Wednesday 29 December 2021

अपनी खुशी के लिए- भाग 3: क्या जबरदस्ती की शादी से बच पाई नम्रता?

‘‘चलिए न मांजी. हम तीनों चलेंगे. स्कूल जाने के बाद थोड़ा घूमेंगेफिरेंगे. फिर बाहर ही खापी कर लौट आएंगे,’’ उत्तर खुशी के स्थान पर नम्रता ने दिया.

‘‘क्यों नहीं, मैं तो खुशी से पहले तैयार हो जाऊंगी,’’ पूर्णा देवी ने सहमति जताई.

तरंग ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि उस के परिवार की महिलाएं बिना उस की सहायता के घर से बाहर की खुली हवा में निकलने का साहस करेंगी. पूर्णा देवी ने परिवार में कठोर अनुशासन में दिन बिताए थे. उन के सासससुर ही नहीं उन के पति भी स्त्रियों का स्थान घर की चारदीवारी में ही होने में विश्वास करते थे. उन्होंने यही सोच कर संतोष कर लिया था? कि उन का जीवन तो किसी प्रकार कट गया पर आने वाली पीढ़ी को वे अपनी तरह घुटघुट कर नहीं जीने देंगी. पर केवल सोच लेने से क्या होता है? वे नम्रता के हंसमुख और जिंदादिल स्वभाव से ही प्रभावित हुई थीं पर विवाह के बाद तिलतिल कर बुझने लगी थी नम्रता. यों घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. तरंग की अच्छीभली नौकरी थी. उन के पति श्रीराम का फलताफूलता व्यवसाय था. पर तरंग ने अपने पिता के आचारविचार और स्वभाव विरासत में पाया था.

वह स्वयं रंगरलियां मनाने को स्वतंत्र था पर नम्रता पर कड़ा पहरा था. उस का खिड़की से बाहर झांकना तक तरंग को पसंद नहीं था. नम्रता को हर बात पर नीचा दिखाना, जलीकटी सुनाना, क्रोध में बरतन, प्लेटें आदि उठा कर फेंक देना, उस के स्वभाव के अभिन्न अंग थे. ऐसे में नम्रता अपने ही संसार में सिमट कर रह गई थी.

‘‘दादीमां, सो गईं क्या?’’ उन की विचारशृंखला शायद इसी तरह चलती रहती कि खुशी के स्वर ने उन्हें झकझोर कर जगा दिया.

‘‘मेरा स्कूल आ गया दादीमां,’’ खुशी बोली.

‘‘तेरा स्कूल नहीं आया बुद्धू. हम तेरे स्कूल आ गए,’’ पूर्णा देवी ने हंसते हुए कहा.

‘‘देखा मम्मी, दादीमां मुझे बुद्धू कह रही हैं,’’ खुशी हंसते हुए बोली. फिर मां और दादीमां का हाथ थामे अपनी कक्षा की ओर खींच ले गई.

‘‘शीरी मैम, मेरी मम्मी और मेरी दादीमां,’’ खुशी ने प्रसन्नता से अपनी टीचर से दोनों का परिचय कराया.

‘‘आप को पहली बार देखा है मैं ने. आप तो कभी आती ही नहीं. कभी मन नहीं होता हम लोगों से मिलने का?’’ शीरी मैम ने उलाहना दिया.

‘‘जी आगे आया करूंगी,’’ नम्रता ने उत्तर दिया.

‘‘हम लोग तो अभिभावकों और बच्चों के बीच मेलजोल को प्रोत्साहित करते हैं. बहुत से बच्चों की मांएं शनिवार को बच्चों को कहानियां सुनाती हैं, गेम्स खिलाती हैं, क्राफ्ट सिखाती हैं. चाहें तो आप भी अपनी रुचि के अनुसार बच्चों को कोई भी हुनरसिखा सकती हैं.’’

‘‘मेरी दादीमां को बहुत सी कहानियां आती हैं और मेरी मम्मी तो इतनी होशियार हैं कि पूछो ही मत,’’ खुशी अब भी जोश में थी.

‘‘हम तो अवश्य पूछेंगे,’’ शीरी मैम मुसकराईं.

तभी खुशी शीरी मैम के कान में कुछ कहने लगी.

‘‘हां देख लिया, तुम्हारी मम्मी तो वाकई बहुत सुंदर हैं,’’ शीरी मैम ने खुशी की हां में हां मिलाई.

‘‘बहुत नटखट हो गई है कुछ भी बोलती रहती है,’’ नम्रता शरमा गई.

