Friday 10 December 2021

भूल का एहसास : भाग 1

लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

‘नीरू’ देवेश के छिछोरेपन के कारण उस की पत्नी उमा परेशान हो गई थी. महल्ले में सब के सामने उसे जिल्लत उठानी पड़ती. अपनी उम्र और जिम्मेदारियां जानतेबू?ाते भी मानो देवेश की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे…उमा अपने पति देवेश के छिछोरेपन से परेशान थी. ‘छि:, यह भी कोई उम्र है इन की. सारे बाल सफेद होते जा रहे हैं और 5-6 साल में सेवामुक्त भी हो जाएंगे, फिर भी लड़कियों, औरतों को देख कर छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते हैं,’ वह बड़बड़ाए जा रही थी, ‘2 बेटों का ब्याह कर दिया. वे अपनीअपनी नौकरी पर रहते हैं. छुट्टियों में कभीकभी आते हैं, साथ में बहुएं और बच्चे भी होते हैं. उन के सामने ऐसावैसा कुछ भी कर जाते हैं, इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती.’

पड़ोसी रामलाल की 27-28 साल की कुंआरी बहन विमला से देवेश की आजकल खूब पट रही है. उन से कुछ कहने पर वे कहते, ‘अपनी तो वह बहनबेटी जैसी है. विजय की जगह कहीं अपनी लड़की होती तो ठीक इसी उम्र की होती. अच्छीभली है पर रामलाल जाने क्यों अभी तक उस की शादी नहीं कर पाया. जब देखो तब, मनहूस कह कर कोसता ही रहता है. भला उस का क्या कुसूर? बेचारी, बिन मांबाप की लड़की, आंसू ही बहाती रहती है. मु?ो अच्छा नहीं लगता. बेहद तरस आता है.’ अकसर ऐसी ही दलीलें उन से सुनने को मिलतीं.

देवेश जबतब उस की सेवा में लगे रहते. घर में खाने की कोई भी चीज आती, उस में से जरूर कुछ दौड़ कर विमला को दे आते और नहीं तो अलग से ही खरीद कर दे आते. यह देख कर उमा का दिल जल जाता. छुट्टियों में चुन्नू, मोना और बंटी के साथ देवेश का ज्यादा समय बीत जाता तो विमला शिकायत करती, रूठ जाती, ‘अब अंकल हमें पहले जैसा प्यार नहीं करते.’

उस समय देवेश हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लेते, उस की चुन्नी और बाल संवारते हुए उसे दुलारते, मनाते. बच्चे के सामने भी रूठनेमनाने का यह सिलसिला चलता ही रहता. यह देख कर उमा का खून खौल जाता.अजय, विजय तो नौकरी के बहाने चले गए हैं, उमा का मन करता कि वह भी कहीं दूर भाग जाए या जहर खा ले, पर उस के तीसरे बेटे जय का क्या होगा जो अभी पढ़ रहा है और उस के साथ ही रहता है. ‘मेरे जाने से तो इन्हें और छूट मिल जाएगी. जय के पीएमटी का क्या होगा, कैसे पढ़ पाएगा?’ वह सोचती रहती.

‘हाय, क्या करूं मैं. कुछ तो सद्बुद्धि आए इन में. मैं तो सम?ासम?ा कर थक गई,’ बड़बड़ाते हुए उमा की आंखों में आंसू छलछला आए. वह अपना माथा थामे बैठ गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.‘कौन हो सकता है? जय को कोचिंग के लिए निकले 10 मिनट हुए हैं, कहीं वह फिर किसी से ?ागड़ा कर के तो नहीं आ गया… मु?ा से भी फिर लड़ेगा,’ सोच कर आशंका से उस का दिल धड़कने लगा.

