Monday 23 May 2022

आफत: क्या वंदना अपना हक ले पाई?

Writer- सिद्धार्थ जायसवार

वंदना महतो को अचानक रविवार की सुबह अपने घर आया देख मानसी मन ही मन चौंक पड़ी. ‘‘मेरी एक सहेली का घर पास में है. उस के बीमार बेटे का हालचाल पूछने आई थी तो सोचा आप से भी मिलती चलूं,’’ वंदना सकुचाई सी नजर आ रही थी.

‘‘ये आप ने अच्छा किया,’’ मानसी ने अपने मन में बेचैनी को अपनी आवाज में झलकने नहीं दिया.

‘‘तुम्हारे राजीव सर को तो पता ही नहीं है कि मैं यहां आई हूं,’’ वंदना के होंठों पर छोटी सी मुसकान उभरी.

‘‘तो अब फोन कर के बता दीजिए.’’

‘‘नहीं, अगर संभव हो तो मैं चाहूंगी कि तुम भी हमारी इस मुलाकात की चर्चा उन से ना करो.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों चाहती है?’’ मानसी उस के चेहरे को बड़े ध्यान से पढ़ रही थी.

‘‘असल में मैं आज तुम्हारे साथ अपने पति के बारे में ही बाते करने आई हूं, मानसी. हम जो चर्चा करेंगे, वो उन के कानों तक ना पहुंचे तो अच्छा है,’’ वंदना कुछ शर्मिंदा सी दिखने लगी.

‘‘मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि राजीव सर के बारे में आप ऐसी कौन सी गोपनीय बात की चर्चा मुझ से करना चाहती हैं?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब मैं कुछ देर के बाद देती हूं, मानसी. फिलहाल तो मैं राजीव में आ रहे कुछ बदलावों को ले कर बहुत चिंतित हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम.’’

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‘‘वो बहुत चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं, मानसी. खासकर मेरे ऊपर तो बिना बात के चिल्लाते हैं. अपने दोनों बेटो के साथ पहले की तरह ना खेलते हैं, ना हंसतेबोलते हैं. उन के बदले स्वभाव के कारण घर में बहुत टैंशन रहने लगती है,’’ वंदना का अपना दुखदर्द बयान करते हुए गला भर आया.

‘‘लेकिन, हम लोगों ने औफिस में तो ऐसा कोई बदलाव सर के अंदर नहीं देखा है.’’

‘‘मुझे पता था कि तुम्हारा ऐसी ही जवाब होगा, लेकिन मैं सच बोल रही हूं,’’ वंदना कुछ और ज्यादा उदास नजर आने लगी,

‘‘देखो, मैं ना औफिस जाती हूं और ना किट्टी पार्टियों में मुझे अपनी घरगृहस्थी को ढंग से चलाने में सारी खुशियां, सारा सुख मिल जाता है. हम लोग साधारण घरों से आते हैं, जहां औरतों को बुरी तरह दबा कर रखा जाता रहा है. मेरे पति जैसे पढ़ने में तेज लोग कम ही होते हैं और उन्होंने मुझे इसीलिए चुना था कि मैं भी कुछ पढ़ चुकी हूं. मैं ने पूरे तनमन से उन की सेवा की. अब राजीव खुश नहीं रहते हैं तो मेरा मन बहुत दुखता है.’’

‘‘आप ने सर से इस बारे में बात की है?’’

‘‘नहीं, पर मुझे मालूम है कि वो क्यों इतने परेशान रहने लगे हैं.’’

‘‘अगर आप को उन की परेशानी का कारण समझ आ गया है तो उस कारण को ठीक कर लीजिए.’’

‘‘मैं इसीलिए तो तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम,’’ मानसी तनावग्रस्त नजर आने लगी.

