Tuesday 14 December 2021

अरेबियन दूल्हा -भाग 1: नसीबन और शकील के दिलों पर क्या बीती

दीवान का भतीजा शकील 5-6 साल की उम्र से ही दीवान के साथ बंगले पर रोज हाजिरी देता. मैडम उसे कुछ अच्छा खाने के लिए या कभीकभी अठन्नी दे देती थीं जिस के लालच में वह अपने नन्हेमुन्हे हाथों से मैडम के पैर दबाने का काम बड़ी मुस्तैदी से करता था.

दीवान के जिम्मे फैक्टरी पर ड्यूटी देने के अलावा कई घरेलू काम भी थे जैसे मैडम के आदेश पर किसी महिला को बुलवाना या कोई सामान लाना आदि. जिस के बदले में वे दीवान को हर महीने फैक्टरी की तनख्वाह के अलावा 1 हजार रुपए किसी बहाने से पकड़ा देतीं. चूंकि वह मैडम का करीबी था इसलिए फैक्टरी के कर्मचारियों में उस की इज्जत थी. वह फैक्टरी के लोगों के छोटेमोटे काम साहब से करवाने में अकसर कामयाब हो जाता था.

दीवान के रास्ते पर चलतेचलते शकील भी जब 18 साल का हुआ तो मैडम ने खाली जगह पर उसे दिहाड़ी मजदूर के रूप में रखवा दिया. गांव वालों में वह भी अब हैसियत वाला माना जाने लगा. पहली वजह फैक्टरी में 2,500 रुपए का मुलाजिम, दूसरी, बड़े साहब के बंगले तक पहुंच. हर किसी को पक्का विश्वास था कि जल्द ही उसे पक्की नौकरी मिल जाएगी.

करीमन की इकलौती बेटी नसीबन 10वीं पास थी. 16 वसंत पार करतेकरते उस का झुकाव शकील की तरफ होने लगा. दोनों की जाति एक थी और उन में 2 साल का फर्क था. बिना कुछ लिएदिए काम चल जाए तो क्या हर्ज. उस की मां ने तो उसे उल्टे ढील दे रखी थी. हालांकि दीवान कभीकभी शकील को दिखावे के लिए डांटता.

नसीबन बड़ी समझदार थी. लड़के गांव में बहुत थे. झुकी तो सोचसमझ कर, हमउम्र, फैक्टरी का मुलाजिम, बचपन से मैडम का मुंहचढ़ा, गजब की कदकाठी. शकील का चौड़ा सीना…जब देखो, दिल सटने को चाहे. ताकत इतनी कि दीवान का एक बैल मर गया तो दूसरे का तब तक हल में साथ दिया जब तक कि उस ने दूसरा बैल खरीद न लिया. नसीबन को इस बात से कुछ लेना न था कि शकील सिर्फ चौथी तक पढ़ा है.

नसीबन के पिता कभी फरीदाबाद में राजमिस्त्री का काम कर के अच्छा पैसा कमा लेते थे. इकलौती बेटी को अच्छा पढ़ाते व पहनाते थे. फालिज की मार ऐसी पड़ी की वे चल बसे. आमदनी का जरिया जाता रहा तो मजबूर हो कर नसीबन की मां को खेतों में काम कर के गुजारा करना पड़ा.

एक दिन शकील के घर के सामने वाले आम के पेड़ से कईकई बार कूद कर भी नसीबन सिर्फ 2 कच्चे आम तोड़ पाई थी कि शकील ने उस की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मांग के आम नहीं ले सकती थी. सिर्फ 2 आम के लिए अपनी प्यारीप्यारी टांगें तुड़वाती. ला, दबा दूं… चोट तो नहीं लगी.’’

नसीबन ने हाथ छुड़ाना जरूरी नहीं समझा. उसे शकील के पकड़ते ही करंट लग चुका था. फटी कमीज में यों ही नसीबन की जवानी फूट रही थी. धीरे से बोली, ‘‘टांगें दबानी हैं तो पहले निकाह पढ़.’’

उपयुक्त वातावरण देख कर शकील ने अंधेरे का फायदा उठा कर कहा, ‘‘आम क्या चीज है तू मेरी जान मांग के तो देख.’’

‘‘देख शकील, आगे न बढ़ना,’’ नसीबन के इतना कहते ही शकील ने पकड़ ढीली कर दी. फिर बोला, ‘‘किसी से कहना नहीं, मैं तेरे लिए आम लाता हूं. 2 मिनट चैन से यहीं बैठ कर दिल की बातें करेंगे,’’ उस के बाद शकील ने उसे गोद में लिटा कर एक आम खुद खाया और एक उसे अपने हाथ से खिलाया.

