Monday 20 December 2021

अस्तित्व की तलाश : भाग 2

लेखिका- पूनम पाठक

उस की मां को उस से ज्यादा अपनी जाति या धर्म प्यारा था, जिस के लिए उन्होंने अपनी बेटी के प्यार व उस की ख़ुशी की कुर्बानी दे दी थी. ओह्ह… वंदना ने एक उसांस ली. सिर झटक कर उस ने कड़वी यादों की गिरफ़्त से छुटकारा पाना चाहा, मग़र निष्फल रही. हार कर वह सोफे पर निढाल पड़ गई, उस के मन में विचारों की अनवरत श्रृंखला जारी थी.

काफी रोने और सिसकने के बाद इस शादी को अपना प्रारब्ध मान उस ने समय से समझौता कर लिया. कुछ महीने सुकून में गुज़रे. मां की चाटुकारिता करने की कोशिश में प्रशांत उसे खुश रखता. लेकिन कहते हैं कि वक्त किसी का सगा नहीं होता. अपना बोया हमें यहीं इसी दुनिया में काटना पड़ता है.

विपक्षी पार्टी की साजिशों के तहत सत्तारुढ़ दल की कद्दावर नेता विधायक रामेश्वरी देवी को भ्रष्टाचार के आरोप में अपने पद से इस्तीफ़ा दे कर कुरसी से हाथ धोना पड़ा. सत्ता के जाते ही उन का पैसा, पावर, रुतबा सब जाता रहा. उन की बदनाम छवि से पार्टी को कहीं कोई नुकसान न पहुंचे, इस कारण पार्टी ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की भांति निकाल फेंका. जिस पार्टी के लिए उन्होंने दिनरात एक कर दिया, उसी ने उन्हें आने वाले इलैक्शन में टिकट न दे कर अंगूठा दिखा दिया.

रामेश्वरी देवी बुरी तरह टूट चुकी थीं. जायदाद के नाम पर उन के पास अब वह घर ही बचा था जिस में वे रहती थीं. वक्त की इस करवट ने उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया. इलाके की दबंग नेता को एक लाचार, अबला की खोल में परिवर्तित होते देर न लगी.

इधर वंदना ने सबकुछ भुला कर एक नई शुरुआत करने की कोशिश की, मग़र किसी समझौते की प्रक्रिया के तहत हुई इस शादी में समय के बदलते ही प्रशांत का व्यवहार भी बदलते मौसम सा साबित हुआ. अब तक उसे खुश रखने का प्रयास करने वाला प्रशांत अब बातबात में उस में कमियां निकालता, बातबेबात सब के सामने जलील करता. यहां तक की अब वह उस के चरित्र पर भी टीकाटिप्पणी करने से बाज न आता और कभीकभी वंदना पर अपना हाथ भी छोड़ देता.

मानस को पूरी तरह भुला कर इस रिश्ते को ईमानदारी से निभाने की कोशिश में लगी वंदना के लिए बिना वजह यह सब सहना मुश्किल होता जा रहा था. अपने ऊपर लगे चारित्रिक लांछन को वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. क्योंकि उस का और मानस का प्रेम सच्चा था, जिस में दैहिक सुख की कहीं कोई चाह या गुंजाइश न थी.

आखिरकार, ये बातें रामेश्वरी देवी के कानों तक जा पहुचीं. समय के भारी फ़ेरबदल ने उन के विचारों की कट्टरता में भी आमूलचूल परिवर्तन ला दिया था. लिहाज़ा, अपनी इकलौती बेटी की जिंदगी का यह हश्र देख कर वे बहुत दुखी हुईं और अपनी करनी पर बहुत पछ्ताईं. वंदना को तलाक दिलवा कर उन्होंने अपनी गलती सुधारनी चाही, परंतु इस के लिए अब काफी देर हो चुकी थी. वंदना की कोख में एक नन्हा भ्रूण अंकुरित हो चुका था.

रामेश्वरी देवी ने उस के गर्भ में पल रहे भ्रूण को गिरवा कर उसे प्रशांत के साए से आज़ाद करना चाहा. लेकिन वंदना तैयार न हुई. हार कर उन्होंने बच्चे समेत सदा के लिए उस से मायके आ जाने का आग्रह किया जिसे भी वंदना ने सख्त लहजे में इनकार कर दिया. मां की तानाशाही प्रवृत्ति के चलते वह पिता के साए से हमेशा महरूम रही थी. यह गम उसे जिंदगीभर सालता रहा. इसलिए वह अपनी बेटी को उस के पिता के प्यार से वंचित नहीं रखना चाहती थी. सो, इन दुखों और परेशानियों को अपना नसीब मान कर वह सबकुछ सहने लगी.

