Friday 24 December 2021

डर का सच

बेहद खूबसूरत, स्मार्ट, आधुनिक, एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर मिहिका आजकल लौकडाउन के चलते वर्क फ्रोम होम ही कर रही थी.

मुंबई के अपने सुंदर से फ्लैट में वह अकेली रहती थी. 38 साल की अविवाहिता मिहिका लाइफ को अपनी शर्तों पर जी कर खुश थी, संतुष्ट थी. अपनी हेल्थ, फिगर का खूब ध्यान रखती, सुंदर थी ही. देखने में वह 25-30 साल की ही लगती. आजकल औफिस के काम के साथसाथ वह माइग्रेंट मजदूरों के लिए भी बहुतकुछ कर रही थी.

सिर्फ जरूरी चीजों की दुकानें ही खुली थीं. काफी सामानों की तो होम डिलीवरी हो ही रही थी.

एक दिन वह यों ही कार निकाल कर सोसाइटी से बाहर निकली. यह भी लग रहा था कि कार खड़ेखड़े बेकार ही न हो जाए.

सोसाइटी से कुछ दूर गांधी नगर था, जहां मजदूरों की बस्ती थी, वहीं आसपास उसे गरीब बच्चे मुंह लटकाए दिख गए.

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स्वभाव से बेहद कोमल मिहिका उसी समय ग्रोसरी स्टोर गई, कई फूड पैकेट्स बनवाए और सीधे गांधी नगर पहुंच गई. बच्चों को आवाज दी, तो बच्चे भागे आए, उन के पीछेपीछे कई बड़े भी आ गए.

भूख, गरीबी से क्लांत चेहरे देख मिहिका ने उसी दिन से एक फैसला ले लिया. अब उस ने ग्रोसरी वाले को फोन किया, “नरेश भाई, जैसे पैकेट्स आज मैं ने लिए हैं, ऐसे रोज 50 पैकेट्स तैयार कर के मेरे फ्लैट पर पहुंचा देना.‘’

”जी मैडम, जरूर. बड़ी नेकी का काम करेंगी.”

अब यह रोज का नियम हो गया. औफिस का काम खत्म होने के बाद मिहिका कार निकालती, खुशीखुशी मजदूरों की बस्ती में जा कर खाना बांट कर आती. इस में उसे एक असीम खुशी मिलने लगी.

बस्ती में उस की कार का हौर्न सुन कर लोग रोड पर आ कर खड़े हो जाते, कभी उन के लिए खूब सब्जियां भी खरीद कर ले जाती. गरीबी, महामारी के सताए मजदूर काफी संख्या में तो मुंबई से जा चुके थे, पर ये जो रह गए थे, उन के लिए मिहिका काफीकुछ करने लगी थी. वैसे भी वह घर में अकेली ही रहती थी. आजकल उस की मेड भी नहीं आ रही थी. अपने काम करते हुए उस का दिन तो व्यस्त बीतता. शाम को वह गांधी नगर निकल जाती.

वह आजादखयाल लड़की थी. उस ने शादी की नहीं थी. खूब अच्छा खाती, कमाती, लाइफ को भरपूर एंजौय करने वाली थी.

उस दिन जैसे ही घर पहुंच कर नहा कर बाहर निकली, तभी रजत का फोन आ गया, ”कहां हो मिहिका? किधर गायब हो? कोई हालचाल नहीं, फोन नहीं ?”

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”हां यार, थोड़ा बिजी हो गई.”

”कहां…?”

”ऐसे ही. बताओ, कब आ रहे हो? कल डिनर करो मेरे साथ.”

”नहीं यार, डिनर कहां कर सकता हूं, आजकल घर में ही तो बंद हैं, बाहर निकलूंगा तो सीमा पूछेगी कि कहां खा कर आए,” कहते हुए रजत हंसा, ”होटल भी बंद हैं, कोई बहाना नहीं चलने वाला.”

”यह तो है. आना है तो बहाना तो सोचना ही पड़ेगा.”

”ठीक है, यही बोल कर निकलूंगा कि थोड़ा टहल कर आता हूं. यह तो अच्छा है कि तुम्हारी बराबर की सोसाइटी में ही रहता हूं, पैदल भी आ सकता हूं.‘’

मिहिका ने हंसते हुए कहा, ”सीमा को किसी दिन पता चल जाए कि लौकडाउन में भी उस का पति अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गया है तो क्या होगा?”

”अरे यार, अच्छाअच्छा बोलो, आता हूं.”

रजत मिहिका का कलीग है. मिहिका और उस की दोस्ती 2 महीने पहले ही हुई थी. कोविड के चक्कर में जब सब वर्क फ्रोम होम कर रहे थे, तभी चैट करतेकरते दोनों खुलते चले गए.

मिहिका को हंसी आती कि वह तो अनमैरिड है, ये विवाहित पुरुषों को क्या हो जाता है कि उस के एक इशारे पर उस की तरफ खिंचे चले आते हैं, अच्छीभली पत्नियों के होते हुए उसे देख कर दीवाने बने घूमते हैं.

खैर, रजत पहला विवाहित पुरुष तो है नहीं, जो उस की जिंदगी में आया हो.

