स्कूल है. इस ऊंचेनीचे बसे शहर की उतारचढ़ाव व कम आवागमन वाली सड़क घुमावदार है, जो एक छोटे से पुल पर से हो कर गहरी पथरीली नदी को पार करती है. उस की कौटेज से यह नयनाभिराम दृश्य एक प्राकृतिक दृश्य सा दिखाई देता है.

पत्थर कोठी, कब्रिस्तान की चारदीवारी, गिरजाघर और अस्पताल की बिल्डिंग स्लेटी रंग के स्थानीय पत्थरों से बनी है. तलहटी में फैले कब्रिस्तान के सन्नाटे में साखी संगमरमरी समाधियों के शिलालेख पढ़तेपढ़ते इतना खो जाती है कि वहां पूरा दिन गुजार सकती है. वहां से वनस्पतियों और मौसमी फूलों से घिरी उस की कौटेज खूबसूरत पेंटिंग सी लगती है.

डिनर के बाद जब वह फूलों की खुशबू से महकते लौन में चहलकदमी कर रही होती है तो मेहंदी की बाड़ के पार कच्ची पगडंडी पर पत्थर कोठी से लौटता हुआ दीना अकसर दिखाई दे जाता है. दीना पत्थर कोठी में कुक है और कौटेज के पीछे बने स्टाफ क्वार्टर्स में रहता है. वह उस के पास आने पर उसे नमस्ते करता है, जिसे वह मौन रहते हुए सिर हिला कर स्वीकार करती है.

आज उसे दीना का बेसब्री से इंतजार था क्योंकि कब अपने जन्मदिन के फंक्शन पर अच्छा खाना बनाने के अनुरोध के बहाने वह उसे रोक कर उस से बात करना चाहती थी, जिस से पत्थर कोठी का हालचाल जान सके. दीना काम से छुट्टी पा कर थकावट भरी चाल में कोई अस्पष्ट सा गीत गुनगुनाते हुए लौट रहा था. उस के पास आने पर वह नमस्ते बोल कर ठिठक गया, जैसे कुछ कहना चाह रहा हो. उस के अकस्मात ठहराव को साखी ने अनदेखा नहीं किया. लैंप पोस्ट की रोशनी में ठहरे दीना से उस ने पूछा, ‘‘रुक क्यों गए? कुछ कहना चाहते हो?’’

‘‘जी डाक्टर साहब. आज हमारे नए साहब आ गए हैं. बीबीजी बहुत अच्छी हैं, आप जैसी. आप की बहन सी लगती हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या नाम है उन का?’’ वह प्रश्न तो कर गई, परंतु मुसकरा उठी कि इस को कमिश्नर की पत्नी के नाम से क्या लेनादेना. इस के लिए तो बीबीजी नाम ही पर्याप्त है. वह चुप रहा. फिर सिर झुकाए थोड़ी देर खड़ा रह कर चल पड़ा. फिर दीना जब तक ओझल नहीं हो गया वह उसे जाते हुए देखते रही. उस के होंठों पर हंसी आई और ठहर गई. दीना की बात सच है. कौन उन्हें बहनें नहीं समझता था.

दोनों ने तीखे नैननक्श पाए थे और कदकाठी और रूपरंग भी एक से. सगी बहनों सा जुड़ाव था दोनों के बीच. बौद्धिक स्तर भी लगभग समान. कोई किसी से उन्नीस नहीं. संयोग ही था कि दोनों ने कालेज में उस वर्ष जीव विज्ञान वर्ग में 11वीं कक्षा में प्रवेश लिया था और पहले दिन दोनों क्लास में साथसाथ बैठी थीं.

टीचर ने हाजिरी लेते समय पुकारा, ‘‘सांची राय.’’

‘‘यस मैडम,’’ उस की साथी सांची ने हाजिरी दी.

‘‘साखी कांत.’’

‘‘यस मैडम.’’

‘‘टीचर ने मौन साधा और चश्मे को नाक पर नीचे खिसका कर उन की तरफ गौर से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम दोनों जुड़वां हो क्या?’’

‘‘नहीं तो मैडम,’’ सांची ने उत्तर दिया.

‘‘तुम दोनों की डेट औफ बर्थ एक है और दोनों बहन लगती भी हो. नाम भी मिलतेजुलते पर सरनेम अलग,’’ टीचर ने बात वहीं खत्म कर हाजिरी लेना जारी रखा.