‘‘मैं अपने दिल पर लगे जख्मों को दिखाऊंगी तो सब समझ जाओगी,’’ वंदना की आवाज में पीड़ा के भाव उभरे, ‘‘मैं मोटी हो गई हूं… मुझे ढंग से सजनेसंवरने का तरीका नहीं आता. अब हमारी जाति में वे सुविधाएं नहीं हैं कि हम हर समय अच्छी लगें. मेरी मां ने लकड़ी के चूल्हे में और धूप में अपनी स्किन जलाई है और उस का गुस्सा मुझ पर है.

’’मैं कहीं ले जाने लायक नहीं रही हूं. मैं उन के सामने पड़ी नहीं और उन्होंने मेरे अंदर ऐसे दोष निकालने शुरू किए नहीं. मेरे लिए तो वो सबकुछ हैं. बहुत दुखता है मेरा दिल, जब वो ऐसी चुभती बातें मुंह से निकालते हैं.’’

‘‘तब आप अपनेआप को इतना बदल लीजिए कि वो ऐसी बात सुनानी बंद कर दें,’’ मानसी ने कुछ रूखे से अंदाज में उसे सलाह दी.

‘‘इस दिशा में मैं ने कुछ शुरुआत तो कर दी है, मानसी. रोज सुबहशाम घूमने जाती हूं. उन के औफिस से घर आने से पहले ढंग से तैयार हो जाती हूं, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, मैडम?’’

‘‘लेकिन, मुझे नहीं लगता कि इतना कुछ करने से मेरी समस्या का अंत हो जाएगा,’’ वंदना मायूस हो उठी, ‘‘उन्हें परेशान देख कर मैं खून के आंसू बहाती हूं. अगर मैं उन्हें सारी खुशियां और सुख नहीं दे पाई तो लानत है मुझ पर.’’

‘‘मैडम, आप प्लीज आंसू मत बहाइए.’’

‘‘मेरे आंसुओं को बहने से तुम रुकवा सकती हो, मानसी.’’

‘‘मैं… वो कैसे?’’ मानसी तनाव से भर उठी.

ये भी पढ़ें- लेखक की पत्नी: अनु का गर्व क्यों टूट गया?

‘‘अब अभिनय मत करो, प्लीज,’’ वंदना ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं ने जरा सी छानबीन की, तो औफिस के कई लोगों ने मुझे बताया कि मेरे पति और तुम एकदूसरे के बहुत करीब आए हुए हो. उन के अंदर आए इस बदलाव की असली वजह तुम हो.”

‘‘ये गलत आरोप है, मैडम. आप को लोगों ने गलत जानकारी दी है.’’

‘‘मुखे मूर्ख मत समझो, मानसी और झूठ बोलने के बजाय मेरे दिल के दुखदर्द को समझने की कोशिश करो,’’ वंदना ने झटके से खड़े हो कर आवेश भरी ऊंची आवाज में उसे टोका, ‘‘वो चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं और मैं उन की आंखों में चुभने लगी हूं तो इस का कारण तुम हो. वो मन ही मन तुम से मेरी तुलना करते हैं. अब तुम ही बताओ कि 2 बच्चों की मां का एक कुंआरी लड़की के साथ क्या मुकाबला हो सकता है?’’

‘‘तुम ने उन की जिंदगी में प्रवेश कर के हमारे विवाहित जीवन की खुशियों को नष्ट कर दिया है. तुम्हारी आकर्षक फिगर और सुंदर रंगरूप. तुम्हारा आत्मविश्वास से भरा सलीकेदार व्यवहार. तुम्हारे व्यक्तित्व का हर पहलू तो मुझ से बेहतर है. सीधी सी बात है कि जब तुम दूसरी औरत बन कर उन के करीब आ गई तो मैं उन की आंखों में चुभने लगी.’’

