Tuesday 31 May 2022

वेटिंग रूम- भाग1: सिद्धार्थ और जानकी की जिंदगी में क्या नया मोड़ आया

हाथ में एक छोटा सा हैंडबैग लिए हलके पीले रंग का चूड़ीदार कुरता पहने जानकी तेज कदमों से प्रतीक्षालय की ओर बढ़ी आ रही थी. यहां आ कर देखा तो प्रतीक्षालय यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था. बारिश की वजह से आज काफी गाडि़यां देरी से आ रही थीं. उस ने भीड़ में देखा, एक नौजवान एक कुरसी पर बैठा था तथा दूसरी पर अपना बैग रख कर उस पर टिक कर सो रहा था, पता नहीं सो रहा था या नहीं. एक बार उस ने सोचा कि उस नौजवान से कहे कि बैग को नीचे रखे ताकि एक यात्री वहां बैठ सके, परंतु कानों में लगे इयरफोंस, बिखरे बेढंगे बाल, घुटने से फटी जींस, ठोड़ी पर थोड़ी सी दाढ़ी, मानो किसी ने काले स्कैचपैन से बना दी हो, इस तरह के हुलिया वाले नौजवान से कुछ समझदारी की बात कहना उसे व्यर्थ लगा. वह चुपचाप प्रतीक्षालय के बाहर चली गई.

मनमाड़ स्टेशन के प्लेटफौर्म पर यात्रियों के लिए कुछ ढंग की व्यवस्था भी नहीं है, बाहर बड़ी मुश्किल से जानकी को बैठने के लिए एक जगह मिली. ट्रेन रात 2:30 बजे की थी और अभी शाम के 6:30 बजे थे. रोशनी मंद थी, फिर भी उस ने अपने बैग में से मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ निकाला और पढ़ने लगी. गाडि़यां आतीजाती रहीं. प्लेटफौर्म पर कभी भीड़ बढ़ जाती तो कभी एकदम गायब हो जाती. 8 बज चुके थे, प्लेटफौर्म पर अंधेरा हो गया था. प्लेटफौर्म की मंद बत्तियों से मोमबत्ती जैसी रोशनी आ रही थी. सारे दिन की बारिश के बाद मौसम में ठंडक घुल गई थी. जानकी ने एक बार फिर प्रतीक्षालय जा कर देखा तो वहां अब काफी जगह हो गई थी.

जानकी एक अनुकूल जगह देख कर वहां बैठ गई. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो लगभग 15-20 लोग अब भी प्रतीक्षालय में बैठे थे. वह नौजवान अब भी वहीं बैठा था. कुरसियां खाली होने का फायदा उठा कर अब वह आराम से लेट गया था. 2 लड़कियां थीं. पहनावे, बालों का ढंग और बातचीत के अंदाज से काफी आजाद खयालों वाली लग रही थीं. उन के अलावा कुछ और यात्री भी थे, जो जाने की तैयारी में लग रहे थे, शायद उन की गाड़ी के आने की घोषणा हो चुकी थी. जल्द ही उन की गाड़ी आ गई और अब प्रतीक्षालय में जानकी के अलावा सिर्फ वे 2 युवतियां और वह नौजवान था, जो अब सो कर उठ चुका था. देखने से तो वह किसी अच्छे घर का लगता था पर कुछ बिगड़ा हुआ, जैसे किसी की इकलौती संतान हो या 5-6 बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा हो.