‘‘सुंदर को सुंदर नहीं तो और क्या कहेगी खुशी. आप की बेटी बहुत प्यारी और होशियार है. पर किसी शनिवार को आइए न. बच्चों को कुछ भी सिखाइए या केवल उन्हें गीत सुनाइए, बातचीत कीजिए. इस से बच्चे का व्यक्तित्व विकसित होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है. सदा चहकती रहने वाली खुशी शनिवार को अलगथलग उदास सी बैठी रहती है,’’ शीरी मैम ने पुन: याद दिलाया.

‘‘मैं भविष्य में याद रखूंगी. खुशी की खुशी में ही मेरी खुशी है,’’ नम्रता ने आश्वासन दिया.

स्कूल से निकल कर नम्रता खुशी को एक बड़े से मौल में ले गई. वहां बच्चों के लिए अनेक प्रकार के गेम्स थे, जिन का आनंद लेने के लिए वहां बच्चों की भीड़ लगी थी. खुशी के साथ ही पूर्णा देवी और नम्रता ने भी उन का भरपूर आनंद लिया. दिन भर मस्ती कर के और खापी कर जब तीनों घर पहुंचीं तो थक कर चूर हो गई थीं, अत: शीघ्र ही निद्रा देवी की गोद में समा गईं. घंटी की आवाज सुन कर नम्रता हड़बड़ा कर उठी. घड़ी में 6 बज रहे थे. द्वार खोला तो तरंग सामने खड़ा था.

‘‘सो रही थीं?’’

‘‘हां,’’ नम्रता बोली.

‘‘खुशी और मां भी सो रही हैं?’’ पूछते हुए तरंग अंदर आ गया. फिर गुस्से से बोला, ‘‘जमाना कहां से कहां पहुंच गया पर तुम सब तो बस अपनी नींद में डूबे रहो. क्या कह कर गया था मैं? यही न कि नंदिनी को फोन कर लेना और कल के व्यवहार के लिए क्षमा मांग लेना तो वह खुशी को स्कूल ले जाएगी. पर नहीं, तुम अपनी ही ऐंठ में हो. तुम ने कुछ नहीं किया, चाहे बच्ची का भविष्य चौपट हो जाए.’’

‘‘हम ने फोन नहीं किया तो क्या हुआ? आप ने तो नंदिनी को फोन किया ही होगा?’’ नम्रता ने सहज भाव से पूछा.

‘‘प्रश्न पूछ रही हो या ताना मार रही हो?’’ तरंग क्रोधित हो उठा.

‘‘मैं तो दोनों में से कुछ भी नहीं कर रही. मैं तो केवल जानना चाह रही थी.’’

‘‘तो जान लो मैं ने नंदिनी को यह जानने के लिए फोन किया था कि वह खुशी के स्कूल गई या नहीं तो पता चला कि तुम ने उसे फोन तक नहीं किया क्षमा मांगने की कौन कहे. एक बात तो साफ हो गई कि तुम्हें खुशी की कोई चिंता नहीं है.’’

‘‘खुशी की चिंता है इसीलिए नंदिनी को फोन नहीं किया तरंग. यह भी जान लो कि अजनबियों के सामने मेरी घिग्घी नहीं बंधती. मैं और मांजी खुशी के स्कूल गए थे और सच मानो कि खुशी को इतना खुश मैं ने पहले कभी नहीं देखा,’’ नम्रता हर एक शब्द पर जोर दे कर बोली.

‘‘ओह, तो अब तुम्हारे मुंह में भी जबान आ गई है. तुम यह भी भूल गईं कि नंदिनी तुम्हारी बहन है.’’

‘‘तरंग, चाहे बहन हो या पति, अन्याय का प्रतिकार करने का अधिकार तो मेरे पास होना ही चाहिए. मैं अब तक चुप थी पर अब मैं लड़ूंगी अपने लिए नहीं अपनी बेटी खुशी के लिए.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ हूं बेटी,’’ पूर्णा देवी जो अब तक चुप खड़ी थीं धीमे स्वर में बोलीं.

‘‘मां, तुम भी?’’ तरंग चौंक कर बोला.

‘‘क्या कहूं बेटे, जीवन भर अन्याय सहती रही मैं. पर अब लगता है समय बदल गया है. नम्रता के साथ मैं भी लड़ूंगी अपनी खुशी के लिए,’’ पूर्णा देवी धीमे पर दृढ़ स्वर में बोलीं. नम्रता बढ़ कर पूर्णा देवी के गले से लग गई. उस की आंखों में आभार के आंसू थे.