‘‘देखो, मैं अपने पति की खुशी की खातिर तुम दोनों के अवैध रिश्ते को स्वीकार करने को तैयार हूं, पर यह बात मेरे दिल को बहुत दुखाती है कि वो ऐसा कर के भी खुश नहीं हैं. मैं उन के मन की अशांति के लिए सीधेसीधे तुम्हें जिम्मेवार मान रही हूं, मानसी. तुम मेरे पति के साथ जुड़ी रहना चाहती हो तो खुशी से जुड़ी रहो, लेकिन साथ ही साथ ये भी सुनिश्चित करो कि वो घर में पहले की तरह खुश दिखें. हम सब से खूब हंसेंबोलें. पहले की तरह एक अच्छ पिता और पति बने रहें.

‘‘अगर तुम उन्हें मेरी तरह अपनी जान से ज्यादा चाहती हो तो उन्हें खुश और सुखी रखने में मेरा हाथ बांटो, मानसी. मेरे घर की सुखशांति व खुशियों को अब तुम्हें ही लौटाना होगा. तुम ऐसा नहीं कर सकती हो, या नहीं करना चाहती हो, तो तुम उन की सच्ची शुभचिंतक नहीं हो. तब या तो तुम्हें उन की जिंदगी से निकलना होगा, या फिर मैं तुम्हे अपना दुश्मन समझने लगूंगी. फिर मुझे इस की बिलकुल चिंता नहीं होगी कि मेरे हाथों तुम्हारा कितना बड़ा नुकसान हो रहा है. तब मैं ये नहीं देखूंगी कि तुम्हारा अहित कर के मुझे जेल हो रही है या फांसी लग जाएगी.’’

‘‘आप प्लीज यहां से चली जाओ. आप जबरदस्त गलतफहमी की शिकार हो और इस मामले में मैं आप की कोई सहायता नहीं कर सकती हूं,’’ वंदना का रौद्र रूप देख मानसी की आंखों से डर और चिंता के भाव झांक रहे थे.

‘‘ऐसा मत कहो, मानसी. तुम मेरे पति से प्रेम करती हो तो इस मसस्या को सुलझाने में मेरी सहायता भी करो.’’

‘‘आप चली जाओ मेरे घर से,’’ इस बार मानसी ने गुस्से से चिल्ला कर वंदना को दबानाडराना चाहा था.

‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से पल्ला झाड़ कर अलग नहीं होने दूंगी. इस मामले में अपनी जिम्मेदारी को समझो,’’ वंदना उस से ज्यादा जोर से चिल्लाई थी.

‘‘मुझे इस मामले में आप से अब कोई बात नहीं करनी है.’’

‘‘शटअप,’’ वंदना उस के सामने तन कर खड़ी हो गई और गुस्से से कांपती आवाज में बोली, ‘‘तुम मेरे पति के साथ प्यार करने का खेल समझ सकती हो, पर मेरे लिए उन की खुशियां, उन का सुख अपनी जान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण व कीमती है. अरे, लानत है ऐसी पत्नी पर, जो अपने घर में पति को हर तरह से खुश ना रख सके.’’

‘‘आप मुझ से क्या चाहती हो?’’ वंदना की आंखों से झांक रहे अजीब से पागलपन के भाव ने मानसी को बहुत बुरी तरह से डरा दिया था.

‘‘ये मुझ से मत पूछो,’’ वो पागल की तरह से चिल्लाई, ‘‘मुझ से पूछ कर… मुझ से सलाह कर के तुम ने क्या इन के साथ इश्क करना शुरू किया था? मुझे हर हाल में इन की हंसीखुशी वापस चाहिए, बस. प्लीज, मेरी हैल्प करो,’’ वंदना ने उस के पास पहुंच कर हाथ जोड़ दिए, पर उसे अपने इतने पास देख कर मानसी और ज्यादा डर गई थी.

