Saturday 21 May 2022

ज्योति- भाग 3: क्या सही था उसका भरोसा

लगभग 45 वर्ष का सुरेश नेकदिल इंसान था. सुमित ने उसे सदा हंसतेमुसकराते ही देखा था. मगर वह अपनी जिंदगी में एकदम अकेला है, इस बात का इल्म उसे आज ही हुआ.

इधर कुछ दिनों से रोहन बहुत परेशान था. औफिस में उस के साथ हो रहे भेदभाव ने उस की नींद उड़ा रखी थी. रोहन के वरिष्ठ मैनेजर ने रोहन के पद पर अपने किसी रिश्तेदार को रख लिया था और रोहन को दूसरा काम दे दिया गया जिस का न तो उसे खास अनुभव था न ही उस का मन उस काम में लग रहा था. अपने साथ हुई इस नाइंसाफी की शिकायत उस ने बड़े अधिकारियों से की, लेकिन उस की बातों को अनसुना कर दिया गया. नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह उस की शिकायतें दब कर रह गई थीं. आखिरकार, तंग आ कर उस ने नौकरी छोड़ दी.

दूसरी नौकरी की तलाश में सुबह का निकला रोहन देरशाम ही घर लौट पाता था. उस का दिनभर दफ्तरों के चक्कर लगाने में गुजर जाता. मगर नई नौकरी मिलना आसान नहीं था. कहीं मनमुताबिक तनख्वाह नहीं मिल रही थी तो कहीं काम उस की योग्यता के मुताबिक नहीं था. जिंदगी की कड़वी हकीकत जेब में पड़ी डिगरियों को मुंह चिढ़ा रही थी.

सुमित और मनीष ने रोहन की मदद करने के लिए अपने स्तर पर कोशिश की, मगर बात कहीं बन नहीं पा रही थी.

एक के बाद एक इंटरव्यू देदे कर रोहन का सब्र जवाब देने लगा था. अपने भविष्य की चिंता में उस का शरीर सूख कर कांटा हो चला था. पास में जो कुछ जमा पूंजी थी वह भी कब तक टिकती, 2 महीने से तो वह अपने हिस्से का किराया भी नहीं दे पा रहा था.

सुमित और मनीष उस की स्थिति समझ कर उसे कुछ कहते नहीं थे. मगर यों भी कब तक चलता.

सुबह का भूखाप्यासा रोहन एक दिन शाम को जब घर आया तो सारा बदन तप रहा था. उस के होंठ सूख रहे थे. उसे महसूस हुआ मानो शरीर में जान ही नहीं बची. ज्योति उसे कई दिनों से इस हालत में देख रही थी. इस वक्त वह शाम के खाने की तैयारी में जुटी थी. रोहन सुधबुध भुला कर मय जूते के बिस्तर पर निढाल पड़ गया.

ज्योति ने पास जा कर उस का माथा छुआ. रोहन को बहुत तेज बुखार था. वह पानी ले कर आई. उस ने रोहन को जरा सहारा दे कर उठाया और पानी का गिलास उस के मुंह से लगाया. ‘‘क्या हाल बना लिया है भैया आप ने अपना?’’

‘‘ज्योति, फ्रिज में दवाइयां रखी हैं, जरा मुझे ला कर दे दो,’’ अस्फुट स्वर में रोहन ने कहा.

दवाई खा कर रोहन फिर से लेट गया. सुबह से पेट में कुछ गया नहीं था, उसे उबकाई सी महसूस हुई. ‘‘रोहन भैया, पहले कुछ खा लो, फिर सो जाना,’’ हाथ में एक तश्तरी लिए ज्योति उस के पास आई.

रोहन को तकिए के सहारे बिठा कर ज्योति ने उसे चम्मच से खिचड़ी खिलाई बिलकुल किसी मां की तरह जैसे अपने बच्चों को खिलाती है.

रोहन को अपनी मां की याद आ गई. आज कई दिनों बाद उसी प्यार से किसी ने उसे खिलाया था. दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो उस की तबीयत में सुधार था. बुखार अब उतर चुका था, लेकिन कमजोरी की वजह से उसे चलनेफिरने में दिक्कत हो रही थी. सुमित और मनीष ने उसे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी. साथ ही, हौसला भी बंधाया कि वह अकेला नहीं है.

ज्योति उस के लिए कभी दलिया तो कभी खिचड़ी पकाती और बड़े मनुहार से खिलाती. रोहन उसे अब दीदी बुलाने लगा था.

