Sunday 12 December 2021

उल्टा पासा : भाग 2

लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव

‘मैं तो वैसे ही तुम से कहूंगा कि इन को रुपए दे दो, पर तुम देना नहीं.’ उन के चेहरे पर हमेशा रहने वाली कुटिल मुसकान फैल गई थी.तब से ले कर आज तक मुनीमजी ही सारे रिश्तेदारों को मना करते रहे हैं और विलेन बनते रहे हैं.

मुनीमजी ने बैग में से पैसे निकाल कर अपनी अलमारी में रख दिए थे. ऐसा करते समय उन की पत्नी सुमन ने उन्हें देख भी लिया था, ‘‘अरे, आप सेठजी से पैसे मांग लाए. अच्छा किया. देखो, हमें पैसों की कितनी जरूरत है. अब आप कल ही बैंक में जमा कर अपना कर्जा चुकता कर देना.‘‘और सुनो, चिंटू की फीस भी देनी है.

10 हजार रुपए तो उस में लग ही जाएंगे.’’पत्नी के चेहरे पर राहत ?ालक रही थी. हो भी क्यों न, वह तो पिछले कई दिनों से रोज उस से कह रही थी कि वह सेठजी से लाखपचास हजार रुपए ले लें, बैंक वाले भी जान खाए जा रहे हैं और घर के कई जरूरी काम भी होने हैं. उसे भी लगता था कि सुमन कह तो सही रही है. सेठजी से कुछ एडवांस ले लूं और अपना पिछला हिसाब भी कर लूं. उस से भी कुछ पैसे आ जाएंगे. सेठजी ने तो अभी उस का हिसाब किया ही नहीं है. जब भी उन से हिसाब की कहो,  तो ‘हां कर देंगे, ऐसी भी क्या जल्दी है,’ कह कर बात काट देते.

वैसे तो मुनीमजी हर महीने सेठजी से पैसा लेते रहते पर सेठजी हमेशा उन के निर्धारित वेतन से कम पैसे ही उन्हें देते हुए कहते, ‘बाकी का जमा रहा. अरे, जमा रहने दो, वक्तबेवक्त काम आएगा.’सेठजी जानबू?ा कर ऐसा कह कर उस का पैसा जमा कर लेते. मुनीमजी ने हिसाब लगा कर देखा था. उसे तो सेठजी से अपने ही लाखों रुपए लेना बैठ रहा है. उस ने अपनी पत्नी के कहने पर सेठजी से पैसे मांगे भी थे.

‘सेठजी, मु?ो पैसों की सख्त जरूरत है. आप मेरा हिसाब कर दें और जितना पैसा मेरा निकलता है, वह दे दें. कुछ पैसा एडवांस भी दे दें.’‘अरे मुनीमजी, अभी हमारे पास पैसा है ही कहां? कितनी कड़की चल रही है. अभी तो मैं तुम्हें पैसा दे ही नहीं सकता.’

जबकि मुनीमजी जानते थे कि सेठजी ?ाठ बोल रहे हैं. सारा हिसाब तो उस के ही पास है और वह जानता है कि इस समय सेठजी लाखों रुपयों के फायदे में चल रहे हैं पर वह बोला कुछ नहीं. वह जानता था कि वह कितना भी गिड़गिड़ा ले पर सेठजी उसे पैसे नहीं देंगे.सेठजी के पैसों को अलमारी में रखते हुए पत्नी सुमन ने देख लिया था. इस कारण उस की पत्नी के चेहरे पर उत्साह आ गया था पर मुनीमजी इस से ज्यादा सशंकित हो गए थे.

‘‘अरे, ये सेठजी की वसूली के पैसे हैं. आज मैं उन्हें दे नहीं पाया. कल जा कर दे दूंगा,’’ कह कर वह हाथपैर धोने बाथरूम में चला गया.दरअसल, वह अपनी पत्नी सुमन के चेहरे के बदलते रंग को नहीं देखना चाह रहा था. उस ने कुछ नहीं सुना. हो सकता है कि सुमन बड़बड़ाई हो.

बाथरूम से आ कर वह पलंग पर लेट गया और टैलीविजन चालू कर लिया. यह उस का रोज का नियम था. वह दिनभर में इतनी देर ही टैलीविजन देख पाता था. टैलीविजन भी पुराना ही था. वह तो उसे शादी में मिल गया था, इसलिए है भी, वरना वह अपनी कमाई से तो कभी नहीं खरीद पाता. उस ने टैलीविजन चालू कर अपनी आंखें बंद कर लीं. उसे तो केवल समाचार सुनना है.