नौजवान उठ कर बाहर गया और थोड़ी देर में चाय का गिलास ले कर वापस आया. अब तक जानकी दोबारा उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद युवतियों की आवाज तेज होने से उस का ध्यान उन पर गया. वे मौडर्न लड़कियां उस नौजवान में काफी रुचि लेती दिख रही थीं. नौजवान भी बारबार उन की तरफ देख रहा था. लग रहा था जैसे इस तरह वे तीनों टाइमपास कर रहे हों. जानकी को टाइमपास का यह तरीका अजीब लग रहा था. उन तीनों की ये नौटंकी काफी देर तक चलती रही. इस बीच प्रतीक्षालय में काफी यात्री आए और चले गए. जानकी को एहसास हो रहा था कि वह नौजवान कई बार उस का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा था, परंतु उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब तक 9:00 बज चुके थे. जानकी को अब भूख का एहसास होने लगा था. उस ने अपने साथ ब्रैड और मक्खन रखा था. आज यही उस का रात का खाना था. तभी किसी गाड़ी के आने की घोषणा हुई और वे लड़कियां सामान उठा कर चली गईं. अब 2-4 यात्रियों के अलावा प्रतीक्षालय में सिर्फ वह नौजवान और जानकी ही बचे थे. नौजवान को भी अब खाने की तलाश करनी थी. प्रतीक्षालय में जानकी ही उसे सब से पुरानी लगी, सो उस ने पास जा कर धीरे से उस से कहा, ‘‘एक्सक्यूज मी मैम, क्या मैं आप से थोड़ी सी मदद ले सकता हूं?’’

जानकी ने काफी आश्चर्य और असमंजस से नौजवान की तरफ देखा, थोड़ी घबराहट में बोली, ‘‘कहिए.’’ ‘‘मुझे खाना खाने जाना है, अगर आप की गाड़ी अभी न आ रही हो तो प्लीज मेरे सामान का ध्यान रख सकेंगी?’’ ‘‘ओके,’’ जानकी ने अतिसंक्षिप्त उत्तर दिया और नौजवान चला गया. लगभग 1 घंटे बाद वह वापस आया, जानकी को थैंक्स कहने के बहाने उस के पास आया और कहा, ‘‘यहां मनमाड़ में खाने के लिए कोई ढंग का होटल तक नहीं है.’’

‘‘अच्छा?’’ फिर जानकी ने कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करना उचित समझा.

‘‘आप यहां पहली बार आई हैं क्या?’’ बात को बढ़ाते हुए नौजवान ने पूछा.

‘‘जी हां.’’ जानकी ने नौजवान की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया. अब तक शायद नौजवान की समझ में आ गया था कि जानकी को उस से बात करने में ज्यादा रुचि नहीं है.

‘‘एनी वे, थैंक्स,’’ कह कर उस ने अपनी जगह पर जाना ही ठीक समझा. जानकी ने भी राहत की सांस ली. पिछले 4 घंटों में उस ने उस नौजवान के बारे में जितना समझा था, उस के बाद उस से बात करने की सोच भी नहीं सकती थी. जानकी की गाड़ी काफी देर से आने वाली थी. शुरू में उस ने पूछताछ खिड़की पर पूछा था तब उन्होंने 2:00 बजे तक आने को कहा था. अब न तो वह सो पा रही थी न कोई बातचीत करने के लिए ही था. किताब पढ़तेपढ़ते भी वह थक गई थी. वैसे भी प्रतीक्षालय में रोशनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पढ़ना मुश्किल हो रहा था. नौजवान को भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे. वैसे स्वभाव के मुताबिक उस की नजर बारबार जानकी की तरफ जा रही थी. यह बात जानकी को भी पता चल चुकी थी. वह दिखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन एक अनूठा सा आकर्षण था उस में. चेहरे पर गजब का तेज था. नौजवान ने कई बार सोचा कि उस के पास जा कर कुछ वार्त्तालाप करे लेकिन पहली बातचीत में उस के रूखे व्यवहार से उस की दोबारा हिम्मत नहीं हो रही थी. नौजवान फिर उठ कर बाहर गया. चाय के 2 गिलास ले कर बड़ी हिम्मत जुटा कर जानकी के पास जा कर कहा, ‘‘मैम, चाय.’’ इस से पहले कि जानकी कुछ समझ या बोल पाती, उस ने एक गिलास जानकी की ओर बढ़ा दिया. जानकी ने चाय लेते हुए धीरे से मुसकरा कर कहा, ‘‘थैंक्स.’’ नौजवान को हिम्मत देने के लिए इतना काफी था. थोड़ी औपचारिक भाषा में कहा, ‘‘क्या मैं आप से थोड़ी देर बातें कर सकता हूं?’’

जानकी कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘बैठिए.’’

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हाथ में एक छोटा सा हैंडबैग लिए हलके पीले रंग का चूड़ीदार कुरता पहने जानकी तेज कदमों से प्रतीक्षालय की ओर बढ़ी आ रही थी. यहां आ कर देखा तो प्रतीक्षालय यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था. बारिश की वजह से आज काफी गाडि़यां देरी से आ रही थीं. उस ने भीड़ में देखा, एक नौजवान एक कुरसी पर बैठा था तथा दूसरी पर अपना बैग रख कर उस पर टिक कर सो रहा था, पता नहीं सो रहा था या नहीं. एक बार उस ने सोचा कि उस नौजवान से कहे कि बैग को नीचे रखे ताकि एक यात्री वहां बैठ सके, परंतु कानों में लगे इयरफोंस, बिखरे बेढंगे बाल, घुटने से फटी जींस, ठोड़ी पर थोड़ी सी दाढ़ी, मानो किसी ने काले स्कैचपैन से बना दी हो, इस तरह के हुलिया वाले नौजवान से कुछ समझदारी की बात कहना उसे व्यर्थ लगा. वह चुपचाप प्रतीक्षालय के बाहर चली गई.

मनमाड़ स्टेशन के प्लेटफौर्म पर यात्रियों के लिए कुछ ढंग की व्यवस्था भी नहीं है, बाहर बड़ी मुश्किल से जानकी को बैठने के लिए एक जगह मिली. ट्रेन रात 2:30 बजे की थी और अभी शाम के 6:30 बजे थे. रोशनी मंद थी, फिर भी उस ने अपने बैग में से मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ निकाला और पढ़ने लगी. गाडि़यां आतीजाती रहीं. प्लेटफौर्म पर कभी भीड़ बढ़ जाती तो कभी एकदम गायब हो जाती. 8 बज चुके थे, प्लेटफौर्म पर अंधेरा हो गया था. प्लेटफौर्म की मंद बत्तियों से मोमबत्ती जैसी रोशनी आ रही थी. सारे दिन की बारिश के बाद मौसम में ठंडक घुल गई थी. जानकी ने एक बार फिर प्रतीक्षालय जा कर देखा तो वहां अब काफी जगह हो गई थी.

जानकी एक अनुकूल जगह देख कर वहां बैठ गई. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो लगभग 15-20 लोग अब भी प्रतीक्षालय में बैठे थे. वह नौजवान अब भी वहीं बैठा था. कुरसियां खाली होने का फायदा उठा कर अब वह आराम से लेट गया था. 2 लड़कियां थीं. पहनावे, बालों का ढंग और बातचीत के अंदाज से काफी आजाद खयालों वाली लग रही थीं. उन के अलावा कुछ और यात्री भी थे, जो जाने की तैयारी में लग रहे थे, शायद उन की गाड़ी के आने की घोषणा हो चुकी थी. जल्द ही उन की गाड़ी आ गई और अब प्रतीक्षालय में जानकी के अलावा सिर्फ वे 2 युवतियां और वह नौजवान था, जो अब सो कर उठ चुका था. देखने से तो वह किसी अच्छे घर का लगता था पर कुछ बिगड़ा हुआ, जैसे किसी की इकलौती संतान हो या 5-6 बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा हो.

नौजवान उठ कर बाहर गया और थोड़ी देर में चाय का गिलास ले कर वापस आया. अब तक जानकी दोबारा उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद युवतियों की आवाज तेज होने से उस का ध्यान उन पर गया. वे मौडर्न लड़कियां उस नौजवान में काफी रुचि लेती दिख रही थीं. नौजवान भी बारबार उन की तरफ देख रहा था. लग रहा था जैसे इस तरह वे तीनों टाइमपास कर रहे हों. जानकी को टाइमपास का यह तरीका अजीब लग रहा था. उन तीनों की ये नौटंकी काफी देर तक चलती रही. इस बीच प्रतीक्षालय में काफी यात्री आए और चले गए. जानकी को एहसास हो रहा था कि वह नौजवान कई बार उस का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा था, परंतु उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब तक 9:00 बज चुके थे. जानकी को अब भूख का एहसास होने लगा था. उस ने अपने साथ ब्रैड और मक्खन रखा था. आज यही उस का रात का खाना था. तभी किसी गाड़ी के आने की घोषणा हुई और वे लड़कियां सामान उठा कर चली गईं. अब 2-4 यात्रियों के अलावा प्रतीक्षालय में सिर्फ वह नौजवान और जानकी ही बचे थे. नौजवान को भी अब खाने की तलाश करनी थी. प्रतीक्षालय में जानकी ही उसे सब से पुरानी लगी, सो उस ने पास जा कर धीरे से उस से कहा, ‘‘एक्सक्यूज मी मैम, क्या मैं आप से थोड़ी सी मदद ले सकता हूं?’’

