‘‘हूं, तो आ गई भागवंती. कितनी बार कहा कि थोड़ा जल्दी आया कर, पर तू सुने तब न. खैर, चल जल्दीजल्दी सफाई कर ले, मु?ो भी बाहर जाना है,’’ कह कर मैं आश्वस्त हो कर फैले हुए कपड़े समेटने लगी, पर भागवंती बुत बनी खड़ी रही. उसे देख कर मैं बोली, ‘‘क्या बात है, खड़ी क्यों है?’’
‘‘बीबीजी…’’
‘‘हांहां, बोल, क्या बात है?’’
‘‘बीबीजी, मेरी लड़की…’’ कह कर वह फिर चुप हो गई.
‘‘लड़की, क्या हुआ तुम्हारी लड़की को?’’ मैं ने थोड़ा घबरा कर पूछा.
‘‘कल होली है न, बीबीजी. वह आज शाम दामाद के साथ आ रही है.’’
‘‘ओह,’’ मैं ने आह भरी, ‘‘बड़ी पागल है तू. इस में घबराने की क्या बात है? तू ने तो मु?ो डरा ही दिया था. जा, अब जल्दी काम कर.’’
‘‘बीबीजी, कुछ रुपए मिल जाते तो…’’
‘‘रुपए? लेकिन अभी तो महीने के
7 दिन ही गुजरे हैं,’’ फिर कुछ सोच कर मैं बोली, ‘‘कितने रुपए चाहिए?’’
‘‘300 रुपए, बीबीजी,’’ वह बहुत धीमी आवाज में बोली और याचनाभरी नजरों से मु?ो घूरने लगी.
मैं असमंजस में पड़ गई कि इसे इतने रुपए कहां से दूं. सोचा, मना कर दूं, पर उस की याचनामिश्रित, आशापरक नजरों ने मु?ो ऐसा करने से रोक दिया.
मैं कोठी वाली बीबीजी थी, पर मेरा हाल भी रेशमी परदे वाले उस घर की तरह ही था जिस के अंदर गरीबी अपने पूरे साजशृंगार के साथ दुलहन बनी बैठी थी. हां, इतना जरूर है कि दो जून भरपेट खाने को रोटी इज्जत के साथ मिल जाती है. ससुरजी मरने से पहले कोठी बना मेरे नाम कर गए और मैं कोठी वाली बीबीजी बन बैठी.
मैं ने भागवंती की ओर देखा, वह अभी तक टकटकी लगाए खड़ी थी. अचानक मु?ो कुछ याद आया और मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ उसे रुपयों के लिए स्वीकृति दे दी. अपने सांवले, ?ार्रियों वाले चेहरे पर लुढ़क आए आंसू उस ने ?ाट से अपने आंचल से पोंछे और आश्वस्त हो कर दोगुने जोश में काम में जुट गई. बीचबीच में बड़बड़ा रही थी, ‘आप बहुत दयालु हैं, मेरी तो यही दुआएं हैं कि आप के एक का लाखों बने.’
मैं चुपचाप पलंग पर लेट गई और आंखें बंद कर 20 बरस पुरानी यादों में खो गई.
तब मैं बहुत छोटी थी. बड़ी दीदी शादी के बाद पहली बार ससुराल से होली के अवसर पर आ रही थीं. 2 दिनों पहले ही पिताजी के औफिस में चिट्ठी आई थी और उन्होंने एक क्षण भी जाया न कर के अग्रिम वेतन व साइकिल के लिए अर्जी दे दी थी. काफी दौड़धूप व सिफारिश के बाद दूसरे ही दिन अग्रिम वेतन व साइकिल प्राप्त कर वे औफिस से जल्दी घर आ गए थे.
उस दिन मांपिताजी दोनों ही खुश थे. मां ने शाम को सामान की लंबी लिस्ट पिताजी के सुपुर्द कर उन की साइकिल पर बड़ेबड़े 2 ?ाले करीने से टांग दिए. पिताजी के जाने के बाद मां छोटी दीदी को सम?ाने लगीं, ‘कल गुडि़या आ रही है, सीमू. घर चमका दे.’
‘‘हां, अलमारी के पेपर भी बदल देना वरना जीजाजी कहेंगे, कितनी गंदी है मेरी साली,’ मेरे भाई ने मुंह थोड़ा टेढ़ा कर के नाटकीय अंदाज में कहा, तो सभी हंस पड़े. फिर मां ने उस का कान पकड़ कर कहा, ‘चल यहां से, बहुत बोलता है. देख, कहीं जाले तो नहीं हैं. ठीक से साफ कर दे,’ इतना कह कर मां रसोई में जा कर व्यस्त हो गईं.
