Friday 10 December 2021

भूल का एहसास : भाग 3

लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

उमा ने जब सारी स्थिति उसे बताई तो अल्पना का चेहरा तमतमा गया. उस ने अपनी लड़कियों को बुलाया और जीभर कर डांटा. ‘‘मम्मी, हम क्या करें, अंकल ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं,’’ बड़ी लड़की रमा बोली. ‘‘खबरदार, जो मेरे पीछे किसी अनजाने व्यक्ति के लिए दरवाजा खोला. जब तक हमें दूसरा घर नहीं मिल जाता, तुम दोनों अकेले बाहर नहीं निकलोगी,’’ अल्पना चौधरी ने उन्हें अपना निर्णय सुनाया और ‘‘धन्यवाद, उमा बहन, आप ने हमें आगाह कर दिया, मगर देवेशजी को भी अच्छी तरह सम?ा दीजिए. ऐसा ही करेंगे तो पुलिस, थाने के चक्कर में आ जाएंगे,’’ कहते हुए उस ने उमा को नसीहत दी.

उमा माफी मांग कर वापस आ गई. 2-3 दिनों बाद ही वह घर फिर से खाली हो गया. देवेश परेशान था कि वे लोग इतनी जल्दी कैसे चले गए. उसे मालूम नहीं चल पाया कि यह सब उमा की कारस्तानी है.पर वे लोग ज्यादा दूर नहीं गए हैं, देवेश ने जल्दी ही पता कर लिया और फिर वही चक्कर चलने लगा. न तो वे लड़कियां मानतीं और न ही देवेश बाज आता. उमा ने बहुत सम?ाया, ?ागड़ा किया पर देवेश की बुद्धि पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे. उसे अपनी भूल का तनिक भी एहसास न होता.

इसी बीच जय पीएमटी में पास हो गया और उस का मैडिकल कालेज में दाखिला भी हो गया. वह छात्रावास चला गया.उमा इस बात से खुश थी कि चलो, एक चिंता तो दूर हुई, मगर देवेश अपनी मनमानी करता रहता. अब तो उन्हें जय की मौजदूगी का भी डर नहीं था, सो दोनों में खूब ?ागड़ा होता.उमा तंग हो कर कहती कि ऐसा ही चलता रहा तो वह घर छोड़ कर विजय के पास मुंबई या अजय के पास कश्मीर चली जाएगी, फिर रहें अकेले, खूब पिएं और मस्ती करें.

यही सोच कर उमा ने पहले अपने बड़े बेटे विजय को चिट्ठी लिखी. विजय ने जवाब में लिखा, ‘अम्मा, तुम्हें पता है कि मुंबई का घर कितना छोटा है. उसी में खाना, उसी में सोना, उसी में आएगए को बैठाना. ऐसे में किसी को हमेशा के लिए कैसे रखा जा सकता है?’ पत्र में लिखा ‘किसी’ शब्द पढ़ कर उमा की आंखों में आंसू आ गए. विजय ने आगे लिखा था, ‘पापा को सम?ाओ, ?ागड़ा मत करो, वहीं रहो. हम छुट्टियों में आ रहे हैं, तब हम भी पापा को सम?ाएंगे.’

‘मु?ो मालूम है, तू बहू का गुलाम है. उस की मरजी नहीं होगी तो कैसे रखेगा? कोई बात नहीं. अजय तो मु?ो बड़े प्यार से ले जाएगा, बहुत प्यार करता है मु?ो,’ उमा बड़बड़ाती जा रही थी.दूसरे दिन अजय का भी जवाब आ गया. उस ने तो साफ ही मना कर दिया, ‘अम्मा, यहां मिलिटरी एरिया में भी हम लोग डरेडरे से रहते हैं तो तुम्हें कहां रखूंगा?’

