Sunday 12 December 2021

उल्टा पासा : भाग 3

लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव

‘‘सेठजी, आप इस तरह से बात क्यों कर रहे हैं? आप के पैसे मैं खा तो नहीं रहा हूं.’’‘‘वह तो तुम खा भी नहीं सकते. अब तुम पैसे ले कर तुरंत आ जाओ.’’‘‘सौरी सेठजी, मैं नहीं आ सकता. आप आ कर ले जाएं.’’इस के पहले सेठजी कुछ और बोलें, उस ने फोन रख दिया. वैसे, वह बुरी तरह घबरा चुका था.

वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा सेठजी की राह देखता रहा, पर वे नहीं आए. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा कर पूछे कि वे आ रहे हैं कि नहीं पर उस ने सोचा कि रहने दो.सेठजी ने जिस तरह उसे गाली दी थी, वह उसे बुरी लगी थी.

सेठजी वैसे तो हर कर्मचारी से ऐसे ही बात करते हैं, पर उस के साथ उन्होंने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. उस का मन सेठजी के प्रति नफरत से भरता जा रहा था.सुमन अपने पति को इस तरह परेशान देख दुखी हो रही थी. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था. वह भी चिंतित थी.

‘‘आप इतने परेशान क्यों हैं?’’ सुमन ने आखिर पूछ ही लिया.मुनीमजी ने सुमन से एक ही सांस में सारी बात बता दी. उस ने सेठजी द्वारा दी गई गालियों के बारे में भी बताया.यह सुन कर सुमन का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया था.‘‘अब आप सेठजी को न तो पैसे वापस करोगे और न ही तिजोरी की चाबी. देखते हैं कि वे हमारा क्या बिगाड़ते हैं?’’

सुमन ने अब सेठजी से बदला लेने के बारे में सोच ही लिया था.‘‘सुनो, अब की बार सेठजी का फोन आए तो फोन मु?ो पकड़ा देना. मैं उन से बात करूंगी.’’मुनीमजी कुछ नहीं बोले, पर वे अपनी पत्नी की बातों से सहमत जरूर नजर आए.सेठजी का फोन देररात आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘हां, बोलिए सेठजी.’’‘‘मुनीमजी कहां हैं? मु?ो उन से बात करनी है.’’‘‘वे तो सो रहे हैं. आप मु?ा से बात करो,’’ सुमन की आवाज कड़क थी.‘‘वो मुनीमजी चाबी और पैसे ले कर नहीं आए अभी तक.’’

‘‘वे क्यों आएंगे, लौकडाउन लगा है. आप जानते नहीं हैं क्या?’’‘‘लौकडाउन लगा है तो क्या, वे मेरे पैसे नहीं देंगे?’’‘‘जब लौकडउान खुल जाएगा औरवे दुकान आएंगे तब सारा हिसाबहो जाएगा.’’‘‘ऐसा थोड़े ही न होता है. आप उन से बोलो कि वे तुरंत पैसे ले कर आएं.’’‘‘नहीं आएंगे. आप तो पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले थे, अब आप वही करा लो,’’ कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

मुनीमजी के हाथपैर कांप रहे थे.दूसरे दिन सुबहसुबह किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला, ‘‘कहिए?’’‘‘मैं मुनीमजी से मिलने आया हूं, वे मेरी दुकान पर काम करते हैं.’’‘‘इतनी सुबह किसी भले आदमी के घर आने में आप को जरा भी शर्म नहीं आई.’’‘‘लौकडाउन लगा है, पुलिस गश्त कर रही है तो मैं दोपहर में कैसे आता?’’

‘‘आप तो मुनीमजी को कह रहे थे कि दोपहर में ही आ जाओ, उन के लिए लौकडाउन नहीं है क्या?’’ सुमन की आवाज में अजीब सा रोबीलापन था.‘‘हां हां, ठीक है. मुनीमजी को बुलाओ और मेरे पैसे दे दो.’’‘‘अभी तो मुनीमजी सो रहे हैं. आप दोपहर में आना,’’ कह कर सुमन दरवाजा बंद करने को हुई.‘‘पैसा मेरा है और मु?ो चाहिए.’’

‘‘हां, दे देंगे. आप दोपहर में आएं.’’‘‘नहीं, मु?ो अभी चाहिए. मैं किस तरह बचतेबचाते यहां आया हूं. दोपहर में तो बिलकुल नहीं आ सकता. आप मुनीमजी को बुलाएं. मैं उन से ही बात करूंगा.’’‘‘आप से बोल दिया न कि मुनीमजी सो रहे हैं. आप चले जाएं, वरना मैं पुलिस को बुलाऊं क्या,’’ सुमन आज सेठजी से सारा बदला ले लेना चाहती थी.