‘‘आज के मुख्य समाचार- बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से लौकडाउन लगा दिया है. आज आधी रात से ही लौकडाउन लग जाएगा. मुख्यमंत्री ने सभी से अनुरोध किया है कि लौकडाउन का पालन करें और अपने घरों में ही रहें.’’ यह खबर सुन कर उस की आंखें अपनेआप ही खुल गई थीं. वह समाचार को बड़े ही ध्यान से देखने लगा. उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. उस के पास सेठजी के ढेर सारे पैसे रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उस के पास ही है. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. पिछली बार भी लौकडाउन में वह ऐसे ही फंस गया था. 2 महीने तक वह घर से नहीं निकल पाया था. कहीं अब की बार भी ऐसा न हो. वैसे, इस बार प्रधानमंत्री ने तो लौकडाउन घोषित नहीं किया है. हो सकता है कि जल्दी खत्म हो जाए.मुनीमजी के माथे से पसीने की बूंदें ?ाल?ाला रही थीं. उन का मन हुआ कि वे सेठजी को फोन लगा कर बता दे कि उस के पास वसूली और दिनभर की आवक के पैसे सुरक्षित रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उसी के पास है.

‘अब रहने दो. रात हो गई है. सुबह देखते हैं,’ सोच कर उस ने करवट बदल ली.सुबह उस की नींद अपने नियमित समय पर ही खुल गई थी. उसे सुबह जल्दी दुकान पर जाना होता था, इसलिए वह जल्दी उठ कर तैयार हो जाता.सुमन उस के सामने नाश्ते की प्लेट रख देती और भोजन का डब्बा भी. वह भोजन दुकान पर ही दोपहर को कर लेता था. कई बार तो उस का डब्बा खुल ही नहीं पाता था. ज्यों का त्यों वापस घर आ जाता.

सुमन भरे डब्बे को देखती तो नाराज होती, ‘मैं इतनी सुबह उठ कर तुम्हारे लिए खाना बनाती हूं और आप के पास इतना भी समय नहीं होता कि खाना खा लें.’वह कुछ न बोलता, चुप ही रहता. सेठजी उस से कभी खाने को न पूछते.  उलटे, यदि वह कहे कि सेठजी मैं खाना खा लूं, तो भी वे नाकभौं सिकोड़ लेते.

आज वह दुकान पर जाने को तैयार तो हो गया, पर उसे कहीं जाना ही नहीं था. लौकडाउन लग चुका था, सामने चौराहे पर पुलिस बैठी थी. उसे सेठजी के पैसे का ध्यान आया. उस ने अलमारी खोल कर पैसे टटोले, फिर इतमीनान से बैठ गया. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा ले, पर ‘रहने दो, उन का फोन आने दो’ सोच कर रह गया.सेठजी का फोन शाम को आया.‘‘मुनीमजी, तिजोरी की चाबी नहीं मिल रही है. कहां रख दी?’’‘‘चाबी तो मेरे पास है,’’ कहते हुए वह घबरा गया था.

‘‘अरे, तुम चाबी अपने पास क्यों रखे हो?’’ सेठजी ने पूछा.‘‘कल आप नहीं थे न, इसलिए अपने साथ ले आया था.’’यह सुनते ही सेठजी आगबबूला हो गए. वे डपटते हुए बोले, ‘‘तिजोरी की चाबी अपने साथ ले गए. तुम्हारी तो थाने में रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी,’’  उन्हें शायद ज्यादा ही गुस्सा आ रहा था.

‘‘इस में रिपोर्ट लिखाने की क्या बात है सेठजी. मैं तो कई बार चाबी अपने साथ ले कर आया हूं.’’मुनीमजी की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि सेठजी इतने नाराज क्यों हो रहे हैं?सेठजी ने शायद गाली दी थी, ‘‘तिजोरी में लाखों रुपए होते हैं और चाबी तुम रखे हो. कुछ भी गोलमाल हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

‘‘आप किस तरह से बात कर रहे हैं सेठजी. चाबी मेरे पास है और आज यदि लौकडाउन नहीं लगा होता तो मैं चाबी और पैसे ले कर आप के पास आता ही.’’‘‘तुम्हारे पास पैसे भी हैं?’’‘‘हां, कल की आवक और वसूली के.’’‘‘तुम तत्काल सारा कुछ ले कर मेरे पास आओ.’’‘‘लौकडाउन लगा है. मैं नहीं आ सकता. पुलिस मारती है.’’‘‘तुम्हारे तो बाप को भी आना पड़ेगा,’’ सेठजी का गुस्सा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था.