‘हांहां, 100-50 साल जिंदा रहूंगी, बिना पढ़ीलिखी मां का बो?ा जाने कब तक उठाना पड़े, बैठा कर कब तक खिलाएगा. मैं ही मूर्ख थी जो तुम सब को बैठा कर खिलाया और बाद में नौकरानी की तरह बचा हुआ खाया. क्या मैं तेरे पास आ कर तेरा हाथ न बंटाती? कभी देखा है अम्मा को खाली पड़ेपड़े सोते…’ उमा मन ही मन बड़बड़ाते हुए रोए जा रही थी.देवेश ने उमा को रोते देख उस के हाथ से खत लिया और पढ़ कर बोला, ‘‘जा रही हो न, अपने लाड़लों के पास?’’ वह व्यंग्य से हंसा था.

उमा कुछ न बोली. उस ने मन ही मन तय किया कि वह अपने छोटे भाई रवि के पास चली जाएगी. वहां बाबूजी का घर भी है और खेतीबाड़ी भी. वहीं वकालत भी उस की अच्छी चल रही है. उसे वहां कोई परेशानी न होगी, यही सोच कर उमा एक दिन देवेश को बिना बताए, सूटकेस ले कर रवि के घर पहुंच गई.

‘‘अरे, दीदी, तुम अचानक, अकेले, जीजाजी कहां हैं?’’ कहते हुए रवि ने नौकर रामू को आवाज दी. रवि, उमा को गेट पर ही मिल गया था. वह पैसे वाली किसी पार्टी को छोड़ने बाहर तक आया था. उन की गाड़ी उमा के रुकते रिकशे की बगल से गुजरी थी.अंदर पहुंच कर रवि ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था, जिस से कोई बाहर न सुने.

उस का रवैया देख उमा कुछ सम?ा न पाई थी, पर इस तरह उमा को अचानक, अकेला आए देख रवि सब सम?ा गया था, इसीलिए वह बोला, ‘‘दीदी, ध्यान तो रखना ही पड़ता है. छाया के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए यहां आए हुए हैं. बोलो, दीदी, क्या हुआ?’’उमा ने रोतेरोते सारी बातें बताईं.

‘‘दीदी, अब बहुत हो गया. इस उम्र में यह सब अच्छा नहीं लगता. जीजाजी को सम?ाओ न, कलह मत किया करो. अलग होने की यह कोई उम्र है भला? मैं यहां लोगों से क्या कहूंगा? यहां मेरा नाम है, इज्जत है. लोग पूछेंगे कि क्यों चली आई तो मैं क्या जवाब दूंगा? अब जो भी है, अपनी जिंदगी सम?ा. ठीक है, यहां अपना बड़ा घर है, पैसे की कोई कमी नहीं और तुम भी रह लोगी, पर सोचो, क्या तुम खुश रह पाओगी? जय का भी तो सोचो. 2 बच्चे तुम्हारे सैटल हो गए हैं, जय को भी सैटल कर दो. क्या उस के प्रति तुम्हारा दायित्व खत्म हो गया? जिंदगी तो सम?ाते का नाम है, कुछ न कुछ अच्छाबुरा तो सब के साथ लगा ही रहता है,’’ रवि ने उमा को सम?ाते हुए कहा.

उधर देवेश के रंगीनमिजाज का भूत उतर चुका था. बब्बन ने महल्ले के 8-10 लड़कों के साथ मिल कर उस को अच्छी तरह पीट दिया था. उस के बाएं हाथ की हड्डी उतर गई थी, पैर टूट गया था, चेहरा भी सूज गया था. जगहजगह नीले निशान पड़ गए थे. उन सब ने देवेश को हौकी, डंडों से खूब मारा था जिस से उसे अंदरूनी चोटें भी आई थीं. दर्द इतना था कि वह बिलबिला उठता, पर उस की मदद को आता कौन? उस की बदनामी जो चारों ओर फैली हुई थी. नेक बीवी और होशियार बच्चों से ही तो उस की थोड़ीबहुत इज्जत थी.

कामवाली बाई ने भी उस रंगीले को अकेला देख, आना छोड़ दिया था. घर की उस की हालत देखने लायक थी. ऐसे में उमा उसे बहुत याद आई. ‘क्यों मैं ने ?ागड़ा किया, क्यों उसे जाने का ताना दिया?