सेठजी कुछ नहीं बोले. वे पुलिस का नाम सुनते ही चले गए.सेठजी का फोन दोपहर को आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘महाराजजी सो कर उठ गए होंगे. जरा मेरी बात करा दो.’’सेठजी का व्यंग्य सुमन सम?ा चुकी थी. वह बोली, ‘‘उठ तो गए हैं, पर आप मु?ा से बात करो. बताएं, फोन क्यों किया है?’’‘‘मु?ो अपने पैसे चाहिए.’’‘‘तो आ कर ले जाओ.’’‘‘अभी मैं नहीं आ सकता.’’

‘‘तो जब आप आ सकें, तब ले लेना.’’‘‘आप मुनीमजी को बोलो कि वह मेरा पैसा ले कर आएं.’’‘‘लौकडाउन लगा है. वे नहीं आ सकते.’’‘‘देखो, बहुत हो गया. अब यदि मेरा पैसा मु?ो नहीं मिला, तो मैं रिपोर्ट कर दूंगा कि मुनीमजी मेरा पैसा ले कर गायब हो गए हैं,’’ सेठजी ने धमकाया.‘‘ठीक है, अब आप रिपोर्ट कर ही दें. पैसा पुलिस को ही दे दिया जाएगा.’’सेठजी को लग रहा था कि पुलिस का नाम सुनते ही मुनीमजी भागते हुए आएंगे पर सुमन ने जिस तरह उन से बात की थी, उस में कोई भय था ही नहीं.

‘‘तो ठीक है, मैं तो इसलिए बोल रहा था कि मुनीमजी मेरे पुराने कर्मचारी हैं. फालतू के ?ां?ाट में न पड़ें, इस कारण से उसे सम?ा रहा हूं. वरना सम?ा लेना क्या गत होगी?’’‘‘मुनीमजी पुराने कर्मचारी हैं तो उन पर इतना भरोसा तो रखते कि वे आप के पैसे गायब नहीं करेंगे. आप तो उन की रिपोर्ट करने वाले हैं तो आप रिपोर्ट कर ही दें.’’ऐसा कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

उसी दिन शाम को सेठजी ने मुनीमजी के घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला. उसे भरोसा था कि सेठजी आएंगे जरूर, वरना इस लौकडाउन में कौन आएगा.सेठजी के कपड़े फटे हुए थे. वे हांफ रहे थे, ‘‘मैं अपने पैसे लेने आया हूं.’’‘‘मुनीमजी तो हैं नहीं. वे अस्पताल गए हैं. उन को सर्दीजुकाम हो रहा है,’’ सुमन ने सफाई से ?ाठ बोला था.

‘‘तो आप ही पैसे दे दो.’’‘‘मु?ो नहीं पता कि पैसे कहां रखे हैं. उन को ही आ जाने दो. वे ही देंगे.’’‘‘तो मैं क्या करूं?’’‘‘घर जाओ, जब मुनीमजी आ जाएं तब आना.’’‘‘बड़ी मुश्किल से तो अभी आया हूं, पुलिस ने बड़ी जोर से मारा है. मैं फिर कैसे आऊंगा?’’ सेठजी कराह रहे थे.‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती. आप जाएं और थाने में रिपोर्ट लिखा दें. आप यही तो करने वाले थे न.’’

सेठजी कुछ नहीं बोले. वे याचनाभरी निगाहों से सुमन को देख रहे थे. अंदर बैठे मुनीमजी सारी बातें सुन रहे थे. मुनीमजी का मन हो रहा था कि वे बाहर निकल आएं और सेठजी को बैठा कर उन का सारा पैसा और तिजोरी की चाबी सौंप दें, पर वे सुमन के भय के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे थे.

वैसे भी सेठजी ने जिस ढंग से मुनीमजी से बात की थी और उन्हें धमकाया था, उसे वह सबकुछ अच्छा नहीं लगा था. उस के मन में सेठजी के प्रति सम्मान के कोई भाव नहीं रह गए थे. सेठजी अभी भी सुमन के सामने हाथ जोड़े खड़े थे और पैसा दे देने का निवेदन कर रहे थे पर सुमन कठोर बन चुकी थी. उस ने एक बार और उन से जाने को बोला और दरवाजे बंद कर लिए.

सेठजी कुछ देर तक तो असमंजस की स्थिति में खड़े रहे, फिर वापस हो गए.

