Wednesday 29 December 2021

धंधा अपना अपना

‘‘भक्तजनो,यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन तुम इन बेड़ियों को तोड़ दोगे उस दिन तुम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाओगे,’’ स्वामी दिव्यानंद की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी.

महानगर के सब से वातानुकूलित हाल में एक ऊंचे मंच पर स्वामीजी विराजमान थे. गेरुए रंग के रेशमी वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का तिलक और उंगलियों में जगमगा रही पुखराज की अंगूठियां उन के व्यक्तित्व को अनोखी गरिमा प्रदान कर रही थीं.

प्रचार करा गया था कि स्वामीजी को सिद्धि  प्राप्त है. जिस पर उन की कृपादृष्टि हो जाए उस के कष्ट दूर होते देर नहीं लगती. पूरे शहर में स्वामीजी के बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे. दूरदूर के इलाकों से आए भक्तजन स्वामीजी की महिमा का बखान करते रहते. जन सैलाब उन के दर्शन करने के लिए उमड़ा पड़ा था.

सुबह, दोपहर, शाम स्वामीजी दिन में 3 बार भक्तों को दर्शन और प्रवचन देते थे. इस समय उन का अंतिम व्याख्यान चल रहा था. पूरा हाल रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी से जगमगा रहा था. मंच की सज्जा गुलाब के ताजे फूलों से की गई थी, जिन की खुशबू पूरे हाल में बिखरी थी.

स्वामीजी के चरणों में शीश झुका कर आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा था. आश्रम के स्वयंसेवक भी श्रद्धालुओं को अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

रात 9 बजे स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ. उन्होंने हाथ उठा कर भक्तों को आशीर्वाद दिया तो उन के जयघोष से पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. मंदमंद मुसकराते हुए स्वामीजी उठे और आशीर्वाद की वर्षा करते हुए मंच के पीछे चले गए. उन के जाने के बाद धीरेधीरे हाल खाली हो गया. स्वामीजी के विश्वासपात्र शिष्यों श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंदजी महाराज ने स्वयंसेवकों को भी बाहर निकालने के बाद हाल का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘चलो भाई, आज की मजदूरी बटोरी जाए’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने अपने गेरुए कुरते की बांहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘दिन भर इन बेवकूफों का स्वागतसत्कार करतेकरते यह नश्वर शरीर थक कर चूरचूर हो गया है. अब इसे तत्काल उत्तम किस्म के विश्राम की आवश्यकता है. इसलिए सारी गिनती शीघ्र पूरी कर ली जाए,’’ सत्यानंदजी महाराज ने अंगड़ाई लेते हुए सहमति जताई.

‘‘जो आज्ञा महाराज, श्रद्धानंदजी महाराज ने मुसकराते हुए मंच के सामने लगे फूलों के ढेर को फर्श पर बिखरा दिया. फूलों के साथ भक्तजनों ने दिल खोल कर दक्षिणा भी अर्पित की थी. दोनों तेजी से उसे बटोरने लगे, किंतु उन की आंखों से लग रहा था कि उन्हें किसी और चीज की तलाश है.

श्रद्धानंदजी महाराज ने फूलों के ढेर को एक बार फिर उलटापुलटा तो उन की आंखें चमक उठीं. वे खुशी से चिल्लाए, ‘‘वह देखो मिल गया.’’

सामने लाल रंग के रेशमी कपड़े में लिपटी कोई वस्तु पड़ी थी. सत्यानंदजी महाराज ने लपक कर उसे उठा लिया. शीघ्रता से उन्होंने उस वस्त्र को खोला तो उस के भीतर 1 लाख रुपए की नई गड्डी चमक रही थी.

‘‘महाराज, आज फिर वह 1 लाख की गड्डी चढ़ा गया है,’’ सत्यानंदजी गड्डी ले कर दिव्यानंदजी के कक्ष की ओर लपके. श्रद्धानंदजी महाराज भी उन के पीछेपीछे दौड़े.

स्वामी दिव्यानंद शानदार महाराजा बैड पर लेटे हुए थे. आवाज सुनते ही वे उठ बैठे. उन्होंने एक लाख की गड्डी को ले कर उलटपुलट कर देखा. उस के असली होने का विश्वास होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘कुछ पता चला कौन था वह?’’

‘‘स्वामीजी, हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता ही नहीं चल पाया कि वह गड्डी कब और कौन चढ़ा गया,’’ सत्यानंद महाराज ने कहा.

‘‘तुम दोनों माल खाखा कर मुटा गए हो. एक आदमी 5 दिनों से रोज 1 लाख की गड्डी चढ़ा जाता है और तुम दोनों उस का पता नहीं लगा पा रहे हो,’’ स्वामीजी की आंखें लाल हो उठीं.