काफी देर दोनों अंधेरे में एकदूसरे में खोए रहे. वह शकील के बालों में उंगलियां फिराती बोली, ‘‘चचा से कहो न, मां से मेरा हाथ मांगें.’’

‘‘जल्दी क्या पड़ी है. देख, पहली पगार से तेरे लिए सोने की अंगूठी लाया हूं,’’ अंगूठी पहना कर शकील ने उस का गाल चूमा तो उस ने फटी कमीज की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘यहां.’’

शकील ने अपने होंठ उस के सीने के उभार पर रख दिए.

तभी नसीबन की मां की आवाज आई, ‘‘नसीबन? कहां है?’’

कपड़े ठीक कर के वह बोली, ‘‘मां, अभी आई.’’

सुबह बेटी की उंगली में सोने की अंगूठी देख कर मां बोलीं. ‘‘यह तुझे किस ने दी.’’

‘‘शकील ने,’’ खुश हो कर वह बोली.

‘‘4-5 हजार से कम की नहीं होगी. बेटी, लेकिन निकाह के पहले कमर के नीचे न छूने देना.’’

‘‘मां,’’ कह कर वह करीमन से लिपट गई.

शकील के प्रस्ताव पर दीवान ने भतीजे को समझा दिया कि वह करीमन से कहेगा कि वह बेटी की अभी कहीं जबान न दे. तुम्हारी पक्की नौकरी हो जाए. 1-2 कमरे बन जाएं तो निकाह पढ़वा लेंगे. शकील तब खुश हो गया.

दीवान ने अगले ही दिन करीमन से बात की, ‘‘करीमन, 4-6 महीने अपनी लौंडिया नहीं रोक सकती. शकील की पक्की नौकरी होने दे. 1-2 कमरे पक्के बनवा दूं. आखिर कहां रखेंगे. क्या शकील को घरदामाद बनाने का इरादा है और साफसाफ सुन ले, रात में बेटी को बगीचे में भेजेगी तो तू समझना, जवान लड़का है, मैं नहीं रोक पाऊंगा. कुछ ऊंचनीच हो गई तो, मुझे मत कहना.’’

‘‘दीवान भाई, मैं क्यों घरदामाद बनाती. मेरे बाद तो यह घर उसी का है. बात पक्की समझूं.’’

‘‘हां, पक्की.’’

 

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दीवान का भतीजा शकील 5-6 साल की उम्र से ही दीवान के साथ बंगले पर रोज हाजिरी देता. मैडम उसे कुछ अच्छा खाने के लिए या कभीकभी अठन्नी दे देती थीं जिस के लालच में वह अपने नन्हेमुन्हे हाथों से मैडम के पैर दबाने का काम बड़ी मुस्तैदी से करता था.

दीवान के जिम्मे फैक्टरी पर ड्यूटी देने के अलावा कई घरेलू काम भी थे जैसे मैडम के आदेश पर किसी महिला को बुलवाना या कोई सामान लाना आदि. जिस के बदले में वे दीवान को हर महीने फैक्टरी की तनख्वाह के अलावा 1 हजार रुपए किसी बहाने से पकड़ा देतीं. चूंकि वह मैडम का करीबी था इसलिए फैक्टरी के कर्मचारियों में उस की इज्जत थी. वह फैक्टरी के लोगों के छोटेमोटे काम साहब से करवाने में अकसर कामयाब हो जाता था.

दीवान के रास्ते पर चलतेचलते शकील भी जब 18 साल का हुआ तो मैडम ने खाली जगह पर उसे दिहाड़ी मजदूर के रूप में रखवा दिया. गांव वालों में वह भी अब हैसियत वाला माना जाने लगा. पहली वजह फैक्टरी में 2,500 रुपए का मुलाजिम, दूसरी, बड़े साहब के बंगले तक पहुंच. हर किसी को पक्का विश्वास था कि जल्द ही उसे पक्की नौकरी मिल जाएगी.

करीमन की इकलौती बेटी नसीबन 10वीं पास थी. 16 वसंत पार करतेकरते उस का झुकाव शकील की तरफ होने लगा. दोनों की जाति एक थी और उन में 2 साल का फर्क था. बिना कुछ लिएदिए काम चल जाए तो क्या हर्ज. उस की मां ने तो उसे उल्टे ढील दे रखी थी. हालांकि दीवान कभीकभी शकील को दिखावे के लिए डांटता.

