Monday 20 December 2021

दर्द का रिश्ता : भाग 4

अपूर्वा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अजयजी बोल पड़े,”बेटा, अब इस उम्र में कुछ पचता नहीं है,”अजयजी ने नजरें चुराते हुए कहा. अपूर्वा जानती थी कि झूठ बोलना पापा के बस की बात नहीं. आज से 1 महीने पहले तक मां पापा के लिए उन की पसंद की हर चीज बनाती थीं.कभी आलू के परांठे, कभी सैंडविच, कभी कटलेट…फैमिली डाक्टर ने कई बार कहा,”अंकलजी, पौष्टिक खाना खाया करिए ओट्स, कौर्नफ्लैक्स, दलिया…” और अजयजी हर बार उन की बात हंसी में उड़ा देते.

“यह मरीजों का खाना खाना मेरे बस की बात नहीं, कभी मेरी पत्नी के हाथ का खाना खा कर देखिए सब भूल जाएंगे.”जिस आदमी को मां ने जीतेजी एक गिलास पानी नहीं उठाने दिया आज वे…अपूर्वा का दिल छलनी हो गया.

“पापा, 1 मिनट आप का हाथ…””अरे, कुछ नहीं बताया तो था कल वह चाय बनाते वक्त थोड़ी छलक गई थी. कुछ नहीं 2 दिन में ठीक हो जाएगी.”अजयजी ने अपने हाथ को पीछे छिपाने की कोशिश की पर अपूर्वा ने जबरदस्ती उन के हाथ को खींच कर आगे कर लिया. वे दर्द से कराह उठे. चेहरे पर दर्द की टीस उभर आई.उन के हाथों में बड़ेबड़े फफोले देख कर उस की आंखें भर आईं. दाढ़ी बनाते वक्त एक हलकी सी खरोंच लग जाने पर पूरा घर सिर पर उठा लेने वाले अजयजी आज दर्द के साथ जीना सीख रहे थे. अपूर्वा ध्यान से उन के चेहरे पर दर्द की लकीरों को पढ़ने की कोशिश करती रही. उस दर्द को पढ़ने के आगे वर्षों की पढ़ाई और डिग्रियां भी फेल हो गई थीं. अपूर्वा को बारबार लगता कि मां अभी किसी कमरे से बाहर निकलेंगी और बोलेंगी,”देख रही अप्पू, तेरे पापा अपना हाथ जला बैठे,:कितनी बार समझाया था कि कुछ काम करना सीख लीजिए, काम ही देगा. कल को बीमार पड़ गई या मुझे कुछ हो गया तो 1 कप चाय को तरस जाएंगे.”

अपूर्वा को लगा वह जारजार कर के रो पड़े,’मां, तुम कहां हो देखो न तुम्हारे बिना हम सब का क्या हाल हो गया है. आ जाओ मां, वापस आ जाओ. अपूर्वा अपने आंसुओं को छिपाने गुसलखाने में घुस गई. बहुत देर तक वह पानी से अपने मुंह को धोती रही. पानी की शीतल तासीर ने उस के मनमस्तिष्क में चल रहे विचारों के तूफान को थामने का प्रयास किया.

“पापा, कमला को फोन मिलाइए कब तक आएगी.””मेरे पास उस का नंबर नहीं है. तेरी मां ही यह सब देखती थी.””मां का फोन कहां है? उसमें नंबर होगा.””तेरी मां की अलमारी में रखा है पर वह तो डिस्चार्ज हो गया होगा. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. उसे इस्तेमाल करने वाली ही नहीं रही तो मैं क्या करता.”

अपूर्वा महसूस कर रही थी कि पापा हर बात में मां को ही ढूंढ़ रहे थे. उस ने अलमारी खोली, मां के बदन की खुशबू आज भी उन के कपड़ों से आ रही थी. 1-1 साड़ी उसे अजनिबियत से देख रहे थे, मानों पूछना चाहते हों कि मुझे पहनने वाली कहां है उसे बुलाओ…मां के हाथों के काढ़े रुमाल के बगल में मोबाइल रखा हुआ था. पिछले साल उन के जन्मदिन पर पापा ने उपहार स्वरूप दिया था.कितना भुनभुनाई थीं वे,’अब इस बुढ़ापे में यह सब चोंचलेबाजी अच्छी नहीं लगती.’

