Thursday 12 May 2022

विद्या का मंदिर- भाग 2: क्या थी सतीश की सोच

जब भी कोई नई गाड़ी मंदिर के आगे रुकती, मांगने वालों की टोली उस को घेर लेती. दुआओं का सिलसिला चालू हो जाता- ‘साहब…आप की गाड़ी सलामत रहे…ईश्वर खूब तरक्की दे.’ कुछ नई गाड़ी का नशा… कुछ दुआओं का असर… लोग दरियादिली से इन भिखारियों को खुल कर रुपए दे रहे थे. अभी राहुल और रमा ठीक से उतरे भी नहीं थे कि भिखारियों ने उन को भी घेर लिया और शुरू हो गया उन का राग…आप की गाड़ी सलामत…ईश्वर…

“यह क्या 10 रुपए…” रमा ने जब 10 रुपए दिए तो भिखारिन ने हिकारत से कहा.

“तो कितना दे?” व्यंग्य से राहुल बोला.

“सौ रुपए.” गाड़ियों की बढ़ती कीमतों के साथसाथ भिखारियों के भाव भी बढ़ गए थे.

“सौ रुपये? पकड़ना है तो पकड़…” जैसे ही रमा ने यह कहा, दूसरी भिखारिन ने आ कर लपक लिया.  उस के बाद तो दोनों भिखारिनों में तकरार शुरू हुई, तो दोनों ने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी और देवी मां को चढ़ावा चढ़ाने के लिए मंदिर परिसर में बनी दुकान की ओर बढ़ गए.

प्रसाद खरीद कर मांबेटे ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया. मंदिर घंटेघड़ियालों के साथ देवी मां के जयकारों से गुंजायमान था. पूरा माहौल भक्तिमय था. पूजा की थाली ले कर दोनों श्रद्धालुओं के लिए बनी लंबी कतार में खड़े हो गए. मई महीने की गरमी में लाइन में खड़ेखड़े दोनों का बुरा हाल हो गया.

“मम्मी, देखो न, कितनी गरमी है,” पसीना पोंछते हुए राहुल ने कहा.

“तभी तो मैं सुबह जल्दी उठने के लिए कह रही थी,” गरमी से बेहाल रमा बोली.

लंबी लाइन धीरेधीरे आगे खिसक रही थी. पूजा के लिए लगी कतार से मंदिर का दाईं ओर का हौल दिखाई दे रहा था, जहां पर भंड़ारा चल रहा था. लोग पंक्तियों में बैठे भोजन का आनंद ले रहे थे. छोले, पूरी, तरकारी, हलवे की खुशबू  हवा में तैर रही थी. सुबह से खाली पेट राहुल को खाने को देख कर जी ललचाने लगा. उस का मन कर रहा था कि पूजा की पंक्ति से हट कर वह खाने की पंगत में बैठ जाए. लेकिन वह मन मसोस कर रह गया और बेताबी से अपने नबर आने का इंतजार करने लगा. जैसेतैसे कर के दोनों की बारी आई. श्रद्धा से पूजा की थाली रमा ने पंडितजी को पकड़ा दी, जिस में पुष्प, फल, मिष्ठान, श्रीफल, देवी मां की लाल चुनरी और एक काली चोटी थी. पंडितजी ने पूजामंत्रोच्चार के बाद सब से पहले उन से दक्षिणा रखवाई, प्रसाद दिया, फिर कार के पास आ कर नारियल फोड़ कर उस का पानी बोनट के ऊपर छिड़क दिया. नारियल वास्तव में तगड़ा था. पानी से लबालब भरा हुआ था. नारियल के फोड़ने से जो अमृतस्राव बहा, वह राहुल के सूखे गले को तो नहीं, पर, कार के बोनट को तरबतर कर गया. नारियल जल कई दिशाओं से होता हुआ बोनट से जमीन पर गिरने लगा, जो पहले से ही कई श्रीफलों के उत्सर्ग से पसीजी हुई थी. उस के पश्चात पंडितजी ने लाल चुनरी कार के साइड मिरर में बांध दी, काली चोटी को गाड़ी के सामने नीचे लटका दिया और पूजा संपन्न हो गई.

