Monday 27 December 2021

कोरा कागज: भाग 1- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

1996, अब से 25 साल पहले. सुबह के 9 बजने को थे. नाश्ते की मेज पर नवीन और पूनम मौजूद थे. नवीन

अखबार पढ़ रहे थे और पूनम चाय बना रही थी, तभी राजन वहां पहुंचा और तेजी से कुरसी खींच कर उस पर जम गया.

“गुड मौर्निंग मम्मीपापा,” राजन ने कहा.

“गुड मौर्निंग बेटा,” पूनम ने मुसकरा कर जवाब दिया और उस के लिए ब्रैड पर जैम लगाने लगी.

“मम्मी, सामने वाली कोठी में लोग आ गए क्या…? अभी मैं ने देखा कि लौन में एक अंकल कुरसीपर बैठे हैं.”

“हां, कल ही वे लोग यहां आए हैं. तीन ही लोगों का परिवार है. माता, पिता और एक बेटी है, देविका नाम हैउस का. कल जब सामने सामान उतर चुका था, तब मैं वहां जाने ही वाली थी उन से चायपानी पूछने के लिए कि तभी वह बच्ची देविका आ गई. वह पानी लेने आई थी. बड़ी प्यारी है. दिखने में बहुत सुंदर और बहुत मीठा बोलती है. उस ने बताया कि वे लोग इंदौर से यहां शिफ्ट हुए हैं.”

“ओके. अच्छा मम्मी मैं चलता हूं. रितेश मेरा इंतजार कर रहा होगा,” सेब खाता हुआ राजन लगभग वहां से भागा.

“अरे, नाश्ता तो ठीक से करता जा,” पूनम ने पीछे से आवाज दी.

“उस ने कभी सुनी है तुम्हारी कोई बात. उस के कानों तक पहुंचे तो बात ही क्या है,” नवीन चाय का घूंट भरते हुए बोले.

“आप भी हमेशा उस के पीछे पड़े रहते हैं. यही तो उम्र है उस की मौजमस्ती करने की.”

“कालेज खत्म हुए सालभर हो चला है और कितनी मौज करेगा. रितेश को देखो, आनंद के साथ अब उस ने उस का सारा काम संभाल लिया है.”

ये भी पढ़ें- मुक्त: क्या शादी से खुश नही थी आरवी?

“आप का बिजनैस कहीं भागा नहीं जा रहा है, राजन ने ही संभालना है. देख लेना, एक बार जिम्मेदारियों में रम गया, तो फिर साथ बैठ कर बात करने को भी तरस जाएंगे.”

“चलो, देखते हैं, ऐसा कब होता है और आज कहां गए हैं तुम्हारे साहबजादे?”

“संडे है, बताया तो उस ने कि रितेश के साथ गया है,” पूनम बरतन समेटते हुए बोली.

रितेश राजन के घर से चंद ही घर छोड़ कर रहता था. उन के मातापिता आनंद और लता और राजन के मातापिता नवीन और पूनम, सभी का आपस में अच्छा व्यवहार था. सालों पहले आनंद दिल्ली में नवीन के महल्ले में आए थे.

रितेश के अलावा उन की एक बेटी भी थी, जिस का नाम अनु था. बचपन में ही रितेश की बूआ ने उसे गोद ले लिया था. हालांकि इस बात से कोई अनजान नहीं रहा कि असल में अनु

आनंद बाबू की बिटिया है. बेऔलाद और विधवा सीमा ने अनु को सगी मां से ज्यादा चाहा. मध्यमवर्गीय परिवार था आनंद बाबू का, पर चूंकि अब उन के पास केवल रितेश ही था, इसलिए ठीकठाक गुजारा हो जाता था सब का.

तत्पश्चात पार्क में, त्योहारों में एकदूसरे से मिलने पर लता और पूनम की भी अच्छी बनने लगी. रितेश का दाखिला भी राजन के स्कूल में ही हो गया था, फिर तो पहले स्कूल, फिर कालेज, दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती ही गई.

हालांकि दोनों काफी विपरीत प्रवृत्ति के थे. जहां रितेश कुछ गंभीर और अंतर्मुखी था, वहीं राजन मस्तमौला किस्म का था. जीवनयात्रा के सफर को हंसतेगाते पार करना चाहता था. सभी से चुहलबाजी करना उस की आदत में

शुमार था. कुल मिला कर अलग स्वभाव होने पर भी दोनों में गहरी छनती थी.