‘‘क्षमा करें महाराज, हम ने पूरी कोशिश की…’’

‘‘क्या खाक कोशिश की,’’ स्वामीजी उस की बात काटते हुए गरजे, ‘‘तुम दोनों से कुछ नहीं होगा. अब हमें ही कुछ करना होगा,’’ इतना कह कर उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाते हुए बोले, ‘‘हैलो निर्मलजी, मैं जिस मंच पर बैठता हूं उस के ऊपर आज रात में ही सीसी टीवी कैमरा लग जाना चाहिए.’’

‘‘लेकिन स्वामीजी, आप ही ने तो वहां कैमरा लगाने से मना किया था. बाकी सभी जगहों पर कैमरे लगे हुए हैं और उन की चकाचक रिकौर्डिंग हो रही है,’’ निर्मलजी की आवाज आई.

‘‘वत्स, यह सृष्टि परिवर्तनशील है. यहां कुछ भी स्थाई नहीं होता है,’’ स्वामीजी हलका सा हंसे फिर बोले, ‘‘तुम तो जानते हो कि मेरे निर्णय समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं. इसी कारण सफलता सदैव मेरे कदम चूमती है. तुम तो बस इतना बतलाओ कि यह काम कितनी देर में पूरा हो जाएगा. काम तुम्हारा और पैसा हमारा.’’

‘‘सूर्योदय से पहले आप की आज्ञा का पालन हो जाएगा,’’ निर्मलजी ने आश्वासन दिया. फिर झिझकते हुए बोले, ‘‘स्वामीजी कुछ जरूरी काम आ पड़ा है. अगर कुछ पैसे मिल जाते तो कृपा होती.’’

‘‘1 पैसे का भी भरोसा नहीं करते हो मुझ पर,’’ स्वामीजी ने कहा और फिर श्रद्धानंद की ओर मुड़ते हुए बोले, ‘‘निर्मलजी को अभी पैसे पहुंचा दो वरना उन्हें कोई दूसरा जरूरी काम याद आ जाएगा.’’

‘‘जो आज्ञा महाराज,’’ कह श्रद्धानंदजी महाराज सिर नवा कर चले गए.

निर्मलजी ने वादा निभाया. सूर्योदय से पहले स्वामीजी के मंच के ऊपर सीसी टीवी कैमरा लग गया. उधर उस भक्त ने भी अपनी रीति निभाई. आज फिर वह लाल वस्त्र में लिपटी 1 लाख की गड्डी स्वामीजी के चरणों में अर्पित कर गया था. श्रद्धानंद और दिव्यानंद आज भी उस भक्त का पता नहीं लगा पाए.

रात के 11 बजे स्वामीजी बड़ी तल्लीनता के साथ सीसी टीवी की रिकौर्डिंग देख रहे थे. अचानक एक दृश्य को देखते ही वे बोले, ‘‘इसे रिवाइंड करो.’’

श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग को रिवाइंड कर के चला दिया. स्वामीजी ने 2 बार और रिवाइंड करवाया. श्रद्धानंद को उस में कोई खास बात नजर नहीं आ रही थी, लेकिन स्वामीजी की आज्ञा का पालन जरूरी था.

‘‘रोकोरोको, यहीं पर रोको,’’ अचानक स्वामीजी चीखे, श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग तुरंत रोक दी.

‘‘जूम करो इसे,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी तो श्रद्धानंद ने जूम कर दिया.

‘‘यह रहा मेरा शिकार,’’ स्वामीजी ने सोफे से उठ कर स्क्रीन पर एक जगह उंगली रख दी. फिर बोले, ‘‘हलका सा रिवाइंड कर स्लो मोशन में चलाओ इसे.’’

श्रद्धानंद ने स्लो मोशन में रिकार्डिंग चला दी. रिकौर्डिंग में करीब 45 साल का एक व्यक्ति हाथों में फूलों का दोना लिए स्वामीजी के करीब आता दिखाई पड़ा. करीब आ कर उस ने फूलों को स्वामीजी के चरणों में अर्पित करने के बाद अपना शीश भी उन के चरणों में रख दिया. इसी के साथ उस ने अत्यंत शीघ्रता के साथ अपनी जेब से लाल रंग के वस्त्र में लिपटी गड्डी निकाली और फूलों के नीचे सरका दी. एक बार फिर शीश नवाने के बाद वह उठ कर तेजी से बाहर चला गया.

‘‘यह कोई तगड़ा आसामी मालूम पड़ता है. इस का चेहरा तुम दोनों ध्यान से देख लो. मुझे यह आदमी चाहिए… हर हालत में चाहिए,’’ स्वामीजी की आंखों में अनोखी चमक उभर आई.

‘‘आप चिंता मत करिए. कल हम लोग इसे हर हालत में पकड़ लाएंगे,’’ सत्यानंद ने आश्वस्त किया.

‘‘नहीं वत्स,’’ स्वामीजी अपना दायां हाथ उठा कर शांत स्वर में बोले, ‘‘वह मेरा अनन्य भक्त है. उसे पकड़ कर नहीं, बल्कि पूर्ण सम्मान के साथ लाना. स्मरण रहे कि उसे कोई कष्ट न होने पाए.’’

‘‘जो आज्ञा,’’ श्रद्धानंद और सत्यानंद ने शीश नवाया और कक्ष से बाहर चले गए.