मिहिका अच्छी कुक थी, उस ने सोचा, रजत खाना तो खाएगा नहीं, बीवी को जवाब देना होगा. थोड़ा सा पास्ता बना लेती हूं, जब भी वह औफिस पास्ता बना कर ले गई है, रजत ने शौक से खाया है.

रजत तय समय पर आया. आते ही किसी दीवाने की तरह मिहिका को बांहों में भर उसे जी भर कर प्यार किया. मिहिका ने उस की बांहों में खुद को सौंप दिया. कुछ समय दोनों एकदूसरे में खोए रहे, फिर दोनों ने बेड पर ही लेटेलेटे ढेरों बातें की.

रजत ने कहा, “यार, जल्दी नहीं आ पाऊंगा. सीमा आज भी निकलने नहीं दे रही थी.”

”ठीक है, कोई दिक्कत नहीं.”

”मुझे याद करती हो?”

”हां, करती तो हूं.”

”आजकल घर में ही रहना हो रहा है, बोर होती हो?”

मिहिका हंसी, ”अरे नहीं, बोर तो मैं कभी नहीं होती.”

रजत हैरान हुआ, पर चुप रहा. थोड़ी देर में वह चला गया, तो मिहिका लेटेलेटे ही बहुत सी बातों के बारे में सोचने लगी. उसे सचमुच रजत से ऐसा लगाव नहीं था कि उस से मिलना नहीं हो पाएगा तो वह उदास हो जाएगी. रजत उसे अच्छा लगा था. शांत, हंसमुख सा रजत उसे पहली नजर में ही अच्छा लगा था और उस के खुद के चुम्बकीय व्यक्तित्व से बचना किसी पुरुष के लिए आसान नहीं होता. वह जानती है यह बात, इस बात को उस ने हमेशा एंजौय किया है.

पिछले साल इसी सोसाइटी की इसी बिल्डिंग में रहने वाले अनिल से उस की लिफ्ट में कई बार बातचीत हुई तो मिहिका उस से खुलने लगी. वह बैचलर था.

मिहिका ने उसे अपने फ्लैट में कौफी के लिए इनवाइट किया तो दोस्ती कुछ और बढ़ी थी, इतनी कि दोनों ने 6 महीने खुल कर एंजौय किया, साथसाथ खूब घूमे, कभी लोनावाला निकल जाते, कभी माथेरान, वीकेंड का मतलब ही मौजमस्ती हो गया था. फिर उस का ट्रांसफर दिल्ली हो गया. दोनों अच्छे दोस्तों की तरह प्यार से ही अलग हुए.
अब तो उस की शादी भी होने वाली थी. जब अनिल ने उसे फोन पर बताया कि वह पेरेंट्स की पसंद की लड़की से शादी कर रहा है, तो मिहिका बहुत हंसी थी और वह झेंपता रह गया था.

मिहिका का वही रूटीन शुरू हो गया था. औफिस और गांधी नगर जा कर मजदूरों के लिए कुछ करना. वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट और सुखी थी.

एक दिन वह कार निकाल ही रही थी कि सोसाइटी के चेयरमैन जो वहीं वाचमैन को किसी बात पर डांट रहे थे, दिलकश मुसकराहट से मिहिका को हेलो बोलते हुए कह रहे थे, ”अरे, इस लौकडाउन में भी आप रोज कहां घूम रही हैं?”

मिहिका को चेयरमैन मिस्टर श्रीनिवासन हमेशा एक सौम्य पुरुष लगते, ऊपर से उन की स्माइल मिहिका को बहुत पसंद थी. उन की एक ही बेटी थी, जो बाहर पढ़ती थी. मिहिका ने कहा, ”गांधी नगर जाती हूं, मिस्टर श्रीनिवासन. आप चलना चाहेंगे वहां…”

”क्या करने…?”

”फ्री हों तो आइए, आप को घुमा कर लाती हूं.”

श्रीनिवासन ने सकुचाते हुए कहा, ”फिर कभी.”

मिहिका हंसते हुए चली गई. पर वह बहुत हैरान हुई, जब सोसाइटी के अंदर घुसते हुए उस ने देखा, श्रीनिवासन उस की बिल्डिंग के बाहर टहल रहे हैं. वह मन ही मन मुसकराई.

मिहिका ने जैसे ही कार पार्क की, श्रीनिवासन उस की ओर लपके, पूछने लगे, “आप को लौकडाउन में कोई परेशानी तो नहीं हो रही है?”

”जी नहीं, थैंक यू.”

श्रीनिवासन वहां खड़े रहे, तो मिहिका ने पूछा, “आप का भी आजकल वर्क फ्रोम होम चल रहा है?”

”हां, पर काफी बोर हो रहा हूं, लौकडाउन के समय मेरी पत्नी अपनी मां को देखने दिल्ली गई हुई थी, वह अब तक नहीं लौट पाई है.”

”ओह्ह, वैरी सैड. मैं आप के लिए कुछ कर सकती हूं?”

श्रीनिवासन मुसकराते हुए बोले, “फिलहाल एक कप चाय पिलाएंगी?”