रात काफी देर तक हम लोग दीदी की बातें करते सो गए पर मांपिताजी जाने कितनी देर तक खुसुरफुसुर करते रहे. मां ने सवेरे सब को जल्दी उठा दिया. सब लोग नहाधो कर तैयार हो गए. महरी अपनी साड़ी समेटे हंसती हुई आंगन धो रही थी और मां न जाने उसे क्याक्या निर्देश देती जा रही थीं. हम सब की निगाहें द्वार पर टिकी थीं. क्योंकि ट्रेन आ जाने की सूचना पिताजी से मिल गई थी. एकाएक एक तिपहिया स्कूटर घर के पास आ कर रुक गया.
दीदी स्कूटर से उतरीं. वे पहले से बहुत सुंदर लग रही थीं. मु?ो देख कर वे मुसकराईं, फिर ?ाक कर मेरे गाल थपथपाते हुए बोलीं, ‘क्यों, मु?ो पहचान नहीं रही है क्या?’ फिर वे मेरा हाथ पकड़ कर अंदर आ गईं. अंदर आ कर मांपिताजी ने उन्हें कलेजे से लगाया. उन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. हम सब दीदी को घेर कर बैठ गए. सारा दिन धमाचौकड़ी होती रही. घर खुशियों से भर गया था. घर में अच्छेअच्छे पकवानों की महक चारों ओर फैल रही थी. उस होली में बहुत मजा आया था. एकएक कर के कभी समूह में पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों का आनाजाना और होली का हुड़दंग, मैं आज तक नहीं भूल पाई.
अगले दिन दीदी को जाना था. मां और पिताजी परेशान से लग रहे थे. आंगन के एक कोने में मां ने पिताजी को बुला कर कुछ कहा तो उन्होंने जल्दी से सिर हिला दिया, जैसे उन की समस्या का समाधान हो गया हो. मैं तब छोटी थी तो क्या, पर सबकुछ देख रही थी, लेकिन सम?ा में कुछ नहीं आया.
मां ने छोटी दीदी को रसोई में बुलाया और उन के कानों से सोने की छोटीछोटी बालियां पिताजी के हाथ पर रख दीं. वे तत्काल बाहर चले गए और फिर कुछ घंटों बाद फलों की टोकरी एवं मिठाई के डब्बे ले कर रिकशे से उतरे. दीदी ने हमें प्यार किया. रुपए दिए और मां के गले लग कर रो पड़ीं, फिर पिताजी ने उन्हें आशीष दे कर विदा किया.
बड़ी दीदी इतने सामान से लदी हाथ हिलाते हुए विदा हो गईं और छोटी दीदी बारबार अपनी उंगलियां अपने सूने कानों पर फेरती हुई आंसू पोंछती अंदर आ गईं. मां ने उन्हें प्यार से देखा और स्नेहभरे स्वर में कहा, ‘नई ला दूंगी, सीमू.’
हैसियत से ज्यादा दे देने के बाद भी कुछ और देने की चाह लिए मां काफी शांत हो गई थीं. पड़ोसी देर तक बाहर ही पिताजी के साथ खड़े रहे और दीदी की अच्छी शादी और अच्छी विदाई का गुणगान करते जा रहे थे. पिताजी के चेहरे पर संतोष का भाव प्रदीप्त होता जा रहा था.
‘‘काम हो गया, बीबीजी,’’ कहते हुए भागवंती ने तंद्रा तोड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और राखी पर मिले 500 में से 300 रुपए उस के हाथ पर रख दिए. उस की आंखों की चमक ठीक मां की आंखों की चमक की तरह ही थी. मैं मुसकराई कि आज फिर ममता की छांव में सबकुछ लूट कर ले जाने वाला प्यारा डाकू आने वाला है, जिस के स्वागत में खुशी से ?ामती जाती हुई भागवंती को मैं खिड़की से देर तक निहारती रही. तभी किसी ने मेरा आंचल खींचा और जब मैं ने पलट कर देखा तो मेरी 5 वर्षीय बिटिया पल्लू पकड़े मुसकरा रही थी. मैं ने उसे प्यार से हवा में उछाला और ‘प्यारा डाकू’ कहते हुए सीने से लगा लिया.
