Writer- साहिना टंडन
इस दौरान रितेश वहां उपस्थित नहीं था. वह सीधा राजन के घर पहुंचा था.
विदाई के बाद राजन के घर में हुई रस्मों में जब देविका ने रितेश को राजन के साथ हंसतेबोलते देखा, तो उस के दिल में एक हूंक सी उठी.
“क्या कोई एहसास नहीं है इसे मेरी भावनाओं का, मेरे
जज्बातों का, क्या कभी भी एक दिन के लिए, एक पल के लिए भी इस ने मुझे नहीं चाहा. मैं ने तो अपना सर्वस्व प्रेम इस पर अर्पित कर देना चाहा था, पर यह इस कदर निष्ठुर क्यों है, क्या मैं इस की जिम्मेदारियां निभाने में सहभागी नहीं बन सकती थी. इस ने मुझे इस काबिल भी नहीं समझा.
“उफ्फ, अगर यह मेरे सामने रहा तो मैं पागल हो जाऊंगी,” देविका और बरदाश्त ना कर सकी. संपूर्ण ब्रह्मांड जैसे उसे घूमता सा लग रहा था. अगले ही पल वह बेहोश हो चुकी थी.
आंखें खुलीं, तो एक सजेधजे कमरे में उस ने खुद को पाया. वह उठी तो चूड़ियों और पायलों की
आवाज से राजन भी जाग गया, जो उस के साथ ही अधलेटी अवस्था में था.
“अब कैसी हो? यह
रिश्तेदार भी ना, यह रस्में, वह रिवाज, ऐसा लगता है जैसे शादी इस जन्म में हुई है और साथ रहना अगले जन्म में नसीब होगा. सारी रस्में निभातेनिभाते तुम तो बेहोश हो गई थी.”
देविका बिलकुल मौन थी.
ये भी पढ़ें- बुड्ढा आशिक : मानसी को क्यों परेशान कर रहे थे प्रोफैसर प्रसाद
“आराम से लेट जाओ. अभी सुबह होने में कुछ वक्त है. मैं लाइट बुझा देता हूं,” राजन ने प्यार से
कहा और लाइट बंद कर कमरे से बाहर चला गया.
सुबह तैयार हो कर देविका सीधे पूनम के पास रसोई में पहुंची.
“कैसी हो तुम? रात को थकावट की वजह से
तुम्हारी तबीयत ही बिगड़ गई थी,” पूनम ने लाड़ से कहा.
“जी, अब ठीक हूं,” देविका ने धीमे से जवाब दिया, “आप यह रहने दीजिए. मैं करती हूं.”
“अभी तो नाश्ता टेबल पर लग चुका है, तो अब बस यह चाय की ट्रे ले चलो.”
चाय ले कर देविका टेबल पर पहुंची. नवीन और राजन वहां बैठे थे. देविका ने नवीन के पैर छुए, तो
नवीन ने उस के सिर पर हाथ फेर दिया और मुसकराते हुए पूनम से बोले, ”बस उलझा दिया बहू को पहले ही दिन रसोई में. सास का रोल अच्छे से निभा रही हो.”
“अरे, ऐसा नहीं है. बहू नहीं यह तो बेटी है मेरी,” पूनम ने मुसकराते हुए कहा.
“देविका यह सब कहने की बातें हैं. अच्छा सुनो, अब सब से पहले अपने इम्तिहान की तैयारी करना.
मैं तो चाहता था, शादी परीक्षा होने के बाद ही हो, पर यह मांबेटी की जोड़ी कहां मानने वाली थी
भला,” नवीन सहज भाव से बोले.
“जी, पापा,” देविका हलके से मुसकरा के रह गई.
देविका ने पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था. इम्तिहान भी हो गए और देविका अच्छे नंबरों से पास भी हो गई.
तब नवीन और पूनम ने उन दोनों के बाहर जाने का प्रोग्राम बना दिया. ऊंटी की मनमोहक वादियों में भी जब देविका का चेहरा ना खिला तो शाम को राजन ने उस से पूछ ही लिया, “देविका, क्या बात
है? तुम शादी के बाद इतनी चुपचुप क्यों रहती हो? क्या तुम्हें मुझ से कोई शिकायत है?” राजन ने भोलेपन से पूछा.