”जरूर, बस मुझे इतना टाइम दीजिए कि मैं फ्रेश हो जाऊं. बाहर से आई हूं न.”

”हां… हां, मैं थोड़ी देर में आता हूं.”

मिहिका नहाधो कर जैसे ही फ्री हुई, उस की डोर बेल बजी. मिहिका ने उन का मुसकरा कर स्वागत किया. मिहिका ने एंट्री पर ही सैनिटाइजर रखा हुआ था. श्रीनिवासन ने हाथ सेनिटाइज किए. वे पहली बार उस के घर आए. घर पर एक नजर डालते हुए वे बोले, “वाह, आप ने तो घर को बहुत अच्छा रखा हुआ है. कमाल का साफसुथरा घर है, जबकि मेड भी नहीं है.”

”जी, थैंक्स.”

”आप मुझे श्री ही कहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा. मेरे दोस्त मुझे श्री ही कहते हैं. उन्हें मेरा नाम बड़ा लगता है,” कहते हुए वे प्यारी हंसी हंसे. मिहिका ने उन की काफी तारीफ सुनी थी. उसे वे पसंद थे. उम्र 40 से 45 के बीच ही होगी, पर काफी स्मार्ट और सभ्य थे.

मिहिका 2 कप चाय बना लाई. श्री को काफी नालेज थी. वे मिहिका की वहां रखी बुक्स के बारे में काफी बातें करते रहे. मिहिका को उन के पढ़ने के शौक पर खुशी हुई. वह खुद खूब पढ़ती थी.

श्री के साथ बैठेबैठे मिहिका को भी टाइम का पता ही नहीं चला. वे जाने लगे तो मिहिका ने उन्हें फिर आने के लिए कहा.

3-4 दिन में वह एक बार शाम को वहां आने लगे. चाय कभीकभी खाना भी खा कर जाने लगे और यह दोस्ती बढ़तेबढ़ते धीरेधीरे सारी सीमाएं भी पार कर ही गईं.

वैसे तो इस टाइम सोसाइटी में सब अपनेअपने घर में बंद थे. न कोई किसी से मिल रहा था, न एकदूसरे के घर जा रहा था. श्री सब से चोरीचोरी धीरेधीरे मिहिका के फ्लैट में चले जाते. दोनों इस नए बने रिश्ते में खोए ही थे कि धीरेधीरे फ्लाइट्स आनेजाने लगीं, तो एक दिन उन्होंने बताया, “मिहिका, अब मेरी पत्नी किसी दिन भी आने वाली है. इस तरह तो जल्दीजल्दी नहीं, पर मैं आता रहूंगा.”

”ठीक है, जब आप का मन करे, आ जाना.”

श्री अपनी पत्नी इंदु के आने के बाद भी चोरीचोरी 1-2 बार तो आए, पर एक ही सोसाइटी में ये दिल्लगी उन की गृहस्थी को नुकसान पहुंचा सकती थी, इसलिए बहुत कम तभी ही आ पाते, जब इंदु किसी काम से बाहर गई होती.

मिहिका का मजदूरों की बस्ती में जाना जारी था. ऐसे ही दिनों में वह एक दिन सो कर उठी, तो उस के पूरे शरीर में दर्द था, खूब तेज जुकाम और बुखार से उस की हालत खराब होने लगी, तो उस ने श्री को फोन किया. इस बार श्री उलझे से आए, बोले, “क्या हुआ?”

”मेरी तबियत काफी खराब हो रही है, श्री. मुझे डाक्टर के पास ले जा सकते हो?”

”हां, ठीक है, चलो. मैं बस इंदु को फोन कर के बता दूं.”

”क्या कहोगे उन्हें?”

”मैं सोसाइटी का चेयरमैन तो हूं ही. कह दूंगा कि इस टाइम मेरी ड्यूटी है तुम्हें ले जाना. तुम अकेली हो.”

मिहिका से उठा ही नहीं जा रहा था. बड़ी मुश्किल से वह श्री की कार तक गई. अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था.

मिहिका को बुखार तेज था, इसलिए अस्पताल में एडमिट कर लिया गया. कोविड का टेस्ट होने लगा. श्री मिहिका के ही कहने पर उसे अस्पताल छोड़ घर आ गए.

मिहिका ने ही वहीं कुछ दूर रहने वाली अपनी फ्रेंड आरती को आने के लिए कह दिया था. आरती और वह एक ही औफिस में थीं और अच्छी फ्रेंड्स भी थीं.

आरती के पति विजय और उस की एक बेटी मिंटी मिहिका को एक फैमिली मेंबर ही समझते थे.

आरती तुरंत अस्पताल पहुंच गई. मिहिका की हालत ठीक नहीं थी और फिर उस के कोविड टेस्ट की रिपोर्ट भी पौजिटिव आ गई, तो आरती परेशान हो उठी. अस्पताल के डाक्टर ने कहा, “यह अस्पताल कोविड सेंटर नहीं है. अब आप को पास के ही अस्पताल भेज देते हैं, जो कोविड सेंटर भी है.’’

मिहिका को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया. आरती लगातार उस के साथ थी, पर यहां वह रुक नहीं सकती थी. इस की अनुमति नहीं मिली तो वह बहुत परेशान हो गई.