शुरूशुरू में कितनी दिक्कत हुई थी उन्हें इस फोन को सीखने में…फोन पर ही मां चिल्ला उठी थी,”तेरे पापा को कितना समझाया था कि महंगा वाला फोन मत दिलाओ पर मेरी सुनता कौन है. ऐसा झुनझुना ले आए हैं कि न उन्हें समझ आता है न मुझे, बताओ बिना बात के पैसे फंसवा दिए इन्होंने.”

कितना हंसी थी वह उस दिन, मम्मीपापा बच्चों की तरह छोटीछोटी बातों पर लड़ जाते थे और फिर क्या… झगड़ा निबटाने की जिम्मेदारी उस की…किस की तरफ से बोले और किस की तरफ से नहीं. मां का फोन स्विचऔफ था, अपूर्वा ने कांपते हाथों से फोन को खोलने की कोशिश की.सुर्ख बंधेज की साड़ी में मां का मुसकराता चेहरा सामने था. मां को हमेशा खिलते रंग ही पसंद थे. मां की अलमारी खिलते रंगों से भरी पड़ी थी पर आज वे सब के जीवन को बेरंग कर गई थीं. अपूर्वा ने साड़ियों पर हाथ फेरा, बचपन में भी तो वह ऐसे ही उन पर हाथ फेरती तो मां खिलखिला कर हंस पड़ती.

“अप्पू, क्या करती है तू…” और नन्ही सी अप्पू हुलस कर कहती,”मां, कितना प्यारा रंग है न… मेरे कलर बौक्स में भी ऐसे रंग नहीं हैं.” और मां उस की मासूमियत पर मुसकरा देतीं.’मां, आप ने एक बार भी पापा के विषय में नहीं सोचा कि आप के बाद उन का क्या होगा. पापा चुप से हो गए थे, कहते हैं जब आप बात नहीं कर रही होती हैं तो तब आप सही मानों में बहुत कुछ बोल रही होती हैं. बस उसे सुनने वाला केवल एक ही शख्स होता है और वो शख्स कोई और नहीं आप होती हैं.’

अपूर्वा ने मां के फोन से कमला को फोन कर दिया. अपूर्वा ने उस दिन पापा की पसंद की चीजें बनाई थी.पापा सबकुछ देख और समझ रहे थे पर कब तक? एक दिन तो अपूर्वा को जाना ही है. अपूर्वा दिन भर लैपटौप से जुझती रहती. इन दिनों औफिस घर से ही चल रहा था पर वह पापा का नाश्ता, खाना और दवाएं देना नहीं भूलती. अपूर्वा ने कई बार घुमाफिरा कर पापा से साथ चलने के लिए कहती पर पापा कभी दुनिया, कभी रिश्तेदार तो कभी परंपराओं की दुहाई देने लगते. अपूर्वा को रहतेरहते 1 हफ्ता हो चुका था. इधर समर भी बारबार फोन करकर के उस का प्रोग्राम पूछते रहते. अपूर्वा अजीब सी दुविधा में थी, पापा जाने को तैयार नहीं थे और अपूर्वा उन्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. आखिर उस की भी गृहस्थी थी, उस के भी कुछ कर्तव्य थे. पापा खाना कर आराम कर रहे थे, कमला चौका समेट रही थी.

“कमला, शाम को लौकी के कोफ्ते बनाएंगे.””ठीक है दीदी…” “तेरी मां कैसी है कमला…””क्या बताऊं दीदी, 2 साल से नहीं जा पाई, भाई का फोन आया था. एक जगह की हो कर रह गई है, खानापीना सब बिस्तर पर…” “तू मिल क्यों नहीं आती?”