‘‘दीदी, आप को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं फिलहाल, मगर वादा करता हूं नौकरी लगते ही आप का सारा पैसा चुका दूंगा,’’ रोहन ने ज्योति से कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो रोहन भैया. आप बस, जल्दी से ठीक हो जाओ. मैं आप से पैसे नहीं लूंगी.’’

‘‘लेकिन, मुझे इस तरह मुफ्त का खाने में शर्म आती है,’’ रोहन उदास था.

‘‘भैया, मेरी एक बेटी है 10 साल की, स्कूल जाती है. मेरा सपना है कि मेरी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने. पर मेरे पास इतना वक्त नहीं कि उसे घर पर पढ़ा सकूं और उसे ट्यूशन भेजने की मेरी हैसियत नहीं है. घर का किराया, मुन्नी के स्कूल की फीस और राशनपानी के बाद बचता ही क्या है. अगर आप मेरी बेटी को ट्यूशन पढ़ा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी. आप से मैं खाना बनाने के पैसे नहीं लूंगी, समझ लूंगी वही मेरी पगार है.’’

बात तो ठीक थी. रोहन को भला क्या परेशानी होती. रोज शाम मुन्नी अब अपनी मां के साथ आने लगी. रोहन उसे दिल लगा कर पढ़ाता.

ज्योति कई घरों में काम करती थी. उस ने अपनी जानपहचान के एक बड़े साहब को रोहन का बायोडाटा दिया. रोहन को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. मेहनती और योग्य तो वह था ही, इस बार समय ने भी उस का साथ दिया और उस की नौकरी पक्की हो गई.

सुमित और मनीष भी खुश थे. रोहन सब से ज्यादा एहसानमंद ज्योति का था. जिस निस्वार्थ भाव से ज्योति ने उस की मदद की थी, रोहन के दिल में ज्योति का स्थान अब किसी सगी बहन से कम नहीं था. ज्योति भी रोहन की कामयाबी से खुश थी, साथ ही, उस की बेटी की पढ़ाई को ले कर चिंता भी हट चुकी थी. घर में जिस तरह बड़ी बहन का सम्मान होता है, कुछ ऐसा ही अब ज्योति का सुमित और उस के दोस्तों के घर में था.

ज्योति की उपस्थिति में ही बहुत बार नेहा मनीष से मिलने घर आती थी. शुरूशुरू में मनीष को कुछ झिझक हुई, मगर ज्योति अपने काम से मतलब रखती. वह दूसरी कामवाली बाइयों की तरह इन बातों को चुगली का साधन नहीं बनाती थी.

मनीष और नेहा की एक दिन किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई. ज्योति उस वक्त रसोई में अपना काम कर रही थी. दोनों की बातें उसे साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

मनीष के व्यवहार से आहत, रोती हुई नेहा वहां से चली गई. उस के जाने के बाद मनीष भी गुमसुम बैठ गया.

ज्योति आमतौर पर ऐसे मामले में नहीं पड़ती थी. वह अपने काम से काम रखती थी, मगर नेहा और मनीष को इस तरह लड़ते देख कर उस से रहा नहीं गया. उस ने मनीष से पूछा तो मनीष ने बताया कि कुछ महीनों से शादी की बात को ले कर नेहा के साथ उस की खटपट चल रही है.

‘‘लेकिन भैया, इस में गलत क्या है? कभी न कभी तो आप नेहा दीदी से शादी करेंगे ही.’’

‘‘यह शादी होनी बहुत मुश्किल है ज्योति. तुम नहीं समझोगी, मेरे घर वाले जातपांत पर बहुत यकीन करते हैं और नेहा हमारी जाति की नहीं है.’’

‘‘वैसे तो मुझे आप के मामले में बोलने का कोई हक नहीं है मनीष भैया, मगर एक बात कहना चाहती हूं.’’

मनीष ने प्रश्नात्मक ढंग से उस की तरफ देखा.

‘‘मेरी बात का बुरा मत मानिए मनीष भैया. नेहा दीदी को तो आप बहुत पहले से जानते हैं, मगर जातपांत का खयाल आप को अब आ रहा है. मैं भी एक औरत हूं. मैं समझ सकती हूं कि नेहा दीदी को कैसा लग रहा होगा जब आप ने उन्हें शादी के लिए मना किया होगा. इतना आसान नहीं होता किसी भी लड़की के लिए इतने लंबे अरसे बाद अचानक संबंध तोड़ लेना. यह समाज सिर्फ लड़की पर ही उंगली उठाता है. आप दोनों के रिश्ते की बात जान कर क्या भविष्य में उन की शादी में अड़चन नहीं आएगी? क्या नेहा दीदी और आप एकदूसरे को भूल पाएंगे? जरा इन बातों को सोच कर देखिए.

