Tuesday 28 December 2021

गर्ल टौक: आंचल खुद रोहिणी की कैसे बन गई दोस्त

एक दिन साहिल के सैलफोन की घंटी बजने पर जब आंचल ने उस के स्क्रीन पर रोहिणी का नाम देखा तो उस के माथे पर त्योरियां चढ़ गईं.

रोहिणी के महफिल में कदम रखते ही संगीसाथी जो अपने दोस्त साहिल की शादी में नाच रहे थे, के कदम वहीं के वहीं रुक गए. सभी रोहिणी के बदले रूप को देखने लगे.

‘‘रोहिणी… तू ही है न?’’ मोहन की आंखों के साथसाथ उस का मुंह भी खुला का खुला रह गया.

वरमाला होने को थी, दूल्हादुलहन स्टेज पर आ चुके थे. दोस्त स्टेज के सामने मस्ती से नाच रहे थे. तभी रोहिणी के आते ही सारी महफिल का ध्यान उस की तरफ खिंच गया. यह तो होना ही था. वह लड़की जो कभी लड़कों का पर्यायवाची समझी जाती थी, आज बला की खूबसूरत लग रही थी. गोल्डन बौर्डर की हलकीपीली साड़ी पहने, खुले घुंघराले केशों और सुंदर गहनों से लदीफंदी रोहिणी आज परियों को भी मात दे रही थी. रोहिणी को इस रूप में कालेज के किसी भी दोस्त ने आज तक नहीं देखा था.

‘‘अरे यार, पहले पूछ ले कहीं कोई और न हो,’’ मनीष ने मोहन के साथ मिल कर ठिठोली की.

‘‘पूछने की कोई जरूरत नहीं. हूं मैं ही. मैं ने सोचा कि आज साहिल को दिखा दूं कि उस ने क्या खोया है,’’ रोहिणी स्टेज पर चढ़ते हुए बोली.

‘‘पर अब तो लेट हो गई. अब क्या फायदा जब साहिल दूल्हा बन चुका,’’ मोहन के कहते ही सब हंसने लगे.

हंसीखिंचाई के इस माहौल में आंचल गंभीर थी. दुलहन बनी बैठे होने के कारण वह कुछ कह नहीं सकती थी और फिर साहिल को जानती भी कहां थी वह. यह रिश्ता मातापिता ने ढूंढ़ा था. मेरठ के पास एक छोटे से कसबे की लड़की को दिल्ली में रहने वाला अच्छा वर मिला तो सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था. आननफानन उस की शादी तय कर दी गई थी. लेकिन आज ये सब बातें सुन कर उस का दिल बैठा जा रहा था कि कहीं गलती तो नहीं कर बैठी वह… यह लड़की खुलेआम सब के सामने क्या कुछ कह रही है और सब हंस रहे हैं. साहिल भी कुछ नहीं कह रहे. ऐसी बातें क्या लड़कियों को शोभा देती हैं? साड़ी पहन लेने से संस्कार नहीं आ जाते. इन्हीं सब विचारों में उलझती आंचल ने धीरे से आंखें उठा कर साहिल की ओर देखा.

‘‘अरे यार रोहिणी, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई है, अभी से लड़ाई करवाएगी क्या?’’ आंचल की आंखों के भाव शायद साहिल को समझ आ गए थे.

शादी कर के आंचल दिल्ली आ गई. कुछ दिन उसे नई गृहस्थी में बसाने हेतु उस की सास साथ रहीं. ससुरजी की नौकरी जामनगर में थी, इसलिए घरगृहस्थी बस जाने पर सास को वहीं लौटना था. कुछ ही दिनों में आंचल तथा उस की सास में मधुर रिश्ता बन गया. वह बहुत खुश थी. दिल्ली में अच्छा मकान, सारी सुखसुविधाएं, साजसज्जा, सास से मधुर संबंध, पति के प्यार में पूरी तरह सराबोर. उस ने कभी सोचा भी न था कि उस की शादीशुदा जिंदगी की इतनी खुशहाल शुरुआत होगी. अपने मायके फोन कर के वह यहां की तारीफों के पुल बांधती रहती. खाना बनाना, घर को सलीके से रखना, पहननेओढ़ने की तहजीब व बातचीत में माधुर्य, इन सभी गुणों से उस ने भी अपनी सास तथा साहिल का मन जल्द ही मोह लिया.