‘‘त… आप बैठ कर बात करो, प्लीज. आप को गलतफहमी…’’

‘‘बस, अब चुप हो जाओ,’’ वंदना ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बोलने से रोक दिया और कठोर लहजे में बोली, ‘‘मैं अपने बारे में तुम्हें सिर्फ दो बातें बताना चाहूंगी. पहली बात तो यह है कि मुझे झूठे और धोखेबाज लोग बिलकुल अच्छे नहीं लगते हैं और दूसरी बात यह कि मैं गुस्सा कम करती हूं, पर जब कभी मुझे गुस्सा आता है तो मैं उसे संभाल नहीं पाती और पागल सी हो जाती हूं. इसलिए मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी दे रही हूं कि अब झूठ का सहारा ले कर इस मामले में अपनी जवाबदेही से बचने की कोशिश मत करो, नहीं तो पछताओगी.’’

‘‘आप मेरी कोई बात सुन तो रही नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हें जान से मार दूंगी,’’ गुस्से से कांप रही वंदना ने मेज पर रखा भारी फूलदान हाथ में उठा लिया तो मानसी को लगा कि वो डर के मारे बेहोश ही हो जाएगी.

उस के बिलकुल पास आ कर वंदना ने भावावेश से कांपते स्वर में कहा, ‘‘मानसी, ये सब मेरे लिए खेल नहीं है, क्योंकि मेरे विवाहित जीवन की खुशियां, मेरे बच्चों का भविष्य और मेरे पति के मन की सुखशांति दांव पर लगी हुई है. तुम ने मेरे पति को अपने प्रेमजाल में फंसा कर मेरे घर में अशांति भरी है और अब तुम ही समस्या को सुलझाओ. अगर मैं ने राजीव के अंदर तुरंत ही बदलाव आता नहीं देखा तो मैं फिर लौटूंगी और तब मेरा निशाना चूकेगा नहीं.’’

वंदना ने वो शीशे का फूलदान मानसी के पैरों के पास फेंक कर मारा तो वो तेज आवाज के साथ टूट कर बिखर गया. उस के टूटने की आवाज में मानसी के चीखने की आवाज दब कर रह गई थी.

‘‘मुझ पर तरस खाना, मानसी… मैं तुम्हारी जितनी खूबसूरत और आकर्षक तो नहीं, पर मैं भी खुशी से जीना चाहती हूं,’’ वंदना की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे और वो अपना पर्स उठा कर बाहर के दरवाजे की तरफ चल पड़ी थी.

उस के चले जाने के बाद भी मानसी बहुत देर तक अपनी जगह गुमसुम सी बैठी रही थी. बहुत धीरेधीरे उस के दिमाग का सुन्नपना कम हुआ और हाथपैरों में जान वापस लौटी थी.

कई बार उस ने मेज पर रखा अपना मोबाइल उठाया और वापस रखा. वो वंदना की शिकायत अपने प्रेमी राजीव से करना चाहती थी, पर ऐसा करने से उसे बहुत डर भी लग रहा था. बारबार उस के जेहन में वंदना की आंखों से झांक रहा पागलपन उभर आता और वो राजीव का नंबर मिलाने की हिम्मत खो बैठती. वह समझ गई कि वंदना मुश्किल से मिले सुखों को ऐसे ही हाथ से निकलने नहीं देगी और किसी भी हद तक जा सकती है.

‘‘मैं राजीव से वंदना की शिकायत करूंगी तो वो उसे यकीनन डांटेंगे. इस कारण वो पागल फिर मुझ से मिलने जरूर लौटेगी. फिर उस आफत से मैं कैसे निबटूंगी? मुझे नहीं करनी है शिकायत अब. मन में ऐसी हलचल के चलते मानसी ने फोन कर के वंदना की शिकायत उस के पति से नहीं की थी.

उस के मन में राजीव से अपना प्रेम संबंध तोड़ लेने का बीज बोने में वंदना पूरी तरह से सफल रही थी.

वंदना दबेकुचले परिवारों से चाहे आई हो, पर अब अपना हक पाने को पूरी कोशिश करेगी, यह बात साफ थी.