खिलखिलाती हुई वंदना की जिंदगी अब घर की चारदीवारी के भीतर कैद हो चुकी थी. प्रशांत के लिए अस्तित्वहीन हो चुकी वंदना धीरेधीरे अपना स्वाभाविक स्वरूप खोने लगी. उस ने लाख कोशिशें कीं उस घर को अपनाने की, प्रशांत को अपना बनाने की. मगर प्रशांत पर इस सब का कोई फर्क न पड़ा. बेटी तृषा के होने के बाद भी उस का रवैया वंदना के प्रति तनिक न बदला.

हद तो तब हुई जब प्रशांत की जिंदगी में एक दूसरी औरत आ गई. वंदना इतनी मानसिक और शारीरिक यंत्रणाएं सह कर भी आज तक चुप रही थी पर सौतिया डाह का ये डंक उस की नसों में उबाल ले आया और वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो आख़िरकार विद्रोह कर बैठी.

इस पर प्रशांत ने एक और घटिया पैंतरा इस्तेमाल करते हुए उस पर बदचलनी का आरोप लगाया और उसे तलाक की धमकी दी. जाने कैसे उस ने वंदना और मानस की एक फोटो कहीं से जुगाड़ कर ली थी, जिस में हाथों में हाथ डाले वे प्रेमी परिंदे दुनिया से बेफ़िक्र हो कर कहीं घूम रहे थे. उस फोटो को उस के सामने उछालते हुए प्रशांत ने कहा कि वह उन मांबेटी की इज्जत पूरे समाज में ऐसे ही उछाल कर रख देगा जिस से वह और उस की मां कहीं किसी को मुंह दिखाने काबिल न बचेंगी. जिस का परिणाम यह होगा कि पहले ही अपना सबकुछ गंवा चुकी उस की लाचार मां समय से पहले ही मृत्यु का ग्रास बन जाएगी और वंदना पूरी दुनिया में अकेली रह जाएगी.

प्रशांत की ललकार ने वंदना का दिल कंपा दिया. सच में अगर मां को कुछ हो गया तो मायके के नाम पर उस का इकलौता सहारा भी छिन जाएगा और तलाक के बाद वह अपनी नन्हीं सी बच्ची को ले कर कहां जाएगी. अपनी दयनीय स्थिति पर वह खुल कर विलाप भी न कर पा रही थी. भीतर के इस डर ने उस की रहीसही हिम्मत को भी समाप्त कर दिया और वह पूरी तरह से प्रशांत के नियंत्रण में होती चली गई.

उस की जिंदगी में तृषा ही एकमात्र ख़ुशी थी जिस को पलतेपढ़ते देख वह सुकून से भर जाती. तृषा का खिलखिलाता चेहरा और मासूम शरारतें न चाहते हुए भी उसे मुसकराने पर मजबूर कर देतीं. इधर सालभर चले प्रेम प्रसंग के बाद प्रशांत ने उस दूसरी औरत से शादी रचा ली और उस के लिए एक फ़्लैट खरीद दिया जिस में अपनी सुविधानुसार वह जब तब आताजाता रहता था. लेकिन इस बीच भी वंदना पर उस का शिकंजा कसा ही रहा.

समय अपनी ही गति से आगे बढ़ा जा रहा था. नन्ही तृषा अब 21 साल की हो चली थी. दिखने में अपनी मां की तरह खूबसूरत तृषा उसी की तरह खुशमिजाज़ और जिंदादिल थी. वह घर के माहौल को अब काफीकुछ समझने लगी थी. लिहाज़ा, मां के प्रति पिता का गलत रवैया और उस पर मां की चुप्पी की मुहर कई बार उसे व्यथित कर देती. घर में पिता द्वारा बारबार होता मां का अपमान उस के लिए असहनीय होता जा रहा था. लेकिन वंदना अपनी फूल सी बच्ची को इन पचड़ों में नहीं पड़ने देना चाहती थी, इसलिए प्यारभरी नसीहत दे कर वह उसे हमेशा चुप करा देती. तृषा मां की बात का मान रखते हुए उस वक्त तो चुप्पी साध लेती मगर उस का मन भीतर ही भीतर विद्रोह कर उठता.