राहुल ने राहत की सांस ली और कार में सीट बेल्ट लगाते हुए कहा, “मम्मी, आप भी… अगर पूजा करवाने से सबकुछ सुरक्षित रहता, तो इतने ऐक्सिडैंट न होते सड़कों पर.”

“देखा नहीं कितनी सारी गाड़ियां थीं. बड़ी मान्यता है इस देवी मंदिर की, दूरदूर से लोग आते हैं.  कितना आलीशान हो गया है. शादी के बाद जब तेरे पापा ने अपना स्कूटर खरीदा  था, उस समय तो यह मंदिर छोटा सा था. गाड़ियां तो इक्कीदुक्की हुआ करती थीं. अब देखो,” गर्व से रमा बोली.

अभी गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि सामने एक भगवान शनिदेव मंदिर के आगे गाड़ी रुकवा दी रमा ने. यहीं पर ही यह सिलसिला नहीं थमा, एक बार फिर भगवान गणेशजी के मंदिर में राहुल से कार रुकवा दी. फिर वही पूजा शुरू हो गई. और अब यह हनुमानजी का मंदिर. सुबह से निकले हुए, भूख से राहुल का पेट बुरी तरह कुलबुला रहा था.

“आगे शिवजी का मंदिर है, मैं वहां बिलकुल कार नहीं रोकूंगा,” राहुल चेतावनी देते हुए बोला.

“नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते. बस, शिवजी का मंदिर और आगे बिलकुल सड़क पर एक पीर की मजार,” बेटे को मनाने की कोशिश करती हुई रमा बोली.

सतीश चंद्र का फोन बारबार आ रहा था, कभी राहुल को तो कभी रमा को. एक बार फिर फोन की घंटी बज उठी.

“कहां हो तुम लोग?” चिंतित स्वर में सतीश चंद्र बोले.

“बस, पहुंचने ही वाले हैं,” कह रमा ने फोन बंद कर दिया.

“क्या बात है? बड़ी देर कर दी,” 3 बजे घर पहुंचने पर सतीश चंद्र ने व्यग्रता से पूछा.

“पापा, यह आप मम्मी से पूछें.” डाइनिंग टेबल पर खाना लगा देख राहुल तेजी से बाथरूम में हाथ धोने चला गया.

डाइनिंग टेबल पर बैठ वह खाने पर एक तरह से टूट पड़ा.

मुंह में खाना ठूंसे हुए राहुल पापा से बोला, “पापा, मम्मी का बस चलता, तो पता नहीं कितने मंदिरों में और ले जाती मुझे.”

“मुझे तो पता है, तभी तो मैं जाता नहीं,” मुसकरा कर चटकारे लेते हुए पत्नी की ओर देख कर सतीश चंद्र बोले.

जैसे ही रमा ने घूर कर पति की ओर देखा, वे चुपचाप नजरें नीचे कर खाना खाने लगे.

“जब इतनी कम दूरी में 5 मंदिर, तो पता नहीं शहर में कितने होंगे और पूरे देश में. और पापा, मैं ने गौर किया कि मसजिदें भी कम नहीं हैं. एक से बढ़ कर एक. ओ माय गौड!”

“निकल गया न तुम्हारे मुंह से भगवान का नाम,” रमा ने राहुल के शब्दों को पकड़ते हुए कहा.

“मम्मी, आप भी…”

“छोड़ो यह सब, खाना खाओ,” अपनी मुसकराहट को दबाने का असफल प्रयास करते हुए वे बोले.

शाम को रमा चाय और पकौड़े बना कर लाई. आज वह प्रसन्नमना है. बातचीत के साथ तीनों चाय के साथ पकौड़ों का आनंद लेने लगे.

“सुनो जी, मां का मंदिर इतना सुंदर बन गया है कि आप भी देखते, तो दंग रह जाते.”

“और तुम ने उसी रास्ते में सरकारी स्कूल के उखड़ते प्लास्टर और उधड़ते फर्श को नहीं देखा?” जिला शिक्षा अधिकारी के पद से रिटायर हुए सतीश चंद्र का दर्द छलका.