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Writer- सिद्धार्थ जायसवार

वंदना महतो को अचानक रविवार की सुबह अपने घर आया देख मानसी मन ही मन चौंक पड़ी. ‘‘मेरी एक सहेली का घर पास में है. उस के बीमार बेटे का हालचाल पूछने आई थी तो सोचा आप से भी मिलती चलूं,’’ वंदना सकुचाई सी नजर आ रही थी.

‘‘ये आप ने अच्छा किया,’’ मानसी ने अपने मन में बेचैनी को अपनी आवाज में झलकने नहीं दिया.

‘‘तुम्हारे राजीव सर को तो पता ही नहीं है कि मैं यहां आई हूं,’’ वंदना के होंठों पर छोटी सी मुसकान उभरी.

‘‘तो अब फोन कर के बता दीजिए.’’

‘‘नहीं, अगर संभव हो तो मैं चाहूंगी कि तुम भी हमारी इस मुलाकात की चर्चा उन से ना करो.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों चाहती है?’’ मानसी उस के चेहरे को बड़े ध्यान से पढ़ रही थी.

‘‘असल में मैं आज तुम्हारे साथ अपने पति के बारे में ही बाते करने आई हूं, मानसी. हम जो चर्चा करेंगे, वो उन के कानों तक ना पहुंचे तो अच्छा है,’’ वंदना कुछ शर्मिंदा सी दिखने लगी.

‘‘मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि राजीव सर के बारे में आप ऐसी कौन सी गोपनीय बात की चर्चा मुझ से करना चाहती हैं?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब मैं कुछ देर के बाद देती हूं, मानसी. फिलहाल तो मैं राजीव में आ रहे कुछ बदलावों को ले कर बहुत चिंतित हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम.’’

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‘‘वो बहुत चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं, मानसी. खासकर मेरे ऊपर तो बिना बात के चिल्लाते हैं. अपने दोनों बेटो के साथ पहले की तरह ना खेलते हैं, ना हंसतेबोलते हैं. उन के बदले स्वभाव के कारण घर में बहुत टैंशन रहने लगती है,’’ वंदना का अपना दुखदर्द बयान करते हुए गला भर आया.

‘‘लेकिन, हम लोगों ने औफिस में तो ऐसा कोई बदलाव सर के अंदर नहीं देखा है.’’

‘‘मुझे पता था कि तुम्हारा ऐसी ही जवाब होगा, लेकिन मैं सच बोल रही हूं,’’ वंदना कुछ और ज्यादा उदास नजर आने लगी,

‘‘देखो, मैं ना औफिस जाती हूं और ना किट्टी पार्टियों में मुझे अपनी घरगृहस्थी को ढंग से चलाने में सारी खुशियां, सारा सुख मिल जाता है. हम लोग साधारण घरों से आते हैं, जहां औरतों को बुरी तरह दबा कर रखा जाता रहा है. मेरे पति जैसे पढ़ने में तेज लोग कम ही होते हैं और उन्होंने मुझे इसीलिए चुना था कि मैं भी कुछ पढ़ चुकी हूं. मैं ने पूरे तनमन से उन की सेवा की. अब राजीव खुश नहीं रहते हैं तो मेरा मन बहुत दुखता है.’’

‘‘आप ने सर से इस बारे में बात की है?’’

‘‘नहीं, पर मुझे मालूम है कि वो क्यों इतने परेशान रहने लगे हैं.’’

‘‘अगर आप को उन की परेशानी का कारण समझ आ गया है तो उस कारण को ठीक कर लीजिए.’’

‘‘मैं इसीलिए तो तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम,’’ मानसी तनावग्रस्त नजर आने लगी.