मिहिका ने ही उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया. यह अस्पताल भी अच्छा था. मिहिका की देखरेख अच्छी तरह से हो रही थी. उस का बुखार उतरा. आरती लगातार उस के टच में थी.

एक हफ्ते बाद मिहिका ने डाक्टर से कहा, ”मैं घर पर अकेली ही रहती हूं. अगर मेरी रिपोर्ट अब नेगेटिव आ जाए तो क्या मैं घर जा सकती हूं?”

”थोड़ा टाइम और लगेगा, फिर रिपोर्ट देख कर भेज देंगे.”

मिहिका ने रजत और श्री को भी मैसेज में अपनी हालत के बारे में बता दिया था. दोनों के यह सोच कर होश उड़ गए कि वे एक कोरोना पौजिटिव के साथ समय बिता कर आए हैं.

कुछ दिन और बीते. मिहिका काफी ठीक हुई, फिर कोविड का टेस्ट हुआ. इस बार रिपोर्ट नेगेटिव आई तो उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

आरती को मिहिका ने सख्ती से दूर रहने के लिए कहा हुआ था, फिर भी उस के बारबार मना करने पर भी आरती ही अपनी कार से उसे उस की बिल्डिंग के पास छोड़ कर गई.

मिहिका को घर आ कर भी क्वारंटीन रहना था. आरती ने उस की हर जरूरत की चीज के लिए होम डिलीवरी की व्यवस्था कर दी थी.

मिहिका बहुत ही हिम्मती थी. वह इन हालात में जरा भी नहीं घबराई. उस के पेरेंट्स उस के जौब लगते ही एक एक्सीडेंट में दुनिया छोड़ गए थे, तब से वह अकेली ही जी रही थी. वह खूब उतारचढ़ाव देख चुकी थी.

घर आ कर मिहिका बहुत कमजोरी का अनुभव कर रही थी. वह फ्रेश हो कर लेटी ही थी कि श्री का फोन आया. उस के हेलो कहते ही शुरू हो गया, ”मिहिका, क्या बताऊं, कोरोना तुम्हें हुआ है, नींद मेरी उड़ गई है. मैं ने तो तुम्हारे साथ बहुत टाइम बिताया है इधर. मुझे कहीं कुछ न हो जाए, मैं तो वैसे भी ब्लड प्रेशर का मरीज हूं, बहुत डर लग रहा है. क्या बताऊं, एक छींक भी आती है तो डर जाता हूं.”

मिहिका बड़े धैर्य से श्री का डर सुनती रही. उस ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी. हां, हूं कर के उस ने फोन रख दिया.

अगले दिन ही रजत का फोन आ गया. उस की भी हालत खराब थी, ”यार, क्या बताऊं, तुम्हें यह कैसे हो गया? डर लग रहा है कि कहीं मैं भी इस की चपेट में न आ जाऊं? तुम्हें कहां से हो गया होगा?”

”कुछ कह नहीं सकती… शायद माइग्रेंट मजदूरों की बस्ती में जा कर हुआ हो.’’

”क्या…? तुम वहां क्यों जा रही थी?”

”उन्हें कुछ देने.‘’

”तुम ने मुझे बताया नहीं.”

”जरूरत नहीं समझी. अरे, वैसे भी मैं हर जगह तो तुम्हें बता कर जाऊं, ऐसा तो कुछ नहीं हमारे बीच.”

रजत उस की साफगोई पर चुप रह गया. बस एक ठंडी सांस ले कर उस ने इतना ही कहा, “मिहिका, बहुत डर लग रहा है कि कहीं मैं भी कोरोना की चपेट में न आ जाऊं, घर में मां हैं, छोटे बच्चे हैं… क्या कर सकते हैं अब? खैर, टेक केयर.”

मिहिका का कोविड का केस सोसाइटी का पहला केस था. पूरी सोसाइटी को चिंता होने लगी. मिहिका की बिल्डिंग की एंट्री पर नगरपालिका वाले एक बैनर भी लटका गए कि इस बिल्डिंग में कोरोना का केस है, सब दूर रहें, ध्यान रखा जाए.

मिहिका ने सोसाइटी में ही टिफिन सर्विस वाली महिला से रिक्वेस्ट की थी कि वह उस के लिए खाना भिजवाती रहे. वैसे तो वह इस लौकडाउन में खुद ही बना रही थी, पर औफिस जाने के समय उस ने इस महिला से कई बार खाना मंगवाया था. आरती उस की चिंता में बराबर उस का हालचाल लेती रही.

मिहिका अब कुछ ठीक महसूस कर रही थी, पर जिस तरह से रजत और श्री डर रहे थे, वह आराम करती हुई यही सोच रही थी कि बेचारे, इन्हें मौजमस्ती महंगी न पड़ जाए. वह तो अब ठीक है, पर दोनों के डर से भरे मैसेज पढ़पढ़ कर उसे हंसी आ जाती. वे अपने इस डर का सच किसी से शेयर नहीं कर सकते थे. उसी से ही सुबहशाम अपनाअपना डर बांट रहे थे, डर का सच वही जानती थी और इस सच पर मुसकराए जा रही थी.

