Tuesday 28 December 2021

कोरा कागज: भाग 2- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

“चलो मम्मी, केक भी तो इंतजार कर रहा होगा. तू चल मैं आया,” राजन रितेश के कंधे पर हाथ रख कर गाता हुआ टेबल के पास पहुंच गया.

जैसे ही मोमबत्तियां बुझाने के लिए वो झुका, वैसे ही

सामने से एक खूबसूरत लड़की ने प्रवेश किया.

राजन की निगाहें जैसे उस पर थम गई हों. रितेश भी एकटक उसे ही देख रहा था. गुलाबी रंग के सूट में वह खिला हुआ गुलाबी प्रतीत हो रही थी. बड़ीबड़ी आंखें, नाजुक होंठ, कंधे पर बिखरे स्याहा काले बाल, सारी कायनात की खूबसूरती जैसे उस में समा गई थी.

“अरे देविका… आओ बेटा,”

देविका के साथ उस की मां आशा भी थी. पूनम ने उन का अभिवादन किया और उसे अपने पास ही बुला लिया.

“चलो बरखुरदार, मोमबत्तियां पिघल कर आधी हो चुकी हैं,” नवीन बोले.

“ओ हां,” राजन जैसे होश में आया हो. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझाईं, तो हाल तालियों की

गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

केक काट कर सब से पहले उस ने पूनम और नवीन को खिलाया और फिर

रितेश को खिलाने लगा.

जवाब में रितेश ने भी केक का एक बड़ा सा टुकड़ा उस के मुंह में डाल दिया.

यह देख कर सभी जोर से हंस पड़े, पर राजन के कानों तक जो हंसी पहुंची, वह देविका की थी. चूड़ियों

की खनखनाहट जैसी हंसी उसे सीधे अपने दिल में उतरती लगी. जितनी देर पार्टी चलती रही, उतनी

देर राजन की निगाहें चोरीछुपे देविका को ही निहारती रहीं.

ये भी पढ़ें- भोर का तारा

घर सामने ही होने की वजह से उस दिन के बाद से देविका कभीकभी राजन के घर आ जाती थी.।वहपाककला में काफी निपुण थी, तो अलगअलग तरह के व्यंजन पूनम को चखाने चली आती थी.

इस बीच राजन से कभी आमनासामना होता था, तो कुछ औपचारिक बातें ही होती थीं. पूनम को तो वह शुरू में ही पसंद थी. उस ने मन ही मन में उसे राजन के लिए पसंद भी कर लिया था, पर बापबेटे से बात करने के लिए वह देविका का मन भी टटोल लेना चाहती थी और उस के लिए वह किसी उपयुक्त मौके की तलाश में थी.

ऐसे ही लगभग 6 माह बीत गए. एक दिन राजन ने घर के बाहर अपनी गाड़ी स्टार्ट की तो देखा कि सामने देविका खड़ी थी. राजन गाड़ी ले कर उस के सामने पहुंचा.

“हेलो देविका, कैसे खड़ी हो, आज कालेज नहीं जाना क्या?”

“जाना तो है, पर आज पापा की कार नहीं है. उन्हें किसी जरूरी काम से कहीं जाना था, तो आज वे जल्दी ही निकल गए. अब टैक्सी का इंतजार है.”

“तो मैं छोड़ देता हूं. रास्ता तो वही है.”

“अरे, अभी मिल जाएगी कोई टैक्सी. तुम क्यों तकलीफ करते हो?”

“तो तुम भी यह तकल्लुफ रहने दो,” कह कर राजन ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. देविका मुसकरा

के बैठ गई.

गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी थी कि कुछ ही दूरी पर एक रैड लाइट पर देविका की खिड़की के पास गुलाब के फूल बेचने वाला एक बच्चा आ कर खड़ा हो गया और उस से फूल खरीदने की गुहार सी लगाने लगा, तो देविका ने उस से फूल ले लिया.

