Monday 20 December 2021

दर्द का रिश्ता : भाग 5

“मन तो बहुत है दीदी पर अंकलजी को छोड़ कर कैसे जाऊं. आंटीजी थीं तो बात कुछ और थी पर अब…”अपूर्वा ने कमला के हाथों को अपने हाथों में लिया और नोटों का पुलिंदा उस के हाथों में रख दिया. कमला आश्चर्य से अपूर्वा का मुंह देख रही थी.

“दीदी, आप पैसे क्यों दे रही और वह भी इतने सारे, अभी तो महीना भी पूरा नहीं हुआ. अंकलजी है न वे दे देंगे.”अपूर्वा बड़ी देर तक चुपचाप खड़ी रही, कमला समझ नहीं पा रही थी कि आखिर अपूर्वा करना क्या चाहती है.”कमला, मैं पापा को यहां अकेले नहीं छोड़ सकती, पूरी रात मम्मी की तसवीर की तरफ ही देखते रहते हैं. मेरे सिवा उन का है ही कौन? तुम मेरी एक मदद करेगी.”

“बोलो दीदी…?””जब पापा सो कर उठें तो उन से अपनी मां की तबीयत का बहाना कर के महीनेभर के लिए तुम गांव चली जाओ. मैं पापा को किसी तरह भी मना कर अपने साथ ले कर चली जाऊंगी,”कहतेकहते अपूर्वा का गला भर आया. कमला की आंखें भी डबडबा गईं. अपने आंचल से अपूर्वा के आंसू पोंछते हुए कमला ने कहा,”दीदी, आप जरा भी चिंता न करो, खुशीखुशी अपने पापा को अपने घर ले जाओ. तुम्हारी जैसी बिटिया कुदरत सब को दें.”

अपूर्वा के चेहरे पर खुशी की लहर आ गई. एक जंग तो वह जीत चुकी थी अब दूसरी जंग की तैयारी करनी थी. कमला ने योजना के अनुसार वैसा ही किया,पापा कमला के 1 महीने गांव जाने की बात सुन कर सोच में पड़ गए पर कमला की मां की बीमारी की बात सुन कर वे ज्यादा कुछ न बोल पाए. अपूर्वा ने उन के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी देखी. अपूर्वा भी तो अपने घर जाएगी फिर उन का खानापीना… उन्हें तो चाय के सिवा कुछ बनाने भी नहीं आता. अपूर्वा सबकुछ चुपचाप देख रही थी. उस दिन पूरी रात उन की आंखों में पश्चाताप में ही गुजरी.

“पापा, उठिए कितना सोएंगे…मैं ने चाय चढ़ा दी है. एक बार आप जरा अपने कपड़े देख लीजिए हम लोग शाम तक निकलेंगे.”अपूर्वा, तू जा रही है? सब ठीक है न?””मैं नहीं पापा हम…हम दोनों कानपुर जा रहे हैं. 2 घंटे का ही रास्ता है. शाम होने से पहले पहुंच जाएंगे.””अप्पू, मैं तुझ से पहले ही कह चुका हूं मैं तेरी ससुराल नहीं जा सकता. लोग क्या कहेंगे.””पापा, आप हमेशा के लिए थोड़ी जा रहे हैं, बस 1 महीने की बात है. कमला भी यहां नहीं है, आप को दिक्कत हो जाएगी न..”

‘दिक्कत…’ अजयजी मन ही मन बुदबुदाए, अपूर्वा गलत तो नहीं कह रही थी.”पर तेरी सास?””उन की चिंता मत कीजिए.”””बस 1 महीना.””हांहां भाई बस 1 महीना..”

अपूर्वा मन ही मन खुश थी. अजयजी ने बड़े भारी दिल से अपने सामान को पैक किया. अपूर्वा ने कपड़ों के बीच उन को मां की तसवीर छिपाते देख लिया था. मृदुलाजी के बिना अपूर्वा के घर जाने का उन का पहला मौका था. पापा भरी निगाहों से उस घर के कोनेकोने को देख रहे थे. इतने मन से बनाए इस घर को छोड़ कर यों जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था पर जाना तो था ही…तभी पापा को कुछ याद आया,”अप्पू जरा रुक तो..”