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बेहद खूबसूरत, स्मार्ट, आधुनिक, एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर मिहिका आजकल लौकडाउन के चलते वर्क फ्रोम होम ही कर रही थी.

मुंबई के अपने सुंदर से फ्लैट में वह अकेली रहती थी. 38 साल की अविवाहिता मिहिका लाइफ को अपनी शर्तों पर जी कर खुश थी, संतुष्ट थी. अपनी हेल्थ, फिगर का खूब ध्यान रखती, सुंदर थी ही. देखने में वह 25-30 साल की ही लगती. आजकल औफिस के काम के साथसाथ वह माइग्रेंट मजदूरों के लिए भी बहुतकुछ कर रही थी.

सिर्फ जरूरी चीजों की दुकानें ही खुली थीं. काफी सामानों की तो होम डिलीवरी हो ही रही थी.

एक दिन वह यों ही कार निकाल कर सोसाइटी से बाहर निकली. यह भी लग रहा था कि कार खड़ेखड़े बेकार ही न हो जाए.

सोसाइटी से कुछ दूर गांधी नगर था, जहां मजदूरों की बस्ती थी, वहीं आसपास उसे गरीब बच्चे मुंह लटकाए दिख गए.

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स्वभाव से बेहद कोमल मिहिका उसी समय ग्रोसरी स्टोर गई, कई फूड पैकेट्स बनवाए और सीधे गांधी नगर पहुंच गई. बच्चों को आवाज दी, तो बच्चे भागे आए, उन के पीछेपीछे कई बड़े भी आ गए.

भूख, गरीबी से क्लांत चेहरे देख मिहिका ने उसी दिन से एक फैसला ले लिया. अब उस ने ग्रोसरी वाले को फोन किया, “नरेश भाई, जैसे पैकेट्स आज मैं ने लिए हैं, ऐसे रोज 50 पैकेट्स तैयार कर के मेरे फ्लैट पर पहुंचा देना.‘’

”जी मैडम, जरूर. बड़ी नेकी का काम करेंगी.”

अब यह रोज का नियम हो गया. औफिस का काम खत्म होने के बाद मिहिका कार निकालती, खुशीखुशी मजदूरों की बस्ती में जा कर खाना बांट कर आती. इस में उसे एक असीम खुशी मिलने लगी.

बस्ती में उस की कार का हौर्न सुन कर लोग रोड पर आ कर खड़े हो जाते, कभी उन के लिए खूब सब्जियां भी खरीद कर ले जाती. गरीबी, महामारी के सताए मजदूर काफी संख्या में तो मुंबई से जा चुके थे, पर ये जो रह गए थे, उन के लिए मिहिका काफीकुछ करने लगी थी. वैसे भी वह घर में अकेली ही रहती थी. आजकल उस की मेड भी नहीं आ रही थी. अपने काम करते हुए उस का दिन तो व्यस्त बीतता. शाम को वह गांधी नगर निकल जाती.

वह आजादखयाल लड़की थी. उस ने शादी की नहीं थी. खूब अच्छा खाती, कमाती, लाइफ को भरपूर एंजौय करने वाली थी.

उस दिन जैसे ही घर पहुंच कर नहा कर बाहर निकली, तभी रजत का फोन आ गया, ”कहां हो मिहिका? किधर गायब हो? कोई हालचाल नहीं, फोन नहीं ?”

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”हां यार, थोड़ा बिजी हो गई.”

”कहां…?”

”ऐसे ही. बताओ, कब आ रहे हो? कल डिनर करो मेरे साथ.”

”नहीं यार, डिनर कहां कर सकता हूं, आजकल घर में ही तो बंद हैं, बाहर निकलूंगा तो सीमा पूछेगी कि कहां खा कर आए,” कहते हुए रजत हंसा, ”होटल भी बंद हैं, कोई बहाना नहीं चलने वाला.”

”यह तो है. आना है तो बहाना तो सोचना ही पड़ेगा.”

”ठीक है, यही बोल कर निकलूंगा कि थोड़ा टहल कर आता हूं. यह तो अच्छा है कि तुम्हारी बराबर की सोसाइटी में ही रहता हूं, पैदल भी आ सकता हूं.‘’

मिहिका ने हंसते हुए कहा, ”सीमा को किसी दिन पता चल जाए कि लौकडाउन में भी उस का पति अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गया है तो क्या होगा?”

”अरे यार, अच्छाअच्छा बोलो, आता हूं.”

रजत मिहिका का कलीग है. मिहिका और उस की दोस्ती 2 महीने पहले ही हुई थी. कोविड के चक्कर में जब सब वर्क फ्रोम होम कर रहे थे, तभी चैट करतेकरते दोनों खुलते चले गए.

मिहिका को हंसी आती कि वह तो अनमैरिड है, ये विवाहित पुरुषों को क्या हो जाता है कि उस के एक इशारे पर उस की तरफ खिंचे चले आते हैं, अच्छीभली पत्नियों के होते हुए उसे देख कर दीवाने बने घूमते हैं.

खैर, रजत पहला विवाहित पुरुष तो है नहीं, जो उस की जिंदगी में आया हो.