‘‘मम्मी फिर, जल्दी आना, ’’ सास के पांव छूते हुए उस ने कहा.

‘‘आंचल, मैं मम्मी को स्टेशन छोड़ कर आता हूं,’’ कहते हुए साहिल व उस की मां कार में सवार हो निकल गए.

आज पहली बार आंचल घर पर अकेली थी. वह गुनगुनाती हुई अपने घर को संवारने लगी. तभी फोन की घंटी बजी तो उस ने ध्यान दिया कि साहिल अपना सैलफोन घर पर ही भूल गए हैं. साहिल के फोन की स्क्रीन पर रोहिणी का नाम पढ़ वह सोचने लगी कि यह तो उसी लड़की का नाम है फोन उठाऊं या नहीं? माथे पर त्योरियां चढ़ गईं. फिर आंचल ने फोन उठा लिया, किंतु हैलो नहीं कहा. वह सुनना चाहती थी कि रोहिणी कैसे पुकारती है साहिल को.

‘‘हैलो डियर, व्हाट्स अप?’’ रोहिणी की आवाज में गर्मजोशी थी, ‘‘खो ही गए तुम तो शादी के बाद.’’

‘‘साहिल तो घर पर नहीं हैं,’’ आंचल ने रूखा सा जवाब दिया.

‘‘ओह, तुम आंचल हो न? तुम मुझे नहीं पहचान पाओगी, सिर्फ शादी में मुलाकात हुई थी और शादी में इतने नए चेहरे मिलते हैं कि याद रखना मुमकिन नहीं,’’ रोहिणी की आवाज में अभी भी गर्मजोशी थी.

आंचल ने रोहिणी की बातों का कोई उत्तर न दिया, ‘‘कोई काम था आप को मेरे पति से?’’

मेरे पति से के संबोधन पर रोहिणी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, साहिल से नहीं, आंटी से बात करनी थी.’’

‘‘वे जामनगर जा चुकी हैं. क्या बात करनी थी, मुझे बता दीजिए,’’ आंचल का स्वर अब भी रूखा था.

‘‘कुछ खास काम नहीं, बस ऐसे ही…’’ कह रोहिणी चुप हो गई. आंचल का बात करने का ढंग उसे अटपटा लगा. लग रहा था मानो वह रोहिणी से बात करना नहीं चाह रही.

‘‘ठीक है,’’ कह आंचल ने फोन काट दिया. उस का मन उदास हो गया. साहिल तो दोस्त हैं पर यह लड़की तो उस की सास से भी बातचीत करती है. क्या पता कब से करती हो. उस के शहर में लड़के और लड़की के बीच इस तरह की दोस्ती के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. और अब जबकि उन की शादी हो चुकी है तब क्या मतलब है इस दोस्ती का?

साहिल के लौट आने पर आंचल ने उसे रोहिणी के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया. सोचा जब कोई जरूरी काम या बात नहीं है तो क्या बताना.

आंचल को उदास देख साहिल ने मजाक किया, ‘‘क्या बात है, अभी से सास की याद सताने लगी?’’

फीकी सी हंसी से आंचल ने बात टाल दी कि कैसे पूछे साहिल से कुछ? रात भर अजीबअजीब विचार आते रहे, कुछ खुली आंखों से तो कुछ सपने बन कर. कैसे हल करे आंचल अपने मन की उलझन. न तो मायके में और न ही ससुराल में वह यह बात किसी से कर सकती थी.

जीवन यथावत चलने लगा. साहिल सुबह से देर शाम तक औफिस में रहता और आंचल घर में मगन रहती. उसे इसी जिंदगी का इंतजार था. अब अपनी मनपसंद जिंदगी पा कर वह बहुत खुश थी. एक शाम घर लौट कर साहिल ने कहा, ‘‘आंचल, मैं रोहिणी को खाने पर बुलाना चाहता हूं, मैं चाहता हूं उसे तुम्हारे हाथों का लजीज खाना खिलाऊं. इस रविवार को बुलाया है मैं ने उसे. क्याक्या बनाओगी?’’