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लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव

‘मैं तो वैसे ही तुम से कहूंगा कि इन को रुपए दे दो, पर तुम देना नहीं.’ उन के चेहरे पर हमेशा रहने वाली कुटिल मुसकान फैल गई थी.तब से ले कर आज तक मुनीमजी ही सारे रिश्तेदारों को मना करते रहे हैं और विलेन बनते रहे हैं.

मुनीमजी ने बैग में से पैसे निकाल कर अपनी अलमारी में रख दिए थे. ऐसा करते समय उन की पत्नी सुमन ने उन्हें देख भी लिया था, ‘‘अरे, आप सेठजी से पैसे मांग लाए. अच्छा किया. देखो, हमें पैसों की कितनी जरूरत है. अब आप कल ही बैंक में जमा कर अपना कर्जा चुकता कर देना.‘‘और सुनो, चिंटू की फीस भी देनी है.

10 हजार रुपए तो उस में लग ही जाएंगे.’’पत्नी के चेहरे पर राहत ?ालक रही थी. हो भी क्यों न, वह तो पिछले कई दिनों से रोज उस से कह रही थी कि वह सेठजी से लाखपचास हजार रुपए ले लें, बैंक वाले भी जान खाए जा रहे हैं और घर के कई जरूरी काम भी होने हैं. उसे भी लगता था कि सुमन कह तो सही रही है. सेठजी से कुछ एडवांस ले लूं और अपना पिछला हिसाब भी कर लूं. उस से भी कुछ पैसे आ जाएंगे. सेठजी ने तो अभी उस का हिसाब किया ही नहीं है. जब भी उन से हिसाब की कहो,  तो ‘हां कर देंगे, ऐसी भी क्या जल्दी है,’ कह कर बात काट देते.

वैसे तो मुनीमजी हर महीने सेठजी से पैसा लेते रहते पर सेठजी हमेशा उन के निर्धारित वेतन से कम पैसे ही उन्हें देते हुए कहते, ‘बाकी का जमा रहा. अरे, जमा रहने दो, वक्तबेवक्त काम आएगा.’सेठजी जानबू?ा कर ऐसा कह कर उस का पैसा जमा कर लेते. मुनीमजी ने हिसाब लगा कर देखा था. उसे तो सेठजी से अपने ही लाखों रुपए लेना बैठ रहा है. उस ने अपनी पत्नी के कहने पर सेठजी से पैसे मांगे भी थे.

‘सेठजी, मु?ो पैसों की सख्त जरूरत है. आप मेरा हिसाब कर दें और जितना पैसा मेरा निकलता है, वह दे दें. कुछ पैसा एडवांस भी दे दें.’‘अरे मुनीमजी, अभी हमारे पास पैसा है ही कहां? कितनी कड़की चल रही है. अभी तो मैं तुम्हें पैसा दे ही नहीं सकता.’

जबकि मुनीमजी जानते थे कि सेठजी ?ाठ बोल रहे हैं. सारा हिसाब तो उस के ही पास है और वह जानता है कि इस समय सेठजी लाखों रुपयों के फायदे में चल रहे हैं पर वह बोला कुछ नहीं. वह जानता था कि वह कितना भी गिड़गिड़ा ले पर सेठजी उसे पैसे नहीं देंगे.सेठजी के पैसों को अलमारी में रखते हुए पत्नी सुमन ने देख लिया था. इस कारण उस की पत्नी के चेहरे पर उत्साह आ गया था पर मुनीमजी इस से ज्यादा सशंकित हो गए थे.

‘‘अरे, ये सेठजी की वसूली के पैसे हैं. आज मैं उन्हें दे नहीं पाया. कल जा कर दे दूंगा,’’ कह कर वह हाथपैर धोने बाथरूम में चला गया.दरअसल, वह अपनी पत्नी सुमन के चेहरे के बदलते रंग को नहीं देखना चाह रहा था. उस ने कुछ नहीं सुना. हो सकता है कि सुमन बड़बड़ाई हो.

बाथरूम से आ कर वह पलंग पर लेट गया और टैलीविजन चालू कर लिया. यह उस का रोज का नियम था. वह दिनभर में इतनी देर ही टैलीविजन देख पाता था. टैलीविजन भी पुराना ही था. वह तो उसे शादी में मिल गया था, इसलिए है भी, वरना वह अपनी कमाई से तो कभी नहीं खरीद पाता. उस ने टैलीविजन चालू कर अपनी आंखें बंद कर लीं. उसे तो केवल समाचार सुनना है.