मिहिका अच्छी कुक थी, उस ने सोचा, रजत खाना तो खाएगा नहीं, बीवी को जवाब देना होगा. थोड़ा सा पास्ता बना लेती हूं, जब भी वह औफिस पास्ता बना कर ले गई है, रजत ने शौक से खाया है.

रजत तय समय पर आया. आते ही किसी दीवाने की तरह मिहिका को बांहों में भर उसे जी भर कर प्यार किया. मिहिका ने उस की बांहों में खुद को सौंप दिया. कुछ समय दोनों एकदूसरे में खोए रहे, फिर दोनों ने बेड पर ही लेटेलेटे ढेरों बातें की.

रजत ने कहा, “यार, जल्दी नहीं आ पाऊंगा. सीमा आज भी निकलने नहीं दे रही थी.”

”ठीक है, कोई दिक्कत नहीं.”

”मुझे याद करती हो?”

”हां, करती तो हूं.”

”आजकल घर में ही रहना हो रहा है, बोर होती हो?”

मिहिका हंसी, ”अरे नहीं, बोर तो मैं कभी नहीं होती.”

रजत हैरान हुआ, पर चुप रहा. थोड़ी देर में वह चला गया, तो मिहिका लेटेलेटे ही बहुत सी बातों के बारे में सोचने लगी. उसे सचमुच रजत से ऐसा लगाव नहीं था कि उस से मिलना नहीं हो पाएगा तो वह उदास हो जाएगी. रजत उसे अच्छा लगा था. शांत, हंसमुख सा रजत उसे पहली नजर में ही अच्छा लगा था और उस के खुद के चुम्बकीय व्यक्तित्व से बचना किसी पुरुष के लिए आसान नहीं होता. वह जानती है यह बात, इस बात को उस ने हमेशा एंजौय किया है.

पिछले साल इसी सोसाइटी की इसी बिल्डिंग में रहने वाले अनिल से उस की लिफ्ट में कई बार बातचीत हुई तो मिहिका उस से खुलने लगी. वह बैचलर था.

मिहिका ने उसे अपने फ्लैट में कौफी के लिए इनवाइट किया तो दोस्ती कुछ और बढ़ी थी, इतनी कि दोनों ने 6 महीने खुल कर एंजौय किया, साथसाथ खूब घूमे, कभी लोनावाला निकल जाते, कभी माथेरान, वीकेंड का मतलब ही मौजमस्ती हो गया था. फिर उस का ट्रांसफर दिल्ली हो गया. दोनों अच्छे दोस्तों की तरह प्यार से ही अलग हुए.
अब तो उस की शादी भी होने वाली थी. जब अनिल ने उसे फोन पर बताया कि वह पेरेंट्स की पसंद की लड़की से शादी कर रहा है, तो मिहिका बहुत हंसी थी और वह झेंपता रह गया था.

मिहिका का वही रूटीन शुरू हो गया था. औफिस और गांधी नगर जा कर मजदूरों के लिए कुछ करना. वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट और सुखी थी.

एक दिन वह कार निकाल ही रही थी कि सोसाइटी के चेयरमैन जो वहीं वाचमैन को किसी बात पर डांट रहे थे, दिलकश मुसकराहट से मिहिका को हेलो बोलते हुए कह रहे थे, ”अरे, इस लौकडाउन में भी आप रोज कहां घूम रही हैं?”

मिहिका को चेयरमैन मिस्टर श्रीनिवासन हमेशा एक सौम्य पुरुष लगते, ऊपर से उन की स्माइल मिहिका को बहुत पसंद थी. उन की एक ही बेटी थी, जो बाहर पढ़ती थी. मिहिका ने कहा, ”गांधी नगर जाती हूं, मिस्टर श्रीनिवासन. आप चलना चाहेंगे वहां…”

”क्या करने…?”

”फ्री हों तो आइए, आप को घुमा कर लाती हूं.”

श्रीनिवासन ने सकुचाते हुए कहा, ”फिर कभी.”

मिहिका हंसते हुए चली गई. पर वह बहुत हैरान हुई, जब सोसाइटी के अंदर घुसते हुए उस ने देखा, श्रीनिवासन उस की बिल्डिंग के बाहर टहल रहे हैं. वह मन ही मन मुसकराई.

मिहिका ने जैसे ही कार पार्क की, श्रीनिवासन उस की ओर लपके, पूछने लगे, “आप को लौकडाउन में कोई परेशानी तो नहीं हो रही है?”

”जी नहीं, थैंक यू.”

श्रीनिवासन वहां खड़े रहे, तो मिहिका ने पूछा, “आप का भी आजकल वर्क फ्रोम होम चल रहा है?”

”हां, पर काफी बोर हो रहा हूं, लौकडाउन के समय मेरी पत्नी अपनी मां को देखने दिल्ली गई हुई थी, वह अब तक नहीं लौट पाई है.”

”ओह्ह, वैरी सैड. मैं आप के लिए कुछ कर सकती हूं?”

श्रीनिवासन मुसकराते हुए बोले, “फिलहाल एक कप चाय पिलाएंगी?”

”जरूर, बस मुझे इतना टाइम दीजिए कि मैं फ्रेश हो जाऊं. बाहर से आई हूं न.”

