Saturday 28 May 2022

वो बांझ औरत: शिखा के बच्चे वर्तिका को क्यों चाहने लगे?

‘‘अरे, ऐसे उदास क्यों बैठी हो?’’ उदास बैठी शिखा के कंधे पर हाथ रखते हुए अभय ने पूछा. अपने मनोभावों को छिपाते हुए शिखा हड़बड़ा कर उठी, ‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही बैठी थी. आप के लिए चाय बना दूं?’’

शिखा के माथे पर खिंची लकीरों को देख कर अभय को अंदाजा तो हो गया था कि कोई तो विशेष घटना घटित हुई है. अभय ने रसोईघर में शिखा के पास जा कर प्यार से पूछा, ‘‘शिखा, तुम्हारे चेहरे पर उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती. क्या बात है, बताओ न?’’ अभय के प्रेमपूर्ण स्पर्श ने जैसे उस के तपते मन पर बर्फ सी रख दी.

शिखा की आंखें पिघल उठीं, ‘‘क्या मैं इस कलंक से मुक्त नहीं हो सकती, अभय?’’

अभय उस के दिल की बात समझ गया. उसे सोफे पर बैठाया. खुद ही दोनों की चाय कप में पलट कर लाया और फिर प्रेम से पूछा, ‘‘क्या हो गया आज जो तुम्हारा दिल इतना भर आया है? क्या घर से फोन आया था?’’ शिखा ने न में सिर हिला दिया. अभय के बारबार पूछने पर आंखों में रुकी नदी बहने ही लगी, ‘‘शाम को तुम्हारे आने से पहले वर्तिका के घर बच्चों के लिए इडलीसांभर ले कर गई थी…’’

‘‘अच्छा, फिर?’’

‘‘वर्तिका भाईसाहब से कह रही थी कि आज सुबह उस मनहूस बांझ का मुंह देख कर गए थे इसलिए सब काम बिगड़ गया,’’ इतना कहते ही वह अभय से लिपट कर रोने लगी.

‘‘इतनी छोटी बात कर दी भाभीजी ने…’’ अभय भी अब थोड़ा गंभीर

हो चला.

आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘सुबह औफिस जाने से पहले मैं ने भाईसाहब के प्रोजैक्ट के बारे में पूछा था. वह बड़ा प्रोजैक्ट उन के हाथों से निकल गया.’’

‘‘ओह, तो इस में तुम्हारा क्या दोष?’’ अभय शिखा को सीने से लगा कर शांत करने का प्रयास करने लगा. आज तक वह खुद को और उस को अपशब्दों की आग से बचाने की कोशिश ही करता रहा है.

‘‘अभय, मैं वापस जा रही थी कि वर्तिका की आवाज आई कि कौन है तो बच्चे धीमे से बोले कि अरे, वही पड़ोस वाली मनहूस आंटी थीं. ये शब्द मुझे भीतर तक छलनी कर गए,’’ फिर पुरानी बातें याद कर के शिखा रोतेरोते ही सो गई.

शिखा की शादी हुए 8 सावन बीत चुके थे लेकिन उस की गोद हरी नहीं हुई थी. संतानसुख पाने के लिए उन्होंने कितने ही जतन किए पर कुदरत की इच्छा के सामने दोनों असहाय हो गए. एक तो पारिवारिक दुख से वैसे ही आदमी अधमरा हो जाता है, उस पर इंसान भी इंसान को दर्द देने में पीछे नहीं रहता है. अपने कसबे की छोटी सोच के तानों से बचने के लिए ही वे दोनों इस अनजान शहर में आ कर बस गए थे. यहां हर समय लोग दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में दखलंदाजी नहीं करते थे.

निजी जीवन में अधिक ताकझांक से मुक्त वे दोनों शांति से जी रहे थे. लेकिन इस घटना ने उन का यह भ्रम भी तोड़ दिया. जाहिर है, इस घटना के बाद से शिखा ने वर्तिका से बोलचाल बंद कर दी. उस के मन में घृणा के अंकुर फूट चुके थे.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में कुहराम मचा दिया. लौकडाउन की जीवनचर्या ने अवसाद को चरम पर पहुंचा दिया था. चारदीवारी के भीतर घुटन के क्षणों से कुछ मुक्ति मिली ही थी कि कोविड की दूसरी लहर ने महाविनाश शुरू कर दिया. बोरियत से बचने के लिए शिखा औनलाइन हौबी क्लास में अपना समय व्यतीत करती थी. उस समय अभय वर्क फ्रौम होम के कारण घर पर ही रहता था.

एक दिन शाम को घर की घंटी बजी.