‘‘आप ने मुझे बता दिया है तो कुछ अच्छा ही बनाऊंगी. आप फिक्र मत कीजिए,’’ आंचल ने साहिल को तो आश्वस्त कर दिया, किंतु स्वयं चिंताग्रस्त हो गई.

रविवार को रोहिणी का रूप उस की शादी के दिन से बिलकुल विपरीत था. जींसटौप, कसे केश… आज रोहिणी के नैननक्श पर गौर किया था आंचल ने. वह वाकई खूबसूरत थी. साहिल के दरवाजा खोलते ही रोहिणी उस के गले लगी. यह कैसी दोस्ती है भला. आंचल को यह बात एकदम नागवार गुजरी. अचानक वह जा कर साहिल की बांह में बांह डाल खड़ी हो गई. लेकिन उस की इस हरकत से साहिल अचकचा गया. धीरे से बोला, ‘‘अ… चायनाश्ता ले आओ.’’

‘हुंह, दोस्त गले लग सकती है, लेकिन बीवी बांह में बांह नहीं डाल सकती,’ मन ही मन बड़बड़ाती आंचल किचन में चली गई.

बेहद फुरती के साथ उस ने सारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया. वह साहिल और रोहिणी को कम से कम समय एकसाथ अकेले में गुजारने देना चाहती थी. वे दोनों सोफे पर आमनेसामने बैठे थे.

साहिल के पीछे से आ कर आंचल ने इस बार साहिल के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना तैयार है.’’साहिल फिर अचकचा गया. आंचल का अचानक ऐसा व्यवहार… वह तो हमेशा छुईमुई सी, शरमाई सी रहती थी और आज रोहिणी के सामने उसे क्या हो गया है.

खाना खाते हुए रोहिणी ने आंचल के खाने की तारीफ की.

‘‘थैंक्यू. मैं तो रोज ही इन के लिए अच्छे से अच्छा खाना पकाती हूं. बहुत प्यार करती हूं इन से और अगर किसी ने इन के और मेरे बीच आने की सोची भी तो मैं… मैं उसे…’’

‘‘अरे, यह क्या बोल रही हो?’’ साहिल ने आंचल की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘रोहिणी क्या कह रही है और तुम क्या समझ रही हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि आप मुझे इस तरह…’’

आंचल अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही रोहिणी ने बीचबचाव करते हुए कहा, ‘‘क्या साहिल, तुम भी न… ये कोई तरीका है नईनवेली दुलहन से बात करने का. एक तो उस ने इतना लजीज खाना बनाया है और तुम…’’

आंचल ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘इन्होंने जो कुछ कहा वह अपनी पत्नी से कहा और इन्हें पूरा हक है. आप बीच में न ही पड़ें,’’ फिर धीरे से बड़बड़ाई, ‘‘अच्छी तरह समझती हूं मैं, पहले आग लगाओ फिर बुझाने का नाटक.’’

रोहिणी चुप हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि आंचल उस से इस तरह बेरुखी से व्यवहार क्यों कर रही है. वह तो उन के घर साहिल के साथसाथ आंचल से भी दोस्ती करने आई थी.

‘‘अरे, मूड क्यों खराब करती हो, आंचल, जाओ, खाना तो हो गया अब कुछ मीठा नहीं खिलाओगी रोहिणी को?’’ साहिल ने एक बार फिर माहौल को खुशगवार बनाने का प्रयास किया. किंतु आंचल और रोहिणी दोनों ही उदास थीं. आंचल मुंह बिचकाए अंदर चली गई. रोहिणी हाथ धोने के बहाने वहां से उठ कर बाथरूम में चली गई. वहां एकांत में वह सोचने लगी कि आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है जो आंचल को इतनी बुरी लगी. हर नईनवेली को कुछ समय लगता है नए वातावरण, नए लोगों से तालमेल बैठाने में. हर लड़की अलग ढंग से पलीबढ़ी होती है. नए परिवार के नए रंगढंग में रचनेबसने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न. आखिर आंचल को नए घर में आए दिन ही कितने हुए हैं. अभीअभी उस ने गृहस्थी संभाली है और खुद न्योतों पर जाने की जगह वही दूसरों को भोज करा रही है.