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लगभग 45 वर्ष का सुरेश नेकदिल इंसान था. सुमित ने उसे सदा हंसतेमुसकराते ही देखा था. मगर वह अपनी जिंदगी में एकदम अकेला है, इस बात का इल्म उसे आज ही हुआ.

इधर कुछ दिनों से रोहन बहुत परेशान था. औफिस में उस के साथ हो रहे भेदभाव ने उस की नींद उड़ा रखी थी. रोहन के वरिष्ठ मैनेजर ने रोहन के पद पर अपने किसी रिश्तेदार को रख लिया था और रोहन को दूसरा काम दे दिया गया जिस का न तो उसे खास अनुभव था न ही उस का मन उस काम में लग रहा था. अपने साथ हुई इस नाइंसाफी की शिकायत उस ने बड़े अधिकारियों से की, लेकिन उस की बातों को अनसुना कर दिया गया. नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह उस की शिकायतें दब कर रह गई थीं. आखिरकार, तंग आ कर उस ने नौकरी छोड़ दी.

दूसरी नौकरी की तलाश में सुबह का निकला रोहन देरशाम ही घर लौट पाता था. उस का दिनभर दफ्तरों के चक्कर लगाने में गुजर जाता. मगर नई नौकरी मिलना आसान नहीं था. कहीं मनमुताबिक तनख्वाह नहीं मिल रही थी तो कहीं काम उस की योग्यता के मुताबिक नहीं था. जिंदगी की कड़वी हकीकत जेब में पड़ी डिगरियों को मुंह चिढ़ा रही थी.

सुमित और मनीष ने रोहन की मदद करने के लिए अपने स्तर पर कोशिश की, मगर बात कहीं बन नहीं पा रही थी.

एक के बाद एक इंटरव्यू देदे कर रोहन का सब्र जवाब देने लगा था. अपने भविष्य की चिंता में उस का शरीर सूख कर कांटा हो चला था. पास में जो कुछ जमा पूंजी थी वह भी कब तक टिकती, 2 महीने से तो वह अपने हिस्से का किराया भी नहीं दे पा रहा था.

सुमित और मनीष उस की स्थिति समझ कर उसे कुछ कहते नहीं थे. मगर यों भी कब तक चलता.

सुबह का भूखाप्यासा रोहन एक दिन शाम को जब घर आया तो सारा बदन तप रहा था. उस के होंठ सूख रहे थे. उसे महसूस हुआ मानो शरीर में जान ही नहीं बची. ज्योति उसे कई दिनों से इस हालत में देख रही थी. इस वक्त वह शाम के खाने की तैयारी में जुटी थी. रोहन सुधबुध भुला कर मय जूते के बिस्तर पर निढाल पड़ गया.

ज्योति ने पास जा कर उस का माथा छुआ. रोहन को बहुत तेज बुखार था. वह पानी ले कर आई. उस ने रोहन को जरा सहारा दे कर उठाया और पानी का गिलास उस के मुंह से लगाया. ‘‘क्या हाल बना लिया है भैया आप ने अपना?’’

‘‘ज्योति, फ्रिज में दवाइयां रखी हैं, जरा मुझे ला कर दे दो,’’ अस्फुट स्वर में रोहन ने कहा.

दवाई खा कर रोहन फिर से लेट गया. सुबह से पेट में कुछ गया नहीं था, उसे उबकाई सी महसूस हुई. ‘‘रोहन भैया, पहले कुछ खा लो, फिर सो जाना,’’ हाथ में एक तश्तरी लिए ज्योति उस के पास आई.

रोहन को तकिए के सहारे बिठा कर ज्योति ने उसे चम्मच से खिचड़ी खिलाई बिलकुल किसी मां की तरह जैसे अपने बच्चों को खिलाती है.

रोहन को अपनी मां की याद आ गई. आज कई दिनों बाद उसी प्यार से किसी ने उसे खिलाया था. दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो उस की तबीयत में सुधार था. बुखार अब उतर चुका था, लेकिन कमजोरी की वजह से उसे चलनेफिरने में दिक्कत हो रही थी. सुमित और मनीष ने उसे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी. साथ ही, हौसला भी बंधाया कि वह अकेला नहीं है.

ज्योति उस के लिए कभी दलिया तो कभी खिचड़ी पकाती और बड़े मनुहार से खिलाती. रोहन उसे अब दीदी बुलाने लगा था.

‘‘दीदी, आप को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं फिलहाल, मगर वादा करता हूं नौकरी लगते ही आप का सारा पैसा चुका दूंगा,’’ रोहन ने ज्योति से कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो रोहन भैया. आप बस, जल्दी से ठीक हो जाओ. मैं आप से पैसे नहीं लूंगी.’’