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‘‘चलिए न मांजी. हम तीनों चलेंगे. स्कूल जाने के बाद थोड़ा घूमेंगेफिरेंगे. फिर बाहर ही खापी कर लौट आएंगे,’’ उत्तर खुशी के स्थान पर नम्रता ने दिया.

‘‘क्यों नहीं, मैं तो खुशी से पहले तैयार हो जाऊंगी,’’ पूर्णा देवी ने सहमति जताई.

तरंग ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि उस के परिवार की महिलाएं बिना उस की सहायता के घर से बाहर की खुली हवा में निकलने का साहस करेंगी. पूर्णा देवी ने परिवार में कठोर अनुशासन में दिन बिताए थे. उन के सासससुर ही नहीं उन के पति भी स्त्रियों का स्थान घर की चारदीवारी में ही होने में विश्वास करते थे. उन्होंने यही सोच कर संतोष कर लिया था? कि उन का जीवन तो किसी प्रकार कट गया पर आने वाली पीढ़ी को वे अपनी तरह घुटघुट कर नहीं जीने देंगी. पर केवल सोच लेने से क्या होता है? वे नम्रता के हंसमुख और जिंदादिल स्वभाव से ही प्रभावित हुई थीं पर विवाह के बाद तिलतिल कर बुझने लगी थी नम्रता. यों घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. तरंग की अच्छीभली नौकरी थी. उन के पति श्रीराम का फलताफूलता व्यवसाय था. पर तरंग ने अपने पिता के आचारविचार और स्वभाव विरासत में पाया था.

वह स्वयं रंगरलियां मनाने को स्वतंत्र था पर नम्रता पर कड़ा पहरा था. उस का खिड़की से बाहर झांकना तक तरंग को पसंद नहीं था. नम्रता को हर बात पर नीचा दिखाना, जलीकटी सुनाना, क्रोध में बरतन, प्लेटें आदि उठा कर फेंक देना, उस के स्वभाव के अभिन्न अंग थे. ऐसे में नम्रता अपने ही संसार में सिमट कर रह गई थी.

‘‘दादीमां, सो गईं क्या?’’ उन की विचारशृंखला शायद इसी तरह चलती रहती कि खुशी के स्वर ने उन्हें झकझोर कर जगा दिया.

‘‘मेरा स्कूल आ गया दादीमां,’’ खुशी बोली.

‘‘तेरा स्कूल नहीं आया बुद्धू. हम तेरे स्कूल आ गए,’’ पूर्णा देवी ने हंसते हुए कहा.

‘‘देखा मम्मी, दादीमां मुझे बुद्धू कह रही हैं,’’ खुशी हंसते हुए बोली. फिर मां और दादीमां का हाथ थामे अपनी कक्षा की ओर खींच ले गई.

‘‘शीरी मैम, मेरी मम्मी और मेरी दादीमां,’’ खुशी ने प्रसन्नता से अपनी टीचर से दोनों का परिचय कराया.

‘‘आप को पहली बार देखा है मैं ने. आप तो कभी आती ही नहीं. कभी मन नहीं होता हम लोगों से मिलने का?’’ शीरी मैम ने उलाहना दिया.

‘‘जी आगे आया करूंगी,’’ नम्रता ने उत्तर दिया.

‘‘हम लोग तो अभिभावकों और बच्चों के बीच मेलजोल को प्रोत्साहित करते हैं. बहुत से बच्चों की मांएं शनिवार को बच्चों को कहानियां सुनाती हैं, गेम्स खिलाती हैं, क्राफ्ट सिखाती हैं. चाहें तो आप भी अपनी रुचि के अनुसार बच्चों को कोई भी हुनरसिखा सकती हैं.’’

‘‘मेरी दादीमां को बहुत सी कहानियां आती हैं और मेरी मम्मी तो इतनी होशियार हैं कि पूछो ही मत,’’ खुशी अब भी जोश में थी.

‘‘हम तो अवश्य पूछेंगे,’’ शीरी मैम मुसकराईं.

तभी खुशी शीरी मैम के कान में कुछ कहने लगी.

‘‘हां देख लिया, तुम्हारी मम्मी तो वाकई बहुत सुंदर हैं,’’ शीरी मैम ने खुशी की हां में हां मिलाई.

‘‘बहुत नटखट हो गई है कुछ भी बोलती रहती है,’’ नम्रता शरमा गई.