The post दर्द का रिश्ता : भाग 4 appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3yNbg99

अपूर्वा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अजयजी बोल पड़े,”बेटा, अब इस उम्र में कुछ पचता नहीं है,”अजयजी ने नजरें चुराते हुए कहा. अपूर्वा जानती थी कि झूठ बोलना पापा के बस की बात नहीं. आज से 1 महीने पहले तक मां पापा के लिए उन की पसंद की हर चीज बनाती थीं.कभी आलू के परांठे, कभी सैंडविच, कभी कटलेट…फैमिली डाक्टर ने कई बार कहा,”अंकलजी, पौष्टिक खाना खाया करिए ओट्स, कौर्नफ्लैक्स, दलिया…” और अजयजी हर बार उन की बात हंसी में उड़ा देते.

“यह मरीजों का खाना खाना मेरे बस की बात नहीं, कभी मेरी पत्नी के हाथ का खाना खा कर देखिए सब भूल जाएंगे.”जिस आदमी को मां ने जीतेजी एक गिलास पानी नहीं उठाने दिया आज वे…अपूर्वा का दिल छलनी हो गया.

“पापा, 1 मिनट आप का हाथ…””अरे, कुछ नहीं बताया तो था कल वह चाय बनाते वक्त थोड़ी छलक गई थी. कुछ नहीं 2 दिन में ठीक हो जाएगी.”अजयजी ने अपने हाथ को पीछे छिपाने की कोशिश की पर अपूर्वा ने जबरदस्ती उन के हाथ को खींच कर आगे कर लिया. वे दर्द से कराह उठे. चेहरे पर दर्द की टीस उभर आई.उन के हाथों में बड़ेबड़े फफोले देख कर उस की आंखें भर आईं. दाढ़ी बनाते वक्त एक हलकी सी खरोंच लग जाने पर पूरा घर सिर पर उठा लेने वाले अजयजी आज दर्द के साथ जीना सीख रहे थे. अपूर्वा ध्यान से उन के चेहरे पर दर्द की लकीरों को पढ़ने की कोशिश करती रही. उस दर्द को पढ़ने के आगे वर्षों की पढ़ाई और डिग्रियां भी फेल हो गई थीं. अपूर्वा को बारबार लगता कि मां अभी किसी कमरे से बाहर निकलेंगी और बोलेंगी,”देख रही अप्पू, तेरे पापा अपना हाथ जला बैठे,:कितनी बार समझाया था कि कुछ काम करना सीख लीजिए, काम ही देगा. कल को बीमार पड़ गई या मुझे कुछ हो गया तो 1 कप चाय को तरस जाएंगे.”

अपूर्वा को लगा वह जारजार कर के रो पड़े,’मां, तुम कहां हो देखो न तुम्हारे बिना हम सब का क्या हाल हो गया है. आ जाओ मां, वापस आ जाओ. अपूर्वा अपने आंसुओं को छिपाने गुसलखाने में घुस गई. बहुत देर तक वह पानी से अपने मुंह को धोती रही. पानी की शीतल तासीर ने उस के मनमस्तिष्क में चल रहे विचारों के तूफान को थामने का प्रयास किया.

“पापा, कमला को फोन मिलाइए कब तक आएगी.””मेरे पास उस का नंबर नहीं है. तेरी मां ही यह सब देखती थी.””मां का फोन कहां है? उसमें नंबर होगा.””तेरी मां की अलमारी में रखा है पर वह तो डिस्चार्ज हो गया होगा. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. उसे इस्तेमाल करने वाली ही नहीं रही तो मैं क्या करता.”

अपूर्वा महसूस कर रही थी कि पापा हर बात में मां को ही ढूंढ़ रहे थे. उस ने अलमारी खोली, मां के बदन की खुशबू आज भी उन के कपड़ों से आ रही थी. 1-1 साड़ी उसे अजनिबियत से देख रहे थे, मानों पूछना चाहते हों कि मुझे पहनने वाली कहां है उसे बुलाओ…मां के हाथों के काढ़े रुमाल के बगल में मोबाइल रखा हुआ था. पिछले साल उन के जन्मदिन पर पापा ने उपहार स्वरूप दिया था.कितना भुनभुनाई थीं वे,’अब इस बुढ़ापे में यह सब चोंचलेबाजी अच्छी नहीं लगती.’

