Thursday 30 December 2021

अपनी खुशी के लिए- भाग 2: क्या जबरदस्ती की शादी से बच पाई नम्रता?

‘मम्मी, तुम गंदी हो,’’ खुशी रोंआसे स्वर में बोली. उसे तरंग का इस तरह नंदिनी के साथ चले जाना बहुत अखर रहा था.

‘‘आप भी कह ही डालिए जो कहना है. इस तरह मुंह फुलाए क्यों बैठी हैं?’’ नम्रता पूर्णा देवी को चुप बैठे देख कर बोली.

‘‘मैं तो यही कहूंगी कि तुम से कहीं अधिक बुद्धिमान तो तुम्हारी 5 वर्षीय बेटी है. उस ने आज नंदिनी को अपने व्यवहार से वह सब जता दिया जो तुम कभी नहीं कर पाईं.’’

‘‘मैं आप के संकेतों की भाषा समझती हूं मांजी. पर क्या करूं? नंदिनी मेरी चचेरी बहन है.’’

‘‘चचेरी बहन… बात अपनी गृहस्थी बचाने की हो तो सगी बहन से भी सावधान रहना चाहिए,’’ पूर्णा देवी बोलीं.

‘‘नंदिनी को क्या दोष दूं मांजी, जब अपना पैसा ही खोटा निकल जाए. तरंग को तो अपनी पत्नी को छोड़ कर हर युवती में गुण ही गुण नजर आते हैं. आज नंदिनी है. उस से पहले तन्वी थी. विवाह से पहले की उन की रासलीलाओं के संबंध में तो आप जानती ही हैं.’’

‘‘मैं सब जानती हूं. पर मैं ने जिस लड़की को तरंग की पत्नी के रूप में चुना था वह तो जिजीविषा से भरपूर थी. तुम्हारा गुणगान अपने तो क्या पराए भी करते थे. फिर ऐसा क्या हो गया जो तुम सब से कट कर अपनी ही खोल में सिमट कर रह गई हो?’’

‘‘पता नहीं, पर दिनरात मेरी कमियों का रोना रो कर तरंग ने मुझे विश्वास दिला दिया है कि मैं किसी योग्य नहीं हूं. आप ने सुना नहीं था? तरंग नंदिनी से कह रहे थे कि अजनबियों के बीच जाते ही मेरी घिग्घी बंध जाती है. जबकि कालेज में मैं साहित्यिक क्लब की सर्वेसर्वा थी. पूरे 4 वर्षों तक मैं ने उस का संचालन किया था.’’

‘‘जानती हूं पर कालेज में तुम क्या थीं कोई नहीं पूछता. अब तुम क्या हो? अपने लिए नहीं तो खुशी के लिए अपने जीवन पर अपनी पकड़ ढीली मत पड़ने दो बेटी,’’ पूर्णा देवी ने भरे गले से कहा.

नम्रता ने खुशी और पूर्णा देवी को खिलापिला कर सुला दिया और तंरग की प्रतीक्षा करने लगी. तरहतरह की बातें सामने प्रश्नचिह्न बन कर खड़ी थीं.

सोच में डूबी हुई कब वह निद्रा देवी की गोद में समा गई उसे स्वयं ही पता नहीं चला. तरंग ने जब घंटी बजाई तो वह घबरा कर उठ बैठी.

‘‘मर गई थीं क्या? कब से घंटी बजा रहा हूं,’’ द्वार खुलते ही नशे में धुत तरंग बरस पड़ा.

‘‘यह क्या शरीफों के घर आने का समय है, वह भी नशे में धुत लड़खड़ाते हुए? आवाज नीची रखो पड़ोसी जाग जाएंगे.’’

‘‘पड़ोसियों का डर किसे दिखा रही हो? बेचारी नंदिनी से तुम ने पानी तक नहीं पूछा. कितनी आहत हो कर गई है वह यहां से. वह तो तुम्हारे और खुशी के लिए जान भी देने को तैयार रहती है. उस के साथ ऐसा व्यवहार? उसे रेस्तरां में ले जा कर खिलायापिलाया. मेरा भी कुछ फर्ज बनता है,’’ तरंग अपनी ही रौ में बहे जा रहा था.