अगले दिन उन दोनों की दृष्टि हर आनेजाने वाले भक्त के चेहरे पर टिकी थी. रात के करीब 8 बजे जब शरीर थक कर चूर होने लगा तब वह व्यक्ति आता दिखाई पड़ा.

‘‘देखो वह आ गया,’’ श्रद्धानंद ने सत्यानंद को कुहनी मारी.

‘‘लग तो यही रहा है. चलो उसे उधर ले कर चलते हैं,’’ सत्यानंद ने कहा.

‘‘अभी नहीं. पहले उसे गड्डी चढ़ा लेने दो ताकि सुनिश्चित हो जाए कि यह वही है जिस की हमें तलाश है,’’ श्रद्धानंद फुसफुसाए.

पिछले कल की तरह वह व्यक्ति आज भी मंच के करीब आया. फूल अर्पित करने के बाद उस ने स्वामीजी के चरणों में शीश नवाया, लाल रंग में लिपटी नोटों की गड्डी को चढ़ाने के बाद वह तेजी से उठ कर बाहर चल दिया.

‘‘मान्यवर, कृपया इधर आइए,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने उस के करीब आ कर सम्मानित स्वर में कहा.

‘‘क्यों?’’

‘‘स्वामीजी आप से भेंट करना चाहते हैं,’’ सत्यानंदजी महाराज ने बताया.

‘‘मुझ से? किसलिए?’’ वह व्यक्ति घबरा उठा.

‘‘वे आप की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हैं. इसलिए आप को साक्षात दर्शन दे कर आशीर्वाद देना चाहते हैं,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने बताया, ‘‘बड़ेबड़े मंत्री और अफसर स्वामीजी के दर्शनों के लिए लाइन लगा कर खड़े होते हैं. आप अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो स्वामीजी ने आप को स्वयं मिलने के लिए बुलाया है. अब आप का भाग्योदय निश्चित है.’’

यह सुन उस व्यक्ति के चेहरे पर राहत के चिह्न उभर आए. श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंद महाराज ने उसे एक खूबसूरत कक्ष में बैठा दिया.

करीब आधा घंटे बाद स्वामीजी उस कक्ष में आए और अत्यंत शांत स्वर में बोले, ‘‘वत्स, तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम्हें जीवन में बहुत बड़ी सफलता मिलने वाली है.’’

स्वामीजी की वाणी सुन वह व्यक्ति उन के चरणों में लेट गया. उस की आंखों से श्रद्धा सुमन बह निकले. स्वामीजी ने उसे अपने हाथों से पकड़ कर उठाया और फिर स्नेह भरे स्वर में बोले, ‘‘उठो वत्स, अश्रु बहाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक नया सवेरा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है.’’

‘‘स्वामीजी, आप के दर्शन पा कर मेरा जीवन धन्य हो गया,’’ वह व्यक्ति हाथ जोड़ कर बोला. भावातिरेक में उस की वाणी अवरुद्ध हो रही थी.

स्वामीजी ने उसे अपने साथ सोफे पर बैठाया और फिर बोले, ‘‘वत्स, एक प्रश्न पूछूं तो क्या उस का उत्तर सचसच दोगे?’’

‘‘आप आज्ञा करें तो उत्तर तो क्या आप के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हूं,’’ उस व्यक्ति ने कहा.

स्वामीजी ने अपनी दिव्यदृष्टि उस के चेहरे पर टिका दी फिर सीधे उस की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘तुम प्रतिदिन 1 लाख रुपयों की गड्डी मेरे चरणों में क्यों चढ़ा रहे हो?’’

यह सुन उस व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद कर लीं. उस के चेहरे पर छाए भावों को देख कर लग रहा था कि उस के भीतर भारी संघर्ष चल रहा है. चंद पलों बाद उस ने अपनी आंखें खोलीं और बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं एक अरबपति आदमी था, लेकिन व्यापार में घाटा हो जाने के कारण मैं पूरी तरह बरबाद हो गया. सभी रिश्तेदारों और परिचितों ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. एक दिन मुझे पता चला कि यूरोप में एक बंद फैक्टरी कौड़ियों के भाव बिक रही है. मेरी पत्नी आप की अनन्य भक्त है. उस की सलाह पर मैं ने अपना मकान और पत्नी के गहने बेच कर वह फैक्टरी खरीद ली. आप को उस फैक्टरी में 20% का साझेदार बना कर मैं ने उस फैक्टरी को दोबारा चलाना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में काफी परेशानियां हुईं लेकिन आप के आशीर्वाद से पिछले सप्ताह से वह फैक्टरी फायदे में आ गई. इस समय उस से 5 लाख रुपये रोज का फायदा हो रहा है. इसलिए 20% के हिसाब से मैं रोज 1 लाख रुपए आप के चरणों में अर्पित कर देता हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात गुप्त क्यों रखी?’’ मुझे बता भी तो सकते थे? स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मैं ने सुना है कि आप मोहमाया और लोभ से काफी ऊपर हैं. इसलिए आप को बता कर आप की साधना में विध्न डालने का साहस मैं नहीं कर सका.’’