”हां… हां, मैं थोड़ी देर में आता हूं.”

मिहिका नहाधो कर जैसे ही फ्री हुई, उस की डोर बेल बजी. मिहिका ने उन का मुसकरा कर स्वागत किया. मिहिका ने एंट्री पर ही सैनिटाइजर रखा हुआ था. श्रीनिवासन ने हाथ सेनिटाइज किए. वे पहली बार उस के घर आए. घर पर एक नजर डालते हुए वे बोले, “वाह, आप ने तो घर को बहुत अच्छा रखा हुआ है. कमाल का साफसुथरा घर है, जबकि मेड भी नहीं है.”

”जी, थैंक्स.”

”आप मुझे श्री ही कहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा. मेरे दोस्त मुझे श्री ही कहते हैं. उन्हें मेरा नाम बड़ा लगता है,” कहते हुए वे प्यारी हंसी हंसे. मिहिका ने उन की काफी तारीफ सुनी थी. उसे वे पसंद थे. उम्र 40 से 45 के बीच ही होगी, पर काफी स्मार्ट और सभ्य थे.

मिहिका 2 कप चाय बना लाई. श्री को काफी नालेज थी. वे मिहिका की वहां रखी बुक्स के बारे में काफी बातें करते रहे. मिहिका को उन के पढ़ने के शौक पर खुशी हुई. वह खुद खूब पढ़ती थी.

श्री के साथ बैठेबैठे मिहिका को भी टाइम का पता ही नहीं चला. वे जाने लगे तो मिहिका ने उन्हें फिर आने के लिए कहा.

3-4 दिन में वह एक बार शाम को वहां आने लगे. चाय कभीकभी खाना भी खा कर जाने लगे और यह दोस्ती बढ़तेबढ़ते धीरेधीरे सारी सीमाएं भी पार कर ही गईं.

वैसे तो इस टाइम सोसाइटी में सब अपनेअपने घर में बंद थे. न कोई किसी से मिल रहा था, न एकदूसरे के घर जा रहा था. श्री सब से चोरीचोरी धीरेधीरे मिहिका के फ्लैट में चले जाते. दोनों इस नए बने रिश्ते में खोए ही थे कि धीरेधीरे फ्लाइट्स आनेजाने लगीं, तो एक दिन उन्होंने बताया, “मिहिका, अब मेरी पत्नी किसी दिन भी आने वाली है. इस तरह तो जल्दीजल्दी नहीं, पर मैं आता रहूंगा.”

”ठीक है, जब आप का मन करे, आ जाना.”

श्री अपनी पत्नी इंदु के आने के बाद भी चोरीचोरी 1-2 बार तो आए, पर एक ही सोसाइटी में ये दिल्लगी उन की गृहस्थी को नुकसान पहुंचा सकती थी, इसलिए बहुत कम तभी ही आ पाते, जब इंदु किसी काम से बाहर गई होती.

मिहिका का मजदूरों की बस्ती में जाना जारी था. ऐसे ही दिनों में वह एक दिन सो कर उठी, तो उस के पूरे शरीर में दर्द था, खूब तेज जुकाम और बुखार से उस की हालत खराब होने लगी, तो उस ने श्री को फोन किया. इस बार श्री उलझे से आए, बोले, “क्या हुआ?”

”मेरी तबियत काफी खराब हो रही है, श्री. मुझे डाक्टर के पास ले जा सकते हो?”

”हां, ठीक है, चलो. मैं बस इंदु को फोन कर के बता दूं.”

”क्या कहोगे उन्हें?”

”मैं सोसाइटी का चेयरमैन तो हूं ही. कह दूंगा कि इस टाइम मेरी ड्यूटी है तुम्हें ले जाना. तुम अकेली हो.”

मिहिका से उठा ही नहीं जा रहा था. बड़ी मुश्किल से वह श्री की कार तक गई. अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था.

मिहिका को बुखार तेज था, इसलिए अस्पताल में एडमिट कर लिया गया. कोविड का टेस्ट होने लगा. श्री मिहिका के ही कहने पर उसे अस्पताल छोड़ घर आ गए.

मिहिका ने ही वहीं कुछ दूर रहने वाली अपनी फ्रेंड आरती को आने के लिए कह दिया था. आरती और वह एक ही औफिस में थीं और अच्छी फ्रेंड्स भी थीं.

आरती के पति विजय और उस की एक बेटी मिंटी मिहिका को एक फैमिली मेंबर ही समझते थे.

आरती तुरंत अस्पताल पहुंच गई. मिहिका की हालत ठीक नहीं थी और फिर उस के कोविड टेस्ट की रिपोर्ट भी पौजिटिव आ गई, तो आरती परेशान हो उठी. अस्पताल के डाक्टर ने कहा, “यह अस्पताल कोविड सेंटर नहीं है. अब आप को पास के ही अस्पताल भेज देते हैं, जो कोविड सेंटर भी है.’’

मिहिका को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया. आरती लगातार उस के साथ थी, पर यहां वह रुक नहीं सकती थी. इस की अनुमति नहीं मिली तो वह बहुत परेशान हो गई.