 

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लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

उमा ने जब सारी स्थिति उसे बताई तो अल्पना का चेहरा तमतमा गया. उस ने अपनी लड़कियों को बुलाया और जीभर कर डांटा. ‘‘मम्मी, हम क्या करें, अंकल ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं,’’ बड़ी लड़की रमा बोली. ‘‘खबरदार, जो मेरे पीछे किसी अनजाने व्यक्ति के लिए दरवाजा खोला. जब तक हमें दूसरा घर नहीं मिल जाता, तुम दोनों अकेले बाहर नहीं निकलोगी,’’ अल्पना चौधरी ने उन्हें अपना निर्णय सुनाया और ‘‘धन्यवाद, उमा बहन, आप ने हमें आगाह कर दिया, मगर देवेशजी को भी अच्छी तरह सम?ा दीजिए. ऐसा ही करेंगे तो पुलिस, थाने के चक्कर में आ जाएंगे,’’ कहते हुए उस ने उमा को नसीहत दी.

उमा माफी मांग कर वापस आ गई. 2-3 दिनों बाद ही वह घर फिर से खाली हो गया. देवेश परेशान था कि वे लोग इतनी जल्दी कैसे चले गए. उसे मालूम नहीं चल पाया कि यह सब उमा की कारस्तानी है.पर वे लोग ज्यादा दूर नहीं गए हैं, देवेश ने जल्दी ही पता कर लिया और फिर वही चक्कर चलने लगा. न तो वे लड़कियां मानतीं और न ही देवेश बाज आता. उमा ने बहुत सम?ाया, ?ागड़ा किया पर देवेश की बुद्धि पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे. उसे अपनी भूल का तनिक भी एहसास न होता.

इसी बीच जय पीएमटी में पास हो गया और उस का मैडिकल कालेज में दाखिला भी हो गया. वह छात्रावास चला गया.उमा इस बात से खुश थी कि चलो, एक चिंता तो दूर हुई, मगर देवेश अपनी मनमानी करता रहता. अब तो उन्हें जय की मौजदूगी का भी डर नहीं था, सो दोनों में खूब ?ागड़ा होता.उमा तंग हो कर कहती कि ऐसा ही चलता रहा तो वह घर छोड़ कर विजय के पास मुंबई या अजय के पास कश्मीर चली जाएगी, फिर रहें अकेले, खूब पिएं और मस्ती करें.

यही सोच कर उमा ने पहले अपने बड़े बेटे विजय को चिट्ठी लिखी. विजय ने जवाब में लिखा, ‘अम्मा, तुम्हें पता है कि मुंबई का घर कितना छोटा है. उसी में खाना, उसी में सोना, उसी में आएगए को बैठाना. ऐसे में किसी को हमेशा के लिए कैसे रखा जा सकता है?’ पत्र में लिखा ‘किसी’ शब्द पढ़ कर उमा की आंखों में आंसू आ गए. विजय ने आगे लिखा था, ‘पापा को सम?ाओ, ?ागड़ा मत करो, वहीं रहो. हम छुट्टियों में आ रहे हैं, तब हम भी पापा को सम?ाएंगे.’

‘मु?ो मालूम है, तू बहू का गुलाम है. उस की मरजी नहीं होगी तो कैसे रखेगा? कोई बात नहीं. अजय तो मु?ो बड़े प्यार से ले जाएगा, बहुत प्यार करता है मु?ो,’ उमा बड़बड़ाती जा रही थी.दूसरे दिन अजय का भी जवाब आ गया. उस ने तो साफ ही मना कर दिया, ‘अम्मा, यहां मिलिटरी एरिया में भी हम लोग डरेडरे से रहते हैं तो तुम्हें कहां रखूंगा?’