“इस फूल का तुम क्या करोगी?” अचानक राजन के मुंह से निकल गया.

“क्या मतलब…?” देविका ने सवालिया नजरों से उस की ओर देख कर पूछा.

“मतलब… मतलब तो कुछ भी नहीं. लीजिए, आप फूल.”

“अरे यार, फूल को फूल की क्या जरूरत है?” राजन मुंह ही मुंह में बुदबुदाता हुआ बोला.

“कुछ कहा तुम ने?”

“ना… ना, कुछ भी तो नहीं.”

कुछ ही देर में राजन ने गाड़ी कालेज के गेट के सामने रोक दी.

“थैंक यू सो मच.”

“वेलकम.”

देविका मुसकराती हुई गेट की ओर चली गई. राजन उसे जाता हुआ देख ही रहा था कि अचानक उस की नजरें देविका की सीट के नीचे गिरे हुए एक कागज पर पड़ी. उस ने झट से कागज उठाया और सोचा कि देविका का ही कोई जरूरी कागज होगा. उस ने उसे आवाज लगानी चाहिए, पर तब तक देविका उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी.

ये भी पढ़ें- पुरवई : मनोहर की कौन सी बात लोगों को चुभ गई

‘है क्या यह…’ राजन ने खुद से ही सवाल किया और कागज खोल कर देखा. जैसे ही पहली पंक्ति पर राजन की नजर गई, वह आश्चर्य से भर उठा. वह एक खत था.

राजन ने तूफान की तेजी से वह खत पढ़ डाला. खत समाप्त होते ही वह खुशी के मारे चिल्ला सा उठा. उस ने गाड़ी स्टार्ट की और वापस घर की ओर दौड़ा दी. पूरे रास्ते उस के दिलोदिमाग में वह खत छाया रहा. घर पहुंचते ही उस ने पूनम को पुकारा.

“मम्मी, ओ मम्मी, तू कब सास बनेगी,” राजन पूरे जोशखरोश भरे स्वर में चिल्लाने लगा.

पूनम आई तो उस ने कानों पर हाथ रख लिए.

“पहले चिल्लाना तो बंद कर. और यह क्या कर रहा है, अच्छा है तेरे पापा घर पर नहीं हैं, वरना अभी

तूफान आ जाता.”

“तूफान ही तो आ गया है मम्मी. आप मेरी शादी की बात करती थीं तो अब करवा दीजिए.”

“ऐसे ही करवा दूं, शादी के लिए कोई लड़की भी चाहिए होती है मेरे बच्चे,” पूनम लाड़ भरे स्वर में बोली.

“लड़की तो है, देविका.”

“सच, देविका तुझे पसंद है,” पूनम खुशी से झूम सी उठी.

“बहुत पसंद है और आज ही पता चला कि मैं भी उसे पसंद हूं.”

“क्या कह रहा है, तुझे कैसे पता? क्या उस ने कहा है तुझ से?”

“ऐसा ही कुछ, अच्छा शादी की तैयारियां करो,” राजन कुछ उतावला सा हो रहा था और उस का उतावलापन देख कर पूनम हंसती जा रही थी.

“अरे पागल, ये काम क्या चुटकी बजाते ही हो जाता है, तेरे पापा से बात करनी है और देविका के घर वालों से भी तो…”

“अच्छा. काश, चुटकी बजाते ही हो जाता,” चुटकी बजातेबजाते राजन अपने कमरे में चला गया.

उसे जाता हुआ देख कर पूनम की आंखों में जैसे लाड़ का सागर हिलोरे लेने लगा.

कमरे में पहुंच कर राजन पलंग पर औंधा गिर पड़ा और जेब से खत निकाल कर फिर से पढ़ने लगा.