उस ने दरवाजा खोला तो जय ही था, वह बरस पड़ा, ‘‘घर से निकलना दूभर हो गया है, अम्मा. आप पापा को सम?ाती क्यों नहीं. आज उन्होंने फिर रश्मि के साथ छेड़छाड़ की. बब्बन ने (रश्मि का भाई) फिर पापा के लिए गंदीगंदी बातें बोलीं. उस ने पापा को पीटने की धमकी दी है. मैं ने भी कहा कि जरा हाथ लगा के दिखाना तो उस ने मेरे माथे पर पत्थर दे मारा,’’ तेज सांसों से बोलते हुए जय ने अपने माथे पर दबा रखा हाथ हटा दिया तो खून रिसने लगा था.

‘‘जब तेरे पापा ऐसे हैं ही तो तू क्यों लड़ता है पापा के लिए. सम?ाने पर भी उन पर कोई असर नहीं होता. चल, वाशबेसिन पर धो ले, मैं दवा ले कर आई…’’ अलमारी से दवा निकालते हुए वह बोले जा रही थी, ‘‘आने दे आज, अच्छी तरह सम?ाऊंगी. तू ?ागड़ा मत किया कर. तु?ो कुछ हो गया तो मैं… अपनी मां के लिए सोचा है… तू लड़ा मत कर. बोलने दे लोगों को, चुपचाप चला जाया कर. पढ़ाई में ध्यान दे, मैं कुछ करूंगी, तू पट्टी कर के जा,’’ कहते हुए उमा ने उस के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘कैसे जाऊं, अम्मा. पापा को कोई गंदा बोले तो सहन नहीं होता. मन करता है मुंह तोड़ दूं उस का,’’ जय बोला.‘‘नहीं, तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा. बब्बन को मैं सम?ा दूंगी, वह तु?ो कुछ नहीं बोलेगा. अब तू जा. अभी भी समय रहते क्लास में पहुंच जाएगा. मैं तेरे पापा से बात करूंगी, सब ठीक हो जाएगा,’’ उमा ने जय को आश्वासन देते हुए कोचिंग भेज दिया, मगर खुद को वह आश्वस्त नहीं कर पाई.

वह बब्बन को सम?ाने गई और बोली, ‘‘तू मेरे बेटे जैसा ही है. जय से क्यों लड़ता है? अंकल के बारे में उस से क्यों कहता है, अंकल से ही कहा कर. मैं भी सम?ाऊंगी उन्हें.’’‘‘क्या करूं आंटी, रश्मि के बारे में कोई और लड़का बोलता तो यकीनन मैं उस की जबान खींच लेता,’’ वह फिल्मी हीरो के अंदाज में बोला, ‘‘रश्मि ने कई बार मु?ा से कहा कि सामने वाले अंकल मु?ो श्रीदेवी कह कर छेड़ते हैं. मैं ने उसे सम?ाया कि तू छोटी सी है, प्यारी सी है, प्यार से कहते होंगे, मगर उस ने बताया कि अंकल उसे आंख भी मारते हैं और कल तो हद ही हो गई…’’ बब्बन कहने में हिचकिचा रहा था, पर उमा सुनने से पहले ही शर्मिंदा हो रही थी. वह कोशिश कर के बोला, ‘‘आंटी, अंकल ने रश्मि का हाथ पकड़ लिया और गंदा सा गाना गाने लगे… वही, माधुरी दीक्षित वाला, ‘एक तो जुल्मी ने… फंसी गोरी, चने के खेत में…’’

‘‘मैं बात करूंगी अंकल से. जाने क्या हो गया है उन्हें. सठिया गए हैं शायद पर तू जय को कुछ मत बोला कर. वह बहुत परेशान हो जाता है. उस का पीएमटी नजदीक आ गया है, वह कैसे पढ़ पाएगा? अंकल की हरकत के लिए मैं तु?ा से माफी मांगती हूं,’’ उमा बोली थी.‘‘माफी…? आप उन्हें सम?ा देना, वरना मेरे सामने किसी दिन ऐसी हरकत की तो मैं लिहाज नहीं कर पाऊंगा,’’ बब्बन ने चेतावनी देते हुए कहा तो अपनी बहुत ही बेइज्जती महसूस करते हुए उमा अपने घर चली आई.