‘इस समय कौन होगा…’ यह

सोचते हुए अभय ने दरवाजा खोला. बाहर वर्तिका का पति पारस बहुत अधिक परेशान मुद्रा में खड़ा था, ‘‘क्या हुआ भाईसाहब, सब खैरियत?’’ अभय ने उन की परेशानी की रेखाएं पढ़ते हुए पूछा.

‘‘भाईसाहब, वर्तिका का औक्सीजन लैवल बहुत डाउन हो गया है, उसे अस्पताल में भरती कराने जा रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी कीजिए. बताइए मैं भी चलूं?’’ अभय ने अपना मास्क ठीक करते हुए कहा.

पारस ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब घर में दोनों बच्चे अकेले हैं, आप और भाभीजी उन का ध्यान रखिएगा.’’

‘‘जी जरूर, आप निश्ंिचत रहिए. भाभीजी को जल्दी अस्पताल पहुंचाइए.’’

अंदर शिखा दोनों की बातचीत सुन रही थी. पारस के जाते ही उस ने तुरंत अभय को टोका, ‘‘आप भी कितने नासमझ बनते हैं. वर्तिका को कोरोना है. घर के सभी सदस्य संदेह के घेरे में हैं. हम क्या मदद कर सकते हैं?’’

‘‘अरे, ऐसी समस्या आई है, मदद तो करनी ही होगी.’’

‘‘अपने दुनियाभर के रईस रिश्तेदारों का गाना गाते हैं, उन्हीं को बुला लें न.’’

‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो, इस लौकडाउन में कोरोना के डर से कौन रिश्तेदार आ जाएगा?’’

शिखा का तो रत्तीभर मन नहीं था लेकिन अभय की नाराजगी के आगे उस की एक नहीं चली. वह फोन पर पारस से कुशलक्षेम पूछता, वह भी शिखा को बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था.

2 दिन ही बीत पाए थे कि पारस की रिपोर्ट भी कोरोना पौजिटिव आ गई. अब तो स्थिति बहुत खराब हो गई.

कोई रिश्तेदार मदद को आ नहीं पाया. उन के दोनों बच्चों दिव्यांश और सृष्टि की देखरेख की जिम्मेदारी अभय ने ले ली. शिखा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. इसी कारण दोनों के बीच तल्खियां भी बढ़ गई थीं.

शिखा जब भी दोनों बच्चों का खाना पैक करती तो उस के घृणास्पद हावभाव से अभय का मन खिन्न हो जाता. वह वर्तिका को निशाना बना कर कुछ न कुछ बड़बड़ाती ही रहती. इसी कारण बच्चों की रिपोर्ट नैगेटिव होने के बावजूद अभय उन को घर नहीं लाया.

अभय ने अगले दिन स्वयं पर नियंत्रण करते हुए शिखा से बच्चों को घर लाने का अनुरोध किया. उस ने उस की मनोदशा समझते हुए प्यार से समझाया, ‘‘देखो शिखा, हमारे कर्म हमारे साथ हैं और दूसरे के उस के साथ. हमें अपने खाते में अच्छी चीजें रखनी हैं या दूसरों की तरह कंकड़पत्थर…’’

शिखा ने अभय की बात का जवाब नहीं दिया. अभय ने मोबाइल में दिव्यांश और सृष्टि का वीडियो दिखाया जिस में वे मम्मीपापा से रोते हुए प्यार जता रहे थे और जल्दी सही होने की मनोकामना कर रहे थे उस वीडियो को देखने के बाद शिखा एकदम चुप हो गई और चुपचाप खाना बनाने लगी. उस रात वह सही से सो नहीं पाई. अंतर्मन के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों का आपस में टकराव होता रहा. इसी द्वंद्व में वह कब सो गई, उसे पता ही न चला.

सुबह पता चला कि वर्तिका की सांसें उस का साथ छोड़ चुकी थीं. शिखा को दिल में धक्का सा लगा. वर्तिका और उस के परिवार के सब सदस्यों के चेहरे एकएक कर के सामने आते और उन के अंतस को उद्वेलित कर के चले जाते.

पारस के बड़े भाईसाहब आ चुके थे. दिव्यांश और सृष्टि की रोने की आवाजें बाहर से ही सुनाई देनी शुरू हो गई थीं. शिखा ने बिलखते हुए बच्चों का रुदन देखा तो अंदर तक सिहर गई. 9 साल का दिव्यांश और 4 साल की सृष्टि बिना मां के कैसे रहेंगे… वह सोचती ही रही. काल की क्रूर आंधी यहीं नहीं ठहरी. 2 दिनों बाद ही पारस का भी हृदयगति रुकने से देहांत हो गया. इस खबर के साथ ही शिखा का दिल बैठ गया. अचानक से हुए इस घटनाक्रम में अतीत चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने चलने लगा. वर्तिका और पारस के साथ बिताए स्नेहपूर्ण 3 सालों के दृश्य आंखों के आगे आते और धुआं हो जाते. बस, एक दुर्भावना ने इस सौहार्दपूर्ण संबंध को फीका कर दिया था.