“क्या हुआ पापा?”पापा बिना कुछ कहे कमरे में घुस गए और मां की अलमारी में टटोलने लगे. थोड़ी देर में पापा एक रंगीन लिफाफा ले कर हाजिर थे.”तेरी मां कहती थी कि बहनबेटियों को खाली हाथ विदा नहीं करते. यह ले तेरा शगुन…तू पिछले साल आ नहीं पाई थीं न… तेरी मां ने पिछले साल से ही तेरे लिए कुछ खरीद कर रखा था. सोचा था जब तू आएगी तो तुझे देंगी पर वे तो रहीं नहीं खैर…”

पापा ने पैकेट अपूर्वा के हाथों में पकड़ा दिया. अपूर्वा मूकदर्शक बनी सबकुछ देख रही और समझने का प्रयास कर रही थी. उस कल के इंतजार में मां चली गईं. वह कल आएगा कितना बड़ा भ्रम था. पैकेट से लाल रंग की साड़ी झांक रही थी,”कितनी बार कहा था मां से मुझे साड़ी मत दिया करो. पहनने में नहीं आती. आप के पैसे भी फंस जाते हैं…”और मां कहतीं, “तू तो साड़ी खरीदती नहीं. कम से कम तीजत्योहार पर तो पहन लिया कर.”

मां जातेजाते भी अपने हाथों की खुशबू अपने होने का एहसास छोड़ गई थी. अपूर्वा ने उस साड़ी को अपने गालों से लगा लिया. आंसू की 2 बूंदें साड़ी पर टपक गईं. वह सुकून भरी गोद अब नहीं थी, थी तो बस उस की स्मृतियों का एहसास जो हर सांस के साथ महसूस होता था.

गाड़ी तेजी से धूल उड़ाते हुए आगे बढ़ गई. अपूर्वा और पापा की नजर कार के शीशे के बाहर घर के दरवाजे पर ही अटक गई थी. अपूर्वा को लगा आज वह एक बार विदा हो रही थी इस दहलीज से… शायद हमेशा के लिए कभी भी न लौटने के लिए. रास्ते भर दोनों ने एकदूसरे से कोई भी बात नहीं की. दोनों अपनेअपने विचारों से जूझ रहे थे. विचारों की एक गहरी सुनामी उन्हें विचलित कर रही थी. हाइवे पर तेजी से दौड़ती कार पीछे छूटते खेतखलिहानों के साथ पीछे बहुत कुछ छूट गया था.

“भाभी,घर आ गया.”दिनेश की बात सुन कर दोनों मानों नींद से जागे. अपूर्वा का मन एक अनजाने भय से भयभीत था. पैर मानों भारी हो रहे थे. एक बहुत बड़ा सवाल उस के सामने मुंह बाए खड़ा था. गाड़ी का हौर्न सुन कर समर बाहर निकल आए पर मम्मीजी… समर के लिए भी एक अजीब सी स्थिति थी. मां के बिना पापा का स्वागत, कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी.

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“मन तो बहुत है दीदी पर अंकलजी को छोड़ कर कैसे जाऊं. आंटीजी थीं तो बात कुछ और थी पर अब…”अपूर्वा ने कमला के हाथों को अपने हाथों में लिया और नोटों का पुलिंदा उस के हाथों में रख दिया. कमला आश्चर्य से अपूर्वा का मुंह देख रही थी.

“दीदी, आप पैसे क्यों दे रही और वह भी इतने सारे, अभी तो महीना भी पूरा नहीं हुआ. अंकलजी है न वे दे देंगे.”अपूर्वा बड़ी देर तक चुपचाप खड़ी रही, कमला समझ नहीं पा रही थी कि आखिर अपूर्वा करना क्या चाहती है.”कमला, मैं पापा को यहां अकेले नहीं छोड़ सकती, पूरी रात मम्मी की तसवीर की तरफ ही देखते रहते हैं. मेरे सिवा उन का है ही कौन? तुम मेरी एक मदद करेगी.”

“बोलो दीदी…?””जब पापा सो कर उठें तो उन से अपनी मां की तबीयत का बहाना कर के महीनेभर के लिए तुम गांव चली जाओ. मैं पापा को किसी तरह भी मना कर अपने साथ ले कर चली जाऊंगी,”कहतेकहते अपूर्वा का गला भर आया. कमला की आंखें भी डबडबा गईं. अपने आंचल से अपूर्वा के आंसू पोंछते हुए कमला ने कहा,”दीदी, आप जरा भी चिंता न करो, खुशीखुशी अपने पापा को अपने घर ले जाओ. तुम्हारी जैसी बिटिया कुदरत सब को दें.”

अपूर्वा के चेहरे पर खुशी की लहर आ गई. एक जंग तो वह जीत चुकी थी अब दूसरी जंग की तैयारी करनी थी. कमला ने योजना के अनुसार वैसा ही किया,पापा कमला के 1 महीने गांव जाने की बात सुन कर सोच में पड़ गए पर कमला की मां की बीमारी की बात सुन कर वे ज्यादा कुछ न बोल पाए. अपूर्वा ने उन के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी देखी. अपूर्वा भी तो अपने घर जाएगी फिर उन का खानापीना… उन्हें तो चाय के सिवा कुछ बनाने भी नहीं आता. अपूर्वा सबकुछ चुपचाप देख रही थी. उस दिन पूरी रात उन की आंखों में पश्चाताप में ही गुजरी.