‘‘समझ गई, मतलब खापी कर आए हो. अब भोजन की आवश्यकता नहीं है,’’ नम्रता व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘यह भी कोई कहने की बात है? सीधीसादी बात भी तुम्हें समझ में नहीं आती, मूर्ख शिरोमणि कहीं की,’’ अस्पष्ट शब्दों में बोल कर तरंग अपने बिस्तर में लुढ़क गया. और कोई दिन होता तो रोतीकलपती नम्रता भूखी ही सो जाती. पर आज नहीं. कहीं कोई कांटा इतना गहरा धंस गया था जिस की टीस उसे चैन नहीं लेने दे रही थी. स्वयं को स्वस्थ रखने का भार भी तो उस के ही कंधों पर है. क्या हुआ जो तरंग साथ नहीं देता. नम्रता ने भोजन को करीने से मेज पर सजाया जैसे किसी अतिथि के आने की प्रतीक्षा हो. बत्ती बुझा कर मोमबत्ती जलाई और उस की मंद रोशनी में रात्रिभोज का आनंद लेती रही. लंबे समय के बाद उसे लगा कि प्रसन्न होने के लिए किसी बड़े तामझाम की आवश्यकता नहीं होती. सही मनोस्थिति का होना ही पर्याप्त है. फिर न जाने क्या सोच कर अपनी फाइल निकाल कर बैठ गई. पढ़ाई में वह ठीकठाक थी पर अन्य गतिविधियों में उस का सानी कोई नहीं था. नृत्य, संगीत, खेलकूद, वादविवाद, नाटकों में उस की उपस्थिति अनिवार्य समझी जाती थी. पर विवाह होते ही सब कुछ बदल गया. नम्रता ने उदासीनता की ऐसी चादर ओढ़ ली जिसे भेद पाना दूसरों के लिए तो क्या स्वयं उस के लिए भी कठिन हो गया.

रात के सन्नाटे में स्वयं से ही अपना परिचय करवा कर नम्रता रोमांचित हो उठी. खुशी ने उस के व्यक्तित्व को झकझोर कर जगा दिया. अगले दिन की उजली सुबह नया ही रूपरंग ले कर आई. नम्रता हौलेहौले गुनगुना रही थी. तरंग को औफिस जाने की जल्दी थी. इंस्पैक्शन था तैयारी जो करनी थी. ‘‘नंदिनी को फोन कर देना. कल के व्यवहार के लिए क्षमा मांग लेना. नहीं तो वह नहीं आने वाली खुशी के स्कूल,’’ तरंग जाते हुए हिदायत दे गया था. सुन कर खुशी ने ऐसा मुंह बनाया कि पूर्णा देवी को हंसी आ गई.

‘‘मुझे नहीं जाना नंदिनी मौसी के साथ,’’ तरंग को जाता देख खुशी धीमे स्वर में बुदबुदाई.

‘‘खुशी, चलो तैयार हो जाओ. स्कूल जाना है,’’ नम्रता ने खुशी से कहा.

‘‘मैं नंदिनी मौसी के साथ स्कूल नहीं जा रही.’’

‘‘तुम मेरे साथ जाओगी. तुम्हारे पापा व्यस्त हैं पर मैं नहीं. तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का भार मेरे कंधों पर है नंदिनी पर नहीं.’’

‘‘सच मम्मी, मेरी नई जन्मदिन वाली पोशाक निकाल दो. आज स्कूल डै्रस पहनना जरूरी नहीं है. दादीमां सुना आप ने, मैं और मम्मी स्कूल जा रहे हैं,’’ खुशी ताली बजा कर नाचने लगी.

‘‘मुझे नहीं ले चलेगी खुशी? घर में बैठेबैठे ऊब जाती हूं मैं.’’