‘‘सुंदर को सुंदर नहीं तो और क्या कहेगी खुशी. आप की बेटी बहुत प्यारी और होशियार है. पर किसी शनिवार को आइए न. बच्चों को कुछ भी सिखाइए या केवल उन्हें गीत सुनाइए, बातचीत कीजिए. इस से बच्चे का व्यक्तित्व विकसित होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है. सदा चहकती रहने वाली खुशी शनिवार को अलगथलग उदास सी बैठी रहती है,’’ शीरी मैम ने पुन: याद दिलाया.

‘‘मैं भविष्य में याद रखूंगी. खुशी की खुशी में ही मेरी खुशी है,’’ नम्रता ने आश्वासन दिया.

स्कूल से निकल कर नम्रता खुशी को एक बड़े से मौल में ले गई. वहां बच्चों के लिए अनेक प्रकार के गेम्स थे, जिन का आनंद लेने के लिए वहां बच्चों की भीड़ लगी थी. खुशी के साथ ही पूर्णा देवी और नम्रता ने भी उन का भरपूर आनंद लिया. दिन भर मस्ती कर के और खापी कर जब तीनों घर पहुंचीं तो थक कर चूर हो गई थीं, अत: शीघ्र ही निद्रा देवी की गोद में समा गईं. घंटी की आवाज सुन कर नम्रता हड़बड़ा कर उठी. घड़ी में 6 बज रहे थे. द्वार खोला तो तरंग सामने खड़ा था.

‘‘सो रही थीं?’’

‘‘हां,’’ नम्रता बोली.

‘‘खुशी और मां भी सो रही हैं?’’ पूछते हुए तरंग अंदर आ गया. फिर गुस्से से बोला, ‘‘जमाना कहां से कहां पहुंच गया पर तुम सब तो बस अपनी नींद में डूबे रहो. क्या कह कर गया था मैं? यही न कि नंदिनी को फोन कर लेना और कल के व्यवहार के लिए क्षमा मांग लेना तो वह खुशी को स्कूल ले जाएगी. पर नहीं, तुम अपनी ही ऐंठ में हो. तुम ने कुछ नहीं किया, चाहे बच्ची का भविष्य चौपट हो जाए.’’

‘‘हम ने फोन नहीं किया तो क्या हुआ? आप ने तो नंदिनी को फोन किया ही होगा?’’ नम्रता ने सहज भाव से पूछा.

‘‘प्रश्न पूछ रही हो या ताना मार रही हो?’’ तरंग क्रोधित हो उठा.

‘‘मैं तो दोनों में से कुछ भी नहीं कर रही. मैं तो केवल जानना चाह रही थी.’’

‘‘तो जान लो मैं ने नंदिनी को यह जानने के लिए फोन किया था कि वह खुशी के स्कूल गई या नहीं तो पता चला कि तुम ने उसे फोन तक नहीं किया क्षमा मांगने की कौन कहे. एक बात तो साफ हो गई कि तुम्हें खुशी की कोई चिंता नहीं है.’’

‘‘खुशी की चिंता है इसीलिए नंदिनी को फोन नहीं किया तरंग. यह भी जान लो कि अजनबियों के सामने मेरी घिग्घी नहीं बंधती. मैं और मांजी खुशी के स्कूल गए थे और सच मानो कि खुशी को इतना खुश मैं ने पहले कभी नहीं देखा,’’ नम्रता हर एक शब्द पर जोर दे कर बोली.

‘‘ओह, तो अब तुम्हारे मुंह में भी जबान आ गई है. तुम यह भी भूल गईं कि नंदिनी तुम्हारी बहन है.’’

‘‘तरंग, चाहे बहन हो या पति, अन्याय का प्रतिकार करने का अधिकार तो मेरे पास होना ही चाहिए. मैं अब तक चुप थी पर अब मैं लड़ूंगी अपने लिए नहीं अपनी बेटी खुशी के लिए.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ हूं बेटी,’’ पूर्णा देवी जो अब तक चुप खड़ी थीं धीमे स्वर में बोलीं.

‘‘मां, तुम भी?’’ तरंग चौंक कर बोला.

‘‘क्या कहूं बेटे, जीवन भर अन्याय सहती रही मैं. पर अब लगता है समय बदल गया है. नम्रता के साथ मैं भी लड़ूंगी अपनी खुशी के लिए,’’ पूर्णा देवी धीमे पर दृढ़ स्वर में बोलीं. नम्रता बढ़ कर पूर्णा देवी के गले से लग गई. उस की आंखों में आभार के आंसू थे.

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December 28, 2021 at 12:30PM

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