रितेश के घर के बाहर राजन ने जोरजोर से हौर्न बजाना शुरू कर दिया, तो रितेश तेजी से सीढ़ियां उतरते हुए

और लता को बाय करता हुआ बाहर की ओर लपका.

“अरे, अब बंद भी कर. पूरे महल्ले को घर से बाहर निकालना है क्या…?”

“अरे, यह तो मेरे दोस्त के लिए है. तू मेरा मैं तेरा दुनिया से क्या लेना,” राजन गुनगुनाते हुए बोला. रितेश उसे देख कर हंस पड़ा.

“और बता, जन्मदिन की तैयारियां कैसी चल रही हैं.”

“वैसे ही जैसी हर साल होती है. पापा के दोस्त, मम्मी की सहेलियां, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी होंगे, पर मेरी तरफ से

बस एक ही बंदा है, जो पार्टी में ना हो तो पूरी पार्टी कैंसिल कर दूं. समझा कि अभी और समझाऊं.”

“समझ गया यार. तेरा जन्मदिन हो और मैं ना आऊं, ऐसा कभी हो सकता है. अच्छा अभी यह तो बता की हम जा कहां रहे हैं?”

ये भी पढ़ें- तेरी मेरी जिंदगी: क्या था रामस्वरूप और रूपा का संबंध?

“इतनी देर से जन्मदिन की बात चल रही है तो क्या जन्मदिन का केक मैं नाइट सूट में काटूंगा. हम अपने

लिए कपड़े खरीदने जा रहे हैं.”

पार्टी राजन के घर पर ही थी. घर का हाल रोशनी से नहा चुका था. मेहमानों की चहलपहल जारी थी. राजन और रितेश भी अपने अन्य दोस्तों के साथ मशगूल थे. तभी पूनम राजन के पास आई.

चलो बेटा, केक नहीं काटना क्या, सब इंतजार कर रहे हैं.”

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Writer- साहिना टंडन

1996, अब से 25 साल पहले. सुबह के 9 बजने को थे. नाश्ते की मेज पर नवीन और पूनम मौजूद थे. नवीन

अखबार पढ़ रहे थे और पूनम चाय बना रही थी, तभी राजन वहां पहुंचा और तेजी से कुरसी खींच कर उस पर जम गया.

“गुड मौर्निंग मम्मीपापा,” राजन ने कहा.

“गुड मौर्निंग बेटा,” पूनम ने मुसकरा कर जवाब दिया और उस के लिए ब्रैड पर जैम लगाने लगी.

“मम्मी, सामने वाली कोठी में लोग आ गए क्या…? अभी मैं ने देखा कि लौन में एक अंकल कुरसीपर बैठे हैं.”

“हां, कल ही वे लोग यहां आए हैं. तीन ही लोगों का परिवार है. माता, पिता और एक बेटी है, देविका नाम हैउस का. कल जब सामने सामान उतर चुका था, तब मैं वहां जाने ही वाली थी उन से चायपानी पूछने के लिए कि तभी वह बच्ची देविका आ गई. वह पानी लेने आई थी. बड़ी प्यारी है. दिखने में बहुत सुंदर और बहुत मीठा बोलती है. उस ने बताया कि वे लोग इंदौर से यहां शिफ्ट हुए हैं.”

“ओके. अच्छा मम्मी मैं चलता हूं. रितेश मेरा इंतजार कर रहा होगा,” सेब खाता हुआ राजन लगभग वहां से भागा.

“अरे, नाश्ता तो ठीक से करता जा,” पूनम ने पीछे से आवाज दी.

“उस ने कभी सुनी है तुम्हारी कोई बात. उस के कानों तक पहुंचे तो बात ही क्या है,” नवीन चाय का घूंट भरते हुए बोले.

“आप भी हमेशा उस के पीछे पड़े रहते हैं. यही तो उम्र है उस की मौजमस्ती करने की.”

“कालेज खत्म हुए सालभर हो चला है और कितनी मौज करेगा. रितेश को देखो, आनंद के साथ अब उस ने उस का सारा काम संभाल लिया है.”