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‘मम्मी, तुम गंदी हो,’’ खुशी रोंआसे स्वर में बोली. उसे तरंग का इस तरह नंदिनी के साथ चले जाना बहुत अखर रहा था.

‘‘आप भी कह ही डालिए जो कहना है. इस तरह मुंह फुलाए क्यों बैठी हैं?’’ नम्रता पूर्णा देवी को चुप बैठे देख कर बोली.

‘‘मैं तो यही कहूंगी कि तुम से कहीं अधिक बुद्धिमान तो तुम्हारी 5 वर्षीय बेटी है. उस ने आज नंदिनी को अपने व्यवहार से वह सब जता दिया जो तुम कभी नहीं कर पाईं.’’

‘‘मैं आप के संकेतों की भाषा समझती हूं मांजी. पर क्या करूं? नंदिनी मेरी चचेरी बहन है.’’

‘‘चचेरी बहन… बात अपनी गृहस्थी बचाने की हो तो सगी बहन से भी सावधान रहना चाहिए,’’ पूर्णा देवी बोलीं.

‘‘नंदिनी को क्या दोष दूं मांजी, जब अपना पैसा ही खोटा निकल जाए. तरंग को तो अपनी पत्नी को छोड़ कर हर युवती में गुण ही गुण नजर आते हैं. आज नंदिनी है. उस से पहले तन्वी थी. विवाह से पहले की उन की रासलीलाओं के संबंध में तो आप जानती ही हैं.’’

‘‘मैं सब जानती हूं. पर मैं ने जिस लड़की को तरंग की पत्नी के रूप में चुना था वह तो जिजीविषा से भरपूर थी. तुम्हारा गुणगान अपने तो क्या पराए भी करते थे. फिर ऐसा क्या हो गया जो तुम सब से कट कर अपनी ही खोल में सिमट कर रह गई हो?’’

‘‘पता नहीं, पर दिनरात मेरी कमियों का रोना रो कर तरंग ने मुझे विश्वास दिला दिया है कि मैं किसी योग्य नहीं हूं. आप ने सुना नहीं था? तरंग नंदिनी से कह रहे थे कि अजनबियों के बीच जाते ही मेरी घिग्घी बंध जाती है. जबकि कालेज में मैं साहित्यिक क्लब की सर्वेसर्वा थी. पूरे 4 वर्षों तक मैं ने उस का संचालन किया था.’’

‘‘जानती हूं पर कालेज में तुम क्या थीं कोई नहीं पूछता. अब तुम क्या हो? अपने लिए नहीं तो खुशी के लिए अपने जीवन पर अपनी पकड़ ढीली मत पड़ने दो बेटी,’’ पूर्णा देवी ने भरे गले से कहा.

नम्रता ने खुशी और पूर्णा देवी को खिलापिला कर सुला दिया और तंरग की प्रतीक्षा करने लगी. तरहतरह की बातें सामने प्रश्नचिह्न बन कर खड़ी थीं.

सोच में डूबी हुई कब वह निद्रा देवी की गोद में समा गई उसे स्वयं ही पता नहीं चला. तरंग ने जब घंटी बजाई तो वह घबरा कर उठ बैठी.

‘‘मर गई थीं क्या? कब से घंटी बजा रहा हूं,’’ द्वार खुलते ही नशे में धुत तरंग बरस पड़ा.

‘‘यह क्या शरीफों के घर आने का समय है, वह भी नशे में धुत लड़खड़ाते हुए? आवाज नीची रखो पड़ोसी जाग जाएंगे.’’

‘‘पड़ोसियों का डर किसे दिखा रही हो? बेचारी नंदिनी से तुम ने पानी तक नहीं पूछा. कितनी आहत हो कर गई है वह यहां से. वह तो तुम्हारे और खुशी के लिए जान भी देने को तैयार रहती है. उस के साथ ऐसा व्यवहार? उसे रेस्तरां में ले जा कर खिलायापिलाया. मेरा भी कुछ फर्ज बनता है,’’ तरंग अपनी ही रौ में बहे जा रहा था.