बच्चों को अपने मातापिता से आखिरी समय मिलना भी नसीब न हो सका. संवेदनाओं में डूबी शिखा निकलतेबैठते खिड़की से वर्तिका के घर को ही ताकती रही. शाम को उदासीभरी खामोशी तोड़ते हुए उस ने भरी आंखों से अभय को देखा और कहा, ‘‘अभय, वर्तिका के परिवार पर जो बीती उस ने मेरा मन बहुत झकझोर दिया है.’’

‘‘क्या कर सकते हैं, हम सब बेबस हैं,’’ अभय ने आंखें बंद करते हुए कहा.

‘‘अभय, मैं ने बहुत सोचा तो पाया कि अब उन बच्चों का कोई भविष्य नहीं है.’’

‘‘शिखा, ज्यादा परेशान मत हो. हमारे बस में कुछ नहीं.’’ शिखा चुप हो गई.

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम? क्या हम उन दोनों बच्चों को हमेशा के लिए अपने पास नहीं रख सकते?’’ अभय यह सुन कर अवाक रह गया. शिखा की तरफ से इतने बड़े फैसले पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. कानूनीतौर से हो पाए या नहीं लेकिन मैं उन दोनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उठाने को तैयार हूं, उन की मां की तरह. आप घर वालों से बात कर के देखिए.

अभय एकटक शिखा का ममताभरा चेहरा देखता ही रह गया. शिखा की आंखों से करुणा का झरना फूट पड़ा था, जो उस के पथरीले विचारों को पूरी तरह भिगो चुका था. आज तो अभय की आंखों में भी पानी की बूंदें उतरने लगीं. समय की गरम आंच में शिखा के मन के सभी बुरे भाव जल चुके थे. अब उस के आंचल में केवल ममता ही ममता भरी थी, जिस ने उसे 2 बच्चों की मां बना दिया था.

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‘‘अरे, ऐसे उदास क्यों बैठी हो?’’ उदास बैठी शिखा के कंधे पर हाथ रखते हुए अभय ने पूछा. अपने मनोभावों को छिपाते हुए शिखा हड़बड़ा कर उठी, ‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही बैठी थी. आप के लिए चाय बना दूं?’’

शिखा के माथे पर खिंची लकीरों को देख कर अभय को अंदाजा तो हो गया था कि कोई तो विशेष घटना घटित हुई है. अभय ने रसोईघर में शिखा के पास जा कर प्यार से पूछा, ‘‘शिखा, तुम्हारे चेहरे पर उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती. क्या बात है, बताओ न?’’ अभय के प्रेमपूर्ण स्पर्श ने जैसे उस के तपते मन पर बर्फ सी रख दी.

शिखा की आंखें पिघल उठीं, ‘‘क्या मैं इस कलंक से मुक्त नहीं हो सकती, अभय?’’

अभय उस के दिल की बात समझ गया. उसे सोफे पर बैठाया. खुद ही दोनों की चाय कप में पलट कर लाया और फिर प्रेम से पूछा, ‘‘क्या हो गया आज जो तुम्हारा दिल इतना भर आया है? क्या घर से फोन आया था?’’ शिखा ने न में सिर हिला दिया. अभय के बारबार पूछने पर आंखों में रुकी नदी बहने ही लगी, ‘‘शाम को तुम्हारे आने से पहले वर्तिका के घर बच्चों के लिए इडलीसांभर ले कर गई थी…’’

‘‘अच्छा, फिर?’’

‘‘वर्तिका भाईसाहब से कह रही थी कि आज सुबह उस मनहूस बांझ का मुंह देख कर गए थे इसलिए सब काम बिगड़ गया,’’ इतना कहते ही वह अभय से लिपट कर रोने लगी.

‘‘इतनी छोटी बात कर दी भाभीजी ने…’’ अभय भी अब थोड़ा गंभीर

हो चला.

आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘सुबह औफिस जाने से पहले मैं ने भाईसाहब के प्रोजैक्ट के बारे में पूछा था. वह बड़ा प्रोजैक्ट उन के हाथों से निकल गया.’’