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जब भी कोई नई गाड़ी मंदिर के आगे रुकती, मांगने वालों की टोली उस को घेर लेती. दुआओं का सिलसिला चालू हो जाता- ‘साहब…आप की गाड़ी सलामत रहे…ईश्वर खूब तरक्की दे.’ कुछ नई गाड़ी का नशा… कुछ दुआओं का असर… लोग दरियादिली से इन भिखारियों को खुल कर रुपए दे रहे थे. अभी राहुल और रमा ठीक से उतरे भी नहीं थे कि भिखारियों ने उन को भी घेर लिया और शुरू हो गया उन का राग…आप की गाड़ी सलामत…ईश्वर…

“यह क्या 10 रुपए…” रमा ने जब 10 रुपए दिए तो भिखारिन ने हिकारत से कहा.

“तो कितना दे?” व्यंग्य से राहुल बोला.

“सौ रुपए.” गाड़ियों की बढ़ती कीमतों के साथसाथ भिखारियों के भाव भी बढ़ गए थे.

“सौ रुपये? पकड़ना है तो पकड़…” जैसे ही रमा ने यह कहा, दूसरी भिखारिन ने आ कर लपक लिया.  उस के बाद तो दोनों भिखारिनों में तकरार शुरू हुई, तो दोनों ने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी और देवी मां को चढ़ावा चढ़ाने के लिए मंदिर परिसर में बनी दुकान की ओर बढ़ गए.

प्रसाद खरीद कर मांबेटे ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया. मंदिर घंटेघड़ियालों के साथ देवी मां के जयकारों से गुंजायमान था. पूरा माहौल भक्तिमय था. पूजा की थाली ले कर दोनों श्रद्धालुओं के लिए बनी लंबी कतार में खड़े हो गए. मई महीने की गरमी में लाइन में खड़ेखड़े दोनों का बुरा हाल हो गया.

“मम्मी, देखो न, कितनी गरमी है,” पसीना पोंछते हुए राहुल ने कहा.

“तभी तो मैं सुबह जल्दी उठने के लिए कह रही थी,” गरमी से बेहाल रमा बोली.

लंबी लाइन धीरेधीरे आगे खिसक रही थी. पूजा के लिए लगी कतार से मंदिर का दाईं ओर का हौल दिखाई दे रहा था, जहां पर भंड़ारा चल रहा था. लोग पंक्तियों में बैठे भोजन का आनंद ले रहे थे. छोले, पूरी, तरकारी, हलवे की खुशबू  हवा में तैर रही थी. सुबह से खाली पेट राहुल को खाने को देख कर जी ललचाने लगा. उस का मन कर रहा था कि पूजा की पंक्ति से हट कर वह खाने की पंगत में बैठ जाए. लेकिन वह मन मसोस कर रह गया और बेताबी से अपने नबर आने का इंतजार करने लगा. जैसेतैसे कर के दोनों की बारी आई. श्रद्धा से पूजा की थाली रमा ने पंडितजी को पकड़ा दी, जिस में पुष्प, फल, मिष्ठान, श्रीफल, देवी मां की लाल चुनरी और एक काली चोटी थी. पंडितजी ने पूजामंत्रोच्चार के बाद सब से पहले उन से दक्षिणा रखवाई, प्रसाद दिया, फिर कार के पास आ कर नारियल फोड़ कर उस का पानी बोनट के ऊपर छिड़क दिया. नारियल वास्तव में तगड़ा था. पानी से लबालब भरा हुआ था. नारियल के फोड़ने से जो अमृतस्राव बहा, वह राहुल के सूखे गले को तो नहीं, पर, कार के बोनट को तरबतर कर गया. नारियल जल कई दिशाओं से होता हुआ बोनट से जमीन पर गिरने लगा, जो पहले से ही कई श्रीफलों के उत्सर्ग से पसीजी हुई थी. उस के पश्चात पंडितजी ने लाल चुनरी कार के साइड मिरर में बांध दी, काली चोटी को गाड़ी के सामने नीचे लटका दिया और पूजा संपन्न हो गई.

राहुल ने राहत की सांस ली और कार में सीट बेल्ट लगाते हुए कहा, “मम्मी, आप भी… अगर पूजा करवाने से सबकुछ सुरक्षित रहता, तो इतने ऐक्सिडैंट न होते सड़कों पर.”

“देखा नहीं कितनी सारी गाड़ियां थीं. बड़ी मान्यता है इस देवी मंदिर की, दूरदूर से लोग आते हैं.  कितना आलीशान हो गया है. शादी के बाद जब तेरे पापा ने अपना स्कूटर खरीदा  था, उस समय तो यह मंदिर छोटा सा था. गाड़ियां तो इक्कीदुक्की हुआ करती थीं. अब देखो,” गर्व से रमा बोली.

अभी गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि सामने एक भगवान शनिदेव मंदिर के आगे गाड़ी रुकवा दी रमा ने. यहीं पर ही यह सिलसिला नहीं थमा, एक बार फिर भगवान गणेशजी के मंदिर में राहुल से कार रुकवा दी. फिर वही पूजा शुरू हो गई. और अब यह हनुमानजी का मंदिर. सुबह से निकले हुए, भूख से राहुल का पेट बुरी तरह कुलबुला रहा था.

“आगे शिवजी का मंदिर है, मैं वहां बिलकुल कार नहीं रोकूंगा,” राहुल चेतावनी देते हुए बोला.

“नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते. बस, शिवजी का मंदिर और आगे बिलकुल सड़क पर एक पीर की मजार,” बेटे को मनाने की कोशिश करती हुई रमा बोली.

सतीश चंद्र का फोन बारबार आ रहा था, कभी राहुल को तो कभी रमा को. एक बार फिर फोन की घंटी बज उठी.

“कहां हो तुम लोग?” चिंतित स्वर में सतीश चंद्र बोले.

“बस, पहुंचने ही वाले हैं,” कह रमा ने फोन बंद कर दिया.

“क्या बात है? बड़ी देर कर दी,” 3 बजे घर पहुंचने पर सतीश चंद्र ने व्यग्रता से पूछा.

“पापा, यह आप मम्मी से पूछें.” डाइनिंग टेबल पर खाना लगा देख राहुल तेजी से बाथरूम में हाथ धोने चला गया.

डाइनिंग टेबल पर बैठ वह खाने पर एक तरह से टूट पड़ा.

मुंह में खाना ठूंसे हुए राहुल पापा से बोला, “पापा, मम्मी का बस चलता, तो पता नहीं कितने मंदिरों में और ले जाती मुझे.”

“मुझे तो पता है, तभी तो मैं जाता नहीं,” मुसकरा कर चटकारे लेते हुए पत्नी की ओर देख कर सतीश चंद्र बोले.

जैसे ही रमा ने घूर कर पति की ओर देखा, वे चुपचाप नजरें नीचे कर खाना खाने लगे.

“जब इतनी कम दूरी में 5 मंदिर, तो पता नहीं शहर में कितने होंगे और पूरे देश में. और पापा, मैं ने गौर किया कि मसजिदें भी कम नहीं हैं. एक से बढ़ कर एक. ओ माय गौड!”

“निकल गया न तुम्हारे मुंह से भगवान का नाम,” रमा ने राहुल के शब्दों को पकड़ते हुए कहा.

“मम्मी, आप भी…”

“छोड़ो यह सब, खाना खाओ,” अपनी मुसकराहट को दबाने का असफल प्रयास करते हुए वे बोले.

शाम को रमा चाय और पकौड़े बना कर लाई. आज वह प्रसन्नमना है. बातचीत के साथ तीनों चाय के साथ पकौड़ों का आनंद लेने लगे.

“सुनो जी, मां का मंदिर इतना सुंदर बन गया है कि आप भी देखते, तो दंग रह जाते.”

“और तुम ने उसी रास्ते में सरकारी स्कूल के उखड़ते प्लास्टर और उधड़ते फर्श को नहीं देखा?” जिला शिक्षा अधिकारी के पद से रिटायर हुए सतीश चंद्र का दर्द छलका.

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May 10, 2022 at 09:57PM

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