‘‘मैं अपने दिल पर लगे जख्मों को दिखाऊंगी तो सब समझ जाओगी,’’ वंदना की आवाज में पीड़ा के भाव उभरे, ‘‘मैं मोटी हो गई हूं… मुझे ढंग से सजनेसंवरने का तरीका नहीं आता. अब हमारी जाति में वे सुविधाएं नहीं हैं कि हम हर समय अच्छी लगें. मेरी मां ने लकड़ी के चूल्हे में और धूप में अपनी स्किन जलाई है और उस का गुस्सा मुझ पर है.

’’मैं कहीं ले जाने लायक नहीं रही हूं. मैं उन के सामने पड़ी नहीं और उन्होंने मेरे अंदर ऐसे दोष निकालने शुरू किए नहीं. मेरे लिए तो वो सबकुछ हैं. बहुत दुखता है मेरा दिल, जब वो ऐसी चुभती बातें मुंह से निकालते हैं.’’

‘‘तब आप अपनेआप को इतना बदल लीजिए कि वो ऐसी बात सुनानी बंद कर दें,’’ मानसी ने कुछ रूखे से अंदाज में उसे सलाह दी.

‘‘इस दिशा में मैं ने कुछ शुरुआत तो कर दी है, मानसी. रोज सुबहशाम घूमने जाती हूं. उन के औफिस से घर आने से पहले ढंग से तैयार हो जाती हूं, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, मैडम?’’

‘‘लेकिन, मुझे नहीं लगता कि इतना कुछ करने से मेरी समस्या का अंत हो जाएगा,’’ वंदना मायूस हो उठी, ‘‘उन्हें परेशान देख कर मैं खून के आंसू बहाती हूं. अगर मैं उन्हें सारी खुशियां और सुख नहीं दे पाई तो लानत है मुझ पर.’’

‘‘मैडम, आप प्लीज आंसू मत बहाइए.’’

‘‘मेरे आंसुओं को बहने से तुम रुकवा सकती हो, मानसी.’’

‘‘मैं… वो कैसे?’’ मानसी तनाव से भर उठी.

ये भी पढ़ें- लेखक की पत्नी: अनु का गर्व क्यों टूट गया?

‘‘अब अभिनय मत करो, प्लीज,’’ वंदना ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं ने जरा सी छानबीन की, तो औफिस के कई लोगों ने मुझे बताया कि मेरे पति और तुम एकदूसरे के बहुत करीब आए हुए हो. उन के अंदर आए इस बदलाव की असली वजह तुम हो.”

‘‘ये गलत आरोप है, मैडम. आप को लोगों ने गलत जानकारी दी है.’’

‘‘मुखे मूर्ख मत समझो, मानसी और झूठ बोलने के बजाय मेरे दिल के दुखदर्द को समझने की कोशिश करो,’’ वंदना ने झटके से खड़े हो कर आवेश भरी ऊंची आवाज में उसे टोका, ‘‘वो चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं और मैं उन की आंखों में चुभने लगी हूं तो इस का कारण तुम हो. वो मन ही मन तुम से मेरी तुलना करते हैं. अब तुम ही बताओ कि 2 बच्चों की मां का एक कुंआरी लड़की के साथ क्या मुकाबला हो सकता है?’’

‘‘तुम ने उन की जिंदगी में प्रवेश कर के हमारे विवाहित जीवन की खुशियों को नष्ट कर दिया है. तुम्हारी आकर्षक फिगर और सुंदर रंगरूप. तुम्हारा आत्मविश्वास से भरा सलीकेदार व्यवहार. तुम्हारे व्यक्तित्व का हर पहलू तो मुझ से बेहतर है. सीधी सी बात है कि जब तुम दूसरी औरत बन कर उन के करीब आ गई तो मैं उन की आंखों में चुभने लगी.’’