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लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव

‘‘सेठजी, आप इस तरह से बात क्यों कर रहे हैं? आप के पैसे मैं खा तो नहीं रहा हूं.’’‘‘वह तो तुम खा भी नहीं सकते. अब तुम पैसे ले कर तुरंत आ जाओ.’’‘‘सौरी सेठजी, मैं नहीं आ सकता. आप आ कर ले जाएं.’’इस के पहले सेठजी कुछ और बोलें, उस ने फोन रख दिया. वैसे, वह बुरी तरह घबरा चुका था.

वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा सेठजी की राह देखता रहा, पर वे नहीं आए. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा कर पूछे कि वे आ रहे हैं कि नहीं पर उस ने सोचा कि रहने दो.सेठजी ने जिस तरह उसे गाली दी थी, वह उसे बुरी लगी थी.

सेठजी वैसे तो हर कर्मचारी से ऐसे ही बात करते हैं, पर उस के साथ उन्होंने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. उस का मन सेठजी के प्रति नफरत से भरता जा रहा था.सुमन अपने पति को इस तरह परेशान देख दुखी हो रही थी. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था. वह भी चिंतित थी.

‘‘आप इतने परेशान क्यों हैं?’’ सुमन ने आखिर पूछ ही लिया.मुनीमजी ने सुमन से एक ही सांस में सारी बात बता दी. उस ने सेठजी द्वारा दी गई गालियों के बारे में भी बताया.यह सुन कर सुमन का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया था.‘‘अब आप सेठजी को न तो पैसे वापस करोगे और न ही तिजोरी की चाबी. देखते हैं कि वे हमारा क्या बिगाड़ते हैं?’’

सुमन ने अब सेठजी से बदला लेने के बारे में सोच ही लिया था.‘‘सुनो, अब की बार सेठजी का फोन आए तो फोन मु?ो पकड़ा देना. मैं उन से बात करूंगी.’’मुनीमजी कुछ नहीं बोले, पर वे अपनी पत्नी की बातों से सहमत जरूर नजर आए.सेठजी का फोन देररात आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘हां, बोलिए सेठजी.’’‘‘मुनीमजी कहां हैं? मु?ो उन से बात करनी है.’’‘‘वे तो सो रहे हैं. आप मु?ा से बात करो,’’ सुमन की आवाज कड़क थी.‘‘वो मुनीमजी चाबी और पैसे ले कर नहीं आए अभी तक.’’

‘‘वे क्यों आएंगे, लौकडाउन लगा है. आप जानते नहीं हैं क्या?’’‘‘लौकडाउन लगा है तो क्या, वे मेरे पैसे नहीं देंगे?’’‘‘जब लौकडउान खुल जाएगा औरवे दुकान आएंगे तब सारा हिसाबहो जाएगा.’’‘‘ऐसा थोड़े ही न होता है. आप उन से बोलो कि वे तुरंत पैसे ले कर आएं.’’‘‘नहीं आएंगे. आप तो पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले थे, अब आप वही करा लो,’’ कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

मुनीमजी के हाथपैर कांप रहे थे.दूसरे दिन सुबहसुबह किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला, ‘‘कहिए?’’‘‘मैं मुनीमजी से मिलने आया हूं, वे मेरी दुकान पर काम करते हैं.’’‘‘इतनी सुबह किसी भले आदमी के घर आने में आप को जरा भी शर्म नहीं आई.’’‘‘लौकडाउन लगा है, पुलिस गश्त कर रही है तो मैं दोपहर में कैसे आता?’’

‘‘आप तो मुनीमजी को कह रहे थे कि दोपहर में ही आ जाओ, उन के लिए लौकडाउन नहीं है क्या?’’ सुमन की आवाज में अजीब सा रोबीलापन था.‘‘हां हां, ठीक है. मुनीमजी को बुलाओ और मेरे पैसे दे दो.’’‘‘अभी तो मुनीमजी सो रहे हैं. आप दोपहर में आना,’’ कह कर सुमन दरवाजा बंद करने को हुई.‘‘पैसा मेरा है और मु?ो चाहिए.’’

‘‘हां, दे देंगे. आप दोपहर में आएं.’’‘‘नहीं, मु?ो अभी चाहिए. मैं किस तरह बचतेबचाते यहां आया हूं. दोपहर में तो बिलकुल नहीं आ सकता. आप मुनीमजी को बुलाएं. मैं उन से ही बात करूंगा.’’‘‘आप से बोल दिया न कि मुनीमजी सो रहे हैं. आप चले जाएं, वरना मैं पुलिस को बुलाऊं क्या,’’ सुमन आज सेठजी से सारा बदला ले लेना चाहती थी.