यह सुन कर देविका कुछ पल उसे देखती रही. इस सब में राजन का क्या दोष है, उस ने तो सच्चे मन
से मुझ से प्यार किया है. क्यों मैं इस के प्यार का जवाब प्यार से नहीं दे सकती. मैं क्यों इसे वही
एहसास करवाऊं, जो मुझे हुआ है. नहीं, मैं इस का दिल नहीं तोड़ सकती. इसे जरूर एक खुशहाल जिंदगी का हक है.
देविका का दिलोदिमाग अब पूरी तरह से स्पष्ट था. राजन का हाथ उस के हाथ पर ही था. उस ने भी राजन के हाथ की पकड़ को और मजबूत करते हुए कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बहुत खुश हूं.”
देविका के चेहरे पर आंतरिक चमक थी. राजन को काफी हद तक संतुष्टि महसूस हुई और उस के
चेहरे पर एक निश्चल मुसकराहट आ गई. इस के बाद देविका ने राजन के सीने में अपना चेहरा छुपा
लिया.
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अगली सुबह वह बहुत हलका महसूस कर रही थी. शावर के नीचे जिस्म पर पड़ती पानी की फुहारों ने
जैसे उस का रोमरोम खिला दिया था. उस के नए जीवन की शुरुआत हो चुकी थी.
हनीमून से राजन और देविका काफी खुशहाल वापस लौटे. कुछ दिनों बाद रितेश के साथ एक अनहोनी घटना घट गई. एक रात आनंद बाबू की तबीयत काफी खराब हो गई. अस्पताल पहुंचने से
पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया. लता अब वहां रहना नहीं चाहती थी क्योंकि कुछ दिनों से आनंद अनु को बहुत याद कर रहे थे, इसलिए अब वो अनु से मिलने के लिए बेचैन हो उठी थी. उसे अपने
पास बुलाना चाहती थी. इस पर रितेश की बूआ ने कहा कि अभी अनु के लिए माहौल बदलना सही
नहीं है, क्यों ना वे लोग ही अब मकान बेच कर उन के पास आ जाएं. ऐसे हालात में लता को भी यही सही लगा. जल्दी ही रितेश का परिवार वहां से चला गया.
देविका शांत भाव से यह सब घटित होते देखती रही.
इस के बाद राजन और रितेश की दोस्ती सिर्फ फोन पर हुई बातों पर चलती रही और समय के साथ
साथ एक दिन सिर्फ दिल में ही बस गई. शायद रितेश का फोन नंबर बदल चुका था जो राजन के पास नहीं था.
देविका को लगभग डेढ़ वर्ष बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. अपूर्व बहुत प्यारा था. राजन की जान बसती थी उस में. अपनी तोतली भाषा में जब वो राजन को ‘पापा’ पुकारता था, तो राजन का दिल बल्लियों उछलने लगता था. इस तरह 5 वर्ष बीत गए.
इस बीच बिजनैस की एक जरूरी मीटिंग के लिए एक बार राजन को एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा.
उस दिन वह वापस आने ही वाला था कि दरवाजे की डोरबेल बजी. दरवाजा देविका ने ही खोला. सामने रितेश खड़ा था. देविका जैसे बुत समान हो गई.
“रितेश…” देविका के पीछे से उसे देख कर पूनम के मुख से तेज स्वर में उस का नाम गूंजा. देविका झट
से संभली. वह दरवाजे से एक तरफ हट गई.
रितेश भीतर आते ही पूनम के पैरों में झुका. पूनम ने
उसे गले से लगा लिया, दोनों की आंखें भर आईं. ड्राइंगरूम में बैठे दोनों देर तक बातें करते रहे. इस
दौरान देविका रसोई में ही रही. रितेश अपूर्व के साथ खेलने में व्यस्त रहा. नवीन घर आए तो वह भी उसे देख कर बहुत खुश हुए. आनंद बाबू को भी बेहद याद किया नवीन और पूनम ने. तभी दोबारा डोरबेल बजी.