‘‘देखो, मैं अपने पति की खुशी की खातिर तुम दोनों के अवैध रिश्ते को स्वीकार करने को तैयार हूं, पर यह बात मेरे दिल को बहुत दुखाती है कि वो ऐसा कर के भी खुश नहीं हैं. मैं उन के मन की अशांति के लिए सीधेसीधे तुम्हें जिम्मेवार मान रही हूं, मानसी. तुम मेरे पति के साथ जुड़ी रहना चाहती हो तो खुशी से जुड़ी रहो, लेकिन साथ ही साथ ये भी सुनिश्चित करो कि वो घर में पहले की तरह खुश दिखें. हम सब से खूब हंसेंबोलें. पहले की तरह एक अच्छ पिता और पति बने रहें.

‘‘अगर तुम उन्हें मेरी तरह अपनी जान से ज्यादा चाहती हो तो उन्हें खुश और सुखी रखने में मेरा हाथ बांटो, मानसी. मेरे घर की सुखशांति व खुशियों को अब तुम्हें ही लौटाना होगा. तुम ऐसा नहीं कर सकती हो, या नहीं करना चाहती हो, तो तुम उन की सच्ची शुभचिंतक नहीं हो. तब या तो तुम्हें उन की जिंदगी से निकलना होगा, या फिर मैं तुम्हे अपना दुश्मन समझने लगूंगी. फिर मुझे इस की बिलकुल चिंता नहीं होगी कि मेरे हाथों तुम्हारा कितना बड़ा नुकसान हो रहा है. तब मैं ये नहीं देखूंगी कि तुम्हारा अहित कर के मुझे जेल हो रही है या फांसी लग जाएगी.’’

‘‘आप प्लीज यहां से चली जाओ. आप जबरदस्त गलतफहमी की शिकार हो और इस मामले में मैं आप की कोई सहायता नहीं कर सकती हूं,’’ वंदना का रौद्र रूप देख मानसी की आंखों से डर और चिंता के भाव झांक रहे थे.

‘‘ऐसा मत कहो, मानसी. तुम मेरे पति से प्रेम करती हो तो इस मसस्या को सुलझाने में मेरी सहायता भी करो.’’

‘‘आप चली जाओ मेरे घर से,’’ इस बार मानसी ने गुस्से से चिल्ला कर वंदना को दबानाडराना चाहा था.

‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से पल्ला झाड़ कर अलग नहीं होने दूंगी. इस मामले में अपनी जिम्मेदारी को समझो,’’ वंदना उस से ज्यादा जोर से चिल्लाई थी.

‘‘मुझे इस मामले में आप से अब कोई बात नहीं करनी है.’’

‘‘शटअप,’’ वंदना उस के सामने तन कर खड़ी हो गई और गुस्से से कांपती आवाज में बोली, ‘‘तुम मेरे पति के साथ प्यार करने का खेल समझ सकती हो, पर मेरे लिए उन की खुशियां, उन का सुख अपनी जान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण व कीमती है. अरे, लानत है ऐसी पत्नी पर, जो अपने घर में पति को हर तरह से खुश ना रख सके.’’

‘‘आप मुझ से क्या चाहती हो?’’ वंदना की आंखों से झांक रहे अजीब से पागलपन के भाव ने मानसी को बहुत बुरी तरह से डरा दिया था.

‘‘ये मुझ से मत पूछो,’’ वो पागल की तरह से चिल्लाई, ‘‘मुझ से पूछ कर… मुझ से सलाह कर के तुम ने क्या इन के साथ इश्क करना शुरू किया था? मुझे हर हाल में इन की हंसीखुशी वापस चाहिए, बस. प्लीज, मेरी हैल्प करो,’’ वंदना ने उस के पास पहुंच कर हाथ जोड़ दिए, पर उसे अपने इतने पास देख कर मानसी और ज्यादा डर गई थी.