‘‘वत्स, धन्य हो तुम. तुम जैसे ईमानदार व्यक्तियों के बल पर ही यह दुनिया चल रही है वरना अब तक अपने पाप के बोझ से यह रसातल में समा चुकी होती,’’ स्वामीजी ने गंभीर स्वर में सांस भरी फिर आशीर्वाद की मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘ईश्वर की कृपा दृष्टि तुम पर पड़ चुकी है. जल्द ही तुम्हें 5 लाख रुपए नहीं, बल्कि 5 करोड़ रोज का मुनाफा होने वाला है.’’

‘‘सत्य वचन महाराज,’’ उस व्यक्ति ने श्रद्धा से शीश झुकाया फिर बोला, ‘‘यूरोप में ही एक और बंद पड़ी खान का पता लगा है, मैं ने हिसाब लगाया है कि अगर उसे ठीक से चलाया जाए तो 5 करोड़ रुपए रोज तो नहीं लेकिन 5 करोड़ रुपए महीने का फायदा जरूर हो सकता है.’’

‘‘तो उस फैक्टरी को खरीद क्यों नहीं लेते?’’

‘‘खरीद तो लेता, लेकिन उस के लिए करीब 20 करोड़ रुपए चाहिए. मैं ने काफी भागदौड़ की, लेकिन फंड का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. एक बार मुझे व्यापार में घाटा हो चुका है, इसलिए फाइनैंसर मुझ पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं,’’ उस व्यक्ति के स्वर में निराशा झलक उठी.

‘‘वत्स, फंड की चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हें मेरी शरण में भेज दिया है, इसलिए अब सारी व्यवस्थाएं हो जाएंगी,’’ स्वामीजी मुसकराए.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम जैसे व्यक्तियों का दिया मेरे पास बहुत कुछ है. वह मेरे किसी काम का नहीं है. तुम उसे ले जाओ और फैक्टरी खरीद लो,’’ स्वामीजी ने कहा.

‘‘आप मुझे इतना रुपया दे देंगे?’’ उस व्यक्ति की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘अकारण नहीं दूंगा,’’ स्वामीजी मुसकराए, ‘‘मुझे अपने भक्तों के कल्याण के लिए बहुत सारे कार्य करने हैं. इस सब के लिए बहुत पैसा चाहिए. इसलिए इस पैसे से तुम फैक्टरी खरीद लो, लेकिन उस में 51 प्रतिशत शेयर मेरे होंगे.’’

‘‘आप धन्य हैं महाराज,’’ वह व्यक्ति एक बार फिर स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

‘‘श्रद्धा और सत्या, तुम दोनों अभी इन के साथ इन के निवास पर जाओ.

साझेदारी के कागजात तुरंत बना लो ताकि फैक्टरी को जल्द से जल्दी खरीद लिया जाए,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी.

अगले ही दिन साझेदारी के कागजात तैयार हो गए. स्वामीजी ने हजारों भक्तों की चढ़ाई की कमाई अपने अनन्य भक्त को सौंप दी. वह भक्त फैक्टरी खरीदने यूरोप चला गया.

स्वामीजी की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने जगमगा रहे थे. किंतु जब 1 महीने तक उस भक्त का कोई संदेश नहीं आया तो उन्होंने श्रद्धानंद और सत्यानंद को उस के निवास पर भेजा. वहां उपस्थिति गार्ड ने उन दोनों को देखते ही बताया, ‘‘उन साहब ने तो 2 महीने के लिए यह कोठी किराए पर ली थी, किंतु आप लोगों के आने के 2 दिनों बाद वे अचानक ही इसे खाली कर के चले गए थे. किंतु जाने से पहले वे आप लोगों के लिए एक लिफाफा दे गए थे. कह रहे थे कि आप लोग एक न एक दिन उन से मिलने यहां जरूर आएंगे.’’

इतना कह कर गार्ड अपनी कोठरी के भीतर से एक लिफाफा ले आया. डगमगाते कदमों से वे दोनों स्वामी दिव्यानंद के पास लौट आए और लिफाफा उन्हें पकड़ा दिया.

स्वामीजी ने लिफाफा फाड़ा तो उस के भीतर से एक पत्र निकला, जिस में लिखा था:

‘‘आदरणीय स्वामी जी,

सादर चरण स्पर्श. अब तो आप को विश्वास हो गया होगा कि यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन कोई व्यक्ति इन बेड़ियों को तोड़ देगा उस दिन वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाएगा. आप ने अपने भक्तों की बेड़ियां तोड़ने का कार्य किया है और मैं ने आप की इन बेड़ियों को तोड़ने की छोटी सी चेष्टा की है. आप इसे ‘धंधा अपना अपना’ भी कह सकते हैं.

आप का एक सेवक.

स्वामीजी उस पत्र को अपलक निहारे जा रहे थे और श्रद्धा और सत्या उन के चेहरे को.