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लेखिका- पूनम पाठक

उस की मां को उस से ज्यादा अपनी जाति या धर्म प्यारा था, जिस के लिए उन्होंने अपनी बेटी के प्यार व उस की ख़ुशी की कुर्बानी दे दी थी. ओह्ह… वंदना ने एक उसांस ली. सिर झटक कर उस ने कड़वी यादों की गिरफ़्त से छुटकारा पाना चाहा, मग़र निष्फल रही. हार कर वह सोफे पर निढाल पड़ गई, उस के मन में विचारों की अनवरत श्रृंखला जारी थी.

काफी रोने और सिसकने के बाद इस शादी को अपना प्रारब्ध मान उस ने समय से समझौता कर लिया. कुछ महीने सुकून में गुज़रे. मां की चाटुकारिता करने की कोशिश में प्रशांत उसे खुश रखता. लेकिन कहते हैं कि वक्त किसी का सगा नहीं होता. अपना बोया हमें यहीं इसी दुनिया में काटना पड़ता है.

विपक्षी पार्टी की साजिशों के तहत सत्तारुढ़ दल की कद्दावर नेता विधायक रामेश्वरी देवी को भ्रष्टाचार के आरोप में अपने पद से इस्तीफ़ा दे कर कुरसी से हाथ धोना पड़ा. सत्ता के जाते ही उन का पैसा, पावर, रुतबा सब जाता रहा. उन की बदनाम छवि से पार्टी को कहीं कोई नुकसान न पहुंचे, इस कारण पार्टी ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की भांति निकाल फेंका. जिस पार्टी के लिए उन्होंने दिनरात एक कर दिया, उसी ने उन्हें आने वाले इलैक्शन में टिकट न दे कर अंगूठा दिखा दिया.

रामेश्वरी देवी बुरी तरह टूट चुकी थीं. जायदाद के नाम पर उन के पास अब वह घर ही बचा था जिस में वे रहती थीं. वक्त की इस करवट ने उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया. इलाके की दबंग नेता को एक लाचार, अबला की खोल में परिवर्तित होते देर न लगी.

इधर वंदना ने सबकुछ भुला कर एक नई शुरुआत करने की कोशिश की, मग़र किसी समझौते की प्रक्रिया के तहत हुई इस शादी में समय के बदलते ही प्रशांत का व्यवहार भी बदलते मौसम सा साबित हुआ. अब तक उसे खुश रखने का प्रयास करने वाला प्रशांत अब बातबात में उस में कमियां निकालता, बातबेबात सब के सामने जलील करता. यहां तक की अब वह उस के चरित्र पर भी टीकाटिप्पणी करने से बाज न आता और कभीकभी वंदना पर अपना हाथ भी छोड़ देता.

मानस को पूरी तरह भुला कर इस रिश्ते को ईमानदारी से निभाने की कोशिश में लगी वंदना के लिए बिना वजह यह सब सहना मुश्किल होता जा रहा था. अपने ऊपर लगे चारित्रिक लांछन को वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. क्योंकि उस का और मानस का प्रेम सच्चा था, जिस में दैहिक सुख की कहीं कोई चाह या गुंजाइश न थी.

आखिरकार, ये बातें रामेश्वरी देवी के कानों तक जा पहुचीं. समय के भारी फ़ेरबदल ने उन के विचारों की कट्टरता में भी आमूलचूल परिवर्तन ला दिया था. लिहाज़ा, अपनी इकलौती बेटी की जिंदगी का यह हश्र देख कर वे बहुत दुखी हुईं और अपनी करनी पर बहुत पछ्ताईं. वंदना को तलाक दिलवा कर उन्होंने अपनी गलती सुधारनी चाही, परंतु इस के लिए अब काफी देर हो चुकी थी. वंदना की कोख में एक नन्हा भ्रूण अंकुरित हो चुका था.

रामेश्वरी देवी ने उस के गर्भ में पल रहे भ्रूण को गिरवा कर उसे प्रशांत के साए से आज़ाद करना चाहा. लेकिन वंदना तैयार न हुई. हार कर उन्होंने बच्चे समेत सदा के लिए उस से मायके आ जाने का आग्रह किया जिसे भी वंदना ने सख्त लहजे में इनकार कर दिया. मां की तानाशाही प्रवृत्ति के चलते वह पिता के साए से हमेशा महरूम रही थी. यह गम उसे जिंदगीभर सालता रहा. इसलिए वह अपनी बेटी को उस के पिता के प्यार से वंचित नहीं रखना चाहती थी. सो, इन दुखों और परेशानियों को अपना नसीब मान कर वह सबकुछ सहने लगी.