‘‘ओह, तो इस में तुम्हारा क्या दोष?’’ अभय शिखा को सीने से लगा कर शांत करने का प्रयास करने लगा. आज तक वह खुद को और उस को अपशब्दों की आग से बचाने की कोशिश ही करता रहा है.

‘‘अभय, मैं वापस जा रही थी कि वर्तिका की आवाज आई कि कौन है तो बच्चे धीमे से बोले कि अरे, वही पड़ोस वाली मनहूस आंटी थीं. ये शब्द मुझे भीतर तक छलनी कर गए,’’ फिर पुरानी बातें याद कर के शिखा रोतेरोते ही सो गई.

शिखा की शादी हुए 8 सावन बीत चुके थे लेकिन उस की गोद हरी नहीं हुई थी. संतानसुख पाने के लिए उन्होंने कितने ही जतन किए पर कुदरत की इच्छा के सामने दोनों असहाय हो गए. एक तो पारिवारिक दुख से वैसे ही आदमी अधमरा हो जाता है, उस पर इंसान भी इंसान को दर्द देने में पीछे नहीं रहता है. अपने कसबे की छोटी सोच के तानों से बचने के लिए ही वे दोनों इस अनजान शहर में आ कर बस गए थे. यहां हर समय लोग दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में दखलंदाजी नहीं करते थे.

निजी जीवन में अधिक ताकझांक से मुक्त वे दोनों शांति से जी रहे थे. लेकिन इस घटना ने उन का यह भ्रम भी तोड़ दिया. जाहिर है, इस घटना के बाद से शिखा ने वर्तिका से बोलचाल बंद कर दी. उस के मन में घृणा के अंकुर फूट चुके थे.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में कुहराम मचा दिया. लौकडाउन की जीवनचर्या ने अवसाद को चरम पर पहुंचा दिया था. चारदीवारी के भीतर घुटन के क्षणों से कुछ मुक्ति मिली ही थी कि कोविड की दूसरी लहर ने महाविनाश शुरू कर दिया. बोरियत से बचने के लिए शिखा औनलाइन हौबी क्लास में अपना समय व्यतीत करती थी. उस समय अभय वर्क फ्रौम होम के कारण घर पर ही रहता था.

एक दिन शाम को घर की घंटी बजी.

‘इस समय कौन होगा…’ यह

सोचते हुए अभय ने दरवाजा खोला. बाहर वर्तिका का पति पारस बहुत अधिक परेशान मुद्रा में खड़ा था, ‘‘क्या हुआ भाईसाहब, सब खैरियत?’’ अभय ने उन की परेशानी की रेखाएं पढ़ते हुए पूछा.

‘‘भाईसाहब, वर्तिका का औक्सीजन लैवल बहुत डाउन हो गया है, उसे अस्पताल में भरती कराने जा रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी कीजिए. बताइए मैं भी चलूं?’’ अभय ने अपना मास्क ठीक करते हुए कहा.

पारस ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब घर में दोनों बच्चे अकेले हैं, आप और भाभीजी उन का ध्यान रखिएगा.’’

‘‘जी जरूर, आप निश्ंिचत रहिए. भाभीजी को जल्दी अस्पताल पहुंचाइए.’’

अंदर शिखा दोनों की बातचीत सुन रही थी. पारस के जाते ही उस ने तुरंत अभय को टोका, ‘‘आप भी कितने नासमझ बनते हैं. वर्तिका को कोरोना है. घर के सभी सदस्य संदेह के घेरे में हैं. हम क्या मदद कर सकते हैं?’’

‘‘अरे, ऐसी समस्या आई है, मदद तो करनी ही होगी.’’

‘‘अपने दुनियाभर के रईस रिश्तेदारों का गाना गाते हैं, उन्हीं को बुला लें न.’’

‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो, इस लौकडाउन में कोरोना के डर से कौन रिश्तेदार आ जाएगा?’’

शिखा का तो रत्तीभर मन नहीं था लेकिन अभय की नाराजगी के आगे उस की एक नहीं चली. वह फोन पर पारस से कुशलक्षेम पूछता, वह भी शिखा को बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था.

2 दिन ही बीत पाए थे कि पारस की रिपोर्ट भी कोरोना पौजिटिव आ गई. अब तो स्थिति बहुत खराब हो गई.

कोई रिश्तेदार मदद को आ नहीं पाया. उन के दोनों बच्चों दिव्यांश और सृष्टि की देखरेख की जिम्मेदारी अभय ने ले ली. शिखा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. इसी कारण दोनों के बीच तल्खियां भी बढ़ गई थीं.