अचानक उस के मन में खयाल आया कि आंचल कहीं मेरे और साहिल के संबंध पर शक तो नहीं कर रही? आखिर वह एक ऐसे वातावरण से आई है जहां लड़कों और लड़कियों के बीच बराबरी की दोस्ती देखने को नहीं मिलती. ऐसे में रोहिणी का खुला व्यवहार कहीं आंचल को अटपटा तो नहीं लग रहा?

मीठे में आंचल ने खीर परोसी. आंचल का उतरा मुंह ठीक करने के लिए रोहिणी ने एक और कोशिश की, ‘‘वाह, कितनी स्वादिष्ठ खीर बनाई है. आंचल, प्लीज मुझे भी सिखाओ न ऐसा खाना बनाना.’’

‘‘क्यों? मैं क्यों सिखाऊं ताकि आप रोजरोज मेरी गृहस्थी में दाखिल होती रहें?’’

आंचल का यह जवाब साहिल को बिलकुल पसंद नहीं आया और उस ने आंचल को डपट दिया, ‘‘आंचल, यह क्या तरीका है घर आए मेहमान से बात करने का?’’

साहिल की आवाज में कड़ाई सुन आंचल की आंखें डबडबा गईं. कुछ शक की चुभन, कुछ क्रोध की छटपटाहट… वह स्वयं को रोक न पाई और आंसू पोंछती हुई अंदर चली गई.

‘‘पता नहीं आज क्या हो गया है इसे, कैसा अजीब बरताव कर रही है,’’ साहिल आंचल की प्रतिक्रिया पर अभी भी हैरान था. लेकिन आंचल की आंखों के भावों व बेरुखी से रोहिणी की कुछकुछ समझ आ रहा था.

‘‘यदि तुम बुरा न मानो तो मैं आंचल से बात कर सकती हूं क्या?’’ रोहिणी ने साहिल से अनुमति मांगी.

‘‘अ… मैं तो बुरा नहीं मानूंगा पर अगर आंचल ने तुम्हारे साथ कोई बदतमीजी कर दी तो? इसे इस मूड में मैं ने पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘तो मैं भी बुरा नहीं मानूंगी.’’

कमरे में आंचल बिस्तर पर औंधी पड़ी सुबक रही थी. रोहिणी के उस का नाम पुकारने पर वह व्यवस्थित होने लगी.

‘‘तबीयत ठीक नहीं थी तो कह देतीं न,

मैं फिर कभी आ जाती,’’ रोहिणी ने बिलकुल साधारण ढंग से बात शुरू की, ‘‘मैं यहां साहिल से मिलने या खाना खाने नहीं आई थी, बल्कि मैं तो आप से मिलने, आप से गपशप करने आई थी.’’

किंतु आंचल अब भी मुंह फुलाए बैठी थी. रोहिणी की ओर देखना भी उसे गवारा न था.

‘‘देखो न, आप मेरी भाभी जैसी हो. आप को मस्का नहीं मारूंगी तो आप मेरे लिए एक अच्छा सा लड़का कैसे ढूंढ़ोगी भला?’’ कह रोहिणी हंसने लगी, ‘‘साहिल से कोई उम्मीद रखना बेकार है. उसे तो मैं कहकह कर थक गई. वैसे उस की भी गलती नहीं है. उस की दोस्ती तो जैसा वह है वैसे लड़कों से है पर मुझे साहिल जैसा शांत, शरमीला लड़का नहीं चाहिए. मुझे तो अपने जैसा बिंदास और मस्त लड़का चाहिए. अगर है कोई आप की नजर में तो बताओ न.’’

रोहिणी का यह पैतरा काम कर गया. आंचल थोड़ी संभली हुई दिखने लगी. रोहिणी की बातों से उसे कुछ आश्वासन मिल रहा था.

तभी साहिल भी झांकता हुआ कमरे में दाखिल हुआ, ‘‘क्या चल रहा है भई?’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हारे मतलब का कुछ नहीं है यहां पर. यहां गर्ल टौक चल रही है और वह भी बेहद इंट्रैस्टिंग. इसलिए प्लीज, बाहर जाते हुए दरवाजा बंद करते जाना,’’ कह रोहिणी तो हंसी ही, साथ ही आंचल की भी हंसी छूट गई.