रात करीब 8 बजे देवेश का स्कूटर रुकने की आवाज आई, साथ ही दूसरे लोगों की भी कुछ आवाजें, ‘‘संभाल कर भाई,’’ तभी उमा ने दरवाजा खोला तो… ‘‘भाभीजी, इस मोड़ पर घूमते ही इन का स्कूटर नीम के पेड़ से टकरा गया था. हम लोगों ने देखा तो ले आए. शुक्र है, जो उन्हें चोट नहीं आई,’’ महल्ले का चौकीदार बोला.

‘‘आप इन्हें रोकती क्यों नहीं? इतनी शराब पी कर ऐसी हालत में कोई स्कूटर, गाड़ी चलाता है? मेन रोड पर तो कुछ भी हो सकता था,’’ देवेश को लाने वाले पड़ोसी रमेशजी बोले थे.‘‘अरे, मु?ो कुछ नहीं हुआ, रमेश. कंकड़ पर पहिया स्लिप हो गया था, बस. आप लोग बैठिए. उमा, इन सब के लिए चाय बनाओ,’’ देवेश जोर से बोला, मानो उमा कहीं दूर कमरे में बैठी हो. इस से देवेश पर नशे का असर साफ ?ालक रहा था.

‘‘नहींनहीं, हम चलते हैं. आप आराम कीजिए और अपनी उम्र और बीवीबच्चों का खयाल कीजिए,’’ रमेशजी बोले.‘‘सारा दिन तो पीते ही हैं पर हर महीने की तनख्वाह या बोनस वाला दिन इन के लिए जश्न वाला दिन होता है, भाईसाहब,’’ उमा ने देवेश की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘सुबह ही मैं ने इन से मना किया था कि आज तनख्वाह मिलेगी, स्कूटर से मत जाओ, क्योंकि पीने से तो बाज नहीं आएंगे. कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए कि हम सारी जिंदगी रोने लिए ही रह जाएं.’’

रमेशजी और चौकीदार चले गए. देवेश बिस्तर पर पसर कर बोला,

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लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

‘नीरू’ देवेश के छिछोरेपन के कारण उस की पत्नी उमा परेशान हो गई थी. महल्ले में सब के सामने उसे जिल्लत उठानी पड़ती. अपनी उम्र और जिम्मेदारियां जानतेबू?ाते भी मानो देवेश की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे…उमा अपने पति देवेश के छिछोरेपन से परेशान थी. ‘छि:, यह भी कोई उम्र है इन की. सारे बाल सफेद होते जा रहे हैं और 5-6 साल में सेवामुक्त भी हो जाएंगे, फिर भी लड़कियों, औरतों को देख कर छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते हैं,’ वह बड़बड़ाए जा रही थी, ‘2 बेटों का ब्याह कर दिया. वे अपनीअपनी नौकरी पर रहते हैं. छुट्टियों में कभीकभी आते हैं, साथ में बहुएं और बच्चे भी होते हैं. उन के सामने ऐसावैसा कुछ भी कर जाते हैं, इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती.’

पड़ोसी रामलाल की 27-28 साल की कुंआरी बहन विमला से देवेश की आजकल खूब पट रही है. उन से कुछ कहने पर वे कहते, ‘अपनी तो वह बहनबेटी जैसी है. विजय की जगह कहीं अपनी लड़की होती तो ठीक इसी उम्र की होती. अच्छीभली है पर रामलाल जाने क्यों अभी तक उस की शादी नहीं कर पाया. जब देखो तब, मनहूस कह कर कोसता ही रहता है. भला उस का क्या कुसूर? बेचारी, बिन मांबाप की लड़की, आंसू ही बहाती रहती है. मु?ो अच्छा नहीं लगता. बेहद तरस आता है.’ अकसर ऐसी ही दलीलें उन से सुनने को मिलतीं.