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‘‘भक्तजनो,यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन तुम इन बेड़ियों को तोड़ दोगे उस दिन तुम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाओगे,’’ स्वामी दिव्यानंद की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी.

महानगर के सब से वातानुकूलित हाल में एक ऊंचे मंच पर स्वामीजी विराजमान थे. गेरुए रंग के रेशमी वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का तिलक और उंगलियों में जगमगा रही पुखराज की अंगूठियां उन के व्यक्तित्व को अनोखी गरिमा प्रदान कर रही थीं.

प्रचार करा गया था कि स्वामीजी को सिद्धि  प्राप्त है. जिस पर उन की कृपादृष्टि हो जाए उस के कष्ट दूर होते देर नहीं लगती. पूरे शहर में स्वामीजी के बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे. दूरदूर के इलाकों से आए भक्तजन स्वामीजी की महिमा का बखान करते रहते. जन सैलाब उन के दर्शन करने के लिए उमड़ा पड़ा था.

सुबह, दोपहर, शाम स्वामीजी दिन में 3 बार भक्तों को दर्शन और प्रवचन देते थे. इस समय उन का अंतिम व्याख्यान चल रहा था. पूरा हाल रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी से जगमगा रहा था. मंच की सज्जा गुलाब के ताजे फूलों से की गई थी, जिन की खुशबू पूरे हाल में बिखरी थी.

स्वामीजी के चरणों में शीश झुका कर आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा था. आश्रम के स्वयंसेवक भी श्रद्धालुओं को अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

रात 9 बजे स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ. उन्होंने हाथ उठा कर भक्तों को आशीर्वाद दिया तो उन के जयघोष से पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. मंदमंद मुसकराते हुए स्वामीजी उठे और आशीर्वाद की वर्षा करते हुए मंच के पीछे चले गए. उन के जाने के बाद धीरेधीरे हाल खाली हो गया. स्वामीजी के विश्वासपात्र शिष्यों श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंदजी महाराज ने स्वयंसेवकों को भी बाहर निकालने के बाद हाल का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘चलो भाई, आज की मजदूरी बटोरी जाए’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने अपने गेरुए कुरते की बांहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘दिन भर इन बेवकूफों का स्वागतसत्कार करतेकरते यह नश्वर शरीर थक कर चूरचूर हो गया है. अब इसे तत्काल उत्तम किस्म के विश्राम की आवश्यकता है. इसलिए सारी गिनती शीघ्र पूरी कर ली जाए,’’ सत्यानंदजी महाराज ने अंगड़ाई लेते हुए सहमति जताई.

‘‘जो आज्ञा महाराज, श्रद्धानंदजी महाराज ने मुसकराते हुए मंच के सामने लगे फूलों के ढेर को फर्श पर बिखरा दिया. फूलों के साथ भक्तजनों ने दिल खोल कर दक्षिणा भी अर्पित की थी. दोनों तेजी से उसे बटोरने लगे, किंतु उन की आंखों से लग रहा था कि उन्हें किसी और चीज की तलाश है.

श्रद्धानंदजी महाराज ने फूलों के ढेर को एक बार फिर उलटापुलटा तो उन की आंखें चमक उठीं. वे खुशी से चिल्लाए, ‘‘वह देखो मिल गया.’’

सामने लाल रंग के रेशमी कपड़े में लिपटी कोई वस्तु पड़ी थी. सत्यानंदजी महाराज ने लपक कर उसे उठा लिया. शीघ्रता से उन्होंने उस वस्त्र को खोला तो उस के भीतर 1 लाख रुपए की नई गड्डी चमक रही थी.

‘‘महाराज, आज फिर वह 1 लाख की गड्डी चढ़ा गया है,’’ सत्यानंदजी गड्डी ले कर दिव्यानंदजी के कक्ष की ओर लपके. श्रद्धानंदजी महाराज भी उन के पीछेपीछे दौड़े.

स्वामी दिव्यानंद शानदार महाराजा बैड पर लेटे हुए थे. आवाज सुनते ही वे उठ बैठे. उन्होंने एक लाख की गड्डी को ले कर उलटपुलट कर देखा. उस के असली होने का विश्वास होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘कुछ पता चला कौन था वह?’’

‘‘स्वामीजी, हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता ही नहीं चल पाया कि वह गड्डी कब और कौन चढ़ा गया,’’ सत्यानंद महाराज ने कहा.

‘‘तुम दोनों माल खाखा कर मुटा गए हो. एक आदमी 5 दिनों से रोज 1 लाख की गड्डी चढ़ा जाता है और तुम दोनों उस का पता नहीं लगा पा रहे हो,’’ स्वामीजी की आंखें लाल हो उठीं.

‘‘क्षमा करें महाराज, हम ने पूरी कोशिश की…’’

‘‘क्या खाक कोशिश की,’’ स्वामीजी उस की बात काटते हुए गरजे, ‘‘तुम दोनों से कुछ नहीं होगा. अब हमें ही कुछ करना होगा,’’ इतना कह कर उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाते हुए बोले, ‘‘हैलो निर्मलजी, मैं जिस मंच पर बैठता हूं उस के ऊपर आज रात में ही सीसी टीवी कैमरा लग जाना चाहिए.’’

