Sunday 8 May 2022

Mother’s Day 2022: भावनाओं के साथी- भाग 1

जानकी को आज सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. सिरदर्द और बदनदर्द के साथ ही कुछ हरारत सी महसूस हो रही थी. उन्होंने सोचा कि शायद काम की थकान की वजह से ऐसा होगा. सारे काम निबटातेनिबटाते दोपहर हो गई. उन्हें कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था, फिर भी उन्होंने थोड़ा सा दलिया बना लिया. खा कर वे कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गईं. सिरदर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उन्होंने माथे पर थोड़ा सा बाम मला और आंखें मूंद कर बिस्तर पर लेटी रहीं.

आज उन्हें अपने पति शरद की बेहद याद आ रही थी. सचमुच शरद उन का कितना खयाल रखते थे. थोड़ा सा भी सिरदर्द होने पर वे जानकी का सिर दबाने लगते. अपने हाथों से इलायची वाली चाय बना कर पिलाते. उन के पति कितने अधिक संवेदनशील थे. सोचतेसोचते जानकी की आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू जब गालों पर लुढ़के तो उन्हें आभास हुआ कि तन का ताप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. उन्होंने थर्मामीटर लगा कर देखा तो पारा 103 डिगरी तक पहुंच गया था. जैसेतैसे वे हिम्मत जुटा कर उठीं और स्वयं ही ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखने लगीं. उन्होंने सोचा कि अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं रहेगा. रात हो गई है. अच्छा यही होगा कि वे कल सुबह अस्पताल चली जाएं.

कुछ सोचतेसोचते उन्होंने अपने बेटे नकुल को फोन लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो मम्मी, आप ने कैसे याद किया? सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटे, मुझे काफी तेज बुखार है. यदि तुम आ सको तो किसी अच्छे अस्पताल में भरती करा दो. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही,’’ जानकी ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मम्मी, मेरी तो कल बहुत जरूरी मीटिंग है. कुछ बड़े अफसर आने वाले हैं. मैं लतिका को ही भेज देता पर नवल की भी तबीयत ठीक नहीं है,’’ नकुल ने अपनी लाचारी प्रकट की, ‘‘आप नीला को फोन कर के क्यों नहीं बुला लेतीं. उस के यहां तो उस की सास भी है. वह 1-2 दिन घर संभाल लेगी. प्लीज मम्मी, बुरा मत मानिएगा, मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिएगा.’’

जानकी ने बेटी नीला को फोन लगाया तो प्रत्युत्तर में नीला ने जवाब दिया, ‘‘मम्मी, मेरा वश चलता तो मैं तुरंत आप के पास आ जाती पर इस दीवाली पर मेरी ननद अमेरिका से आने वाली है, वह भी 3 सालों बाद. मुझे काफी तैयारी व खरीदारी करनी है. यदि कुछ कमी रह गई तो मेरी सास को बुरा लगेगा. आप नकुल भैया को बुला लीजिए. मेरी कल ही उन से बात हुई थी. कल शनिवार है, वे वीकएंड में पिकनिक मनाने जा रहे हैं. पिकनिक का प्रोग्राम तो फिर कभी भी बन सकता है.’’

जानकी बेटी की बात सुन कर अवाक् रह गईं. कितनी मायाचारी की थी उन के पुत्र ने अपनी जन्मदात्री से पर उन्होंने जाहिर में कुछ भी नहीं कहा. उन्होंने अब कल सुबह होते ही ऐंबुलैंस बुला कर अकेले ही अस्पताल जाने का निर्णय लिया. उन की महरी रधिया सुबह जल्दी ही आ जाती थी. उस की मदद से जानकी ने कुछ आवश्यक वस्तुएं रख कर बैग तैयार किया और अस्पताल चली गईं.

वे बुखार से कांप रही थीं. उन्हें कुछ जरूरी फौर्म भरवाने के बाद तुरंत भरती कर लिया गया. बुखार 104 डिगरी तक पहुंच गया था. डाक्टर ने बुखार कम करने के लिए इंजैक्शन लगाया व कुछ गोलियां भी खाने को दीं. पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन के खून की जांच करने के लिए नमूना लिया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि उन्हें डेंगू है. उन की प्लेटलेट्स काउंट कम हो रही थीं. अब डेंगू का इलाज शुरू किया गया.

डाक्टर ने जानकी से कहा, ‘‘आप अकेली हैं. अच्छा यही होगा कि जब तक आप बिलकुल ठीक नहीं हो जातीं, अस्पताल में ही रहिए.’’