शुरूशुरू में कितनी दिक्कत हुई थी उन्हें इस फोन को सीखने में…फोन पर ही मां चिल्ला उठी थी,”तेरे पापा को कितना समझाया था कि महंगा वाला फोन मत दिलाओ पर मेरी सुनता कौन है. ऐसा झुनझुना ले आए हैं कि न उन्हें समझ आता है न मुझे, बताओ बिना बात के पैसे फंसवा दिए इन्होंने.”

कितना हंसी थी वह उस दिन, मम्मीपापा बच्चों की तरह छोटीछोटी बातों पर लड़ जाते थे और फिर क्या… झगड़ा निबटाने की जिम्मेदारी उस की…किस की तरफ से बोले और किस की तरफ से नहीं. मां का फोन स्विचऔफ था, अपूर्वा ने कांपते हाथों से फोन को खोलने की कोशिश की.सुर्ख बंधेज की साड़ी में मां का मुसकराता चेहरा सामने था. मां को हमेशा खिलते रंग ही पसंद थे. मां की अलमारी खिलते रंगों से भरी पड़ी थी पर आज वे सब के जीवन को बेरंग कर गई थीं. अपूर्वा ने साड़ियों पर हाथ फेरा, बचपन में भी तो वह ऐसे ही उन पर हाथ फेरती तो मां खिलखिला कर हंस पड़ती.

“अप्पू, क्या करती है तू…” और नन्ही सी अप्पू हुलस कर कहती,”मां, कितना प्यारा रंग है न… मेरे कलर बौक्स में भी ऐसे रंग नहीं हैं.” और मां उस की मासूमियत पर मुसकरा देतीं.’मां, आप ने एक बार भी पापा के विषय में नहीं सोचा कि आप के बाद उन का क्या होगा. पापा चुप से हो गए थे, कहते हैं जब आप बात नहीं कर रही होती हैं तो तब आप सही मानों में बहुत कुछ बोल रही होती हैं. बस उसे सुनने वाला केवल एक ही शख्स होता है और वो शख्स कोई और नहीं आप होती हैं.’

अपूर्वा ने मां के फोन से कमला को फोन कर दिया. अपूर्वा ने उस दिन पापा की पसंद की चीजें बनाई थी.पापा सबकुछ देख और समझ रहे थे पर कब तक? एक दिन तो अपूर्वा को जाना ही है. अपूर्वा दिन भर लैपटौप से जुझती रहती. इन दिनों औफिस घर से ही चल रहा था पर वह पापा का नाश्ता, खाना और दवाएं देना नहीं भूलती. अपूर्वा ने कई बार घुमाफिरा कर पापा से साथ चलने के लिए कहती पर पापा कभी दुनिया, कभी रिश्तेदार तो कभी परंपराओं की दुहाई देने लगते. अपूर्वा को रहतेरहते 1 हफ्ता हो चुका था. इधर समर भी बारबार फोन करकर के उस का प्रोग्राम पूछते रहते. अपूर्वा अजीब सी दुविधा में थी, पापा जाने को तैयार नहीं थे और अपूर्वा उन्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. आखिर उस की भी गृहस्थी थी, उस के भी कुछ कर्तव्य थे. पापा खाना कर आराम कर रहे थे, कमला चौका समेट रही थी.

“कमला, शाम को लौकी के कोफ्ते बनाएंगे.””ठीक है दीदी…” “तेरी मां कैसी है कमला…””क्या बताऊं दीदी, 2 साल से नहीं जा पाई, भाई का फोन आया था. एक जगह की हो कर रह गई है, खानापीना सब बिस्तर पर…” “तू मिल क्यों नहीं आती?”

The post दर्द का रिश्ता : भाग 4 appeared first on Sarita Magazine.

December 17, 2021 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment