Friday 10 December 2021

भूल का एहसास : भाग 2

लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

‘‘रोती क्या हो, उमा. कुछ नहीं होगा. अभी जय को डाक्टर बनाना है, उस की शादी करनी है. तुम्हारे लिए भी कुछ करना है. तुम ने मेरे लिए बहुत किया है, मेरी नौकरी नहीं लगी थी, उस समय तुम ने ही मु?ो हौसला दिया, मदद की. अपने सारे गहने मेरी जरूरतों के लिए एकएक कर बेचती चली गईं. वे भी तो बनवाने हैं और मकान का लोन भी तो… यकीन करो, अब बिलकुल नहीं पीऊंगा. मु?ो माफ कर देना इस बार,’’ कहते हुए देवेश ने हाथ जोड़ लिए थे.

देवेश बड़बड़ाता जा रहा था और उमा अपने आंसुओं को रोकने की चेष्टा कर रही थी, ‘कितने दयनीय लग रहे हैं ये इस समय, जैसे हम सब के लिए क्या कुछ नहीं करना चाहते. सुबह की बात क्या कहूं इन से, कुछ कहने का फायदा नहीं. इस समय होश में ही नहीं हैं तो सम?ोंगे क्या. हाथ जोड़ कर मु?ो लज्जित कर रहे हैं,’ सोचते हुए उमा ने हाथ जोड़ते देवेश के दोनों हाथ अलग कर दिए.

उमा से कुछ बोला न गया. फिर उस ने खर्राटे भरते देख, देवेश के जूते उतार कर उस के पैरों पर चादर डाल दी और यह सोचते हुए सो गई कि इन से सुबह ही कुछ बोलूंगी.देवेश रोज की तरह तड़के 5 बजे उठा. रोतेरोते उमा को देररात नींद आई थी, सो वह गहरी नींद सो रही थी.‘‘उमा, उठो मैं दूध लेने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो,’’ देवेश बोला, मानो कुछ हुआ ही न हो और दूध लेने चला गया.

नींद खुलते ही वह हड़बड़ा कर उठी. देवेश जब दूध ले कर लौटा तब उमा किचन में थी. जय अभी भी सो रहा था.उमा ने कुछ बोलने के लिए यही समय ठीक सम?ा, सो बोली, ‘‘जानते हैं, कल भी वही हुआ, जय और बब्बन में ?ागड़ा. आप सम?ाते क्यों नहीं हैं? क्या आप को शोभा देता है इस उम्र में ऐसीवैसी हरकतें करना? मैं रश्मि की बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं ने तो उस के लिए कुछ भी नहीं कहा,’’ देवेश बोला.‘‘?ाठ मत बोलिए,’’ उमा ?ाल्ला उठी.‘‘तुम तो गंभीरता से ले रही हो,’’ देवेश ने बात को आईगई करते हुए कहा.‘‘कितनी बदनामी हो रही है हमारी, जय की पढ़ाई पर कितना असर पड़ रहा है, इस का अंदाजा भी है आप को? महल्ले में निकलना मुश्किल हो गया है. एक दिन तो मु?ो मालती ने फटकारा भी. रमेशजी की बहन शांति ने भी खूब भलाबुरा कहा. रामलाल को भी भनक लग गई है. परसों उन्होंने विमला को पीटा भी था. उन्होंने भी मु?ा से कहा था कि आप ने उन सब के साथ बदतमीजी की थी, फिर भी मैं उन से आप के लिए लड़ पड़ी.

‘‘रामेश्वरजी ने तो यहां तक कह दिया, ‘आप तो इस उम्र में भी इतनी खूबसूरत हैं कि देवेश बाबू पर तो क्या, किसी पर भी कंट्रोल कर सकती हैं, फिर वे क्यों इधरउधर मंडराते हैं? आप उन का ठीक से खयाल नहीं रखतीं? उन का नहीं तो हमारा ही खयाल रखा कीजिए,’’ कहते हुए उमा देवेश पर बरस पड़ी, ‘‘जानते हैं आप, आप की हरकतों की वजह से कितना कुछ सुनना पड़ता है? खून खौल उठता है मेरा, दिल जलता है. कितने अपमानित होते हैं हम? जय पर क्या बीत रही है, कभी सोचा है आप ने? यही प्यार है आप का हमारे लिए, यही चिंता है हम सब की?’’

‘‘अरे, उमा, वह तो दिल्लगी है. थोड़ी तफरीह के बहाने खुद को जवान महसूस कर लेता हूं, थोड़ी देर को चिंतामुक्त हो जाता हूं, फिर काम करने का नया जोश आ जाता है,’’ देवेश ने बेफिक्र हो कर कहा, ‘‘मु?ो अपनी जिम्मेदारियों का पता है. जिंदगी ऐसे ही बीतेगी, नीरस, सो थोड़ा सा रस घोल लेता हूं.’’‘‘रस… चारों ओर जो बदनामी हो रही है उस का क्या? ऐसे में हम जय को एमबीबीएस क्या पढ़वा पाएंगे, वह पीएमटी में निकल सकेगा तभी न, जिस की उम्मीद इस माहौल में न के बराबर है. वह कितने तनाव में रहता है और आप… खुद को जवान महसूस करने के लिए शराब पी रहे हैं, सब की बहूबेटियों को छेड़ रहे हैं, गाना गा रहे हैं. सीटी बजाना, आंख मारना… छि:, ये सब आप को शोभा देता है? कुछ तो शर्म कीजिए. सस्ते, छिछोरे मजाक, घटिया छींटाकशी… जय के सामने आप क्या आदर्श रख रहे हैं? किसी दिन बब्बन या किसी और ने हाथपैर तोड़ दिए तो बैठे रहना.’’

‘‘बित्ते भर का छोकरा, अरे, उस की इतनी हिम्मत? अब चुप भी करो, बड़ा लैक्चर दे डाला. नाश्ता देना है या नहीं?’’ देवेश ?ां?ाला कर बोला.‘‘क्या नाश्ता बना रही हो, अम्मा? बेसन का हलवा तो नहीं. बहुत खुशबू आ रही है,’’ जय सो कर उठते ही बोला.‘‘जय, उठ गया तू. मैं तो नहीं बना रही हलवा,’’ कहते हुए उमा उस के कमरे में चली आई और और उस ने खिड़की के परदे खींच कर एक ओर खिसका दिए.

‘‘देख जय, बगल में जो घर खाली था उस में चहलकदमी हो रही है. वहीं से ही खुशबू आ रही है. लगता है वे लोग रात में ही आ गए. हमें अपनी ही बातों में पता नहीं चला,’’ उमा ने पड़ोस के घर की तरफ इशारा करते हुए कहा.उमा को अभी पता नहीं था कि इन्हीं पड़ोसियों से तो उस की हर दिन की परेशानी बढ़ने वाली है. सुबह कामवाली बाई ने जब बताया कि तलाकशुदा एक महिला अपनी जवान बेटियों के साथ रहने आई है और उन के साथ महिला के काफी वृद्ध पिता भी हैं तो उमा को कुछ और नई परेशानियां साफ नजर आने लगीं. फिर तो देवेश का रोज एक और घर में आनाजाना शुरू हो गया.

देवेश, उमा के लाख मना करने पर भी किसी न किसी बहाने नए पड़ोसियों के यहां चला जाता. तरहतरह की बातें फैलती ही जा रही हैं. मुंह छिपा कर वह कब तक घर में पड़ी रहेगी, लोगों का सामना किसी न किसी तरह से हो ही जाएगा. अपमान के कितने घूंट पीएगी वह?नई पड़ोसिन, अल्पना चौधरी, किसी दफ्तर में काम करती थी. सो, 8 बजे ही उसे जाना पड़ता. औफिस काफी दूर था, सो लौटने में उसे 7 बज जाते. दोनों लड़कियां रमा व बीना बीए तथा 12वीं की छात्राएं थीं.

देवेश, अल्पना चौधरी के जाने के काफी देर बाद अपने औफिस जाता और जल्दी वापस आ जाता. उसे मटरगश्ती के लिए काफी समय मिल जाता. आतेजाते वह उन दोनों से पूछ लेता, ‘कोई जरूरत तो नहीं, निसंकोच बताइएगा.’शनिवार को देवेश का ‘हाफ डे’ होता, पर वह ‘फुल डे’ बता कर अपना समय रमा और बीना के साथ बिताने लगा.

उमा को पहले ही शक था कि फुल डे का तो बहाना है. एक दिन उमा किसी ‘पत्रिका’ के बहाने अल्पना के घर पहुंच गई. उस का शक सही निकला. देवेश वहीं था. उमा को देखते ही वह रमा और बीना को इतिहास, भूगोल का ज्ञान कराने लगा.‘‘मैं सब सम?ाती हूं,’’ उमा ने चुस्त सलवारसूट में खड़ी अल्पना की बड़ी बेटी रमा और मिनी स्कर्ट पहने छोटी बेटी बीना को तीखी नजरों से देखा. ‘आजकल की लड़कियां भी कम नहीं हैं. उफ, तोबा ऐसे परिधान पर. दूसरे की बेटियों से कहा ही क्या जा सकता है. फिर खोट अपने सिक्के में क्या कम है,’ उमा मन ही मन बड़बड़ा रही थी. उमा को देख कर देवेश और लड़कियां सिटपिटा गईं.

‘‘इन्होंने मु?ा से इतिहास, भूगोल और गणित में मदद मांगी थी. थोड़ी कमजोर हैं,’’ देवेश ने सकपकाते हुए सफाई दी.‘‘कभी मौका मिले तो बता दिया करो, अंकल,’’ दोनों लड़कियां एकसाथ बोलीं.‘‘आज हाफ डे हो गया, सो मैं सीधा इधर ही आ गया. बेचारी बच्चियों का भला हो जाए,’’ देवेश बोला.

देवेश की ?ाठी सफाइयों पर उमा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था और वह बहुतकुछ कह भी सकती थी, मगर खून का सा घूंट पी कर बिना कुछ बोले ही वह वापस चल दी पर वह मकान की आड़ में खड़ी हो गई.‘‘अच्छा, मैं भी चलता हूं, फिर जरूरत हो तो पूछ लेना,’’ कह कर हंसते हुए देवेश भी उमा के जाते ही लौट पड़ा. जैसे ही देवेश उन के घर से थोड़ा आगे पहुंचा, आड़ में खड़ी उमा फुरती से उन के घर में दाखिल हो गई.

जब अल्पना चौधरी वापस आईं तो किसी अपरिचित महिला को उस ने अपना इंतजार करते पाया.‘‘मैं पड़ोस में रहती हूं, मेरा नाम उमा है,’’ उमा ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘आप से कुछ जरूरी बातें करनी थीं.’

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लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

‘‘रोती क्या हो, उमा. कुछ नहीं होगा. अभी जय को डाक्टर बनाना है, उस की शादी करनी है. तुम्हारे लिए भी कुछ करना है. तुम ने मेरे लिए बहुत किया है, मेरी नौकरी नहीं लगी थी, उस समय तुम ने ही मु?ो हौसला दिया, मदद की. अपने सारे गहने मेरी जरूरतों के लिए एकएक कर बेचती चली गईं. वे भी तो बनवाने हैं और मकान का लोन भी तो… यकीन करो, अब बिलकुल नहीं पीऊंगा. मु?ो माफ कर देना इस बार,’’ कहते हुए देवेश ने हाथ जोड़ लिए थे.

देवेश बड़बड़ाता जा रहा था और उमा अपने आंसुओं को रोकने की चेष्टा कर रही थी, ‘कितने दयनीय लग रहे हैं ये इस समय, जैसे हम सब के लिए क्या कुछ नहीं करना चाहते. सुबह की बात क्या कहूं इन से, कुछ कहने का फायदा नहीं. इस समय होश में ही नहीं हैं तो सम?ोंगे क्या. हाथ जोड़ कर मु?ो लज्जित कर रहे हैं,’ सोचते हुए उमा ने हाथ जोड़ते देवेश के दोनों हाथ अलग कर दिए.

उमा से कुछ बोला न गया. फिर उस ने खर्राटे भरते देख, देवेश के जूते उतार कर उस के पैरों पर चादर डाल दी और यह सोचते हुए सो गई कि इन से सुबह ही कुछ बोलूंगी.देवेश रोज की तरह तड़के 5 बजे उठा. रोतेरोते उमा को देररात नींद आई थी, सो वह गहरी नींद सो रही थी.‘‘उमा, उठो मैं दूध लेने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो,’’ देवेश बोला, मानो कुछ हुआ ही न हो और दूध लेने चला गया.

नींद खुलते ही वह हड़बड़ा कर उठी. देवेश जब दूध ले कर लौटा तब उमा किचन में थी. जय अभी भी सो रहा था.उमा ने कुछ बोलने के लिए यही समय ठीक सम?ा, सो बोली, ‘‘जानते हैं, कल भी वही हुआ, जय और बब्बन में ?ागड़ा. आप सम?ाते क्यों नहीं हैं? क्या आप को शोभा देता है इस उम्र में ऐसीवैसी हरकतें करना? मैं रश्मि की बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं ने तो उस के लिए कुछ भी नहीं कहा,’’ देवेश बोला.‘‘?ाठ मत बोलिए,’’ उमा ?ाल्ला उठी.‘‘तुम तो गंभीरता से ले रही हो,’’ देवेश ने बात को आईगई करते हुए कहा.‘‘कितनी बदनामी हो रही है हमारी, जय की पढ़ाई पर कितना असर पड़ रहा है, इस का अंदाजा भी है आप को? महल्ले में निकलना मुश्किल हो गया है. एक दिन तो मु?ो मालती ने फटकारा भी. रमेशजी की बहन शांति ने भी खूब भलाबुरा कहा. रामलाल को भी भनक लग गई है. परसों उन्होंने विमला को पीटा भी था. उन्होंने भी मु?ा से कहा था कि आप ने उन सब के साथ बदतमीजी की थी, फिर भी मैं उन से आप के लिए लड़ पड़ी.

‘‘रामेश्वरजी ने तो यहां तक कह दिया, ‘आप तो इस उम्र में भी इतनी खूबसूरत हैं कि देवेश बाबू पर तो क्या, किसी पर भी कंट्रोल कर सकती हैं, फिर वे क्यों इधरउधर मंडराते हैं? आप उन का ठीक से खयाल नहीं रखतीं? उन का नहीं तो हमारा ही खयाल रखा कीजिए,’’ कहते हुए उमा देवेश पर बरस पड़ी, ‘‘जानते हैं आप, आप की हरकतों की वजह से कितना कुछ सुनना पड़ता है? खून खौल उठता है मेरा, दिल जलता है. कितने अपमानित होते हैं हम? जय पर क्या बीत रही है, कभी सोचा है आप ने? यही प्यार है आप का हमारे लिए, यही चिंता है हम सब की?’’

‘‘अरे, उमा, वह तो दिल्लगी है. थोड़ी तफरीह के बहाने खुद को जवान महसूस कर लेता हूं, थोड़ी देर को चिंतामुक्त हो जाता हूं, फिर काम करने का नया जोश आ जाता है,’’ देवेश ने बेफिक्र हो कर कहा, ‘‘मु?ो अपनी जिम्मेदारियों का पता है. जिंदगी ऐसे ही बीतेगी, नीरस, सो थोड़ा सा रस घोल लेता हूं.’’‘‘रस… चारों ओर जो बदनामी हो रही है उस का क्या? ऐसे में हम जय को एमबीबीएस क्या पढ़वा पाएंगे, वह पीएमटी में निकल सकेगा तभी न, जिस की उम्मीद इस माहौल में न के बराबर है. वह कितने तनाव में रहता है और आप… खुद को जवान महसूस करने के लिए शराब पी रहे हैं, सब की बहूबेटियों को छेड़ रहे हैं, गाना गा रहे हैं. सीटी बजाना, आंख मारना… छि:, ये सब आप को शोभा देता है? कुछ तो शर्म कीजिए. सस्ते, छिछोरे मजाक, घटिया छींटाकशी… जय के सामने आप क्या आदर्श रख रहे हैं? किसी दिन बब्बन या किसी और ने हाथपैर तोड़ दिए तो बैठे रहना.’’

‘‘बित्ते भर का छोकरा, अरे, उस की इतनी हिम्मत? अब चुप भी करो, बड़ा लैक्चर दे डाला. नाश्ता देना है या नहीं?’’ देवेश ?ां?ाला कर बोला.‘‘क्या नाश्ता बना रही हो, अम्मा? बेसन का हलवा तो नहीं. बहुत खुशबू आ रही है,’’ जय सो कर उठते ही बोला.‘‘जय, उठ गया तू. मैं तो नहीं बना रही हलवा,’’ कहते हुए उमा उस के कमरे में चली आई और और उस ने खिड़की के परदे खींच कर एक ओर खिसका दिए.

‘‘देख जय, बगल में जो घर खाली था उस में चहलकदमी हो रही है. वहीं से ही खुशबू आ रही है. लगता है वे लोग रात में ही आ गए. हमें अपनी ही बातों में पता नहीं चला,’’ उमा ने पड़ोस के घर की तरफ इशारा करते हुए कहा.उमा को अभी पता नहीं था कि इन्हीं पड़ोसियों से तो उस की हर दिन की परेशानी बढ़ने वाली है. सुबह कामवाली बाई ने जब बताया कि तलाकशुदा एक महिला अपनी जवान बेटियों के साथ रहने आई है और उन के साथ महिला के काफी वृद्ध पिता भी हैं तो उमा को कुछ और नई परेशानियां साफ नजर आने लगीं. फिर तो देवेश का रोज एक और घर में आनाजाना शुरू हो गया.

देवेश, उमा के लाख मना करने पर भी किसी न किसी बहाने नए पड़ोसियों के यहां चला जाता. तरहतरह की बातें फैलती ही जा रही हैं. मुंह छिपा कर वह कब तक घर में पड़ी रहेगी, लोगों का सामना किसी न किसी तरह से हो ही जाएगा. अपमान के कितने घूंट पीएगी वह?नई पड़ोसिन, अल्पना चौधरी, किसी दफ्तर में काम करती थी. सो, 8 बजे ही उसे जाना पड़ता. औफिस काफी दूर था, सो लौटने में उसे 7 बज जाते. दोनों लड़कियां रमा व बीना बीए तथा 12वीं की छात्राएं थीं.

देवेश, अल्पना चौधरी के जाने के काफी देर बाद अपने औफिस जाता और जल्दी वापस आ जाता. उसे मटरगश्ती के लिए काफी समय मिल जाता. आतेजाते वह उन दोनों से पूछ लेता, ‘कोई जरूरत तो नहीं, निसंकोच बताइएगा.’शनिवार को देवेश का ‘हाफ डे’ होता, पर वह ‘फुल डे’ बता कर अपना समय रमा और बीना के साथ बिताने लगा.

उमा को पहले ही शक था कि फुल डे का तो बहाना है. एक दिन उमा किसी ‘पत्रिका’ के बहाने अल्पना के घर पहुंच गई. उस का शक सही निकला. देवेश वहीं था. उमा को देखते ही वह रमा और बीना को इतिहास, भूगोल का ज्ञान कराने लगा.‘‘मैं सब सम?ाती हूं,’’ उमा ने चुस्त सलवारसूट में खड़ी अल्पना की बड़ी बेटी रमा और मिनी स्कर्ट पहने छोटी बेटी बीना को तीखी नजरों से देखा. ‘आजकल की लड़कियां भी कम नहीं हैं. उफ, तोबा ऐसे परिधान पर. दूसरे की बेटियों से कहा ही क्या जा सकता है. फिर खोट अपने सिक्के में क्या कम है,’ उमा मन ही मन बड़बड़ा रही थी. उमा को देख कर देवेश और लड़कियां सिटपिटा गईं.

‘‘इन्होंने मु?ा से इतिहास, भूगोल और गणित में मदद मांगी थी. थोड़ी कमजोर हैं,’’ देवेश ने सकपकाते हुए सफाई दी.‘‘कभी मौका मिले तो बता दिया करो, अंकल,’’ दोनों लड़कियां एकसाथ बोलीं.‘‘आज हाफ डे हो गया, सो मैं सीधा इधर ही आ गया. बेचारी बच्चियों का भला हो जाए,’’ देवेश बोला.

देवेश की ?ाठी सफाइयों पर उमा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था और वह बहुतकुछ कह भी सकती थी, मगर खून का सा घूंट पी कर बिना कुछ बोले ही वह वापस चल दी पर वह मकान की आड़ में खड़ी हो गई.‘‘अच्छा, मैं भी चलता हूं, फिर जरूरत हो तो पूछ लेना,’’ कह कर हंसते हुए देवेश भी उमा के जाते ही लौट पड़ा. जैसे ही देवेश उन के घर से थोड़ा आगे पहुंचा, आड़ में खड़ी उमा फुरती से उन के घर में दाखिल हो गई.

जब अल्पना चौधरी वापस आईं तो किसी अपरिचित महिला को उस ने अपना इंतजार करते पाया.‘‘मैं पड़ोस में रहती हूं, मेरा नाम उमा है,’’ उमा ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘आप से कुछ जरूरी बातें करनी थीं.’

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December 11, 2021 at 10:00AM

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