प्यारे “R”,

आज हमें मिले पूरे 6 महीने हो चुके हैं. वह पार्टी का ही दिन था, जब हम ने एकदूसरे को पहली बार देखा था. उस दिन ऐसा लगा था, जैसे तुम्हारी नजरों ने मेरी रूह तक को छू लिया हो. तब से आज तक हुई चंद मुलाकातें ही मेरे मौन प्रेम की साक्षी रही हैं. आधीअधूरी उन मुलाकातों में जो छोटीछोटी बातें हुईं, जैसे तुम ने मुझे देखा उन्हीं पर मेरा विश्वास टिका है. अब मुझे लगता है कि

इस पवित्र प्रेम को शब्दों की जरूरत नहीं है, बस अब हमारे मातापिता भी इस खूबसूरत रिश्ते को अपनी मंजूरी दे दें. घर पर मेरी शादी की बात चलने लगी है. तुम अपने मातापिता को इस बारे में बता दो, ताकि वह रिश्ते की बात करने घर आ सके.

दिल से सदा ही तुम्हारी,

“D”

न जाने वो खत राजन ने कितनी ही बार पढ़ डाला. पढ़तेपढ़ते ही उस की आंख लग गई. रात हो गई

थी. डाइनिंग टेबल पर नवीन ने राजन के बारे में पूछा, तो पूनम ने बताया कि “आज तो वह बिना

खाए ही सो गया है.”

“क्यों, ऐसा क्या हो गया?”

“वही, जो इस उम्र में हो जाया करता है.”

“पहेलियां ना बुझाओ. पहले पूरी बात बताओ.”

“हमें देविका के मातापिता से बात कर लेनी चाहिए. राजन और देविका एकदूसरे को चाहने लगे हैं.”

“यह कब हुआ…?”

“क्या आप भी… प्यार किया नहीं जाता हो जाता है.”

“जैसी मां वेसा ही बेटा. अरे, पहले कारोबार में मेरा हाथ बटाए, फिर प्यारमुहब्बत में पड़े. शादी तो दूर की बात है.”

“शादी होती है तो जिम्मेदारी का एहसास खुदबखुद जग जाता है और फिर राजन ने कौन सी नौकरी ढूंढ़नी है. अपना कारोबार ही तो संभालना है.”

वार्तालाप यहीं समाप्त हो गया.

इधर देविका बेहद परेशान हो रही थी. अपने कमरे की एकएक चीज… एकएक किताब… वह ढेरों बार छान चुकी थी. पर उस का खत उसे नहीं मिल रहा था. किताब में ही तो रखा था. अंत में थक कर वह पलंग पर बैठ गई. उस के सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी. आखिर कहां गया खत. वह खत रितेश के लिए था.

रितेश और देविका की प्रेम कहानी राजन के जन्मदिन की पार्टी में आरंभ हुई थी. जब वे राजन के।घर पहुंची थी, तो सब से पहले उस की नजरें रितेश से ही मिली थीं. रितेश भी उसे ही देख रहा था.

फिर पूरी पार्टी में वह कभी खाना एकसाथ लेते हुए टकराते, तो कभी अपने परिजनों के साथ आपस

में हुए परिचय के दौरान एकदूजे को देखते रहे.

उस दिन शब्दों की सीमा चाहे “हैलो” में ही खत्म हो गई, पर दिल से दिल की बातें ऐसी थीं कि मानो लगता हो जैसे उन का अंत ही नहीं है.

पूनम के घर जब भी कोई महफिल जमती तो लता के साथ आशा भी शामिल होती थी. इस तरह आशा और लता की भी अच्छी बातचीत हो गई. पूनम सभी के सामने देविका की पाककला की खूब तारीफ करती थी. तो ऐसे में

लता एक दिन बोल उठी, “अरे तो कभी हमें भी खिलाओ ना.”

यह सुन कर आशा बोली, “क्यों नहीं, यह भी कोई कहने की बात है.”

फिर एक दिन देविका लता के घर पहुंची, तो शायद लता वहां नहीं थी. दरवाजा रितेश ने ही खोला था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

“आओ देविका.”

“आंटी नहीं हैं घर पर क्या?”

