Tuesday 21 December 2021

दर्द का रिश्ता : भाग 1

लेखिक डा. रंजना जायसवाल

“कितनी बार समझाया था तुझे इकलौती लड़की से शादी मत कर पर तुझ पर तो प्यार का भूत सवार था. न आगे नाथ न पीछे पगहा… मांबाप के मरने के बाद तेरी ससुराल भी खत्म हो जाएगी…सुखदुख में खड़ा होने वाला भी कोई न रह जाएगा. हम कोई जिंदगीभर जिंदा थोड़ी बैठे रहेंगे.”

“मां, कैसी बात करती हो, मैं भी तो इकलौता ही हूं.””तेरी बात अलग है, तू लड़का है. अपूर्वा को देख अपने साथ दहेज में कुछ भी न लाई पर मांबाप की जिम्मेदारी जरूर ले आई.”

“मां, ऐसा न कहो, यह बात तो हम पहले दिन से जानते थे. वैसे भी अपूर्वा से शादी का निर्णय मेरा था फिर दानदहेज की बात कहां से आ गई. अपूर्वा ने शादी के पहले ही मुझे स्पष्ट शब्दों में यह बात कह दी थी.शादी के बाद उस के मातापिता की जिम्मेदारी वही उठाएगी.”

साधनाजी का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. समर की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वह उन की तरफ नजर उठा कर देखे.”वाह रे जमाना, हमारे जमाने में लड़की के मांबाप बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते थे और यह साहब अपने ससुर को यहां लाने को सोच रहे हैं. क्या कहेंगे लोग…”

“मां, लोगों की मैं परवाह नहीं करता. जब पापा बीमार पड़े थे तो अपूर्वा के पापा ने कितनी मदद की थी भूला नहीं हूं मैं… जिन लोगों की आप बात कर रही हैं वे तो झांकने भी नहीं आए थे. मां, जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे हर बात के भी तीन पहलू होते है आप का, उन का और सच. कभी सुनीसुनाई बात पर भरोसा मत कीजिए.”

“आ गए ससुराल के वकील बन कर…” “मां, वकील बनने की बात नहीं है, उन का हमारे सिवा है ही कौन? आप ही बताइए इस उम्र में वे भला कहां जाएंगे.” “भाड़ में जाओ तुम…लोगों को कुल्हाड़ी पैर पर मारते देखा था पर जब कोई पैर ही कुल्हाड़ी पर मारने को आतुर हो तो उस को क्या कहना और क्या समझाना.”

अपूर्वा 1 महीने से यह नाटक देख रही थी. कोरोना महामारी ने उस की मां को लील लिया था. अजयजी इस भरी दुनिया में बिलकुल अकेले पड़ गये थे. फोन पर वे कुछ भी न कह पाते पर उन की आवाज में उन का अकेलापन उसे महसूस हो जाता था.इस मशीनी युग में इंसान वैसे भी कितना अकेला था, ऊपर से इस महामारी ने इंसान को बिलकुल ही अकेला कर दिया था. साधनाजी दिल की बुरी नहीं थीं, पिछले साल कोरोना की वजह से उन्होंने अपने पति को खो दिया था. बस तभी से एक अजीब सी झुंझलाहट उन के व्यवहार में आ गई थी. उन्हें हमेशा यही लगता था कि शायद उन की सेवा, उन के देखरेख में कहीं कुछ कमी रह गई थी शायद इसलिए वे…साधनाजी का दर्द समर और अपूर्वा अच्छी तरह से समझते थे. आखिर उन्होंने भी तो अपने पिता को खोया था.

इंसान की जवानी घरपरिवार की जिम्मेदारियों में ही गुजर जाती है पर बुढ़ापा जब एकदूसरे के साथ की सब से ज्यादा जरूरत होती है, उस में से कोई एक हाथ छुड़ा कर चला जाए तो जीवन पहाड़ की तरह लगने लगता है. साधनाजी इन दिनों उसी दौर से गुजर रही थीं.

अपूर्वा जानती थी की यह सब इतना आसान नहीं था पर…बात सिर्फ मम्मीजी की नहीं थी, पापा को समझाना क्या इतना आसान था?

अपूर्वा और समर ने प्रेमविवाह किया था, दोनों ही परिवार इस रिश्ते, इस शादी के लिए तैयार नहीं थे पर बच्चों की जिद के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए. वक्त के साथ सबकुछ ठीक होने लगा था पर संकोच की दीवार तब भी उन के आड़े आ ही जाती थी. पिछले साल समर के पापा को जब कोरोना हुआ था तो अपूर्वा की मां दोनों वक्त  फोन कर के साधनाजी को सांत्वना देतीं. अपूर्वा के पापा ने भी समर का हर कदम पर साथ दिया. कभीकभी जब वह निराशा से टूटने लगता तो वह उस की हिम्मत बन कर खड़े हो जाते.समर के लाख मना करने पर भी उन्होंने अपूर्वा के अकाउंट में यह कर पैसे डाल दिए,”बेटा, सबकुछ तुम लोगों का ही है, आज वक्त पर यह पैसे न काम आए तो फिर उन के होने का क्या फायदा…”

समर ने उन के आगे हथियार डाल दिए, जानता था पापाजी के पास इस पैंशन के पैसे के अलावा धन आने का कोई जरीया नहीं था…कमाने को तो वे दोनों भी कमा ही रहे थे पर लौकडाउन के चलते तनख्वाह 50% कट कर मिल रही थी. समर के पापा के इलाज में पैसा पानी की तरह बह रहा था, पैसे की जरूरत तो समर को वाकई में बहुत थी पर वो उन से मांग वह अपूर्वा की नजरों में छोटा नहीं होना चाहता था. उस ने दोस्तों से पैसे का जुगाड़ करने की कोशिश की पर सब के हालात एकजैसे ही थे.

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लेखिक डा. रंजना जायसवाल

“कितनी बार समझाया था तुझे इकलौती लड़की से शादी मत कर पर तुझ पर तो प्यार का भूत सवार था. न आगे नाथ न पीछे पगहा… मांबाप के मरने के बाद तेरी ससुराल भी खत्म हो जाएगी…सुखदुख में खड़ा होने वाला भी कोई न रह जाएगा. हम कोई जिंदगीभर जिंदा थोड़ी बैठे रहेंगे.”

“मां, कैसी बात करती हो, मैं भी तो इकलौता ही हूं.””तेरी बात अलग है, तू लड़का है. अपूर्वा को देख अपने साथ दहेज में कुछ भी न लाई पर मांबाप की जिम्मेदारी जरूर ले आई.”

“मां, ऐसा न कहो, यह बात तो हम पहले दिन से जानते थे. वैसे भी अपूर्वा से शादी का निर्णय मेरा था फिर दानदहेज की बात कहां से आ गई. अपूर्वा ने शादी के पहले ही मुझे स्पष्ट शब्दों में यह बात कह दी थी.शादी के बाद उस के मातापिता की जिम्मेदारी वही उठाएगी.”

साधनाजी का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. समर की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वह उन की तरफ नजर उठा कर देखे.”वाह रे जमाना, हमारे जमाने में लड़की के मांबाप बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते थे और यह साहब अपने ससुर को यहां लाने को सोच रहे हैं. क्या कहेंगे लोग…”

“मां, लोगों की मैं परवाह नहीं करता. जब पापा बीमार पड़े थे तो अपूर्वा के पापा ने कितनी मदद की थी भूला नहीं हूं मैं… जिन लोगों की आप बात कर रही हैं वे तो झांकने भी नहीं आए थे. मां, जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे हर बात के भी तीन पहलू होते है आप का, उन का और सच. कभी सुनीसुनाई बात पर भरोसा मत कीजिए.”

“आ गए ससुराल के वकील बन कर…” “मां, वकील बनने की बात नहीं है, उन का हमारे सिवा है ही कौन? आप ही बताइए इस उम्र में वे भला कहां जाएंगे.” “भाड़ में जाओ तुम…लोगों को कुल्हाड़ी पैर पर मारते देखा था पर जब कोई पैर ही कुल्हाड़ी पर मारने को आतुर हो तो उस को क्या कहना और क्या समझाना.”

अपूर्वा 1 महीने से यह नाटक देख रही थी. कोरोना महामारी ने उस की मां को लील लिया था. अजयजी इस भरी दुनिया में बिलकुल अकेले पड़ गये थे. फोन पर वे कुछ भी न कह पाते पर उन की आवाज में उन का अकेलापन उसे महसूस हो जाता था.इस मशीनी युग में इंसान वैसे भी कितना अकेला था, ऊपर से इस महामारी ने इंसान को बिलकुल ही अकेला कर दिया था. साधनाजी दिल की बुरी नहीं थीं, पिछले साल कोरोना की वजह से उन्होंने अपने पति को खो दिया था. बस तभी से एक अजीब सी झुंझलाहट उन के व्यवहार में आ गई थी. उन्हें हमेशा यही लगता था कि शायद उन की सेवा, उन के देखरेख में कहीं कुछ कमी रह गई थी शायद इसलिए वे…साधनाजी का दर्द समर और अपूर्वा अच्छी तरह से समझते थे. आखिर उन्होंने भी तो अपने पिता को खोया था.

इंसान की जवानी घरपरिवार की जिम्मेदारियों में ही गुजर जाती है पर बुढ़ापा जब एकदूसरे के साथ की सब से ज्यादा जरूरत होती है, उस में से कोई एक हाथ छुड़ा कर चला जाए तो जीवन पहाड़ की तरह लगने लगता है. साधनाजी इन दिनों उसी दौर से गुजर रही थीं.

अपूर्वा जानती थी की यह सब इतना आसान नहीं था पर…बात सिर्फ मम्मीजी की नहीं थी, पापा को समझाना क्या इतना आसान था?

अपूर्वा और समर ने प्रेमविवाह किया था, दोनों ही परिवार इस रिश्ते, इस शादी के लिए तैयार नहीं थे पर बच्चों की जिद के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए. वक्त के साथ सबकुछ ठीक होने लगा था पर संकोच की दीवार तब भी उन के आड़े आ ही जाती थी. पिछले साल समर के पापा को जब कोरोना हुआ था तो अपूर्वा की मां दोनों वक्त  फोन कर के साधनाजी को सांत्वना देतीं. अपूर्वा के पापा ने भी समर का हर कदम पर साथ दिया. कभीकभी जब वह निराशा से टूटने लगता तो वह उस की हिम्मत बन कर खड़े हो जाते.समर के लाख मना करने पर भी उन्होंने अपूर्वा के अकाउंट में यह कर पैसे डाल दिए,”बेटा, सबकुछ तुम लोगों का ही है, आज वक्त पर यह पैसे न काम आए तो फिर उन के होने का क्या फायदा…”

समर ने उन के आगे हथियार डाल दिए, जानता था पापाजी के पास इस पैंशन के पैसे के अलावा धन आने का कोई जरीया नहीं था…कमाने को तो वे दोनों भी कमा ही रहे थे पर लौकडाउन के चलते तनख्वाह 50% कट कर मिल रही थी. समर के पापा के इलाज में पैसा पानी की तरह बह रहा था, पैसे की जरूरत तो समर को वाकई में बहुत थी पर वो उन से मांग वह अपूर्वा की नजरों में छोटा नहीं होना चाहता था. उस ने दोस्तों से पैसे का जुगाड़ करने की कोशिश की पर सब के हालात एकजैसे ही थे.

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December 21, 2021 at 10:00AM

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