देवेश जबतब उस की सेवा में लगे रहते. घर में खाने की कोई भी चीज आती, उस में से जरूर कुछ दौड़ कर विमला को दे आते और नहीं तो अलग से ही खरीद कर दे आते. यह देख कर उमा का दिल जल जाता. छुट्टियों में चुन्नू, मोना और बंटी के साथ देवेश का ज्यादा समय बीत जाता तो विमला शिकायत करती, रूठ जाती, ‘अब अंकल हमें पहले जैसा प्यार नहीं करते.’

उस समय देवेश हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लेते, उस की चुन्नी और बाल संवारते हुए उसे दुलारते, मनाते. बच्चे के सामने भी रूठनेमनाने का यह सिलसिला चलता ही रहता. यह देख कर उमा का खून खौल जाता.अजय, विजय तो नौकरी के बहाने चले गए हैं, उमा का मन करता कि वह भी कहीं दूर भाग जाए या जहर खा ले, पर उस के तीसरे बेटे जय का क्या होगा जो अभी पढ़ रहा है और उस के साथ ही रहता है. ‘मेरे जाने से तो इन्हें और छूट मिल जाएगी. जय के पीएमटी का क्या होगा, कैसे पढ़ पाएगा?’ वह सोचती रहती.

‘हाय, क्या करूं मैं. कुछ तो सद्बुद्धि आए इन में. मैं तो सम?ासम?ा कर थक गई,’ बड़बड़ाते हुए उमा की आंखों में आंसू छलछला आए. वह अपना माथा थामे बैठ गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.‘कौन हो सकता है? जय को कोचिंग के लिए निकले 10 मिनट हुए हैं, कहीं वह फिर किसी से ?ागड़ा कर के तो नहीं आ गया… मु?ा से भी फिर लड़ेगा,’ सोच कर आशंका से उस का दिल धड़कने लगा.

उस ने दरवाजा खोला तो जय ही था, वह बरस पड़ा, ‘‘घर से निकलना दूभर हो गया है, अम्मा. आप पापा को सम?ाती क्यों नहीं. आज उन्होंने फिर रश्मि के साथ छेड़छाड़ की. बब्बन ने (रश्मि का भाई) फिर पापा के लिए गंदीगंदी बातें बोलीं. उस ने पापा को पीटने की धमकी दी है. मैं ने भी कहा कि जरा हाथ लगा के दिखाना तो उस ने मेरे माथे पर पत्थर दे मारा,’’ तेज सांसों से बोलते हुए जय ने अपने माथे पर दबा रखा हाथ हटा दिया तो खून रिसने लगा था.

‘‘जब तेरे पापा ऐसे हैं ही तो तू क्यों लड़ता है पापा के लिए. सम?ाने पर भी उन पर कोई असर नहीं होता. चल, वाशबेसिन पर धो ले, मैं दवा ले कर आई…’’ अलमारी से दवा निकालते हुए वह बोले जा रही थी, ‘‘आने दे आज, अच्छी तरह सम?ाऊंगी. तू ?ागड़ा मत किया कर. तु?ो कुछ हो गया तो मैं… अपनी मां के लिए सोचा है… तू लड़ा मत कर. बोलने दे लोगों को, चुपचाप चला जाया कर. पढ़ाई में ध्यान दे, मैं कुछ करूंगी, तू पट्टी कर के जा,’’ कहते हुए उमा ने उस के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘कैसे जाऊं, अम्मा. पापा को कोई गंदा बोले तो सहन नहीं होता. मन करता है मुंह तोड़ दूं उस का,’’ जय बोला.‘‘नहीं, तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा. बब्बन को मैं सम?ा दूंगी, वह तु?ो कुछ नहीं बोलेगा. अब तू जा. अभी भी समय रहते क्लास में पहुंच जाएगा. मैं तेरे पापा से बात करूंगी, सब ठीक हो जाएगा,’’ उमा ने जय को आश्वासन देते हुए कोचिंग भेज दिया, मगर खुद को वह आश्वस्त नहीं कर पाई.