‘‘आज के मुख्य समाचार- बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से लौकडाउन लगा दिया है. आज आधी रात से ही लौकडाउन लग जाएगा. मुख्यमंत्री ने सभी से अनुरोध किया है कि लौकडाउन का पालन करें और अपने घरों में ही रहें.’’ यह खबर सुन कर उस की आंखें अपनेआप ही खुल गई थीं. वह समाचार को बड़े ही ध्यान से देखने लगा. उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. उस के पास सेठजी के ढेर सारे पैसे रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उस के पास ही है. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. पिछली बार भी लौकडाउन में वह ऐसे ही फंस गया था. 2 महीने तक वह घर से नहीं निकल पाया था. कहीं अब की बार भी ऐसा न हो. वैसे, इस बार प्रधानमंत्री ने तो लौकडाउन घोषित नहीं किया है. हो सकता है कि जल्दी खत्म हो जाए.मुनीमजी के माथे से पसीने की बूंदें ?ाल?ाला रही थीं. उन का मन हुआ कि वे सेठजी को फोन लगा कर बता दे कि उस के पास वसूली और दिनभर की आवक के पैसे सुरक्षित रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उसी के पास है.

‘अब रहने दो. रात हो गई है. सुबह देखते हैं,’ सोच कर उस ने करवट बदल ली.सुबह उस की नींद अपने नियमित समय पर ही खुल गई थी. उसे सुबह जल्दी दुकान पर जाना होता था, इसलिए वह जल्दी उठ कर तैयार हो जाता.सुमन उस के सामने नाश्ते की प्लेट रख देती और भोजन का डब्बा भी. वह भोजन दुकान पर ही दोपहर को कर लेता था. कई बार तो उस का डब्बा खुल ही नहीं पाता था. ज्यों का त्यों वापस घर आ जाता.

सुमन भरे डब्बे को देखती तो नाराज होती, ‘मैं इतनी सुबह उठ कर तुम्हारे लिए खाना बनाती हूं और आप के पास इतना भी समय नहीं होता कि खाना खा लें.’वह कुछ न बोलता, चुप ही रहता. सेठजी उस से कभी खाने को न पूछते.  उलटे, यदि वह कहे कि सेठजी मैं खाना खा लूं, तो भी वे नाकभौं सिकोड़ लेते.

आज वह दुकान पर जाने को तैयार तो हो गया, पर उसे कहीं जाना ही नहीं था. लौकडाउन लग चुका था, सामने चौराहे पर पुलिस बैठी थी. उसे सेठजी के पैसे का ध्यान आया. उस ने अलमारी खोल कर पैसे टटोले, फिर इतमीनान से बैठ गया. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा ले, पर ‘रहने दो, उन का फोन आने दो’ सोच कर रह गया.सेठजी का फोन शाम को आया.‘‘मुनीमजी, तिजोरी की चाबी नहीं मिल रही है. कहां रख दी?’’‘‘चाबी तो मेरे पास है,’’ कहते हुए वह घबरा गया था.

‘‘अरे, तुम चाबी अपने पास क्यों रखे हो?’’ सेठजी ने पूछा.‘‘कल आप नहीं थे न, इसलिए अपने साथ ले आया था.’’यह सुनते ही सेठजी आगबबूला हो गए. वे डपटते हुए बोले, ‘‘तिजोरी की चाबी अपने साथ ले गए. तुम्हारी तो थाने में रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी,’’  उन्हें शायद ज्यादा ही गुस्सा आ रहा था.

‘‘इस में रिपोर्ट लिखाने की क्या बात है सेठजी. मैं तो कई बार चाबी अपने साथ ले कर आया हूं.’’मुनीमजी की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि सेठजी इतने नाराज क्यों हो रहे हैं?सेठजी ने शायद गाली दी थी, ‘‘तिजोरी में लाखों रुपए होते हैं और चाबी तुम रखे हो. कुछ भी गोलमाल हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

‘‘आप किस तरह से बात कर रहे हैं सेठजी. चाबी मेरे पास है और आज यदि लौकडाउन नहीं लगा होता तो मैं चाबी और पैसे ले कर आप के पास आता ही.’’‘‘तुम्हारे पास पैसे भी हैं?’’‘‘हां, कल की आवक और वसूली के.’’‘‘तुम तत्काल सारा कुछ ले कर मेरे पास आओ.’’‘‘लौकडाउन लगा है. मैं नहीं आ सकता. पुलिस मारती है.’’‘‘तुम्हारे तो बाप को भी आना पड़ेगा,’’ सेठजी का गुस्सा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था.

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December 13, 2021 at 09:00AM

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