“पापा, उठिए कितना सोएंगे…मैं ने चाय चढ़ा दी है. एक बार आप जरा अपने कपड़े देख लीजिए हम लोग शाम तक निकलेंगे.”अपूर्वा, तू जा रही है? सब ठीक है न?””मैं नहीं पापा हम…हम दोनों कानपुर जा रहे हैं. 2 घंटे का ही रास्ता है. शाम होने से पहले पहुंच जाएंगे.””अप्पू, मैं तुझ से पहले ही कह चुका हूं मैं तेरी ससुराल नहीं जा सकता. लोग क्या कहेंगे.””पापा, आप हमेशा के लिए थोड़ी जा रहे हैं, बस 1 महीने की बात है. कमला भी यहां नहीं है, आप को दिक्कत हो जाएगी न..”

‘दिक्कत…’ अजयजी मन ही मन बुदबुदाए, अपूर्वा गलत तो नहीं कह रही थी.”पर तेरी सास?””उन की चिंता मत कीजिए.”””बस 1 महीना.””हांहां भाई बस 1 महीना..”

अपूर्वा मन ही मन खुश थी. अजयजी ने बड़े भारी दिल से अपने सामान को पैक किया. अपूर्वा ने कपड़ों के बीच उन को मां की तसवीर छिपाते देख लिया था. मृदुलाजी के बिना अपूर्वा के घर जाने का उन का पहला मौका था. पापा भरी निगाहों से उस घर के कोनेकोने को देख रहे थे. इतने मन से बनाए इस घर को छोड़ कर यों जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था पर जाना तो था ही…तभी पापा को कुछ याद आया,”अप्पू जरा रुक तो..”

“क्या हुआ पापा?”पापा बिना कुछ कहे कमरे में घुस गए और मां की अलमारी में टटोलने लगे. थोड़ी देर में पापा एक रंगीन लिफाफा ले कर हाजिर थे.”तेरी मां कहती थी कि बहनबेटियों को खाली हाथ विदा नहीं करते. यह ले तेरा शगुन…तू पिछले साल आ नहीं पाई थीं न… तेरी मां ने पिछले साल से ही तेरे लिए कुछ खरीद कर रखा था. सोचा था जब तू आएगी तो तुझे देंगी पर वे तो रहीं नहीं खैर…”

पापा ने पैकेट अपूर्वा के हाथों में पकड़ा दिया. अपूर्वा मूकदर्शक बनी सबकुछ देख रही और समझने का प्रयास कर रही थी. उस कल के इंतजार में मां चली गईं. वह कल आएगा कितना बड़ा भ्रम था. पैकेट से लाल रंग की साड़ी झांक रही थी,”कितनी बार कहा था मां से मुझे साड़ी मत दिया करो. पहनने में नहीं आती. आप के पैसे भी फंस जाते हैं…”और मां कहतीं, “तू तो साड़ी खरीदती नहीं. कम से कम तीजत्योहार पर तो पहन लिया कर.”

मां जातेजाते भी अपने हाथों की खुशबू अपने होने का एहसास छोड़ गई थी. अपूर्वा ने उस साड़ी को अपने गालों से लगा लिया. आंसू की 2 बूंदें साड़ी पर टपक गईं. वह सुकून भरी गोद अब नहीं थी, थी तो बस उस की स्मृतियों का एहसास जो हर सांस के साथ महसूस होता था.

गाड़ी तेजी से धूल उड़ाते हुए आगे बढ़ गई. अपूर्वा और पापा की नजर कार के शीशे के बाहर घर के दरवाजे पर ही अटक गई थी. अपूर्वा को लगा आज वह एक बार विदा हो रही थी इस दहलीज से… शायद हमेशा के लिए कभी भी न लौटने के लिए. रास्ते भर दोनों ने एकदूसरे से कोई भी बात नहीं की. दोनों अपनेअपने विचारों से जूझ रहे थे. विचारों की एक गहरी सुनामी उन्हें विचलित कर रही थी. हाइवे पर तेजी से दौड़ती कार पीछे छूटते खेतखलिहानों के साथ पीछे बहुत कुछ छूट गया था.

“भाभी,घर आ गया.”दिनेश की बात सुन कर दोनों मानों नींद से जागे. अपूर्वा का मन एक अनजाने भय से भयभीत था. पैर मानों भारी हो रहे थे. एक बहुत बड़ा सवाल उस के सामने मुंह बाए खड़ा था. गाड़ी का हौर्न सुन कर समर बाहर निकल आए पर मम्मीजी… समर के लिए भी एक अजीब सी स्थिति थी. मां के बिना पापा का स्वागत, कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी.

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December 18, 2021 at 10:00AM

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