‘‘त… आप बैठ कर बात करो, प्लीज. आप को गलतफहमी…’’

‘‘बस, अब चुप हो जाओ,’’ वंदना ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बोलने से रोक दिया और कठोर लहजे में बोली, ‘‘मैं अपने बारे में तुम्हें सिर्फ दो बातें बताना चाहूंगी. पहली बात तो यह है कि मुझे झूठे और धोखेबाज लोग बिलकुल अच्छे नहीं लगते हैं और दूसरी बात यह कि मैं गुस्सा कम करती हूं, पर जब कभी मुझे गुस्सा आता है तो मैं उसे संभाल नहीं पाती और पागल सी हो जाती हूं. इसलिए मैं तुम्हें आखिरी बार चेतावनी दे रही हूं कि अब झूठ का सहारा ले कर इस मामले में अपनी जवाबदेही से बचने की कोशिश मत करो, नहीं तो पछताओगी.’’

‘‘आप मेरी कोई बात सुन तो रही नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हें जान से मार दूंगी,’’ गुस्से से कांप रही वंदना ने मेज पर रखा भारी फूलदान हाथ में उठा लिया तो मानसी को लगा कि वो डर के मारे बेहोश ही हो जाएगी.

उस के बिलकुल पास आ कर वंदना ने भावावेश से कांपते स्वर में कहा, ‘‘मानसी, ये सब मेरे लिए खेल नहीं है, क्योंकि मेरे विवाहित जीवन की खुशियां, मेरे बच्चों का भविष्य और मेरे पति के मन की सुखशांति दांव पर लगी हुई है. तुम ने मेरे पति को अपने प्रेमजाल में फंसा कर मेरे घर में अशांति भरी है और अब तुम ही समस्या को सुलझाओ. अगर मैं ने राजीव के अंदर तुरंत ही बदलाव आता नहीं देखा तो मैं फिर लौटूंगी और तब मेरा निशाना चूकेगा नहीं.’’

वंदना ने वो शीशे का फूलदान मानसी के पैरों के पास फेंक कर मारा तो वो तेज आवाज के साथ टूट कर बिखर गया. उस के टूटने की आवाज में मानसी के चीखने की आवाज दब कर रह गई थी.

‘‘मुझ पर तरस खाना, मानसी… मैं तुम्हारी जितनी खूबसूरत और आकर्षक तो नहीं, पर मैं भी खुशी से जीना चाहती हूं,’’ वंदना की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे और वो अपना पर्स उठा कर बाहर के दरवाजे की तरफ चल पड़ी थी.

उस के चले जाने के बाद भी मानसी बहुत देर तक अपनी जगह गुमसुम सी बैठी रही थी. बहुत धीरेधीरे उस के दिमाग का सुन्नपना कम हुआ और हाथपैरों में जान वापस लौटी थी.

कई बार उस ने मेज पर रखा अपना मोबाइल उठाया और वापस रखा. वो वंदना की शिकायत अपने प्रेमी राजीव से करना चाहती थी, पर ऐसा करने से उसे बहुत डर भी लग रहा था. बारबार उस के जेहन में वंदना की आंखों से झांक रहा पागलपन उभर आता और वो राजीव का नंबर मिलाने की हिम्मत खो बैठती. वह समझ गई कि वंदना मुश्किल से मिले सुखों को ऐसे ही हाथ से निकलने नहीं देगी और किसी भी हद तक जा सकती है.

‘‘मैं राजीव से वंदना की शिकायत करूंगी तो वो उसे यकीनन डांटेंगे. इस कारण वो पागल फिर मुझ से मिलने जरूर लौटेगी. फिर उस आफत से मैं कैसे निबटूंगी? मुझे नहीं करनी है शिकायत अब. मन में ऐसी हलचल के चलते मानसी ने फोन कर के वंदना की शिकायत उस के पति से नहीं की थी.

उस के मन में राजीव से अपना प्रेम संबंध तोड़ लेने का बीज बोने में वंदना पूरी तरह से सफल रही थी.

वंदना दबेकुचले परिवारों से चाहे आई हो, पर अब अपना हक पाने को पूरी कोशिश करेगी, यह बात साफ थी.

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May 23, 2022 at 10:06AM

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