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एक दिन साहिल के सैलफोन की घंटी बजने पर जब आंचल ने उस के स्क्रीन पर रोहिणी का नाम देखा तो उस के माथे पर त्योरियां चढ़ गईं.

रोहिणी के महफिल में कदम रखते ही संगीसाथी जो अपने दोस्त साहिल की शादी में नाच रहे थे, के कदम वहीं के वहीं रुक गए. सभी रोहिणी के बदले रूप को देखने लगे.

‘‘रोहिणी… तू ही है न?’’ मोहन की आंखों के साथसाथ उस का मुंह भी खुला का खुला रह गया.

वरमाला होने को थी, दूल्हादुलहन स्टेज पर आ चुके थे. दोस्त स्टेज के सामने मस्ती से नाच रहे थे. तभी रोहिणी के आते ही सारी महफिल का ध्यान उस की तरफ खिंच गया. यह तो होना ही था. वह लड़की जो कभी लड़कों का पर्यायवाची समझी जाती थी, आज बला की खूबसूरत लग रही थी. गोल्डन बौर्डर की हलकीपीली साड़ी पहने, खुले घुंघराले केशों और सुंदर गहनों से लदीफंदी रोहिणी आज परियों को भी मात दे रही थी. रोहिणी को इस रूप में कालेज के किसी भी दोस्त ने आज तक नहीं देखा था.

‘‘अरे यार, पहले पूछ ले कहीं कोई और न हो,’’ मनीष ने मोहन के साथ मिल कर ठिठोली की.

‘‘पूछने की कोई जरूरत नहीं. हूं मैं ही. मैं ने सोचा कि आज साहिल को दिखा दूं कि उस ने क्या खोया है,’’ रोहिणी स्टेज पर चढ़ते हुए बोली.

‘‘पर अब तो लेट हो गई. अब क्या फायदा जब साहिल दूल्हा बन चुका,’’ मोहन के कहते ही सब हंसने लगे.

हंसीखिंचाई के इस माहौल में आंचल गंभीर थी. दुलहन बनी बैठे होने के कारण वह कुछ कह नहीं सकती थी और फिर साहिल को जानती भी कहां थी वह. यह रिश्ता मातापिता ने ढूंढ़ा था. मेरठ के पास एक छोटे से कसबे की लड़की को दिल्ली में रहने वाला अच्छा वर मिला तो सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था. आननफानन उस की शादी तय कर दी गई थी. लेकिन आज ये सब बातें सुन कर उस का दिल बैठा जा रहा था कि कहीं गलती तो नहीं कर बैठी वह… यह लड़की खुलेआम सब के सामने क्या कुछ कह रही है और सब हंस रहे हैं. साहिल भी कुछ नहीं कह रहे. ऐसी बातें क्या लड़कियों को शोभा देती हैं? साड़ी पहन लेने से संस्कार नहीं आ जाते. इन्हीं सब विचारों में उलझती आंचल ने धीरे से आंखें उठा कर साहिल की ओर देखा.

‘‘अरे यार रोहिणी, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई है, अभी से लड़ाई करवाएगी क्या?’’ आंचल की आंखों के भाव शायद साहिल को समझ आ गए थे.

शादी कर के आंचल दिल्ली आ गई. कुछ दिन उसे नई गृहस्थी में बसाने हेतु उस की सास साथ रहीं. ससुरजी की नौकरी जामनगर में थी, इसलिए घरगृहस्थी बस जाने पर सास को वहीं लौटना था. कुछ ही दिनों में आंचल तथा उस की सास में मधुर रिश्ता बन गया. वह बहुत खुश थी. दिल्ली में अच्छा मकान, सारी सुखसुविधाएं, साजसज्जा, सास से मधुर संबंध, पति के प्यार में पूरी तरह सराबोर. उस ने कभी सोचा भी न था कि उस की शादीशुदा जिंदगी की इतनी खुशहाल शुरुआत होगी. अपने मायके फोन कर के वह यहां की तारीफों के पुल बांधती रहती. खाना बनाना, घर को सलीके से रखना, पहननेओढ़ने की तहजीब व बातचीत में माधुर्य, इन सभी गुणों से उस ने भी अपनी सास तथा साहिल का मन जल्द ही मोह लिया.