‘‘लेकिन, मुझे इस तरह मुफ्त का खाने में शर्म आती है,’’ रोहन उदास था.

‘‘भैया, मेरी एक बेटी है 10 साल की, स्कूल जाती है. मेरा सपना है कि मेरी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने. पर मेरे पास इतना वक्त नहीं कि उसे घर पर पढ़ा सकूं और उसे ट्यूशन भेजने की मेरी हैसियत नहीं है. घर का किराया, मुन्नी के स्कूल की फीस और राशनपानी के बाद बचता ही क्या है. अगर आप मेरी बेटी को ट्यूशन पढ़ा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी. आप से मैं खाना बनाने के पैसे नहीं लूंगी, समझ लूंगी वही मेरी पगार है.’’

बात तो ठीक थी. रोहन को भला क्या परेशानी होती. रोज शाम मुन्नी अब अपनी मां के साथ आने लगी. रोहन उसे दिल लगा कर पढ़ाता.

ज्योति कई घरों में काम करती थी. उस ने अपनी जानपहचान के एक बड़े साहब को रोहन का बायोडाटा दिया. रोहन को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. मेहनती और योग्य तो वह था ही, इस बार समय ने भी उस का साथ दिया और उस की नौकरी पक्की हो गई.

सुमित और मनीष भी खुश थे. रोहन सब से ज्यादा एहसानमंद ज्योति का था. जिस निस्वार्थ भाव से ज्योति ने उस की मदद की थी, रोहन के दिल में ज्योति का स्थान अब किसी सगी बहन से कम नहीं था. ज्योति भी रोहन की कामयाबी से खुश थी, साथ ही, उस की बेटी की पढ़ाई को ले कर चिंता भी हट चुकी थी. घर में जिस तरह बड़ी बहन का सम्मान होता है, कुछ ऐसा ही अब ज्योति का सुमित और उस के दोस्तों के घर में था.

ज्योति की उपस्थिति में ही बहुत बार नेहा मनीष से मिलने घर आती थी. शुरूशुरू में मनीष को कुछ झिझक हुई, मगर ज्योति अपने काम से मतलब रखती. वह दूसरी कामवाली बाइयों की तरह इन बातों को चुगली का साधन नहीं बनाती थी.

मनीष और नेहा की एक दिन किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई. ज्योति उस वक्त रसोई में अपना काम कर रही थी. दोनों की बातें उसे साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

मनीष के व्यवहार से आहत, रोती हुई नेहा वहां से चली गई. उस के जाने के बाद मनीष भी गुमसुम बैठ गया.

ज्योति आमतौर पर ऐसे मामले में नहीं पड़ती थी. वह अपने काम से काम रखती थी, मगर नेहा और मनीष को इस तरह लड़ते देख कर उस से रहा नहीं गया. उस ने मनीष से पूछा तो मनीष ने बताया कि कुछ महीनों से शादी की बात को ले कर नेहा के साथ उस की खटपट चल रही है.

‘‘लेकिन भैया, इस में गलत क्या है? कभी न कभी तो आप नेहा दीदी से शादी करेंगे ही.’’

‘‘यह शादी होनी बहुत मुश्किल है ज्योति. तुम नहीं समझोगी, मेरे घर वाले जातपांत पर बहुत यकीन करते हैं और नेहा हमारी जाति की नहीं है.’’

‘‘वैसे तो मुझे आप के मामले में बोलने का कोई हक नहीं है मनीष भैया, मगर एक बात कहना चाहती हूं.’’

मनीष ने प्रश्नात्मक ढंग से उस की तरफ देखा.

‘‘मेरी बात का बुरा मत मानिए मनीष भैया. नेहा दीदी को तो आप बहुत पहले से जानते हैं, मगर जातपांत का खयाल आप को अब आ रहा है. मैं भी एक औरत हूं. मैं समझ सकती हूं कि नेहा दीदी को कैसा लग रहा होगा जब आप ने उन्हें शादी के लिए मना किया होगा. इतना आसान नहीं होता किसी भी लड़की के लिए इतने लंबे अरसे बाद अचानक संबंध तोड़ लेना. यह समाज सिर्फ लड़की पर ही उंगली उठाता है. आप दोनों के रिश्ते की बात जान कर क्या भविष्य में उन की शादी में अड़चन नहीं आएगी? क्या नेहा दीदी और आप एकदूसरे को भूल पाएंगे? जरा इन बातों को सोच कर देखिए.

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May 17, 2022 at 11:45AM

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