टीचर की बात पर दोनों एकदूसरे को आश्चर्य से देख गहराई से मुसकराई थीं, जैसे 2 भेदिए एकदूसरे का कोई भेद जान गए हों. पीरियड पूरा होने तक वे जान गईं कि उन का जन्मस्थान भी एक है. लेकिन वे यह नहीं जानती थीं कि उन का जन्म एक ही अस्पताल में हुआ है, लगभग एक ही समय पर.

उन के जन्म पर 2 परिवार खुश थे. बहुत खुश. दोनों के मातापिता का प्रथम परिचय नर्सिंग होम में ही हुआ. उन्होंने एकदूसरे को मिठाइयां खिलाते हुए बताया कि लड़कियां शुभ घड़ी में आई हैं. दोनों के पापा की पदोन्नति की सूचनाएं आज ही मिली हैं और स्थानांतरण के आदेश आते ही होंगे. खुशियों से सराबोर दोनों के द्वारा एकदूसरे को बधाइयां दी गईं और भविष्य में न भूलने का वादा किया गया. तभी दोनों के नामकरण एक ही अक्षर से किए गए सांची और साखी.

सांची राय के परिचय में उस के पिता आनंद भूषण राय के नाम का उल्लेख हो ही जाता. वे महत्त्वपूर्ण सरकारी अधिकारी जो थे. साखी कांत के नाम को पूर्णता उस के पिता के नाम अमर कांत से मिली. उसे अपना नाम अच्छा लगता था और पूर्ण भी, परंतु बहुतों को उस का नाम अधूरा लगता था क्योंकि उस से किसी जाति विशेष का आभास नहीं मिल पाता था. नाम सुन कर लोगों की जिज्ञासा अशांत सी रह जाती. उन का आशय समझ वह बहुत तेज मुसकराती, अपनी बड़ीबड़ी पलकें कई बार झपकाती और हंसी बिखेरते हुए खनकती आवाज में बात को हंसी में उड़ा देती, ‘‘जी, कांत कोई सरनेम नहीं है. मेरे पापा के नाम का हिस्सा है.’’ जिज्ञासु लगभग धराशायी हो जाता.

छुट्टी होने पर छात्राओं की भीड़ में वे साथसाथ कालेज के गेट से बाहर आईं. गेट के बाहर चौड़ी सड़क पर नेवीब्लू रंग की यूनीफौर्म में छात्राओं के झुंड थे और उन के स्वरों का कलरव. सड़क के उस पार अपनी कार के पास खड़ी साखी की मम्मी अपनी बेटी को भीड़ में पहचानने की कोशिश कर रही थीं. उन के आने का उद्देश्य अपनी बेटी को घर वापस ले जाने का तो था ही, उस से भी जरूरी था बेटी के रोज आनेजाने की व्यवस्था करना. इस के लिए वे एक औटो वाले से बात भी कर चुकी थीं. बड़े शहर की भीड़भाड़ को ले कर वे चिंतित थीं. जहां उन का निवास था, वहां से कालेज की दूरी काफी थी और उस रूट पर कालेज की बस सेवा नहीं थी.

छात्राओं की भीड़ में उन का ध्यान साखी ने भंग किया, ‘‘मम्मी, मैं इधर. इस से मिलिए, यह है मेरी नई फ्रैंड, सांची…सांची राय.’’

सांची ने प्रणाम के लिए हाथ जोडे़ ही थे कि साखी ने परिचय की दूसरी कड़ी पूर्ण कर दी, ‘‘सांची, ये हैं मेरी मम्मी.. बहुत प्यारी मम्मी.’’

मम्मी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कहां रहती हो बेटी?’’

‘‘जी, सिविल लाइंस में.’’

‘‘अरे मम्मी छोडि़ए,’’ साखी ने बात काटते और रहस्योद्घाटन सा करते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये मेरी जुड़वां है. इस की और मेरी डेट औफ बर्थ एक ही है और यह भी रावनवाड़ा में पैदा हुई. है न को इंसीडैंट?’’

‘‘अच्छा, वहीं की रहने वाली हो?’’

‘‘नहीं आंटी, उस समय मेरे पापा की पोस्टिंग वहां थी.’’

पास में खड़ी सरकारी गाड़ी का ड्राइवर उन के करीब आ खड़ा हुआ. सांची ने अपना बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटी, ये मेरे पापा के ड्राइवर हैं, मुझे लेने आए हैं.’’

मम्मी ने घूम कर ड्राइवर की ओर देखा और पास खड़ी सरकारी गाड़ी को देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम ए.बी. राय साहब की बेटी तो नहीं?’’

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April 28, 2020 at 10:00AM

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