शिखा जब भी दोनों बच्चों का खाना पैक करती तो उस के घृणास्पद हावभाव से अभय का मन खिन्न हो जाता. वह वर्तिका को निशाना बना कर कुछ न कुछ बड़बड़ाती ही रहती. इसी कारण बच्चों की रिपोर्ट नैगेटिव होने के बावजूद अभय उन को घर नहीं लाया.

अभय ने अगले दिन स्वयं पर नियंत्रण करते हुए शिखा से बच्चों को घर लाने का अनुरोध किया. उस ने उस की मनोदशा समझते हुए प्यार से समझाया, ‘‘देखो शिखा, हमारे कर्म हमारे साथ हैं और दूसरे के उस के साथ. हमें अपने खाते में अच्छी चीजें रखनी हैं या दूसरों की तरह कंकड़पत्थर…’’

शिखा ने अभय की बात का जवाब नहीं दिया. अभय ने मोबाइल में दिव्यांश और सृष्टि का वीडियो दिखाया जिस में वे मम्मीपापा से रोते हुए प्यार जता रहे थे और जल्दी सही होने की मनोकामना कर रहे थे उस वीडियो को देखने के बाद शिखा एकदम चुप हो गई और चुपचाप खाना बनाने लगी. उस रात वह सही से सो नहीं पाई. अंतर्मन के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों का आपस में टकराव होता रहा. इसी द्वंद्व में वह कब सो गई, उसे पता ही न चला.

सुबह पता चला कि वर्तिका की सांसें उस का साथ छोड़ चुकी थीं. शिखा को दिल में धक्का सा लगा. वर्तिका और उस के परिवार के सब सदस्यों के चेहरे एकएक कर के सामने आते और उन के अंतस को उद्वेलित कर के चले जाते.

पारस के बड़े भाईसाहब आ चुके थे. दिव्यांश और सृष्टि की रोने की आवाजें बाहर से ही सुनाई देनी शुरू हो गई थीं. शिखा ने बिलखते हुए बच्चों का रुदन देखा तो अंदर तक सिहर गई. 9 साल का दिव्यांश और 4 साल की सृष्टि बिना मां के कैसे रहेंगे… वह सोचती ही रही. काल की क्रूर आंधी यहीं नहीं ठहरी. 2 दिनों बाद ही पारस का भी हृदयगति रुकने से देहांत हो गया. इस खबर के साथ ही शिखा का दिल बैठ गया. अचानक से हुए इस घटनाक्रम में अतीत चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने चलने लगा. वर्तिका और पारस के साथ बिताए स्नेहपूर्ण 3 सालों के दृश्य आंखों के आगे आते और धुआं हो जाते. बस, एक दुर्भावना ने इस सौहार्दपूर्ण संबंध को फीका कर दिया था.

बच्चों को अपने मातापिता से आखिरी समय मिलना भी नसीब न हो सका. संवेदनाओं में डूबी शिखा निकलतेबैठते खिड़की से वर्तिका के घर को ही ताकती रही. शाम को उदासीभरी खामोशी तोड़ते हुए उस ने भरी आंखों से अभय को देखा और कहा, ‘‘अभय, वर्तिका के परिवार पर जो बीती उस ने मेरा मन बहुत झकझोर दिया है.’’

‘‘क्या कर सकते हैं, हम सब बेबस हैं,’’ अभय ने आंखें बंद करते हुए कहा.

‘‘अभय, मैं ने बहुत सोचा तो पाया कि अब उन बच्चों का कोई भविष्य नहीं है.’’

‘‘शिखा, ज्यादा परेशान मत हो. हमारे बस में कुछ नहीं.’’ शिखा चुप हो गई.

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम? क्या हम उन दोनों बच्चों को हमेशा के लिए अपने पास नहीं रख सकते?’’ अभय यह सुन कर अवाक रह गया. शिखा की तरफ से इतने बड़े फैसले पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. कानूनीतौर से हो पाए या नहीं लेकिन मैं उन दोनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उठाने को तैयार हूं, उन की मां की तरह. आप घर वालों से बात कर के देखिए.

अभय एकटक शिखा का ममताभरा चेहरा देखता ही रह गया. शिखा की आंखों से करुणा का झरना फूट पड़ा था, जो उस के पथरीले विचारों को पूरी तरह भिगो चुका था. आज तो अभय की आंखों में भी पानी की बूंदें उतरने लगीं. समय की गरम आंच में शिखा के मन के सभी बुरे भाव जल चुके थे. अब उस के आंचल में केवल ममता ही ममता भरी थी, जिस ने उसे 2 बच्चों की मां बना दिया था.

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May 28, 2022 at 09:59AM

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