Sunday 19 December 2021

अस्तित्व की तलाश : भाग 1

लेखिका- पूनम पाठक

तमाम बंदिशों से दूर वंदना आज खुली हवा में सुकून की सांस ले रही थी. तोड़ आई थी अपने पीछे वह सात जन्मों के उस बंधन को जो बेड़ी बन कर कई सालों से उसे जकड़े हुए था. वह रिश्ता जिसे कभी उस ने जीजान से संवारने की कोशिश की थी, शिद्दत से निभाना चाहा था आखिरकार दरक चुका था. किसी रिश्ते को यों तोड़ देना सहज तो नहीं होता लेकिन यह एकतरफ़ा रिश्ता आख़िर वह निभाती भी कब तक? वैसे भी, आज तक इस रिश्ते में उस के हिस्से सिर्फ़ और सिर्फ़ कर्तव्यों की सूची आई थी, कहीं किसी अधिकार का नामोनिशान न था.

46 वर्षीया वंदना अब इस रिश्ते का बोझ ढोतेढोते थक चुकी थी. मन से तो बहुत पहले  ही वह इस रिश्ते को नकार चुकी थी, पर चूंकि पत्नी होने के साथ वह एक मां भी थी, सो बेटी के प्रति अपनी आख़िरी ज़िम्मेदारी निभा कर उस ने इस रिश्ते को तिलांजलि देने का मन बना लिया.

अभी पिछले हफ्ते ही उस की बेटी की शादी हुई थी. उस के बाद चारछह दिन मेहमानों की आवाजाही में बीत गए. कल सुबह ही उस ने पति प्रशांत का घर छोड़ दिया था. छोड़ आई थी उस के लिए वह एक चिट्ठी भी कि उसे तलाशने की कोशिश न की जाए. जिंदगी को अब वह अपने लिए, अपनी मरजी के मुताबिक जीना चाहती है.

अब तक उस ने एक आम घरेलू औरत की तरह अपने घर की साजसंभाल की थी. उस की दुनिया सिर्फ घर और घरवालों तक ही सीमित थी. पहली बार घर से अकेले बाहर निकलते वक्त उसे थोड़ा डर तो लगा लेकिन वह जानती थी कि अगर अभी नहीं तो कभी नहीं. बदलाव का यह अवसर उसे बारबार न मिलेगा.

वंदना ने सामने रखा कौफ़ी का मग उठाया और एक सिप लिया, फ़िर टहलती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई, जहां से प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे देख उस का मन प्रफुल्लित हो उठा. पंचगनी की हरीभरी वादियों के बीच, प्रकृति की गोद में बसे इस खूबसूरत क़सबे चंदाना में एक छोटे मगर सर्वसुविधायुक्त कौटेज में कौफ़ी की चुस्कियों के साथ प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य देख वह मंत्रमुग्ध हो चली थी.

शहर की चकाचौंध और शोरगुल में मशीनी जिंदगी जीतेजीते वंदना बहुत थक चुकी थी. लिहाज़ा, यहां की शांति ने उस के दिलोदिमाग़ को तरोताज़ा कर दिया था, जितना सुंदर दृश्य उतना ही प्यारा मौसम. बारिश की हलकी फुहारों ने इसे और ख़ुशगवार बना दिया था. उस पर धीमी आवाज़ में चल रही जगजीत सिंह की गज़ल ‘प्यार हम से जो किया तुम ने तो क्या पाओगी…’ ने उसे बरसों पुराने समय में पहुंचा दिया. आज फिर से प्रकृति का सामीप्य पा कर उस का मन कहीं खो सा गया.

‘मानस, बात करो न अपने मम्मीपापा से. मेरे घर तकरीबन रोज ही कोई न कोई आ टपकता है शादी के लिए. अगर मम्मी को कोई पसंद आ गया तो बैठे रह जाना तुम अपनी कविताएं लिखते. मैं तो शादी कर के चल दूंगी उस के साथ,’ मानस को नोटबुक में कुछ लिखते देख वंदना ने चिढ़ाने की गरज़ से कहा. बारिश के सुहाने मौसम में वह मानस के साथ पाताल, पानी, झरने की ख़ूबसूरती देखने आई थी.