‘हांहां, 100-50 साल जिंदा रहूंगी, बिना पढ़ीलिखी मां का बो?ा जाने कब तक उठाना पड़े, बैठा कर कब तक खिलाएगा. मैं ही मूर्ख थी जो तुम सब को बैठा कर खिलाया और बाद में नौकरानी की तरह बचा हुआ खाया. क्या मैं तेरे पास आ कर तेरा हाथ न बंटाती? कभी देखा है अम्मा को खाली पड़ेपड़े सोते…’ उमा मन ही मन बड़बड़ाते हुए रोए जा रही थी.देवेश ने उमा को रोते देख उस के हाथ से खत लिया और पढ़ कर बोला, ‘‘जा रही हो न, अपने लाड़लों के पास?’’ वह व्यंग्य से हंसा था.

उमा कुछ न बोली. उस ने मन ही मन तय किया कि वह अपने छोटे भाई रवि के पास चली जाएगी. वहां बाबूजी का घर भी है और खेतीबाड़ी भी. वहीं वकालत भी उस की अच्छी चल रही है. उसे वहां कोई परेशानी न होगी, यही सोच कर उमा एक दिन देवेश को बिना बताए, सूटकेस ले कर रवि के घर पहुंच गई.

‘‘अरे, दीदी, तुम अचानक, अकेले, जीजाजी कहां हैं?’’ कहते हुए रवि ने नौकर रामू को आवाज दी. रवि, उमा को गेट पर ही मिल गया था. वह पैसे वाली किसी पार्टी को छोड़ने बाहर तक आया था. उन की गाड़ी उमा के रुकते रिकशे की बगल से गुजरी थी.अंदर पहुंच कर रवि ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था, जिस से कोई बाहर न सुने.

उस का रवैया देख उमा कुछ सम?ा न पाई थी, पर इस तरह उमा को अचानक, अकेला आए देख रवि सब सम?ा गया था, इसीलिए वह बोला, ‘‘दीदी, ध्यान तो रखना ही पड़ता है. छाया के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए यहां आए हुए हैं. बोलो, दीदी, क्या हुआ?’’उमा ने रोतेरोते सारी बातें बताईं.

‘‘दीदी, अब बहुत हो गया. इस उम्र में यह सब अच्छा नहीं लगता. जीजाजी को सम?ाओ न, कलह मत किया करो. अलग होने की यह कोई उम्र है भला? मैं यहां लोगों से क्या कहूंगा? यहां मेरा नाम है, इज्जत है. लोग पूछेंगे कि क्यों चली आई तो मैं क्या जवाब दूंगा? अब जो भी है, अपनी जिंदगी सम?ा. ठीक है, यहां अपना बड़ा घर है, पैसे की कोई कमी नहीं और तुम भी रह लोगी, पर सोचो, क्या तुम खुश रह पाओगी? जय का भी तो सोचो. 2 बच्चे तुम्हारे सैटल हो गए हैं, जय को भी सैटल कर दो. क्या उस के प्रति तुम्हारा दायित्व खत्म हो गया? जिंदगी तो सम?ाते का नाम है, कुछ न कुछ अच्छाबुरा तो सब के साथ लगा ही रहता है,’’ रवि ने उमा को सम?ाते हुए कहा.

उधर देवेश के रंगीनमिजाज का भूत उतर चुका था. बब्बन ने महल्ले के 8-10 लड़कों के साथ मिल कर उस को अच्छी तरह पीट दिया था. उस के बाएं हाथ की हड्डी उतर गई थी, पैर टूट गया था, चेहरा भी सूज गया था. जगहजगह नीले निशान पड़ गए थे. उन सब ने देवेश को हौकी, डंडों से खूब मारा था जिस से उसे अंदरूनी चोटें भी आई थीं. दर्द इतना था कि वह बिलबिला उठता, पर उस की मदद को आता कौन? उस की बदनामी जो चारों ओर फैली हुई थी. नेक बीवी और होशियार बच्चों से ही तो उस की थोड़ीबहुत इज्जत थी.

कामवाली बाई ने भी उस रंगीले को अकेला देख, आना छोड़ दिया था. घर की उस की हालत देखने लायक थी. ऐसे में उमा उसे बहुत याद आई. ‘क्यों मैं ने ?ागड़ा किया, क्यों उसे जाने का ताना दिया?

 

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December 09, 2021 at 10:00AM

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