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Writer- साहिना टंडन

“चलो मम्मी, केक भी तो इंतजार कर रहा होगा. तू चल मैं आया,” राजन रितेश के कंधे पर हाथ रख कर गाता हुआ टेबल के पास पहुंच गया.

जैसे ही मोमबत्तियां बुझाने के लिए वो झुका, वैसे ही

सामने से एक खूबसूरत लड़की ने प्रवेश किया.

राजन की निगाहें जैसे उस पर थम गई हों. रितेश भी एकटक उसे ही देख रहा था. गुलाबी रंग के सूट में वह खिला हुआ गुलाबी प्रतीत हो रही थी. बड़ीबड़ी आंखें, नाजुक होंठ, कंधे पर बिखरे स्याहा काले बाल, सारी कायनात की खूबसूरती जैसे उस में समा गई थी.

“अरे देविका… आओ बेटा,”

देविका के साथ उस की मां आशा भी थी. पूनम ने उन का अभिवादन किया और उसे अपने पास ही बुला लिया.

“चलो बरखुरदार, मोमबत्तियां पिघल कर आधी हो चुकी हैं,” नवीन बोले.

“ओ हां,” राजन जैसे होश में आया हो. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझाईं, तो हाल तालियों की

गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

केक काट कर सब से पहले उस ने पूनम और नवीन को खिलाया और फिर

रितेश को खिलाने लगा.

जवाब में रितेश ने भी केक का एक बड़ा सा टुकड़ा उस के मुंह में डाल दिया.

यह देख कर सभी जोर से हंस पड़े, पर राजन के कानों तक जो हंसी पहुंची, वह देविका की थी. चूड़ियों

की खनखनाहट जैसी हंसी उसे सीधे अपने दिल में उतरती लगी. जितनी देर पार्टी चलती रही, उतनी

देर राजन की निगाहें चोरीछुपे देविका को ही निहारती रहीं.

ये भी पढ़ें- भोर का तारा

घर सामने ही होने की वजह से उस दिन के बाद से देविका कभीकभी राजन के घर आ जाती थी.।वहपाककला में काफी निपुण थी, तो अलगअलग तरह के व्यंजन पूनम को चखाने चली आती थी.

इस बीच राजन से कभी आमनासामना होता था, तो कुछ औपचारिक बातें ही होती थीं. पूनम को तो वह शुरू में ही पसंद थी. उस ने मन ही मन में उसे राजन के लिए पसंद भी कर लिया था, पर बापबेटे से बात करने के लिए वह देविका का मन भी टटोल लेना चाहती थी और उस के लिए वह किसी उपयुक्त मौके की तलाश में थी.

ऐसे ही लगभग 6 माह बीत गए. एक दिन राजन ने घर के बाहर अपनी गाड़ी स्टार्ट की तो देखा कि सामने देविका खड़ी थी. राजन गाड़ी ले कर उस के सामने पहुंचा.

“हेलो देविका, कैसे खड़ी हो, आज कालेज नहीं जाना क्या?”

“जाना तो है, पर आज पापा की कार नहीं है. उन्हें किसी जरूरी काम से कहीं जाना था, तो आज वे जल्दी ही निकल गए. अब टैक्सी का इंतजार है.”

“तो मैं छोड़ देता हूं. रास्ता तो वही है.”

“अरे, अभी मिल जाएगी कोई टैक्सी. तुम क्यों तकलीफ करते हो?”

“तो तुम भी यह तकल्लुफ रहने दो,” कह कर राजन ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. देविका मुसकरा

के बैठ गई.

गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी थी कि कुछ ही दूरी पर एक रैड लाइट पर देविका की खिड़की के पास गुलाब के फूल बेचने वाला एक बच्चा आ कर खड़ा हो गया और उस से फूल खरीदने की गुहार सी लगाने लगा, तो देविका ने उस से फूल ले लिया.

“इस फूल का तुम क्या करोगी?” अचानक राजन के मुंह से निकल गया.