2 दिन बाद एक बुजुर्ग सज्जन ने नर्स के साथ उन के कमरे में प्रवेश किया. उन के हाथ में फूलों का बुके व कुछ फल थे. जानकी ने उन्हें पहचानने की कोशिश की. दिमाग पर जोर डालने पर उन्हें याद आया कि उक्त सज्जन को उन्होंने सवेरे घूमते समय पार्क में देखा था. वे अकसर रोज ही मिल जाया करते थे पर उन दोनों में कभी कोई बात नहीं हुई थी.

तभी उन सज्जन ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं हूं नवीन गुप्ता. आप की कालोनी में ही रहता हूं. रधिया मेरे यहां भी काम करती है. उसी से आप की तबीयत के बारे में पता चला और यह भी कि आप बिलकुल अकेली हैं. इसलिए आप को देखने चला आया.’’

जानकी ने फलों की तरफ देख कर कमजोर आवाज में कहा, ‘‘इन की क्या जरूरत थी?’’

‘‘अरे भाई, आप को ही तो इस की जरूरत है, तभी तो आप जल्दी स्वस्थ हो कर घर लौट पाएंगी,’’ कहने के साथ ही नवीनजी मुसकराते हुए फल काटने लगे.

जानकी को बहुत संकोच हो रहा था पर वे चुप रहीं.

अब तो रोज ही नवीनजी उन्हें देखने अस्पताल आ जाते. साथ में फल लाना न भूलते. उन का खुशमिजाज स्वभाव जानकी को अंदर ही अंदर छू रहा था.

करीब 8 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. शाम तक वे घर वापस आ गईं. वे अभी रात के खाने के बारे में सोच ही रही थीं कि तभी नवीनजी डब्बा ले कर आ गए.

जानकी सकुचाते हुए बोलीं, ‘‘आप ने नाहक तकलीफ की. मैं थोड़ी खिचड़ी खुद ही बना लेती.’’

नवीनजी ने खाने का डब्बा खोलते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जानकीजी, वही तो मैं लाया हूं, लौकी की खिचड़ी. आप खा कर बताइएगा कि कैसी बनी? वैसे एक राज की बात बताऊं, खिचड़ी बनाना मेरी पत्नी ने मुझे सिखाया था. वह रसोई के काम में बड़ी पारंगत थी. वह खिचड़ी जैसी साधारण चीज को भी एक नायाब व्यंजन में बदल देती थी,’’ कहने के साथ ही वे कुछ उदास से हो गए. इस दुनिया से जा चुकी पत्नी की याद उन्हें ताजा हो आई.

जीवनसाथी के बिछोह का दुख वे जानती थीं. उन्होंने नवीनजी के दर्द को महसूस किया व तुरंत प्रसंग बदलते हुए पूछा, ‘‘नवीनजी, आप के कितने बच्चे हैं और कहां पर हैं?’’

‘‘मेरे 2 बेटे हैं व दोनों अमेरिका में ही सैटल हैं,’’ उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया फिर उठते हुए बोले, ‘‘अब आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकी को लगा कि उन्होंने नवीनजी की कोई दुखती रग को छू लिया है. वे अपने बेटों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहते.

अब तो अकसर नवीनजी जानकी के यहां आने लगे. वे लोग कभी देश के वर्तमान हालत पर, कभी समाज की समस्याओं पर और कभी टीवी सीरियलों के बारे में चर्चा करते पर अपनेअपने परिवार के बारे में दोनों ने कभी कोई बात नहीं की.

एक दिन नवीनजी और जानकी एक पारिवारिक धारावाहिक के विषय में बात कर रहे थे जिस में एक स्त्री के पत्नी व मां के उज्ज्वल चरित्र को प्रस्तुत किया गया था. नवीनजी अचानक भावुक हो उठे. वे आर्द्र स्वर में बोले, ‘‘मेरी पत्नी केसर भी एक आदर्श पत्नी और मां थी. अपने पति व बच्चों का सुख ही उस के जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी. अपने बच्चों की एक खुशी के लिए अपनी हजारों खुशियां न्योछावर कर देती थी. उस के प्रेम को व्यवहार की तुला का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था. दोनों बेटे पढ़ाई में बहुत ही मेधावी थे.

‘‘दोनों ने ही कंप्यूटर में बीई किया और एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब करने लगे. केसर के मन में बहू लाने के बड़े अरमान थे. वह अपने बेटों के लिए अपने ही जैसी, गुणों से युक्त बहू लाना चाहती थी. पर बड़े बेटे ने अपने ही साथ काम करने वाली एक ऐसी विजातीय लड़की से प्रेमविवाह कर लिया जो मेरी पत्नी के मापदंडों के अनुरूप नहीं थी. उसे बहुत दुख हुआ. रोई भी. फिर धीरेधीरे समय के मलहम ने उस के घाव भरने शुरू कर दिए.