मिहिका ने ही उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया. यह अस्पताल भी अच्छा था. मिहिका की देखरेख अच्छी तरह से हो रही थी. उस का बुखार उतरा. आरती लगातार उस के टच में थी.

एक हफ्ते बाद मिहिका ने डाक्टर से कहा, ”मैं घर पर अकेली ही रहती हूं. अगर मेरी रिपोर्ट अब नेगेटिव आ जाए तो क्या मैं घर जा सकती हूं?”

”थोड़ा टाइम और लगेगा, फिर रिपोर्ट देख कर भेज देंगे.”

मिहिका ने रजत और श्री को भी मैसेज में अपनी हालत के बारे में बता दिया था. दोनों के यह सोच कर होश उड़ गए कि वे एक कोरोना पौजिटिव के साथ समय बिता कर आए हैं.

कुछ दिन और बीते. मिहिका काफी ठीक हुई, फिर कोविड का टेस्ट हुआ. इस बार रिपोर्ट नेगेटिव आई तो उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

आरती को मिहिका ने सख्ती से दूर रहने के लिए कहा हुआ था, फिर भी उस के बारबार मना करने पर भी आरती ही अपनी कार से उसे उस की बिल्डिंग के पास छोड़ कर गई.

मिहिका को घर आ कर भी क्वारंटीन रहना था. आरती ने उस की हर जरूरत की चीज के लिए होम डिलीवरी की व्यवस्था कर दी थी.

मिहिका बहुत ही हिम्मती थी. वह इन हालात में जरा भी नहीं घबराई. उस के पेरेंट्स उस के जौब लगते ही एक एक्सीडेंट में दुनिया छोड़ गए थे, तब से वह अकेली ही जी रही थी. वह खूब उतारचढ़ाव देख चुकी थी.

घर आ कर मिहिका बहुत कमजोरी का अनुभव कर रही थी. वह फ्रेश हो कर लेटी ही थी कि श्री का फोन आया. उस के हेलो कहते ही शुरू हो गया, ”मिहिका, क्या बताऊं, कोरोना तुम्हें हुआ है, नींद मेरी उड़ गई है. मैं ने तो तुम्हारे साथ बहुत टाइम बिताया है इधर. मुझे कहीं कुछ न हो जाए, मैं तो वैसे भी ब्लड प्रेशर का मरीज हूं, बहुत डर लग रहा है. क्या बताऊं, एक छींक भी आती है तो डर जाता हूं.”

मिहिका बड़े धैर्य से श्री का डर सुनती रही. उस ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी. हां, हूं कर के उस ने फोन रख दिया.

अगले दिन ही रजत का फोन आ गया. उस की भी हालत खराब थी, ”यार, क्या बताऊं, तुम्हें यह कैसे हो गया? डर लग रहा है कि कहीं मैं भी इस की चपेट में न आ जाऊं? तुम्हें कहां से हो गया होगा?”

”कुछ कह नहीं सकती… शायद माइग्रेंट मजदूरों की बस्ती में जा कर हुआ हो.’’

”क्या…? तुम वहां क्यों जा रही थी?”

”उन्हें कुछ देने.‘’

”तुम ने मुझे बताया नहीं.”

”जरूरत नहीं समझी. अरे, वैसे भी मैं हर जगह तो तुम्हें बता कर जाऊं, ऐसा तो कुछ नहीं हमारे बीच.”

रजत उस की साफगोई पर चुप रह गया. बस एक ठंडी सांस ले कर उस ने इतना ही कहा, “मिहिका, बहुत डर लग रहा है कि कहीं मैं भी कोरोना की चपेट में न आ जाऊं, घर में मां हैं, छोटे बच्चे हैं… क्या कर सकते हैं अब? खैर, टेक केयर.”

मिहिका का कोविड का केस सोसाइटी का पहला केस था. पूरी सोसाइटी को चिंता होने लगी. मिहिका की बिल्डिंग की एंट्री पर नगरपालिका वाले एक बैनर भी लटका गए कि इस बिल्डिंग में कोरोना का केस है, सब दूर रहें, ध्यान रखा जाए.

मिहिका ने सोसाइटी में ही टिफिन सर्विस वाली महिला से रिक्वेस्ट की थी कि वह उस के लिए खाना भिजवाती रहे. वैसे तो वह इस लौकडाउन में खुद ही बना रही थी, पर औफिस जाने के समय उस ने इस महिला से कई बार खाना मंगवाया था. आरती उस की चिंता में बराबर उस का हालचाल लेती रही.

मिहिका अब कुछ ठीक महसूस कर रही थी, पर जिस तरह से रजत और श्री डर रहे थे, वह आराम करती हुई यही सोच रही थी कि बेचारे, इन्हें मौजमस्ती महंगी न पड़ जाए. वह तो अब ठीक है, पर दोनों के डर से भरे मैसेज पढ़पढ़ कर उसे हंसी आ जाती. वे अपने इस डर का सच किसी से शेयर नहीं कर सकते थे. उसी से ही सुबहशाम अपनाअपना डर बांट रहे थे, डर का सच वही जानती थी और इस सच पर मुसकराए जा रही थी.

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December 24, 2021 at 10:00AM

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