‘‘मम्मी फिर, जल्दी आना, ’’ सास के पांव छूते हुए उस ने कहा.

‘‘आंचल, मैं मम्मी को स्टेशन छोड़ कर आता हूं,’’ कहते हुए साहिल व उस की मां कार में सवार हो निकल गए.

आज पहली बार आंचल घर पर अकेली थी. वह गुनगुनाती हुई अपने घर को संवारने लगी. तभी फोन की घंटी बजी तो उस ने ध्यान दिया कि साहिल अपना सैलफोन घर पर ही भूल गए हैं. साहिल के फोन की स्क्रीन पर रोहिणी का नाम पढ़ वह सोचने लगी कि यह तो उसी लड़की का नाम है फोन उठाऊं या नहीं? माथे पर त्योरियां चढ़ गईं. फिर आंचल ने फोन उठा लिया, किंतु हैलो नहीं कहा. वह सुनना चाहती थी कि रोहिणी कैसे पुकारती है साहिल को.

‘‘हैलो डियर, व्हाट्स अप?’’ रोहिणी की आवाज में गर्मजोशी थी, ‘‘खो ही गए तुम तो शादी के बाद.’’

‘‘साहिल तो घर पर नहीं हैं,’’ आंचल ने रूखा सा जवाब दिया.

‘‘ओह, तुम आंचल हो न? तुम मुझे नहीं पहचान पाओगी, सिर्फ शादी में मुलाकात हुई थी और शादी में इतने नए चेहरे मिलते हैं कि याद रखना मुमकिन नहीं,’’ रोहिणी की आवाज में अभी भी गर्मजोशी थी.

आंचल ने रोहिणी की बातों का कोई उत्तर न दिया, ‘‘कोई काम था आप को मेरे पति से?’’

मेरे पति से के संबोधन पर रोहिणी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, साहिल से नहीं, आंटी से बात करनी थी.’’

‘‘वे जामनगर जा चुकी हैं. क्या बात करनी थी, मुझे बता दीजिए,’’ आंचल का स्वर अब भी रूखा था.

‘‘कुछ खास काम नहीं, बस ऐसे ही…’’ कह रोहिणी चुप हो गई. आंचल का बात करने का ढंग उसे अटपटा लगा. लग रहा था मानो वह रोहिणी से बात करना नहीं चाह रही.

‘‘ठीक है,’’ कह आंचल ने फोन काट दिया. उस का मन उदास हो गया. साहिल तो दोस्त हैं पर यह लड़की तो उस की सास से भी बातचीत करती है. क्या पता कब से करती हो. उस के शहर में लड़के और लड़की के बीच इस तरह की दोस्ती के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. और अब जबकि उन की शादी हो चुकी है तब क्या मतलब है इस दोस्ती का?

साहिल के लौट आने पर आंचल ने उसे रोहिणी के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया. सोचा जब कोई जरूरी काम या बात नहीं है तो क्या बताना.

आंचल को उदास देख साहिल ने मजाक किया, ‘‘क्या बात है, अभी से सास की याद सताने लगी?’’

फीकी सी हंसी से आंचल ने बात टाल दी कि कैसे पूछे साहिल से कुछ? रात भर अजीबअजीब विचार आते रहे, कुछ खुली आंखों से तो कुछ सपने बन कर. कैसे हल करे आंचल अपने मन की उलझन. न तो मायके में और न ही ससुराल में वह यह बात किसी से कर सकती थी.

जीवन यथावत चलने लगा. साहिल सुबह से देर शाम तक औफिस में रहता और आंचल घर में मगन रहती. उसे इसी जिंदगी का इंतजार था. अब अपनी मनपसंद जिंदगी पा कर वह बहुत खुश थी. एक शाम घर लौट कर साहिल ने कहा, ‘‘आंचल, मैं रोहिणी को खाने पर बुलाना चाहता हूं, मैं चाहता हूं उसे तुम्हारे हाथों का लजीज खाना खिलाऊं. इस रविवार को बुलाया है मैं ने उसे. क्याक्या बनाओगी?’’