“पापा आ गए, पापा आ गए,” कहता हुआ अपूर्व दरवाजे की ओर भागा. वह गिर ना पड़े, इस के लिए
रितेश उस के पीछे गया. अपूर्व को गोद में ले कर दरवाजा रितेश ने खोला. राजन ही था सामने. एकदूसरे को देखते ही दोनों मौन हो कर रह गए.
कुछ पल यों ही बीत गए. तभी अपूर्व “पापा… पापा…” पुकारने लगा. राजन ने उसे अपनी गोद में ले कर प्यार किया और फिर नीचे उतारा. उस के हाथ में खिलौना था, जिसे देखते ही अपूर्व ने लपक कर वह छीन लिया.
“दादी दादी. देखो, पापा क्या लाए हैं,” अपूर्व पूनम की ओर भाग गया.
राजन और रितेश गले मिल कर जैसे दुनियाजहान को भूल गए. खाने की मेज पर भी उन्हीं की बात चलती रही. देर रात उन दोनों को छोड़ कर सभी सोने चले गए.
“पर यार तू ने अब तक शादी क्यों नहीं की? मैं तो सोचता था कि अब तक तो तू 2-3 बच्चों का बाप बन चुका होगा. कोई पसंद नहीं आई क्या?”
बरतन समेटती देविका के गले में जैसे कुछ अटक सा गया हो.
“अरे, तेरे जैसी किस्मत नहीं है मेरी. हमें तो कोई पसंद ही नहीं करता.”
“क्या कमी है मेरे यार में, वैसे, देविका की कोई छोटी बहन नहीं है, वरना अपनी आधी घरवाली को
तेरी पूरी बनवा देता. क्यों देविका,” यह कह कर राजन खुद ही हंस पड़ा.
देविका बरतन समेट कर रसोई में चली गई.
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Writer- साहिना टंडन
इस दौरान रितेश वहां उपस्थित नहीं था. वह सीधा राजन के घर पहुंचा था.
विदाई के बाद राजन के घर में हुई रस्मों में जब देविका ने रितेश को राजन के साथ हंसतेबोलते देखा, तो उस के दिल में एक हूंक सी उठी.
“क्या कोई एहसास नहीं है इसे मेरी भावनाओं का, मेरे
जज्बातों का, क्या कभी भी एक दिन के लिए, एक पल के लिए भी इस ने मुझे नहीं चाहा. मैं ने तो अपना सर्वस्व प्रेम इस पर अर्पित कर देना चाहा था, पर यह इस कदर निष्ठुर क्यों है, क्या मैं इस की जिम्मेदारियां निभाने में सहभागी नहीं बन सकती थी. इस ने मुझे इस काबिल भी नहीं समझा.
“उफ्फ, अगर यह मेरे सामने रहा तो मैं पागल हो जाऊंगी,” देविका और बरदाश्त ना कर सकी. संपूर्ण ब्रह्मांड जैसे उसे घूमता सा लग रहा था. अगले ही पल वह बेहोश हो चुकी थी.
आंखें खुलीं, तो एक सजेधजे कमरे में उस ने खुद को पाया. वह उठी तो चूड़ियों और पायलों की
आवाज से राजन भी जाग गया, जो उस के साथ ही अधलेटी अवस्था में था.
“अब कैसी हो? यह
रिश्तेदार भी ना, यह रस्में, वह रिवाज, ऐसा लगता है जैसे शादी इस जन्म में हुई है और साथ रहना अगले जन्म में नसीब होगा. सारी रस्में निभातेनिभाते तुम तो बेहोश हो गई थी.”
देविका बिलकुल मौन थी.
ये भी पढ़ें- बुड्ढा आशिक : मानसी को क्यों परेशान कर रहे थे प्रोफैसर प्रसाद
“आराम से लेट जाओ. अभी सुबह होने में कुछ वक्त है. मैं लाइट बुझा देता हूं,” राजन ने प्यार से
कहा और लाइट बंद कर कमरे से बाहर चला गया.