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जानकी को आज सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. सिरदर्द और बदनदर्द के साथ ही कुछ हरारत सी महसूस हो रही थी. उन्होंने सोचा कि शायद काम की थकान की वजह से ऐसा होगा. सारे काम निबटातेनिबटाते दोपहर हो गई. उन्हें कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था, फिर भी उन्होंने थोड़ा सा दलिया बना लिया. खा कर वे कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गईं. सिरदर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उन्होंने माथे पर थोड़ा सा बाम मला और आंखें मूंद कर बिस्तर पर लेटी रहीं.

आज उन्हें अपने पति शरद की बेहद याद आ रही थी. सचमुच शरद उन का कितना खयाल रखते थे. थोड़ा सा भी सिरदर्द होने पर वे जानकी का सिर दबाने लगते. अपने हाथों से इलायची वाली चाय बना कर पिलाते. उन के पति कितने अधिक संवेदनशील थे. सोचतेसोचते जानकी की आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू जब गालों पर लुढ़के तो उन्हें आभास हुआ कि तन का ताप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. उन्होंने थर्मामीटर लगा कर देखा तो पारा 103 डिगरी तक पहुंच गया था. जैसेतैसे वे हिम्मत जुटा कर उठीं और स्वयं ही ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखने लगीं. उन्होंने सोचा कि अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं रहेगा. रात हो गई है. अच्छा यही होगा कि वे कल सुबह अस्पताल चली जाएं.

कुछ सोचतेसोचते उन्होंने अपने बेटे नकुल को फोन लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो मम्मी, आप ने कैसे याद किया? सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटे, मुझे काफी तेज बुखार है. यदि तुम आ सको तो किसी अच्छे अस्पताल में भरती करा दो. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही,’’ जानकी ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मम्मी, मेरी तो कल बहुत जरूरी मीटिंग है. कुछ बड़े अफसर आने वाले हैं. मैं लतिका को ही भेज देता पर नवल की भी तबीयत ठीक नहीं है,’’ नकुल ने अपनी लाचारी प्रकट की, ‘‘आप नीला को फोन कर के क्यों नहीं बुला लेतीं. उस के यहां तो उस की सास भी है. वह 1-2 दिन घर संभाल लेगी. प्लीज मम्मी, बुरा मत मानिएगा, मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिएगा.’’

जानकी ने बेटी नीला को फोन लगाया तो प्रत्युत्तर में नीला ने जवाब दिया, ‘‘मम्मी, मेरा वश चलता तो मैं तुरंत आप के पास आ जाती पर इस दीवाली पर मेरी ननद अमेरिका से आने वाली है, वह भी 3 सालों बाद. मुझे काफी तैयारी व खरीदारी करनी है. यदि कुछ कमी रह गई तो मेरी सास को बुरा लगेगा. आप नकुल भैया को बुला लीजिए. मेरी कल ही उन से बात हुई थी. कल शनिवार है, वे वीकएंड में पिकनिक मनाने जा रहे हैं. पिकनिक का प्रोग्राम तो फिर कभी भी बन सकता है.’’

जानकी बेटी की बात सुन कर अवाक् रह गईं. कितनी मायाचारी की थी उन के पुत्र ने अपनी जन्मदात्री से पर उन्होंने जाहिर में कुछ भी नहीं कहा. उन्होंने अब कल सुबह होते ही ऐंबुलैंस बुला कर अकेले ही अस्पताल जाने का निर्णय लिया. उन की महरी रधिया सुबह जल्दी ही आ जाती थी. उस की मदद से जानकी ने कुछ आवश्यक वस्तुएं रख कर बैग तैयार किया और अस्पताल चली गईं.

वे बुखार से कांप रही थीं. उन्हें कुछ जरूरी फौर्म भरवाने के बाद तुरंत भरती कर लिया गया. बुखार 104 डिगरी तक पहुंच गया था. डाक्टर ने बुखार कम करने के लिए इंजैक्शन लगाया व कुछ गोलियां भी खाने को दीं. पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन के खून की जांच करने के लिए नमूना लिया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि उन्हें डेंगू है. उन की प्लेटलेट्स काउंट कम हो रही थीं. अब डेंगू का इलाज शुरू किया गया.

डाक्टर ने जानकी से कहा, ‘‘आप अकेली हैं. अच्छा यही होगा कि जब तक आप बिलकुल ठीक नहीं हो जातीं, अस्पताल में ही रहिए.’’