‘‘लेकिन स्वामीजी, आप ही ने तो वहां कैमरा लगाने से मना किया था. बाकी सभी जगहों पर कैमरे लगे हुए हैं और उन की चकाचक रिकौर्डिंग हो रही है,’’ निर्मलजी की आवाज आई.

‘‘वत्स, यह सृष्टि परिवर्तनशील है. यहां कुछ भी स्थाई नहीं होता है,’’ स्वामीजी हलका सा हंसे फिर बोले, ‘‘तुम तो जानते हो कि मेरे निर्णय समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं. इसी कारण सफलता सदैव मेरे कदम चूमती है. तुम तो बस इतना बतलाओ कि यह काम कितनी देर में पूरा हो जाएगा. काम तुम्हारा और पैसा हमारा.’’

‘‘सूर्योदय से पहले आप की आज्ञा का पालन हो जाएगा,’’ निर्मलजी ने आश्वासन दिया. फिर झिझकते हुए बोले, ‘‘स्वामीजी कुछ जरूरी काम आ पड़ा है. अगर कुछ पैसे मिल जाते तो कृपा होती.’’

‘‘1 पैसे का भी भरोसा नहीं करते हो मुझ पर,’’ स्वामीजी ने कहा और फिर श्रद्धानंद की ओर मुड़ते हुए बोले, ‘‘निर्मलजी को अभी पैसे पहुंचा दो वरना उन्हें कोई दूसरा जरूरी काम याद आ जाएगा.’’

‘‘जो आज्ञा महाराज,’’ कह श्रद्धानंदजी महाराज सिर नवा कर चले गए.

निर्मलजी ने वादा निभाया. सूर्योदय से पहले स्वामीजी के मंच के ऊपर सीसी टीवी कैमरा लग गया. उधर उस भक्त ने भी अपनी रीति निभाई. आज फिर वह लाल वस्त्र में लिपटी 1 लाख की गड्डी स्वामीजी के चरणों में अर्पित कर गया था. श्रद्धानंद और दिव्यानंद आज भी उस भक्त का पता नहीं लगा पाए.

रात के 11 बजे स्वामीजी बड़ी तल्लीनता के साथ सीसी टीवी की रिकौर्डिंग देख रहे थे. अचानक एक दृश्य को देखते ही वे बोले, ‘‘इसे रिवाइंड करो.’’

श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग को रिवाइंड कर के चला दिया. स्वामीजी ने 2 बार और रिवाइंड करवाया. श्रद्धानंद को उस में कोई खास बात नजर नहीं आ रही थी, लेकिन स्वामीजी की आज्ञा का पालन जरूरी था.

‘‘रोकोरोको, यहीं पर रोको,’’ अचानक स्वामीजी चीखे, श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग तुरंत रोक दी.

‘‘जूम करो इसे,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी तो श्रद्धानंद ने जूम कर दिया.

‘‘यह रहा मेरा शिकार,’’ स्वामीजी ने सोफे से उठ कर स्क्रीन पर एक जगह उंगली रख दी. फिर बोले, ‘‘हलका सा रिवाइंड कर स्लो मोशन में चलाओ इसे.’’

श्रद्धानंद ने स्लो मोशन में रिकार्डिंग चला दी. रिकौर्डिंग में करीब 45 साल का एक व्यक्ति हाथों में फूलों का दोना लिए स्वामीजी के करीब आता दिखाई पड़ा. करीब आ कर उस ने फूलों को स्वामीजी के चरणों में अर्पित करने के बाद अपना शीश भी उन के चरणों में रख दिया. इसी के साथ उस ने अत्यंत शीघ्रता के साथ अपनी जेब से लाल रंग के वस्त्र में लिपटी गड्डी निकाली और फूलों के नीचे सरका दी. एक बार फिर शीश नवाने के बाद वह उठ कर तेजी से बाहर चला गया.

‘‘यह कोई तगड़ा आसामी मालूम पड़ता है. इस का चेहरा तुम दोनों ध्यान से देख लो. मुझे यह आदमी चाहिए… हर हालत में चाहिए,’’ स्वामीजी की आंखों में अनोखी चमक उभर आई.

‘‘आप चिंता मत करिए. कल हम लोग इसे हर हालत में पकड़ लाएंगे,’’ सत्यानंद ने आश्वस्त किया.

‘‘नहीं वत्स,’’ स्वामीजी अपना दायां हाथ उठा कर शांत स्वर में बोले, ‘‘वह मेरा अनन्य भक्त है. उसे पकड़ कर नहीं, बल्कि पूर्ण सम्मान के साथ लाना. स्मरण रहे कि उसे कोई कष्ट न होने पाए.’’

‘‘जो आज्ञा,’’ श्रद्धानंद और सत्यानंद ने शीश नवाया और कक्ष से बाहर चले गए.