वह बब्बन को सम?ाने गई और बोली, ‘‘तू मेरे बेटे जैसा ही है. जय से क्यों लड़ता है? अंकल के बारे में उस से क्यों कहता है, अंकल से ही कहा कर. मैं भी सम?ाऊंगी उन्हें.’’‘‘क्या करूं आंटी, रश्मि के बारे में कोई और लड़का बोलता तो यकीनन मैं उस की जबान खींच लेता,’’ वह फिल्मी हीरो के अंदाज में बोला, ‘‘रश्मि ने कई बार मु?ा से कहा कि सामने वाले अंकल मु?ो श्रीदेवी कह कर छेड़ते हैं. मैं ने उसे सम?ाया कि तू छोटी सी है, प्यारी सी है, प्यार से कहते होंगे, मगर उस ने बताया कि अंकल उसे आंख भी मारते हैं और कल तो हद ही हो गई…’’ बब्बन कहने में हिचकिचा रहा था, पर उमा सुनने से पहले ही शर्मिंदा हो रही थी. वह कोशिश कर के बोला, ‘‘आंटी, अंकल ने रश्मि का हाथ पकड़ लिया और गंदा सा गाना गाने लगे… वही, माधुरी दीक्षित वाला, ‘एक तो जुल्मी ने… फंसी गोरी, चने के खेत में…’’

‘‘मैं बात करूंगी अंकल से. जाने क्या हो गया है उन्हें. सठिया गए हैं शायद पर तू जय को कुछ मत बोला कर. वह बहुत परेशान हो जाता है. उस का पीएमटी नजदीक आ गया है, वह कैसे पढ़ पाएगा? अंकल की हरकत के लिए मैं तु?ा से माफी मांगती हूं,’’ उमा बोली थी.‘‘माफी…? आप उन्हें सम?ा देना, वरना मेरे सामने किसी दिन ऐसी हरकत की तो मैं लिहाज नहीं कर पाऊंगा,’’ बब्बन ने चेतावनी देते हुए कहा तो अपनी बहुत ही बेइज्जती महसूस करते हुए उमा अपने घर चली आई.

रात करीब 8 बजे देवेश का स्कूटर रुकने की आवाज आई, साथ ही दूसरे लोगों की भी कुछ आवाजें, ‘‘संभाल कर भाई,’’ तभी उमा ने दरवाजा खोला तो… ‘‘भाभीजी, इस मोड़ पर घूमते ही इन का स्कूटर नीम के पेड़ से टकरा गया था. हम लोगों ने देखा तो ले आए. शुक्र है, जो उन्हें चोट नहीं आई,’’ महल्ले का चौकीदार बोला.

‘‘आप इन्हें रोकती क्यों नहीं? इतनी शराब पी कर ऐसी हालत में कोई स्कूटर, गाड़ी चलाता है? मेन रोड पर तो कुछ भी हो सकता था,’’ देवेश को लाने वाले पड़ोसी रमेशजी बोले थे.‘‘अरे, मु?ो कुछ नहीं हुआ, रमेश. कंकड़ पर पहिया स्लिप हो गया था, बस. आप लोग बैठिए. उमा, इन सब के लिए चाय बनाओ,’’ देवेश जोर से बोला, मानो उमा कहीं दूर कमरे में बैठी हो. इस से देवेश पर नशे का असर साफ ?ालक रहा था.

‘‘नहींनहीं, हम चलते हैं. आप आराम कीजिए और अपनी उम्र और बीवीबच्चों का खयाल कीजिए,’’ रमेशजी बोले.‘‘सारा दिन तो पीते ही हैं पर हर महीने की तनख्वाह या बोनस वाला दिन इन के लिए जश्न वाला दिन होता है, भाईसाहब,’’ उमा ने देवेश की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘सुबह ही मैं ने इन से मना किया था कि आज तनख्वाह मिलेगी, स्कूटर से मत जाओ, क्योंकि पीने से तो बाज नहीं आएंगे. कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए कि हम सारी जिंदगी रोने लिए ही रह जाएं.’’

रमेशजी और चौकीदार चले गए. देवेश बिस्तर पर पसर कर बोला,

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December 11, 2021 at 10:00AM

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