‘यार, मौसम की खुशमिजाजी देख मेरी लेखनी अपनेआप चल पड़ती है, इस में मेरा कोई दोष नही,’ मानस हंसा.  उस के हंसने से उस के गालों के गड्ढे और गहरे हो चले, जिन्हें देख वंदना को उस पर और भी प्यार आ जाता था. ‘और रही बात तुम्हारे ऊपर शादी के दबाव की, तो मैं नौकरी के जुगाड़ में ही लगा हुआ हूं. एक अच्छी सी नौकरी मिलते ही तुम्हारी हिटलर मां से तुम्हारा हाथ मांगने प्रस्तुत हो जाऊंगा,’ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मानस ने चुटकी ली.                                                                                                                                               ‘क्या कहा, मेरी मां हिटलर. जाओ, मैं तुम से बात नही करती.’

‘अच्छा माफ़ कर दो वंदू, आगे से ऐसी गलती नही होगी,’ मानस ने बड़ी स्टाइल से कानों को हाथ लगाते हुए कहा तो वंदना की हंसी छूट पड़ी.

उस वक्त यह बात भले ही मज़ाक में खत्म हो गई हो, पर यह एक बहुत बड़ा सच था कि अपने एरिये की विधायक वंदना की मां रामेश्वरी देवी एक बहुत तेजतर्रार व तानाशाह प्रवृत्ति की महिला थीं, जिन की दबंगई पूरे इलाके में  मशहूर थी. वंदना उन की इकलौती पुत्री थी जिसे उन्होंने अपने कीमती समय के अलावा बाकी सभीकुछ दिया था.

वे कट्टर हिंदुत्व की समर्थक थीं. यह भी एक बहुत बड़ा रोड़ा था वंदना और मानस के बीच. मानस एक छोटी जाति से था. सो, उस के मन में इस डर का होना स्वाभाविक था. उस ने कई बार मज़ाक ही मज़ाक में वंदना से इस बात का ज़िक्र भी किया था. लेकिन वंदना को अपने प्यार पर पूरा यकीन था, साथ ही, इस बात का भरोसा भी कि मां उस की बात कभी नहीं टालेंगी. कालेज के ज़माने से ही मानस की कविताएं और शायरी पसंद करने वाली वंदना उसे बेतहाशा प्यार करती थी. मानस भी उसे अपने दिल की गहराइयों से चाहता था. दोनों एकदूसरे के साथ ही अपना भविष्य देखते थे.

मानस कविहृदय होने के साथ एक मंजा हुआ युवा लेखक भी था. उस की लेखनी की धार बहुत पैनी थी. वह कालेज के ज़माने से ही भ्रष्ट और बेईमान लोगों के खिलाफ़ अपनी लेखनी से ज़हर उगलता था. उस की कविताएं और लेख ज्वलंत मुद्दों को लिए समाज की विसंगतियों पर बेहद तीखा प्रहार करते थे. वह जाति-धर्म से ऊपर एक ऐसे समाज की संरचना के लिए प्रतिबद्ध था जहां इंसान और इंसानियत ही सर्वोपरि हो तथा बाकी चीज़ें गौण. वह समाज के बीच की आर्थिक व जातीय खाई को पाटने के लिए प्रतिबद्ध था और बड़ी ही बेबाकी व मुखरता से अपने विचारों को शब्दों का जामा पहनाता था, इसीलिए धर्म के ठेकेदारों की आंख में भी सदा खटकता था.

बड़ी ही जद्दोजेहद से उसे एक अख़बार की रिपोर्टिंग का काम मिल गया. काम उस के मन मुताबिक था, सो उस ने पूरी लगन व ईमानदारी से इसे करना शुरू कर दिया. पर जैसा कि उसे भय था, वंदना के बहुत गिड़गिड़ाने पर भी उस की मां ने छोटी जाति और निम्न सामाजिक स्तर का होने के कारण मानस को अपना दामाद बनाना स्वीकार नहीं किया. उलटे, उन्होंने वंदना को यह धमकी दी कि अगर उस ने मानस से शादी करने का पागलपन नहीं छोड़ा तो वे मानस का कत्ल करवा देंगी. और तो और, गुस्से में वंदना पर सख्ती से दबाव बना कर आननफानन उस की शादी उन्होंने कपड़ों के एक साधारण कारोबारी प्रशांत से करवा दी, जो उन की पार्टी को फंड वगैरह दिया करता था.