2 दिन बाद एक बुजुर्ग सज्जन ने नर्स के साथ उन के कमरे में प्रवेश किया. उन के हाथ में फूलों का बुके व कुछ फल थे. जानकी ने उन्हें पहचानने की कोशिश की. दिमाग पर जोर डालने पर उन्हें याद आया कि उक्त सज्जन को उन्होंने सवेरे घूमते समय पार्क में देखा था. वे अकसर रोज ही मिल जाया करते थे पर उन दोनों में कभी कोई बात नहीं हुई थी.

तभी उन सज्जन ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं हूं नवीन गुप्ता. आप की कालोनी में ही रहता हूं. रधिया मेरे यहां भी काम करती है. उसी से आप की तबीयत के बारे में पता चला और यह भी कि आप बिलकुल अकेली हैं. इसलिए आप को देखने चला आया.’’

जानकी ने फलों की तरफ देख कर कमजोर आवाज में कहा, ‘‘इन की क्या जरूरत थी?’’

‘‘अरे भाई, आप को ही तो इस की जरूरत है, तभी तो आप जल्दी स्वस्थ हो कर घर लौट पाएंगी,’’ कहने के साथ ही नवीनजी मुसकराते हुए फल काटने लगे.

जानकी को बहुत संकोच हो रहा था पर वे चुप रहीं.

अब तो रोज ही नवीनजी उन्हें देखने अस्पताल आ जाते. साथ में फल लाना न भूलते. उन का खुशमिजाज स्वभाव जानकी को अंदर ही अंदर छू रहा था.

करीब 8 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. शाम तक वे घर वापस आ गईं. वे अभी रात के खाने के बारे में सोच ही रही थीं कि तभी नवीनजी डब्बा ले कर आ गए.

जानकी सकुचाते हुए बोलीं, ‘‘आप ने नाहक तकलीफ की. मैं थोड़ी खिचड़ी खुद ही बना लेती.’’

नवीनजी ने खाने का डब्बा खोलते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जानकीजी, वही तो मैं लाया हूं, लौकी की खिचड़ी. आप खा कर बताइएगा कि कैसी बनी? वैसे एक राज की बात बताऊं, खिचड़ी बनाना मेरी पत्नी ने मुझे सिखाया था. वह रसोई के काम में बड़ी पारंगत थी. वह खिचड़ी जैसी साधारण चीज को भी एक नायाब व्यंजन में बदल देती थी,’’ कहने के साथ ही वे कुछ उदास से हो गए. इस दुनिया से जा चुकी पत्नी की याद उन्हें ताजा हो आई.

जीवनसाथी के बिछोह का दुख वे जानती थीं. उन्होंने नवीनजी के दर्द को महसूस किया व तुरंत प्रसंग बदलते हुए पूछा, ‘‘नवीनजी, आप के कितने बच्चे हैं और कहां पर हैं?’’

‘‘मेरे 2 बेटे हैं व दोनों अमेरिका में ही सैटल हैं,’’ उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया फिर उठते हुए बोले, ‘‘अब आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकी को लगा कि उन्होंने नवीनजी की कोई दुखती रग को छू लिया है. वे अपने बेटों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहते.

अब तो अकसर नवीनजी जानकी के यहां आने लगे. वे लोग कभी देश के वर्तमान हालत पर, कभी समाज की समस्याओं पर और कभी टीवी सीरियलों के बारे में चर्चा करते पर अपनेअपने परिवार के बारे में दोनों ने कभी कोई बात नहीं की.

एक दिन नवीनजी और जानकी एक पारिवारिक धारावाहिक के विषय में बात कर रहे थे जिस में एक स्त्री के पत्नी व मां के उज्ज्वल चरित्र को प्रस्तुत किया गया था. नवीनजी अचानक भावुक हो उठे. वे आर्द्र स्वर में बोले, ‘‘मेरी पत्नी केसर भी एक आदर्श पत्नी और मां थी. अपने पति व बच्चों का सुख ही उस के जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी. अपने बच्चों की एक खुशी के लिए अपनी हजारों खुशियां न्योछावर कर देती थी. उस के प्रेम को व्यवहार की तुला का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था. दोनों बेटे पढ़ाई में बहुत ही मेधावी थे.

‘‘दोनों ने ही कंप्यूटर में बीई किया और एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब करने लगे. केसर के मन में बहू लाने के बड़े अरमान थे. वह अपने बेटों के लिए अपने ही जैसी, गुणों से युक्त बहू लाना चाहती थी. पर बड़े बेटे ने अपने ही साथ काम करने वाली एक ऐसी विजातीय लड़की से प्रेमविवाह कर लिया जो मेरी पत्नी के मापदंडों के अनुरूप नहीं थी. उसे बहुत दुख हुआ. रोई भी. फिर धीरेधीरे समय के मलहम ने उस के घाव भरने शुरू कर दिए.

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May 09, 2022 at 09:00AM

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