‘‘आप ने मुझे बता दिया है तो कुछ अच्छा ही बनाऊंगी. आप फिक्र मत कीजिए,’’ आंचल ने साहिल को तो आश्वस्त कर दिया, किंतु स्वयं चिंताग्रस्त हो गई.

रविवार को रोहिणी का रूप उस की शादी के दिन से बिलकुल विपरीत था. जींसटौप, कसे केश… आज रोहिणी के नैननक्श पर गौर किया था आंचल ने. वह वाकई खूबसूरत थी. साहिल के दरवाजा खोलते ही रोहिणी उस के गले लगी. यह कैसी दोस्ती है भला. आंचल को यह बात एकदम नागवार गुजरी. अचानक वह जा कर साहिल की बांह में बांह डाल खड़ी हो गई. लेकिन उस की इस हरकत से साहिल अचकचा गया. धीरे से बोला, ‘‘अ… चायनाश्ता ले आओ.’’

‘हुंह, दोस्त गले लग सकती है, लेकिन बीवी बांह में बांह नहीं डाल सकती,’ मन ही मन बड़बड़ाती आंचल किचन में चली गई.

बेहद फुरती के साथ उस ने सारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया. वह साहिल और रोहिणी को कम से कम समय एकसाथ अकेले में गुजारने देना चाहती थी. वे दोनों सोफे पर आमनेसामने बैठे थे.

साहिल के पीछे से आ कर आंचल ने इस बार साहिल के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना तैयार है.’’साहिल फिर अचकचा गया. आंचल का अचानक ऐसा व्यवहार… वह तो हमेशा छुईमुई सी, शरमाई सी रहती थी और आज रोहिणी के सामने उसे क्या हो गया है.

खाना खाते हुए रोहिणी ने आंचल के खाने की तारीफ की.

‘‘थैंक्यू. मैं तो रोज ही इन के लिए अच्छे से अच्छा खाना पकाती हूं. बहुत प्यार करती हूं इन से और अगर किसी ने इन के और मेरे बीच आने की सोची भी तो मैं… मैं उसे…’’

‘‘अरे, यह क्या बोल रही हो?’’ साहिल ने आंचल की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘रोहिणी क्या कह रही है और तुम क्या समझ रही हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि आप मुझे इस तरह…’’

आंचल अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही रोहिणी ने बीचबचाव करते हुए कहा, ‘‘क्या साहिल, तुम भी न… ये कोई तरीका है नईनवेली दुलहन से बात करने का. एक तो उस ने इतना लजीज खाना बनाया है और तुम…’’

आंचल ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘इन्होंने जो कुछ कहा वह अपनी पत्नी से कहा और इन्हें पूरा हक है. आप बीच में न ही पड़ें,’’ फिर धीरे से बड़बड़ाई, ‘‘अच्छी तरह समझती हूं मैं, पहले आग लगाओ फिर बुझाने का नाटक.’’

रोहिणी चुप हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि आंचल उस से इस तरह बेरुखी से व्यवहार क्यों कर रही है. वह तो उन के घर साहिल के साथसाथ आंचल से भी दोस्ती करने आई थी.

‘‘अरे, मूड क्यों खराब करती हो, आंचल, जाओ, खाना तो हो गया अब कुछ मीठा नहीं खिलाओगी रोहिणी को?’’ साहिल ने एक बार फिर माहौल को खुशगवार बनाने का प्रयास किया. किंतु आंचल और रोहिणी दोनों ही उदास थीं. आंचल मुंह बिचकाए अंदर चली गई. रोहिणी हाथ धोने के बहाने वहां से उठ कर बाथरूम में चली गई. वहां एकांत में वह सोचने लगी कि आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है जो आंचल को इतनी बुरी लगी. हर नईनवेली को कुछ समय लगता है नए वातावरण, नए लोगों से तालमेल बैठाने में. हर लड़की अलग ढंग से पलीबढ़ी होती है. नए परिवार के नए रंगढंग में रचनेबसने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न. आखिर आंचल को नए घर में आए दिन ही कितने हुए हैं. अभीअभी उस ने गृहस्थी संभाली है और खुद न्योतों पर जाने की जगह वही दूसरों को भोज करा रही है.