ऋतु मंजरी
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‘‘हूं, तो आ गई भागवंती. कितनी बार कहा कि थोड़ा जल्दी आया कर, पर तू सुने तब न. खैर, चल जल्दीजल्दी सफाई कर ले, मु?ो भी बाहर जाना है,’’ कह कर मैं आश्वस्त हो कर फैले हुए कपड़े समेटने लगी, पर भागवंती बुत बनी खड़ी रही. उसे देख कर मैं बोली, ‘‘क्या बात है, खड़ी क्यों है?’’
‘‘बीबीजी…’’
‘‘हांहां, बोल, क्या बात है?’’
‘‘बीबीजी, मेरी लड़की…’’ कह कर वह फिर चुप हो गई.
‘‘लड़की, क्या हुआ तुम्हारी लड़की को?’’ मैं ने थोड़ा घबरा कर पूछा.
‘‘कल होली है न, बीबीजी. वह आज शाम दामाद के साथ आ रही है.’’
‘‘ओह,’’ मैं ने आह भरी, ‘‘बड़ी पागल है तू. इस में घबराने की क्या बात है? तू ने तो मु?ो डरा ही दिया था. जा, अब जल्दी काम कर.’’
‘‘बीबीजी, कुछ रुपए मिल जाते तो…’’
‘‘रुपए? लेकिन अभी तो महीने के
7 दिन ही गुजरे हैं,’’ फिर कुछ सोच कर मैं बोली, ‘‘कितने रुपए चाहिए?’’
‘‘300 रुपए, बीबीजी,’’ वह बहुत धीमी आवाज में बोली और याचनाभरी नजरों से मु?ो घूरने लगी.
मैं असमंजस में पड़ गई कि इसे इतने रुपए कहां से दूं. सोचा, मना कर दूं, पर उस की याचनामिश्रित, आशापरक नजरों ने मु?ो ऐसा करने से रोक दिया.
मैं कोठी वाली बीबीजी थी, पर मेरा हाल भी रेशमी परदे वाले उस घर की तरह ही था जिस के अंदर गरीबी अपने पूरे साजशृंगार के साथ दुलहन बनी बैठी थी. हां, इतना जरूर है कि दो जून भरपेट खाने को रोटी इज्जत के साथ मिल जाती है. ससुरजी मरने से पहले कोठी बना मेरे नाम कर गए और मैं कोठी वाली बीबीजी बन बैठी.
मैं ने भागवंती की ओर देखा, वह अभी तक टकटकी लगाए खड़ी थी. अचानक मु?ो कुछ याद आया और मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ उसे रुपयों के लिए स्वीकृति दे दी. अपने सांवले, ?ार्रियों वाले चेहरे पर लुढ़क आए आंसू उस ने ?ाट से अपने आंचल से पोंछे और आश्वस्त हो कर दोगुने जोश में काम में जुट गई. बीचबीच में बड़बड़ा रही थी, ‘आप बहुत दयालु हैं, मेरी तो यही दुआएं हैं कि आप के एक का लाखों बने.’
मैं चुपचाप पलंग पर लेट गई और आंखें बंद कर 20 बरस पुरानी यादों में खो गई.
तब मैं बहुत छोटी थी. बड़ी दीदी शादी के बाद पहली बार ससुराल से होली के अवसर पर आ रही थीं. 2 दिनों पहले ही पिताजी के औफिस में चिट्ठी आई थी और उन्होंने एक क्षण भी जाया न कर के अग्रिम वेतन व साइकिल के लिए अर्जी दे दी थी. काफी दौड़धूप व सिफारिश के बाद दूसरे ही दिन अग्रिम वेतन व साइकिल प्राप्त कर वे औफिस से जल्दी घर आ गए थे.
उस दिन मांपिताजी दोनों ही खुश थे. मां ने शाम को सामान की लंबी लिस्ट पिताजी के सुपुर्द कर उन की साइकिल पर बड़ेबड़े 2 ?ाले करीने से टांग दिए. पिताजी के जाने के बाद मां छोटी दीदी को सम?ाने लगीं, ‘कल गुडि़या आ रही है, सीमू. घर चमका दे.’
‘‘हां, अलमारी के पेपर भी बदल देना वरना जीजाजी कहेंगे, कितनी गंदी है मेरी साली,’ मेरे भाई ने मुंह थोड़ा टेढ़ा कर के नाटकीय अंदाज में कहा, तो सभी हंस पड़े. फिर मां ने उस का कान पकड़ कर कहा, ‘चल यहां से, बहुत बोलता है. देख, कहीं जाले तो नहीं हैं. ठीक से साफ कर दे,’ इतना कह कर मां रसोई में जा कर व्यस्त हो गईं.