सुबह तैयार हो कर देविका सीधे पूनम के पास रसोई में पहुंची.
“कैसी हो तुम? रात को थकावट की वजह से
तुम्हारी तबीयत ही बिगड़ गई थी,” पूनम ने लाड़ से कहा.
“जी, अब ठीक हूं,” देविका ने धीमे से जवाब दिया, “आप यह रहने दीजिए. मैं करती हूं.”
“अभी तो नाश्ता टेबल पर लग चुका है, तो अब बस यह चाय की ट्रे ले चलो.”
चाय ले कर देविका टेबल पर पहुंची. नवीन और राजन वहां बैठे थे. देविका ने नवीन के पैर छुए, तो
नवीन ने उस के सिर पर हाथ फेर दिया और मुसकराते हुए पूनम से बोले, ”बस उलझा दिया बहू को पहले ही दिन रसोई में. सास का रोल अच्छे से निभा रही हो.”
“अरे, ऐसा नहीं है. बहू नहीं यह तो बेटी है मेरी,” पूनम ने मुसकराते हुए कहा.
“देविका यह सब कहने की बातें हैं. अच्छा सुनो, अब सब से पहले अपने इम्तिहान की तैयारी करना.
मैं तो चाहता था, शादी परीक्षा होने के बाद ही हो, पर यह मांबेटी की जोड़ी कहां मानने वाली थी
भला,” नवीन सहज भाव से बोले.
“जी, पापा,” देविका हलके से मुसकरा के रह गई.
देविका ने पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था. इम्तिहान भी हो गए और देविका अच्छे नंबरों से पास भी हो गई.
तब नवीन और पूनम ने उन दोनों के बाहर जाने का प्रोग्राम बना दिया. ऊंटी की मनमोहक वादियों में भी जब देविका का चेहरा ना खिला तो शाम को राजन ने उस से पूछ ही लिया, “देविका, क्या बात
है? तुम शादी के बाद इतनी चुपचुप क्यों रहती हो? क्या तुम्हें मुझ से कोई शिकायत है?” राजन ने भोलेपन से पूछा.
यह सुन कर देविका कुछ पल उसे देखती रही. इस सब में राजन का क्या दोष है, उस ने तो सच्चे मन
से मुझ से प्यार किया है. क्यों मैं इस के प्यार का जवाब प्यार से नहीं दे सकती. मैं क्यों इसे वही
एहसास करवाऊं, जो मुझे हुआ है. नहीं, मैं इस का दिल नहीं तोड़ सकती. इसे जरूर एक खुशहाल जिंदगी का हक है.
देविका का दिलोदिमाग अब पूरी तरह से स्पष्ट था. राजन का हाथ उस के हाथ पर ही था. उस ने भी राजन के हाथ की पकड़ को और मजबूत करते हुए कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बहुत खुश हूं.”
देविका के चेहरे पर आंतरिक चमक थी. राजन को काफी हद तक संतुष्टि महसूस हुई और उस के
चेहरे पर एक निश्चल मुसकराहट आ गई. इस के बाद देविका ने राजन के सीने में अपना चेहरा छुपा
लिया.
ये भी पढ़ें- चश्मा: एस्थर ने किया पाखंडी गुरूजी को बेनकाब
अगली सुबह वह बहुत हलका महसूस कर रही थी. शावर के नीचे जिस्म पर पड़ती पानी की फुहारों ने
जैसे उस का रोमरोम खिला दिया था. उस के नए जीवन की शुरुआत हो चुकी थी.
हनीमून से राजन और देविका काफी खुशहाल वापस लौटे. कुछ दिनों बाद रितेश के साथ एक अनहोनी घटना घट गई. एक रात आनंद बाबू की तबीयत काफी खराब हो गई. अस्पताल पहुंचने से
पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया. लता अब वहां रहना नहीं चाहती थी क्योंकि कुछ दिनों से आनंद अनु को बहुत याद कर रहे थे, इसलिए अब वो अनु से मिलने के लिए बेचैन हो उठी थी. उसे अपने
पास बुलाना चाहती थी. इस पर रितेश की बूआ ने कहा कि अभी अनु के लिए माहौल बदलना सही
नहीं है, क्यों ना वे लोग ही अब मकान बेच कर उन के पास आ जाएं. ऐसे हालात में लता को भी यही सही लगा. जल्दी ही रितेश का परिवार वहां से चला गया.