सेठजी कुछ नहीं बोले. वे पुलिस का नाम सुनते ही चले गए.सेठजी का फोन दोपहर को आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘महाराजजी सो कर उठ गए होंगे. जरा मेरी बात करा दो.’’सेठजी का व्यंग्य सुमन सम?ा चुकी थी. वह बोली, ‘‘उठ तो गए हैं, पर आप मु?ा से बात करो. बताएं, फोन क्यों किया है?’’‘‘मु?ो अपने पैसे चाहिए.’’‘‘तो आ कर ले जाओ.’’‘‘अभी मैं नहीं आ सकता.’’

‘‘तो जब आप आ सकें, तब ले लेना.’’‘‘आप मुनीमजी को बोलो कि वह मेरा पैसा ले कर आएं.’’‘‘लौकडाउन लगा है. वे नहीं आ सकते.’’‘‘देखो, बहुत हो गया. अब यदि मेरा पैसा मु?ो नहीं मिला, तो मैं रिपोर्ट कर दूंगा कि मुनीमजी मेरा पैसा ले कर गायब हो गए हैं,’’ सेठजी ने धमकाया.‘‘ठीक है, अब आप रिपोर्ट कर ही दें. पैसा पुलिस को ही दे दिया जाएगा.’’सेठजी को लग रहा था कि पुलिस का नाम सुनते ही मुनीमजी भागते हुए आएंगे पर सुमन ने जिस तरह उन से बात की थी, उस में कोई भय था ही नहीं.

‘‘तो ठीक है, मैं तो इसलिए बोल रहा था कि मुनीमजी मेरे पुराने कर्मचारी हैं. फालतू के ?ां?ाट में न पड़ें, इस कारण से उसे सम?ा रहा हूं. वरना सम?ा लेना क्या गत होगी?’’‘‘मुनीमजी पुराने कर्मचारी हैं तो उन पर इतना भरोसा तो रखते कि वे आप के पैसे गायब नहीं करेंगे. आप तो उन की रिपोर्ट करने वाले हैं तो आप रिपोर्ट कर ही दें.’’ऐसा कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

उसी दिन शाम को सेठजी ने मुनीमजी के घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला. उसे भरोसा था कि सेठजी आएंगे जरूर, वरना इस लौकडाउन में कौन आएगा.सेठजी के कपड़े फटे हुए थे. वे हांफ रहे थे, ‘‘मैं अपने पैसे लेने आया हूं.’’‘‘मुनीमजी तो हैं नहीं. वे अस्पताल गए हैं. उन को सर्दीजुकाम हो रहा है,’’ सुमन ने सफाई से ?ाठ बोला था.

‘‘तो आप ही पैसे दे दो.’’‘‘मु?ो नहीं पता कि पैसे कहां रखे हैं. उन को ही आ जाने दो. वे ही देंगे.’’‘‘तो मैं क्या करूं?’’‘‘घर जाओ, जब मुनीमजी आ जाएं तब आना.’’‘‘बड़ी मुश्किल से तो अभी आया हूं, पुलिस ने बड़ी जोर से मारा है. मैं फिर कैसे आऊंगा?’’ सेठजी कराह रहे थे.‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती. आप जाएं और थाने में रिपोर्ट लिखा दें. आप यही तो करने वाले थे न.’’

सेठजी कुछ नहीं बोले. वे याचनाभरी निगाहों से सुमन को देख रहे थे. अंदर बैठे मुनीमजी सारी बातें सुन रहे थे. मुनीमजी का मन हो रहा था कि वे बाहर निकल आएं और सेठजी को बैठा कर उन का सारा पैसा और तिजोरी की चाबी सौंप दें, पर वे सुमन के भय के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे थे.

वैसे भी सेठजी ने जिस ढंग से मुनीमजी से बात की थी और उन्हें धमकाया था, उसे वह सबकुछ अच्छा नहीं लगा था. उस के मन में सेठजी के प्रति सम्मान के कोई भाव नहीं रह गए थे. सेठजी अभी भी सुमन के सामने हाथ जोड़े खड़े थे और पैसा दे देने का निवेदन कर रहे थे पर सुमन कठोर बन चुकी थी. उस ने एक बार और उन से जाने को बोला और दरवाजे बंद कर लिए.

सेठजी कुछ देर तक तो असमंजस की स्थिति में खड़े रहे, फिर वापस हो गए.

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December 10, 2021 at 09:00AM

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