ये भी पढ़ें- मुक्त: क्या शादी से खुश नही थी आरवी?

“आप का बिजनैस कहीं भागा नहीं जा रहा है, राजन ने ही संभालना है. देख लेना, एक बार जिम्मेदारियों में रम गया, तो फिर साथ बैठ कर बात करने को भी तरस जाएंगे.”

“चलो, देखते हैं, ऐसा कब होता है और आज कहां गए हैं तुम्हारे साहबजादे?”

“संडे है, बताया तो उस ने कि रितेश के साथ गया है,” पूनम बरतन समेटते हुए बोली.

रितेश राजन के घर से चंद ही घर छोड़ कर रहता था. उन के मातापिता आनंद और लता और राजन के मातापिता नवीन और पूनम, सभी का आपस में अच्छा व्यवहार था. सालों पहले आनंद दिल्ली में नवीन के महल्ले में आए थे.

रितेश के अलावा उन की एक बेटी भी थी, जिस का नाम अनु था. बचपन में ही रितेश की बूआ ने उसे गोद ले लिया था. हालांकि इस बात से कोई अनजान नहीं रहा कि असल में अनु

आनंद बाबू की बिटिया है. बेऔलाद और विधवा सीमा ने अनु को सगी मां से ज्यादा चाहा. मध्यमवर्गीय परिवार था आनंद बाबू का, पर चूंकि अब उन के पास केवल रितेश ही था, इसलिए ठीकठाक गुजारा हो जाता था सब का.

तत्पश्चात पार्क में, त्योहारों में एकदूसरे से मिलने पर लता और पूनम की भी अच्छी बनने लगी. रितेश का दाखिला भी राजन के स्कूल में ही हो गया था, फिर तो पहले स्कूल, फिर कालेज, दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती ही गई.

हालांकि दोनों काफी विपरीत प्रवृत्ति के थे. जहां रितेश कुछ गंभीर और अंतर्मुखी था, वहीं राजन मस्तमौला किस्म का था. जीवनयात्रा के सफर को हंसतेगाते पार करना चाहता था. सभी से चुहलबाजी करना उस की आदत में

शुमार था. कुल मिला कर अलग स्वभाव होने पर भी दोनों में गहरी छनती थी.

रितेश के घर के बाहर राजन ने जोरजोर से हौर्न बजाना शुरू कर दिया, तो रितेश तेजी से सीढ़ियां उतरते हुए

और लता को बाय करता हुआ बाहर की ओर लपका.

“अरे, अब बंद भी कर. पूरे महल्ले को घर से बाहर निकालना है क्या…?”

“अरे, यह तो मेरे दोस्त के लिए है. तू मेरा मैं तेरा दुनिया से क्या लेना,” राजन गुनगुनाते हुए बोला. रितेश उसे देख कर हंस पड़ा.

“और बता, जन्मदिन की तैयारियां कैसी चल रही हैं.”

“वैसे ही जैसी हर साल होती है. पापा के दोस्त, मम्मी की सहेलियां, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी होंगे, पर मेरी तरफ से

बस एक ही बंदा है, जो पार्टी में ना हो तो पूरी पार्टी कैंसिल कर दूं. समझा कि अभी और समझाऊं.”

“समझ गया यार. तेरा जन्मदिन हो और मैं ना आऊं, ऐसा कभी हो सकता है. अच्छा अभी यह तो बता की हम जा कहां रहे हैं?”

ये भी पढ़ें- तेरी मेरी जिंदगी: क्या था रामस्वरूप और रूपा का संबंध?

“इतनी देर से जन्मदिन की बात चल रही है तो क्या जन्मदिन का केक मैं नाइट सूट में काटूंगा. हम अपने

लिए कपड़े खरीदने जा रहे हैं.”

पार्टी राजन के घर पर ही थी. घर का हाल रोशनी से नहा चुका था. मेहमानों की चहलपहल जारी थी. राजन और रितेश भी अपने अन्य दोस्तों के साथ मशगूल थे. तभी पूनम राजन के पास आई.

चलो बेटा, केक नहीं काटना क्या, सब इंतजार कर रहे हैं.”

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December 28, 2021 at 10:25AM

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