नसीबन बड़ी समझदार थी. लड़के गांव में बहुत थे. झुकी तो सोचसमझ कर, हमउम्र, फैक्टरी का मुलाजिम, बचपन से मैडम का मुंहचढ़ा, गजब की कदकाठी. शकील का चौड़ा सीना…जब देखो, दिल सटने को चाहे. ताकत इतनी कि दीवान का एक बैल मर गया तो दूसरे का तब तक हल में साथ दिया जब तक कि उस ने दूसरा बैल खरीद न लिया. नसीबन को इस बात से कुछ लेना न था कि शकील सिर्फ चौथी तक पढ़ा है.

नसीबन के पिता कभी फरीदाबाद में राजमिस्त्री का काम कर के अच्छा पैसा कमा लेते थे. इकलौती बेटी को अच्छा पढ़ाते व पहनाते थे. फालिज की मार ऐसी पड़ी की वे चल बसे. आमदनी का जरिया जाता रहा तो मजबूर हो कर नसीबन की मां को खेतों में काम कर के गुजारा करना पड़ा.

एक दिन शकील के घर के सामने वाले आम के पेड़ से कईकई बार कूद कर भी नसीबन सिर्फ 2 कच्चे आम तोड़ पाई थी कि शकील ने उस की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मांग के आम नहीं ले सकती थी. सिर्फ 2 आम के लिए अपनी प्यारीप्यारी टांगें तुड़वाती. ला, दबा दूं… चोट तो नहीं लगी.’’

नसीबन ने हाथ छुड़ाना जरूरी नहीं समझा. उसे शकील के पकड़ते ही करंट लग चुका था. फटी कमीज में यों ही नसीबन की जवानी फूट रही थी. धीरे से बोली, ‘‘टांगें दबानी हैं तो पहले निकाह पढ़.’’

उपयुक्त वातावरण देख कर शकील ने अंधेरे का फायदा उठा कर कहा, ‘‘आम क्या चीज है तू मेरी जान मांग के तो देख.’’

‘‘देख शकील, आगे न बढ़ना,’’ नसीबन के इतना कहते ही शकील ने पकड़ ढीली कर दी. फिर बोला, ‘‘किसी से कहना नहीं, मैं तेरे लिए आम लाता हूं. 2 मिनट चैन से यहीं बैठ कर दिल की बातें करेंगे,’’ उस के बाद शकील ने उसे गोद में लिटा कर एक आम खुद खाया और एक उसे अपने हाथ से खिलाया.

काफी देर दोनों अंधेरे में एकदूसरे में खोए रहे. वह शकील के बालों में उंगलियां फिराती बोली, ‘‘चचा से कहो न, मां से मेरा हाथ मांगें.’’

‘‘जल्दी क्या पड़ी है. देख, पहली पगार से तेरे लिए सोने की अंगूठी लाया हूं,’’ अंगूठी पहना कर शकील ने उस का गाल चूमा तो उस ने फटी कमीज की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘यहां.’’

शकील ने अपने होंठ उस के सीने के उभार पर रख दिए.

तभी नसीबन की मां की आवाज आई, ‘‘नसीबन? कहां है?’’

कपड़े ठीक कर के वह बोली, ‘‘मां, अभी आई.’’

सुबह बेटी की उंगली में सोने की अंगूठी देख कर मां बोलीं. ‘‘यह तुझे किस ने दी.’’

‘‘शकील ने,’’ खुश हो कर वह बोली.

‘‘4-5 हजार से कम की नहीं होगी. बेटी, लेकिन निकाह के पहले कमर के नीचे न छूने देना.’’

‘‘मां,’’ कह कर वह करीमन से लिपट गई.

शकील के प्रस्ताव पर दीवान ने भतीजे को समझा दिया कि वह करीमन से कहेगा कि वह बेटी की अभी कहीं जबान न दे. तुम्हारी पक्की नौकरी हो जाए. 1-2 कमरे बन जाएं तो निकाह पढ़वा लेंगे. शकील तब खुश हो गया.

दीवान ने अगले ही दिन करीमन से बात की, ‘‘करीमन, 4-6 महीने अपनी लौंडिया नहीं रोक सकती. शकील की पक्की नौकरी होने दे. 1-2 कमरे पक्के बनवा दूं. आखिर कहां रखेंगे. क्या शकील को घरदामाद बनाने का इरादा है और साफसाफ सुन ले, रात में बेटी को बगीचे में भेजेगी तो तू समझना, जवान लड़का है, मैं नहीं रोक पाऊंगा. कुछ ऊंचनीच हो गई तो, मुझे मत कहना.’’

‘‘दीवान भाई, मैं क्यों घरदामाद बनाती. मेरे बाद तो यह घर उसी का है. बात पक्की समझूं.’’

‘‘हां, पक्की.’’

 

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