अगले दिन उन दोनों की दृष्टि हर आनेजाने वाले भक्त के चेहरे पर टिकी थी. रात के करीब 8 बजे जब शरीर थक कर चूर होने लगा तब वह व्यक्ति आता दिखाई पड़ा.

‘‘देखो वह आ गया,’’ श्रद्धानंद ने सत्यानंद को कुहनी मारी.

‘‘लग तो यही रहा है. चलो उसे उधर ले कर चलते हैं,’’ सत्यानंद ने कहा.

‘‘अभी नहीं. पहले उसे गड्डी चढ़ा लेने दो ताकि सुनिश्चित हो जाए कि यह वही है जिस की हमें तलाश है,’’ श्रद्धानंद फुसफुसाए.

पिछले कल की तरह वह व्यक्ति आज भी मंच के करीब आया. फूल अर्पित करने के बाद उस ने स्वामीजी के चरणों में शीश नवाया, लाल रंग में लिपटी नोटों की गड्डी को चढ़ाने के बाद वह तेजी से उठ कर बाहर चल दिया.

‘‘मान्यवर, कृपया इधर आइए,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने उस के करीब आ कर सम्मानित स्वर में कहा.

‘‘क्यों?’’

‘‘स्वामीजी आप से भेंट करना चाहते हैं,’’ सत्यानंदजी महाराज ने बताया.

‘‘मुझ से? किसलिए?’’ वह व्यक्ति घबरा उठा.

‘‘वे आप की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हैं. इसलिए आप को साक्षात दर्शन दे कर आशीर्वाद देना चाहते हैं,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने बताया, ‘‘बड़ेबड़े मंत्री और अफसर स्वामीजी के दर्शनों के लिए लाइन लगा कर खड़े होते हैं. आप अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो स्वामीजी ने आप को स्वयं मिलने के लिए बुलाया है. अब आप का भाग्योदय निश्चित है.’’

यह सुन उस व्यक्ति के चेहरे पर राहत के चिह्न उभर आए. श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंद महाराज ने उसे एक खूबसूरत कक्ष में बैठा दिया.

करीब आधा घंटे बाद स्वामीजी उस कक्ष में आए और अत्यंत शांत स्वर में बोले, ‘‘वत्स, तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम्हें जीवन में बहुत बड़ी सफलता मिलने वाली है.’’

स्वामीजी की वाणी सुन वह व्यक्ति उन के चरणों में लेट गया. उस की आंखों से श्रद्धा सुमन बह निकले. स्वामीजी ने उसे अपने हाथों से पकड़ कर उठाया और फिर स्नेह भरे स्वर में बोले, ‘‘उठो वत्स, अश्रु बहाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक नया सवेरा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है.’’

‘‘स्वामीजी, आप के दर्शन पा कर मेरा जीवन धन्य हो गया,’’ वह व्यक्ति हाथ जोड़ कर बोला. भावातिरेक में उस की वाणी अवरुद्ध हो रही थी.

स्वामीजी ने उसे अपने साथ सोफे पर बैठाया और फिर बोले, ‘‘वत्स, एक प्रश्न पूछूं तो क्या उस का उत्तर सचसच दोगे?’’

‘‘आप आज्ञा करें तो उत्तर तो क्या आप के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हूं,’’ उस व्यक्ति ने कहा.

स्वामीजी ने अपनी दिव्यदृष्टि उस के चेहरे पर टिका दी फिर सीधे उस की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘तुम प्रतिदिन 1 लाख रुपयों की गड्डी मेरे चरणों में क्यों चढ़ा रहे हो?’’

यह सुन उस व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद कर लीं. उस के चेहरे पर छाए भावों को देख कर लग रहा था कि उस के भीतर भारी संघर्ष चल रहा है. चंद पलों बाद उस ने अपनी आंखें खोलीं और बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं एक अरबपति आदमी था, लेकिन व्यापार में घाटा हो जाने के कारण मैं पूरी तरह बरबाद हो गया. सभी रिश्तेदारों और परिचितों ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. एक दिन मुझे पता चला कि यूरोप में एक बंद फैक्टरी कौड़ियों के भाव बिक रही है. मेरी पत्नी आप की अनन्य भक्त है. उस की सलाह पर मैं ने अपना मकान और पत्नी के गहने बेच कर वह फैक्टरी खरीद ली. आप को उस फैक्टरी में 20% का साझेदार बना कर मैं ने उस फैक्टरी को दोबारा चलाना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में काफी परेशानियां हुईं लेकिन आप के आशीर्वाद से पिछले सप्ताह से वह फैक्टरी फायदे में आ गई. इस समय उस से 5 लाख रुपये रोज का फायदा हो रहा है. इसलिए 20% के हिसाब से मैं रोज 1 लाख रुपए आप के चरणों में अर्पित कर देता हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात गुप्त क्यों रखी?’’ मुझे बता भी तो सकते थे? स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मैं ने सुना है कि आप मोहमाया और लोभ से काफी ऊपर हैं. इसलिए आप को बता कर आप की साधना में विध्न डालने का साहस मैं नहीं कर सका.’’