जानकी ने काफी आश्चर्य और असमंजस से नौजवान की तरफ देखा, थोड़ी घबराहट में बोली, ‘‘कहिए.’’ ‘‘मुझे खाना खाने जाना है, अगर आप की गाड़ी अभी न आ रही हो तो प्लीज मेरे सामान का ध्यान रख सकेंगी?’’ ‘‘ओके,’’ जानकी ने अतिसंक्षिप्त उत्तर दिया और नौजवान चला गया. लगभग 1 घंटे बाद वह वापस आया, जानकी को थैंक्स कहने के बहाने उस के पास आया और कहा, ‘‘यहां मनमाड़ में खाने के लिए कोई ढंग का होटल तक नहीं है.’’

‘‘अच्छा?’’ फिर जानकी ने कम से कम शब्दों का इस्तेमाल करना उचित समझा.

‘‘आप यहां पहली बार आई हैं क्या?’’ बात को बढ़ाते हुए नौजवान ने पूछा.

‘‘जी हां.’’ जानकी ने नौजवान की ओर देखे बिना ही उत्तर दिया. अब तक शायद नौजवान की समझ में आ गया था कि जानकी को उस से बात करने में ज्यादा रुचि नहीं है.

‘‘एनी वे, थैंक्स,’’ कह कर उस ने अपनी जगह पर जाना ही ठीक समझा. जानकी ने भी राहत की सांस ली. पिछले 4 घंटों में उस ने उस नौजवान के बारे में जितना समझा था, उस के बाद उस से बात करने की सोच भी नहीं सकती थी. जानकी की गाड़ी काफी देर से आने वाली थी. शुरू में उस ने पूछताछ खिड़की पर पूछा था तब उन्होंने 2:00 बजे तक आने को कहा था. अब न तो वह सो पा रही थी न कोई बातचीत करने के लिए ही था. किताब पढ़तेपढ़ते भी वह थक गई थी. वैसे भी प्रतीक्षालय में रोशनी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पढ़ना मुश्किल हो रहा था. नौजवान को भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे. वैसे स्वभाव के मुताबिक उस की नजर बारबार जानकी की तरफ जा रही थी. यह बात जानकी को भी पता चल चुकी थी. वह दिखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन एक अनूठा सा आकर्षण था उस में. चेहरे पर गजब का तेज था. नौजवान ने कई बार सोचा कि उस के पास जा कर कुछ वार्त्तालाप करे लेकिन पहली बातचीत में उस के रूखे व्यवहार से उस की दोबारा हिम्मत नहीं हो रही थी. नौजवान फिर उठ कर बाहर गया. चाय के 2 गिलास ले कर बड़ी हिम्मत जुटा कर जानकी के पास जा कर कहा, ‘‘मैम, चाय.’’ इस से पहले कि जानकी कुछ समझ या बोल पाती, उस ने एक गिलास जानकी की ओर बढ़ा दिया. जानकी ने चाय लेते हुए धीरे से मुसकरा कर कहा, ‘‘थैंक्स.’’ नौजवान को हिम्मत देने के लिए इतना काफी था. थोड़ी औपचारिक भाषा में कहा, ‘‘क्या मैं आप से थोड़ी देर बातें कर सकता हूं?’’

जानकी कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘बैठिए.’’

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June 01, 2022 at 03:32AM

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