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लेखिका- पूनम पाठक

तमाम बंदिशों से दूर वंदना आज खुली हवा में सुकून की सांस ले रही थी. तोड़ आई थी अपने पीछे वह सात जन्मों के उस बंधन को जो बेड़ी बन कर कई सालों से उसे जकड़े हुए था. वह रिश्ता जिसे कभी उस ने जीजान से संवारने की कोशिश की थी, शिद्दत से निभाना चाहा था आखिरकार दरक चुका था. किसी रिश्ते को यों तोड़ देना सहज तो नहीं होता लेकिन यह एकतरफ़ा रिश्ता आख़िर वह निभाती भी कब तक? वैसे भी, आज तक इस रिश्ते में उस के हिस्से सिर्फ़ और सिर्फ़ कर्तव्यों की सूची आई थी, कहीं किसी अधिकार का नामोनिशान न था.

46 वर्षीया वंदना अब इस रिश्ते का बोझ ढोतेढोते थक चुकी थी. मन से तो बहुत पहले  ही वह इस रिश्ते को नकार चुकी थी, पर चूंकि पत्नी होने के साथ वह एक मां भी थी, सो बेटी के प्रति अपनी आख़िरी ज़िम्मेदारी निभा कर उस ने इस रिश्ते को तिलांजलि देने का मन बना लिया.

अभी पिछले हफ्ते ही उस की बेटी की शादी हुई थी. उस के बाद चारछह दिन मेहमानों की आवाजाही में बीत गए. कल सुबह ही उस ने पति प्रशांत का घर छोड़ दिया था. छोड़ आई थी उस के लिए वह एक चिट्ठी भी कि उसे तलाशने की कोशिश न की जाए. जिंदगी को अब वह अपने लिए, अपनी मरजी के मुताबिक जीना चाहती है.

अब तक उस ने एक आम घरेलू औरत की तरह अपने घर की साजसंभाल की थी. उस की दुनिया सिर्फ घर और घरवालों तक ही सीमित थी. पहली बार घर से अकेले बाहर निकलते वक्त उसे थोड़ा डर तो लगा लेकिन वह जानती थी कि अगर अभी नहीं तो कभी नहीं. बदलाव का यह अवसर उसे बारबार न मिलेगा.

वंदना ने सामने रखा कौफ़ी का मग उठाया और एक सिप लिया, फ़िर टहलती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई, जहां से प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे देख उस का मन प्रफुल्लित हो उठा. पंचगनी की हरीभरी वादियों के बीच, प्रकृति की गोद में बसे इस खूबसूरत क़सबे चंदाना में एक छोटे मगर सर्वसुविधायुक्त कौटेज में कौफ़ी की चुस्कियों के साथ प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य देख वह मंत्रमुग्ध हो चली थी.

शहर की चकाचौंध और शोरगुल में मशीनी जिंदगी जीतेजीते वंदना बहुत थक चुकी थी. लिहाज़ा, यहां की शांति ने उस के दिलोदिमाग़ को तरोताज़ा कर दिया था, जितना सुंदर दृश्य उतना ही प्यारा मौसम. बारिश की हलकी फुहारों ने इसे और ख़ुशगवार बना दिया था. उस पर धीमी आवाज़ में चल रही जगजीत सिंह की गज़ल ‘प्यार हम से जो किया तुम ने तो क्या पाओगी…’ ने उसे बरसों पुराने समय में पहुंचा दिया. आज फिर से प्रकृति का सामीप्य पा कर उस का मन कहीं खो सा गया.

‘मानस, बात करो न अपने मम्मीपापा से. मेरे घर तकरीबन रोज ही कोई न कोई आ टपकता है शादी के लिए. अगर मम्मी को कोई पसंद आ गया तो बैठे रह जाना तुम अपनी कविताएं लिखते. मैं तो शादी कर के चल दूंगी उस के साथ,’ मानस को नोटबुक में कुछ लिखते देख वंदना ने चिढ़ाने की गरज़ से कहा. बारिश के सुहाने मौसम में वह मानस के साथ पाताल, पानी, झरने की ख़ूबसूरती देखने आई थी.