देविका शांत भाव से यह सब घटित होते देखती रही.
इस के बाद राजन और रितेश की दोस्ती सिर्फ फोन पर हुई बातों पर चलती रही और समय के साथ
साथ एक दिन सिर्फ दिल में ही बस गई. शायद रितेश का फोन नंबर बदल चुका था जो राजन के पास नहीं था.
देविका को लगभग डेढ़ वर्ष बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. अपूर्व बहुत प्यारा था. राजन की जान बसती थी उस में. अपनी तोतली भाषा में जब वो राजन को ‘पापा’ पुकारता था, तो राजन का दिल बल्लियों उछलने लगता था. इस तरह 5 वर्ष बीत गए.
इस बीच बिजनैस की एक जरूरी मीटिंग के लिए एक बार राजन को एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा.
उस दिन वह वापस आने ही वाला था कि दरवाजे की डोरबेल बजी. दरवाजा देविका ने ही खोला. सामने रितेश खड़ा था. देविका जैसे बुत समान हो गई.
“रितेश…” देविका के पीछे से उसे देख कर पूनम के मुख से तेज स्वर में उस का नाम गूंजा. देविका झट
से संभली. वह दरवाजे से एक तरफ हट गई.
रितेश भीतर आते ही पूनम के पैरों में झुका. पूनम ने
उसे गले से लगा लिया, दोनों की आंखें भर आईं. ड्राइंगरूम में बैठे दोनों देर तक बातें करते रहे. इस
दौरान देविका रसोई में ही रही. रितेश अपूर्व के साथ खेलने में व्यस्त रहा. नवीन घर आए तो वह भी उसे देख कर बहुत खुश हुए. आनंद बाबू को भी बेहद याद किया नवीन और पूनम ने. तभी दोबारा डोरबेल बजी.
“पापा आ गए, पापा आ गए,” कहता हुआ अपूर्व दरवाजे की ओर भागा. वह गिर ना पड़े, इस के लिए
रितेश उस के पीछे गया. अपूर्व को गोद में ले कर दरवाजा रितेश ने खोला. राजन ही था सामने. एकदूसरे को देखते ही दोनों मौन हो कर रह गए.
कुछ पल यों ही बीत गए. तभी अपूर्व “पापा… पापा…” पुकारने लगा. राजन ने उसे अपनी गोद में ले कर प्यार किया और फिर नीचे उतारा. उस के हाथ में खिलौना था, जिसे देखते ही अपूर्व ने लपक कर वह छीन लिया.
“दादी दादी. देखो, पापा क्या लाए हैं,” अपूर्व पूनम की ओर भाग गया.
राजन और रितेश गले मिल कर जैसे दुनियाजहान को भूल गए. खाने की मेज पर भी उन्हीं की बात चलती रही. देर रात उन दोनों को छोड़ कर सभी सोने चले गए.
“पर यार तू ने अब तक शादी क्यों नहीं की? मैं तो सोचता था कि अब तक तो तू 2-3 बच्चों का बाप बन चुका होगा. कोई पसंद नहीं आई क्या?”
बरतन समेटती देविका के गले में जैसे कुछ अटक सा गया हो.
“अरे, तेरे जैसी किस्मत नहीं है मेरी. हमें तो कोई पसंद ही नहीं करता.”
“क्या कमी है मेरे यार में, वैसे, देविका की कोई छोटी बहन नहीं है, वरना अपनी आधी घरवाली को
तेरी पूरी बनवा देता. क्यों देविका,” यह कह कर राजन खुद ही हंस पड़ा.
देविका बरतन समेट कर रसोई में चली गई.
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December 26, 2021 at 10:29AM
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