खिलखिलाती हुई वंदना की जिंदगी अब घर की चारदीवारी के भीतर कैद हो चुकी थी. प्रशांत के लिए अस्तित्वहीन हो चुकी वंदना धीरेधीरे अपना स्वाभाविक स्वरूप खोने लगी. उस ने लाख कोशिशें कीं उस घर को अपनाने की, प्रशांत को अपना बनाने की. मगर प्रशांत पर इस सब का कोई फर्क न पड़ा. बेटी तृषा के होने के बाद भी उस का रवैया वंदना के प्रति तनिक न बदला.

हद तो तब हुई जब प्रशांत की जिंदगी में एक दूसरी औरत आ गई. वंदना इतनी मानसिक और शारीरिक यंत्रणाएं सह कर भी आज तक चुप रही थी पर सौतिया डाह का ये डंक उस की नसों में उबाल ले आया और वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो आख़िरकार विद्रोह कर बैठी.

इस पर प्रशांत ने एक और घटिया पैंतरा इस्तेमाल करते हुए उस पर बदचलनी का आरोप लगाया और उसे तलाक की धमकी दी. जाने कैसे उस ने वंदना और मानस की एक फोटो कहीं से जुगाड़ कर ली थी, जिस में हाथों में हाथ डाले वे प्रेमी परिंदे दुनिया से बेफ़िक्र हो कर कहीं घूम रहे थे. उस फोटो को उस के सामने उछालते हुए प्रशांत ने कहा कि वह उन मांबेटी की इज्जत पूरे समाज में ऐसे ही उछाल कर रख देगा जिस से वह और उस की मां कहीं किसी को मुंह दिखाने काबिल न बचेंगी. जिस का परिणाम यह होगा कि पहले ही अपना सबकुछ गंवा चुकी उस की लाचार मां समय से पहले ही मृत्यु का ग्रास बन जाएगी और वंदना पूरी दुनिया में अकेली रह जाएगी.

प्रशांत की ललकार ने वंदना का दिल कंपा दिया. सच में अगर मां को कुछ हो गया तो मायके के नाम पर उस का इकलौता सहारा भी छिन जाएगा और तलाक के बाद वह अपनी नन्हीं सी बच्ची को ले कर कहां जाएगी. अपनी दयनीय स्थिति पर वह खुल कर विलाप भी न कर पा रही थी. भीतर के इस डर ने उस की रहीसही हिम्मत को भी समाप्त कर दिया और वह पूरी तरह से प्रशांत के नियंत्रण में होती चली गई.

उस की जिंदगी में तृषा ही एकमात्र ख़ुशी थी जिस को पलतेपढ़ते देख वह सुकून से भर जाती. तृषा का खिलखिलाता चेहरा और मासूम शरारतें न चाहते हुए भी उसे मुसकराने पर मजबूर कर देतीं. इधर सालभर चले प्रेम प्रसंग के बाद प्रशांत ने उस दूसरी औरत से शादी रचा ली और उस के लिए एक फ़्लैट खरीद दिया जिस में अपनी सुविधानुसार वह जब तब आताजाता रहता था. लेकिन इस बीच भी वंदना पर उस का शिकंजा कसा ही रहा.

समय अपनी ही गति से आगे बढ़ा जा रहा था. नन्ही तृषा अब 21 साल की हो चली थी. दिखने में अपनी मां की तरह खूबसूरत तृषा उसी की तरह खुशमिजाज़ और जिंदादिल थी. वह घर के माहौल को अब काफीकुछ समझने लगी थी. लिहाज़ा, मां के प्रति पिता का गलत रवैया और उस पर मां की चुप्पी की मुहर कई बार उसे व्यथित कर देती. घर में पिता द्वारा बारबार होता मां का अपमान उस के लिए असहनीय होता जा रहा था. लेकिन वंदना अपनी फूल सी बच्ची को इन पचड़ों में नहीं पड़ने देना चाहती थी, इसलिए प्यारभरी नसीहत दे कर वह उसे हमेशा चुप करा देती. तृषा मां की बात का मान रखते हुए उस वक्त तो चुप्पी साध लेती मगर उस का मन भीतर ही भीतर विद्रोह कर उठता.

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December 20, 2021 at 10:00AM

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