अचानक उस के मन में खयाल आया कि आंचल कहीं मेरे और साहिल के संबंध पर शक तो नहीं कर रही? आखिर वह एक ऐसे वातावरण से आई है जहां लड़कों और लड़कियों के बीच बराबरी की दोस्ती देखने को नहीं मिलती. ऐसे में रोहिणी का खुला व्यवहार कहीं आंचल को अटपटा तो नहीं लग रहा?

मीठे में आंचल ने खीर परोसी. आंचल का उतरा मुंह ठीक करने के लिए रोहिणी ने एक और कोशिश की, ‘‘वाह, कितनी स्वादिष्ठ खीर बनाई है. आंचल, प्लीज मुझे भी सिखाओ न ऐसा खाना बनाना.’’

‘‘क्यों? मैं क्यों सिखाऊं ताकि आप रोजरोज मेरी गृहस्थी में दाखिल होती रहें?’’

आंचल का यह जवाब साहिल को बिलकुल पसंद नहीं आया और उस ने आंचल को डपट दिया, ‘‘आंचल, यह क्या तरीका है घर आए मेहमान से बात करने का?’’

साहिल की आवाज में कड़ाई सुन आंचल की आंखें डबडबा गईं. कुछ शक की चुभन, कुछ क्रोध की छटपटाहट… वह स्वयं को रोक न पाई और आंसू पोंछती हुई अंदर चली गई.

‘‘पता नहीं आज क्या हो गया है इसे, कैसा अजीब बरताव कर रही है,’’ साहिल आंचल की प्रतिक्रिया पर अभी भी हैरान था. लेकिन आंचल की आंखों के भावों व बेरुखी से रोहिणी की कुछकुछ समझ आ रहा था.

‘‘यदि तुम बुरा न मानो तो मैं आंचल से बात कर सकती हूं क्या?’’ रोहिणी ने साहिल से अनुमति मांगी.

‘‘अ… मैं तो बुरा नहीं मानूंगा पर अगर आंचल ने तुम्हारे साथ कोई बदतमीजी कर दी तो? इसे इस मूड में मैं ने पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘तो मैं भी बुरा नहीं मानूंगी.’’

कमरे में आंचल बिस्तर पर औंधी पड़ी सुबक रही थी. रोहिणी के उस का नाम पुकारने पर वह व्यवस्थित होने लगी.

‘‘तबीयत ठीक नहीं थी तो कह देतीं न,

मैं फिर कभी आ जाती,’’ रोहिणी ने बिलकुल साधारण ढंग से बात शुरू की, ‘‘मैं यहां साहिल से मिलने या खाना खाने नहीं आई थी, बल्कि मैं तो आप से मिलने, आप से गपशप करने आई थी.’’

किंतु आंचल अब भी मुंह फुलाए बैठी थी. रोहिणी की ओर देखना भी उसे गवारा न था.

‘‘देखो न, आप मेरी भाभी जैसी हो. आप को मस्का नहीं मारूंगी तो आप मेरे लिए एक अच्छा सा लड़का कैसे ढूंढ़ोगी भला?’’ कह रोहिणी हंसने लगी, ‘‘साहिल से कोई उम्मीद रखना बेकार है. उसे तो मैं कहकह कर थक गई. वैसे उस की भी गलती नहीं है. उस की दोस्ती तो जैसा वह है वैसे लड़कों से है पर मुझे साहिल जैसा शांत, शरमीला लड़का नहीं चाहिए. मुझे तो अपने जैसा बिंदास और मस्त लड़का चाहिए. अगर है कोई आप की नजर में तो बताओ न.’’

रोहिणी का यह पैतरा काम कर गया. आंचल थोड़ी संभली हुई दिखने लगी. रोहिणी की बातों से उसे कुछ आश्वासन मिल रहा था.

तभी साहिल भी झांकता हुआ कमरे में दाखिल हुआ, ‘‘क्या चल रहा है भई?’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हारे मतलब का कुछ नहीं है यहां पर. यहां गर्ल टौक चल रही है और वह भी बेहद इंट्रैस्टिंग. इसलिए प्लीज, बाहर जाते हुए दरवाजा बंद करते जाना,’’ कह रोहिणी तो हंसी ही, साथ ही आंचल की भी हंसी छूट गई.

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December 28, 2021 at 10:26AM

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