‘‘समझ गई, मतलब खापी कर आए हो. अब भोजन की आवश्यकता नहीं है,’’ नम्रता व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘यह भी कोई कहने की बात है? सीधीसादी बात भी तुम्हें समझ में नहीं आती, मूर्ख शिरोमणि कहीं की,’’ अस्पष्ट शब्दों में बोल कर तरंग अपने बिस्तर में लुढ़क गया. और कोई दिन होता तो रोतीकलपती नम्रता भूखी ही सो जाती. पर आज नहीं. कहीं कोई कांटा इतना गहरा धंस गया था जिस की टीस उसे चैन नहीं लेने दे रही थी. स्वयं को स्वस्थ रखने का भार भी तो उस के ही कंधों पर है. क्या हुआ जो तरंग साथ नहीं देता. नम्रता ने भोजन को करीने से मेज पर सजाया जैसे किसी अतिथि के आने की प्रतीक्षा हो. बत्ती बुझा कर मोमबत्ती जलाई और उस की मंद रोशनी में रात्रिभोज का आनंद लेती रही. लंबे समय के बाद उसे लगा कि प्रसन्न होने के लिए किसी बड़े तामझाम की आवश्यकता नहीं होती. सही मनोस्थिति का होना ही पर्याप्त है. फिर न जाने क्या सोच कर अपनी फाइल निकाल कर बैठ गई. पढ़ाई में वह ठीकठाक थी पर अन्य गतिविधियों में उस का सानी कोई नहीं था. नृत्य, संगीत, खेलकूद, वादविवाद, नाटकों में उस की उपस्थिति अनिवार्य समझी जाती थी. पर विवाह होते ही सब कुछ बदल गया. नम्रता ने उदासीनता की ऐसी चादर ओढ़ ली जिसे भेद पाना दूसरों के लिए तो क्या स्वयं उस के लिए भी कठिन हो गया.

रात के सन्नाटे में स्वयं से ही अपना परिचय करवा कर नम्रता रोमांचित हो उठी. खुशी ने उस के व्यक्तित्व को झकझोर कर जगा दिया. अगले दिन की उजली सुबह नया ही रूपरंग ले कर आई. नम्रता हौलेहौले गुनगुना रही थी. तरंग को औफिस जाने की जल्दी थी. इंस्पैक्शन था तैयारी जो करनी थी. ‘‘नंदिनी को फोन कर देना. कल के व्यवहार के लिए क्षमा मांग लेना. नहीं तो वह नहीं आने वाली खुशी के स्कूल,’’ तरंग जाते हुए हिदायत दे गया था. सुन कर खुशी ने ऐसा मुंह बनाया कि पूर्णा देवी को हंसी आ गई.

‘‘मुझे नहीं जाना नंदिनी मौसी के साथ,’’ तरंग को जाता देख खुशी धीमे स्वर में बुदबुदाई.

‘‘खुशी, चलो तैयार हो जाओ. स्कूल जाना है,’’ नम्रता ने खुशी से कहा.

‘‘मैं नंदिनी मौसी के साथ स्कूल नहीं जा रही.’’

‘‘तुम मेरे साथ जाओगी. तुम्हारे पापा व्यस्त हैं पर मैं नहीं. तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का भार मेरे कंधों पर है नंदिनी पर नहीं.’’

‘‘सच मम्मी, मेरी नई जन्मदिन वाली पोशाक निकाल दो. आज स्कूल डै्रस पहनना जरूरी नहीं है. दादीमां सुना आप ने, मैं और मम्मी स्कूल जा रहे हैं,’’ खुशी ताली बजा कर नाचने लगी.

‘‘मुझे नहीं ले चलेगी खुशी? घर में बैठेबैठे ऊब जाती हूं मैं.’’

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December 30, 2021 at 12:30PM

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