रात काफी देर तक हम लोग दीदी की बातें करते सो गए पर मांपिताजी जाने कितनी देर तक खुसुरफुसुर करते रहे. मां ने सवेरे सब को जल्दी उठा दिया. सब लोग नहाधो कर तैयार हो गए. महरी अपनी साड़ी समेटे हंसती हुई आंगन धो रही थी और मां न जाने उसे क्याक्या निर्देश देती जा रही थीं. हम सब की निगाहें द्वार पर टिकी थीं. क्योंकि ट्रेन आ जाने की सूचना पिताजी से मिल गई थी. एकाएक एक तिपहिया स्कूटर घर के पास आ कर रुक गया.
दीदी स्कूटर से उतरीं. वे पहले से बहुत सुंदर लग रही थीं. मु?ो देख कर वे मुसकराईं, फिर ?ाक कर मेरे गाल थपथपाते हुए बोलीं, ‘क्यों, मु?ो पहचान नहीं रही है क्या?’ फिर वे मेरा हाथ पकड़ कर अंदर आ गईं. अंदर आ कर मांपिताजी ने उन्हें कलेजे से लगाया. उन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. हम सब दीदी को घेर कर बैठ गए. सारा दिन धमाचौकड़ी होती रही. घर खुशियों से भर गया था. घर में अच्छेअच्छे पकवानों की महक चारों ओर फैल रही थी. उस होली में बहुत मजा आया था. एकएक कर के कभी समूह में पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों का आनाजाना और होली का हुड़दंग, मैं आज तक नहीं भूल पाई.
अगले दिन दीदी को जाना था. मां और पिताजी परेशान से लग रहे थे. आंगन के एक कोने में मां ने पिताजी को बुला कर कुछ कहा तो उन्होंने जल्दी से सिर हिला दिया, जैसे उन की समस्या का समाधान हो गया हो. मैं तब छोटी थी तो क्या, पर सबकुछ देख रही थी, लेकिन सम?ा में कुछ नहीं आया.
मां ने छोटी दीदी को रसोई में बुलाया और उन के कानों से सोने की छोटीछोटी बालियां पिताजी के हाथ पर रख दीं. वे तत्काल बाहर चले गए और फिर कुछ घंटों बाद फलों की टोकरी एवं मिठाई के डब्बे ले कर रिकशे से उतरे. दीदी ने हमें प्यार किया. रुपए दिए और मां के गले लग कर रो पड़ीं, फिर पिताजी ने उन्हें आशीष दे कर विदा किया.
बड़ी दीदी इतने सामान से लदी हाथ हिलाते हुए विदा हो गईं और छोटी दीदी बारबार अपनी उंगलियां अपने सूने कानों पर फेरती हुई आंसू पोंछती अंदर आ गईं. मां ने उन्हें प्यार से देखा और स्नेहभरे स्वर में कहा, ‘नई ला दूंगी, सीमू.’
हैसियत से ज्यादा दे देने के बाद भी कुछ और देने की चाह लिए मां काफी शांत हो गई थीं. पड़ोसी देर तक बाहर ही पिताजी के साथ खड़े रहे और दीदी की अच्छी शादी और अच्छी विदाई का गुणगान करते जा रहे थे. पिताजी के चेहरे पर संतोष का भाव प्रदीप्त होता जा रहा था.
‘‘काम हो गया, बीबीजी,’’ कहते हुए भागवंती ने तंद्रा तोड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और राखी पर मिले 500 में से 300 रुपए उस के हाथ पर रख दिए. उस की आंखों की चमक ठीक मां की आंखों की चमक की तरह ही थी. मैं मुसकराई कि आज फिर ममता की छांव में सबकुछ लूट कर ले जाने वाला प्यारा डाकू आने वाला है, जिस के स्वागत में खुशी से ?ामती जाती हुई भागवंती को मैं खिड़की से देर तक निहारती रही. तभी किसी ने मेरा आंचल खींचा और जब मैं ने पलट कर देखा तो मेरी 5 वर्षीय बिटिया पल्लू पकड़े मुसकरा रही थी. मैं ने उसे प्यार से हवा में उछाला और ‘प्यारा डाकू’ कहते हुए सीने से लगा लिया.
ऋतु मंजरी
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May 20, 2022 at 12:04PM
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