‘यार, मौसम की खुशमिजाजी देख मेरी लेखनी अपनेआप चल पड़ती है, इस में मेरा कोई दोष नही,’ मानस हंसा.  उस के हंसने से उस के गालों के गड्ढे और गहरे हो चले, जिन्हें देख वंदना को उस पर और भी प्यार आ जाता था. ‘और रही बात तुम्हारे ऊपर शादी के दबाव की, तो मैं नौकरी के जुगाड़ में ही लगा हुआ हूं. एक अच्छी सी नौकरी मिलते ही तुम्हारी हिटलर मां से तुम्हारा हाथ मांगने प्रस्तुत हो जाऊंगा,’ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मानस ने चुटकी ली.                                                                                                                                               ‘क्या कहा, मेरी मां हिटलर. जाओ, मैं तुम से बात नही करती.’

‘अच्छा माफ़ कर दो वंदू, आगे से ऐसी गलती नही होगी,’ मानस ने बड़ी स्टाइल से कानों को हाथ लगाते हुए कहा तो वंदना की हंसी छूट पड़ी.

उस वक्त यह बात भले ही मज़ाक में खत्म हो गई हो, पर यह एक बहुत बड़ा सच था कि अपने एरिये की विधायक वंदना की मां रामेश्वरी देवी एक बहुत तेजतर्रार व तानाशाह प्रवृत्ति की महिला थीं, जिन की दबंगई पूरे इलाके में  मशहूर थी. वंदना उन की इकलौती पुत्री थी जिसे उन्होंने अपने कीमती समय के अलावा बाकी सभीकुछ दिया था.

वे कट्टर हिंदुत्व की समर्थक थीं. यह भी एक बहुत बड़ा रोड़ा था वंदना और मानस के बीच. मानस एक छोटी जाति से था. सो, उस के मन में इस डर का होना स्वाभाविक था. उस ने कई बार मज़ाक ही मज़ाक में वंदना से इस बात का ज़िक्र भी किया था. लेकिन वंदना को अपने प्यार पर पूरा यकीन था, साथ ही, इस बात का भरोसा भी कि मां उस की बात कभी नहीं टालेंगी. कालेज के ज़माने से ही मानस की कविताएं और शायरी पसंद करने वाली वंदना उसे बेतहाशा प्यार करती थी. मानस भी उसे अपने दिल की गहराइयों से चाहता था. दोनों एकदूसरे के साथ ही अपना भविष्य देखते थे.

मानस कविहृदय होने के साथ एक मंजा हुआ युवा लेखक भी था. उस की लेखनी की धार बहुत पैनी थी. वह कालेज के ज़माने से ही भ्रष्ट और बेईमान लोगों के खिलाफ़ अपनी लेखनी से ज़हर उगलता था. उस की कविताएं और लेख ज्वलंत मुद्दों को लिए समाज की विसंगतियों पर बेहद तीखा प्रहार करते थे. वह जाति-धर्म से ऊपर एक ऐसे समाज की संरचना के लिए प्रतिबद्ध था जहां इंसान और इंसानियत ही सर्वोपरि हो तथा बाकी चीज़ें गौण. वह समाज के बीच की आर्थिक व जातीय खाई को पाटने के लिए प्रतिबद्ध था और बड़ी ही बेबाकी व मुखरता से अपने विचारों को शब्दों का जामा पहनाता था, इसीलिए धर्म के ठेकेदारों की आंख में भी सदा खटकता था.

बड़ी ही जद्दोजेहद से उसे एक अख़बार की रिपोर्टिंग का काम मिल गया. काम उस के मन मुताबिक था, सो उस ने पूरी लगन व ईमानदारी से इसे करना शुरू कर दिया. पर जैसा कि उसे भय था, वंदना के बहुत गिड़गिड़ाने पर भी उस की मां ने छोटी जाति और निम्न सामाजिक स्तर का होने के कारण मानस को अपना दामाद बनाना स्वीकार नहीं किया. उलटे, उन्होंने वंदना को यह धमकी दी कि अगर उस ने मानस से शादी करने का पागलपन नहीं छोड़ा तो वे मानस का कत्ल करवा देंगी. और तो और, गुस्से में वंदना पर सख्ती से दबाव बना कर आननफानन उस की शादी उन्होंने कपड़ों के एक साधारण कारोबारी प्रशांत से करवा दी, जो उन की पार्टी को फंड वगैरह दिया करता था.

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December 20, 2021 at 10:00AM

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