“क्या मतलब…?” देविका ने सवालिया नजरों से उस की ओर देख कर पूछा.

“मतलब… मतलब तो कुछ भी नहीं. लीजिए, आप फूल.”

“अरे यार, फूल को फूल की क्या जरूरत है?” राजन मुंह ही मुंह में बुदबुदाता हुआ बोला.

“कुछ कहा तुम ने?”

“ना… ना, कुछ भी तो नहीं.”

कुछ ही देर में राजन ने गाड़ी कालेज के गेट के सामने रोक दी.

“थैंक यू सो मच.”

“वेलकम.”

देविका मुसकराती हुई गेट की ओर चली गई. राजन उसे जाता हुआ देख ही रहा था कि अचानक उस की नजरें देविका की सीट के नीचे गिरे हुए एक कागज पर पड़ी. उस ने झट से कागज उठाया और सोचा कि देविका का ही कोई जरूरी कागज होगा. उस ने उसे आवाज लगानी चाहिए, पर तब तक देविका उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी.

ये भी पढ़ें- पुरवई : मनोहर की कौन सी बात लोगों को चुभ गई

‘है क्या यह…’ राजन ने खुद से ही सवाल किया और कागज खोल कर देखा. जैसे ही पहली पंक्ति पर राजन की नजर गई, वह आश्चर्य से भर उठा. वह एक खत था.

राजन ने तूफान की तेजी से वह खत पढ़ डाला. खत समाप्त होते ही वह खुशी के मारे चिल्ला सा उठा. उस ने गाड़ी स्टार्ट की और वापस घर की ओर दौड़ा दी. पूरे रास्ते उस के दिलोदिमाग में वह खत छाया रहा. घर पहुंचते ही उस ने पूनम को पुकारा.

“मम्मी, ओ मम्मी, तू कब सास बनेगी,” राजन पूरे जोशखरोश भरे स्वर में चिल्लाने लगा.

पूनम आई तो उस ने कानों पर हाथ रख लिए.

“पहले चिल्लाना तो बंद कर. और यह क्या कर रहा है, अच्छा है तेरे पापा घर पर नहीं हैं, वरना अभी

तूफान आ जाता.”

“तूफान ही तो आ गया है मम्मी. आप मेरी शादी की बात करती थीं तो अब करवा दीजिए.”

“ऐसे ही करवा दूं, शादी के लिए कोई लड़की भी चाहिए होती है मेरे बच्चे,” पूनम लाड़ भरे स्वर में बोली.

“लड़की तो है, देविका.”

“सच, देविका तुझे पसंद है,” पूनम खुशी से झूम सी उठी.

“बहुत पसंद है और आज ही पता चला कि मैं भी उसे पसंद हूं.”

“क्या कह रहा है, तुझे कैसे पता? क्या उस ने कहा है तुझ से?”

“ऐसा ही कुछ, अच्छा शादी की तैयारियां करो,” राजन कुछ उतावला सा हो रहा था और उस का उतावलापन देख कर पूनम हंसती जा रही थी.

“अरे पागल, ये काम क्या चुटकी बजाते ही हो जाता है, तेरे पापा से बात करनी है और देविका के घर वालों से भी तो…”

“अच्छा. काश, चुटकी बजाते ही हो जाता,” चुटकी बजातेबजाते राजन अपने कमरे में चला गया.

उसे जाता हुआ देख कर पूनम की आंखों में जैसे लाड़ का सागर हिलोरे लेने लगा.

कमरे में पहुंच कर राजन पलंग पर औंधा गिर पड़ा और जेब से खत निकाल कर फिर से पढ़ने लगा.