‘‘वत्स, धन्य हो तुम. तुम जैसे ईमानदार व्यक्तियों के बल पर ही यह दुनिया चल रही है वरना अब तक अपने पाप के बोझ से यह रसातल में समा चुकी होती,’’ स्वामीजी ने गंभीर स्वर में सांस भरी फिर आशीर्वाद की मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘ईश्वर की कृपा दृष्टि तुम पर पड़ चुकी है. जल्द ही तुम्हें 5 लाख रुपए नहीं, बल्कि 5 करोड़ रोज का मुनाफा होने वाला है.’’

‘‘सत्य वचन महाराज,’’ उस व्यक्ति ने श्रद्धा से शीश झुकाया फिर बोला, ‘‘यूरोप में ही एक और बंद पड़ी खान का पता लगा है, मैं ने हिसाब लगाया है कि अगर उसे ठीक से चलाया जाए तो 5 करोड़ रुपए रोज तो नहीं लेकिन 5 करोड़ रुपए महीने का फायदा जरूर हो सकता है.’’

‘‘तो उस फैक्टरी को खरीद क्यों नहीं लेते?’’

‘‘खरीद तो लेता, लेकिन उस के लिए करीब 20 करोड़ रुपए चाहिए. मैं ने काफी भागदौड़ की, लेकिन फंड का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. एक बार मुझे व्यापार में घाटा हो चुका है, इसलिए फाइनैंसर मुझ पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं,’’ उस व्यक्ति के स्वर में निराशा झलक उठी.

‘‘वत्स, फंड की चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हें मेरी शरण में भेज दिया है, इसलिए अब सारी व्यवस्थाएं हो जाएंगी,’’ स्वामीजी मुसकराए.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम जैसे व्यक्तियों का दिया मेरे पास बहुत कुछ है. वह मेरे किसी काम का नहीं है. तुम उसे ले जाओ और फैक्टरी खरीद लो,’’ स्वामीजी ने कहा.

‘‘आप मुझे इतना रुपया दे देंगे?’’ उस व्यक्ति की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘अकारण नहीं दूंगा,’’ स्वामीजी मुसकराए, ‘‘मुझे अपने भक्तों के कल्याण के लिए बहुत सारे कार्य करने हैं. इस सब के लिए बहुत पैसा चाहिए. इसलिए इस पैसे से तुम फैक्टरी खरीद लो, लेकिन उस में 51 प्रतिशत शेयर मेरे होंगे.’’

‘‘आप धन्य हैं महाराज,’’ वह व्यक्ति एक बार फिर स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

‘‘श्रद्धा और सत्या, तुम दोनों अभी इन के साथ इन के निवास पर जाओ.

साझेदारी के कागजात तुरंत बना लो ताकि फैक्टरी को जल्द से जल्दी खरीद लिया जाए,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी.

अगले ही दिन साझेदारी के कागजात तैयार हो गए. स्वामीजी ने हजारों भक्तों की चढ़ाई की कमाई अपने अनन्य भक्त को सौंप दी. वह भक्त फैक्टरी खरीदने यूरोप चला गया.

स्वामीजी की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने जगमगा रहे थे. किंतु जब 1 महीने तक उस भक्त का कोई संदेश नहीं आया तो उन्होंने श्रद्धानंद और सत्यानंद को उस के निवास पर भेजा. वहां उपस्थिति गार्ड ने उन दोनों को देखते ही बताया, ‘‘उन साहब ने तो 2 महीने के लिए यह कोठी किराए पर ली थी, किंतु आप लोगों के आने के 2 दिनों बाद वे अचानक ही इसे खाली कर के चले गए थे. किंतु जाने से पहले वे आप लोगों के लिए एक लिफाफा दे गए थे. कह रहे थे कि आप लोग एक न एक दिन उन से मिलने यहां जरूर आएंगे.’’

इतना कह कर गार्ड अपनी कोठरी के भीतर से एक लिफाफा ले आया. डगमगाते कदमों से वे दोनों स्वामी दिव्यानंद के पास लौट आए और लिफाफा उन्हें पकड़ा दिया.

स्वामीजी ने लिफाफा फाड़ा तो उस के भीतर से एक पत्र निकला, जिस में लिखा था:

‘‘आदरणीय स्वामी जी,

सादर चरण स्पर्श. अब तो आप को विश्वास हो गया होगा कि यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन कोई व्यक्ति इन बेड़ियों को तोड़ देगा उस दिन वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाएगा. आप ने अपने भक्तों की बेड़ियां तोड़ने का कार्य किया है और मैं ने आप की इन बेड़ियों को तोड़ने की छोटी सी चेष्टा की है. आप इसे ‘धंधा अपना अपना’ भी कह सकते हैं.

आप का एक सेवक.

स्वामीजी उस पत्र को अपलक निहारे जा रहे थे और श्रद्धा और सत्या उन के चेहरे को.

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December 29, 2021 at 11:30AM

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