प्यारे “R”,

आज हमें मिले पूरे 6 महीने हो चुके हैं. वह पार्टी का ही दिन था, जब हम ने एकदूसरे को पहली बार देखा था. उस दिन ऐसा लगा था, जैसे तुम्हारी नजरों ने मेरी रूह तक को छू लिया हो. तब से आज तक हुई चंद मुलाकातें ही मेरे मौन प्रेम की साक्षी रही हैं. आधीअधूरी उन मुलाकातों में जो छोटीछोटी बातें हुईं, जैसे तुम ने मुझे देखा उन्हीं पर मेरा विश्वास टिका है. अब मुझे लगता है कि

इस पवित्र प्रेम को शब्दों की जरूरत नहीं है, बस अब हमारे मातापिता भी इस खूबसूरत रिश्ते को अपनी मंजूरी दे दें. घर पर मेरी शादी की बात चलने लगी है. तुम अपने मातापिता को इस बारे में बता दो, ताकि वह रिश्ते की बात करने घर आ सके.

दिल से सदा ही तुम्हारी,

“D”

न जाने वो खत राजन ने कितनी ही बार पढ़ डाला. पढ़तेपढ़ते ही उस की आंख लग गई. रात हो गई

थी. डाइनिंग टेबल पर नवीन ने राजन के बारे में पूछा, तो पूनम ने बताया कि “आज तो वह बिना

खाए ही सो गया है.”

“क्यों, ऐसा क्या हो गया?”

“वही, जो इस उम्र में हो जाया करता है.”

“पहेलियां ना बुझाओ. पहले पूरी बात बताओ.”

“हमें देविका के मातापिता से बात कर लेनी चाहिए. राजन और देविका एकदूसरे को चाहने लगे हैं.”

“यह कब हुआ…?”

“क्या आप भी… प्यार किया नहीं जाता हो जाता है.”

“जैसी मां वेसा ही बेटा. अरे, पहले कारोबार में मेरा हाथ बटाए, फिर प्यारमुहब्बत में पड़े. शादी तो दूर की बात है.”

“शादी होती है तो जिम्मेदारी का एहसास खुदबखुद जग जाता है और फिर राजन ने कौन सी नौकरी ढूंढ़नी है. अपना कारोबार ही तो संभालना है.”

वार्तालाप यहीं समाप्त हो गया.

इधर देविका बेहद परेशान हो रही थी. अपने कमरे की एकएक चीज… एकएक किताब… वह ढेरों बार छान चुकी थी. पर उस का खत उसे नहीं मिल रहा था. किताब में ही तो रखा था. अंत में थक कर वह पलंग पर बैठ गई. उस के सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी. आखिर कहां गया खत. वह खत रितेश के लिए था.

रितेश और देविका की प्रेम कहानी राजन के जन्मदिन की पार्टी में आरंभ हुई थी. जब वे राजन के।घर पहुंची थी, तो सब से पहले उस की नजरें रितेश से ही मिली थीं. रितेश भी उसे ही देख रहा था.

फिर पूरी पार्टी में वह कभी खाना एकसाथ लेते हुए टकराते, तो कभी अपने परिजनों के साथ आपस

में हुए परिचय के दौरान एकदूजे को देखते रहे.

उस दिन शब्दों की सीमा चाहे “हैलो” में ही खत्म हो गई, पर दिल से दिल की बातें ऐसी थीं कि मानो लगता हो जैसे उन का अंत ही नहीं है.

पूनम के घर जब भी कोई महफिल जमती तो लता के साथ आशा भी शामिल होती थी. इस तरह आशा और लता की भी अच्छी बातचीत हो गई. पूनम सभी के सामने देविका की पाककला की खूब तारीफ करती थी. तो ऐसे में

लता एक दिन बोल उठी, “अरे तो कभी हमें भी खिलाओ ना.”

यह सुन कर आशा बोली, “क्यों नहीं, यह भी कोई कहने की बात है.”

फिर एक दिन देविका लता के घर पहुंची, तो शायद लता वहां नहीं थी. दरवाजा रितेश ने ही खोला था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

“आओ देविका.”

“आंटी नहीं हैं घर पर क्या?”

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December 28, 2021 at 10:32AM

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